आदतों की शक्ति सीख ली तो जीवन बदल जायेगा | Buddhist Story on The Power of Habits | Bodhi thinkspy

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आदतों की शक्ति सीख ली तो जीवन बदल जायेगा | Buddhist Story on The Power of Habits | Bodhi thinkspy ...
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नमस्कार दोस्तों, बोधी थिन्क्स्पाय यूट्यूब चैनल में आपका दिल से स्वागत है, किसी ने क्या खूब कहा है की नमक रोटी खा कर सो जाना परंतु अपनों के सामने कभी हाथ मत फैलाना क्योंकि जितना वो देंगे नहीं उससे अधिक वो सुनाएंगे, जब नादान थे तो रोज़ जिंदगी के मजे लेते थे जब से समझदार हुए रोज जिंदगी मजे ले रही है पहले मैं होशियार था इसीलिए दुनिया बदलने चलाथा। आज मैं समझदार हूँ इसीलिए खुद को बदल रहा हूँ, हालात चाहे जैसे भी हो शुक्र करना शिकायत करने से हमेशा बेहतर होता है कभी-कभी जिंदगी ऐसे चौराहे पर खड़ा
कर देती है जहां एक फैसले की कीमत बहुत बड़ी होती है परिवर्तन से डरना और संघर्ष से कतरा मनुष्य की सबसे बड़ी कायरता है जीवन का सबसे बड़ा गुरु वक्त होता है जो वक्त सिखाता है वह कोई और नहीं सिखा सकता दोस्तों कर्म क्या है आप इसके बारे में जानते हो दोस्तों आपने यह तो सुना ही होगा कि अच्छे कर्मों का फल अच्छा ही मिलता है अगर अच्छे कर्म करोगे तो उसका अच्छा ही परिणाम आपको मिलेगा और अगर वही बुरे कर्म करोगे तो उसका फल और परिणाम आपको बुरा ही मिलेगा अच्छे कर्म आपको खुशियां देंगे
वही आपके बुरे कर्म आपको दुख ही देंगे और आपकी जिंदगी को नर्क बना देंगे यहां तक तो सब सही है लेकिन आपने कर्मों के बारे में यह भी सुना है कि अच्छा इंसान हमेशा दुखी रहता है और वहीं दूसरी ओर बुरा इंसान हमेशा सुखी रहता है अगर ऐसा है तो अच्छे कर्मों का अच्छा फल कैसे हुआ बल्कि बुरे कर्मों का अच्छा फल हुआ आखिर यह कर्मों का सारा खेल क्या है यह कैसे हमारी जिंदगी को प्रभावित करते हैं अगर हम यह समझ जाएं कि कर्मों का चक्कर आखिर चलता कैसे हैं तो हमें जिंदगी में सुख
मिल सकता है क्योंकि हम सिर्फ वही काम करेंगे जिससे हमें अच्छा फल प्राप्त हो तो चलिए जानते हैं इस कहानी के माध्यम से कि आखिर कर्मों का खेल है क्या कर्मों का फल हमें कैसे मिलता है एक नगर में एक व्यापारी रहता था वह व्यापारी बहुत धनवान था अपने नगर के बड़े-बड़े व्यापारियों में उसका नाम लिया जाता था अपने खुद के नगर में भी उसका बहुत नाम था धीरे-धीरे समय बीतता गया फिर एक दिन उसके घर पुत्र का जन्म हुआ फिर उस पुत्र के जन्म पर व्यापारी बहुत खुश हुआ उसने अपने पुत्र का नाम अर्जुन
रख दिया व्यापारी ने सोचा कि अब उसका पुत्र बड़ा होकर उसके कारोबार को संभालेगा और वह अपने नगर का सबसे बड़ा व्यापारी बन जाएगा उस व्यापारी ने अपने पुत्र का अच्छे से पालन पोषण किया उसे अच्छे से पढ़ाया लिखाया समय के साथ-साथ अर्जुन अब 22 वर्ष का हो चुका था उसका पुत्र अर्जुन भी बड़ा होकर अपने पिता के व्यवसाय में मदद करने लगा पिता अपने पुत्र को ऐसे काम करते देख अपने काम में सहायता करते देख बहुत प्रसन्न होते हैं फिर उस व्यापारी ने अपने पुत्र अर्जुन का विवाह एक सुंदर युवती के साथ करवा दिया
जिसका नाम संध्या था अर्जुन भी बहुत प्रसन्न था अर्जुन विवाह होने के बाद तो अपने पिता के साथ व्यवसाय में हाथ बताता रहा कुछ दिन तो अर्जुन अपने पिता के करो में मदद करता रहा लेकिन कुछ दिन बाद फिर अचानक ही अर्जुन में कुछ परिवर्तन आने लगे वह दिन भर अपने दोस्तों के साथ घूमने लगा धीरे-धीरे अर्जुन को एक बहुत बुरी आदत ने जकड़ लिया वह रोज अपने दोस्तों के साथ जुआ खेलने लगा अर्जुन ना तो अपने घर आता था और ना ही अपने पिता के व्यवसाय में हाथ बताता धीरे-धीरे समय गुजर रहा था समय
के साथ अर्जुन के पिता वृद्ध हो गए वृद्ध होने के कारण उनके पिता व्यापार की देखभाल नहीं कर रहे थे और अर्जुन तो व्यापार की देखभाल करना तो दूर की बात है वह तो उनके धन को उड़ा रहा था जो व्यापार से प्राप्त हो रहा था व्यापार की देखभाल ना होने के कारण धीरे-धीरे उसे व्यापार में बहुत नुकसान होने लगा अर्जुन के पिता ने अर्जुन को बहुत समझाया कि मैंने इतनी मेहनत करके इतना बड़ा व्यापार खड़ा किया है अगर तुम इसे नहीं संभालोगे तो एक दिन यह पूरी तरह नष्ट हो जाएगा उस बूढ़े पिता ने
अपने बेटे को खूब समझाया देखो मेरी बात मान लो तुम इस जुए खेलने की आदत को इस गंदी आदत को छोड़ दो नहीं तो एक दिन ऐसा आएगा जो तुम्हारे पास कुछ भी नहीं बचेगा कोई तुम्हारा साथ नहीं देगा फिर तुम बहुत पछताओगे इसलिए तुम समय रहते संभल जाओ लेकिन अर्जुन ने तो अपने पिता की एक भी बात नहीं सुनी वो तो उनकी बात को सुनकर अनसुना कर देता था ऐसे ही समय धीरे-धीरे गुजरता रहा समय के साथ उसके पिता और भी वृद्ध हो गए और उनको बीमारियों ने जकड़ लिया कुछ दिन के बाद ही
उस व्यापारी की मृत्यु हो गई अपने पिता की मृत्यु पर भी अर्जुन को बिल्कुल भी अफसोस नहीं हुआ उसको तनिक भी दुख नहीं हुआ ऐसे लग रहा था कि मानो उसके पिता की मृत्यु के बाद तो उसे आजादी मिल गई हो अब उसे कहने सुनने वाला कोई रहा नहीं था अब तो अर्जुन पहले से भी अधिक दिन रात जुआ खेलने में लगा रहता था अर्जुन जुआ खेलकर एक बहुत बड़ा आदमी बनना चाहता था व एक दिन में ही सब कुछ हासिल कर लेना चाहता था जिस कारण अब वह जुए में बड़े-बड़े दाव पेस लगाने लगा
था अर्जुन के मां ने भी अर्जुन को बहुत समझाया कि बेटा तुमने बहुत सारा धन गवा दिया है अब जो थोड़ा बहुत धन बचा है उसे भी लुटाने पर क्यों लगे हुए हो और वह कहते हैं ना कि जब मनुष्य का विनाश होता है तो उसकी बुद्धि काम करना छोड़ देती है अर्जुन अपनी मां की बात एक कान से सुनता था तो दूसरे कान से निकाल देता था उसे कोई भी बात का कोई भी फर्क नहीं पड़ता था अर्जुन दिन रात जुआ खेलने में व्यस्त रहता था उसे किसी भी बात का होश नहीं था अर्जुन
के पास कोई कुबेर का खजाना तो था नहीं जो कभी खत्म ही नहीं होता धीरे-धीरे अर्जुन का सारा धन खत्म होने लगा फिर एक दिन ऐसा आ गया जब अर्जुन के पास कुछ भी नहीं बचा था जुआ खेलने में उसका सारा धन समाप्त हो चुका था वह अपना सब कुछ गवा चुका था अब अर्जुन की मां भी काफी बीमार रहने लगी थी जब अर्जुन की मां ने यह सब सुना कि उसका बेटा जुए में सब कुछ हार चुका है तो उसकी मां को बहुत बड़ा सदमा लगा और उसकी मां की मृत्यु हो गई लेकिन अर्जुन
को तो अपनी मां की मृत्यु पर भी कोई अफसोस नहीं हुआ उसने और उसकी पत्नी ने दोनों ने उनका अंतिम संस्कार किया फिर कुछ समय बाद अर्जुन ने फिर से जुआ खेलना शुरू कर दिया उसे किसी भी बात से कोई फर्क नहीं पड़ता था उसके लिए कोई जिए या मरे वह तो दिन भर जुआ ही खेलता रहता था अर्जुन का सारा धन खत्म हो गया था फिर उसने दूसरे व्यापारियों से कर्ज ले लिया अर्जुन व्यापारी का बेटा था तो उसे किसी ने भी धन देने से मना नहीं किया लेकिन अर्जुन ने तो वह धन भी
जुए खेलने में ही नष्ट कर दिया अब अर्जुन के ऊपर बहुत सारा कर्ज हो चुका था अब उसके घर में दो वक्त खाना खाने जितना धन भी नहीं बचा था अब तो अर्जुन की हालत ऐसी होगी थी कि अब उसके पास ना तो खाना बचा था खाने को और ना ही पहनने के लिए कपड़े बचे थे वह बिल्कुल कंगाल हो चुका था अब पूरे नगर में सबको यह पता चल चुका था कि अर्जुन अब तो कंगाल हो चुका है उसके पास कुछ भी नहीं है जब अर्जुन किसी से मदद मांगने जाता तो सब उसे मना
कर देते थे एक समय वह भी था जब उसके परिवार का नाम नगर के बड़े-बड़े व्यापारियों में आता था लेकिन अर्जुन इस गंदी आदत के कारण उसने अपना सब कुछ गवा दिया था कोई भी उसकी मदद नहीं करता था अर्जुन का जब सब कुछ समाप्त हो गया तब उसे इस बात का एहसास हुआ कि समाज में लोग इज्जत तभी करते हैं जब उसके पास पैसा है जैसे ही मनुष्य का पैसा खत्म हो जाता है तो उसके साथ-साथ इज्जत भी खत्म हो जाती है लोग उसी मनुष्य की इज्जत करते हैं जो मेहनत से कमाता है और
अपने जीवन में एक कामयाब इंसान बनता है जब अर्जुन के ससुर को यह बात पता चली कि उसका दामाद कंगाल हो चुका है तो वह अपनी पुत्री की चिंता करते हुए तुरंत ही अपनी पुत्री से मिलने चला गया उसने वहां जाकर देखा कि उसकी पुत्री तो बहुत दुखी है उसकी पुत्री ने फटे पुराने कपड़े पहने थे भूख के कारण उसका गुलाब सा चेहरा मुरझा चुका था अपनी बेटी की ऐसी हालत देखकर उनको अर्जुन पर बहुत गुस्सा आया उसने अपनी बेटी को अपने साथ घर ले जाने का निश्चय कर लिया था उसने ना ही अर्जुन को
कुछ कहा और ना ही कुछ सुना अपनी बेटी को लेकर अपने घर चले गए जब अर्जुन घर पहुंचता है तब उसे पता चलता है कि उसकी पत्नी को तो उसके ससुर जी अपने साथ घर ले गए हैं यह देखकर अर्जुन बहुत दुखी होता है अब वह बिल्कुल ही अकेला पड़ चुका था अब तो ना उसके पास पैसा था ना उसकी पत्नी थी और ना ही उसके माता-पिता सब लोग उसे अकेला छोड़कर चले गए थे अर्जुन अपनी ऐसी हालत देखकर फूट फूट कर रोने लगा अब अर्जुन को अपने पिता की हर वह बात उसे याद आने
लगी जो उसके पिता ने उसे समझाई थी उसकी ऐसी हालत का जिम्मेदार वह स्वयं ही था वह अपने ही आप से कहने लगा कि एक दिन ऐसा था जब मेरी गिनती नगर के बड़े-बड़े व्यापारियों में होती थी और आज मेरे पास खाने के लिए खाना तक नहीं है मैंने अपने पिता की सारी जमा पूंजी इस जुए में हरा दी है अब आज के बाद मैं कभी जुआ नहीं खेलूंगा अब मैं मेहनत करूंगा और अपना खुद का व्यापार फिर से खड़ा करूंगा यह सोचकर अर्जुन अपने ससुर से मिलने के लिए चला जाता है ताकि वह उनसे
कुछ धन उधार ले और अपना व्यवसाय शुरू कर सके सुबह होते ही वह अपने ससुर से मिलने के लिए निकल पड़ता है शाम होते-होते वह अपने ससुराल के घर तक पहुंच जाता है ससुराल पहुंचकर वह अपनी हालत को देखकर रोने लगता है अपने फटे पुराने कपड़ों को देखकर वह सोचता है कि वह अपने ससुराल ऐसे फटे पुराने कपड़ों में तो नहीं जा सकता है मेरी थोड़ी बहुत तो इज्जत है जो इज्जत है वह भी चली जाएगी मैं इस इज्जत को नहीं गवा सकता हूं मैं साफ सुथरे कपड़े पहनकर ही अपने ससुर से मिलने जाऊंगा फिर
उसे याद आया कि उसके पास पैसे तो है ही नहीं फिर वह नए कपड़े कहां से खरीदेगा अगर वह फटे पुराने कपड़ों में ससुराल जाएगा तो उसकी बच्ची खुशी इज्जत भी ऐसे ही खत्म हो जाएगी यह सब सोचकर वह इधर-उधर देखने लगा उसकी नजर एक कपड़े की दुकान पर जाती है लेकिन शाम हो जाने के कारण दुकान बंद हो चुकी थी अर्जुन ने निश्चय किया कि वह सुबह तक इंतजार करेगा जैसे ही दुकान खुलेगी तो मैं अपने ससुर का नाम लेकर कपड़े खरीद लूंगा और जब मुझे ससुर जी से पैसे मिल जाएंगे तब मैं इस
दुकान वाले को उधर चुका दूंगा अपने फटे पुराने कपड़ों में ससुराल वालों के घर जाने से अच्छा है कि मैं एक रात इस दुकान के बाहर ही निकाल लूं यह सब सोचकर अर्जुन उसे कपड़े की दुकान के बाहर ही सो जाता है रात्रि हो चुकी थी चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ था सभी लोग गहरी निंद्रा में सो चुके थे पर अर्जुन को नींद नहीं आ रही थी भूखे पेट भला कोई कैसे सो सकता है अर्जुन भूख के मारे इधर-उधर करवटें ले रहा था तभी अर्जुन ने देखा कि एक युवक चुपचाप दुकान के भीतर जा रहा
है उस युवक के भीतर जाने के कुछ देर बाद ही एक स्त्री भी दबे पांव उसी तरफ आई और दुकान के अंदर चली गई अर्जुन को स्त्री अंधेरे में भी जानी पहचानी लग रही थी अर्जुन ने उसे स्त्री को ठीक ढंग से देखने के लिए दुकान की खिड़की से दुकान के अंदर झांका तो उसने जो देखा वह देखकर उसके हो शद गए क्योंकि व औरत कोई और नहीं बल्कि उसकी ही पत्नी थी फिर अर्जुन ने अपनी पत्नी और उस युवक की बातें ध्यान से सुनी अर्जुन की पत्नी उसी युवक से कह रही थी कि हे
मेरे प्राण प्रिय मैं तुमसे बहुत प्रेम करती हूं और मैं तुमसे विवाह करके पूरी जिंदगी तुम्हारे साथ रहना चाहती हूं मैंने आज तुम्हें यहां एक राज की बात बताने के लिए बुलाया है ताकि हम विवाह के बाद आराम से रह सके हमारे पास किसी भी चीज की कोई कमी ना हो उस युवक ने बड़ी उत्सुकता के साथ पूछा कि कौन सा राज तुम किस राज की बात कर रही हो फिर अर्जुन की पत्नी ने उस युवक से कहा कि मेरे ससुर जी बहुत धनी व्यापारी थे उनके पास बहुत सारा धन था उन्होंने अपने जीवन में
बहुत कठिन परिश्रम किया था और खूब सारा धन कमाया था और उन्होंने अपने जीवन में पांच घड़े सोने के सिक्कों से भरवा करर मकान के चारों कोणों में खड्डा खोड़कर छुपा दिए थे यह काम उन्होंने इसलिए किया था ताकि बुरे समय में उस धन का उपयोग किया जा सके उन्होंने अपने बेटे को तो उस धन के बारे में कभी नहीं बताया क्योंकि उनको डर था कि कहीं वह उनका जुवारी बेटा उस धन को भी जुए में ना गंवा दे फिर मेरे ससुर की मृत्यु होने के बाद मेरी सास ने मुझे यह सब बताया था यह
सारी बात सुनकर वह युवक बोला कि अब मुझे क्या करना चाहिए तुम जैसा कहोगी मैं वैसा ही करूंगा फिर अर्जुन की पत्नी ने उस युवक से कहा कि तुम जल्दी से मेरे ससुराल जाओ और मेरे मूर्ख पति से वह मकान खरीद लो वह मकान तुम्हें आसानी से दे देगा क्योंकि उसने ने अपनी सारी जमा पूंजी तो जुए में हरा दी है अब उसके पास कुछ भी नहीं है और उसे पैसों की बहुत जरूरत है फिर तुम उसे मकान के चारों कोणों की खुदाई करना और उन पांचों घड़ों को अपने में कर लेना जिसके बाद हमें
कभी भी धन कमाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी और फिर हम पूरा जीवन खुश रहेंगे अपनी पत्नी की यह सारी बातें सुनकर के अर्जुन को गहरा आघात लगा वह सोचने लगा कि आज मेरी बुरी आदतों के कारण मेरी पत्नी मेरी नहीं है बल्कि वह पराए पुरुष के साथ है है उसका साथ दे रही है और उससे विवाह करने की योजना बना रही है लेकिन मैं ऐसा कभी होने नहीं दूंगा मैं अपनी कमाई हुई दौलत को इस आदमी के हाथों कभी नहीं जाने दूंगा माना कि मैं बुरी संगत में पड़ गया था मुझे जुआ खेलने की गंदी
लत लग गई थी लेकिन अब मुझे सब कुछ समझ में आ गया है अब मैं अपने पिता की दौलत को इस तरह लूटने नहीं दूंगा मुझे पता है कि मेरे पिता ने यह दौलत कितनी मेहनत से कमाई थी यह सब सोच अर्जुन तुरंत अपने नगर के लिए निकल जाता है सुबह होते-होते वह अपने घर पहुंच जाता है घर पहुंचकर वह बिना कोई समय गवाए अपने घर के चारों कोणों की खुदाई करना शुरू कर देता है खुदाई करने के थोड़ी ही देर बाद उसे वह पांचों घड़े मिल जाते हैं जिसे देखकर अर्जुन बहुत खुश हो जाता
है और अपने पिता को धन्यवाद करता है फिर वह उन चारों कोणों से सोने के सिक्कों को निकल लेता है और उन घड़ों में कोयला भरकर वापस उसी जगह पर रख देता है इसके बाद अर्जुन अपनी पत्नी के प्रेमी का इंतजार करता है कुछ दिनों के बाद उसकी पत्नी का प्रेमी उसके घर आता है वह उसके घर आकर उसे बोलता है कि मैंने सुना है कि तुमने अपना सब कुछ गवा दिया है पर तुम्हें पैसों की बहुत आवश्यकता है तुम मुझे यह अपना घर बेच दो क्योंकि मुझे इस नगर में अपना व्यवसाय शुरू करना है
मुझे घर की जरूरत है और तुम्हें पैसों की तुम्हें पैसे मिल जाएंगे और मुझे घर इससे हम दोनों की जरूरतें पूरी हो जाएंगी अर्जुन तो इसी मौके के इंतजार में था उसे उस आदमी की सारी योजना पहले से ही पता थी उसने तुरंत अपना मकान उसे बेच दिया और फिर अर्जुन मकान बेचने से मिली रकम और सोने के सिक्कों को लेकर दूसरे नगर को चला गया ताकि वह वहां जाकर अपना व्यवसाय शुरू कर सके वहां पहुंचकर अर्जुन ने अपना व्यापार शुरू कर दिया शुरू शुरू में उसे बहुत कठिनाई हुई उसने खूब मेहनत की और अपने
आप को बुरी आदतों से दूर रखा व्यापार में कभी-कभी थोड़ी-थोड़ी ऊंच नीच हो जाती थी लेकिन उसने सब कुछ संभाल लिया आखिर वह भी व्यापारी का ही बेटा था उसे व्यापार के बारे में सारी जानकारी थी धीरे-धीरे अर्जुन का व्यापार चल पड़ा थोड़े से दिनों में ही उसने बहुत सारा धन कमा लिया फिर उस नगर में रहने वाले एक सेठ की नजर अर्जुन पर पड़ती है सेठ ने अर्जुन को देखकर यह सोचा कि यह युवक बहुत बड़ा मेहनती है इसने इतने कम दिनों में अपने व्यापार को बुलंदियों पर पहुंचा दिया है मैं अपनी बेटी की
शादी इस युवक से कर देता हूं मुझे अपनी बेटी के लिए इससे अच्छा लड़का तो मिल ही नहीं सकता है फिर वह सेठ उसी वक्त के अर्जुन के पास आए और अर्जुन के सामने शादी का प्रस्ताव रख दिया अर्जुन ने भी सेठ का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया सेठ ने फिर कुछ दिन बाद अपनी बेटी की शादी अर्जुन से करवा दी अब अर्जुन के पास वापस पहले जैसा सब कुछ हो गया था उसने धन कमा लिया था इज्जत कमा ली थी और शादी भी हो गई थी अब उसके पास सब कुछ था अब अर्जुन अपना जीवन
हंसी खुशी से व्यतीत करने लगा अब उसके पास किसी भी चीज की कोई भी कमी नहीं थी उधर अर्जुन की पुरानी पत्नी का प्रेमी वह घर पाकर बहुत खुश हो रहा था लेकिन जब उसने मकान के चारों कोणों की खुदाई की तो उसे सोने के सिक्कों के बदले कोयले के भरे पांच घड़े मिले और कोयल से भरे घड़े को देखकर वह छाती पीट पीट कर रोने लगा उस युवक को अर्जुन की पत्नी पर बहुत क्रोध आ रहा था वह सोच रहा था कि काश उसने उसकी बात नहीं मानी होती उसने मुझे ठगा है अगर मैंने
उसकी बात नहीं मानी होती तो मुझे आज अपना धन नहीं गवाना पड़ता मुझे ना तो सोने के सिक्के प्रताप हुए बल्कि मेरे जीवन भर की पूंजी मेरे से और छीन गई और इस घर को खरीदने में मैंने अपना सारा धन गवा दिया है अब मेरे पास कुछ भी नहीं बचा है मैं तो बिल्कुल कंगाल हो चुका हूं उसे युवक ने निश्चय किया कि अब वो अपनी प्रेमिका यानी अर्जुन की पत्नी को सबक सिखाएगा वह वापस अपने गांव लौटा और अपनी प्रेमिका को बुलाया और कहा कि संध्या तूने मुझे ठगने की कोशिश की है मेरी सारी
जमा पूंजी तूने बर्बाद कर दी अब मेरे पास कुछ भी नहीं बचा है तूने क्या कहा था कि उन घड़ों में सोने के सिक्के मिलेंगे पर उन घड़ों में तो कोयले हैं तुमने मुझे बर्बाद कर दिया मुझे कहीं का नहीं छोड़ा मैंने तुम्हारे ऊपर विश्वास कैसे कर लिया था तूने मेरी जिंदगी बर्बाद कर दी है अब तू देख मैं तेरा क्या हाल करता हूं अब तू किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रहेगी यह कहकर उस प्रेमी ने अपने प्रेमिका के नाक और कान को छुरी से काट डाला और वहां से चला गया अब अर्जुन की
पत्नी अपनी ऐसी हालत पर फूट फूट कर रोने लगी वह इतनी बदसूरत हो गई थी कि अब वह अपने आप को कांच में देख ले तो खुद से खुद ही डर जाए अपनी ऐसी हालत की जिम्मेदार वह खुद ही थी अब वह जीवन भर इसके लिए प्र तावा करती रहेगी कि काश उसने ऐसा नहीं किया होता लेकिन अब जो हो गया सो हो गया बिते हुए कल को हम वापस नहीं ला सकते हैं बस बिता हुआ कल हमें कुछ सिखा कर जाता है उधर अर्जुन ने अपनी गलती से पहले ही सीख लिया था कि बुरे
कर्म करोगे तो परिणाम तो बुरा ही प्राप्त होगा पर अगर अच्छे कर्म करोगे परिश्रम और निष्ठा पूर्वक जीवन निर्वाह करोगे तभी हमें अच्छा परिणाम प्राप्त होगा हमारा जीवन तभी खुशियों से भरेगा किसी ने सत्य ही कहा है कि परिश्रम और लगन से ही कार्य करने पर हम जीवन में सफलता प्राप्त कर सकते हैं बुरे कार्य करके हमें असफलता ही प्राप्त होगी तो देखा दोस्तों जब तक अर्जुन बुरे कर्म कर रहा था जुए में अपना सब कुछ गवा रहा था उसको उसके कर्मों के हिसाब से बुरा फल मिल रहा था लेकिन फिर बाद में ऐसे ही
उसे यह एहसास हुआ कि बुरे कर्म उसे बर्बाद कर रहे हैं तो उसने बुरे कर्मों को छोड़कर अच्छे कर्म के रास्ते पर चलने ल लगा इसलिए दोस्तों चाहे देर से ही सही लेकिन बुरे कर्मों का फल परिणाम हमेशा बुरा ही होता है वही दूसरी ओर अच्छे कर्मों का परिणाम सदा जीवन में हितकारी होता है तो दोस्तों कैसी लगी आपको यह कहानी आप हमें कमेंट सेक्शन में जरूर बताना और अच्छी लगी हो तो इस चैनल को सब्सक्राइब जरूर कर लेना तो चलिए मिलते हैं ऐसी ही कोई नई कहानी में तब तक के लिए अपना ख्याल रखें
धन्यवाद और नमोह बुद्धा
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