1st WAR of Umar bin Khattab | Umar Series 2

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The Kohistani
All animations are custom-made for this video using the following software: 1. After-effects: For ma...
Video Transcript:
उमर बिन खता रज अल्ला ताला अ बहुत ही क्रुशल टाइम पर मुसलमानों के दूसरे खलीफा बने क्योंकि एट द सेम टाइम मुसलमान उस वक्त दुनिया के सबसे बड़े सुपर पावर्स रोमन और पर्जन एंपायर से लड़ रहे थे इन तीनों अंपायर्स में फर्क यह था कि रोमन एंपायर पिछले हजार साल से दुनिया की सबसे बड़ी सुपर पावर और पर्जन एंपायर भी पिछले 800 साल से दुनिया की दूसरी बड़ी सुपर पावर थी और इन दोनों से एक ही टाइम पर लड़ कौन रहा था मदीना की रियासत जो इस सब से सिर्फ कुछ ही सालों पहले बनी थी
लेकिन इन सब चीजों से डरने के बजाय हजरत उमर और बाकी सहाबा ने पहले खलीफा हजरत अबू बकर को रसूलल्लाह सला सलम के पास तफनात जिसके बाद पहली बार हजरत उमर मुसलमानों के खलीफा बने नाउ जब मोहम्मद स वसल्लम जिंदा थे तो लोग उन्हें रसूलल्लाह के टाइटल से पुकारते थे लेकिन उनकी वफात के बाद लोग कंफ्यूज हो गए कि अब अबू बकर रज अल्लाह ताला अन्हो के लिए कौन सा टाइटल यूज किया जाए तो हजरत अबू बकर रज अल्ला ताला अन्हो ने अपने लिए बादशाह सीजर और किसरा जैसे टाइटल्स छोड़कर खलीफा का नाम चूज किया
और अब हजरत अबू बकर के बाद हजरत उमर ने अपने लिए अमीरुल मोमिनीन का टाइटल चूज किया जब हजरत उमर रज अल्लाह ताला अन खलीफा बने तो मुसलमानों की एक फौज खालिद बिन वलीद की लीडरशिप में रोमन एंपायर में ल लड़ रही थी और एक दूसरी छोटी फौज पर्शियन एंपायर में थी लेकिन हजरत उमर को रोमन एंपायर की फौज से ज्यादा पर्शियन एंपायर की फौज की फिक्र थी क्योंकि वहां खालिद बिन वलीद जैसा जनरल मौजूद नहीं था खलीफा बनने के बाद जब उन्होंने देखा कि पूरे अरब से लोग उनके हाथ पर बैत करने के लिए
मदीना आ रहे हैं तो उन्होंने इस टाइम को यूज करके पर्जन एंपायर में मुसलमानों की मदद के लिए एक नई फौज जमा करना शुरू कर दी लेकिन यहां एक बहुत बड़ा मसला हुआ कि हजरत उमर मस्जिदए नबवी में बार-बार मुसलमानों को जिहाद की तरफ उड़ाते रहे लेकिन पहली बार उन्होंने देखा कि पर्जन एंपायर से लड़ने के लिए मुसलमानों में कोई भी तैयार नहीं था और यह इसलिए नहीं था कि मुसलमान लड़ लड़कर थक चुके थे बल्कि इसलिए क्योंकि उन्हें पता था कि खालिद बिन वलीद पर्जन एंपायर में नहीं बल्कि रोमन एंपायर में और उनके बगैर
कोई भी जंग जीतना इंपॉसिबल है यह देखकर हजरत उमर समझ गए कि अब जो यह नए मुसलमान है इनका यकीन और ट्रस्ट अल्लाह की बजाय खालिद बिन वलीद के साथ ज्यादा अटैच है जो मुसलमानों के इस एंपायर के लिए बहुत बड़ा मसला था तीन दिनों के बाद हजरत उमर ने एक दिन बहुत सख्त गुस्से के साथ स्पीच की तो उनमें से एक मुसलमान अबू उबैद जो सहाबी भी नहीं थे खड़े हुए और कहा मैं जिहाद के लिए तैयार हूं जिसके बाद आहिस्ता आहिस्ता और भी लोग आगे आने लगे तो हजरत उमर रज अल्ला ताला अन्हो
ने 1000 की फौज बनाई और उसका लीडर अबू उबैद को बनाकर पर्जन एंपायर की तरफ रवाना किया लेकिन यह एक बहुत बड़ा रिस्क था क्योंकि अगर यह फौज पर्शियन एंपायर से हार जाती तो उसके बाद खालिद बिन वलीद के बगैर मुसलमान कभी जंग नहीं लड़ते और ऐसा ही हुआ यह फौज पर्जन एंपायर में बहुत ही बुरी तरह हार गई बट वेट यह फौज अभी रास्ते में अभी तक पहुंची नहीं है जब यह फौज पर्जन एंपायर की तरफ आहिस्ता आहिस्ता जा रही थी तो उधर रोमन एंपायर में मुसलमानों ने खालिद बिन वलीद की लीडरशिप में उस
जमाने के शाम सीरिया की सबसे इंपॉर्टेंट सिटी दमस्क डस्क को हर तरफ से घेर चुके थे और इस फौज को काफी अरसे तक पता ही नहीं था कि अबू बकर रज अल्ला ताला अन वफात पा चुके हैं और उनके बाद मुसलमानों का नया खलीफा हजरत उमर बने हैं तो खालिद बिन वलीद की लीडरशिप में यह फौज कई दिन तक कोशिश करती रही कि किसी तरह इस किले के अंदर घुस सके लेकिन डस्क कोई आम सिटी नहीं थी इसे उस जमाने में पैराडाइस ऑफ सीरिया कहा जाता था मतलब सीरिया की जन्नत और अब तक अरब अपना
सबसे बड़ा इंपोर्ट इसी सिटी से किया करता था मतलब दमस्क इस इलाके में सबसे पावरफुल सिटी थी और उस जमाने में यह अरबों के लिए ऐसी सिटी थी जिस तरह आज लोगों के लिए न्यूयॉर्क हो तो मुसलमानों ने उस वक्त की सबसे पावरफुल दमस्को हर तरफ से घेर लिया था और खालिद बिन वलीद ने इस सिटी के हर मेन गेट पर अपने सबसे बेस्ट जनरल्स को खड़ा किया था जिनमें से एक जनरल का नाम अबू उबैद इब्ने जर्राह था आखिर बहुत कोशिश करने के बाद भी दमस्क फता नहीं हो सका लेकिन फिर एक दिन अचानक
दमस्क से एक आदमी खालिद बिन वलीद के पास आया और उसे बताया कि कुछ ही दिन पहले दमस्क के लीडर के घर बेटा पैदा हुआ है जिसे सेलिब्रेट करने के लिए उन्होंने एक बहुत बड़ी पार्टी रखी जिसमें रोमन एंपायर की फौज को भी बुलाया और इस पार्टी में यह सब इतनी शराब पिएंगे कि कोई भी अपने होशो आवास में नहीं रहेगा तो खालिद बिन वलीद ने उसी रात मुसलमानों के ग्रुप को इस गेट के सामने खड़ा कर दिए और फिर खुद सिर्फ कुछ और मुसलमानों के साथ बिल्कुल खामोशी से दमस्क की दीवार पर चढ़कर अंदर
घुस गए और मुसलमानों के लिए अंदर से गेट खोल दी और इस तरह मुसलमानों की फौज का एक समंदर किल्ले के अंदर घुस गया और बहुत तेजी से मुसलमान ईस्टर्न साइड से इस किले को फतह करने लगे [संगीत] लेकिन इस किले का जनरल इस सिटी के दूसरे साइड पर बैठा हुआ था तो जब उसे पता चला कि अब उसके पास कोई ऑप्शन नहीं है और मुसलमान किले में घुस चुके हैं और कुछ ही देर में मुसलमान इस पूरे सिटी को फतह कर लेंगे तो उसने जल्दी एक लेटर मुसलमानों के दूसरे बड़े जनरल अबू उबैद की
तरफ भेजा कि मैं इस सिटी को मुसलमानों के सामने सरेंडर कर रहा हूं सिर्फ एक शर्त पर कि मुसलमान कोई माले गनीमत नहीं लेंगे अब अबू उबैद इने जरा को इस बात का पता नहीं था कि खालिद बिन वलीद और उसके सोल्जर्स दमशम वाले हैं तो उन्होंने उस रोमन जनरल के सरेंडर को कबूल कर लिया अब थोड़ी ही देर बाद जब खालिद बिन वलीद को अबू उबैद रज अल्लाह ताला अन्हो के डिसीजन का पता चला तो अगर वह चाहते तो अबू उबैद के इस एग्रीमेंट को फाड़कर दमस्क को तलवार के जोर पर भी फतह कर
सकते थे और यहां से सारा माल गनीमत उठा सकते थे लेकिन खालिद बिन वलीद ने अबू उबैद के एग्रीमेंट को मानकर अपनी सारी फौज को पीछे हटने का हुकम दिया और इस तरह दम मश्क डमक उस जमाने की सबसे ताकतवर सिटी हजरत उमर के कंट्रोल में आई नाउ यह सब कुछ तो यहां रोमन एंपायर में हो रहा था लेकिन इस सबसे बहुत दूर पर्शियन एंपायर की तरफ जो फौज रवाना की गई थी वो बिल्कुल पहुंचने ही वाली थी और पहुंचने के साथ ही अबू उबैद ने देखा कि पर्शियन एंपायर सामने से बहुत बड़ी फौज तैयार
कर चुकी है जब अबू उबैद मुसलमानों की फौज लेकर पर्शियन एंपायर पहुंचे अबू उबैद नॉट अबू उबैद ये दो डिफरेंट शख्सियत है अबू उबैद और उनकी फौज ने पर्शियन एंपायर पहुंच कर देखा कि पर्शियन बादशाह ने खालिद बिन वलीद की एब्सेंट में मुसलमानों के खिलाफ तीन बहुत बड़ी फौज तैयार की है जो बहुत तेजी से मुसलमानों की तरफ बढ़ रही हैं आखिर मुसलमानों और पर्शियन फौज इस ब्रिज के सामने एक दूसरे के आमने-सामने हुई तो पर्जन जनरल ने मुसलमानों को यह ऑफर दी कि या आप ब्रिज क्रॉस करके इस तरफ आएं और या हमें उस
तरफ आने दें अब यहां अबू उबैद से एक बहुत बड़ी गलती हुई उन्होंने अपने मुसलमान जनरल्स की बात नहीं मानी और खुद मुसलमानों की फौज को ब्रिज क्रॉस करने का हुक्म दिया अबू उबैद खुद सहाबी नहीं थे और इनकी एज भी बहुत कम थी जब हजरत उमर रज अल्लाह ताला अन्हो ने इन्हें मुसलमानों की फौज का जनरल बनाया तो सहाबा ने कहा कि आप इसे नहीं बल्कि किसी सहाबी को जनरल बनाए लेकिन अबू उबैद वो वाहिद इंसान थे जो सबसे पहले जिहाद के लिए खड़े हुए थे इसीलिए हजरत उमर ने इन्हें एक ऐसी फौज का
कमांडर बनाया जिसमें इनके अंडर बहुत सारे सहाबा कराम भी थे आखिर मुसलमानों की फौज जो ऑलमोस्ट 9000 थी उन्होंने ब्रिज क्रॉस कर ली और जंग शुरू अल्लाह अकबर रोमन एंपायर में द मश्क ड मास्क और पर्जन एंपायर की हीरा सिटी फतह करने के बाद अब दुनिया में हर कोई मुसलमानों को एक सीरियस थ्रेट समझने लगा था तो जब अबू उबैद ने अपने घुड़सवार हॉर्समैन को पर्जन एंपायर पर हमले का हुकम दिया तो वह सामने पहली बार पर्जन एंपायर की फौज में हाथियों को देखकर बिल्कुल डर [संगीत] गए और आगे बढ़ने के बजाय पीछे भागने लगे
यह देखकर पर्शियन एंपायर ने मुसलमानों पर हमला कर दिया और उनके हाथी बहुत सारे मुसलमानों को शहीद करने लगे एक हाथी ने तो इवन अबू उबैद को उनके घोड़े से गिरा दिया और फिर उनके सीने पर पांव रख के बिल्कुल क्रश कर दिया यह हिस्ट्री में पहली दफा था कि किसी जंग में मुसलमानों के जनरल को शहीद किया गया हो तो जब मुसलमानों ने अपने जनरल को गिरता हुआ देखा उनका हौसला बिल्कुल टूट गया और वो जंग के मैदान से पीछे हटने लगे जब मुसलमान भागकर ब्रिज तक पहुंचे तो उन्होंने देखा कि ब्रिज को किसी
ने तोड़ दिया है अब या तो इस ब्रिज को मुसलमानों की फौज में से किसी ने तोड़ा था और या इसे अबू उबैद के ऑर्डर्स पर ही तोड़ा गया था ताकि मुसलमानों के लिए जंग छोड़ना इंपॉसिबल हो जाए तो अब जब और कोई रास्ता भी नहीं था तो बहुत सारे मुसलमान दरिया में कूदने लगे यह सब देखकर मुसलमानों के दूसरे जनरल मुसन्ना ने फौज को दोबारा ऑर्गेनाइज किए और पर्शियंस पर पूरी ताकत के साथ एक आखिरी बार हमला कर दिया और पीछे खड़े मुसलमानों को ये ऑर्डर्स दिए कि जल्दी से ब्रिज को ठीक करो आखिर
मुसन्ना की बहादुरी की वजह से 3000 मुसलमान ब्रिज को क्रॉस करके इस साइड पर आए लेकिन 9000 में से सिर्फ 3000 मुसलमान ब्रिज क्रॉस कर सके मतलब 6000 मुसलमान इस जंग में शहीद हुए ये पहली बार हुआ था कि मुसलमान कोई भी जंग इतनी बुरी तरह हार जाए और यह जंग हजरत उमर की खिलाफत की पहली जंग भी थी जिसमें उन्हें शिकस्त हुई नाउ एक बार फिर मुसलमानों ने देखा कि एक तरफ खालिद बिन वलीद की लीडरशिप में उन्होंने दमस्क जैसे अजीम सिटी को फतह कर लिया और दूसरी तरफ मुसलमान पर्जन एंपायर में एक आहम
सी जंग हार गए जिसके बाद यह बातें पूरी एंपायर में फैलने लगी कि इससे पहले जब खालिद बिन वलीद पर्जन एंपायर में थे तो वहां मुसलमान हर जंग जीत रहे थे और रोमन एंपायर में मुसलमान हार रहे थे फिर जब खालिद बिन वलीद पर्शियन एंपायर से रोमन एंपायर की तरफ गए तो रोमन एंपायर में मुसलमान जंग जीतने लगे और पर्जन एंपायर में हार गए इन सारे हालात से यंग मुसलमानों का ये माइंडसेट बनने लगा कि जंग में फतह सिर्फ सैफुल्लाह खालिद बिन वलीद की लीडरशिप नहीं मिल सकती और उनके बगैर चाहे जो भी हो जंग
नहीं जीत सकता तो जब खालिद बिन वलीद मुसलमानों की फौज के जनरल होते थे तो उनकी फौज भी फुल मोराल के साथ लड़ती थी लेकिन जब खालिद बिन वलीद नहीं होते थे तो मुसलमान उस पैशन के साथ जंग नहीं लड़ते थे इन सारी बातों का मदीना में बैठे मुसलमानों के खलीफा हजरत उमर रजि अल्लाह ताला अन्हो को बहुत अच्छी तरह पता था तो इन सारे हालात को कंट्रोल करने उन्होंने एक बहुत ही सख्त डिसीजन ली कि अब टाइम आ गया है कि मुसलमानों के इस फौज के अजीम जनरल खालिद बिन वलीद को उनकी पोजीशन से
हटा दिया जाए और उनकी जगह एक नया आर्मी चीफ लगाया जाए सब्सक्राइब
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