कि जमीन से चार सौ अस्सी फीट ऊंचे 4500 साल पुराने इस पिरामिड के अंदर ऐसा क्या था जिसको सिर्फ देखने के लिए रिसर्चर्स ने एक रोबोट एक कैमरा परमिट के अंदर भेजा एक जगह पर आकर रोबोटिक कैमरा रुक गया क्योंकि अब उसके सामने पत्थर का एक स्लैप था रिसर्चर्स का मानना था कि इस लैब के पीछे जरूर कोई ऐसा राज छुपा है जो पिछले चार हजार 500 सालों से दफन है यह राज इनको हर कीमत पर जाना था इसलिए उन्होंने रोबोट के आगे एक ड्रिल मशीन लगाई जिसने उस पत्थर के स्लैब में भारी घोषित कर
दिया अब इस छेद के अंदर एक कैमरा भेजा गया जिसने स्लैप के उस पार एक ऐसा मंज़र देखा जो पिछले चार हजार 500 सालों से किसी ने भी नहीं देखा था जब वीडियोस में एक बार फिर से खुशामदी नजर इन मिस्र यानि इजिप्ट में टोटल 138 ऊंचे तीन पैर मिर्च मौजूद हैं जिन्होंने पिछले हजारों सालों से दर्जनों अर्थक्वेक्स और कई खतरनाक तूफान में का सामना किया लेकिन मजाल है इनमें से कोई एक भी इधर से उधर हुआ हो इनमें से सबसे ऊंचा और बड़ा पर्व मेड द ग्रेट पिरामिड ऑफ़ ग़िज़ा के जाता है और इस
पर वैट की बेस का एरिया 31ए कर्ज है यानी इस परमिट के अंदर हैरतअंगेज तौर पर एक दो नहीं बल्कि पूरी नाइन फुटबॉल फील्ड फ्रॉम से फिट आ सकती है एक्टिवेट हिसाब से इस पर वैट व टोटल त इस लाख बड़े-बड़े पत्थरों का इस्तेमाल हुआ जिनमें से कई पत्रों का वजन 50 टर्न भी था मगर इसका टोटल वजन का अंदाजा लगाया जाए तो इस पर वैट का वजन 60 लाख टन है जो 12 बुर्ज खलीफा के वजन के बराबर बनता है लेकिन इतने ऊंचे और आलिशान पैरंट्स बनाने का आखिर मकसद क्या था हजारों साल पहले
जब इंसान के पास कोई टूल्स भी मौजूद नहीं थे तब इन फ्रॉम इट्स की दीवारों को कैसे इंच बाय इंच लेवल किया गया कैसे 50 टन वजनी पत्रों को स्क्वायर शेप में काट कर बगैर प्रेम के ही 480 फीड लड़ाई तक पहुंचाया गया और इनको बनाने में ऐसे कौन से इंजीनियर्स का हाथ था जिन्होंने इन पैरंट्स को अर्थक्वेक प्रूफ के साथ-साथ इनकी तमाम साइड्स को एक्जेक्टली 51.5 डिग्री के एंगल पर सेट किया यह सब आप जान सकेंगे आज की इस वीडियो में तो आइए शुरू करते हैं चैलेंज नंबर वन कई सदियों से मुख्तलिफ रिसर्च टीम
इस परमिट की कंस्ट्रक्शन टेक्निक जानने के लिए इस सर जोड़कर बैठी थी कि आखिर इस पिरामिड की हर साइड एक्जेक्टली नॉर्थ साउथ ईस्ट और वेस्ट पर बगैर कंपास के कैसे सेट की गई होंगी कई एक्सपर्ट्स का मानना है कि उस टाइम के आर्किटेक्ट ने सबसे पहले ऐसी ज़मीन तलाश की होगी जो लाखों टन वजनी पत्रों का वजन ठेर सके उसके बाद बॉलर स्टार जानी वो सितारे जिनकी मदद से अर्थ के पोल्स का पता पड़ता है उनकी मदद से परमिट की हर साइड को मार किया गया ना कोई कंपास और ना ही कोई ऑप्टिकल इंस्ट्रूमेंट सिर्फ
इस बेसिक टेक्निक से हजारों साल पहले इस पर्व में क्वेश्चन सेट की गई और वह भी शेरों के साथ चैलेंज नंबर 2 अगला चैलेंज था जमीन को लेवल करने का जिस तेरा एकड़ की जमीन पर इस परमिट को बन्ना था उसका लेवल थोड़ा सा भी आउट होता तो 23 लाख पत्रों के इस पहाड़ का खड़ा होना बिल्कुल भी मुमकिन नहीं था अब इस जमीन को लेवल करने के लिए उस टाइम के इंजीनियर के पास ना ही लेजर लेवलर था और ना ही बल है वन एक्सपर्ट्स का मानना है कि कंस्ट्रक्शन साइट की चारों साइड पर
खडा करके उसमें पानी डाला गया होगा और फिर एक साइड के पानी के लेवल से दूसरे साइड के पानी के लेवल को मैच किया गया होगा जो जमीन का हिस्सा पानी के लेवल से मैच नहीं कर रहा होगा उसको छीनी और हथौड़ों की मदद से काटकर लेवल किया गया होगा कई एक्सपर्ट्स का मानना है कि इंस्टेंट एजुकेशंस ने इस सिंपल टूल का भी इस्तेमाल किया जिसकी दोनों साइड पर लकड़ियां और उसके ठीक सेंटर पर एक रस्सी से पत्थर बंधा हुआ है अगर पत्थर जब इसे टच हो गया और उसकी रसीद ठीक सेंटर लाइन पर आ
रही होगी तो इसका मतलब है कि 20 की जमीन परफेक्टली लेवल है चैलेंज नंबर थ्री अब पैरामेडिकल ट्रैक्शन साइड पर डायरेक्शंस भी सेट थी मार्किंग भी हो चुकी थी और जमीन का लेवल भी सेट था अब बारी थी कंस्ट्रक्शन स्टार्ट करने की जिसके लिए लाखों टन वजनी और बड़े पत्थर रिक्वेस्ट थे लेकिन यह पत्थर काटने के लिए ना ही उनके पास ग्राइंडर थे और ना ही चेक है मांस लेकिन फिर भी उन्होंने 50 टन वजनी पत्थर कांटे भी और उनको स्क्वायर या रेक्टैंगल 6 भी दिया लेकिन आखिर किसकी मदद से है जी हां यही वह
सिर्फ एक पौधा जिसकी मदद से पत्रों को काटा गया एक्सपर्ट का मानना है कि परमिट की कंस्ट्रक्शन पर इस्तेमाल होने वाली चीनी सिर्फ कॉपर से ही नहीं बनी थी क्योंकि उनको भी यह बात मालूम थी कि कॉपर नरम होता है और पत्थर नहीं काट सकता इसलिए इसमें एक केमिकल और सैनिक भी शामिल किया गया था कॉपर और और सैनिक से बनाई जाने वाली यह चीनी की लकड़ियों के हथौड़ों से पत्थरों पर ठोंकी जाती थी और कई घंटों की मेहनत के बाद बड़े-बड़े पत्थर शेप में लाए जाते थे चैलेंज नंबर फोर अब जो कि यह खास
किस्म का पत्थर जिसको आज लाइमस्टोन कहा जाता है उसकी कटाई पैरामिड कंस्ट्रक्शन साइड पिज्जा से ढाई सौ किलोमीटर दूर दौरा के शहर में हो रही थी अब मसला था यह पत्थर की जातक Transport करने का हर एक पत्थर 50 टन यानी 50,000 के जी के बराबर था जो तकरीबन तीन पैसेंजर बस के वजन के बराबर बनता है और ऐसे कई लाख पत्थर सिर्फ एक पैरामीटर धमाल होना थे इतना ज्यादा वजन Transport करने के लिए ना ही उस दौर में कोई जानवर काम आ सकता था और ना ही उनके पास वृक्ष मौजूद थे अतह के अगर
आजकल के जगदीश तौर में भी यह काम करना पड़े तो ट्रांसपोर्ट कंपनी इसको अच्छा खासा टॉप फाइव आएगा हैरतअंगेज तौर पर यह काम भरकर और कश्तियों की मदद से किया गया जी हां टोरा और वीजा के दरमियान मौजूद रिवर का फायदा उठाया गया और बड़ी-बड़ी कश्तियों में पत्थर लादकर पैर वेबसाइट पर पहुंचाए गए एक्सपर्ट्स का मानना है कि यह काम इतना आसान नहीं था शिप्स में इतने बड़े पत्थर की लोडिंग और अनलोडिंग में कम से कम भी 500 मजदूरों की आर्मी एक ही वक्त में लगाई गई होगी चैलेंज नंबर पांच जो एक्सपर्ट्स की टीम स्पिरिट
की कंस्ट्रक्शन पर रिसर्च कर रही थी उनको अब अपने कई सवालों के जवाब मिल चुके थे लेकिन एक बात उनको हर वक्त सता रही थी कि लाइमस्टोन कट भी गए ट्रांसपोर्ट भी हो गए और कंस्ट्रक्शन के दौरान एक आपके ऊपर एक लगना भी शुरू हो गए मसला यह था कि पत्थर इतनी ऊंचाई तक आखिर पहुंचाए कैसे गए होंगे कई एक्सपर्ट्स का मानना है कि परमिट की कंस्ट्रक्शन से पहले ही यह प्लैन कर लिया गया था या तो यह स्पाइरल ट्रैक के जरिए ऊपर गए होंगे यहां फिर जिक जेक तरीके से लेकिन यह बात तो तय
है कि 50,000 के जी के पत्थर ऊपर मजदूरों की आर्मी की मदद से ही खींच कर गए होंगे चैलेंज नंबर सिक्स बात सिर्फ लाखों मजदूरों छैनी हथौड़े से लाइमस्टोन काटने और इतने बड़े पत्थरों को Transport करने की ही नहीं थी इस पिरामिड के अंदर कंपार्टमेंट्स उनके अंदर जाने का रास्ता और कई छोटी-छोटी सुरंगे भी बनाई गई थी बाकी सब चीजें तो ठीक हैं लेकिन एक चीज एक्सपर्ट्स को हैरान कर गई और वह यह थी कि अंदर के कंपार्टमेंट में जो पत्थर इस्तेमाल हुआ था वह लाइम स्टोन नहीं बल्कि ग्रेनाइट था जी हां फिर नाइट एक
ऐसा पत्थर है जो डायमंड के बाद दुनिया का सबसे सख्त तरीन स्टोन माना जाता है या गूगल के मोटोरोला दौर में भी ग्रेनाइट बड़े-बड़े ग्राइंडर की मदद के सिवा काटा ही नहीं जा सकता दुनिया भर से कई आर्केलॉजिकल एक्सपर्ट्स को परमिट का विजिट भी करवाया गया लेकिन किसी को भी इस बात का सुराख नहीं मिला कि 4500 साल पहले इजिप्शियंस ने ग्रेनाइट जैसे ठोस पत्थर को इतनी सफाई से कैसे काटा था आखिरकार कई सालों के बाद एक्सपर्ट्स ने इस मिस्त्री को भी सॉल्व कर दिया टिप्स नए कर नाइट को इतनी सफाई से एक ऐसे आरे
से काटा था जिसके दांत ही नहीं थे जी हां बगैर दांत वाले इशारे के दोनों साइडों पर वजन डालकर इसको ग्रेनाइट पर चलाया जाता था और बीच में बजरी डाली जाती थी एक्सपर्ट्स का मानना है कि इस तरीके से इतने बड़े पत्थर को काटने में चार महीनों का वक्त लग जाता था कि आखिर कहां पर रेमिडी बनाने का मकसद क्या था इन पेरेंट्स को बनाने में कितने मजदूर एक ही वक्त में काम करते थे और रोबोटिक कैमरा ने च पर वैट के अंदर पत्थर के सैलाब में सोना किया तो उसके अंदर वह कौन सा मंजर
देखा गया फिर पिछले चार हजार 500 सालों से किसी ने भी नहीं देखा था यह सब और इससे भी ज्यादा आप जान सकेंगे इस वीडियो के पार्ट-2 में आप लोगों के प्यार भरे कमेंट और लाइक का बेहद शुक्रिया मिलते हैं वीडियो के अगले शानदार पाठ में