श मैं ये समझता था सब नाम जप करते नाम जप सर्वश्रेष्ठ है लेकिन एक प्रैक्टिकल जैसे करना होता है ना तभी आदमी आगे बढ़ता है प्रैक्टिकल नाम जप को आप प्रैक्टिकल नहीं समझ रहे क्या समझ रहा जी जैसे सुमना में प्राणों को चढ़ाना होता है ना पुली जागृत करनी होती है सब अपने आप हो जाएगा तुम नाम में लगो ना चित्तवृत्ति नाम में जोड़ो इधर उधर क्यों इसीलिए तो अभी नाम के प्रति मत्व नहीं जागृत हुआ आपका अभी नाम को आपने सर्व पर नहीं माना है अभी नाम अगर निरंतर चल रहा है तो कुंडलिनी भी
जागृत हो जाएगी सक्षम मार्ग संचारी भगवान को कहा गया गोपाल शतनाम में पढ़ो अपने आप हो जाएगा तुम्हें चिंता नहीं करनी तुम्हें चिंतन करना है अगर इधर महत्व देते रहे अभी यह हुआ नहीं अभी यह हुआ नहीं तो आप पश्चाताप करोगे आपकी श्रद्धा में कमी आ जाएगी यही गलती हो रही है नहीं करना नहीं करना ध्यान में नहीं बैठ पा रहा ध्यान नहीं हो पा रहा तो मैं समझ रहा कुछ नहीं हो नहीं नहीं नहीं देखो अगर आज हमारी बात आप मान लो हम इस पर बहुत जोर देते हैं भगवान के मार्ग में बचपन से
चल रहे हैं और जैसा गुरुजी चला रहे हैं उनसे चल पाते हैं साधक जो नाम आपको प्रिय है पहले अपने माइंड में लिखो जो भी विट्ठल राम या राधा जो नाम पे अब उस परे एकाग्रता करो अब अंदर से वही चलाओ और वही सुनो आख खुली है तो नाम दिखाई दे रहा है अभी देखो दिखाई दे रहा है नाम लिखो नाम दिखाई दे रहा है जो नाम आपको प्रिय है आपने लिखा दिखाई दे रहा है अब उसको ऐसा देखो कि हटे ना तुम्हारे सामने से जब हटे फिर लिख दो जब हटे फिर लिख दो कुछ
नहीं तुम्हें करना मन एकाग्र हो जाएगा प्राण सूक्ष्म हो जाएंगे कुंडली जागृत हो जाएगी सुमना मार्ग संचरण हो जाएगा नाम में क्या नहीं हो सकता जब भगवान को अधीन कर लिया जाता है सुमर पवन सुत पावन नाम अपने बस करि राखे रामू तो यार क्या नहीं नाम से हो सकता सब कुछ नाम से हो सकता है कह कहां लग नाम बढ़ाई राम न सक नाम गुण गाई कौन सा ऐसा अंदर चक्र है जिसका भेदन नाम के द्वारा ना हो जाए अरे पहले तो ये वखरी वाणी से जप होता है देखो परावा का तो वि ज्ञान
है नहीं ना वखरी से मध्यमा मध्यमा से पश्यंति पश्तीन जाता है तो रोम रोम नस नस नाड़ी नाड़ी उसकी नाम जप करती है नाड़ी नाड़ी में नाम जप तो नाम कौन सा बचा जो चक्र भेदन नहीं हुआ कुंडली जागृत नहीं सब सिद्धियां इसी में है पर आज से ऐसा जपो अभी देखो हलचल पैदा हो जाएगी आपके अंदर मन कहेगा ऐसे मत जपो मन कहेगा ऐसे मत जपो आप जप के देखो आप कहते 15 साल हो गए 15 दिन जप के देखो फिर हमें बताना कैसा लगा अगर आंसू ना आ जाए रोमांच ना हो जाए तो
हमें बताना सा सामने ऐसे हम खुली आंख देख रहे हैं नाम को हमारे सामने नाम छाया वही चल रहा है वही सुन रहे हैं बंद है तो वही चल रहा है हमें कुछ नहीं सोचना नाम के सिवा कुछ नहीं सोचना कुछ जागृत ना हो नरक मिले सब कुछ छोड़ो हमारी बात समझो एक बार सब छोड़ दो ऐसे हो जाओ और नाम पकड़ लो और फिर हमें बताना 15 साल से आप अभ्यास कर रहे हो और यह अभ्यास करके फिर कभी मिलना तो हमें आप बताना कि आपको क्या लगा 15 साल का ये फल है जो
हम आपको बता रहे हैं इसको पकड़ लो और फिर आप देख लो सब कुछ जागृत हो जाएगा सब कुछ जागृत हो जाएगा कुंडली जागृत करने की जब साधना की अपने जिसे नटक ब्रह्मचर्य से चले आ रहे स्यास वो वो जो पूर्णता हुई जहां जाके वो हम आपको बता रहे बस पकड़ लो हर श्वास में नाम चल रहा है सामने नाम वही फिर रूप प्रकाशित होगा वही विट्ठल खड़े दिखाई देंगे और विट्ठल की रूप माधुरी एक बार चख ली फिर वो मन बुद्धि चित्त एक संसार लायक नहीं रह जाते नहीं रूप छके घूमत रहे तन को
तनिक न भान नारायण दृग जल भाए हा विट्ठल हा पांडुरंगा ब रोते रहोगे फिर और कुछ नहीं रह जाएगा यही मिलता है प्रेमी को रोना सिसकना तड़पना अपने प्रभु के और वैसे महापुरुष से ये सारा जगत पावन होता है मम भक्ति युग तो भवन वो लोक के लोक पावन कर देता है म नाम में लगो एक मात्र नाम में लगो एकमात्र महापुरुषों का जिनका नाम ले रहे हो वो नाम के बल से ही थे बड़े-बड़े चमत्कार हुए एक बार श्री तुकाराम जी महाराज के दर्शन करें वीर शिवाजी गए तो अब वहां संतों के पास मर्यादा
है अपने सम्राट पद के अभिमान से तो कोई जाएगा नहीं तो बहुत साधारण वेशभूषा और दो अंग रक्षक जो भी मंदिर के बाहर अब वो एकांत क्षेत्र में कीर्तन करते से तुकाराम जी कभी किसी पहाड़ पर चले गए कभी कहीं एकांतिक में तो वहां जैसे वो बैठ गए जाकर दर्शन के तो मुगलों को पता चल गया कि तुकाराम जी के दर्शन करने शिवाजी गए और साधारण दो अंग रक्षक हैं बस तो उनको लगा मारने का बहुत बढ़िया अवसर है तो वो रांग रक्षण कोने आकर अब तुकाराम जी की भाव समाधि नाम में थी व विट्ठल
विट्ठल विट्ठल केशव विठ्ठल विट्ठल विट्ठल हा पांडुरंगा बीच बीच में और राम कृष्ण हरि शिवाजी के कान में कहा कि प्रभु हमें सूचना मिली है कि मले सेना घेर लिया है बड़े प्राण संकट में तुकाराम जी की आंख खुली और ऐसे कहा कि बैठे रहो शिवाजी को विश्वास था यह सिद्ध महापुरुष है मले सेना आई पूरा खोज किया और कहा झूठी सूचना थी शिवाजी तो यहां आए ही नहीं और शिवाजी सामने बैठे रहे वो देख ले पाए दृष्टि अय सिद्धि तुकाराम जी ने थोड़ी की भक्तों के साथ सिद्धि भगवान की लगती वह अपनी सिद्धि प्रयोग
नहीं करते उनकी सिद्धि तो पांडुरंगा है विट्ठल है भगवान देख ही नहीं पाए शिवाजी बैठे रहे कीर्तन वैसे चलता रहा व घूम के सब पूरे चले गए भगवान के नाम में अपार सिद्धि आज तक जितने भी नाम जापक सिद्ध हुए हैं कौन सी ऐसी सिद्धि बताइए जो उनमें ना रहे हो बड़े-बड़े संतों के आप नाम ले लीजिए जो नाम जापक रहे निर नाम जापक रहे सब सिद्धि आवन में रहे भारी से भारी कष्ट को सह लेना भारी से भारी विपत्ति को सह जाना और भारी से भारी सम्मान को ठुकरा देना शिवाजी ने कौन सी वस्तु
नहीं भेजी तुकाराम के घर में एक भी स्वीकार नहीं की उन्होंने क हम भगवान के दासत से युक्त है हम नृपति कान नहीं खाते सब निकलवा दिया तो हमें लगता है नाम में लगना चाहिए और बड़े महापुरुषों की शरण में हो इसलिए संबंध से भगवत प्राप्ति हो जाती है जैसे कोई ब अधिकारी है उसका कोई संबंधी है तो फिर उसकी जांच नहीं होगी वो केवल इतना कह देना य हमारा आदमी है तो ऐसे हम गुरुजनों के सिद्ध पुरुषों के संबंध में ना तो हमारी जांच नहीं होती अगर जांच हो तो फेल हो जाएंगे फिर अंदर
ले जा पाएंगे तो संबंध से हम पार हो जाते हैं तो हम नाम जप करें बड़े महापुरुषों का भरोसा रख के फिर आप देख लेना सब सिद्धियां इसी में जागृत हो जाती है बस पाप कर्म ना हो हमारा मन पाप कर्म के लिए प्रेरित करेगा और पाप कर्म का संयोग बनेगा सुविधाएं आ जाएंगी माया है हमको पाप कर्म नहीं करना इससे डरते रहना है नहीं तो बहुत बुरी फिर स्थिति आ जाती है कि हम चलना चाहते हैं प्रभु की तरफ और हमें घसीट रही माया तो फिर बहुत कष्ट होता है तो इसलिए डरना चाहिए हमसे
कोई पाप कर्म ना हो जाए यह डरना चाहिए और नाम जप करते हो फिर देख लो आगे अपने आप सदे विमान में गए हैं तुकाराम जी गए ना आपने शास्त्र पढ़ा है सदे विमान में हा अब आप सोचो बड़े-बड़े महापुरुष कुछ ऐसे महापुरुषों का आता है जो देह स नहीं तो प्राया भूतल में देह त्याग करके ही जाना होता है जैसे महाप्रभु चैतन्य देव ये सदे मीरा जी ये सदेय कई ऐसे महापुरुष जो सदे भगवान के धाम को गए तो इसलिए हमें नाम पर बहुत जोर देना है और नाम का ध्यान करना है एक एक
अक्षर ब्रह्म स्वरूप है जैसे मानो राम रा बड़ा की मात्रा मा ये साक्षात ब्रह्म है अब आप ध्यान करो इसी का और बार-बार ये सुम देखो रोमांच हो जाएगा अभी आनंद आने लगेगा एकाग्रता तन्मयता महत्व बुद्धि नाम में ये सब छोड़ो कूड़ा करकट मेरे मन में क्या आ रहा है मेरे मन में मेरा मन नहीं है यह माया कृत मन है यह माया कृत मन है मेरे प्रभु हैं मैं प्रभु का हूं मैं निर्मल हूं मेरे प्रभु निर्मल है ये माया मलिन है और ये मन मलिन है छोड़ो डिपार्टमेंट अ ये अपने आप आपको छोड़ेगा
नहीं मन क्योंकि आपके सिवा उसकी सत्ता नहीं तो आप जिधर चाहोगे उधर लगना शुरू कर देगा बार-बार हटाएगा पर आपकी इसकी सत्ता लड़ाई की है आप इसकी सत्ता मत मानिए तो य आप में अधीन हो जाएगा और इस पर महत्व दे दिया तो यह आपको अधीन कर यह अधीन कर लेता तो बहुत नीच है बहुत दुष्ट है बहुत रुलाता है बहुत जलाता है नहीं जलाता है