विश्व की सबसे सर्वश्रेष्ठ कहानी - World's Best Motivational Buddha Story | Moral Story In Hindi

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Verma ji bundi
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[संगीत] जीवन में असंभव कुछ भी नहीं है जब जागो तब सवेरा होता है अगर आपको यह लगता है कि मेरे जीवन में बहुत से बुरे काम किए हुए हैं और अब इन गलत कामों को सुधारने के लिए कोई भी विकल्प नहीं है तो आपको गौतम बुद्ध के जीवन की यह कहानी एक बार अवश्य सुननी चाहिए तो चलिए कहानी को शुरू करते हैं एक दिन एक किसान बुद्ध के पास आया और बोला महाराज मैं एक साधारण किसान हूं बीज बोकर हल चलाकर अनाज उत्पन्न करता हूं और तब उसे ग्रहण करता हूं किंतु इससे मेरे मन को
तसल्ली नहीं मिलती मैं कुछ ऐसा करना चाहता हूं जिससे मेरे खेत में अमृत्व के फल उत्पन्न हो आप मुझे मार्गदर्शन दीजिए जिससे मेरे खेत में अमृत्व के फल उत्पन्न होने लगे बात सुनकर बुद्ध मुस्कुरा कर बोले भले व्यक्ति तुम्हें अमृत्व का फल तो अवश्य मिल सकता है किंतु इसके लिए तुम्हें खेत में बीज ना बोकर अपने मन में बीज बोने होंगे यह सुनकर किसान हैरानी से बोला प्रभु आप यह क्या कह रहे हैं भला मन के बीज बोकर भी फल प्राप्त हो सकते हैं बुद्ध बोले बिल्कुल हो सकते हैं और इन बीजों से तुम्हें जो
फल प्राप्त होंगे वे वाकई साधारण ना होकर अद्भुत होंगे जो तुम्हारे जीवन को भी सफल बनाएंगे और तुम्हें नेकी की राह दिखाएंगे किसान ने कहा प्रभु तब तो मुझे अवश्य बताइए कि मैं मन में बीज कैसे बो बुद्ध बोले तुम मन में विश्वास के बीज बो विवेक का हल चलाओ ज्ञान के जल से उसे सीचो और उसमें नम्रता का ऊर वर्क डालो इससे तुम्हें अमृत्व का फल प्राप्त होगा उसे खाकर तुम्हारे सारे दुख दूर हो जाएंगे और तुम्हें असीम शांति का अनुभव होगा बुद्ध से अमृत्व के फल की प्राप्ति की बात सुनकर किसान की आंखें
खुल गई वह समझ गया कि अमृत्व का फल सद् विचारों के द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है गौतम बुद्ध किसी उपवन में विश्राम कर रहे थे तभी बच्चों का एक झुंड आया और पेड़ पर पत्थर मारकर आम गिराने लगा एक पत्थर बुद्ध के सर पर लगा और उससे खून बहने लगा बुद्ध की आंखों में आंसू आ गए बच्चों ने देखा तो भयभीत हो गए उन्हें लगा कि अब बुद्ध उन्हें भला बुरा कहेंगे बच्चों ने उनके चरण पकड़ लिए और उनसे क्षमा याचना करने लगे उनमें से एक बच्चे ने कहा हमसे बड़ी भूल हो गई
है मेरी वजह से आपको पत्थर लगा और आपके आंसू आ गए इस पर बुद्ध ने कहा ब मैं इसलिए दुखी हूं कि तुमने आम के पेड़ पर पत्थर मारा तो पेड़ ने बदले में तुम्हें मीठे फल दिए लेकिन मुझे मारने पर मैं तुम्हें सिर्फ भय दे सका एक बार भगवान बुद्ध अपने अनुयायियों के साथ किसी गांव में उपदेश देने जा रहे थे उस गांव से पूर्व ही मार्ग में उन लोगों को जगह-जगह बहुत सारे गड्ढे खुदे हुए मिले बुद्ध के एक शिष्य ने उन गड्ढों को देखकर जिज्ञासा प्रकट की आखिर इस तरह के गड्ढे खुदे
होने का तात्पर्य क्या है बुद्ध बोले पानी की तलाश में किसी व्यक्ति ने इतने गड्ढे खोदे हैं यदि वह धैर्य पूर्वक एक ही स्थान पर गड्ढा खोदता तो उसे पानी अवश्य मिल जाता पर वह थोड़ी देर गड्ढा खोदता और पानी ना मिलने पर दूसरा गड्ढा खोदना शुरू कर देता व्यक्ति को परिश्रम करने के साथ धैर्य भी रखना चाहिए एक बार भगवान बुद्ध भिक्षा के लिए एक किसान के यहां पहुंचे तथागत को भिक्षा के लिए आया देखकर किसान उपेक्षा से बोला श्रमण मैं हल जोतता हूं और तब खाता हूं तुम्हें भी हल जोतना और बीज बोना
चाहिए और तब खाना खाना चाहिए बुद्ध ने कहा महाराज मैं भी खेती ही करता हूं इस पर किसान को जिज्ञासा हुई बोले गौतम मैं ना तुम्हारा हल देखता हूं ना ना बैल और ना खेती के स्थल तब आप कैसे कहते हैं कि आप भी खेती ही करते हैं आप कृपया अपनी खेती के संबंध में समझाई बुद्ध ने कहा महाराज मेरे पास श्रद्धा का बीज तपस्या रूपी वर्षा प्रजा रूपी जत और हल है पाप भरता का दंड है विचार रूपी रस्सी है स्मृति और जागरूकता रूपी हल्की फाल और पेनी है मैं वचन और कर्म में संयत
रहता हूं मैं अपनी इस खेती को बेकार घास से मुक्त रखता हूं और आनंद की फसल काट लेने तक प्रयत्नशील रहने वाला हूं अपमा मेरा बैल है जो बाधाएं देखकर भी पीछे मुह नहीं मोड़ता है वह मुझे सीधा शांति धाम तक ले जाता है इस प्रकार मैं अम की खेती करता हूं एक बार बुद्ध से मलुक पुत्र ने पूछा भगवन आपने आज तक यह नहीं बताया कि मृत्यु के उपरांत क्या होता है उसकी बात सुनकर बुद्ध मुस्कुराए फिर उन्होंने उससे पूछा पहले मेरी एक बात का जवाब दो अगर कोई व्यक्ति कहीं जा रहा हो और
अचानक कहीं से आकर उसके शरीर में एक विष बुझा बाण घुस जाए तो उसे क्या करना चाहिए पहले शरीर में घुस से बाण को हटाना ठीक रहेगा या फिर देखना कि बाण किधर से आया है और किसे लक्ष्य कर मारा गया है मलू के पुत्र ने कहा पहले तो शरीर में घुसे बाण को तुरंत निकालना चाहिए अन्यथा विष पूरे शरीर में फैल जाएगा बुद्ध ने कहा बिल्कुल ठीक कहा तुमने अब यह बताओ कि पहले इस जीवन के दुखों के निवारण का उपाय किया जाए या मृत्यु की बाद की बातों के बारे में सोचा जाए मलुक
के पुत्र अब समझ चुका था और उसकी जिज्ञासा शांत हो गई एक दिन एक व्यक्ति बुद्ध के पास पहुंचा वह बहुत अधिक तनाव में था अनेक प्रश्न उसके दिमाग में घूम घूम कर उसे परेशान कर रहे थे जैसे आत्मा क्या है आदमी मृत्यु के बाद कहां जाता है सृष्टि का निर्माता कौन है स्वर्ग नरक की अवधारणा कहां तक सच है और ईश्वर है या नहीं उसे इन प्रश्नों के उत्तर नहीं मिल रहे थे जब वह बुद्ध के पास पहुंचा तो उसने देखा कि बुद्ध को कई लोग घेर कर बैठे हैं बुद्ध उन सभी के प्रश्नों
व जिज्ञासाओं का समाधान अत्यंत सहज भाव से कर रहे हैं काफी देर तक यह क्रम चलता रहा किंतु बुद्ध धर्य पूर्वक हर एक को संतुष्ट करते रहे बेचारा व्यक्ति वहां का हाल देखकर परेशान हो गया उसने सोचा कि इन्हें दुनियादारी के मामलों में पढ़ने से क्या लाभ अपना भगवत भजन करें और बुनियादी समस्याओं से ग्रस्त इन लोगों को भगाए किंतु बुद्ध का व्यवहार देखकर तो ऐसा लग रहा था मानो इन लोगों का दुख उनका अपना दुख है आखिर उस व्यक्ति ने पूछ ही लिया महाराज आपको इन सांसारिक बात से क्या लेना देना बुद्ध बोले मैं
ज्ञानी नहीं हूं और इंसान हूं वैसे भी वह ज्ञान किस काम का जो इतना घमंडी और आत्म केंद्रित हो कि अपने अतिरिक्त दूसरे की चिंता ही ना कर सके ऐसा ज्ञान तो अज्ञान से भी बुरा है बुद्ध की बातें सुनकर व्यक्ति की उलझन दूर हो गई उस दिन से उसकी सोच व आचरण दोनों बदल गए कथा का सार यह है कि ज्ञान तभी सार्थक होता है जब वह लोक कल्याण में संलग्न हो महात्मा बुद्ध एक गांव में ठहरे हुए थे वे प्रतिदिन शाम को वहां पर सत्संग करते थे भक्तों की भीड़ होती थी क्योंकि उनके
प्रवचनों से जीवन को सही दिशा बोध प्राप्त होता था बुद्ध की वाणी में गजब का जादू था उनके शब्द श्रोता के दिल में उतर जाते थे एक युवक प्रतिदिन बुद्ध का प्रवचन सुनता था एक दिन जब प्रवचन समाप्त हो गए तो वह बुद्ध के पास गया और बोला महाराज मैं काफी दिनों से आपके प्रवचन सुन रहा हूं किंतु यहां से जाने के बाद मैं अपने गृहस्थ जीवन में वैसा सदाचरण नहीं कर पाता जैसा यहां से सुनकर जाता हूं इससे सत्संग के महत्व पर शंका भी होने लगती है बताइए मैं क्या करूं बुद्ध ने युवक को
बांस की एक टोकरी देते हुए उसमें पानी भरकर लाने के लिए कहा युवक टोकरी में जल भरने में असफल रहा बुद्ध ने यह कार्य निरंतर जारी रखने के लिए कहा युवक प्रतिदिन टोकरी में जल भरने का प्रयास करता किंतु सफल नहीं हो पाता कुछ दिनों बाद बुद्ध ने उससे पूछा इतने दिनों से टोकरी में लगातार जल डालने से क्या टोकरी में कोई फर्क नजर आया युवक बोला एक फर्क जरूर नजर आया है पहले टोकरी के साथ मिट्टी जमा होती थी अब वह साफ दिखाई देती है कोई गंदगी नहीं दिखाई देती है और इसके छेद पहले
जितने बड़े नहीं रह गए वे बहुत छोटे हो गए हैं तब बुद्ध ने उसे समझाया यदि इसी तरह उसे पानी में निर डालते रहोगे तो कुछ ही दिनों में यह छेद फूलकर बंद हो जाएंगे और टोकरी में पानी भर पाओगे इसी प्रकार जो निरंतर सत्संग करते हैं उनका मन एक दिन अवश्य निर्मल हो जाता है अवगुणों के छिद्र भरने लगते हैं और गुणों का जल भरने लगता है युवक ने बुद्ध से अपनी समस्या का समाधान पा लिया निरंतर सत्संग से दुर्जन भी सज्जन हो जाते हैं क्योंकि महापुरुषों की पवित्र वाणी उनके मानसिक विकारों को दूर
कर उनमें सद् विचारों का आलोक प्रसारित कर देती है एक आदमी को बुद्ध ने सुझाव दिया कि दूर से पानी लाते हो क्यों नहीं अपने घर के पास एक कुआं खोद लेते हमेशा के लिए पानी की समस्या से छुटकारा मिल जाएगा सलाह मानकर उस आदमी ने कुआं खोदना शुरू किया लेकिन सात आ फीट खोदने के बाद उसे पानी तो क्या गीली मिट्टी का भी चिन्न नहीं मिला उसने वह जगह छोड़कर दूसरी जगह खुदाई शुरू की लेकिन 10 फीट खोदने के बाद भी उसमें पानी नहीं निकला उसने फिर तीसरी जगह कुआ खोदना शुरू किया लेकिन यहां
भी उसे निराशा ही हाथ लगी इस क्रम में उसने आ 10 फीट के 10 कुएं खोद डाले लेकिन पानी कहीं नहीं मिला वह निराश होकर बुद्ध के पास गया उसने बुद्ध को बताया कि मैंने 10 कुए खोद डाले मगर पानी एक में भी नहीं निकला बुद्ध को आश्चर्य हुआ वे स्वयं चलकर उस स्थान पर आए जहां उसने 10 गड्ढे खोदे हुए थे बुद्ध ने उन गड्ढों की गहराई देखी और सारा माजरा समझ गए फिर वे बोले 10 कुएं खोदने की बजाय एक कुएं में ही तुम अपना सारा परिश्रम लगाते तो पानी कब का मिल गया
होता तुम सब गड्ढों को बंद कर दो केवल एक को गहरा करते जाओ पानी निकल आएगा उसने बुद्ध की बात मानकर ऐसा ही किया परिणाम स्वरूप कुआं पूर्ण होते ही पानी निकल आया सबने भगवान बुद्ध की जय जयकार की धन्ना सेठ के पास सात पुष्ट के पालन पोषण जितना धन था उसका व्यापार चारों तरफ फैला हुआ था किंतु फिर भी उसका मन अशांत रहता था कभी धन की सुरक्षा की चिंता तो कभी व्यापारिक प्रतिस्पर्धा में आगे निकलने का तनाव चिंता और तनाव के कारण वह अस्वस्थ रहने लगा उसके मित्र ने उसकी गिरती दशा देखी तो
उसे बुद्ध के पास जाने की सलाह दी सेठ बुद्ध के पास पहुंचा और अपनी समस्या बताई बुद्ध ने उसे सांत्वना देते हुए कहा तुम घबराओ मत तुम्हारा कष्ट अवश्य दूर होगा बस तुम यहां कुछ दिन रहकर ध्यान किया करो बुद्ध के कहे अनुसार सेठ ने रोज ध्यान करना शुरू श कर दिया किंतु सेठ का मन ध्यान में नहीं लगा वह जैसे ही ध्यान करने बैठता उसका मन फिर अपनी दुनिया में चला जाता उसने बुद्ध को यह बात बताई किंतु बुद्ध ने कोई उपाय नहीं बताया थोड़ी देर बाद जब सेठ बुद्ध के साथ वन में साय
कालीन भ्रमण कर रहा था तो उसके पैर में एक कांटा छुप गया वह दर्द के मारे कराने लगा बुद्ध ने कहा बेहतर होगा कि तुम जी खड़ा करर कांटे को निकाल दो तब इस दर्द से मुक्ति मिल जाएगी सेठ ने मन कड़ा करर कांटा निकाल दिया उसे चैन मिल गया तब बुद्ध ने उसे समझाया ऐसे ही लोभ मोह क्रोध घमंड व द्वेष के कांटे तुम्हारे मन में गड़े हैं जब तक अपने मन की संकल्प शक्ति से उन्हें नहीं निकालो अशांत ही रहोगे सेठ का अज्ञान बुद्ध के इन शब्दों से दूर हो गया और उसने निर्मल
हृदय की राह पकड़ ली अपनी कुप्र वृत्तियों से मुक्ति के लिए संकल्प बद्ध अनिवार्य है जब तक व्यक्ति दृढ़ निश्चय ना कर एक युवक ने बुद्ध से आकर कहा मेरा गांव अशिक्षित है मैं अपने परिवार से झगड़ करर थोड़ा बहुत पढ़ पाया हूं आगे और पढ़ना चाहता हूं किंतु सभी रोक रहे हैं घर के लोग सोचते हैं कि खेती में खूब पैसा है और उसके लिए किसी शिक्षा की आवश्यकता नहीं है यही सोच गांव वालों की भी है कृपया आप मेरे गांव चलकर वहां शिक्षा का प्रसार करवाइए बुद्ध युवक की बात मानकर गांव आ गए
धर्म भीरू ग्रामीणों ने बुद्ध का सत्कार किया और रोज उनके प्रवचन सुनने आने लगे बुद्ध जब भी शिक्षा का महत्व बताते ग्रामीण विरोधी मत रखते एक दिन एक महिला अपने पा साल के बच्चे के लिए पूछने लगी कि उसे किस उम्र से शिक्षा दिलवाए तब बुद्ध ने समझाया कि तुम्हें तो पाच वर्ष पूर्व उसकी शिक्षा शुरू कर देनी थी उसे क्या खाना है कया नहीं कैसे क्या बोलना है आदि बातें शुरू से सिखाओ गी तभी तो वह अपना उचित ख्याल रख सकेगा बुद्ध की यह बात महिला सहित सभी ग्रामीणों को समझ में आ गई उन्होंने
अपने बच्चों को विद्यालय भेजना शुरू किया यह समय वर्षा का था युवक ने लोगों को जल संग्रहण की तकनीक बताई अधिकांश ने उपहास किया किंतु युवक अपना काम करता रहा बुद्ध का सहयोग प्राप्त था इसलिए किसी ने उसका खुलकर विरोध नहीं किया जब गर्मी में भीषण जल संकट के कारण फसलें सूखने लगी तो युवक ने कुएं खुदवा जिनमें जल संग्रहण की तकनीक के कारण खूब पानी निक ग्रामीण अब शिक्षा का महत्व समझ चुके थे धीरे-धीरे संपूर्ण गांव शिक्षित हो गया ज्ञान हर उम्र में अर्जित किया जा सकता है यही ज्ञान हमें जीवन में आने वाली
समस्याओं के समाधान की राह सुझाता है आम्रपाली बौद्ध काल में वैशाली के वृज संघ की इतिहास प्रसिद्ध लिच्छवी राज नृत्यांगना थी इनका एक नाम अंबपाली या अंब पालिका भी है आम्रपाली अत्यंत सुंदर थी और कहते हैं जो भी उसे एक बार देख लेता वह उस पर मुग्ध हो जाता था अजात शत्रु उसके प्रेमियों में था और उस समय के उपलब्ध साहित्य में अजात शत्रु के पिता बिंब सार को भी गुप्त रूप से उसका प्रण अर्थी बताया गया है आम्रपाली को लेकर भारतीय भाषाओं में बहुत से काव्य नाटक और उपन्यास लिखे गए हैं एक बार की
बात है महात्मा बुद्ध अपने शिष्यों के साथ घूमते हुए वैशाली नगरी में पहुंचे वैशाली को उस समय 16 महाजनपदों में एक महत्त्वपूर्ण जनपद माना जाता था जिसकी ख्याति दूर दूर तक फैली ई थी यह नगरी परम वैभवशाली और हर तरफ से संपन्न थी महात्मा बुद्ध के आने की बात पूरे नगर में फैलते देर ना लगी जिसे जब पता चलता वह तभी उनसे मिलने पहुंच जाता और उनके उपदेश सुनकर खुद को भाग्यशाली समझता बुद्ध का चरित्र ही ऐसा प्रभावशाली था कि उनसे प्रभावित हुए बिना कोई नहीं रह सका उस नगर की गणिका और राजनर्तकी आम्रपाली भी
बुद्ध से मिलने की इच्छुक थी वह खुद महात्मा बुद्ध के पास चलकर आई और उन्हें अपने घर भोजन के लिए आमंत्रित किया उसने इतने सरल और प्रेम भाव से बुद्ध से विनती की कि बुद्ध मना नहीं कर सके जब यह बात उनके शिष्यों को पता चला कि महात्मा बुद्ध ने एक गणिका का आमंत्रण स्वीकार किया है तो सबने इसका विरोध किया महात्मा बुद्ध ने बड़ी सरलता से अपने शिष्यों से कहा मैंने तो उसकी प्रेम भावना देखी उसने जिस भावना से मुझे बुलाया है वह बिल्कुल पवित्र और निश्चल था वह आज मुझसे मिलने एक गणि का
बनकर नहीं बल्कि एक भक्ति भाव से आई थी फिर भला मैं कैसे उसका आमंत्रण स्वीकार ना करता वह चाहे एक वेश्या हो या फिर कोई सन्यासी यथा समय बुद्ध आम्रपाली के घर भोजन के लिए गए वह पहले से ही भोजन की सारी व्यवस्था करके भगवान बुद्ध के आने की राह देख रही थी मन में यह विचार भी आ रहा था कि कहीं बुद्ध अपनी बात से मुकर ना जाए इतने बड़े सन्यासी भला क्यों एक वेश्या के बुलाने पर उसके घर आकर भोजन करेंगे परंतु जैसे ही आम्रपाली ने बुद्ध को अपने घर आते देखा उसकी प्रसन्नता
का ठिकाना ना रहा वह दौड़कर दरवाजे पर गई और उनका स्वागत किया खुद अपने हाथों से भोजन परोसा और उनकी आगत की महात्मा बुद्ध के शिष्यों ने जो उनके साथ आए थे जब एक वेश्या को जिसके कदमों में खुद सम्राट बि बंसर से लेकर अजात शत्रु थे पूरी वैशाली जिसके एक झलक पाने के लिए तरसती थी उसे एक सन्यासी के लिए व्यवहार करते देख बुद्ध के शिष्यों के मन में अपने गुरु के लिए सम्मान और ज्यादा बढ़ गया आम्रपाली ने महात्मा बुद्ध के व्यक्तित्व के बारे में जैसा सुना था उनसे मिलने के बाद वह उनसे
उससे ज्यादा प्रभावित हुई और उसी समय वह बुद्ध की शरण में चली गई अपनी सारी संपत्ति वह बौद्ध मठ के नाम करके आजीवन भिक्षुणी बन गई बहुत पुरानी बात है गौतम बुद्ध एक शहर में प्रवास कर रहे थे उनके कुछ शिष्य भी उनके साथ थे उनके शिष्य एक दिन शहर में घूमने निकले तो उस शहर के लोगों ने उन्हें बहुत बुरा भला कहा शिष्यों को बहुत बुरा लगा और वे वापस लौट गए गौतम बुद्ध ने जब देखा कि उनके सभी शिष्य बहुत क्रोध में दिख रहे हैं तो उन्होंने पूछा क्या बात है आप सभी इतने
तनाव में क्यों दिख रहे हैं तभी एक शिष्य क्रोध में बोला हमें यहां से तुरंत प्रस्थान करना चाहिए जब हम बाहर शहर में घूमने गए तो यहां के लोगों ने बिना बजह हमें बहुत बुरा भला कहा जहां हमारा सम्मान ना हो वहां हमें एक पल भी नहीं रहना चाहिए यहां के लोग सिर्फ दुर्व्यवहार के सिवा कुछ जानते ही नहीं हैं गौतम बुद्ध ने मुस्कुरा कर कहा क्या किसी और जगह पर तुम सदा व्यवहार की अपेक्षा रखते हो दूसरा शिष्य बोला इस शहर से तो भले लोग ही होंगे तब गौतम बुद्ध बोले किसी जगह को सिर्फ
इसलिए छोड़ देना गलत होगा कि वहां के लोग दुर्व्यवहार करते हैं हम तो संत हैं हमें तो कुछ ऐसा करना चाहिए कि जिस स्थान पर भी जाएं उस स्थान को तब तक ना छोड़े जब तक अपनी अच्छाइयों से वहां के लोगों को सुधार ना दें हम जिस भी स्थान पर जाएं वहां के लोगों का कुछ ना कुछ भला करके ही वापस लौटे हमारे अच्छे व्यवहार के बाद वह कब तक बुरा व्यवहार करेंगे आखिर में उन्हें सुधरना ही होगा वास्तविकता में संतों का कार्य तो ऐसे लोगों को सुधारना ही होता है सही चुनौती वो है जब
हम विपरीत परिस्थितियों में खुद को साबित कर सकें यह सभी बातें सुनकर बुद्ध के प्रिय शिष्य आनंद ने प्रश्न किया उत्तम व्यक्ति किसे कहते हैं इस पर बुद्ध ने जवाब दिया जिस प्रकार युद्ध में बढ़ता हुआ हाथी चारों तरफ के तीर सहते हुए भी आगे बढ़ता जाता है ठीक उसी तरह उत्तम व्यक्ति भी दूसरों के अपशब्दों को सहते हुए अपना कार्य करता रहता है खुद को वश में करने वाले प्राणी से उत्तम कोई और नहीं हो सकता गौतम बुद्ध की बात शिष्यों को अच्छी तरह से समझ में आ गई और उन्होंने वहां से जाने का
इरादा त्याग दिया एक बार गौतम बुद्ध से अभय राजकुमार ने प्रश्न किया कि क्या श्रमण गौतम कभी कठोर वचन कहते हैं उसने सोच रखा था कि नहीं कहने पर वह बताएगा कि एक बार उन्होंने देवदत्त को नरक गामी कहा था और यदि हां कहे तो उसने पूछा जा सकता है कि जब आप कठोर शब्दों का प्रयोग करने से स्वयं को रोक नहीं पाते तब दूसरों को ऐसा उपदेश कैसे देते हैं बुद्ध ने अभय के प्रश्न का आशय जान लिया उन्होंने कहा इसका उत्तर ना तो हां में दिया जा सकता है और ना नहीं में अभय
की गोद में उस समय एक छोटा बालक था उसकी ओर इशारा करते हुए बुद्ध ने पूछा राजकुमार यदि दाई के अनजाने में यह बालक अपने मुख में कांट का टुकड़ा डाल ले तब तुम क्या करोगे मैं उसे निकालने का प्रयास करूंगा यदि वह आसानी से ना निकल सकता हो तो तो बाएं हाथ से उसका सिर पकड़कर दाहिने हाथ की उंगली को टेढ़ा करके उसे निकालू यदि खून निकलने लगे तो तो भी मेरा यही प्रयास रहेगा कि वह कांठ का टुकड़ा किसी ना किसी तरह बाहर निकला आए ऐसा क्यों इसलिए कि भंते इसके प्रति मेरे मन
में अनुकंपा है राजकुमार ठीक इसी तरह तथागत जिस वचन के बारे में जानते हैं कि यह मिथ्या या अनर्थ कारी है और उससे दूसरों के हृदय को ठेस पहुंचती है तब उसका वे कभी उच्चारण नहीं करते पर इसी तरह जो वचन उन्हें सत्य और हितकारी प्रतीत होते हैं तथा दूसरों को प्रिय लगते हैं उनका वे सदैव उच्चारण करते हैं इसका कारण यही है कि तथागत के मन में सभी प्राणियों के प्रति अनुकंपा है एक बार वैशाली के बाहर जाते धम्म प्रचार के लिए जाते हुए गौतम बुद्ध ने देखा कि कुछ सैनिक तेजी से भागती हुई
एक लड़की का पीछा कर रहे हैं वह डरी हुई लड़की एक कुएं के पास जाकर खड़ी हो गई वह हांफ रही थी और प्यासी भी थी बुद्ध ने उस बालिका को अपने पास बुला या और कहा कि वह उनके लिए कुएं से पानी निकाले स्वयं भी पिए और उन्हें भी पिलाए इतनी देर में सैनिक भी वहां पहुंच गए बुद्ध ने उन सैनिकों को हाथ के संकेत से रुकने को कहा उनकी बात पर वह कन्या कुछ झेंप हुई बोली महाराज मैं एक अछूत कन्या हूं मेरे कुएं से पानी निकालने पर जल दूषित हो जाएगा बुद्ध ने
उससे फिर कहा पुत्री बहुत जोर की प्यास लगी है पहले तुम पानी पिलाओ इतने में वैशाली नरेश भी वहां आ पहुंचे उन्हें बुद्ध को नमन किया और सोने के बर्तन में केवड़े और गुलाब का सुगंधित पानी पानी पेश किया बुद्ध ने उसे लेने से इंकार कर दिया बुद्ध ने एक बार फिर बालिका से अपनी बात कही इस बार बालिका ने साहस बटोर कर कुएं से पानी निकलकर स्वयं भी पिया और गौतम बुद्ध को भी पिलाया पानी पीने के बाद बुद्ध ने बालिका से भय का कारण पूछा कन्या ने बताया मुझे संयोग से राजा के दरबार
में गाने का अवसर मिला था राजा ने मेरा गीत सुन मुझे अपने गले की माला पुरस्कार में दी लेकिन उन्हें किसी ने बताया कि मैं अछूत कन्या हूं यह जानते ही उन्होंने अपने सिपाहियों को मुझे कैद खाने में डाल देने का आदेश दिया मैं किसी तरह उनसे बचकर यहां तक पहुंची थी इस पर बुद्ध ने कहा सुनो राजन यह कन्या अछूत नहीं है आप अछूत हैं जिस बालिका के मधुर कंठ से निकले गीत का आपने आनंद उठाया उसे पुरस्कार दिया वह अछूत हो ही नहीं सकती गौतम बुद्ध के सामने वह राजा लज्जित ही हो सकते
थे भगवान बुद्ध देव और मनुष्यों के शास्त्र थे परंतु सबसे पहले वह मनुष्य थे मनुष्य बढ़कर देवता बनता है यह प्राचीन मान्यता थी आज भी हम मनुष्यवकाशा है राग द्वेष ईर्ष्या और मोह भी वहां है निर्वाण की साधना वहां नहीं हो सकती इसके लिए देवताओं को मनुष्य बनना पड़ता है मनुष्यों में ही देव पुरुष का आविर्भाव होता है जिनको देवता नमस्कार करते हैं मानवता धर्म का उपदेश देने वाले बुद्ध स्वयं मानवता के जीते जागते रूप थे यहां उनके जीवन से संबंधित कुद प्रसंग दिए जाते हैं जिनसे उनके व्यक्तित्व में बैठी हुई गहरी मानवता का दर्शन
होता है भगवान का परिनिर्वाण होने वाला है रात का पिछला पहर है भिक्षु उनकी शैया को घेरे बैठे हैं बुद्ध उन्हें उपदेश दे रहे हैं कह रहे हैं भिक्षुओं बुद्ध धर्म और संघ के विषय में कुछ शंका हो तो पूछ लो पीछे मलाल मत करना कि भगवान हमारे सामने थे पर हम उनसे कुछ पूछ ना सके कोई शिष्य नहीं बोलता भगवान तीन बार कहते हैं पर कोई भिक्षु कुछ पूछने को नहीं उठता भगवान को शंका होती है कि कहीं वे उनके गौरव का विचार करके पूछने में संकोच तो नहीं कर रहे इसलिए वह कहते हैं
शायद भिक्षुओं तुम मेरे गौरव के कारण नहीं पूछ रहे जैसे मित्र मित्र से पूछता है वैसे तुम मुझसे पूछो अ तो प्रबंध हो गया यह कहकर वहां से जाने लगा उधर हिरण और कोवा अपने मित्र को ऐसे शिकारी के कैद में देखकर दुखी होने लगे तभी शिकारी भोजन में कछुए को खाने वाला है यह सुनकर हिरण और कौवे ने एक योजना बनाई कौवे ने हिरण को कहा कि जैसे ही शिकारी यहां से जब जाने लगेगा तब तुम उसके सामने जाना जब शिकारी तुम्हें देखेगा तो अपनी पोटली जमीन पर रखकर तुम्हें पकड़ने के लिए जैसे ही
दौड़ेगा मैं जमीन पर रखी हुई पोटली पकड़कर उड़ जाऊंगा और तुम वहां से भाग जाना जैसे ही शिकारी वहां से जाने लगा हिरनी उसके सामने आ गई शिकारी ने हिरनी को पकड़ने के लिए पोटली जैसे ही जमीन पर रखी कोवा अपनी चोंच में पोटली पकड़कर उड़ गया शिकारी हिरण को पकड़ पकड़ने के लिए दौड़ा और पीछे मुड़कर देखा कोवा पोटली चोंच में पकड़कर उड़ रहा था और इधर हिरण पलक झपटे ही भाग गई शिकारी निराश होकर घर लौट गया कवे ने पोटली को महफूज जगह पर रखा और कछुए को शिकारी के चंगुल से आजाद कराया
और तीनों मित्र आनंद से रहने लगे इससे हमें यह सीख मिलती है कि असली दोस्ताना वही जो समय पर काम आए एक किसान था जिसके दो बेटे थे वह बहुत ही आलसी और निकम में थे वह अपने पिता को काम का में हाथ बटा के बजाय आलस किया करते थे इधर-उधर घूमते फिरते थे किसान को अपने बेटों की बहुत फिक्र थी वह सोचते थे कि मेरे मरने के बाद इनका क्या होगा यह अपना पेट कैसे भरेंगे अपने परिवार को कैसे संभाल पाएंगे एक दिन किसान की हालत बहुत ही गंभीर थी कहने का मतलब किसान मरने
की हालत में था तभी किसान ने अपने दोनों बेटों को बुलाकर उनसे कहा कि हमारे खेत में एक खजाना गड़ा हुआ है लेकिन वह किस जगह है उसकी जानकारी मुझे भी नहीं है लेकिन खोदने के बाद तुम्हें वह खजाना मिल जाएगा इतना कहकर किसान भगवान को प्यारे हो गए खजाने की खबर सुनकर दोनों बेटों के मन में लालच आ गया और वह दोनों खेत पर चले गए और खेत को खोदने लगे खजाने के लालच में कुछ ही दिनों में पूरे खेत को खोदने के बाद वह घर जाकर बैठ गए और वह अपने पिता को कोसने
लगे इसी तरह कुछ महीने बीत गए और वर्षा ऋतु का आगमन हुआ किसान के बेटों के पास पेट भरने के लिए सिर्फ एक ही जरिया था वह थी खेती तब बाकी किसानों की तरह किसान के बेटों ने खेत में बीज बोने शुरू कर दिए वर्षा का पानी पाकर वह बीज अंकुरित हुए और देखते ही देखते खेत लहराने लगे ऐसा लग रहा था कि हवा के झोके से लहरा रहे थे यह देखकर किसान के बेटे बहुत खुश हो गए उनको समझ आ गया कि परिश्रम ही सच्चा धन होता है और वह उसी तरह से अपने पिता
के शब्दों का मोल भी समझ गए और अपने कामकाज में लग गए यही कहानी आज हम सबकी भी है मित्रों इसी पेड़ की तरह हमारे माता-पिता भी होते हैं जब हम छोटे होते हैं तो उनके साथ खेलकर बड़े होते हैं और बड़े होकर उन्हें छोड़कर चले जाते हैं और तभी वापस आते हैं जब हमें कोई जरूरत होती है धीरे-धीरे ऐसे ही जीवन बीत जाता है हमें पेड़ रूपी माता-पिता की सेवा करनी चाहिए ना कि सिर्फ उनसे फायदा लेना चाहिए इस कहानी में हमें दिखाई दे है कि उस पेड़ के लिए वह बच्चा बहुत महत्त्वपूर्ण था
और वह बच्चा बार-बार जरूरत के अनुसार उस सेब के पेड़ का उपयोग करता था यह सब जानते हुए भी कि वह उसका केवल उपयोग ही कर रहा है इसी तरह आजकल हम भी हमारे माता-पिता का जरूरत के अनुसार उपयोग करते हैं और बड़े होने पर उन्हें भूल जाते हैं हमें हमेशा हमारे माता-पिता की सेवा करनी चाहिए उनका सम्मान करना चाहिए और हमेशा भले ही हम कितने भी व्यस्त क्यों ना हो उनके लिए थोड़ा समय तो भी निकलते रहना चाहिए एक समय की बात है एक बार गौतम बुद्ध अपने शिष्यों के साथ बैठे हुए थे तभी
वहां एक व्यक्ति आया जो बहुत क्रोध में था और गौतम बुद्ध के पास आकर बहुत भला बुरा कहने लगा गौतम बुद्ध के शिष्यों को बहुत गुस्सा आया पर गौतम बुद्ध एकदम शांत थे वह व्यक्ति वहां से चला गया फिर अगले दिन वह दोबारा आ गया और आज तो वह और भी ज्यादा गुस्से में था और गौतम बुद्ध को और भी बुरा कहने लगा परंतु आज भी गौतम बुद्ध एकदम शांत थे और मुस्कुरा रहे थे पर गौतम बुद्ध के शिष्यों को बहुत गुस्सा आया वह व्यक्ति कुछ देर चिल रहा फिर चला गया अगले दिन वह व्यक्ति
फिर आया और आज तो हद ही कर दी उसने आकर गौतम बुद्ध को गाली देने लगा गौतम बुद्ध के शिष्यों को बहुत गुस्सा आया परंतु आज भी गौतम बुद्ध एकदम शांत थे इतना कुछ चलता रहा और बुद्ध मुस्कुरा रहे थे यह क्रम कुछ दिन चलता रहा फिर उस व्यक्ति ने आना छोड़ दिया तब उनके एक शिष्य ने पूछा गुरु जी आप चाहते तो पहले दिन ही उस व्यक्ति को भगा सकते थे पर अपने ऐसा क्यों नहीं किया तब गौतम बुद्ध ने बड़ी नम्रता से कहा अगर कोई व्यक्ति हमें कोई उपहार दे और हम उसे लेने
से मना कर दे तो वह व्यक्ति क्या करेगा शिष्य ने कहा वह व्यक्ति अपना उपहार लेकर लौट जाएगा तब गौतम बुद्ध ने कहा मैंने भी ऐसा ही किया उस व्यक्ति ने मुझे उप शब्द रूपी उपहार दिया मैंने उसे लेने से मना कर दिया मतलब उस पर कोई भी प्रतिक्रिया नहीं दी तो व्यक्ति अपने वह अपशब्द वापस लेकर लौट गया एक व्यक्ति की न साल की बेटी थी एक दिन उस व्यक्ति ने देखा कि उसकी बेटी उसके एक बहुत सुंदर और महंगे गोल्ड पैकिंग पेपर से एक बॉक्स को लपेट रही थी यह देखकर उस व्यक्ति को
बहुत गुस्सा आया है उसने अपनी बेटी को बहुत डांटा तुमने मेरे इतनी कीमती पेपर को बेकार कर दिया वह भी बिना किसी मतलब के तुम इसे अच्छे काम के लिए उपयोग करती तो अच्छा लगता पर तुमने एक बेकार से डिब्बे को उसमें लपेट दिया कुछ दिन बीते दिवाली का दिन आया उस व्यक्ति ने अपनी बेटी को गिफ्ट दिया बेटी ने भी वही सुंदर सा गोल्डन बॉक्स पापा को दिया उसके पापापा पहले तो उसे देखकर बहुत खुश हुए पर जैसे ही उन्होंने उस डिब्बे को खोला वह खाली था यह देखकर उस व्यक्ति ने अपनी बेटी को
घुरा और कहा क्या तुम्हें इतना भी नहीं पता कि किसी को खाली डिब्बा नहीं देते लड़की कुछ देर शांत रही फिर बोली पापा यह डिब्बा खाली नहीं है मैंने इसमें बहुत सारे किस आपके लिए रखे हैं कभी-कभी आप जल्दी ऑफिस चले जाते हैं और मैं सोती रह जाती हूं तो आप इसमें से एक किस ले जा सकते हैं बेटी की बात सुनकर उस व्यक्ति की आंख भर आई एक गांव में एक लड़का रहता था उसके घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी उसके मन में विचार आया किसी बड़े शहर में जाकर वह नौकरी करें वह
कलकाता ग गया और नौकरी ढूंढने लगा बहुत खोज के बाद उसे एक सेठ के घर में नौकरी मिल गई नौकरी छह आने रोज की थी काम था सेठ को रोज छ घंटे अखबार और किताब पढ़कर सुनाना लड़के को नौकरी की जरूरत थी तो उसने वह नौकरी स्वीकार कर ली एक दिन की बात है लड़के को दुकान के कोने में 100 100 के आठ नोट पड़े मिले उसने चुपचाप उन्हें अखबार और किताबों से ढक दिया दूसरे दिन रुपयों की खोजबीन हुई लड़का सुबह जब दुकान पर आया तो उससे पूछा गया लड़के ने तुरंत ही प्रसन्नता से
रुपए निकालकर ग्राहक को दे दिए वह बहुत ही खुश हुआ लड़के के ईमानदारी से सबको बहुत प्रसन्नता हुई सेठ भी लड़के से बहुत खुश हुआ सेठ ने लड़के को पुरस्कार देना चाहा तो लड़के ने लेने से मना कर दिया लड़के ने कहा सेठ जी में करने को कहा है बेशक तुम कर सकती हो किंतु अकेले अपने दम पर नहीं कर सकती कुल्हाड़ी ने चिड़कर कहा क्यों मुझ में किस बात की कमी है डंडा बोला जब तक मैं तुम्हारी सहायता ना करूं तुम यह सब नहीं कर सकती हो जब तक मैं हत्या बनकर तुम्हें ना लगाया
जाऊं तब कोई किसे पकड़कर तुमसे यह सारे काम लेगा बिना हत्थे की कुल्हाड़ी से कोई काम लेना असंभव है कुल्हाड़ी को अपनी भूल का एहसास हुआ और उसने डंडे से क्षमा मांगी कथा सार यह है कि दुनिया सहयोग से चलती है जिस प्रकार ताली दोनों हाथों के मेल से बजती है उसी प्रकार सामाजिक विकास भी परस्पर सहयोग से ही संभव होता है यदि जीवन का संतुलन बिगड़ा और थकान आई तो समझ लीजिए कि बीमारी आई और यदि वापस ऊर्जा अर्जित करने के लिए विश्राम किया जा रहा है तो ऐसी थकान वरदान भी साबित हो सकती
है इन दिनों जिस तरह की हमारी जीवन शैली है इसमें असंतुलन बहुत अधिक है सुबह उठने से लेकर रात को सोने तक शरीर की कुछ नियमित क्रियाएं हैं आदमी उसे भूल गया है गौतम बुद्ध बहुत काम करते पर कभी थकते नहीं थे आज भी कई साधु संत उतना ही परिश्रम कर रहे हैं जितना एक कॉर्पोरेट जगत का सफल व्यक्ति करता है और जब वे रात को सोते हैं तो पूरी बेफिक्री के साथ बुद्ध से उनके शिष्यों ने एक बार पूछा था आप थकते नहीं बुद्ध का उत्तर था जब मैं कुछ करता ही नहीं तो थकूर
में अजीब लगती है लेकिन है बड़ी गहरी आध्यात्म ने इसे साक्षी भाव कहा है स्वयं को करते हुए देखना यह वह स्थिति होती जब तन सक्रिय और मन विश्राम की मुद्रा में होता है आज ज्यादातर लोग अमय अकारण थक जाते हैं जिसका एक बड़ा कारण असंतुलित जीवन है एक होता है थकान को महसूस करना और दूसरा है स्वाभाविक थकान जिस समय आपकी रुचियां इच्छाओं और मूल स्वभाव में धीमा पन आने लगे अकारण चिड़चिड़ा हट हो जाए समझ ले कि यह थकान बीमारी है इसलिए प्रतिदिन योग प्राणायाम और ध्यान करें यह क्रियाएं अपने आप में एक
विश्राम है करने वाला कोई और है हम तो महज उसके हाथों की कठपुतली हैं यह मनोभाव भी थकान को मिटाएगा क्या दिक्कत है ऐसा सोच लेने में महात्मा बुद्ध ज्ञान प्राप्ति के लिए घोर तप में लगे थे उन्होंने शरीर को काफी कष्ट दिया यात्राएं की घने जंगलों में कठिन साधना की पर आत्मज्ञान की प्राप्ति नहीं हुई निराश हो बुध सोचने लगे मैंने अभी तक कुछ भी प्राप्त नहीं किया अब आगे क्या कर पाऊं निराशा अविश्वास के इन नकारात्मक भावों ने उन्हें शुब्ज कर दिया कुछ ही क्षणों के बाद उन्हें प्यास लगी वे थोड़ी दूर स्थित
एक झील तक पहुंचे वहां उन्होंने एक दृश्य देखा कि एक नही सी गिलहरी के दो बच्चे झील में डूब गए पहले तो वह गिलहरी जड़ वत बैठी रही फिर कुछ देर बाद उठकर झील के पास गई अपना सारा शरीर झील के पानी में भिगोया और फिर बाहर आकर पानी झाड़ने लगी ऐसा वह बार-बार करने लगी बुद्ध सोचने लगे कि इस ग गिलहरी का प्रयास कितना मूर्खता पूर्ण है क्या कभी यह इस झील को सुखा सकेगी किंतु गिलहरी का यह क्रम लगातार जारी था बुद्ध को लगा मानो गिलहरी कह रही हो कि यह झील कभी खाली
होगी या नहीं यह मैं नहीं जानती किंतु मैं अपना प्रयास नहीं छोडूंगी अतः उस छोटी सी गिलहरी ने भगवान बुद्ध को अपने लक्ष्य मार्ग से विचलित होने से बचा लिया वे सोचने लगे कि जब यह नन्ही गिलहरी अपने लघु सामर्थ्य से झील को सुखा देने के लिए दृढ़ संकल्पित है तो मुझ में क्या कमी है मैं तो इससे हजार गुना अधिक क्षमता रखता हूं यह सोचकर गौतम बुद्ध पुण अपनी साधना में लग गए और एक दिन बोधि वृक्ष तले उन्हें ज्ञान का आलोक प्राप्त हुआ यह कथा असफलता के बावजूद प्रयासों की निरंतरता पर बल देती
है यदि हम प्रयास करना ना छोड़े तो एक ना एक दिन लक्ष्य की प्राप्ति हो ही जाती है बुद्ध अपने साधना काल में एक निर्जन स्थान पर ध्यान मग्न बैठे थे इसी स्थान पर एक यक्ष का वास था यह बात बुद्ध को झांत नहीं थी वे तो वहां पहुंचे और शांत वातावरण देखकर ध्यान मग्न हो गए उस समय यक्ष वहां पर नहीं था रात होने पर जब वह आया तो उस स्थान पर एक अनजान व्यक्ति को देखकर आग बबूला हो गया बड़े जोर से वह ड़ा किंतु बुद्ध का ध्यान भंग नहीं हुआ यक्ष ने उन्हें
हाथी का रूप धारण कर डराना चाहा किंतु बुद्ध यथावत ध्यान मग्न बैठे रहे उसने बुद्ध को डराने के लिए क्रमशः शेर चीता बा आग आदि का रूप धारण किया किंतु बुद्ध अविचल ही बने रहे अंत में उसने भयंकर विषधर का रूप धारण कर उनके पैर के अंगूठे को ढ स लिया किंतु बुद्ध पर उसके विष का भी कोई असर नहीं हुआ वे अब भी अप्र भावित रहे विषधर उनके शरीर पर चढ़ गया और उनके गले से लिपटकर उन्हें जोरों से काट लिया लेकिन इतने प्रयासों के बावजूद भी बुद्ध की साधना को भंग नहीं कर पाया
थककर नीचे उतर आया और उनसे कुछ कदमों की दूरी पर लेटकर अपनी थकान उतारने लगा ध्यान पूर्ण होने पर बुद्ध ने उसकी तरफ देखा और उसे बहुत स्नेह से दुलारा उनका निश्छल प्रेम देखकर सर्प का विष अमृत बन गया और यक्ष ने श्रद्धापूर्वक बुद्ध को नमन किया कहानी का सार यह है कि मन की कलुष होता पर एकाग्रता स्नेह और संभव से ही विजय प्राप्त की जा सकती है बौद्ध भिक्षु बौधि धर्म भ्रमण करते हुए एक गांव में पहुंचे लोग उनका बहुत आदर करते थे बोधि धर्म व उनके शिष्यों का ग्रामीणों ने हार्दिक सत्कार किया
और फिर उनके पवित्र वचनों को सुनने के लिए उनके आसपास एकत्रित हो गए बोधि धर्म लोगों को धर्म और आचरण विषयक अच्छी बातें सरल भाषा में समझाने लगे तभी वहां एक व्यक्ति आया और बोधि धर्म को अपशब्द कहने लगा उपस्थित जन समूह ने उसे रोकने का बहुत प्रयास किया किंतु वह नहीं माना तथा अनवरत बोधि धर्म को बुरा भला कहता रहा लोगों ने कहा कि महाराज यह व्यक्ति कितना उद्दंड है निरर्थक ही आपको अपशब्द कह रहा है बोधि धर्म उस व्यक्ति के इस आचरण पर कदा क्रोधित नहीं हुए और लोगों से बोले कि यह भविष्य
में मेरा सबसे बड़ा भक्त बनने वाला है लोगों ने पूछा कि कैसे बुध धर्म ने उत्तर दिया कोई कुम्हार के यहां घड़ा लेने जाता है तो घड़े को बजाकर देखा जाता है कि वह फूटा हुआ तो नहीं है जब एक दो रुपए के घड़े को कोई इतनी परक कर सकता है तो भला जिसे गुरु मानना है उसे 102 गालियां दिए बगैर कैसे पहचाने का पहले वह परीक्षा लेगा कि गुरु में धैर्य आक्रोश व समता भाव कितना है यह जानने के बाद ही तो वह गुरु को स्वीकारी इसलिए यह व्यक्ति मुझे निरर्थक ही अप शब्द नहीं
कह रहा है और आगे चलकर वास्तव में वह व्यक्ति बुधि धर्म का सबसे बड़ा भक्त बना किसी को शिक्षा देने से पूर्व स्वयं का आचरण भी तदनुसार के सभी लक्षण मौजूद हो महात्मा गौतम बुद्ध के श्रावस्ती में प्रवचन चल रहे थे प्रवचन में नित्य ही बड़ी संख्या में लोग आते और विविध महत्त्वपूर्ण व गंभीर विषयों पर बुद्ध से ज्ञान ग्रहण करते बुद्ध का शिष्य वर्ग भी काफी विशाल था जो प्रवचन स्थल की व्यवस्था संभालता और बुद्ध की सेवा में सदैव तत्पर रहता एक बार रात के समय महात्मा बुद्ध प्रवचन दे रहे थे सदैव की भांति
काफी लोग उनके प्रवचन सुन रहे थे एक व्यक्ति जो बुद्ध के ठीक सामने बैठा था बार-बार नींद के झोंके ले रहा था बुद्ध थोड़ी देर तक तो प्रवचन देते रहे फिर उससे बोले वत्स सो रहे हो उस व्यक्ति ने हड़बड़ा करर कहा नहीं महात्मा बुद्ध ने पुनः प्रवचन प्रारंभ किए वह व्यक्ति फिर ऊंघ लगा महात्मा ने फिर वही प्रश्न दोहराया और उसने फिर अचकचा करर नहीं महात्मा कहा ऐसा लगभग आठम 10 बार हो गया कुछ देर बाद बुद्ध ने उससे पूछा वत जीवित हो हर बार की तरह इस बार भी उसने कहा नहीं महात्मा यह
सुनकर उपस्थित श्रोताओं में हंसी की लहर दौड़ गई और वह व्यक्ति पूर्णत चैतन्य हो गया तब बुद्ध गंभीर होकर बोले वत्स निद्रा में तुम्हारे मुख से सही उत्तर मिल ही गया जो निद्रा में है वह मृतक समान ही है महात्मा बुद्ध का संकेत था कि गुरु से ज्ञान ग्रहण करते वक्त सजगता अत्यंत आवश्यक है गाफिल रहने की स्थिति में ज्ञान की प्राप्ति पूर्ण नहीं होती औरत का चरा ज्ञान सदैव खतरनाक साबित होता है कथा सिद्धार्थ के जीवन के उस दौर की है जब वे बुद्धत्व को प्राप्त नहीं हुए थे और निरंजना नदी के तटीय वनों
में वृक्ष के नीचे ध्यान करते थे सिद्धार्थ प्रतिदिन ध्यान करने के बाद पास के किसी गांव में चले जाते और भिक्षा मांगकर लौट आते कुछ दिनों के बाद उन्होंने भिक्षा अटन पर जाना बंद कर दिया क्योंकि एक गांव के प्रधान की छोटी बेटी सुजाता उनके लिए नित्य भोजन लाने लगी सिद्धार्थ को वह बड़े स्नेह से भोजन कराती थी कुछ दिनों बाद उसी गांव का एक चरवाहा भी सिद्धार्थ से प्रभावित होकर उनके पास आने लगा उसका नाम स्वस्थ था एक दिन स्वस्थ से सिद्धार्थ बातें कर रहे थे कि सुजाता भोजन लेकर आई जैसे ही सिद्धार्थ ने
भोजन करना शुरू किया उन्होंने बातचीत बंद कर दी जितनी देर तक वे भोजन करते रहे बिल्कुल चुप रहे और वहां सन्नाटा छाया रहा स्वस्थ को हैरानी हुई उसने सिद्धार्थ के भोजन करने के उपरांत उनसे पूछा गुरुदेव आप मेरे आने के बाद निरंतर वार्तालाप करते रहे किंतु भोजन के समय एक शब्द भी नहीं बोले इसका क्या कारण है सिद्धार्थ बोले भोजन का निर्माण बड़ी कठिनाई से होता है किसान पहले बीज बोता है फिर पौधों की रखवाली करता है और तब कहीं जाकर अनाज पैदा होता है फिर घर की महिलाएं उसे बड़े जतन से खाने योग्य बनाती
है इतनी कठिनाई से तैयार भोजन का पूरा आनंद तभी संभव है जब हम पूर्णत मौन हो अत भोजन के दौरान उपन्यासकार डा क्रोनिन अत्यंत निर्धन थे पुस्तकों की रॉयल्टी या तो प्रकाशक हड़प जाते अथवा क्रोनिन को उनके हक से कम दो क्रोनिन बहुत सीधे थे प्रकाशकों से लड़ाई कर अपना हक लेना उन्हें नहीं आता था अतः गरीबी में उनका जीवन बित रहा था इसी गरीबी में जैसे-तैसे उन्होंने चिकित्सा की पढ़ाई पूर्ण की और डॉक्टर बन गया जब वे चिकित्सा के क्षेत्र में आए तो कुछ लोगों ने उन्हें इसके जरिए पैसा कमाने का तरीका बताया वे
लोगों की बातों में आकर मरीज से मोटी फीस वसूलने लगे वे किसी भी निधर पर दया नहीं करता और पूर पूरा चिकित्सा खर्च लेते यह देखकर क्रोनिन की पत्नी बहुत दुखी हुई वे अत्यंत दयालु थी पति की गरीबों के साथ यह निर्दय देख एक दिन वे बोली हम गरीब ही ठीक थे हमसे कम दिल में दया तो थी उस दया को खोकर तो हम कंगाल हो गए अब मनुष्य ही नहीं रहे पत्नी की मर्म स्पर्शी बात सुनकर डा कोनिन को आत्मा बोध हुआ और उन्होंने अपनी पत्नी से कहा तुम सच कह रही हो व्यक्ति धन
से नहीं मन से धनी होता है तुमने सही समय पर सही राह दिखाई अन्यथा हम मानवीयता की गहरी खाई में गिर जाते तो कभी उठ ही नहीं पाते कथा का निहितार्थ यह है कि जब मनुष्य अपनी मानवीयता की मूल पहचान से डिगने लगता है तो सामाजिक नैतिकता तो खंडित होती ही है वह स्वयं भी भीतर खोखला हो जाता है क्योंकि ऐसा उनकी पवित्र संस्कार शलता बलि छड़ चुकने के बाद ही होता है बौद्ध धर्म का व्यापक प्रचार प्रसार हो चुका था अनेक बौद्ध मठ स्थापित हो चुके थे सभी मठों में योग्य आचार्य व कुल्प की
नियुक्ति की जानी थी ताकि वे बौद्ध धर्म के समुचित प्रसार में अपनी महती भूमिका निभा सके आचार्य व कुलपति की नियुक्ति में उनके ज्ञान और विवेक के अतिरिक्त उनकी परहित रुचि को भी विशेष रूप से परखा जाता था क्योंकि मठ सामूहिक हितों को प्रमुखता देते थे एक बड़े बौद्ध मठ के लिए योग्य कुलपति की नियुक्ति उन दिनों चर्चा का विषय थी उस बौद्ध मठ के आचार्य ज्ञान और विवेक के धनी मोद गलियन थे कुलपति पद के लिए य तीन उम्मीदवार थे और तीनों ही योग्य थे किंतु चुनाव तो एक का ही करना था अतः तीनों
की परीक्षा लेने के लिए तीनों को जंगल में भेजा गया आचार्य मौद गल्या यान उनकी परीक्षा लेने के लिए पहले ही जंगल में पहुंच गए उन्होंने मार्ग में कांटे बिछा दिए संध्या होने तक तीनों उम्मीदवार भी वहां आ पहुंचे मार्ग में कांटे देखकर तीनों रुके एक ने कुछ सोचकर अपना रास्ता बदल लिया दूसरे ने कांटों पर से कूदकर रास्ता पार किया तीसरा मार्ग से कांटे हटाने लगा ताकि मार्ग दूसरों के लिए निष्क बन जाए आचार्य मौद गलन ने छुपकर यह देखा यह सब देखकर आचार्य मौद गल्या ने इस तीसरे उम्मीदवार को यह कहते हुए कुपित
घोषित किया कि मठ में सत प्रवृत्तियों को परंपरा वही डाल सकेगा जो सभी का ध्यान रख सके और अपने आचरण से प्रेरणा देने की क्षमता रखता हो कथा का सार यह है कि निजी हितों पर सामूहिक हितों को वरीयता देने वाला ही सच्चा नेतृत्व करता होता है एक गुरु और शिष्य तीर्थाटन हेतु जा रहे थे चलते-चलते शाम घिर आई तो दोनों एक पेड़ के नीचे रात्रि विश्राम के लिए रुक गए गुरुजी रात्रि में मात्र तीन-चार घंटे ही सोते थे इसलिए उनकी नींद जल्दी पूर्ण हो गई वे शिष्य को जगाए बिना दैनिक कार्यों से निवृत्त हो
पूजा पाठ में लग गए इसी बीच उन्होंने एक विषधर सर्प को अपने शिष्य की ओर जाते देखा चूंकि गुरुजी पशु पक्षियों की भाषा समझते थे इसलिए उन्होंने सर्प से प्रश् किया सोए हुए मेरे शिष्य को डसने का प्रयोजन है सर्प ने उत्तर दिया महात्म आपके शिष्य ने पूर्व जन्म में मेरी हत्या की थी मुझे उससे बदला लेना है अकाल मृत्यु होने पर मुझे सर्प योनि मिली है मैं आपके शिष्य को डस करर उसे भी अकाल मृत्यु दूंगा क्षण भर विचार के उपरांत गुरुजी बोले मेरा शिष्य अत्यंत सदाचारी व होनहार होने के साथ ही अच्छा साधक
भी है फिर तुम उसे मरकर विश्व को उसके ज्ञान और प्रतिभा से क्यों वंचित कर रहे हो स् भी इस कार्य से मुक्ति नहीं मिलेगी किंतु सर्प का निश्चय नहीं बदला तब गुरु जी ने एक प्रस्ताव को रखते हुए कहा मेरे शिष्य की साधना अभी अधूरी है उसे अभी इस क्षेत्र में बहुत कुछ करना है जबकि मेरे लक्ष्य पूर्ण हो चुके हैं मेरे नाश में किसी की हानि नहीं है अतः उसके स्थान पर मुझे द लो गुरु का यह स्नेह देखकर सर्प का हृदय परिवर्तन हो गया और वह उन्हें प्रणाम कर वहां से चला गया
वस्तुत गुरु गुरुता ना केवल शिष्य को ज्ञान देने में बल्कि उसे पूर्ण परिपक्व होने तक उसकी रक्षा करने में निहित है स्वामी विवेकानंद के प्रवचन ज्ञान युक्त और तर्क आधारित होते थे ज्ञान भक्ति और कर्म विषयक जटिल से जटिल प्रश्नों का समाधान स्वामी जी अपनी सहज मेघा से कर देते थे जिज्ञासु हों का जमावड़ा उनके आसपास हमेशा लगा रहता था प्रवचन के दौरान या प्रवचन समाप्ति के उपरांत भी कई बार ऐसा होता था कि जि झांस सुओं की ओर से प्रश्न आते रहते और स्वामी जी उन प्रश्नों का संतुष्टि जनक उत्तर देते एक बार स्वामी
जी अपने प्रवचन में भगवान के नाम की महत्ता बता रहे थे यह सुनकर एक व्यक्ति ने तर्क दिया शब्दों में क्या रखा है स्वामी जी उन्हें रटने से क्या लाभ होगा तब स्वामी जी उसे प्रमाण सहित समझाने के उद्देश्य से नीच जाहिल मूर्ख आदि अपशब्दों से संबोधित किया यह सुनकर वह अत्यंत क्रोधित हो गया और कहने लगा आप जैसे सन्यासी के मुंह से ऐसे शब्द शोभा नहीं देते आपके इन कु वचनों से मुंह बहुत आघात पहुंचा है तब स्वामी जी बोले भाई वे तो शब्द मात्र थे आपने ही कहा कि शब्दों में क्या रखा है
मैंने भी तो आपको मात्र शब्द ही कहे कोई पत्थर तो नहीं मारे स्वामी जी की बात सुनकर उस व्यक्ति को अपने प्रश्न का जवाब मिल गया कि अब शब्द क्रोध का सकते हैं तो प्रिय वचन भी आशीर्वाद और कृपा दिला सकते हैं वस्तुतः शब्द की महिमा अपरंपार है अप्रिय वाणी मर्म भेदी होती है और मधुर वाणी मरहम का काम करती है इसलिए प्रथम स्थिति में अपयश और दूसरी स्थिति में सम्मान व शुभाशीष मिलती है एक जगल में तीन दोस्त बड़े आनंद से रहते थे कछुआ हिरण और कोआ जंगल में सभी प्रकार के प्राणी और पक्षी
भी रहते थे लेकिन उनके जैसा कोई ना था एक दिन हिरणी बोली अरे वही बैठे-बैठे मैं बोर हो गई हूं चलिए कोई ऐसा खेल खेलते हैं जिसमें सभी को मजा आ जाए कछ और कौआ बोला हां दोस्तों वही बैठे-बैठे का खेल खेलकर बोर हो चुके हैं अब कुछ नया खेल खेलेंगे कौवे को हिरण बोली ठीक है तो तुम एक बड़े से पेड़ पर बैठकर आंखें बंद करके 10 तक गिनती करो और हम दोनों छुप उसके बाद तुम हमें ढूंढना ढूंढने पर जो भी पहला मित्र दिखेगा वह तुम्हारी जगह पर 10 तक गिनती करेगा और तुम
छुप जाना कुआ गिनती करने लगा हिरण और कछुआ छुपने लगे इसी तरह खेल चलता रहा जब खेल खेलकर तीनों मित्र थक गए तब एक जगह बैठकर बातें करने लगे उतने में एक शिकारी वहां से गुजर रहा था तभी उसकी नजर हिरण कोआ और कछुए पर पड़ी शिकारी ने जैसे ही तीनों मित्रों को देखा उन्हें पकड़ने के लिए दौड़ा खतरे का आभास होते ही हिरण और कोवा रफू चक्कर हो गए यानी कि वहां से भाग गए कछुए को आभास हुआ परन रतु कछुए की चाल धीरे होने के कारण शिकारी के हाथ लग गया और शिकारी उसे
अपने कपड़े में बांध कर ले जाने लगा शिकारी मन ही मन खुश हो गया हिरण नहीं तो कछुआ ही सही रात का तो प्रबंध हो गया यह कहकर वहां से जाने लगा उधर हिरण और कोवा अपने मित्र को ऐसे शिकारी के कैद में देखकर दुखी होने लगे तभी शिकारी भोजन में कछुए को खाने वाला है यह सुनकर हिरण और कौवे ने एक योजना बनाई कौवे ने हिरण को कहा कि जैसे ही शिकारी यहां से जब जाने लगेगा तब तुम उसके सामने जाना जब शिकारी तुम्हें देखेगा तो अपनी पोटली जमीन पर रखकर तुम्हें पकड़ने के लिए
जैसे ही दौड़ेगा मैं जमीन पर रखी हुई पोटली पकड़कर उड़ जाऊंगा और तुम वहां से भाग जाना जैसे ही शिकारी वहां से जाने लगा हिरनी उसके सामने आ गई शिकारी ने हिरनी को पकड़ने के लिए पोटली जैसे ही जमीन पर रखी कोआ अपनी चोंच में पोटली पकड़कर उड़ गया शिकारी हिरण को पकड़ने के लिए दौड़ा और पीछे मुड़कर देखा कोवा पोटली चोंच में पकड़कर उड़ रहा था और इधर हिरण पलक छपते ही भाग गई शिकारी निराश होकर घर लौट गया कौवे ने पोटली को महफूज जगह पर रखा और कछुए को शिकारी के चंगुल से आजाद
कराया और तीनों मित्र आनंद से रहने लगे इससे हमें यह सीख मिलती है कि असली दोस्ताना वही जो समय पर काम आए एक किसान था जिसके दो बेटे थे वह बहुत ही आलसी और निकम मेंे थे वह अपने पिता को कामकाज में हाथ बटा के बजाय आलस किया करते थे इधर-उधर घूमते फिरते थे किसान को अपने बेटों की बहुत फिक्र थी वह सोचते थे कि मेरे मरने के बाद इनका क्या होगा यह अपना पेट कैसे भरेंगे अपने परिवार को कैसे संभाल पाएंगे एक दिन किसान की हालत बहुत ही गंभीर थी कहने का मतलब किसान मरने
की हालत में था तभी किसान ने अपने दोनों बेटों को बुलाकर उनसे कहा कि हमारे खेत में एक खजाना गड़ा हुआ है लेकिन वह किस जगह है उसकी जानकारी मुझे भी नहीं है लेकिन खोदने के बाद तुम्हें वह खजाना मिल जाएगा इतना कहकर किसान भगवान को प्यारे हो गए खजाने की खबर सुनकर दोनों बेटों के मन में लालच आ गया और वह दोनों खेत पर चले गए और खेत को खोदने लगे खजाने के लालच में कुछ ही दिनों में पूरे खेत को खोदने के बाद वह घर जाकर बैठ गए और वह अपने पिता को कोसने
लगे इसी तरह कुछ महीने बीत गए और वर्षा रतु का आगमन हुआ किसान के बेटों के पास पेट भरने के लिए सिर्फ एक ही जरिया था व थी खेती तब बाकी किसानों की तरह किसान के बेटों ने खेत में बीज बोने शुरू कर दिए वर्षा का पानी पाकर वह बीज अंकुरित हुए और देखते ही देखते खेत लहराने लगे ऐसा लग रहा था कि हवा के झोके से लहरा रहे थे यह देखकर किसान के बेटे बहुत खुश हो गए उनको समझ आ गया कि परिश्रम ही सच्चा धन होता है और वह उसी तरह से अपने पिता
के शब्दों का मोल भी समझ गए और अपने कामकाज में लग गए यही कहानी आज हम सबकी भी है मित्रों इसी पेड़ की तरह हमारे माता-पिता भी होते हैं जब हम छोटे होते हैं तो उनके साथ खेलकर बड़े होते हैं और बड़े होकर उन्हें छोड़कर चले जाते हैं और तभी वापस आते हैं जब हमें कोई जरूरत होती है धीरे-धीरे ऐसे ही जीवन बीत जाता है हमें पेड़ रूपी माता-पिता की सेवा करनी चाहिए ना कि सिर्फ उनसे फायदा लेना चाहिए इस कहानी में हमें दिखाई देता है कि उस पेड़ के लिए वह बच्चा बहुत महत्त्वपूर्ण था
और वह बच्चा बार-बार जरूरत के अनुसार उस सेब के पेड़ का उपयोग करता था यह सब जानते हुए भी कि वह उसका केवल उपयोग ही कर रहा है इसी तरह आजकल हम भी हमारे माता-पिता का जरूरत के अनुसार उपयोग करते हैं और बड़े होने पर उन्हें भूल जाते हैं हमें हमेशा हमारे माता-पिता की सेवा करनी चाहिए उनका सम्मान करना चाहिए और हमेशा भले ही हम कितने भी व्यस्त क्यों ना हो उनके लिए थोड़ा समय तो भी निकलते रहना चाहिए एक समय की बात है एक बार गौतम बुद्ध अपने शिष्यों के साथ बैठे हुए थे तभी
वहां एक व्यक्ति आया जो बहुत क्रोध में था और गौतम बुद्ध के पास आकर बहुत भला बुरा कहने लगा गौतम बुद्ध के शिष्यों को बहुत गुस्सा आया पर गौतम बुद्ध एकदम शांत थे वह व्यक्ति वहां से चला गया फिर अगले दिन वह दोबारा आ गया और आज तो वह और भी ज्यादा गुस्से में था और गौतम बुद्ध को और भी बुरा कहने लगा परंतु आज भी गौतम बुद्ध एकदम शांत थे और मुस्कुरा रहे थे पर गौतम बुद्ध के शिष्यों को बहुत गुस्सा आया वह व कुछ देर चिल रहा फिर चला गया अगले दिन वह व्यक्ति
फिर आया और आज तो हद ही कर दी उसने आकर गौतम बुद्ध को गाली देने लगा गौतम बुद्ध के शिष्यों को बहुत गुस्सा आया परंतु आज भी गौतम बुद्ध एकदम शांत थे इतना कुछ चलता रहा और बुद्ध मुस्कुरा रहे थे यह क्रम कुछ दिन चलता रहा फिर उस व्यक्ति ने आना छोड़ दिया तब उनके एक शिष्य ने पूछा गुरु जी आप चाहते तो पहले दिन ही उस व्यक्ति को भगा सक पर अपने ऐसा क्यों नहीं किया तब गौतम बुद्ध ने बड़ी नम्रता से कहा अगर कोई व्यक्ति हमें कोई उपहार दे और हम उसे लेने से
मना कर दे तो वह व्यक्ति क्या करेगा शिष्य ने कहा वह व्यक्ति अपना उपहार लेकर लौट जाएगा तब गौतम बुद्ध ने कहा मैंने भी ऐसा ही किया उस व्यक्ति ने मुझे उप शब्द रूपी उपहार दिया मैंने उसे लेने से मना कर दिया मतलब उस पर कोई भी प्रतिक्रया नहीं दी तो व्यक्ति अपने वह अपशब्द वापस ले लेकर लौट गया एक व्यक्ति की 3 साल की बेटी थी एक दिन उस व्यक्ति ने देखा कि उसकी बेटी उसके एक बहुत सुंदर और महंगे गोल्ड पैकिंग पेपर से एक बॉक्स को लपेट रही थी यह देखकर उस व्यक्ति को
बहुत गुस्सा आया है उसने अपनी बेटी को बहुत डांटा तुमने मेरे इतनी कीमती पेपर को बेकार कर दिया वह भी बिना किसी मतलब के तुम इसे अच्छे काम के लिए उपयोग करती तो अच्छा लगता पर तुमने एक बेकार से डिब्बे को उसमें लपेट दिया कुछ दिन बीते दिवाली का दिन आया उस व्यक्ति ने अपनी बेटी को गिफ्ट दिया बेटी ने भी वही सुंदर सा गोल्डन बॉक्स पापा को दिया उसके पापा पहले तो उसे देखकर बहुत खुश हुए पर जैसे ही उन्होंने उस डिब्बे को खोला वह खाली था यह देखकर उस व्यक्ति ने अपनी बेटी को
घूरा और कहा क्या तुम्हें इतना भी नहीं पता कि किसी को खाली डिब्बा नहीं देते लड़की कुछ देर शांत रही फिर बोली पापा यह डिब्बा खाली नहीं है मैंने इसमें बहुत सारे किस आपके लिए रखे हैं कभी-कभी आप जल्दी ऑफिस चले जाते हैं और मैं सोती रह जाती हूं तो आप इसमें से एक किस ले जा सकते हैं बेटी की बात सुनकर उस व्यक्ति की आंख भर आई एक गांव में एक लड़का रहता था उसके घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी उसके मन में विचार आया किसी बड़े शहर में जाकर वह नौकरी करें वह
कलकाता गया और नौकरी ढूंढने लगा बहुत खोज के बाद उसे एक सेठ के घर में नौकरी मिल गई नौकरी छह आने रोज की थी काम था सेठ को रोज छ घंटे अखबार और किताब पढ़कर सुनाना लड़के को नौकरी की जरूरत थी तो उसने वह नौकरी स्वीकार कर ली एक दिन की बात है लड़के को दुकान के कोने में 100 100 के आठ नोट पड़े मिले उसने चुपचाप उन्हें अखबार और किताबों से ढक दिया दूसरे दिन रुपयों की खोजबीन हुई लड़का सुबह जब दुकान पर आया तो उससे पूछा गया लड़के ने तुरंत ही प्रसन्नता से रुपए
निकालकर ग्राहक को दे दिए वह बहुत ही खुश हुआ लड़के के ईमानदारी से सबको बहुत प्रसन्नता हुई सेठ भी लड़के से बहुत खुश हुआ सेठ ने लड़के को पुरस्कार देना चाहा तो लड़के ने लेने से मना कर दिया लड़के ने कहा सेठ जी मैं आगे पढ़ना चाहता हूं पर पैसों के आभाव में पढ़ नहीं पा रहा आप कुछ सहायता कर दें सेठ ने लड़के की पढ़ाई का प्रबंध कर दिया लड़का बहुत मेहनत से पढ़ता गया यही लड़का आगे चलकर बहुत बड़ा साहित्यकार बना इसका नाम था राम नरेश त्रिपाठी हिंदी साहित्य में इनका बहुत बड़ा योगदान
है नुकसान का मातम मनाने से नहीं मिलती सफलता एक बार आकाश नाम का लड़का मायूस बैठा था उसे व्यापार में बहुत नुकसान हुआ था बैंक से भी उसने कर्ज ले रखा था लेकिन नुकसान की वजह से वह किस्त चुकाने की स्थिति में नहीं था उसे डर लग रहा था कि बैंक वाले दबाव बनाने लगेंगे तो वह क्या करेगा उसे यह भी समझ में नहीं आ रहा था कि आगे कौन सा काम शुरू करें जिस बिजनेस में नुकसान हुआ था उसे दोबारा शुरू करने की हिम्मत आकाश में नहीं थी यही सब सोचकर वह परेशान रहने लगा
एक दिन उसका दोस्त परेश उससे मिलने आया परेश ने आकाश को देखते ही कहा क्या बात है यार बहुत परेशान लग रहे हो आकाश ने अपनी परेशानी छुपाने की कोशिश करते हुए कहा कुछ नहीं यार बिजनेस में थोड़ा उत्तर चढ़ाव आता रहता है परेश ने कहा तुम्हारा चेहरा बता रहा है कि मामला गंभीर है मुझसे छुपाओ नहीं परेश की बात सुनकर आकाश ने उसे अपनी सारी कहानी बता दी इसके बाद ने पूछा मेरी जगह तुम होते तो क्या करते परेश ने थोड़ा सोचने के बाद कहा अगर मैं तुम्हारी जगह होता तो अपनी असफलता पर पछतावा
नहीं करता आगे क्या करना है उस पर विचार करता पछतावा करते रहने से आदमी नुकसान से दुख से बाहर नहीं निकल पता है मेरी मानो तो तुम नए सिरे से अपने बिजनेस को खड़ा करने की सोचो मित्र की सलाह के बाद आकाश ने कहा तुम बात तो ठीक कह रहे हो लेकिन मुझ में फिर से वही बिजनेस शुरू करने की हिम्मत नहीं है इस पर परेश ने कहा यह सही है कि तुम्हें नुकसान हुआ है लेकिन तुम्हें तजुर्बा भी मिला है अगर तुम कुछ नया शुरू करने की योजना बनाते हो तो तुम्हें शून्य से शुरू
करना होगा अगर तुम अपने पुराने काम को नए सिरे से शुरू करते हो तो तुम्हें बहुत ज्यादा होमवर्क करने की जरूरत नहीं पड़ेगी मेरी राय में तुम्हें नुकसान का मातम नहीं मामना चाहिए काम को नए सिरे से शुरू करने की प्लानिंग करनी चाहिए जितना ज्यादा नुकसान के बारे में सोचोगे उ ना अधिक तुम अपनी सफलता से दूर होते जाओगे तो असफलता से भी सीखने की कोशिश करनी चाहिए शेखर ने अपने दादा जी से यह सवाल पूछा सभी भी अपने जीवन में आगे बढ़ना चाहते हैं लेकिन बहुत काम लोग ही अपने लक्ष्य तक पहुंच पाते हैं
अगर अपने लक्ष्य तक पहुंचना है तो क्या करना चाहिए शेखर स्नातक अंतिम वर्ष का छात्र है और प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी कर रहा है उसके दादाजी प्राइमरी स्कूल से रिटायर्ड शिक्षक हैं उन्होंने शेखर का सवाल सुनने के बाद कहा अपने लक्ष्य तक पहुंचने के लिए व्यक्ति को सबसे पहले खुद को असफलताओं को स्वीकार करने के लिए तैयार करना चाहिए दादाजी का जवाब सुनने के बाद शेखर ने पूछा मैं आपकी बात समझ नहीं पाया आखिर अपने आप को असफलता के लिए तैयार कर सफलता कैसे पाई जा सकती है शेखर का सवाल सुनने के बाद दादा जी
ने कहा इस बात को मैं तुम्हारा ही उदाहरण देकर समझता हूं तुम इस समय प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हो तुम अगले वर्ष होने वाली परीक्षाओं में बैठोगे तुम यही सोचकर बैठोगे कि तुम्हें सफलता मिलेगी दादाजी की बात पर शेखर ने हमें सिर हिलाया इसके बार दादाजी जी ने कहा मान लो तुम अपने पहले प्रयास में असफल हो जाते हो तो तुम क्या करोगे शेखर ने कहा मुझे बहुत निराशा होगी मैं तैयारी में अपनी तरफ से कहीं कमी नहीं छोड़ रहा हूं दादाजी ने कहा निराशा ही असफलता की जड़ है वह कैसे शेखर ने
सवाल किया दादा जी बोले तुम्हें लगता है कि तुम्हारी तैयारी मुकम्मल है लेकिन परीक्षा तो दूसरे की इच्छा पर निर्भर है अगर तुम पहले प्रयास में असफल होने के बाद निराश हो जाते हो तो तुम्हारी आगे की तैयारी प्रभावित होगी अगर तुम असफलता को अपनी कमियों को दुरुस्त करने का मौका मानोगे तभी आगे की तैयारी में उन्हें दूर कर पाओगे हर परीक्षार्थी यही सोचता है कि उसकी तैयारी पूरी है लेकिन सफलता कुछ लोगों को ही मिलती है यह वही लोग होते हैं जो अपनी असफलता से सीखते हैं ही और दूसरों की असफलता से भी सीखने
की कोशिश करते हैं अपने काम को खुद नहीं समझे महत्वहीन मुकेश दफ्तर में नए हैं पहले वह दूसरे संस्थान में काम करते थे अपना काम तल्लीनता से करते हैं लेकिन चेहरा बताता है कि मुकेश अपने काम से खुश नहीं है एक दिन इस बारे में पूछने पर उन्होंने कहा जब काम में मन नहीं लगे तो चेहरा उदास हो ही जाता है काम में मन क्यों नहीं लग रहा है यह पूछने पर उन्होंने कहा अरे यह भी कोई काम है इसके बाद उन्होंने ढेर सारे तथ्यों के साथ अपने काम को महत्वहीन बताने की कोशिश की उन्होंने
यह भी कहा कि इस समय जो काम मेरे जिम्मे है उसके आधार पर दूसरे संस्थान में नौकरी भी नहीं मिलेगी इस बात को मुकेश के रिपोर्टिंग मैनेजर मिस्टर कुमार को बताया गया वह सुलझे हुए इंसान हैं उन्होंने तरीके से मुकेश को सम या कि उनका काम कैसे महत्त्वपूर्ण है मिस्टर कुमार ने उनसे पूछा मुकेश पहले अपने काम के बारे में बताइए मुकेश ने कहा मेरा काम यह देखना है कि हमारी कंपनी के प्रोडक्ट में कहां-कहां गड़बड़ी है उसे कैसे दूर किया जा सकता था आगे ऐसा क्या किया जाए जिससे पुरानी खामियां फिर से सामने नहीं
आए मुकेश की बात खत्म होते ही मिस्टर कुमार ने कहा यह जानकर अच्छा लगा कि आपको अपने काम की अच्छी समझ है जैसा आपने कहा है उसके अनुसार आपका काम प्रोडक्ट को कैसे बेहतर बनाया जाए और उसके निर्माण के दौरान की खामियों को दूर करने से जुड़ा है मुकेश ने हां में सर हिलाया इसके बाद मिस्टर कुमार ने पूछा जब प्रोडक्ट को लेकर इतनी बड़ ही जिम्मेदारी कंपनी ने आपको दी है तब आप अपने काम को महत्वहीन क्यों समझते हैं एक आम धारणा है कि जो लोग प्रोडक्ट के निर्माण से सीधे जुड़े हैं वही मेन
स्ट्रीम में काम करते हैं लेकिन हर काम म का होता है अगर ऐसा नहीं होता तो कंपनी आपके ऊपर खर्च नहीं करती कंपनी को पता है कि आपके काम का परिणाम प्रोडक्ट पर दिखेगा इसलिए इस बात को मन से निकालिए कि आप जो काम कर रहे हैं उसकी पूछ नहीं है ध्यान से देखेंगे तो लगेगा कि आपका काम ही सबसे महत्त्वपूर्ण है एकता और समझदारी ऊंचे आकाश में सफेद कबूतरों की एक टोली उड़कर जा रही थी बहुत दूर जाना था उन्हें लंबा रास्ता था सुबह से उड़ते उड़ते थकान होने लगी थी सूरज तेजी से चमक
रहा था कबूतरों को भूख लगने लगी थी तभी उन्होंने देखा कि नीचे जमीन पर चावल के बहुत से दाने पड़े थे कबूतरों ने एक दूसरे से कहा चलो भाई थोड़ी देर रुककर कुछ खा लिया जाए फिर आगे जाएंगे एक बुजुर्ग कबूतर ने चारों ओर देखा वहां दूर-दूर तक कोई घर या मनुष्य दिखाई नहीं दे रहा था फिर चावल के यह दाने यहां कहां से आए बुजुर्ग कबूतर ने बाकी कबूतरों को समझाया मुझे लगता है कि यहां कुछ गड़बड़ तुम लोग नीचे मत उतरो लेकिन किसी ने भी उसकी बात नहीं सुनी सभी कबूतर तेजी से उतरे
दाना चुगने लगे इतने बढ़िया दाने बहुत दिनों के बाद खाने को मिले थे वे बहुत खुश थे जब सभी ने भर पेट खा लिया तो बोले चलो भाई अब आगे चला जाए लेकिन यह क्या जब उन्होंने उड़ने की कोशिश की तो उड़ ही नहीं पाए दोनों के साथ-साथ वहां एक चिड़ीमार का जाल भी था जिसमें उनके पांव फंस गए थे उन्हें अपनी गलती पर पछतावा हुआ बूढ़ा कबूतर पेड़ पर बैठकर सब देख रहा था उसने जब अपने साथियों को मुसीबत में देखा तो फौरन उड़ा और चारों ओर देखा दूर उसे चिड़ीमार आता दिखाई दिया वह
फौरन लौटा और अपने साथियों को बताया सब वहां से निकलने का उपाय सोचने लगे तब बूढ़े कबूतर ने कहा दोस्तों एकता में बड़ी शक्ति होती है सब एक साथ उड होगे तो जाल तुम्हें रोक नहीं पाएगा उसने गिना एक दो तीन उड़ो सारे कबूतरों ने एक साथ जोर लगाया और जाल के साथ उठने लगा जब तक चिड़ीमार वहां पहुंचा तब तक जाल काफी ऊपर उठ चुका था वह देखता ही रह गया और कबूतर जाल लेकर उड़ गए बूढ़ा कबूतर सबसे आगे उड़ रहा था काफी देर उड़ने के बाद वे नीचे उतरे वहां कबूतरों के दोस्त
चूहे रहते थे चूहों ने अपने तेज दांतों से जाल काट दिया इस तरह बूढ़े कबूतर की समझदारी और साथ मिलकर काम करने से सभी कबूतर बच गए एक शहर में एक बहुत अमीर व्यक्ति रहता था उसका नाम तो था धनी मल लेकिन था वह बेहद कंजूस उसका कहना था कि अगर आप अपना पैसा अपने पास रखेंगे तो सबको पता चल जाएगा कि आपके पास बहुत पैसे हैं फिर चोर डाकू आपके पीछे पड़ जाएंगे और सारा पैसा लूट कर ले जाएंगे इसलिए वह अपना सारा पैसा छिपा कर रखता था और खुद एक बहुत गरीब व्यक्ति के
समान रहता था पैबंद लगे कपड़े घिसे हुए जूते रुखा सूखा खाना यह सब देखकर लोग उसे भिखारी समझते थे जिनको पता था कि वह धनवान है वे उसे कंजूस कहकर बुलाते थे एक दिन धनी मल को अपनी संपत्ति को चोरों से बचाने का एक बहुत बढ़िया उपाय समझ में आया उसने सारे पैसों से बहुत सा सोना खरीद लिया और फिर सारे सोने को पिघलाकर उसका एक बड़ा सा गोला बना लिया उसने शहर के बाहर जाकर एक पुराने कुने के पास एक गड्ढा खोदा और सोने का वह गोला उसमें डालकर गड्ढा बंद कर दिया वह अब
निश्चिंत था अपनी तसल्ली के लिए वह रोज रात को आकर गड्ढे में देख लेता था कि उसका सोना वहां है या नहीं उसे विश्वास था कि कोई भी चोर इस जगह के बारे में नहीं जान पाएगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ धीरे-धीरे पूरे शहर में यह चर्चा होने लगी कि धनी मल रात में शहर के बाहर जाकर कुछ करता है एक रात जब उसने गड्ढा खोद कर देखा तो सोना वहां से गायब था उसे गहरा सदमा लगा और वह चीख कर रोने लगा उसके रोने की आवाज सुनकर बहुत से लोग वहां आ गए धनी मल रो
रो कर अपना दुख बताने लगा तब उसके एक पड़ोसी से उसे कहा धनी मल तुम एक भारी पत्थर इस गड्ढे में रख दो और समझ लो कि वही तुम्हारा सोना है यह सुनकर धनी मल को बहुत गुस्सा आया तुम मेरे सोने को पत्थर जैसे बता रहे हो वह बोला देखो धनी मल वह सोना तुम कभी इस्तेमाल तो करते नहीं थे एक पत्थर की तरह यहां उसे दबा कर रख दिया था तो फिर यहां सोना हो या पत्थर क्या फर्क पड़ता है उसका पड़ोसी बोला बात तो ठीक ही थी धनी मल ने बहुमूल्य सोने को पत्थर
के समान मूल्य हीन बना दिया था उसके बाद धनी मल ने मेहनत करके फिर पैसे कमाए लेकिन अब वह कंजूस नहीं रहा था अपने पैसे को वह अपने ऊपर और दूसरे लोगों की सहायता के लिए खर्च करता था अंधी का बेटा एक औरत थी जो अंधी थी जिसके कारण उसके बेटे को स्कूल में बच्चे चिढ़ाते थे कि अंधी का बेटा आ गया हर बात पर उसे यह शब्द सुनने को मिलता था कि अंधी का बेटा इसलिए वह अपनी मां से चिड़ताला में चकता था उसे नापसंद करता था उसकी मां ने उसे पढ़ाया और उसे इस
लायक बना दिया कि वह अपने पैरों पर खड़ा हो सके लेकिन जब वह बड़ा आदमी बन गया तो अपनी मां को छोड़ अलग रहने लगा एक दिन एक बूढ़ी औरत उसके घर आई और गार्ड से बोली मुझे तुम्हारे साहब से मिलना है जब गार्ड ने अपने मालिक से बोल तो मालिक ने कहा कि बोल दो मैं अभी घर पर नहीं हूं गार्ड ने जब बुढ़िया से बोला कि वह अभी नहीं है तो वह वहां से चली गई थोड़ी देर बाद जब लड़का अपनी कार से से ऑफिस के लिए जा रहा होता है तो देखता है
कि सामने बहुत भीड़ लगी है और जानने के लिए कि वहां क्यों भीड़ लगी है वह वहां गया तो देखा उसकी मां वहां मरी पड़ी थी उसने देखा कि उसकी मुट्ठी में कुछ है उसने जब मुट्ठी खोली तो देखा कि एक लेटर जिसमें यह लिखा था कि बेटा जब तू छोटा था तो खेलते वक्त तेरी आंख में सरिया ढ स गई थी और तू आधा हो गया था तो मैंने तुम्हें अपनी आंखें दे दी थी इतना पढ़कर लड़का जोर-जोर से रोने लगा उसकी मां उसके पास नहीं आ सकती थी दोस्तों वकत रहते ही लोगों की
वैल्यू करना सीखो मां-बाप का कर्ज हम कभी नहीं चुका सकते हमारी प्यास का अंदाज भी अलग है दोस्तों कभी समंदर को ठुकरा देते हैं तो कभी आंसू तक पी जाते हैं जीवन साथी सबसे अजीज होता है कॉलेज में हैप्पी मैरिड लाइफ पर एक कार्यक्रम हो रहा था जिसमें कुछ शादीशुदा जोड़े हिस्सा ले रहे थे जिस समय प्रोफेसर मंच पर आए उन्होंने नोट किया कि सभी पति-पत्नी शादी पर जो कर हंस रहे थे यह देखकर प्रोफेसर ने कहा कि चलो पहले एक गेम खेलते हैं उसके बाद अपने विषय पर बातें करेंगे सभी खुश हो गए और
कहा कौन सा गेम प्रोफेसर ने एक मैरिड लड़की को खड़ा किया और कहा कि तुम ब्लैक बोर्ड पर ऐसे 2530 लोगों के नाम लिखो जो तुम्हें सबसे अधिक प्यारे हो लड़की ने पहले तो अपने परिवार के लोगों के नाम लिखे फिर अपने सगे संबंधी दोस्तों पड़ोसी और सहकर्मियों के नाम लिख दिए अब प्रोफेसर ने उसमें से कोई भी कम पसंद वाले पांच नाम मिटाने को कहा लड़की ने अपने सहकर्मियों के नाम मिटा दिए प्रोफेसर ने और पांच नाम मिटाने को कहा लढकी ने थोड़ा सोचकर अपने पड़ोसियों के नाम मिटा दिए अब प्रोफेसर ने और 10
नाम मिटाने को कहा लड़की ने अपने सगे संबंधी और दोस्तों के नाम मिटा दिए अब बोर्ड पर सिर्फ चार नाम बचे थे जो उसके मम्मी पापा पति और बच्चे का नाम था अब प्रोफेसर ने कहा इसमें से औरत दो नाम मिटा दो लड़ की असमंजस में पड़ गई बहुत सोचने के बाद बहुत दुखी होते हुए उसने अपने मम्मी पापा का नाम मिटा दिया सभी लोग स्तब्ध और शांत थे क्योंकि वह जानते थे कि यह गेम सिर्फ वह लड़की ही नहीं खेल रही थी उनके दिमाग में भी यही सब चल रहा था अब सिर्फ दो ही
नाम बचे थे पति और बेटे का प्रोफेसर ने कहा और एक नाम मिटा दो लड़की अब सहमी सी रह गई बहुत सोचने के बाद रोते हुए अपने बेटे का नाम काट दिया प्रोफेसर ने उस लड़की से कहा तुम अपनी जगह पर जाकर बैठ जाओ और सभी की तरफ गौर से देखा और पूछा क्या कोई बता सकता है कि ऐसा क्यों हुआ कि सिर्फ पति का ही नाम बोर्ड पर रह गया कोई जवाब नहीं दे पाया सभी मुंह लटका कर बैठे थे प्रोफेसर ने फिर उस लड़की को खड़ा किया और कहा ऐसा क्यों जिसने तुम्हें जन्म
दिया और बाल पोस करर इतना बड़ा किया उनका नाम तुमने मिटा दिया और तो और तुमने अपनी कोख से जिस बच्चे को जन्म दिया उसका भी नाम तुमने मिटा दिया लड़की ने जवाब दिया कि अब मम्मी पापा बूढ़े हो चुके हैं कुछ साल के बाद वह मुझे और इस दुनिया को छोड़कर चले जाएंगे मेरा बेटा जब बड़ा हो जाएगा तो जरूरी नहीं कि वह शादी के बाद मेरे साथ ही रहे लेकिन मेरे पति जब तक मेरी जान में जान है तब तक मेरा आधा शरीर बनके मेरा साथ निभाएंगे इसलिए मेरे लिए सबसे अजीज मेरे पति
हैं प्रोफेसर और बाकी स्टूडेंट ने तालियों की गूंज से लड़की को सलामी दी प्रोफेसर ने कहा तुमने बिल्कुल सही कहा कि तुम और सभी के बिना रह सकती हो पर अपने आधे अंग अर्थात अपने पति के बिना नहीं रह सकती मजाक मस्ती तक तो ठीक है पर हर इंसान का अपना जीवन साथी ही उसको सबसे ज्यादा अजीज होता है दिमाग का इस्तेमाल कर पक्ष में करें परिस्थितियां एक शेर जंगल में शिकार पर निकला था एक लोमड़ी अचानक उसके सामने आ गई लोमड़ी को लगा कि अब उसे कोई नहीं बचा सकता है लेकिन उसने हार नहीं
मानी और अपनी जान बचने के लिए एक तर सोची लोमड़ी ने शेर से कड़े शब्दों में कहा तुम्हारे पास इतनी ताकत नहीं कि मुझे मार सको यह सुनकर शेर थोड़ा अचंभित हुआ उसने पूछा तुम ऐसा कैसे कह सकती हो लोमड़ी ने अपनी आवाज और ऊंची करते हुए बोली मैं तुम्हें सच बता देती हूं ईश्वर ने स्वयं मुझे इस जंगल और जंगल में रहने वाले सभी जानवरों का राजा बनाया है यदि तुमने मुझे मारा तो यह ईश्वर के विरुद्ध होगा और तुम भी मर कुछ देर चुप रहने के बाद लोमड़ी ने कहा अगर विश्वास नहीं हो
रहा है तो तुम मेरे साथ जंगल घूमने चलो तुम मेरे पीछे चलना और देखना कि जंगल के जानवर मुझसे कितना डरते हैं शेर इसके लिए तैयार हो गया लोमड़ी डर होकर शेर के आगे आगे चलने लगी लोमड़ी के पीछे शेर को चलते देखकर जंगल के दूसरे जानवर डर कर भाग गए कुछ देर जंगल में घूमने के बाद लोमड़ी ने शेर से सवाल किया क्या तुम्हें मेरी बात पर विश्वास हुआ कुछ देर चुप रहने के बाद शेर ने कहा तुम ठीक कहती हो जंगल की राजा तुम ही है परिस्थितियां कितनी भी विपरीत क्यों ना हो हम
अपने दिमाग का इस्तेमाल कर उसे अपने पक्ष में कर सकते हैं हमारा दिमाग प्रोग्राम के आधार पर काम करने वाला कंप्यूटर नहीं है दिमाग को आउट व ऑफ बॉक्स सोचने की क्षमता है हर समस्या का समाधान तलाशने की ताकत है यह तभी संभव होगा जब हूं विपरीत परिस्थितियां में भी अपना धैर्य बरकरार रखेंगे सफल होने के लिए हमेशा सीखते रहे सिकंदर और रोहित मित्र हैं दोनों ने एक साथ अपना अपना काम शुरू किया दोनों मित्रों का व्यापार खूब चला कुछ समय बाद रोहित ने सोचा कि अब मेरा व्यापार चल पड़ा है मैं तरक्की करता चला
जाऊंगा इसलिए अब मुझे इस लाइन में कुछ नया सीखने की जरूरत नहीं है व्यापार में उतार चढ़ाव आते रहते हैं रोहित के व्यापार में भी ऐसी स्थिति आई और उसे नुकसान झेलना पड़ा सिकंदर के व्यापार में भी उतार चढ़ाव आए पर उसे उतना नुकसान नहीं हुआ जितना रोहित को हुआ रोहित सोचने लगा कि सिकंदर ने अपने नुकसान को नियंत्रित कैसे किया रोहित ने इस बारे में उससे पूछने का मन बनाया जब उसने सिकंदर से इस बारे में पूछा तब सिकंदर ने कहा कि मैं अभी सीख रहा हूं रोहित ने कहा मैं समझा नहीं सिकंदर ने
सपनी बात समझाते हुए कहा मैं अपनी ही नहीं दूसरों की गलतियों और कामयाबी से भी सीखता हूं इससे मेरे जीवन में एक जैसी परेशानी बार-बार नहीं आती अगर आती भी है तो आसानी से हल हो जाती है सिकंदर की बात सुनकर रोहित को अपनी गलती का एहसास हुआ उसे एहसास हुआ कि शुरुआती सफलता के बाद उसने सीखना एकदम छोड़ दिया था यही वजह है कि अपने व्यापार में होने वाले नुकसान का आकलन वह नहीं कर पाया जीवन में सफल होने के लिए सीखते रहना जरूरी है इंसान को हमेशा सीखते रहना चाहिए इससे उसके भीतर नकारात्मक
विचार नहीं आते हैं बल्कि उसमें सकारात्मक बदलाव आता रहता है और सफलता की सीढ़ियां चढ़ता रहता है सीखते रहने वाले व्यक्ति को सफलता के अवसर भी ज्यादा मिलते हैं सबसे बड़ी बात यह है कि इस तरह के व्यक्ति में अहंकार नहीं होता जिसके मन में अहंकार होगा वह कभी सीखने का प्रयास नहीं करेगा घमंड कुल्हाड़ी हुई निरुत्तर एक बार कुल्हाड़ी और लकड़ी के एक डंडे में विवाद छिड़ गया दोनों स्वयं को शक्तिशाली बता रहे थे हालांकि लकड़ी का डंडा बाद में शांत हो गया किंतु कुल्हाड़ी का बोलना जारी रहा कुल्हाड़ी में घमंड अत्यधिक था वह
गुस्से में भरकर बोल रही थी तुमने स्वयं को समझ क्या रखा है तुम्हारी शक्ति मेरे आगे पानी भरती है मैं चाहूं तो बड़े-बड़े वृक्षों को पल में काट कर गिरा दूं धरती का सीना फाड़कर उसमें तालाब कुआं बना दूं तुम मेरी बराबरी कर पाओगे मेरे सामने से हट जाओ अन्यथा तुम्हारे टुकड़े टुकड़े कर दूंगी लकड़ी का डंडा कुल्हाड़ी की अहंकार पूर्ण बातों को सुनकर धीरे से बोला तुम जो कह रही हो वह बिल्कुल ठीक है किंतु तुम्हारा ध्यान शायद एक बात की ओर नहीं गया जो कुछ तुमने करने को कहा है बेशक तुम कर सकती
हो किंतु अकेले अपने दम पर नहीं कर सकती कुल्हाड़ी ने चिड़कर कहा क्यों मुझ में किस बात की कमी है डंडा बोला जब तक मैं तुम्हारी सहायता ना करूं तुम यह सब नहीं कर सकती हो जब तक मैं हत्या बनकर तुमहे ना लगाया जाऊं तब कोई किसे पकड़कर तुमसे य सारे काम लेगा बिना हत्थे की कुल्हाड़ी से कोई काम लेना असंभव है कुल्हाड़ी को अपनी भूल का एहसास हुआ और उसने डंडे से क्षमा मांगी कथासार यह है कि दुनिया सहयोग से चलती है जिस प्रकार ताली दोनों हाथों के मेल से बजती है उसी प्रकार सामाजिक
विकास भी परस्पर सहयोग से ही संभव होता है यदि जीवन का संतुलन बिगड़ा और थकान आई तो समझ लीजिए कि बीमारी आई और यदि वापस ऊर्जा अर्जित करने के लिए विश्राम किया जा रहा है तो ऐसी थकान वरदान भी साबित हो सकती है इन दिनों जिस तरह की हमारी जीवन शैली है इसमें असंतुलन बहुत अधिक है सुबह उठने से लेकर रात को सोने तक शरीर की कुछ नियमित क्रियाएं हैं आदमी उसे भूल गया है गौतम बुद्ध बहुत काम करते पर कभी थकते नहीं थे आज भी कई साधु संत उतना ही परिश्रम कर रहे हैं जितना
एक कॉर्पोरेट जगत का सफल व्यक्ति करता है और जब वे रात को सोते हैं तो पूरी ब फिकरी के साथ बुद्ध से उनके शिष्यों ने एक बार पूछा था आप थकते नहीं बुद्ध का उत्तर था जब मैं कुछ करता ही नहीं तो थकूर में अजीब लगती है लेकिन है बड़ी गहरी अध्यात्म ने इसे साक्षी भाव कहां है स्वयं को करते हुए देखना यह वह स्थिति होती है जब तन सक्रिय और मन विश्राम की मुद्रा में होता है आज ज्यादातर लोग असमय अकारण थक जाते हैं जिसका एक बड़ा कारण असंतुलित जीवन है एक होता है थकान
को महसूस करना और दूसरा है स्वाभाविक थकान जिस समय आपकी रुचियां इच्छाओं और मूल स्वभाव में धीमा पन आने लगे अकारण चिड़चिड़ा हट हो जाए समझ ले कि यह थकान बीमारी है इसलिए प्रतिदिन योग प्राणायाम और ध्यान करें यह क्रियाएं अपने आप में एक विश्राम है करने वाला कोई और है हम तो महज उसके हाथों की कठपुतली हैं यह मनोभाव भी थकान को मिटाएगा क्या दिक्कत है ऐसा सोच लेने में महात्मा बुद्ध ज्ञान प्राप्ति के लिए घोर तप में लगे थे उन्होंने शरीर को काफी कष्ट दिया यात्राएं की घने जंगलों में कठिन साधना की पर
आत्म ज्ञान की प्राप्ति नहीं हुई निराश हो बुद्ध सोचने लगे मैंने अभी तक कुछ भी प्राप्त नहीं किया अब आगे क्या कर पाऊंगा निराशा अविश्वास के इन नकारात्मक भावों ने उन्हें शुब कर दिया कुछ ही क्षणों के बाद उन्हें प्यास लगी वे थोड़ी दूर स्थित एक झील तक पहुंचे वहां उन्होंने एक दृश्य देखा कि एक नही सी गिलहरी के दो बच्चे झील में डूब गए पहले तो वह गिलहरी जड़ वत बैठी रही फिर कुछ देर बाद उठकर झील के पास गई अपना सारा शरीर झील के पानी में भिगोया और फिर बाहर आकर पानी झाड़ने लगी
ऐसा वह बार-बार करने लगी बुद्ध सोचने लगे कि इस गिलहरी का प्रयास कितना मूर्खता पूर्ण है क्या कभी यह इस झील को सुखा सकेगी किंतु गिलहरी का यह क्रम लगातार जारी था बुद्ध को ल मानो गिलहरी कह रही हो कि यह झील कभी खाली होगी या नहीं यह मैं नहीं जानती किंतु मैं अपना प्रयास नहीं छोडूंगी अतः उस छोटी सी गिलहरी ने भगवान बुद्ध को अपने लक्ष्य मार्ग से विचलित होने से बचा लिया वे सोचने लगे कि जब यह नन्ही गिलहरी अपने लघु सामर्थ्य से झील को सुखा देने के लिए दृढ़ संकल्पित है तो मुझ
में क्या कमी है मैं तो इससे हजार गुना अधिक क्षमता रखता हूं यह सोचकर गौतम बुद्ध पुन अपनी साधना में लग गए और एक एक दिन बोधि वृक्ष तले उन्हें ज्ञान का आलोक प्राप्त हुआ यह कथा असफलता के बावजूद प्रयासों की निरंतरता पर बल देती है यदि हम प्रयास करना ना छोड़े तो एक ना एक दिन लक्ष्य की प्राप्ति हो ही जाती है बुद्ध अपने साधना काल में एक निर्जन स्थान पर ध्यान मग्न बैठे थे इसी स्थान पर एक यक्ष का वास था यह बात बुद्ध को झांत नहीं थी वे तो वहां पहुंचे और शांत
वातावरण देखकर ध्यान मग्न हो गए उस समय यक्ष वहां पर नहीं था होने पर जब वह आया तो उस स्थान पर एक अनजान व्यक्ति को देखकर आग बबूला हो गया बड़े जोर से वह दहाड़ा किंतु बुद्ध का ध्यान भंग नहीं हुआ यक्ष ने उन्हें हाथी का रूप धारण कर डराना चाहा किंतु बुद्ध यथावत ध्यान मगन बैठे रहे उसने बुद्ध को डराने के लिए क्रमशः शेर चीता बाग आदि का रूप धारण किया किंतु बुद्ध अविचल ही बने रहे अंत में उसने भयंकर विषधर का रूप धारण कर उनके पैर के अंगूठे को ढ लिया किंतु बुद्ध पर
उसके विष का भी कोई असर नहीं हुआ वे अब भी अप्र भावित रहे विषधर उनके शरीर पर चढ गया और उनके गले से लिपटकर उन्हें जोरों से काट लिया लेकिन इतने प्रयासों के बावजूद भी बुद्ध की साधना को भंग नहीं कर पाया थक कर नीचे उतर आया और उनसे कुछ कदमों की दूरी पर लेटकर अपनी थकान उतारने लगा ध्यान पूर्ण होने पर बुद्ध ने उसकी तरफ देखा और उसे बहुत स्नेह से दुलारा उनका निश्छल प्रेम देखकर सर्प का विष अमृत बन गया और यक्ष ने श्रद्धापूर्वक बुद्ध को को नमन किया कहानी का सार यह है
कि मन की कलुष होता पर एकाग्रता स्नेह और संभव से ही विजय प्राप्त की जा सकती है बौद्ध भिक्षु बौधि धर्म भ्रमण करते हुए एक गांव में पहुंचे लोग उनका बहुत आदर करते थे बौधि धर्म व उनके शिष्यों का ग्रामीणों ने हार्दिक सत्कार किया और फिर उनके पवित्र वचनों को सुनने के लिए उनके आसपास एकत्रित हो गए बोधि धर्म लोगों को धर्म और आचरण विषयक अच्छी बातें सरल भाषा में समझाने लगे तभी वहां एक एक व्यक्ति आया और बोधि धर्म को अपशब्द कहने लगा उपस्थित जन समूह ने उसे रोकने का बहुत प्रयास किया किंतु वह
नहीं माना तथा अनवरत बोधि धर्म को बुरा भला कहता रहा लोगों ने कहा कि महाराज यह व्यक्ति कितना उद्दंड है निरर्थक ही आपको अपशब्द कह रहा है बोधि धर्म उस व्यक्ति के इस आचरण पर कदापि क्रोधित नहीं हुए और लोगों से बोले कि यह भविष्य में मेरा सबसे बड़ा भक्त बनने वाला है लोगों ने पूछा कि कैसे बुध धर्म ने उत्तर दिया कोई कुम्हार के यहां घड़ा लेने जाता है तो घड़े को बजाकर देखा जाता है कि वह फूटा हुआ तो नहीं है जब एक दो रुपए के घड़े को कोई इतनी परक कर सकता है
तो भला जिसे गुरु मानना है उसे 10-20 गालियां दिए बगैर कैसे पहचाने पहले वह परीक्षा लेगा कि गुरु में धैर्य आक्रोश व समता भाव कितना है यह जानने के बाद ही तो वह गुरु को स्वीकारी इसलिए यह व्यक्ति मुझे निरर्थक ही अपशब्द नहीं कह रहा है और आगे चलकर वास्तव में वह व्यक्ति बद्धि धर्म का सबसे बड़ा भक्त बना किसी को शिक्षा देने से पूर्व स्वयं का आचरण भी तनुप्रिया ग्रहण करते बुद्ध का शिष्य वर्ग भी काफी विशाल था जो प्रवचन स्थल की व्यवस्था संभालता और बुद्ध की सेवा में सदैव तत्पर रहता एक बार रात
के समय महात्मा बुद्ध प्रवचन दे रहे थे सदैव की भांति काफी लोग उनके प्रवचन सुन रहे थे एक व्यक्ति जो बुद्ध के ठीक सामने बैठा था बार-बार नींद के झोंके ले रहा था बुद्ध थोड़ी देर तक तो प्रवचन देते रहे फिर उससे बोले वत्स सो रहे हो उस व्यक्ति ने हड़बड़ा करर कहा नहीं महात्मा बुद्ध ने पुनः प्रवचन प्रारंभ किए वह व्यक्ति फिर ऊंघ लगा महात्मा ने फिर वही प्रश्न दोहराया और उसने ने फिर अचकचा करर नहीं महात्मा कहा ऐसा लगभग आठम 10 बार हो गया कुछ देर बाद बुद्ध ने उसे पूछा वत्स जीवित हो
हर बार की तरह इस बार भी उसने कहा नहीं महात्मा यह सुनकर उपस्थित श्रोताओं में हंसी की लहर दौड़ गई और वह व्यक्ति पूर्णता चैतन्य हो गया तब बुद्ध गंभीर होकर बोले वत्स निद्रा में तुम्हारे मुख से सही उत्तर मिल ही गया जो निद्रा में है वह मृतक समान ही है महात्मा बुद्ध का संकेत था कि गुरु से ज्ञान ग्रहण करते वक्त सजगता अत्यंत आवश्यक है गाफिल रहने की स्थिति में ज्ञान की प्राप्ति पूर्ण नहीं होती औरत का चरा ज्ञान सदैव खतरनाक साबित होता है कथा सिद्धार्थ के जीवन के उस दौर की है जब वे
बुद्धत्व को प्राप्त नहीं हुए थे और निरंजना नदी के तटीय वनों में वृक्ष के नीचे ध्यान करते थे सिद्धार्थ प्रतिदिन ध्यान करने के बाद पास के किसी गांव में चले जाते और भिक्षा मांगकर लौट आते कुछ दिनों के बाद उन्होंने भिक्षा टन पर जाना बंद कर दिया क्योंकि एक गांव के प्रधान की छोटी बेटी सुजाता उनके लिए नित्य भोजन लाने लगी सिद्धार्थ को वह बड़े स्नेह से भोजन कराती थी कुछ दिनों बाद उसी गांव का एक चरवाहा भी सिद्धार्थ से प्रभावित होकर उनके पास आने लगा उसका नाम स्वस्थ था एक दिन स्वस्थ से सिद्धार्थ बातें
कर रहे थे कि सुजाता भोजन लेकर आई जैसे ही सिद्धार्थ ने भोजन करना शुरू किया उन्होंने बातचीत बंद कर दी जितनी देर तक वे भोजन करते रहे बिल्कुल चुप र और वहां सन्नाटा छाया रहा स्वस्थ को हैरानी हुई उसने सिद्धार्थ के भोजन करने के उपरांत उनसे पूछा गुरुदेव आप मेरे आने के बाद निरंतर वार्तालाप करते रहे किंतु भोजन के समय एक शब्द भी नहीं बोले इसका क्या कारण है सिद्धार्थ बोले भोजन का निर्माण बड़ी कठिनाई से होता है किसान पहले बीज बोता है फिर पौधों की रखवाली करता है और तब कहीं जाकर अनाज पैदा होता
है फिर घर की महिलाएं उसे बड़े जतन न से खाने योग्य बनाती है इतनी कठिनाई से तैयार भोजन का पूरा आनंद तभी संभव है जब हम पूर्णतः मौन हो अत भोजन के दौरान मैं मौन रहकर उसका पूरा स्वाद लेता हूं वस्तुतः शांति से किया गया भोजन ना केवल शारीरिक भूख को तृप्त करता है बल्कि मानसिक आनंद और सात्विक ऊर्जा भी देता है सम्राट अशोक संपूर्ण भारत को अपने राज्य में मिलाना चाहते थे पर कलिंग के युद्ध में हुए रक्तपात को देखकर उन्हें अत्यधिक दुख पहुंचा उनकी महत्वाकांक्षा ने जो तबाही मचाई थी उसे देखकर उन्हें खुद
पर गलानी हुई उन्होंने देखा कि लोग दर्द से करा रहे थे यह सब विनाश केवल उनकी महत्वाकांक्षा से हुआ था यह सब देखकर अशोक के मन में विनाश का पथ छोड़कर नेकी के रास्ते पर चलने का विचार जगा अशोक की राजधानी पाटलिपुत्र थी पाटलिपुत्र अब पटना के रूप में जाना जाता है पटना से गया भी अधिक दूर नहीं है जहां बोधि वृक्ष के नीचे महात्मा बु बुध को ज्ञान प्राप्त हुआ था बुद्ध के अष्टपद मार्ग शांति और दया के संदेश ने अशोक के दिलो दिमाग में इतनी उथल-पुथल पैदा कर दिया कि उन्होंने उस मार्ग को
अपनाने का फैसला किया इस पथ पर चलने से उन्होंने इतिहास में अपनी अमिट छाप छोड़ी अशोक ने अपने पुत्र को सिलोन अब श्रीलंका और अन्य कई लोगों को सुदूर क्षेत्रों में दूध बनाकर भेजा एक निर्दय महत्वाकांक्षा एक ऐसे पवित्र उद्देश्य में बदल चुकी थी जिसमें कुछ अच्छा कर गुजरने की करुणा और प्रेम के संदेश को चारों ओर फैलाने की इच्छा थी करुणा केवल दया भावना मात्र नहीं है यह आपके अंदर दूसरों की मदद करने की तीव्र इच्छा पैदा करती है इसी भावना ने बुद्ध को भगवान और अशोक को महान बनाया तथागत बुद्ध उन दिनों मगध
प्रवास पर थे साथ में शिष्यों का बड़ा समूह भी था प्रतिदिन बुद्ध के प्रवचन होते जिनका लाभ लेने के लिए बड़ी संख्या में लोग आते इन लोगों में साधारण जन के साथ विशिष्ट हस्तियां भी शामिल रहती थी हालांकि बुद्ध सभी के प्रति समान रूप से प्रेम व आत्मीयता का व्यवहार रखते थे इन लोगों में नगर सेठ का पुत्र भी था जो बड़े ध्यान से बुद्ध के प्रवचन सुनता था वह नित्य ही बुद्ध के शिष्यों के समक्ष बुद्ध की तारीफों के पुल बांधता और धन्य धन्य भाव से घर जाता एक दिन प्रवचन समाप्त होने के बाद
उसने किसी शिष्य से कहकर बुद्ध से मिलने की हार्दिक इच्छा प्रकट की जब उसे बुद्ध के सामने ले जाया गया तो उसने उन्हें साष्टांग प्रणाम कर कहा भगवान अपने काम को खुद नहीं समझे महत्वहीन मुकेश दफ्तर में नए हैं पहले वह दूसरे संस्थान में काम करते थे अपना काम तल्लीनता से करते हैं लेकिन चेहरा बताता है कि मुकेश अपने काम से खुश नहीं है एक दिन इस बारे में पूछने पर उन्होंने कहा जब काम में मन नहीं लगे तो चेहरा उदास हो ही जाता है काम में मन क्यों नहीं लग रहा है यह पूछने पर
उन्होंने कहा अरे यह भी कोई काम है इसके बाद उन्होंने ढेर सार तथ्यों के साथ अपने काम को महत्वहीन बताने की कोशिश की उन्होंने यह भी कहा कि इस समय जो काम मेरे जिम्मे है उसके आधार पर दूसरे संस्थान में नौकरी भी नहीं मिलेगी इस बात को मुकेश के रिपोर्टिंग मैनेजर मिस्टर कुमार को बताया गया वह सुलझे हुए इंसान हैं उन्होंने तरीके से मुकेश को समझाया कि उनका काम कैसे महत्त्वपूर्ण है मिस्टर कुमार ने उनसे पूछा मुकेश पहले अपने काम के बारे में बताइए मुकेश ने कहा मेरा काम यह देखना है कि हमारी कंपनी के
प्रोडक्ट में कहां-कहां गड़बड़ी है उसे कैसे दूर किया जा सकता था आगे ऐसा क्या किया जाए जिससे पुरानी खामियां फिर से सामने नहीं आए मुकेश की बात खत्म होते ही मिस्टर कुमार ने कहा यह जानकर अच्छा लगा कि आपको अपने काम की अच्छी समझ है जैसा आपने कहा है उसके अनुसार आपका काम प्रोडक्ट को कैसे बेहतर बनाया जाए और उसके निर्माण के दौरान की खामियों को दूर करने से जुड़ा है मुकेश ने हां में सर हिलाया इसके बाद मिस्टर कुमार ने पूछा जब प्रोडक्ट को लेकर इतनी बडी ही जिम्मेदारी कंपनी ने आपको दी है तब
आप अपने काम को महत्वहीन क्यों समझते हैं एक आम धारणा है कि जो लोग प्रोडक्ट के निर्माण से सीधे जुड़े हैं वही मेस्ट्री में काम करते हैं लेकिन हर काम मेन स्ट्रीम का होता है अगर ऐसा नहीं होता तो कंपनी आपके ऊपर खर्च नहीं करती कंपनी को पता है कि आपके काम का परिणाम प्रोडक्ट पर दिखेगा इसलिए इस बात को मन से निकालिए कि आप जो काम कर रहे हैं उसकी पूछ नहीं है ध्यान से देखेंगे तो लगेगा कि आपका काम ही सबसे महत्त्वपूर्ण है एकता और समझदारी ऊंचे आकाश में सफेद कबूतरों की एक टोली
उड़कर जा रही थी बहुत दूर जाना था उन्हें लंबा रास्ता था सुबह से उड़ते उड़ते थकान होने लगी थी सूरज तेजी से चमक रहा था कबूतरों को भूख लगने लगी थी तभी उन्होंने देखा कि नीचे जमीन पर चावल के बहुत से दाने पड़े थे कबूतरों ने एक दूसरे से कहा चलो भाई थोड़ी देर रुककर कुछ खा लिया जाए फिर आगे जाएंगे एक बुजुर्ग कबूतर ने चारों ओर देखा वहां दूर दूर तक कोई घर या मनुष्य दिखाई नहीं दे रहा था फिर चावल के यह दाने यहां कहां से आए बुजुर्ग कबूतर ने बाकी कबूतरों को समझाया
मुझे लगता है कि यहां कुछ गड़बड़ है तुम लोग नीचे मत उतरो लेकिन किसी ने भी उसकी बात नहीं सुनी सभी कबूतर तेजी से उतरे दाना चुगने लगे इतने बढ़िया दाने बहुत दिनों के बाद खाने को मिले थे वे बहुत खुश थे जब सभी ने भर पेट खा लिया तो बोले चलो भाई अब आगे चला जाए लेकिन यह क्या जब उन्होंने उड़ने की कोशिश की तो उड़ ही नहीं पाए दोनों के साथ-साथ वहां एक चिड़ीमार का जाल भी था जिसमें उनके पांव फंस गए थे उन्हें अपनी गलती पर पछतावा हुआ बूढ़ा कबूतर पेड़ पर बैठकर
सब देख रहा था उसने जब अपने साथियों को मुसीबत में देखा तो फौरन उड़ा और चारों ओर देखा दूर उसे चिड़ीमार आता दिखाई दिया व फौरन लौटा और अपने साथियों को बताया सब वहां से निकलने का उपाय सोचने लगे तब बूढ़े कबूतर ने कहा दोस्तों एकता में बड़ी शक्ति होती है सब एक साथ उड होगे तो जाल तुम्हें रोक नहीं पाएगा उसने गिना एक दो तीन उड़ो सारे कबूतरों ने एक साथ जोर लगाया और जाल उनके साथ उठने लगा जब तक चिड़ीमार वहां पहुंचा तब तक जाल काफी ऊपर उठ चुका था वह देखता ही रह
गया और कबूतर जाल लेकर उड़ गए बूढ़ा कबूतर सबसे आगे उड़ रहा था काफी देर उड़ने के बाद वे नीचे उतरे वहां कबूतरों के दोस्त चूहे रहते थे चूहों ने अपने तेज दांतों से जाल काट दिया इस तरह बूढ़े कबूतर की समझदारी और साथ मिलकर काम करने से सभी कबूतर बच गए अवश्य सुननी चाहिए तो चलिए कहानी को शुरू करते हैं नुकसान का मातम मनाने से नहीं मिलती सफलता एक बार आकाश नाम का लड़का मायूस बैठा था उसे व्यापर में बहुत नुकसान हुआ था बैंक से भी उसने कर्ज ले रखा था लेकिन नुकसान की वजह
से वह किस्त चुकाने की स्थिति में नहीं था उसे डर लग रहा था कि बैंक वाले दबाव बनाने लगेंगे तो वह क्या करेगा उसे यह भी समझ में नहीं आ रहा था कि आगे कौन सा काम शुरू करें जिस बिजनेस में नुकसान हुआ था उसे दोबारा शुरू करने की हिम्मत आकाश में नहीं थी यही सब सोचकर वह परेशान रहने लगा एक दिन उसका दोस्त परेश उससे मिलने आया परेश ने आकाश को देखते ही कहा क्या बात है यार बहुत परेशान लग रहे हो आकाश ने अपनी परेशानी छुपाने की कोशिश करते हुए कहा कुछ नहीं यार
बिजनेस में थोड़ा उत्तर चढ़ाव आता रहता है परेश ने कहा तुम्हारा चेहरा बता रहा है कि मामला गंभीर है मुझसे छुपाओ नहीं परेश की बात सुनकर आकाश ने उसे अपनी सारी कहानी बता दी इसके बाद उसने पूछा मेरी जगह तुम होते तो क्या करते परेश ने थोड़ा सोचने के बाद कहा अगर मैं तुम्हारी जगह होता तो अपनी असफलता पर पछतावा नहीं करता आगे क्या करना है उस पर विचार करता पछतावा करते रहने से आदमी नुकसान से दुख से बाहर नहीं निकल पता है मेरी मानो तो तुम नए सिरे से अपने बिजनेस को खड़ा करने की
सोचो मित्र की सलाह के बाद आकाश ने कहा तुम बात तो ठीक कह रहे हो लेकिन मुझ में फिर से वही बिजनेस शुरू करने की हिम्मत नहीं है इस पर परेश ने कहा यह सही है कि तुम्हें नुकसान हुआ है लेकिन तुम्हें तजुर्बा भी मिला है अगर तुम कुछ नया शुरू करने की योजना बनाते हो तो तुम्हें शून्य से शुरू करना होगा अगर तुम अपने पुराने काम को नए सिरे से शुरू करते हो तो तुम्हें बहुत ज्यादा होमवर्क करने की जरूरत नहीं पड़ेगी मेरी राय में तुम्हें नुकसान का मातम नहीं मामना चाहिए काम को नए
सिरे से शुरू करने की प्लानिंग करनी चाहिए जितना ज्यादा नुकसान के बारे में सोचोगे उतना अधिक तुम अपनी सफलता से दूर होते जाओगे तो असफलता से भी सीखने की कोशिश करनी चाहिए शेखर ने अपने दादाजी से यह सवाल पूछा सभी भी अपने जीवन में आगे बढ़ना चाहते हैं लेकिन बहुत काम लोग ही अपने लक्ष्य तक पहुंच पाते हैं अगर अपने लक्ष्य तक पहुंचना है तो क्या करना चाहिए शेखर स्नातक अंतिम वर्ष का छात्र है और प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी कर रहा है उसके दादाजी प्राइमरी स्कूल से रिटायर्ड शिक्षक हैं उन्होंने शेखर का सवाल सुनने के
बाद कहा अपने लक्ष्य तक पहुंचने के लिए व्यक्ति को सबसे पहले खुद को असफलताओं को स्वीकार करने के लिए तैयार करना चाहिए दादाजी का जवाब सुनने के बाद शेखर ने पूछा मैं आपकी बात समझ नहीं पाया आखिर अपने आप को असफलता के लिए तैयार कर सफलता कैसे पाई जा सकती है शेखर का सवाल सुनने के बाद दादा जी ने कहा इस बात को मैं तुम्हारा ही उदाहरण देकर समझता हूं तुम इस समय प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हो तुम अगले वर्ष होने वाली परीक्षाओं में बैठोगे तुम यही सोचकर बैठोगे कि तुम्हें सफलता मिलेगी दादाजी
की बात पर शेखर ने हमें सिर हिलाया इसके बार दादाजी जी ने कहा मान लो तुम अपने पहले प्रयास में असफल हो जाते हो तो तुम क्या करोगे शेखर ने कहा मुझे बहुत निराशा होगी मैं तैयारी में अपनी तरफ से कहीं कमी नहीं छोड़ रहा हूं दादाजी ने कहा निराशा ही असफलता की जड़ है वह कैसे शेखर ने सवाल किया दादाजी बोले तुम्हें लगता है कि तुम्हारी तैयारी मुकम्मल है लेकिन परीक्षा तो दूसरे की इच्छा पर निर्भर है अगर तुम पहले प्रयास में असफल होने के बाद निराश हो जाते हो तो तुम्हारी आगे की तैयारी
प्रभावित होगी अगर तुम असफलता को अपनी कमियों को दुरुस्त करने का मौका मानोगे तभी आगे की तैयारी में उन्हें दूर कर पाओगे हर परीक्षार्थी यही सोचता है कि उसकी तैयारी पूरी है लेकिन सफलता कुछ लोगों को ही मिलती है यह वही लोग होते हैं जो अपनी असफलता से सीखते हैं ही और दूसरों की असफलता से भी सीखने की कोशिश करते हैं एक शहर में एक बहुत अमीर व्यक्ति रहता था उसका नाम तो था धनी मल लेकिन था वह बेहद कंजूस उसका कहना था कि अगर आप अपना पैसा अपने पास रखेंगे तो सबको पता चल जाएगा
कि आपके पास बहुत पैसे हैं फिर चोर डाकू आपके पीछे पड़ जाएंगे और सारा पैसा लूट कर ले जाएंगे इसलिए वह अपना सारा पैसा छिपा कर रखता था और खुद एक बहुत गरीब व्यक्ति के समान रहता था पैबंद लगे कपड़े घिसे हुए जूते रुखा सूखा खाना यह सब देखकर लोग उसे भिखारी समझते थे जिनको पता था कि वह धनवान है वे उसे कंजूस कहकर बुलाते थे एक दिन धनी मल को अपनी संपत्ति को चोरों से बचाने का एक बहुत बढ़िया उपाय समझ में आया उसने सारे पैसों से बहुत सा सोना खरीद लिया और फिर सारे
सोने को पिघलाकर उसका एक बड़ा सा गोला बना लिया उसने शहर के बाहर जाकर एक पुराने कुने के पास एक गड्ढा खोदा और सोने का वह गोला उसमें डालकर गड्ढा बंद कर दिया वह अब निश्चित त था अपनी तसल्ली के लिए वह रोज रात को आकर गड्ढे में देख लेता था कि उसका सोना वहां है या नहीं उसे विश्वास था कि कोई भी चोर इस जगह के बारे में नहीं जान पाएगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ धीरे-धीरे पूरे शहर में यह चर्चा होने लगी कि धनी मल रात में शहर के बाहर जाकर कुछ करता है एक
रात जब उसने गड्ढा खोद कर देखा तो सोना वहां से गायब था उसे गहरा सदमा लगा और वह चीख कर रोने लगा उसके रोने की आवाज सुनकर बहुत से लोग वहां आ गए धनी मल रो-रो कर अपना दुख बताने लगा तब उसके एक पड़ोसी से उसे कहा धनी मल तुम एक भारी पत्थर इस गड्ढे में रख दो और समझ लो कि वही तुम्हारा सोना है यह सुनकर धनि मल को बहुत गुस्सा आया तुम मेरे सोने को पत्थर जैसे बता रहे हो वह बोला देखो धनी मल वह सोना तुम कभी इस्तेमाल तो करते नहीं थे एक
पत्थर की तरह यहां उसे दबाक रख दिया था तो फिर यहां सोना हो या पत्थर क्या फर्क पड़ता है उसका पड़ोसी बोला बात तो ठीक ही थी धनी मल ने बहुमूल्य सोने को पत्थर के समान मूल्य नहींन बना दिया था उसके बाद धनी मल ने मेहनत करके फिर पैसे कमाए लेकिन अब वह कंजूस नहीं रहा था अपने पैसे को वह अपने ऊपर और दूसरे लोगों की सहायता के लिए खर्च करता था जीवन साथी सबसे अजीज होता है कॉलेज में हैप्पी मैरिड लाइफ पर एक कार्यक्रम हो रहा था जिसमें कुछ शादीशुदा जोड़े हिस्सा ले रहे थे
जिस समय प्रोफेसर मंच पर आए उन्होंने नोट किया कि सभी पति-पत्नी शादी पर जोक कर हंस रहे थे यह देखकर प्रोफेसर ने कहा कि चलो पहले एक गेम खेलते हैं उसके बाद अपने विषय पर बातें करेंगे सभी खुश हो गए और कहा कौन सा गेम प्रोफेसर ने एक मैरिड लड़की को खड़ा किया और कहा कि तुम ब्लैक बोर्ड पर ऐसे 2530 लोगों के नाम लिखो जो तुम्हें सबसे अधिक प्यारे हो लड़की ने पहले तो अपने परिवार के लोगों के नाम लिखे फिर अपने सगे संबंधी दोस्तों पड़ोसी और सहकर्मियों के नाम लिख लिख दिए अब प्रोफेसर
ने उसमें से कोई भी कम पसंद वाले पांच नाम मिटाने को कहा लड़की ने अपने सहकर्मियों के नाम मिटा दिए प्रोफेसर ने और पांच नाम मिटाने को कहा लढकी ने थोड़ा सोचकर अपने पड़ोसियों के नाम मिटा दिए अब प्रोफेसर ने और 10 नाम मिटाने को कहा लड़की ने अपने सगे संबंधी और दोस्तों के नाम मिटा दिए अब बोर्ड पर सिर्फ चार नाम बचे थे जो उसके मम्मी पापा पति और बच्चे का नाम था अब प्रोफेसर ने कहा इसमें से औरत दो नाम मिटा दो लड़की असमंजस में पड़ गई बहुत सोचने के बाद बहुत दुखी होते
हुए उसने अपने मम्मी पापा का नाम मिटा दिया सभी लोग स्तब्ध और शांत थे क्योंकि वह जानते थे कि यह गेम सिर्फ वह लड़की ही नहीं खेल रही थी उनके दिमाग में भी यही सब चल रहा था अब सिर्फ दो ही नाम बचे थे पति और बेटे का प्रोफेसर ने कहा और एक नाम मिटा दो लड़की अब सहमी सी रह गई बहुत सोचने के बाद रोते हुए अपने बेटे का नाम काट दिया प्रोफेसर ने उस उस लड़की से कहा तुम अपनी जगह पर जाकर बैठ जाओ और सभी की तरफ गौर से देखा और पूछा क्या
कोई बता सकता है कि ऐसा क्यों हुआ कि सिर्फ पति का ही नाम बोर्ड पर रह गया कोई जवाब नहीं दे पाया सभी मुंह लटका कर बैठे थे प्रोफेसर ने फिर उस लड़की को खड़ा किया और कहा ऐसा क्यों जिसने तुम्हें जन्म दिया और पाल पोस करर इतना बड़ा किया उनका नाम तुमने मिटा दिया और तो और तुमने अपनी कोख से जिस बच्चे को जन्म दिया उसका भी नाम तुमने मिटा दिया लड़की ने जवाब दिया कि अब मम्मी पापा बूढ़े हो चुके हैं कुछ साल के बाद वह मुझे और इस दुनिया को छोड़ के चले
जाएंगे मेरा बेटा जब बड़ा हो जाएगा तो जरूरी नहीं कि वह शादी के बाद मेरे साथ ही रहे लेकिन मेरे पति जब तक मेरी जान में जान है तब तक मेरा आधा शरीर बनके मेरा साथ निभाएंगे इसलिए मेरे लिए सबसे अजीज मेरे पति हैं प्रोफेसर और बाकी स्टूडेंट ने तालियों की गूंज से लड़की को सलामी दी प्रोफेसर ने कहा तुमने बिल्कुल सही कहा कि तुम और सभी के बिना रह सकती हो पर अपने आधे अंग अर्थात अपने पति के बिना नहीं रह सकती मजाक मस्ती तक तो ठीक है पर हर इंसान का अपना जीवन साथी
ही उसको सबसे ज्यादा अजीज होता है दिमाग का इस्तेमाल कर पक्ष में करें परिस्थितियां एक शेर जंगल में शिकार पर निकला था एक लोमड़ी अचानक उसके सामने आ गई लोमड़ी को लगा कि अब उसे कोई नहीं बचा सकता है लेकिन उसने हार नहीं मानी और अपनी जान बचने के लिए एक तरकीब सोची लोमड़ी ने शेर से कड़े शब्दों में कहा तुम्हारे पास इतनी ताकत नहीं कि मुझे मार सको यह सुनकर शेर थोड़ा अचंभित हुआ उसने पूछा तुम ऐसा कैसे कह सकती हो लोमड़ी ने अपनी आवाज और ऊंची करते हुए बोली मैं तुम्हें सच बता देती
हूं ईश्वर ने स्वयं मुझे इस जंगल और जंगल में रहने वाले सभी जानवरों का राजा बनाया है यदि तुमने मुझे मारा तो यह ईश्वर के विरुद्ध होगा और तुम भी मर जाओगे कुछ देर चुप रहने के बाद लोमड़ी ने कहा अगर विश्वास नहीं हो रहा है तो तुम मेरे साथ जंगल घूमने चलो तुम मेरे पीछे चलना और देखना कि जंगल के जानवर मुझसे कितना डरते हैं शेर इसके लिए तैयार हो गया लोमड़ी निडर होकर शेर के आगे आगे चलने लगी लोमड़ी के पीछे शेर को चलते देखकर जंगल के दूसरे जानवर डर कर भाग गए कुछ
देर जंगल में घूमने के बाद लोमड़ी ने शेर से सवाल किया क्या तुम्हें मेरी बात पर विश्वास हुआ कुछ देर चुप रहने के बाद शेर ने कहा तुम ठीक कहती हो जंगल की राजा तुम ही है परिस्थितियां कितनी भी विपरीत क्यों ना हो हम अपने दिमाग का इस्तेमाल कर उसे अपने पक्ष में कर सकते हैं हमारा दिमाग प्रोग्राम के आधार पर काम करने वाला कंप्यूटर नहीं है दिमाग को आउट ऑफ बॉक्स सोचने की क्षमता है हर समस्या का समाधान तलाशने की ताकत है यह तभी संभव होगा जब ह विपरीत परिस्थितियां में भी अपना धैर्य बरकरार
रखेंगे सफल होने के लिए हमेशा सीखते रहे सिकंदर और रोहित मित्र हैं दोनों ने एक साथ अपना अपना काम शुरू किया दोनों मित्रों का व्यापार खूब चला कुछ समय बाद रोहित ने सोचा कि अब मेरा व्यापार चल पड़ा है मैं तरक्की करता चला जाऊंगा इसलिए अब मुझे इस लाइन में कुछ नया सीखने की जरूरत नहीं है व्यापार में उतार चढ़ाव आते रहते हैं रोहित के व्यापार में भी ऐसी स्थिति आई और उसे नुकसान झेलना पड़ा सिकंदर के व्यापार में भी उतार चढ़ाव आए पर उसे उतना नुकसान नहीं हुआ जितना रोहित को हुआ रोहित सोचने लगा
कि सिकंदर ने अपने नुकसान को नियंत्रित कैसे किया रोहित ने इस बारे में उससे पूछने का मन बनाया जब उसने सिकंदर से इस बारे में पूछा तब सिकंदर ने कहा कि मैं अभी सीख रहा हूं रोहित ने कहा मैं समझा नहीं सिकंदर ने सपनी बात समझाते हुए कहा मैं अपनी ही नहीं दूसरों की गलतियों और कामयाबी से भी सीखता हूं इससे मेरे जीवन में एक जैसी परेशानी बार-बार नहीं आती अगर आती भी है तो आसानी से हल हो जाती है सिकंदर की बात सुनकर रोहित को अपनी गलती का एहसास हुआ उसे एहसास हुआ कि शुरुआती
सफलता के बाद उसने सीखना एकदम छोड़ दिया था यही वजह है कि अपने व्यापार में होने वाले नुकसान का आकलन वह नहीं कर पाया जीवन में सफल होने के लिए सीखते रहना जरूरी है इंसान को हमेशा सीखते रहना चाहिए इससे उसके भीतर नकारात्मक विचार नहीं आते हैं बल्कि उसमें सकारात्मक बदलाव आता रहता है और सफलता की सीढ़ियां चढ़ता रहता है सीखते रहने वाले व्यक्ति को सफलता के अवसर भी ज्यादा मिलते हैं सबसे बड़ी बात यह है कि इस तरह के व्यक्ति में अहंकार नहीं होता जिसके मन में अहंकार होगा वह कभी सीखने का प्रयास नहीं
करेगा घमंड कुल्हाड़ी हुई निरुत्तर एक बार कुल्हाड़ी और लकड़ी के एक डंडे में विवाद छिड़ गया दोनों स्वयं को शक्तिशाली बता रहे थे हालांकि लकड़ी का डंडा बाद में शांत हो गया किंतु कुल्हाड़ी का बोलना जारी रहा कुल्हाड़ी में घमंड अत्यधिक था वह गुस्से में भरकर बोल रही थी तुमने स्वयं को समझ क्या रखा है तुम्हारी शक्ति मेरे आगे पानी भरती है मैं चाहूं तो बड़े-बड़े वृक्षों को पल में काटक गिरा दूं धरती का सीना फाड़कर उसमें तालाब कुआ बना दूं तुम मेरी बराबरी कर पाओगे मेरे सामने से हट जाओ अन्यथा तुम्हारे टुकड़े टुकड़े कर
दूंगी लकड़ी का डंडा कुल्हाड़ी की अकार पूर्ण बातों को सुनकर धीरे से बोला तुम जो कह रही हो वह बिल्कुल ठीक है किंतु तुम्हारा ध्यान शायद एक बात की ओर नहीं गया जो कुछ तुमने करने को कहा है बेशक तुम कर सकती हो किंतु अकेले अपने दम पर नहीं कर सकती कुल्हाड़ी ने चिड़कर कहा क्यों मुझ में किस बात की कमी है डंडा बोला जब तक मैं तुम्हारी सहायता ना करूं तुम यह सब नहीं कर सकती हो जब तक मैं हत्या बनकर तुम्हें ना लगाया जाऊं तब कोई किसे पकड़कर तुमसे यह सारे काम लेगा बिना
हत्थे की कुल्हाड़ी से कोई काम लेना असंभव है कुल्हाड़ी को अपनी भूल का एहसास हुआ और उसने डंडे से क्षमा मांगी कथासार यह है कि दुनिया सहयोग से चलती है जिस प्रकार ताली दोनों हाथों के मेल से बजती है उसी प्रकार सामाजिक विकास भी परस्पर सहयोग से ही संभव होता है यदि जीवन का संतुलन बिगड़ा और थकान आई तो समझ लीजिए कि बीमारी आई और यदि वास ऊर्जा अर्जित करने के लिए विश्राम किया जा रहा है तो ऐसी थकान वरदान भी साबित हो सकती है इन दिनों जिस तरह की हमारी जीवन शैली है इसमें असंतुलन
बहुत अधिक है सुबह उठने से लेकर रात को सोने तक शरीर की कुछ नियमित क्रियाएं हैं आदमी उसे भूल गया है गौतम बुद्ध बहुत काम करते पर कभी थकते नहीं थे आज भी कई साधु संत उतना ही परिश्रम कर रहे हैं जितना एक कॉर्पोरेट जगत का सफल व्यक्ति करता है और जब वे रात को सोते हैं तो पूरी बेफिक्री के साथ बुद्ध से उनके शिष्यों ने एक बार पूछा था आप थकते नहीं बुद्ध का उत्तर था जब मैं कुछ करता ही नहीं तो थकूर में अजीब लगती है लेकिन है बड़ी गहरी अध्यात्म ने इसे साक्षी
भाव कहा है स्वयं को करते हुए देखना यह वह स्थिति होती है जब तन सक्रिय और मन विश्राम की मुद्रा में होता है आज ज्यादातर लोग असमय अकारण थक जाते जिसका एक बड़ा कारण असंतुलित जीवन है एक होता है थकान को महसूस करना और दूसरा है स्वाभाविक थकान जिस समय आपकी रुचियां इच्छाओं और मूल स्वभाव में धीमा पन आने लगे अकारण चिड़चिड़ा हट हो जाए समझ ले कि यह थकान बीमारी है इसलिए प्रतिदिन योग प्राणायाम और ध्यान करें यह क्रियाएं अपने आप में एक विश्राम है करने वाला कोई और है हम तो महज उसके हाथों
की कठपुतली हैं यह मनोभाव भी थकान को मिटाएगा क्या दिक्कत है ऐसा सोच लेने में महात्मा बुद्ध ज्ञान प्राप्ति के लिए घोर तप में लगे थे उन्होंने शरीर को काफी कष्ट दिया यात्राएं की घने जंगलों में कठिन साधना की पर आत्म ज्ञान की प्राप्ति नहीं हुई निराश हो बुध सोचने लगे मैंने अभी तक कुछ भी प्राप्त नहीं किया अब आगे क्या कर पाऊंगा निराशा अविश्वास के इन नकारात्मक भावों ने उन्हें शुब कर दिया कुछ ही क्षणों के बाद उन्हें प्यास लगी वे थोड़ी दूर स्थित एक झील तक पहुंचे वहां उन्होंने एक दृश्य देखा कि एक
नही सी गिलहरी के दो बच्चे झील में डूब गए पहले तो वह गिलहरी जड़ वत बैठी रही फिर कुछ देर बाद उठकर झील के पास गई अपना सारा शरीर झील के पानी में भिगोया और फिर बाहर आकर पानी झाड़ने लगी ऐसा वह बार-बार करने लगी बुद्ध सोचने लगे कि इस गिलहरी का प्रयास कितना मूर्खता पूर्ण है क्या कभी यह इस झील को सुखा सकेगी किंतु गिलहरी का यह क्रम लगा तार जारी था बुध को लगा मानो गिलहरी कह रही हो कि यह झील कभी खाली होगी या नहीं यह मैं नहीं जानती किंतु मैं अपना प्रयास
नहीं छोडूंगी अतः उस छोटी सी गिलहरी ने भगवान बुद्ध को अपने लक्ष्य मार्ग से विचलित होने से बचा लिया वे सोचने लगे कि जब यह नन्ही गिलहरी अपने लघु सामर्थ्य से झील को सुखा देने के लिए दृढ़ संकल्पित है तो मुझ में क्या कमी है मैं तो इससे हजार गुना अधिक क्षमता रखता हूं यह सोचकर गौतम बुद्ध पुण अपनी साधना में लग गए और एक दिन बोधि वृक्ष तले उन्हें ज्ञान का आलोक प्राप्त हुआ यह कथा असफलता के बावजूद प्रयासों की निरंतरता पर बल देती है यदि हम प्रयास करना ना छोड़े तो एक ना एक
दिन लक्ष्य की प्राप्ति हो ही जाती है बुद्ध अपने साधना काल में एक निर्जन स्थान पर ध्यान मग्न बैठे थे इसी स्थान पर एक यक्ष का वास था यह बात बुद्ध को झांत नहीं थी वे तो वहां पहुंचे और शांत वातावरण देखकर ध्यान मग्न हो गए उस समय यक्ष वहां पर नहीं था रात होने पर जब वह आया तो उस स्थान पर एक अनजान व्यक्ति को देखकर आग बबूला हो गया बड़े जोर से वह दहाड़ा किंतु बुद्ध का ध्यान भंग नहीं हुआ यक्ष ने उन्हें हाथी का रूप धारण कर डराना चाहा किंतु बुद्ध यथावत ध्यान
मग्न बैठे रहे उसने बुद्ध को डराने के लिए क्रमशः शेर चीता बाग आदि का रूप धारण किया किंतु बुद्ध अविचल ही बने रहे अंत में उसने भयंकर विषधर का रूप धारण कर उनके पैर के अंगूठे को डस लिया किंतु बुद्ध पर उसके विष का भी कोई असर नहीं हुआ वे अब भी अप्र भावित रहे विषधर उनके शरीर पर चढ़ गया और उनके गले से लिपटकर उन्हें जोरों से काट लिया लेकिन इतने प्रयासों के बावजूद भी बुद्ध की साधना को भंग नहीं कर पाया थक हार कर नीचे उतर आया और उनसे कुछ कदमों की दूरी पर
लेटकर अपनी थकान उतारने लगा ध्यान पूर्ण होने पर बुद्ध ने उसकी तरफ देखा और उसे बहुत स्नेह से दुलारा उनका निश्छल प्रेम देखकर सर्प का विष अमृत बन गया और यक्ष ने श्रद्धापूर्वक बुद्ध को नमन किया कहानी का सार यह है कि मन की कलुष पर एकाग्रता स्नेह और संभव से ही विजय प्राप्त की जा सकती है बौद्ध भिक्षु बौधि धर्म भ्रमण करते हुए एक गांव में पहुंचे लोग उनका बहुत आदर करते थे बोधि धर्म व उनके शिष्यों का ग्रामीणों ने हार्दिक सत्कार किया और फिर उनके पवित्र वचनों को सुनने के लिए उनके आसपास एकत्रित
हो गए बौधि धर्म लोगों को धर्म और आचरण विषयक अच्छी बातें सरल भाषा में समझाने लगे तभी वहां एक व्यक्ति आया और बोधि धर्म को अपशब्द कहने लगा उपस्थित जन समूह ने उसे रोकने का बहुत प्रयास किया किंतु वह नहीं माना तथा अनवरत बोधि धर्म को बुरा भला कहता रहा लोगों ने कहा कि महाराज यह व्यक्ति कितना उद्दंड है निरर्थक ही आपको अपशब्द कह रहा है बोधि धर्म उस व्यक्ति के इस आचरण पर कदापि क्रोधित नहीं हुए और लोगों से बोले कि यह भविष्य में मेरा सबसे बड़ा भक्त बनने वाला है लोगों ने पूछा कि
कैसे बुध धर्म ने उत्तर दिया कोई कुम्हार के यहां घड़ा लेने जाता है तो घड़े को बजाकर देखा जाता है कि वह फूटा हुआ तो नहीं है जब एक दो रुपए के घड़े को कोई इतनी परक कर सकता है तो भला जिसे गुरु मानना है उसे 102 गालियां दिए बगैर कैसे पहचाने का पहले वह परीक्षा लेगा कि गुरु में धैर्य आक्रोश व समता भाव कितना है यह जानने के बाद ही तो वह गुरु को स्वीकारा इसलिए यह व्यक्ति मुझे निरर्थक ही अब शब्द नहीं कह रहा है और आगे चलकर वास्तव में वह व्यक्ति बोध धर्म
का सबसे बड़ा भक्त बना किसी को शिक्षा देने से पूर्व स्वयं का आचरण भी तदनुसार [संगीत] जाती है जबकि उसमें सदाचरण के सभी लक्षण मौजूद हो महात्मा गौतम बुद्ध के श्रावस्ती में प्रवचन चल रहे थे प्रवचन में नित्य ही बड़ी संख्या में लोग आते और विविध महत्त्वपूर्ण व गंभीर विषयों पर बुद्ध से ज्ञान ग्रहण करते बुद्ध का शिष्य वर्ग भी काफी विशाल था जो जो प्रवचन स्थल की व्यवस्था संभालता और बुद्ध की सेवा में सदैव तत्पर रहता एक बार रात के समय महात्मा बुद्ध प्रवचन दे रहे थे सदैव की भाति काफी लोग उनके प्रवचन सुन
रहे थे एक व्यक्ति जो बुद्ध के ठीक सामने बैठा था बार-बार नींद के झोंके ले रहा था बुद्ध थोड़ी देर तक तो प्रवचन देते रहे फिर उससे बोले वत्स सो रहे हो उस व्यक्ति ने हड़बड़ा करर कहा नहीं महात्मा बुद्ध ने पुनः प्रवचन प्रारंभ किए वह व्यक्ति फिर ने लगा महात्मा ने फिर वही प्रश्न दोहराया और उसने फिर अचकचा करर नहीं महात्मा कहा ऐसा लगभग आठम 10 बार हो गया कुछ देर बाद बुद्ध ने उससे पूछा वत्स जीवित हो हर बार की तरह इस बार भी उसने कहा नहीं महात्मा यह सुनकर उपस्थित श्रोताओं में हंसी
की लहर दौड़ गई और वह व्यक्ति पूर्णत चैतन्य हो गया तब बुद्ध गंभीर होकर बोले वत्स निद्रा में तुम्हारे मुख से सही उत्तर मिल ही गया जो निद्रा में है वह मृतक समान ही है महात्मा बुद्ध का संकेत था कि गुरु से ज्ञान ग्रहण करते वक्त सजगता अत्यंत आवश्यक है गाफिल रहने की स्थिति में ज्ञान की प्राप्ति पूर्ण नहीं होती औरत का चरा ज्ञान सदैव खतरनाक साबित होता है कथा सिद्धार्थ के जीवन के उस दौर की है जब वे बुद्धत्व को प्राप्त नहीं हुए थे और निरंजना नदी के तटीय वनों में वृक्ष के नीचे ध्यान
करते थे सिद्धार्थ प्रतिदिन ध्यान करने के बाद पास के किसी गांव में चले जाते और भिक्षा मांगकर लौट आते कुछ दिनों के बाद उन्होंने भिक्षा टन पर जाना बंद कर दिया क्योंकि एक गांव के प्रधान की छोटी बेटी सुजाता उनके लिए नित्य भोजन लाने लगी सिद्धार्थ को वह बड़े स्नेह से भोजन कराती थी कुछ दिनों बाद उसी गांव का एक चरवाहा भी सिद्धार्थ से प्रभावित होकर उनके पास आने लगा उसका नाम स्वस्थ था एक दिन स्वस्थ से सिद्धार्थ बातें कर रहे थे कि सुजाता भोजन लेकर आई जैसे ही सिद्धार्थ ने भोजन करना शुरू किया उन्होंने
बातचीत बंद कर दी जितनी देर तक वे भोजन करते रहे बिल्कुल चुप रहे और वहां सन्नाटा छाया रहा स्वस्थ को हैरानी हुई उसने सिद्धार्थ के भोजन करने के उपरांत उनसे पूछा गुरुदेव आप मेरे आने के बाद निरंतर वार्तालाप करते रहे किंतु भोजन के समय एक शब्द भी नहीं बोले इसका क्या कारण है सिद्धार्थ बोले भोजन का निर्माण बड़ी कठिनाई से होता है किसान पहले बीज बोता है फिर पौधों की रखवाली करता है और तब कहीं जाकर अनाज पैदा होता है फिर घर की महिलाएं उसे बड़े जतन से खाने योग्य बनाती हैं इतनी कठिनाई से तैयार
भोजन का पूरा आनंद तभी संभव है जब हम पूर्णतः मौन हो अत भोजन के दौरान मैं मौन रहकर उसका पूरा स्वाद लेता हूं वस्तुत शांति से किया गया भोजन ना केवल शारीरिक भूख को तृप्त करता है बल्कि मानसिक आनंद और सात्विक ऊर्जा भी देता है सम्राट अशोक संपूर्ण भारत को अपने राज्य में मिलाना चाहते थे पर कलिंग के युद्ध में हुए रक्तपात बात को देखकर उन्हें अत्यधिक दुख पहुंचा उनकी महत्वाकांक्षा ने जो तबाही मचाई थी उसे देखकर उन्हें खुद पर ग्लाने हुई उन्होंने देखा कि लोग दर्द से कराह रहे थे यह सब विनाश केवल उनकी
महत्वाकांक्षा से हुआ था यह सब देखकर अशोक के मन में विनाश का पथ छोड़कर नेकी के रास्ते पर चलने का विचार जगा अशोक की राजधानी पाटलीपुत्र थी पाटलीपुत्र पटना के रूप में जाना जाता है पटना से गया भी अधिक दूर नहीं है जहां बोधि वृक्ष के नीचे महात्मा बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था बुद्ध के अष्टपद मार्ग शांति और दया के संदेश ने अशोक के दिलो दिमाग में इतनी उथल-पुथल पैदा कर दिया कि उन्होंने उस मार्ग को अपनाने का फैसला किया इस पथ पर चलने से उन्होंने इतिहास में अपनी अमिट छाप छोड़ी अशोक ने अपने
पुत्र को सिलोन अब श्रीलंका और अन्य कई लोगों को सुदूर क्षेत्रों में दूध बनाकर भेजा एक निर्दय महत्वाकांक्षा एक ऐसे पवित्र उद्देश्य में बदल चुकी थी जिसमें कुछ अच्छा कर गुजरने की करुणा और प्रेम के संदेश को चारों ओर फैलाने की इच्छा थी करुणा केवल दया भावना मात्र नहीं है यह आपके अंदर दूसरों की मदद करने की तीव्र इच्छा पैदा करती है इसी भावना ने बुद्ध को भगवान और अशोक को महान बनाया तथागत बुद्ध उन दिनों मगध प्रवास पर थे साथ में शिष्यों का बड़ा समूह भी था प्रतिदिन बुद्ध के प्रवचन होते जिनका लाभ लेने
के लिए बड़ी संख्या में लोग आते इन लोगों में साधारण जन के साथ विशिष्ट हस्तियां भी शामिल रहती थी हालांकि बुद्ध सभी के प्रति समान रूप से प्रेम व आत्मीयता का व्यवहार रखते थे इन लोगों में नगर सेठ का पुत्र भी था जो बड़े ध्यान से बुद्ध के प्रवचन सुनता था वह नित्य ही बुद्ध के शिष्यों के समक्ष बुद्ध की तारीफों के पुल बांधता और धन्य धन्य भाव से घर जाता एक दिन प्रवचन समाप्त होने के बाद उसने किसी शिष्य से कहकर बुद्ध से मिलने की हार्दिक इच्छा प्रकट की जब उसे बुद्ध के सामने ले
जाया गया तो उसने उन्हें साष्टांग प्रणाम कर कहा भगवन आप जैसा तपस्वी और ज्ञानी व्यक्ति पहले ना कभी हुआ था और ना भविष्य में होगा यह सुनते ही बुद्ध ने उसकी बात बीच में ही रोककर कहा वत्स क्या तुमने इतना अध्ययन कर लिया है कि अब तक कितने संत महापुरुष हुए हैं और क्या भविष्य भी जान चुके हो कि आगे और कोई नहीं होगा युवक लज्जित भाव से चुप खड़ा रहा क्योंकि इस बात का उसके पास कोई जवाब नहीं था बुद्ध ने अपनी बात समाप्त करते हुए उसे सीख दी सदैव अपनी आंखें खुली रखो जो
जैसा है उसे वैसा ही महत्व दो किसी से उसकी तुलना मत करो कथा का सार यह है कि किसी भी क्षेत्र के अधिकारी विद्वान की स्वतंत्र रूप से प्रं चसा करना उचित है किंतु सर्वश्रेष्ठ बताना अनुचित क्योंकि श्रेष्ठता को व्यक्ति समय अव स्थान की सीमाओं में नहीं बांधा जा सकता आनंद भगवान बुद्ध के प्रमुख व प्रिय शिष्य थे उनके स्वभाव में उदारता स्नेह व सहिष्णुता जैसे गुण शामिल थे वे सभी के प्रति समान व्यवहार करते थे उनकी दृष्टि में कोई छोटा या बड़ा नहीं था एक बार आनंद कहीं जा रहे थे रास्ते में उन्हें बड़े
जोर की प्यास लगी आसपास देखा तो निकट ही कुआं दिखाई दिया वे वहां पहुंचे कुएं से एक लड़की पानी भर रही थी आनंद ने उसके पास जाकर कहा बहन मैं बड़ी दूर से आ रहा हूं मुझे बहुत जोर से प्यास लगी है कृपा कर पानी पिला दो उनकी बात सुनते ही लड़की कांप उठी क्योंकि वह अछूत जाति की थी वह जानती थी कि किसी ऊंची जाति के व्यक्ति को पानी पिलाना उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर है वह निगाह नीची कर चुपचाप खड़ी रही आनंद ने प्यास से व्याकुल होकर फिर कहा बहन तुमने सुना नहीं प्यास
के मारे मेरे प्राण निकले जा रहे हैं मुझे पानी पिला दो लड़की भय वश कुछ नहीं बोल पाई जब आनंद ने बड़े स्नेह से उससे पानी ना पिलाने का कारण पूछा तो वह बोली मैं निम्न जाति की कन्या हूं आपको पानी कैसे पिला सकती हूं उसकी बात सुन आनंद ने कहा बहन मैंने तुमसे पानी मांगा है जाती तो नहीं पूछी आनंद की उदारता ने उस कन्या का भय दूर कर दिया और उन्हें पानी पिलाकर वह धन्य हो गई कथा का सार यह है कि ईश्वर की दृष्टि सम होने के कारण उसने सभी मनुष्यों को समान
शरीर बुद्धि और भावना से नवाजा है अत अपने सृष्टिकर्ता के विरुद्ध जाकर मानव मानव में भेद करना सर्वथा अनुचित है एक बार भगवान बुद्ध अपने शिष्यों के साथ पाटलीपुत्र पहुंचे सभी लोग एक विहार में रुके भोजन के बाद बुद्ध ने आनंद से अगले दिन से प्रवचन आरंभ करने को कहा अगले दिन बुद्ध का प्रवचन सुनने बड़ी संख्या में लोग उपस्थित थे बुद्ध प्रवचन देने के बाद लोगों से मिलते उनकी समस्याएं सुनते और नेक सलाह देते एक दिन प्रवचन के समय बुद्ध के शिष्य आनंद ने उनसे पूछा भंते आपके सामने हजारों लोग बैठे हैं बताइए कि
इनमें सबसे सखी कौन है बुद्ध ने एक बंगम दृष्टि भीड़ पर डालते हुए कहा वह देखो सबसे पीछे एक दुबला पतला फटे वस्त्र पहने जो आदमी बैठा है वह सर्वाधिक सुखी है आनंद सहमत नहीं हुआ वह बोला यह कैसे संभव है वह तो बहुत दयनीय जान पड़ता है बुद्ध ने अपनी बात सिद्ध करने के लिए बारी-बारी से सामने बैठे लोगों से पूछा तुम्हें क्या चाहिए किसी ने संतान मांगी तो किसी ने मकान कोई रोग मुक्ति चाहता था तो कोई अपने शत्रु पर भी ऐसा एक भी व्यक्ति नहीं था जिसे कोई इच्छा ना हो अंत में
बुद्ध ने उस फटे हाल आदमी को बुलाकर पूछा तुम्हें क्या चाहिए उसने हाथ जोड़कर जवाब दिया कुछ नहीं यदि ईश्वर को मुझे कुछ देना ही है तो बस इतना कर दें कि मेरे अंदर कभी कोई चाह पैदा ना हो मैं ऐसे ही स्वयं को सबसे बड़ा सुखी मानता हूं उसकी बात सुनकर आनंद से बुद्ध ने कहा आनंद जहां चाह है वहां सुख नहीं हो सकता आनंद ने बुद्ध की इस शिक्षा को सदा के लिए गांठ बांध लिया सार यह है कि लालसा से लोभ बढ़ता है जो असंतोष का जनक होता है यदि सही अर्थों में
सुख पाना है तो किसी लालसा की बजाय उपलब्ध स्थितियों में संतुष्ट रहना चाहिए गौतम बुद्ध ने बहुत से अज्ञानी लोगों को सम्यक दृष्टि प्रदान की थी तब को बात है कोसांबी में एक ब्रह्मचारी रहता था उसे अभिमान था कि उस जैसा कोई द विद्वान नहीं है इसलिए अपने साथ सद दव जलती मशाल रखता था गौतम बुद्ध ने देखा तो उसे पूछा अरे यह मशाल लिए क्यों घूमते हो ब्रह्मचारी ने उत्तर दिया सभी प्राणी अंधकार और अज्ञान में पथक सृष्ट हैं उन्हें रास्ता दिखाने के लिए मशाल लिए घूमता हूं तथागत ने पूछा क्या तुम्हें चार प्रकार
की विद्याओं शब्द विद्या नक्षत्र विद्या राज विद्या व युद्ध विद्या का पूर्ण ज्ञान है ब्रह्मचारी ने अपनी अनभिज्ञता प्रकट करते हुए मशाल फेंक कर तथागत के चरणों में मस्तक झुका दिया उसका ज्ञान गर्व चूर हो गया जो दूसरों को मूर्ख समझकर उनसे घृणा करता है वह उस व्यक्ति की तरह है जो स्वयं अंधा होकर दूसरों को मशाल दिखाता घूमता है अहंकारी कभी विवेकवानी सुना आप एका हारी हो गए हैं वह भी एका हारी हो गई आपने उत्तम पलंग पर सोना त्याग दिया है तो इसने भी त्याग दिया आपने माला का त्याग किया गंध का त्याग
किया तो इसने भी वह सब त्याग दिया मायके वाले इसे संदेश भेजते हैं वे इसे ले जाना चाहते हैं लेकिन यह यहीं रहती है इसी कक्ष में यह गुण की मूर्ति है राजा स्नेह से अपनी बहू को देखते रहे अचानक तथागत उठे उस कक्ष से बाहर चले गए शाख मुनि ने शिष्यों को शांत रहने को कहा था लेकिन वे स्वयं उस कक्ष से बाहर चले गए मैं हमेशा सोचता हूं उस पल क्या हुआ होगा उनके मन के भीतर कैसे-कैसे विचार उठते होंगे क्या संबोधी एक लघु क्षण होता है या दीर्घ क्षण क्या संबोधी एक अनंत
अभ्यास है क्या संयम उसका गरुड़ यान है धम्म पद का 13वां श्लोक बार-बार याद आता है यथा गारम दु छेन बुट्टी समती वि बजती एवं अभाविप चित्तम राघो समती वि भज घर की छत मजबूत ना हो सही तरह से उसे घास फूस से ढका ना गया हो तो बरसात के दिनों में उसमें से पानी रिस्ता है घर भर में फैल जाता है उसी तरह ध्यान और एकाग्रता हमारे व्यक्तित्व की छत है एक दिन एक व्यक्ति बुद्ध के पास पहुंचा वह बहुत अधिक तनाव में था अनेक प्रश्न उसके दिमाग में घूम घूम कर उसे परेशान कर
रहे थे जैसे आत्मा क्या है आदमी मृत्यु के बाद कहां जाता है सृष्टि का निर्माता कौन है स्वर्ग नरक की अवधारणा कहां तक सच है और ईश्वर है या नहीं उसे इन प्रश्नों के उत्तर नहीं मिल रहे थे जब वह बुद्ध के पास पहुंचा तो उसने देखा कि बुध को कई लोग घेर कर बैठे हैं बुद्ध उन सभी के प्रश्नों व जिज्ञासाओं का समाधान अत्यंत सहज भाव से कर रहे हैं काफी देर तक यह क्रम चलता रहा किंतु बुद्ध धैर्य पूर्वक हर एक को संतुष्ट करते रहे बेचारा व्यक्ति वहां का हाल देखकर परेशान हो गया
उसने सोचा कि इन्हें दुनियादारी के मामलों में पढ़ने से क्या लाभ अपना भगवत भजन करें और बुनियादी समस्याओं से ग्रस्त इन लोगों को भगाए किंतु बुद्ध का व्यवहार देखकर तो ऐसा लग रहा था मानो इन लोगों का दुख उनका अपना दुख है आखिर उस व्यक्ति ने पूछ ही लिया महाराज आपको इन सांसारिक बातों से क्या लेना देना बुद्ध बोले मैं ानी नहीं हूं और इंसान हूं वैसे भी वह ज्ञान किस काम का जो इतना घमंडी और आत्म केंद्रित हो कि अपने अतिरिक्त दूसरे की चिंता ही ना कर सके ऐसा ज्ञान तो अज्ञान से भी बुरा
है बुद्ध की बातें सुनकर व्यक्ति कौ उलझन दूर हो गई उस दिन से उसकी सोच वा आचरण दोनों बदल गए कथा का सार यह है कि ध्यान तभी सार्थक होता है जब वह लोक कल्याण में संलग्न हो महात्मा बुद्ध ने युवक को सत्संग का महत्व समझाया महात्मा बुद्ध एक गांव में ठहरे हुए थे वे प्रतिदिन शाम को वहां पर सत्संग करते थे भक्तों की भीड़ होती थी क्योंकि उनके प्रवचनों से जीवन को सही दिशा बोध प्राप्त होता था बुद्ध की वाणी में गजब का जादू था तब बुद्ध ने उसे समझाया यदि इसी तरह उसे पानी
में निरंतर डालते रहोगे तो कुछ ही दिनों में यह छेद फूलकर बंद हो जाए और टोकरी में पानी भर पाओगे इसी प्रकार जो निरंतर सत्संग करते हैं उनका मन एक दिन अवश्य निर्मल हो जाता है अवगुणों के छिद्र भरने लगते हैं और गुणों का जल भरने लगता है युवक ने बुद्ध से अपनी समस्या का समाधान पा लिया निरंतर सत्संग से दुर्जन भी सज्जन हो जाते हैं क्योंकि महापुरुषों की पवित्र वाणी उनके मानसिक विकारों को दूर कर उनमें सद् विचारों का आलोक प्रसारित कर देती है एक आदमी को बुद्ध ने सुझाव दिया कि दूर से पानी
लाते हो क्यों नहीं अपने घर के पास एक कुआ खोद लेते हमेशा के लिए पानी की समस्या से छुटकारा मिल जाएगा सलाह मानकर उस आदमी ने कुआं खोदना शुरू किया लेकिन सात आठ फीट खोदने के बाद उसे पानी तो क्या गीली मिट्टी का भी चिन्न नहीं मिला उसने वह जगह छोड़कर दूसरी जगह खुदाई शुरू की लेकिन 10 फीट खोदने के बाद भी उसमें पानी नहीं निकला उसने फिर तीसरी जगह कुआ खोदना शुरू किया लेकिन यहां भी उसे निराशा ही हाथ लगी इस क्रम में उसने 810 फीट के 10 कुए
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