जय श्री कृष्णा जय सियाराम अक्षत गुप्ता का आप सभी को प्रणाम हम लोगों ने दशावतार के बारे में बहुत कुछ सुना विष्णु जी के 10 अवतार जिनके हिसाब से युग डिवाइडेड है सतयुग जो है उसमें चार अवतार रहे हैं उसके बाद त्रेता युग आता है उसको त्रेता युग कहते इसलिए क्योंकि तीन अवतार है उसके बाद द्वापर युग आता है जिसमें दो अवतार है और अब कलयुग में हम है जिसमें कल्की अवतार का आना बचा हुआ दशा अवतार और विष्णु जी के अवतारों पर बहुत बात होती है पर क्या आप लोगों को पता है कि शिव
जी के कितने अवतार है शिव जी के 19 अवतार है और इस पॉडकास्ट प मैं आपको उन 19 अवतारों की कहानियां और व क्यों है कब आए आने का पर्पस क्या था कारण क्या था उद्देश्य क्या था यह बताने वाला हूं मेरा नाम उर्मिला पुत्र अक्षत गुप्ता है आई एम अ फुल टाइम हाउस हस्बैंड पार्ट टाइम ऑथर स्क्रीन राइटर पोएट एंड लिरिसिस्ट चलिए शुरू करते [संगीत] हैं शिव जी सभी अवतारों में एक अवतार है जिनका नाम है वीरभद्र अवतार वह सबसे ज्यादा खतरनाक सबसे ज्यादा भयंकर माने गए शिव जी के सारे अवतारों में क्यों इसकी
कहानी आज सुनते हुआ यह था कि राजा दक्ष जो कि माने जाते थे ब्रह्मा जी के पुत्र की बेटी थी सती सती ने शिव से प्रेम किया और दोनों का विवाह हुआ मगर राजा दक्ष शिव जी को कुछ ज्यादा पसंद नहीं करते थे राजा दक्ष के राज्य में एक बहुत बड़ा यज्ञ हुआ जिसमें सारे भगवानों को सारे देवताओं को बुलाया गया सिर्फ शिव जी को नहीं बुलाया गया मगर सती उनकी बिटिया थी व उन्होंने बिना योते के बिना शिव जी के ते के भी बेटी का धर्म निभाने के लिए वहा जाने का निर्णय किया व
वहां पहुंची और उस यज्ञ के बीच में राजा दक्ष ने शिव जी के बारे में बहुत सारी तिरस्कृत बातें कही इन सब चीजों को सुनके सती उनको ले नहीं पाई उस पूरी बात को बर्दाश्त नहीं कर पाए और वो अग्निकुंड में उन्होंने अपना त्याग दिया शिव जी को जब यह बात पता चली शिव जी को इतना ज्यादा क्रोध आया शिव जी ने अपनी जटा से एक जटा का हिस्सा खेंच के निकाला और उसको जमीन पर पटका और उससे जो अवतार निकला उसका नाम था वीरभद्र अवतार और शिव जीी ने नाराजगी में गुस्से में वीरभद्र को
यह आदेश दिया कि जाओ सब तबाह कर दो वीरभद्र पहुंचे यज्ञ के स्थली पर जहां पर राजा दक्ष का यज्ञ चल रहा था और वहां पर सब कुछ तबाह करने के बाद राजा दक्षा सर अलग कर दिया बाद में सभी देवताओं के मनाने पे शिव जी ने राजा दक्ष को बकरे का एक चेहरा दिया जैसे गणेश जी को इंसान से हाथी का चेहरा मिला था वैसे राजा दक्ष को बाद में एक चेहरा मिला जो कि बकरे का था तो यह थी वीरभद्र अवतार के पीछे की कहानी अगर आप शिव जी के बारे में जानते हैं
तो नंदी के बारे में तो जानते ही होंगे कौन है नंदी नंदी की पीछे की कहानी क्या है एक ऋषि थे जिनका नाम था ऋषि शिला ऋषि शिला शिव जी के बहुत बड़े भक्त उन्होंने घोर तपस्या की और तपस्या से खुश होक जब शिव जी सामने आए तो उन्होंने एक पुत्र मांगा जो इम्मोर्टल जो चिरंजीवी हो जो मरे ना कभी खुश होकर शिव जी ने उनको एक पुत्र दिया जिसका नाम बाद में नंदी पड़ा और नंदी बाद में कैलाश जो कि शिवजी का घर है माउंट कैलाश कैलाश पर्वत उसके गेट की परर उसके दरबार बने
और यह कहा जाता है कि नंदी प्रतीक है इंतजार क्योंकि नंदी हमेशा बैठ के शिव का इंतजार ही करते रहते तो यह है ऋषि शिला के पुत्र नंदी की कहानी जो बाद में शिव के सबसे प्रिय बने और बने कैलाश पर्वत और शिव जीी दोनों के [संगीत] साथी शिव जी के एक अवतार का नाम पिपलाद अवतार भी है ष दद होते थे उनके पुत्र बन के शिवजी एक बार जिनका नाम पिपलाद रखा गया उन्होंने अपना जन्म लिया अब हुआ यह कि शनि के प्रभाव की वजह से ऋषि ददीजी मतलब पिपलाद अवतार के पिता को बहुत
जल्दी घर छोड़ना पड़ा जब पिपलाद बहुत छोटे थे इस बात से पिपलाद को बहुत तकलीफ थी कि उनको पिता का प्रेम पिता के साथ वक्त बिताने का मौका नहीं मिला बाद में जब पिपलाद बड़े हुए तो उन्होंने देवों से पूछा कि ऐसा क्यों हुआ कि मैं अपने पिता के साथ वक्त नहीं बिता पाया कि ची मेरे पिता को इतनी जल्दी घर छोड़कर क्यों जाना पड़ा तब देवों ने बताया कि यह शनि महाराज शनि देव के प्रकोप से हुआ पिपलाद अवतार को यह बात जानते ही उन्होंने शनि महाराज को शनि देव को प्लेनेटरी सिस्टम से गिरने
का श्राप दे दिया कि अब आप इस सौर्य मंडल में नहीं रुक पाएंगे आपका पतन होगा आप गिर जाएंगे शनि देव का जो प्लेनेट है उसको अंग्रेजी में हम सैटर्न कहते हैं वो गिरने लग गए अब उनको रोकने के लिए कि वो प्लेनेट सिस्टम से ना गि सोलार सिस्टम से सौर मंडल से ना गिरे उस समय सारे देवाए और पिपलाद अवतार को उन्होंने समझाया तब जाकर उन्होंने अपना श्राप वापस लिया एक शर्त के साथ एक कंडीशन के साथ और वह कंडीशन यह थी कि शनि महाराज शनिदेव 16 साल की उम्र तक किसी भी बच्चे पर
अपना प्रभाव अपना प्रकोप नहीं डाले शनिदेव की वजह से 16 साल की उम्र तक किसी भी बच्चे को तकलीफ नहीं होगी और इसीलिए आज भी जब शनि देव का प्रकोप पड़ता है तो हम पिपलाद अवतार को याद करते हैं उनकी पूजा की जाती महाभारत का नाम सुना है तो अश्वथामा का नाम जरूर सुना होगा सात चिरंजीव में से एक अश्वथामा पता है ना अश्वथामा के बारे में भी यह मान्यता है यह माना जाता है कि अश्वथामा भी शिव जीी के ही एक अवतार दो कहानिया चलती है एक यह कि जब हलाहल जो विष था उसको
जब सागर मंथन के समय शिवजी पी रहे थे तो एक बूंद छलक के बाहर गिर गई थी और उससे बना था एक विष पुरुष व विष पुरुष बाद में भारद्वाज का पोता और द्रोणाचार्य और उनकी पत्नी कृपी का पुत्र बनकर पैदा हुआ जिसका नाम था अश्वथामा तो विष पुरुष ही अश्वथामा भी कहलाया गया जिसको यह वरदान था कि उसमें बहुत शक्तियां होंगी उसको कोई चीज नुकसान नहीं पहुंचा पाएगी वो अपनी करनी से क्षत्रिय होगा और अपने पढ़ाई से और अपने पैदाइश से ब्राह्मण होगा तो व द्रोणाचार्य के पुत्र बनकर अश्वथामा पैदा हुए थे जिनको बाद
में कृष्ण ने श्राप दिया था अमरता का कि तुम कोड़ ग्रसित शरीर लेकर पृथ्वी के खत्म होते तक इस पृथ्वी पर रंगते रहो यह उनको श्राप मिला था क्यों मिला था उसकी एक अलग कहानी है फिर कभी बताएंगे पर हा 19 अवतार जो माने गए हैं शिव जी के उसमें से एक अवतार अश्व धावा के शिव जी के एक और बहुत बड़े भक्त हुए जिनका नाम था विश्व नर वह और उनकी पत्नी दोनों सुबह से रात तक शिव जी की आराधना करते थे घोर तपस्या करके उन्होंने शिव जी से एक वरदान मांगा वरदान थे खुद
शिव जी कैसे उन्होंने मांगा कि उनका पुत्र बनकर शिवजी ही जन्म ले उनका पुत्र हुआ और वह शिव जी के वरदान से खुद शिव जी थे और उस अवतार का नाम पड़ा गृह पति अवतार तो गृप अवतार ज्यादातर जगह जहां पर भी आप शिव जी को बाल रूप में देखते हैं वो प्रतीक है गृहपटीस का तो ये कहानी है एक और अवतार की विष्णु जी का एक अवतार है नरसिंहा अवतार इंसान का शरीर और शेर का मुंह देखा सुना होगा आपने अब आप सोच रहे होंगे कि शिव के अवतारों के बीच में विष्णु अवतार नरसिंहा
के बाद कहां से आ गए बताता हूं नरसिंहा अवतार आए थे हिरण्यकशिपु को मारने एक राक्षस था प्रहलाद के फादर प्रहलाद के पिता जो भगवानों में नहीं मानते थे उनको उसको लगता था वह खुद भगवान उसको मारने के लिए नरसिंहा अवतार आए थे जिन्होंने अपने नाखूनों से एक फाइट के बाद हिरण्य कसिप का वध किया था लेकिन इस फाइट के चलते चलते नरसिंहा अवतार इतने ज्यादा क्रोधित हो गए कि उनको शांत कर पाना बहुत मुश्किल हो गया तब शिव जीी आए उनको य समझाने और उनको शांत करने मगर नरसिंहा अवतार शांत होने को राजी नहीं
तब जाकर शिव जी ने एक और अवतार लिया जिसका नाम है शरभ अवतार दिखने में वो नरसिंहा जैसे थे लेकिन नरसिंहा से बहुत बड़े थे हिरण का उनका शरीर था कुछ लोग हिरण का मानते हैं कुछ लोग दूसरे जानवरों का मानते हैं मगर चेहरा जो था वह शेर का ही था पंख थे और शरब अवतार ने नरसिंहा अवतार को अपनी पूंछ में लपेट के उड़ वह बहुत ऊपर उड़ने के बाद नरसिंहा अवतार को शांत कि ताकि पृथ्वी में नरसिंहा अवतार और विध्वंस ना मचाए और तब नरसिंहा अवतार शांत हुए तो नरसिंहा अवतार को शांत करने
के लिए नरसिंहा अवतार जैसे दिखने वाले सर्भ अवतार जो नरसिंहा से भी बड़े थे वह थे शिव केतार शिवजी यति नाथ के रूप में धरती पर आए अपने एक भक्त की परीक्षा लेना भक्त था एक आदिवासी जिसका नाम था आहु आहु और उसकी पत्नी दोनों बहुत बड़े भक्त थे शिव जी के शिवजी बिल्कुल दरिद्रता में उनके सामने आए और उनसे कहा कि आज रात को आप मुझे अपने घर पर सोने दीजिए आहु ने ये निर्णय लिया कि ठीक है आप मेरे मेहमान है अतिथि देवो भवा आप मेरे घर पर आराम कीजिए और मैं सुरक्षा में
क्योंकि वह आदिवासी थे जंगलों में रहते थे मैं आपकी सुरक्षा करूंगा वो अपने घर के बाहर चले गए और रात भर यति नाथ अवतार जो शिव जी के थे उनकी रक्षा कर रहे थे रक्षा करते करते आहु का देहांत हो गया आहु पर तीर चला और आहु मर गया मगर इस बात से आहु की पत्नी दुखी नहीं हुई बल्कि आहु की पत्नी बहुत गर्वा वित महसूस की बहुत गर्व किया उसने यह क कि अतिथि की सेवा करते करते मेरे पति का देहांत हुआ है यह मेरे लिए गर्व की बात है इस बात से बहुत खुश
होके यति नाथ जो शिव के अवतार थे उन्होंने उ उन दोनों को वरदान दिया कि अगला जन्म जो उनका होगा वो होगा नील और द मयंती के नाम प और उन दोनों को मिलाने का काम खुद शिवजी करेंगे तो यह है यति नाथ अवतार शिवजी की कहानी तो शिव जी के एक और अवतार है जिनका नाम है ऋषि दुर्वासा ऋषि दुर्वासा थे ऋषि अत्री के पुत्र अत्री ने घोर तपस्या की तीनों की ब्रह्मा विष्णु और महेश खुश होकर ब्रह्मा विष्णु महेश तीनों उनके पास आए और उन तीनों ने उनको तीन पुत्रों का वरदान दिया ब्रह्मा
से जो पुत्र हुए वो थे चंद्रमा विष्णु से जो पुत्र हुए वो थे दत्तात्रेय और शिव के जो अंश थे वो थे ऋषि दुर्वासा माना जाता है कि ऋषि दुर्वासा बहुत गुस्सैल प्रवृति के थे शॉर्ट टेंपर्ड थे तुरंत गुस्सा आता था बहुत सारे लोगों को बहुत सारा श्राप दिया उन्होंने पर थे तो अवतार और वो भी किसके शिव के शिव जी के किसी और अवतार के बारे में आपने सुना हो या ना सुना हो भैरव अवतार के बारे में जरूर सुना होगा कौन थे भैरव अवतार मैं बताता हूं एक ऐसा वक्त आया था जब विष्णु
जी और ब्रह्मा जी दोनों को इस बात का गुमान हो गया था कि वह सर्वश्रेष्ठ है यह बात जब शिव को पता चली थी शिव को इस बात से बहुत नाराजगी हुई थी क्योंकि ब्रह्मा जी ने अपने आप को सर्वश्रेष्ठ प्रमाणित करने की कोशिश में एक झूठ कहा इस वक्त शिव जी का जो अवतार हुआ था उसका नाम था भैरव अवतार भैरव अवतार को शिव जी का पूर्ण अवतार भी कहा जाता है और फिर भैरव अवतार ने अपने एक नाखून मात्र से ब्रह्मा जी का एक सर काट दिया था जिसके कारण से उन्हें ब्रह्म हत्या
का एक श्राप भी लगा था एक गलानी हुई थी और यह गलानी जाके खत्म हुई थी छूटी थी काशी में विश्व भर में देश में लगभग हर जगह भैरव के मंदिर है इस और यह जो भैरव थे वो और कोई नहीं शिव केय तार शिवजी के अगले अवतार का नाम है सुरेश्वर अवतार तो कहानी कुछ ऐसी है कि उपमन्यु नाम का एक आदमी था जो कि बहुत बड़ा भक्त था शिवजी और पार्वती जी का वो बैठ के इन दोनों की तपस्या कर रहा था और शिव जी के मन में आया कि चलो इसकी परीक्षा लेते
हैं शिव जी ने इंद्र का वेष धर के पार्वती जी के साथ जो कि इंद्रानी बनी थी तो इंद्र और इंद्रानी का वेष धर के शिव और पार्वती दोनों आए उपमन्यु की तपस्या भंग करने उन्होंने बहुत कोशिश की लेकिन उपमन्यु टस से मस नहीं हुए उपमन्यु ने अपनी तपस नहीं तोड़ी इस बात से खुश होकर शिव जी ने उनको वरदान दिया और इस समय वह जिस अवतार में आए थे उस अवतार को नाम मिला सुरेश्वर [संगीत] अवतार शिवजी का एक और अवतार है जिसके बारे में शायद आप लोगों ने नाम से ना सुना हो वोह
अवतार है किरतेश अवतार कीरत अवतार भी कहते हैं महाभारत में बहुत सारे देवी देवता अलग-अलग रूप में आए थे और उन बहुत सारे लोगों में शिव भी थे कहां आए थे किसके पास पास आए थे कब आए थे उसकी कहानी सुने हुआ यूं कि अर्जुन बैठकर घोर तपस्या कर रहे थे एक असुर का वध करने के लिए जिसका नाम था मुका और मुका ने एक जंगली सूअर का वेष धर के हमला किया अर्जुन पर जब अर्जुन की तरफ मुका तेजी से बढ़ रहा था तो अर्जुन की तपस्या टूटी अर्जुन ने अपना तीर धनुष उठाया और
मुका पर हमला कर दिया मगर ठीक उसी समय मुका पर एक और तीर आके लगा था वो तीर था एक आदिवासी का जिसका नाम था कीरत अब इस बात पर ठन गई कि पहले तीर किसका लगा और सही तीर किसका लगा अर्जुन का या कीरत का इस बात पर जब इन दोनों में बहस हुई और फिर छोटा सा एक युद्ध हुआ तब अर्जुन को समझ में आया कि कीरत नाम से उनके सामने खड़ा वह आदिवासी कोई और नहीं खुद महादेव और महादेव अपने असली अवतार में असली रूप में आके उस समय अर्जुन को शिव जीी
ने ही पशुपतास्त्र नाम का एक वेपन एक अस्त्र वरदान स्वरूप गिफ्ट में दिया था तो यह कहानी है किरते शवर की शिव जी को पहले मृतक के नाम से भी जाना जाता है पहला डांसर द डिवाइन डांसर सुतं तार का अवतार उस अवतार का नाम है जो अवतार लेकर शिवजी हिमालय राजा हिमालय जिनकी पुत्री थी पार्वती उनके राज्य में पहुंचे थे जब हिमालय के सामने शिवजी ने एक नृत्य पेश किया डमरू के साथ और इतना कमाल का डांस किया कि सब लोग मंत्र मुक्त हो गए जब उनका नृत्य खत्म हुआ और सब भाव विभोर और
मंत्र मुख थे तो राजा हिमालय ने पूछा मांगो क्या मांगते हो तुम जो मांगोगे हे नृत तुम जो मांगोगे मैं तुमको वह दूंगा गिफ्ट में तब शिवजी ने शिव जी के इस अवतार ने स्वयं पार्वती का हाथ मांग लिया राजा हिमालय और उनके सभी लोग बहुत नाराज हुए इस बात से और वहां से शिवजी लौट गए सब के जाने के बाद शिव जी अकेले नहीं आए थे शिवजी के साथ नंदी थे बाकी उनके लोग थे जब यह सब लौट गए तब राजा हिमालय और उनकी प्रजा को पता चला कि उस अवतार में स्वयं शिव आए
थे और तब जाके राजा हिमालय ने पार्वती का हाथ शिव के हाथ में देने का मन बनाया देवों के देव इंद्र उनको एक बार इस बात का घमंड हो गया था कि वो बहुत ज्यादा शक्तिशाली है अपने सारे देवताओं के साथ एक बार वो कैलाश पर्वत क्रॉस करके जा रहे थे शिव जी से मिलने तब शिव जी ने निर्णय लिया कि इनकी भी परीक्षा एक बार ले ली जाए तब वो उन्होंने एक ऋषि का अवतार लिया उस अवतार का नाम था अवधूत अवतार और व आके रास्ते में इंद्र के लेट गए जब इंद्र क्रॉस करने
लग गए और उन्होंने बोला कि हट है मुझे जाना है तो बोले कि तुम कोई शक्ति वक्ति नहीं तुम में तुमको ऐसा लगता है यह सब तुम्हारा वहम है कोई नहीं हो तुम तुम जैसों को कैलाश पर्वत में जाना अलाउ इस बात से इंद्र क्रोधित हुए और उन्होंने अपना वज्र निकाल लिया जब इंद्र ने अपना वज्र चलाने की कोशिश की अव दूत अवतार जोग स्वयं महादेव थे तो वह खुद ही इंद्र खुद ही जड़ हो गए फ्रीज हो गए जहां खड़े थे वह जिस पोज में थे उनके हाथ में उनका जो वज्र था वह सब
एज इट इज रुक गया वह हिल नहीं पा रहे थे तब जाकर इंद्र को समझ में आया कि यह सिर्फ एक ऋषि मुनि नहीं है कोई और है और तब अवधूत अवतार से निकलकर शिव जी अपने पूर्ण आए सिर्फ यह समझाने के लिए इंद्र को कि इंद्र तुच्छ मात्र है शिव के सामने समुद्र मंथन के बाद असुरों से युद्ध हुआ देवों का और देव जीत गए इस जीत के बाद कुछ देवों को इस बात का घमंड हो गया कि वह बहुत शक्तिशाली है उनको कोई नहीं हरा सकता यह बात शिव जी को अच्छी नहीं लगी
क्योंकि देवों के गुणों में घमंड प्राइड यह सब अच्छी चीज नहीं है देवों से इस घमंड को अलग करने के लिए शिव जी ने एक नया अवतार लिया जिसका नाम था यक्ष शवर अवतार एक अलग रूप में शिवजी उन देवों के सामने आए उनके सामने घास का एक तिनका उठाया और बोला आप लोग बहुत शक्तिशाली है सिर्फ इस घास के तिनके को अपनी अपनी शक्तियों से काट दीजिए सबने कोशिश की अग्नि ने उस घास के तिनके को जलाने की कोशिश की पानी ने डुबोने की कोशिश की जिनके पास जो अस्त्र शस्त्र थे उन्होंने उस घास
के तिनके पर वो सब कुछ इस्तेमाल कर लिया लेकिन घास के तिनके को खराब ना कर पाए घास के तिनके को काट नहीं पाए तब जाके उनमें से घमंड का जो एक राक्षस था वह अलग निकला उनसे अलग हुआ और देव असल मायने में देव बन पाए तो यह कहानी यक्ष शवर अवतार की जो शिव का ही एक अंश थे आए थे देवों को यह समझाने के लिए कि इंसान हो या देव घमंड अच्छी बात नहीं मां सती ने अपना शरीर सुपुर्द कर दिया था अग्नि को राजा यक्ष ने क्योंकि शिव जीी का तिरस्कार किया
था सती के जाने के बाद सती का पुनर्जन्म हुआ पार्वती के नाम से राजा हिमालय के घर में हिमालय जिसको आज हम पहाड़ों के नाम से जानते हैं एक समय में एक राजा का नाम होता था पार्वती जब बड़ी हो रही थी तो उनको प्रेम हुआ शिव से और वो बैठ गई घोर तपस्या करने वो हर वो कुछ करना चाहती थी जिसके रास्ते से वो शिव को प्राप्त कर सके शिव जी ने पार्वती की परीक्षा लेने की सोची और तब एक और अवतार आए जिनका नाम था ब्रह्मचारी अवतार वो ब्रह्मचार्य धर के आए पार्वती के
सामने एक ऋषि मुनि के रूप में और पार्वती जी ने सेवा सत्कार शुरू किया तब बिल्कुल भोले बनते हुए इन्होंने यह पूछा कि तुम क्यों इतनी आराधना कर रही हो और किसकी आराधना कर रही हो क्या चाहती हो पार्वती ने बताया कि मैं शिव की आराधना कर रही हूं मैं शिव को प्राप्त करना चाहती हूं जानबूझकर ब्रह्मचारी अवतार ने शिव जी का तिरस्कार करना शुरू किया उनके बारे में बातें बोली जो सुनके किसी भी शिव भक्त को तकलीफ होगी यह सब बातें सुनकर पार्वती नाराज हुई गुस्सा हुई और यही प्रमाण था कि वह शिव जी
की असली भक्त उसके बाद शिव जी ने ब्रह्मचारी अवतार से निकल के अपना असली रूप दिखाया और यह कहानी है ब्रह्मचारी अवतार शिव की महाभारत खत्म हो चुका था और साथ ही खत्म हो चुका था द्वापर युग कलयुग की शुरुआत हो चुकी थी और विदर्भ में उस समय एक राजा हुए जिनका नाम था राजा सत्यार्थ सत्यार्थ अच्छे राजा थे लेकिन उनके आस पड़ोस के जो राजा थे जो जो किंगडम थे जो राज्य थे वो उतने अच्छे नहीं थे राजा सत्यार्थ पर जब हमला हुआ और वह हार गए तब उनकी पत्नी जो महारानी थी वो गर्भवती
थी वो जैसे-तैसे अपने गर्भ को लेकर वहां से बचते बचाते निकल गई बहुत तकलीफों में जंगल में उन्होंने एक बच्चे को जन्म दिया और जब बच्चे के साथ वो पानी पीने एक नदी के पास गई तो एक मगरमच्छ ने उस रानी को भी खा लिया बच्चा अकेला हो गया भूख और प्यास से तड़प रहा था उसकी वह तड़प उसका वह दर्द शिव तक पहुंचा और शिव अपने नेत्र से यह बच्चा कौन है और इसके साथ क्याक हो चुका है वह सब देखते हुए एक भिक्षु के रूप में आए उस बच्चे को उठाया और उसको ले
जाकर दिया एक और भिखरण को उस भिखरण को बताया कि यह राजा सत्यार्थ का पुत्र है और इसका तुम ख्याल रखोगे खण ने पूरे अपनत्व से बच्चे को अपनाया संभाला खिलाया बड़ा किया और इस बात से खुश होकर शिवजी वापस आकर उस भि काण को उन्होंने अपना असली रूप दिखाया बाद में यह बच्चा बहुत अच्छा धनुर्धर बहुत अच्छा योद्धा बनके राजा सत्यार्थ जो कि उसी के पिता थे उनका राज पाठ वापस जीता यह जो अवतार था उसका नाम था भिक्षु व्य अवतार तो यह शिव जी की एक और अवतार गाथा थी शिव जी के 19
अवतारों में एक अवतार ऐसा है जिसके बारे में क्या ही बताएं आपको नाम है हनुमान जिनके बारे में आपको सब पता है इसलिए मैं हनुमान जी पर कुछ ज्यादा आपको नहीं बताऊंगा हम चलते हैं अगले अवतार पर जिसका नाम है वृषभ अवतार क्या है वृषभ अवतार तो सागर मंथन के बाद विष्णु जी लगातार असुरों को मारते मारते पाताल लोक के अंदर गए वहां बहुत सारे असरों को मारा लेकिन वहां एक माया जाल में फस के सम्मोहित होकर वो वहीं के होकर रह गए जितने साल वो सम्मोहित थे उन सालों में उन्होंने कई पुत्रों को जन्म
दिया वहां अलग-अलग अप्सराओं के साथ यह सारे जो पुत्र थे यह सब राक्षसी प्रवृत्ति के थे और इन्होंने तीनों लोक में विद्वंस मचा दिया तब शिवजी को आना पड़ा दो कारणों से एक इन सारे राक्षसी तत्त्वों वाले विष्णु जी के पुत्रों को खत्म करने और विष्णु जी को पाताल लोक से वापस लाने और तब उन्होंने जो अवतार लिया था वो बैल स्वरूप था वो बैल के जैसा दिखता था और उस अवतार का नाम पड़ा वृषभ अवतार एक-एक करके वृषभ अवतार ने उन सारे असुरों को मारा और मारते मारते जब वो पाताल लोग पहुंचे तो उनके
सामने खुद विष्णु आकर खड़े हो गए लड़ने के लिए पर जैसे ही विष्णु को यह समझ में आया कि यह वृषभ अवतार कोई और नहीं स्वयं महादेव है वो उस माया जाल के सम्मोहन से मुक्त हुए और शिव जी के साथ वापस अपने धाम वैकुंठ धाम में लौट गए तो यह कहानी है वृषभ अवतार की तो मैंने आपसे प्रॉमिस किया था कि मैं आपको शिव जी के 19 अवतारों के बारे में बताऊंगा गिनीय कितने हुए 18 हुए अब आप मुझे बताइए कि 19 अवतारों में से 18 की तो मैंने बात कर ली वह कौन सा
अवतार है जिसके बारे में मैंने बात नहीं की तो अब आप मुझे बताएंगे कि मैंने आपको क्या नहीं बताया है राइट ऑन कमेंट्स