सपना बड़ा देखो | Buddhist motivational Story on self improvement

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Gyan ka Dwar
सपना बड़ा देखो | Buddhist motivational Story on self improvement इस वीडियो में गौतम बुद्ध की मोटि...
Video Transcript:
समय कभी वापस लौटकर नहीं आता इसलिए इस समय को अपनी लक्ष्य की समस्याओं के बारे में सोचकर यूं ही गवाह मत दो बल्कि अपने लक्ष्य पर अपना ध्यान केंद्रित करने की इस प्राचीन विधि को जान लो वह विधि कौन सी है जिससे कोई भी साधारण मनुष्य बड़ी सफलता हासिल कर सकता है वही हम आज एक रोचक कहानी के माध्यम से जानेंगे तो चलिए शुरुआत करते हैं दोस्तों विशाल पर्वतों की तलहटी पर एक छो छ सा गांव था जिसमें एक शेरपा रहता था अर्थात एक पर्वतारोही रहता था वह पर्वतारोही लोगों को राह दिखाया करता था वह
लोगों को ऊंचे पर्वतों पर ले जाता और उन्हें सही सलामत वापस ले आता इसी प्रकार शेरपा एक दिन कुछ लोगों को लेकर पर्वत की चढ़ाई पर गया था लेकिन अचानक उस दिन एक दुर्घटना हो गई उस शेरपा के पैरों में गहरी चोट लगी और उनके एक साथी की जान भी चली गई जिस कारण उसे बहुत तकलीफ हुई और वह शेरपा अपने आप को माफ नहीं कर पा रहा था उसके बाद से वह शेरपा कभी भी ऊंचे पहाड़ों पर नहीं गया वह वहीं पास में रहकर एक छोटी सी दुकान चलाने लगा देखते ही देखते समय बीता
और अब उस शेरपा का लड़का भी जवान होने लगा था वह भी अपने पिता के साथ उस दुकान पर पिता का हाथ बढ़ाया करता था अपने बचपन काल से ही लोगों को पहाड़ की चढ़ाई चढते देखता रहता और उनके बारे में बातें करते सुन कि पर्वत शिखर से दुनिया अलग दिखती है इसलिए उस लड़के के मन में भी हमेशा उस पहाड़ को चढ़ने की लालसा रहती थी लेकिन जब भी वह अपने पिता से कहता पिताजी मैं भी इस पहाड़ पर चढ़ना चाहता हूं मैं भी जाकर वहां की दुनिया देखना चाहता हूं तब उसके पिता उसे
हमेशा मना कर देते और कहते बेटा ऊपर जाने में बहुत खतरा है वहां बहुत जोखिम है वहां तुम्हारी जान भी जा सकती है पहाड़ों पर कुछ भी हो सकता है वहां बहुत चलना पड़ता है बहुत मेहनत करनी पड़ती है और इन पहाड़ों पर तुम्हारा पैर भी फिसल सकता है तुम उन लोगों की बातों में मत आओ तुम यहीं रहकर आराम से अपना जीवन बिता सकते हो जब वह लड़का अपने पिता से ऊपर चढ़ने की बात करता तब तब उसके पिता वहां जाने से उसे रोक देते एक दिन उस लड़के ने यह ठान लिया कि मुझे
जीवन में कम से कम एक बार उस पहाड़ पर चढ़कर देखना है मुझे खुद महसूस करना है कि वहां की दुनिया कैसी है नहीं तो मैं पूरे जीवन भर केवल इस दुकान पर ही रह जाऊंगा मैं केवल लोगों के मुंह से यही सुनता रह जाऊंगा कि पहाड़ की दुनिया ऐसी है पहाड़ की दुनिया वैसी है लेकिन मैं उसे कभी देख नहीं पाऊंगा अब जब कि शेरपा को लगा कि उसका बेटा उसकी बात नहीं मानने वाला तो उसने वहां पर जाने के लिए हामी भर दी और अपने बेटे से कहता है बेटा ठीक है यदि तुम
जाना चाहते हो तो तो जा सकते हो लेकिन मेरी एक बात हमेशा याद रखना यदि तुम्हें कोई परेशानी हो तो वापस उलटे पांव घर लौट आना अपने पिता की आज्ञा पाकर वह लड़का अपना सारा सामान ले सबसे पहले उस पर्वत के नजदीकी शिविर तक जाता है यह सभी का पहला पड़ाव होता है जहां से लोग चढ़ाई शुरू करते हैं जहां पर लोग पहली और आखिरी बार रुकते हैं और जहां पर लोग पर्वत से नीचे उतरकर पहली बार विश्राम करते हैं उस लड़के ने उसी शिविर में काम करना शुरू कर दिया यहां पर रहकर उसे और
भी लोगों से उस पर्वत के बारे में जानने को मिल रहा था यहां पर रहकर उसके दो काम पूरे हो रहे थे पहला तो वह अपनी यात्रा के लिए कुछ पैसे जोड़ पा रहा था और दूसरा वह आते-जाते लोगों से वहां की यात्रा और शिखर के बारे में जानकारी हासिल करने लगा देखते ही देखते करीब दो हफ्ते बीत गए और दो हफ्तों के बाद जब उसने पर्याप्त धन इकट्ठा कर लिया तो उसने तय किया कि वह अगले हफ्ते ही यात्रा प्रारंभ करेगा लेकिन जब उसने कुछ लोगों से बात की तो उन लोगों ने उस लड़के
से कहा बेटा यहां का रास्ता बहुत कठिन है तुम दूसरे शिविर पर जाओ वहां से तुम्हें चलने में आसानी होगी लड़के ने उन लोगों की बात मान ली और वह इस शिविर को छोड़कर दूसरे शिविर पर जा पहुंचा यहां पर भी वह तरह-तरह के यात्रियों से मिलता रहा लोगों से बात करता रहा और उसने वहां की कई कहानियां भी सुनी नए-नए रास्तों और शिखर के बारे में तरह-तरह की जानकारी हासिल की फिर एक दिन वह सुबह सुबह अपने मार्ग पर आगे बढ़ चला जब वह उस पहाड़ की चढ़ाई कर रहा था तभी रास्ते में उसे
एक अनुभवी शेरपा मिला जो वहां पर बैठा हुआ था और वह करीब अधेड़ उम्र का था उस अनुभवी शेर पास से लड़के की मित्रता शिविर में ही हो चुकी थी तभी वह अधेड़ उम्र का आदमी उस लड़के से पूछता है बेटा तुम उल्टी दिशा में क्यों जा रहे हो तुम्हें तो सीधी दिशा में जाना चाहिए तभी वह लड़का जवाब देते हुए कहता है बाबा मैंने यहां पर शिविर में रहकर यहां से आने जाने वाले यात्रियों की सभी बातें सुनी है और जानी है यहां की कहानियां भी सुन ली है इसलिए मैं अब और अधिक ऊपर
नहीं जाना चाहता हूं क्योंकि मैंने यहां के बारे में अब सब कुछ समझ लिया है इसीलिए मैं वापस घर जा रहा हूं उस लड़के की यह बात सुनकर वह बाबा जोर-जोर से हंसने लगता है तभी वह लड़का बड़े आश्चर्य चकित होकर उस बाबा से कहता है क्या हुआ बाबा आखिर मैंने ऐसा क्या कह दिया कि आपको इतने जोर से हंसी आने लगी तभी वह बाबा उस लड़के से कहता है बेटा पहाड़ और रास्तों को समझा नहीं जाता बल्कि उन्हें अनुभव किया जाता है उनका आनंद लिया जाता है आगे वह बाबा उस लड़के से कहता है
बेटा तुम एक पल के लिए सोचो आखिर एक इंसान पहाड़ की छोटी पर क्यों चढ़ता है क्योंकि वह इंसान खुद को बेहतर तरीके से जानना चाहता है वह तो खुद की कमियों को जानना चाहता है तभी तो वह खुद की यात्रा पर निकलता है और जो खुद की यात्रा पर निकलता है वह इंसान कहीं पहुंचता नहीं बल्कि वह भीतर से पूरी तरह से बदल जाता है वह लड़का उन बाबा की बात बहुत ध्यानपूर्वक सुन रहा था तभी बाबा लड़के से कहते हैं बेटा यह यात्रा किसी भी इंसान के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण होती है लेकिन इंसान
इस यात्रा में दो गलतियां करता है पहली गलती यात्रा शुरू ना करना और दूसरी यात्रा खत्म ना करना आगे वह बूढ़ा बाबा उस लड़के से कहता है बेटा मैं तुमको कई दिनों से देख रहा हूं शुरू में तुम बहुत उत्सुक थे बहुत उत्साही थे लेकिन तुम्हारे अंदर वह उत्सुकता नजर नहीं आती आखिर तुम्हारे भीतर का वह उत्साह कहां गया तुम इतने उत्साह के साथ इस पर्वत पर चढ़ाई करने आए थे लेकिन आज देखो तुम वापस घर क्यों जा रहे हो क्या कोई बात है क्या कोई ऐसी बात है जो तुम्हें यह करने से रोक रही
है उन बाबा की यह बात सुनकर वह लड़का भावुक हो गया उसकी आंखों से आंसू बहने लगे वह उस बाबा से कहता है बाबा मेरे पिताजी पहले लोगों को इस पहाड़ पर ले जाया करते थे और उन्हें सही सलामत वापस भी लाया करते थे लेकिन एक दिन एक दुर्घटना घट गई उनका पैर फिसल गया जिस कारण उन्हें पैर में बहुत गंभीर चोट आई और उनके साथ उनका एक साथी भी मारा गया इस प्रकार उस लड़के ने अपने पिता के साथ बीती हुई उस घटना के बारे में उस बाबा को सब कुछ बता दिया वह बाबा
उस लड़के की सारी बातें ध्यान पूर्वक सुन रहा था और फिर वह उस लड़के से कहता है बेटा तुम्हारे पिता बहुत ही बहादुर थे लेकिन अनजाने में वह तुम्हारे अवचेतन मन में उन सभी डर को बैठा जा रहे हैं जिस डर से तुम्हारा कभी कोई भला नहीं होगा तुम इस डर के कारण कभी अपने जीवन में आगे नहीं बढ़ पाओगे यह डर तुम्हें पल-पल कुछ भी नया करने से रोकता रहेगा इस पर वह लड़का उन बाबा से कहता है तो फिर मुझे क्या करना चाहिए तभी वह बाबा उस लड़के से कहता है बेटा इसका तो
केवल एक ही रास्ता है जिससे तुम्हारे भीतर बैठा हुआ डर हमेशा हमेशा के लिए तुमसे दूर हो जाएगा लेकिन उसके लिए मेरी एक शर्त है इस पर वह लड़का कहता है बाबा बोलिए आपकी क्या शर्त है तभी वह बाबा उस लड़के से कहता है बेटा जब तुम्हारा हार मानने का मन करे या फिर यात्रा छोड़ने का मन करेगा तब तुमको मेरी बात बहुत ही शांतिपूर्वक और ध्यान से सुनी होगी क्या तुम इसके लिए तैयार हो वह लड़का कुछ देर के लिए सोच विचार में पड़ गया और मन ही मन यह सोचने लगा कि आज तक
मुझे इस तरह से किसी ने नहीं समझाया हो सकता है कि बाबा सचमुच मेरे मन से डर निकाल दे और मैं अपने जीवन में कुछ हासिल कर पाऊं यदि मैं यूं ही चला गया तो पिताजी फिर मुझे कभी भी वापस नहीं लौटने देंगे और ना ही मुझे वह कभी वह करने देंगे जो मैं करना चाहता हूं इसीलिए मुझे एक बार इन बाबा की बात मान लेनी चाहिए यह सोच विचार कर वह उन बाबा की बात मान लेता है और अगले दिन सुबह सुबह वह दोनों पर्वत की चढ़ाई के लिए निकल पड़ते हैं वह बाबा उस
लड़के को बताता है कि आज दिन ढलने से पहले हमें कम से कम 15 किलोमीटर तक की छड़ा को चढ़ना होगा वे लोग धीरे-धीरे करके आगे बढ़ते रहे जैसे-जैसे वह उस पहाड़ पर चढ़ते जा रहे थे रास्ता और भी कठिन होता जा रहा था रास्ता और भी सफल होता जा रहा था चलते चलते करीब उन्होंने 3 किलोमीटर तक का रास्ता तय कर लिया तभी अचानक उस लड़के ने एक सुंदर दृश्य देखा उसने देखा कि वहां पर एक छोटा सा घर था और साथ ही पास ही में एक छोटा सा ठेला लगा हुआ था लड़के ने
यह भी देखा कि वहां पर दो लोग बैठे हुए थे और खाने की बहुत ही बढ़िया खुशबू आ रही है तभी लड़के के मन में अचानक एक विचार उत्पन्न हुआ कि क्यों ना हम भी कुछ देर के लिए यहीं पर रुक जाएं उसने तुरंत ही उन बाबा को आवाज दी और कहा बाबा क्यों ना हम भी कुछ देर के लिए यहीं पर रुक जाते हैं थोड़ा सा आराम कर लेते हैं इस पर वह बाबा कहता है बेटा अभी तो हमने चलना शुरू किया है यदि हम यहीं पर रुक गए तो हमारे दिन का लक्ष्य पूरा
नहीं हो पाएगा तभी वह लड़का बाबा से कहता है बाबा केवल थोड़ी देर के लिए हम कुछ खा लेते हैं इस पर बाबा मुस्कुराने लगे और उस लड़के से कहते हैं बेटा ध्यान से सुनो यह स्वयं की यात्रा में आने वाली पहली रुकावट है यह उस पल पैदा होती है जिस पल हम अपने लक्ष्य को छोड़कर अपने आसपास की चीजों पर ध्यान देने लगते हैं जब हमें ऐसा प्रतीत होता है कि हमें इन चीजों से सुख मिलेगा तो हम इनकी ओर मुड़ जाते हैं हम इनकी तरफ खींचे चले जाते हैं और जिस पल हम इन
लालच पर ध्यान देने लगते हैं उसी पल हम अपना रास्ता भटक जाते हैं लेकिन यदि तुम चाहो तो इस मानसिक स्थिति में भी अपना सही निर्णय ले सकते हो इसलिए मन को स्थिर करो और चलते रहो लड़के ने बाबा की बात मान ली और चुपचाप खड़ा होकर मन मारकर वह उन बाबा के पीछे पीछे चलने लगा देखते ही देखते पूरा दिन बीत गया पहले दिन की यात्रा थका देने वाली थी लेकिन बहुत सुंदर भी थी अगले दिन का रास्ता और भी कठिन था इसलिए उन बाबा ने उस लड़के को सुबह जल्दी उठा दिया और फिर
वे दोनों मार्ग में आगे की ओर बढ़ चले उन्होंने अभी कुछ ही चढ़ाई छड़ी थी कि तभी वहां पर जोरों की बारिश होने लगी और देखते ही देखते बारिश और भी तीव्र होने लगी उन दोनों के कपड़े अब पूरी तरह से गीले हो चुके थे लड़का तो ठंड में ठिठुर लगा था उसके हाथ पैर कांपने लगे थे तभी वह मन ही मन खुद को कोसने लगा और कहने लगा काश मैंने इनकी बात ना मानी होती मैं तो बेवजह ही इनकी बातों में आ गया अच्छा खासा मैं घर जा रहा था इस समय में घर पर
बैठकर गरम गरम खाना खा रहा होता घर पर आराम से विश्राम कर रहा होता यह सोचता हुआ वह लड़का आगे बढ़ रहा था उसका ध्यान भटक गया और रास्ते में पड़े हुए एक पत्थर से उसका पैर टकरा गया और वह लड़का गिर गया तब वह लड़का जोर से चिल्लाकर कहता है हे बाबा मैं तो आपकी बातों में बेवजह ही आ गया मैं तो घर पर ही बढ़िया था कल से ठीक से खाना तक नहीं खाया और आज इतनी तेज बारिश में मैं बेवजह ही परेशान हो रहा हूं हे बाबा मैं अब घर जाना चाहता हूं
मुझे आज्ञा दें उन बाबा ने उस लड़के की किसी भी बात का जवाब नहीं दिया बल्कि वह चुपचाप उसकी सारी बातें सुनते रहे उसकी मन स्थिति को समझते रहे और कुछ देर बाद वह उस लड़के से कहते हैं बेटा मेरे गुरु कहां करते थे कि सावधान रहो शिकायत मत करो इस पर पलटकर लड़का कहता है बाबा आप क्या कहना चाहते हैं मेरे को समझ में नहीं आ रहा तभी वह बाबा एक बार फिर मुस्कुराने लगा और उस लड़के से कहता है बेटा खुद को जानने की यात्रा में खुद को जीतने की यात्रा में दूसरी आने
वाली सबसे बड़ी रुकावट पसंद और नापसंद इस समय हम कहीं और हैं लेकिन हो ना कहीं और जाते हैं इस समय इस पर्वत पर तेज बारिश हो रही है लेकिन तुम गर्म कंबल पर सोना चा चाहते हो जब हमारे भीतर इस प्रकार के विचार उत्पन्न होने लगते हैं तो हमारे भीतर तनाव पैदा होने लगता है और इस तनाव से हम पूरी तरह से परेशान हो जाते हैं हमारा ध्यान भटक जाता है और इस परेशानी के कारण हम कुछ ना कुछ गलती अवश्य कर देते हैं और फिर हम खुद को ही कोसने लग जाते हैं और
आखिर में हम उस यात्रा को वहीं पर समाप्त कर देते हैं इसलिए मेरी एक बात और याद रखना कि कभी भी निराश होकर पसंद और नापसंद के चक्कर में मत उलझना क्योंकि पसंद और नापसंद का यह बोझ तुम्हें कभी चैन से सोने नहीं देगा और इसमें यदि तुम फंस गए तो तुम कभी इससे निकल नहीं पाओगे और तुम कभी भी अपने कार्यों में सफल नहीं हो पाओगे और इसी कारण वश तुम अपने कार्य में कभी निरंतरता भी नहीं ला पाओगे इसलिए तुरंत ही अपना ध्यान उम्मीदों से हटाकर इस क्षण में ले आओ अपने चारों ओर
देखो यह पर्वत बारिश में कितना शांत चारों तरफ कितनी खामोशी है उन बाबा की यह बात सुनकर उस लड़के ने शिकायत करना बंद कर दी और कुछ ही देर में वह शांत हो गया और तब उसे इस बात का एहसास हुआ कि वह निराश केवल अपनी उम्मीदों के कारण हो रहा था उसे इस बात का भी एहसास हुआ हां इस समय थोड़ी सी असुविधा जरूर है लेकिन समय आते ही इसका समाधान हमें मिल जाएगा यह विचार आते ही उसका मन पूरी तरह से शांत हो गया और वह भी हाड़ की उस शांति को महसूस करने
लगा और फिर वह बाबा के पीछे पीछे फिर से एक बार आगे बढ़ने लगा देखते ही देखते अब दो दिन निकल चुके थे अगले दिन सुबह की यात्रा शुरू करने से पहले उस लड़के के मन में पुरानी बातें घूम रही थी और अब उस पर आलस हावी होने लगा था अब उसके मन में तरह-तरह के विचार आने लगे थे वह लेटे लेटे यह सोच रहा था कि मैं अब और चढ़ाई करके क्या करूंगा मेरा ऊपर जा कोई लाभ नहीं मुझे ऊपर जाकर क्या फायदा मिलेगा जो लोग अब तक शिखर पर जा पहुंचे हैं उन्हें भी
तो कुछ खास नहीं मिला तो फिर मैं भला इतनी मेहनत क्यों करूं यदि इतनी मेहनत मैं अपने पिताजी के साथ अपने पिताजी की दुकान पर करूं तो वहां पर मुझे अवश्य लाभ होगा वह लड़का लेटे-लेटे इन्हीं विचारों में खोया हुआ था तभी वह बाबा उस लड़के से कहते हैं बेटा याद करो तुमने यह यात्रा क्यों शुरू की थी तुमने यह यात्रा शिखर पर जाने के लिए नहीं की थी तुमने तो यह यात्रा अनुभव प्राप्त करने के लिए की थी खुद को जीतने के लिए की थी और यह पूरी यात्रा ही शिखर है उन बाबा के
मुख से यह सुनकर वह लड़का कुछ देर के लिए सोच विचार में पड़ा और फिर वह उन बाबा से कहता है बाबा आप ठीक कहते हैं लेकिन अब मुझे और ऊपर जाने की कोई इच्छा नहीं है अब मेरा बिल्कुल भी मन नहीं है कि मैं आगे की यात्रा करू इस पर बाबा उस लड़के से कहते हैं बेटा भारीपन और दिमाग की सुस्ती बहुत नींद आना थकावट लगना और कुछ भी करने की इच्छा ना होना यह सभी मन के विकार हैं कि तुम इन विकारों में फंस गए तो इसका अर्थ यह हुआ कि तुम एक जेल
में बंद हो जाओगे और इस जेल में रहते हुए तुम थोड़ी सी भी कठिनाइयों के आते ही हार मान लोगे क्योंकि यहां पर तुम्हारी बुद्धि की तर्क शक्ति भी तुम्हारा साथ नहीं दे पाएगी इसीलिए आलस छोड़ो और तुरंत उठो और मेरे साथ चलो उन बाबा के इतना कहने पर उस लड़के को उन बाबा की बात याद आई उन बाबा ने सफर शुरू होने से पहले ही कहा था कि जब भी तुम्हारा मन हारने के लिए कहेगा तब तुम्हें मेरी बात ध्यानपूर्वक सुननी होगी लड़के को अपना वादा याद आ गया वह तुरंत ही उठ खड़ा हुआ
और दोनों ने अपना सफर फिर एक बार प्रारंभ किया देखते ही देखते शाम का वक्त हो चुका था और शाम के वक्त लड़का को उस पर्वत पर कुछ ऐसे लोग मिले जिनकी तैयारियां उनसे कहीं ज्यादा आधुनिक थी उनके पास आधुनिक उपकरण थे यह देखकर वह लड़का मन ही मन सोचने लगा इनके पास तो इतने आधुनिक उपकरण है यह तो अवश्य ही इस पहाड़ की चढ़ाई को चढ़ लेंगे लेकिन मेरे पास तो कुछ भी नहीं है यदि मैं असफल हो गया तो मेरे पिताजी क्या कहेंगे इस प्रकार के विचार आते ही वह एक बार फिर से
निराश हो गया और एक जगह पर खड़ा होकर उन्हीं के बारे में सोचने लगा यह देखकर वह बाबा उस लड़के से कहते हैं बेटा यही आखिरी पड़ाव है ऐसी मानसिक स्थिति में हमारे ऊपर संदेह हावी हो जाता है हमारे भीतर तरह-तरह के सवाल पैदा होने लगते हैं क्या मैं यह कर पाऊंगा यह मुझसे नहीं हुआ यदि मैं असफल हो गया लोग क्या कहेंगे ऐसी स्थिति में आते ही हमारी यात्रा धीमी होने लगती है और हम खुद पर संदेह करने लगते हैं और हम यह भूल जाते हैं कि हमारा लक्ष्य क्या है हमारा सारा ध्यान केवल
अपनी कमियों पर चला जाता है ऐसी अवस्था में तुम कभी भी अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर पाओगे इसलिए मेरी एक बात और याद रखना कि तुमने यह यात्रा बेहतर इंसान बनने के लिए की थी खुद को बेहतर रूप से जानने के लिए की थी संदेह तुम पर हावी ना हो इसलिए खुद को बीते हुए कल से आज को देखो कि क्या तुम कल से बेहतर हुए हो या नहीं आगे वह बाबा उस लड़के से कहता है तुम्हें बस खुद को जीतना है हर दिन रात केवल यही सोचो कि आज मैंने कल से बेहतर क्या
किया है मैं कल को बेहतर बनाने के लिए एक छोटी सी चीज क्या कर सकता हूं हर दिन की अपनी छोटी से छोटी जीत को याद करो बस तुम्हें इतना ही तो करना है जब तुम अपना ध्यान अपनी जीत पर लाओगे तो तुम्हारे भीतर का संदेह खुद ही खत्म हो जाएगा उन बाबा की बात उस लड़के ने ध्यानपूर्वक सुनी और उसके बाद उसका मन धीरे-धीरे पूरी तरह से शांत हो गया उसे ऐसा लगने लगा कि मानो वह बहुत हल्का महसूस कर रहा है उसके मन का सारा बोझ अब पूरी तरह से हटा लिया गया हो
वह उन बाबा के पीछे धीरे-धीरे एक बार फिर से आगे बढ़ने लगा वे दोनों एक साथ आगे बढ़ते जा रहे थे वे दोनों एक दूसरे को अपनी कहानियां सुना रहे थे और इस बीच रास्ते में कई रुकावटें भी आई जिस द वह बाबा उस लड़के को सतर्क करते और वह लड़का खुद बखुदा [संगीत] [संगीत] कि वह मन पर काबू पाना सीख चुका है उसने अपने मन को जीत लिया है अब वह किसी भी कार्य को कर सकता है वह किसी भी कार्य में सफल हो सकता है इस यात्रा के बाद वह पिता की सही मायनों
में मदद कर सकता है अब बाबा और वह लड़का लगातार यात्रा में आगे बढ़ रहे थे और कई दिनों की यात्रा के बाद आखिरकार वे दोनों शिखर पर जा पहुंचे शिखर पर पहुंचकर उस लड़के ने वहां पर असीम शांति का अनुभव किया उस लड़के ने वहां खड़े होकर यह सोचा कि यहां तक बहुत कम लोग पहुंच पाते हैं और जो लोग यहां पर पहुंच पाते हैं उन्हें उनका अनुभव प्राप्त हो जाता है इस दौरान उस लड़के के चेहरे पर एक गहरी मुस्कान थी उस शिखर पर खड़े होकर उसे जीत का एहसास हो रहा था उसका
सीना चौड़ा हो चुका था वह वहां खड़े होकर अपने सफर के बारे में सोचने लगा कि कितनी बार उसने अपनी मानसिक स्थिति का सामना किया और आगे बढ़ा और यहां तक पहुं गया और उसे यह भी एहसास हुआ कि जितनी बार उसने अपनी मानसिक स्थिति का सामना किया अपने मन को काबू में किया वह उतनी ही बार उठ खड़ा हुआ तब उसके मन में एक विचार और आया वह यह सोचने लगा कि बाबा सही कहते हैं कि पूरी यात्रा में कई शिखर हैं बाबा को धन्यवाद कहने के लिए जब वह लड़का पीछे मुड़ा तो वहां
पर कोई नहीं था उसने यहां वहां देखा उसने आवाज लगाई लेकिन कोई भी उसकी आवाज पर आगे नहीं आया तो दर्शकों अब चलिए जिंदगी में कैसे स्थिर बुद्धि रखकर सही निर्णय लिया जा सकता है इस विषय पर अगली कहानी की शुरुआत करते हैं बहुत समय पहले की बात है एक छोटा सा राज्य था उस राज्य का राजा बहुत खुशहाल था उसके पास किसी चीज की कोई कमी नहीं थी प्रजा भी अपने राजा का खूब आदर सत्कार किया करती थी प्रजा अपने राजा से बहुत खुश थी लेकिन आज कुछ ऐसा हुआ था जिससे राजा की की
नींद हराम हो चुकी थी राजा को रात भर नींद नहीं आ रही थी 25 सालों से आज तक ऐसा कभी नहीं हुआ था राजा के साम्राज्य पर आज तक किसी ने हमला करने का प्रयत्न तक नहीं किया था लेकिन आज पड़ोसी राज्य ने इस छोटे से राज्य पर आक्रमण कर दिया और आज राजा को अपने 25 साल पहले के वह दिन याद आने लगे जब वह एक राजा ना होकर केवल एक सेनापति था और वह अपनी राजा की आज्ञा का पालन करते हुए युद्ध की तैयारियां कर रहा था लेकिन उस वक्त उसके मन में कोई
शंका नहीं थी किसी चीज का निर्णय नहीं लेना था इसलिए वह चयन से उन चीजों की तैयारियों में जुटा था राजा बहुत दुविधा में था उसे समझ नहीं आ रहा था कि आखिर वह अपने साम्राज्य को किस तरह से किसी और राजा के हाथों में सौंपते जिस साम्राज्य को हासिल करने के लिए उसने दिन रात एक कर दिया कई लोगों को धोखा दिया कई लोगों को पीड़ा दी कई लोगों को कष्ट दिया कई प्रकार की राजनीति रची कई प्रकार के षड्यंत्र रचे इतनी सारी मेहनत करने के बाद जब उसे राजा का सिंहासन प्राप्त हुआ है
उस सिंहासन को उस साम्राज्य को वह अपने हाथों किसी और को कैसे थमा दे राजा को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करें वह बहुत चिंतित था परेशान था करवटें बदल रहा था लेकिन उसे कोई तरीका सूझ ही नहीं रहा था राजा यह बात बहुत अच्छी तरह से जानता था कि बात केवल मेरी नहीं है इस पूरे साम्राज्य की है राजा ध्यान करना जानता था वह बार-बार ध्यान करने का प्रयास भी कर रहा था ताकि वह शांत हो सके उसका मन शांत हो सके और वह अपनी अंतरात्मा की आवाज सुन सके
उसने कई बार प्रयास किया लेकिन हर बार उसे असफलता ही हाथ लगी वह अपने मन की आवाज अर्थात अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनने में असफल रहा जिस कारण वह बहुत परेशान था चिंतित था और बहुत दुविधा में था वह समझ नहीं पा रहा था कि आखिर वह क्या फैसला करें और उसके पास बहुत कम समय भी बचा हुआ था केवल उसके पास आज रात का ही समय था कल सुबह पड़ोसी राज्य उस पर आक्रमण कर देगा यदि वह केवल अपने लिए फैसला करता है तो इस साम्राज्य के लाखों लोगों की जान जा सकती है और
यदि वह इस पूरे साम्राज्य के लिए सोचता है तो उसे पड़ोसी राज्य के राजा के सामने झुकना होगा उनका सम्मान करना होगा और अपने हाथों इस साम्राज्य को उन्हें सौंपना होगा राजा बेहद दुविधा में था अत्यधिक परेशान था आखिरकार वह अपने महल की छत पर पहुंचा जहां ठंडी-ठंडी हवाएं बह रही थी रात का समय था चारों तरफ सन्नाटा था खामोशी थी राजा ने छत पर पहुंचकर आसमान की तरफ देखा आसमान में एक पक्षी निडर होकर उड़ रहा था अपनी ही मस्ती में अपने ही अंदाज में उसे रोकने वाला कोई ना था उस उस पक्षी को
देखकर राजा को यह एहसास हुआ कि जब तक कोई व्यक्ति अकेला होता है तब तक वह मस्त होता है अपने में खोया हुआ होता है उसे किसी प्रकार की कोई जिम्मेदारी नहीं उठानी पड़ती वह जब चाहे जैसा चाहे वैसा फैसला ले सकता है लेकिन जब हमारे सर पर जिम्मेदारी आ जाती है तो फिर एक आदमी अकेलापन अपनी मस्ती अपनी आजादी खो बैठता है क्योंकि उसके सर पर जिम्मेदारियां हैं उसे हर एक चीज देखनी है समझनी है और ऐसे बहुत से लोगों को सोच समझकर ही कोई निर्णय लेना है काफी समय बीत चुका था और अब
तक राजा ने कोई निर्णय नहीं लिया था और जब राजा को कोई भी रास्ता नजर ना आया तो वह अपना घोड़ा लेकर अपने गुरु के आश्रम की ओर निकल पड़ा राजा के गुरु भी बहुत सख्त थे उन्होंने पहले से ही राजा को यह चेतावनी दे रखी थी कि जब तक कोई ऐसी दुविधा ना पड़े जब तक तुम्हारे पर ऐसी कोई बड़ी समस्या ना पड़े कि तुम्हें मेरी जरूरत पड़े तब तक तुम यहां पर कभी मत आना राजा अपना घोड़ा लेकर आश्रम पहुंचा वहां पर जब उसने देखा तो उसके गुरु ध्यान में लीन थे वह अपने
गुरु के ध्यान को भंग नहीं करना चाहता था अपने गुरु को ध्यान में देख उसके मन में एक बार फिर से ध्वन युद्ध चालू हो गया उसका एक मन कहता कि गुरु को ध्यान से बाहर लाओ तभी वहीं पर उसका दूसरा मन कहता नहीं नहीं यदि गुरु को ध्यान से बाहर लाया गया गया तो यह उचित नहीं होगा गुरु क्रोधित हो जाएंगे और फिर उसके बाद क्या होगा यह कोई नहीं जानता द्वार पर खड़े होकर यह सब सोच ही रहा था तभी तक आश्रम से आवाज आई हिरण तुम दरवाजे पर खड़े होकर क्या कर रहे
हो भीतर आओ राजा आश्रम के भीतर गया और उन गुरु को प्रणाम करके कहता है गुरुदेव आप तो मेरे मन की बातें भलीभांति जानते हैं आपको यह भी पता होगा कि आज मैं क्यों यहां पर आया और किस बात से मैं चिंतित हूं चिंता के कारण मुझे नींद नहीं आ रही आप ही बताइए मैं क्या करूं मैं किस तरह से कोई एक निर्णय लूं मैं किस तरह से अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनूं जिससे मैं निर्णय लेने में सफल होता हूं किस तरह से मैं एक सफल निर्णय लूं और किस तरह से मैं अपने साम्राज्य को
बचा पाऊंगा राजा की यह बात सुनकर कुल गुरु मुस्कुराने लगे और राजा से कहते हैं हे राजन हर इंसान के दो मन होते हैं एक मन उसे कोई काम करने के लिए प्रेरित करता है तो दूसरा मन उसी काम को टालने का प्रयास करता है उस काम से पीछा छुड़ाने का प्रयास करता है और इन्हीं दोनों मन के बीच में हम फंस कर रह जाते हैं हम किसी एक तरफ निर्णय नहीं ले पाते हम किसी एक दिशा की तरफ नहीं बढ़ पाते और ऐसे समय पर हमारे मन में सवाल उत्पन्न होने लगते हैं कि जो
फैसला हम लेने जा रहे हैं क्या वह सही है या फिर गलत ऐसी स्थिति हमेशा आधी अधूरी हो जाती है और वह हमें अपने पूरे जीवन भर पछताने के लिए मजबूर कर देती है तभी वह राजा कहता है कि गुरुवर यह तो मैं भी जानता हूं और मैं भी इसी शंका में फंसा हुआ हूं मैं यहां से निकल नहीं पा रहा मुझे यह नहीं समझ आ रहा कि मैं किस तरफ जाऊं मैं कैसे सही निर्णय लूं मैं कैसे अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनू जिससे मैं एक सही निर्णय ले पाऊं आप मुझे कृपा करके कोई मार्ग
दिखाइए कोई सही तरीका बताइए जिससे मैं सफल और सही निर्णय ले पाऊं जिससे मुझे जीवन भर पछतावा ना हो तभी गुरु उस राजा की बात सुनकर एक बार फिर मुस्कुराने लगे और राजा से कहते हैं हे राजन जीवन में कोई भी फैसला गलत या सही नहीं होता यह तो हमारे मन की संरचना है यह तो हमारे मन का माया जाल है वास्तविकता तो यही है कि जो होना होता है वही होता है हमारे और तुम्हारे करने से कुछ भी नहीं होने वाला कुछ भी नहीं बदलेगा लेकिन फिर भी हम अपने अहंकार में यह सोचने लगते
हैं कि हम जैसा चाहते हैं हम वैसा ही करेंगे और जैसा हमें चाहिए बिल्कुल वैसा ही होगा हम यही सोचते हैं कि हम अपने फैसले से दुनिया बदल सकते हैं और इसीलिए हम सही और गलत के चक्कर में फंस कर रह जाते हैं और हम कोई भी कदम आगे नहीं उठा पाते कोई भी निर्णय नहीं ले पाते लेकिन वास्तविकता तो यही है कि फैसला कभी भी गलत और सही नहीं होता मान लो कि आज तुमने एक गलत फैसला भी ले लिया तो भी तुम्हें भविष्य में आगे चलकर सही सीख ही देगा और यदि तुमने एक
सही फैसला ले लिया तो वह तुम्हारे लिए कामयाबी बन जाएगी और वह तुम्हारे लिए आगे का रास्ता भी खोल देगा देखा जाए तो वास्तविक तौर पर दोनों ही परिस्थितियों में तुम्हारा ही फायदा है तुम्हारी ही उन्नति है कम से कम ऐसे में तुम एक जगह पर ठहरे हुए तो नहीं हो तुम्हारा मन इस शंका में फंसा हुआ तो नहीं है तुम इस माया जाल से निकल चुके हो तभी वह राजा उन गुरु से कहता है हे गुरुवर आप कहना क्या चाहते हैं आप कहीं यह तो नहीं कह रहे कि मैं बिना सोच विचार के कोई
भी निर्णय ले लूं क्या ऐसा करना मूर्खता का प्रमाण नहीं होगा आज मेरे ऊपर लाखों लोगों की जिम्मेदारियां हैं और मैं ऐसे ही कोई भी फैसला कैसे ले सकता हूं तभी गुरु मुस्कुराते हुए राजा से कहते हैं हे राजन तुम मेरी बात समझ नहीं रहे हो मैं तुमसे ऐसा नहीं कह रहा कि तुम सोच विचार कर निर्णय ना लो बल्कि मैं तो यह कह रहा हूं कि अच्छी तरह से सोच विचार कर निर्णय लो और अच्छी तरह से सोचने के बाद पूर्ण रूप से सोच विचार करने के बाद तुम अपने दोनों मन को एक जगह
पर सहमत करवाओ यदि तुम अपने दोनों मन को एक निर्णय पर ला पाए एक काम के लिए और एक ही दिशा में ला पाए तो वही फैसला तुम्हारी अंतरात्मा का फैसला होगा तुमने कई बार यह अनुभव तो किया ही होगा कि किसी काम में तुम्हारा मन तो लग रहा है लेकिन बुद्धि तुम्हारा साथ नहीं दे रही बुद्धि तुम्हारा पलपल विरोध कर रही है और ऐसी परिस्थिति में हमारे मन और हमारी बुद्धि के बीच युद्ध चल रहा होता है लेकिन यहां पर समझने वाली बात यह है कि जो बातें तुम्हारे मन से उठ रही है वही
बात तुम्हें सही रास्ते पर ले जाना चाहती है वहीं पर तुम्हारी बुद्धि तर्क वितर्क करके उस रास्ते को साफ करना चाहती है सभी प्रश्नों का निवारण करना चाहती है जैसे मान लो कि तुम एक पहाड़ी पर जाना चाहते हो जहां पर तुम्हें यह पता चला है कि वहां ढेर सारा सोना है लेकिन इसके लिए तुम्हें घने जंगलों से होकर गुजरना होगा तुम्हारा मन वहां जाने के लिए तैयार है वह सोने को पाना चाहता है लेकिन तुम्हारी बुद्धि तुमसे यह कह रही है जंगल बहुत घना है और बहुत खतरनाक भी है वहां पर तरह-तरह के विशाल
जानवर रहते हैं तरह-तरह के जंगली जानवर रहते हैं और उसका रास्ता भी सुरक्षित नहीं है वहां पर चोर डाकू और लुटेरे भी हो सकते हैं पर पता नहीं वहां पर रास्ते में कुछ खाने पीने को मिलेगा या नहीं मिलेगा और तो और हमारी जान को खतरा भी हो सकता है कि सारे प्रश्न हमारी बुद्धि खड़ी करती है लेकिन इसका अर्थ यह नहीं तुम्हारी बुद्धि तुम्हें रोकने का प्रयास कर रही है बल्कि वह तुम्हें सतर्क कर रही है और जब तक तुम अपनी बुद्धि के सवालों का निवारण ना कर लो तब तक आगे बढ़ना मूर्खता का
प्रमाण ही होगा ऐसे रास्ते पर जाने से पहले तुम्हें अपने खाने पीने की सामग्री का इस्तेमाल करना होगा उसके बाद सुरक्षा के लिए कुछ हथियार और कुछ सैनिकों को भी साथ लेना होगा और जब तुम्हारी बुद्धि पूरी तरह से संतुष्ट हो जाए जब उसके सभी सवालों का निवारण तुम कर लो तब तुम आगे बढ़ सकते हो क्योंकि अब तुम्हारी बुद्धि के सभी सवालों का निवारण हो चुका है लेकिन कुछ ऐसे लोग भी होते हैं जिन्हें पता होता है कि उस पहाड़ी पर खजाना है लेकिन फिर भी और वह यह भी जानते हैं कि रास्ता बड़ा
कठिन है लेकिन वह अपनी यात्रा कभी शुरू ही नहीं करते हैं यह बात और है कि हो सकता है कि तुम्हें वहां पर पहुंचकर कोई खजाना ना मिले और तुम्हें वहां से खाली हाथ ही लौटना पड़े लेकिन तुम्हें इस सत्य को भी जान लेना आवश्यक है कि जो होना होता है वही होता है उसका अफसोस करके कोई मतलब नहीं तुमने तो अपनी पूरी कोशिश की थी तुमने अपना पूरा प्रयास लगा दिया था लेकिन इसके बाद भी तुम्हें सफलता ना मिले तो इसका अर्थ यही है कि वहां पर तुम्हारे लिए जो होना था वही हुआ है
उसका अफसोस करके कोई अर्थ नहीं लेकिन उसे यूं ही जाने भी नहीं देना चाहिए उस हार से उस अनुभव से हमें कुछ सीखना चाहिए उसे सीख लेनी चाहिए और उसके बाद तुम्हें अपनी कोशिशों को और भी ज्यादा बेहतर बनाना चाहिए सिर्फ इसी चीज पर काम करना चाहिए ना कि व्यर्थ बैठकर पश्चाताप करना चाहिए अफसोस करना चाहिए मैं तो तुम्हें बस यही समझाना चाहता हूं कि अंतरात्मा की आवाज हमें तब सुनाई देती है जब हमारा मन और हमारी बुद्धि दोनों एक बात पर पूर्ण रूप से सहमत हो जाते हैं तभी वह गुरुवर उस राजा को सावधान
करते हुए कहते हैं की राजन मेरी एक बात और अपने दिमाग में अच्छी तरह से बैठा लेना जब भी कोई हानि होती है तो वह अपने पीछे पश्चाताप और अफसोस जरूर छोड़कर जाती है तुम्हें हमेशा अपनी हार पर ऐसा ही लगेगा यदि मैंने कुछ ऐसा कर दिया होता तो शायद मैं सफल हो गया होता और यही पश्चाताप यही अफसोस तुम्हें हर काम के पीछे नजर आएगा जिस काम में तुम असफल हुए हो जब भी कोई व्यक्ति असफल होता है तो वह यही सोचता है कि यदि मैंने इस काम को उस तरीके से कर दिया होता
या फिर उसके कहे के अनुसार कर दिया होता तो शायद मैं आज यहां पर सफल हो चुका होता लेकिन वास्तविकता तो यही है कि तुम्हें कभी भी इस बात का एहसास नहीं होने देगी कि तुम्हारे साथ क्या तय किया गया है और तुम्हारे साथ क्या होने वाला है हां यह बात और है कुछ सचेत और कुछ जागरूक लोग ही इस बात को जान पाते हैं कि उनके साथ आगे क्या होने वाला है इसलिए वह कभी भी उस चीज के होने का पश्चात ताप नहीं करते उसका अफसोस नहीं करते क्योंकि उन्हें पूरा पता होता है कि
आखिर क्या होने वाला है और वह अपनी पूरी कोशिश करते हैं उसके बाद जो कुछ होना था वह तो होना ही है उसमें पछतावा करके क्या लाभ किंतु जिन लोगों को अपने फैसले पर यकीन नहीं होता वह हमेशा केवल सोचते ही रह जाते हैं वह हमेशा अतीत के बंधनों में बंधे रह जाते हैं दुखी रहते हैं रोते रहते हैं लेकिन वह अपने जीवन में कुछ नहीं करते पाते लेकिन एक बुद्धिमान व्यक्ति यह भलीभांति जनता है कि अतीत को बदला नहीं जा सकता हां उसे सीख जरूर ली जा सकती है लेकिन उस पर बैठकर अफसोस करना
व्यर्थ है किंतु वर्तमान में हम सही निर्णय ले सकते हैं और भविष्य जो कि हमारे हाथों में है ही नहीं इसके बाद उन गुरु ने राजा को वहां से जाने का आदेश दे दिया और वह वापस से ध्यान में लीन हो गए और गुरु की सारी बातें सुनकर राजा के मन में जो द्वंद युद्ध चल रहा था वह पूरी तरह से शांत हो चुका था राजा वापस महल लौटा और उसने शांतिपूर्वक अपने मन और अपनी बुद्धि को एक ही निर्णय पर सहमत करवाया और वह था कि हम युद्ध लड़ेंगे जब राजा के मन से यह
निर्णय उठा तो उसकी बुद्धि ने उसके सामने कई प्रकार के सवाल उत्पन्न कर दिए जैसे कि हमारी सेना बहुत छोटी है हम उनके सामने टिक नहीं पाएंगे और पड़ोसी राज्य के पास एक विशाल सेना है जो हमें चुटकियों में मसल सकती है उनके पास तरह-तरह के हथियार हैं और लड़ने का कौशल भी है और ऐसे ही कई प्रकार के सवाल उसकी बुद्धि उससे कर रही थी उन सभी प्रश्नों का जवाब देते हुए राजा आगे बढ़ता चला गया और वह इसी निर्णय पर पहुंचा कि हम युद्ध लड़ेंगे यदि हम सही रणनीति से सही तरीके से युद्ध
लड़े तो हम छोटी सेना के साथ ही उन्हें हरा सकते हैं इसके बाद वह राजा चेन की नींद सो गया और अगली उसने अपने सेनापति को आदेश दिया कि हम युद्ध लड़ेंगे सेना को तैयार करो सेनापति ने राजा की आज्ञा का पालन किया दोनों ही राज्य में घमासान युद्ध हुआ हालांकि इस राज्य की सेना बहुत छोटी थी बहुत कम थी लेकिन राजा की सही रणनीति के कारण राजा की सही नीतियों के कारण आखिरकार राजा ने इस युद्ध को जीत ही लिया आज के रहस्यमय गौतम बुद्ध की कहानी से आप जान पाएंगे कि सांसारिक जीवन में
रहते हुए भी आप कैसे चिंता मुक्त और परम सुख शांति कैसे पा सकते हैं सन्यासी के भाति आप बिना सन्यास लेते हुए भी वैसी सुख शांति कैसे पा सकते हैं तो चलिए उस कहानी की शुरुआत करते हैं दोस्तों कभी-कभी हम जो सुनते और समझते हैं वह पूरी तरह सत्य नहीं होता आपने कई महापुरुषों की बातें सुनी होंगी कई बुद्धिमानी पुरुषों और गुरुदेव की बातें सुनी होंगी उनका कहना यह होता है कि संसार जीवन मोह और माया से भरा हुआ है हमारे रिश्ते हमारा धन हमारी इच्छाएं यह सब बस माया जाल है और जीवन का असली
लक्ष्य मोक्ष है मुक्ति है हमें आध्यात्मिक जीवन की ओर बढ़ना चाहिए जब भी आप उनकी बातें सुनते हैं तो आपके मन में एक प्रश्न उठता है और वह प्रश्न यह है क्या हमारा संसार जीवन जीना व्यर्थ है क्या हमें केवल आध्यात्मिक जीवन जीना चाहिए क्या हमें खुद की खोज करनी चाहिए क्या हमें संसार के सुख का आनंद नहीं लेना चाहिए जो लोग इस संसार जीवन में फंसे हुए हैं क्या उनका जीवन पूरी तरह से व्यर्थ है किसी को अपने माता-पिता के लिए धन कमाना है तो कोई अपने परिवार को सुखी देखना चाहता है कोई अपने
बच्चों की चिंता में दुखी है तो कोई अपने लिए कुछ करना चाहता है नाम कमाना चाहता है कोई अपनी प्रेमिका को खुश रखना चाहता है कोई अपने प्रेमी को पाना चाहता है कोई बड़ा आदमी बनना चाहता है तो कोई राज करना चाहता है कोई साधारण जीवन जीना चाहता है इसी प्रकार हम सभी की तरह-तरह के सपने हैं तरह-तरह के विचार हैं हम सभी को अपने जीवन में कुछ ना कुछ तो चाहिए ही परंतु यह सभी बुद्ध पुरुष जब हमारे सामने आते हैं तो हमारे इन सपनों को तोड़ मरोड़ के रख देते हैं जब कहते हैं
कि संसार जीवन व्यर्थ है और खुद को जानो खुद को पहचानो आध्यात्मिकता की राह पर चलो तब उस वक्त हमारे मन में हमारे मस्तिष्क में तरह-तरह के विचार उत्पन्न होने लगते हैं तब हमें यह समझ नहीं आता कि आखिर हम सांसारिक जीवन जिए या फिर आध्यात्मिक जीवन आखिर हम क्या करें आपके साथ भी कभी ना कभी ऐसा तो हुआ ही होगा क्या आपके भी मन में ऐसे कोई प्रश्न है तो आप हमें कमेंट में जरूर बताइएगा चलिए आगे बढ़ते हैं और इसके पीछे की वास्तविकता को जानते हैं और इन सबके बीच हमें जीवन में संतुष्टि
कैसे मिलेगी हम पूरी तरह से खुश कैसे रह सकते हैं क्या हमें सब कुछ छोड़कर एक बौद्ध भिक्षु की तरह सब कुछ त्याग कर आनंद मिलेगा हमारे रिश्ते पैसा कमाने की इच्छाएं परिवार के साथ संबंध हमारे दोस्त क्या यह कुछ मायने नहीं रखते दोस्तों वास्तविकता तो यही है कि आप उन बुद्ध पुरुषों की बातों को अच्छी तरह से समझ ही नहीं पा रहे क्योंकि वह कहना कुछ और चाहते हैं और आप उनकी बातों का मतलब कुछ और ही निकाल रहे हैं आप उनकी बातों से कुछ और ही समझ रहे हैं महात्मा बुद्ध खुद ही कहते
थे कि उन्हें गरीबी पसंद नहीं है वे यह कहते थे कि आपको सफलता प्राप्त करने के लिए आर्थिक रूप से सक्षम बनना आवश्यक है इसका मतलब है कि जब तक आप गरीब हैं और आपके पास आर्थिक साधनों की सामग्री नहीं है तब तक आप अपने आत्मा की खोज में आगे नहीं बढ़ सकते और ठीक उसी के विपरीत संपन्नता और अमीर होना भी आपके आध्यात्मिक मार्ग की बाधा बन जाती है कई महापुरुषों ने कई बौद्ध पुरुषों ने अपनी बातें बहुत ही सीधी और सरल भाषा में कही है लेकिन हम सभी उन बातों का अर्थ कुछ और
ही निकाल बैठते हैं हम सभी उनकी बातों को समझ नहीं पाते क्योंकि उनकी बातें रोजमर्रा की जिंदगी से बिल्कुल अलग होती है वे लोग कहना तो कुछ और चाहते हैं लेकिन हम में से ज्यादातर लोग उनकी बातों का मतलब कुछ और ही निकाल लेते और उसे अपने जीवन में उतार कर हम अपना पूरा जीवन पूरी तरह से बर्बाद कर लेते हैं चलिए इस कहानी के माध्यम से समझते हैं एक बार की बात है महात्मा बुद्ध नगरवासियों को उपदेश दे रहे थे महात्मा बुद्ध कह रहे थे कि संसार के माया जाल में मत फसो संसार से
ऊपर उठो संसार से ऊपर उठकर ही तुम संसार को जी सकते हो संसार में जो फंस गया जिसने अपनी बुद्धि का इस्तेमाल नहीं किया वह व्यक्ति जो समय पर अच्छे कर्म नहीं करता और बुरे कामों में जुट जाता है वह आने वाले समय में बड़े दुखों का सामना कर सकता है क्योंकि उसके बुरे कर्म ही उसके दुखों का कारण बनेंगे इसलिए आप सभी इस संसार की मोह माया अर्थात इच्छा लालच क्रोध इत्यादि को ध्यान पूर्वक देखते हुए अपने कर्म करें इतना कहकर महात्मा बुद्ध ने अपना उपदेश समाप्त किया और वहां से चले गए महात्मा बुद्ध
जब यह उपदेश दे रहे थे तो वहां पर उस नगर का सबसे धनी व्यक्ति वहीं पर मौजूद था और उस व्यक्ति पर महात्मा बुद्ध की बातों का बहुत गहरा असर पड़ा उसका मन अब संसारी जीवन में नहीं लगता था वह संसारी जीवन से हटने लगा था अब उसे अपना सब कुछ किया हुआ व्यर्थ नजर आने लगा था देखते ही देखते कुछ ही सालों में उसका सारा व्यापार चौपट होने लगा था उस धनी व्यापारी के परिवार के सभी सदस्य उसे इस तरह से देखकर बहुत चिंतित रहने लगे थे और जब भी कोई उससे बात करने की
कोशिश करता था तो वह धनी व्यापारी एक ही बात कहता यह धन दौलत तो सब बेकार की चीजें हैं यह सब तो मोह माया है सब बेकार है भला हम रिश्ते निभाकर क्या करेंगे यह सब तो वासना है जीवन तो केवल एक ही है और वह है मुक्ति अब तो केवल उसी की प्यास है इतना समझ चुका हूं कि अब से जो भी होगा वह सब अच्छा होगा अब से उसने व्यापार पर भी ध्यान देना बिल्कुल बंद कर दिया था और देखते ही देखते वह धनी व्यापारी उस नगर का सबसे गरीब व्यक्ति बन चुका था
वह पूरी तरह से निर्धन हो चुका था उसका सब कुछ बर्बाद हो चुका था और उसका पूरा परिवार सड़क पर आ गया था एक दिन जब उसके घर में खाने के लिए कुछ नहीं बचा तो उसने अपने आप से कहा यह मैंने क्या कर दिया सब कुछ तो बहुत अच्छा चल रहा था लेकिन मैंने अपने हाथों से ही सब कुछ बर्बाद कर दिया आज मेरे परिवार का हर एक सदस्य भूखा है उनके पास खाने के लिए कुछ नहीं और मैं उनके लिए कुछ नहीं कर पा रहा वह यह सब सोच ही रहा था कि तभी
उसे याद आया कि उसने महात्मा बुद्ध की बातों में आकर अपना जीवन बर्बाद कर लिया ना तो उसे मुक्ति मिली और ना ही धन वह सोच रहा था मैं तो कहीं का नहीं रहा थोड़े-थोड़े भोजन के लिए भी आज मुझे रोज मरना पड़ता है हर रोज मुझे मेहनत करनी पड़ती है तब जाकर मेरे परिवार को दो वक्त की रोटी मिल पाती है अपने परिवार की इस तरह से बुरी हालत देखकर उससे रहा नहीं गया वह बहुत चिंतित रहने लगा था वह बहुत परेशान हो चुका था एक दिन वह अपने घर से भाग गया रास्ते में
जब वह आगे बढ़ रहा था तब उसके मन में ख्याल आया कि वह कहां जाएगा किससे मदद मांगेगा आखिर अब उसका साथ कौन देगा तभी उसे याद आया कि उसे महात्मा बुद्ध के पास ही जाना चाहिए क्योंकि बुद्ध के कारण ही आज उसकी यह हालत है उसके हालात के जिम्मेदार तो वही है मैं तो सीधा-सीधा अपने मार्ग पर जा रहा था लगातार अपने व्यापार में उन्नति कर रहा था लेकिन जब से मैंने उनकी बातें सुनी तब से मेरा मन विचलित हो गया मुझे समझ नहीं आया कि मैं जो जीवन जी रहा हूं क्या वह सत्य
है या फिर जो वह जीवन जी रहे वह सत्य है उनकी चिकनी चुपड़ी बातों में आकर मैंने अपना सब कुछ बर्बाद कर दिया मेरे हालात के जिम्मेदार तो वही है इसीलिए मुझे उनके पास ही जाना चाहिए अपने मन में क्रोध लिए दो दिनों की लंबी यात्रा करके महात्मा बुद्ध के पास पहुंचा और क्रोध में आकर महात्मा बुद्ध से कहता है हे बुद्ध आपको कोई ज्ञान नहीं ना ही आपने सत्य की प्राप्ति की है आप तो केवल भोले भाले लोगों को हंसाना जानते हैं अपनी चिकनी चुपड़ी बातों में उन्हें बहलाना जानते हैं आप लोगों के सीधे
पण का फायदा उठाकर अपनी प्रसिद्धि और अपनी प्रशंसा करवाते हैं आप हमें ऐसे सपने दिखाते हैं जो कभी पूरे नहीं हो सकते मैं भी ऐसा ही एक सीधा साधा व्यक्ति था और मैं उस नगर का सबसे बड़ा धनी व्यक्ति था आपसे मिलने से पहले सब कुछ ठीक चल रहा था मेरे पास धन की कोई कमी नहीं थी सारे ऐशो आराम थे सारी सुख सुविधाएं थी लेकिन जब से मैंने आपका उपदेश सुना मैं आपसे इतना प्रभावित हो गया कि मैंने आपकी बातों को ही मानना शुरू कर दिया और वह सारी चीजें छोड़ द जो मुझे संसारी
जीवन से जोड़ दी थी अर्थात संसार की सारी मोह माया मैंने त्याग दी और आज देखिए आपकी वजह से मेरा पूरा परिवार भिखारी बन चुका है वह छोटी सी कुटिया में रहता है यहां तक कि रोज के खाने के लिए भी हमें तिल तिल मरना पड़ता है आपकी वजह से मैं पूरी तरह से बर्बाद हो चुका हूं उस व्यक्ति के इतना कहने के बाद महात्मा बुद्ध शांति से मुस्कुराते हुए उस व्यक्ति से कहते हैं आखिर तुम्हारे साथ क्या हुआ है और तुमने मेरी बातों का क्या मतलब निकाला इस पर वह व्यक्ति महात्मा बुद्ध को सारी
बातें बता देता है आप कहते हैं कि धन दौलत की इच्छा करना यह कामना यह वासना से बुरी है आप सांसारिक जीवन को बुरा कहते हैं और खुद इस संसार में आकर भिक्षा मांगते हैं आप आध्यात्मिक जीवन को अच्छा बताते हैं किंतु मेरा एक प्रश्न है इस आध्यात्मिक जीवन से हमें क्या मिलता है इससे हम में क्या लाभ आपने कहा था कि हमें आध्यात्मिक जीवन से सुख प्राप्त होता है लेकिन मैंने तो जब से आध्यात्मिक जीवन अपनाया है तब से मुझे केवल दुख ही दुख मिला है यहां तक कि मेरे पास जो कुछ भी था
वह भी सब में खो बैठा हूं आप लोगों को झूठा सुख दिखाकर उन्हें अंधकार में ढकेल देते हैं क्या यह वास्तविकता नहीं है इस पर महात्मा बुद्ध मुस्कुराते हुए उस व्यक्ति से कहते हैं बेटा तुम बहुत दूर से आए हो अभी तुम विश्राम कर रात को आकर मैं तुम्हें तुम्हारे सभी प्रश्नों का जवाब दे दूंगा पहले तो उस व्यक्ति ने इंकार किया लेकिन महात्मा बुद्ध के आग्रह पर वह व्यक्ति महात्मा बुद्ध की बात मान गया और आश्रम में जाकर विश्राम करने लगा रात्रि के बाद महात्मा बुद्ध उस व्यक्ति के पास आए और कहा बेटा मैंने
एक व्यक्ति की बात सुनी वह कह रहा था कि एक हाथी हवा में उड़ रहा था और वह अपने पैर तेजी से मारता हुआ हवा में चला जा रहा था उसने तो यह भी देखा कि एक बड़ी मछली अपने पैरों से जमीन पर चल रही थी और एक कुत्ता समुद्र की गहराइयों में सांस ले रहा था इतना कहकर महात्मा बुद्ध शांत हो गए वह व्यक्ति महात्मा बुद्ध की सारी बातें सुनकर महात्मा बुद्ध से कहता है हे तथागत उसके आगे क्या हुआ आखिर आप चुप क्यों हो गए तभी महात्मा बुद्ध उस व्यक्ति को समझाते हुए कहते
हैं बे क्या तुम्हें लगता है कि ऐसा वास्तव में हो सकता है इस पर व्यक्ति जवाब देते हुए कहता है बुद्ध अगर आप कह रहे हैं तो यह अवश्य ही सच होगा क्योंकि आप इतने बड़े ज्ञानी हैं आपने सत्य की प्राप्ति की है तो आपके मुख से निकला हुआ हर एक शब्द तो सत्य ही होगा तभी महात्मा बुद्ध मुस्कुराते हुए उस व्यक्ति से कहते हैं बेटा क्या तुमने कभी पहले ऐसा कभी होते हुए देखा है क्या तुमने कभी किसी हाथी को देखा है जो पैर के साथ हवा में तेजी से उड़ता जा रहा हो इसके
जवाब में वह व्यक्ति कहता है तथागत मैंने तो कभी नहीं देखा तभी महात्मा बुद्ध कहते हैं तुमने मुझसे प्रश्न क्यों नहीं किया कि आखिर वह हाथी आकाश में कैसे उड़ सकता है इसके जवाब में व्यक्ति कहता है है तथागत आपके मुख से सुनकर मुझे ऐसा लगा कि मानो वह सत्य हो और आप कह रहे हैं तो यह सत्य ही होगा इसीलिए मैंने आपसे एक भी बार प्रश्न नहीं किया तभी महात्मा बुद्ध उस व्यक्ति को समझाते हुए कहते हैं कभी किसी की बातों पर मत जाना बल्कि खुद विचार करो स्वयं सोचो कि उस बात में कितनी
सच्चाई है जो व्यक्ति कह रहा है क्या वह सच है आखिर वह कहना क्या चाहता है हो सकता है कि वह कुछ और कहना चाहता हो और तुम उसका अर्थ कुछ और ही निकाल रहे हो कम से कम तुम्हें एक बार प्रश्न करके यह समझना तो चाहिए कि आखिर वह कहना क्या चाहता है अगर तुम मुझसे पूछते कि आखिर वह हाथी हवा में कैसे उड़ सकता है तो इसका जवाब मैं तुम्हें अवश्य देता मैं तुम्हें ऐसा बताता कि एक छोटा सा बच्चा अपने खिलौनों के साथ खेल रहा है वह हाथी को हवा में उड़ा रहा
है और कुत्ते को पानी में डूबा रहा है और रही बात मछली की तो वह उसे जमीन पर चला रहा है क्या ऐसा संभव नहीं हो सकता इसके जवाब में व्यक्ति कहता है हां बिल्कुल ऐसा हो सकता है कि महात्मा बुद्ध उस व्यक्ति को कहते हैं इसी प्रकार मैं कभी किसी को निर्धन या गरीब होने के लिए नहीं कहता निर्धनता या गरीबी तुम्हारे विकास में बाधक बन जाती है जिससे तुम और कुछ नहीं सोच पाते ना ही कुछ समझ पाते हो इन भिक्षुओं को देखो जब इन्हें भोजन की आवश्यकता होती है तो यह भिक्षा मांगने
के लिए निकल पड़ते हैं लेकिन यह भिक्षा कहां से आती है इसके जवाब में व्यक्ति कहता है है तथागत हर कोई रोज मेहनत करता है ताकि उसके परिवार का पालन पोषण हो सके और जो वह मेहनत करता है उसके बदले में उसे कुछ पैसे मिलते हैं उन पैसों से भोजन खरीदता है और वही भोजन वह आपको भी सौंप है और वही से भिक्षा आती है तभी महात्मा बुद्ध उस व्यक्ति से एक और प्रश्न करते हैं बेटा यह बात तो सत्य है लेकिन तुम क्या मुझे यह बता सकते हो कि आखिर यह धन कहां से आता
है इसका जवाब देते हुए व्यक्ति कहता है हे तथा धन तो सभी लोग अर्जित करते हैं सभी कमाते हैं तभी महात्मा बुद्ध इस व्यक्ति को समझाते हुए कहते हैं ठीक इसी प्रकार दुनिया में यदि हर कोई भिक्षा मांगने लग जाए तो आखिर भोजन कहां से आएगा अनाज कौन उगाए व्यापार कौन करेगा और लोगों की रक्षा के लिए धन कहां से इकट्ठा होगा लोगों की जरूरतें कैसे पूरी होंगी यह सुनकर व्यक्ति थोड़ा सा अचरज में पड़ गया और महात्मा बुद्ध से कहता है किंतु हेत त आप ही तो कहते हैं कि मनुष्य की इच्छा कामना और
वासना लालच और क्रोध यह सभी मनुष्य के विकार हैं और हमें इनसे दूर रहना चाहिए तभी वह आत्मज्ञानी कहलाता है तभी महात्मा बुद्ध कहते हैं बेटा मैं तो अभी भी यही कह रहा हूं कि मनुष्य को इन सब चीजों से दूर रहना चाहिए इस पर व्यक्ति महात्मा बुद्ध की बात काटते हुए कहता है हे तथागत और दुनिया तो इसी पर चल रही है इसके बिना भला यह संसार कैसे चल सकता है हर किसी को पैसों की जरूरत है बिना पैसों के वह अपने परिवार को नहीं चला सकता वह अपने परिवार का पालन पोषण नहीं कर
सकता वह अपने परिवार के लिए भोजन नहीं ला सकता और यदि वह पैसे नहीं कमाए तो वह भूखा मर जाएगा तभी महात्मा बुद्ध कहते हैं बेटा यह संसार इन चीजों से नहीं चल रहा इन चीजों से बिगड़ रहा है इस पर व्यक्ति कहता है हे तथागत आखिर आप क्या कहना चाहते हैं मैं आपकी बात समझ नहीं पा रहा संसार में इच्छा कामना वासना और क्रोध ही तो है और जब हम इनका त्याग कर देते हैं तब हम आध्यात्मिक मार्ग की ओर आगे बढ़ते हैं अर्थात मुक्ति के मार्ग पर यानी कि हम सन्यासी के मार्ग पर
चलते हैं इस पर महात्मा बुद्ध जवाब देते हुए कहते हैं बेटा तुमने जो कुछ कहा वह भी एक बहुत बड़ा सत्य है इच्छा कामना वासना और क्रोध ऐसे ही बुरी भावनाओं को छोड़ देने से हम संसार छोड़कर सन्यासी हो जाते हैं और इन्हीं सभी चीजों को छोड़कर भी हम संसार में जी सकते हैं धन कमा सकते हैं मान पद प्रतिष्ठा और सम्मान कमा सकते हैं क्योंकि हम सब अपना कर्म ही तो कर रहे हैं एक किसान खेती करता है पर वह अपनी खेती बिना बुरी भावनाओं के भी कर सकता है एक व्यापारी व्यापार करता है
और इस व्यापार में चीजों को यहां से वहां पहुंचाना होता है और वह व्यापारी इन चीजों को बिना बुरी भावना के कर सकता है ठीक उसी प्रकार एक राजा भी अपनी प्रजा की रक्षा करता है और वह भी अपने कर्म बिना किसी बुरी भावना के कर सकता है और एक भिक्षु इन सभी लोगों को सही प्रकार और सही कार्य करने के लिए मार्गदर्शन करते हैं जो उस भिक्षु का कर्म है जो उसका कार्य है और जो व्यक्ति जागृत होकर अपने कर्मों का सही पालन करता है वास्तविकता में वही सन्यासी है वही भिक्षु है क्योंकि हम
जो भी कर्म कर रहे हैं वह हमारा इस संसार में रहने के लिए जीवित होने के लिए जीवन जीने के लिए केवल एक माध्यम मात्र ही है उसे छोड़कर हम कुछ भी नहीं पा सकते और हमारे सभी कर्म करते हुए हमारा मुख्य उद्देश्य जागृत होना है खुद को पहचानना है खुद को जानना है एक बार यदि हमारे भीतर ज्ञान का उदय हो गया तब हम चाहे जो भी करें वह फिर संसारी हो या सन्यासी सब ही होते हैं इस पर व्यक्ति महात्मा बुद्ध से कहता है हे बुद्ध किंतु मैंने तो देखा है कि आप अपने
संघ में उन लोगों को भी शामिल कर लेते हैं जो लोग अपने परिवार को छोड़कर आए अपने माता-पिता को छोड़कर आए हैं अपने बीवी बच्चों को छोड़कर आए हैं क्या आप उनसे कभी यह कहते हैं कि जाकर अपनी जिम्मेदारियां पूरी करो जाओ अपनी जिम्मेदारियां संभालो और धन कमाओ और वहीं पर रहकर तुम आत्म ज्ञान प्राप्त करो उस व्यक्ति के प्रश्न का जवाब देते हुए महात्मा बुद्ध कहते हैं भक्त क्या तुम शांति को हवा में उड़ा सकते हो इसके जवाब में वह व्यक्ति कहता है नहीं मैं नहीं उड़ा सकता तभी महात्मा बुद्ध कहते हैं केवल एक
बच्चा ही हाथी को हवा में उड़ा सकता है ठीक उसी प्रकार जिस व्यक्ति को जो बनना है वह तो वह बनकर ही रहेगा जैसे किसी व्यक्ति को राजा बनना है तो वह राजा बनेगा किसी व्यक्ति को बनना है तो वह व्यापारी बनेगा ठीक इसी प्रकार यदि किसी व्यक्ति को आत्मज्ञान की प्राप्ति करनी है तो उसे सब कुछ तो त्यागना ही होगा आगे महात्मा बुद्ध उस व्यक्ति से कहते हैं बेटा क्या तुम सब कुछ छोड़कर आत्म ज्ञान के मार्ग पर आगे बढ़ते या फिर तुम यह सोच रहे थे कि इस रास्ते पर चलकर जीवन आसान हो
जाएगा जो होगा सब अच्छा होगा सब कुछ अपने आप ही मिलने लगेगा मुझे तो कुछ करने की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी सारे दुख दर्द सब कुछ समाप्त हो जाएगा और जीवन में चमत्कार होने लगेगा और अंत में मुक्ति भी मिल जाएगी महात्मा बुद्ध की यह बात सुनकर उस व्यक्ति को अपनी गलती का एहसास हो गया वह महात्मा बुद्ध के चरणों में गिर पड़ा और कहने लगा हे तथागत आप सत्य कहते हैं मैंने तो कुछ ऐसा ही सोचा था क्योंकि मेरा व्यापार सही नहीं चल रहा था तो मुझे लगा कि सब कुछ छोड़कर सब मिल जाएगा
मुझे कुछ करने की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी और मेरे सारे दुख दर्द हमेशा हमेशा के लिए खत्म हो जाएंगे और मैं आत्म ज्ञान भी प्राप्त कर पाऊंगा तभी महात्मा बुद्ध उस व्यक्ति से कहते हैं बेटा भिक्षु हो जाना कोई आसान बात नहीं है इसके लिए सब कुछ त्यागना पड़ता है एक एक चीज जिससे तुम बहुत प्रेम करते हो वह सारी चीजें तुमसे एक-एक करके दूर हो जाती हैं तो क्या तुम भिक्षु बनने के लिए तैयार हो क्या तुम सब कुछ छोड़कर अध्यात्म के मार्ग में आगे बढ़ना चाहते हो इसके जवाब में व्यक्ति कहता है है
तथागत मुझे मेरी गलती का एहसास हो चुका है मुझे भिक्षु नहीं बनना मैं तो व्यापारी ही ठीक हूं मैं तो अपने संसारी जीवन में ही ठीक हूं परंतु अब भी मेरे मन में एक प्रश्न शेष बचा है अगर आपकी आज्ञा हो तो वह प्रश्न भी मैं आपसे पूछना चाहूंगा तभी महात्मा बुद्ध उसे आज्ञा देते हैं इस पर व्यक्ति कहता है हे तथागत आप ही तो कहते हैं कि धन नहीं कमाना चाहिए पद प्रतिष्ठा अहंकार हमें दुख की ओर ले जाते हैं और संसार में यही तो है और क्या है यदि हमें संसारी जीवन जीना है
तो हमें यह सब तो करना ही पड़ेगा तभी महात्मा बुद्ध मुस्कुराते हुए उस व्यक्ति से कहते हैं क्या तुम्हें भूख लगी है इस पर व्यक्ति कहता है हां तथागत मुझे बहुत भूख लगी है तभी महात्मा बुद्ध उस व्यक्ति को भोजन करवाते हैं उसे भरपेट भोजन खिलाने के बाद महात्मा बुद्ध उस व्यक्ति से कहते हैं लो और खाओ यह सब तुम्हारे लिए ही है इसके जवाब में वह व्यक्ति कहता है तथागत मैं पहले ही बहुत ज्यादा खा चुका हूं अब मुझसे और नहीं खाया जाएगा मेरे पेट में अब थोड़ी भी जगह नहीं रह गई है यदि
मैंने और अधिक खाया तो मेरा पेट दर्द करने लग जाएगा और फिर मुझे तरह-तरह की परेशानियां हो लगी मैं परेशान हो जाऊंगा तभी महात्मा बुद्ध मुस्कुराते हुए उस व्यक्ति से कहते हैं बेटा मैं भी तो तुम्हें यही समझाने का प्रयास कर रहा हूं कि जितनी जरूरत है उतना ही खाओ उतना ही धन कमा जितने की तुम्हें आवश्यकता है क्योंकि हर चीज जब हद से ज्यादा हो जाती है तो वह नुकसान जरूर पहुंचाती है फिर वह चाहे धन हो चाहे इच्छा चाहे लालच या फिर कामना या वासना कुछ हद से ज्यादा आपको नुकसान ही पहुंचाएगा और
यह सब आपको केवल दुख ही देंगे इसलिए इन्हें नियंत्रण में रखना चाहिए जितने की हमें आवश्यकता है उतना ही हमें चाहिए और जब आप इसे नियंत्रण में रखते हैं तो यह कभी आपको दुख नहीं दे पाएगा आप हमेशा सुखी रहोगे आगे महात्मा बुद्ध उस व्यक्ति से कहते हैं भंते धन कमाना आवश्यक है क्योंकि धन की कमी नहीं होनी चाहिए भोजन की कमी नहीं होनी चाहिए किसी भी कार्य को करने के लिए मन में इच्छा की कमी नहीं होनी चाहिए लेकिन उसी के साथ में यह भी ध्यान रखना है कि इच्छा अत्यधिक भी नहीं होनी चाहिए
और मैं तुम्हें यही समझाने का प्रयास कर रहा हूं मैं तुम्हें यही ज्ञान देने का प्रयास कर रहा हूं कि मध्य में रहो ना कम ना ज्यादा इसलिए जाओ और धन कमाओ व्यापार करो अपने कर्म से ना केवल अपना बल्कि दूसरों का भला भी करो जब तुम अपने किए के सांसारिक कार्यों से लोगों का भला करते हो तब तुम में और किसी सन्यासी अर्थात किसी भिक्षु में कोई अंतर नहीं रह जाता बस सभी के मार्ग अलग होते हैं लेकिन मंजिल एक ही होती है और तुम कभी मार्ग से भटक ना जाओ इसलिए ऐसे लोगों की
संगत में रहना जो तुम्हें आत्मज्ञान के सीधे मार्ग पर ले चले जो सांसारिक जीवन से हटकर नए जीवन में प्रवेश करवाएं क्योंकि वे लोग बुराइयों से लड़ने में तुम्हारी मदद करें तुम्हें ताकत मिलेगी और तुम लगातार बिना विचलित हुए आध्यात्मिक मार्ग पर लगातार आगे बढ़ते चले जाओगे इतना कहकर महात्मा बुद्ध शांत हो गए वह व्यक्ति महात्मा बुद्ध को प्रणाम करके कहता है हे तथागत आपकी शिक्षाएं तो बिल्कुल अलग हैं आप जो कहते हैं उसके पीछे का अर्थ कुछ अलग ही होता है बहुत सीधा और सरल लेकिन हम उसे समझ नहीं पाते आपके पास चमत्कार का
आश्वासन नहीं और आपके पास वह मार्ग है जिस मार्ग पर चलकर मैं अवश्य ही अध्यात्म को प्राप्त कर सकता हूं जिससे मेरा और लोगों का सभी का भला होगा हे तथागत यह मेरी ही गलती थी कि मैंने आपकी बातों का गलत मतलब निकाला और एक व्यापारी होकर भी मैंने अपने कर्म को छोड़ दिया और यह सोचने लगा कि अब अपने आप ही सब कुछ होगा सब कुछ अच्छा ही होगा लेकिन यह सत्य है कि अपने आप कुछ नहीं होता जब हम हाथ पैर चलाएंगे काम करेंगे कर्म करेंगे तभी हमें फल मिलेगा जब हम हाथ पैर
मारना छोड़ देते हैं तो नदी का बहाव हमें अपने साथ बहाकर ले चला जाता है और तब हमारे हाथों में कुछ नहीं रह जाता और यही मेरे साथ भी हुआ है हे तथागत आज से मैं आपको वचन देता हूं कि मैं अपना कर्म पूरी ईमानदारी के साथ करूंगा आपके दिए हुए मार्ग पर मैं पूरी ईमानदारी से चलूंगा मैं आपको वचन देता हूं कि मैं एक अच्छा व्यापारी और एक अच्छा इंसान बनकर रहूंगा मैं आत्म ज्ञान के मार्ग पर अपने कर्म करते हुए आगे बढ़ता रहूंगा इतना कहकर वह व्यक्ति महात्मा बुद्ध को प्रणाम करके वहां से
लौट गया इंसान को काम वासना कैसे बर्बाद करती है और इससे छुटकारा कैसे पाना है काम वासना शरीर को क्या क्या नुकसान पहुंचती है इस विषय पर हम आज एक रहस्यमय पुरानी कहानी आपको सुनाएंगे तो चलिए शुरुआत करते हैं 100 रानियों के साथ रहते रहते सम्राट अपने जीवन से परेशान हो चुका था उसे अपनी युवावस्था के वह दिन याद हो आए जब उसके मन में स्त्रियों के प्रति कोई आकर्षण नहीं था जब उसे काम शक्ति और काम वासना के बारे में पता तक नहीं था उस समय को याद करके राजा की आंखों में आंसू आ
गए कितना ऊर्जावान कितना जोशीला और कितना ताजगी से भरा हुआ रहा करता था और आज सम्राट बुड्ढा हो चुका था लेकिन बुड्ढा होने के बाद भी वह अपनी काम वासना से छुटकारा नहीं पा सका था यूं तो उसने हजारों युद्ध जीते थे लेकिन अपने मन पर वह आज तक विजय प्राप्त नहीं कर पाया था अपनी काम वासना के सामने उसने अपने घुटने टेक दिए थे अब तो सम्राट को चिंता होने लगी थी क्योंकि वह बूढ़ा हो चुका था और किसी भी वक्त उसकी मृत्यु हो सकती थी लेकिन मृत्यु को अपने सामने देखकर जहां पर लोग
मोक्ष और मुक्ति की बातें सोचते हैं वहीं पर सम्राट काम वासना के विचारों से घिरा रहता था 100 रानियां थी उसकी एक से बढ़कर एक हसीन और हर रानी के साथ उसने बच्चे भी पैदा किए थे इतना काम भोग भोगने के बाद भी उसका मन छटपटा आता क्यों है क्यों उसमें अब भी अश्लील विचार आते रहते हैं सम्राट सोच में पड़ गया कि क्या मरने के बाद भी यह काम वासना का बोझ अपने साथ लेकर यहां से जाऊंगा सम्राट आत्मा के सिद्धांत को मानने वाला था इसीलिए उसने सोचा कि अगर मैंने अपनी काम वासना से
अभी छुटकारा नहीं पाया तो मेरी आत्मा ना जाने कब तक यूं ही भटकती रहेगी मुझे अपनी आत्मा को मुक्त करने के लिए इन काम वासना के विचारों को यहीं पर छोड़ देना होगा सम्राट दिन रात इसी चिंता में डूबा रहता था कि किस प्रकार मैं अपनी काम वासना से छुटकारा पा सकता हूं और इसीलिए एक दिन उसने अपने राज महल में सभी विद्वानों की एक सभा बुलाई स्वाभाविक रूप से सभा में चर्चा का विषय काम वासना ही रखा गया था सम्राट ने अपने मंत्री से पूरे नगर में घोषणा करवा दी थी कि जो भी विद्वान
राजा के मन को संतुष्ट कर पाएगा वह पूरे जीवन काल के लिए राजा का सलाहकार बनकर रहेगा इसीलिए नगर के सारे विद्वानों में एक होड़ लग गई थी मंत्रिमंडल के द्वारा तय किए गए दिन नगर के सारे विद्वान राज महल में पहुंच गए कोई अपने हाथ में वेद लिए हुए था तो किसी के हाथ में उपनिषद थे ज्यादातर विद्वान राजा को वेद और उपनिषदों के माध्यम से संतुष्ट करना चाहते थे सभा में तर्क वितर्क शुरू हुए सम्राट ने सबसे पहला सवाल पूछा कि ब्रह्मचर्य का असली मतलब क्या होता है कुछ विद्वानों ने जवाब दिया कि
जिस इंसान ने अपने जीवन में कभी भोग नहीं किया होता वही असली ब्रह्मचारी होता है दूसरे विद्वानों ने इस बात का विरोध करते हुए बताया कि हो सकता है किसी इंसान ने भोग किया हो लेकिन वर्तमान में अगर वह भोग का त्याग कर चुका है तो वह भी ब्रह्मचारी कहलाता है और वास्तविकता में वही ब्रह्मचारी होता है जो भोग करने के बाद उसका त्याग कर देता है वही ब्रह्मचारी कहलाता है सम्राट को किसी विद्वान के उत्तर से संतुष्टि नहीं हो रही थी और इधर विद्वान आपस में तर्क वितर्क करने पर लगे हुए थे कुछ ही
देर में वहां पर एक बहुत अनूठा विद्वान पहुंचा वह अपने साथ बेहद खूबसूरत दो यूथिया को लिए हुए था उस विद्वान ने वहां पहुंचते ही पहले तो देरी से आने के लिए सम्राट से क्षमा मांगी उसको देखकर बाकी के सब विद्वान हंसने लगे एक विद्वान ने इस सभा में खड़े होकर कहा कि जो इंसान खुद काम वासना से ग्रस्त हो वह दूसरे को काम वासना से छुटकारा कैसे दिला सकता है इस पर इस विद्वान ने मुस्कुराते हुए उससे पूछा कि तुम्हें ऐसा क्यों लगता है कि मैं काम वासना से ग्रस्त हूं उस विद्वान ने कहा
कि तुम हमें अंधा समझते हो क्या हमें बेवकूफ समझते हो तुम यहां राज महल में दो यूथ हों के साथ प्रवेश कर रहे हो इसका मतलब क्या होता है इसका अर्थ तो सीधा-सीधा यही है कि तुम एक काम वासना से ग्रस्त आदमी हो क्या मैं गलत कह रहा हूं उस विद्वान ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया कि महाशय जिन युवतियों की तुम बात कर रहे हो वो दोनों मेरी बहने हैं और वह भी मेरी ही तरह काम वासना की गहरी समझ रखती हैं इस विद्वान ने सम्राट को संबोधित करते हुए कहा कि असली ब्रह्मचारी वही होता
है जिसकी नजरों में एक पुरुष और एक महिला का अंतर हट गया हो जब किसी इंसान की कामवासना खत्म हो जाती है जो पूर्ण रूप से ब्रह्मचारी हो जाता है उसके लिए सभी का शरीर एक इंसान का शरीर होता है उसके अंदर किसी महिला को देखकर काम वासना के विचार उठना तो दूर वह तो भेद भी नहीं कर पाएगा कि यह एक महिला है उस ब्रह्मचारी के लिए हर एक जीवात्मा एक प्रकार की होती है शारीरिक रूप से वह उनमें कभी भी भेद नहीं करेगा उस विद्वान ने आगे बताया कि जो भी विद्वान यहां सभा
में उपस्थित हैं उन सभी को मेरे साथ यह दो युवतियां दिखी तो यह तो स्पष्ट हो गया कि यहां पर कोई भी असली ब्रह्मचारी का मतलब या अर्थ नहीं समझता है सम्राट को यह विद्वान बड़ा ही अनूठा लगा उसने ना तो कोई वेद पढ़े ना कोई उपनिषद का ज्ञान दिया वह तो वही बता रहा था जो स्वाभाविक रूप से आदमी की समझ में आता है इसीलिए सम्राट ने प्रभावित होकर अगला सवाल पूछा कि आखिर एक इंसान को ब्रह्मचर्य का पालन करने की क्या जरूरत है जब वह भोग करके जीवन का आनंद उठा सकता है तो
वह क्यों ब्रह्मचर्य का पालन करें इस पर उस विद्वान ने सम्राट से एक सवाल किया उसने पूछा कि सम्राट मुझे एक बात बताओ कि एक पेड़ ज्यादा ताकतवर होता है या फिर एक बीज सम्राट ने उत्तर दिया कि एक पेड़ एक बीज से ही तो जन्म लेता है तो इस प्रकार तो एक बीज एक पेड़ से ज्यादा ताकतवर हुआ विद्वान ने बताया कि सम्राट उसी प्रकार हमारे शरीर में भी काम शक्ति रूपी बहुत सारे बीज होते हैं उनमें असीम ऊर्जा होती है जो हमारे लिए आनंद का स्रोत पैदा करती है लेकिन काम वासना में ग्रस्त
होकर हम अपने काम शक्ति रूपी बीजों को यूं ही नष्ट करते रहते हैं बर्बाद करते रहते हैं और उन बीजों के नष्ट हो जाने के कारण एक आदमी ढीला आलस्य से भरा हुआ हमेशा थका थका सा रहता है याद रखना हमारे भोजन से हमारा रक्त बनता है रक्त से हमारा मैस हमारी हड्डी और आखिर में काम शक्ति रूपी बीज बनते हैं जो कि बहुत ही कम मात्रा में होते हैं इसीलिए अपने मन में उठने वाली काम वासना के लिए उन बीजों को नष्ट करना कहीं से भी तार्किक नहीं है ब्रह्मचर्य का पालन करने से उन
बीजों की शक्ति हमारे आंतरिक स्वरूप में समा जाती है जो हमारे चेहरे पर तेज पैदा करती है हमारे शरीर को बीमारियों से बचाती है और यही काम शक्ति रूपी बीज जब ध्यान के माध्यम से एक ऊर्जा में परिवर्तित कर दिए जाते हैं तो यही आनंद का स्रोत बन जाते हैं सम्राट ने अगला सवाल पूछा जो सम्राट के जीवन के लिए बहुत ही महत्त्वपूर्ण था सम्राट ने पूछा कि काम वासना से छुटकारा किस प्रकार पाया जाए विद्वान ने उत्तर दिया कि हे सम्राट जो बुद्धिमान होता है वह यह जानता है कि काम वासना रूपी का पानी
जो जितना ज्यादा पिएगा उतनी ही ज्यादा प्यास उसे लगेगी उसकी प्यास कभी नहीं बुझेगी इसलिए तो वह कभी इस काम वासना रूपी कुएं का पानी पीता ही नहीं और अगर ग्रस्त जीवन होने के कारण मजबूरी वश उसे कभी इस कुएं का पानी पीना भी पड़ जाता है तो वह सिर्फ एक कुए का पानी पीता है उस विद्वान ने राजा को संबोधित करते हुए कहा कि आपके जीवन में आपने 100 रानियों से शादी की लेकिन आपने भी महसूस किया होगा कि जिसकी प्यास बुझनी होती है उसकी प्यास एक ही जगह पर बुझ जाती है लेकिन जिसकी
प्यास नहीं बुझनी होती चाहे वह 100 स्त्रियों के साथ भोग कर ले लेकिन फिर भी उसकी प्यास अधूरी रह जाएगी विद्वान ने सभी को समझाते हुए आगे कहना शुरू किया कि अगर आपके जीवन का लक्ष्य स्पष्ट नहीं है तो आप सभी प्रकार की भोग की वस्तुओं में गिर जाएंगे लेकिन वहीं पर अगर आपका लक्ष्य स्पष्ट है तो आप अपना पूरा ध्यान अपने लक्ष्य को पूरा करने में लगाएंगे ना कि भोग करने में सम्राट तुमने सुना होगा एक कहावत बहुत पुरानी है कि खाली दिमाग शैतान का घर होता है इसीलिए एक इंसान को अपने जीवन का
लक्ष्य स्पष्ट दिखाई देना चाहिए शुरुआती चरण में काम वासना हमेशा हमारे विचारों के द्वारा उत्पन्न होती है और अगर हम अपने विचारों को ऐसी जगह पर लगाएंगे जिससे हमारा लक्ष्य पूरा हो सके तो हमारे मस्तिष्क में काम वासना के विचारों के लिए कोई जगह ही नहीं बचेगी विद्वान ने सम्राट को चेतावनी देते हुए कहा कि सम्राट याद रखना भोग करने से ज्यादा खतरनाक काम वासना के विचार होते हैं वह हमारा मानसिक संतुलन बिगाड़ देते हैं हमारी दृष्टि को भ्रमित कर देते हैं उस विद्वान ने सभी को सभा में एक कहानी सुनाते हुए कहा कि एक
बार दो सन्यासी भिक्षा मांगकर अपने आश्रम में वापस आ रहे थे रास्ते में एक नदी थी उनका आश्रम नदी के उस पार था इसीलिए उन्हें नदी पार करके जाना होता था एक दिन जब वह भिक्षा मांगकर अपने आश्रम में वापस लौट रहे थे तो नदी के किनारे एक महिला बैठी हुई थी उस महिला ने उन दोनों सन्यासियों से पूछा कि क्या आप मुझे नदी पार करवा सकते हैं उनमें से एक सन्यासी ने तो छूटते ही मना कर दिया उसने अपने मन में सो कि मैंने तो ब्रह्मचर्य का व्रत ले रखा है भला मैं किसी स्त्री
को छू कैसे सकता हूं दूसरे सन्यासी ने मुस्कुराते हुए उस महिला को अपने कंधे पर बिठा लिया और अपने कंधे पर बैठाकर उसने उसे वह नदी पार करवा दी यही बात उस दूसरे सन्यासी को अखड़ी किनारे पर छोड़कर अपने आश्रम के रास्ते से वापस अपने आश्रम आ रहे थे तो उस सन्यासी ने कहा कि तुमने यह ठीक नहीं किया तुम्हें उस महिला को अपने कंधे पर नहीं बिठाना चाहिए था तुमने उसे वह नदी पार करवाकर बहुत बड़ी गलती की है इसीलिए मैं तुम्हारी शिकायत गुरुजी से करूंगा उस सन्यासी ने हंसते हुए कहा कि मैं तो
उस महिला को कभी का अपने कंधे से उतार चुका हूं लेकिन शायद तुम उसे अपने दिमाग में से अभी तक नहीं उतार पाए हो सभा में उपस्थित सभी लोग उस विद्वान की यह कहानी बड़े ध्यान से सुन रहे थे आखिर में विद्वान ने सम्राट को बताया कि सम्राट उसी तरह हम भी अपने मन पर ना जाने कितने बोझ लेकर चलते रहते हैं कामों के विचार हमारे मन को उसी प्रकार मैला करते रहते हैं जिस प्रकार सिर्फ एक गंदा नाला पूरी नदी को मैला कर देता है अगर तुम जीवन में आनंद चाहते हो ऊर्जा से भरा
हुआ महसूस करना चाहते हो तो अपने मन के लिए पवित्र विचारों का रास्ता बनाओ उस विद्वान ने आखिर में सबसे महत्त्वपूर्ण सीख बताते हुए कहा कि जीवन में अगर किसी भी वस्तु का होश पूर्वक भो किया जाए तो मन उसकी अनिश्चितता समझ लेता है मन समझ लेता है कि यह वस्तु हमें हमेशा के लिए आनंद नहीं दे सकती हमें परमानंद के लिए कोई और रास्ता चुनना होगा और जब मन इन बातों को समझने लगता है तो अपने आप ही उसमें से काम वासना के विचार विलीन होने लगते हैं इसीलिए होश में रहकर वस्तुओं का भोग
करना सीखो जिससे तुम उनकी अनिश्चितता समझ सको यह सुनकर सम्राट ने प्रश्न किया कि होश पूर्वक भोग भोगने तुम्हारा मतलब क्या है इस पर उस विद्वान ने सम्राट को समझाते हुए उत्तर दिया कि जिस मनुष्य का चित्र एक काम में पूरी तरह से नहीं लग पाता है वह किसी भी कर्म को परिपूर्णता में नहीं कर पाते हैं इसीलिए उस कर्म का फल हमें पूरी तरह से नहीं मिल पाता है उदाहरण के लिए जब एक मनुष्य किसी दूसरे मनुष्य को दान देता है तो दान देते वक्त उसका मन किसी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सोच रहा
होता है उसी प्रकार जब कोई भगवान से प्रार्थना करता है तो वह उनकी पूरे चित्त से भक्ति भाव से आराधना करने की बजाय वह अपनी इच्छा प्राप्ति के लिए प्रार्थना कर रहे होते हैं सम्राट तुम खुद सोचो अगर कोई मनुष्य पूरे चित्र से कोई कर्म करता ही नहीं तो उसे उस कर्म का पर्याप्त फल कैसे प्राप्त होगा यह तो असंभव सी बात लगती है सम्राट जो जीवन में घटित हो रहा है उसे घटित होने दो और आखिर में यही तुम्हें अंतिम सत्य तक पहुंचा देगा लेकिन जो कुछ भी घटित हो रहा है उसमें तुम अपना
पूरा चित्त लगाओ पूरा चित्त लगाओगे तो तुम्हारा ध्यान वहां पर लगेगा और जब तुम्हारा ध्यान वहां पर लगेगा तो वही काम होश पूर्वक होने लगेगा जागते हुए कोई कर्म करने से बाद में पश्चाताप हो ही नहीं सकता पश्चाताप तभी होता है जब हम सोए सोए कोई काम करते हैं और उसी प्रकार हम सोए सोए ही सोच रहते हैं कि हम हमें काम वासना से छुटकारा पाना है लेकिन यह सब संकल्प आदमी सोते सोते ही लेता है जागृत अवस्था में संकल्प लेने की जरूरत ही नहीं पड़ती क्योंकि खुली आंखों से जागते हुए कोई मनुष्य गलती कर
ही नहीं सकता इसीलिए काम वासना से छुटकारा पाने की बजाय यह सोचो कि तुम उसे होश पूर्वक जागते हुए कैसे भोग सकते हो और एक बार जब तुम उसका होश पूर्वक भोग कर लेते हो तो उसके बाद तुम्हें खुद ही महसूस होगा कि यह कर्म तुम्हारे अंदर क्या बदलाव ला रहा है अगर वह तुम्हारे अनुसार सही नहीं होगा तुम्हें गलत लगेगा तो तुम उसे वैसे ही छोड़ दोगे तुम्हें संकल्प लेने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी लेकिन होश की स्थिति तक पहुंचने के लिए तुम्हें ध्यान का मार्ग अपनाना होगा ध्यान करने से ही आदमी की निद्रा
टूटती है वह जागृत अवस्था में आता है और जब वह जागृत अवस्था में आता है तो उसका चित्त एक काम पर पूरी तरह से लगने लगता है और उसके बाद होश पूर्वक उस कर्म को करने के बाद उस कर्म की अन्यता को हमारा मन अपने आप समझने लगता है विद्वान ने अपनी बात को और गहराई से समझाते हुए समझाया कि सोए हुए इंसान को तो रास्ते पर पड़ा हुआ सांप भी दिखाई नहीं देता वह भी उसे तब पता चलेगा जब वह सांप पर पैर रख देगा और इसी प्रकार तो हर इंसान कार्य करता है जब
वह रास्ते पर चलता है तो अपने विचारों में अपनी भविष्य की योजना नाव में उसका मन हमेशा उलझा रहता है उसका ध्यान अपने चलने पर तो होता ही नहीं है तो रास्ते पर कहां से होगा यह सब लक्षण एक सोए हुए मनुष्य के होते हैं और जब वह मनुष्य यह महसूस कर पाता है कि वह कितनी गहरी निद्रा में है तो उसी समय उसके जीवन में ध्यान का उदय होता है लेकिन सोए हुए इंसान को भला किस प्रकार दिखाई देगा कि वह सोया हुआ है या तो कोई उसे हिलाकर जगाए या उसे बताए कि तुम
सोए हुए हो तब तो उसकी नींद टूटेगी लेकिन ऐसे मनुष्य हमें कम ही मिलते हैं जो हमें यह एहसास कराते हैं कि हम कितनी गहरी निद्रा में सोए हुए हैं हमारा मन विचारों की भविष्य की योजनाओं का अतीत के दुखों का एक दफ्तर बन चुका है उस सम्राट इस विद्वान के उत्तरों से बहुत प्रभावित हुआ और उस सम्राट ने इस विद्वान को अपने पूरे जीवन काल के लिए अपना सलाहकार बना लिया तो दोस्तों चलिए अब काम वासना के ऊपर अगली रोचक कहानी की शुरुआत कुछ इस प्रकार होती है बुद्ध कहते हैं कि शारीरिक संभोग इतना
खतरनाक नहीं होता है जितना कि मानसिक संभोग होता है क्योंकि शारीरिक संभोग में तो शरीर की कुछ ऊर्जा ई खर्च होती है जो फिर से बन जाती है लेकिन मानसिक संभोग जीवन भर हमारे साथ चलता है वह हमेशा हमारी ऊर्जा को खत्म करता रहता है जो भी इंसान अतीत में हुए संभोग या फिर भविष्य में होने वाले समूहों में अपने विचारों को केंद्रित रखता है वह अपनी ऊर्जा का एक बहुत बड़ा हिस्सा खर्च कर देता है अगर इंसान विचारों से निकलकर प्रतिपल वर्तमान का आनंद ले तो वह अपनी मानसिक काम वासना की ऊर्जा को बचा
सकता है बहुत बड़ी मानव जाति संभोग से परेशान नहीं है उस संभोग के विचारों से तनाव ग्रस्त है उनके दिमाग में उनके मन में अधिकतर समय काम वासना के विचार ही चलते रहते हैं और इसी कारण उनके मन की बहुत बड़ी ऊर्जा उन विचारों में नष्ट होती रहती है अगर उसने शारीरिक संभोग किया होता तो उसकी शारीरिक ऊर्जा कुछ पलों के लिए नष्ट होती और वह फिर से बन जाती लेकिन मानसिक हमेशा चलता रहता है जिसके कारण उसकी ऊर्जा हमेशा अरोमी होती चली जाती है तो इस मानसिक संभोग से मानसिक काम वासना के विचारों से
बाहर आने के लिए बुद्ध ने क्या तरीका बताया बुद्ध कहते हैं कि जब तक हम किसी चीज से लड़ते रहते हैं तब तक हम हमारा पूरा ध्यान उसी पर केंद्रित रहता है और जब हम एक बार उसको स्वीकार कर लेते हैं तत्क्षण हमारा ध्यान वहां से अपने आप हट जाता है क्योंकि अब उसमें कोई रस नहीं रहा हमारा चित्त उसकी उलझन में नहीं रहा इसीलिए अब हमारा मन उससे आजाद हो गया है हम अधिकतर समय यह सोचने में लगा देते हैं कि हमें काम वासना के विचारों से छुटकारा पाना है किस तरह पाना है इसके
नाना प्रकार के उपाय भी खोजते हैं लेकिन आखिर में कुछ भी हासिल नहीं होता वह विचार ज्यों के त्यों हमारे मन को गिरफ्त में रहते हैं क्योंकि हमारा चित्त उससे लड़ रहा है उससे बचने का समाधान ढूंढ रहा है उपाय खोज रहा है हमने कभी पूरे मन से यह स्वीकार ही नहीं किया कि हां मैं एक कामों को व्यक्ति हूं यही मेरा स्वभाव है हम अपने आप से कभी बोल ही नहीं पाते अगर बोल पाते तो हमारा चित्त और हमारा मन इन विचारों से अपना ध्यान हटा बड़े मजे की बात है जिस भी चीज से
हम बचना चाहते हैं हम उसी चीज का चिंतन शुरू कर देते हैं और हम जितना ही उस बारे में चिंतन करते जाते हैं वह हमारे चित्त में उतनी ही गहरी बैठती चली जाती है क्योंकि अधिकतर समय हमारा मन उससे छुटकारा पाने के उपाय के बारे में सोचता है मतलब कि हमारा ध्यान उसी बिंदु पर केंद्रित हो जाता है अगर हम अपने उस स्वभाव को स्वीकार कर लेते तो हमारा ध्यान किसी दूसरे केंद्र उन विचारों से छुटकारा पाने के लिए नाना तरह के प्रयोग करते हैं नाना तरह के उपाय अपनाते हैं कोई व्रत करने लगता है
कोई ब्रह्मचारी बन जाता है कोई अपने शरीर को उतना ही भोजन देता है जितना जिंदा रहने के लिए आवश्यक होता है वह समय समय पर उपवास करता है क्योंकि उसे लगता है कि भोजन जो ऊर्जा हमें देगा उससे काम वासना पैदा होगी इसीलिए वह सोचता है कि अपने शरीर की ऊर्जा को उतना ही रखो जितना जिंदा रहने के लिए जरूरी है लेकिन मजे की बात यह है कि जिस दिन भी वह अपना उपवास तोड़ेगा या फिर पेट भर भोजन खाएगा उसी दिन काम की शक्ति फिर से लौट आएगी और वह विचार फिर से उसके मस्तिष्क
को घेर लेंगे उसी प्रकार कुछ लोग अपने आप को स्त्रियों से बिल्कुल अलग कर लेते हैं बिल्कुल दूरी बना लेते हैं लेकिन जिस दिन भी व उनके संपर्क में आते हैं उसी दिन उनकी कमुखता फिर से जाग उठती है चाहे आप ऊंचे पहाड़ों में चले जाएं जहां पर मानव जाति पाई ही नहीं जाती लेकिन जिस दिन आप संसार में वापस लौटेंगे उस दिन आप पाएंगे कि आपकी काम वासना पहले से भी ज्यादा बढ़ चुकी है इसीलिए अगर कोई उपाय नहीं किया गया तो यह काम वासना और इसके विचार जिंदगी भर हमें परेशान करते रहेंगे इसके
उपाय मैं आपको एक कहानी के माध्यम से समझाने की कोशिश करता हूं कहानी छोटी सी है लेकिन आपके सारे सवालों के जवाब दे सकती है पुराने यूनान में एक बस्ती थी उस बस्ती में लड़के या लड़की के बीच कोई भी भेदभाव नहीं होता था जिस प्रकार दो लड़कों की आपस में दोस्ती होती है उसी प्रकार वहां पर लड़का और लड़की के बीच भी दोस्ती होती थी उनमें कोई अंतर नहीं होता था कोई भेद नहीं होता था जिस प्रकार लड़कियां आपस में मिलती थी उसी प्रकार लड़का और लड़की भी आपस में मिल सकते थे इसमें कोई
भी बाधा या कोई भी नियम नहीं था यहां तक कि रात में पूरे गांव के लोग एक साथ ही सोते थे एक छत के नीचे ही सोते थे यहां तक कोई समस्या नहीं थी उस गांव के युवाओं को काम वासना के विचारों के बारे में कुछ पता ही नहीं था क्योंकि विचार आते ही नहीं थे लेकिन कुछ समय बाद कुछ ईसाई पादरी वहां पर पहुंच गए और जब उन्होंने यह माहौल देखा तो उन्होंने लोगों को समझाना शुरू कर दिया उनको उपदेश देने शुरू कर दिए उन्होंने कहना शुरू कर दिया कि आप लोग पढ़े लिखे नहीं
हैं इसलिए आप लोगों को इसके बारे में पता नहीं है यह आप घोर पाप कर रहे हैं लड़का और लड़की हमेशा अलग-अलग होने चाहिए उनमें दूरियां होनी चाहिए इतनी आजादी अच्छी नहीं होती वह एक इंसान का पतन कर देती है और इसीलिए वहां पर कुछ नए नियम बनाए गए और उन नए नियमों के अनुसार अब लड़का और लड़की दो लड़कों की तरह दोस्त नहीं हो सकते थे दो लड़कों की तरह आपस में बात भी नहीं कर सकते थे और अब पूरा गांव एक ही छत के नीचे नहीं सो सकता था सारे नियम बदल दिए गए
थे लेकिन इसी से उस गांव के युवाओं का और उस गांव की योति हों का पतन होना शुरू हो गया अब तक उन्हें काम वासना के बारे में कुछ भी नहीं पता था लेकिन जैसे ही उस गांव के लड़के और लड़कियों के बीच दूरी बना दी गई वही दूरी उन्हें एक दूसरे की तरफ खींचने लगी याद रहे जब तक दो इंसानों के बीच दूरी नहीं होगी तब तक आकर्षण या फिर कहे कि खींचाव एक दूसरे की तरफ पैदा नहीं होगा लेकिन जैसे ही आप दो इंसानों के बीच दूरियां बना देते हैं वैसे ही एक दूसरे
का आकर्षण एक दूसरे की तरफ खिंचाव अपने आप उत्पन्न हो जाता है अब उस गांव के युवा और युवतियां एक दूसरे का विचार करने लगे शारीरिक संभोग से हटकर मानसिक संभोग करने लगे और यही उस गा का सबसे बड़ा पतन का कारण बना शारीरिक संभोग में कोई दोष नहीं है वह प्राकृतिक है वह प्रकृति ने हमें दिया है और ना ही उससे हमारी ऊर्जा उतनी खर्च होती है जितनी की मानसिक ऊर्जा से होती है तो मानसिक ऊर्जा का पनपने का सबसे बड़ा कारण होता है युवक और युवती के बीच की दूरी जब भी आप किसी
युवती से बात नहीं कर पाते हैं या फिर कोई युवती किसी युवक से बात नहीं कर पाती है एक दूसरे से घुलमिल नहीं पाते हैं तब तब उनके मानसिक विचार एक दूसरे पर केंद्रित हो जाते हैं वह बात नहीं कर रहे लेकिन उनके भीतर उनके मन में एक दूसरे से सम्मान चल रहे होते हैं इसीलिए अगर कोई भी युवक मानसिक काम वासना से ग्रस्त है उसके विचार हमेशा दूसरी यूथिया के बारे में सोचते रहते हैं तो उसे ख्याल करना चाहिए उसे अपना कदम बढ़ाकर उन युवती से बात करने की कोशिश करनी चाहिए और जैसे-जैसे वह
उनसे बात करने लगे वैसे वैसे वह पाएगा कि जो विचार जो काम वासना उसके दिमाग में भरी हुई थी वह काम वासना अब धीरे-धीरे खत्म हो रही है और एक समय पर वह पाएगा कि जिस स्त्री के विचारों में वह हमेशा गिरा रहता था उसके कामों के विचार पनपते रहते थे अब उसी स्त्री से संभोग करने का ख्याल उसके मन से पूरी तरह से विलीन हो चुका है तो सबसे पहले तो अपनी काम वासना से लड़ो मत उसे स्वीकार करो उसे अपनाओ उसे मानो कि हां तुम हो तुम वही हो तुम कामों हो तुम्हारे विचार
काम वासना से घिरे रहते हैं और उससे तुम्हें लड़ने की जरूरत नहीं है बस उसे स्वीकारने की जरूरत है और जब तुम यह स्वीकार कर लेते हो तो स्वाभाविक रूप से तुम्हारे ध्यान के मुख्य केंद्र बदलने लगते हैं और उसके बाद जब तुम अपनी काम वासना के विचारों से बचना बंद कर देते हो उसे स्वीकार कर लेते हो उसके बाद स्त्री के पास उससे बात करने से हि चकना नहीं उसे स्वाभाविक तरीके से बात करनी है जिस तरह से दो लोग आपस में बातें करते हैं मनुष्य का मन तो इतना चंचल है इतना अनियंत्रित है
कि वह अगर किसी जानवर को भी संभोग करते हुए देख लेता है तो भी काम वासना के विचारों से भर जाता है इतना चंचल और इतना कामुक मन सिर्फ इसी कारण से पैदा होता है क्योंकि आप अपनी काम वासना को स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं उससे बचना चाहते हैं उसको ख करना चाहते हैं आपने कभी ध्यान दिया कि जिस भी चीज को स्वीकार कर लेते हैं उस पर से हमारा ध्यान अपने आप हट जाता है जैसे कि आप किसी स्त्री से प्रेम करते हो आपका ध्यान उस पर केंद्रित रहता है लेकिन शादी करते ही
आप उसे अपना बना लेते हो अब स्वीकृत कर लेते हो और प्रेम विलीन हो जाता है उसी प्रकार अगर आप सड़क पर कोई गाड़ी देखते हो तो आपका ध्यान उस पर बार-बार जाता है लेकिन जब आप गाड़ी खरीद लेते हो जब उसे अपना बना लेते हो तब आपका ध्यान उस पर कभी जाता ही नहीं क्योंकि वह चेंज स्वीकृत हो गई आपके मन ने उसे स्वीकार कर लिया अपने बुरे से बुरे हिस्से को भी स्वीकार करना सीखो जिस भी आदत को तुम बदलना चाहते हो उस आदत से लड़ने की बजाय उसे स्वीकार करना सीखो और जब
तुम स्वीकार कर लेते हो तो अपने आप ध्यान वहां से हट जाता है लोग पूछते हैं कि आज के समय में इतनी कामुकता हमारे आसपास भरी हुई है जब भी हम अपना फोन चलाते हैं जब भी हम इधर-उधर निकलते हैं तो हमें कोई ना कोई काम विशेष देखने को मिल ही जाता है तो ऐसे में हम कैसे अपने आप को बचाएं बचाने का सवाल ही नहीं पैदा होता जो यह सवाल कर रहे हैं वह अपनी कमुखता को बढ़ावा दे रहे हैं आप दृश्य देखते हैं और देखकर आगे निकल जाते हैं आपको क्या प्रयोजन उससे बचने
का आपने उसके लिए तो रास्ता नहीं पकड़ा था उसे देखने के लिए तो तो आप उस रास्ते पर आगे नहीं बढ़े थे वह तो रास्ते में खुद बखुदा बखुदा [संगीत] बखुदा नहीं चखेगा तब तक उसे काम वासना या संभोग से बद कोई चीज नजर नहीं आएगी लेकिन जिस दिन आप उस परमानंद का स्वाद छक लेते हैं उसी दिन से आपको पता चल गया कि आपको जीवन में क्या हासिल करना है क्योंकि परमानंद से बढ़कर आनंद किसी चीज में नहीं होता इसीलिए ध्यान के द्वारा एक बार उस परमानंद को छक करर जरूर देखें और एक बार
अगर आपने उस परमानंद को छक लिया तो फिर आपका ध्यान अपने आप उस परमानंद को पाने के लिए केंद्रित हो जा उसके बाद आपको अपने विचारों से लड़ना नहीं होगा क्योंकि आप समझ चुके हैं कि काम वासना या सब भोग से भी बड़ा इस दुनिया में दूसरा कोई आनंद होता है तो दोस्तों चलिए अब काम वासना के ऊपर अगली रोचक कहानी की शुरुआत कुछ इस प्रकार होती है बुद्ध से धमकी की दीक्षा लेने के बाद श्री मां जो कि उस समय के मगध साम्राज्य की राजधानी राजगृह की नग्र भूति उसने अपना घनिष्ठा का काम छोड़
ड़कर बुद्ध की उपासिकों राज ग्रह की सबसे सुंदर और अमीर स्त्री थी लेकिन अब उसने अपना सारा समय बौद्ध संघ की देखरेख भिक्षुओं की आज्ञा पालन और दूसरे अच्छे कामों में लगाना शुरू कर दिया उसने संघ से हर दिन आठ नए भिक्षुओं को अपने घर बुलाकर भोजन कराने का नियम बना रखा था उसने आठ निमंत्रण पत्र बनवा के थी जिन्हें भोजन करने के बाद पुराने भिक्षु पहुंचते ही नए भिक्षुओं को दे दिया करते थे इस तरीके से हर दिन आठ नए भिक्षु उसके यहां भोजन करने आते सीमा भोजन करने आए भिक्षुओं को अपने हाथों से
भोजन परोस और उन्हें उचित आदर सम्मान देती भोजन सबके लिए पर्याप्त और बहुत ही स्वादिष्ट होता था एक दिन की बात है आठ में से एक भिक्षु जो कि उस दिन सिरिमा के घर से भोजन ग्रहण करके लौटे थे आश्रम में आने के बाद से बड़ा ही उतावला और प्रसन्न प्रतीत हो रहा था तो आश्रम के कुछ अन्य भिक्षुओं ने उस भिक्षु से सिमा के घर के भोजन के बारे में पूछा उसने भिक्षुओं से कहा भोजन सबके लिए पर्याप्त मात्रा में था और भोजन का स्वाद ऐसा था कि जिसकी तुलना ही ना की जा सकी
थ है इससे स्वादिष्ट भोजन मैंने आज से पहले कभी नहीं खाया था लेकिन वहां की सबसे महत्त्वपूर्ण और ना भूलने वाली चीज थी उस घर के मालकिन की सुंदरता सिमा एक अधु सुंदरी है उसकी सुंदरता की कोई को तुलना ही नहीं है वह एक बहुत ही आकर्षक और 100 में एक स्त्री है जो किसी का भी मन मोह ले यह सारी बातें वहीं खड़ा एक जवान भिक्षु भी सुन रहा था उस जवान भिक्षु के अंदर सिरिमा के प्रति आसक्ति पैदा होने लगी उसने सोचा जब वह इस भिक्षु की बातों में इतनी सुंदर लग रही है
तो वह असल में कितनी सुंदर होगी उसके मन में सीमा की सुंदरता की अलग-अलग तस्वीरें भरने लगी वह उस स्त्री के प्रेम में पड़ चुका था जिससे वह अभी तक मिला भी नहीं था उसने पता लगाना शुरू कर दिया कि सीमा के घर भोजन के लिए कैसे जाया जा सकता है बहुत प्रयास करने के बाद उसने एक भिक्षु से अगले ही दिन का निमंत्रण प्राप्त कर लिया क्योंकि अब वह सीमा के लिए एक दिन का भी इंतजार नहीं कर सकता था वह उस रात ठीक से सो भी नहीं सका क्योंकि वह पूरी रात सीमा के
बारे में ही सोचता रहा लेकिन उसी दिन सिमा अचानक बहुत बीमार पड़ गई वह अपनी सारे गहने और सजावट की बस्ते उतार कर बिस्तर पर सोने चली गई इसलिए जब वह प्रेमी युवा भिक्षु सीमा के घर पहुंचा तो नौकरों ने उसका स्वागत किया और उसे भोजन परोसा यह देखकर उस युवा भिक्षु को बहुत क्रोध आया और वह अंदर ही अंदर बहुत दुखी हुआ जब सीमा को पता चला कि भिक्षु भोजन के लिए बैठ गए हैं तो उसने उनके प्रति अपना सम्मान जताना चाहा उसने अपने नौकरों से कहा भोजन कक्ष तक पहुंचने में मेरी मदद करो
नौकरों की मदद से दर्द में कराहती सिमा धीरे-धीरे चलते हुए भोजन कक्ष में पहुंच गई वह पसीने से लटपट थी और उसका पूरा शरीर बुखार से कांप रहा था वह हाथ जोड़कर घुटनों के बल भिक्षु के सामने जाकर बैठ गई उसे देखकर उस युवा भिक्षु ने मन ही मन कहा इतनी बीमार होने के बाद भी यह कितनी सुंदर और आकर्षक है सोचो अगर यह बीमार ना होती और सारा श्रृंगार करके आती तो कितनी सुंदर लगती अपनी वासना के बसी भूत होकर उस बौद्ध भिक्षु ने बिना एक भी एक और खाए अपनी भिक्षा पात्र को बंद
कर दिया भोज समाप्त होने के बाद वह अपने भिक्षा पात्र को हाथ में लेकर झूमता हुआ आश्रम वापस आ जाता है आश्रम पहुंच कर भी कोई भिक्षा पात्र को नहीं खोलता और उसे एक कोने पर रखकर अपने बिस्तर पर लेट जाता है उसके दिमाग में पूरे समय सिर्फ सीमा का वह खूबसूरत चेहरा ही घूम रहा था जो उसने भोजन कक्ष में देखा था वह उसके बारे में जितना सोचता वह उसके लिए उतनी ही सुंदर होती जा रही थी उसके कुछ मित्र भिक्षुओं ने उसे भोजन कराने का प्रयास किया लेकिन वह सभी असफल रही भयानक बुखार
की वजह से उसी रात सिमा की मृत्यु हो गई जब मगध सम्राट भीमी सार को सीमा की मौत की खबर मिली तो उन्होंने बुद्ध को संदेश भेजा यह तो तथागत आपके व्यक्तिगत चिकित्सक जी बाका की बहन सिमा अब इस दुनिया में नहीं रही बुद्ध ने सम भीम सार को वापस संदेश भेजा मृत शरीर को जलाया ना जाए बल्कि उसे एक बड़े से मैदान में संभाल कर रखा जाए चीन कौवे और दूसरे जानवर शरीर को नुकसान ना पहुंचा पाए इसके लिए कुछ पहरेदार मृत शरीर के आसपास तैनात कर दिए जाएं तीन दिनों में मृत शरीर सड़
चुका था शरीर के फूलों की वजह से चमड़ी फट गई थी और उसमें से कीड़े निकलने लगे थे आसपास का सारा वातावरण दुर्गंध मय हो गया था बुद्ध के कहे अनुसार सम्राट भीमी सार ने पूरे नगर में यह घोषणा करवा दी कि कल सुबह राज्य ग्रह के सभी युवा पुरुषों को सीमा के शरीर का अंतिम दर्शन करने राज्य मैदान पर पहुंचना है और जो भी व्यक्ति इस आदेश का पालन नहीं करेगा उस पर आठ सोने के सिक्कों का जुर्माना लगाया जाएगा दूसरी तरफ उस युवा प्रेमी भिक्षु ने पिछले चार दिनों से कुछ भी नहीं खाया
था उसके भिक्षा पात्र में रखा भोजन पूरी तरह से सड़ चुका था और उसमें से कीड़े निकल रहे थे उस भिक्षु का एक मित्र उसके पास आया और बोला मित्र बुद्ध सीमा को देखने जा रहे हैं सिमा शब्द की आवाज कान में पढते ही उस भिक्षु के अंदर अचानक से ऊर्जा लौट आई और वह तुरंत उठकर खड़ा हो गया उसने अपने शिक्षा पत्र में से उत्तर रहे भोजन को बाहर फेंका और उसे अच्छी तरह से साफ किया जब वह भिक्षा पात्र से भोजन को फेंक रहा था तब उस भोजन से निकल रहे किरणों की तस्वीर
उस के मन की गहराइयों में बैठ गई भिक्षा पात्र साफ करने के बाद वह भी आश्रम के बाकी भिक्षुओं के साथ राज मैदान की तरफ चल पड़ा राज मैदान पर युवाओं की एक बड़ी भीड़ पहले से ही इकट्ठा हो रखी थी बुद्ध अपने भिक्षुओं के साथ एक र बैठ गए दूसरी ओर सारे भिक्षुणी बैठ गए एक र सम्राट भीमी सार अपने मंत्रियों और सैनिकों के साथ बैठ गए और उनके ठीक सामने राज ग्रह के सारे युवा और उनके पीछे की बाकी जनता बैठी हुई थी जो बुद्ध में आस्था रखते थे राज मैदान पूरी तरह से
शांत और गंभीरता से भरा हुआ था तभी वहां की शांति को भंग करते हुए बुद्ध ने प्रश्न किया सम्राट यह सामने पड़ी मृत स्त्री कौन है सम्राट ने उत्तर दिया सीमा जी बाका की बहन और राजगृही की नगर वधु फिर बुद्ध ने कहा सीमा राजगृह की नागर बत हूं चलो अभी सच्चाई का पता लगाते हैं बुद्ध ने थोड़ा ऊंची आवाज में कहा आप में से जो भी व्यक्ति 1000 सोने के सिक्के देगा वह सीमा के साथ एक रात बिता सकता है इतना कहकर बुद्ध भीड़ की तरफ देखने लगी एक भी व्यक्ति ने अपना हाथ नहीं
उठाया बुद्ध ने फिर कहा 500 सोने के सिक्के अब भी सब चुप थे 100 सोने के सिक्के किसी की कोई प्रतिक्रिया नहीं 50 सोने के सिक्के बस चारों तरफ सन्नाटा था सिर्फ एक सोने का सिक्का कोई प्रति िया नहीं मुफ्त में अभी किसी ने कोई एक्शन नहीं दिखाई बुद्ध ने कहा देखा यह वही स्त्री है जो चार दिन पहले तक नगर के हर पुरुष की चाहत थी सब इसे अपनी इच्छा पूर्ति का साधन समझते थे इसके साथ एक रात बिताने के लिए हजारों सोने के सिक्के देने को तैयार रहते थे एक दूसरे को मरने मारने
को तैयार रहते थे लेकिन आज उसी नगर में उसी स्त्री के शरीर को कोई मुफ्त में लेने को भी तैयार नहीं है हर इंसान के शरीर के साथ होता है हमारा यह शरीर अल्पकालिक और नाशवान है इसे केवल सुंदर गहनों कपड़ों और सुगंधित इत्र के द्वारा आकर्षक बनाया जाता है लेकिन हमारा कोई भी प्रयास इसे बूढ़ा होने बीमार पड़ने और अंततः नष्ट होने से नहीं बचा सकता केवल मूर्ख ही अपने आप को कल्पनाओं से जोड़ते हैं और जो मलीन है उसे सुंदर और आकर्षक मानते हैं भीड़ में बैठे उस बीमार युवा प्रेमी भी बुद्ध की
यह सारी बातें सुनी बुद्ध की यह बातें उसके दिल को चोट कर गई उसने सोचा जब सीमा जिंदा थी तो उसका शरीर कितना सुंदर और आकर्षक था ठीक उस भोजन की भांती जो ताजा पकाकर उसे परोसा गया था हालांकि समय के साथ उसके कटोरी में रखा भोजन सड़ गया और पूरा भिक्षा पात्र कीड़ों और मक्खियों से भर गया इसी तरह एक बार जीवन ने सीमा के शरीर को छोड़ दिया तो वह फूल गया कीड़ों से भर गया उसमें से तरल पदार्थ निकलने लगा और वह मक्खियां वह दूसरे जीवों का आहार बन गया अपने स्वयं के
शरीर के बारे में विचार करने पर वह समझ गया कि वह अलग नहीं है यहां तक कि इस दुनिया में कुछ भी उसके शरीर को बर्बाद होने से नहीं बचा सकता इसलिए अपने शरीर और कल्पनाओं से लगाव रखना एक भ्रम मात्र है इस नए ज्ञान के साथ वह हर अंत बन गया यानी एक ऐसा मनुष्य जिसने अस्तित्व की यथार्थ प्रकृति का अंतर जन प्राप्त कर दिया हो और जिसे निर्माण की प्राप्ति हो चुकी होगी दोस्तों मैं उम्मीद करता हूं कि यह कहानी सुनने से आपके जीवन में अच्छे बदलाव आए होंगे आपको इस वीडियो से क्या
सीखने मिला यह कमेंट करके जरूर बताइए और अपने परिवार दोस्तों या आपके करीबी इंसान के साथ यह कहानी शेयर करके उन्हें भी इस ज्ञान से परिचित करवाए बाकी अगर आपको यह वीडियो दिल से अच्छी लगी हो तभी इस वीडियो को लाइक कर देना और आपने अब तक इस चैनल को सब्सक्राइब ना किया हो तो चैनल को सब्सक्राइब भी जरूर कर देना आपका हर दिन शुभ हो और खुशियों से आपका जीवन भरा रहे धन्यवाद नमो बुद्धाय
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