नमस्कार दोस्तों, एक ऐसा जानवर जो 13,000 साल पहले एक्सटिंक्ट हो चुका था, डायर वूल्फ। वो आज धरती पर वापस आ गया है जेनेटिक इंजीनियरिंग की मदद से। यह दावा किया जा रहा है कोलोजल बायोसाइंसेस कंपनी के द्वारा। एक ऐसी कंपनी जो कहती है कि आने वाले समय में ऐसी कई सारी पॉपुलर एक्सटिंक्ट एनिमल की स्पीशीज को डीएक्सिंक्ट करेगी। जैसे कि टाज़्मेनियन टाइगर जो एक समय पर ऑस्ट्रेलिया में पाया जाता था। डोडो बर्ड जो 1600 में मॉरीशियस में एक्सटिंक्ट हो गई थी। या वली मैमथ बर्फ में एक समय पर पाए जाने वाले ये बड़े से हाथियों के रिलेटिव्स जो 4000 साल पहले एक्सटिंक्ट हो गए थे। डायर वुल्फ जो इस कंपनी के अनुसार इनका पहला सक्सेसफुल अटेम्प्ट था किसी एनिमल को डीएक्सिंक्ट करने का। यह एक ऐसी वुल्फ की स्पीशीज है जिसे गेम ऑफ थ्रोनस के टीवी शो ने काफी पॉपुलर बनाया। इस शो के कई मेन कैरेक्टर्स के पास डायर वुल्फ्स एक पेट की तरह थे। इसी से ही इंस्पायर्ड होकर जिन दो डायर वुल्फ्स को इस कंपनी ने जन्म दिया उनका नाम रखा गया रोमिलस और रेमोस। यह पूरा प्रोजेक्ट अमेरिका की एक सीक्रेट लोकेशन में किया गया। यहां आप इस वीडियो में देख सकते हो। यह धूप में बैठे एक बाड़े में मजे कर रहे हैं। यह 5 महीने के हो गए हैं। इन बच्चों को कोई एहसास भी नहीं है कि यह कितने अनोखे हैं। यह एक ऐसे युग में पैदा हुए हैं जहां इनकी प्रजाति का कोई भी और सदस्य मौजूद नहीं है। और यही नहीं इनके साथ एक तीसरे डायर वुल्फ ने भी जन्म लिया जो कि एक फीमेल थी और जिसका नाम कंपनी ने रखा खलीसी। पहली नजर पर देखने में सब कुछ बहुत ही अद्भुत लगता है। लेकिन कई लोगों ने यहां पर सवाल उठाए हैं। इस कंपनी के दावों को झूठा बताया है। बहुत से एक्सपर्ट्स जिनका कहना है कि यहां पर डायर वुल्फ को वापस नहीं लाया गया है बल्कि एक आर्म वुल्फ का जेनेटिकली इंजीनियर्ड वर्जन बनाया गया है। आखिर यह सब किया कैसे गया? आइए समझते हैं इस पूरे मुद्दे को गहराई से आज के इस वीडियो में। साल 1854 की बात है। अमेरिका में ओहायो नदी के पास सबसे पहली बार इंसानों को डायर वुल्फ के फॉसल्स मिले थे। 1858 में अमेरिकन साइंटिस्ट जोसेफ लेडी ने कहा कि इस जानवर को कैनिस वंश में डालना चाहिए। और यहीं से ही इसे साइंटिफिक नाम दिया गया कैनिस डायरस। इसका मतलब होता है एक डरावना कुत्ता। कैनिस जेनस में वो सारे जीव आते हैं जो कुत्ते जैसे होते हैं। जैसे कि कुत्ते, भेड़िए या सियार। फिर सन 1918 में एक साइंटिस्ट जॉन मैरियम लॉस एंजेलिस के तारपिट्स में डायर वुल्फ्स के फॉसिल्स को स्टडी कर रहे थे और उन्होंने कहा कि यह जानवर बहुत ही अलग है। इसे कैनिस वंश में नहीं डालना चाहिए। इसके लिए एक अलग वंश होना चाहिए। लेकिन उस वक्त उनकी बात को गलत मानकर इग्नोर कर दिया गया। इसके बाद अगले 100 सालों तक लोग यही मानते रहे कि डायर वुल्फ, ग्रे वुल्फ और मॉडर्न भेड़ियों के क्लोज रिलेटिव थे। लेकिन 2021 में नेचर जर्नल में एक स्टडी पब्लिश होती है जो डायर वुल्फ को लेकर इंसानों की समझ पूरी तरीके से बदल देती है। फॉसल्स को डिटेल में स्टडी करने से पता चला कि डायर वुल्फ मॉडर्न भेड़ियों से बहुत अलग है। लगभग 57 लाख साल पहले ही यह बाकी वुल्फ की स्पीशीज से अलग हो गए थे। इसी स्टडी में यह भी पता चला कि डायर वुल्फ लंबे समय तक नॉर्थ अमेरिका में ग्रे वुल्फ्स और कायोटीस के साथ रहते थे। लेकिन इनके बीच में कोई इंटरब्रीडिंग नहीं देखने को मिलती थी। कोई जींस मिक्स नहीं हुए इनके। और फिर करीब 13,000 साल पहले सभी डायर वुल्फ्स धरती से एक्सटिंक्ट हो गए। लेकिन ग्रे वुल्फ्स बचे रहे। क्या कारण था इसके पीछे? एग्जैक्टली कोई नहीं जानता लेकिन ऐसा माना जाता है कि क्योंकि डायर वुल्फ्स बड़े जानवरों का शिकार करते थे। वो जानवर जिनका ये शिकार करते थे वो एक्सटिंक्ट हो गए इसलिए यह भी एक्सटिंक्ट हो गए। एक और थ्योरी इनके एक्सटिंशन का कारण बताती है कि ये ग्रे वुल्फ्स की तरह इंटरब्रीडिंग नहीं कर पाए और इसीलिए यह अपने आप को एनवायरमेंट के साथ अप्ट नहीं कर सके। अगर मॉडर्न भेड़ियों से कंपेयर करोगे तो डायर वूल्फ का साइज करीब 25% बड़ा होता है। गेम ऑफ थ्रोन्स में डायर वुल्फ को बहुत ही बड़ा दिखा रखा है। इन्हें एक शेर जितना बड़ा दिखा रखा है। लेकिन असली में यह इतने बड़े नहीं होते थे। हालांकि यह जरूर है कि इनका सिर बाकी भेड़ियों से लंबा और चौड़ा होता था और जबड़े की मसल्स बहुत ज्यादा पावरफुल होती थी। इनके शरीर पर हल्के-हल्के लगभग सफेद बाल होते थे और मॉडर्न भेड़ियों की तरह यह भी झुंड में रहते थे जिससे बाकी जानवरों का शिकार करना आसान होता था। अब सवाल आता है डी एक्सटिंशन का। आखिर इस कंपनी ने एक डायर वूल्फ को डीएक्सिंक्ट कैसे किया?
डीएक्सिंशन का मतलब होता है एक्सटिंशन का उल्टा। एक्सटिंशन से किसी चीज को वापस लाना। मुख्य रूप से देखा जाए तो यह तीन तरीकों से किया जा सकता है। पहला तरीका है बैक ब्रीडिंग। इसमें किसी एक्सटिंक्ट प्रजाति के जीवित रिश्तेदारों में से एक ऐसे जानवर को चुना जाता है जिसमें उन पुरानी प्रजाति के कुछ गुण अभी भी मौजूद हो। फिर उनकी आपस में ब्रीडिंग करा कर धीरे-धीरे उन पुरानी कैरेक्टरिस्टिक्स को एक ही जानवर में लाने की कोशिश की जाती है। इसका एक रियल लाइफ एग्जांपल है क्वागा प्रोजेक्ट। इस फोटो को देखिए। यह जो जानवर है इसका नाम है क्वागा। आगे से यह बिल्कुल जिब्रा जैसा दिखता है लेकिन पीछे से इसकी स्ट्र्राइप्स खत्म हो जाती है और बिल्कुल घोड़े जैसा लगता है। यह साउथ अफ्रीका में पाए जाने वाला एक जानवर था जो साल 1883 में एक्सटिंक्ट हो गया हंटिंग की वजह से। लोगों ने इसकी हंटिंग करके इसे पूरी तरीके से खत्म कर दिया था। था। यह जो फोटो आपने स्क्रीन पर देखी है टिल डेट इकलौती फोटो है जो आज तक हिस्ट्री में क्वागा की ली गई है। उसके एक्सटिंक्ट होने से पहले ली गई थी। लेकिन फिर 1987 में कुछ साइंटिस्ट ने मिलकर क्वागा प्रोजेक्ट शुरू किया है। इसे डी एक्सटिंक्ट करने के लिए। यहां इन्होंने ऐसे जिब्रास को ढूंढा जिनकी बॉडीज पर कम स्ट्राइप्स मौजूद थी। स्पेशली बैक वाले पार्ट में कम मौजूद थी। और फिर चुन-चकर सेलेक्टिव ब्रीडिंग करनी शुरू करी। हर पीढ़ी में जो बच्चे पैदा होते हैं, उन्हें कम स्ट्र्राइप वाले जिब्रास के साथ ब्रीड कराया जाता है और उनके जो बच्चे पैदा होते हैं, उनमें से भी सबसे कम स्ट्राइप वाले चुने जाते। ऐसा करके 20 सालों और तीन पीढ़ियों बाद ऐसे जिब्राज़ पैदा होने लगे जो बिल्कुल कोआगाज़ जैसे दिखते थे। आज के दिन कोआगा प्रोजेक्ट का क्या स्टेटस है आप इनकी वेबसाइट पर देख सकते हैं। 1987 में ली गई यह पहली पीढ़ी की फोटो है। जिस जिब्रा पर बस थोड़े से कम स्ट्राइप्स हैं और 2022 में यह वाली फोटो जिसमें यह जिब्रा ऑलमोस्ट एक कुआ जैसा ही लग रहा है। इसी प्रोसेस को बैक ब्रीडिंग कहा जाता है। लेकिन एक सवाल यहां पर उठता है। क्या दिखने में क्वागा जैसा होना एक जानवर को सही में क्वागा बना देता है। असली क्वगा में ऐसे भी कुछ ट्रेट्स हुए होंगे जिनके बारे में हम नहीं जानते। और यही एक डिसएडवांटेज है बैक ब्रीडिंग का। दिखने में यह जानवर शायद पुराना जैसा हो जाए, लेकिन यह जरूरी नहीं कि उसकी जींस बिल्कुल वैसे ही हो जैसे उस एक्सटिंक्ट प्रजाति की थी। दूसरी डी एक्सटिंशन की टेक्निक आती है यहां पर क्लोनिंग। क्लोनिंग के जरिए किसी जानवर की बिल्कुल सटीक जेनेटिक कॉपी बनाई जा सकती है। लेकिन ऐसा करने के लिए एक एक्सटिंक्ट प्रजाति का एक सुरक्षित रखा गया सेल होना जरूरी होता है। क्योंकि यहां किया क्या जाता है? इस सेल के न्यूक्लियस को निकालकर किसी करीबी जीवित प्रजाति के एग्स में डाल दिया जाता है। सुनने में यह चीज करनी बड़ी मुश्किल लगती है और है भी। इसीलिए साल 1996 में ही पहली बार था कि एक जानवर को क्लोन किया गया था। डॉली द शीप याद होगा स्कूल की किताबों में पढ़ा होगा। हर नेम इज डॉली से मंथ्स ओल्ड। शी मे नॉट बी द मॉन्सर इमेजिन इन अ साइंस फिक्शन फैंटसी दली फिनोर्स रिप्रेजेंट अ मेजर लैंडमार्क इन द हिस्ट्री ऑफ़ जेनेटिक इंजीनियरिंग। लेकिन डी एक्सटिंशन के लिए क्लोनिंग का इस्तेमाल पहली बार किया गया साल 2000 में। बोकारडो नाम की एक स्पेनिश बकरी की प्रजाति थी जो बहुत ही एंडेंजर्ड थी। 6 जनवरी साल 200 स्पीशीज की आखिरी बकरी की मौत हो जाती है और यह जानवर एक्सटिंक्ट हो जाता है। लेकिन इसके मरने से करीब एक साल पहले ही साइंटिस्ट ने इसके सेल के सैंपल्स ले लिए थे। इन सेल के सैंपल्स को जाकर कोल्ड स्टोरेज में सेफ तरीके से रख रखा था। इसीलिए ये यहां पर क्लोनिंग अटेम्प्ट कर पाए। इन्होंने इन सेल्स के न्यूक्लियाई को निकालकर 57 अलग-अलग बकरियों के एग्स में डाल दिया। इसका सक्सेस रेट ज्यादा नहीं है क्योंकि इनमें से सिर्फ सात बकरियां ही प्रेग्नेंट हो पाई और छह के तो मिसकैरज भी हो गए। सिर्फ एक बकरी ने एक बच्ची को जन्म दिया लेकिन यह एक बच्ची भी लंग डिफेक्ट के साथ पैदा हुई और 10 मिनट के बाद इसकी मृत्यु हो गई। इसीलिए इस बोकाडो बकरी के बारे में कहा जाता है यह एक ऐसा जानवर है जो दो बार एक्सटिंक्ट हुआ। और यहां से ही आप अंदाजा लगा सकते हो यह क्लोनिंग करना कितना मुश्किल है। अब आते हैं हम तीसरे प्रोसेस पर डीएक्सिंशन के जो कि है जेनेटिक इंजीनियरिंग। इसे सबसे नया और सबसे प्रॉमिसिंग तरीका माना जा रहा है। इसमें साइंटिस्ट इस्तेमाल करते हैं एक फॉसल का। फॉसिल्स हजारों सालों तक मरे हुए जानवरों का डीएनए प्रिजर्व करके रख सकते हैं। यह एक बड़ा ही नेचुरल तरीका है डेटा प्रिजर्वेशन का। लेकिन आज के जमाने में अगर हम बात करें क्या आप जानते हो आपका इंटरनेट पर हर एक क्लिक एक डिजिटल फॉसल बन सकता है? इंटरनेट पर आज के दिन ब्राउजिंग करते वक्त ढेर सारी वायरस से भरी वेबसाइट्स मिलती हैं जिनमें ट्रैकर्स होते हैं। इंट्रूसिव एड्स होती हैं। अक्सर ऐसी भी वेबसाइट्स हैं जो किसी सोशल मीडिया वेबसाइट या आपकी बैंक की वेबसाइट होने का नाटक करती हैं। ऐसे में न वीपीए का थ्रेट प्रोटेक्शन एक बड़ा ही यूज़फुल टूल है। यह ना सिर्फ एड्स और ट्रैकर्स को ब्लॉक कर सकता है बल्कि आप अगर किसी स्कैमी वेबसाइट पर जा रहे हो। यह फ्रॉड अलर्ट भी देता है। इसमें मैलवेयर स्कैनर भी है। नॉट वीpए वैसे एक वीpए की ऐप है जो आपकी लोकेशन को स्पूफ करने में और आपकी प्राइवेसी प्रोटेक्ट करने में मदद करती है। लेकिन यह थ्रेड प्रोटेक्शन का फीचर वीpए की ऐप से सेपरेट है। आप वीpए को ऑफ रख के इस थ्रेड प्रोटेक्शन को हमेशा ऑन भी रहने दे सकते हो। यहां क्योंकि इन्होंने इस वीडियो को स्पोंसर किया है तो आप लोगों के लिए एक बड़ा डिस्काउंट है अगर आप इसमें इंटरेस्टेड हो। नॉट vpn.
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यह अपने आप में एक बड़ा कॉम्प्लेक्स टॉपिक है। इस पर एक अलग से वीडियो बनाया जा सकता है। इस प्रोसेस को जेनेटिक सीज़र्स भी कहा जाता है। क्योंकि एक तरीके से यह कैंची का काम कर रही है। और यह जो क्रिसपर कैसनाइन की टेक्नोलॉजी है, इसके लिए साल 2020 में फ्रेंच साइंटिस्ट इमैनुअल चारपेंटियर और अमेरिकन साइंटिस्ट जेनफर डोडना को केमिस्ट्री का नोबेल प्राइज भी दिया गया था। तो इस कंपनी ने इस जीन एडिटिंग के जरिए ग्रे वुल्फ के सेल्स के 14 जींस में 20 बदलाव किए और हजारों मॉडिफाइड सेल्स को लैब में ग्रो किया। फिर मिड 2024 में अगली स्टेप करी गई। यह जो एडिटेड जीनोम वाले सेल्स थे, इनसे सेल के न्यूक्लियाई को निकाला गया। और दूसरी तरफ इन्होंने कुत्ते के एग सेल्स लिए और उन एग सेल्स से भी न्यूक्लियाई को हटा दिया गया। ये वाला न्यूक्लियाई उनके एग सेल में डाला और 45 एम्ब्रियोस को दो कुत्तों के अंदर प्लांट कर दिया। इनमें से सिर्फ दो एम्ब्रियोस डेवलप हुए। फिर आता है 1 अक्टूबर 2024 और इन प्रेग्नेंट कुत्तों पर सी सेक्शन किया जाता है जिससे छोटे-छोटे पप्पीज का जन्म होता है। पहले यह नेचुरल बर्थ करना चाहते थे लेकिन चिंता यह थी कि डायर वुल्फ का साइज बहुत बड़ा होता है। बच्चे बहुत बड़े पैदा हो सकते हैं और यह प्रेग्नेंट कुत्ते के लिए ठीक नहीं होगा। तो इसी दिन दो डायर वुल्फ पैदा हुए जिनका नाम रखा गया रोमिलुस एंड रेमोस। यह रोम के शहर के माइथोलॉजिकल फाउंडर्स थे। अपनी जिंदगी के पहले दिनों में डायर वुल्फ पप्पीज ने अपनी सरोगेट माओ का दूध पिया जिन कुत्तों ने इन्हें जन्म दिया था। लेकिन इनकी मेटाबॉलिक नीड्स को पूरा करने के लिए यह दूध काफी नहीं था। बाद में इन्हें जल्द ही बोतल से भी दूध पिलाया गया। अब टेक्निकली देखा जाए तो यह दो डायर वुल्फ के बच्चे जो पैदा हुए यह दोनों क्लोनस हैं एक दूसरे के। क्योंकि एग्जैक्टली सेम डीएनए इनके सेल्स में मौजूद है। लेकिन यहां पर इंटरेस्टिंग चीज यह है कि जुड़वा होने के बावजूद भी पैदा होते ही ये अलग-अलग तरीके से बिहेव कर रहे थे। रेमुस जो है वह ज्यादा बहादुर था। रोमलुस थोड़ा शाय था। यह कोई हैरानी की बात नहीं है। लोग जब क्लोन शब्द को सुनते हैं तो वह इमेजिन करते हैं कि एक्जेक्टली दो इंसान होंगे जो बिल्कुल ही एक जैसे दिखते होंगे। एक जैसा बिहेव करते होंगे। लेकिन असलियत में ऐसा होता नहीं है। इवन अगर आपका पूरा का पूरा डीएनए सेम है। आपका बिहेवियर अलग-अलग हो सकता है। आपकी पर्सनालिटी अलग-अलग हो सकती है। क्योंकि बहुत कुछ एनवायरमेंट पर निर्भर करता है। जिस एनवायरमेंट में आप बड़े हुए हो। इसके अलावा सेम जींस भी अलग-अलग तरीके से उभर कर आ सकती हैं। अलग-अलग ट्रेट्स रिफ्लेक्ट कर सकती हैं। कौन सी जीन टर्न ऑन हो रही है, कौन सी जीन टर्न ऑफ हो रही है, इसे पहले से प्रिडिक्ट कर पाना नेक्स्ट टू इंपॉसिबल है। और यही चीज एक्सटिंक्ट जानवरों के लिए भी कही जाती है। कोई जानवर कैसा बनकर निकलता है? यह सिर्फ उसके डीएनए पर डिपेंड नहीं करता बल्कि उसके पालने वाली मां पर भी डिपेंड करता है। आसपास के वातावरण पर भी डिपेंड करता है। उसका खानापानी कैसा है? उसके शरीर में रहने वाले माइक्रोब्स किस तरीके से हैं?
बहुत सारे फैक्टर्स हैं यहां पर जो एक इंडिविजुअल ऑर्गेनिज्म को एक ऑर्गेनिज्म बनाते हैं। लेकिन एनीवेज अपनी कहानी पर वापस आए तो 30 जनवरी 2025 को खलीसी का जन्म होता है। एक फीमेल डायर वुल्फ। इस कंपनी के मालिक बन लाम का कहना है कि इन तीनों को ही ब्रीड करने की अनुमति नहीं दी जाएगी। इनकी कंपनी जेनेटिक इंजीनियरिंग से केवल तीन से पांच और ऐसे जानवर बनाएगी। उन्हें उनके प्रिजर्व में रखा जाएगा जिसकी सुरक्षा 10 फुट ऊंची सिक्योरिटी फेंस और ड्रोन सर्विलेंस से की जाएगी और इनसे मिलने का सिर्फ कभी कभार आने वाले बिलियनर्स को ही मौका मिलेगा। तो यहां एक दफा के लिए अब आप इन डायर वुल्फ्स के पर्सेक्टिव से सोचो। यह अब ऐसी उम्र में हैं जब इनके माता-पिता आमतौर पर इन्हें शिकार करना सिखाते हैं। लेकिन जाहिर सी बात है इनके माता-पिता हैं ही नहीं और इन्होंने कभी दूसरे भेड़िए देखे भी नहीं है। इनकी पूरी जिंदगी अब एक हाइली कंट्रोलोल्ड एनवायरमेंट में बीतेगी जो बहुत ही अलग होगी। अगर आप उस एक्सटिंक्ट जानवर से कंपेयर करो जो डायर वुल्फ थी। 10 20 साल बाद जाकर जब इन भेड़ियों की मौत होती है तो हो सकता है बोकारडो की तरह ही यह दूसरी प्रजाति बन जाए। दूसरी बार एक्सटिंक्ट होने वाली। तो साइंटिफिकली देखा जाए यह एक बड़ी अचीवमेंट जरूर है लेकिन जो क्रिटिसिज्म किया जा रहा है लोगों के द्वारा वो भी जायज है क्योंकि डी एक्सटिंशन का असली मतलब किसी जानवर को सिर्फ दोबारा से जिंदा करना नहीं होता शोपीस के तौर पर उसके साथ फोटो खिंचवाने के लिए एंटरटेनमेंट के लिए इसका मतलब होता है उसे दोबारा से हमारी धरती पर इकोलॉजी में जगह देना उसे वही इकोलॉजिकल रोल दोबारा देना जो वो एक समय पर निभाया करता था जैसे कि वली मैमथ साइबेरिया की घास के मैदानों को बनाए रखने में मदद करते थे उस पूरे इको इकोसिस्टम का उस वक्त वो एक बहुत ही महत्वपूर्ण हिस्सा थे। सवाल यह है कि अगर डायर वुल्फ जैसे जानवर को वापस जिंदा किया गया क्या हमारे इकोलॉजिकल बैलेंस में इसके लिए कोई जगह है? जो लोग इसके सपोर्ट में है वो कहते हैं कि यह एक बड़ा शिकारी जानवर था और आज के दिन शिकारी जानवरों की काफी कमी है। तो डायरवूल्फ को वापस लाकर हमारे जंगलों में छोड़ने से बैलेंस वापस रिस्टोर हो जाएगा। एस्पेशली अमेरिका में जहां यह रहा करता था। लेकिन जब कोई प्राइवेट कंपनी करोड़ों रुपए खर्च करके इस जानवर को वापस लाई है तो क्या लगता है इको कॉलजी में बैलेंस वापस लाने के लिए लाई है या फिर अपने फायदे के लिए लाई है? ज्यादा पॉसिबिलिटी यह लगती है कि इसे एक ज़ में शोपीस की तरह रखा जाएगा जहां पर लोगों के लिए यह एंटरटेनमेंट का जरिया बनेगी। सवाल यहां पर यह भी है कि डायर वुल्फ एक ऐसा जानवर है जो नेचुरली एक्सटिंक्ट हुआ है जिसमें इंसानों का इतना बड़ा रोल नहीं था। जो भी क्लाइमेट चेंज 10 हजारों साल पहले देखने को मिला, जो भी नेचुरल चेंजेस आए हमारे इकोसिस्टम में, उसकी वजह से यह जानवर एक्सटिंक्ट हुआ है। तो क्या आज के इकोसिस्टम में सही मायनों में इसके लिए कोई जगह भी है?
जिन जानवरों का शिकार डायर वुल्फ किया करते थे, वह जानवर खुद एक्सटिंक्ट हो चुके हैं। अगर आज इन्हें वापस जंगलों में छोड़ा गया, तो यह उन जानवरों का शिकार करेंगे जिनका शिकार ग्रे वुल्फ और बाकी भेड़िए करते हैं। फूड सोर्स के लिए इन दोनों भेड़ियों के बीच में कंपटीशन देखने को मिलेगा और हो सकता है वही चीज दोबारा हो जो 13,000 साल पहले हुई थी। डायर वुल्फ का एक्सटिंशन। और यह सब तो मैं यह अस्यूम करके कह रहा हूं कि यह एक्चुअली में एक डायर वुल्फ है। लेकिन क्या एक्चुअली में यह डायर वुल्फ है भी? इसका जवाब है शायद नहीं। यह एक जेनेटिकली इंजीनियर्ड वर्जन है ग्रे वुल्फ का। एक ऐसा ग्रे वुल्फ जिसमें कुछ 14 जींस को बदला गया है। लेकिन जींस कितनी सारी होती हैं एक जीनोम में। ये नंबर मिलियंस में होता है। यहां पर 0. 0001% जींस भी चेंज नहीं करी गई है। अगर एक ग्रे वुल्फ और डायर वुल्फ के डीएनए में 99.
5% का मैच होता है। तो ये जो नया डायर वुल्फ बनाया गया है। इसका मैच भी 99. 5% का ही रहेगा। इस पुरानी एक्सटिंक्ट डायर वुल्फ की स्पीशीज से कंपेयर करोगे तो। क्योंकि सीधी बात यही है कि अगर एग्जैक्टली हमें वही जानवर बनाना है जो एक्सटिंक्ट हुआ है तो हमें पूरा उसका जीनोम पता होना चाहिए और हमें वही हजारों चेंजेस करने पड़ेंगे जींस में एग्जैक्टली वही बनाने के लिए अगर हम वही बनाने की बात करते हैं तो क्योंकि सोच कर देखो चिंपांजी और इंसानों में भी 98. 8% डीएनए मैच करता है। अब यहां पर कल को कुछ साइंटिस्ट बोले कि हमने चिंपांजी के डीएनए में 14 चेंजेस कर दिए हैं जिससे वो दिखने में इंसान जैसा हो गया है। क्या इसका मतलब यह होगा कि वो सही में इंसान बन गया है?