[संगीत] दोस्तों एक समय की बात है शहर से कोसो दूर एक पहाड़ की चोटी पर एक बौद्ध भिक्षु रहा करते थे वह उस पहाड़ की चोटी पर कुटिया बनाकर अपना जीवन व्यतीत कर रहे थे एक दिन किसी कारणवश उन्हें पास के नगर में जाना पड़ा और उस यात्रा के दौरान उन्हें एक लावारिस बच्चा सड़क पर मिला जिसे देखकर उन बौद्ध भिक्षु के मन में दया जाग उठी और वह उस छोटे से बच्चे को आश्रम ले आए अब वह छोटा सा बच्चा उन बौ भिक्षु की देखरेख में बढ़ने लगा वह प्रकृति की गोद में पलने लगा
देखते ही देखते समय बीतने लगा और वह लड़का करीब सा साल का हो चुका था और एक दिन उन बौ भिक्षु ने उस लड़के को अपने पास बुलाया और कहा भंते तालाब के पास जाओ उसके किनारे बैठो और आंख खोलकर ध्यान करो वह सा साल का मासूम बच्चा यह नहीं जानता था कि ये ध्यान क्या है उस बच्चे ने भोलेपन के कारण उन बौद्ध भिक्षु की बात मान ली और वह चुपचाप तालाब के किनारे पर जाकर बैठ गया तालाब के किनारे एक अजीब सी शांति थी उस शांति में वह बच्चा कभी आसपास की झाड़ियों की
तरफ देखता तो कभी उन पर लगे फूलों उनकी पत्तियों नदी में बहने वाले जल और आसपास के पत्थरों को बहुत ध्यान पूर्वक देखता जिससे उसके मन को अजीब सी शांति मिलती जिससे वह लड़का बहुत अच्छा महसूस करता अब से वह हर रोज ठीक उसी समय तालाब के किनारे आकर बैठ जाता और आसपास की झाड़ियों की फूलों और नदी में बहने वाले जल तथा वहां पर उपस्थित उन पत्थरों को ध्यान से देखता धीरे-धीरे उस मासूम बच्चे के भीतर चीजों को निरीक्षण करने की कला विकसित हो गई उसका मन धीरे-धीरे एकाग्र होने लगा व प्रकृति में होने
वाली हर एक चीज को बड़ी गहराई से देखता और महसूस करता जिससे उसका मन शांत हो जाता और जब वह शांत होकर बैठता फूलो की कोमलता पानी की शीतलता और पत्थर की दृढ़ता को अपने भीतर देखता और उसे महसूस करता और देखते ही देखते उसकी आंखें अपने आप ही बंद हो जाती और वह उसी मुद्रा में काफी समय तक नदी के किनारे शांत बैठा रहता और जब भी उसकी आंखें खुलती तो वह आश्रम वापस लौट जाता ऐसे ही कुछ और साल बीते और देखते देखते वह लड़का भी अब जवान हो चुका था लेकिन जैसे-जैसे वह
लड़का नौजवान हो रहा था उसके भीतर से निरीक्षण करने की वह शक्ति खो चुकी थी अब वह पहाड़ की चोटी पर बैठकर शहर की उस टिमटिमाती रोशनी को देखता जो उसे पल-पल आकर्षित करती थी अब वह चाहकर भी शांत होकर बैठ नहीं पाता था उसका मन तो पलपल उस शहर की ओर भागता था देखते ही देखते वह लड़का 18 साल का नौजवान युवक बन गया और अब उसका मन बहुत बेचैन रहने लगा था उसे पर्वत की शांति अब व्यर्थ लगने लगी थी उसमें उसे कोई भी रस नहीं आता था वह तो अब दुनिया घूमना चाहता
था दुनिया देखना चाहता था वह जानना चाहता था कि बाहर के लोग कैसे हैं वे लोग कैसे रहते हैं वह नए लोगों से मिलना चाहता था उनसे बातें करना चाहता था उनका रहन सहन देखना चाहता था एक दिन उसने हिम्मत करके उन बौद्ध भिक्षु से कहा पिताजी मुझे यह दुनिया देखनी है आखिर मैं कब तक इन पहाड़ियों में घूमता रहूंगा उस शहर की दुनिया यहां से देखने में कितनी हसीन लगती है मैं भी वहां जाना चाहता हूं वहां के लोगों से मिलना चाहता हूं वहां के लोगों से बात करना चाहता हूं उन बौद्ध भिक्षु ने
उस लड़के की सारी बातें ध्यान पूर्वक सुनी लेकिन उन्होंने उस लड़के की बात का कोई जवाब नहीं दिया क्योंकि वह जानते थे कि जो भी इंसान के पास नहीं होता वह उसी के पीछे आकर्षित होता है और जो उसके पास होता है इंसान उसकी कदर नहीं करता इसलिए उन्होंने उस लड़के को समझाने की भी कोशिश नहीं की बल्कि वह चुपचाप केवल उस लड़के की सारी बातें सुनते रहे उधर दूसरी तरफ वह लड़का उन बौद्ध भिक्षु के कुछ कहने का इंतजार कर रहा था किंतु जब उन बहु भिक्षु ने कुछ भी नहीं कहा तो वह चुपचाप
वहां से चला गया अगले दिन सुबह-सुबह उन बौद्ध भिक्षु ने खुद ही उस लड़की को अपने पास बुलाया और उस लड़की के हाथ में एक पत्र देते हुए कहा बेटा तुम शहर जाना चाहते हो ना जाओ वहां का राजा मेरा बहुत अच्छा मित्र है तुम उसे यह पत्र दे देना और जब तक तुम्हारा मन करे तुम उस राजा के पास ही रहना वह राजा उन बौद्ध भिक्षु से शिक्षा ग्रहण कर चुका था और वह बौद्ध भिक्षु य अच्छी तरह जानते थे कि वह राजा महल में रहने वाला एक सन्यासी है वह बहुत आत्मज्ञानी है किंतु
उन बौद्ध भिक्षु ने उस लड़के को राजा के बारे में कुछ भी नहीं बताया लड़के को शहर जाने की अनुमति मिल चुकी थी और इस बात से वह लड़का अब बहुत खुश था वह मन ही मन बहुत प्रसन्न था उसने तुरंत ही अपना सामान बांधा और शहर की ओर निकल पड़ा जब वो रास्ते में कुछ दूर आगे बढ़ा तभी अचानक उसके मन में एक विचार उत्पन्न हुआ वह यह सोचने लगा आखिर उन बौद्ध भिक्षु ने मुझे इतनी आसानी से क्यों जाने दिया जैसे ही उसके मन में यह विचार उत्पन्न हुआ वह बड़ा आश्चर्य चकित हुआ
कि आज तक तो उन बौद्ध भिक्षु ने मुझे कहीं पर भी जाने नहीं दिया था लेकिन आज उस राजा के पास उन्होंने मुझे इतनी आसानी से क्यों भेज दिया जैसे उसके मन में विचार आया वह लड़का तुरंत ही रुक गया और उसने उन बौद्ध भिक्षु के द्वारा दिया गया वह पत्र निकाला उस पत्र को खोला तो उसमें केवल तीन ही शब्द लिखे थे और वह थे केवल दिशा दिखाओ लड़के ने जब वह पत्र पढ़ा तो उसे कुछ भी समझ नहीं आया और ना ही उसने उन तीनों शब्दों पर गौर किया उसने ज्यादा सोचा नहीं और
वह शहर की ओर आगे बढ़ने लगा शहर पहुंचकर लड़के ने राजा को पत्र थमा दिया राजा ने उस लड़के से वह पत्र लिया उसे खोला और पढ़ा और फिर तुरंत ही उस लड़के का चेहरा देखा जिस देखकर राजा यह समझ चुका था कि उन बौ भिक्षु ने उस लड़के को वहां पर क्यों भेजा है राजा ने अपने सिपाहियों को आदेश दिया सिपाहियों लड़के के लिए महल में रहने का प्रबंध किया जाए और इस लड़के को इस राज महल की सारी सुख सुविधाए भी मिलनी चाहिए उसके बाद वह राजा उस लड़के से कहता है बेटा तुम्हारा
यहां पर एक ही काम है तुम्हें बस खुश रहना है लड़का राजा की यह बात सुनकर बहुत प्रसन्न था कि उसे यहां पर कोई भी काम नहीं करना बस उसे यहां पर आराम से अपना जीवन व्यतीत करना है उस लड़के को राज महल में वह सारी सुख सुविधाएं मिलने लगी जो राजा को मिला करती थी ना तो उसे कोई काम करना पड़ता था और ना ही किसी प्रकार की कोई चिंता थी व लड़का का राज महल में बहुत खुश था और उसके पास अब समय ही समय था और अपने खाली समय में वह शहर में
घूमा करता लोगों से मिलता लोगों से बातें किया करता यहां तक कि उसने शहर में कई सारे लोगों से दोस्ती भी कर ली थी राजमहल में रहकर उसने कई सारी किताबें भी पढ़ ली थी और यह सब करते हुए अभी उसे कुछ महीने ही गुजरे थे लेकिन धीरे-धीरे अब उस लड़के का मन इन सबसे उने लगा था वह यह महसूस करने लगा था कि उसका मन हमेशा कुछ नया चाहता है लेकिन जब कुछ नया मिल जाता है तो यह मन संतुष्ट नहीं हो पाता अर्थात हमारा मन बेचैन ही रहता है और जब लड़के को इन
बातों का एहसास हुआ जब उसने अपने जीवन में यह सारी चीजें महसूस की तो उसके बाद वह दूसरों पर निरीक्षण करने लगा वह हर सुबह महल के बगीचे में जाया करता वह बगीचा बहुत ही सुंदर और बहुत ही मनमोहक था और यह बगीचा शहर का सबसे बड़ा बगीचा भी था और इस बगीचे में शहर का कोई भी व्यक्ति बिना किसी रुकावट के आ जा सकता था वह लड़का अपना अधिकांश समय उस बगीचे में ही बिताया करता और वहां पर आने जाने वाले व्यक्तियों को वह ध्यान से देखता उनका निरीक्षण करता कुछ दिन निरीक्षण करने के
बाद उसे यह पता चला कि लोगों के चेहरों पर हमेशा तनाव बना रहता है चाहे वह कोई अमीर आदमी हो या फिर कोई गरीब फिर चाहे वह कोई व्यापारी हो या कोई कर्मचारी सभी के चेहरों को देखकर ऐसा प्रतीत होता था मानो लोगों का शरीर तो बगीचे में है किंतु उनका मन कहीं और ही भटक रहा है लोगों के मन में एक अजीब सा तनाव है लोग किसी ना किसी परेशानी में है चिंतित है जिस कारण वह इस समय और अभी यहां पर उपलब्ध नहीं है हालांकि उनका शरीर यहीं पर है किंतु उनका मन यहां
नहीं और बगीचे की सुंदरता उसका आकर्षण भी लोगों के मन को शांत नहीं कर पा रहा था उन लोगों को देखकर वह लड़का मन ही मन यह सोचता था कि यह लोग जिंदा तो है पर जीना भूल गए हैं केवल कुछ छोटे बच्चे ही हैं जो इस बगीचे में आकर सचमुच खुश होते हैं यहां की खुशबू यहां की हवा यहां के आकर्षण को देखकर उनका मन लला हो जाता है और वह खिलकर हस वह वर्तमान में जीना जानते हैं उन सभी व्यापारियों उन सभी सेठों को देखकर आज लड़के के मन में तरह-तरह के विचार उत्पन्न
हो रहे थे वह यह सोच रहा था मुझे तो लगता था कि शहर में उन्नति करने वाले बड़े घर के लोग हमेशा खुश रहते होंगे उन्हें किसी बात की कोई चिंता नहीं होती होगी लेकिन आज यहां पर आने के बाद यहां का नजारा तो कुछ और ही है उस लड़के को को अब ये एहसास हो चुका था कि बाहरी सुख सुविधाओं से केवल शरीर को आराम मिलता है किंतु हमारा मन बाहरी चीजों से केवल भटकता है और भटकाव से हमारा मन थकता है हम चाहे कितने भी ऐश आराम में क्यों ना रहे चाहे कितने भी
आकर्षण के केंद्र में क्यों ना रहे हमारे मन को कभी असली आराम और असली खुशी नहीं मिल पाती खुश रहने की बात तो दूर है लोगों की बेचैनी देखकर लोगों के चेहरे पर इस प्रकार का तनाव चिंता और परेशानियां देखकर लड़के का मन और भी बेचैन होने लगा था वो उनके बारे में सोच सोच कर और भी ज्यादा चिंतित होने लगा था इस दौरान उसके मन में कई बार आश्रम वापस दौड़ जाने के ख्याल भी उठते थे लेकिन तभी उसके मन में एक और विचार उत्पन्न होता कि मैं राजा से क्या कहूंगा और राजा से
कुछ भी कहने की उसकी हिम्मत ना होती एक दिन वह लड़का चिंतित अवस्था में एकांत में उस बगीचे में बैठा हुआ था और तभी अचानक वहां पर वह राजा भी उसी बगीचे में टहलने आए राजा ने जब उस लड़के को एकांत में बैठे देखा तो वह समझ चुके थे कि लड़के के मन में कुछ बातें चल रही हैं व राजा उस लड़के के पास आया और उस लड़के से इस तरह बैठे रहने का कारण पूछा इस पर वह लड़का उस राजा को जवाब देते हुए कहता है हे राजन मैं जितना खुश रहने की कोशिश करता
मैं उतना ही परेशान होता जा रहा हूं यहां शहर में लोगों के पास सब कुछ है पैसा है अच्छा घर है खाने के लिए तरह तरह के पकवान है लेकिन मन की शांति नहीं है मैंने कई लोगों को देखा फिर चाहे वह धनवान हो या कोई गरीब कोई व्यापारी हो या फिर कोई कर्मचारी सभी के चेहरे उतरे हुए हैं सभी के चेहरे पर एक अजीब सा तनाव है चिंता है परेशानी है केवल यहां पर कुछ बच्चे ही हैं जो सही मायने में प्रसन्न रहते हैं खुश रहते हैं हमेशा हंसते खेलते रहते हैं किंतु जैसे-जैसे हम
बड़े होते हैं वैसे-वैसे हम भविष्य और भूतकाल में जीना सीख जाते हैं हम हमेशा अपने भविष्य को सुधारने में लग जाते हैं हे राजन क्या यही जीवन का सच है अगर शहर का जीवन ऐसा ही है तो मैं यहां नहीं रहना चाहता इसलिए मैं आपसे आज्ञा चाहता हूं मैं वापस आश्रम लौट जाना चाहता हूं राजा ने उस लड़के की सारी बातें ध्यानपूर्वक सुनी और फिर वह उस लड़के से कहते हैं बेटा तुम जाना चाहते हो तो तुम कभी भी जा सकते हो तुम्हें किसी ने रोक नहीं रखा लेकिन जाने से पहले तुम दो काम अवश्य
करना इतना कहकर राजा उस लड़के से पहला काम बताते हुए कहता है तुम इस बगीचे का निरीक्षण करो आगे वराजा उस लड़के को समझा हु कहता है बेटा जैसा कि तुमने कहा इस नगर में कुछ लड़के ही हैं जो हमेशा खुश रहते हैं हंसते खेलते रहते हैं और वह वर्तमान में जीना भी जानते हैं तो तुम क्यों ना उन बच्चों की तरह ही इस बगीचे को भी देखो जिस तरह से वह बच्चे इस बगीचे में आकर खुश हो जाते हैं क्यों ना तुम भी उन्हीं की तरह इस बगीचे में आकर खुश हो जाओ यहां की
हर एक चीज को वो जैसे देखते हैं तुम भी उसे वैसे ही क्यों नहीं देखते इस पर वह लड़का राजा से कहता है परंतु हे राजन वह कैसे होगा राजा उस लड़के को समझाते हुए कहता है बेटा इस बगीचे में पौधे हैं पेड़ है पत्तियां है फूल है यहां की मिट्टी इतनी खुशबूदार है तुम इन चीजों पर ध्यान लगाओ इन चीजों को गौर से देखो इन्हे महसूस करो किंतु याद रहे इन चीजों को देखते वक्त इन्ह महसूस करते वक्त कभी किसी का कोई मतलब निकालने की कोशिश मत करना किसी से कोई कहानी मत जोड़ना तुम्हारा
काम बस इतना ही है कि तुम्हें इन चीजों को गौर से देखना है उन्हें महसूस करना है इन चीजों से जुड़े मन में जो भी विचार आए उन विचारों को केवल तुम देखते जाओ उनका कोई मतलब मत निकालना केवल देखते जाना और उसके बाद तुम मुझे आकर बता सकते हो कि तुम महसूस कर रहे हो इतना कहकर वह राजा वापस महल लौट आया वह लड़का कुछ देर वहीं पर बैठा रहा और राजा की बातों पर विचार करता रहा और शाम के वक्त वह भी महल लौटा और अपने कमरे में जाकर सो गया अगली सुबह वह
लड़का जल्दी उठा और बगीचे में आकर एक जगह पर बैठ गया वह शांति से वहां पर उपस्थित उन पेड़ों पौधों और वहां पर आने वाली उन हवाओं को देखने और महसूस करने लगा जब उसने बगीचे की तरफ ध्यान दिया तो उसने देखा कि चारों तरफ काफी सारी सुखी हुई पत्तियां बिखरी हुई हैं तरह-तरह की गंदगी है यह देखकर उसके मन में विचार आया कि बगीचे की सफाई होनी चाहिए तभी उसका ध्यान फूलों की तरफ गया उन फूलों को देखकर उसे बहुत अच्छा महसूस हुआ वह सोच रहा था कि फूल बहुत अच्छे लग रहे हैं लेकिन
तभी उसके मन में यह भी विचार उत्पन्न हुआ कि बहुत जल्द पतझड़ का मौसम भी आने वाला है जिस कारण यह सारे फूल बहुत ही जल्द मुरझा जाएंगे और नष्ट हो जाएंगे वह उन विचारों से जुड़ जाता लेकिन जैसे ही उसे राजा की बात याद आती वह खुद को उन विचारों से अलग करता और इसी प्रकार वह उन सभी विचारों को देखता रहा देखते देख देखते काफी वक्त बीत चुका था और अब उसका मन भी शांत होने लगा था अब से वह हर रोज उस बगीचे में आता और इसी प्रकार वहां की सौंदर वहां पर
उपस्थित पेड़ पौधे फूल पत्तियां वहां की मिट्टी हर एक चीज को ध्यान से देखता और उन्हें महसूस करता देखते ही देखते ऐसे कई दिन बीत गए और अब वह लड़का जब भी उस बगीचे में आता तो वहां पर उस फूलों की कोमलता पानी की शीतलता धरती की स्थिरता और वहां पर आने वाली उन को महसूस कर पाता वह अपने अंदर उन्हें देख पाता जिसे यूं भी कह सकते हैं कि वह लड़का उस बगीचे के साथ एक हो गया था और अब उसका मन भी पहले से बहुत शांत होने लगा था जब भी वह बगीचे में
आता तो गई घंटे व यूं ही बैठा रह जाता और एक दिन अचानक उस लड़के को सुखद आश्चर्य हुआ उसे इस बात का एहसास हुआ कि मुझे उन बौद्ध भिक्षु ने सात साल की उम्र में यही खुली आंखों वाला ध्यान सिखाया था और जैसे उसे इस बात का एहसास हुआ वह लड़का बहुत प्रसन्न हुआ और तुरंत ही महल में राजा के पास गया और राजा से कहा हे राजन जैसा आपने कहा था मैंने वैसा ही किया और ऐसा करने से मैंने तीन बातें सीखी पहली जब हम किसी पर ध्यान देते हैं तो मन के स्पंदन
या मन की अवस्था उसी वस्तु जैसी हो जाती है इसलिए सही और सात्विक वस्तुओं पर ध्यान देने का महत्व है हे राजन मैंने यह भी सीखा कि प्रकृति का स्वभाव शांत है इसलिए इस पर ध्यान लगाने से झरने की आवाज सुनने से हवा की शीतलता महसूस करने से धरती की स्थिरता महसूस करने से मन को बहुत आराम मिलता है हे राजन मैंने यह भी सीखा कि जब हम दुखी होते हैं तब हम और ज्यादा मुसीबत या रुकावट पर ध्यान देते हैं जिस कारण हम और ज्यादा परेशान होने लगते हैं चिंतित होने लगते हैं और इस
परेशानी में हमारा दृष्टिकोण और नकारात्मक भी हो जाता है हमारे मन में नकारात्मक विचार आते हैं नकारात्मक बातें उत्पन्न होती हैं किंतु यदि हमें इस दुख से बाहर निकलना है यदि हमें उस परिस्थिति से बाहर निकलना है तो हमें अपना ध्यान नकारात्मक बातों से हटाकर अर्थात उन परेशानियों से हटाकर अच्छी चीजों की ओर ले जाना चाहिए जो स्वभाव से शांत हो जिससे हमारे मन को ऊर्जा मिलती है हमारा मन एक बार फिर ऊर्जा से भर जाता है राजा ने उस लड़के की सारी बातें ध्यानपूर्वक सुनी और फिर वह लड़के को कहते हैं बहुत अच्छे बेटे
तुमने बहुत अच्छा काम किया है किंतु अब यही काम तुम्हें अपने लिए करना है अर्थात अपने मन के लिए और यही तुम्हारा दूसरा काम है मन को देखो इस बात को समझाते हुए राजा उस लड़के से कहते हैं जो भी विचार तुम्हारे अंदर प्रकट होते हैं भले ही वह तुम्हारे बारे में ही क्यों ना हो उन विचारों पर बिना प्रतिक्रिया दिए बस उन विचारों को देखते जाओ अर्थात किसी भी विचार में अच्छा या बुरा मत सोचो उन विचारों पर निर्णय लेने की कोशिश मत करो बस उन विचारों को देखते जाओ यही तुम्हारा आखिरी काम है
लड़के ने राजा की बात मान ली और अब से उसने खुद पर ध्यान देना शुरू किया उसने इस अभ्यास को शुरू किया लेकिन अबकी बार अभ्यास इतना आसान नहीं था जब भी उसे अपने बारे में विचार आता तब वह उसमें खींचा चला जाता वह अपने आप को रोक नहीं पाता और जब वह इस चीज का अभ्यास कर रहा था तब उसे इस बात का एहसास भी हुआ कि खुद के प्रति संभाव विकसित करना सबसे कठिन कार्य है लेकिन लड़के ने हार नहीं मानी वह टिका रहा देखते देखते कुछ महीने यूंही निकल गए और लड़के को
जब भी समय मिलता वह अपने विचारों को देखने की कोशिश करता देखते देखते वह अभ्यास में इतना निपुण तो हो चुका था कि जब भी उसके मन में कोई विचार आते फिर चाहे वह खुद को ही लेकर क्यों ना हो तो वह उसमें अच्छा या बुरा नहीं जोड़ता बल्कि वह केवल शांति से उन विचारों को देखता और उन विचारों के प्रति कोई प्रतिक्रिया नहीं देता ऐसा करते करते अब वह इतना निपुण हो चुका था कि उसका मन धीरे-धीरे स्थिर होने लगा था वह भीतर की ओर मुड़ने लगा था और जैसे जैसे उसने इसमें और भी
निपुणता हासिल की उसका मन शांत होने लगा उसका मन किसी भी विचार के प्रति कोई भी प्रतिक्रिया नहीं देता था और जैसे उस लड़के के मन ने किसी भी विचार के प्रति प्रतिक्रिया देना बंद किया उसका मन पूरी तरह से शांत हो गया और मन के शांत होते ही लड़का मन के सारे रहस्य समझ चुका था वह यह जान चुका था कि संसार केवल हमारे मन का ही एक प्रतिबिंब है जो अच्छाई और बुराई हमें बाहर दिख रही है यह सब कहानी है यह सारी कहानियां हमारा मन ही बुन रहा है और यह सारी कहानियां
हमारा मन ही हमें सुना रहा है और इसी अच्छे और बुरे के चलते हम मन की बातों में फस कर रह जाते हैं और हमारा मन हमें विचारों में बहा करर ले जाता है जिस कारण हम कभी भी असली शांति और आनंद को देख नहीं पाते उसे जान नहीं पाते उसे महसूस नहीं कर पाते अब उस लड़के को यह भी समझ में आ चुका था कि यह शांति यह खुशी हमेशा से मेरे पास ही थी उन बौद्ध भिक्षु ने मुझे बचपन से ही इस शांति का एहसास करना पहले से ही सिखा दिया था लेकिन मैं
ही गलत था मैं चीजों के पीछे भाग रहा था मैं लोगों की खुशियों के पीछे भाग रहा था मैं चीजें पाना चाहता था लड़का यह जान चुका था कि संभाव में रहना ही आंखें खोलकर ध्यान करना है अपने मन के प्रति भी संभाव रखना सबसे बड़ी शक्ति है और यह शक्ति हमें यू ही नहीं मिलती इसके लिए हमें निरंतर अभ्यास करते रहना होता है अपना अभ्यास पूरा करने के बाद आखिरकार वह लड़का एक बार फिर उस राजा के पास पहुंचा लेकिन इस बार कुछ अलग सा था लड़के की दृष्टि सोचने और समझने का तरीका अब
पूरी तरह से बदल चुका था वह पूरी तरह से वर्तमान में आ चुका था लड़के ने राजा को जब दरबारियों से बात करते हुए देखा तो राजा के चेहरे को देखकर अचानक ही लड़के को यह एहसास हुआ कि राजा के चेहरे पर भी वही शांति झलक रही है जो उसे अब अभ्यास के कारण मिली है जो उन बौद्ध भिक्षु के चेहरे पर हमेशा बनी रहती थी ठीक वही शांति वही तेज राजा के चेहरे पर भी नजर आ रहा था राजा अपना पूरा राज्य भार संभालते हुए भी पूरी तरह से शांत है यह देखकर लड़के के
मन में विचार उत्पन्न हुआ और वह यह सोचने लगा कि आज तक मैं यह सब कुछ पहले क्यों नहीं देख पाया जैसे उसके मन में यह विचार उत्पन्न हुआ उसे उसके प्रश्न का उत्तर भी से ही मिल गया उसे इस बात का एहसास हुआ कि मैं तो पहले अपनी मानसिक दुनिया में खोया रहता था तो मुझे इन बातों का एहसास कैसे होता मैं तो हमेशा भविष्य में जीता था तो मैं वर्तमान में रहने वाली इन चीजों को कैसे समझ पाता और ठीक उसी वक्त लड़के को उस पत्र में लिखे हुए वह तीन शब्द भी याद
आए जो उसे उन बौ भिक्षु ने दिए थे केवल दिशा दिखाओ उन तीनों शब्दों का अर्थ क्या था अब उस लड़के को अच्छी तरह समझ में आ चुका था लड़के ने उस आत्मज्ञानी राजा को प्रणाम किया और उनसे आज्ञा लेकर व वापस अपने आश्रम लौट आया दोस्तों यह कहानी हमें दो बहुत ही महत्त्वपूर्ण बातें सिखाती है पहला यह कि हमें अपने भीतर मुड़ना जरूरी है बाहर के जो भटकाव है जिससे हमारा मन थकता है सुस्त होकर हमें नींद भी आ जाती है लेकिन इससे हमारा मन कभी शांत नहीं हो पाता हमारे मन को कभी चैन
नहीं मिलता जिस कारण हमारे चेहरे पर हमेशा तनाव चिंता और परेशानी झलकती रहती है और इसी कारण हम में से अधिकांश लोग हमेशा परेशान रहते हैं तकलीफों से घिरे रहते हैं क्योंकि वह समस्याओं का समाधान निकाल नहीं पाते और इसका कारण है क्योंकि हमारा मन शांत नहीं होता जब भी हमारा मन शांत नहीं होता तो वह किसी एक समस्या पर अर्थात एक समस्या के समाधान पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पाता और जब तक हम एक समस्या के समाधान पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पाएंगे तब तक हम किसी भी समस्या का समाधान कर ही नहीं सकते
इसलिए आपको यह बात समझनी आवश्यक है कि हमारे मन को शांत रखना बहुत ज्यादा जरूरी है और इसके लिए आपको यह भी समझने की आवश्यकता है कि सारा ज्ञान सारी शक्ति असीम आनंद सब कुछ हमारे भीतर पहले से मौजूद है इसलिए सबसे पहले हमें अंदर मुड़ने की आवश्यकता है क्योंकि जब तक हम भीतर के आनंद को नहीं देखेंगे उसे महसूस नहीं करेंगे तब तक इस बाहरी दुनिया में हमें कभी भी वह असीम आनंद प्राप्त नहीं हो पाएगा ना ही हम उसे कभी महसूस कर पाएंगे जैसा कि हमने पहले ही बात की कि इस बाहर की
दुनिया में जो भी कहानी है वह सारी कहानियां हमारे भीतर ही पहले से मौजूद है क्योंकि वो सारी कहानियां हमारा मन ही हमें दिखा रहा है हमारा मन ही हमें सुना रहा है किंतु अब यहां पर यह प्रश्न उठता है कि हम भीतर की ओर कैसे मुड़े तो इसके लिए हमें संभाव मन की आवश्यकता है अर्थात नॉन जजमेंट यानी कि हमें हमारे मन की कमियों को व चाहे अच्छी हो या बुरे हो फिर वह चाहे जैसे भी विचार हो हमें बस उन्हें देखते रहना है ऐसा करने से हमारे मन के भीतर उस समुद्र की लहरें
धीरे-धीरे शांत होने लगती हैं क्योंकि जहां पर हम अच्छे या बुरे का निर्णय नहीं करते जहां पर हम कोई जजमेंट नहीं करते वहां पर किसी भी प्रकार की कोई प्रतिक्रिया नहीं होती और जहां कोई प्रतिक्रिया नहीं होती वहां मन नहीं होता अर्थात हमारे मन के सभी विचार पूरी तरह से समाप्त हो जाते हैं विलीन हो जाते हैं और हमारे मन में उठने वाली वो लहरें देखते ही देखते पूरी तरह से शांत हो जाती हैं और जब वन के समुद्र की वो लहरें शांत हो जाती हैं तो पानी स्थिर हो जाता है शांत हो जाता है
और स्पष्ट हो जाता है और जितना हमारे भीतर यह संभाव उत्पन्न होता जाएगा उतना ही हम मन के इस चंगुल से निकलते भी जाएंगे और फिर उतना ही हम भीतर से स्थिर होते जाएंगे और जितना हम स्थिर होंगे हमें उतनी ही स्पष्टता भी मिलेगी किसी भी कार्य को करने के लिए हमें उतनी ऊर्जा भी मिलेगी और यदि हम उस समय पर किसी भी एक समस्या के समाधान के बारे में सोचे तो वह भी हम आसानी से खोज सकते हैं और इसके लिए आपको दूसरी बात भी याद रखनी चाहिए और वह यह है कि केवल दिशा
बदलने की आवश्यकता है अर्थात जब भी हमारे जीवन में कोई परेशानी आती है तब आप जरा इस बात पर ध्यान दीजिएगा कि उस वक्त हमारा मन सबसे ज्यादा बेचैन होता है उसी वक्त हमारे मन की समुद्र की लहरें उफान पर होती हैं और उस वक्त हमें कुछ भी समझ नहीं आता क्योंकि मन के समुद्र का वह पानी पूरी तरह से अशांत है और जब तक वह स्थिर नहीं होगा तब तक हमें स्पष्टता कहां से मिलेगी और जब तक आपको स्पष्टता ही नहीं होगी अर्थात यही नहीं समझ में आएगा कि आपको क्या करना है तब तक
आप भला अपने समस्या के समाधान को कैसे ढूंढ सकते हैं अक्सर ही परेशानी के वक्त हमारे मन में यह विचार जरूर उठता है कि आखिर मैं इतना परेशान क्यों हो रहा हूं मुझे किसी भी समस्या का समाधान क्यों नहीं मिल रहा मेरा मस्तिष्क काम क्यों नहीं कर रहा जब आप इन सब के बारे में सोचेंगे तब आपको यह भी समझ में आएगा कि पिछले कुछ समय से आप कुछ गलत चीजों पर ध्यान दे रहे हैं जिस कारण मन की शक्ति क्षीण होने लगी है मन बेचैन होने लगा है और जब मन के पास उतनी शक्ति
ही नहीं होगी जब मन स्थिर ही नहीं होगा जब मन स्पष्ट ही नहीं होगा तो वह आपको किसी प्रकार का समा समाधान कैसे दे सकता है और इसी कारण वश हमारा मन और बुद्धि किसी भी समस्या का समाधान खोजने में असमर्थ हो जाते हैं और इसी कारण हमें यह भी लगता है कि हमारा मन काम नहीं कर रहा हमारा मस्तिष्क काम नहीं कर रहा इसलिए अगर आप चाहते हैं कि किसी भी ऐसी अवस्था में आपका मन आपकी ओर से चले अर्थात आपका साथ दे तो आपको सबसे पहले अपना ध्यान शांत और सात्विक चीजों पर लाना
होगा अपने ध्यान को केंद्रित करना होगा और उसे एक सही दिशा देनी होगी और जब आप ऐसा करेंगे तो आप देख पाएंगे कि धीरे-धीरे आपका मन शांत होने लगेगा आप उस शांति को महसूस कर पाएंगे जिससे आपके भीतर एक नई ऊर्जा भी उत्पन्न होगी और आप कोई भी नया कार्य करने के लिए पूरी तरह से सक्षम हो पाएंगे आपका मन उस कार्य को करने के लिए आपको संपूर्ण ऊर्जा प्रदान करेगा और बिना ध्यान के तो कुछ भी संभव नहीं है इसलिए अपने ध्यान पर ध्यान केंद्रित करना सीखें अपने मन के विचारों पर ध्यान केंद्रित करना
सीखें उन्हें सही दिशा में आगे की ओर बढ़ाना सीखें और इसका निरंतर अभ्यास ही आपको इसमें निपुण बना सकता है लेकिन हम में से अधिकांश लोग केवल एक दो दिन प्रयास करके यह सोचते हैं कि उन्हें ध्यान से कुछ नहीं मिलता तो यह बात सही है ध्यान से हमें कुछ नहीं मिलता बस हमारे सोचने समझने की शक्ति हमारे ध्यान केंद्रित करने की शक्ति उन विचारों को सही दिशा देने की शक्ति मन पर नियंत्रण साधने की शक्ति इन सब में सुधार होता है और ऐसे ही कई सारे फायदे हैं जब आप इस पर निरंतर अभ्यास करते
हैं तो यह सारी चीजें अपने आप ही आप में विकसित होने लगती हैं हालांकि यह चीजें आपको नजर नहीं आती लेकिन धीरे-धीरे जब आप इन्हें महसूस करते हैं इसका अभ्यास करते हैं तो यह सारी चीजें आपको धीरे-धीरे समझ में आने लगती हैं और हां एक बात और ध्यान रखिएगा ऐसा नहीं है यदि आपने एक महीने लगातार ध्यान किया और उसके बाद आपके अंदर य सारी क्षमताएं आ जाएंगे तो ऐसा होना संभव ही है और नहीं भी क्योंकि यह आपकी ध्यान शक्ति पर निर्भर करता है कि आपने वह ध्यान किस प्रकार लगा है आपका ध्यान कितना
गहरा हुआ है क्योंकि शुरुआत में तो हमें कई सारी दिक्कतों का सामना करना ही पड़ता है जब शुरुआत में हम ध्यान करने बैठते हैं तो हम अधिकांशत लंबे समय तक बैठ नहीं पाते और ऐसी अवस्था में हमारा मन भी स्थिर नहीं रहता हमारे मन में तरह-तरह के विचार चलते ही रहते हैं लेकिन यदि आप उन विचारों को शांत करना चाहते हैं उन्हें स्थिर करना चाहते हैं तो आपको ध्यान में निपुणता हासिल करनी होगी तभी आप अपने मन को केंद्रित कर पाएंगे उसे एक सही दिशा दे पाएंगे और जब तक आप उसे सही दिशा नहीं देंगे
तब तक आपका मन आपको यूं ही भटका ही रहेगा और आप अपने जीवन में कभी कहीं नहीं पहुंच पाएंगे छोटा से छोटा लक्ष्य भी आप हासिल नहीं कर पाएंगे यदि आप अपने जीवन में कोई लक्ष्य हासिल करना चाहते हैं तो इसके लिए आपको ध्यान करना चाहिए क्योंकि ध्यान करने से ही आपके भीतर वह शक्ति व क्षमताएं उत्पन्न होंगी और आप अपने जीवन में चाहे कैसा भी लक्ष्य क्यों ना हो उसे हासिल करने में सक्षम हो पाएंगे यदि आप अपने मन को एकाग्र करना चाहते हैं तो आपको यह विधियां अपनानी ही होंगी दोस्तों महात्मा बुद्ध कहते
हैं सबसे अंधेरी रात अज्ञानता की रात होती है यह ऐसी रात है जो कभी नहीं गुजरती और इस अंधेरी रात में आप चाहकर भी कुछ नहीं देख पाते सामान्य रातों में तो हम उजाले का प्रबंध कर भी लेते हैं लेकिन अज्ञानता की रात में हमें उजाला अपना शत्रु नजर आता है और अज्ञान हमें अंधेरे की ओर ले जाता है इसलिए अंधेरा हमारा मित्र बन जाता है और वहीं पर ज्ञान अर्थात प्रकाश हमें उजाले की ओर ले जाता है हमें सही राह दिखाता है और हमें जीना सिखाता है लेकिन आजकल की विडंबना ही यही है कि
हम में से हर कोई अपने आप को ज्ञानी और महा ज्ञानी समझने लगा है और सामने वाले हमें मूर्ख नजर आते हैं इसलिए वे सभी लोग दूसरों का मजाक उड़ाने और उन्हें परेशान करने से कभी पीछे नहीं हटते जबकि वे लोग यह भूल चुके हैं कि इस दुनिया में सभी लोग जिम्मेदारियों के नीचे दबे हुए हैं सबके ऊपर कुछ ना कुछ जिम्मेदारियां है सबके कंधे पर कोई ना कोई ऐसी जिम्मेदारी अवश्य है जिसे निभाने में वह अपना पूरा जीवन लगा देता है और यह सभी जिम्मेदारियां हमारे बचपन से ही शुरू हो जाती हैं क्या आप
किसी ऐसे आदमी से कभी मिले हैं जो अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त हो चुका हो नहीं ना क्योंकि इस दुनिया में ऐसा कोई नहीं है जिसके सर पर जिम्मेदारियां ना हो भले ही कोई ऐसा व्यक्ति हो जिसे केवल अपना पेट ही भरने की जिम्मेदारी हो लेकिन उसके सर पर जिम्मेदारियां हमेशा बनी रहती हैं लेकिन हम इसी भ्रम में अपना पूरा जीवन बिता देते हैं हम यह सोचते हैं कि बस इस जिम्मेदारी से मुक्त हो जाऊं तो मैं अपना जीवन शांति से बिताऊ मैं अपना जीवन खुशहाली से बिताऊ लेकिन मेरा आप सभी से एक प्रश्न है क्या
आपके जीवन में अब तक ऐसा कोई भी समय आया है कि आप उस जिम्मेदारी से मुक्त हो सके हैं आपने आज तक बहुत सी जिम्मेदारियां निभाई होंगी लेकिन क्या आप उन जिम्मेदारियों से मुक्त हो चुके हैं क्या आप अब तक उन जिम्मेदारियों में नहीं बने हुए हैं आप में से हर कोई हमेशा यह कहता रहता है कि मेरे जीवन में शांति नहीं है मैं आगे तो बढ़ना चाहता हूं मैं ज्ञान की प्राप्ति करना चाहता हूं लेकिन मेरे ऊपर कई प्रकार की जिम्मेदारियां हैं और मैं अपनी जिम्मेदारियों के कारण आगे नहीं बढ़ पा रहा एक बार
मैं उन जिम्मेदारियों को निभा लू तब मैं इस मार्ग पर जरूर आगे बढूंगा और मैं बुद्धत्व की प्राप्ति करूंगा और मैं बार-बार आप लोगों से बस इतना ही कहता हूं जिम्मेदारियां आपका पीछा कभी नहीं छोड़ने वाली जिस समय के इंतजार में आप अब तक जी रहे हैं व समय आप के हाथों में ही है और वह आपके हाथों से फिसलता जा रहा है लेकिन आप उसे यूं ही व्यर्थ गवा रहे हैं मेरा आप सभी से एक प्रश्न है क्या आपने इतने दिनों में कभी भी अपने लिए केवल 5 मिनट अपने लिए निकाले हैं क्या आप
कहीं पर पा मिनट बैठकर शांति से यह सोच सकते हैं कि मेरा जीवन कहां जा रहा है किस दिशा में पढ़ रहा है और आगे मेरे जीवन में क्या होगा मैं यकीन के साथ कह सकता हूं कि आप में अधिकांश लोग यह नहीं कर पाए होंगे क्योंकि अब भी आप यही सोचते हैं कि मेरे ऊपर अभी जिम्मेदारियां है मुझे उन जिम्मेदारियों को पूरा कर लेने दो उसके बाद मैं इत्मीनान से अपने लिए समय जरूर निका लूंगा लेकिन मैं फिर आपसे यही कहता हूं कि यह होना संभव नहीं है चलिए इसे एक कहानी के माध्यम से
समझते हैं बहुत समय पहले की बात है एक नगर में एक महान बौ भिक्षु रहा करते थे उनके दूर दूर तक फैली हुई थी लोग उनके पास अपनी समस्याएं लेकर आते और वहां से समाधान लेकर ही जाया करते एक दिन एक बूढ़ा व्यक्ति उन गुरु के पास आया और उन्हें प्रणाम करके वह उनसे कहता है हे गुरुवर क्या आप मुझे बता सकते हैं कि मैं कब तक अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त हो पाऊंगा मैं ज्ञान के मार्ग पर आगे जाना चाहता हूं सोचता था जब मैं अपनी सारी जिम्मेदारियां निभा लूंगा तब मैं इस मार्ग पर अवश्य
आगे बढूंगा लेकिन आज तक मैं अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त ही नहीं हो पाया जिम्मेदारियां मेरा पीछा छोड़ने का नाम ही नहीं लेती वह तो हमेशा मेरे पीछे ही लगी रहती है अब आप ही बताइए मैं क्या करूं इस पर वह बहुत बिक्षु मुस्कुराने लगे और उस बूढ़े व्यक्ति से कहते हैं भंते तुमने आज तक कौन-कौन सी जिम्मेदारियां निभा ली है इस पर वह बूढ़ा व्यक्ति उन बौद्ध भिक्षु से कहता है हे गुरुवर जब मैं छोटा था तो मुझे लगता था कि बड़ा होना बहुत अच्छा है एक बार बड़ा हो जाऊं तो पढ़ने लिखने की सारी
जिम्मेदारियां हमेशा हमेशा के लिए खत्म हो जाएंगी बड़ा हुआ तो लगा कि व्यापार या कोई अच्छा पद पा लूंगा तो अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो ही जाऊंगा उसके बाद मैंने शादी कर ली और मैंने सोचा कि एक बार मेरे बच्चे पढ़ लिख लेंगे वह कामयाब हो जाएंगे तब तो मैं अपनी जिम्मेदारी से अवश्य ही मुक्त हो जाऊंगा देखते देख देखते ऐसे ही काफी समय बीत चुका है और अब मेरे बच्चे बड़े भी हो चुके हैं कुछ बच्चे कामयाब भी हो गए हैं तो कुछ नालायक भी रह गए तब ऐसा प्रतीत होने लगा कि मुझे उनकी
शादी करवा देनी चाहिए एक बार उनके सर पर जिम्मेदारियां आ जाएंगी तो वह खुद ही सुधर जाएंगे यही सोचकर मैंने उनकी शादी भी करवा दी तब मन में यह लालसा कि कम से कम अपने पोते पतियों का मुंह तो देख लू एक बार उनसे मिल लू उन्हें गले लगा लू तो कम से कम यह मेरा जीवन पूरा हो जाएगा मैं संपन्न हो जाऊंगा देखते ही देखते समय बीतता गया और आखिरकार मैंने अपने पोते और पोतियो का मुंह भी देख लिया लेकिन उन्हें देखकर मेरे मन में एक और लालच जाग उठा मुझे लगने लगा कि इनकी
अच्छी शिक्षा भी मेरी ही जिम्मेदारी है कम से कम उन्हें इतना बड़ा होते हुए तो देख लू और आज वह सभी बड़े हो चुके हैं और तब लगता है कि वह सब कामयाब हो जाए तो मेरी सारी की सारी जिम्मेदारियां खत्म हो जाएंगी ऐसे ही काफी समय बीत चुका है और अभी तीन दिन पूर्व ही मेरी पत्नी की मृत्यु भी हो गई और तब मेरे मन में यह ख्याल आया कि एक दिन मैं भी इसी प्रकार मृत्यु को प्राप्त हो जाऊंगा लेकिन अब तक मैं अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त नहीं हो पाया मुझे समझ नहीं आ
रहा कि मैं अपनी जिम्मेदारियों से किस प्रकार मुक्त हूं क्या आप मुझे इसका कोई उपाय बता सकते हैं क्या आप मुझे कोई राह दिखा सकते हैं इस पर वो बहुत भिक्षु मुस्कुराने लगे और उस बूढ़े व्यक्ति से कहते हैं अंते तुम मेरे साथ चलो इतना कहकर वो उस बूढ़े व्यक्ति को एक नदी किनारे ले गए और वहां पर जाकर उन्होंने उस व्यक्ति को एक किनारे पर बैठा दिया और बगल में वह खुद भी बैठ गए और फिर वह उस व्यक्ति से कहते हैं भंते देखो मैं इस नदी के दूसरे किनारे पर जाना चाहता हूं और
तुम बस देखते रहो कि मैं किस प्रकार उस दूसरे किनारे तक पहुंचता हूं इतना कहकर वह चुपचाप उस नदी के किनारे पर बैठे रहे देखते देखते दोपहर का समय हो गया लेकिन अब तक वह गुरु वहीं के वहीं बैठे थे इसी प्रकार देखते देखते दोपहर भी ढल चुकी थी और संध्या का वक्त हो चुका था लेकिन वह गुरु नदी के उसी किनारे पर बैठे के बैठे ही थे यह देखते देखते उस बूढ़े व्यक्ति के सब्र का बांध भी अब टूट चुका था आखिरकार उस बूढ़े व्यक्ति ने उन बौद्ध भिक्षु से पूछा हे गुरुवर आप ये
क्या कर रहे हैं इसके जवाब में वह बौद्ध भिक्षु उस बूढ़े व्यक्ति से क कहते हैं भंते मैं नदी के इस किनारे से उस दूसरे किनारे तक जाने की तैयारी कर रहा हूं इस पर वह बूढ़ा व्यक्ति क्रोधित हो उठा और वह उन बौ भिक्षु से कहता है यह देखते देखते तो सुबह से शाम हो चुकी है किंतु आप अभी भी वहीं के वहीं है भला आप इस प्रकार इस नदी को कैसे पार कर सकते हैं आप इस नदी के दूसरे किनारे पर कैसे पहुंच सकते हैं यदि आप मेरे प्रश्नों का उत्तर मुझे नहीं देना
चाहते तो ठीक है कोई बात नहीं मैं यहां से चला जाता हूं लेकिन इस प्रकार मुझे तंग तो ना कीजिए इस पर वह बौद्ध भिक्षु उस बूढ़े व्यक्ति से कहते हैं भंते सब्र रखो बस एक बार इस नदी का सारा पानी बह जाए तब मैं इस नदी को अवश्य ही पार कर लूंगा इस नदी के दूसरे किनारे पर मैं अवश्य ही पहुंच जाऊंगा इस पर उस बूढ़े व्यक्ति का क्रोध और भी बढ़ गया और वह उन बौ भिक्षु से कहता है हे गुरुवर कहीं आप पागल तो नहीं हो गए इस नदी का पानी भला कैसे
खत्म हो सकता है यह तो लगातार निरंतर बहती ही रहती है आप क्या इसके लिए जीवन भर यहीं बैठे रहेंगे ऐसे तो आपका पूरा जीवन समाप्त हो जाएगा किंतु यह नदी इसी प्रकार यहां से बहती रहेगी इसका पानी कभी समाप्त नहीं होने वाला उस बूढ़े व्यक्ति की बात सुनकर व बौ भिक्षु मुस्कुराने लगे और उस बूढ़े व्यक्ति से कहते हैं भंते मैं भी तो तुम्हें यही समझाने की कोशिश कर रहा हूं इस नदी का पानी जिम्मेदारियों की तरह है जो एक पूरी होती है तो दूसरी आती है और इसी प्रकार दूसरी पूरी होती है तो
तीसरी आती है और यह जिम्मेदारियां लगातार इस नदी की तरह बहती ही रहती है हमारी जिम्मेदारियां कभी पूरी नहीं होती एक के बाद एक एक के बाद एक इस नदी की पानी की तरह तर वह लगातार बहती ही रहती है किंतु यदि तुम इनके खत्म होने का इंतजार करोगे तो इसी प्रकार तुम नदी के केवल एक किनारे पर बैठे ही रह जाओगे और यही इस किनारे पर तुम्हारा पूरा का पूरा जीवन समाप्त हो जाएगा और विडंबना भी यही है हर मनुष्य यही करता है वह नदी के इसी किनारे पर बैठकर नदी के पानी के खत्म
होने का इंतजार करता रहता है और देखते ही देखते वह स्वयं ही समाप्त हो जाता है और तुमने भी अब तक यही किया है यदि तुम्हें नदी के उस किनारे पर पहुंचना है यानी कि ज्ञान रूपी नदी के दूसरे किनारे पर जाना है तो तुम कैसे भी जाओ परंतु तुम्हें इस जिम्मेदारी रूपी नदी को पार करना ही होगा जिम्मेदारियों का रूप जरूर बदलता है लेकिन जिम्मेदारियां नहीं बदलती जिस प्र एक सामान्य मनुष्य के जीवन में तरह तरह की जिम्मेदारियां होती हैं ठीक उसी प्रकार एक बुद्धत्व प्राप्त व्यक्ति की भी अनेक प्रकार की जिम्मेदारियां होती हैं
कि वह अपने ज्ञान से इस संसार को परिचित कराए ताकि दूसरे सभी लोग उस मार्ग पर जा सके उन्हें सही राह मिल सके और वे सभी अपने अंधकार से बाहर आ सके लेकिन हम सामान्य मनुष्य जो इस किनारे पर बैठकर अपनी जिम्मेदारियों के खत्म होने का इंतजार करते रहते हैं वह कभी उस दूसरे किनारे तक पहुंच नहीं पाते जबकि एक बुद्धत्व प्राप्त व्यक्ति जो नदी के दूसरे किनारे पर है वह अपनी जिम्मेदारियां स्वतंत्र होकर निभाते हैं और वह किसी जिम्मेदारी के बोझ के नीचे दबे नहीं होते वह स्वतंत्र रूप से अपना कर्म करते रहते हैं
आगे व बौ भिक्षु उस बूढ़े व्यक्ति से कहते हैं भंते हम मनुष्य कभी भी अपने जिम्मेदारियों से मुक्त नहीं हो सकते जब तक हमारा ये जीवन है तब तक हमें कर्म तो करना ही होगा तब तक हमारे सर पर जिम्मेदारियां तो होंगी ही भले ही वह अपना रूप बदल ले लेकिन जिम्मेदारियां तो अवश्य ही रहेंगी इसलिए तुम अपने जीवन काल में तो इनसे मुक्त नहीं हो सकते चाहे स्वयं का पेट भरने की जिम्मेदारी क्यों ना हो किंतु तुम्हें उसे निभाना ही पड़ेगा इसलिए अपनी जिम्मेदारी को निभाते हुए यदि तुम नदी में तैर कर उसे पार
करना चाहो तो तुम कर सकते हो या तुम चाहो तो उस नदी को नाव में बैठकर पार कर सकते हो या फिर तुम चाहो तो उस नदी पर पुल बनाकर भी उस नदी को पार कर सकते हो यदि तुम्हें ज्ञान प्राप्त करना है तो जिम्मेदारियों के बीच से रास्ता बनाकर ही तुम्हें आगे जाना होगा किंतु यदि तुम केवल जिम्मेदारियों के खत्म होने का इंतजार करते रहोगे तो एक दिन सब कुछ खत्म हो जाएगा और लोग कहेंगे खाली हाथ आए थे और खाली हाथ ही चले गए इसलिए अपने कर्तव्य से पीछे मत हटो और साथ ही
यदि तुम्हें कुछ पाना है अर्थात यदि तुम्हें ज्ञान पाना है तो तुम्हें इस नदी को पार करना ही होगा इतना कहकर वह बहुत भिक्षु शांत हो गया और वह बूढ़ा व्यक्ति अभ यह समझ चुका था कि उसने अब तक क्या गलती की थी उसने उन गुरु को प्रणाम किया और उन बौ भिक्षु से कहता है हे गुरुवर मैं आपकी बात अच्छी तरह से समझ चुका हूं आप सही कहते हैं मैंने अपना सारा जीवन केवल नदी के इस किनारे पर ही बिता दिया किंतु मैं आपको वचन देता हूं अब से जो मेरा बचा कुचा जीवन है
मैं इसे नदी पार करने में लगाऊंगा मैं ज्ञान रूपी दूसरे किनारे पर जाने के लिए हर मुमकिन कोशिश करूंगा और मैं वहां तक पहुंच कर ही रहूंगा दोस्तों हमारे जीवन में भी कुछ ऐसा ही होता है हम अपनी जिम्मेदारियों के तले कुछ इस प्रकार दब गए हैं कि हम अपने लिए समय तक नहीं निकाल पाते लेकिन आपको यह सोचना चाहिए आपको एक पल के लिए यह विचार करना चाहिए यदि आप अपने लिए समय नहीं निकालेंगे तो आप कभी यह नहीं सोच पाएंगे कि आपका जीवन कहां जा रहा है किस दिशा में पड़ रहा है और
यदि आप यह सोचने और विचारने में सक्षम नहीं होंगे तो आप भी उस नदी की तरह केवल एक दिशा में बहते ही चले जाएंगे आप कभी नहीं समझ पाएंगे कि आपने अपने जीवन में क्या कुछ हासिल किया और क्या कुछ खोया किंतु यदि आप एक बार के लिए एक पल के लिए किसी भी मोड़ पर ठहर कर यह सोचिए कि आपने आज तक क्या पाया और क्या खोया और आगे आपको क्या पाना है तो अवश्य ही आप अपने जीवन को एक सही दिशा दे पाएंगे अन्यथा आपका भी जीवन नदी के केवल एक किनारे पर ही
रह जाएगा और आप वहां से लोगों को आते जाते देखते रह जाएंगे लेकिन आप कुछ कर नहीं पाएंगे इसलिए मैं आप सभी से विनती करता हूं कि केवल पा मिनट के लिए सही दिन में एक बार आप अपने लिए समय जरूर निकाले और अपने आप से सवाल करें कि आखिर आप क्या चाहते हैं आप अपने जीवन को किस प्रकार बनाना चाहते हैं मुझे उम्मीद है कि आपको आपके प्रश्नों के जवाब जरूर मिलेंगे वैसे उम्मीद है कि आपने आज की इस वीडियो से जरूर कुछ ना कुछ सीखा होगा तो इस वीडियो को लाइक और अपने दोस्तों
के साथ शेयर भी जरूर कीजिएगा और हमें ऐसे ही सपोर्ट करने के लिए चैनल को सब्सक्राइब और घंटी बटन को जरूर दबा दीजिएगा चलिए मिलते हैं अगली वीडियो में तब तक के लिए अपना ख्याल रखें धन्यवाद [संगीत] h