खुदको बदलने मे समय दों | जीत निश्चित मिलेगी |Buddhist motivational Story on the Self improvement

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खुदको बदलने मे समय दों | जीत निश्चित मिलेगी |Buddhist motivational Story on the Self improvement इस...
Video Transcript:
इस वीडियो में एक अजीब सा रहस्य बताया है जिससे आप अपने अवचेतन मन की शक्ति को इस्तेमाल करके जिंदगी की बड़ी से बड़ी कठिन सफलता आसानी से प्राप्त कर सकते हैं कैसे अपने अवचेतन मन की शक्ति को इस्तेमाल करना है इसकी विधि क्या है इस विषय पर हम आज एक अद्भुत कहानी आपको सुनाएंगे तो चलिए कहानी की शुरुआत करते हैं दोस्तों हमारा जो चेतन मन होता है उससे करीब नौ गुना अधिक ताकतवर हमारा अचेतन मन होता है अगर एक गुना ताकत हमारे चेतन मन के पास है तो इसका अर्थ यह हुआ कि उससे नौ गुना
अधिक ताकत हमारे अवचेतन मन के पास है क्योंकि अवचेतन मन ही हमारे पूरे शरीर को नियंत्रित करता है चेतन मन हमारे दिमाग का एक हिस्सा है जो हमारे विचारों और भावनाओं से प्रेरित होता है और हमारा चेतन मन ही तर्क वितर्क करने में हमारी मदद करता है लेकिन दूसरी तरफ हमारा अवचेतन मन यह तर्क वितर्क नहीं करता यह उस जानकारी को ग्रहण कर लेता है जो इसे चेतन मन देता है इसीलिए जैसा हम अपने अवचेतन मन में सोचते हैं वैसे ही हम बनते चले जाते हैं क्या आपने कभी इन बातों पर विचार किया है कि
कोई व्यक्ति दुखी क्यों है और वहीं पर दूसरा व्यक्ति इतना सुखी क्यों है एक व्यक्ति सुख और समृद्धि से भरा हुआ है वहीं पर दूसरा व्यक्ति इतना गरीब और दुखी क्यों है एक व्यक्ति भयभीत और डरा हुआ है जबकि दूसरा व्यक्ति आस्था और विश्वास से भरा हुआ है एक व्यक्ति बड़े से महलों में रहता है वहीं पर दूसरा व्यक्ति गरीब और टूटी फूटी झोपड़ी में रहता है कोई बहुत सफल है तो कोई असफल कोई व्यक्ति कुछ ही मेहनत करके सफलता प्राप्त कर लेता है और वहीं पर कोई दूसरा व्यक्ति जीवन भर मेहनत करने के बाद
भी असफल ही रह जाता है तो आखिर इन सब चीजों का कारण क्या है क्या आपने कभी इन पर विचार करने की कोशिश की है हमारे जीवन में जो भी अच्छा है वह हमारे चेतन मन पर निर्भर करता है अर्थात यदि आप अपने चेतन मन में यह बात डालेंगे मेरे साथ जो कुछ भी होगा वह अच्छा होगा मेरे साथ जो कुछ भी हो रहा है वह अच्छा हो रहा है और मैं एक दिन कामयाब जरूर बनूंगा तो आप अवश्य ही अपने जीवन में कामयाब बन जाएंगे वहीं पर यदि आप अपने अवचेतन मन में बुरी बुरी
बातें डालेंगे अर्थात नकारात्मक बातें कहेंगे तो आपके जीवन में केवल नकारात्मकता ही भर जाएगी और आपके साथ कुछ भी अच्छा नहीं होगा आप जहां जाएंगे वहां पर आपके हाथ केवल असफलता ही लगेगी आप हमेशा निराश और परेशान ही रहेंगे लेकिन उनका हल आपको कभी नहीं मिल पाएगा इसलिए यदि आप भी अपने मन को अच्छी तरह से जानना चाहते हैं वह सेवा काम करवाना चाहते हैं जो आप चाहते हैं उसे अपने नियंत्रण में रखना चाहते हैं तो इस वीडियो को अंत तक जरूर देखिएगा क्योंकि इस वीडियो में आपको ऐसी महत्त्वपूर्ण जानकारियां मिलेगी जिसकी मदद से आप
अपना जीवन अच्छे से जी सकते हैं आप जो चाहे उसे हासिल कर सकते हैं आप जिस भी लक्ष्य को प्राप्त करना चाहते हैं उसे आप प्राप्त कर सकते हैं आज की इस वीडियो में हम यह जानने वाले हैं कि आखिर चेतन मन और अवचेतन मन में मुख्य अंतर क्या है और वह किस तरह से काम करता है और हम अपने अचेतन मन में अच्छी बातें किस प्रकार से डाल सकते हैं जिससे हमारा जीवन परिवर्तित हो सके हम सफलता की ओर आगे बढ़ सके बहुत समय पहले की बात है एक नगर में एक बहुत ही प्रसिद्ध
गुरु रहा करते थे उनकी ख्याति दूर दूर तक फैली हुई थी उनके आश्रम में उनके कई शिष्य भी थे एक दिन संध्या के वक्त वह गुरुवर अपने सभी शिष्यों को बुलाकर उन्हें उपदेश दे रहे थे वे कह रहे थे शिष्यों हमारा मस्तिष्क दो भागों में विभाजित है चेतन मन और अवचेतन मन चेतन मन हमारे मस्तिष्क का पहरेदार है वहीं पर अवचेतन मन हमारा मालिक है उन गुरु की आवाज सुनकर एक शिष्य खड़ा हुआ और वह उन गुरु से कहता है है गुरुदेव आप क्या कहना चाहते हैं आप कहीं यह तो नहीं कह रहे कि हमारे
भीतर कोई और है जो में चला रहा है जो हमारी सारी क्रियाओं पर नजर रखे हुए हैं इस पर गुरुवर उस शिष्य को मुस्कुराते हुए कहते हैं भंते मैं तुम्हें एक छोटी सी कहानी सुनाता हूं इस कहानी में तुम्हें तुम्हारे सवालों का जवाब मिल जाएगा इस कहानी को ध्यानपूर्वक सुनना और इसे समझने का प्रयास करना आगे गुरुवर कहानी बताते हुए कहते हैं बहुत समय पहले की बात है एक नगर में एक बहुत ही धनी सेठ रहा करता था और उसकी एक बड़ी सी हवेली भी थी उसकी हवेली के द्वार पर हमेशा एक पहरेदार तैनात रहता
था और हवेली में जब भी कोई उपद्रव होता कोई शोर शराबा होता या लड़ाई झगड़े होते तो उसकी आवाज चारों ओर गूंजने लगती और उस आवाज को सुनकर आसपास के पड़ोसी भी उस महल के पास आते और उस पहरेदार को खूब समझाने की कोशिश करते और कहते देखो तुम्हारी हवेली से बहुत सारी आवाजें आती हैं लड़ाई झगड़े होते रहते हैं जिससे हमारे घर की शांति भंग हो जाती है कृपया करके लड़ाई झगड़े को बंद करो आखिर इस शोर शराबे में क्या रखा हुआ है इस तरह से लड़ाई झगड़े करके तुम अपना जीवन कैसे शांति से
बिता सकते हो इस पर वह पहरेदार जवाब देते हुए कहता है देखो भाई मैं जानता हूं कि लड़ाई झगड़े करना बुरी बात है शोर शराबा करना बुरी बात है लेकिन मैं क्या करूं मैं भी इससे बहुत परेशान हूं जो भी लड़ाइयां होती हैं वह हवेली में होती है इससे मेरी भी शांति भंग होती है लेकिन आप मुझे क्यों समझा रहे हैं इसका कारण मैं तो नहीं इसका कारण तो मेरा मालिक है आप उसे जाकर समझाइए यह बात सुनकर पड़ोसी भी यह बात समझ जाता कि बात तो सही है आखिर इसमें इस पहरेदार की क्या गलती
है यह तो केवल अपना काम कर रहा है गलती तो मालिक ही है वह उपद्रव करता है वह शोर शराबे करता है वह लड़ाई झगड़े करता है और जब भी उसे यह सब करने का मन होता है तो वह हवेली के बाहर आता है और उपद्रव करके वह वापस हवेली में जाकर बैठ जाता है और जिन लोग लोगों को भी उस हवेली के मालिक से तकलीफ होती जिनकी भी शांति भंग होती वे सभी आकर उस पहरेदार को ही समझाने का प्रयास करते वह उसे खूब समझाते लेकिन क्या इससे यह समस्या सुलझे गी इस प्रश्न के
साथ गुरुवर अपने शिष्य से कहते हैं तुम ही बताओ इसका क्या समाधान है इस पर वे शिष्य गुरु के इस प्रश्न का जवाब देते हुए कहता है है गुरुवर जिन्हें भी उन हवेली के मालिक से तकलीफ है जो शोर शराबे करता है लड़ाई झगड़े करता है और लोगों की शांति भंग कर देता है उन सभी को उनसे बात करनी चाहिए तभी तो इसका समाधान निकलेगा भला पहरेदार की इसमें क्या गलती है वह तो केवल अपना काम कर रहा है और वह उससे ज्यादा कर भी क्या सकता है उसके हाथों में तो और कुछ भी नहीं
इस पर वह गुरुवर मुस्कुराते हुए अपने उस शिष्य से कहते हैं भंते ठीक इसी तरह से हमारा मन भी होता है हमारा चेतन मन मनुष्य का पहरेदार होता है और पहरेदार को यह अच्छी तरह से पता है कि क्रोध करना बुरी बात है बुरे शब्दों का इस्तेमाल करना बुरी बात है अश्लील ख्यालों में खोए रहना बुरी बात है अर्थात हमारे चेतन मन को यह बात बहुत अच्छी तरह से पता है कि गुस्सा करना आलस करना काम वासना जैसे विचार गलत है यह सभी विकार हमारे भीतर नकारात्मक विचार उत्पन्न करते हैं जिससे हमारा विनाश होता है
लेकिन वह कर भी क्या सकता है वह चीज उसके हाथों में है ही नहीं क्योंकि वह चीज वह कर ही नहीं रहा यह तो वह अंदर बैठा मालिक कर रहा है अर्थात हमारा अवचेतन मन जो हमसे कोई भी कार्य बहुत ही आसानी से करवा लेता है और यह सभी बातें हम में से हर सभी अच्छी तरह से जानते हैं और हमें ऐसा लगता भी है कि हम अच्छी तरह से समझ चुके हैं जैसे कि वह पहरेदार समझता है लेकिन वास्तविकता में तो इससे हमारे जीवन पर कोई भी बुनियादी फर्क नहीं पड़ता आगे वह गुरु उस
शिष्य से कहते हैं भंते तुमने भी अपने आप को कई बार यह समझाने की कोशिश की हो कि मुझे सुबह सही समय पर उठना है आश्रम की साफ सफाई करनी है भिक्षा मांगने जाना है और रात को आने के बाद मुझे ध्यान भी करना है लेकिन क्या इससे कोई फर्क पड़ा इसका जवाब देते हुए वि शिष्य कहता है नहीं बिल्कुल नहीं मैंने कई बार अपने आप को समझाया है कि मुझे इस समय पर यह काम करना है मुझे अपना समय व्यर्थ नहीं करना मुझे अपने समय का इस्तेमाल करना है और मुझे आगे बढ़ना है लेकिन
मैं चाहकर भी उन सभी कार्यों को समय पर नहीं कर पाता इस पर वह गुरुवर अपने उस शिष्य से कहते हैं भंते जब भी हम अपने आप को कुछ समझाने का प्रयास करते हैं तो हमें ऐसा लगता है कि अब हम समझ चुके हैं और अब हमसे कोई गलती नहीं होने वाली और हम सोचते हैं कि अब हमारा जीवन बदल जाएगा हम जो भी करेंगे अब वह सही होगा अब तो हम जीवन में सफलता प्राप्त कर ही लेंगे लेकिन दूसरे ही पल हम यह पाते हैं कि हमारे जीवन में कोई बुनियादी बदलाव आया ही नहीं
और ऐसा केवल हमारी ना समझी के कारण होता है हम अपनी नासमझी के कारण अवचेतन मन की जगह पर अपने चेतन मन को समझाने का प्रयास करते हैं अर्थात मालिक को छोड़कर हम पहरेदार से बात करते रहते हैं और उसे समझाने की कोशिश करते हैं लेकिन तुम यह भूल जाते हो कि आखिर वह पहरेदार कर भी क्या सकता है वह सब उसके हाथों में है ही नहीं हमें तो अपने अवचेतन मन को समझाने की आवश्यकता है हमारी बुद्धि अर्थात वह पहरेदार जो यह समझ जाता है कि क्या सही है और क्या गलत उसे कब क्या
करना है क्या नहीं करना लेकिन यह सारी बातें केवल हमारे पहरेदार अर्थात हमारे चेतन मन के सीमित रह जाती हैं यह सारी बातें हवेली के उस मालिक अर्थात हमारे अवचेतन मन तक तो पहुंच ही नहीं पाती और यही कारण है कि हमारे जीवन में कभी कोई बुनियादी बदलाव हो ही नहीं पाता ठीक उसी प्रकार जैसे कि यदि आपसे कोई कहता है कि पौधे में पानी डालोगे तो वह पौधा एक दिन बड़ा होगा और फिर उसमें फौल आएंगे फल लगेंगे और आप उस बात को मान लेते हैं और उस पौधे में पानी भी डालते हैं लेकिन
आप पौधे की पत्तियों पर पानी डालते हैं और सोचते हैं कि इसमें फल फोल आएंगे लेकिन जरा एक बार के लिए यह सोचिए अगर पत्तियों में पानी डालोगे तो उसमें फूल और फल कैसे आएंगे हमें तो उस पौधे की जड़ में पानी डालने की आवश्यकता है लेकिन हम में से अधिकांश लोग केवल पत्तियों पर ही पानी छिड़क करर अपने आप को बहुत भाग्यशाली समझने लगते हैं लेकिन वे यह भूल जाते हैं कि जो जो पानी वह पत्तियों पर छिड़क रहे हैं वह पानी पेड़ की गहराइयों में तो जा ही नहीं पा रहा तो ऐसे में
उस पौधे पर फल और फौल कैसे लगेंगी ठीक इसी प्रकार हम भी अपने मन के साथ ऐसा ही करते हैं और यही कारण है कि हम अपने जीवन में जो भी चाहते हैं वह हमें नहीं मिल पाता हम अपने जीवन में फल और फौल चाहते हैं लेकिन वह हमें नहीं मिल पाता इस पर शिष्य उन गुरुवर से कहता है है गुरुवर तो फिर हमें क्या करना चाहिए क्या ऐसा कोई उपाय है जिससे हम अपने चेतन मन की सारी बातें अपने अवचेतन मन तक पहुंचा सकें ऐसी कोई प्रक्रिया है जिसमें हम अपने संदेश को अपने चेतन
मन तक पहुंचा सके इस पर वह गुरुवर शिष्य से कहते हैं भंते यदि तुमने अपने संदेश को चेतन मन तक पहुंचा दिया तब तुम जो चाहोगे वह इच्छा प्राप्त कर सकते हो तुम जैसा चाहो उस लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हो क्योंकि हमारा अवचेतन मन हमारे चेतन मन से नौ गुना अधिक शक्तिशाली होता आपने कभी ना कभी यह देखा ही होगा कि एक मनोवैज्ञानिक जब किसी के मन के गुप्त राज्य को जानने की कोशिश करता है तब वह मनोवैज्ञानिक जब उसके मन की बात को बाहर निकलवाना चाहता है उसके अतीत में जो भी घटना घटी
है उसमें साफ साफ रूप से प्रवेश करना चाहता है तो इसके लिए वह हिप्नोटिज्म का उपयोग करते हैं और आप में से अधिकांश लोगों ने इस प्रक्रिया को देखा ही होगा इस प्रक्रिया का प्रयोग करके मन की सारी सूचनाएं अपने आप ही बाहर निकलती इस प्रकार किसी के भी मन को काबू में करके हम उससे जो चाहे वह कार्य करवा सकते हैं हां अब आपके मन में यह भी प्रश्न उठ रहा होगा कि शायद वह सभी हमारे अवचेतन मन की चाल को समझते हैं वह इसे अच्छी तरह से जानते हैं कि उसे किस तरह से
अपने काबू में किया जाता है तो इसका जवाब बड़ा ही सीधा और सरल है और इसका जवाब है हां क्योंकि उन्होंने इसके ऊपर कई बार प्रयोग किया होता है और वह इसमें इतने निपुण हो जाते हैं कि वह किसी भी दूसरे मन पर अपना काबू कर सकते हैं और अगर आप भी अपने अवचेतन मन की बात को समझते हैं अपने मन की चाल को समझते हैं तो आप भी अपने ही नहीं बल्कि किसी दूसरे के मन को भी वश में कर सकते हैं आगे गुरुवर अपने उस शिष्य से कहते हैं भंते अपने अचेतन मन तक
संदेश पहुंचाने के लिए आपको अपने चेतन मन को शांत करना होगा उसे सुलाना होगा और ऐसा इसलिए क्योंकि हमारा चेतन मन तर्क वितर्क करने में माहिर है वह एक पहरेदार है वह हमारी रक्षा के लिए हमेशा तैनात रहता है इसलिए जब भी तुम अपना कोई संदेश उस चेतन मन तक पहुंचाने की कोशिश करोगे तो वह तुमसे तर्क वितर्क जरूर करेगा और हमें अपनी बात अपने मालिक तक पहुंचाने की हमें इजाजत तक नहीं देगा जब तक कि हम अपनी बात अपने चेतन मन को अच्छी तरह से समझा नहीं देते या उसे शांत नहीं कर देते तब
तक वह हमें उस हवेली में घुसने नहीं देगा क्योंकि हमारी सामान्य बुद्धि अर्थात हमारा चेतन मन तर्क वितर्क करने में माहिर होता है और यही कारण है कि हम में से अधिकांश लोग अपने अचेतन मन तक एक साफ और स्पष्ट संदेश पहुंचा ही नहीं पाते और इसी कारण हम अपने अचेतन मन को भी अच्छी तरह से समझ नहीं पाते और हमारा अचेतन मन तर्क वितर्क नहीं करता उसे तो केवल साफ और स्पष्ट संदेश चाहिए जिस पर वह कार्य कर सके और उस तक हम साफ और स्पष्ट संदेश तभी पहुंचा सकते हैं जब हमारा मन पूरी
तरह से शांत रहेगा जब हमारे मन में और कोई विचार नहीं होंगे और यही कारण कि जब एक मनोवैज्ञानिक किसी के मन पर प्रयोग करता है उसके मन को काबू करने की कोशिश करता है उससे मन चाही बात निकलवाने की कोशिश करता है तो सबसे पहले वह उसके चेतन मन को ही सुनाता है आपने कहीं ना कहीं यह तो देखा ही होगा कि उनके सामने एक पेंडुलम जैसी चीज उनकी आंखों के सामने रख दी जाती है और उसे घुमाया जाता है जिसे लगातार देखने के बाद वह व्यक्ति पूरी तरह से निद्रा में चला जाता है
और इस कारण उसका चेतन मन पूरी तरह से शांत हो जाता है और जब उसका पहरेदार पूरी तरह से सो जाता है और उसके पास तर्क वितर्क करने के लिए कोई नहीं बचता तब वह वैज्ञानिक आसानी से उस हवेली में जाता है और उस मालिक से जी भर के बातें करता है जो बातें वह चाहता है वह बातें वह उससे निकलवा देता है टिब के एक महान दार्शनिक ने कहा था कि अगर बात समझ में आ जाए तो आपका जीवन परिवर्तित हो जाता है लेकिन उन्होंने वह बात उस समय के लोगों के लिए कही थी
क्योंकि उस समय टिब और बाकी दुनिया के के लोग बहुत सरल हुआ करते थे उनका मन बहुत साफ हुआ करता था और उनको जो भी बातें बताई जाती थी वह उन बातों को बड़ी शांति पूर्वक सुनते और समझते थे उस समय कोई भी तर्क वितर्क नहीं करता था और जब कोई व्यक्ति तर्क वितर्क करने में माहिर होता था तो वह उसे तर्क वितर्क करने देते और शांति से केवल उसकी बातें सुनते जब तक कि व्यक्ति तर्क अभी तर्क वितर्क करके थक ना जाए तो वह गुरु के पास वापस आता है और उनसे कहता है है
गुरुवर मैं अब तर्क वितर्क करके थक चुका हूं लेकिन उससे मुझे कुछ भी हासिल नहीं हुआ कृपया करके अपना कोई मार्ग बताइए आप मुझे अपने तरीके से समझाए अब मैं उसमें कोई भी अवरोध उत्पन्न नहीं करूंगा ठीक इसी प्रकार से हमारी बुद्धि भी काम करती है जब हमारा मस्तिष्क तर्क वितर्क करके थक जाता है तब उसे इस बात का एहसास होता है कि तर्क वितर्क करके उसे कुछ भी हासिल नहीं होने वाला और उस समय तक उसे कुछ भी समझ में नहीं आएगा दोस्तों महात्मा बुद्ध अपनी बातों को तीन बार दोहराया करते थे और यदि
कोई बात आपसे तीन-तीन बार कही जाए तो क्या आप उस बात को सुन पाएंगे मान लीजिए आप किसी चिकित्सक के पास जाते हैं और वह चिकित्सक आपसे एक बार कहता है कि आप ठीक हैं आपको कुछ नहीं हुआ तो यह बात आप सुन लेते हैं और आपको यह बात समझ में आ जाती है कि मैं ठीक हूं और मुझे कुछ भी नहीं हुआ लेकिन अगर वही चिकित्सक आपसे बार-बार वही बात कहे बार-बार वह वही बात दोहराए तो क्या आपको क्रोध नहीं आएगा आप यही कहेंगे कि हां हां मुझे वह बात समझ में आ चुकी है
आप बार-बार एक ही बात क्यों दोहरा रहे हैं मैं समझ चुका हूं कि मैं बीमार नहीं हूं और मुझे कुछ नहीं हुआ तो इसको बार-बार दोहराने से क्या फायदा लेकिन वास्तविकता तो यह है कि जब हम किसी बात को बार-बार दोहराते हैं तो उससे हमारा चेतन मन ऊब जाता है और बार-बार उस बात को सुनने से हमारा चेतन मन उस बात पर ध्यान नहीं देता और यही वह वक्त होता है जब हमारी बात हमारे अवचेतन मन तक पहुंचती है और जब आपकी बात आपके अवचेतन मन तक पहुंच जाए तो यकीन मानिए कि तब कुछ भी
संभव है फिर चाहे आप कोई अपने जीवन में बड़ा लक्ष्य प्राप्त करना चाहते हो या फिर अपना स्वास्थ्य सुधारना चाहते हो सब कुछ संभव हो जाएगा दोस्तों आपने कभी ना कभी यह किस्सा तो सुना ही होगा एक प्लेन क्रैश हो गया था और उस प्लेन का जो पायलट था उसकी प्लेन से गिरने की वजह से शरीर की सारी हड्डियां टूट चुकी थी और जब उसे अस्पताल में भर्ती किया गया तो उसे हिला डला भी नहीं जा रहा था डॉक्टरों ने भी यह जवाब दे दिया था कि तुम ठीक नहीं हो सकती और तुम्हारी हड्डियों को
फिर से जोड़ पाना लगभग नामुमकिन है लेकिन वह व्यक्ति जीना चाहता था उसने अपने अवचेतन मन में जबरदस्ती यह बात डाली कि मैं ठीक हो सकता हूं मैं ठीक हो सकता हूं और यकीन मानिए कि वह व्यक्ति सच कुछ ठीक हो गया वह अपने पैरों पर चलकर अपने घर गया ऐसा केवल हमारे अचेतन मन की शक्तियों के कारण होता है जब हम कुछ ठान लेते हैं और अपने अचेतन मन को एक स्पष्ट और साफ संदेश देते हैं तो हमारा अचेतन मन हमसे कुछ ऐसे कार्य करवाने लगता है कि हमारे लिए सब कुछ मुमकिन हो जाता
है फिर चाहे वह जीवन में कोई बड़ा से बड़ा लक्ष्य प्राप्त करना हो या फिर अपने स्वास्थ्य को सुधारना हो और पुराने जमाने में यह बहुत सरल हुआ करता था क्योंकि उस समय लोग तर्क वितर्क नहीं किया करते थे और जो भी उसे कहा जाता था वह उसे बहुत गहन ध्यान के साथ सुनते थे और समझते थे लेकिन आजकल के तथाकथित बुद्धिमान लोग वे सभी इन सभी बातों को अंधविश्वास कहते हैं लेकिन यह भी एक वास्तविकता है कि जैसा आप खुद से कहते हैं वैसा ही आप अंदर से बनते चले जाते हैं आप अंदर से
उतने ही अशांत होने लगते हैं और जो व्यक्ति अपने मन की बकबक को शांत कर पाता है वही शांति को प्राप्त कर पाता है हमारी जो बुद्धिमानी है वही हमारे अचेतन मन का एक रूप होती है हमारा चेतन मन हमें कोई भी नई चीज सीखने में हमारी मदद करता है जैसे यदि आप कोई नई भाषा सीखना चाहते हैं या फिर या फिर आप कोई नई टेक्निक सीखना चाहते हैं तो इसमें हमारा चेतन मन हमारी बहुत मदद करता है लेकिन जब बात आती है भावनाओं की अर्थात क्रोध कामना आलस इत्यादि जो कि हमारे अचेतन मन का
हिस्सा होते हैं उन्हें हमें सीखना नहीं पड़ता वह तो हमारे अंदर पहले से ही मौजूद है क्या आपने कभी एक पल के लिए यह सोचा है कि क्या आपने कभी ग्रोथ सीखा है क्या आपने कभी काम वासना सीखी है क्या आपने कभी आलस सीखा है यदि आपको बचपन से ही किसी ऐसी जगह पर रखा जाए जहां पर कोई भी व्यक्ति ना हो कोई भी इंसान ना हो तब भी आपके भीतर यह सारे गुण आ ही जाएंगे क्योंकि इसमें तो सिर्फ और सिर्फ हमारे अचेतन मन का ही काम है यानी कि वह चीजें जो प्रकृति ने
हमें पहले से ही दी है और वह सिर्फ हमारे अवचेतन मन के माध्यम से ही भरी जाती है क्योंकि हमारा अचेतन मन कभी विरोध नहीं करता क्या आपने कभी इस बात पर भी गौर किया है कि जो इस दुनिया में बाहरी चीजें हैं उसे आप सीख सकते हैं लेकिन जहां बात आती है हमारे भीतर की अर्थात ग्रोथ को ना करने वाली सीख की तो आप उस सीख को नहीं सीख पाते मान लो अगर आपको घड़ी सीखना है तो उसके बारे में हमारे अचेतन मन को कुछ नहीं पता होता लेकिन वहीं पर यदि कोई आपसे यह
कहे कि पांच और पांच 10 होते हैं तो यह बात आपके अचेतन मन को अच्छी तरह से समझ में आ जाती है क्योंकि आपका अचेतन मन विरोध नहीं करता और उसे एक साफ और स्पष्ट संदेश भी मिल रहा है इसलिए हमें अपने अवचेतन मन तक साफ और स्पष्ट संदेश भेजने की आवश्यकता होती है और यह तभी संभव है जब हमारा चेतन मन इसके आड़े ना आए तभी वह शिष्य उन गुरुवर से कहता है है गुरुवर आखिर हम अपने अवचेतन मन को साफ और स्पष्ट संदेश क्यों नहीं भेज पाते आखिर इसका क्या कारण है इसका जवाब
देते हुए गुरु शिष्य से कहते हैं भंते इसका पहला कारण यह है कि जब भी हम अपने अवचेतन मन में कोई सूचना पहुंचाने की कोशिश करते हैं तो हमारा चेतन मन पहले उससे तर्क वितर्क करता है वह यह सोचता है कि इस जानकारी से हमें लाभ होगा या हानि और जब तक हम अपनी सूचना को सही और साफ स्वस्थ तौर पर अपने अवचेतन मन तक नहीं पहुंचा पाते तब तक वह हमारे लिए काम नहीं कर सकती है मान लीजिए कि आप ईश्वर के सामने हाथ जोड़कर खड़े हैं और उनसे प्रार्थना कर रहे हैं कि है
ईश्वर मुझे एक अच्छी नौकरी मिल जाए मैं अच्छी तरह से कामयाब हो जाऊं इस दौरान हमारा चेतन मन यह सोचता है कि आखिर मुझे नौकरी मिल जाएगी और मैं कामयाब हो जाऊंगा तो उसके बाद मैं क्या करूंगा मैं ऐसा घर खरीदूंगा ऐसी गाड़ी खरीदूंगा अपने परिवार के लिए यह करूंगा वह करूंगा अपना खुद का व्यापार शुरू करूंगा ऐसे कई प्रकार के विचार हमारे चेतन मन में उठने लगते हैं और इसी कारण हम अपने औचित्य मन तक साफ और स्पष्ट संदेश भेज नहीं बाते और इसीलिए कहा जाता है कि ध्यान हमारे मन को शांत कर देता
है और शांतपुरम [संगीत] [संगीत] [संगीत] तो आपको अपने अवचेतन मन तक साफ और स्पष्ट संदेश भेजना ही होगा अपने अवचेतन मन को अपने वश में करना ही होगा और अपने अवचेतन मन को वश में करने के लिए आप यह एक तरीका अपना सकते हैं अगर आपको कोई चीज पानी है तो आपको उस चीज को मंत्र की तरह मन में दोहराना होगा और ऐसा आपको करीब 28 दिन तक करना होगा और यदि इस दौरान आपसे कोई यह कहे कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ने वाला यह सब बेकार की बातें हैं तो उनकी बातों पर यकीन मत
कीजिएगा क्योंकि यदि आप कोई बात मंत्र की तरह दोहराते हैं तो वह मंत्र अर्थात वह बातें हमारे अवचेतन मन तक पहुंच जाती हैं और एक बार यदि आपकी बात आपके अवचेतन मन तक पहुंच गई तो हम दुनिया की कोई भी चीज पा सकते हैं हम किसी भी बड़े से बड़े लक्ष्य को हासिल कर सकते हैं और उसके लिए आपको बस इतना ही करना है जब भी आप रात को सोने जाए तो बिस्तर पर लेटने के बाद नींद आने से ठीक पहले आपको करीब 10 से 15 बार अपने मन में उस मंत्र को दोहराना है जो
भी आप चाहते हैं और ऐसा करते हुए आपको नींद में चले जाना है क्योंकि हमारा अचेतन मन कभी नहीं सोता वह 24 घंटे 365 दिन आपके लिए लगातार काम करता रहता है जबकि रात को सोते समय हमारा चेतन मन पूरी तरह से शांत होता है और वह सो जाता है और यही वह समय है जब हमारा अवचेतन मन पूरी तरह से जागृत होता है यह सबसे ज्यादा शक्तिशाली होता है रात को सोते वक्त जो भी बातें आप अपने मन में डालते हैं आप वैसे ही बनते चले जाते हैं कभी आपने इस बात पर गौर किया
है कि जब भी आप रात को सोते वक्त कोई नकारात्मक बात या नकारात्मक जानकारी लेते हैं तो सुबह उठते ही आपको नकारात्मक विचार आते हैं और वहीं पर यदि आप रात को सोते वक्त सकारात्मक जानकारी या सकारात्मक बातें करते हैं तो अगले दिन सुबह आप बहुत ज्यादा ताकतवर महसूस करते हैं आपका दिन पहले से ज्यादा अच्छा लगने लगता है आप अच्छा महसूस कर पाते इसलिए रात को सोते वक्त कभी भी अपने आप से नकारात्मक बातें ना करें हो सके तो हमेशा अपने आप से सकारात्मक बातें करें या फिर आप चाहे तो इस प्रयोग को भी
अपना सकते हैं और अपने जीवन में जो कुछ भी चाहे आप उसे पा सकते हैं क्योंकि एक बार यदि आपका लक्ष्य आपके अवचेतन मन तक पहुंच गया तो उसे पाना बहुत आसान हो जाएगा फिर वह चाहे कितना भी बड़ा क्यों ना हो वह चाहे कितना भी कठिन क्यों ना हो आप उसे हासिल कर ही लेंगे आप उसमें कामयाबी पा ही लेंगे इतना कहकर वह गुरुवर शांत हो गए और वह शिष्य भी यह समझ चुका था कि आखिर हमारे चेतन मन और अवचेतन मन में क्या अंतर होता है और किस प्रकार हम अपने लक्ष्य को प्राप्त
कर सकते हैं तो दर्शकों चलिए अब सफलता पाने के ऊपर अगली रोचक कहानी की शुरुआत करते हैं दोस्तों जब हम यह सोचते हैं कि जो हुआ वह अच्छा नहीं हुआ ऐसा नहीं होना चाहिए था यदि मैं कोई तरकीब या कोई उपाय अपना लेता तो ऐसा नहीं होता यदि मैंने किसी से सलाह ही ले ली होती या फिर खुद की सूझबूझ का इस्तेमाल किया होता तो आज मुझे यह परेशानियां नहीं उठानी पड़ती मैं आज इस तरह से तकलीफों में नहीं रहता इस प्रकार हम खुद को कोसने लगते हैं खुद को दुखी करने लगते हैं मैं आपको
बता दूं कि इस तरह का पश्चाताप करने से आपको कोई लाभ नहीं होने वाला आप चाहे कितने भी हाथ पैर मार लें चाहे आप लाखों कोशिशें कर लें लेकिन आप अपने अतीत को बदल नहीं सकते क्योंकि इस तरह के विचार केवल चिंता पैदा करते हैं लेकिन यही चिंता अर्थात यही पश्चाताप हमारे लिए बहुत लाभदायक भी साबित हो सकता है अब आप में से कई लोग यह सोच रहे होंगे कि भला जो बीत गया यदि हम उस पर सोच विचार कर रहे हैं तो यह हमारे लिए कैसे लाभदायक हो सकता है हम तो पहले ही मुसीबत
में हैं हम तो पहले से ही तकलीफ में हैं तो ऐसे में यह हमारे लिए कैसे फायदेमंद हो सकता है दोस्तों अगर आप उन गलतियों से सीख लेकर खुद को बदलने का प्रयास करें तो आप अपना आने वाला भविष्य खुद ही बदल सकते हैं उसे संभाल सकते हैं अगर अतीत की गलतियों से सीख लेकर खुद को बदलने का प्रयास किया जाए तो सही मायने में वही पश्चाताप कम होता है आज की जो बौद्ध कहानी मैं आपको सुनाने जा रहा हूं इस कहानी के माध्यम से मैं आपको कुछ ऐसे तरीके बताने वाला हूं जिन तरीकों को
अपनाकर आप अपने जीवन में इस प्रकार के पश्चाताप से बच सकते हैं आप अपनी अतीत की गलतियों को भुलाकर आप अपने आप को वे एक नया इंसान बन सकते हैं जो लोग खुद पर संदेह करते हैं जो अपने ही विचारों में उलझे रहते हैं जिन्हें उनकी अतीत की गलतियां परेशान करती रहती हैं उनके लिए यह एक वरदान साबित हो सकता है एक समय की बात है एक नगर में एक युवक रहता था जो अपने कर्मों से बहुत परेशान था उसने 30 साल कड़ी मेहनत की लेकिन उसके बाद भी उसे अपने कर्मों का फल नहीं मिला
जिस कारण वह अंदर से बहुत निराश हो चुका था वह अंदर से पूरी तरह से टूट चुका था जिस कारण उसने सन्यास ग्रहण कर लिया उसने सोचा कि मैं अपने संसारी जीवन में तो कुछ ना कर सका लेकिन मैं अपने सन्यासी जीवन में अवश्य कुछ ना कुछ प्राप्त करके ही रहूंगा मैं सत्य की खोज किसी भी कीमत पर करके ही रहूंगा देखते ही देखते करीब पाच वर्ष बीत गए लेकिन अब तक उसका अपने मन पर कोई नियंत्रण नहीं था जब भी वह भिक्षा मांगने किसी नगर में जाता और वहां पर यदि उसकी नजर किसी सुंदर
स्त्री पर पड़ जाती तो उसके मन में कामुक विचार उठने लगते थे और जब भी वह शांत होता और अकेले कहीं पर बैठता तो उसे खुद पर क्रोध आता उसे खुद पर पश्चाताप होता और तब वह यह सोचता कि आखिर मैं सन्यासी क्यों बन गया जब मैं अपने मन पर नियंत्रण ही नहीं पा सकता तो मेरे इस सन्यासी जीवन का क्या फायदा इससे तो अच्छा होता कि मैं किसी अच्छी और सुंदर स्त्री से विवाह कर लेता पैसे कमाता और अपना घर परिवार संभालता हो सकता था कि मेरे अपने बच्चे भी होते लेकिन मैं भी कितना
बेवकूफ हूं मैंने अपने सारे सुख त्याग दिए और ना जाने क्यों मैं इन जंगलों में आ गया ना जाने क्यों मैंने सन्यास ग्रहण कर लिया इसी प्रकार के कई सारे विचार उसके मन में उठने लगे थे और इन्हीं विचारों के कारण उसके मन में नकारात्मकता पैदा होने लगी थी जिस कारण वह छोटी-छोटी बातों पर क्रोधित हो जाता वह अपने आप को कोसने लगता जब भी वह किसी सफल सन्यासी को देखता तो उसके मन में जलन पैदा होने लगती और वह उन्हें नीचा दिखाने के लिए हर मुमकिन प्रयास भी करता इसी प्रकार के कई तरह-तरह के
विचार उसे परेशान करने लगे थे और अब वह और भी ज्यादा चिंतित रहने लगा था उसने खाना पना पूरी तरह से छोड़ दिया था एक दिन रात्रि के वक्त वह आश्रम के बाहर बैठकर रो रहा था और रोते-रोते उसने यह तय किया कि वह अपना जीवन समाप्त कर देगा यह सोचकर वह आश्रम से निकल पड़ा और एक पहाड़ की चोट पर जाकर खड़ा हो गया रोते-रोते वह यह सोच रहा था कि मैं चाहकर भी अब अपनी पुरानी जिंदगी में वापस नहीं लौट सकता क्योंकि मैंने सबके सामने सन्यास ग्रहण किया है और एक बार सन्यास ग्रहण
करने के बाद इंसान का घर परिवार सब कुछ छूट जाता है ऐसा सोचता हुआ वह उस पहाड़ से नीचे की ओर देख रहा था उसकी आंखों से आंसू बह रहे थे लेकिन अब भी उसके मन में तरह-तरह के विचार उत्पन्न हो रहे थे वह अब भी यही सोच रहा था कि यदि मैंने अपने जीवन में सही निर्णय लिए होते तो आज मुझे यह दिन ना देखना पड़ता रोते हुए अपने कदम आगे बढ़ाने ही वाला था कि तभी उसे एक आवाज सुनाई दी कोई उसे चिल्लाकर यह कह रहा था भंते रुक जाओ जहां छोड़कर जा रहे
हो वापस वहीं से शुरुआत करनी पड़ेगी इसलिए एक बार फिर सोच लो यह आवाज सुनकर वह सन्यासी रुक गया उसने पीछे मुड़कर यहां वहां देखा लेकिन उसे वहां पर कोई भी दिखाई नहीं दिया तभी उसने जोर से चिल्लाकर कहा कौन हो तू तभी उसकी नजर एक बूढ़े बौद्ध भिक्षु पर पड़ी और उन्हें देखकर वह सन्यासी और भी क्रोधित हो उठा और कहने लगा कौन हो तुम और मुझे क्यों रोकना चाहते हो तभी वह बूढ़ा बौद्ध भिक्षु उस सन्यासी से कहता है भंते मैं तो बस इतना ही कह रहा हूं तुम जहां छोड़कर जा रहे हो
तुम्हें वापस वहीं से शुरुआत करनी पड़ेगी इसलिए निर्णय लेने से पहले एक बार फिर सोच लो कहीं तुम फिर से गलत निर्णय तो नहीं ले रहे तभी वह सन्यासी क्रोधित होकर उन बौद्ध भिक्षु से कहता है आपको क्या लगता है कि मैं बार-बार यही गलतियां दोहरा हंगा मैं मानता हूं कि मैंने अनजाने में गलतियां की है और इसका मतलब यह नहीं कि बार-बार मैं यही गलतियां दोहराते रहूंगा मैंने अपनी गलतियों से बहुत बड़ी सीख ली है लेकिन अब मैं उन गलतियों को ठीक नहीं कर सकता अब मैं उन्हें बदल नहीं सकता इसलिए मैंने बहुत सोच
समझकर यह फैसला लिया है उस सन्यासी की यह बात सुनकर वह बूढ़ा बौद्ध भिक्षु जोर-जोर से हंसने लगा और उस सन्यासी से कहता है भंते अतीत की गलतियां कोई नहीं सुधार सकता क्योंकि बीता हुआ समय कभी लौटकर नहीं आने वाला हां वे लोग मूर्ख होते हैं जो यह कहते हैं कि वे लोग अतीत को बदल सकते हैं उनसे बड़ा अज्ञानी इस दुनिया में दूसरा और कोई नहीं हो सकता क्योंकि जब तुम समय को वापस नहीं मोड़ सकते तो तुम अपनी अतीत की गलतियों को भला कैसे बदल सकते हो लेकिन जो लोग समझदार हैं जो लोग
ज्ञानी हैं वे लोग यह बात बहुत अच्छी तरह से जानते हैं कि जीवन में गलतियां करना कितना जरूरी होता है गलतियों के कारण ही तो हम सीख पाते हैं अपनी गलतियों से समझ पाते हैं और अपने भविष्य को बेहतर बना पाते हैं आगे वह बूढ़ा बौद्ध भिक्षु उस सन्यासी से कहता है भंते जब तक तुम्हें खुद की कमियों का ही पता नहीं होगा तब तक तुम अपने आप को बेहतर कैसे बना सकते हो और हमारी कमियां तो सिर्फ हमारी गलतियों से ही पता चलती है आगे वह बूढ़ा बहुत भिक्षु उस सन्यासी से कहता है बहती
है हर माता-पिता अपने बच्चों को बड़े ही लाड़ प्यार से पालते हैं वह उन पर कभी कोई आंच नहीं आने देना चाहते वह यह नहीं चाहते कि उनका बेटा कभी कोई गलतियां करें और उसे कोई तकलीफ हो लेकिन वह यह भूल जाते हैं कि जीवन एक युद्ध का मैदान है जहां हम खुद अपनी गलतियों से सीखते हैं और एक योद्धा बनते हैं और जो यह सोचता है कि वह अपने जीवन में कभी कोई गलती ही नहीं करेगा तो इसका अर्थ यह हुआ कि वह कभी भी जीवन के इस रण क्षेत्र में हिस्सा ही नहीं लेना
चाहता और जो कोई भी इस युद्ध में हिस्सा नहीं लेता वह अपने जीवन में कभी कुछ नया नहीं कर पाता ना ही वह अपने जीवन में कुछ सीख पाता है वह तो केवल वही करता है जो उसे सिखाया गया है और जो व्यक्ति इस युद्ध भूमि में हिस्सा लेता है वह यह अच्छी तरह से जानता है कि उसे कई बार गिरना होगा कई बार संभलना होगा लेकिन उसे रुकना नहीं है बल्कि उसे चलते रहना है क्योंकि जीवन चलते रहने का नाम है इस पर वह सन्यासी और भी क्रोधित हो उठता है और बौद्ध भिक्षु से
कहता है आखिर तुम कहना क्या चाहते हो तुम इस तरह से मेरा समय व्यर्थ कर रहे हो जो भी कहना है जल्दी कहो अन्यथा अच्छा नहीं होगा तभी वह बूढ़ा बौद्ध भिक्षु एक बार फिर मुस्कुराने लगा और उस सन्यासी से कहता है भंते आज मैं तुम्हें जीवन के ऐसे पांच तरीके बताने वाला हूं जिनका पालन करके तुम अपने अतीत की गलतियों को अपनी ताकत में बदल सकते हो आगे वह बौद्ध भिक्षु उस सन्यासी से पूछते हैं भंते क्या तुम जानना चाहोगे कि वह पांच तरीके कौन से हैं यदि तुम जानना चाहते हो तो इसके लिए
तुम्ह भी मुझे एक वचन देना होगा तभी वह सन्यासी कहता है कैसा वचन तभी वह बूढ़ा बौद्ध भिक्षु बड़े ही प्रेम से उस सन्यासी से कहता है बस इतना ही कि तुम अपने मन से आत्महत्या का ख्याल निकाल दोगे सिर्फ तभी मैं तुम्हें यह पांच बातें बताऊंगा अन्यथा तुम अपने फैसले पर अटल रह सकते हो लेकिन याद रखना कि जो गलतियां तुमने पहले दोहराई हैं हो सकता है कि इस बार भी तुम वही गलती कर रहे हो इतना कहकर वह बूढ़ा बौद्ध भिक्षु शांत हो गया और वह सन्यासी कुछ देर के लिए सोच विचार में
पड़ गया वह यह नहीं समझ रहा था कि वह क्या करें यदि वह आत्महत्या करता है तो उसे वह पांच बातें नहीं पता चल पाएंगी और यदि वह पांच बातें जानने के लिए जाता है तो उसे आत्महत्या का ख्याल मन से निकालना पड़ेगा वह सन्यासी असमंजस में पड़ गया लेकिन काफी देर सोच विचार करने के बाद आखिरकार उसने उस बूढ़े बौद्ध भिक्षु की बात मान ली और वह उन बूढ़े बौद्ध भिक्षु के पास पहुंचा और कहने लगा कहिए आप क्या कहना चाहते हैं तभी वह बूढ़ा बौद्ध भिक्षु उस सन्यासी से पहली बात बताते हुए कहता
है भंते सबसे पहले तो तुम यह जान लो कि अतीत में जो भी तुमसे गलतियां हुई है वह किसकी कारण हुई उसके पीछे का क्या कारण था क्योंकि कोई भी गलती करने के पीछे कुछ मुख्य कारण अवश्य होते हैं तुम्हें सबसे पहले उन कारणों को पहचानना होगा वह कारण या तो कोई मजबूरी हो सकते हैं या कोई इंसान हो सकता है जिसके कारण तुमने वह सारी गलतियां की या फिर हो सकता है कि तुमने वह गलतियां केवल अपने स्वार्थ के लिए की हो तुम्हें उन कारणों को पहचानना होगा यदि तुम्हें किसी से धोखा मिला तो
क्यों मिला क्या तुमने कभी इसके ऊपर विचार किया है क्योंकि शायद तुमने उस पर हद से ज्यादा विश्वास किया होगा एक बार यदि तुमने उस कारण को पकड़ लिया और उसे जान लिया तो तुम यह समझ पाओगे कि तुमने कहां कमी रह गई तुमने कहां पर गलती की और एक बार यदि तुम अपनी गलती को समझ जाओगे तो तुम उसे सुधार भी सकते हो ताकि वैसी गलती भविष्य में तुमसे दोबारा ना घटे आगे वह बूढ़ा बौद्ध भिक्षु उस सन्यासी से कहता है गलतियां हमें दुख नहीं देती दुख हमें तब होता है जब हम अपनी गलतियों
को बार-बार दोहराते हैं जब हमें इस बात का एहसास होता है कि शायद हम अपनी गलती को अब सुधार नहीं सकते और शायद हमारे भीतर अब उतना आत्म बल नहीं बचा कि हम उन गलतियों से सीखकर उन्हें सुधार सकें जब हमें खुद पर संदेह होने लगता है खुद पर संशय होने लगता है तब हमें पीड़ा होती है किंतु एक बार केवल एक बार यदि तुम यह समझ जाओ कि गलती करके जब हम उससे सीख लेते हैं और उस गलती को सुधारने का हर मुमकिन प्रयास करते हैं तो हमारे भीतर एक विश्वास जाग उठता है और
फिर हमें कभी कोई दुख नहीं परेशान करता इसलिए हमें किसी भी गलती के पीछे का कारण जानना बहुत आवश्यक होता है और इसके लिए तुम चाहो तो खाली बैठकर चिंतन कर सकते हो यह इतना मुश्किल भी नहीं है एक बार अगर उस गलती के पीछे की वजह तुम्हें समझ में आ जाए तब दूसरा तरीका काम आता है जब हम गलती के पीछे की वजह को जान जाते हैं उसे समझ जाते हैं तो उसके बाद हमें खुद से एक सवाल करना चाहिए और वह सवाल यह है कि गलती करने से पहले हम कैसे इंसान थे और
यह गलती करने के बाद हमारे अंदर क्या परिवर्तन हुआ है क्या हमने अपनी गलती से कोई सीख ली है या नहीं और यदि सीख ली तो फिर हमने अपने बारे में क्या क्या जाना आगे वह बूढ़ा बौद्ध भिक्षु उस सन्यासी से कहता है भंते यदि तुम इस प्रकार खुद से सवाल करोगे तो तुम पाओगे कि तुम्हारे जीवन में कुछ नए अनुभव जुड़ गए हैं और यह अनुभवी तुम्हें आगे ले जाएंगे क्योंकि यह जीवन में आगे बढ़ने के लिए तुम्हारी बहुत मदद करेंगे तुमने देखा होगा कि जब किसी को जीवन में धोखा मिलता है तो अधिकांश
लोग केवल यह सोचते हैं कि आखिर इसमें हमारी क्या गलती थी लेकिन वह इस वास्तविकता को नहीं देख पाते कि आख ि तुम्हें धोखा मिला है तो क्यों मिला क्योंकि आप एक संवेदनशील इंसान है और जब आप ज्यादा संवेदनशील हो जाते हैं तो ऐसी स्थिति में आपकी संवेदनशीलता ही आपके धोखे का कारण बनती है और यही आपकी गलती है और जब आपको अपनी गलती के बारे में पता चल गया तो आपने यह भी सीख लिया कि आपकी गलती थी अधिक संवेदनशीलता आपने अपने बारे में कुछ नया अनुभव प्राप्त किया अगर तुम एक बार अपने बारे
में निरीक्षण करना शुरू करोगे तो अपने बारे में तुम्हें बहुत सी अद्भुत बातें पता चलेंगी और तब तुम खुद ही आश्चर्य चकित हो जाओगी क्योंकि तुम खुद के बारे में और अधिक जानने लगोगे इसलिए खुद का निरीक्षण करना अति आवश्यक है आगे वह बूढ़ा बौद्ध भिक्षु उस सन्यासी से तीसरी आदत बताते हुए कहता है तीसरे तरीके में हम खुद से संकल्प करते हैं हम यह दृढ़ संकल्प बना लेते हैं कि हम भविष्य में दोबारा यह गलती नहीं दोहराने वाले हां हमसे कुछ नई गलतियां आवश्यक होंगी लेकिन यह गलतियां हम जीवन में कभी नहीं दोहराएंगे आगे
वह बूढ़ा बहुत बिछु पो सन्यासी से कहता है बनते इस संसार में तीन प्रकार के लोग होते हैं एक वह जो दूसरों की गलतियों से सीखते हैं दूसरे वह जो खुद की गलतियों से सीखते हैं और तीसरे वह जो गलतियां करते ही रहते हैं लेकिन कभी अपनी गलतियों से सीख नहीं पाते तुमने भिन्न-भिन्न प्रकार की नदियों को तो देखा ही होगा नदियों का अर्थ तभी निकलता है जब वह अलग-अलग जगह से होकर गुजर है अगर वही नदी एक जगह पर ठहर जाए तो क्या वह नदी कहलाए गी इसी प्रकार एक इंसान का जीवन भी नई-नई
गलतियां करने के लिए बना है इसलिए एक बार जो तुमने गलती कर दी उसके लिए दृढ़ संकल्पित हो जाओ कि तुम जीवन में वह गलतियां कभी नहीं दोहरा होगे हां हो सकता है कि तुमसे कोई नई गलतियां हो लेकिन यदि तुम बार-बार वही गलतियां दोहराते हो तो तुम मूर्ख हो ऐसी अवस्था में तुम में और किसी जानवर में कोई फर्क नहीं रह जाएगा आगे वह बहुत भिक्षु उस सन्यासी को चौथा तरीका बताते हुए कहते हैं भंते कई बार तो हमें पहले से ही अपनी गलतियों के होने का एहसास हो जाता है गलतियां होने से पहले
ही हमें उसका आभास हो जाता है कि हमसे गलतियां होने वाली है इसलिए अगर गलती होने से पहले आपको एहसास हो रहा है तो आप बहुत खुश किस्मत है और आप उस गलती को होने से रोक सकते हैं आपने कभी ना कभी इन संकेतों को महसूस किया होगा क्योंकि यह ब्रह्मांड हमें संकेत देता है लेकिन फिर भी हम में से अधिकांश लोग इन बातों को नजरअंदाज कर देते हैं जिसका परिणाम हमें बाद में भविष्य में भोगना पड़ता है लेकिन जैसे जैसे आप अपने इन अतीत की गलतियों से सीखने लगते हैं तो आपका अनुभव बढ़ने लगता
है जीवन के बारे में समझ पैदा होने लगती है और जब हमारी समझ बढ़ने लगती है तो गलतियों को होने से रोका भी जा सकता है इसलिए बुद्धिमानी का इस्तेमाल करें चिंतन करिए कि आप जो भी काम करने जा रहे हैं आखिर उसका परिणाम क्या हो सकता है कहीं वह काम कोई गलती तो नहीं कहलाएगा इसी तरह से एक मनुष्य जीवन के परिपक्व में बांटा जाता है और इसी से आपका विकास होता है और हम सभी को इस राह से होकर गुजरना ही पड़ता है अन्यथा हमारा जीवन वहीं पर ठहर जाएगा हम कभी भी आगे
नहीं बढ़ पाएंगे यदि आप अपने जीवन में आगे बढ़ना चाहते हैं किस लक्ष्य को प्राप्त करना चाहते हैं तो आपको इस कार्य प्रणाली को अपनाना ही होगा इसे समझना ही होगा आगे वह बूढ़ा बौद्ध भिक्षु उस सन्यासी को आखिरी आदत बताते हुए कहते हैं बनते आखिरी और सबसे महत्त्वपूर्ण सीख अगर तुम अपने अनुभव से एक इंसान बन चुके हो तो अब तुम दूसरों के लिए मार्गदर्शन का काम कर सकते हो तुम दूसरों की राह में दीपक बनकर उन्हें रोशनी दिखा सकते हो उन्हें उनकी राह पर आगे बढ़ा सकते हो क्योंकि हम वैसे ही बन जाते
हैं जैसा कि हम सोचते हैं और जब आप खुद को बेहतर बनाने का प्रयास करेंगे तो आप देखते ही देखते बेहतर बनते चले जाएंगे और यह प्रकृति भी आपका साथ देगी आपकी सहायता करेगी ब्रह्मांड आपको खुद बखुदा दिखाएगा और आप तब आप मानव जाति का कल्याण करने के कार्य में लग जाते हैं तब वह शास्त्रों में सबसे सर्वश्रेष्ठ कार्य माना जाता है इससे श्रेष्ठ कार्य तो और कोई हो ही नहीं सकता जो व्यक्ति समस्त जीव जंतुओं और मानव जाति के कल्याण के बारे में सोचता है ऐसे लोग परमात्मा हो जाते हैं ऐसे व्यक्तियों के मन
में प्रेम करुणा दया जैसे अनेक भाव उत्पन्न हो ने लगते हैं और परमात्मा करुणा और प्रेम का ही दूसरा नाम है इतना कहकर वह बूढ़ा बौद्ध भिक्षु शांत हो गया और उस सन्यासी को भी अपनी गलती का एहसास हो गया अब उसकी आंखों में खुशी की आंसू थे वह उन बौद्ध भिक्षु के चरणों में जा गिरा और उन बूढ़े बौद्ध भिक्षु से कहता है है गुरुवर ऐसा निर्मल और जीवन का सार्थक ज्ञान पाकर मैं धन्य हो गया आपने जो कुछ भी मुझसे कहा है उसे मैं अपने जीवन में जरूर अपना आंगा और मैं भी अपने
जीवन को सार्थक बनाकर दिखाऊंगा इतना कहकर उसने उन बौद्ध भिक्षु को प्रणाम किया और वापस अपने आश्रम लौट गया दोस्तों मैं उम्मीद करता हूं कि यह कहानी सुनने से आपके जीवन में अच्छे बदलाव आए होंगे आपको इस वीडियो से क्या सीखने मिला यह कमेंट करके जरूर बताएं और अपने परिवार दोस्तों या आपके करीबी इंसान के साथ यह कहानी शेयर करके उन्हें भी इस ज्ञान से परिचित करवाए बाकी अगर आपको यह वीडियो दिल से अच्छी लगी हो तभी इस वीडियो को लाइक कर देना और आपने अब तक इस चैनल को सब्सक्राइब ना किया हो तो चैनल
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