Donald Trump is Back | Good News or Bad News for India? | Dhruv Rathee

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Dhruv Rathee
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Video Transcript:
डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के पहले ऐसे प्रेसिडेंट बन गए हैं जिन्हें किसी क्राइम के लिए कन्विंसिबल जाना पड़े ट्रंप का सबसे बड़ा मुद्दा रहा है इल्लीगल इमीग्रेशन लेकिन इनके प्रेसिडेंट बनने से इल्लीगल ही नहीं बल्कि लीगल इमीग्रेशन पर भी एक बहुत बड़ा असर पड़ेगा लाखों इंडियंस h1 बी वीजा पर अमेरिका में रहते हैं लेकिन ट्रंप की राय में यह h1 बी वीजा बहुत गलत और अनफेयर है ऑलरेडी खबरों में आ रहा है कि डोनाल्ड ट्रंप की पॉलिसी 1 मिलियन से ज्यादा इंडियंस को इफेक्ट करेंगी जो ग्रीन कार्ड की लाइन में लगे हुए हैं नमस्कार दोस्तों हाल ही में हुई अमेरिकन प्रेसिडेंशियल इलेक्शंस में डोनाल्ड ट्रंप ने एक बड़ी ही ऐतिहासिक जीत हासिल कर ली है ना सिर्फ डोनाल्ड ट्रंप दोबारा से अमेरिका के राष्ट्रपति बनने जा रहे हैं बल्कि उनकी रिपब्लिकन पार्टी दोनों अमेरिकन हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स और सेनेट में मेजॉरिटी जीतती हुई दिख रही है ब्रेकिंग न्यूज वी आर प्रोजेक्टिंग एट दिस आवर द 47th प्रेसिडेंट ऑफ द नाइड स्टेट्स डॉनल्ड ट्र विल बी इलेक्टेड टू रिटर्न टू द वाइट हाउ इसके अलावा 20 सालों में पहली बार ऐसा होता हुआ दिख रहा है कि एक रिपब्लिकन पार्टी के प्रेसिडेंट पॉपुलर वोट भी जीत जाएंगे जनता का पॉपुलर वोट मतलब वोट शेयर में मेजॉरिटी कि ज्यादा परसेंटेज ऑफ अमेरिकंस ने डोनाल्ड ट्रंप के लिए वोट किया कमला हैरिस को वोट करने की जगह सुनने में बहुत अजीब लगेगा लेकिन अमेरिकन पॉलिटिकल सिस्टम ही ऐसा है कि ऐसा कई बार होता है कि मेजॉरिटी वोट शेयर किसी एक कैंडिडेट को मिलता है और प्रेसिडेंट कोई दूसरा कैंडिडेट बन जाता है 2016 की इलेक्शंस में ऐसा ही कुछ हुआ था जब हिलरी क्लिंटन को डोनाल्ड ट्रंप से 28 लाख ज्यादा वोट्स मिले थे वोट शेयर परसेंटेज देखो हिलरी क्लिंटन का 48. 2 था डोनाल्ड ट्रंप का 46. 1 था लेकिन फिर भी जीत हुई थी डोनाल्ड ट्रंप की और वही प्रेसिडेंट बने थे ऐसा कैसे हो सकता है आइए समझते हैं दोस्तों अमेरिका का यह अजीबोगरीब पॉलिटिकल सिस्टम और जानते हैं कि डोनाल्ड ट्रंप के दोबारा प्रेसिडेंट बनने का क्या इंपैक्ट पड़ेगा इंडिया पर और बाकी दुनिया पर आज के इस वीडियो में इंडिया में दोस्तों हर 5 साल बाद इलेक्शंस होती हैं और कौन सी डेट को इलेक्शंस होती हैं वो इलेक्शन कमीशन डिसाइड करता है लेकिन अमेरिका में ये प्रोसेस हर 4 साल बाद रिपीट होता है और इनकी डेट भी सेट है हर 4 साल बाद नवंबर महीने के पहले मंगलवार को फर्स्ट ट्यूजडे को अमेरिकन जनता अपने प्रेसिडेंट के लिए वोट करने निकलती है लेकिन इस दिन ना सिर्फ येय अपने प्रेसिडेंट के लिए वोट कर रहे होते हैं बल्कि अपने हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स और सेनेट के लिए भी वोट कर रहे होते हैं हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स अमेरिका का लोअर हाउस है इंडिया के लोकसभा की तरह और सेनेट अमेरिका का अपर हाउस है इंडिया के राज्यसभा की तरह शॉर्ट में इन्हें हाउस और सेनेट करके पुकारा जाता है अब जहां एक तरफ इंडिया में लोकसभा इलेक्शंस में तो जनता डायरेक्टली वोट करती है लेकिन राज्यसभा के मेंबर्स को जनता डायरेक्टली नहीं चुनती है वहीं दूसरी तरफ अमेरिका में दोनों हाउस और सेनेट के मेंबर्स को डायरेक्टली जनता के द्वारा ही चुना जाता है इन दोनों के चुनाव हर दो साल में होते हैं लेकिन सेनेट के जो मेंबर्स हैं उन्हें सेनेटर्स कहते हैं उनका कार्यकाल 6 साल तक चलता चता है तो सारे के सारे एक साथ नहीं चुने जाते तो 1 तिहाई सेनेट की इलेक्शंस होती है हर दो साल में कह लो जैसे कि इस साल 34 सेनेटर्स को चुना जाना था तो इलेक्शन के दिन ज्यादातर दुनिया को लगता है कि अमेरिकन लोग सिर्फ अपने प्रेसिडेंट के लिए वोट डालने जा रहे हैं लेकिन असल में वो तीन वोट डालने जा रहे होते हैं पहला अपना प्रेसिडेंट चुनना दूसरा अपना हाउस रिप्रेजेंटेटिव चुनना और तीसरा अपना सेनेटर चुनना इन तीनों का प्रोसेस एक दूसरे से काफी अलग-अलग है पहले इनके हाउस को देखते हैं इनके हाउस में टोटल 435 सीट्स होती हैं हर स्टेट को उसकी आबादी के आधार पर अलग-अलग सीट्स मिलती हैं फॉर एग्जांपल न्यूयॉर्क जैसी जो स्टेट है उसकी 26 सीटें हैं हाउस में लेकिन अलास्का और मोंटाना जैसी जो स्टेट्स हैं उनकी एक और दो ही सीटें हैं इवन दो ये स्टेट्स साइज में काफी ज्यादा बड़ी है न्यूयॉर्क स्टेट्स लेकिन लैंड एरिया को नहीं पॉपुलेशन को देखा जाता है मोंटाना में करीब 11 लाख लोग रहते हैं न्यूयॉर्क में ऑलमोस्ट 2 करोड़ लोगों की आबादी है हाउस के चुनाव काफी डायरेक्ट होते हैं हर स्टेट को कई डिस्ट्रिक्ट्स में बांट दिया जाता है और हर डिस्ट्रिक्ट के वोटर्स एक रिप्रेजेंटेटिव को चुनते हैं कैंडिडेट्स लोकल लेवल पर कैंपेन करते हैं और लोकल इश्यूज की बातें करते हैं आखिर में हर डिस्ट्रिक्ट में सबसे ज्यादा वोट्स पाने वाले कैंडिडेट की जीत होती है यह कुछ भी अनयूजुअल चीज नहीं है और इन नतीजों से प्रेसिडेंशियल इलेक्शन पर कोई फर्क नहीं पड़ता लोग इन तीनों अलग-अलग इलेक्शंस के लिए अलग-अलग पार्टीज के कैंडिडेट्स के लिए वोट कर सकते हैं 2024 के चुनाव से पहले रिपब्लिकंस के पास हाउस में 222 सीट्स थी डेमोक्रेट्स के पास 213 थी ऑलरेडी रिपब्लिकंस के पास मेजॉरिटी थी क्योंकि 2 साल पहले जो इलेक्शन हुई थी 2022 की इलेक्शंस उनमें एक्चुअली रिपब्लिकन पार्टी को ज्यादा सीटें मिली थी इन इलेक्शंस में अब दोबारा रिपब्लिकन पार्टी को मेजॉरिटी मिलती हुई दिख रही है काउंटिंग अभी चल रही है तो एग्जैक्ट नंबर्स नहीं बताए जा सकते कई दिन लग जाते हैं काउंटिंग खत्म करने में दूसरा सेनेट पर आए तो यहां टोटल में 100 मेंबर्स होते हैं अमेरिका की हर स्टेट से दो सेनेटर्स को चुना जाता है यहां पर कोई पॉपुलेशन नहीं देखी जाती अमेरिका में टोटल में 50 स्टेट्स हैं और 50 टाइम्स टू 100 मेंबर्स सिंपल कैलकुलेशन 20224 के इन चुनाव से पहले डेमोक्रेट्स के पास 51 49 की मेजॉरिटी थी सेनेट में लेकिन हाल ही में हुए इन 2024 के चुनाव के बाद अब यह मेजॉरिटी पलट गई है और रिपब्लिकंस के पास यहां भी मेजॉरिटी आ गई है और ये एक ऐसी मेजॉरिटी है जो किसी भी पॉलिटिकल पार्टी के लिए बहुत जरूरी होती है क्योंकि सेनेट के पास ही दोस्तों पावर है फेडरल जजेस और सुप्रीम कोर्ट के जस्टिसेज को अपॉइंट्स को सही मायने में इंडिपेंडेंट होना चाहिए पॉलिटिकल सिस्टम से लेकिन पिछले कुछ सालों से अमेरिका में इस बात पर बहुत कंट्रोवर्सी हुई है कि रिपब्लिकन पार्टी ने अपने लोगों को सुप्रीम कोर्ट में बिठा दिया है और उसकी वजह से ऐसे फैसले पास हो रहे हैं राइट टू अबॉर्शन का जो कॉन्स्टिट्यूशन राइट दिया गया था अमेरिका में रहने वाली औरतों को 2022 की सुप्रीम कोर्ट की रूलिंग के बाद वो छीन लिया गया औरतों से इस जजमेंट का मतलब था कि अमेरिका के कई सारे राज्यों में औरतों को अब अबॉर्शन करना अलाउड नहीं था इसके अलावा दोस्तों सेनेट के पास बिल्स को पास करने की भी पावर होती है अगर कोई भी कानून बनाया जा रहा है अमेरिका में वो दोनों हाउस और सेनेट से पास होना चाहिए सिमिलरली जैसे इंडिया में भी होता है कोई भी कानून बनता है लोकसभा राज राज्यसभा दोनों से पास होना चाहिए अब आते हैं प्रेसिडेंशियल इलेक्शंस पर जो कि सबसे ज्यादा जानी-मानी इलेक्शंस होती है अमेरिका की अमेरिकन प्रेसिडेंट अमेरिका में सबसे पावरफुल पोजीशन होती है जिसे इक्वेट किया जा सकता है इंडिया में प्राइम मिनिस्टर की पोजीशन से फर्क बस यहां पर यह है कि इंडिया में पार्लियामेंट्री सिस्टम है तो लोकसभा चुनावों में जीतने वाली पार्टी बाद में प्राइम मिनिस्टर का चुनाव करती है यानी टेक्निकली हम लोग पीएम फेस के लिए वोट नहीं करते फॉर एग्जांपल 2004 में जो इलेक्शंस हुई थी जिसमें कांग्रेस लेड यूपीए की जीत हुई थी किसी को नहीं पता था डॉक्टर मनमोहन सिंह इंडिया के प्राइम मिनिस्टर बनेंगे लेकिन पिछले कुछ सालों से अपने देश में भी स्थिति ऐसी ही बनती जा रही है जहां पर लोग पार्टी के लीडर या प्राइम मिनिस्टर या चीफ मिनिस्ट्रियल कैंडिडेट का चेहरा देखकर वोट देते हैं अमेरिका में भी लोग अपने प्रेसिडेंशियल कैंडिडेट का चेहरा देखकर अपने प्रेसिडेंट के लिए वोट करते हैं लेकिन यहां भी कहानी में एक ट्विस्ट है टेक्निकली ये जो वोट है ये डायरेक्ट वोट नहीं है अमेरिकन प्रेसिडेंट के लिए बल्कि यहां वोट किया जाता है इलेक्टर्स के जरिए इलेक्टर्स की एक बॉडी जिसे इलेक्टोरल कॉलेज कहते हैं वो इवेंचर प्रेसिडेंट चुनती है भले ही बैलेट पेपर पर प्रेसिडेंट और उनके वाइस प्रेसिडेंट कैंडिडेट का नाम दिखता हो और हां वैसे अमेरिका में आज के दिन भी ज्यादातर स्टेट्स में बैलेट पेपर से ही चुनाव होते हैं लेकिन असल में लोग उन इलेक्टर्स को वोट दे रहे होते हैं जो पार्टी के वफादार होते हैं टोटल में 538 इलेक्टर्स होते हैं पूरे अमेरिका में और हर स्टेट के एक डिफाइंड नंबर ऑफ इलेक्टर्स हैं कुछ स्टेट्स के पास ज्यादा इलेक्टर्स हैं कुछ स्टेट्स के पास कम इलेक्टर्स हैं ये भी उनकी पॉपुलेशन पर डिपेंड करता है एक्चुअली में इलेक्टर्स का नंबर होता है हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स के जो मेंबर्स का नंबर है प्लस उस स्टेट के जो सेनेटर्स का नंबर है तो बेसिकली हाउस का नंबर प्लस टू इलेक्टर्स का नंबर हो गया उदाहरण के लिए टेक्सस की स्टेट ले लो टेक्सस के पास 38 हाउस के रिप्रेजेंटेटिव्स हैं और दो सेनेटर्स हैं तो इलेक्टर्स की संख्या यहां हो गई 38 + 2 40 अब क्योंकि टोटल में 538 इलेक्टर्स हैं तो किसी प्रेसिडेंशियल कैंडिडेट को जीतने के लिए यहां पर इसका हाफ वे मार्क क्रॉस करना होता है जो कि है 270 इलेक्टोरल वोट्स का मार्क इन प्रेसिडेंशियल इलेक्शंस में सबसे अजीब चीज अब यहां पर यह आती है कि एक विनर टेक्स ऑल का सिस्टम है जिस भी राज्य में जिस भी स्टेट में पूरी स्टेट की बात करी जा रही है जिस कैंडिडेट को सबसे ज्यादा वोट्स मिलेंगे उस स्टेट के सारे इलेक्टर्स उसी कैंडिडेट के पास चले जाएंगे फॉर एग्जांपल अगर टेक्सस की ही स्टेट ले लो 40 इलेक्टर्स हैं मान लो डोनाल्ड ट्रंप और कमला हैरिस एक दूसरे के खिलाफ फाइट कर रहे हैं और कमला हैरेस को यहां पर 50.
0 पर वोट मिल जाता है स्टेट में और डोनाल्ड ट्रंप को 49. 99 वोट मिलता है बिल्कुल ही कुछ चंद वोटों का फर्क है लेकिन इस 0. 02 पर की वजह से भी टेक्स के सारे 40 इलेक्टोरल वोट्स कमला हैरिस के पास चले जाएंगे यही कारण है दोस्तों जिसकी वजह से कई बार ऐसी सिचुएशंस देखने को मिलती हैं कि एक प्रेसिडेंशियल कैंडिडेट को पूरे देश भर में ज्यादा वोट शेयर मिला है लेकिन फिर भी वो इलेक्शन हार गया क्योंकि इलेक्टोरल वोट्स दूसरे कैंडिडेट को ज्यादा मिले अब इस पूरे सिस्टम का एक बहुत बड़ा नुकसान यह रहा है कि कुछ स्टेट्स में एक पॉलिटिकल पार्टी को ज्यादा प्रेफर किया जाता है कुछ लोगों के द्वारा 5545 के रेशो से या 6040 की रेशो से कह लो तो ऐसे केस में उस स्टेट को फॉर ग्रांटेड लिया जाने लगता है साल 1988 के बाद बाद से कुछ 20 स्टेट्स ऐसी रही हैं जो हमेशा एक ही पार्टी को वोट करती आई हैं इस नक्शे पर आप देख सकते हो जो ईस्ट कोस्ट और वेस्ट कोस्ट वाली स्टेट्स हैं वो ब्लू कलर से दर्शाई गई हैं क्योंकि ये स्टेट्स जनरली ऑलमोस्ट ऑलवेज डेमोक्रेट पार्टी के लिए वोट करती हैं अमेरिका के बीच वाली जो स्टेट्स हैं वो रेड कलर में दर्शाई गई है क्योंकि ये यूजुअली ऑलमोस्ट ऑलवेज रिपब्लिकन पार्टी के लिए वोट करती हैं सात स्टेट्स ऐसी हैं 1988 के बाद से जिन्होंने हमेशा डेमोक्रेटिक प्रेसिडेंशियल कैंडिडेट्स के लिए वोट किया है और 13 स्टेट्स ऐसी हैं जिन्होंने हमेशा रिपब्लिकन प्रेसिडेंशियल कैंडिडेट के लिए वोट दिया है इन सभी स्टेट्स को सेफ स्टेट्स कंसीडर किया जाता है बची कुछ गिनती की स्टेट्स जहां एक्चुअली में कंपटीशन टफ होता है और इन स्टेट्स को स्विंग स्टेट्स कहा जाता है क्योंकि ये किसी भी डायरेक्शन में स्विंग कर सकती हैं बहुत छोटे वोट मार्जिन से सत्ता पलट सकती है 2020 की इलेक्शंस में सात स्टेट्स ऐसी थी जहां पर विनिंग मार्जिन 3 पर या उससे कम था इन इलेक्शंस में इन्हीं स्टेट्स को स्विंग स्टेट्स कंसीडर किया गया एरिजोना जॉर्जिया मिशिगन पेंसिल्वेनिया विस्कंसिन नॉर्थ कैरोलाइन और नेवाडा क्योंकि इन इलेक्शंस का रिजल्ट इन स्विंग स्टेट्स पर सबसे ज्यादा निर्भर करता है तो दोनों ही प्रेसिडेंशियल कैंडिडेट्स अपना ज्यादातर समय इन्हीं स्टेट्स में बिताते हैं कैंपेनिंग के दौरान सिर्फ इन्हीं स्टेट्स में इनका ज्यादातर आना जाना लगा रहता है और बाकी स्टेट्स को तो मानो ऑलमोस्ट इग्नोर ही कर दिया जाता है यह मेरी राय में एक बहुत बड़ा नुकसान है अमेरिकन इलेक्शन सिस्टम कायदे से देखा जाए अगर आप एक सेफ स्टेट में रहते हो आपके वोट की ज्यादा कीमत नहीं है आप किसी भी पार्टी के लिए वोट कर लो आपकी स्टेट हमेशा इसी पार्टी को फेवर करेगी और दूसरी तरफ कुछ चंद स्टेट्स में रहने वा वाले गिने-चुने वोटर्स की वोट की कीमत इतनी ज्यादा है इतनी ज्यादा है कि उन्हीं के ही वोट्स इलेक्शंस का रिजल्ट तय करेंगे और यहां सेफ स्टेट्स की बात करते हुए मैं आपको बताना चाहूंगा अगर आप इंटरनेट पर अपनी प्राइवेसी को सेफ रखना चाहते हो तो आज के वीडियो के स्पांसर नॉड वीपीएन आपके लिए बहुत यूजफुल होंगे जब भी आप इंटरनेट पर किसी वेबसाइट पर जाते हो तो आपका डेटा कलेक्ट किया जाता है उस डाटा का इस्तेमाल करके आपका एक प्रोफाइल बनता है जिसे इस्तेमाल किया जाता है टारगेटेड एड्स आपको दिखाने के लिए इस ऑनलाइन ट्रैकिंग को रोकने का एक बढ़िया तरीका है एक वीपीएन का इस्तेमाल करना न वीपीए के जरिए आप अपने आईपी एड्रेस को स्पूफ कर सकते हैं जिससे कि आपको ऑनलाइन ट्रेस कर पाना मुश्किल हो जाता है और आपकी पर्सनल इंफॉर्मेशन ज्यादा सिक्योर रहती है इसके अलावा ट्रैवलिंग करते वक्त भी यह काफी यूज़फुल होता है अगर किसी देश में कोई वेबसाइट ब्लॉक्ड है तो आईपी एड्रेस पूफ करने से अपनी कंट्री बदली जा सकती है और कंटेंट रिस्ट्रिक्शंस को बायपास किया जा सकता है अगर आप इंटरेस्टेड है इस लिंक को यूज़ कीजिए nvpc.
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6 अप्रूव्स सिर्फ इंडियंस के थे ट्रंप की पिछली सरकार में यही वीजा रिजेक्शन रेट बड़ी तेजी से बढ़ा था इस रिपोर्ट को देखिए 2016 में h1b एप्लीकेशंस का रिजेक्शन रेट 6 पर पर था और 2018 में यह 24 पर पर चला गया था इसके अलावा डोनाल्ड ट्रंप ने पिछली बारी एप्लीकेशन कॉस्ट भी बढ़ा दी थी और पूरे ही प्रोसेस को और कॉम्प्लिकेटेड बना दिया था इस चीज को लेकर डोनाल्ड ट्रंप खुद भी बड़े ओपन रहे हैं उन्होंने h1 बी को अमेरिकन प्रोस्पेरिटी के लिए एक थेफ्ट कहा है अगर अमेरिकी नागरिक और परमानेंट रेजिडेंट्स अपने परिवार के सदस्य को अमेरिका लाना चाहते हैं तो फैमिली रियूनिफिकेशन का समय भी ट्रंप के तहत लंबा हो सकता है कमला हैरिस की प्रॉमिस इसकी उल्टी थी उन्होंने लीगल इमीग्रेशन को सिंपलीफाई करने की बात करी थी और फैमिली रियूनिफिकेशन के लिए रिफॉर्म्स लाने की भी बात कर रही थी अब तो यह भी रिपोर्ट किया जा रहा है कि नई ट्रम सरकार के अंडर ऑटोमेटिक सिटीजनशिप जो बच्चों को मिलती थी अब वो भी नहीं मिलेगी अगला बड़ा मुद्दा है इकॉनमी और इंफ्लेशन का जो डोनाल्ड ट्रंप की कैंपेन के दौरान सबसे पॉपुलर मुद्दा रहा उन्होंने वादा किया है कि वह इंफ्लेशन कम करेंगे आल एंड इलेशन आई विल स्टॉप द इजन ऑफ क्रिमिनल्स कमिंग इनटू आवर कंट्री लेकिन साथ ही साथ इंडिया द्वारा अमेरिकन प्रोडक्ट्स पर लगाए जा रहे हाई टैरिफ के खिलाफ भी उन्होंने अपनी आवाज उठाई है उन्होंने खुले तौर पर भारत से हार्ली डेविडसन बाइक्स पर टैरिफ कम करने के लिए कहा था डोनाल्ड ट्रंप से उनकी सपोर्टर्स की एक्सपेक्टेशन यह है कि वह अमेरिका फर्स्ट स्ट्रैटेजी को आगे बढ़ाएंगे इसमें वो उन देशों पर पेनल्टी लगा सकते हैं जो अमेरिकन प्रोडक्ट्स और सर्विसेस पर हाई टैक्सेस लगाते हैं दूसरी तरफ कमला हैरिस ने अपनी ट्रेड स्ट्रेटेजी को ज्यादा क्लियर कट नहीं बताया था लेकिन जो बाइड की सरकार के दौरान इंडिया और अमेरिका के बीच में जो बायलट ट्रेड थी वो काफी बढ़ी थी और यह चीज इंडिया के फेवर में रही थी एक्चुअली में ट्रेड के पर्सपेक्टिव से चीजें इंडिया के फेवर में हो इसका मतलब है कि हम अमेरिका में अपना ज्यादा सामान एक्सपोर्ट करें और अपने देश में कम अमेरिकन चीजें इंपोर्ट करें और पिछले चार सालों में यही चीज हुई है फाइनेंशियल ईयर 2020 से लेकर 2024 के बीच में इंडिया ने जो मर्चेंडाइज एक्सपोर्ट्स किए अमेरिका को उनमें 46 पर इंक्रीज दिखा 77. 5 बिलियन डॉलर्स तक पहुंच गए और जो इंडिया ने इंपोर्ट्स किए अमेरिका से उनमें 17. 9 का इंक्रीज दिखा 42.
2 बिलियन डॉलर तक पहुंच गए पिछले 3 सालों में ट्रेड डेफिसिट भारत के पक्ष में 13. 3 बिलियन डॉलर से बढ़कर 25.
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