मैं जीवित रहूं या नहीं रहूं मेरी लंबी उम्र रही है इस पर मुझे अगर गौरव किसी चीज पर है कि सारा जीवन मेरा सेवा में गया 30 अक्टूबर 1984 को उड़ीसा के भुवनेश्वर में यह स्पीच देते समय इंदिरा गांधी ने बिल्कुल भी नहीं सोचा होगा कि आने वाला दिन सच में उनके लिए काल बनकर आएगा अगली सुबह 31 अक्टूबर 1984 को इंदिरा गांधी को ब्रिटिश एक्टर पीटर स्टीवन को इंटरव्यू देना था सुबह 9:1 पर इंदिरा गांधी अपने सरकारी रेजिडेंस से अपने ऑफिस की तरफ निकली हमेशा की तरह इंदिरा गांधी ने मुस्कुराते हुए अपनी सिक्योरिटी में
खड़े यंत सिंह की ओर देखा लेकिन जवाब में उस दिन बियत सिंह के हावभाव हमेशा की तरह नहीं थे बिंत सिंह के रिएक्शन से एक बार भी ऐसा नहीं लगा कि उसके सामने देश की प्रधानमंत्री खड़ी है यंत सिंह ने खतरनाक अंदाज में अपनी सर्विस रिवॉल्वर को निकालकर इंदिरा गांधी के ऊपर फायरिंग शुरू कर दी इंदिरा गांधी कुछ सोच पाती उससे पहले ही उनके दूसरे बॉडीगार्ड्स सतवंत सिंह ने भी उन पर गोलियां बरसानी शुरू कर दी एक साथ पूरी मैगजीन इंदिरा गांधी के शरीर को छलनी कर चुकी थी पॉइंट ब्लैंक रेंज से लगभग 30 बुलेट
इंदिरा गांधी पर बरसा दी गई थी कभी देश के लिए अमेरिका तक से भिड़ जाने को तैयार रहने वाली इंदिरा गांधी आज अपनों के हाथों ही मारी जा चुकी थी और असहाय होकर वही अपनी मौत की प्रतीक्षा कर रही थी बीएन सिंह और सतवंत सिंह ने इंदिरा गांधी के ऑर्डर पर गोल्डन टेंपल पर 5 महीने पहले किए गए मिलिट्री ऑपरेशन ऑपरेशन ब्लू स्टार का बद ला ले लिया था क्या था ऑपरेशन ब्लू स्टार क्यों इसे अंजाम दिया गया था और कैसे इस ऑपरेशन ने सिखों के मन में इंदिरा गांधी के लिए घृणा पैदा कर दी
थी ऑपरेशन ब्लू स्टार के बारे में जानने से पहले आपको पंजाब की हिस्ट्री को जानना जरूरी है 18वीं शताब्दी तक अंग्रेज भारत की कई रियासतों पर अपना कब्जा जमा चुके थे लेकिन भारत का पंजाब रीजन उन दिनों सिख एंपायर महाराजा रणजीत सिंह जी की कमान में था सिख किंगडम की नीव रखने वाले महाराजा रणजीत सिंह जी ने 1801 से लेकर 1839 तक भारत के एक बड़े भूभाग पर अपना साम्राज्य फैला रखा था महाराजा रणजीत सिंह की मृत्यु के बाद अंग्रेजों ने सिख एंपायर को हड़प लिया और इसके साथ ही हरियाणा जो कि इस किंगडम का
पार्ट नहीं था उसे भी इसके साथ जोड़ दिया महाराजा रणजीत सिंह के वंशजों को देश के बाहर शिफ्ट कर दिया गया और पेंशन देकर उन्हें चुप करा दिया गया इसके बाद सिखों के पास अपना कोई रिप्रेजेंटेटिव नहीं था सिखों के आंतरिक मामलों के लिए अब गुरुद्वारा प्रमुख रूप से उभरने लगे जो वहां के महंत थे वह अब धीरे-धीरे गुरुद्वारों को डोमिनेट करने लगे जो बात सिखों को पसंद नहीं आ रही थी सिख अपना लोकल रिप्रेजेंटेटिव चाहते थे और गुरुद्वारों के मेहनतों का यह डोमिनेशन उन्हें एक्सेप्टेबल नहीं था इसके बाद 1920 में सिखों ने अकाली दल
बनाई और अकाली मूवमेंट की शुरुआत कर डाली अकाली मूवमेंट को गुरुद्वारा रिफॉर्म मूवमेंट भी कहा जाता है यह मूवमेंट गुरुद्वारों में रिफॉर्म लाने का एक अभियान था इसका एम था ब्रिटिश सरकार पर प्रेशर बिल्ड अप करके महंतों को गुरुद्वारे से निकालना इस मूवमेंट में 175 सिखों के दल ने मिलकर शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति यानी कि एसजीपीसी बनाई इतने बड़े लेवल पर जब प्रेशर पड़ा तब ब्रिटिश सरकार ने 1920 एसजीपीसी मूवमेंट को लीगल स्टैचर देते हुए सिख गुरुद्वारा एक्ट 1925 पास किया और उसके साथ ही गुरुद्वारों के मैनेजमेंट की पूरी जिम्मेदारी और कार्य इस कमेटी को
सौंप दी गई तब से लेकर आज तक एसजीपीसी ही गुरुद्वारा के मैनेजमेंट का ख्याल रखती है जहां बाकायदा पोस्ट बनी है जिसके लिए वोटिंग की जाती है फिर इससे चुने हुए रिप्रेजेंटेटिव्स ही गुरुद्वारों को चलाते हैं बहरहाल एसजीपीसी और अकाली दल दोनों ही सिखों को फ्रंट से लीड करते रहे भले ही इस एंपायर को अंग्रेज लूटते रहे लेकिन यहां के सारे आंतरिक मामलों की जिम्मेदारी एसजीपीसी और अकाली दल के कंधों पर ही बनी रही और शायद इसी वजह से इन सिख लीडर्स को यह लगता रहा कि जब अंग्रेज भारत छोड़ जाएंगे तो सिख एंपायर दोबारा
इन्हें वापस मिल जाएगा लेकिन इन्होंने सपने में भी यह नहीं सोचा था कि अंग्रेज जाते-जाते भारत को दो टुकड़ों में बांट जाएंगे और पंजाब का एक बड़ा हिस्सा इस बंटवारे के भेंट चढ़ जाएंगे बहरहाल जब वर्ल्ड वॉर ट शुरू हुआ तब भारत में भी आजादी की मांग तेज हो गई हालांकि तब सिखों ने अलग देश या अपने सिख साम्राज्य की मांग नहीं की थी लेकिन 1940 में मुस्लिम लीग का लाहौर रेजोल्यूशन आया जिसमें जिना की अगवाई में एक अलग मुस्लिम देश पाकिस्तान की मांग हुई इसके साथ ही पाकिस्तान के स्टेट्स भी चुन लिए गए थे
जिसमें सिंध बलूचिस्तान खेबर पख तुन खवा और पंजाब का काफी बड़ा हिस्सा शामिल था इस रेजोल्यूशन के आते ही सिखों में खलबली मच गई क्योंकि अगर यह रेजोल्यूशन पास हो जाता तो पंजाब की 60 पर जमीन पाकिस्तान में चली जाती इस वजह से सिखों की एक बड़ी आबादी डिवाइड हो जाती इसके अलावा डिवाइडेड पंजाब के साथ ही सिखों के कई धार्मिक स्थल भी पाकिस्तान चले जाते इसीलिए अकाली दल के कुछ नेताओं ने ब्रिटिशर्स से इस पार्टीशन को निरस्त कर देने के लिए रिक्वेस्ट भी की थी लेकिन डिवाइड एंड रूल पॉलिसी को फॉलो करने वाले ब्रिटिशर्स
ने उनकी इस बात पर ध्यान नहीं दिया जिसके बाद अकाली दल ने ब्रिटिश गवर्नमेंट से थियोक्रेटिक स्टेट की मांग की जिसे भारत सरकार लिमिटेड राइट्स और इंटरफेरेंस के साथ चला सकती थी उनकी मांग थी कि अकाली दल के चुने हुए सदस्यों को पंजाब कैबिनेट में बराबर का हक दिया जाए अकाली दल पंजाब के धार्मिक और आंतरिक मामलों में ऑटोनोमस रहे लेकिन जब बंटवारा हुआ तो सिखों को हिंदू की कैटेगरी में रखा गया इसी तरह से पंजाब का जो भाग पाकिस्तान न को दिया गया पार्टीशन के बाद रायट शुरू हो जाने के कारण वहां से भी
सारे सिख इंडिया के पंजाब में आ गए इस वक्त तक सिख नेताओं के मन में यह आशा थी कि उन्हें भारत और पाकिस्तान के बीच का बफर कंट्री बना दिया जाएगा जिसमें कि अनडिसाइडेड पंजाब पूरी ऑटोनॉमी के साथ चलेगा लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ इसी बीच भारत के होने वाले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने कहा कि सिखों की भारत के लिबरेशन में बहुत बड़ी भूमिका रही है इसीलिए स्वतंत्र भारत में पंजाब एज अ सेमी ऑ ऑटोनोमस यूनिट ऑपरेट करने के लिए अलाउड होंगे इसी के साथ 1947 में भारत के इंडिपेंडेंस के साथ ही पंजाब पार्टीशन की
भेंट चढ गया पार्टीशन की वजह से पंजाब में काफी खून खराबे हुए और सिखों के हाथ बड़ी निराशा लगी लेकिन सिखों ने हार नहीं मानी और 1955 में पंजाबी सूबा आंदोलन स्टार्ट कर दिया जिसको अकाली दल लीड कर रहे थे इस आंदोलन में सिखों ने एक ऑटोनोमस स्टेट की मांग की जिसके बंटवारे का आधार पंजाबी भाषा थी उन दिनों मास्टर तारा सिंह अकाली दल के प्रेसिडेंट थे जो इस आंदोलन को लीड कर रहे थे हालांकि इस आंदोलन के बाद ही 1966 में पंजाब रीऑर्गेनाइजेशन एक्ट के अंतर्गत पंजाब का पुनर्गठन हुआ हरियाणा को पंजाब से अलग
कर एक नया राज्य बना दिया गया चंडीगढ़ को हरियाणा और पंजाब की संयुक्त राजधानी बनाया गया और पंजाब के पहाड़ी क्षेत्रों को हिमाचल में मिला दिया गया अब पंजाब मुख्यतः पंजाबी बोलने वाले लोगों का ही क्षेत्र बनकर उभरा लेकिन जब चंडीगढ़ को यूनियन टेरिटरी बनाया गया तो इससे सिखों में फिर नाराजगी बढ़ गई क्योंकि यहां हिंदू ज्यादा थे और सिख कम सरकार के इस फैसले से अकाली दल और एसजीपीसी काफी नाराज थे इसके कुछ समय बाद ही पंजाब की तीन मुख्य नदियां रावी ब्यास और सतलज में कैनाल सिस्टम बनवाया गया जिससे हरियाणा और राजस्थान को
भी पानी भेजा जा सके जिसके बाद पंजाब को इन सभी नदियों से सिर्फ 23 प्र ही पानी मिलने लगा गवर्नमेंट के इस फैसले से अकाली दल और कुछ सेपरेटिस्ट नेता नाराज हो उठे और पंजाब में खालिस्तान मूवमेंट ने जन्म ले लिया 70 के दशक की शुरुआत में चरण सिंह पंछी और डॉक जगजीत सिंह चौहान ने पहली बार खालिस्तान की मांग की थी 1980 आते-आते खालिस्तानिस अपनी लिमिट क्रॉस कर चुका था दिन दहाड़े गोलियां चलाई जा रही थी हिंदुओं को मारा जा रहा था पंजाब के अंदर सारे लॉ एंड ऑर्डर खत्म हो चुके थे और ऐसे
वायलेंट प्रोटेस्ट के पीछे हाथ था जरनैल सिंह भिंडरावाले का सिख कम्युनिटी को रिप्रेजेंट करने वाले जरनैल सिंह भिंडरावाले एक रिलीजियस स्कॉलर थे 1977 में उन्हें दमदमी टकसाल का हेड बनाया गया अमृतसर से 40 किमी नॉर्थ में लोकेटेड दमदमी टकसाल सिख की रिलीजियस एजुकेशन का प्रमुख सेंटर है भिंडरा वाले अपने भड़काऊ रिलीजियस स्पीच से लोगों को खूब इन्फ्लुएंस करता था खासकर पंजाब का यूथ जरनैल सिंह भिंडरावाले को आईडल मानने लगा था जरनैल सिंह भिंडरावाले की पंजाब में पॉपुलर के पीछे कांग्रेस का भी रोल था 1977 में लोकसभा और पंजाब विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को बुरी तरह
हार मिली और पंजाब में अकाली दल एंड जनता पार्टी की कोलिशन सरकार बनी उस समय अकाली दल के खिलाफ कांग्रेसी मुद्दे उठाने के लिए संजय गांधी ने खुद बिंडले को आगे किया था और इसका रिजल्ट यह हुआ कि 1980 के पंजाब इलेक्शंस में एक बार फिर कांग्रेस सत्ता में आ गई और [संगीत] दरबारात में कांग्रेस की सरकार बनने से ज नैल सिंह भिंडरा वाले का रुतबा और बढ़ता चला गया उसे पंजाब के अंदर और ज्यादा फेम मिल रहा था भिंडरा वाले जगह-जगह सभाएं लगाकर रिलीजियस स्पीच देता था और लोगों को इन्फ्लुएंस करता था पंजाब में
एक अलग पहचान पाने के बाद भिंडरा वाले का पर्पस भी बदल चुका था पॉलिटिकल एजेंडा को किनारे रखकर वह सिर्फ सिख कम्युनिटी के बारे में सोचने लगा उसे सिखों से भी नहीं बल्कि अपने पर्सनल एजेंडा से मतलब था जहां वह पंजाब को एक ऑटोनोमस स्टेट बनाकर राज कर सके उसके अनुसार पंजाब सिर्फ सिखों का स्टेट था वह चाहता था पंजाब से हिंदू बाहर चले जाए भिंडरावाले एक ऑर्थोडॉक्स सिख रिलीजियस जत्थेदार था जो कि खालिस्तान मूवमेंट को सपोर्ट करता था हालांकि इसने खुद कभी एक अलग देश की मांग नहीं की लेकिन इस मूवमेंट के अंतर्गत होने
वाले सभी मिलिटेंट कामों में इसका सपोर्ट रहा था धीरे-धीरे भिंडरा वाले पंजाबी मिलिटेंट ग्रुप में काफी पॉपुलर होने लगा शुरुआत में इसका मकसद था कि पंजाब में सिर्फ पंजाबी बोलने वाले लोग रहे दूसरी भाषा खासकर हिंदी बोलने वालों से या उनके सपोर्टर से भिंडरा वाले को सख्त नफरत थी अपनी इसी भाषाई नफरत को वह पूरे पंजाब में फैलाने लगा इस वजह से पंजाब में सिख लोग हिंदू और हिंदी स्पीकिंग लोगों से नफरत करने लगे इन्हें यह लगने लगा था कि हिंदुओं की वजह से ही पंजाब का बंटवारा हुआ है भिंडे वाले इसी प्रोपेगेंडा को फैलाता
हुआ पंजाब में हिंदी और पंजाबी भाषा बोलने वाले लोगों के बीच नफरत की दीवार खड़ी कर रहा था आगे चलकर यह दीवार इतनी बड़ी हो गई कि जो पंजाबी और सिख लोग हिंदी को सपोर्ट करते थे उन्हें भी गद्दार साबित किया जाने लगा और लोग उनसे नफरत करने लगे इसी दरमियान पंजाब केसरी न्यूज़पेपर के एडिटर लाला जगत नारायण को हिंदी को सपोर्ट करने की वजह से दिन दहाड़े एसिनेट कर दिया गया इस मौत का जिम्मेदार भिंडर वाले को ठहराया गया लेकिन आरोप के बावजूद उसे गिरफ्तार करने के 2 दिन के अंदर रिहा कर दिया गया
जेल से छूटने के बाद जरनल सिंह भिंडे वाले की पॉपुलर और उसके भड़काऊ भाषण और ज्यादा बढ़ गए इन्हीं दिनों अकाली दल और एसजीपीसी के लोग आनंदपुर साहिब रेजोल्यूशन के साथ कांग्रेस पर हावी होने लगे थे जिस वजह से कांग्रेस पर काफी प्रेशर बनने लगा था यहां कांग्रेस से भिंडरा वाले की पॉपुलर को ध्यान में रखते हुए पंजाब में अपनी सरकार बनाने के लिए भिंडरा वाले को टिकट दे दी और उसे सपोर्ट करने लगी लेकिन यह दाव तब उल्टा पड़ गया जब भिंडे वाले ने कांग्रेस से गद्दारी करके आनंदपुर साहिब रेजोल्यूशन को लेकर अकाली दल
से हाथ मिला लिया इसके ठीक बाद 1982 में भिंडे वाले और अका दल ने मिलकर एक रिलीजियस पॉलिटिकल मूवमेंट धर्म युद्ध मोर्चा की शुरुआत की कहने को यह एक पीसफुल प्रोटेस्ट था जो कि आनंदपुर साहिब रेजोल्यूशन की मांगों को पूरा करने के लिए चलाया जा रहा था लेकिन जहां भिंडे वाले हो वहां पीस कैसे हो सकता था इस मोर्चा के दौरान हिंदुओं और हिंदी सपोर्टर्स पर बहुत अत्याचार किए गए उन्हें जान से मारा जाने लगा हालांकि पंजाब के चीफ मिनिस्टर दरबरा सिंह ने इस मूवमेंट में हो रहे वायलेंस पर लगाम लगाने की कोशिश जरूर की
लेकिन कुछ ना हो सका और आखिर में इस वायलेंस में सैकड़ों लोगों की मौत हो गई आनंदपुर साहिब रेजोल्यूशन को पास करवाने के लिए भिंडे वाले वायलेंट तरीके का इस्तेमाल करने लगा और 1982 में भिंडे वाले ने स्वर्ण मंदिर को अपना घर बना लिया और वहीं से भड़काऊ भाषण देना शुरू कर दिया इसके भाषणों की वजह से अब पंजाब में हिंदुओं का कत्लेआम शुरू हो गया जरनैल सिंह भिंडे वाले गोल्डन टेंपल को अपना ऑफिस समझने लगा था पूरे ग्रहो के साथ गोल्डन टेंपल में हथियार इकट्ठा करने लगा था 15th दिसंबर 1983 को जरनैल सिंह भिंडे
वाले गोल्डन टेंपल के अंदर अकाल तख्त पर जाकर बैठ गया अकाल तख्त को चुनने के पीछे का कारण यह था कि भिंडे वाले को इस बात पर पूरा यकीन था कि इंडियन गवर्नमेंट यहां किसी भी कीमत पर हमला नहीं करवा सकती और अगर किया भी तो पूरे देश में दंगे फैल जाएंगे धीरे-धीरे पंजाब भारत के हाथ से निकलता जा रहा था गवर्नमेंट को महसूस हो गया था कि जरनैल सिंह भिंडर वाले ही इस पूरे कॉन्फ्लेट की जड़ है जिसके बाद इंदिरा गांधी ने भिंडरा वाले को अरेस्ट करने ने का प्लान बनाना शुरू कर दिया पंजाब
में जब सिचुएशन बहुत अधिक बिगड़ने लगी तो भारत सरकार परेशान हो गई और पंजाब को बचाने के लिए भिंडे वाले को रोकना बहुत जरूरी हो गया था इसीलिए रॉ की एक स्पेशल टास्क फोर्स ने एक सीक्रेट प्लान बनाया जिसका कोड नेम था ऑपरेशन सन डाउन इस प्लान के अकॉर्डिंग रॉ की एक खास टीम भिंडर वाले को गोल्डन टेंपल के गुरु नानक निवास जहां पर भिंडर वाले ढेरा जमाए बैठा था यहां से चुपचाप उठाने वाली थी रॉ के ऑफिसर्स ने इस प्लान को एग्जीक्यूट करने के लिए बेस पर रिहर्सल भी कर ली थी लेकिन इंदिरा गांधी
ने इस प्लान को रिजेक्ट कर दिया उन्हें लगा कि इस तरह के सीक्रेट ऑपरेशन की वजह से मामला और अधिक बिगड़ सकता है इसीलिए उन्होंने नेगोशिएशन और पीस टॉक को प्रायोरिटी दी हालांकि भिंडे वाले कभी भी समझौते या बातचीत के लिए नहीं माना उल्टा पंजाब में क्राइम और बढ़ गया इन्हीं दिनों 25th अप्रैल 1983 को डेप्युटी इंस्पेक्टर जनरल ऑफ पुलिस अवतार सिंह अतब की दरबार साहिब के सामने दिन दहाड़े हत्या कर दी गई और उनकी लाश वही दो घंटे तक पड़ी रही भिंडरा वाले के आदेश के बाद ही उनकी लाश वहां से उठाई गई इस
घटना के कुछ वक्त बाद ही वहां छह हिंदू बसों को बीच रास्ते में रोक दिया गया और उसमें फंसे पैसेंजर्स को मार दिया गया इन दोनों घटनाओं के बाद अब भारत सरकार की सब्र की सीमा खत्म हो गई थी अब इंदिरा गांधी ने एक फोर्सफुल ऑपरेशन की मंजूरी दे दी जिसके तहत भिंडरा वाले को जिंदा या मुर्दा पकड़ने का आदेश दिया गया था 31 मई 1984 की शाम को मेरठ में नाइन इन्फेंट्री डिवीजन के कमांडर मेजर कुलदीप सिंह ब्रार को वेस्टर्न हेड क्वार्टर ने फोन करके उनकी इमरजेंसी मीटिंग की जानकारी दी उस समय मेजर कुलदीप
सिंह ब्रार छुट्टी पर थे और वह अपनी फैमिली के साथ बाहर घूमने का प्लान बना रहे थे हेड क्वार्टर से ऑर्डर मिलते ही मेजर कुलदीप सिंह ब्रार उसी दिन वेस्टर्न कमांड हेड क्वार्टर के लिए निकल पड़े चंडीगढ़ से 5 किमी दूर चंडी मंदिर में लोकेटेड वेस्टर्न कमांड हेड क्वार्टर पहुंचकर मेजर कुलदीप सिंह ब्रार को ऑपरेशन ब्लू स्टार की जानकारी दी गई इस ऑपरेशन को कमांड करने का ऑर्डर मिला उन्हें बताया गया कि पंजाब में हालात बहुत खराब हो चुके हैं जरनैल सिंह भिंडरा वाले ने पूरे गोल्डन टेंपल पर कब्जा कर लिया है अगर सख्ती से
कदम नहीं उठाए गए तो धीरे-धीरे पंजाब भारत के हाथ से निकल जाएगा इस ऑपरेशन का मेन एम था जरनैल सिंह भिंडा वाले और उनके समर्थकों को अकाल तख्त से जिंदा या मुर्दा किसी भी तरह बाहर निकालना 1 जून 1984 को इंदिरा गांधी ने पंजाब के अंदर बढ़ते वायलेंस पर देश को संबोधित करते हुए कहा कि हम बातचीत के लिए तैयार है लेकिन जर्नल सिंह भिंडरावाले किसी भी तरह की बातचीत के लिए राजी नहीं हुआ इसके बाद इसी दिन पूरे पंजाब में पूरी तरह से कर्फ्यू लगा दिया गया ट्रेन सर्विसेस रोक दी गई सभी न्यूज़ रिपोर्टर्स
को अमृतसर छोड़ने का आदेश दे दिया गया 2 जून 1984 को सेना ने पाकिस्तान बॉर्डर को पूरी तरह से सील कर दिया 3 जून 1984 को गुरु अर्जुन सिंह का शहीदी दिवस था गोल्डन टेंपल में हजारों की संख्या में लोगों का आना जाना था जरनैल सिंह भिंडरावाले और उनके साथियों को पता चल चुका था कि आर्मी उनके चारों तरफ पहुंच चुकी है इसीलिए जो लोग गोल्डन टेंपल के अंदर माथा टेकने जा रहे थे उन्हें अंदर ही रोक लिया गया गोल्डन टेंपल के बाहर खड़ी आर्मी लोगों से बाहर निकलने का अनाउंसमेंट कर रही थी लेकिन भिंडरा
वाले टेंपल के अंदर गए लोगों को अपनी ढाल बनाने की कोशिश कर रहा था 4थ जून 1984 को आर्मी के एक सोल्जर को को गोल्डन टेंपल के अंदर भिंडरा वाले और उसके साथियों की पोजीशन चेक करने के लिए सिविल क्लोथ्स में भेजा गया 5थ जून 1984 को सुबह 4:00 बजे मेजर कुलदीप सिंह ब्रार ने अपने सभी सोल्जर्स के साथ मीटिंग की और सुबह 10:00 बजे ब्लैक जर्सी में पैराशूट रेजीमेंट के कमांडोज ने सामने से अटैक शुरू कर दिया कमांडोज को गोल्डन टेंपल को चारों तरफ से घेराबंदी करके अकाल तख्त की ओर बढ़ना था लेकिन कमांडोज
कुछ ही दूर आगे बढ़ पाए थे कि सामने से भिंडरा वाले और उसके साथियों के द्वारा उन पर गोली बारी शुरू कर दी गई ऑटोमेटिक राइफल से किया गया यह अटैक इतना घातक था कि कई कमांडोज तुरंत शहीद हो गए पहले 45 मिनट में ही सेना को पता चल गया था कि गोल्डन टेंपल के अंदर छिपे मिलिटेंट काफी मजबूत हथियारों के साथ डटे हुए हैं उनसे लड़ पाना इतना आसान नहीं था इसके बाद मेजर कुलदीप सिंह ब्रार ने कमांडोज को सीधा अकाल तख्त के पास पहुंचकर अंदर स्टन ग्रेनेड फेंकने का आदेश दिया मेजर कुलदीप सिंह
ब्रार चाहते थे कि जब खालिस्तानी मिलिटेंट के आसपास स्टन ग्रेनेड्स गिरंग तो उसी वक्त कमांडोज अंदर घुस जाएंगे लेकिन अकाल तखत के अंदर घुसे मिलिटेंट्स ने पहले से ही विंडोज से लेकर दरवाजे तक को सैंड बैग और ब्रिक वॉल से बंद कर दिया था मिलिट्री जो भी स्टन ग्रेनेड फेंक व सभी दीवार से लगकर वापस आ जाते इससे इनका रिएक्शन सबसे ज्यादा सेना पर ही हो रहा था रात होने के साथ ही भारतीय सेना के तीनों जनरल्स ने तीन तरफ से एक साथ हमला करने का फैसला किया इस प्लान के तहत 10 गार्ड्स एक पैरा
कमांडो बटालियन और स्पेशल फ्र फ्रंटियर फोर्स को सामने की तरफ से मेन गेट से हमला करना था जिसके बाद 26 मद्रास बटालियन और नौ कुमाउं बटालियन टीम बनाकर हॉस्टल कॉम्प्लेक्टेड से हमला करते 10 गार्ड्स का काम था कि वो नदन विंग पर तैनात स्पेशल फ्रंटियर फोर्स को सपोर्ट करते हुए मंदिर के वेस्ट फ्रंट को सिक्योर करेंगे एक पैरा कमांडो का काम था कि वह हर मंदर साहिब के अंदर जाएंगे इसी तरह 26 मद्रास को सदर्न और ईस्टर्न हर मंदिर साहिब को घेरा जा सके नाइन कुमाउं बटालियन को यह टास्क दिया गया था कि वह एसजीपीसी
बिल्डिंग एंड गुरु रामदास सराई को भी चारों तरफ से घेर लेंगे इसके बाद 12 बिहार को हर एक टीम को फायर सपोर्ट देने का काम सौंपा गया था इसके अलावा इन्हें बाकी टीम्स को आगे बढ़ने के लिए सबसे आगे रहकर दुश्मन को भटका या मार गिराने का काम दिया गया था लेकिन अकाल तख्त के अंदर जाने के लिए सेना का यह प्रयास भी सक्सेसफुल नहीं रह सका इंडियन आर्मी पर केवल सामने से ही हमले नहीं हो रहे थे बल्कि खालिस्तानी मिलिटेंट्स जमीन के नीचे भी छिपे थे और वहां से अटैक करके फिर नीचे छिप जाते
थे सेना के जवान लगातार चोटें खा रहे थे ऐसे में मेजर कुलदीप सिंह ब्रार ने आर्म्ड पर्सन कैरियर को यूज करने का ऑर्डर दे दिया लेकिन जैसे ही आर्म्ड पर्सन कैरियर आगे बढ़े उसे चाइनीज रॉकेट लॉन्चर से उड़ा दिया गया रात बीती जा रही थी यह भी डर था कि अगर यह ऑपरेशन सुबह तक चलता रहा तो हजारों की संख्या में भीड़ आ जाएगी तब मुश्किल और बढ़ जाएगी लगातार घायल होते सैनिकों को देखकर मजबूरन मेजर कुलदीप सिंह ब्रार ने टैंक्स की मांग की सुबह सर पर आ रही थी ऐसे में टैंक्स को आदेश दिए
गए कि अकाल तख्त के ऊपर बनी बिल्डिंग पर गोले बरसाए जिससे थोड़े बहुत पत्थर गिरने से लोग डर कर बाहर आ जाए लेकिन इसके बाद जो हुआ उसने गोल्डन टेंपल पर हमेशा के लिए निशान छोड़ दिए सेना ने टैंक से कम से कम 80 गोले दागे थे 6 जून 1984 की सुबह जब अकाल तख्त के पास सोल्जर्स पहुंचे तो भिंडरा वाले और उसके 40 साथियों की डेड बॉडी पड़ी थी सेवेंथ से 10थ जून तक अकाल तख्त में पड़ी लाशों को बाहर निकाला गया जरनल सिंह भिंडरावाले के साथ इंडियन आर्मी के रिटायर्ड मेजर जनरल शाहबाग सिंह
की बॉडी भी मिली जो पूरे प्लान के साथ खालिस्तानी मिलिटेंट्स का साथ दे रहे थे अब जाकर इंडियन आर्मी को पूरा माजरा समझ में आया इतनी सॉलिड मिलिट्री प्लानिंग भिंडरा वाले की नहीं बल्कि 1971 के वॉर हीरो मेजर जनरल शाहबाग सिंह की थी जिनकी वजह से इंडियन आर्मी गोल्डन टेंपल में घुसकर भिंडरा वाले को नहीं पकड़ पाई और मजबूरन वहां गोले दागने पड़े ऑपरेशन ब्लू स्टार में हुई बड़े लेवल की कैजुअलिटी का कारण फॉर्मर इंडियन आर्मी सोल्जर मेजर जनरल शाहबाग सिंह थे शाहबाग सिंह इंडियन आर्मी के एक बड़े अफसर थे इन्होंने 1971 ईस्ट पाकिस्तान लिबरेशन
वॉर में एक हीरो की भूमिका निभाई थी मुक्ति वाहिनी को आम ट्रेनिंग देने और गोरेला वॉर फेयर सिखाने के साथ-साथ इन्होंने दुश्मनों के दांत खट्टे कर दिए थे इन्होंने भारत की कई वार्ड्स में अहम भूमिका निभाई 1971 वॉर के बाद शाहबाग सिंह ना सिर्फ इंदिरा गांधी के बल्कि पूरे भारत और बांग्लादेश की आंखों के तारे बन गए थे बांग्लादेशी इन्हें प्यार से जनरल एस बैक कहकर बुलाते थे लेकिन सारा मामला तब बिगड़ गया जब शाहबाग सिंह पर भ्रष्टाचार के केस लगे और उन्हें बिना कोर्ट मार्शल के इंडियन आर्मी से निकाल दिया गया गौर करने वाली
बात यह है कि उनकी मिलिट्री सर्विस खत्म होने के एक दिन पहले उन्हें इस तरह से आर्मी से डिस्मिस किया गया था यह साल था 1976 का जब 1971 के वॉर हीरो को आर्मी से इतनी इंसल्ट के साथ निकाल दिया गया था हालांकि बाद में फरवरी 1984 में उन्हें सभी एलिगेशन से सम्मान सहित बरी कर दिया गया था लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी दरअसल मेजर जनरल शाहबाग सिंह को बिना कोर्ट मार्शल के ही आर्मी से निकाल दिया गया था और इसके साथ ही इनके सारे रिटायरमेंट बेनिफिट्स भी छीन लिए गए थे जिससे
कि शाहबाग सिंह अब बदले की आग में झुलस रहे थे एक टाइम पर देश के लिए अपना बाल तक कटवा लेने वाले फौजी शाबा सिंह अब धर्म युद्ध मोर्चा में अपने देश के खिलाफ ही जुट गए और भिंडरा वाले के मिलिट्री एडवाइजर बन गए अब भिंडर वाला भारत सरकार से लड़ने के लिए तैयार हो चुका था उसके भड़काऊ भाषण वायलेंट मूवमेंट काफी ज्यादा बढ़ चुके थे और शाहबाग सिंह को जॉइन करने के बाद उसकी मिलिट्री आर्मी की ट्रेनिंग भी मिलने लगी थी जिससे कि पंजाब भारत सरकार के हाथों से बाहर जाने लगा इस ऑपरेशन ने
भारतीय इतिहास की दिशा ही बदल कर रख दी अपने सबसे पवित्र धार्मिक स्थान पर हमले को लेकर सिख समुदाय के बीच नाराजगी बहुत बढ़ गई थी इस ऑपरेशन ने सिखों के मन में एक ऐसी दीवार बना दी कि जिसे आज तक मिटाया नहीं जा सका है ऑपरेशन की टाइमिंग पर भी सवाल उठाया गया क्योंकि 3 जून 1984 को सिख गुरु गुरु अर्जुन सिंह का शहीदी दिवस था जिसके कारण मंदिर परिसर के अंदर बड़ी संख्या में भक्त मौजूद थे और उसी समय इस ऑपरेशन को स्टार्ट किया गया था जिसके कारण काफी सारी इनोसेंट पब्लिक मारी गई
थी गोल्डन टेंपल की पूरी लाइब्रेरी जल गई थी किताबों के साथ-साथ सिख गुरुओं के सिग्नेचर और उनके कपड़े भी जल गए थे 554 खालिस्तानी मिलिटेंट मारे गए थे और 1592 लोगों को हिरासत में ले लिया गया था वहीं दूसरी ओर इस ऑपरेशन को अंजाम देने में 83 सैनिक शहीद हो गए और 236 सैनिक घायल हो गए आर्मी के इस ऑपरेशन से गवर्नमेंट में कई बड़े पदों पर बैठे सिखों ने रिजाइन दे दिया था गवर्नमेंट की ओर से मिले हुए सम्मान लौटाए जा रहे थे और इंदिरा गां गाधी की मौत का फरमान जारी किया जा रहा
था भले ही भिंडरा वाले के आतंक का अंत हो चुका था लेकिन इसकी कीमत खुद प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को अपनी जान देकर चुकानी पड़ी थी इंदिरा गांधी के दोनों बॉडीगार्ड्स बियंस सिंह और सतवंत सिंह ने अपनी गंस की सभी गोलियां उनके शरीर पर खाली कर दी थी यहां ध्यान देने वाली बात यह थी कि इंदिरा गांधी की मौत का फरमान जगजीत सिंह चौहान ने पहले ही दे दिया था दरअसल इन दिनों खा खालिस्तानी मूवमेंट को बढ़ाने के लिए जगजीत सिंह चौहान ने लंदन और पाकिस्तान जैसे देशों में जाकर जोरों शोरों से इसका प्रचार किया था
चौहान ने ही आनंदपुर साहिब में काउंसिल ऑफ खालिस्तान की स्थापना की और खुद को इसका सेल्फ क्लेमड प्रेसिडेंट बनाया था 1984 में जब ऑपरेशन ब्लू स्टार को अंजाम दिया गया तो चौहान ने बीबीसी लंडन को एक इंटरव्यू देते हुए यह कहा था कि जल्दी ही भारत की पीएम मिसेस गांधी और उनके परिवार का गला काट दिया जाएगा और यह काम हमारे सिख भाई जल्दी ही करेंगे हालांकि इंटरव्यू जून में आया था लेकिन इसे नजरअंदाज कर दिया गया था और फिर उसी साल अक्टूबर 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या कर दी गई जिसके बाद दिल्ली सहित
देश में कई जगह दंगे शुरू हो गए थे जिसमें हजारों सिख मारे गए 23 जून 1985 भारत के लिए वह भयावह दिन था जिसमें 300 से ज्यादा भारतीय मूल के लोग बेमौत मारे गए थे इस दिन एयर इंडिया फ्लाइट 182 कनाडा से लंडन होते हुए भारत की उड़ान भर रही थी जिसमें अचानक से एक विस्फोट हो गया आयरिश कोस्ट के ऊपर हुए इस विमान विस्फोट में सारे के सारे लोग मारे गए फ्लाइट में सवार 329 लोगों में से सिर्फ 131 लोगों की ही लाश मिल सकी थी इस फ्लाइट में बॉम से भरे सूटकेस रख दिए
गए थे अभी इधर यह हादसा होने ही वाला था कि उसके थोड़ी देर पहले टोक्यो के नरीता एयरपोर्ट पर एक और विस्फोट हुआ जिसमें दो जापनीज बैगेज हैंडलर्स की जान चली गई ये बैगेज हैंडलर्स जापान से बैंकॉक जाने वाली एयर इंडिया की फ्लाइट्स का सामान ठो रहे थे लेकिन यह समय से पहले ही फट गया इस हादसे से फ्लाइट के सैकड़ों लोगों की जान तो बच गई लेकिन पूरे पैसेंजर्स में डर का माहौल फैल गया इन्वेस्टिगेशन के बाद पता चला कि ये बमिंग भी एयर इंडिया 182 बॉमिस का ही हिस्सा थी बाद में जब कनाडा
की ओर से इस मामले की जांच की गई तो उन्होंने इसका जिम्मा सिख सेपरेटिस्ट पर लगाया कुछ टाइम बाद तलविंदर सिंह परमार जो कि एक सिख एक्सट्रीमिस्ट ग्रुप बब्बर खालसा के लीडर थे और इंदरजीत सिंह रियाद नाम के इलेक्ट्रिशियन को अरेस्ट किया गया था 1992 में पंजाब पुलिस के साथ हुए एक मुठभेड़ में तलविंदर सिंह परमार मारा गया इसकी मौत के बाद इसे सिख मिलिटेंट और 1984 एयर इंडिया बमिंग का जिम्मेदार माना गया इस ऑपरेशन का सोल मकसद था कि प्रो खालिस्तानी मिलिटेंट्स को पंजाब से खत्म करना जिससे कि देश की सोव निटी और पीस
बरकरार रहे 30 अप्रैल 1986 को ऑपरेशन ब्लैक थंडर को लॉन्च किया गया था जिसमें 200 सिख मिलिटेंट्स जो गोल्डन टेंपल में पिछले तीन महीनों से जमे हुए थे उन्हें बाहर निकालना था इस ऑपरेशन में 700 बीएसएफ और 300 ब्लैक कैट कमांडोज ने भाग लिया था इतनी बड़ी सेना के बावजूद कुल ठ घंटे में यह ऑपरेशन पूरा हुआ था हालांकि जो लोग गिरफ्तार हुए वो लैक ऑफ एविडेंस की वजह से दो महीने बाद ही रिहा हो गए थे ऑपरेशन ब्लैक थंडर अपने फर्स्ट फेज में ज्यादा सक्सेसफुल नहीं रहा था जिसके कारण 9थ मई 1988 को इसके
सेकंड फेज को लॉन्च किया गया जिसमें लगभग 1000 स्पेशल टास्क फोर्स को शामिल किया गया था इस मिशन को अंजाम देने के लिए टास्क फोर्स के सिपाहियों ने अपने बाल बढ़ाने भी शुरू कर दिए थे ताकि वह सिख मिलिटेंट्स में ब्लेंड हो सके इसी वक्त स्पाई मास्टर कहे जाने वाले अजीत डोभाल अपने टीम के साथ सिविल कपड़ों में जाकर मिलिटेंट से मिल गए थे जिससे कि टेंपल के अंदर छिपे मिलिटेंट्स की सारी इंटेलिजेंस इकट्ठी की जा सके जो कि ऑपरेशन के टाइम काफी कामगार साबित हुई फाइनली 18 मई को मिलिटेंट्स के सरेंडर के बाद य
ऑपरेशन खत्म हुआ इस ऑपरेशन के बाद पंजाब में थोड़ी स्टेबिलिटी आई और खालिस्तान मूवमेंट लंबे समय तक धीमा [संगीत] रहा