Can We Reverse Global Warming? A New Breakthrough!
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GetsetflySCIENCE by Gaurav Thakur
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Video Transcript:
यह है नॉर्थ पोल के आर्कटिक रीजन की बर्फ सितंबर 1984 में और यह है उसी रीजन की बर्फ सितंबर 2019 में यह नासा द्वारा कैप्चर डाटा है जो दिखाता है कि सिर्फ 40 सालों के अंदर नॉर्थ पोल की बर्फ किस रफ्तार से पिघल रही है हर 10 सालों में करीब 12. 2 पर की रफ्तार से ऑफिशियल साइंटिफिक रिकॉर्ड्स के हिसाब से अब इसी आर्कटिक सी आइस को पिघलने से रोकने के लिए एक डच स्टार्टअप है कॉल्ड आर्कटिक रिफ्लेक्शंस जिसके साइंटिस्ट एक ऐसा मेगा प्रोजेक्ट लॉन्च कर रहे हैं जो मार्स कॉलोनाइजेशन जितना ही बड़ा इनिशिएटिव होने वाला है वो इस 15. 5 मिलियन स्क्वायर किलोमीटर यानी कि इतना बड़ा एरिया जिसमें पांच इंडिया जैसे देश समा सकते हैं इतने बड़े एरिया को रिफ्रीज करने जा रहे हैं विदन अ डेडलाइन ऑफ जस्ट सिक्स इयर्स और इसके लिए वो पूरे बर्फीले नॉर्थ पोल पर पैराडॉक्सिकली नमकीन पानी छिड़कने वाले अब जिन्हें नहीं पता उन्हें थोड़ा सा बैकग्राउंड दे दूं नमकीन पानी ट्रेडिशनल कॉल्ड एज ब्राइम सारे बर्फीले देश अपने रास्तों पर बर्फ जमने से रोकने के लिए छिड़क हैं क्योंकि जब बर्फ गिरती है तो वो इसी ब्राइंस जो चीज टिपिकली बर्फ को पिघला है उसी से ही ये साइंटिस्ट बर्फ को रिफ्रीज कैसे करने वाले हैं वेल ये अपने आप में ही काफी वियर्ड मगर फैसटिकट फिलहाल इस प्रोजेक्ट के जरा स्केल के बारे में सोच कर देखो यह प्रोजेक्ट कितना मैसिव होने वाला है यहां पर हम सिर्फ हमारे हिमालय में मौजूद ग्लेशियर्स को ही फ्रोजन नहीं रख पाते जिस वजह से जगह-जगह पर बाढ़ आ जाती है तबाही मचती है लोग मरते हैं और वहां पर साइंटिस्ट लिटरली पांच भारत जितने एरिया को फ्रीज करने जा रहे हैं सो नेचुरली यहां पर यह सवाल पैदा होता है कि यार ये इतने बड़े सीमिंगली इंपॉसिबल प्रोजेक्ट को करने की आखिर जरूरत ही क्यों पड़ रही है आई मीन दुनिया के किसी कोने में यह आर्कटिक पड़ता है वहां पर जो कुछ भी हो रहा है उससे हमें क्या ही फर्क पड़ रहा होगा राइट एंड वेल यहीं पर हम सब गलत हो जाते हैं व्हेन आई सेड इन साइंटिस्ट ने अगले 6 सालों की डेडलाइन रखी हुई है अपने ऊपर वेल एक्चुअली में ये डेडलाइन उन्होंने खुद डिसाइड नहीं की है बल्कि यह प्रकृति ने हमारे लिए डिसाइड कि है क्योंकि अकॉर्डिंग टू मोस्ट रिसेंट एस्टिमेट्स अगले छ सालों में मोर स्पेसिफिकली सितंबर 2013 तक हमें पहली बार एक ऐसा समर देखने को मिलेगा जिसमें आर्कटिक सी आइस पूरी तरीके से मेल्ट हो चुका होगा एंड यू नो व्हाट्स वर्स अगर ऐसा हुआ तो नासा साइंटिस्ट क्रिस्टीना पिस्टोन का कहना है कि अगले 25 सालों में हम जितना कार्बन डाइऑक्साइड इमिट करेंगे और उससे जितनी ज्यादा गर्मी बढ़ेगी उतनी गर्मी 2030 के बाद तुरंत एक झटके में बढ़ जाएगी उन्होंने इसे ऑफिशियल सैटेलाइट इमेजिंग पैटर्स के जरिए डिस्कवर किया है जिसका रिकॉर्ड आप स्क्रीन पर देख सकते हो अब ऐसे में इस साल की गर्मी तो तो आपको याद ही होगी 50 डिग्री टच हो गया था अकेले मार्च से म के बीच में ऑल ओवर इंडिया करीब 25000 लोगों को हॉस्पिटलाइज करना पड़ा जिनमें से 56 लोग मारे भी गए सिर्फ इस गर्मी के कारण इनफैक्ट इंडिया क्यू ऐसे सिमिलर ट्रेंड्स पूरे दुनिया भर में देखे गए 2014 से 2023 ये हमारे इंसानी इतिहास के 10 सबसे गर्म साल रहे जिसमें से पिछला ही साल 2023 ऑन रेकॉर्ड वाज द हॉटेस्ट ईयर एवर इतनी गर्मी नहीं पड़ती पर जितनी गर्मी आज है इतनी गर्मी मैंने अभी तक लाइफ में बता रहा हूं इतनी गर्मी मैंने झेला नहीं है आल्सो दुनिया में कुछ ऐसे कोस्टल सिटीज और गांव भी है जो समुंदर के नीचे डूब रहे जैसे कि इंडोनेशिया के इन गांवों को देखो इंडोनेशिया के जावा आइलैंड के नॉर्दर्न कोस्ट पर बसे ये गांव अभी 2005 से पहले ही पूरी तरह से सूखे हुए करते थे बट आज हालत ऐसी हो गई है कि वहां पर बच्चों को तैर के स्कूल जाना पड़ रहा है और माएं लो टाइट का इंतजार करती है घर के काम करने के लिए देन सेम घटना थाईलैंड की कैपिटल सिटी बैंकॉक के साथ भी घट रही है ये सब समुंदर के बीच में जो पोल्स आप देख रहे हो ना ये इलेक्ट्रिसिटी के पोल्स है क्योंकि वहां आज से कुछ दशक पहले एक गांव हुआ करता था दुनिया भर में ऐसे कई-कई और शहर है जैसे कि नेदर ैंसली का फेमस वेनिश शहर यूएसए के न्यू ऑरलियंस वर्जीनिया बीच वाले इलाके नाइजीरिया का लागो शहर बांग्लादेश का कैपिटल धाका एंड लास्ट बट नॉट द लीस्ट इवन हमारा फाइनेंशियल कैपिटल मुंबई ये वो शहर है जहां पर सी लेवल तेजी से राइज हो रहा है और ये साल प्रति साल डूबते चले जा रहे हैं और आर्कटिक आइस के पूरी तरह तरह से पिघलने के बाद इनमें से एटलीस्ट कुछ शहरों को तो हम खुद अपनी आंखों से सामने गायब होते हुए देखेंगे यानी कि आर्कटिक सी आइस को बचाना हमारे लिए करो या मरो वाली सिचुएशन हो गई है और अगर अब हमने कुछ नहीं किया तो यह इकलौता प्लानेट जिस पर जीव रह पाते हैं ये भी जीवन के लिए एक लिविंग हिल बन जाएगा सो आर्कटिक रिफ्लेक्शंस के साइंटिस्ट इसे रोकने के लिए क्या कर रहे हैं क्या वो समय रहते पांच इंडिया जितने बड़े एरिया में फैले आर्कटिक सी आइस को फिर से रिफ्रीज कर पाएंगे वेल इसका जवाब एक्चुअली में काफी इंटरेस्टिंग है लेकिन उसके बारे में डिस्कस करने से पहले इसका जो रूट प्रॉब्लम है यानी कि ग्लोबल वार्मिंग की वजह से जो सनलाइट इतनी इंटेंस हो रही है और गर्मी बढ़ रही है इससे पर्सनली मुझे बहुत दिक्कत हो रही है आई एम श्यर आपको भी हो रही होगी देखो आपको तो पता ही होगा हमारे प्रोफेशन में लुक्स का भी एक बहुत बड़ा रोल होता है सो शूट से पहले मैं हमेशा अपने घर से बाल सेट करके तो निकलता हूं लेकिन गर्मी और ह्यूमिडिटी इतनी है कि सेट पहुंचने से पहले ही बाल खराब हो जाते हैं अब यस हेयर वैक्स जरूर लगा सकते हैं लेकिन क्योंकि इसमें केमिकल्स होते हैं मैं पर्सनली इसे अवॉइड करता था अंटच्ड हेयर वैक्स ये नेचुरल आर्गन ऑयल से बना हुआ हेयर वैक्स है जिसमें कोई हार्मफुल केमिकल्स नहीं है प्लस ये नॉन स्टिकी और एंटी डैंड्रफ भी है इससे मैं अपने बाल कैसे भी सेट करूं ठ घंटों तक ये हेयर को होल्ड करके रखता है सो बाल बिखरने का कोई टेंशन नहीं और इसीलिए ये एवरीडे यूज के लिए एकदम परफेक्ट है और सबसे इंपोर्टेंट बात अगर आप मेरे डिस्क्रिप्शन लिंक से इस प्रोडक्ट को परचेस करते हो तो पहले 200 कस्टमर्स के लिए ये प्र प्रोडक्ट एब्सलूट फ्री है सो डेफिनेटली चेक आउट ट्रू हेयर एंड स्किन नेचुरल हेयर वैक्स लिंक इज इन द डिस्क्रिप्शन एंड नाउ लेट्स जंप बैक टू द टॉपिक एंड डिस्कस क्या साइंटिस्ट समय रहते पांच इंडिया जितने बड़े एरिया में फैले हुए आर्कटिक रीजन के सी आइस को फिर से रिफ्रीज कर पाएंगे कि नहीं वेल इस मार्स कॉलोनाइजेशन जितने मुश्किल मेगा प्रोजेक्ट को अंजाम देने के लिए आर्कटिक रिफ्लेक्शंस के साइंटिस्ट ने एक काफी जीनियस स्ट्रेटेजी ढूंढ निकाली है जिससे कम से कम खर्च और मेहनत में हम ज्यादा से ज्यादा आर्कटिक को फिर से रिफ्रीज कर पाएंगे ये स्ट्रेटेजी इनफैक्ट इतनी कारगर साबित हो रही है कि इवन यूनाइटेड नेशंस ने इनके काम से खुश होकर इस नए नवेले स्टार्टअप को पूरी दुनिया की तरफ से आर्कटिक सी आइस रेस्टोरेशन प्रोजेक्ट का लीडर चुन लिया है दरअसल हमारे नॉर्थ पोल्स के पास एक जगह है कॉल्ड स्वल बार्ड आर्किपेलागो ये नॉर्वे के अंडर आता है एंड इट इज वन ऑफ द फास्टेस्ट वार्मिंग प्लेसेस ऑन दी प्लानेट जो साल दर साल हमारे पृथ्वी के एवरेज टेंपरेचर से भी करीब तीन गुना तेजी से गर्म हो रहा है सो आर्कटिक रिफ्लेक्शंस ने यहां पर क्या किया ये अपने छोटे डीजल पर चलने वाले वाटर पंप्स लेकर स्वल बार्ड पहुंच गए और उस पंप की मदद से वहां पर बर्फ के नीचे मौजूद आर्कटिक ओशन के खारे पानी को ऊपर स्प्रे करने लग गए ताकि वो पानी ऊपर की ठंडी हवा से फ्रीज होकर ऑलरेडी एसिस्टिंग बर्फ पर एक एक्स्ट्रा लेयर बनाए बेसिकली आपने देखा होगा हिस्ट्री टीवी पर एक शो आया करता था कॉल्ड आइस रोड ट्रकर्स जिसमें कनाडा और अलास्का के ट्रकर्स को थंड में जमी रिवर्स और लेक्स पर बड़े-बड़े ट्रेलर्स चलाते हुए फिल्म किया जाता था वेल उसमें वो जो फ्रोजन रिवर्स दिखाए जाते थे ना वो भी हर साल इसी टेक्निक का इस्तेमाल करके फ्रीज किए जाते हैं पर यहां पर आता है एक कैच अगर आपको याद होगा तो मैंने शुरुआत में कहा था कि कई सारे देश हैं जो स्नोफॉल से पहले अपने रास्तों पर नमकीन पानी छिड़क हैं ताकि रास्तों पर बर्फ ना जमे सो क्या आर्कटिक रिफ्लेक्शंस का प्लान बैकफायर नहीं होगा क्या हम आर्कटिक सी को रिफ्रीज करने के बजाय उसे और मेल्ट नहीं कर देंगे वेल ये डाउट ना टोटली वैलिड है और इसीलिए कनाडा और अलास्का में बर्फ के ऊपर फ्रेश वाटर पंप किया जाता है ब्राइक सॉल्ट वाटर नहीं लेकिन आर्कटिक में हम सॉल्ट वाटर भी इस्तेमाल कर सकते हैं क्योंकि वहां पर सॉल्ट वाटर भी फ्रेश वाटर की तरह ही काम करता है लेट मी एक्सप्लेन यू हाउ सो जब हम पानी में नमक यानी कि और यही वजह है कि फ्रेश वाटर जहां पर 0 डिग्री सेल्सियस पर फ्रीज होता है लेकिन सी वाटर ऑन दी अदर हैंड ऑन एन एवरेज अराउंड -20 डि सेल्सियस के टेंपरेचर में फ्रीज होता है सो अब आर्कटिक में सॉल्ट वाटर फ्रेश वाटर की तरह आखिर कैसे काम करता है सिंपल फ्रेश वाटर हो या सी वाटर आर्कटिक का टेंपरेचर तो - 40° सेल्सियस होता है ना इतने थंड में दोनों ही फ्रीज हो जाते हैं और इसीलिए वहां पर खारा सी वाटर आर्कटिक आइस को मेल्ट नहीं करेगा प्लस इसके साथ इसके अन्य फायदे भी तो है आर्कटिक रिफ्लेक्शंस का ये वाटर पंप देखो ये कितना पोर्टेबल है यट कितना पावरफुल ऐसे पंप्स को पूरे आर्कटिक आइस पर जगह जगह पर फिट करना कंपेरटिवली मच इजियर है देन पूरे आर्कटिक को रिफ्लेक्टिव ग्लास बीड्स या वाइट फैब्रिक से कवर करना सनलाइट को रिफ्लेक्ट करने के लिए जैसे कि प्रीवियस स्टडीज ने सजेस्ट किया था आल्सो या आर्कटिक रिफ्लेक्शंस को इस बात का एहसास जरूर है कि इन पंप्स को फिलहाल तो फ्यूल लगता है जो कि कार्बन डाइऑक्साइड एमिशंस करके पैराडॉक्सिकली आइस मेल्टिंग में ही कंट्रीब्यूट करता है और इसीलिए वो इनिशियल ट्रायल्स के बाद नॉर्थ पोल पर विंड फार्म्स लगाने वाले ताकि उन पंप्स को ग्रीन एनर्जी के मदद से चलाया जाए बट फ्रेंड्स एज विद एनी ग्लोबल एनवायरमेंटल इनिशिएटिव इस इतने नोबल इनिशिएटिव को तक क्रिटिसिजम मिल रहे हैं इसे अननेसेसरी हाइप बता करर या फिर इसके थ्रेट को डाउन प्ले करवाकर लेट मी टे यू फस बा ग्लोबल वार्मिंग डों व अब कई लोग तो आज भी ऐसा मानते हैं और आपने भी यह कई कई बार सुना होगा कि ग्लोबल वार्मिंग तो बस एक होस है हमारी पृथ्वी नेचुरली भी हर कुछ हजार सालों में आइस एजेस और गर्म फेजेस से गुजरती है नेचुरल साइकल्स को डिसर पट करने में हमारा हम ह्यूमंस का कोई भी कंट्रीब्यूशन नहीं है सो वेल इन बातों के पीछे की सच्चाई आखिर क्या है साइंस क्या कहता है सो वेल टू आंसर दिस सबसे पहले तो यह समझो कि ये सोच आखिर पैदा ही कहां से होती है और फिर बाकी के चीजें अपने आप ही सेंस बनाने लगी देखो साल 1850 में ना जब पहली बार हमने ग्लोबल टेंपरेचर डटा रिकॉर्ड करना शुरू किया था तब पृथ्वी का एवरेज ग्लोब ग्लोबल टेंपरेचर 13.
7 डिग्री सेल्सियस हुआ करता था लेकिन उसके बाद जब से यूरोपिय ने इंडस्ट्रीज लगाना शुरू किया कंस्ट्रक्शन करना मोटर इंजंस बनाना तो पृथ्वी का एवरेज टेंपरेचर हर 10 सालों में 0. 06 डि से बढ़ने लगा और 1982 के बाद जब इंडस्ट्रियल इजेशन और तेजी से बढ़ा चाइना जापान और साउथ कोरिया जैसे देश भी इसमें कूद पड़े तो अब एवरेज ग्लोबल टेंपरेचर हर 10 सालों में2 डिग्री सेल्सियस यानी कि तीन गुने ज्यादा तेजी से बढ़ने लग गया अब यहां पर ना दो मेजर लूप होल्स है या कह सकते हैं छलावा हैं पहला तो यह कि आज का करंट ग्लोबल एवरेज टेंपरेचर है 15. 8 डिग्री सेल्सियस तो कई लोगों को ऐसा लगता है कि पृथ्वी ओवरऑल काफी कूल है एंड सेकंड 1850 से लेकर अब तक सिर्फ 1.
35 डिग्री सेल्सियस का ही तो टेंपरेचर राइज हुआ है जो कि सुनने में इतना बड़ा जंप नहीं लगता और एगजैक्टली यहीं पर लोग सिचुएशन की गंभीरता को नजरअंदाज कर जाते हैं और ग्लोबल वार्मिंग को एक हाइप या फिर एक हक्स बुला देते हैं वो ये नहीं समझते कि व्हेन वी से एवरेज ग्लोबल टेंपरेचर वो पोल्स की थंड से लेकर इक्वेटर की गर्मी तक का एक एवरेज टेंपरेचर होता है सो अगर ये एवरेज सिर्फ 1 डिग्री से भी बढ़ रहा है तो इसका मतलब होता है कि जो गर्मी वाली साइड है वहां का तापमान एक अच्छे खासे मार्जिन से बढ़ रहा है प्लस हमारी पृथ्वी एक कॉम्प्लिकेटेड इकोसिस्टम है जिसमें कई कॉम्प्लेक्शन टेंपरेचर का होना जरूरी है जैसे फॉर एग्जांपल हमारा बॉडी टेंपरेचर होता है अराउंड 37 डिग्री सेल्सियस अगर हमारा टेंपरेचर इससे 1 डिग्री भी बढ़ जाता है तो हम उसे फीवर कहते हैं और ये एक साइन होता है कि शरीर में कुछ गड़बड़ी हो रही है जबकि सिर्फ एक ही तो डिग्री बढ़ा है ना पृथ्वी के केस में भी बिल्कुल ऐसा ही होता है सिर्फ 1 डिग्री से भी अगर ग्लोबल एवरेज टेंपरेचर राइज होता है तो ये एक अनहेल्दी इकोसिस्टम क्रिएट करता है जो एक कैस्केड ऑफ इवेंट्स को ट्रिगर करता है जिससे और तेजी से फिर टेंपरेचर राइज होने लगता है जो सिलसिला चलता रहेगा जब तक सारी बर्फ पिघल ना जाए और प्रलय ना आ जाए एंड लेट मी प्रूव दिस टू यू कि ये कैसे होता है इसे ध्यान से समझना और नेक्स्ट टाइम अगर आपको कोई भी बोले कि ग्लोबल वार्मिंग एक हक्स है तो इन फैक्ट से उनकी बोलती बंद करना देखो हमारी पृथ्वी को हर समय सूरज से करीब 342 वाट्स पर मीटर स्क्वा जितनी एनर्जी मिलती है लेकिन जो वाइट क्लाउड्स है वाइट स्नो है और बाकी रिफ्लेक्टिव सरफेस है वो इसमें से करीब 107 वाट्स पर मीटर स्क्वा एनर्जी वापस रिफ्लेक्ट कर देते हैं और तभी जाकर हमारा ग्लोबल एवरेज सालों साल काफी स्टेडी रहता है अब यहां पर प्रॉब्लम यह है कि सारे ग्रीन हाउस गैसेस मिलके टोटल 2. 6 यूनिट्स सोलर एनर्जी एक्स्ट्रा एब्जॉर्ब करते हैं दन यूजुअल और ये टेक्निकली सिर्फ 1. 1 पर ज्यादा एनर्जी अब्जॉर्प्शन है लेकिन व्हाट पीपल डोंट अंडरस्टैंड इज दैट इवन 1 पर भी अगर एनर्जी एब्जॉर्ब अब्जॉर्प्शन बढ़ गया तो टोटल एनर्जी एब्जॉर्ब 3 पर बढ़ जाता है क्योंकि जब ग्लोबल वार्मिंग बढ़ती है तो उससे सिर्फ पोल्स ही नहीं पिघलते उससे एक पूरा चेन रिएक्शन ट्रिगर होता है जो इस पृथ्वी के हर एक जीव को इफेक्ट करता है सबसे पहले तो पोलर आइज कैप्स मेल्ट होने लगते हैं तो नेचुरली वाइट स्नो नहीं रहेगा टू रिफ्लेक्ट द सनलाइट तो सनलाइट ज्यादा रिफ्लेक्ट नहीं होगी तो समुंद्र का पानी ज्यादा इवेपरेट होने लगेगा और ज्यादा भाव बनने लगेगा जो भी एक ग्रीन हाउस गैस है प्लस हमारे पोलर आइज कैप्स एक तरह से एक ढक्कन का भी काम करते हैं जो जमीन की गहराइयों में ट्रैप्ड मीथेन को लीक होने से रोकते हैं अभी स्वॉल बाड का ही बताया जा रहा है कि अकेला स्वॉल बार्ड भी अगर पूरी तरह से पिघल गया तो वह हर साल एटलीस्ट 2310 टंस ऑफ मीथेन हर साल एटमॉस्फियर में लीक करेगा और मीथेन अगेन ठहरा एक डेडली ग्रीन हाउस गैस जो और ग्लोबल वार्मिंग क्रिएट करेगा जिससे और आइस कैप्स मेल्ट होंगे और ट्रैप्ड ग्रीनहाउस गैसेस रिलीज होंगे और यह परपे चुअल साइकिल चलता रहेगा इसके बाद जब ओशनस तपते हैं तो कार्बन डाइऑक्साइड भी उसमें डिजॉल्वेशन वो एटमॉस्फियर में फ्लोट होने लगता है व्हिच ट्रिगर्स इवन मोर ग्लोबल वार्मिंग एंड लास्टली अनदर मैकेनिज्म दैट एक्ट्स एज अ पोटेंशियल ट्रिगर जब गर्मी बढ़ती है तो जगह-जगह ड्राउंस यानी कि सूखा पड़ जाता है और उससे फॉरेस्ट फायर्स ट्रिगर होते हैं जिससे वंस अगेन ग्रीन हाउस गैसेस रिलीज होते हैं और तापमान और भी ज्यादा बढ़ जाता है सो अब इसमें इंसानों की गलती कहां पे आती है वेल आप ये डाटा देखो वो जो 2.