डर से मुक्तिः शांति में छिपा है हर समस्या का हल l Buddhist Story On Master Your Mind for Success

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डर से मुक्तिः शांति में छिपा है हर समस्या का हल । Powerful Buddhist Story On Master Your Mind for Su...
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दोस्तों यह कहानी कर्मों के फल पर आधारित है कहानी बड़ी ही ज्ञानवर्धक है इसीलिए इस वीडियो को पूरा देखना और वीडियो के अंत तक हमारे साथ में बने रहना नमस्कार दोस्तों, बोधी थिन्क्स्पाय यूट्यूब चैनल में, आपका दिल से स्वागत है, दोस्तों इस कहानी का एक-एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण है इसीलिए इस कहानी को बहुत ध्यान से सुनना और पूरा सुनना क्योंकि कहानी सुनने में आपको बड़ा आनंद आने वाला है दोस्तों किसी गांव में एक नाम का किसान रहा करता था उस किसान के दो पुत्र थे उसमें से एक का नाम अर्जुन और दूसरे बेटे का नाम
भूपेंद्र था खेतीबाड़ी करते हुए उनके जो दिन थे वह बड़े ही सुख पूर्वक व्यतीत हो रहे थे सभी आराम चैन से रह रहे थे एक दिन की बात है कि वह बूढ़ा किसान बहुत ज्यादा बीमार पड़ जाता है और उसने अपने दोनों बेटों को अपने पास बुलाया और उनसे कहा कि मेरे बच्चों अब शायद मेरा अंतिम समय आ गया है मैं चाहता हूं कि मेरे म के बाद तुम दोनों भाई आपस में बड़ी ही सहमति के साथ मिलजुल कर के रहा करो और सुख शांति के साथ अपनी जिंदगी को गुजारो मैंने बुरे वक्त के लिए
कुछ असफिया इकट्ठा की थी जिन्हें मैंने घर के पीछे में जो बरगद का पेड़ है उसी के नीचे जमीन में दबा रखा है अब वह तुम्हारे काम आएंगे लेकिन मेरे बच्चों तुम मुझसे यह वादा करो कि तुम दोनों आवश्यकता पड़ने पर ही उसे बाहर निकालो ग वह दोनों कहने लगे कि हम वादा करते हैं पिताजी जैसा आप कहेंगे हम बिल्कुल वैसा करेंगे धीरे-धीरे समय व्यतीत होता गया थोड़े समय के बाद ही उस बूढ़े किसान ने अपने प्राणों को त्याग दिया छोटे भाई को अपने पिता के जाने का बहुत दुख हुआ दोनों भाई ने उसके पिता
का अंतिम संस्कार कर दिया गया लेकिन बड़े भाई भूपेंद्र को अपने पिताजी के मरने का जरा भी दुख नहीं था उसकी आंखों के सामने तो सिर्फ असफिया ही घूम रही थी उस रात को भूपेंद्र को नींद नहीं आ रही थी वह बार-बार करवट बदल रहा था आधी रात के बाद सुबह होने से पहले ही वह उठ कर के बैठ गया विचार करने लगा अपने मन में और सोचने लगा कि अर्जुन के उठने से पहले मुझे अपना काम पूरा कर लेना चाहिए वरना फिर कभी ऐसा मौका दोबारा नहीं मिलेगा यही सोच कर के उसने जमीन खोदने
का सामान उठाया और घर के पीछे उसी पेड़ के पास जाकर के पहुंच गए जहां पर उसके पिताजी ने सोने को जमीन में गाड़ रखा था कुछ ही क्षणों में उसने जमीन को खोद कर के वहां से असरफ को बाहर निकाल लिया असरफ यों को देख कर के वह बहुत खुश हुआ कहने लगा वाह इतनी सारी असरफ आं अब लगता है मुझे जिंदगी में कभी भी मेहनत नहीं करनी पड़ेगी और ना ही किसी चीज की कमी रहेगी उसने तुरंत ही वह असरफ का घड़ा उठाया और दूसरे पेड़ के नीचे जाकर के जमीन के नीचे गाड़
दिया और फिर आराम से घर में पहुंच कर के अपने उसी स्थान पर जाकर के दोबारा लेट गया जब सुबह हुई तो छोटा भाई अर्जुन अपने बड़े भाई भूपेंद्र को जोर-जोर से आवाज लगा कर के उठा रहा था कह रहा था बड़े भैया बड़े भैया जल्दी उठो गजब हो गया हमारे घर के पीछे पेड़ के नीचे जमीन खुदी हुई पड़ी है भैया वहां से सारी असरफ भी गायब हैं मुझे लगता है कि कोई चोर हमारी सारी अशरफियां की चोरी करके भाग गया है भूपेंद्र कहने लगा कि अरे क्या बोल रहे हो भाई चलो मैं देखता
हूं जब दोनों भाई उस जगह पर पहुंचे तो सच में ही वह जमीन खुदी हुई पड़ी थी छोटे भाई अर्जुन ने कहा कि अब क्या करें भैया मेरे विचार से हमें पहले राज दरबार में जाकर के सूचना देनी चाहिए भूपेंद्र कहने लगा ठहरो अर्जुन कहीं जाने की कोई जरूरत नहीं है अर्जुन कहने लगा लेकिन क्यों भैया भूपेंद्र ने कहा मैं अच्छी तरह से जानता हूं कि चोर कौन है जिसने जमीन में दबी हुई अरस फियों को बाहर निकाला है अर्जुन चौक गया और पूछने लगा कि भैया क्या आप जानते हो कि वह कौन है भूपेंद्र
कहने लगा कि तुम जानना चाहते हो तो सुनो कि वह चोर कौन है वह चोर तुम ही हो यह सुनकर के अर्जुन कहने लगा भैया यह आप क्या कह रहे हो नहीं भैया मैं और चोरी नहीं मैंने कोई चोरी नहीं की है भूपेंद्र कहने लगा फालतू बोलो मत तुम्हारे और मेरे अलावा इन असरफ के बारे में और कोई नहीं जानता था यह बात साफ है कि तुम अकेले ही सारा धन हड़पना चाहते हो अर्जुन ने यह सुन कर के कहा कि आप ऐसा मत कहो भैया मैं सच क कहता हूं कि मैंने कोई असरफ नहीं
चुराई है मैं कुछ नहीं जानता भूपेंद्र कहने लगा कि तो तुम मुझे वह असरफ यां लौटा दो नहीं तो तुम इस घर का दरवाजे अपने लिए हमेशा हमेशा के लिए बंद समझो अर्जुन उदास होकर के बोला ठीक है भैया यदि आपको मेरी बात पर विश्वास नहीं है तो मैं यह घर ही क्या इस गांव को छोड़ कर के चला जाऊंगा अर्जुन दुखी मन से तुरंत ही वहां से निकल पड़ा वह चलते-चलते सोचने लगा कि सच्चाई जाने बिना ही बड़े भैया ने मेरे साथ ऐसा सुलूक क्यों किया अब बदनाम होने से अच्छा है कि मैं यह
गांव छोड़ कर के ही चला जाऊं जब घर पर बैठा भूपेंद्र बड़े आराम से यही विचार कर रहा था कि वाह कितनी आसानी से यह कांटा अपने आप ही निकल गया अब सारी अर सफिया सिर्फ मेरी है मेरे अलावा और किसी को इसमें हिस्सा नहीं देना पड़ेगा दूसरी तरफ वहां जो उसका छोटा भाई था अर्जुन बड़े ही दुखी मन से वहां से चलता ही जा रहा था शाम भी हो गई थी चलते-चलते उसके मन में कई तरह के विचार उत्पन्न हो रहे थे उसके मन में एक विचार आया कि कहीं भैया ने सारा धन हड़पने
के लिए ही कोई चाल तो नहीं चली है वह अपने विचारों में खोया हुआ लगातार चलता ही जा रहा था कि तभी वह एक बड़ी सी चट्टान के ऊपर जाकर के बैठ गए अब रात हो चुकी थी और चारों ओर घना अंधेरा छाया हुआ था उलझन में पड़ा अर्जुन सारी बातें सोच ही रहा था कि तभी उसके कानों में कुछ आवाज आई यह 4000 तुम्हारे और 4000 मेरे वह सोचने लगा कि कैसी आवाज हे सच्चाई जानने के लिए अर्जुन नीचे की ओर झुका उसने देखा कि तीन आदमी वहां पर थे जो बैठे हुए थे और
वे तीनों आपस में किसी तरह के धन का बंटवारा कर रहे थे अर्जुन को यह समझने में बिल्कुल भी देरी ना लगी कि यह तीनों चोर और यह तीनों चोरी का माल आपस में बटवारा कर रहे हैं तभी अचानक से अर्जुन का पैर फिसल गया और वह उन चोरों के बीच में जाकर के धड़ाम से गिर पड़ा अंधेरा होने के कारण चोरों को कुछ भी दिखाई नहीं दिया और वह डर के मारे भागने लगे और कहने लगे कि भागो भागो भाई यहां से लगता है कि यह राजा का कोई गुप्त चर या फिर उनका कोई
सिपाही है जो हम सभी लोगों को पीछा कर रहा था भागो चोर कहने लगा कि हां भाई तुम ठीक कहते हो चलो भागो यहां से चोर अपना चोरी का माल जो भी चोरी करके लाए थे डर के मारे वह सब छोड़ कर के वहां से भाग गए जब अर्जुन नजर उस धन पर पड़ी तो वह मन ही मन बहुत प्रसन्न हुआ लेकिन तभी उसके मन में एक दूसरा विचार आया कि असल में यह मुद्राएं चोरी की हैं इन्हें साथ में ले जाना बिल्कुल ठीक नहीं होगा इसलिए इनको यही पर गाड़ देता हूं और जरूरत पड़ने
पर मैं इनको ले जाऊंगा यही विचार करके अर्जुन ने वह सारी मुद्राएं एक पेड़ के नीचे गाट दी और रात भर वहीं पर रहा सुबह अपने रास्ते पर चलने लगा दोपहर होते-होते वह एक घने जंगल से जा रहा था तभी कुछ लुटेरों ने उसको घेर लिया और लुटेरों का सरदार उससे कहने लगा कि खबरदार जो कुछ भी तुम्हारे पास है वह निकाल कर के हमको दे दो नहीं तो हम तुम्हें जान से मार देंगे अर्जुन लुटेरों की बात को सुन कर के कहने लगा कि भाइयों मैं तो खुद ही एक मुसीबत में हूं और मेरे
पास धन भला कहां से आएगा लुटेरों का सरदार कहने लगा यह झूठ बोल रहा है इसकी तलाशी लो तलाशी लेने के बाद जब अर्जुन के पास वास्तव में उन्हें कोई भी वस्तु प्राप्त नहीं हुई तो सरदार क्रोध से चिल्ला उठा और कहने लगा कोई बात नहीं है अगर इसके पास पैसे नहीं हैं तो भी यह हमारे काम आएगा इसे अपने ठिकाने पर ले चलो देवी मां को इसकी बलि चढ़ाई जाएगी यह बात सुनते ही अर्जुन के होश उड़ गए वह सोचने लगा एक तरफ मैं मुसीबत का मारा था और कहां जाकर के इन डाकुओं के
चंगुल में पड़ गया उससे और बड़ी मुसीबत का सामना करना पड़ रहा था तभी कुछ डाकू ने अर्जुन के हाथ पर बांधे और अर्जुन को उठा कर के अपने ठिकाने पर ले गए परंतु उनके अड्डे तक पहुंचते पहुंचते अर्जुन को एक उपाय समझ आ गया अड्डे पर पहुंचने के बाद उसने डाकुओं के सरदार से कहा अगर तुम मुझे अपने दल में शामिल कर लेने का वादा करो तो मैं तुम्हें 8000 सवर्ण मुद्राओं का पता बता सकता हूं इतना सुनकर के वह जो लुटेरों का सरदार था कहने लगा 8000 मुद्राएं यदि तुम वास्तव में सच कहते
हो तो हमें तुम तुम्हारी शर्त मंजूर है जल्दी से हमें उन मुद्राओं का पता बताओ अर्जुन कहने लगा कि देखो भाई अभी तो रात होने वाली इस समय वहां पर जाना बिल्कुल भी ठीक नहीं है कल सुबह होते ही मैं तुम लोगों को वहां पर लेकर के चलूंगा लुटेरों का सरदार कहने लगा ठीक है लेकिन खबरदार हमारे साथ कोई भी चालाकी करने की कोशिश बिल्कुल मत करना वरना तुम जानते हो कि इसका क्या परिणाम होगा तुम्हारे साथ जो भी होगा वह तुमसे बर्दाश्त नहीं होगा इसीलिए सोच समझ कर के मुझसे कोई बात करना अर्जुन बोला
निश्चिंत रहो सरदार मैं तुमसे कोई भी धोखा नहीं करने वाला सुबह होते ही मैं आप सबको वहां लेकर जाऊंगा सरदार ने कहा ठीक है अगली सुबह होती है अर्जुन उन चोरों को उसी जगह पर लेकर के पहुंच जाता है जहां पर उसने वह सोने की मुद्राएं जमीन में दबाई हुई थी सरदार के आदेश पर तुरंत ही उसके आदमियों ने उस जगह को खोदा और शीघ्र वह स्वर्ण मुद्राएं उसके सामने थी स्वर्ण मुद्राओं को देख कर के वह सभी जो सरदार के आदमी थे डाकू थे वह बहुत प्रसन्न हो जाते हैं मुद्राओं को अपनी थैली में
भर कर के अपने अड्डे की ओर चल पड़े परंतु अर्जुन के दिमाग में अभी भी कोई दूसरी योजना चल रही थी वह विचार कर रहा था कि यह स्वर्ण मुद्राएं एक तरह से तो मेरे काम में ही आई लेकिन मैं जल्दी ही इनकी मौत का कारण बन जाऊंगा इस घटना के बाद अर्जुन लुटेरों के गिरोह के साथ ही रहने लगा और वह लुटेरों का सरदार का सबसे विश्वास पात्र व्यक्ति बन चुका था कुछ समय के बाद अर्जुन ने उन लुटेरों के सरदार से कहा कि सरदार मैं 10 दिन के लिए अपने घर को जाना चाहता
हूं यदि आपकी इजाजत मिल जाए तो मैं अपनी बूढ़े मां को जो इस समय बीमार है एक बार उनसे मिलना चाहता हूं सरदार अर्जुन की योजना से बिल्कुल भी अनजान थे वह अर्जुन को अपना सबसे विश्वास योग्य आद मानता था वह जानता था कि अर्जुन उसका सबसे भरोसे का आदमी है वह कभी भी उसके साथ किसी तरह का कोई धोखा नहीं कर सकता है उस डाकू ने जब अर्जुन की बात सुनी तो उसने अर्जुन को 10 दिन के लिए अपने घर जाने की इजाजत दे दी अर्जुन अपने घर जाने के लिए रवाना तो हुआ परंतु
वह अपने घर जाने के बजाय राजा के महल की तरफ चला गया उधर राजमहल में महाराज पहले ही उस डाकू के आतंक से बहुत परेशान थे वह अपने महामंत्री से कह रहे थे कि मंत्री जी आखिर वह डाकू कब पकड़ा जाएगा पूरा राज्य उसके आतंक से परेशान हो रहा है मंत्री जी महाराज की बात को सुन कर के कहने लगे कि मैं अपनी तरफ से महाराज पूरी कोशिश कर रहा हूं वह आतंकी जल्दी ही आपको कारागार में नजर आएगा और उसको उसके किए की सजा जरूर मिलेगी उसी समय वहां पर एक पहरेदार आया और कहने
लगा कि महाराज की जय हो महाराज एक व्यक्ति आपसे डाकू जगीरा के बारे में मिलना चाहता है वह कहता है कि मैं उसके बारे में सब कुछ जानता हूं उसकी बात को सुनक के महाराज कहने लगे कि अच्छा उसे तुरंत यहां पर लेकर के चले आओ वह सिपाही गया और कुछ समय के बाद ही अर्जुन को राजा के सामने लेकर के पहुंच गया अर्जुन राजा से कहने लगा कि महाराज को मेरा प्रणाम है महाराज मेरा नाम अर्जुन है राजा कहने लगा कहो नौजवान तुम जगीरा के बारे में क्या जानते हो उसके बारे में तुम्हें जो
भी जानक है वह सब कुछ मुझे बता दो अर्जुन कहने लगा कि महाराज मुझे क्षमा करो मैं आपसे एकांत में इस बात को करना चाहता हूं मंत्री ने कहा कि दुष्ट क्या तुम जानते नहीं यहां राजा के सम्मानित और विश्वास पात्र व्यक्ति मौजूद है जो कहना चाहते हो तुम सबके सामने ही कहो राजा कहने लगा ठहरीय महामंत्री जी यदि यह हमसे एकांत में बात करना चाहता है तो हम इससे एकांत में ही बात करेंगे आप लोग यहां से चले जाइए हमें बिल्कुल एकांत छोड़ दीजिए सब लोग बाहर गए और बाद में अर्जुन ने राजा को
अकेले में पूरा किस्सा कह कर के सुना दिया और आगे कहने लगा कि महाराज इस तरह से मैं उस डाकू का विश्वसनीय आदमी बन चुका हूं पूरी घटना के बारे में अर्जुन ने महाराज को बता दिया और अब मैंने उसे अपने जाल में फंसा लिया है अर्जुन ने कहा महाराज अब बस उसे और उसके साथियों को पकड़ने के लिए मुझे आपकी सहायता की जरूरत है उस की बात को सुन कर के राजा कहने लगा बहुत खूब नौजवान तुम्हारी चतुराई और साहस से मैं बहुत प्रसन्न हूं उन भयानक डाकुओं को पकड़ने के लिए जो भी सहयोग
चाहिए वह मुझसे तुम बेझिझक हो करके कह सकते हो मैं करने को तैयार हूं कहो क्या करना होगा अर्जुन कहने लगा कि महाराज कल रात को आप कम से कम हमारे साथ में 300 सिपाहियों को मेरे साथ भेज दें मैं उन सभी को उन डाकुओं के अड्डे पर ले जाऊंगा जहां पर वह सैनिक उन डाकुओं पर आक्रमण कर देंगे और उन डाकुओं को गिरफ्तार कर लिया जाएगा राजा कहने लगा बिल्कुल ठीक है नौजवान तुम्हारी सलाह बिल्कुल उचित है मैं इसे मानने के लिए तैयार हूं तो तय रहा कि हम कल रात को हमारे सैनिकों को
तुम्हारे साथ भेजेंगे तब तक कि तुम यही राज महल में हमारे शाही मेहमान बन कर के रहो उसके अगले दिन रात होते ही अर्जुन अपनी योजना के अनुसार सैनिकों को लेकर के डाकुओं के अड्डे पर पहुंच गया सैनिकों की टुकड़ी ने उन डाकुओं पर आक्रमण कर दिया कुछ ही समय में सैनिक ने उन डाकुओं को गिरफ्तार कर लिया और उनमें से कुछ डाकू मारे भी गए और जो बचे हुए थे उनको महाराज के सामने पेश कर दिया गया राज दरबार में अर्जुन को देख कर के डाकुओं का सरदार जो था वह मन ही मन सोचने
लगा उसने कितना बड़ा धोखा किया मैंने इस व्यक्ति पर विश्वास किया और इसने मेरे साथ विश्वासघात किया इस आदमी ने हमें कहीं का नहीं छोड़ा अगले दिन दरबार में सभी दरबार बारयों और मंत्रियों से विचार विमर्श करने के बाद राजा जो था उसने सभी डाकुओं को एक ही सजा सुना दी इन सभी खूनी दरिंदों को हम सजाए मौत देते हैं क्योंकि इन्होंने किसी के साथ कोई रियायत और ना ही रहम किया है इसलिए इनको जीने का कोई अधिकार नहीं है सैनिकों अब तुम इन्हें ले जाओ और अगले दो दिन इन्हें फांसी पर लटका देना इसके
बाद वह राजा था उसने कहा कि अर्जुन तुम्हारी बहादुरी से हम बहुत प्रसन्न हैं आज से हम तुम्हें अपना सेनापति नियुक्त करते हैं अर्जुन ने यह सुन कर के कहा कि आपका धन्यवाद महाराज जो आपने मुझे देश की सेवा करने के योग्य समझा उधर दूसरी तरफ अर्जुन का जो बड़ा भाई था अपने पिता की मेहनत की कमाई को बुरे कामों में बर्बाद कर रहा था क्योंकि वह उसकी खुद की कमाई नहीं थी और वह बेईमानी करके उस धन को प्राप्त किया था उसको उससे जुआ खेलने की बुरी लत लग चुकी थी वह शराब और जुए
में अपना सारा पैसा बर्बाद कर चुका था उसकी हालत इतनी दयनीय हो चुकी थी कि उसके पास खाने के लिए अन्न तक भी नहीं था पूरे गांव में वह इतना बदनाम हो चुका था कि अब उसे गांव में कहीं भी कोई भी काम नहीं मिल पा रहा था इसीलिए उसने यह निश्चित किया कि इस गांव में भूखा मरने से अच्छा है कि मैं किसी दूसरे गांव में जाकर के कोई काम धंधा ढूंढ लूं इसी तरह से विचार करते हुए वह अपने घर से निकल पड़ा चलता चलता उसी राज्य में आ पहुंचा जहां पर उसका भाई
अर्जुन सेनापति था उसी नगर में वह किसी सेठ जी की दुकान पर गया और उनसे पूछने लगा सेठ जी क्या मुझे कोई काम मिलेगा सेठ ने उसकी बात सुनक के कहा अरे भाई तुम तो चेहरे से ही चोर उ चक के लगते हो तुम्हें भला कोई क्या काम देगा इसलिए मुझे माफ करो भाई और यहां से चले जाओ भुव द्र सोचने लगा ईमानदारी से शायद मुझे यहां पर कोई काम मिलने वाला नहीं है अब तो पेट भरने के लिए मुझे चोर और उचक्का ही बनना होगा तभी उसकी नजर सेठ के पास रखी हुई एक थैली
पर पड़ी उसे लगा कि स्वर्ण मुद्राओं से भरी हुई थैली है उसने वहां से वह थैली उठा ली और तुरंत ही वहां से भाग निकला और सेठ को उसे पकड़ने का मौका ही नहीं मिला वह बस तो चोर चोर चिल्लाता ही रह गया और वह वहां से रफू चक्कर हो गया बाजार के कुछ लोग उसके पीछे भागे लेकिन भूपेंद्र को ढूंढ नहीं पाए और मायूस होकर केव लोग वापस अपनी जगह पर लौट आए इधर सेनापति बन चुका अर्जुन अपना काम बड़ी ही ईमानदारी से कर रहा था एक दिन की बात है महाराज ने अर्जुन को
बुलाया और कहा अर्जुन तुम एक बहुत ही बहादुर बुद्धिमान और नेक आदमी हो मैं चाहता हूं कि मेरी बेटी के साथ तुम विवाह कर लो कहो इस पर तुम क्या चाहते हो यदि तुम्हारी इच्छा हो तो मैं चाहता हूं कि मैं अपनी बेटी का विवाह तुम्हारे साथ कर दूं अर्जुन ने कहा कि महाराज यदि आपकी यही इच्छा है तो मैं इंकार नहीं कर सकता मुझे यह विवाह स्वीकार है अर्जुन के इस फैसले से राजा बहुत खुश हुआ और कुछ ही दिनों में शुभ मुहूर्त को देख कर के राजा की बेटी और अर्जुन का विवाह कर
दिया गया विवाह को अभी कुछ दिन ही व्यतीत हुए थे और महाराज ने अर्जुन को कहा कि बेटा अर्जुन अब हम 70 साल के हो चुके हैं और इसलिए हम चाहते हैं कि अब राज्य की जो बाग डोर है वह तुम संभाल लो अर्जुन ने कहा आपको जैसा उचित लगे महाराज अगले ही दिन अर्जुन का राज्य तिलक कर दिया गया महाराज तीर्थ यात्रा को निकल चुके थे इस तरह से कुछ महीने व्यतीत होते हैं और उसके बाद जो सबसे बड़ी समस्या अर्जुन के सामने आई वह थी भूपेंद्र जो चोर बन गया था जो उसी का
सगा भाई भूपेंद्र था और वह अब तक का नामी और खतरनाक चोर बन चुका था सैनिकों ने काफी प्रयास किया लेकिन वह उसे पकड़ ना सके चोर उसी जंगल में एक पुराने मंदिर में रहा करता था एक रात वह बैठा सोच रहा था कि कोई ऐसी तरकीब लगाई जाए कि मुझे बार-बार चोरी करने की जरूरत ना पड़े एक बार में इतना माल उड़ा लिया जाए कि भविष्य में दोबारा चोरी नहीं करनी पड़े अगर मैं एक बार राजा के खजाने पर हाथ साफ कर लूं तो मुझे दोबारा कभी भी भूख मरने की नौबत नहीं आएगी और
ना ही कभी मुझे चोरी करने की कोई जरूरत पड़गी और फिर मैं किसी दूसरे देश में जाकर के अपनी आगे की जो जिंदगी है बड़े आराम से गुजार सकता हूं अगली रात रात खजाने की चोरी करने के उद्देश्य से भूपेंद्र राज महल में पीछे जा पहुंचा हाथों में रस्सी लिए वह दीवार पर चढ़ने की सोच रहा था और दूसरी तरफ संयोग से उस चोर के बारे में विचार करते हुए सोच सोच कर कि राजा को नींद नहीं आ रही थी उस समय राजा महल की छत पर घूम रहे थे जैसे ही भूपेंद्र रस्सी के सहारे
छत के ऊपर चढ़ा वहां पर मौजूद राजा अर्जुन ने उसे देख लिया राजा अर्जुन ने अपनी तलवार निकाली और साथ ही अपने सिपाही को आवाज लगाई कुछ ही पल में राजा के जितने सिपाही थे वह सभी वहां पर जाकर के पहुंच गए राजा ने सैनिकों से कहा कि सैनिकों गिरफ्तार कर लो इसे भूपेंद्र ने वहां से भागने की पूरी कोशिश की लेकिन किसी तरह से भागने में असफल रहा और सैनिकों ने उसे पकड़ लिया अर्जुन उसे देख कर के कहने लगा तुम तो मेरे भाई भूपेंद्र हो लेकिन एक नामी चोर मैं यह सपने में भी
नहीं सोच सकता था कि मेरा भाई इतना बड़ा चोर निकलेगा उसने आदेश दिया सैनिकों ले जाओ इसे कारागार में डाल दो सुबह ही हम दरबार में जब बैठेंगे तब इसकी सुनवाई करेंगे कि इसके साथ हमें क्या करना है राजा की आज्ञा पाते ही सैनिकों ने भूपेंद्र को कारागार में डाल दिया गया अब वह मन ही मन अपने कीपर पश्चाताप कर रहा था रो रहा था और सोच रहा था कि मेरे ही बुरे कर्मों का फल आज मुझे मिल रहा है मेरी बुरी नियत ने मुझे आज पतन की इतनी गहराई में ढकेल दिया है जहां से
निकलना मुश्किल है जबकि अर्जुन जिसे मैंने बेईमान बना कर के धक्के मार कर के अपने घर से निकाला था आज अपनी ईमानदारी और नेकी की वजह से वह इस राज्य का राजा बन गया है और मैंने उसके साथ बेईमानी की तो मेरी दुर्गति हो गई और मैं जिसके पास सब कुछ था एक चोर बन कर के आज उसी के सामने उसी के बंदी ग्रह में पड़ा हूं इधर अर्जुन को नींद नहीं आ रही थी वह सोच रहा था कि कल का दिन मेरी जिंदगी का सबसे कठिन दिन होगा मुझे एक बहुत ही भयानक अग्नि परीक्षा
से गुजरना होगा क्या इस परीक्षा में मैं कामयाब हो पाऊंगा मुझे भी समझ में नहीं आ रहा है काश महाराज ने मुझे राजपाट ना सौंपा होता तो कितना खुश होता अपने भाई को अपने ही हाथों से मुझे सजा नहीं देनी पड़ती अगले दिन दरबार में चोर भूपेंद्र को पेश किया जाता है महाराज ने उससे कहा कि भूपेंद्र तुम्हारे ऊपर लगाए गए चोरी के सारे इल्जाम प्रमाणित हो चुके हैं क्या तुम्हें अपनी सफाई में कुछ कहना है भूपेंद्र ने कहा कि बस इतना ही कहना चाहता हूं महाराज कि मुझ जैसे नीच और शैतान आदमी को आप
इतनी कठोर से कठोर सजा दे कि भविष्य में चाह करके भी कोई चोरी ना कर सके और किसी के साथ कोई बेईमानी ना कर सके अर्जुन ने कहा ठीक है हम तुम्हें ऐसी ही सजा देंगे सैनिकों ले जाओ इस चोर को और इसका एक हाथ और एक पैर काट दिया जाए और इसके बाद इसे देश की सीमा से बाहर निकाल दिया जाए अर्जुन का यह इंसाफ देख कर के उसकी प्रजा और उसके मंत्री सब उसकी जय जयकार करने लगे राजा की आज्ञा का पालन किया गया और चोर भूपेंद्र का एक हाथ और एक पैर काट
कर के उसे राज्य की सीमा से बाहर निकाल दिया गया जब वह देश छोड़ कर के जा रहा था तो तभी उसके सामने राजा अर्जुन पहुंच गए अर्जुन को देख कर के भूपेंद्र बोला महाराज आप कैसे यहां पर आ गए काश आप ने मेरा एक हाथ और एक पैर काटने के बजाय मुझे मौत की सजा दे दी होती तो बड़ा अच्छा होता यदि आप ऐसा करते तो आपने मुझे तड़प तड़पकर मरने के लिए छोड़ दिया मैं इस दुनिया में क्या करूंगा अर्जुन ने कहा उस समय तो मैं एक राजा था परंतु अब मैं आपके सामने
राजा अर्जुन नहीं बल्कि आपका छोटा भाई अर्जुन खड़ा है एक राजा होकर के मैंने एक चोर को सजा देकर के अपने राज्य धर्म का पालन किया था और अब एक भाई अपने भाई से अपने धर्म और कर्तव्य का पालन करने के लिए आया है भूपेंद्र ने कहा मैं कुछ समझा नहीं अर्जुन कहने लगा भैया मैं जानता हूं कि एक हाथ और एक पैर काटने की वजह से आप कभी भी कोई काम अपने जीवन में नहीं कर पाएंगे और इसके लिए मैं आपको कुछ धन देकर के जाऊंगा इस थैले में कुछ स्वर्ण मुद्राएं हैं इन्हें आप
ले लीजिए जो कि मेरी मेहनत की कमाई हुई है मुझे विश्वास है कि इस मेहनत के धन के साथ आप किसी दूसरे देश की सीमा में अपना जीवन बड़े ही आराम से व्यतीत कर सकते हैं लेकिन भैया आप इंकार मत करना नहीं तो कभी भी मैं अपने आप को माफ नहीं कर पाऊंगा इतना सुनक के भूपेंद्र कहने लगा कि तुम कितने महान हो अर्जुन ईश्वर हमेशा तुम्हें इसी तरह से खुश रखे प्रसन्न रखे फिर दोनों आपस में गले मिलकर के एक दूसरे को बड़े भारी मन से विदाई करते हैं बड़ा भाई छोटे भाई से कहने
लगा मेरी ईश्वर से यही प्राथना है कि मुझे हर जन्म में तुम्हारे जैसा ही भाई मिले और दोनों भाई अपनी अपनी राह पर इस तरह से वापस चले गए और उसके बाद उस देश में भूपेंद्र को दोबारा किसी भी वन में नहीं देखा और राजा अर्जुन को अपनी प्रजा का पालन करते हुए सुखमय जीवन व्यतीत करने लगे दोस्तों यह कहानी आपको कैसी लगी है आशा करता हूं कि यह कहानी आपको अच्छी लगी होगी चैनल बोधी थिंस पाय को सब्सक्राइब जरूर करें तो चलिए मिलते हैं ऐसी ही कोई नई कहानी में तब तक के लिए अपना
ख्याल रखें धन्यवाद [संगीत]
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