एक ऐसी अद्भुत कहानी है जो मैं आज आपको ध्यानपूर्वक सुनाऊंगा और इसे सुनने के बाद आप ज्यादा सोचना डरना और चिंता सब छोड़ देंगे और आपका मन खुशियों से और प्रसन्नता से भर जाएगा तो चलिए आज की कहानी की शुरुआत करते हैं दोस्तों एक समय की बात है किसी नगरी में एक युवक रहा करता था वह युवक अत्यंत दुखी था वह बहुत निराश था उसे यह समझ नहीं आ रहा था कि आखिर इस दुनिया में हर व्यक्ति अपने मतलब के लिए क्यों जीता है उसे हर जगह हर कोई केवल स्वार्थ ही नजर आता था वह
हमेशा यही सोचा करता कि उससे कोई प्यार नहीं करता उसकी कोई परवाह नहीं करता सब उससे मतलब के लिए अपने संबंध रखते हैं मतलब खत्म हो जाते ही सब उसे अपने आप से दूर कर देते हैं दोस्तों हमारे जीवन में भी कुछ ऐसा ही होता है हम भी हमेशा किसी ना किसी का साथ ढूंढते ही रहते हैं और जब हमें किसी का साथ नहीं मिल पाता तो हम अपने आप को अकेला महसूस करते हैं कमजोर महसूस करते हैं हमें लगता है कि इस दुनिया में हमारे जैसे कोई है ही नहीं हमें कोई प्यार नहीं करता
हमारी कोई परवाह नहीं करता लेकिन हम यह भूल जाते हैं कि अंत में तो हर किसी को अकेले ही जाना है वह व्यक्ति अपने इस अकेलेपन से बहुत परेशान हो चुका था जिस कारण एक दिन उसने अपना घर छोड़ दिया और एक रास्ते पर निकल पड़ा उसके मन में कई सारे विचार थे उन विचारों में मग्न होकर वह उस रास्ते पर आगे की ओर बढ़ता ही जा रहा था तभी उसे रास्ते में एक आश्रम दिखाई पड़ा वह उस आश्रम की ओर आगे बढ़ा तभी उसने देखा कि एक गुरु अपने शिष्यों को ध्यान करना सिखा रहे
हैं और उन्हीं शिष्यों में से एक शिष्य ने अपने गुरु से कहा है गुरु आखिर यह ध्यान क्या है और इस ध्यान को करने से हमें क्या लाभ तभी वह गुरु अपने उस शिष्य के इस सवाल का जवाब देते हुए कहते हैं पुत्र ध्यान ही सच और ध्यान हमें अकेला कर देता है हम जितने ज्यादा अकेले होते जाते हैं उतना ही हम ध्यान में उतरते चले जाते हैं और यही अकेलापन तुम्हें सत्य के मार्ग पर ले जाता है तुम्हें सत्य की प्राप्ति करवाता है वह युवक आश्रम के बाहर खड़े होकर यह सब कुछ देख रहा
था सुन रहा था जैसे ही उसने उन गुरुवर के मुख से यह सारी बातें सुनी वह दौड़ा दौड़ा उन गुरुवर के पास आया और कहने लगा है गुरु यदि ध्यान हमें अकेला कर देता है तो इसका मतलब यह हुआ कि मैं इन सब चीजों में श्रेष्ठ हूं आप तो ध्यान का सहारा लेकर अकेले होते हैं लेकिन मैं तो ऐसे ही अकेला हूं मेरा ऐसा कोई नहीं है जिसे मैं अपना कह सकूं जो मेरी परवाह करता हो जो मेरा ख्याल रखता हो और मैं अपनी राह पर अकेला ही चलता चला जा रहा हूं उस व्यक्ति की
यह सारी बातें सुनकर उन गुरुवर ने उस व्यक्ति को ध्यानपूर्वक देखा और उसके बाद उससे कहते हैं भंते अगर तुम अकेले हो तो तुम्हारे पीछे तुम्हारा पूरा परिवार तुम्हारे मित्र तुम्हारे शत्रु तुम्हारे सगे संबंधी इन सबको लेकर तुम कहां जा रहे हो उन गुरुवर के मुख से यह बात सुनकर वह व्यक्ति चौक उठा और उसने तुरंत ही पीछे मुड़कर देखा तो वहां पर कोई नहीं था तभी वह उन गुरुवर से कहता है हे गुरुवर कौन है मेरे पीछे कोई तो नहीं ना मेरे परिवार वाले ना मेरे मित्र ना मेरे शत्रु और ना ही मेरे सगी
संबंधी मैं तो सबको पीछे छोड़ आया हूं क्योंकि कोई मुझे नहीं पूछता कोई मेरी परवाह नहीं करता कोई मेरा ख्याल तक नहीं रखता यहां तक कि मेरी कोई आवाज तक नहीं सुनना चाहता लेकिन जब किसी के ऊपर कोई समस्या आती है तो वह मुझे अवश्य याद करता है पर बाकी समय पर वह मुझे पूछते तक नहीं उन्हें यह तक खबर नहीं होती कि मैं किस हाल में हूं मैं जिंदा भी हूं या नहीं उन सबको इन सब चीजों से कोई फर्क नहीं पड़ता उन गुरुवर ने उस व्यक्ति की यह बातें ध्यान पूर्वक सुनी और उसके
बाद उस युवक से कहते हैं भंते तुम सही कह रहे हो लेकिन जब तक तुम इन सभी को छोड़कर नहीं आते तब तक तुम भला अकेले कैसे हो सकते हो वह व्यक्ति एक बार फिर से आश्चर्य चकित होकर पीछे मुड़कर देखता है और फिर उन गुरुवर से कहता है है गुरुवर यहां पर तो कोई नहीं है मैं अकेला ही यहां पर आया हूं लग रहा है कि आप मेरा मजाक उड़ा रहे हैं मेरे पीछे कोई नहीं है आप खुद देख सक तो फिर आप ऐसा क्यों कह रहे हैं कि जाओ और इन्हें छोड़कर आओ जब
मेरे साथ कोई है ही नहीं तो मैं भला उन्हें कहां छोडूं कैसे छोडूं उस युवक की यह सारी बातें सुनकर वह गुरुवर मुस्कुराने लगे और उस युवक से कहते हैं भंते आखिर तुम मुझसे क्या चाहते हो इस पर वह युवक उन गुरुवर से कहता है हे गुरुवर मैं आपका शिष्य बनना चाहता हूं मुझे कोई साथी चाहिए मुझे अपना शिष्य बना लीजिए मैं जीवन भर आपका आभारी रहूंगा उस युवक की यह बातें सुनकर उन गुरुवर ने कहा भंते तुम चाहो तो यहां पर एक महीने रह सकते हो उसके बाद ही मैं यह निर्णय कर पाऊंगा कि
क्या मुझे तुम्हें अपना शिष्य बनाना चाहिए या फिर नहीं लेकिन तुम्हें मेरी एक बात माननी होगी तुम्हें इन 30 दिनों के अंदर ध्यान का अभ्यास करना होगा अगर तुम यह कर सकते हो तो तुम यहां पर अगले एक महीने के लिए रुक सकते हो अन्यथा तुम्हारे लिए यहां पर कोई जगह नहीं उस व्यक्ति ने काफी सोच विचार कर उन गुरुवर से कहा है गुरुवर आप जैसा कहेंगे मैं वैसा ही करूंगा आप चाहते हैं कि मैं इन 30 दिनों में ध्यान का अभ्यास करूं तो मैं यह करने के लिए तैयार हूं उस व्यक्ति ने उन गुरुवर
की बात मान ली और आश्रम में ही रुक गया अगले दिन सुबह सुबह वह गुरुवर उस व्यक्ति के पास आए और उस व्यक्ति से कहने लगे भंते तुम किससे बात कर रहे हो तुम्हारा ध्यान कहां है इस पर वह व्यक्ति जवाब देते हुए कहता है हे गुरुवर मेरे साथ तो कोई नहीं है मैं भला किससे बात करूंगा मैं तो अकेला हूं तभी वह गुरुवर उस व्यक्ति से कहते हैं ठीक है लेकिन अब ध्यान लगाओ क्योंकि तुमने मुझे वचन दिया था कि इन 30 दिनों में तुम ध्यान का अभ्यास करोगे उन गुरुवर के कहने पर वह
व्यक्ति ध्यान करने बैठ जाता है लेकिन पहले दिन उसे ध्यान करने में बहुत तकलीफें आती हैं बहुत सारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है यहां तक कि वह ढंग से लगातार बैठ भी नहीं पा रहा था उसके पैर मानो सुन्न से हो जाते और उसका पैर मानो काम करना ही बंद कर देता यह सारी बातें वह गुरुवर देख रहे थे तभी उन गुरुवर ने उस व्यक्ति से कहा बनते तुम जितना देर चाहो उतना देर बैठ सकते हो यह ऐसा कोई जरूरी नहीं है कि तुम एकाएक लगातार बैठे ही रहो यदि तुम्हें थोड़ी तकलीफ है तो
तुम उठ सकते हो टहल सकते हो और फिर आकर बैठ सकते हो इतना कहकर वह गुरुवर वहां से चले गए अगले दिन सुबह सुबह फिर वह उस व्यक्ति के पास आए और उस व्यक्ति से कहने लगे भंते कौन है किससे बातें कर रहे हो कोई आया है क्या उन गुरुवर की इस बात का जवाब देते हुए वह व्यक्ति उन गुरुवर से कहता है है गुरुवर यहां पर तो कोई नहीं है आप खुद देख लीजिए मैं भला किससे बातें करूंगा तभी वह गुरुवर एक बार फिर उस व्यक्ति से कहते हैं चलो ध्यान का अभ्यास करो तभी
वह व्यक्ति उन गुरुवर से कहता है है गुरुवर क्या केवल आंखें बंद करके बैठ जाना इसे ही ध्यान कहते हैं अगर इसे ही ध्यान कहते हैं तो यह तो बड़ा ही आसान है और इसे तो कोई भी कर सकता है केवल आंखें बंद करके बैठना ही तो है इसका जवाब देते हुए वह गुरुवर उस व्यक्ति से कहते हैं भंते केवल आंखें बंद करके बैठ जाना इसे ध्यान नहीं कहते ध्यान करने के लिए तुम्हें अपने मन को एकाग्र करना होगा अपने मन को किसी एक चीज पर लगाना होगा वह कोई भी चीज हो सकती है बाहर
की कोई आवाज या तुम्हारे भीतर से आने वाली यह सांसे इन सांसों के अंदर और बाहर होने की आवाज तुम ऐसी किसी भी चीज पर ध्यान लगा सकते हो जो लगातार वर्तमान समय में घट रही है ताकि तुम्हारा पूरा ध्यान उस चीज पर एकाग्र हो और तुम्हारा ध्यान कहीं भी भटके नहीं जिस कारण तुम उस पर ध्यान लगा पाओगे और एक बात और याद रखना जब तुम उस चीज पर ध्यान लगाओगे तो तुम्हारा ध्यान हटना नहीं चाहिए इतना कहकर वह गुरुवर वहां से चले गए अगले दिन जब वह सुबह सुबह एक बार फिर उस व्यक्ति
से मिलने आए तो उन्होंने एक बार फिर उस व्यक्ति सेहा कहा भंते आज कौन आया है किससे बातें कर रहे हो बड़ी जोर-जोर से आवाज आ रही है तुम यहां पर खुद शांति पाने आए हो या फिर दूसरों को अशांत करने के लिए वह व्यक्ति उन गुरुवर से कहता है है गुरुवर पर यहां पर तो कोई है ही नहीं तो मैं भला किससे बात करूंगा यहां तक कि अभी तक मेरे मुख से एक शब्द तक नहीं निकला है तो फिर आपको कैसे जोर-जोर की आवाजें कहां से आ रही हैं और जब मैंने एक शब्द भी
नहीं बोला तो मैं भला दूसरों के लिए अशांति का कारण कैसे बन सकता हूं तभी वह गुरुवर उस व्यक्ति से कहते हैं ठीक है ठीक है चलो ध्यान का अभ्यास करो तभी वह व्यक्ति उन गुरुवर से कहता है हे गुरुवर मेरा एक प्रश्न है क्या मैं आपसे पूछ सकता हूं तभी वह गुरु व उस व्यक्ति से कहते हैं पूछो तुम्हें क्या पूछना है तभी वह व्यक्ति उन गुरुवर से कहता है है गुरुवर आप कहते हैं किसी भी एक चीज पर ध्यान लगाओ जो वर्तमान समय में घट रही हो उस पर अपना पूरा ध्यान लगा दो
लेकिन जब मैं अपनी सांसों पर या फिर किसी ऐसी चीज पर ध्यान लगाने का प्रयास करता हूं जो लगातार घट रही है तो मेरा ध्यान लगातार नहीं रह जाता मैं पल-पल भटकता रहता हूं कभी मुझे कुछ याद आने लगता है तो कभी मुझे कुछ और याद आने लगता है वह पुरानी चीजें वह पुरानी यादें मेरा पीछा नहीं छोड़ती आपके कल यहां से चले जाने के बाद मैंने ध्यान करने के लिए बहुत प्रयास किया लेकिन वह पुरानी यादें बार-बार मुझे याद आ रही थी जिस कारण मैं एक चीज पर ध्यान लगा ही नहीं सका तो अब
मुझे क्या करना चाहिए उस व्यक्ति की यह सारी बातें सुनकर वह गुरु मुस्कुराने लगे और वहां से चले गए उन गुरुवर की हंसने की वजह उस व्यक्ति को समझ नहीं आई अगले दिन सुबह-सुबह एक बार फिर वह गुरु उस व्यक्ति के पास पहुंचे और कहा भंते यह तुम क्या कर रहे हो इतना आलस चारों ओर आलस ही आलस फैला हुआ है अपने पास से आलस को भगाओ अन्यथा यह तुम पर हावी हो जाएगा और फिर तुम हमेशा इसके अधीन बनकर रहोगे तभी वह व्यक्ति गुरुवर से कहता है है गुरुवर आप तो रोज एक ही बात
कहते हैं कि यहां पर कोई है लेकिन मुझे तो कोई नजर आता ही नहीं आप ही बताइए यहां पर कौन है तभी वह गुरु वह उस व्यक्ति से कहते हैं ठीक है चलो अभ्यास के लिए चलते हैं तभी वह व्यक्ति उन गुरुवर से कहता है है गुरुवर मेरा एक प्रश्न है आपकी आज्ञा हो तो मैं आपसे पूछना चाहता हूं है गुरुवर उस व्यक्ति से कहते हैं हां पूछो क्या प्रश्न है तुम्हारा तभी वह व्यक्ति उन गुरुवर से कहता है हे गुरुवर आपकी कृपा से अब मैं पहले से बेहतर तरीके से ध्यान कर पा रहा हूं
लेकिन अभी भी मुझे एक समस्या आ रही है और वह यह है कि जब भी मैं अपनी सांसों पर ध्यान देता हूं तो मेरा मन एकाग्र तो होता है और मैं पहले से ज्यादा और अच्छी तरह से ध्यान भी लगा पाता हूं लेकिन ध्यान लगाते लगाते मुझे नींद आने लग लती है और मैं सो जाता हूं फिर उसके बाद मुझसे ध्यान नहीं हो पाता उसके बाद केवल बस मुझे नींद ही नींद आती रहती है और मैं ध्यान की तरफ फिर अपने आप को मोड़ नहीं पाता उस व्यक्ति की यह बात सुनकर वह गुरुवर उस व्यक्ति
से कहते हैं यह तो अच्छी बात है इतना कहकर वह वहां से चले जाते हैं पांचवें दिन जब सुबह-सुबह वह गुरुवर उस व्यक्ति के पास पहुंचते हैं तो वे कहते हैं भंते तुमने इतने लोगों को क्यों बुला रखा है इतने सारे लोग तुम्हें ध्यान नहीं करने देंगे तुमने इतने सारे लोगों को क्यों बुलाया है इन्हें यहां से जल्दी भेजो मुझे यह बिल्कुल नहीं पसंद तुम तो यहां पर अकेले आए थे जैसा कि तुमने कहा तो फिर इतने सारे लोगों को तुमने आज क्यों बुला रखा है इन्हें अभी के अभी वापस छोड़कर आओ तभी वह व्यक्ति
उन गुरुवर के बारे में मन ही मन यह सोचता है कि लगता है गुरुवर पागल हो चुके हैं जब भी रोज आते हैं तो हमेशा एक ही बात कहते हैं कि यहां पर कोई है लेकिन मुझे तो कोई नजर ही नहीं आता बड़ी विनम्रता से उन गुरुवर से कहा है गुरुवर शायद आपकी आंखें जो देख पा रही हैं वह मैं नहीं देख पा रहा हूं मुझे तो यहां पर कोई नजर नहीं आता फिर आपको कैसे यहां पर लोग ही लोग नजर आ रहे हैं फिर गुरुवर उस व्यक्ति से कहते हैं अच्छा ठीक है चलो अब
ध्यान का अभ्यास करते हैं तभी वह व्यक्ति उन गुरुवर से कहता है है गुरुवर मुझे ध्यान के वक्त नींद आती थी जैसा कि मैंने आपको बताया था उस पर तो मैंने नियंत्रण पालि लेकिन अब जब भी मैं ध्यान करने बैठता हूं किसी एक चीज पर अपना ध्यान केंद्रित करता हूं तो मेरे मन में विचारों का सैलाब होता है मानो विचारों की बांट सी आ जाती है इतने विचार तो आंख खोलकर भी मैंने कभी नहीं देखे होंगे जितने की आंखें बंद करने के बाद मुझे नजर आते हैं और इन विचारों में कुछ ऐसे विचार भी मेरे
मन में आते हैं जिनके बारे में आज तक मैंने सोचा तक नहीं है मुझे उनके बारे में कुछ भी नहीं पता यह सब क्यों हो रहा है गुरुदेव उन गुरुवर ने उस व्यक्ति की यह बात सुनकर उस व्यक्ति से कहा अच्छा ऐसा हो रहा है इतना कहकर वह गुरुवर वापस चले गए अगले दिन सुबह-सुबह वह गुरुवर एक डंडा लेकर उस युवक के पास पहुंचे और एक डंडा जड़ते हुए उस युवक से कहते हैं मैंने तुम्हें पहले ही कहा है इतने सारे लोग मुझे पसंद नहीं तुम्हें इन्हें छोड़कर आना होगा आखिर तुम रोज-रोज इन्हें क्यों ले
आते हो इतनी भीड़ इकट्ठा करके तुम्हें क्या लाभ आज के बाद यह यहां पर नहीं आने चाहिए इस बात का ख्याल रखना यदि आज के बाद यहां पर कोई भी नजर आया और तुम्हारी बकबक मुझे सुनाई पड़ी तो मैं तुरंत ही तुम्हें इस आश्रम से निकाल दूंगा तभी वह व्यक्ति बड़ी विनम्रता से उन गुरुवर से कहता है है गुरुर मुझे तो यह समझ नहीं आता कि मुझे कोई नजर ही नहीं आता लेकिन आप रोज एक ही बात कहते हैं कि यहां पर मैंने भीड़ इकट्ठी कर रखी है जिन लोगों को भी मैंने लाया है उन्हें
मुझे छोड़कर आना होगा लेकिन मैं आपसे हर रोज एक ही बात कह हूं कि मुझे कोई नहीं नजर आता ना ही मुझे कोई यहां पर दिखाई पड़ता है और ना ही मैं अपने मुख से एक शब्द भी निकालता हूं लेकिन फिर भी आप कहते हैं कि आपको लोगों की आवाजें सुनाई पड़ रही हैं तभी वह गुरुवर है उस व्यक्ति की इस बात का जवाब देते हुए कहते हैं क्या तुम्हारे मित्र तुम्हारे परिवार वाले तुम्हारे सगे संबंधी तुम्हारे शत्रु तुम्हारी इच्छाएं तुम्हारी वासना एं यह सब क्या तुमसे मिलने नहीं आते वह व्यक्ति उन गुरुवर से कहता
है नहीं गुरुदेव मुझसे कोई मिलने नहीं आता मैं तो यहां पर अकेला ही आया था और अभी भी मैं अकेला ही हूं मेरा कोई नहीं तभी वह गुरु व क्रोधित होकर उस झंडे से उस व्यक्ति पर एक और प्रहार करते हैं और कहते हैं अभी बैठो अभी ध्यान लगाओ और यदि तुम्हारे ध्यान में कोई भी आता है तो मुझे बताओ वह व्यक्ति उन गुरुवर की बात मान लेता है और तुरंत ही ध्यान करने बैठ जाता है कुछ देर तक तो वह काफी शांत रहता है लेकिन कुछ देर बाद ही वह उन गुरु से कहता है
है गुरुदेव मेरा भाई मुझसे मिलने आया है साथ में मेरे पिताजी भी हैं दोनों बहुत दुखी हैं क्योंकि मैं उन्हें छोड़कर यहां जो चला आया हूं मेरे भाई की तबीयत भी कुछ ठीक नहीं लग रही वह मुझे बुला रहे हैं मेरे बड़े भाई की पत्नी अर्थात मेरे भाभी मेरे बड़े भाई के साथ अच्छा व्यवहार नहीं कर रही और तो और मेरी प्रेमिका भी आई हुई है वह मुझसे पूछ रही है कि क्या तुम मुझसे शादी करोगे या फिर मैं किसी और से शादी कर लूं वह भी बहुत दुखी नजर आ रही है और इतना ही
नहीं मेरे कुछ मित्र भी पीछे खड़े हैं जिनसे मैंने कुछ कर्ज लिए थे आज वह मुझसे अपना कर्जा मांगने आए हैं मुझे धोखेबाज कह रहे हैं मुझे अपशब्द बोल रहे हैं और वह साथ में मेरे कुछ शत्रुओं को भी लाए हैं लेकिन मेरे शत्रु मुझे मारना नहीं चाहते वह तो यह कह रहे हैं कि तू तो पहले से ही मरा हुआ है तुझे और क्या मारना इतना कहकर वह व्यक्ति कुछ देर के लिए शांत हो गया लेकिन उसी के बाद फिर कुछ देर बाद वह एक बार फिर से उन गुरुवर से कहने लगा है गुरुवर
अब मेरे पास एक बहुत बड़ा घर है इसे मैंने खरीद लिया है मैं मेरे पिता मेरी माता मेरा भाई मेरी भाभी सभी इसमें बहुत मिलजुल के रह रहे हैं हम बहुत खुश हैं मैं अब अपने मित्रों से अत्यधिक अमीर हूं मेरे पास बेशुमार धन दौलत है और तो और मैंने अपनी प्रेमिका से शादी भी कर ली है और इसका जश्न बना रहे हैं इतना कहकर वह व्यक्ति एक बार फिर शांत हो गया और फिर कुछ देर बाद और फिर एक एक बार उन गुरुवर से कहता है है गुरुवर मुझे कोई मारने का प्रयास कर रहा
है लगातार वह मुझ पर प्रहार कर रहा है मैं उसका चेहरा देखने का प्रयास कर रहा हूं लेकिन मुझे उसका चेहरा नजर नहीं आ रहा इतना कहते कहते वह उन गुरुवर से कहता है गुरुदेव यह तो आप हैं जो मुझे मार रहे हैं और यह भी कह रहे हैं कि इतनी भीड़ को लेकर क्यों आए हो और इन्हें लेकर कहां जा रहे हो मेरे साथ तुम्हें अकेले ही चलना होगा इतना कहकर वह व्यक्ति ध्यान से उठ गया और उनको रुके चरणों में गिर पड़ा और उनसे कहने लगा हे गुरुदेव आप सही थे आप जो हमेशा
कहते थे कि इस भीड़ को लेकर मैं कहां जा रहा हूं आप हमेशा यही कहते थे कि इन सबको छोड़कर आओ लेकिन मुझे कोई नजर नहीं आता था लेकिन आज मैंने उन सबको देख लिया जिन्हें मैं अपने साथ लेकर आया था जिन्हें मैं अपने साथ लेकर घूम रहा था हर कोई मेरे साथ ही है मेरे पास है लेकिन मैं यह सोच रहा था कि आखिर मैं इतना बेचैन क्यों हूं और मेरी बेचैनी की वजह क्या है उस व्यक्ति की यह सारी बातें उन गुरुवर ने ध्यानपूर्वक सुनी और उसके बाद वह वहां से चुपचाप उठकर चले
गए उसके बाद से वह गुरुवर उसके पास कभी नहीं आए लेकिन वह व्यक्ति हर रोज ध्यान का अभ्यास कर रहा था और पूरे एक महीने बाद जब वह उन गुरुवर के पास पहुंचा तो उन गुरुवर से कहने लगा है गुरुवर जैसा कि आप कहते थे कि मैं हमेशा अपनी भीड़ को अपने साथ लेकर घूमता हूं तो आज मैंने उस भीड़ को विदा कर दिया है और अब मैं बिल्कुल अकेला हूं मेरे साथ कोई नहीं मेरे साथ आप भी नहीं है यहां तक कि मैं खुद अपने साथ नहीं हूं मैं एक परम शांति महसूस कर रहा
हूं अब मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि अब मेरे जीवन में कोई समस्या नहीं है कोई समाधान नहीं है मैं बहुत हल्का महसूस कर रहा हूं मैं बहुत अच्छा महसूस कर रहा हूं और इस शांति में जो आनंद है इसका क्या कहना तभी वह गुरुवर उस व्यक्ति से कहते हैं भंते अगर तुम चाहो तो इस अकेलेपन को लेकर तुम अपनी दुनिया में वापस जा सकते हो अव व्याधि तुम उस संसार में वापस भी लौट जाओ भले ही लोग तुम्हारे आसपास क्यों ना रहे भले ही पूरी भीड़ तुम्हारे साथ क्यों ना रहे लेकिन फिर भी तुम
अकेले ही रहोगे फिर चाहे वह तुम्हारे रिश्तेदार हो सगे संबंधी हो परिवार वाले हो तुम्हारे मित्र तुम्हारे शत्रु तुम्हारी भावनाएं या फिर तुम्हारी प्रेमिका इन सबके साथ रहकर भी तुम पूर्ण रूप से अकेले ही रहोगे और इतना ही नहीं तुम्हारे जीवन में जब भी कोई बुरी परिस्थितियां आएंगी तब भी तुम बिल्कुल अकेले और शांत रहोगे और तुम हर परिस्थितियों का समाधान निकालने में भी अब पूरी तरह सक्षम हो चुके हो और यदि अब तुम चाहो तो मैं तुम्हें अपना शिष्य बना सकता हूं क्योंकि हो सकता है तुम्हें यह लग रहा हो कि यह 30 दिन
तो पूरे खत्म हो चुके लेकिन ध्यान का मार्ग अभी शुरू हुआ है और याद रहे कि अभी तो बहुत कुछ सीखना है जानना है लेकिन कुछ रखना नहीं है यह मार्ग अभी शुरू हो रहा है और यह मार्ग अति लंबा है और इस मार्ग की शुरुआत शांति से ही होती है तभी वह व्यक्ति उन गुरुवर को प्रणाम करता है और उनसे कहता है हे गुरुवर मैं अपने घर वापस लौटना चाहता हूं अपने उस संसार में वापस जाना चाहता हूं ताकि मैं अपनी जिम्मेदारियों को निभा सकूं और साथ ही साथ इस मार्ग पर भी आगे बढ़
सक यदि आपकी आज्ञा हो इतना कहकर वह व्यक्ति शांत हो गया तभी वह गुरु मुस्कुराने लगे और उस व्यक्ति से कहते हैं भंते मन शांत हो तो सब हो सकता है तुम संसार में रहकर भी अकेले रह सकते हो लेकिन एक बात याद रखना कि हमें सीखना बहुत कुछ है जानना बहुत कुछ है लेकिन रखना कुछ भी नहीं अब तुम जा सकते हो तुम्हारा कल्याण हो तो दर्शकों चलिए अब ज्यादा सोचने के ऊपर अगली कहानी की शुरुआत करते हैं संपूर्ण मानव जात एक दौड़ में लगी हुई है एक ऐसी दौड़ जो कभी पूरी नहीं होती
जो उसके जन्म के साथ शुरू होती है और मरने तक उसका पीछा नहीं छोड़ती लेकिन क्या कभी आपने ध्यान दिया है कि यह दौड़ किस चीज की है जरा ठहर कर खुद से पूछिए कि आप किसके पीछे दौड़ रहे हैं और वास्तव में क्या यह दौड़ कभी पूरी हो सकती है जिन भौतिक सुख सुविधाओं को इकट्ठे करने में इंसान लगा रहता है क्या वास्तव में वह भौतिक सुख सुविधाएं उसे शांति या फिर आनंद प्रदान कर सकती है सिकंदर ने मरने से पहले अपने सभी मंत्रियों को कहा था कि जब मेरी अर्थी उठाई जाए तो मेरा
शरीर ढका हुआ नहीं होना चाहिए मेरी हथेलियां खुली होनी चाहिए ताकि सारी दुनिया यह देख सके कि जो सिकंदर पूरी दुनिया को जीत सकता था वह भी अपने साथ कुछ नहीं ले जा सका उसके हाथ खाली के खाली रह गए लेकिन जीवन की बागडोर ऐसी होती है कि उसे कभी ठहरने का वक्त ही नहीं मिलता कभी वह सोच विचार ही नहीं करता कि जीवन का सबसे बड़ा सुख क्या है और इसके विपरीत जीवन का सबसे बड़ा दुख क्या है सुख सुविधाएं तो बहुत लोग इकट्ठा कर लेते हैं लेकिन सही मायने में उसका भोग कितने लोग
कर पाते हैं वही भौतिक वस्तुएं जो उसने अपने आनंद अपनी शांति के लिए संग्रहित की थी वही सुख सुविधाएं उसके दुख का कारण बन जाती हैं जब पैसा नहीं कमाया था तो पैसा ना होने का दुख था और जब पैसा कमा लिया तो वही पैसा उसके बच्चों के लिए या उसके लिए झगड़े का कारण बन जाता है तो फिर कैसे सुख सुविधाएं किन चीजों के पीछे आप भाग रहे हो आज की जो कहानी मैं आप लोगों को सुनाने वाला हूं उसमें आपको जीवन का सबसे बड़ा दुख और सबसे बड़ा सुख पता चलेगा इससे पहले कि
आप इस कहानी में खो जाएं इस चैनल को सब्सक्राइब जरूर कर लें तो चलिए कहानी शुरू करते हैं अपनी गरीबी के दिन याद करके सेठ नानंद की आंखों में आंसू आ गए आज उसने जीवन में सब कुछ हासिल कर लिया था सारी सुख सुविधाएं उसके पास थी घर में नौकर चाकर थे हजारों लोग उसके नीचे काम करते थे जो उसकी एक आवाज पर उसके पास खड़े होते थे लेकिन फिर भी आज सब कुछ हासिल कर लेने के बाद भी वह दुनिया में अपने आप को सबसे गरीब आदमी समझ रहा था आखिरकार अपनी गरीबी के दिन
याद करके उसकी आंखों में आंसू आ गए उसके पास कुछ नहीं था लेकिन तब भी वह प्रसन्न रहता था लेकिन आज सब कुछ होने के बाद भी वह प्रसन्न नहीं था और दुनिया में वही आदमी सबसे गरीब होता है जो सब कुछ होते हुए भी अकेला महसूस करता है उसे एहसास होने लगा था कि धन संपदा या भौतिक सुख सुविधाएं उसके मन की पूर्ति नहीं कर सकती लेकिन अब तो बहुत देर हो चुकी थी उसका पूरा जीवन बीत चुका था अब पूरे जीवन की कमाई उसे व्यर्थ लगने लगी उसे लगने लगा कि उसने जो कुछ
कमाया वह सब यूं ही था व्यर्थ था यह एहसास उसे जीवन में पहले कभी नहीं हुआ था काश उसे यह एहसास पहले हो गया होता तो वह ठहर जाता रुक जाता रुककर चिंतन करता कि जो चीज वह इकट्ठी कर रहा है क्या वास्तव में वह इकट्ठी करने लायक है अगर उसे यह बात पहले पता चल गई होती तो वह अपने जीवन में सार्थकता खोजने की कोशिश करता वह उस रहस्य के बारे में खोज करता जो उसके मन की पूर्ति करता जो उसका अकेलापन दूर करता जो उसके जीवन को संपूर्ण बना देता उसने अपने दोनों बेटों
को अपने पास बुलाया और उन्हें जीवन की सीख समझाने की कोशिश करने लगा सेठ ने अपने बेटों से कहा कि बेटा मेरे को तो जीवन में कोई बताने वाला नहीं था सही रास्ता दिखाने वाला कोई था ही नहीं इसलिए मैं उस रास्ते पर चलता रहा जिसका कोई अंत नहीं था और आखिर में पहुंचकर मुझे महसूस हुआ कि जितना रास्ता मैं तय करके आया हूं उतना ही रास्ता बाकी और है शायद मैं गलत रास्ते पर निकल पड़ा था और अब इतना समय नहीं बचा कि मैं नए रास्ते पर फिर से नया सफर शुरू करूं उसने अपने
दोनों बेटों से कहा कि बेटा पता है दुनिया में सबसे बदनसीब आदमी कौन होता है वो जिसके पास सब कुछ होते हुए भी कुछ नहीं होता जो अपने आप को सब कुछ होते हुए भी अकेला महसूस करता है भला इससे बड़ा दुख इससे बड़ी बदनसीबी और क्या हो सकती है यह सुनकर उसके बड़े बेटे ने कहा कि पिताजी सब कुछ तो आपके पास है धन संपदा पूरा परिवार सारी खुशियां आपके पास है लेकिन फिर भी आप अपने आप को बदनसीब क्यों समझते हैं उसका बड़ा बेटा वह नहीं समझ पा रहा था जो उसके पिता उसे
समझाने की कोशिश कर रहे थे फिर भी उसने अपनी बात को समझाने की कोशिश करते हुए कहा अभी तुम्हें लगता है कि जीवन में तुम्हारे पास सब कुछ है मुझे भी तुम्हारे उम्र में ऐसा ही लगता था लेकिन अब मैं बूढ़ा हो चला हूं कुछ समय बाद मेरी मृत्यु भी नजदीक है और अब मुझे एहसास हो रहा है कि दुनिया में तो सब कुछ पीछे छूट जाता है घर परिवार रुपया पैसा धन संपदा सब कुछ यही रह जाता है और आखिर में मेरे साथ जाएगा क्या क्या मैं दुनिया मैं सबसे अकेला इंसान नहीं हूं क्या
मैं दुनिया का सबसे बदनसीब आदमी नहीं हूं जिसके पास सब कुछ होते हुए भी वह अपने साथ कुछ भी नहीं ले जा सकता सेठ के बेटे ने सेठ से सवाल पूछा कि पिताजी फिर दुनिया में क्या इकट्ठा करना चाहिए ऐसे तो हर इंसान अकेला ही होता है कौन इंसान इस दुनिया में भला ऐसा होता है जो अपने साथ इस दुनिया की सुख सुविधाएं या फिर अपना परिवार को साथ लेकर जाता है सब लोग तो अकेले ही जाते हैं फिर तो दुनिया में हर एक आदमी बद नसीब ही हुआ यही सवाल सेठ के मन में भी
उठ रहा था लेकिन उसके खुद के पास इसका कोई जवाब नहीं था तो वह अपने बेटे को भला इसका क्या उत्तर देता इसीलिए उसने अपने बेटे से कहा कि बेटा मैं खुद इस सवाल का जवाब तलाश रहा हूं अगर एक आदमी के पास सब कुछ होते हुए भी वह अकेला है उन भौतिक सुख सुविधाओं का वह भोग नहीं कर पा रहा है तो वह सबसे बड़ा दुख हुआ मैं मानता हूं दुनिया का सबसे बड़ा दुख यही है कि आपके पास सब कुछ होते हुए भी आप अकेलापन महसूस करो लेकिन इसके विपरीत दुनिया का सबसे बड़ा
सुख क्या हो सकता है इस सवाल का जवाब तो मेरे बेटे मुझे भी नहीं पता इसीलिए मैं यह चाहता हूं कि मेरे मरने से पहले जी सवाल का जवाब मुझे नहीं मिला वह जवाब तुम अपने जीवन में ढूंढो और यकीन मानो अगर तुमने अपने जीवन में इस सवाल का जवाब ढूंढ लिया तो तुम दुनिया के सबसे सुखी इंसान कहलाओगे यह कहानी सुनाकर गुरु ने अपने शिष्यों से सवाल पूछा कि दुनिया में सबसे बड़ा सुख क्या होता है सभी शिष्य ध्यानपूर्वक अपने गुरु की यह कहानी सुन रहे थे संध्या का समय था धीमी धीमी हवा चल
रही थी जिससे कि पेड़ की पत्तियां हिल रही थी आसमान में पक्षी सह चा रहे थे सूर्य अस्त होने को आया था और सभी शिष्य अपने गुरु से इस सवाल का जवाब जानना चाहते थे लेकिन इससे पहले ही गुरु ने अपने शिष्यों से सवाल पूछ लिया इसका उत्तर देते एक शिष्य ने कहा कि गुरुदेव दुनिया में सबसे सुखी इंसान वही है जिसका शरीर सुखी है अगर आपके शरीर में बीमारियां हैं तो आपके पास कितनी भी भौतिक सुख सुविधाएं हो आपके लिए वह व्यर्थ है और इसके विपरीत अगर आपका शरीर सुखी है अगर आपका शरीर स्वस्थ
है तो चाहे आपके पास कुछ भी नहीं हो लेकिन उसके बावजूद आप अपने जीवन में सुखी रहोगे इसीलिए संसार का सबसे बड़ा धन हमारा शरीर होता है यह सुनकर दूसरे शिष्य ने उसका विरोध करते हुए कहा कि गुरुदेव दुनिया में बहुत से लोग ऐसे हैं जिनका शरीर एकदम स्वस्थ है लेकिन बावजूद इसके वह अपने जीवन में सुखी नहीं है मैं मानता हूं कि जीवन में सबसे ज्यादा सुखी वही इंसान है जिसका मन सुखी है गुरु ने अपने इस शिष्य से सवाल किया कि अच्छा यह बताओ कि मन को सुखी किस प्रकार किया जा सकता है
इसका जवाब देते हुए उस शिष्य ने कहा कि गुरुदेव मन कभी भी संतुष्ट नहीं होता है अगर हम किसी प्रकार मन को संतुष्ट करना सीख ले तो फिर हम किसी भी परिस्थिति में आनंद और शांति से रह सकते हैं लेकिन समस्या यही होती है कि मन का भला कभी होता ही नहीं है मन को चाहे कितना भी खिला दो लेकिन उसकी भूख कभी पूरी नहीं होती चाहे उसको कितना ही धन दे दो लेकिन बावजूद इसके इसका लालच बढ़ता ही जाता है अब गुरु ने सभी शिष्यों को समझाना शुरू किया गुरु ने कहा कि अज्ञानता वश
मनुष्य कभी यह समझ नहीं पाता कि उसका मन हमेशा से खाली था लेकिन व्यर्थ की चिंताएं व्यर्थ के लक्ष्य अपने जीवन में बनाकर उसने अपने मन को बांध लिया जिस मन की प्रवृत्ति हमेशा खाली रहने की थी उसने उस मन को कूड़े कचरे से भर लिया इसीलिए वह मन जो बचपन में हमेशा खाली रहता था हर चीज में हर खेल में आनंद ढूंढ लेता था अकेले में भी आनंद पूर्वक शांति पूर्वक रहता था अब वही मन सब कुछ मिल जाने के बाद भी हमेशा दुखी रहता है लेकिन अगर इंसान सिर्फ त वतमान में रहना सीख
ले सिर्फ इतना सा होश प्रकट कर ले कि उसे हमेशा वर्तमान में रहना है ना तो भविष्य की कल्पनाओं में ना अतीत की यादों में सिर्फ वर्तमान में सिर्फ इस एक सूत्र से वह अपने पूरे जीवन को बदल सकता है वर्तमान में रहकर सभी सूक्ष्म सुविधाओं का भोग करना पूर्ण होश के साथ पूर्ण आनंद के साथ हर एक चीज का भोग करना सिर्फ यही जीवन को सुखी बना सकता है हम हर चीज को हर काम को ह रिश्ते को आधे अधूरे मन से निभाते हैं जैसे कि खाना खाते समय हमारा दिमाग कहीं रहता है हमारा
शरीर कहीं रहता है और इसीलिए जब शरीर और मन में दूरी पैदा होती है तो उससे तनाव पैदा होता है अगर आपका शरीर और आपका मन और मस्तिष्क सभी एक जगह पर संगठित होना सीख ले तो फिर आप अपने जीवन में उस शांति उस आनंद का एहसास कर पाएंगे जो बड़े-बड़े योगी पहाड़ों में तपस्या करके प्राप्त करते हैं लेकिन इसके लिए जीवन में ज्ञान के प्रकाश का उदय होना बहुत आवश्यक है क्योंकि अज्ञानता में आप अपने मन को कभी नहीं समझ पाएंगे मन को समझना इस दुनिया का सबसे कठिन कार्य होता है अगर आप अपने
मन को जबरदस्ती वर्तमान में खींच कर लाने की कोशिश करेंगे तो आप बहुत जल्दी परेशान हो जाएंगे यह कार्य बड़े धीरे-धीरे बड़ी निष्ठा और प्रेम के साथ किया जाता है बड़े संयम के साथ किया जाता है अगर आप इसको जबरदस्ती करने की कोशिश करेंगे तो आप तनाव में आ जाएंगे आप बहुत जल्दी हार मान लेंगे इसलिए कदम कदम पर आगे बढ़ा जाए तब मंजिल सामने ही है और यह कहकर गुरु ने सभी शिष्यों से कहा कि अब हम ध्यान करेंगे ध्यान करने से मनुष्य का मन उसका मस्तिष्क वर्तमान में स्थापित होना सीख जाता है धीरे-धीरे
प्रतिदिन ध्यान का अभ्यास करने से वह उस आनंद और शांति का अनुभव कर पाता है जो सांसारिक वस्तुओं में कहीं नहीं मिलता जो किसी भौतिक सुख सुविधा में नहीं मिलता और इसके बाद सभी शिष्य अपने गुरु के साथ ध्यान में लीन हो गए दोस्तों मैं उम्मीद करता हूं कि यह कहानी सुनने से आपके जीवन में अच्छे बदलाव आए होंगे आपको इस वीडियो से क्या सीखने मिला यह कमेंट करके जरूर बताएं और अपने परिवार दोस्तों या आपके करीबी इंसान के साथ यह कहानी शेयर करके उन्हें भी इस ज्ञान से परिचित करवाए बाकी अगर आपको यह वीडियो
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