[संगीत] स्टडी आईक्यू आईएस अब तैयारी हुई अफोर्डेबल वेलकम टू स्टडी आईक्यू मेरा नाम है आदेश सिंह दोस्तों आज हम वर्ल्ड हिस्ट्री पर मैराथन वीडियो शुरू कर रहे हैं इस वीडियो में रेनेसांस और रिफॉर्मेशन से लेकर फ्रेंच रेवोल्यूशन अमेरिकन रेवोल्यूशन इंडस्ट्रियल रेवोल्यूशन और इंपीरियल ज्म और कॉलोनियलिज्म जैसे सभी इंपॉर्टेंट टॉपिक्स को कवर किया जाएगा साथ ही वर्ल्ड वॉर्स और उनसे रिलेटेड टॉपिक्स जैसे कि ग्रेट इकोनॉमिक डिप्रेशन राइज ऑफ नार्सि जम एंड फैश जम कोल्ड वॉर को भी डिटेल में समझेंगे पोस्ट वर्ल्ड वॉर के टॉपिक्स यानी मिडिल ईस्ट क्राइसिस यूरोपियन यूनियन नम यूएनओ पर भी चर्चा इस
वीडियो में करेंगे इस मैराथन वीडियो के जरिए आप वर्ल्ड हिस्ट्री के कंप्लीट यूपीएससी जीएस सिलेबस को प्रिपेयर कर सकते हैं तो आइए बिना देर किए शुरू करते हैं वर्ल्ड हिस्ट्री के इस रोमांचक सफर को इंट्रोडक्शन टू मॉडर्न वर्ल्ड हिस्ट्री हिस्ट्री इज हु वी आर एंड व्हाई वी आर द वे वी आर दोस्तों डेविड मकाला के इस वर्ल्ड फेमस कोट से आप इस बात का अंदाजा लगा सकते हैं कि इतिहास पढ़ना मानव के लिए क्यों इतना जरूरी है हम कौन हैं और ऐसे क्यों हैं ह्यूमन एक्जिस्टेंस के इन बेसिक सवालों के जवाब यदि कोई दे सकता
है तो वह वर्तमान इतिहास ही है लेकिन मानव जाति के लंबे चौड़े इतिहास को बेहतर तरीके से समझने के लिए स्कॉलर्स द्वारा इस पूरी हिस्ट्री को अलग-अलग टाइम पीरियड्स में बांट दिया गया है लेकिन टाइम पीरियड्स का यह डिवीजन भी यूं ही रैंडम नहीं हुआ है बल्कि ह्यूमन हिस्ट्री को इस तरह से डिवाइड किया गया है कि हर पीरियड की शुरुआत किसी एक ऐसे मेजर इवेंट के साथ होती है जो अपने पहले वाले के कंपैरिजन में एक रेवोल्यूशन चेंज लेकर आता है और यह फ्यूचर को हमेशा हमेशा के लिए बदल कर रख देता है मॉडर्न
हिस्ट्री यानी आधुनिक इतिहास की शुरुआत भी कुछ ऐसे ही हुई मॉडर्न एरा के जन्म में वाइड रेंजिन क्च पॉलिटिकल और इकोनॉमिक चेंजेज ने अहम भूमिका निभाई है लेकिन यह सारे बदलाव केवल एक ही दिन में नहीं हुए बल्कि इसको मुमकिन करने में मानव जाति की कई स सालों की मेहनत और इनोवेशन लग गई यह मुख्य तौर से प्री मॉडर्न एरा में हुआ जो कि 15 से 18 सेंचुरी तक चला अब यहां सवाल यह है कि आखिर मॉडर्न एरा का उदय कैसे हुआ प्री मॉडर्न एजेस या मिडिल एजेस में कौन से ऐसे डेवलपमेंट्स हुए जिन्होंने इस
ट्रांसफॉर्मेशन को जन्म दिया मॉडर्न एरा से रूबरू होने के लिए हमें मिडिल एजेस में हुए डेवलपमेंट्स को समझना होगा आज के वीडियो में हम आपको मॉडर्न वर्ल्ड के इन्हीं पहलुओं से रूबरू कराएंगे तो आइए इस डिस्कशन को शुरू करते हैं बेसिक डिवीजन ऑफ वर्ल्ड हिस्ट्री दोस्तों आइए सबसे पहले हम इतिहास के एक बेसिक डिवीजन को समझते हैं यंस के लिए हमारी दुनिया के इतिहास को तीन कन्वेंशनल पीरियड्स में डिवाइड किया गया है पहला है एंट दूसरा मीडिएवल और तीसरा मॉडर्न ए एंट एरा मानव इतिहास का सदियों पुराना वह टाइम स्पैन है जब फर्स्ट नोन ह्यूमन
सेटलमेंट ने जन्म लेना शुरू ही किया था इस पीरियड की शुरुआत लगभग 5000 से 3000 बीसी के आसपास हुई और यह 650 एडी तक कंटिन्यूड रहा इस दौरान मुख्य तौर पर ब्रॉन्ज और आयन का यूज करके ह्यूमन एस्टेब्लिशमेंट्स को सेटल किया गया जिन्होंने इवेंचर के एस्टेब्लिशमेंट्स को एड किया उदाहरण के तौर पर इस पीरियड में ग्रीक किंगडम का उदय हुआ नए-नए ट्रेड रूट्स की खोज की गई इसी दौरान भारत में इंडस वैली सिविलाइजेशन का राइज और डिक्लाइन भी देखने को मिला यही नहीं दुनिया के बहुत से रिलीजस जैसे हिंदुइज्म बुद्धिज्म जैनिज्म क्रिश्चियनिटी जु इजम इत्यादि
की नीव भी इसी दौरान पड़ी जबकि इस दौर का अंत यूरोप के रोमन एंपायर चाइना के हान एंपायर और भारतवर्ष के गुप्ता एंपायर के डिक्लाइन के साथ लगभग 650 एडी के आसपास हुआ इसके बाद शुरुआत होती है मिडिल एजेस की तो चलिए अब हम संक्षिप्त में उसको भी समझ लेते हैं मिडिवल हिस्ट्री लाइंग फाउंडेशन ऑफ मॉडर्न वर्ल्ड मिडिवल हिस्ट्री को हम अक्सर पोस्ट क्लासिकल या मिडिल एजेस के नाम से भी जानते हैं यह लगभग फिफ्थ सेंचुरी से शुरू होकर 14 से 15th सेंचुरी तक चला यानी यह हिस्टोरिक डिवीजन करीब 1000 साल लंबा रहा लेकिन मिडिवल
हिस्ट्री ने एशियंट और मॉडर्न वर्ल्ड के बीच के एक ब्रिज की तरह काम किया जो शुरू तो अंधकार से हुआ था लेकिन इसी ने यूरोप के साथ-साथ समूचे विश्व को पुनर्जागरण करने की राह भी बनाई अब आप पूछेंगे कि वह कैसे तो चलिए अब हम इसे थोड़ा विस्तार से समझ लेते हैं दोस्तों फिफ्थ से सिक्स्थ सेंचुरी में हुए वेस्टर्न रोमन एंपायर के पतन के बाद से लेकर लगभग 13 से 14 सेंचुरी तक यूरोप का समाज बहुत सी कुरीतियों धर्म पर आधारित कट्टर आडंबर और फ्यूड इजम की राजनैतिक उथल-पुथल के मकड़ जाल में उलझा हुआ था
जिसके चलते इस दौरान विज्ञान सांस्कृतिक और व्यक्तिगत स्वतंत्रता यानी इंडिविजुअल इंडिपेंडेंस का ऐसा डिप्र एशन हुआ कि इसे इतिहास के पन्नों में डार्क एजेस का नाम दे दिया गया लेकिन जिस तरह से हर रात के बाद सुबह का उजाला कुछ धीरे-धीरे फैलना शुरू करता है ठीक उसी तरह से 12थ और 14 सेंचुरी आते-आते इस अंधकार युग के अंत की एक धीमी शुरुआत हो चुकी थी क्योंकि इस दौरान अभी तक आइसोलेटेड रहे यूरोपियन कंट्रीज के आउटर वर्ल्ड और खास तौर पर अरब देशों से व्यापारिक संबंध बढ़ने लगे जिससे एक ओर यूरोप में आर्थिक समृद्धि बढ़ने लगी
तो वहीं दूसरी ओर सोसाइटी की सोच का दायरा भी बढ़ा और आगे जाकर इसी इकोनॉमिक प्रोस्पेरिटी और ब्रॉड निंग विजन ने यूरोप में फ्यूड इज्म के पुराने ने तंत्र को तोड़कर ह्यूम निज्म की सोच को जन्म दिया जिसका एक मात्र धय था ह्यूमन डेवलपमेंट एंड वेल बीइंग क्योंकि अब तक जो यूरोप कुएं का मेंढक बना हुआ था वह अब अपने कुएं से बाहर झांकने लगा था यूरोप के इसी इंटेलेक्चुअल अवेक निंग को रेनेसांस या पुनर्जागरण भी कहते हैं इसके बारे में हम आगे अपने वीडियोस में और भी विस्तार से बात करेंगे वहीं अगर हम आगे
बढ़ें तो हम पाएंगे कि इसी दौरान यूरोप में इंटेलेक्चुअल और आर्टिस्टिक मूवमेंट्स ने लर्न की एक नई वेव क्रिएट कर दी लर्निंग की इस नई वेव को स्कॉलर्स स्कॉलास्टिसिजम कहते हैं यहां हम आपकी जानकारी के लिए बता दें कि स्कॉलास्टिसिजम एक ऐसी शिक्षण पद्धति है जिसमें नए कांसेप्ट और थरी पर वर्बल डिबेट्स और तरजीह यानी प्रायोरिटी दी जाती है यहां किसी भी चीज को एब्सलूट ट्रुथ नहीं माना जाता बल्कि हर कांसेप्ट और हर सो कॉल्ड यूनिवर्सल ट्रुथ को रीजनिंग और इंटेलेक्ट के चश्मे लगाकर अलग-अलग नजरिए से देखने का प्रयास किया जाता है नतीजा साफ था
अब चर्च द्वारा कही जा रही बातों और आम जनता में प्रसार किए जा रहे उपदेशों को भी रीजनिंग और ह्यूमन इंटेलेक्ट की कसौटी पर परखा जाने लगा और यहीं से चर्च और धार्मिक कट्टर पंथ के साथ साथ फ्यूड इज्म का ह्यूम निज्म से टकराव शुरू हो गया जैसे-जैसे नए आइडियाज और साइंटिफिक टेंपरामेंट का प्रसार हो रहा था लोगों के बीच नॉलेज की भूख बढ़ती जा रही थी साथ ही यूरोप में प्रोड्यूस हो रही नई-नई चीजों के लिए नए मार्केट्स की तलाश भी जोरों पर थी वहीं 14 से 16th सेंचुरी के बीच का यूरोप उथल-पुथल से
भरा हुआ था जहां 1337 से 1453 तक इंग्लैंड और फ्रांस के बीच 100 इयर्स वॉर लड़ी गई तो वहीं दूसरी ओर 1348 में ब्लैक डेथ नामक प्लेग फैल गया जिसमें लाखों लोगों की मौत हुई वहीं इसी सबके बीच 1453 में जब कांस्टेंटिनॉपल ऑटोमन टर्क एंपायर के हाथों में चला गया तो इसने मॉडर्न एरा के जन्म में एक ट्रिगर का काम किया क्योंकि अब इन बदली परिस्थितियों में वेस्टर्न यूरोपिय को अपने ट्रेड के लिए नए सी ट्रेड रूट्स को डिस्कवर करने की जरूरत आन पड़ी नतीजा यह हुआ कि 15th सेंचुरी खत्म होते-होते यूरोप के अलग-अलग देशों
से कई सी एक्सपेडिन शुरू किए गए जिसके चलते 1492 में कोलंबस ने जो सफर इंडिया के लिए शुरू किया था वो उन्हें गलती से न्यूली फाउंड लैंड अमेरिका ले गया तो वहीं दूसरी ओर 1498 में में वास्को द गामा अफ्रीका का चक्कर लगाकर इंडिया पहुंच गए जिसके बाद दुनिया भर में यूरोपियन कॉक्वेस्ट इंपीरियल ज्म और कॉलोनियलिज्म का ऐसा दौर शुरू हुआ जिसने पूरी दुनिया को बदल कर रख दिया और लगभग यहीं से मॉडर्न वर्ल्ड की शुरुआत हो गई हालांकि इतिहास के पन्नों को तारीखों से बांटना आसान नहीं है इसीलिए जैसे दिन और रात के बीच
य अंतर बता पाना कि किस समय से रात खत्म हुई और किस समय पर दिन शुरू थोड़ा मुश्किल हो जाता है ठीक उसी तरह मिडिवल एजेस कहां खत्म हुई और मॉडर्न वर्ल्ड कहां शुरू यह अंतर ठीक-ठीक बता पाना थोड़ा मुश्किल है कुछ स्कॉलर्स कहते हैं कि कांस्टेंटिनॉपल के फॉल को ही मॉडर्न वर्ल्ड की शुरुआत माना जाना चाहिए तो कुछ का मानना है कि यूरोप में अंधकार युग की समाप्ति और रेनेसांस की शुरुआत को ही मॉडर्न वर्ल्ड का पहला पड़ाव माना जाना चाहिए जबकि कुछ इससे अलग अमेरिका की खोज या यूरोप में रेनेसांस के फल स्वरूप
आए इंडस्ट्रियल्स मानते हैं पर अगर हम ह्यूमन हिस्ट्री की तुलना एक नदी के प्रवाह से करें तो हम पाएंगे कि इसका डिवीजन चाहे जैसे कर लिया जाए लेकिन फिर भी एक अटल सत्य यह है कि यह हमेशा एक ही दिशा में आगे बढ़ती है तो चलिए अब हम भी इस विवाद में पढ़ने के बजाय कुछ ऐसे कांसेप्ट के बारे में विस्तार से चर्चा करते हैं जिन्होंने आगे आने वाले मॉडर्न वर्ल्ड की नीव रखने में अहम भूमिका निभाई रेनेसांस दोस्तों फिथ सेंचुरी सीई में वेस्टर्न रोमन एंपायर के फॉल के बाद यहां के ग्रीक और रोमन लर्निंग
सेंटर्स और स्कॉलर्स बिजें न एंपायर का पार्ट हो चुके थे जिसके बाद बिजें आइन एंपायर जिसे ईस्टर्न रोमन एंपायर के नाम से भी जाना जाता है उसने इन क्लासिकल एंटीक्विटी कल्चर्सल तक अपने संरक्षण में प्रिजर्व रखा जबकि इसके उलट वेस्टर्न यूरोप किसी भी तरह के साइंटिफिक एडवांसमेंट के आभाव में कुछ सदियों के लिए डार्क एजेस में गुम हो गया वहीं लगभग 14 सेंचुरी से लेकर 17 सेंचुरी तक यूरोप में ऐसा कल्चरल चेंज फैला जिसे कालांतर में हिस्टोरियंस रेनेसांस कहकर बुलाने लगे यहां हम आपकी जानकारी के लिए बता दें कि रेनेसांस का लिटरल मीनिंग है रीबर्थ
और इसी ने यूरोप को डार्क एजेस के अंधकार से निकालने का काम किया अब आप पूछेंगे कि आखिर रेनेसांस में ऐसा भी क्या हुआ जिसने ना केवल यूरोप को पुनर जागृत कर दिया बल्कि इसने मानव जाति के इतिहास को भी हमेशा के लिए बदल कर रख दिया तो चलिए हम इस कहानी को भी शुरू से शुरू करते हैं दोस्तों 1095 से लेकर 1295 तक क्रिश्चियनिटी और टर्किश इस्लामिक फॉलोअर्स के बीच एक धर्म युद्ध छेड़ा हुआ था जहां दोनों ओर से होली प्लेस जेरूसलम को कैप्चर करने के लिए प्रयास जारी थे हिस्टोरियंस क्रिश्चियनिटी और इस्लाम के
फॉलोअर्स के बीच छड़े इस धर्म युद्ध को ही क्रुसेड्स कहते हैं यह वो पहला मौका था जब डार्क एज में फंसी यूरोपियन सोसाइटी का इतने मास स्केल पर किसी अन्य सभ्यता से संपर्क हो रहा था जिससे नए-नए विचारों का आदान प्रदान भी होने लगा था जिसमें ना केवल रिलीजस बल्कि साइंटिफिक और फिलोसॉफिकल नॉलेज का भी आदान प्रदान हुआ उदाहरण के लिए इन क्रुसेड्स की वजह से यूरोपीयंस का इंट्रोडक्शन मिडिल ईस्टर्न सिविलाइजेशन की मैथमेटिशियंस और मैथमेटिकल नॉलेज से हुआ जो उस समय कहीं ज्यादा एडवांस्ड और टेक्निकल थी ऐसे में इन क्रुसेड्स को भी यूरोपियन रेनेसांस का
एक मीडियम माना जाता है जो शुरू तो रिलीजस एस्पेक्ट से हुई थी लेकिन इन क्रुसेड्स की यूरोपियन सोसाइटी पर मल्टी डायमेंशन इफेक्ट्स देखने को मिले वहीं जब 1453 में ऑटोमन टर्क साम्राज्य ने कांस्टेंटिनॉपल को कैप्चर किया तो बिजें न ग्रीक स्कॉलर्स और आर्टिस्ट को यहां से रोम माइग्रेट होना पड़ा क्योंकि एक बार फिर दो अलग-अलग संस्कृतियों का टकराव अपने चरम पर पहुंच चुका था और ऐसी कंडीशंस में इन स्कॉलर्स और आर्टिस्ट को इटली से बेहतर शरण कहीं और नहीं मिल सकती थी ऐसा इसलिए भी था क्योंकि इस समय तक वर्ल्ड बिजनेस में अपनी सेंट्रल पोजीशन
की वजह से इटली के कुछ पोर्ट सिटीज जैसे वेनिस फ्लोरेंस इत्यादि एक सिटी स्टेट की तरह दुनिया के सबसे समृद्ध शहरों में से एक बन चुके थे यह शहर बाकी यूरोप की तरह ना तो किसी इंटरस्टेट वॉर में उलझे हुए थे और ना ही रोमन कैथोलिक चर्च की डोमिनेंस में ऐसे में यहां के रिच मर्चेंट्स ने इन ग्रीक रोमन स्कॉलर्स को पेट्रोनेट देने का काम किया ऐसा इसलिए भी था क्योंकि इस समय तक बा बाकी यूरोप से अलग थलग हो चुका इटली अपनी रोमन ग्रीक सिविलाइजेशन की जड़ों में अपना स्वर्णिम इतिहास तलाश करने की कोशिश
कर रहा था जिस पर वह गर्व कर सके ऐसे में इन इटालियन सिटी स्टेट के रिच मर्चेंट से मिले इसी पेटनेट ने आठ पेंटिंग आर्किटेक्चर और लिटरेचर जैसे फील्ड्स में ऐसा कमाल दिखाया कि इसने आगे जाकर समूचे यूरोप को जागृत करने का काम कर दिया ऐसे में इटली के रिच मर्चेंट्स ने और बेहतर आर्ट आर्किटेक्चर साइ िक इनोवेशंस और लिटरेचर को प्रोड्यूस करने के लिए पानी की तरह पैसा बहाया जिसके चलते देखते ही देखते इटली ह्यूमन एंडेवर और एफर्ट्स का जीता जागता उदाहरण बन गया हालांकि यह बात सही है कि इटली से शुरू हुआ यह
रेनेसांस पहले ग्रीक और रोमन स्क्रिप्चर और लिटरेचर से ही इंस्पिरेशन लेता था लेकिन धीरे-धीरे इसमें नए विचारों का भी उत्थान शुरू हुआ जिसके चलते 14 15 सेंचुरी आते-आते इस पूरे रेनेसांस की नीव कही जाने वाले ह्यूम निज्म की फिलॉसफी भी फोरफ्रंट पर आ चुकी थी यहां हम आपकी जानकारी के लिए बता दें कि ह्यूम निज्म में लेटर लाइफ डिविडाग लाइफ को तरजीह यानी प्रायोरिटी दी जाती है जिसमें धर्म के बजाय कर्म को इंपॉर्टेंस दी जाने लगी और ह्यूमन को उसके यूनिवर्स का सेंटर मानते हुए एजुकेशन क्लासिकल आर्ट्स लिटरेचर और साइंस जैसे डावर्स फील्ड्स में ह्यूमन
अचीवमेंट्स को अप्रिशिएट किया जाने लगा ऐसे में थियोलॉजी और सुपरस्टिशन की जगह रेशनल थिंकिंग ने ले ली हेवन और हेल की एनालॉजी के बजाय अब ह्यूमन सोरो जॉय और लाइफ को जीवन का आधार माना जाने लगा यही कारण है कि इस दौर के विख्यात पेंटर्स जैसे ड विंची मिकेल जलो और रफाल ने भी चर्चे और थियोलॉजी की पेंटिंग्स के बजाय ना केवल ह्यूमन सब्जेक्ट्स को पेंट किया बल्कि जीसस और मदर मेरी को भी ह्यूमन फॉर्म में ही डिपिक्ट किया वहीं लियोनार्डो रविच के आर्किटेक्चर में भी ह्यूम निज्म की छाप देखने को मिली यही नहीं यह
रेनेसांस ही था जिसने लिटरेचर को एंसेट लैटिन जो उस समय एलिटस या लैंग्वेज ऑफ द चर्च मानी जाती थी उसके बजाय लोकल यूरोपियन लैंग्वेजेस में डिवेलप करने का काम किया उदाहरण के लिए 13 सेंचुरी में डांटे ने अपनी द डिवाइन कॉमेडी इटालियन में लिखी जिसके बाद में कि एवली ने द प्रिंस पेट्रा ने लव सोनेट भी लोकल वर्नाकुलर में ही लिखे लेकिन इसमें असल क्रांति तब आई जब मिड 15 सेंचुरी में जॉन ग्रूटन बर्ग ने प्रिंटिंग प्रेस को ईजाद कर लिया जिससे अब जनसाधारण के बीच भी एजुकेशन और इस न्यू थिंकिंग का प्रसार करना आसान
हो गया वहीं दूसरी ओर आर्ट एंड कल्चर से अलग इस दौरान क्रिटिकल थिंकिंग और साइंटिफिक टेंपरामेंट को भी बढ़ावा दिया गया कहा जाता है कि 13th सेंचुरी में रॉजर बेकन ने ही मॉडर्न साइंस और खास तौर पर एक्सपेरिमेंटल मेथड्स की नीव रखी थी जिसके बाद गैलीलियो निकोलस कोपरनिकस जॉन केपलर जैसे साइंस एंथू सियास्ट ने ऐसी ग ग्राउंड ब्रेकिंग साइंटिफिक स्टडीज दुनिया के सामने रखी जिन्होंने चर्च की एज ओल्ड मान्यताओं को भी झकझोर कर रख दिया इस तरह जो ह्यूम निज्म की वेव इटली से शुरू हुई थी वह धीरे-धीरे पूरे यूरोप में फैल गई जिसके चलते
आगे जाकर पूरे यूरोप में एक तरह का इंटर कंपटीशन छड़ गया जहां एक दूसरे से ज्यादा इकोनॉमिकली प्रॉस्पर होने के साथ-साथ कंपटीशन यह भी था कि कौन दूसरों को पछाड़कर एक बेहतर आर्ट लिटरेचर या साइंटिफिक एडवांसमेंट की नई इबारत लिखता है मॉडर्न वर्ल्ड में आने वाला इनलाइटनमेंट और इंडस्ट्रियल रेवोल्यूशन का फेज इसी रेनेसांस का ही एक आफ्टर इफेक्ट था जिसने आगे जाकर सारी दुनिया बदल दी लेकिन इस रेनेसांस के बीच एक ऑफशूट रिलीजस अवेक निंग और चेंज साथ-साथ ही चल रहा था जिसने यूरोपियन सोसाइटी और यहां के रिलीजन को रिफॉर्म करने में एक अहम भूमिका
निभाई और यही कारण है कि इस मूवमेंट को भी कहीं ना कहीं रेनेसांस के पूरक के रूप में देखा जाता है जिसने यूरोपियन सोसाइटी का केंद्र बिंदु ऑर्थोडॉक्स रिलीजन से हटाकर ह्यूमन सेंट्रिक बना दिया तो चलिए अब हम इस मूवमेंट के बारे में भी जान लेते हैं रिफॉर्मेशन दोस्तों जैसा हमने देखा कि यूं तो 13th सेंचुरी से भी चर्च और रिलीजियस कट्टर पंथ के विरोध में स्वर बुलंद होने लगे थे जिसका एक बड़ा कारण यह था कि धीरे-धीरे यह बात जनता के दिमाग में घर कर चुकी थी कि एक और यूरोपियन रोमन कैथोलिक चर्चे आम
जनता से वर्ल्डली सफरिंग्स इंडोर करने और पूरी तरह गॉडल बिलीफ में समर्पित रहने की बात करते हैं लेकिन दूसरी ओर चर्च खुद पॉलिटिकल पावर स्ट्रगल और टैक्सेस के थ्रू सोसाइटी में डोमिनेंट पोजीशन में बने रहने की कोशिश करते हैं यही नहीं 14 सेंचुरी के मिड में फैले ब्लैक डेथ नामक प्लेग ने यूरोप की जनता का चर्च और ऑर्थोडॉक्स रिलीजन से मोह भंग कर दिया था यहां हम आपकी जानकारी के लिए बता दें कि ऐसा कहा जाता है कि लगभग 1346 से 1353 तक फैले इस प्लेग में यूरोप की लगभग आ आधी आबादी मौत की नींद
सो गई थी जिसके बाद लोगों ने पहली बार चर्च की फिलॉसफी और अपने रिलीजस बिलीव्स पर सवाल उठाने शुरू कर दिए ऐसे में जनता का यह विरोध पुनर्जागरण या रेनेसांस की लहर के साथ और तीव्र होता चला गया रेनेसांस के बीच सेकुलरिज्म और ह्यूम निज्म की आंधी में हालात कुछ यूं बदले कि 1500 आते-आते समाज में चर्च या रोमन कैथोलिक रिलीजन की वह पकड़ नहीं रही जैसी एक समय में हुआ करती थी वहीं सेकुलर आर्ट और प्रिंटिंग प्रेस की शुरुआत ने सेकुलर आइडियाज को तेजी से समूचे यूरोप में फैला दिया जिससे चर्चस के लिए अपनी
अथॉरिटी बनाए रखना और भी मुश्किल हो रहा था यही नहीं इस बीच ही कुछ पावरफुल मोनार्कस और रूलरसोंग्स प्रीस्ट और दूसरे उच्च पदाधिकारियों की विलासिता और अन एक्सेप्टेबल बिहेवियर जनता के सामने आ गया उदाहरण के लिए रेनेसांस के बाद यूरोप में बनाए जा रहे आर्टीफैक्ट्स और दूसरे लग्जरी आइटम्स की खरीद फरोख्त में चर्च सीधे शामिल था और चर्च के रिप्रेजेंटेटिव्स द्वारा किए जा रहे वेल्थ एक्यूमेन और लग्जरियस लाइफस्टाइल से बड़े से बड़े एंपरर्स भी पीछे छूट गए थे यही नहीं 15 सेंचुरी के पोप एलेग्जेंडर द सि ने खुद यह बात मानी कि वह बहुत सी
मिस्ट्रेसेस को अपने साथ रखते थे जिनसे उनके बहुत से बच्चे भी थे वहीं लोअर क्लर्जी भी रिलीजस इंस्टीट्यूशंस और टीचिंग्स को प्रोपेगेटर के बजाय मैरिज इलिसिट अफेयर्स और गैंबलिंग इत्यादि में लिप्त हो गए थे इस सब के चलते लेट 1300 और अर्ली 1400 में इंग्लैंड के जॉन वाइक्लिफ और बोहीमिया के यान ह्यूस ऑफ बोहीमिया ने आम जनता के बीच चर्च रिफॉर्म्स की वकालत शुरू की उनका मान मानना था कि चर्च अब केवल आम जनता से धन की उगाही करने का जरिया बनकर रह गई है साथ ही उन्होंने चर्च द्वारा लेटर ऑफ इंडल जेंसस को बेचे
जाने का भी पुरजोर विरोध किया क्योंकि उनका मत था कि इस तरह से किसी इंस्ट्रूमेंट का जिक्र बाइबल में देखने को नहीं मिलता यहां हम आपकी जानकारी के लिए बता दें कि चर्च की क्लर्जी द्वारा लेटर ऑफ इंडल जेंसस कहे जाने वाले एक तरह का डॉक्यूमेंट बेचा जाता था जिसके बारे में यह कहा जाता था कि जो भी इन लेटर ऑफ इंडल जेंसस को खरीदेगा वह अपने सिंस के बर्डन से मुक्त हो जाएगा ऐसे में इन्होंने पोप और दूसरे चर्च लीडर्स के बजाय बाइबल को लाइट ऑफ द वर्ल्ड माने जाने को लेकर आंदोलन शुरू किया
वहीं इस आंदोलन को 1500 में दूसरे क्रिश्चियन ह्यूमरिस्ट जैसे डेसिडे यस रस्म और थॉमस मोर का भी समर्थन मिला वहीं दूसरी ओर प्रिंटिंग प्रेस के आ जाने से अब रोमन लैंग्वेज में लिखी गई बाइबल का लोकल लैंग्वेज में ट्रा ट्रांसलेशन मास स्केल पर शुरू हो चुका था जिसके चलते अब आम जनता रिलीजस टीचिंग्स के लिए प्रीस्ट या क्लर्जी पर निर्भर नहीं थी बल्कि अब वह खुद बाइबल पढ़ और समझ सकती थी ऐसे में धीरे-धीरे रिफॉर्मिंग मेंट का स्टेज तैयार हो चुका था लेकिन इसका मेन कैरेक्टर अभी सेंट्रल स्टेज पर आना बाकी था दोस्तों इस सारे
सोशल पॉलिटिकल और इकोनॉमिक फोर्सेस के बीच जर्मनी जो उस समय बहुत से कंपटिंग स्टेट्स में डिवाइडेड था वहां रिलीजस रिफॉर्म मूवमेंट के रूप में एक नई चिंगारी ने जन्म लिया जो धीरे-धीरे समूचे यूरोप में फैल गया उस समय जर्मनी के विघटित होने की वजह से यहां पर पोप या एंपरर के लिए एक कलेक्टिव सेंट्रल अथॉरिटी इंपोज करना मुश्किल था ऐसे में 1517 में उदय हुआ जर्मनी के एक मंक मार्टिन लूथर का जिन्होंने कैथोलिक चर्च और पोप की मोनोपोली के अगेंस्ट एक कैंपेन स्टार्ट कर दिया मार्टिन लूथर का मत था कि गॉड में फेथ रखने वाले
सब बराबर हैं इसीलिए एक पर्सन को गॉड से कांट्रैक्ट एस्टेब्लिश करने या बाइबल को इंटरप्रेट करने के लिए किसी प्रीस्ट की जरूरत नहीं है साथ ही उन्होंने अपने फॉलोअर्स को केवल गॉड और बाइबल पर विश्वास करने और उसी को फॉलो करने का उपदेश दिया उनके अनुसार किसी को भी साल्वेशन तभी प्राप्त हो सकता है जब वह केवल गॉड और उनके फॉरगिवन के गिफ्ट पर अपना फेथ रखें मार्टिन लूथर के इसी कैंपेन ने उस दौरान रोमन कैथोलिक रिलीजन के आडंबर से भरे पंथ पर गहरी चोट की इसी तरह स्विट्जरलैंड में लूथर के आइडियाज को उल्रिक जविंगली
और ज कैल्विन ने पॉपुलर इज किया और इसके चलते जल्द ही जर्मनी और स्विट्जरलैंड के चर्चे ने पोप और कैथोलिक चर्च से अपना संबंध तोड़ लिया शुरू में बहुत से रूलर जैसे होली रोमन एंपरर चार्ल्स द 5थ और खासतौर पर पोप लेड रोमन कैथोलिक चर्चे जैसे पोप लियो द 10थ के अंडर मार्टिन लूथर का पुरजोर विरोध हुआ वहीं उनकी आवाज को दबाने की हर संभव कोशिश की गई लेकिन प्रिंटिंग प्रेस वर्ड ऑफ माउथ पब्लिसिटी के बीच मर्चेंट क्लास और फार्मर्स के सपोर्ट से यह कैंपेन तेजी से पूरे यूरोप में फैल गया यही नहीं कुछ रूलरसोंग्स
का समर्थन किया नतीजा यह हुआ कि यूरोप की कैथोलिक चर्च ने प्रोटेस्टेंट्स को उनके तरीके से वरशिप करने की आजादी दे दी इन प्रोटेस्टेंट चर्चे में सर्मन डिलीवर करने के लिए पहले की तरह एलिटस लैटिन के बजाय लोकल लैंग्वेज का प्रयोग किया गया जिससे लोकल पब्लिक में यह और भी ज्यादा तेजी से पॉपुलर हुआ वहीं 1529 में इंग्लैंड के रूलर हेनरी द 8 ने रेफ मेे पार्लियामेंट बुलवाकर पोप से अपना संबंध तोड़ लिया आगे जाकर इंग्लैंड के किंग या क्वीन को हेड ऑफ द चर्च घोषित कर दिया गया यही नहीं कैथोलिक चर्च खुद भी इस
रिफॉर्मेशन मूवमेंट के आइडिया से खुद को नहीं बचा सके और उन्होंने खुद को अंदर से रिफॉर्म करना शुरू कर दिया जिसके बाद स्पेन और इटली में चर्चमन ने सिंपल लाइफ और सर्विस ऑफ प को एमफसा इज करना शुरू कर दिया ऐसे में हम देख सकते हैं कि रेफ मेे मूवमेंट ने स्टेट पॉलिटिक्स और इकॉनमी को चर्च और रिलीजन से डिसोसिएट करने में अहम भूमिका निभाई जिसकी वजह से आगे चलकर मॉडर्न वर्ल्ड के सेकुलर नेशन स्टेट्स का उदय होना शुरू हुआ यही नहीं रोमन कैथोलिक चर्च की एक सिंगल अथॉरिटी से मुक्त होकर इन यूरोपियन देशों में
नेशनलिटी की भी लहर चल पड़ी ऐसे में अगर हम इस कहानी के सिरों को जोड़कर देखें तो हम पाएंगे कि वह रेनेसांस में पैदा हुए नए ह्यूमन सेंट्रिक आइडियाज और रिफॉर्मेशन में डिवेलप हुए सेकुलर स्टेट के कांसेप्ट ही थे जिन्होंने आगे चलकर फ्रेंच रेवोल्यूशन को जन्म दिया ऐसे में हम देख सकते हैं कि यही वह मोड़ था जहां से मानव जाति ने मिडिवल से मॉडर्न वर्ल्ड में कदम रखा कंक्लूजन तो दोस्तों इस वीडियो में हमने आपका परिचय मॉडर्न वर्ल्ड हिस्ट्री से करवाया साथ ही हमने यह भी देखा कि इसमें रेनेसांस और रिफॉर्मेशन मूवमेंट का क्या
योगदान था इन मूवमेंट्स ने आगे चलकर फ्रेंच रेवोल्यूशन अमेरिकन रेवोल्यूशन और इंडस्ट्रियल रेवोल्यूशन जैसे वर्ल्ड इवेंट्स को इंस्पायर और प्रोपेल किया जिनके बारे में हम अपनी आगे आने वाली वीडियोस में देखेंगे अमेरिकन रेवोल्यूशन दोस्तों वर्ल्ड हिस्ट्री को दिशा देने में कुछ ही इवेंट्स अमेरिकन रेवोल्यूशन के जितना इंपॉर्टेंट है इसने ना केवल नॉर्थ अमेरिकन कॉन्टिनेंट के पहले नेशन स्टेट को जन्म दिया बल्कि इसने कई नए रेवोल्यूशन पॉलिटिकल प्रिंसिपल्स को भी जन्म दिया यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका वर्ल्ड की फर्स्ट कंट्री थी जिसने डेमोक्रेटिक रिपब्लिकन सिस्टम को अडॉप्ट किया इससे पहले वर्ल्ड में मोस्टली मोनार्किकल फॉर्म ऑफ गवर्नमेंट
ही होती थी इतना ही नहीं आने वाले समय में अमेरिकन रेवोल्यूशन की वजह से यूरोपियन पॉलिटिक्स में भी काफी बदलाव देखने को मिलते हैं फिर चाहे 1789 का फ्रेंच रेवोल्यूशन हो 1798 का ंड रिवोल्ट या फिर 1830 के लैटिन अमेरिकन रिवॉल्ट्स सभी कहीं ना कहीं अमेरिकन रेवोल्यूशन से इंस्पायर्ड थे इसका इन्फ्लुएंस 20th सेंचुरी में एशिया और अफ्रीका के डी कॉलोनाइजेशन मूवमेंट्स में भी देखा जा सकता है इस वीडियो में हम अमेरिकन रेवोल्यूशन की इनक्रेडिबल स्टोरी का डिस्कशन करेंगे हम जानेंगे क्यों और कैसे यूरोपिय अमेरिका माइग्रेट किए कैसे वहां गए यूरोपिय ने एक अलग सोसाइटी बनाई
अमेरिकन सोसा और यूरोपिय के बीच क्या-क्या डिफरेंसेस आए और कैसे यूरोपिय अपने आप को यूरोपिय नहीं बल्कि अमेरिकन आइडेंटिटी से आइडेंटिफिकेशन अमेरिकन कॉन्टिनेंट की डिस्क 1492 में स्पेनिश ट्रेवलर क्रिस्टोफर कोलंबस के द्वारा की गई थी वैसे तो कोलंबस यूरोप से इंडिया के लिए सी रूट खोजने निकले थे लेकिन वह पहुंच गए एक नए कॉन्टिनेंट पर दरअसल कोलंबस प्रेजेंट डे कैरिबियन आइलैंड्स में लैंड करते हैं उन्होंने ही इन आइलैंड्स को वेस्ट इंडीज नाम दिया क्योंकि उन्हें लगता था यह इंडिया का पार्ट है कोलंबस अपने द्वारा खोजे गए कंट्रीज को इंडिया ही समझते रहे बाद में जियोग्राफी
अम वेस्पुची ने पूरे कॉन्टिनेंट का सर्वे किया और इस न्यू वर्ल्ड को डिस्क्राइब किया अमेरिगो वेस्पुची के नाम पर ही इस नए कॉन्टिनेंट का नाम अमेरिका रखा गया यूरोप के लिए यह न्यू वर्ल्ड था क्योंकि इन नए कॉन्टिनेंट्स की जानकारी उस समय किसी भी रिटन डॉक्यूमेंट में मौजूद नहीं थी लेकिन अमेरिका में पहले से लोग रह रहे थे जिन्हें यूरोपिय ने नेटिव इंडियंस या रेड इंडियंस का नाम दिया जैसे-जैसे यूरोपियन अमेरिका में सेटल होते गए नेटिव इंडियंस को अपनी जमीन छोड़नी पड़ी अमेरिका की डिस्कवरी के बाद यूरोपियन पावर्स में यहां के रिसोर्सेस को एक्सप्लोइट करने
की होड़ सी मच गई इन्होंने आर्मीज भेजकर इंडिजन लोगों को हटाकर खुद अपने देश के लोगों को अमेरिका में सेटल करना शुरू कर दिया यूरोप के इस अंधा धुंद पर्सीक्यूशन को इंडिजन कम्युनिटीज टॉलरेट नहीं कर पाई और धीरे-धीरे उनकी पॉपुलेशन डिक्लाइन होती चली गई इस तरह 16th सेंचुरी से ही यूरोपियन पावर्स अमेरिका में लार्ज स्केल सेटलमेंट करने लगी थी स्पेन ने मेक्सिको साउथ अमेरिका में अपनी कॉलोनी एस्टेब्लिश की तो पोर्तुगीज ने ब्राजील में इंग्लैंड और फ्रांस ने प्रेजेंट डे यूएस और कनाडा में अपनी कॉलोनी एस्टेब्लिश की कॉलोनी एस्टेब्लिश करने के इस प्रोसेस में यह यूरोपियन
पावर्स इंडिजन पॉपुलेशन के साथ अपने फैलो यूरोपियन कंपट से भी लड़ते थे ब्रिटेन ने 1732 तक न साथ अमेरिका में 13 कॉलोनी एस्टेब्लिश कर ली थी सबसे पहली कॉलोनी 1607 में वर्जिनिया स्टेट के जॉर्ज टाउन में सेटल की गई थी इसके बाद धीरे-धीरे 12 और कॉलोनी सेटल की जाती हैं इनके नाम थे न्यू हैश न्यूयॉर्क पेंसिल्वेनिया मैसाचुसेट्स रोड आइलैंड्स कनेट कट न्यू जर्सी डेलावेयर मैरीलैंड वर्जिनिया नॉर्थ कैरोलाइन साउथ कैरोलाइन और जॉर्जिया लास्ट कॉलोनी जॉर्जिया थी जो कि 1732 में सेटल की गई थी यह सारी कॉलोनी नॉर्थ अमेरिका के ईस्ट कोस्ट पर लोकेटेड थी और इन्हें
न्यू इंग्लैंड के नाम से भी जाना जाता था इन्हीं 13 कॉलोनी ने ब्रिटेन के खिलाफ रिवोल्ट किया और 1776 में अपने आप को ब्रिटेन से इंडिपेंडेंट डिक्लेयर कर दिया 1775 से 1781 के बीच कॉलोनिस्ट और ब्रिटेन के आपस में कई वॉर्स हुए जिन्हें अमेरिकन वॉर ऑफ इंडिपेंडेंस भी कहा जाता है यूरोपिय जो यूरोप छोड़कर अमेरिका में सेटल हो गए थे उन्हें कॉलोनिस्ट या सेटलर्स कहा जाता है इन वॉर्स में ब्रिटेन की हार हुई और 1783 की पेरिस ट्रीटी के तहत उसे अमेरिका को इंडिपेंडेंट डिक्लेयर करना पड़ा लेकिन यहां सवाल यह उठता है कि ऐसे कौन
से सरकमस्टेंसस आ गए थे जिनके कारण ब्रिटेन की कॉलोनी ने मदर कंट्री के खिलाफ ही रिवोल्ट किया इसको समझने के लिए हमें 177th सेंचुरी अमेरिका के पॉलिटिकल इकोनॉमिक और सोशो कल्चरल सेटअप को समझना पड़ेगा आइए सबसे पहले पॉलिटिकल सेटअप को देखते हैं पॉलिटिकल सेटअप ब्रिटेन की सभी कॉलोनी में एक लेजिसलेच्योर गवर्नर या मिलिट्री चीफ का पोजीशन होता था इन्हें इलेक्ट नहीं किया जाता था बल्कि इनका अपॉइंटमेंट डायरेक्ट ब्रिटेन द्वारा किया जाता था था इन कॉलोनी में सेटल्ड पॉपुलेशन यूरोप के डिफरेंट पार्ट से बिलोंग करती थी इसमें ज्यादातर इंग्लिश डिसेंट के लोग थे यह लोग बेटर
इकोनॉमिक अपॉर्चुनिटी की तलाश में यूरोप से अमेरिका आए थे स्टार्टिंग में मदर कंट्री के साथ संपर्क सेटलर्स के हित में था ब्रिटेन अपनी कॉलोनी को इकोनॉमिक और पॉलिटिकल हेल्प प्रोवाइड करता था कॉलोनी के प्रोटेक्शन के लिए ब्रिटेन ने कई बार नेटिव इंडियंस और फैलो यूरोपियन पावर से भी लड़ाई की इसलिए शुरू में वहां सेटल्ड लोग ब्रिटेन की सोवन को मानते थे हालांकि 1730 आते-आते एक डिस्टिंक्ट अमेरिकन आइडेंटिटी का जन्म होने लगा था अमेरिका में ही पैदा हुए सेकंड और थर्ड जनरेशन के लोग अपने आप को यूरोपियन आइडेंटिटी से जोड़कर नहीं देखते थे इस डिस्टिंक्ट आइडेंटिटी
के उभारने में 1730 तक अमेरिका की सोशो कल्चरल और इकोनॉमिक डेवलपमेंट का इंपॉर्टेंट रोल है तो आइए अब 177th सेंचुरी अमेरिका के सोशो कल्चरल सेटअप को समझते हैं सोशो कल्चरल सेटअप अमेरिकन सोसाइटी यूरोप के कंपैरिजन में ज्यादा लिबरल और प्रोग्रेसिव थी यूरोप में रिलीजस पर्सीक्यूशन एक मेजर इशू था जिस कंट्री में कैथोलिक्स मेजॉरिटी में होते वहां प्रोटेस्टेंट्स को पर्सीक्यूट किया जाता वहीं प्रोटेस्टेंट मेजॉरिटी कंट्री कैथोलिक्स को पर्सीक्यूट करती थी अमेरिका इन सब मामले में बिल्कुल अलग था यूरोप से आए कैथोलिक्स और प्रोटेस्टेंट्स दोनों ही यहां शांत से रहते थे रिलीजन को प्राइवेट मैटर की तरह
ट्रीट किया जाता था रिलीजस वायलेंस के एब्सेंट होने की एक मुख्य वजह यह भी थी कि यूरोप के मुकाबले अमेरिका स्क्रैच से डिवेलप कर रहा था कॉलोनिस्ट अपने साथ कोई रिलीजस बैगेज नहीं रखना चाहते थे इसके अलावा वह यूरोप में स्टार्ट हुए रेनेसांस और इनलाइटनमेंट मूवमेंट से इंस्पायर्ड थे इसलिए उनके लिए रिलीजन सेकेंडरी और प्राइवेट मैटर था रेनेसांस से निकले नए आइडियाज और व्यू को बढ़ावा देने के लिए अमेरिकन इंटेलेक्चुअल्स ने कई यूनिवर्सिटीज एस्टेब्लिश की जिसमें हावर्ड यूनिवर्सिटी 1636 कॉलेज ऑफ विलियम एंड मेरी 1693 येल यूनिवर्सिटी 1701 यूनिवर्सिटी ऑफ पेंसिल्वेनिया 1745 इंपॉर्टेंट है इन्होंने रैशनल
थॉट्स और साइंटिफिक थिंकिंग स्प्रेड करने में इंपॉर्टेंट रोल निभाया जब अमेरिकन रेवोल्यूशन स्टार्ट हुआ तो कई नए आइडियाज जैसे रिपब्लिक निज्म इलेक्शंस ह्यूमन राइट्स फ्री स्पीच एटस को पॉपुलर इज करने में इन यूनिवर्सिटीज का इंपॉर्टेंट रोल रहा अमेरिकन सोसाइटी की एक और खास बात थी कि यहां बस दो ही क्लासेस थे रिच और पुअर यूरोप की तरह यहां कोई नोबिलिटी या सामंत वर्ग नहीं था बर्थ से किसी को भी सोसाइटी में इंपॉर्टेंट पोजीशन नहीं दिया जाता था सारे पोजीशंस मेरिट से कमाए जाते थे अमेरिकन सोसाइटी के इस एटीट्यूड से वहां रिपब्लिकन गवर्नमेंट एब्लिश करना आसान
हुआ सोशो कल्चरल सेटअप के बाद आइए इकोनॉमिक सेटअप पर नजर डालते हैं इकोनॉमिक सेटअप अमेरिका का इकोनॉमिक सेटअप कैपिटल प्रोडक्शन या पूंजीवादी व्यवस्था पर बेस था इसे फ्री मार्केट इकॉनमी भी कहते हैं जहां गवर्नमेंट का इवॉल्वमेंट ना के बराबर होता है गुड्स का प्रोडक्शन मार्केट में प्रॉफिट्स कमाने के लिए किया जाता है अमेरिका में जो भी लोग यूरोप से सेटल हो होने आए थे उनका एक मकसद इकोनॉमिक प्रोग्रेस करना था क्योंकि अमेरिका एक नई कंट्री थी इसलिए वहां ट्रेड इंडस्ट्री एग्रीकल्चर डिवेलप करने की बहुत अपॉर्चुनिटी थी 1607 में अमेरिका में पहली इंग्लिश कॉलोनी एस्टेब्लिश होने
के 150 साल के अंदर ही अमेरिका में एक वाइब्रेंट कैपिट सिस्टम डिवेलप हो चुका था एग्रीकल्चरल प्रोडक्शन की बात करें तो फार्मर्स टोबैको कॉटन शुगर केन जैसे क्रॉप्स उगाते थे जिसका एक मेजर पोर्शन एक्सपोर्ट किया जाता था इसके साथ ही शिप बिल्डिंग टिंबर और माइनिंग जैसी इंडस्ट्रीज में भी काफी प्रोग्रेस देखी गई थी कॉलोनी आपस में ट्रेड के साथ अटलांटिक ओशन के दूसरी तरफ यानी यूरोप में भी गुड्स एक्सपोर्ट किया करती थी जहां 13 कॉलोनी में सेटल्ड कॉलोनिस्ट अपनी इकोनॉमिक प्रोग्रेस के लिए मेहनत कर रहे थे वहीं ब्रिटेन इन्हें इंपीरियल ज्म या साम्राज्यवाद की नजर
से देखता था ब्रिटेन अपनी अमेरिकन कॉलोनी के लिए ऐसी ट्रेड पॉलिसीज डिजाइन करता था जिसका मैक्सिमम बेनिफिट ब्रिटेन की पॉपुलेशन को हो ना कि अमेरिका में सेटल्ड लोगों को आइए ब्रिटेन की कुछ ऐसी ट्रेड पॉलिसीज के बारे में जाने जिसके कारण कॉलोनी के साथ उसकी तकरार बढ़ी ब्रिटिश ट्रेड पॉलिसीज इन अमेरिका अमेरिकन ट्रेड और इकोनॉमिक एक्टिविटीज को रेगुलेट करने के लिए ब्रिटिश पार्लियामेंट ने कई एक्ट्स पास किए इनमें से कुछ कंट्रोवर्शियल एक्ट्स थे 16 51 का नेविगेशन एक्ट 1660 का इमरेड कमोडिटीज एक्ट 1663 का स्टेबल एक्ट और 1750 का आयन एक्ट हैट एक्ट और वुलन
एक्ट 1651 के नेविगेशन एक्ट के द्वारा ट्रेड के लिए केवल ब्रिटिश शिप्स के इस्तेमाल को मैंडेटरी कर दिया गया था 1660 के नमरे कमोडिटीज एक्ट के द्वारा अमेरिकन कॉलोनी को शुगर टोबैको कॉटन और इंडिगो केवल ब्रिटेन एक्सपोर्ट करने के लिए मजबूर किया गया 1663 के स्टेबल एक्ट के द्वारा अमेरिकन कॉलोनी के गुड्स को किसी भी देश में एक्सपोर्ट करने से पहले ब्रिटेन ले जाना मैंडेटरी कर दिया गया 1750 के आयन एक्ट हैट एक्ट और वुलन एक्ट के द्वारा इन कमोडिटीज का ब्रिटेन से इंपोर्ट मैंडेटरी कर दिया गया इन्हें अमेरिकन कॉलोनी में मैन्युफैक्चर नहीं किया जा
सकता था इस प्रकार 1750 के दशक तक यह क्लियर हो गया था कि ब्रिटेन को केवल अपने होमलैंड के बेनिफिट्स और प्रोस्पेरिटी में इंटरेस्ट था अमेरिकन कॉलोनी पर उनका रूल मोस्टली ब्रिटेन को फायदा पहुंचाने के लिए था ब्रिटेन की इन पॉलिसीज के खिलाफ अमेरिकन कॉलोनी के कुछ इंटेलेक्चुअल्स ने 1754 में ल् बनी कांग्रेस का आयोजन किया इसके आयोजन का मकसद था ब्रिटिश पॉलिसीज का विरोध करना और कॉलोनी के फ्यूचर पॉलिटिकल ऑर्गेनाइजेशन पर चर्चा करना इस कांग्रेस में अमेरिका की 13 कॉलोनी में से सेवन कॉलोनी के रे टेटिस ने हिस्सा लिया यहां अमेरिका के इंपॉर्टेंट पॉलिटिकल
लीडर बेंजामिन फ्रैंकलिन ने सभी कॉलोनी को मिलाकर अमेरिकन यूनियन बनाने का प्रपोजल रखा हालांकि उस समय इस प्रपोजल को एक्सेप्ट नहीं किया गया इसके पीछे कई कारण थे लेकिन सबसे मुख्य कारण यह था कि उस समय अमेरिकन कॉलोनी फ्रेंच अग्रेशन फेस कर रही थी फ्रेंच नॉर्थ अमेरिका में मिसिसिपी रिवर के वेस्टर्न साइड के एरियाज में सेटल थे लेकिन वो इंग्लैंड की कॉलोनी को कैप्चर कर करने की कोशिश कर रहे थे फ्रेंच थ्रेट को देखते हुए कॉलोनी ब्रिटेन के खिलाफ कोई भी ऐसा एक्शन नहीं लेना चाहती थी जिससे ब्रिटिश पोजीशन कमजोर पड़ जाए इसलिए अल्बनी कांग्रेस
में बेंजामिन फ्रैंकलिन के प्रपोजल को रिजेक्ट कर दिया गया था ब्रिटेन और फ्रांस के बीच 1754 से 1763 तक 7 इयर्स वॉर लड़ा गया इस वॉर में ब्रिटेन की जीत जरूर हुई लेकिन इसने अमेरिकन रेवोल्यूशन का सीड भी प्लांट कर दिया आइए जानते हैं कैसे सेवन इयर्स वॉर आगे चलकर अमेरिकन रेवोल्यूशन का कारण बना सेवन इयर्स वॉर एंड इट्स आफ्टर मैथ 1756 से 1763 तक ब्रिटेन और फ्रांस के बीच हुआ सेवन ईयर वॉर केवल अमेरिका में ही नहीं बल्कि यूरोप और इंडिया में भी लड़ा गया इसने अमेरिकन कॉन्टिनेंट की पॉलिटिक्स को शेप करने में इंपॉर्टेंट
रोल निभाया सेवन इयर्स वॉर का मेन मकसद अपने अपने कॉलोनियल पोजीशंस को सिक्योर करना था अमेरिका में ब्रिटेन की ईस्ट कोस्ट पर 13 कॉलोनी थी जिनका एक्सटेंशन वेस्ट में एलेन माउंटेंस तक था फ्रांस के कंट्रोल में एलेज माउंटेंस के बियोंड के एरियाज थे इसके अलावा साउथ में लुईजियाना से लेकर नॉर्थ में अमेरिका के ग्रेट लेक्स रीजन तक भी फ्रांस का कंट्रोल था फ्रांस और ब्रिटेन दोनों एक दूसरे की टेरिटरीज पर कब्जा कर अपनी खुद की टेरिटरीज को बढ़ाने की कोशिश में लगे हुए थे सेन इयर्स वॉर 1763 में खत्म हुआ इसमें फ्रांस की हार हुई
और उसे अपनी नॉर्थ अमेरिकन टेरिटरीज ब्रिटेन को सरेंडर करनी पड़ी लेकिन वॉर से ब्रिटेन को भी बहुत ज्यादा फायदा नहीं हुआ क्योंकि सेवन इयर्स वॉर के बाद ब्रिटेन ने जो पॉलिसीज अपनाई उसने अमेरिकंस में इंडिपेंडेंस की भावना जगा दी दोस्तों 7 साल के इस युद्ध ने ब्रिटेन को काफी डेट में डाल दिया था डेट रिकवर करने के लिए ब्रिटेन ने कॉलोनी पर कई नए टैक्सेस लगाए ब्रिटेन का मानना था कि सेवन इयर्स वॉर कॉलोनिस्ट की सेफ्टी और सिक्योरिटी के फेवर में था इसलिए यह नए टैक्सेस जायज हैं सेवन इयर्स वॉर के बाद ब्रिटेन के द्वारा
अमेरिका में इंट्रोड्यूस किए गए कुछ अनपोल टैक्सेस और लेजिसलेशंस थे शुगर एक्ट ऑफ 1764 क्वार्टरिंग एक्ट ऑफ 1764 स्टैंप एक्ट ऑफ 1765 शुगर एक्ट ऑफ 1764 के द्वारा कॉलोनिस्ट को शुगर केवल ब्रिटेन को एक्सपोर्ट करना मैंडेटरी कर दिया गया क्वार्टरिंग एक्ट ऑफ 1764 के द्वारा अमेरिका में पोस्टेड ब्रिटिश सोल्जर्स का खर्चा कॉलोनिस्ट के ऊपर डाल दिया गया स्टैंप एक्ट ऑफ 1765 के द्वारा अमेरिका में सारे लीगल डॉक्यूमेंट न्यूजपेपर्स एट्स पर स्टैंप टैक्स देना मैंडेटरी कर दिया गया इन एक्ट्स का अमेरिकन कॉलोनी में जमकर विरोध हुआ ब्रिटेन इन टैक्सेस को वैलिड मानता था क्योंकि इनका यूज
अमेरिकन कॉलोनी की प्रोटेक्शन के लिए ही किया जाना था लेकिन अमेरिकंस का मानना था कि टैक्स लगाने का अधिकार केवल लोकल ले लेचर का होना चाहिए ना कि ब्रिटिश पार्लियामेंट का यहीं से अमेरिकन रेवोल्यूशन का फेमस स्लोगन नो टैक्सेशन विदाउट रिप्रेजेंटेशन का जन्म हुआ अमेरिकंस का मानना था कि क्योंकि ब्रिटिश पार्लियामेंट में एक भी अमेरिकन रिप्रेजेंटेटिव नहीं है इसलिए ब्रिटिश पार्लियामेंट को अमेरिकन कॉलोनी पर टैक्स लगाने का कोई अधिकार नहीं है स्टैंप एक्ट के विरोध में अमेरिकन लीडर सैमुअल एडम्स ने सस ऑफ लिबर्टी नाम के ऑर्गेनाइजेशन की शुरुआत की ऑर्गेनाइजेशन ब्रिटेन के साथ ट्रेड और
उसके गुड्स को बॉयकॉट करने का प्रचार करता है सस ऑफ लिबर्टी ने कई अमेरिकन सिटीज में ब्रिटेन से इंडिपेंडेंस के मुद्दे को पॉपुलर किया इसके लिए कमेटी ऑफ कॉरेस्पोंडेंस एस्टेब्लिश की गई इन कमिटीज ने अमेरिकन रेवोल्यूशन को ऑर्गेनाइज करने में इंपॉर्टेंट रोल निभाया स्टैंप एक्ट का काफी विरोध होने के कारण ब्रिटेन को इसे वापस लेना पड़ा लेकिन 1765 में ब्रिटेन ने डिक्लेरेटर एक्ट पास किया जिसका मेन मकसद यह बताना था कि ब्रिटिश पार्लियामेंट या ब्रिटिश किंग के पास ही सभी ब्रिटिश कॉलोनी के लिए लॉज बनाने का अधिकार है इसी के तहत 1767 में टाउंस एंड
एक्ट पास किया गया जिसके द्वारा टी पेपर ग्लास लेड पेंट जैसे एसेंशियल आइटम्स पर टैक्स लगाया गया टाउन स एंड एक्ट ब्रिटिश अथॉरिटीज को किसी भी घर या शिप को सर्च करने का अधिकार भी देता था टाउंस एंड एक्ट का भी कॉलोनी में जमकर विरोध हुआ टाउंस एंड एक्ट के अगेंस्ट हो रहे ऐसे ही एक प्रोटेस्ट के दौरान बस्टन में अमेरिकन क्राउड के ऊपर ब्रिटिश सोल्जर्स ने फायरिंग कर दी इस इवेंट को बस्टन मैसे करर के नाम से भी जाना जाता है बस्टन मैसे करर के बाद कॉलोनी में ब्रिटेन के खिलाफ विरोध और तीव्र हो
गया चारों तरफ हो रहे प्रोटेस्ट को देखते हुए ब्रिटिश प्राइम मिनिस्टर लॉर्ड नॉथ ने अमेरिकन कॉलोनी पर लगाए सारे नए टैक्सेस को वापस ले लिया केवल टी टैक्स को छोड़कर टी ब्रिटेन के लिए इंपोर्टेंट सोर्स ऑफ रेवेन्यू था इंडिया और दूसरे एशियन कंट्रीज से टी लेकर ब्रिटेन दुनिया भर में एक्सपोर्ट करता था 1773 में ब्रिटिश प्राइम मिनिस्टर लॉर्ड नॉथ ने टी ट्रेड को रेगुलेट करने के लिए टी एक्ट पास किया टी एक्ट का अमेरिकन कॉलोनी में विरोध हुआ कॉलोनिस्ट का मानना था कि बिना अमेरिकन पीपल के कंसेंट के उनके ऊपर कोई भी टैक्स या एक्ट
नहीं लगाया जा सकता बस्टन हार्बर पर सैमुअल एडम्स की लीडरशिप में ब्रिटिश शिप से कई टी कंटेनर्स को समुद्र में फेंक दिया गया इस इवेंट को अमेरिकन हिस्ट्री में बस्टन टी पार्टी कहा जाता है यहां से अमेरिकन कॉलोनी और ब्रिटेन के रिश्तों में दरार काफी बढ़ गई अमेरिकन कॉलोनी पर अपनी सोवन दिखाने के लिए और प्रोटेस्टर्स को सबक सिखाने के लिए 1774 में ब्रिटिश पार्लियामेंट ने इनटोलरेंस एक्ट पास किया इनटोलरेबल एक्ट्स के द्वारा सभी पॉलिटिकल मीटिंग्स को बैन कर दिया गया बस्टन पोर्ट को तब तक के लिए क्लोज कर दिया गया जब तक बस्टन टी
पार्टी के कल्प्रिट्स को पकड़ा नहीं जाता या ब्रिटेन को बस्टन में हुए नुकसान की भरपाई नहीं की जाती इन टॉलरेबल एक्ट्स के रिस्पांस में अमेरिकन कॉलोनी के रिप्रेजेंटेटिव्स ने 1774 में फर्स्ट कॉन्टिनेंटल कांग्रेस का आयोजन किया इस कांग्रेस में कई इंपॉर्टेंट डिसीजंस लिए गए जिसमें ब्रिटिश गुड्स को बॉयकॉट करना और डोमेस्टिक गुड्स को यूज़ करना इंपॉर्टेंट था इस दौरान कई अमेरिकन इंटेलेक्चुअल लोगों के बीच जाकर ब्रिटेन से इंडिपेंडेंस की वकालत करने लगे इनमें थॉमस पेन इंपॉर्टेंट थे जिनके द्वारा लिखा गया पैंफलेट कॉमन सेंस 1775 176 में काफी पॉपुलर हुआ कॉमन सेंस में पेन ने आसान
भाषा का प्रयोग करते हुए अमेरिकंस को ब्रिटेन से आजाद होने के फायदे समझाए 1776 की शुरुआत में सभी कॉलोनी ने ब्रिटिश रिप्रेजेंटेटिव्स को एक्सपेल कर दिया और कॉलोनी सेल्फ गव की तरफ बढ़ने लगी ऐसी सिचुएशन में 1776 में सेकंड कॉन्टिनेंटल कांग्रेस का आयोजन हुआ फिलाडेल्फिया में हुए इस सेकंड कांग्रेस में 4थ जुलाई को डिक्लेरेशन ऑफ इंडिपेंडेंस का प्लेज अडॉप्ट किया गया इस प्लेज के अनुसार अमेरिकन कॉलोनी ने अपने आप को ब्रिटेन से इंडिपेंडेंट डिक्लेयर कर दिया 4थ जुलाई को आज भी अमेरिका में इंडिपेंडेंस डे मनाया जाता है इसके बाद ब्रिटिश किंग जॉर्ज दथ ने अमेरिकन
कॉलोनी पर डिक्लेयर कर दिया 1776 से 1781 के बीच अमेरिकन वॉर ऑफ इंडिपेंडेंस लड़ा गया इस वॉर में ब्रिटेन को लॉर्ड कॉर्न वालिस लीड कर रहे थे और अमेरिकन कॉलोनी के लीडर थे जॉर्ज वाशिंगटन इस वॉर में अमेरिकन कॉलोनी को स्पेन और फ्रांस का भी सपोर्ट मिला क्योंकि इनकी ब्रिटेन से पुरानी राइवल रही थी 1781 में योक टाउन में कॉर्न वॉलिस के सरेंडर के साथ यह वॉर खत्म हुआ इसके बाद 17 83 में अमेरिका और ब्रिटेन के बीच ट्रीटी ऑफ पेरिस साइन हुई जिसके द्वारा ब्रिटेन ने अमेरिकन इंडिपेंडेंस को रिकॉग्नाइज कर लिया ब्रिटेन से इंडिपेंडेंस
के बाद अमेरिकन कॉलोनी ने 1787 में फिलाडेल्फिया में कॉन्स्टिट्यूशन कन्वेंशन का आयोजन किया जिसको जॉर्ज वाशिंगटन ने चेयर किया कन्वेंशन में अमेरिकन कॉन्स्टिट्यूशन को ड्राफ्ट किया गया जिसने एक फेडरल अमेरिकन यूनियन को जन्म दिया इस तरह 13 अमेरिकन कॉलोनी ने साथ आकर यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका का फॉर्मेशन किया आइए अब अमेरिकन रेवोल्यूशन के सिग्निफिकेंट से वीडियो को कंक्लूजन केंस ऑफ अमेरिकन रेवोल्यूशन अमेरिकन रेवोल्यूशन ने वर्ल्ड के सबसे पहले रिपब्लिकन स्टेट को जन्म दिया रिपब्लिक निज्म का अर्थ होता है कि स्टेट का चीफ हेरेडिटरी नहीं होगा कोई भी अपनी मेरिट से कंट्री की टॉप मोस्ट पोस्ट
पर पहुंच सकता था इसके लिए रेगुलर इलेक्शन प्रोसेस का प्रबंध किया गया जिस समय ज्यादातर देशों में मोनकी थी उस समय यह अरेंजमेंट अपने आप में रेवोल्यूशन था अमेरिकन कॉन्स्टिट्यूशन ने पहली बार सभी सिटीजंस को इक्वली ट्रीट करने का प्रस्ताव रखा ह्यूमन राइट्स कांसेप्ट का जन्म अमेरिकन कॉन्स्टिट्यूशन के बिल ऑफ राइट्स से ही हुआ था बिल ऑफ राइट्स ने सिटीजंस को स्टेट के अगेंस्ट काफी फ्रीडम दिए आने वाले समय में इसी से इंस्पायर होकर इंडियन कॉन्स्टिट्यूशन में भी फंडामेंटल राइट्स के चैप्टर को ऐड किया गया इसके अलावा यूरोप की पॉलिटी के लिए भी अमेरिकन रेवोल्यूशन
गेम चेंजर था इसका डायरेक्ट इंपैक्ट फ्रांस के 1789 रेवोल्यूशन में देखा जा सकता है जहां लोगों ने अमेरिकन रेवोल्यूशन से इंस्पायर होकर लिबर्टी फ्रेटरनिटी और इक्वलिटी की डिमांड फ्रेंच मोनार्क के सामने रखी 1798 का आयरिश इंडिपेंडेंस मूवमेंट भी इससे इंस्पायर्ड था अमेरिकन स्टेट के फॉर्मेशन को एक्चुअली मॉडर्न नेशन स्टेट का ब्लूप्रिंट भी समझा जा सकता है रिपब्लिक निज्म ह्यूमन राइट्स फ्रीडम ऑफ रिलीजन फेडरेलिज्म जैसे कांसेप्ट जो मॉडर्न नेशन स्टेट्स की बैकबोन है एक्चुअली अमेरिकन कांस्टिट्यूशन से ही डिराइवर ने वर्ल्ड पॉलिटी को एक नई दिशा दी मॉडर्न प्रिंसिपल्स पर स्टेट का फॉर्मेशन अमेरिकन रेवोल्यूशन का लॉन्ग
लास्टिंग अचीवमेंट माना जा सकता है अमेरिकन सिविल वॉर दोस्तों आज अमेरिका को पूरे विश्व में एक मोस्ट डेवलप्ड कंट्री और सुपर पावर के रूप में जाना जाता है वहां घटने वाली हर छोटी बड़ी घटना दुनिया भर के लोगों का ध्यान आकर्षित करती है लेकिन क्या आपको पता है कि एक समय पर यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका कहे जाने वाले इस देश का अस्तित्व ही खतरे में था यूनाइटेड की आइडेंटिटी पर ही सवाल खड़ा हो गया था देश के अंदर ही गृह युद्ध यानी सिविल वॉर शुरू हो गया था सिविल वॉर का मतलब उस वॉर से है
जो एक देश के अंदर ही दो ग्रुप्स में लड़ा गया हो इस वॉर को इंट्रास्टेट वॉर भी कह सकते हैं क्योंकि यह वॉर एक कंट्री की इंटरनल बाउंड्री के अंदर ही सीमित होता है सिविल वॉर का मेन मोटिव होता है देश के किसी एक रीजन को अपने कंट्रोल में करना या गवर्नमेंट की पॉलिसीज के खिलाफ विरोध करना और ऐसा ही एक सिविल वॉर अमेरिका में भी हुआ अमेरिकन सिविल वॉर 18616 5 तक चला यह वॉर अमेरिकन यूनियन के लॉयल नॉर्दर्न स्टेट्स और सात सदर्न स्टेट्स के बीच में हुआ यह सभी सदर्न स्टेट्स यूनाइटेड नेशंस ऑफ
अमेरिका से अलग होकर एक सेपरेट नेशन यानी कि कन्फेडरेशों इसमें 62000 अमेरिकन सोल्जर्स को अपनी जान गवानी पड़ी थी यह संख्या वर्ष में अमेरिका की 2 पर आबादी के बराबर थी पर आखिर ऐसे क्या कारण थे जिसकी वजह से यह सिविल वॉर हुआ आइए जानते हैं रीजंस बिहाइंड अमेरिकन सिविल वॉर अगर अमेरिकन सिविल वॉर के मुख्य कारणों की बात करें तो वह था अमेरिका में फैला हुआ स्लेवरी सिस्टम और अमेरिकन यूनियन के दो हिस्से यानी नॉर्थ और साउथ के बीच की इनिक्वालिटी यह दोनों रीजंस आपस में कनेक्टेड भी थे और यह कैसे हुआ आइए डिटेल
में समझते हैं दोस्तों 19th सेंचुरी तक अमेरिका में इंडस्ट्रियल रेवोल्यूशन हो चुका था और इसने अमेरिका को पूरी तरह से ट्रांसफॉर्म कर दिया था लेकिन इस रेवोल्यूशन का एक लिमिटेशन भी था और वह था इसके इंपैक्ट नॉर्दन अमेरिकन स्टेट्स तक ही सीमित रहते हैं सदर्न स्टेट्स में इसका प्रभाव ना के बराबर देखने को मिलता है यहां पहले की तरह अभी भी एग्रीकल्चर ही डोमिनेंट ऑक्यूपेशन बना हुआ था इसीलिए यह रीजन नॉर्दन स्टेट्स की तुलना में काफी बैकवर्ड था इन स्टेट्स में कॉटन और टोबैको जैसे कैश क्रॉप्स का कल्ट वेशन लार्ज स्केल पर होता था यह
क्रॉप्स लेबर इंटेंसिव क्रॉप्स की कैटेगरी में आती हैं सदर्न स्टेट्स में एग्रीकल्चरल लेबर्स के तौर पर स्लेव्स का इस्तेमाल होता था स्लेव लेबर की वजह से ही यहां एग्रीकल्चर प्रॉफिटेबल बना हुआ था इसी बीच अमेरिकन टेरिटरी का वेस्ट वर्ड एक्सपेंशन शुरू हो गया और सदर्न स्टेट्स के कई लीडर्स न्यूली फॉर्म्ड वेस्टर्न स्टेट्स में भी स्लेवरी सिस्टम का एक्सपेंशन चाहते थे उनका कहना था कि इन वेस्टर्न टेरिटरीज में स्लेवरी लीगलाइज रहनी चाहिए लेकिन वहीं नॉर्थ अमेरिकन लीडर्स ऐसा बिल्कुल नहीं चाहते थे नॉर्दर्न स्टेट्स स्लेवरी सिस्टम का विरोध कर रहे थे और कहीं ना कहीं इस वजह
से इन दोनों रीजंस के बीच कॉन्फ्लेट बढ़ने लगा दोस्तों स्लेवरी सिस्टम के एक्सपेंशन को रोकने और अपने राइट्स को प्रोटेक्ट करने के लिए अफ्रीकन स्लेव्स ने कुछ एक्टिविस्ट्स के साथ मिलकर साल 1830 में अमेरिकन यूनियन के कुछ हिस्सों में एंटी स्लेवरी मूवमेंट्स को स्टार्ट किया इस मूवमेंट की वजह से नॉर्दर्न और वेस्टर्न स्टेट्स में स्लेवरी के खिलाफ काफी प्रोटेस्ट्स हुए और मूवमेंट को सपोर्ट देते हुए यहां स्लेवरी को खत्म किया गया लेकिन अगर बात सदर्न स्टेट्स की करें तो एंटी स्लेवरी मूवमेंट वहां ज्यादा सफल नहीं रहा इसके पीछे का कारण यह था कि इन स्टेट्स
की इकॉनमी पूरी तरह से स्लेव्स पर डिपेंडेंट थी और स्लेवरी के खत्म होने से यह बर्बाद हो सकती थी इसीलिए यहां एंटी स्लेव को सपोर्ट नहीं मिल रहा था बल्कि ऐसी किसी स्थिति का सामना ना करना पड़े इसलिए सदन स्टेट्स के लीडर्स ने 18544 में कैंस नेब्रास्का एक्ट पास किया इस एक्ट के तहत स्लेवरी और उसकी प्रैक्टिस को लीगल डिक्लेयर कर दिया गया इस एक्ट का एंटी स्लेवरी मूवमेंट के सदस्यों ने जमकर विरोध किया इस एक्ट की वजह से स्लेवरी को सपोर्ट करने वाले यानी प्रो स्लेवरी ग्रुप और स्लेवरी का विरोध करने वाले यानी प्रो
अबोलिशनिस्ट ग्रुप्स के बीच काफी वायलेंस हुई हु इस वायलेंस को ब्लीडिंग कैनसन के नाम से भी जाना जाता है और यहीं से स्लेवरी कहीं ना कहीं एक मुख्य कारण बनता है जिसकी वजह से अमेरिकन सिविल वॉर की शुरुआत हुई इस वायलेंस के कुछ समय बाद कैसस नेब्रास्का एक्ट का विरोध करने के लिए एक नई पॉलिटिकल पार्टी का निर्माण हुआ जिसका नाम था रिपब्लिकन पार्टी और इस पार्टी का एक ही एम था और व था अमेरिका से स्लेवरी को पूरी तरह से खत्म करना नवंबर 186 के इलेक्शंस में इसी पॉलिटिकल पार्टी के लीडर एब्रे लिंकन को
यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका का प्रेसिडेंट चुना गया इब्राहेम लिंकन ने अपने इलेक्शन कैंपेन में स्लेवरी को अबॉलिश करने का प्रॉमिस किया हुआ था अब उनके प्रेसिडेंट बनने से सदन स्टेट्स के मन में डर बैठ गया कि वह अपना इलेक्शन प्रॉमिस पूरा जरूर करेंगे और स्लेवरी को बैन कर देंगे इससे सदन स्टेट्स की इकॉनमी पूरी तरह से चौपट हो सकती थी और इसी कारण सदर्न स्टेट्स खुद को जल्द से जल्द यूनियन से अलग कर देना चाहते थे और अपना एक इंडिपेंडेंट नेशन बनाना चाहते थे जहां अमेरिकन प्रेसिडेंट द्वारा बनाए गए किसी भी नियम कानून को फॉलो
ना किया जाए और उन्होंने ऐसा ही किया इब्राहम लिंकन के प्रेसिडेंट बनने के लगभग तीन महीने के अंदर ही अमेरिका के सात सदर्न स्टेट्स ने खुद को यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका से अलग करके स्वतंत्र राज्य कन्फेडरेशों टुकड़े होते देखना इब्राहिम लिंकन के लिए काफी निराशाजनक था वह किसी भी कीमत पर अमेरिकन यूनियन को बनाए रखना चाहते थे और इसी कारण से अमेरिका में सिविल वॉर की शुरुआत हो जाती है जहां एक तरफ यूनियन आमी थी और दूसरी तरफ कन्फेडरेशों फॉर्म्ड कन्फेडरेशों स्थित फोर्ट सटर पर अटैक किया इस अटैक के बाद प्रेसिडेंट एब्रे लिंकन ने यूनियन
आर्मी को फोर्ट सटर को डिफेंड करने का ऑर्डर दिया लेकिन यूनियन आर्मी को इसमें सफलता नहीं मिली और 13 अप्रैल 18618 स्टेट्स का कब्जा हो गया इस शानदार विक्ट्री से प्रभावित होकर चार और सदर्न स्टेट्स यानी वर्जिनिया आर्केंस नॉर्थ कैरोलाइन और टेनेसी ने भी कन्फेडरेशों जॉनाथन स्टोनवॉल जैक्सन लीड कर रहे थे और यूनियन आर्मी इस बैटल में बैकफुट पर ही रही उनके कई सोल्जर्स को इसमें अपनी जान गवानी पड़ी इस बैटल के बाद दोनों साइड्स को इस बात का एहसास हो चुका था कि यह वॉर काफी लंबे समय तक चलने वाला है इसी वजह से
दोनों ही आर्मीज ने लार्ज स्केल मोबिलाइजेशन शुरू कर दिया फर्स्ट बैटल ऑफ बुल रन के बाद जनरल विनफील्ड स्कॉट जो यूनियन आर्मी के सुप्रीम लीडर थे उन्हें भी रिप्लेस कर दिया गया और जॉर्ज बी मकेल को यूनियन आर्मी का लीडर बनाया गया अगर कन्फेडरेशों 18 62 को शुरू हुआ इस सेकंड बैटल में भी ली द्वारा लेड कन्फेडरेशों अपनी गलती से सीख लेते हुए फिर से अपनी आर्मी का पुनर्गठन कर कन्फेडरेशों आमी को स्प्स बर्ग और आसपास के रीजन से खदेड़ने में भी सफल रहे और इसी के बाद अमेरिकन सिविल वॉर का नया अध्याय शुरू हुआ
जिसका नाम था बैटल ऑफ शॉप्स बर्ग बैटल ऑफ शॉप्स बर्ग 17 सितंबर को फाइट किया गया इस बैटल को सिविल वॉर की सबसे दर्दनाक और भयानक बैटल के रूप में भी जाना जाता है ऐसा इसलिए था क्योंकि इस बैटल में यूनियन आमी के 69000 और सदर्न स्टेट्स के 52000 सैनिकों की जान गई इतने सारे सैनिकों की मृत्यु के बावजूद इस बैटल में यूनियन आर्मी की जीत हुई और वह कन्फेडरेशों इशूंग ऑफ एमांसिपेशन प्रोक्लेमेशन दोस्तों प्रेसिडेंट लिंकन ने इंसपेक्टर स्टेट्स के सभी स्लेव्स को फ्री कर दिया गया यहां से यूनियन आर्मी में उनके शामिल होने का
रास्ता साफ हो गया और उन्हें ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित भी किया गया इनसिपिड लिंकन ने ना सिर्फ अमेरिकन स्लेव पॉपुलेशन का सपोर्ट पूरी तरह से अपनी तरफ कर लिया और यूनियन आमी को स्ट्रांग बनाया बल्कि इससे इंटरनेशनल कम्युनिटी का सपोर्ट भी वह अपनी तरफ करने में सफल हुए दरअसल ब्रिटेन जैसे देश सदर्न अमेरिकन स्टेट से रॉ मटेरियल इंपोर्ट करते थे जो उनकी इंडस्ट्रीज के लिए काफी इंपॉर्टेंट था ऐसे में चांसेस थे कि सिविल वॉर में ब्रिटेन सदर्न स्टेट्स को सपोर्ट देने लगे लेकिन क्योंकि ब्रिटेन ऑलरेडी अपने यहां स्लेवरी को अबॉलिश कर चुका था और
इंटरनेशनल कम्युनिटी में वो उसका सपोर्ट नहीं कर सकता था इसीलिए इंसिपिएंट ने सिविल वॉर को पूरी तरह से प्रो स्लेवरी और एंटी स्लेवरी डिबेट में तब्दील कर दिया और इंटरनेशनल कम्युनिटी का सपोर्ट यूनियन की तरफ कर दिया इस प्रोक्लेमेशन के बाद लगभग 86000 स्लेव वर्कर्स को फ्री कर उन्हें यूनियन आर्मी में एडमिट कर लिया गया जिससे यूनियन आर्मी बहुत स्ट्रांग बन गई इसके साथ ही साथ स्लेव्स के फ्री हो जाने के कारण सदर्न स्टेट्स की इकॉनमी भी चौपट हो गई और यहीं से सिविल वॉर के अंत की शुरुआत हो गई एंडिंग ऑफ सिविल वॉर इस
सिविल वॉर में एक अहम मोड़ तब आया जब स्ट्रांग बन चुकी यूनियन आर्मी की कमान यूलेस एस ग्रांट को दी गई और उन्होंने यूनियन आर्मी को इतने अच्छे से ट्रेन किया कि यूनियन आर्मी ने कन्फेडरेशों सदर्न स्टेट्स की तरफ इनवेजन चालू किया और कन्फेडरेशों की जान गई कुछ ही समय बाद ग्रांट और उनके सैनिकों ने सदर्न स्टेट्स में ट्रेडिंग के लिए यूज किए जाने वाले सबसे स्ट्रेटेजिक रेल सेंटर जो पीटर्सबर्ग में स्थित था उसको अपने कब्जे में ले लिया उसके बाद धीरे-धीरे यूनियन आर्मी ने कन्फेडरेशों यूनियन द्वारा कंट्रोल किए गए फोर्ट स्टेडमैन किया पर उनकी
यह कोशिश भी नाकामयाब रही और कन्फेडरेशों चारों तरफ से घेर लिया चारों तरफ से घिर जाने के बाद कन्फेडरेशों इससे पहले ही 14 अप्रैल को उनकी हत्या कन्फेडरेशों न कैरोलाइन से बिलोंग करते थे उन्होंने कन्फेडरेशों ट्यूशन में 13th 14 एंड 15 अमेंडमेंट्स ऐड किए गए जिसके तहत अमेरिका से पूरी तरह से स्लेवरी को को अबॉलिश किया गया और साथ ही साथ यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका को एज अ नेशन नए सिरे से डिफाइन किया गया इस नई डेफिनेशन के अकॉर्डिंग यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका अब कई स्टेट्स का समूह ना बनकर एक इंडिविजिबल यूनाइटेड नेशन है जिसके
कभी भी टुकड़े नहीं हो सकते इस सिविल वॉर ने नॉर्दर्न और सदर्न टेंशंस को खत्म करके अमेरिका की फाउंडेशन को काफी स्ट्रांग बना दिया था सिविल वॉर के तहत स्लेवरी अबोलिशन के बाद सदर्न स्टेट्स में भी इंडस्ट्रियल ग्रोथ की शुरुआत हुई जिससे वह भी धीरे-धीरे नॉर्दर्न स्टेट्स की तरह संपन्नता की ओर बढ़ने लगे सदन स्टेट्स में नए बिजनेस एंटिटीज की शुरुआत हुई गवर्नमेंट ने सदर्न स्टेट्स में इंडस्ट्रियल ग्रोथ को बढ़ावा देने के लिए कई सारे ग्रांट और सब्सिडीज भी लच किए इस सब के चलते अमेरिका में प्रोस्पेरिटी की एक नई लहर दिखाई दी और नॉर्दर्न
और सदर्न स्टेट्स के बीच की इनिक्वालिटी को काफी हद तक कम कर लिया गया कंक्लूजन तो दोस्तों यह थी अमेरिकन सिविल वॉर की कहानी हमने इस कहानी में यह जाना कि कैसे स्लेवरी को खत्म करने के लिए अमेरिका को यूनाइट करने के लिए लाखों सैनिकों और प्रेसिडेंट इब्राहम लिंकन ने अपनी जान कमाई यह वॉर जो स्लेव प्लांटेशन वर्कर्स के राइट्स के प्रोटेक्शन के लिए लड़ा गया था वह आगे चलकर इतना भयानक रूप धारण कर लेगा इसकी कल्पना भी किसी ने नहीं की थी इस वॉर ने ना केवल अमेरिका को स्लेवरी से मुक्त किया बल्कि अमेरिका
जो आज इतना इंडस्ट्रियल इज्ड और टेक्नोलॉजिक एडवांस्ड देश है उसकी भी नीव कहीं ना कहीं इसी वॉर के बाद पड़ी इस वॉर ने पूरे अमेरिका के फाउंडेशन को स्ट्रांग और यूनाइटेड बनाया और अमेरिकन कॉन्स्टिट्यूशन को भी नया रूप दिया जिससे आगे चलकर भारत जैसे देश ने भी प्रेरणा ली आपको क्या लगता है क्या वॉर ही एक रास्ता था अमेरिका के स्लेव्स और अमेरिकन यूनियन को प्रोटेक्ट करने का क्या इस इशू को सॉल्व करने का और कोई रास्ता नहीं था क्या क्या एब्रे लिंकन की हत्या टल सकती थी अगर यह वॉर ना हुआ होता और अमेरिका
का यह इशू एक पीसफुल एग्रीमेंट के तहत सॉल्व हो गया होता अपनी राय हमारे साथ कमेंट्स में जरूर शेयर करें फ्रेंच रेवोल्यूशन दोस्तों फ्रेंच रेवोल्यूशन जो 1789 में शुरू होता है और लेट 1790 में नेपोलियन बोनापार्ट के राइज के साथ एंड होता है कंटेंपररी यूरोपियन हिस्ट्री में एक वाटरशेड मोमेंट की तरह है इस दौरान फ्रेंच सिटीजंस अपने देश के पॉलिटिकल लैंडस्केप को डिमोलिश और रीडिजाइन करते हैं और एब्सलूट मनकी और फ्यूड सिस्टम जैसी सदियों पुरानी इंस्टीट्यूशंस को उखाड़ फेंकते हैं इस क्रांति का कारण फ्रेंच मोनकी के प्रति वाइड स्प्रेड डिस्कंटेंट और किंग लुई द 16
की पूरी इकोनॉमिक पॉलिसीज को माना जाता है फ्रेंच रेवोल्यूशन ने ना सिर्फ तत्कालीन फ्रांस पर प्रभाव डाला बल्कि इसने मॉडर्न नेशंस को शेप करने में भी अहम रोल निभाया तो आइए फ्रेंच रेवोल्यूशन को डिटेल में समझते हैं शुरुआत करते हैं इसके पीछे के कारणों से कॉसेस ऑफ द फ्रेंच रेवोल्यूशन सबसे पहले बात करते हैं सोशल कॉसेस की लेट 18th सेंचुरी के दौरान फ्रांस की सोशल कंडीशन एक्सट्रीमली अनइक्वल और एक्सप्लोइटेटिव थी फ्रेंच सोसाइटी को तीन स्टेट्स में डिवाइड किया गया था पहले दो एस्टेट्स यानी क्लर्जी और नोबिलिटी फ्रेंच सोसाइटी की सबसे प्रिविलेज्ड क्लासेस थी इन्हें कोई
भी टैक्सेस पे नहीं करने होते थे थर्ड स्टेट जिसमें पेजेंट्स और वर्कर्स शामिल थे मेजॉरिटी पॉपुलेशन उसी में आती थी इन्हें हाई टैक्सेस पे करने पड़ते थे और किसी भी तरह के पॉलिटिकल और सोशल राइट्स इनके पास नहीं थे जिस वजह से यह मिजबिल द 16 द्वारा लड़े गए न्यूमरस वॉर्स की वजह से स्टेट कॉफर्स खाली हो चुके के थे अमेरिकन वॉर ऑफ इंडिपेंडेंस में फ्रांस के इवॉल्वमेंट से और फ्लड टैक्सेशन सिस्टम की वजह से सिचुएशन और ज्यादा कॉम्प्लिकेट हो गई थी वेल्थी लोगों को तो टैक्स पे करने से एम्प्ट किया गया था ऐसे में
सारा बर्डन थर्ड स्टेट के ऊपर आ जाता है इस सिचुएशन को और भी वोलेटाइल बनाते हैं पॉलिटिकल कॉसेस फ्रांस के किंग लोई द 16 ऑटोक्रेटिक और वीक विल वाले मोनार्क थे जो लग्जरी में अपना जीवन बिता रहे थे इससे मासेज जो एक्स्ट्रीम पॉवर्टी और हंगर से परेशान थी उनके अंदर आक्रोश बढ़ता जा रहा था आखिर में आते हैं इंटेलेक्चुअल कारण जिसमें फिलोसोफर के रोल की चर्चा होती है 18th सेंचुरी के दौरान फ्रेंच थिंकर्स डिवाइन राइट्स थिरी को कॉन्शियसली रिजेक्ट करते हैं रूसो जैसे फिलोसोफर एब्सलूट मनकी को रिजेक्ट करते हैं और डॉक्ट्रिन ऑफ इक्वलिटी और पीपल्स
सॉवरेन को प्रमोट करते हैं यह लोग ओल्ड पॉलिटिकल सिस्टम के फ्लज को एक्सपोज करने का काम काम करते हैं और एक तरह से पॉपुलर डिस्कंटेंट को आर्टिकुलेट करते हैं यह तो बात हो गई फ्रेंच रेवोल्यूशन के कॉसेस की आइए अब रेवोल्यूशन के कोर्स को समझते हैं कोर्स ऑफ द रेवोल्यूशन जैसा कि हमने देखा कि फ्रांस की आर्थिक स्थिति काफी खराब हो चुकी थी ऐसे में 1786 में लुई द 16 के कंट्रोलर जनरल शाल एलेक्जेंडर द कोलोन फाइनेंशियल रिफॉर्म पैकेज प्रपोज करते हैं इसमें यूनिवर्सल लैंड टैक्स को शामिल किया जाता है जिससे प्रिविलेज्ड क्लासेस को एम्प्ट
नहीं किया जाएगा इस रिफॉर्म पैकेज पर सहमति बनाने के लिए फ्रांस के किंग स्टेट्स जनरल की मीटिंग बुलाते हैं 1614 के बाद पहली बार स्टेट्स जनरल को समन किया जा रहा था यह फ्रांस की असेंबली थी जो क्लर्जी नोबिलिटी और मिडिल क्लास को रिप्रेजेंट करती थी इसमें हर स्टेट का अपना कलेक्टिव एक वोट होता था इस तरह 300 मेंबर्स के फर्स्ट स्टेट के लिए कलेक्टिवली एक वोट था और सेकंड स्टेट के 300 मेंबर्स के लिए भी कलेक्टिवली एक ही वोट था थर्ड स्टेट में 600 मेंबर्स थे जिनके लिए भी कलेक्टिवली एक ही वोट था इस
तरह फर्स्ट और सेकंड स्टेट हर इशू पर कंबाइन हो जाते थे और उनके दो वोट के आगे थर्ड स्टेट हार जाता था लेकिन 1614 के बाद से फ्रांस की पॉपुलेशन में ड्रामे चेंजेज आ चुके थे थर्ड स्टेट के नॉन एरिस्टोटल मेंबर्स अब 98 पर पॉपुलेशन को रिप्रेजेंट कर रहे थे इसके बावजूद फर्स्ट एंड सेकंड स्टेट उन्हें आउट वोट कर सकते थे क्योंकि स्टेट्स जनरल में वोटिंग पर हेड नहीं होती थी बल्कि हर एक स्टेट को एक वोट मिला हुआ था 5थ म की मीटिंग से पहले थर्ड स्टेट के मेंबर्स इक्वल रिप्रेजेंटेशन और नोबल वोट के
रिपील की डिमांड करते हैं यानी यह स्टेटस की जगह वोटिंग बाय हेड चाहते थे व स्टेट जनरल के हर एक मेंबर के लिए इंडिविजुअली एक वोट चाहते थे इस तरह फर्स्ट और सेकंड स्टेट को मिलाकर 600 वोट्स और थर्ड स्टेट के भी 600 वोट्स होते लेकिन ऐसा करने से स्टेट्स जनरल में फर्स्ट और सेकंड स्टेट का दबदबा कम हो जाता पहले दो स्टेट्स अपने प्रिविलेज्ड पोजीशन को सैक्रिफाइस करने को तैयार नहीं थे जिसके कारण स्टेट्स जनरल में डेड लॉक हो गया व्यवसाय में जब स्टेट्स जनरल मिलते हैं तो वोटिंग प्रोसेस पर हीटेड डिबेट जल्द ही
तीनों ऑर्डर्स के बीच हॉस्टलित जाती है ऐसे में मीटिंग का ओरिजिनल पर्पस कहीं खो जाता है अब थर्ड स्टेट के मेंबर्स पॉलिटिकल चेंज या सत्ता में बदलाव चाहते थे जिससे फर्स्ट टू स्टेट्स के प्रिविलेज्ड पोजीशन को खत्म किया जा सके प्रोसीजरल टॉक्स के स्टॉल होने के बाद थर्ड स्टेट अकेले ही 17 जून को मिलता है और फॉर्मली नेशनल असेंबली का टाइटल अडॉप्ट कर ले लेता है इस दौरान किंग लुई द 16th थर्ड एस्टेट के मेंबर्स की पैलेस ऑफ वसाय के अंदर एंट्री पर रोक लगा देते हैं जिसके कारण थर्ड स्टेट के लोगों में बहुत अधिक
गुस्सा भड़क जाता है वह समझ जाते हैं कि नोबिलिटी और क्लर्जी उन्हें हमेशा दबा के रखना चाहती हैं और अब भी वह चुप रहे तो नए टैक्सेस के बोझ उन्हीं के सर डाल दिए जाएंगे ऐसे में 20 जून 1789 को थर्ड एस्टेट के मेंबर्स व्यवसाय के पा एक टेनिस कोर्ट में जमा होते हैं और सो कॉल्ड टेनिस ओथ लेते हैं जिसमें कसम खाई जाती है कि वह तब तक पीछे नहीं हटेंगे जब तक फ्रांस के लिए एक नया कॉन्स्टिट्यूशन ना बना ले एक हफ्ते के अंदर ही मेजॉरिटी ऑफ क्लेरिक डेप्यूटीज इन्हें जॉइन कर लेते हैं
साथ ही 47 लिबरल नोबल्स भी ऐसे में रिलक्टिविटी में मिलना जारी रखती है लेकिन इसी बीच कैपिटल पेरिस में फेयर और वायलेंस का माहौल बनने लगता है मिलिट्री कू के रूमर्स पेरिस के लोगों को अलार्म कर देते हैं ऐसे में 14th जुलाई को कुछ लोग बेस्टील नाम के फोर्ट्रेस पर अटैक कर देते हैं इनका मकसद यहां की गन पाउडर और वेपंस को सीज करना था कई लोग इस इवेंट को फ्रेंच रेवोल्यूशन की शुरुआत मानते हैं और फ्रांस में आज इसे नेशनल हॉलिडे की तरह सेलिब्रेट किया जाता है बेस्टी की स्टॉर्मिंग के बाद कंट्री साइड में
भी रेवोल्यूशन वेव नजर आती है पेजेंट्स के द्वारा टैक्स कलेक्टर्स और लैंडलॉर्ड्स के घरों को लूटा और जलाया जाता है लेट अगस्ट में असेंबली द्वारा डिक्लेरेशन ऑफ राइट्स ऑफ मैन एंड सिटीजन पास किया जाता है ये इनलाइटनमेंट थिंकर्स के फिलोसॉफिकल और पॉलिटिकल आइडियाज पर बेस्ड डेमोक्रेटिक प्रिंसिपल्स का एक स्टेटमेंट था असेंबली एंसेट रेजीम की जगह इक्वलिटी फ्रीडम ऑफ स्पीच पॉपुलर सोवन और रिप्रेजेंटेटिव गवर्नमेंट पर बेस्ड सिस्टम लाने की प्लेज करती है डिक्लेरेशन ऑफ राइट्स ऑफ मैन एंड सिटीजंस पुराने फ्यूड ऑर्डर या एंसेट रेजीम का डेथ सर्टिफिकेट थी लेकिन नेशनल असेंबली के सामने बड़ा चैलेंज फॉर्मल
कॉन्स्टिट्यूशन की ड्राफ्टिंग का था क्योंकि इसके साथ ही इसे डिफिकल्ट इकोनॉमिक टाइम्स में लेजिसलेच्योर नए कांस्टिट्यूशन ने मिडिल क्लासेस को डोमिनेंट पोजीशन दी वैसे तो सभी सिटीजंस के पास सिविल राइट्स या नागरिक अधिकार थे लेकिन वोट करने का अधिकार कुछ ही लोगों को दिया गया था जिनके पास प्रॉपर्टी थी या जो सरकार को एक फिक्स्ड लिमिट के ऊपर टैक्स पे करते थे इसके अलावा मोनकी को पूरी तरह खत्म तो नहीं किया गया लेकिन उसकी पावर्स को सीमित कर दिया गया और उसे चुनी हुई सरकार के आधीन कर दिया गया इस तरह फ्रांस एब्सलूट मोनकी से
कॉन्स्टिट्यूशन मोनकी में कन्वर्ट हो गया 1791 से 1792 के बीच नई लेजिस्लेटिव असेंबली को कई परेशानियों का सामना करना पड़ा जैसे कि मोनकी के सपोर्टर्स और अपोजर्स के बीच झड़प चल रही थी फर्स्ट एस्टेट और सेकंड स्टेट के लोग जिन्होंने रेवोल्यूशन के बाद अपने प्रिविलेजेस खो दिए थे सरकार के खिलाफ साजिशें करने में लगे हुए थे इसी बीच फ्रांस में रेवोल्यूशन से घबराए नेबरिंग कंट्रीज के मोनार्कस भी फ्रांस के खिलाफ गोलबंद होना शुरू हो गए ऑस्ट्रिया और प्रश ने एक अलायंस बना लिया जिसका मेन मकसद था फ्रांस में मोनकी या राजशाही की वापसी करवाना अप्रैल
1792 में वॉर स्टार्ट हो गया शुरू में फ्रांस कई बैटल्स हार गया इससे लोगों का मनोबल टूटने लगा था और ऐसे वक्त में लेजिस्लेटिव असेंबली को डिजॉल्ड्रिंग को बनाने का मेन मकसद था फ्रेंच रेवोल्यूशन के बाद बनी नई व्यवस्था को इंटरनल और एक्सटर्नल एनिमी से प्रोटेक्ट करना नेशनल कन्वेंशन गवर्नमेंट सितंबर 1792 से 1795 के बीच रही और इस फेज को फ्रेंच रेवोल्यूशन का सबसे वायलेंट फेज भी कहा जाता है आइए नेशनल कन्वेंशन गवर्नमेंट के बारे में थोड़ा डिटेल में जानते हैं नेशनल कन्वेंशन गवर्नमेंट नेशनल कन्वेंशन गवर्नमेंट शुरू से रेडिकल्स के द्वारा डोमिनेटेड थी रेडिकल्स ऐसे
लोगों को कहते हैं जो प्रेजेंट व्यवस्था में और बदलाव लाना चाहते हैं रेडिकल्स का मानना था फ्रांस में मोनकी को पूरी तरह से खत्म करके इसे रिपब्लिकन डिक्लेयर कर देना चाहिए इस दौरान जब ऑस्ट्रिया और प्रश से वॉर चल रहा था तो किंग लुई द 16 ने ऑस्ट्रिया भागने की कोशिश की लेकिन वह सफल नहीं हो पाए और उन्हें बंधक बना लिया गया ऑस्ट्रिया की किंग लुई का ससुराल था और फ्रांस में दोबारा मोनकी की वापसी के लिए युद्ध भी कर रहा था ऐसे में लुई द 16 पर रेवोल्यूशन के खिलाफ साजिश करने का आरोप
लगा नेशनल कन्वेंशन गवर्नमेंट ने लुई द 16 का ट्रायल किया लुई द 16 को फ्रांस के दुश्मनों के साथ मिलकर रेवोल्यूशन के खिलाफ साजिश करने का दोषी पाया गया उन्हें डेथ बाय गिलेन की सजा मिली गिलेन एक स्पेशल इंस्ट्रूमेंट था जिसका यूज कन्विसिटी एग्जीक्यूट करने के लिए किया जाता था दिसंबर 1792 में किंग लुई द 16 को गिलेन के द्वारा एग्जीक्यूट कर दिया गया न महीने बाद उनकी पत्नी मेरी एंटोनेट को भी सेम फेट का सामना करना पड़ा अब फ्रांस को रिपब्लिक डिक्लेयर कर दिया गया नेशनल कन्वेंशन गवर्नमेंट के अंदर भी कई फैक्शंस थे जिसमें
दो सबसे पॉपुलर थे जरोस और जैकबिंस जरोस लिबरल विचार के थे जबकि जैकबिंस रेडिकल विचारों के थे जैकोबिन फैक्स मेनली पुअर सेक्शंस ऑफ सोसाइटी को रिप्रेजेंट करता था यह आर्टिजंस डेली वर्कर्स पेजेंट्स जैसे सेक्शंस को रिप्रेजेंट करते थे 1793 की शुरुआत तक जैकबिंस नेशनल कन्वेंशन गवर्नमेंट को डोमिनेट करने लग गए थे जैकबिंस रेडिकल ग्रुप में से भी एक्सट्रीम रेडिकल्स थे यह सोसाइटी में एक्सट्रीम चेंजेज लाना चाहते थे वॉर के दौरान जब फ्रांस कई सारी परेशान का सामना कर रहा था ऐसे समय में सत्ता की बागडोर जैकबिंस के हाथों में आ गई इनके लीडर थे मैक्स
मिलियो दे हॉबस पेयर इन्होंने डूबती इकॉनमी को सुधारने के लिए कई रेडिकल कदम उठाए अरिस्टो क्रेटिक और नोबिलिटी सेक्शंस की वेल्थ को पुअर पीपल में रीडिप ब्यूट करने का ऑर्डर दिया गया चर्चस और नोबल्स की लैंड को कंफिट कर लिया गया और कॉमन पीपल के बीच बांट दिया गया वस पिय ने फ्रांस में स्लेवरी भी अबॉलिश कर दी यह सारे कदम तो लोगों के फायदे के लिए थे लेकिन रबस पियर ने इनको इंफोर्स करने के लिए ब्रूटल तरीका अपनाया जो कोई भी रबस पियर और जैकबिंस के खिलाफ बोलता पाया जाता उसे रेवोल्यूशन का एनिमी बताकर
गिलोटिन के द्वारा एग्जीक्यूट कर दिया जाता 1793 से 1794 के बीच कम से कम 16000 लोगों को गिल्टन कर दिया गया ऐसे में लोग जैकबिन से काफी परेशान हो गए थे 1794 के एंड तक जैकबिंस ग्रुप को सत्ता से बाहर किया गया और बबस पियर को खुद गिलोटिन कर दिया गया इसके बाद एक नई फ्रेंच गवर्नमेंट को पावर दी गई जिसे डायरेक्ट्रीएंट्री अर्ली 1795 में नेशनल कन्वेंशन ने फ्रांस के लिए एक नया रिपब्लिकन कॉन्स्टिट्यूशन ड्राफ्ट किया नए कॉन्स्टिट्यूशन ने व वोटिंग राइट्स को समृद्ध मिडिल क्लास तक रिस्ट्रिक्टर दिया इससे पहले जैकबिंस के रूल के दौरान
इसे सभी एडल्ट फ्रेंच पुरुष को दे दिया गया था फाइव मेंबर्स की एक एग्जीक्यूटिव बॉडी बनाई गई जिसको फ्रांस के एडमिनिस्ट्रेशन का सारा जिम्मा सौंपा गया इस फाइव मेंबर ग्रुप को डायरेक्ट्रीएंट्री ब्यूट करने का मकसद था कि गब स्पिया के रेन ऑफ टेरर की तरह कोई एक आदमी पावर को एक्सप्लोइट ना कर सके अगर कोई एक पावर एक्सप्लॉयड करता है तो बाकी डायरेक्टर्स उसको चेक में रख सकते हैं लेकिन चेक्स के बावजूद भी देखा जाता है कि डायरेक्टरी गवर्नमेंट पूरी तरह से करप्ट थी जिस वजह से यह जल्द ही फ्रेंच पीपल का सपोर्ट खो देते
हैं अब लोग किसी भी तरह फ्रांस में एक स्टेबल और डिसिप्लिन रूल चाहते थे जिससे फ्रांस में एक बार फिर शांति महसूस की जा सके इस दौरान नेपोलियन बोनापार्ट एक करिश्माई आर्मी जनरल के रूप में उभर रहे थे नेपोलियन ने फ्रांस में चल रहे इंटरनल डिस्टरबेंसस को क्रश कर दिया उन्होंने बाहरी पावर्स ऑस्ट्रिया प्रशिया और ब्रिटेन को भी कई बैटल्स में शिकस्त दी जो फ्रांस में तख्ता पलटकर मोनकी वापस लाने का सपना देख रहे थे नेपोलियन की जीत के कारण एक लंबे समय के बाद फ्रांस में शांति का माहौल बन रहा था ऐसे में नेपोलियन
फ्रेंच जनता के बीच काफी पॉपुलर थे इसलिए जब 1799 में नेपोलियन ने डायरेक्ट्रीएंट्री कॉन्सुलट सिस्टम में फ्रेंच गवर्नमेंट को संभालने के लिए तीन कंसल्स की नियुक्ति की गई नेपोलियन ने अपने आप को फर्स्ट कंसल नियुक्त किया इस तरह वह काउंसलेट में सबसे पावरफुल हो गए और एक तरह से उन्होंने फ्रेंच में डिक्टेटरशिप स्टार्ट कर दिया लेकिन नेपोलियन इतने से संतुष्ट नहीं थे 1804 में उन्होंने एक प्लेब साइट या जनमत संग्रह कराया जिसमें 99 पर लोगों ने उनके रूल को अप्रूव किया तो उन्होंने अपने सर पर ताज रख लिया और अपने आप को फ्रांस का एंपरर
घोषित कर दिया और इस तरह फ्रेंच रेवोल्यूशन का एक तरह से अंत हो गया फ्रांस एक बार फिर मोनकी बन चुका था तो क्या इसका मतलब यह था कि फ्रेंच रेवोल्यूशन का कोई फायदा ही नहीं हुआ जी नहीं आइए फ्रेंच रेवोल्यूशन की सिग्निफिकेंट को समझते हैं सिग्निफिकेंट ऑफ द फ्रेंच रेवोल्यूशन दोस्तों अपने फ्लज के बावजूद फ्रेंच रेवोल्यूशन को मॉडर्न हिस्ट्री में वाटरशेड मूवमेंट माना जाता है इसने नए आइडियाज को जन्म दिया जो लिबरलिज्म इनलाइटनमेंट और डेमोक्रेसी से प्रेरित थे रिपब्लिक की सर्वाइवल के लिए फ्रेंच आर्मीज ने बहुत से वॉर्स फाइट किए और इनके थ्रू ये
आइडियाज यूरोप के बाकी हिस्सों में फैले यूरोप के लोगों में में इसने रेवोल्यूशन फर्वर की एक वेव क्रिएट कर दी जिसने उन्हें अपने खुद के मोनार्कस के अगेंस्ट आवाज उठाने के लिए इंस्पायर किया हालांकि ज्यादातर को वायलेंटली सप्रे कर दिया गया लेकिन फिर भी रेवोल्यूशन अर्ली 19th सेंचुरी तक जारी रहे और अक्रॉस यूरोप बहुत सी एब्सलूट मोनकी के ओवरथ्रो का कारण बने फ्रेंच रेवोल्यूशन ने फ्यूड इजम का एंड किया और ब्रॉडली डिफाइंड इंडिविजुअल लिबर्टीज में फ्यूचर एडवांसमेंट्स का रा बनाया इंडस्ट्रियल रेवोल्यूशन दोस्तों आज हम एक ऐसे टॉपिक पर चर्चा करेंगे जिसने हम सभी के जीवन
को गहराई तक प्रभावित किया है एक बार हिस्टोरियन हॉब्स बम ने कहा था कि आग और लोहे की खोज के बाद यदि किसी चीज ने ह्यूमन सोसाइटी को सबसे ज्यादा प्रभावित किया है तो वह है इंडस्ट्रियल रेवोल्यूशन यहां हमारे मन में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि आखिर यह इंडस्ट्री रेवोल्यूशन है क्या इसका अर्थ क्या है तो इसका आंसर है उत्पादन प्रणाली यानी प्रोडक्शन सिस्टम में परिवर्तन को ही इंडस्ट्रियल रेवोल्यूशन के रूप में जाना जाता है वास्तव में इंडस्ट्रियल रेवोल्यूशन से पहले यूरोप में ही नहीं बल्कि पूरे वर्ल्ड में जरूरत की सभी वस्तुओं का उत्पादन
कुटीर उद्योगों यानी हाउसहोल्ड इंडस्ट्रीज के द्वारा किया जाता था जिन्हें आज हम हैंडीक्राफ्ट इंडस्ट्री के रूप में जानते हैं जबकि इंडस्ट्रियल रेवल में प्रोडक्शन के लिए कोल और स्टीम इंजनों से चलने वाली मशीनों का इस्तेमाल किया जाने लगा आइए अब हम जानने का प्रयास करते हैं कि यह क्रांति पहले पहल कहां हुई कब हुई और क्यों हुई इंडस्ट्रियल रेवोल्यूशन की शुरुआत 750 से 760 एडी के आसपास ब्रिटेन से मानी जाती है वर्तमान में कुछ विद्वानों का यह भी मानना है कि ब्रिटेन में शुरू हुई इंडस्ट्रियल इजेशन की यह धारा अभी भी खत्म नहीं हुई है
और आज भी फोर्थ इंडस्ट्रियल रेवोल्यूशन के रूप में निरंतर जारी है यहां मन में यह प्रश्न उठने स्वाभाविक हैं कि इंडस्ट्रियल रेवोल्यूशन सबसे पहले ब्रिटेन में ही क्यों हुआ और इसके प्रभाव क्या रहे दरअसल ब्रिटेन ही वह देश था जहां इंडस्ट्रियल रेवोल्यूशन के लिए अनुकूल परिस्थितियां मौजूद थी ब्रिटेन की जियोग्राफी इसके नेचुरल रिसोर्स दुनिया भर में फैली ब्रिटिश कॉलोनी के साथ होने वाला उसका ट्रेड इकोनॉमिक डेवलपमेंट साइंटिफिक डिस्कवरीज ब्रिटेन में हुए एग्रीकल्चर रिफॉर्म्स ब्रिटेन की प्रोग्रेसिव पॉलिटिकल पॉलिसीज और ब्रिटिश समाज की आधुनिक सोच इन सभी ने मिलकर ब्रिटेन में इंडस्ट्रियल रेवोल्यूशन के लिए एक अनुकूल
माहौल तैयार कर दिया था दोस्तों जहां तक इंडस्ट्रियल रेवोल्यूशन के प्रभावों की बात है तो हम देखते हैं कि मानव जीवन का कोई भी हिस्सा इससे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सका इसने तत्कालीन राजनीति अर्थव्यवस्था समाज और संस्कृति आदि का पूरी तरह से कायाकल्प कर दिया इसने जीवन के हर क्षेत्र में नए सिद्धांतों और विचारों को जन्म दिया यहां तक कि प्रकृति भी इसके प्रभावों से अछूती नहीं रह सकी आइए अब हम एक-एक करके इन कारणों और प्रभावों को समझने का प्रयास करते हैं कॉसेस ब्रिटेन फेवरेबल जियोग्राफी एंड नेचुरल रिसोर्सेस ब्रिटेन की जियोग्राफी ने ब्रिटेन
के इंडस्ट्रीज में बड़ा ही इंपॉर्टेंट रोल प्ले किया था ब्रिटेन के चारों ओर से समुद्र से घिरा होने के कारण वह बाहरी हमलों से बचा रहा इसके साथ ही सी पोर्ट्स के डेवलपमेंट के लिए अनुकूल कोस्टलाइन होने के कारण वहां मैनचेस्टर लिवरपूल जैसे बंदरगाहों को विकसित करना आसान था गर्म गल्फ स्ट्रीम करंट की वजह से ब्रिटेन के पोर्ट्स साल भर ट्रेड के लिए खुले रहते थे ब्रिटेन के क्लाइमेट ने भी इंडस्ट्रियल इजेशन में हेल्प की ब्रिटेन की नम जलवायु कॉटन इंडस्ट्री के लिए बहुत उपयोगी साबित हुई क्योंकि नमी के कारण मशीन में तेजी से घूमते
स् पूल में धागे के टूटने का खतरा काफी कम होता था इसके अतिरिक्त ब्रिटन में कोल और आयरन के भंडार बड़ी मात्रा में मौजूद थे सभी मेन सी ट्रेड रूट्स के रास्ते में पड़ने के कारण ब्रिटिश कॉलोनी से कच्चा माल इंपोर्ट करना और तैयार माल एक्सपोर्ट करना बहुत ही आसान था इन सी रूट्स की सुरक्षा के लिए ब्रिटेन ने एक शक्तिशाली नौसेना का निर्माण किया था उसकी नौसेना की शक्ति का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि अपनी शक्ति के चरम पर होने के बावजूद नेपोलियन बोनापार्ट भी ब्रिटिश नौसेना को हराने में सफल नहीं
हो सका था एग्रीकल्चर रिफॉर्म्स इन ब्रिटेन 16वीं और 17वीं सदी में ब्रिटेन में हुए एग्रीकल्चर रिफॉर्म्स ने इंडस्ट्रियल रेवोल्यूशन के लिए एक आधार तय कर दिया था इस दौर में कृषि में नई-नई तकनीकों का प्रयोग किया गया जिससे कृषि उत्पादन में तीव्र वृद्धि हुई एग्रीकल्चर लैंड की चकबंदी यानी कंसोलिडेशन और फेंसिंग की गई जिससे एग्रीकल्चर फार्म्स का साइज बड़ा हो गया और पशुओं द्वारा होने वाली फसल की बर्बादी कम हो गई खेतों से लगातार उपज लेने के लिए क्रॉप रोटेशन तकनीक का इस्तेमाल किया गया ड्रिल के जरिए बीज बोने की तकनीक फर्टिलाइजर का प्रयोग पशुओं
की नस्लों में सुधार और नहरों के जरिए सिंचाई की व्यवस्था आदि के माध्यम से कृषि उत्पादन में गुणात्मक सुधार हुआ फूड ग्रेस के अतिरिक्त उत्पादन ने ब्रिटिश इकॉनमी को शहरों की बढ़ती आबादी को वहन करने की क्षमता प्रदान की और मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्री के लिए कच्चा माल भी उपलब्ध कराया इसके साथ ही एग्रीकल्चर से होने वाले प्रॉफिट को इंडस्ट्रियल सेक्टर में ही इन्वेस्ट किया गया साइंटिफिक डिस्कवरीज ब्रिटेन का साइंटिफिक एनवायरमेंट नई-नई खोजों को अपनाने के मामले में यूरोप के अन्य देशों की तुलना में अधिक अनुकूल था इस दौर में टेक्सटाइल इंडस्ट्री कोल एंड आयन इंडस्ट्री ट्रांसपोर्टेशन
एंड कम्युनिकेशन सेक्टर में नवीन तकनीकों को अपनाया गया टेक्सटाइल इंडस्ट्री 1733 एडी में जॉन नामक एक अंग्रेज ने फ्लाइंग शटल नामक कपड़ा बुनने की मशीन का आविष्कार किया जिससे कपड़ा बुनाई में तेजी आई 1764 एडी में जेम्स ह ग्रीव्स ने स्पिनिंग जेनी का आविष्कार किया जिससे पहले की तुलना में आठ गुना अधिक तेजी से धागा बनाया जा सकता था 1770 एडी में रिचर्ड आक राइट ने धागा बनाने के लिए वटर फ्रेम नामक मशीन का आविष्कार किया रिचर्ड की यह मशीन जल शक्ति से चलती थी रिचर्ड को ब्रिटेन में टेक्सटाइल इंडस्ट्री का फाउंडर माना जाता है
कोल एंड आयन इंडस्ट्री ब्रिटेन में तेजी से बढ़ रहे मशीनीकरण शिप्स मैन्युफैक्चरिंग लोकोमोटिव और रेलवे ट्रैक्स के निर्माण के लिए आयन और स्टील की मांग बढ़ रही थी जिसे पूरा करने के लिए ऐसी फर्नेस बनाई गई जो स्टोन कोक का प्रयोग प्रयोग कर सकती थी इन फर्नेस का क्रिटिकल टेंपरेचर वुड कोक का प्रयोग करने वाली फर्नेस से ज्यादा होता था इनकी सहायता से अच्छी गुणवत्ता का स्टील बनाया जा सकता था हफ्री डेबी द्वारा सेफ्टी लैंप के आविष्कार ने कोल माइंस में काम करने वाले मजदूरों का माइंस के अंदर काम करना आसान बना दिया और कोल
माइन में होने वाली दुर्घटनाओं एवं श्रमिकों की मृत्यु में उल्लेखनीय कमी आई इसके पहले मजदूर जिस ट्रेडिशनल माइंड लैंप का प्रयोग करते थे वह कोल माइंस से निकलने वाली ज्वलनशील गैसों के कारण आग पकड़ लेते थे जिससे अक्सर माइंस में जानलेवा दुर्घटनाएं होती रहती थी डेवलपमेंट ऑफ ट्रांसपोर्टेशन स्कॉटिश इंजीनियर जॉन लोडन मैडम द्वारा तारकोल सड़कों के निर्माण से कच्चे माल को कारखानों तक पहुंचाना और मैन्युफैक्चर प्रोडक्ट्स को मार्केट तक पहुंचाना आसान हो गया इसके अलावा ब्रिटेन में नहरों और रेलवे का डेवलपमेंट भी तेज गति से हुआ 176 69 एडी में जेम्स वट ने स्टीम इंजन
का आविष्कार किया जिसका प्रयोग टेक्सटाइल इंडस्ट्री और कोल माइंस में किया जाने लगा 18148 में जेम्स स्टीवेंसन ने रेलवे स्टीम इंजन डिवेलप किया लगभग 1830 में ब्रिटेन के मैनचेस्टर और लिवरपूल के बीच पहली ट्रेन चलाई गई परिवहन के इन साधनों के विकास ने माल ढुलाई और लोगों का एक जगह से दूसरी जगह आना जाना बहुत ही आसान और तेज बना दिया पावर के इसी सिद्धांत का प्रयोग स्टीम शिप बिल्डिंग में भी किया गया इससे बड़े और अधिक वाटर डिस्प्लेसमेंट वाले शिप बनाए जाने लगे शिप बिल्डिंग में इन तकनीकी सुधारों के फल स्वरूप ना सिर्फ ब्रिटिश
नौसेना की ताकत बढ़ी बल्कि अब बड़े पैमाने पर इंटरनेशनल ट्रेड करना संभव हो गया इकॉनमी एंड डेवलपमेंट ऑफ बैंकिंग सिस्टम 17वीं और 18वीं सदी तक ब्रिटेन ने इंटरनेशनल ट्रेड के माध्यम से काफी लाभ कमाया था भारत अमेरिका जैसे उपनिवेश के माध्यम से ब्रिटेन को बड़ी मात्रा में सरप्लस कैपिटल की प्राप्ति हो रही थी इस सरप्लस कैपिटल को इंडस्ट्रीज में इन्वेस्ट किया जाने लगा इस काम के लिए ब्रिटेन में जॉइंट स्टॉक कंपनियों बैंकों की स्थापना हुई पॉपुलेशन ग्रोथ 1740 50 एडी के आसपास ब्रिटेन सहित पूरे यूरोप में जनसंख्या में तेजी से वृद्धि हुई इससे वस्तुओं की
मांग और कीमतें बढ़ने लगी ऐसे में उत्पादन बढ़ाने के लिए नए-नए तकनीकी उपाय अपनाए जाने लगे इस बढ़ती हुई जनसंख्या ने कारखानों और कोल माइंस में काम करने के लिए चीप लेबर उपलब्ध कराया लिबरल पॉलिटिकल सिस्टम राजनीतिक दृष्टिकोण से ब्रिटेन का पॉलिटिकल सिनेरियो इंडस्ट्रियल रेवोल्यूशन के लिए अनुकूल था वस्तुतः यूरोप के अन्य देशों की तुलना में ब्रिटिश पार्लियामेंट्री पॉलिटिक्स में जनता के एक ठीक-ठाक हिस्से को अपनी बात रखने की आजादी थी ऐसे में वहां कैपिटिस क्लास और मध्य वर्ग के फलने फूलने के लिए पर्याप्त अवसर उपलब्ध थे जबकि इसी समय फ्रांस ऑस्ट्रिया प्रश आदि यूरोपीय
देश अभी भी फ्यूड सिस्टम में जकड़े हुए थे आइए अब हम देखते हैं इंडस्ट्रियल रेवोल्यूशन का इकॉनमी सोसाइटी पॉलिटिक्स और एनवायरमेंट पर क्या प्रभाव पड़ा इफेक्ट्स इफेक्ट्स ऑन इकॉनमी इंडस्ट्रियल रेवोल्यूशन से कारखानों और फैक्ट्रियों में गुड्स के प्रोडक्शन में एक्स्ट्राऑर्डिनरी ग्रोथ हुई मैन्युफैक्चर्ड गुड्स को ब्रिटेन के आंतरिक भागों और फॉरेन मार्केट्स तक पहुंचाने के लिए लॉजिस्टिक्स का बड़े पैमाने पर विकास हुआ इससे मिलने वाले प्रॉफिट से ब्रिटेन में इंडस्ट्रियल कैपिटल ज्म का डेवलपमेंट हुआ जॉइंट स्टॉक ट्रेडिंग कंपनियों की स्थापना की गई इन कंपनियों ने मार्केट से पूंजी जुटाने के लिए स्टॉक मार्केट में सिक्योरिटीज और
शेयर्स की ट्रेडिंग प्रारंभ की जिससे एक कैपिटल मार्केट डेवलप हुआ इसके साथ ही इंडस्ट्रियल इजेशन के चलते बैंकिंग एवं बीमा कंपनियों का भी विकास हुआ जिसने ट्रेड एक्टिविटीज को सिक्योर और इजी बना दिया इंडस्ट्रियल इजेशन का एक नेगेटिव इफेक्ट यह रहा कि इससे घरेलू उद्योग धंधों का विनाश हो गया जो कारीगर अपने घर पर अपने परिवार के सदस्यों के साथ सीमित पूंजी से काम करते थे वे अब बेरोजगार हो गए अब कारखानों में मशीनों से उत्पादन होने लगा था जो कॉटेज इंडस्ट्री या हैंडीक्राफ्ट इंडस्ट्री के उत्पादन से काफी सस्ता होता था और इसकी गुणवत्ता भी
अच्छी थी अतः घरेलू उद्योगों में बने उत्पादों की मांग काफी कम हो गई यहां हमें एक बात ध्यान रखनी चाहिए कि इंडस्ट्रियल से घरेलू उद्योगों के नष्ट होने का नेगेटिव इफेक्ट औद्योगिक देशों पर नहीं पड़ा क्योंकि इन देशों में घरेलू उद्योगों के नष्ट होने पर इनकी जगह कारखानों और फैक्ट्रियों ने ले ली थी इसका नेगेटिव इफेक्ट भारत जैसी कॉलोनी पर पड़ा जहां ब्रिटेन के सस्ते माल के कारण घरेलू उद्योग पूरी तरह से बर्बाद हो गए और इन कुटीर उद्योगों में काम करने वाले लोगों के पास खेती करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा जिससे भारत
जैसे देशों में खेती पर जनसंख्या का दबाव बढ़ने लगा जिसका परिणाम हम भारत में बार-बार पड़ने वाले फैमस के रूप में देख सकते हैं औद्योगिक क्रांति के कारण उत्पादन में स्पेशलाइजेशन को प्रोत्साहन मिला क्योंकि मशीनों के निर्माण और उन्हें चलाने के लिए एक विशेष प्रकार की स्किल की आवश्यकता थी जिसके लिए विशेषज्ञ का होना अनिवार्य था इसलिए यूनिवर्सिटीज में इंजीनियरिंग इकोनॉमिक्स कंपनी लॉ और मैनेजमेंट जैसे विषय पढ़ाए जाने लगे दोस्तों जगह से दूसरी जगह आना जाना बहुत आसान बना दिया इसी के साथ डाक तार अंडरवाटर सी केबल्स टेलीफोन आदि के डेवलपमेंट से दूर दराज के
क्षेत्रों के साथ कम्युनिकेशन स्थापित करना आसान हो गया इससे लोगों के बीच भौतिक और मानसिक दूरी में कमी आई वास्तव में इंडस्ट्रियल रेवोल्यूशन के बाद राष्ट्रों की आपसी निर्भरता बहुत बढ़ गई थी जिससे एक देश में घटने वाली घटना दूसरे देश को सीधे प्रभावित करने लगी पर परिणाम स्वरूप वर्ल्ड इकॉनमी में इकोनॉमिक बूम और रिसेशन नामक नया फिनोमिना दिखाई देने लगा ट्रेड और इंडस्ट्री में होने वाले इस इकोनॉमिक बूम और रिसेशन का असर समाज के सभी वर्गों पर प्रत्यक्ष रूप से पड़ने लगा रिसेशन के समय अनइंप्लॉयमेंट बढ़ जाता था जबकि इकोनॉमिक बूम के समय मांग
बढ़ने पर रोजगार के अवसरों में वृद्धि हो जाती थी आइए अब हम पॉलिटिक्स पर इंडस्ट्रियल रेवोल्यूशन के असर को देखते हैं इ फट्स ऑन पॉलिटिक्स इंडस्ट्रियल रेवोल्यूशन के परिणाम स्वरूप राजनीति में डेमोक्रेटिक पॉलिटिकल प्रिंसिपल्स अधिक लोकप्रिय हो गए आम जनता मांग करने लगी कि उसे इंडिविजुअल फ्रीडम और फंडामेंटल राइट्स दिए जाए पॉलिटिक्स में फ्यूड इजम और अरिस्टो क्रेसी की जगह लिबरल पॉलिटिकल थॉट्स को तरजीह मिलने लगी इस दौर में यूरोप में कैपिट इस्ट और मिडिल क्लास का उदय हुआ जिसने अपने आत्मविश्वास एवं दृढ़ संकल्प से इंडस्ट्रियल रेवोल्यूशन को उच्च शिखर पर पहुंचाया इन क्लासेस ने
अपने हितों की पूर्ति के लिए सरकारों पर दबाव बनाना शुरू कर दिया था इनके दबाव के कारण 19वीं सदी में इंग्लैंड में कई पार्लियामेंट्री रिफॉर्म्स किए गए वैसे एक इंटरेस्टिंग फैक्ट यह है कि इंडस्ट्रियल रेवोल्यूशन तो सबसे पहले इंग्लैंड में हुआ लेकिन कैपिटिस और मिडिल क्लास को पॉलिटिकल एंड सोशल राइट्स सबसे पहले अमेरिका में मिले उसके बाद फ्रेंच रेवोल्यूशन के जरिए उन्हें यह अधिकार फ्रांस में में प्राप्त हुए जबकि 1832 एडी में जाकर उन्हें यह राइट्स ब्रिटेन में मिल पाए दोस्तों इंडस्ट्रियल रेवोल्यूशन में अगर मिडिल क्लास और कैपिटिस क्लास ने अपना नॉलेज और वेल्थ लगाई
थी तो फैक्ट्री वर्कर्स ने अपना खून पसीना लगाया था इंडस्ट्रियल से मिलने वाले प्रॉफिट से जहां एक तरफ पूंजीपति धनवान हो रहे थे वहीं दूसरी तरफ फैक्ट्री वर्कर्स की कंडीशंस लगातार खराब होती जा रही थी इस वर्ग की मेहनत से ही फैक्ट्रीज में उत्पादन होता था लेकिन यह वर्ग अपनी बेसिक नीड्स को भी पूरा नहीं कर पाता था ऐसे में श्रमिकों ने अपनी वर्किंग कंडीशंस में सुधार के लिए अपने ट्रेड यूनियन बनाए इन ट्रेड यूनियंस के जरिए उन्होंने इंडस्ट्रियलिस्ट को मजदूरों के वर्किंग आवर्स निश्चित करने वेजेस में वृद्धि करने एजुकेशन एंड हेल्थ बेनिफिट्स देने के
लिए मजबूर किया इसके साथ ही उन्होंने गवर्नमेंट से लेबर लॉज बनाने की भी मांग की उनके संघर्ष के फलस्वरूप 1825 में ब्रिटिश गवर्नमेंट ने ट्रेड यूनियंस को फॉर्मली रिकॉग्नाइज कर लिया बाद में ब्रिटेन में चार्टिस्ट मूवमेंट के जरिए वर्कर्स ने इकोनॉमिक एंड पॉलिटिकल राइट्स पाने के लिए भी आंदोलन चलाया वास्तव में लेबर मूवमेंट के साथ ही सोशलिज्म की एक नई धारा का यूरोप में धीरे-धीरे विकास हो रहा था इस दौर में इंडस्ट्राइलाइज में कैपिटिस क्लास और वर्कर क्लास के बीच कॉन्फ्लेट बढ़ते जा रहे थे इन कॉन्फ्लेट्स को ही क्लास स्ट्रगल कहा गया इस मूवमेंट में
वर्कर्स को इंटेलेक्चुअल क्लास का भी सपोर्ट मिला इनफैक्ट यह कहना गलत नहीं होगा कि सोशलिस्ट मूवमेंट को इंटेलेक्चुअल क्लास ने ही लीड किया था इन लीडर्स में ब्रिटिश इंडस्ट्रियलिस्ट रॉबर्ट ओवन सेंट साइमन लुई ब्ल कार्ल मार्क्स और फ्रेडरिक एंगल्स प्रमुख थे इन सोशलिस्ट का मानना था कि उत्पादन के साधनों पर एक व्यक्ति अ अथवा पूंजीपति वर्ग का अधिकार नहीं होना चाहिए बल्कि पूरी सोसाइटी का अधिकार होना चाहिए इस तरह इंडस्ट्रियल रेवोल्यूशन ने नई पॉलिटिकल आइडियो जीी को जन्म दिया इंडस्ट्रियल रेवोल्यूशन का प्रभाव इंपीरियल ज्म और कॉलोनियलिज्म जैसी आइडियल पर भी देखा जाता है इंपीरियल ज्म
एंड कॉलोनियलिज्म इंडस्ट्रियल इजेशन के कारण यूरोप में मैन्युफैक्चर्ड गुड्स की खपत के लिए नए-नए बाजारों की आवश्यकता पड़ने लगी इसके अलावा रॉ मटेरियल की सप्लाई एवं सस्ते मजदूरों की भी आवश्यकता थी इसलिए यूरोपीय देशों ने वर्ल्ड के अन्य देशों को अपनी कॉलोनी बनाना शुरू कर दिया साम्राज्यवाद की इस दौड़ में इंग्लैंड फ्रांस स्पेन हॉलैंड जर्मनी जापान और इटली प्रमुख यूरोपीय देश थे इनमें ब्रिटिश एंपायर सबसे बड़ा था यूरोप के यह देश अपनी कॉलोनी का आर्थिक शोषण करते थे वहां से कच्चा माल प्राप्त करके अपने यहां बने तैयार माल को हाई प्रॉफिट मार्जिन के साथ कॉलोनी
में बेचा करते थे जिससे विश्व की धन संपदा यूरोप में इकट्ठा होती रही और भारत जैसे देश गरीब होते रहे बाद में इन्हीं कॉलोनी पर कब्जे और ज्यादा से ज्यादा क्षेत्रों पर अपनी हे जमनी स्थापित करने के लिए यूरोपियन पॉलिटिक्स में अल्ट्रा नेशनलिज्म और मिलिटराइजेशन को बढ़ावा मिला जिसका परिणाम दो विश्व युद्धों के रूप में सामने आया आइए अब हम देखते हैं कि इंडस्ट्रियल रेवोल्यूशन का एनवायरमेंट पर क्या प्रभाव पड़ा इफेक्ट्स ऑन एनवायरमेंट इंडस्ट्रियल रेवोल्यूशन के इनिशियल फेज में इंडस्ट्रियल इजेशन के एनवायरमेंट पर पड़ने वाले नेगेटिव इफेक्ट्स पर ध्यान नहीं दिया गया इंडस्ट्रियल इजेशन के
इनिशियल फेज में रेलवे सड़क बनाने के लिए जंगल के जंगल साफ कर दिए गए रॉ मटेरियल के लिए नेचुरल रिसोर्सेस का अंधा धुंद एक्सप्लोइटेशन किया गया फैक्ट्री से निकलने वाले हार्मफुल केमिकल्स सीधे नदियों झीलों और समुद्र में में मिला दिए जाते थे जिसके कारण यह वाटर रिसोर्सेस पोल्यूटर लगे इन फैक्ट्री से निकलने वाली हार्मफुल गैसेस जैसे कार्बन डाइऑक्साइड सल्फर ऑक्साइड सीएफसी आदि के कारण ग्लोबल वार्मिंग की समस्या उठ खड़ी हुई इन हार्मफुल गैसेस को सीधे एनवायरमेंट में छोड़ दिया जाता था पर समय के साथ इसके नेगेटिव इफेक्ट्स ग्लोबल वार्मिंग एसिड रेन फ्रेश वाटर रिसोर्स के
टॉक्सिक सब्सटेंसस से कंटेम होने इकोलॉजिकल इंबैलेंस और नई-नई डिज के रूप में सामने आने लगे एनवायरमेंट पोल्यूशन हमारे समय की सबसे बड़ी समस्या बनकर उभरी है इस चैलेंज से निपटने के लिए आज पूरा विश्व प्रयासरत है ग्लोबल वार्मिंग और ग्रीन हाउस गैसों पर लगाम लगाने के क्योटो प्रोटोकॉल पेरिस अकॉर्ड मटियाल प्रोटोकॉल कार्बन क्रेडिट स्कीम जैसे एग्रीमेंट किए गए हैं आइए अब हम सोसाइटी और कल्चर पर इंडस्ट्रीज के असर को देखते हैं इफेक्ट्स ऑन सोसाइटी एंड कल्चर इंडस्ट्रियल रेवोल्यूशन ने समाज में तीन नए वर्गों को जन्म दिया पहले वर्ग में कैपिटिस शामिल थे जो इकॉनमी के
साथ-साथ नेशनल पॉलिटिक्स को भी प्रभावित करने की क्षमता रखते थे दूसरा वर्ग था मिडिल क्लास जिसमें डॉक्टर इंजीनियर्स मैनेजर्स एजेंट्स साइंटिस्ट लॉयर्स जर्नलिस्ट और टीचर्स आदि आते थे तीसरे वर्ग में वर्कर्स और पेजेंट्स आते थे जो अपने श्रम और कौशल से उत्पादन करते थे इन तीनों ों के इंटरेस्ट अलग-अलग होने के कारण सोशल अनरेस्ट की स्थिति पैदा होने लगी वास्तव में वर्कर्स को कम वेतन पर प्रायः अमानवीय परिस्थितियों में 12 से 15 घंटे काम करना पड़ता था फैक्ट्रीज और कारखानों में सनलाइट फ्रेश एयर और साफ सफाई का प्रायः अभाव रहता था इन वर्कर्स को स्लम्स
में अमानवीय यानी इन ह्यूमन परिस्थितियों में रहना पड़ता था कुल मिलाकर उनकी स्थिति अत्यधिक दयनीय थी शोषण से वर्कर्स त्रस्त हो चुके थे इसी वर्कर्स अनरेस्ट ने आगे चलकर ट्रेड यूनियन मूवमेंट को जन्म दिया इंडस्ट्रियल रेवोल्यूशन ने सोसाइटी के ट्रेडिशनल स्ट्रक्चर को पूरी तरह से बदल कर रख दिया इसने पुराने सामाजिक संबंधों रीति रिवाजों रहन-सहन खानपान धार्मिक विश्वास आर्ट लिटरेचर आदि में मूलभूत परिवर्तन किए जिसके कारण एक ऐसी सोसाइटी का जन्म हुआ जो वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर आधारित थी परंतु इस सोसाइटी में संबंधों का स्थान आर्थिक संबंधों ने ले लिया अब सोसाइटी में फाइनेंशियल स्टेटस के
बेसिस पर सोशल रिलेशन बनाए जाने को तरजीह दी जाने लगी इसी के साथ इंडस्ट्रियल रेवोल्यूशन ने सोसाइटी में कंज्यूमर जम और मटेरियल जम को बढ़ावा दिया जिसके चलते जॉइंट फैमिली के स्थान पर न्यूक्लियर फैमिलीज को तरजीह दी जाने लगी जिसमें व्यक्तियों का लगाव स्वयं पत्नी और बच्चों पर होता था इंडिविजुअलिज्म की यह भावना सिर्फ तक ही सीमित नहीं थी बल्कि आर्ट और लिटरेचर भी इससे अछूते नहीं रह सके पहले आर्ट और लिटरेचर में सुपर नेचुरल फिनोमिना या अरिस्टो क्रेसी की समृद्धि को सब्जेक्ट के रूप में इस्तेमाल किया जाता था परंतु अब सामान्य व्यक्ति को उसकी
रोजमर्रा की समस्याओं को आर्ट एंड लिटरेचर में सब्जेक्ट के रूप में इस्तेमाल किया जाने लगा इंडस्ट्रियल ने अर्बनाइजेशन को बढ़ावा दिया इंडस्ट्रियल रेवोल्यूशन के कारण जब बड़े-बड़े कारखानों की स्थापना हुई तो कारखानों के आसपास वर्कर्स के घर बच्चों के लिए स्कूल हॉस्पिटल्स और पार्कों की भी स्थापना की गई इनके मनोरंजन के लिए बार गैलिंग हाउस थिएटर्स और सिनेमा घर बनाए गए रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने के लिए दुकानों एवं बाजारों की स्थापना हुई धीरे-धीरे इन स्मॉल सेटलमेंट ने बड़े शहरों का रूप ले लिया बेहतर रोजगार की तलाश में विलेजेस से सिटीज की तरफ लोगों
का भारी संख्या में माइग्रेशन हुआ जिसके परिणाम नाम स्वरूप सिटीज की पॉपुलेशन में बेतहाशा वृद्धि हुई इसके फल स्वरूप इन शहरों में स्लम्स की संख्या भी बढ़ने लगी इन स्लम्स के घुटन भरे माहौल के कारण लोगों में अपराधिक प्रवृत्तियां बढ़ने लगी चोरी बेईमानी एक्स्ट्रा मेरिटल अफेयर्स अल्कोहलिक एडिक्शन क्राइम अगेंस्ट विमेन प्रोस्टिट्यूशन आदि अपराधों में वृद्धि हुई ऐसा नहीं था कि यह सब चीजें पहले नहीं होती थी पर तब यह बहुत छोटे स्तर पर हुआ करती थी इसलिए लोगों का ध्यान इन पर इतना अधिक नहीं जाता था परंतु इंडस्ट्रियल रेवोल्यूशन के समय इन क्राइम्स ने एक
विकराल समस्या का रूप ले लिया एक तरह से हम कह सकते हैं कि इंडस्ट्रियल रेवोल्यूशन के कारण सोसाइटी के मॉरल स्टैंडर्ड्स का पतन हुआ व्यक्ति समाज एवं देश पूर्णतया स्वार्थी होते गए अब वे दूसरों के लिए काम तब तक नहीं करना चाहते थे जब तक उसमें उनका स्वार्थ निहित ना हो आइए अब हम देखते हैं कि इंडस्ट्रियल रेवोल्यूशन का अन्य देशों पर क्या प्रभाव पड़ा स्प्रेडिंग अक्रॉस यूरोप यूएसए एंड बियोंड दोस्तों अभी तक आप समझ चुके होंगे कि इंडस्ट्रियल रेवोल्यूशन कोई ऐसा फिनोमिना नहीं था जिसे एक देश तक ही सीमित रखा जा सके 19वीं सदी
में इंडस्ट्रियल इजेशन की यह धारा अमेरिका फ्रांस जर्मनी इटली और जापान में भी दिखाई देने लगती है इन देशों में इंडस्ट्रीज के पैटर्न के आधार पर इन्हें दो ग्रुप्स में रखा जा सकता है पहले में हम अमेरिका को और कुछ हद तक फ्रांस को रख सकते हैं दूसरे ग्रुप में हम जर्मनी इटली और जापान को रख सकते हैं अमेरिका और फ्रांस में इंडस्ट्रीज के लिए लगभग उन्हीं तौर तरीकों का इस्तेमाल किया गया जिनके आधार पर ब्रिटेन का इंडस्ट्रियल इजेशन हुआ था परंतु जर्मनी इटली और जापान में इंडस्ट्रियल इजेशन का प्रोसेस ब्रिटेन और अमेरिका से बिल्कुल
अलग था इन देशों की सरकारों का मानना था कि वे इंपीरियल ज्म और इंडस्ट्रीज की रेस में दूसरों से पीछे रह गए हैं इसलिए इन देशों की सरकारों ने खुद ही इंडस्ट्रिया परंतु उन्होंने मिलिट्री इक्विपमेंट कोल आयन एंड स्टील इंडस्ट्री शिप बिल्डिंग इंडस्ट्री रेलवे जैसी कुछ इंडस्ट्रीज पर ही अपना फोकस रखा जिससे इन देशों के पॉलिटिकल नैरेटिव में मिलिटराइजेशन और डिक्टेटरशिप को बढ़ावा मिला जिसका परिणाम 1914 में फर्स्ट वर्ल्ड वॉर के रूप में हमारे सामने आया कंक्लूजन दोस्तों यह एक सच्चा आई है कि इंडस्ट्रियल रेवोल्यूशन के कारण व्यक्ति समाज एवं राष्ट्रों का अत्यधिक विकास हुआ
आज का इकोनॉमिक डेवलपमेंट इंडस्ट्रियल रेवोल्यूशन का ही परिणाम है परंतु इसने समाज में असंतुलन को बढ़ावा दिया है आज वर्ल्ड में एक प्रतिशत अमीर लोगों के पास जितनी संपत्ति है वह वर्ल्ड के आधे से अधिक जनसंख्या की कुल संपत्ति से भी ज्यादा है इंडस्ट्रियल रेवोल्यूशन के बाद से ही नेचुरल रिसोर्सेस का एक्सप्लोइटेशन बड़ा है जिसके चलते एनवायरमेंट पोल्यूशन में भी वृद्धि हुई है परंतु इन समस्याओं के कारण यह मान लेना कि इंडस्ट्रियल रेवोल्यूशन ने ह्यूमन सोसाइटी को केवल नुकसान ही पहुंचाया है ठीक विश्लेषण नहीं होगा वास्तव में इसने इकॉनमी पॉलिटिक्स सोशल स्ट्रक्चर में ऐसे चेंजेज
को प्रमोट किया है जिन्होंने आम जनता को डिसीजन मेकिंग प्रोसेस का अभिन्न अंग बना दिया ग्लोबलाइजेशन के इस दौर में आज वर्ल्ड के सभी देश एक दूसरे से जुड़े हुए हैं किसी एक देश की समस्या का असर पूरे वर्ल्ड पर दिखाई पड़ता है आज विश्व के सभी देश एक समान आर्थिक राजनीतिक एवं एनवायरमेंटल प्रॉब्लम्स का सलूशन निकालने के लिए मिलजुलकर प्रयासरत है इंपीरियल ज्म एंड कॉलोनियलिज्म दोस्तों आज हम बात करने वाले हैं एक ऐसे फिनोमिना की जो यूरोप से शुरू होता है और पूरी दुनिया को अफेक्ट करता है इसे हम मॉडर्न वर्ल्ड हिस्ट्री का बेस
भी कह सकते हैं क्योंकि उसे शेप करने में सबसे बड़ा रोल इसी का था हम बात कर रहे हैं इंपीरियल ज्म और कॉलोनियलिज्म की आज के लेक्चर में हम इंपीरियल ज्म और कॉलोनियलिज्म का मीनिंग इसके पीछे के रीजंस और आखिर में इसके कंसीक्वेंसेस को देखेंगे आइए शुरू करते हैं मीनिंग इंपीरियल ज्म का मतलब है कोई स्टेट पॉलिसी या प्रैक्टिस जो पावर और डोमिनियन को एक्सटेंड करने की बात करती है स्पेशली डायरेक्ट टेरिटोरियल एक्विजिशन के थ्रू या फिर दूसरे एरियाज पर पॉलिटिकल और इकोनॉमिक कंट्रोल हासिल करके इसमें हमेशा ही पावर का यूज शामिल होता है चाहे
फिर वह मिलिट्री फोर्स हो या और कोई फॉर्म वहीं दूसरी तरफ कॉलोनियलिज्म एक ऐसा प्रोसेस है जिसमें सेंट्रल सिस्टम ऑफ पावर सराउंडिंग लैंड और उसके कंपोनेंट्स को डोमिनेट करता है कॉलोनियलिज्म एक टेरिटरी पर दूसरे टेरिटरी के लोगों द्वारा कॉलोनी के इस्टैब्लिशमेंट एक्सप्लोइटेशन मेंटेनेंस एक्विजिशन और एक्सपेंशन की प्रैक्टिस है सरल शब्दों में कहें तो जहां कॉलोनियलिज्म एक तरफ ओवरसीज कॉलोनियल टेरिटरीज एस्टेब्लिश करने की बात करता है वहीं इंपीरियल ज्म का मतलब है एंपायर को क्रिएट और एक्सपेंड करना यानी कि इंपीरियल ज्म डोमिनेशन की ब्रॉडर कैटेगरी है जो कॉलोनियलिज्म को अपने अंदर समाहित करती है मॉडर्न कॉलोनियलिज्म
की एज अफ्रीका के सदर्न कोस्ट के अराउंड और अमेरिका के अराउंड सी रूट की डिस्कवरीज के बाद करीब 1580 में शुरू होती है इन इवेंट्स के बाद सी पावर मेडिटरेनियन से अटलांटिक की तरफ और इमर्जिंग नेशन स्टेट्स जैसे कि पोर्च गल स्पेन डच रिपब्लिक फ्रांस और इंग्लैंड की तरफ शिफ्ट हो जाती है डिस्कवरी कॉक्वेस्ट और सेटलमेंट के थ्रू यह नेशंस खुद को पूरी दुनिया में एक्सपें और कॉलोनाइज करते हैं और यूरोपियन इंस्टिट्यूशन और कल्चर को स्प्रेड करते हैं अब बात करते हैं एज ऑफ इंपीरियल जम और उसके पीछे के रीजंस की एज ऑफ इंपीरियल जम
187 टू 1914 19 सेंचुरी में इंडस्ट्रियल रेवोल्यूशन और नेशनलिज्म ने जरूर यूरोपियन सोसाइटी को शेप किया था लेकिन सेंचुरी के लेटर हाफ में इंपीरियल जम ने दुनिया को ड्रेट कली चेंज करने का काम किया हालांकि इंपीरियल जम की शुरुआत 19 सेंचरी में नहीं हुई थी 16th से अर्ली 19th सेंचुरी तक के एरा को ओल्ड इंपीरियल जम कहा जाता है जिस दौरान यूरोपियन नेशंस फार ईस्ट के साथ ट्रेड रूट्स तलाश रहे थे न्यू वर्ल्ड को एक्सप्लोर कर रहे थे और नॉर्थ एंड साउथ अमेरिका के साथ साउथ ईस्ट एशिया में सेटलमेंट एस्टेब्लिश कर रहे थे उन्होंने अफ्रीका
और चाइना के कोस्ट पर ट्रेडिंग पोस्ट सेट अप किए और यूरोपियन इकोनॉमिक इंटरेस्ट की प्रोटेक्शन को इंश्योर करने के लिए लोकल रूलरसोंग्स लिमिटेड ही रहता है लेकिन न्यू इंपीरियल ज्म के दौरान जो कि 187 से शुरू होता है यूरोपियन स्टेट्स द्वारा वास्टप र्स एस्टेब्लिश कर लिए जाते हैं मेनली अफ्रीका में इसके अलावा एशिया और मिडिल ईस्ट में भी यह अपना एंपायर एक्सपेंड करते हैं इस न्यू इंपीरियल एज को इंपिटस देने का काम करते हैं कुछ इकोनॉमिक मिलिट्री पॉलिटिकल ह्यूमैनिटेरियन और रिलीजस रीजंस के साथ-साथ सोशल डार्विनिज्म जैसे नई थिरी और टेक्नोलॉजी में एडवांसेज आइए एक-एक करके
इनको समझते हैं सबसे पहले बात करते हैं इकोनॉमिक रीजंस की इकोनॉमिक रीजंस 1870s के लिए अपने मार्केट्स को ग्लोबली एक्सपेंड करना जरूरी हो गया था क्योंकि इंडस्ट्रियल इजेशन के बाद यह नेशंस डोमेस्टिक डिमांड से ज्यादा प्रोड्यूस कर रहे थे और ऐसे प्रोडक्ट्स जो डोमेस्टिक सेल नहीं हो रहे थे उनके लिए ग्लोबल मार्केट्स अच्छा ऑप्शन साबित हो सकती थी इसी के साथ बिजनेसमैन और बैंकर्स के पास अब इन्वेस्ट करने के लिए एक्सेस कैपिटल आ चुकी थी और फॉरेन इन्वेस्टमेंट्स रिस्की होते हुए भी ग्रेटर प्रॉफिट्स का इंसेंटिव तो ऑफर करते ही हैं इसलिए इन्वेस्टर्स भी फॉरेन मार्केट्स
का रुख करना चाहते थे चीप लेबर की जरूरत और रॉ मटेरियल की स्टेडी सप्लाई को मेंटेन करने के लिए इंडस्ट्रियल नेशंस अन एक्सप्लो एरियाज पर फर्म कंट्रोल रखना चाहते थे इंपीरियल का मानना था कि इन रीजंस को डायरेक्टली कंट्रोल करने से यानी कि अपने डायरेक्ट कंट्रोल में कॉलोनी सेट अप करने से ही इंडस्ट्रियल इकॉनमी इफेक्टिवली काम कर सकती है अब आते हैं मिलिट्री और पॉलिटिकल रीजंस पर मिलिट्री एंड पॉलिटिकल रीजन लीडिंग यूरोपियन नेशंस को यह भी लगता था कि मिलिट्री पावर नेशनल सिक्योरिटी और नेशनलिज्म के लिए कॉलोनी क्रुशल हैं मिलिट्री लीडर्स का क्लेम था कि
ग्रेट पावर बनने के लिए स्ट्रांग नेवी का होना जरूरी है इसके लिए नेवल वेसल्स को अराउंड द वर्ल्ड मिलिट्री बेसस की जरूरत थी जिससे उन्हें कोल और बाकी सप्लाइको इन नीड्स को सेटिस्फाई करने के लिए आइलैंड्स और हार्बर्स को सीज किया गया कॉलोनी यूरोपियन नेवी को सेफ हार्बर और कोलिंग स्टेशंस गारंटी करती थी जिनकी वॉर के समय उन्हें जरूरत पड़ती थी ब्रिटेन द्वारा इजिप्ट को ऑक्यूपाइड सिक्योरिटी एक इंपॉर्टेंट रीजन था ब्रिटिश एंपायर के लिए सूस कैनाल को प्रोटेक्ट करना काफी वाइटल था ब्रिटेन के लिए यह कनाल उसके एंपायर के जूल यानी इंडिया को जाने वाली
लाइफलाइन जैसी थी बहुत से लोगों को यह भी लगता था कि कॉलोनी का पोजीशन नेशन की ग्रेटनेस का प्रति ठीक है कॉलोनी स्टेटस सिंबल की तरह हो गई थी अब कॉलोनियलिज्म के पीछे के ह्यूमैनिटेरियन और रिलीजस गोल्स को समझते हैं ह्यूमैनिटेरियन एंड रिलीजस गोल्स बहुत से वेस्टर्नर्स का बिलीफ था कि यूरोप को अपने बियोंड द सीज लिटिल ब्रदर्स को सिविलाइज करना चाहिए इस व्यू के अनुसार नॉन वाइट्स को वेस्टर्न सिविलाइजेशन की ब्लेसिंग्स मिलनी चाहिए जिसमें मेडिसिन लॉ और क्रिश्चियनिटी शामिल थी 1890 में अपनी पोयम द वाइट मैनस बर्डन में रड यार्ड किपलिंग ने इस मिशन
को एक्सप्रेस किया वहीं मिशनरीज यह सोचकर कॉलोनाइजेशन को सपोर्ट कर रहे थे कि इससे उन्हें एशिया और अफ्रीका में क्रिश्चियनिटी स्प्रेड करने का मौका मिलेगा कॉलोनियलिज्म को बूस्ट करने वाली एक थरी थी सोशल डार्विनिज्म आइए उसको समझते हैं सोशल डार्विनिज्म 18590 और नेशंस पर अप्लाई किया था सोशल डार्विनिज्म इंपीरियल एक्सपेंशन को फेवर करता है यह कहकर कि कुछ लोग बाकी लोगों से ज्यादा फिट या एडवांस्ड हैं यूरोपिय को लगता था कि वह एज अ वाइट रेस डोमिनेंट है और इसीलिए यह नेचुरल है कि वह इनफीरियर पीपल को कंकर करें जिससे मैनकाइंड इंप्रूव हो सके इस
तरह डार्विन की बायोलॉजिकल थ्योरी को ट्विस्ट किया गया और सोशल डार्विनिज्म कॉलोनियलिज्म को जस्टिफाई करने का एक तरीका बन गया इसके अलावा कॉलोनियलिज्म को प्रमोट करने में टेक्नोलॉजी ने भी इंपॉर्टेंट रोल प्ले किया आइए समझते हैं कैसे वेस्टर्न टेक्नोलॉजी वेस्ट की सुपीरियर टेक्नोलॉजी और इंप्रूव्ड मेडिकल नॉलेज ने इंपीरियल ज्म को फस्टर करने में हेल्प किया क्विनी जैसी मेडिसिन की वजह से यूरोपिय ट्रॉपिकल डिसीसेस को सरवाइव कर पाए और एशिया और अफ्रीका के मस्कट इंफेस्टेड इंटीरियर्स में वेंचर कर पाए स्टीम बोट और टेलीग्राफ के कॉमिनेशन ने वेस्टर्न पावर्स की मोबिलिटी बढ़ाने का काम किया और उनके
डोमिनेंस को थ्रेटें करने वाली किसी भी सिचुएशन में उन्हें क्विकली रिस्पॉन्ड करने योग्य बनाया रैपिड फायर मशीन गन ने उन्हें मिलिट्री एडवांटेज दिया और अफ्रिकंस और एशियंस को वेस्टर्न कंट्रोल एक्सेप्ट करने के लिए कन्विंसिंग यह तो बात हो गई इंपीरियल ज्म और कॉलोनियलिज्म को प्रमोट करने वाले कुछ कारणों की जिनकी वजह से यूरोपियन पावर्स पूरी दुनिया में अपनी कल कनीज एस्टेब्लिश करने की रेस में लग जाती हैं ईस्ट में जापान से लेकर वेस्ट में अमेरिका तक यूरोपियन पावर्स ने कॉलोनी को एस्टेब्लिश किया था आइए अब इसके कंसीक्वेंसेस की चर्चा करते हैं कंसीक्वेंसेस ऑफ इंपीरियल जम
दोस्तों न्यू इंपीरियल ज्म ने वेस्टर्न सोसाइटी और उसकी कॉलोनी दोनों को ही चेंज करने का काम किया इसके थ्रू वेस्टर्न कंट्रीज ने ग्लोबल इकॉनमी की बिगिनिंग को एस्टेब्लिश किया जिसमें ट्रांसफर ऑफ गुड्स मनी और टेक्नोलॉजी को ऑर्डरली वे में रेगुलेट करने की जरूरत थी जिससे इंडस्ट्रियल इज्ड वर्ल्ड के लिए नेचुरल रिसोर्सेस और चीप लेबर का कंटीन्यूअस फ्लो इंश्योर हो सके इसी के साथ इंपीरियल ज्म ने कॉलोनी को एडवर्सली अफेक्ट किया फॉरेन रूल के अंदर नेटिव कल्चर और इंडस्ट्री डिस्ट्रॉय हो गए इंपोर्टेड गुड्स ने लोकल क्राफ्ट इंडस्ट्रीज का सफाया कर दिया कॉलोनी को रॉ मटेरियल के
सोर्स और मैन्युफैक्चर्ड गुड्स के मार्केट्स के तौर पर यूज करके कॉलोनियल पावर्स ने इन्हें इंडस्ट्रीज डिवेलप करने से रोके रखा ज्यादातर कॉलोनी में स्टैंडर्ड ऑफ लिविंग के पुआ होने की एक वजह यह थी कि इन रीजंस की नेचुरल वेल्थ को मदर कंट्रीज में फनल आउट किया जा रहा था इसके अलावा इंपीरियल ज्म अपने साथ कल्चर्सल भी लेकर आता है 1900 तक वेस्टर्न नेशंस का दुनिया के बड़े हिस्से पर कंट्रोल हो चुका था यूरोपिय पूरी तरह कन्विंस्ड थे कि उनके पास सुपीरियर कल्चर्सल को मॉडर्न या वेस्टर्न वेज एक्सेप्ट करने के लिए फोर्स कर रहे थे वेस्टर्नाइज्ड
शंस को रीइवेलुएट करने के लिए भी फोर्स किया और कुछ कस्टम्स जैसे कि चाइना में फुट बाइंडिंग और इंडिया में सती को डिस्क करने का काम किया इंपीरियल ज्म ने कॉलोनियल पीपल को एक्सप्लोइट और अब्यूड़ोस और सैनिटरी हाइजीन पर स्ट्रेस किया इससे लाइव्स सेव करने में हेल्प हुई और लाइफ एक्सपेक्टेंसी भी इंक्रीज हुई इंपीरियल ज्म ने बहुत सी पॉलिटिकल प्रॉब्लम्स भी क्रिएट की यूरोपियन नेशंस ने कई ट्रेडिशनल पॉलिटिकल यूनिट्स को डिसर अपट कर दिया और राइवल पीपल को सिंगल गवर्नमेंट्स के अंडर यूनाइट किया यह गवर्नमेंट्स इन एरियाज में स्टेबिलिटी और ऑर्डर इंपोज करने की कोशिश
करती हैं जहां सालों से लोकल कॉन्फ्लेट्स चले आ रहे थे जैसे कि नाइजीरिया और रवांडा में लेटर हाफ ऑफ द 20th सेंचुरी में ऐसे एरियाज में डिवेलप हुए एथनिक कॉन्फ्लेट्स को इंपीरियल पॉलिसी से ट्रेस किया जा सकता है इतना ही नहीं इंपीरियल ज्म ने वेस्टर्न पावर्स के बीच भी टेंशन क्रिएट करने का काम किया सूडान को लेकर फ्रांस और ब्रिटेन के बीच की राइवल हो मोरक्को पर फ्रांस और जर्मनी के बीच की या फिर ऑटोमन एंपायर को लेकर राइवल्री की बात इसने हॉस्टाइल्स बनाने में योगदान दिया जो आगे चलकर वर्ल्ड वॉर वन का कारण बनती
है कंक्लूजन दोस्तों हम कह सकते हैं कि लेटर हाफ ऑफ द 19th सेंचुरी और 20th सेंचुरी को इंपीरियल ज्म और कॉलोनियलिज्म ने ही सबसे ज्यादा प्रभावित किया कॉलोनियलिज्म ने जहां एक तरफ यूरोपियन कंट्रीज को वेल्थी और पावरफुल बनाने में हेल्प की वहीं कॉलोनी का एक्सेसिव एक्सप्लोइटेशन हुआ इसके पॉलिटिकल इकोनॉमिक सोशल और मेंटल हर तरह के कंसीक्वेंसेस भी देखने को मिले सबसे भयानक परिणाम सामने आया 1914 में फर्स्ट वर्ल्ड वॉर के रूप में वर्ल्ड वॉर वन यूरोपियन नेशंस के बीच वर्षों से चली आ रही कॉलोनियल रेस का ही रिजल्ट था इस रेस ने नेशंस के बीच
हॉस्टलित ज्यादा बढ़ा दिया था कि पूरी दुनिया को वॉर की गिरफ्त में आना पड़ा हालांकि 1918 में फर्स्ट वर्ल्ड वॉर के एंड होने के बाद भी कॉलोनियलिज्म का एंड नहीं हुआ उसके लिए अभी इंतजार और लंबा था स्क्रैंबल फॉर अफ्रीका दोस्तों जैसा कि हम सब जानते हैं कि यूरोपियन नेशंस ने दुनिया के अलग-अलग देशों को कॉलोनाइज किया था कॉलोनाइजेशन के इस प्रोसेस में यह देर से ही सही लेकिन अफ्रीकन कॉन्टिनेंट पर भी पहुंचते हैं अफ्रीका का कॉलोनाइजेशन न्यू इंपीरियल ज्म के तहत आता है जो मेनली 18814 के बीच किया गया था आज की इस वीडियो
में हम अफ्रीकन कॉन्टिनेंट के कॉलोनाइजेशन के पीछे के कारणों और परिणामों को समझेंगे इसके साथ ही हम अफ्रीका के कॉलोनाइजेशन की रीजन वाइज स्टडी भी करेंगे आइए शुरू करते हैं इंट्रोडक्शन 19 सेंचुरी के मध्य तक तो यूरोपिय अफ्रीका के इंटीरियर के बारे में बहुत कम ही जानते थे हां कोस्टल रीजन जरूर ओल्ड ट्रेडिंग नेश यानी कि पोर्तुगीज डच इंग्लिश और फ्रेंच के हाथों में चले गए थे इन्होंने यहां अपने फोर्ट्स बना लिए थे 15th सेंचुरी से लेकर 19th सेंचुरी तक यूरोपियन नेशंस का इंटरेस्ट मोस्टली अफ्रीका के स्लेव्स ट्रेड में ही था सिर्फ दो ही जगह
यूरोपियन रूल इंटीरियर तक पहुंच पाया था नॉर्थ में फ्रांस ने अल्जीरिया को जीत लिया था और साउथ में इंग्लिश ने केप कॉलोनी को ऑकुपाड़ा में सेटल हो गए लेकिन कुछ ही सालों में कॉलोनी के लिए स्क्रैंबल शुरू हो गया और लगभग पूरे कॉन्टिनेंट को काटकर यूरोपियन पावर्स ने आपस में बांट लिया स्क्रैंबल की इस कहानी की डिटेल से पहले यह समझना चाहिए कि आखिर अफ्रीका को कॉलोनाइज करने की जरूरत क्यों आई कॉसेस ऑफ कॉलोनाइजेशन अफ्रीकन कॉलोनाइजेशन के पीछे के कारण मेनली इकोनॉमिक पॉलिटिकल और रिलीजस थे कॉलोनाइजेशन के समय यूरोप में में इकोनॉमिक डिप्रेशन जैसे हालात
थे और जर्मनी फ्रांस और ग्रेट ब्रिटेन जैसी पावरफुल कंट्रीज अपना पैसा खो रही थी वहीं दूसरी तरफ अफ्रीका इस सबसे दूर था और उसके पास रॉ मटेरियल का एंडेंजर काफी पैसा बना सकता था अफ्रीकन की चीप लेबर की मदद से यूरोपिय इजी ऑयल आइवरी रबर पाम ऑयल वुड कॉटन और गम जैसे प्रोडक्ट्स हासिल कर लेते थे इंडस्ट्रियल रेवोल्यूशन की वजह से इन प्रोडक्ट्स का सिग्निफिकेंट और ज्यादा बढ़ गया था अफ्रीका का कॉलोनाइजेशन यूरोपियन राइवल्रीज का भी नतीजा था 100 इयर्स वॉर के बाद से ही ब्रिटेन और फ्रांस में डिस्प्यूट चल रहा था और यह दोनों
ही देश अफ्रीकन कॉन्टिनेंट में ज्यादा से ज्यादा टेरिटरी एक्वायर करने की रेस में लगे हुए थे यह रेस सभी यूरोपियन देशों के लिए ओपन थी इसके अलावा 19th सेंचुरी में अफ्रीका में बहुत से यूरोपियन एक्सपेडिन भी भेजे गए थे इन एक्सप्लोरर ने अफ्रीका के लिए यूरोप य का इंटरेस्ट जगाने का काम किया एक्सप्लोरर के साथ क्रिश्चियन मिशनरीज ने भी अफ्रीका की कॉंक्ड में अपना रोल प्ले किया मिशनरीज यूरोपियन इंपीरियल ज्म के डायरेक्ट एजेंट्स की तरह काम नहीं करते लेकिन फिर भी यूरोपियन गवर्नमेंट्स को अफ्रीका की गहराई में ले जाते हैं क्रिश्चियनिटी प्रीच करने के अपने
एफर्ट्स के दौरान इन्हें अफ्रीका के अंदर चल रहे वरफेन से खतरा महसूस होता है और इसलिए यह यूरोपियन गवर्नमेंट्स को प्रोटेक्शन और इंटरवेंशन के लिए बुलाते हैं एक्सप्लोरर और मिशनरीज द्वारा क्रिएटेडटेड का यूज जल्द ही ट्रेडर्स करते हैं और वेस्टर्न गवर्नमेंट्स इन सभी के इंटरेस्ट की रक्षा के लिए अपने ट्रूप्स भेजना शुरू कर देती है इस तरह अफ्रीका के कॉंक्ड के लिए स्टेज तैयार हो जाता है कॉलोनाइजेशन के कारणों को तो हमने समझ लिया लेकिन यूरोपियन कंट्रीज इतनी जल्दी अफ्रीका को कॉलोनाइज कैसे कर लेती हैं वह जानते हैं व्हाई यूरोपियन कंट्रीज वर एबल टू कॉलोनाइज
अफ्रीका सो क्विकली यूरोपियन कंट्रीज अफ्रीकन देशों को तेजी से कॉलोनाइज करने में इसलिए कामयाब रहती हैं क्योंकि अफ्रीकन लीडर्स के बीच बहुत सी राइवल्रीज थी यहां के किंग्स और चीफ ट्राइब्स में सबसे रिच और पावरफुल बनने के लिए एक दूसरे से ही कंपीट कर रहे थे इनकी इन्हीं राइवल्रीज का फायदा उठाते हुए यूरोपियन लीडर्स ने कुछ लीडर्स को अपनी साइड लेकर दूसरे लीडर्स के साथ फाइट करने के लिए राजी कर लिया इसके साथ ही नेचुरल डिजास्टर्स ने भी एफ के रैपिड और इजी कॉलोनाइजेशन में बड़ा रोल निभाया 18955 की मृत्यु हो गई थी जो थोड़ी
बहुत फसल हुई भी थी उसे लूकस्ट ने डिस्ट्रॉय कर दिया था इसके साथ ही कैटल प्लेग भी फैल गया था जिसने कैटल शीप और गोट्स को मार दिया इस तरह फिजिकली और मेंटली हो चुके अफ्रिकंस यूरोपियन पावर्स के साथ फाइट करने में असमर्थ थे यूरोपियन पावर्स फोर्स और वायलेंस का यूज करके किसी भी लैंड सोर्स पर आसानी से कब्जा कर लेती थी क्योंकि उनके पास ज्यादा पावरफुल वेपंस मौजूद थे और नई-नई इन्वेंट हुई मैक्सिम गन नाम की मशीन गन का एडेड एडवांटेज भी था यह गन एक सेकंड में 11 बुलेट्स फायर कर सकती थी और
अफ्रिकंस के पास मौजूद कोई भी वेपन इसका मुकाबला नहीं कर सकता था उनके पास किसी भी तरह के मॉडर्न यूरोपियन वेपंस नहीं थे इस तरह अफ्रिकंस मिलिट्री डिसएडवांटेज पर था लेट 1890 में कुछ नई डिजीज का आउटब्रेक भी अफ्रीका में देखा जाता है इसमें सबसे पहली थी स्मॉल पॉक्स एपिडेमिक्स यूरोपिय तो इन डिजीज से इम्यून थे क्योंकि यूरोप में इनका आउटब्रेक पहले ही हो चुका था लेकिन इंडिजन उस अफ्रीकन पॉपुलेशन के पास कोई इम्युनिटी या रेजिस्टेंस नहीं था जिससे अफ्रीकन पॉपुलेशन काफी कमजोर हो जाती है इन सभी फैक्टर्स के कारण ही अफ्रीकन कॉन्टिनेंट पर यूरोपियन
पावर्स तेजी से अपना कंट्रोल एस्टेब्लिश करने में सफल रहती हैं आइए अब रीजन वाइज यूरोपियन नेशंस द्वारा अफ्रीका की कॉंक्ड को समझते हैं सबसे पहले बात करते हैं वेस्ट और सेंट्रल अफ्रीका की वेस्ट एंड सेंट्रल अफ्रीका 18786 की तरफ से दी गई फाइनेंशियल असिस्टेंसिया स्टनली नाम की एक्सप्लोरर इंटरनेशनल कांगो एसोसिएशन फॉर्म करते हैं यह एसोसिएशन अफ्रीकन चीफ के साथ 400 से भी ज्यादा ट्रीटीज करती है अफ्रीकन चीफ को तो पता भी नहीं था कि एक कागज के टुकड़े पर निशान लगाकर वह अपनी जमीन कांगो एसोसिएशन को ट्रांसफर कर रहे हैं और वह भी सिर्फ कुछ
कपड़ों या ऐसे ही कुछ बेमोल चीजों के बदले में ऐसे मेथड्स की हेल्प से स्टनली लैंड के बड़े हिस्से पर कब्जा कर लेते हैं 1885 में करीब 2.3 मिलियन स्क्वायर किलोमीटर का एरिया जो आइवरी और रबर रिसोर्सेस में रिच था कांगो फ्री स्टेट बन जाता है और इसके किंग बनते हैं लियोपोल्ड 1908 में लियोपोल्ड को मजबूरन यह कांगो फ्री स्टेट बेल्जियन गवर्नमेंट के हवाले करना पड़ता है और फिर इसे बेल्जियन कांगो कहा जाने लगता है धीरे-धीरे कांगो का गोल्ड डायमंड यूरेनियम टिंबर और कॉपर यहां के रबर और आइवरी से ज्यादा इंपोर्टेंट हो जाता है और
बेल्जियम के साथ-साथ इंग्लैंड और यूएस जैसे देश भी इसके रिसोर्सेस को एक्सप्लोइट करने लगते हैं वेस्टर्न अफ्रीका की दूसरी सबसे बड़ी रिवर है नाइजर नाइजर पर कंट्रोल का मतलब था उसके आसपास के रिच रिसोर्सेस वाले लैंड पर कंट्रोल होना ब्रिटिश ने इस एरिया यानी नाइजीरिया पर कब्जा अमेरिका में अपनी प्लांटेशंस के लिए स्लेव भेजने के लिए किया था ब्रिटिश कंपनी ने नाइजीरिया के कॉंक्ड का इनिशिएटिव लिया इसे फ्रेंच कंपनी से राइवल्री भी करनी पड़ी लेकिन एंड में इसने नाइजीरिया को फ्रेंच से खरीद लिया और इसका रूलर बन गए कुछ सालों बाद ब्रिटिश गवर्नमेंट ने नाइजीरिया
को अपनी कॉलोनी डिक्लेयर कर दिया वेस्ट अफ्रीका में ब्रिटेन ने गैबिया अशांति गोल्ड कोस्ट और सिएरा लियोन को भी ऑक्यूपाइड कांगो में किंग लियोपोल्ड के लिए एंपायर खड़ा कर रहा था उसी समय कांगो रिवर के नॉर्थ में फ्रेंचमन द ब्राजा एक्टिव था स्टनली के ही मेथड्स को फॉलो करते हुए इसने फ्रांस के लिए एरिया को जीता इस एरिया को फ्रेंच कांगो कहा जाने लगा वेस्ट कोस्ट पर सेनेगल को फ्रांस पहले ही ऑक्यूपाइड ही उसने ड होमी यानी प्रेजेंट बेनिन आइवरी कोस्ट और फ्रेंच गिनी को भी हासिल कर लिया आगे चलकर मॉरिटानिया फ्रेंच सूडान अप वोल्टा
और नाइजर टेरिटरी भी इसके एंपायर का पार्ट बन जाती हैं 1880 के बाद जर्मनी भी अफ्रीकन टेरिटरीज में इंटरेस्ट दिखाने लगता है सबसे पहले वह वेस्ट कोस्ट पर लोकेटेड टोगो लैंड को ऑक्यूपाइड ओरो यानी स्पेनिश सहारा और स्पेनिश गिनी पोर्तुगीज के पास अंगोला और पोर्तुगीज गिनी का रीजन था इस तरह लाइबेरिया को छोड़कर पूरा वेस्ट अफ्रीका यूरोपिय के बीच डिवाइड हो गया था वेस्ट अफ्रीका के बाद अब बात करते हैं साउथ अफ्रीका की साउथ अफ्रीका साउथ अफ्रीका में डच ने केप कॉलोनी को एस्टेब्लिश किया था जिसे अर्ली 19th सेंचुरी में ब्रिटिशर्स ने जीत लिया इसके
बाद डच सेटलर्स जिन्हें बोर्स कहा जाता था वह नॉर्थ की तरफ मूव कर जाते हैं और दो नए स्टेट्स ऑरेंज फ्री स्टेट और ट्रांसवाल को सेट अप करते हैं 187 में साउथ अफ्रीका के रीजन में इंग्लिश एडवेंचरर सिसिल रोड्स गए थे और यहां की गोल्ड और डायमंड माइनिंग में उन्होंने बहुत प्रॉफिट कमाया और अपना नाम अफ्रीकन कॉलोनी रोडीज को दिया नॉर्दर्न रोडीज आज जंबिया के नाम से जाना जाता है और सदर्न जिंबाब्वे के नाम से ब्रिटिशर्स ने बेख वाना लैंड स्वाजीलैंड और बासू तोलैंड को भी ऑक्यूपाइड वाल की बोआ गवर्नमेंट को भी 18990 के बो
वॉर में हराया इसके कुछ समय बाद ही यूनियन ऑफ साउथ अफ्रीका का फॉर्मेशन हुआ जिसमें केप नटाल ट्रांसवाल और ऑरेंज रिवर कॉलोनी आती थी इस तरह साउथ अफ्रीका पर मेजर्ली ब्रिटिशर्स का ही कब्जा था आइए अब ईस्ट अफ्रीका की तरफ चलते हैं ईस्ट अफ्रीका मोजांबिक के कुछ हिस्से पर पोर्तुगीज कंट्रोल के अलावा ईस्ट अफ्रीका 18848 4 में कार्ल पीटर्स नाम का जर्मन एडवेंचर र कोस्टल रीजन आ पहुंचता है ब्राइबरी और थ्रेट्स का यूज करके वह यहां के कुछ रूलरसोंग्स में डिवाइड कर दिया जाता है इसके बाद 1890 में एक और एग्रीमेंट होता है जिसके तहत
युगांडा इंग्लैंड के लिए रिजर्व कर दिया जाता है और बदले में जर्मनी को हेलिगो लैंड मिलता है जर्मनी के जैसे ही इटली ने भी कॉलोनियल रेस में देर से एंट्री की इटालियंस ने हॉन ऑफ अफ्रीका कहे जाने वाले डेजर्ट एरियाज में सोमाली लैंड और एरिट्रिया को ऑक्यूपाइड पेंडेंट स्टेट हुआ करता था इटली इसको अपनी कॉलोनी बनाना चाहता था और इस पर आक्रमण कर देता है लेकिन एबसी निया के किंग इटली के क्लेम को एक्सेप्ट नहीं करते और 18960 में ही कंकर कर लिया था अल्जीरिया के में ट्यूनीशिया नाम का देश है जिस पर फ्रांस इंग्लैंड
और इटली तीनों की ही नजर थी 18786 में दोनों डिसाइड करते हैं कि मोरोको पर फ्रांस का अधिकार होगा और इस के बदले में इटली को ट्रिपली और सिरे नाइका मिलेंगे 1904 में फ्रांस का इंग्लैंड के साथ भी समझौता हो जाता है कि मोरक्को पर उसका ही अधिकार होगा और इंग्लैंड को इजिप्ट दे दिया जाएगा इन एग्रीमेंट्स के साइन होने के बाद फ्रांस मोरोको को जीतने की तैयारी करने लगता है लेकिन जब फ्रांस इंग्लैंड और इटली के बीच नॉर्थ अफ्रीका का पार्टीशन करने के लिए समझौते हो रहे थे तब जर्मनी की अनदेखी कर दी गई
थी यहां तक कि मोरोको पर फ्रांस ऑक्यूपेशन के बदले में स्पेन को भी टेंजियो देने का प्रॉमिस किया गया था इसलिए जर्मनी मोरोको पर होने जा रहे फ्रेंच ऑक्यूपेशन का विरोध करने की धमकी दे देता है ऐसा लगने लगता है कि जैसे एक युद्ध शुरू हो जाएगा और इस सबके बीच मोरोको के लोगों को तो कभी कंसल्ट ही नहीं किया गया अल्टीमेटली फ्रांस अपनी फ्रेंच कांगो की टेरिटरी में से 250000 स्क्वा किमी का एरिया जर्मनी को देने के लिए मान जाता है और 1912 में फ्रांस मोरक्को को अपनी कॉलोनी बना लेता है इस तरह लगभग
पूरे अफ्रीकन कॉन्टिनेंट को यूरोपियन पावर्स द्वारा आपस में बांट लिया जाता है जैसा कि हमने देखा अफ्रीका के ज्यादातर पार्ट्स पर कंट्रोल यूरोपियन पावर्स ने आपस में समझौते करके कर लिया था अफ्रीकन लोगों से कुछ भी पूछने की जरूरत नहीं समझी गई हालांकि इस ऑक्यूपेशन के विरोध में अफ्रीका के अलग-अलग हिस्सों में लोगों ने संघर्ष जरूर किए कई जगह पर तो यूरोपियन पावर्स को सालों लग गए लोगों के विद्रो को शांत करने और अपना इफेक्टिव कंट्रोल एस्टेब्लिश करने में इस कॉलोनाइजेशन का अफ्रीका के ऊपर क्या प्रभाव पड़ा आइए उसको समझते हैं रिजल्ट्स ऑफ कॉलोनाइजेशन कॉलोनाइजेशन
का प्रभाव अफ्रीका पर अच्छे और खराब दोनों ही रूप में देखने को मिलता है अफ्रीका में यूरोपियन पॉलिटिकल प्रैक्टिस की बात करें तो सभी कॉलोनाइजिंग कंट्रीज सिमिलर एटिबल करती नजर आती हैं कोलोनियल पॉलिटिकल सिस्टम्स पूरी तरह से अन डेमोक्रेटिक थे लॉ एंड ऑर्डर और पीस को मेंटेन करना कॉलोनियल गवर्नमेंट्स का प्राइमरी ऑब्जेक्टिव रहता था इसके अलावा इनमें कैपेसिटी की भी कमी थी और यह डिवाइड एंड रूल की पॉलिसी को फॉलो किया करते थे कॉलोनियल गवर्नमेंट्स किसी तरह का पॉपुलर पार्टिसिपेशन अलाउ नहीं करती थी और सभी पॉलिटिकल डिसीजंस छोटे से पॉलिटिकल एलीट ग्रुप द्वारा लिए जाते
थे जिसमें अफ्रीकन पॉपुलेशन का इनपुट ना के बराबर रहता था अफ्रीका के लोग इस सिस्टम से बिल्कुल भी खुश नहीं थे इसके अलावा कॉलोनियल गवर्नमेंट बेसिक इंफ्रास्ट्रक्चर या अफ्रीका के सोशो इकोनॉमिक डेवलपमेंट पर कोई ध्यान नहीं देती जिसकी वजह से अफ्रीका एक बैकवर्ड रीजन बना रहता है इसके अलावा कॉलोनियल रूल अफ्रीका की ट्रेडिशनल प्रैक्टिसेस और बिलीव्स को भी चैलेंज करता है जिस वजह से या तो इन प्रैक्टिसेस को नई सिचुएशन के हिसाब से चेंज करना पड़ता है या फिर पूरी तरह छोड़ना पड़ता है अफ्रीकन फैमिलीज का डिसलोकेशन भी होता है क्योंकि कॉलोनियल पॉलिसीज की वजह
से बड़े स्केल पर लोगों को माइग्रेट करना पड़ता है ज्यादातर मेन अपनी फैमिली को छोड़कर माइंस और प्लांटेशंस में काम करने चले जाते हैं कॉलोनियलिज्म से पहले एक्सटेंडेड फैमिली का प्रचलन अफ्रीका में था लेकिन इसके बाद ज्यादातर अफ्रीकन देशों में न्यूक्लियर फैमिलीज नॉम बनने लगती हैं कॉलोनियलिज्म के दौरान अफ्रीका का तेजी से अर्बनाइजेशन भी होता है अर्बन लिविंग इकोनॉमिक एक्टिविटीज और ऑक्यूपेशन में भी चेंज लाती हैं और साथ ही लोगों के जीने का तरीका भी बदल देती हैं यह चेंज कई बार एसिस्टिंग वैल्यूज बिलीव्स और प्रैक्टिसेस को चैलेंज भी करता है अफ्रीका के लोगों के
रिलीजस बिलीव्स पर भी कॉलोनियलिज्म का गहरा प्रभाव पड़ता है इससे पहले अफ्रीकन पॉपुलेशन का एक बहुत छोटा सा परसेंटेज ही खुद को क्रिश्चन मानता था लेकिन आज आधी से ज्यादा अफ्रीकन पॉपुलेशन क्रिश्चियनिटी को बिल ब करती है अफ्रीका का पब्लिक एजुकेशन सिस्टम भी पूरी तरह बदल जाता है ज्यादातर कॉलोनियल गवर्नमेंट्स ने स्कूल्स को सपोर्ट करने के लिए कुछ खास नहीं किया था यह काम मोस्टली मिशनरीज द्वारा किया गया था मिशनरीज को लगता था कि एजुकेशन और स्कूल्स उनके मिशन के लिए बहुत ही जरूरी हैं मिशनरीज का प्राइमरी कंसर्न तो लोगों को क्रिश्चियनिटी में कन्वर्ट करना
ही था इन्हें लगता था कि अफ्रीकन पीपल की अपनी लैंग्वेज में बाइबल पढ़ने की एबिलिटी कन्वर्जन प्रोसेस के लिए इंपॉर्टेंट है लेकिन ज्यादातर मिशन सोसाइटीज इतनी वेल्थी नहीं थी कि लार्ज नंबर्स में स्कूल्स को सपोर्ट कर सके इसके साथ ही लिमिटेड गवर्नमेंट सपोर्ट के कारण ज्यादातर अफ्रीकन चिल्ड्रन कॉलोनियल एरा में स्कूल नहीं जा पाते कॉलोनियल रूल के एंड में कोई भी अफ्रीकन कॉलोनी यह नहीं कह सकती थी कि उनके आधे से ज्यादा बच्चों ने एलिमेंट्री स्कूल फिनिश किया है सेकेंडरी स्कूल की तो बात ही छोड़िए इस तरह कॉलोनियल रूल अफ्रीका को पॉलिटिकली इकोनॉमिकली और एजुकेशनली
बैकवर्ड बनाकर रखता है कंक्लूजन दोस्तों अफ्रीका का कॉलोनाइजेशन सबसे ड्रामे इवेंट्स में से एक है एक पूरे कॉन्टिनेंट को आर्टिफिशली डिवाइड कर दिया गया और वह भी वहां रहने वाले लोगों की बिना किसी सहमति के आप मैप में देख सकते हैं कि कैसे ज्यादातर अफ्रीकन नेशंस के बीच की बाउंड्रीज स्ट्रेट लाइंस जैसी हैं यह कॉलोनाइजेशन की ही निशानी है क्योंकि यूरोपियन नेशंस ने पेपर पर ही इन लाइंस को ड्रॉ कर लिया था काफी हद तक कॉलोनाइजेशन का ही नतीजा है कि अफ्रीका जैसा रिसोर्स रिच रीजन आज दुनिया के सबसे अंडर डेवलप्ड रीजंस में आता है
यूनिफिकेशन ऑफ जर्मनी दोस्तों जर्मनी का एक संगठित राष्ट्र के रूप में उभरना 19th सेंचुरी के सबसे सिग्निफिकेंट इवेंट्स में से एक था जी हां जिस जर्मनी को आज हम नेशन की तरह जानते हैं वह हमेशा से ऐसा नहीं था 19 सेंचुरी से पहले तक जर्मन टेरिटरीज करीब 300 से ज्यादा इंडिपेंडेंट किंगडम में डिवाइडेड थी इन सभी का एक नेशन के फॉर्म में इंटीग्रेट होना ना सिर्फ लंबा बल्कि बहुत ही दिलचस्प सफर था आज हम जर्मन यूनिफिकेशन के इसी सफर को डिटेल में समझेंगे हम जर्मन यूनिफिकेशन के फैक्टर्स और प्रोसेसेस की चर्चा करेंगे साथ ही प्रशन
चांसलर बिसमार्क की फाइन लीडरशिप और डिप्लोमेटिक स्किल्स की बात भी करेंगे जिन्होंने जर्मन यूनिफिकेशन में सबसे इंपॉर्टेंट रोल निभाया आइए शुरुआत यूनिफिकेशन के बैकग्राउंड को समझने से करते हैं बैकग्राउंड जैसा कि हमने बताया 19th सेंचुरी से पहले तक जर्मन टेरिटरीज कई स्मल प्रिंसिपालिटीज में डिवाइडेड थी एक समय पर ज्यादातर जर्मन किंगडम होली रोमन एंपायर का पाठ हुआ करते थे लेकिन यह एक दूसरे से पूरी तरह इंडिपेंडेंट थे जर्मन टेरिटरीज को यूनिफिकेशन की तरफ ले जाने में एक बड़ा रोल प्ले करते हैं फ्रांस के नेपोलियन बोनापार्ट नेपोलियन बोनापार्ट या नेपोलियन द फर्स्ट ने 183 से 1815
के बीच कई वॉर्स लड़े जिन्हें नेपोलियनिक वॉर्स कहते हैं इन वॉर्स के थ्रू नेपोलियन ने यूरोप के मेजर पोर्शन को अपने आधीन कर लिया था इस दौरान नेपोलियन ने जर्मनी के कई एरियाज को भी कैप्चर किया था कैप्चरड जर्मन टेरिटरीज को इफेक्टिवली रूल करने के लिए उसने 39 जर्मन स्टेट्स का राइन फेडरेशन बनाया नेपोलियन के अंदर राइन फेडरेशन बनने से हिस्टोरियंस जर्मनी के पार्शल यूनिफिकेशन के लिए नेपोलियन को क्रेडिट देते हैं एक तरफ उसने कई जर्मन राज्यों की टेरिटरीज को कंसोलिडेट कर 39 किंगडम में यूनाइट किया दूसरी तरफ उसने इन 39 किंगडम के रिप्रेजेंटेटिव्स के
लिए जर्मन पार्लियामेंट या डायट की स्थापना की नेपोलियन ने कई और प्रोग्रेसिव कदम उठाए जैसे ट्रेड बैरियर्स को खत्म करना और जर्मन स्टेट्स के बीच फ्री ट्रेड प्रमोट करना नेपोलियन के मेजर से राइन कन्फेडरेशों अपने जर्मन सब्जेक्ट्स को इफेक्टिवली कंट्रोल करने के लिए उठाए थे लेकिन इनका एक परिणाम हमें जर्मन नेशनलिज्म की डेवलपमेंट के रूप में दिखता है हालांकि नेपोलियनिक अंपायर ज्यादा समय तक नहीं चल पाया 1813 के बैटल ऑफ लीप सिग और 1815 के बैटल ऑफ वाटरलू में नेपोलियन को ब्रिटेन और प्रश से शिकस्त झेलनी पड़ी और इस तरह राइन फेडरेशन पर उनका रूल
खत्म हो गया 1815 में नेपोलियनिक एंपायर का फेट डिसाइड करने के लिए विएना कांग्रेस बुलाई गई जिसमें यूरोप की मेजर पावर्स ब्रिटेन ऑस्ट्रिया प्रश और रशिया ने पार्टिसिपेट किया इस कांग्रेस में डिसाइड किया गया कि नेपोलियन के द्वारा बनाए गए 39 स्टेट्स की बाउंड्रीज चेंज नहीं की जाएंगी लेकिन इसने ऑस्ट्रिया को राइन फेडरेशन का लीडर बना दिया ऑस्ट्रियन लीडरशिप में राइन फेडरेशन अब जर्मन कन्फेडरेशों के बीच नेशनलिज्म की फीलिंग स्प्रेड होने लगी थी 1815 के बाद से कई ऑर्गेनाइजेशंस पैन जर्मन यूनिटी के आइडिया को बढ़ावा देने लगे इनमें से एक था बर्शन शाफ्ट जो कि
यूनिवर्सिटीज में स्टूडेंट ऑर्गेनाइजेशंस का एक नेटवर्क था यह नेटवर्क अपनी ऑर्गेनाइजेशंस के थ्रू यूनाइटेड रिपब्लिकन जर्मनी के आइडिया को लोगों के बीच पॉपुलर करने का काम कर रहा था इस दौरान कई फिलोसोफर और स्कॉलर्स ने भी डिस्टिंक्ट जर्मन कल्चर और आइडेंटिटी की बात करना शुरू कर दिया जो जर्मनी को बाकी यूरोपियन देशों से अलग बनाता था इनमें फ्रेडरिक हेगेल योहान गोटली फीस्टर लुडविग योहान पॉपुलर नेम्स थे इस तरह लोगों में यूनिफिकेशन की भावना तो बढ़ रही थी लेकिन इसको अचीव करने में कई बैरियर्स थे छोटे जर्मन स्टेट्स के रूलरसोंग्स का लीडर कौन होगा ऑस्ट्रिया या
प्रशा ऑस्ट्रिया और प्रश दो सबसे बड़े जर्मन स्टेट्स थे दोनों ही नेपोलियनिक वॉर से पहले होली रोमन एंपायर का पार्ट हुआ करते थे ऑस्ट्रिया और प्रश के बीच जर्मन लीडरशिप को लेकर हमेशा से विवाद रहा था ऑस्ट्रिया चाहता था कि सारे जर्मन स्टेट्स उसकी लीडरशिप में यूनाइट हो जाएं जबकि प्रश खुद यूनाइटेड जर्मनी का लीडर बनना चाहता था इसी कॉन्टेक्स्ट में जर्मन यूनिफ के दो पोजिंग आइडियाज डिवेलप हुए एक आईडिया था ग्रोस डचलैंड या ग्रेटर जर्मनी जिसमें ऑस्ट्रियन एंपायर भी इंक्लूडेड था दूसरा था क्लाइन डचलैंड जिसमें ऑस्ट्रिया शामिल नहीं था प्रशिया क्लाइन डस्ट लैंड के
फेवर में था और ऑस्ट्रिया दोबारा होली रोमन एंपायर बनाने के सपने देख रहा था जिसमें वह सत्ता का केंद्र था आइए अब एक-एक करके जर्मन यूनिफिकेशन को पॉसिबल बनाने वाले फैक्टर्स और इवेंट्स की चर्चा करते हैं जवन और इकोनॉमिक इंटीग्रेशन कहा जाता है कि जर्मनी के पॉलिटिकल यूनिफिकेशन से पहले उसका इकोनॉमिक इंटीग्रेशन हुआ था जर्मनी के इकोनॉमिक इंटीग्रेशन को सॉल्वन कहते हैं जर्मन स्टेट्स के आपस का ट्रेड कई जगह कस्टम ड्यूटीज लगाए जाने के कारण हैपर होता था प्रशा ने इस बात को समझा और 1818 में उसने अपनी टेरिटरीज में ट्रेड टैरिफ को अबॉलिश कर
दिया और इंपोर्ट टैक्सेस भी काफी कम कर दिए 1820 और 1830 में कई जर्मन स्टेट्स ने प्रशा के द्वारा बनाए गए वॉलंटरी कस्टम यूनियन को जवाइन कर लिया इसी यूनियन को लवरेन कहा गया 1836 तक 39 में से 25 जर्मन स्टेट्स ने इस अलायंस को जवाइन कर लिया था इससे साफ पता चलता है कि इकोनॉमिक इंटीग्रेशन से जर्मन स्टेट्स को फायदा हो रहा था हिस्टोरियन विलियम का जल्व इन को जर्मन यूनिफिकेशन का लीवर मानते हैं क्योंकि यह इनिशिएटिव प्रश्या द्वारा लिया गया था इसलिए जर्मन राज्यों पर उसका डोमिनेंस और ज्यादा बढ़ गया इससे प्रशा की
इकॉनमी को भी बहुत फायदा हुआ जैसे-जैसे जर्मन स्टेट्स में इकोनॉमिक डेवलपमेंट हो रहा था वैसे-वैसे उनके अंदर नेशनलिज्म की भावना भी बढ़ रही थी कई जगह लोग अब मोन कीज को रिपब्लिकन गवर्नमेंट से रिप्लेस करने की बात कर रहे थे इसी दौरान कई जर्मन स्टेटस 1848 के रेवोल्यूशन से अफेक्ट हुए आइए जानते हैं 1848 के रेवोल्यूशन के बारे में और जर्मन यूनिफिकेशन पर इसके इंपैक्ट को रेवोल्यूशन ऑफ 1848 1848 के रेवोल्यूशन विद्रोह का एक सिलसिला था जिससे यूरोप के कई मेजर सिटीज अफेक्ट हुए रेवोल्यूशन की मेन डिमांड थी कि पुराने मोनार्किकल सिस्टम को खत्म किया
जाए और सिटीजंस के प्रति रिस्पांसिबल डेमोक्रेटिक गवर्नमेंट एस्टेब्लिश की जाए साथ ही रेवोल्यूशन सिविल राइट्स की भी डिमांड कर रहे थे कई जर्मन स्टेट्स भी इस रेवोल्यूशन से इंपैक्ट हुए थे प्रशिया में रेवोल्यूशन ज ने किंग फ्रेडरिक विलियम द फथ को लिबरल रिफॉर्म्स करने पर विवश कर दिया था सिटीजंस को कई सिविल राइट्स दिए गए और किंग के कई पावर्स को प्रशियन पार्लियामेंट यानी राइक स्टाक को ट्रांसफर कर दिया गया रेवोल्यूशन ने जर्मन यूनिफिकेशन की दिशा में भी कदम उठाए डिसीजन लिया गया कि फ्रैंकफर्ट में सभी जर्मन स्टेट्स को रिप्रेजेंट करने के लिए पार्लियामेंट बनेगा
जो कि ऑस्ट्रिया द्वारा हेडेड जर्मन कन्फेडरेशों ट्यूशन बनाने की रिस्पांसिबिलिटी दी गई सहमति बन गई थी कि नया कॉन्स्टिट्यूशन लिबरल नेचर का होगा जिसके अंदर मोनकी की पावर लिमिटेड होगी लेकिन फ्रैंकफर्ट पार्लियामेंट जर्मन यूनिफिकेशन के ऑब्जेक्टिव को अचीव करने में सफल नहीं हो पाया इसके पीछे कई कारण थे जैसे कि प्रशन किंग विलियम द फथ जिन्हें यूनाइटेड जर्मनी का किंग बनाने का ऑफर मिला उन्होंने यह ऑफर रिजेक्ट कर दिया था ऐसा इसलिए क्योंकि किंग विलियम द फथ रबर स्टम किंग नहीं बनना चाहते थे और फ्रैंकफर्ट पार्लियामेंट ने जिस कॉन्स्टिट्यूशन का प्रस्ताव रखा था उसमें किंग
की पावर को काफी हद तक लिमिट कर दिया गया था इसके अलावा ऑस्ट्रिया ने धमकी दे दी थी कि अगर प्रश ने 1815 के विएना अरेंजमेंट में कोई बदलाव लाने की कोशिश की तो उसे वॉर का सामना करना पड़ेगा ऐसे में फ्रैंकफर्ट पार्लियामेंट का आईडिया फेल हो गया और प्रश के अलावा बाकी जर्मन स्टेट्स जर्मन कन्फेडरेशों ने प्रशिया का थ्रोन संभाला नई किंग को प्रश पार्लियामेंट से तालमेल बिठाने में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा था ऐसे में उन्होंने 18621 बिसमार्क को प्रश का प्राइम मिनिस्टर नियुक्त किया बिस्मार्क अपने डिप्लोमेटिक स्किल्स के लिए जाने जाते
थे और आने वाले समय में वह जर्मन यूनिफिकेशन के मेन आर्किटेक्ट बनकर उभरे आइए जानते हैं कौन थे बिसमार्क और क्या थी उनकी ब्लड एंड आयन पॉलिसी बिसमार्क एंड हि पॉलिसी ऑफ ब्लड एंड आयन प्राइम मिनिस्टर बनने से पहले बिस्मार्क प्रशा के डिप्लोमेट या राजदूत थे उन्होंने प्रश को रशिया और फ्रांस में रिप्रेजेंट किया था डिप्लोमेट की पोजीशन पर उनकी एक्सपीरियंस यूरोप के ग्रेट पावर रिलेशंस को समझने में बहुत इंपॉर्टेंट थे वह समझते थे कि जर्मनी को लिबरलिज्म या डेमोक्रेसी यूनाइट नहीं कर सकती बिसमार्क चाहते थे कि सभी जर्मन टेरिटरीज प्रशा की लीडरशिप में यूनाइट
हो जाए उनको पता था कि ग्रेट पावर्स जैसे ब्रिटेन फ्रांस रशिया और ऑस्ट्रिया बिना अपने फायदे के जर्मनी को यूनाइट नहीं होने देंगे इसलिए उन्होंने ब्लड एंड आयन पॉलिसी अपनाई जिसके अंतर्गत एक्सटर्नल फ्रंट पर वॉर्स के लिए प्रशा को तैयार किया गया और इंटरनल फ्रंट पर उसे एक कोहेसिव या यूनाइटेड कंट्री बनाया गया किसी भी वॉर को जीतने के लिए सबसे इंपॉर्टेंट होती है एक वेल डेवलप्ड इकॉनमी और आमी प्रश की आर्मी बाकी ग्रेट पावर्स के कंपैरिजन में कमजोर थी इसलिए इसका मॉडर्नाइजेशन जरूरी था लेकिन आर्मी मॉडर्नाइजेशन के लिए पार्लियामेंट बजट पास करने से इंकार
कर रही थी असल में इस समय प्रशन राइक स्टग में कई ग्रुप्स थे जैसे कि लिबरल्स सोशलिस्ट्स और कंजरवेटिव्स लिबरल्स डेमोक्रेसी को सपोर्ट करते थे तो वहीं कंजरवेटिव्स किंग या मोनकी को सोशलिस्ट वर्कर्स के अधिकारों को सपोर्ट करते थे और कैपिटल और इंडस्ट्रियलिस्ट के खिलाफ थे सबकी अपनी-अपनी डिमांड्स होने के कारण पार्लियामेंट ठीक से फंक्शन नहीं कर पाती थी बिस्मार्क खुद एक स्टॉन्च कंसर्टिना की के सपोर्टर थे उनका मानना था कि स्ट्रांग प्रशन मोनकी के नेतृत्व में ही जर्मनी यूनाइट हो सकता है इसके लिए वह सबसे पहले जनता का झुकाव पार्लियामेंट से हटाकर किंग की
तरफ करना चाहते थे जिससे पार्लियामेंट उनके डिसीजन पर कोई सवाल ना उठा पाए सोसाइटी के लिबरल सेक्शंस को खुश करने के लिए बिसमार्क ने रोमन कैथोलिक चर्च पर कई रिस्ट्रिक्शंस लगा दिए बिसमार्क की रिलीजस पॉलिसीज को कुटर काफ भी कहते हैं सोशलिस्ट विचार के लोगों को खुश करने के लिए उन्होंने यूरोप में सबसे पहला सोशल वेलफेयर प्रोग्राम शुरू किया जिसके तहत हेल्थ इंश्योरेंस एक्सीडेंट इंश्योरेंस और ओल्ड एज पेंशंस जैसे बेनिफिट्स दिए गए इंडस्ट्रियलिस्ट और कैपिट इस्ट सेक्शंस को खुश करने के लिए भी उन्होंने कई कदम उठाए बिसमार्क की पॉलिसीज के कारण लोगों में मोनकी के
प्रति रिस्पेक्ट बढ़ रही थी और पार्लियामेंट कमजोर पड़ रहा था इसके बाद उन्होंने आर्मी को मॉडर्नाइज करने की दिशा में कदम उठाना शुरू कर दिया बिस्मार्क की इन पॉलिसीज को रियाल पॉलिटिक या ऑस्टो पॉलिटिक भी कहते हैं इसका मतलब होता है कि सभी पॉलिटिकल डिसीजंस रियल सरकमस्टेंसस और इंटरेस्ट पर बेस्ड होने चाहिए ना कि किसी एथिक्स या आइडियो पर आइए अब देखते हैं कि एक्सटर्नल फ्रंट पर बिसमार्क ने जर्मनी को यूनाइट करने के लिए क्या पॉलिसीज अपनाई वॉर एंड डिप्लोमेसी बिस्मार्क को पूरा यकीन था कि बिना वॉर और डिप्लोमेसी के जर्मनी को यूनाइट करना संभव
नहीं है इसके लिए उन्हें पहला मौका 18643 स्लेस वग और होल स्टाइन पर आक्रमण कर दिया स्लेस वग और होल स्टाइन सेमी ऑटोनोमस जर्मन टेरिटरीज थी 1815 की विएना कांग्रेस ने इन्हें डेनमार्क के इनडायरेक्ट रूल में रखा था लेकिन 18644 में डेनमार्क ने इन्हें अपने देश में मिलाने की कोशिश की बिस्मार्क नेने इस मौके का पूरा फायदा उठाया ऑस्ट्रिया और प्रश कई बात पर अग्री नहीं करते थे फिर भी कॉमन एनिमी डेनमार्क के अगेंस्ट वह यूनाइट हुए और वॉर जीता लेकिन वॉर खत्म होने के तुरंत बाद ही ऑस्ट्रिया और प्रश के बीच के डिफरेंसेस आ
गए ऑस्ट्रिया चाहता था कि लसवी और होल स्टाइन जर्मन फेडरेशन के अंदर इंडिपेंडेंट कंट्रीज बने लेकिन प्रशा उनको अपने में मिलाना चाहता था 185 के होल स्टाइन लसवी कॉम्प्रोमाइज से प्रशा को लेस वक दे दिया गया और होल स्टाइन ऑस्ट्रिया को मिला हिस्टोरियंस मानते हैं कि बिस्मार्क चाहते तो केवल प्रशन आर्मी के साथ डेनमार्क को हरा सकते थे लेकिन ऑस्ट्रिया को इवॉल्व करना एक सोच समझकर लिया गया कदम था बिसमार्क होल स्टाइन के बहाने आगे चलकर ऑस्ट्रिया से वॉर करना चाहते थे क्योंकि उन्हें पता था कि बिना ऑस्ट्रिया से लड़े जर्मन यूनिफिकेशन नहीं हो सकता
अब बिस्मार्क ने होल स्टाइन की पॉपुलेशन को ऑस्ट्रिया के खिलाफ भड़काना शुरू किया बिस्मार्क की एक्टिविटी से ऑस्ट्रिया परेशान हो गया था और उसने 1866mhz के पोलैंड रिवोल्ट में प्रशा ने रश की हेल्प की जिससे रश और प्रशा की दोस्ती बढ़ जाए रशिया को एला बनाने के बाद बिसमार्क ने फ्रांस के नेपोलियन द थर्ड से ट्रीटी की जिसके तहत बिसमार्क ने फ्यूचर में किसी भी ऑस्ट्रो प्रसन वॉर में फ्रांस को न्यूट्रल रहने को राजी कर लिया फ्रेंच न्यूट्रलिज्म से गुजर रहा था इस तरह 1866mhz प्रशा है वॉर में ऑस्ट्रिया को हराने के बाद 23 अगस्ट
1866mhz हेस ने कन्फेडरेशों [संगीत] [संगीत] बिसमार्क जानते थे कि अगर कोई कॉमन एनेमी जर्मनी पर हमला कर दे तो नेशनलिस्ट सेंटीमेंट्स नॉर्थ और साउथ जर्मनी के बीच यूनाइटिंग फैक्टर का काम कर सकते हैं इसके लिए उन्होंने फ्रांस को परेशान करना शुरू कर दिया प्रश की ऑस्ट्रिया पर हुई जीत के बाद वैसे भी नेपोलियन द थर्ड घबराए हुए थे उन्हें लगा था जब ऑस्ट्रिया और प्रशिया आपस में लड़कर कमजोर हो जाएंगे तो फ्रांस उन पर आक्रमण करके कुछ जर्मन टेरिटरीज को हथिया लेगा ऐसे में बेसमार्क की जीत और ऑस्ट्रिया के साथ उसकी ट्रीटी ने फ्रांस के
मंसूबों पर पानी फेर दिया बिस्मार्क ने फ्रांस को ऑस्ट्रो प्रशियन वॉर में न्यूट्रल रहने के लिए कुछ टेरिटरीज देने का भी प्रॉमिस किया था लेकिन जीतने के बाद बिसमार्क अपनी प्रॉमिस से पीछे हट गए वो तो बस फ्रांस के साथ वॉर का कोई बहाना ढूंढ रहे थे 1870s को लेकर कुछ कंट्रोवर्सी हुई बिस्मार्क ने प्रशियन प्रिंस लियोपोल्ड का नाम प्रपोज किया इससे नेपोलियन काफी घबरा गए क्योंकि फ्रांस के एक साइड ऑलरेडी प्रशिया था अगर दूसरी साइड प्रशन प्रिंस शासन करने लगेगा तो फ्रांस तो दोनों तरफ से घिर जाएगा इससे पहले नेपोलियन द थर्ड ने नेदर
ै से लक्जमबर्ग खरीदने की कोशिश की थी जिसे बिसमार्क ने मना कर दिया इस तरह बिसमार्क फ्रांस पर प्रेशर बढ़ा रहे थे और दोनों के बीच वर अब बस कुछ ही समय की बात लग रही थी स्पेनिश थ्रोन के सक्सेशन डिस्प्यूट को रिज करने के लिए नेपोलियन द थर्ड ने अपने एंबेसडर काउंट बेनेडेटो प्रश भेजा इस समय प्रशन किंग विलियम द फर्स्ट ईएमएस रिसॉर्ट में हॉलीडेज स्पेंड कर रहे थे काउंट बेने डेटी वहीं किंग विलियम वन से मिले फ्रेंच एंबेसडर प्रशा से गारंटी चाहते थे कि प्रशा स्पेन के अफेयर से बाहर रहेगा लेकिन किंग विलियम
द फर्स्ट ने बिना बिसमार्क से पूछे कोई भी डिसीजन लेने से इंकार कर दिया किंग विलियम ने बिस्मार्क को एक टेलीग्राम लिखा जिसमें उन्होंने फ्रेंच एंबेसडर की सारी बातें बताई इस टेलीग्राम को हिस्ट्री में ईएमएस टेलीग्राम कहते हैं बिसमार्क इस समय फ्रांस से वॉर का कोई उपाय खोज ही रहे थे ईएमएस टेलीग्राम जब उन्हें मिला तो उन्होंने इसी को वेपन बनाने की तरकीब निकाली उन्होंने किंग विलियम के टेलीग्राम के कुछ पैराग्राफ्स को एडिट करके न्यूजपेपर्स को दे दिया बिसमार्क ने टेलीग्राम ऐसे एडिट किया था जिससे लगता कि प्रशन किंग ने फ्रेंच एंबेसडर और फ्रेंच पीपल
को काफी इंसल्ट किया हो जब यह न्यूज पब्लिश हुई तो फ्रेंच सेंटीमेंट्स हर्ट हुए फ्रांस के लोगों ने नेपोलियन को प्रशिया के खिलाफ कड़े एक्शन लेने के लिए प्रोत्साहित किया इस तरह फ्रांस ने प्रशिया पर वर डिक्लेयर कर दिया और बिस्मा के जाल में फंस गए अगस्ट 187 में फ्रांस और प्रशा के बीच वॉर हुई जिसे फ्रैंको प्रसन वॉर कहते हैं जैसे ही वॉर स्टार्ट हुआ तो बिसमार्क की प्रेडिक्शन के अनुसार सारे जर्मन स्टेट्स यूनाइट हो गए ऑस्ट्रिया को छोड़कर सारे सदन स्टेट्स जो कि फेडरेशन का हिस्सा नहीं थे ने भी वॉर में प्रश का
साथ दिया इस वॉर में प्रश ने फ्रांस को बहुत बुरी तरह से हराया फ्रांस को फर्द ह्यूमिड करने के लिए बिसमार्क ने यूनाइटेड जर्मन एंपायर की घोषणा फ्रेंच किंग के रेजिडेंस पैलेस ऑफ वसाई से की इस तरह 18641 71 के बीच बिसमार्क ने ब्लड एंड आयन पॉलिसी यूज करते हुए जर्मनी को यूनाइट कर दिया किंग फ्रेडरिक विलियम द फर्स्ट यूनाइटेड जर्मन एंपायर के पहले एंपरर बने और बिस्मार्क पहले चांसलर कंक्लूजन दोस्तों जर्मनी की यूनिफिकेशन से यूरोप के जियोग्राफिक सेंटर में एक पावरफुल स्टेट का उदय हुआ इस तरह यूरोप के ग्रेट पावर्स की लिस्ट में ब्रिटेन
फ्रांस और रशिया के साथ एक और नाम जुड़ गया होली रोमन एंपायर के रुन से एक मॉडर्न जर्मन एंपायर के डेवलपमेंट से आने वाले समय में यूरोपियन पॉलिटिक्स पर भी डीप इंपैक्ट पड़ा आने वाले समय में जर्मनी यूरोप में पहले से स्टब्ड स्टेट्स के साथ रिसोर्सेस के लिए कंपीट करने लगा इस कंपटीशन में कॉलोनियल कंपटीशन भी शामिल था रिसोर्सेस को लेकर यही कंपटीशन 20th सेंचुरी में डेव पेटिंग फर्स्ट वर्ल्ड वॉर का एक प्रमुख कारण बना यूनिफिकेशन ऑफ इटली 19th सेंचुरी यूरोप में नेशनलिज्म या राष्ट्रवाद की लहर चल रही थी इसके कारण कई नए देश बन
रहे थे और कई पुराने किंगडम डिसइंटीग्रेट हो रहे थे इटली का यूनिफिकेशन भी बढ़ते हुए राष्ट्रवाद का एक उदाहरण था 19th सेंचुरी का इटालियन यूनिफिकेशन एक पॉलिटिकल और सोशल मूवमेंट था जिसने इटालियन पेनिंस के कई डिफरेंट छोटे-बड़े किंगडम को कंसोलिडेट कर एक सिंगल स्टेट की स्थापना की यूनिफिकेशन प्रोसेस को इटालियन लैंग्वेज में रिसोर जमें तो भी कहते हैं जिसका अर्थ होता है रिसर्जेंस या पुनरुत्थान दरअसल इटालियन पेनिंस एक समय में एंसेट रोमन एंपायर का केंद्र हुआ करता था और रिसर्ज मेंटो का मतलब एक बार फिर से इटली की इसी पुरानी ग्लोरी को रिवाइव करना था
आज हम इटालियन यूनिफिकेशन की इसी दिलचस्प कहानी की चर्चा करने जा रहे हैं हम इटली की यूनिफिकेशन के पीछे के कारणों इसमें योगदान देने वाले इंपॉर्टेंट पर्स संस और इसके प्रोसेस को डिटेल में समझेंगे आइए शुरुआत कॉसेस को समझने से करते हैं कॉसेस ऑफ इटालियन यूनिफिकेशन इटालियन पेनिंस के यूनिफिकेशन में बहुत से फैक्टर्स ने रोल प्ले किया था इसमें सबसे पहला फैक्टर आता है इटालियन पेनिंस की जियोग्राफी इटालियन पेनिंस तीन तरफ से समंदर से घिरा हुआ है और इसके नॉर्थ में एल्प्स की ऊंची पर पर्वत श्रृंखला है इस तरह यह एक क्लोज्ड जियोग्राफिक यूनिट बनाता
है जिस वजह से यहां रहने वाले लोगों के बीच एक डिस्टिंक्ट कल्चर और आइडेंटिटी का डेवलपमेंट देखा जाता है इटालियन पेनिंस कई छोटे और बड़े राज्यों में विभाजित जरूर था लेकिन फिर भी कल्चर आइडेंटिटी लैंग्वेज और हिस्ट्री की समानता के कारण यूनिफिकेशन की एक अर्ज यहां हमेशा से मौजूद थी इसे और ज्यादा हवा देने का काम किया फ्रांस के नेपोलियन बोनापार्ट ने नेपोलियन बोनापार्ट फ्रांस का एक कुशल सेना प्रमुख था जिसने 1799 तक इटली के कई राज्यों को फ्रेंच एंपायर में मिला लिया था 1804 में जब नेपोलियन फ्रांस का एंपरर बना तो उसने कुछ इटालियन
टेरिटरीज को फ्रेंच एंपायर का पार्ट बना लिया इस तरह नेपोलियन फ्रांस और इटली दोनों का एंपरर बना नेपोलियन ने अपने इटालियन टेरिटरीज में गवर्नेंस इंप्रूव करने के लिए कई कदम उठाए ट्रेड बैरियर्स को कम करके ट्रेड को प्रमोट किया गया इटालियन सोसाइटी को रिफॉर्म करने के लिए नए लॉ कोड्स बनाए गए और फ्यूड प्रिविलेजेस को खत्म किया गया इन रिफॉर्म्स के पीछे नेपोलियन का मकसद था कि इटली को फ्रेंच एंपायर का मजबूत हिस्सा बनाया जाए लेकिन अनजाने में नेपोलियन ने इटालियन नेशनलिज्म को भी बढ़ावा दिया साथ ही फ्रेंच रेवोल्यूशन के आइडियल ने इटली में रिपब्लिकन
मूवमेंट को भी जन्म दिया इस तरह नेपोलियन के रूल ने इट में नेशनलिज्म और रिपब्लिक निज्म को प्रमोट किया हालांकि नेपोलियन का इटली में साम्राज्य ज्यादा दिन तक चल नहीं पाया 1814 के बैटल ऑफ वाटरलू में हार के बाद नेपोलियन को फ्रांस की सत्ता छोड़नी पड़ी नेपोलियन की डिफीट के साथ उसका विशाल साम्राज्य भी खत्म हो गया नेपोलियन के द्वारा एनेक्स किए गए एरियाज का फ्यूचर डिसाइड करने के लिए विक्टोरियस पावर्स ने 1815 में विएना कांग्रेस बुलाई विएना कांग्रेस में लिए गए डिसीजंस ने इटली के की यूनिफिकेशन मूवमेंट को अफेक्ट किया इस कांग्रेस को ब्रिटेन
ऑस्ट्रिया प्रशिया फ्रांस और रशिया के रिप्रेजेंटेटिव्स ने अटेंड किया था इन्हें कलेक्टिवली यूरोप की ग्रेट पावर्स भी कहा जाता था इस कांग्रेस का एक मेन ऑब्जेक्टिव यह था कि ग्रेट पावर्स के बीच बैलेंस ऑफ पावर बना रहे विएना कांग्रेस ने इटली में नेपोलियन के कब्जे से पहले जो बाउंड्रीज थी उन्हें रिस्टोर कर दिया लेकिन कांग्रेस ने इटालियन स्टेट्स को इंडिपेंडेंट नहीं रहने दिया वह डरते थे कि अगर इटालियन किंगडम यूनाइट हो गए तो यूरोप में एक नया पावर खड़ा हो जाएगा इसलिए इटालियन किंगडम को कई हिस्सों में डिस्ट्रीब्यूटर दिया गया पहला था नॉर्दर्न इटली के
किंगडम वेनिस और लंबाडी जिन्हें ऑस्ट्रिया के हैब्सबर्ग एंपायर के डायरेक्ट कंट्रोल में दे दिया गया दूसरा ग्रुप था पामा मडोना और जिसे फ्रांस के बर्बन एंपायर के कंट्रोल में दे दिया गया चौथा था पपल स्टेट्स जिसकी कैपिटल रोम थी यह डायरेक्ट पोप के अंडर हुआ करता था पोप कैथोलिक क्रिश्चियनिटी के सबसे इंपॉर्टेंट रिलीजस फिगर माने जाते हैं इसके अलावा एक और किंगडम था पीडम सार्डी निया जो कि इंडिपेंडेंट था इटालियन पीपल को विएना कांग्रेस से काफी उम्मीद थी लेकिन कांग्रेस ने इटली के हिस्सों को ऑस्ट्रिया और फ्रांस के बीच डि करके उनकी सभी उम्मीदों पर
पानी फेर दिया विएना कांग्रेस के इस डिसीजन ने इटली में नेशनलिज्म की भावना को और प्रबल बना दिया इटालियन नेशनलिज्म के बेसिस की बात करें तो यह डिस्टिंक्ट इटालियन आइडेंटिटी की वजह से था इटली एक कोहेसिव जियोग्राफिक यूनिट तो था ही साथ में इसकी रिच कल्चरल और पॉलिटिकल हिस्ट्री भी थी इसलिए इटालियंस अपने आप को एक डिस्टिंक्ट पॉलिटिकल आइडेंटिटी मानते थे इतनी सिमिलरिटी के बावजूद इटालियन पीपल कई अलग-अलग किंगडम में डिवाइडेड थे इटालियंस पहले फ्रांस के नेपोलियन के अंडर थे और फिर विएना कांग्रेस ने कई टेरिटरीज ऑस्ट्रिया और फ्रांस को दे दी इटालियन समझ गए
थे जब तक वह यूनाइट नहीं होंगे सिंगल इटालियन नेशन का बनना मुश्किल है अब इंटेलेक्चुअल्स राइटर्स थिंकर्स इटली को यूनाइट करने के उपाय खोजने लगे वो इटली के ग्लोरियस कल्चर और हिस्ट्री को कॉमन लोगों तक पहुंचाने लगे इटली को यूनाइट करने के तरीके की अगर बात की जाए तो नेशनलिस्ट ने दो मेन तरीके अपनाए पहला था रेवोल्यूशन मेथड दूसरा था डिप्लोमेसी इटालियन यूनिफिकेशन के तीन प्रमुख चेहरे थे मजनी गैरीबाल्डी और काउंट कावो जहां मजनी और गैरीबाल्डी ने रेवोल्यूशन मेथड्स का सहारा लिया वहीं कैव ने डिप्लोमेसी का सहारा लिया आइए इनके बारे में थोड़ा डिटेल में
समझते हैं रेवोल्यूशन मेथड्स ऑफ मजनी एंड गैरीबाल्डी 1800 से 1831 के दौरान इटली में कई सीक्रेट सोसाइटीज बनती हैं जिनका मेन मकसद फॉरेन गवर्नमेंट्स को ओवरथ्रो करना और इटली में पॉलिटिकल चेंज लाना था इन सीक्रेट सोसाइटीज के इनफॉर्मल नेटवर्क्स को कार्बोना कहते थे ये 1815 के बाद से नॉर्दर्न इटली से ऑस्ट्रियंस और सदर्न इटली से फ्रेंच बर्बन डायनेस्टी को ओवरथ्रो करने में लगी थी अपने मकसद को पाने के लिए इन्होंने लोगों को विदेशी लर्स के खिलाफ प्रोवोक करके कई अराइजिंग भी किए जिनमें सबसे पॉपुलर थे 1820 1831 और 1848 के अराइजिंग हालांकि इन अराइजिंग को
ब्रूटल तरीके से स्रेस कर दिया गया इंपॉर्टेंट रेवोल्यूशन की बात करें तो इनमें ग्यूसेप्पे मजनी का नाम इंपॉर्टेंट है जिन्हें इटालियन यूनिफिकेशन का हार्ट भी कहा जाता है वह पहले कार्बोनरी के मेंबर थे लेकिन 1831 में उन्होंने यंग इटली नाम की अपनी रेवोल्यूशन सोसाइटी बनाई मजने एक रेवोल्यूशन होने के साथ साथ एक अच्छे विचारक भी थे वह इटली को एक डेमोक्रेटिक रिपब्लिक नेशन में ट्रांसफॉर्म करना चाहते थे मजनी की राइटिंग्स इतनी रेवोल्यूशन थी कि उन्हें बैन कर दिया गया था 1831 के फेल्ड रेवोल्यूशन के बाद उन्हें फ्रांस डिपोर्ट कर दिया गया लेकिन फ्रांस से भी
वह निरंतर रेवोल्यूशन पैंफलेट इटली भेजा करते थे 1848 में उन्हें सफलता मिली जब वह रोम को कैप्चर करने में सफल हुए उन्होंने रिपब्लिक ऑफ रोम की स्थापना की लेकिन नेपोलियन द थर्ड के अंदर फ्रेंच आर्मी ने वापस रोम को कैप्चर कर लिया इस बार मजनी को अमेरिका डिपोर्ट कर दिया गया जहां जैसे वीर सावरकर भी मजनी और उनकी सीक्रेट सोसाइटी से इंस्पायर्ड थे महात्मा गांधी ने 1919 में यंग इटली की तर्ज पर यंग इंडिया नाम का नेशनलिस्ट जर्नल शुरू किया था मजनी के बाद दूसरे फेमस इटालियन रेवोल्यूशन लीडर थे गैरीबाल्डी गैरीबाल्डी मजनी से इंस्पायर्ड थे
और 1831 में उन्होंने भी यंग इटली मूवमेंट जवाइन किया था गार बालरी की रेवोल्यूशन एक्टिविटीज के कारण उ भी इटली से एजाइल कर दिया गया था जब गैरीबाल्डी साउथ अमेरिका में थे तब उन्होंने कई वर्स में पार्टिसिपेट किया और गोरिला व फेर एक्टिविटीज की ट्रेनिंग ली आने वाले समय में गैरीबाल्डी इटालियन यूनिफिकेशन मूवमेंट में एक अहम भूमिका निभाने वाले थे आइए अब डिप्लोमेटिक मींस यूज करके इटली के यूनिफिकेशन में सबसे इंपॉर्टेंट रोल निभाने वाले काउंट का वोर के बारे में जानते हैं डिप्लोमेटिक मेथड ऑफ काउंट कवो काउंट कवो का असली नाम था कमलो बेंजो कवो
किंग विक्टर इमानुएल द सेकंड के अंडर इटालियन किंगडम पीडम सार्डी निया के प्राइम मिनिस्टर थे कैवो को अक्सर इटालियन यूनिफिकेशन के पीछे का ब्रेन कहा जाता है माना जाता है कि यूनाइटेड इटली कवो के लाइफ की लेगासी है इटालियन यूनिफिकेशन के लिए कई लोगों ने काम किया लेकिन वो कवो का विजन ही था जिसने इटालियन यूनिफिकेशन के आईडिया को रियलिटी में बदला उन्होंने रिसर्ज मेंटो द सेकंड नाम का एक न्यूज़पेपर शुरू किया था कवो का मानना था कि सारे इटालियन किंगडम को पीडम सार्डी निया की लीडरशिप में यूनाइट हो जाना चाहिए इसको अचीव करने के
लिए उन्होंने दो मेन तरीके अपनाए पहला था इंटरनल डेवलपमेंट और दूसरा था स्किलफुल डिप्लोमेसी कवो का बिलीफ था कि सार्डी निया को इटालियन किंगडम का आदर्श बनकर उभरना चा चाहिए जिससे कि बाकी इटालियन किंगडम सार्डी निया के साथ यूनाइट होना चाहे इसके लिए सार्डी निया का इंटरनल डेवलपमेंट जरूरी था इसी सोच के साथ उन्होंने सार्डी निया की इकॉनमी को मॉडर्नाइज करना शुरू किया और मैसिव इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स में इन्वेस्ट किया वैसे तो सार्डी निया मोनकी थी लेकिन उन्होंने सभी सिटीजंस को फुल सिविल राइट्स और प्रेस फ्रीडम दी लेकिन कावो यह भी अच्छी तरह समझते थे कि
बिना ग्रेट पावर्स की हेल्प के इटली को यूनाइट करना पॉसिबल नहीं होगा इसलिए उन्होंने डिप्लोमेटिक स्किल्स का यूज किया और धीरे-धीरे इटली के डिफरेंट पार्ट्स को पीडम सार्डी निया में मिलाते गए 18533 के क्राइम अन वॉर ने कावो को पहली बार अपनी डिप्लोमेटिक स्किल यूज करने का मौका दिया क्राइम अन वॉर एक तरफ रशियन एंपायर और दूसरी तरफ ऑटोमन एंपायर फ्रांस और ब्रिटेन के द्वारा लड़ा जा रहा था हालांकि इस वॉर से पीडम सार्डी निया का दूर-दूर तक कोई लेना देना नहीं था फिर भी कावो ने किंग विक्टर इमानुएल को कन्विंसिंग अपने सैनिक भेजे वॉर
में रशिया की हार के बाद पेरिस में पीस कॉन्फ्रेंस रखी गई वॉर में सार्डी की मदद को देखते हुए सार्डी निया से भी रिप्रेजेंटेटिव को पीस कॉन्फ्रेंस में बुलाया गया सार्डी निया की तरफ से काउंट का वोर ने कॉन्फ्रेंस में पार्टिसिपेट किया यहां काबूर ने नॉर्दर्न इटालियन किंगडम में ऑस्ट्रिया के ऑपरेशन के मामले को उठाया और ब्रिटेन और फ्रांस से सिंपैथी लेने में सफल हुए फ्रांस के नेपोलियन द थर्ड एक कदम आगे बढ़ते हुए ऑस्ट्रिया के खिलाफ सार्डी निया को सपोर्ट करने के लिए अग्री हो गए फ्रांस के साथ अलायंस को सील करने के लिए
कवो ने नेपोलियन द थर्ड का विवाह सार्डी निया की एक राजकुमारी से करवाया कवो ने सार्डी निया और फ्रांस के बॉर्डर पर लोकेटेड दो सिटीज नीस और सवय को भी फ्रांस के हवाले कर दिया फ्रांस के के साथ समझौता कवो की एक सोची समझी टैक्टिक थी उन्हें पता था बिना फ्रेंच सपोर्ट के नॉर्दर्न इटालियन किंगडम को ऑस्ट्रिया से आजाद कर पाना संभव नहीं था नीस और सवय लार्जर इटालियन यूनिफिकेशन प्रोजेक्ट के लिए सैक्रिफाइस किए गए थे आइए अब इटालियन यूनिफिकेशन के तीन इंपॉर्टेंट फेजेस को देखते हैं फेज वन 18582 59 इस फेज में नॉर्दर्न इटली
किंगडम लंबाडी और वेनिस के लोगों को कवो ने उनके ऑस्ट्रियन रूलरसोंग्स की हेल्प से सार्डी निया ने लंबाडी को आजाद करा लिया लेकिन वह वेनिस को आजाद नहीं करा पाए फेज वन के बाद लंबाडी को सार्डनिक किंगडम में मिला लिया गया आइए अब फेज टू देखते हैं जो कि 1860 में हुआ फेज टू 1860 ऑस्ट्रियन रूल से लंबाडी के लिबरेशन के बाद पामा मडन टस्करावास उठने लगी ऑस्ट्रिया लिबरेशन मूवमेंट को आर्मी भेजकर सप्रे करना चाहता था लेकिन कावो के कहने पर ब्रिटेन और फ्रांस ने ऑस्ट्रिया को आर्मी ना भेजने के लिए राजी कर लिया फैसला
लिया गया कि इन किंगडम में प्लेब साइट होगा जनता डिसाइड करेगी कि वह ऑस्ट्रियन रूल के अंदर रहना चाहती है या पीड मोंट सार्डी से मिलना चाहती है लोगों ने सार्डी निया को जॉइन करने के पक्ष में वोट डाला इस तरह पामा मडे टस्करावास निया में जॉइन हो गए अब नॉर्दर्न इटली में वेनिस और रोम को छोड़कर सारा पार्ट पीडम में इंटीग्रेट हो गया था सदर्न इटली के नेपल्स और सिसिली में भी फॉरेन रूलरसोंग्स चल रही थी नेपल्स और सिसिली में बर्बन डायनेस्टी का रूल था जिसे इनडायरेक्टली फ्रांस के नेपोलियन द थर्ड का संरक्षण प्राप्त
था क्योंकि नेपल्स और सिसिली पर डायरेक्ट अटैक करने से सार्डी निया को फ्रेंच आर्मी का सामना करना पड़ जाता इसलिए कावो ने दूसरी योजना अपनाई प्लान था नेपल्स और सिसिली में चल रहे अपराइज को बाहरी सपोर्ट देकर उसे आजाद करा लिया जाए इस काम के लिए कावो ने गारी बाल्डी को चुना जो कि 18544 सार्डी निया से सिसली के लिए रवाना हुए लोकल रेवोल्यूशन को साथ लेते हुए और गोरिला टेक्निक्स का इस्तेमाल करके गैरीबाल्डी सितंबर 1860 तक सिसिली और नेपल्स को लिबरे कराने में सफल होते हैं लेकिन गैरीबाल्डी माजिनी के विचारों से इंस्पायर्ड थे और
नेपल्स और सिसिली को रिपब बनाना चाहते थे इसलिए उन्होंने सदर्न इटली को नॉर्दर्न इटली में मिलाने से इंकार कर दिया नेपोलियन द थर्ड जब तक पूरा मामला समझ पाते खाबोर ने फिर नई चाल चल दी उन्होंने नेपोलियन द थर्ड को आश्वासन दिया कि वह सिसिली और नेपल्स से विद्रोहियों को बाहर कर देंगे इसके लिए उन्हें नेपल्स और सिसिली पर अटैक करने की परमिशन दे दी जाए नेपोलियन ने परमिशन दे दी और फिर कैवो अपनी आर्मी के साथ सिसिली पहुंचे सिसिली पहुंचकर कैवो ने गैरीबाल्डी के साथ समझौता कर लिया और गैरीबाल्डी सिसिली और नेपल्स को पीडम
सार्डी निया में मिलाने के लिए सहमत हो गए इस तरह सेकंड फेज के इंटीग्रेशन के बाद इटालियन किंगडम से बाहर अब केवल वेनिस और रोम बचा था जो कि यूनिफिकेशन के थर्ड फेज में इंटीग्रेट होता है आइए देखते हैं कैसे फेज थड 1866mhz 18 61 में महज 50 साल की एज में हो गई थी इसके बाद इटालियन यूनिफिकेशन को कंप्लीट करने की जिम्मेदारी किंग विक्टर इमानुएल के कंधे पर आ गई क वोर के सानिध्य में अब किंग विक्टर भी डिप्लोमेटिक स्किल्स सीख चुके थे जैसे ही उन्हें पता चला कि ऑस्ट्रिया और प्रशा के बीच वॉर
होने वाला है उन्होंने प्रशा के साथ एक गुप्त समझौता कर लिया समझौते के अनुसार सार्डी निया की आर्मी प्रश को सपोर्ट करेगी उसके बदले प्रशा वेनिस को सार्डी निया के हवाले कर देगा 1866mhz देश था पेपल अथॉरिटी को प्रोटेक्ट करने के लिए फ्रेंच आर्मी की एक परमानेंट टुकड़ी रोम में स्टेशन करके रखता था ऐसे में रोम पर डायरेक्ट अटैक करना फ्रांस से दुश्मनी लेना होता लेकिन जल्दी ही विक्टर इमानुएल को रोम पर कब्जा करने की अपॉर्चुनिटी मिल गई 187 में फ्रांस और प्रशिया के बीच ब्रूटल फ्रैंको प्रशन वॉर लड़ा गया जिसमें प्रशन आर्मी ने फ्रांस
को शिकस्त दी इसके चलते नेपोलियन द थर्ड को रोम में स्टेशन फ्रेंच आ को फ्रांस वापस बुलाना पड़ा मौके का फायदा उठाकर किंग विक्टर इमानुएल ने रोम पर कब्जा कर लिया पोप और कैथोलिक क्रिश्चियंस के रिलीजस सेंटीमेंट्स को रिस्पेक्ट करते हुए रोम से एक स्मॉल एरिया निकाला गया जिसे वैटिकन सिटी का नाम दिया गया वैटिकन को डायरेक्ट पोप की अथॉरिटी में रखा गया आज भी वैटिकन सिटी इटालियन प्रोविंस रोम के अंदर एक इंडिपेंडेंट कंट्री की तरह एजिस्ट करती है इस तरह 187 में रोम के कैप्चर ने इटालियन यूनिफिकेशन के प्रोसेस को कंप्लीट कर दिया विक्टर
इमानुएल यूनाइटेड इटालियन किंगडम के एंपरर बने और रोम यूनाइटेड इटली की कैपिटल बना कंक्लूजन दोस्तों इस तरह नेशनलिज्म की स्पिरिट के साथ फ्रेंच रेवोल्यूशन के आइडियल से इंस्पायर होकर और मजनी कावो और गबाल्डों ने यूनाइटेड इटालियन ने की स्थापना की हु इज टू बी ब्लेम फॉर स्टार्टिंग वर्ल्ड वॉर वन वर्ल्ड वॉर वन दुनिया का पहला ऐसा वॉर था जिसमें एक अलग लेवल की सफरिंग्स और डेथ विटनेस की गई इसकी डेव पेशन का अंदाजा हम इसी से लगा सकते हैं कि टोटल नंबर ऑफ डेथ्स 1.7 करोड़ के लगभग थी इस वर में ब्रिटेन की कॉलोनी स्पेन
फ्रांस रशिया जापान यूएस जैसी कंट्रीज शामिल थे इसको हम द ग्रेट व वर द ग्लोबल वॉर और अ वॉर टू एंड ऑल वॉर्स के नाम से भी जानते हैं ऐसा माना जाता है कि यह सबसे बड़ी लड़ाई है और आने वाले 5060 सालों में ऐसी लड़ाई वापस से नहीं होगी बट इसके 20 साल बाद जब 1939 में सेकंड वर्ल्ड वॉर हुआ तो इसका नाम बदलकर वर्ल्ड वॉर वन रख दिया गया आज के वीडियो में हम बात करेंगे कि वर्ल्ड वॉर वन शुरू कैसे हुआ कौन-कौन सी ग्रुपिंग्स ऑफ कंट्रीज थी और पूरे आफ्टर मैथ में किसे
ब्लेम किया जाता है फॉर स्टार्टिंग वर्ल्ड वॉर वन पर सबसे पहले थोड़ा हमें उस समय की हिस्ट्री को जानना पड़ेगा बैक ड्रॉप टू वर्ल्ड वॉर व दोस्तों 19th सेंचुरी के एंड में वेस्टर्न नेशंस सिविलाइजेशन की रेस में सबसे आगे थे नए-नए इंवेंशंस जन्म ले रहे थे जैसे कि मिलिट्री टेक्नोलॉजी एयरक्राफ्ट फैशन एटस इसी बीच कंट्रीज के आपस में ट्रीटीज साइन हो रहे थे जिसके हिसाब से एक कंट्री पर अगर अटैक होगा तो दूसरी कंट्री उसकी हेल्प के लिए आगे आएगी काफी सारे एलायंसेज बने इन एलायंसेज का इंपॉर्टेंस हम आगे समझेंगे कि कैसे इन एलायंसेज ने
नेशंस को दो ग्रुप्स में बांट दिया टेरिटरीज की बात करें तो एक तरफ फ्रांस जर्मनी से एल जस लखने वाला पार्ट वापस लेना चाहता था जो फ्रांस ने लगभग 50 साल पहले एक ह्यूमिन वॉर में हारा था तो दूसरी तरफ जर्मनी ज्यादा से ज्यादा एरिया अपने रूल के अंदर रखना चाहता था वहीं ग्रेट ब्रिटेन अपनी नेवल शिप्स को मॉडर्नाइज करने में लगा था बाल्कन स्टेट्स के नेशंस सच एज बल्गेरिया 1908 में रोमिया 18811 में इंडिपेंडेंट डिक्लेयर हुए थे इससे बाकी कंट्रीज में नेशनलिज्म का वेव चल रहा था कुल मिलाकर पूरे यूरोप की सिचुएशन अनस्टेबल हो
रही थी और सारे देश एक दूसरे की पीठ पीछे अलायंस बनाने में लगे थे इन सारे इवेंट्स से हम अंदाजा लगा सकते हैं कि वॉर जैसी सिचुएशन क्रिएट होने लगी थी धीरे-धीरे वर्ल्ड की मेजर पावर्स टू ग्रुप्स में डिवाइड हो गई एक था एलाइड पावर्स जिसमें रशिया फ्रांस ग्रेट ब्रिटेन यूएसए और जापान था यूएसए ने 1917 में एलाइड पावर्स को जॉइन किया था दूसरी साइड थी सेंट्रल पावर्स जिसमें ऑस्ट्रो हंगेरियन एंपायर थी जिसे हैब्सबर्ग डायनेस्टी के नाम से भी जाना जाता है उसके अलावा जर्मनी और मॉडर्न डे टर्की का ऑटोमन एंपायर था इस ब्रीफ बैकग्राउंड
के बाद अब हम बात करते हैं कॉसेस ऑफ वर्ल्ड वॉर वन की कॉसेस ऑफ वर्ल्ड वॉर वन दोस्तों कॉसेस की बात करें तो चार मेन रीजन रहे वर्ल्ड वॉर वन के पहला था मिलिटरी जम आपस में आर्म्स रेस मशीन गंस टैंक बड़ी आर्मीज नेवल शिप्स दुनिया को मिलिटराइज्ड कॉम्प्लेक्शन इक्विपमेंट का प्रोडक्शन होता था सेकें रीजन था अलायंस सिस्टम 19th सेंचुरी में यूरोप में कंट्रीज ने आपस में अलायंस बनाए 18826 में नटोन कोडियाल नाम का एक अलायंस बना जिसमें फ्रांस और ग्रेट ब्रिटेन थे जो 1907 में नटोन कोडियाल ट्रिपल ऑन टोंट में कन्वर्ट हो गया आफ्टर
इंक्लूडिंग रशिया मिलिटेरिज्म और अलायंस सिस्टम के बाद थर्ड रीजन था इंपीरियल ज्म मतलब अपने-अपने रूल के एरिया को एक्सपेंड करने की दौड़ सारी मेजर पावर्स रशिया ग्रेट ब्रिटेन यूएसए एटस अपनी कॉलोनी को एक्सटेंड करने में लगे हुए थे दोस्तों अफ्रीका में कॉलोनाइजेशन की ऐसी रेस थी कि उसके लिए हिस्टोरियंस एक टर्म यूज करते हैं स्क्रैंबल फॉर अफ्रीका अफ्रीका उस समय अन एक्सप्लोर था प्लस चीप लेबर का सोर्स था और साथ ही साथ वहां के डायमंड माइंस इंपी यल नेशंस की नजर में आ गए थे मल्टीपल कंट्रीज का इंटरेस्ट अफ्रीका में होने की वजह से आपस
में डिफरेंसेस आने लग गए और फिर इनको सॉल्व करने का रास्ता निकाला गया वॉर फोर्थ रीजन है नेशनलिज्म जैसा कि हमने पहले देखा कि 19th सेंचुरी में नेशनलिज्म की वेव यूरोप में चल रही थी इंडिपेंडेंट नेशंस आजादी से पहले की लड़ाई को ग्लोरी ऑफ वॉर का नाम दे रहे थे वॉर को इस तरह ग्लोरिफाई किया जा रहा था कि बस यह आखिरी वॉर है फिर तो इंडिपेंडेंस मिलनी ही है बाल्टिक स्टेट्स में नेशनलिज्म का वेव अपनी पीक पर था दोस्तों इसके अलावा वॉर के कुछ और रीजंस भी रहे जैसे रशिया और ऑटोमन एंपायर के बीच
स्ट्रेट ऑफ डार्ली को कंट्रोल करने की होड़ स्ट्रेट ऑफ डार्ली जीजन सी और सी ऑफ मामरा को कनेक्ट करती है यह एक गेटवे है टू द मेडिटरेनियन सी वाया ब्लैक सी इसकी स्ट्रेटेजिक लोकेशन ट्रेड की नजर से काफी इंपॉर्टेंट थी तो यह तो थे कुछ फंडामेंटल रीजंस बट वॉर का इमीडिएट कॉज क्या रहा यानी वॉर शुरू कैसे हुआ आइए जानते हैं वर्ल्ड वॉर वन का इमीडिएट कॉज इमीडिएट कॉज ऑफ वर्ल्ड वॉर वन दोस्तों वर्ल्ड वॉर वन का इमीडिएट कॉज था ऑस्ट्रो हंगेरियन एंपायर के आर्च ड्यूक फ्रांस फर्डिनेंड और उनकी वाइफ का एसिनेट ऑस्ट्रो हंगेरियन एंपायर
यूरोप की रशिया के बाद दूसरी सबसे बड़ी कंट्री थी इसके मेंबर स्टेट्स थे प्रेजेंट डे वर्ल्ड के ऑस्ट्रिया हंगरी इटली बोस्निया क्रोएशिया पोलैंड एट्र आर्च ड्यूक और उनकी वाइफ सारा येवो जो कि प्रेजेंट डे कैपिटल है बोस्निया एंड हेर्जेगोविना की यात्रा कर रहे थे और 28 जून 1914 को उन पर अटैक हुआ उनके एसिनेट के पीछे हाथ था बोस्निया के गवलो प्रिंसेप का जो कि ब्लैक हैंड नाम के ग्रुप का मेंबर था ऑस्ट्रो हंगेरियन एंपायर को उस वक्त ऐसा लग रहा था कि इस एसिनेट के पीछे सर्बिया का हाथ है क्योंकि ब्लैक हैंड ग्रुप सर्बिया
बेस्ड था ऑस्ट्रो हंगेरियन एंपायर ने जर्मनी को बताया कि उनको लगता है कि सर्बिया इस एसिनेट के पीछे है और अब हम सर्बिया पर वॉर डिक्लेयर करने वाले हैं जर्मनी ने फुल सपोर्ट किया ऐसा मानो जर्मनी ने एक ब्लैंक चेक दे दिया कि तुम आगे बढ़ो और हम पीछे खड़े हैं और फिर ऑस्ट्रो हंगरी ने कुछ ह्यूमल ि टर्म्स पर सर्बिया के साथ एग्रीमेंट करना चाहा सर्बिया ने एग्रीमेंट मानने से मना कर दिया और फिर ऑस्ट्रो ंगरी ने सर्बिया पर वॉर डिक्लेयर कर दिया दोस्तों इस तरह से फर्स्ट वर्ल्ड वॉर की शुरुआत हुई थी आइए
अब हम देखते हैं कि इस शुरुआत का ब्लेम किस कंट्री को किन कारणों की वजह से जाता है हु इज टू बी ब्लेम्ड दोस्तों यह एनालाइज करना काफी डिफिकल्ट है कि क्या सारा येवो में एसिनेट वर्ल्ड वॉर में चेंज हो गया कुछ हिस्टोरियंस अब भी इससे सहमति नहीं रखते हैं कुछ ऑस्ट्रिया को ब्लेम करते हैं क्योंकि ऑस्ट्रिया वॉर में पहली अग्रेसर कंट्री थी जिसने सर्बिया के अगेंस्ट वॉर डिक्लेयर किया वहीं कुछ लोग रशिया को ब्लेम करते हैं क्योंकि वह पहला था जिसने फुल मोबिलाइजेशन का ऑर्डर दिया था काफी हद तक इस वॉर के लिए जर्मनी
को भी जिम्मेदार ठहराया जाता है जैसा कि मैंने पहले बताया कि जर्मनी ने ऑस्ट्रिया को मानो एक ब्लैंक चेक ही दे दिया हो जर्मनी ने काफी क्लियर कर दिया था कि तुम आगे से लड़ो हमारा पूरा सपोर्ट है ग्रेट ब्रिटेन की बात करें तो उसने फ्रांस को ओपन सपोर्ट किया जबकि वॉर से पहले और स्टार्टिंग के टाइम में ग्रेट ब्रिटेन की पोजीशन अनक्लियर थी तो दोस्तों क्या हम यह कह सकते हैं कि अगर ग्रेट ब्रिटेन पहले ही फ्रांस को सपोर्ट डिक्लेयर कर देता तो क्या पता जर्मनी अपनी आर्मी के साथ मार्च ही नहीं करता और
फाइटिंग केवल ईस्टर्न यूरोप तक ही रिस्ट्रिक्टेड रहती भले ही वॉर की स्टार्ट ऑस्ट्रो हंगेरियन एंपायर और सर्बिया की लड़ाई से हुई पर क्या पता उन्हें भी यही लगता हो कि बाल्कन वॉर्स की तरह यह वॉर भी लोकलाइज्ड रहेगी लेकिन ये इतने बड़े स्केल में डिवेलप होगी ऐसा किसी ने नहीं सोचा होगा खैर वॉर शुरू होने के साथ यह बहुत तेजी से एस्केलेट भी हुआ आइए जानते हैं रीजंस फॉर एस्केलेशन रीजंस फॉर एस्केलेशन ऑफ वॉर सबसे पहला कारण अलायंस सिस्टम को माना जा सकता है जिसकी वजह से वर इनएविटेबल हो चुकी थी अमेरिकन डिप्लोमेट और हिस्टोरियन
जॉर्ज किनन का मानना है कि अलायंस की वजह से एक म्यूचुअल सस्पिशंस के बीच में और एक वक्त ऐसा आ गया जहां से अपनी फर्द ह्यूमिन रोकने का बस एक ही उपाय था वॉर एस्केलेशन की दूसरी वजह मानी जा सकती है जर्मनी और ब्रिटेन के बीच की नेवल रेस जर्मनी इस बात को बिलीव करता था कि सी पावर काफी इंपॉर्टेंट है एक सक्सेसफुल एंपायर के बिल्डअप के लिए 1906 की ड्रेड नॉट बैटलशिप उस समय की सबसे एडवांस्ड शिप्स में से थी 1914 में दोनों कंट्रीज एक इक्वल फूटिंग पर आ गए थे और खुद के जहाजों
को सुपीरियर प्रूव करने में किसी कंट्री ने कोई कसर नहीं छोड़ी तीसरी वजह एक थरी दी जाती है कि वर्ल्ड वॉर वन दुनिया में इकोनॉमिक मास्टरी के डिजायर के लिए लड़ी गई जर्मन बिजनेसमैन और कैपिटिस ग्रेट ब्रिटेन के अगेंस्ट वॉर करना चाहते थे मार्क्सिस्ट हिस्टोरियंस इस थ्योरी के फेवर में हैं क्योंकि इस वॉर का पूरा ब्लेम एक कैपिट सिस्टम को जाता है जर्मन हिस्टोरियन जेरार्ड रिटर मानते हैं कि जर्मनी का द क्लाइफ एन प्लान ऑफ 195 1906 एक्सट्रीमली रिस्की था इस प्लान के हिसाब से जर्मनी फ्रांस और रशिया को एक साथ हराना चाहती थी चाहे
आउटकम जो भी हो हम कह सकते हैं कि यह प्लान एक डिजास्टर की शुरुआत थी फॉर बोथ जर्मनी एंड यूरोप एस्केलेशन की चौथी वजह मिसकैलकुलेशन मानी जा सकती है ऑस्ट्रिया के पार्ट पर एक मेजर मिसकैलकुलेशन यह सोच लेना रहा कि अटैक के बाद रशिया सर्बिया को सपोर्ट नहीं करेगा दूसरी तरफ जर्मनी का अनकंडीशनल सपोर्ट टू ऑस्ट्रिया जिसमें किसी ने यह नहीं सोचा होगा कि मोबिलाइजेशन का मतलब वॉर ही हो जाएगा मिलिट्री जनरल्स की बात करें तो उनसे भी एक मिसकैलकुलेशन हुई कि उन्हें लगता था कि अगर जल्दी जीत हासिल करनी है तो फुल ब्लोन फोर्स
के साथ ही मिलेगी दोस्तों यह मिस कैलकुलेशंस इस हद तक थी कि ऑस्ट्रेलियन हिस्ट न एलसीएफ टर्नर वर्ल्ड वॉर वन को एक अ ट्रेजेडी ऑफ मिसकैलकुलेशन कहते हैं कंक्लूजन दोस्तों इन सारी कंट्रीज के कारनामों और करतूतों से हम यह बोल सकते हैं कि वॉर का मेन रीजन बस एक ही था कि ज्यादा से ज्यादा टेरिटरी अपने कंट्रोल में ली जाए कुछ कंट्रीज ने ज्यादा अग्रेशन होकर अनफेयर मींस का भी इस्तेमाल किया पर कहीं ना कहीं सारी कंट्रीज ने ग्रीडी एक्ट किया जिस वजह से यह वॉर उस वक्त की हिस्ट्री में सबसे बड़ी वॉर बन गई
इस वॉर में ना केवल मिलिट्री और रेशल सुप्रीमेसी की होड़ लगी थी बल्कि जिस तरह से उस टाइम के लीडर्स ने इस सिचुएशन को हैंडल किया और वॉर बढ़ती ही चली गई इसे ऑल टाइम डिजास्टर्स लीडरशिप फेलियर भी बोला जा सकता है आज भी इस वॉर के लिए ब्लेम करने को लेकर एक कंसेंसस नहीं बन पाया है अगर जर्मनी अपने अग्रेसिव बिहेवियर के लिए रिस्पांसिबल है तो रशिया ज्यादा से ज्यादा आर्म्स बिल्डअप के लिए रिस्पांसिबल था तो दोस्तों हम किसको ब्लेम करें इस वर्ल्ड वॉर वन के लिए यहां किसी एक कंट्री को ब्लेम करना अनफेयर
होगा क्योंकि लगभग सारी कंट्रीज ही एक दूसरे के खिलाफ लड़ रही थी एंड एंड में यही इंपॉर्टेंट है कि चाहे स्टार्ट किसी ने भी की हो वॉर सबका अपना-अपना रोल था टू ब्रिंग अबाउट लार्ज स्केल डेव पेशन टू द वर्ल्ड वर्ल्ड वॉर वन से एक मैसिव सोशल अप हीवल हुआ क्योंकि लाखों महिलाएं वर्कफोर्स में एंटर हुई टू रिप्लेस मेन जो वॉर में गए थे और कभी लौटकर नहीं आए पहला वर्ल्ड वॉर स्पेनिश फ्लू ऑफ 1918 को स्प्रेड करने के लिए भी रिस्पांसिबल है यह वन ऑफ द वर्ल्ड्स डेडलिएस्ट ग्लोबल पडेम था जिसमें लगभग 20 से
50 मिलियन लोगों की जान गई थी बहुत सारे मिलिट्री कॉन्फ्लेट से रिलेटेड टेक्नोलॉजीज जैसे मशीन गंस टैंक्स एरियल कॉम्बैट एंड रेडियो कम्युनिकेशंस का मैसिव स्केल पर इंट्रोडक्शन भी वर्ल्ड वॉर वन के दौरान ही हुआ था तो दोस्तों कुल मिलाकर वर्ल्ड वॉर व एक ऐसा इवेंट था जिसके लॉन्ग टर्म नेगेटिव इंपैक्ट्स किसी किसी रूप में आज भी विजिबल है नेशंस दोस्तों 1914 से 1918 के बीच यूरोप अपने इतिहास के सबसे वर्स्ट किलिंग्स को देखता है करीब 20 मिलियन लोग वर्ल्ड वॉर वन के दौरान मारे गए थे बहुत से अंपायर्स जैसे कि ऑटोमन ऑस्ट्रो हंगेरियन और रशियन
का नामो निशान मिट गया था कुछ नए नेशंस जैसे कि चेकोस्लोवाकिया एस्टोनिया और फिनलैंड का जन्म भी हुआ था संक्षेप में कहे तो इन महत्त्वपूर्ण वर्षों में एक नया वर्ल्ड ऑर्डर इमर्ज कर रहा था वॉर के दौरान हुए नरसंहार को देखने के बाद एक इंटरनेशनल ऑर्गेनाइजेशन की जरूरत महसूस होने लगी थी बहुत से लोगों को लगता था कि ऐसी कोई तो इंटरनेशनल ऑर्गेनाइजेशन होनी चाहिए जो डिस्प्यूट्स को मिलिट्री कॉन्फ्लेट में बदलने से पहले ही सेटल कर सके और इसी आईडिया से जन्म होता है लीग ऑफ नेशंस का जिसकी बिगिनिंग स्ट्रक्चर अचीवमेंट्स और फेलियर की आज
हम चर्चा करेंगे शुरुआत करते हैं इसकी फाउंडेशन से द लीग ऑफ नेशन बिगिनिंग लीग ऑफ नेशंस को अक्सर अमेरिकन प्रेसिडेंट वुड्रो विल्सन का ब्रेन चाइल्ड माना जाता है यह सच भी है कि विल्सन पीस के लिए एक इंटरनेशनल ऑर्गेनाइजेशन के बहुत बड़े समर्थक थे लेकिन लीग की फॉर्मेशन फर्स्ट वर्ल्ड वॉर के दौरान ऐसे ही बहुत से सिमिलर सजेशंस का रिजल्ट थी बहुत से वर्ल्ड स्टेट्समैन जैसे कि ब्रिटेन के लॉर्ड रॉबर्ट सिसिल साउथ अफ्रिका के जन स्मस और फ्रांस के लियोन बुर्जुआ ने ऑर्गेनाइजेशन के सेटअप को लेकर डिटेल प्लान तैयार किया था ब्रिटिश पीएम लॉयड जॉर्ज
इसे ब्रिटेन का एक वॉर एम बताते हैं और विल्सन इसे अपने 14 पॉइंट्स में आखिरी पॉइंट के रूप में शामिल करते हैं विल्सन का सबसे बड़ा कंट्रीब्यूशन यह था कि इन्होंने इंसिस्ट किया था कि लीग के कवनेंट्स ट्रीटी में अलग से शामिल किया जाए कनेंट का मतलब दोस्तों वो लिस्ट ऑफ रूल्स हैं जिनके द्वारा लीग को ऑपरेट करना था इसे एक इंटरनेशनल कमेटी द्वारा तैयार किया गया था जिसमें सिसल स्मा बजुआ बेल्जियम के पॉल हाइमनस और खुद विल्सन शामिल थे कवनेंट्स बना देने से यह इंश्योर हो जाता है कि लीग सिर्फ डिस्कशन का टॉपिक ना
रहकर एक्चुअली एसिस्टेंसिया कि सेम डे जब वसाई ट्रीटी ऑपरेशन में आई थी इसके हेड क्वार्टर्स को स्विटजरलैंड के जिनेवा में बनाया जाता है यह पहली परमानेंट इंटरनेशनल ऑर्गेनाइजेशन थी जिसका मेन मिशन वर्ल्ड पीस को मेंटेन करना था इसके प्राइमरी गोल्स में कलेक्टिव सिक्योरिटी और डिसर्नमेंट द्वारा वॉर को प्रिवेंट करना और नेगोशिएशन और आर्बिट्रेशन की मदद से इंटरनेशनल डिस्प्यूट्स को सेटल करना था इसके अलावा इससे जुड़ी ट्रीटीज में लेबर कंडीशंस नेटिव इनहैबिटेंट्स का जस्ट ट्रीटमेंट ह्यूमन और ड्रग ट्रैफिकिंग आर्म्स ट्रेड ग्लोबल हेल्थ प्रिजनर्स ऑफ वॉर और यूरोप में माइनॉरिटी के प्रोटेक्शन जैसे इश्यूज को भी शामिल
किया गया था आइए अब इसके स्ट्रक्चर की बात करते हैं स्ट्रक्चर ऑफ द लीग शुरुआत में 42 नेशंस लीग के मेंबर स्टेट्स थे जो 1926 तक बढ़कर 55 हो जाते हैं 1926 में ही जर्मनी को इसमें शामिल किया जाता है लीग के पांच मेन ऑर्गन्स थे जिसमें पहला था जनरल असेंबली द जनरल असेंबली असेंबली साल में एक बार मीटिंग करती थी इसमें सभी मेंबर नेशंस के रिप्रेजेंटेटिव्स शामिल होते थे और सभी के पास एक वोट होता था असेंबली का काम जनरल पॉलिसी को डिसाइड करना होता था उदाहरण के तौर पर यह पीस ट्रीटीज में रिवीजन
प्रपोज कर सकती थी साथ ही यह लीग के फाइनेंस को भी हैंडल करती थी इसमें सभी फैसले एक मत से लेना जरूरी था असेंबली का एक फायदा यह था कि इसमें स्मॉल और मीडियम साइज स्टेट्स को मौका मिलता था अपने इश्यूज को रेज करने का और वर्ल्ड डेवलपमेंट्स पर अपनी बात कहने का अब चलते हैं के नेक्स्ट ऑर्गन यानी काउंसिल की तरफ द काउंसिल काउंसिल एक स्मॉलर बॉडी थी जो असेंबली की तुलना में ज्यादा मीटिंग्स भी करती थी साल में कम से कम तीन बार इसकी मीटिंग होती थी यह चार परमानेंट मेंबर्स और चार नॉन
परमानेंट मेंबर्स से मिलकर बनी थी परमानेंट मेंबर्स में ब्रिटेन फ्रांस इटली और जापान शामिल थे और नॉन परमानेंट मेंबर्स को असेंबली द्वारा न साल के लिए इलेक्ट किया जाता था 1926 तक नॉन परमानेंट मेंबर्स की संख्या बढ़ बक नौ हो गई थी काउंसिल एक तरह से कैबिनेट की तरह काम करती थी और इसके पास कुछ एग्जीक्यूटिव पावर्स थी काउंसिल की जिम्मेदारी में डिसर्नमेंट के जरिए वॉर को प्रिवेंट करना डिस्प्यूट्स को रिजॉल्व करना और लीग के मैंडेट्स को सुपरवाइज करना आता था इसके भी डिसीजन यूनानिमिटी के सेक्रेटेरिएट की बात करते हैं द सेक्रेटेरिएट सेक्रेटेरिएट का काम
पेपर वर्क देखना एजेंडा तैयार करना रेजोल्यूशन और रिपोर्ट्स को लिखना होता था जिससे लीग के डिसीजंस को इंप्लीमेंट किया जा सके यह एक तरह से इंटरनेशनल सिविल सर्विस की तरह काम करता था जिसके मेंबर्स 30 अलग अलग देशों से लिए जाते थे अब चर्चा करते हैं लीग के नेक्स्ट इंपॉर्टेंट ऑर्गन की द परमानेंट कोर्ट ऑफ इंटरनेशनल जस्टिस यह हॉलैंड में हेग नाम की जगह पर सेटअप किया गया था इसमें अलग-अलग नेशनलिटीज के 15 जजेस हुआ करते थे और इसका काम स्टेट्स के बीच लीगल डिस्प्यूट्स को सॉल्व करना था इसने 1922 में फंक्शन करना शुरू शुरू
कर दिया था और 1939 तक 66 केसेस को सफलता पूर्वक डील किया था जिसकी वजह से इसे काफी रिस्पेक्ट मिलती है साथ ही इंटरनेशनल पॉलिटिक्स में कोड ऑफ लीगल प्रैक्टिस के आइडिया को भी पॉपुलर बनाता है कमीशंस एंड कमिटीज बहुत सी कमीशंस और कमिटीज को लीग के अंडर फॉर्म किया था इनका काम स्पेसिफिक प्रॉब्लम से डील करना था जिनमें से कुछ फर्स्ट वर्ल्ड वॉर के दौरान ही सामने आई थी प्रमुख कमीशंस में मैंडेट्स मिलिट्री अफेर माइनॉरिटी ग्रुप्स और डिसम मेंट को हैंडल करने वाली कमीशंस थी लीग का मेन फंक्शन पीसकीपिंग था इसे कुछ इस तरह
ऑपरेट करना था ऐसे सभी डिस्प्यूट्स जो वॉर का कारण बनने की संभावना रखते थे उन्हें लीग को सबमिट किया जाना था और कोई भी मेंबर लीग के कवनेंट्स द्वारा उसके अगेंस्ट कलेक्टिव एक्शन लिया जाना था यह तो बात हो गई लीग के स्ट्रक्चर की लेकिन जिस काम के लिए इसे फॉर्म किया गया था यानी कि वर्ल्ड वॉर को रोकने के लिए उसमें तो यह फेल हो जाती है आखिर ऐसा क्यों होता है आइए जानते हैं व्हाई डिड द लीग फेल टू प्रिजर्व पीस लीग ऑफ नेशंस के फेल होने के पीछे एक नहीं बल्कि बहुत से
कारण थे जिसमें सबसे पहला कारण था इसका ट्रीटी ऑफ व्यवसाय के साथ क्लोज लिंक होना लीग का फॉर्मेशन भी व्यवसाय कॉन्फ्रेंस में ही हुआ था जिसकी वजह से ऐसा लगता था कि इसे जीतने वाली पावर्स के फायदे के लिए ही बनाया गया है इसके साथ ही इसे ऐसे पीस सेटलमेंट को डिफेंड करना था जो कहीं से भी परफेक्ट नहीं था इसलिए जाहिर था कि पेरिस पीस कॉन्फ्रेंस के कुछ प्रोविजंस लीग को परेशानी में डालने वाले थे जैसे कि इटालियंस को उनकी उम्मीद के अनुसार टेरिटोरियल गेंस नहीं हुए थे चेकोस्लोवाकिया और पोलैंड में जर्मन पॉपुलेशन को
शामिल कर लिया गया था ऐसे सभी प्रोविजंस आगे चलकर लीग के काम को और मुश्किल बना देते हैं दूसरा कारण यह था कि लीग को यूनाइटेड स्टेट्स ने जॉइन नहीं किया था मतलब खुद यूएस प्रेसिडेंट विल ने इसका आईडिया दिया लेकिन उनके ही देश ने इसको रिजेक्ट कर दिया मार्च 1920 में ही यूएस सेनेट व्यवसाय सेटलमेंट और लीग दोनों को ही रिजेक्ट कर देता है इस तरह लीग एक पावरफुल मेंबर से वंचित रह जाती है जो साइकोलॉजिकल और फाइनेंशियल दृष्टि से काफी घातक साबित होता है इसके अलावा कुछ और भी इंपॉर्टेंट पावर्स थी जो लीग
के साथ इवॉल्व नहीं की गई थी जैसे कि 1926 तक जर्मनी को लीग में शामिल ही नहीं किया गया था और यूएसएसआर तो 1934 तक लीग का हिस्सा नहीं बना था इस तरह लीग के एसिस्टेंसिया लीग में इंग्लैंड और फ्रांस का ही डोमिनेंस था जिस वजह से बाकी देश इसमें अपना विश्वास खोने लगते हैं साथ ही इंग्लैंड और फ्रांस खुद भी लीग में कुछ खास दिलचस्पी नहीं दिखाते इसके बाद 1929 में इकोनॉमिक क्राइसिस होने के साथ सिचुएशन और खराब होती जाती है ग्रेट डिप्रेशन ज्यादातर देशों में अनइंप्लॉयमेंट और फॉलिंग लिविंग स्टैंडर्ड्स लेकर आता है साथ
ही इसकी वजह से जापान जर्मनी और इटली में एक्सट्रीम राइट विंग गवर्नमेंट्स पावर में आती हैं और यह सभी लीग के रूल्स को फॉलो करने से मना कर देती हैं इनके द्वारा कुछ ऐसे एक्शंस लिए जाते हैं जिससे लीग की वीकनेस पूरी तरह सामने आ जाती है जैसे कि 1931 में जापानीज ट्रूप्स चाइना की टेरिटरी मंचूरिया का इनवेजन करते हैं चाइना लीग से मदद की गुहार लगाता है लीग जापान के एक्शन की निंदा करती है और उसे अपने ट्रूप्स वापस लेने के लिए कहती है लेकिन जापान ऐसा करने से मना कर देता है और 27th
मार्च 1933 को जापान खुद को लीग की मेंबरशिप से विड्रॉ कर लेता है जापान के ऊपर मिलिट्री सैंक्शंस तो छोड़िए इकोनॉमिक सैंक्शंस लगाने तक की बात नहीं होती क्योंकि ब्रिटेन और फ्रांस खुद सीरियस इकोनॉमिक प्रॉब्लम्स फेस कर रहे थे और ऐसे में जापान का ट्रेड बॉयकॉट करने के लिए वह तैयार नहीं थे ऐसा करने से वॉर भी शुरू हो सकता था जो कि यह देश उस समय बिल्कुल नहीं चाहते थे इस इंसिडेंट से लीग की प्रेस्टीज पर बुरा असर पड़ता है इसके बाद 1932 33 में हुई वर्ल्ड आर्मेंट कॉन्फ्रेंस भी फेल हो जाती है यहां
जर्मन आर्म मेंट्स के मामले में फ्रांस के साथ इक्वलिटी की डिमांड करते हैं लेकिन फ्रांस कहता है कि इसे कम से कम 8 साल के लिए पोस्टपोन कर देना चाहिए फ्रांस के इस एटीट्यूड को एक्सक्यूज बनाकर हिटलर जर्मनी को कॉन्फ्रेंस से विड्रॉ कर लेता है और बाद में लीग की मेंबरशिप से भी जिससे लीग को एक बड़ा झटका लगता है इसके बाद 1935 में इटली द्वारा एनिया पर किया गया इनवेजन लीग की प्रेटी टीज और क्रेडिबिलिटी को पूरी तरह खत्म ही कर देता है लीग इटली के एक्शन को कंडेम करते हुए उस पर इकोनॉमिक सैंक्शंस
इंपोज करती है लेकिन इन सैंक्शंस को इटली के ऑयल कोल और स्टील एक्सपोर्ट्स पर अप्लाई नहीं किया जाता ये इतने हाफ हार्टेड सैंक्शंस थे कि इटली बिना किसी ज्यादा परेशानी के अब सनिया के इनवेजन को पूरा कर लेता है और फिर कुछ हफ्तों बाद ही सैंक्शंस को पूरी तरह हटा लिया जाता है इस तरह मुसोलिनी ने भी लीग को सफलता पूर्वक नजरअंदाज कर दिया यहां भी लीग के फेलियर के पीछे ब्रिटेन और फ्रांस को ब्लेम किया जा सकता है क्योंकि यह मुसोलिनी को अलाय बनाए रखना चाहते थे इनके अनुसार असली खतरा तो हिटलर था इसलिए
सैंक्शंस में ढिलाई बढ़ती गई थी लेकिन इसके परिणाम डिजास्टर्स होते हैं क्योंकि सैंक्शंस भले ही कमजोर थे लेकिन मुसोलिनी फिर भी नाराज तो हो ही जाता है और इसके बाद वह हिटलर के क्लोज चला जाता है साथ ही छोटे देशों का लीग पर से भरोसा उठ जाता है 1935 के बाद कोई भी लीग को सीरियसली नहीं लेता 1937 में इटली भी लीग से अलग हो जाता है और भी कुछ देश लीग को छोड़ देते हैं कुल मिलाकर सबको यकीन हो जाता है कि लीग फेल हो चुकी है और सबसे बड़े देश जल्द से जल्द खुद
को रि आर्म करना शुरू कर देते हैं इसके बाद 1939 में वर्ल्ड वॉर शुरू हो जाता है युद्ध के दौरान जिनेवा में लोकेटेड लीग का हेड क्वार्टर्स पूरी तरह खाली रह है 1943 में तेहरान नाम की जगह पर अमेरिका ब्रिटेन और रशिया की एक कॉन्फ्रेंस होती है जिसमें वॉर के बाद एक नई इंटरनेशनल ऑर्गेनाइजेशन बनाने का प्रस्ताव रखा जाता है इसके बाद 12थ अप्रैल 1946 को लीग जिनेवा में मिलती है और खुद को फॉर्मली अबॉलिश करती है इस तरह लीग वर्ल्ड वॉर को प्रिवेंट करने में तो असफल रहती है लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि
इसे पूरी तरह एक फेलियर करार दिया जाए लीग ने कुछ अहम सफलता भी हासिल की थी आइए उनकी चर्चा करते हैं अचीवमेंट्स ऑफ द लीग लीग की बहुत सी कमिटीज और कमीशंस ने वैल्युएबल रिजल्ट्स अचीव किए थे और इंटरनेशनल कोऑपरेशन को फस्टर करने के लिए भी कई प्रयास हुए थे इसमें सबसे ज्यादा सफल इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन आईएलओ रही थी इसके डायरेक्टर अल्बर्ट थॉमस थे जो कि फ्रेंच सोशलिस्ट थे आईएलओ का पर्पस पूरी दुनिया में लेबर की कंडीशंस को इंप्रूव करना था इसके लिए यह गवर्नमेंट्स को पसु एड करती है कि वह मैक्सिमम वर्किंग डे और
वीक को फिक्स करें एडिक्ट मिनिमम वेजेस को स्पेसिफाई करें सिकनेस अनइंप्लॉयमेंट बेनिफिट और ओल्ड एज पेंशन को इंट्रोड्यूस करें आईएलओ बड़ी मात्रा में इंफॉर्मेशन को कलेक्ट करती है और पब्लिश करती है इसके एफर्ट्स की वजह से बहुत सी गवर्नमेंट्स लेबर वेलफेयर की दिशा में सैंक्शंस लेने के लिए तैयार हो जाती हैं आईएलओ के अलावा नॉर्वेजियन एक्सप्लोरर फिज ऑफ नानसन द्वारा लेड रिफ्यूजी ऑर्गेनाइज भी काफी सफल रहती है यह रशिया में मौजूद हजारों की संख्या में प्रिजनर्स ऑ वॉर की समस्या को सॉल्व करती है इनमें से करीब 5 लाख को वापस घर तक पहुंचाने में मदद
करती है और 1933 के बाद जर्मनी में नाजी प्रॉसिक्यूट से भागने वाले हजारों लोगों को हेल्प प्रोवाइड करती है इसके साथ ही हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन भी अच्छा काम करती है यह एपिडेमिक्स के कॉसेस को इन्वेस्टिगेट करती है खासकर रशिया में फैले टाइफस एपिडेमिक को कॉम्बैट करने में यह सब रहती है जिसका एक समय पर पूरे यूरोप में फैलने का खतरा नजर आ रहा था मैंडेट्स कमीशन का काम जर्मनी और टर्की से ली गई टेरिटरीज में गवर्नमेंट को सुपरवाइज करना था और जर्मनी के सार रीजन को एडमिनिस्टर करने के लिए एक अलग कमीशन बनाई गई थी जिसने
बखूबी यह काम किया और 1935 में एक प्लेब साइड ऑर्गेनाइज कराया जिसमें बड़ी मेजॉरिटी ने सार को वापस जर्मनी को रिटर्न करने का समर्थन किया 1920 के शुरुआत दौर में बहुत से पॉलिटिकल डिस्प्यूट्स लीग को रिफर किए गए थे और सिर्फ दो को छोड़कर सभी में लीग के डिसीजंस को एक्सेप्ट किया गया था सबसे पहले 1920 में फिनलैंड और स्वीडन के बीच आलन आइलैंड्स को लेकर झगड़ा हुआ था जिसमें लीग ने फिनलैंड के फेवर में डिसीजन दिया 1921 में इंपॉर्टेंट इंडस्ट्रियल एरिया अपर सलीसिया के ऊपर जर्मनी और पोलैंड दोनों ही क्लेम करते हैं लीग इस
एरिया को दोनों में डिवाइड कर का फैसला करती है इसके बाद जब ग्रीक्स बल्गेरिया का इनवेजन करते हैं तो लीग तुरंत इंटरवेंशन करती है जिसके बाद ग्रीक ट्रूप्स वापस चले जाते हैं और बल्गेरिया को डैमेजेस भी पे किए जाते हैं और जब टर्की द्वारा इराक के प्रोविंस मोसुल पर क्लेम किया जाता है तो लीग इराक के फेवर में अपना फैसला सुनाती है इसके साथ ही साउथ अमेरिका में पेरू और कोलंबिया के बीच डिस्प्यूट्स और बोलीविया और पैराग्वे के डिस्प्यूट्स को भी सेटल किया जाता है हालांकि ध्यान देने वाली बात यह है कि इनमें से कोई
भी डिस्प्यूट वर्ल्ड पीस के लिए कोई खास खतरा पैदा नहीं कर रहा था लीग का कोई भी डिसीजन किसी मेजर स्टेट के अगेंस्ट नहीं था जो लीग के वर्डिक्ट को चैलेंज कर सके जहां ऐसा कुछ होता है वहां तो लीग फेल ही हो जाती है जैसा कि हम पिछले सेक्शन में देख चुके हैं कंक्लूजन दोस्तों लीग ऑफ नेशंस का आईडिया तो बहुत ही नोबल था लेकिन इसके स्ट्रक्चर और वर्किंग में कुछ लिमिटेशंस थी जिसकी वजह से लीग ज्यादा सफल नहीं हो पाती सबसे बड़ी बात यह थी कि लीग सिर्फ एक ऑर्गेनाइजेशन थी और ऑर्गेनाइजेशन उतनी
ही अच्छी हो सकती हैं जितने कि उसके मेंबर्स जब लीग के मेंबर्स ही उसको सफल नहीं होने दे रहे थे तो इसमें लीग कुछ कर भी नहीं सकती थी हालांकि लीग के एक्सपीरियंस से सीख जरूर मिली और सेकंड वर्ल्ड वॉर के बाद जब फिर से एक इंटरनेशनल ऑर्गेनाइजेशन को फॉर्म करने की बात हुई तो उसमें लीग जैसी गलतियों को नहीं दोहराया गया ये एक बड़ी वजह है कि लीग ऑफ नेशंस की सक्सेसर यूनाइटेड नेशंस ऑर्गेनाइजेशन आज भी अपना काम कर रही है रशियन रेवोल्यूशन दोस्तों 1917 का रशियन रेवोल्यूशन 20th सेंचुरी के मोस्ट एक्सप्लोसिव पॉलिटिकल इवेंट्स
में से एक माना जाता है यह कहना गलत नहीं होगा कि इतिहास में किसी और रेवोल्यूशन ने दुनिया पर इतना प्रभाव नहीं डाला जितना कि रशियन रेवोल्यूशन ने यह वायलेंट रेवोल्यूशन रो नव डायनेस्टी का एंड करता है और सदियों से चले आ रहे रशियन इंपीरियल रूल को हमेशा के लिए खत्म कर देता है रशियन रेवोल्यूशन के दौरान बैकग्राउंड दोस्तों रशियन रेवोल्यूशन को चिंगारी भले ही 1917 में मिली थी लेकिन इसके लिए बारूद बहुत सालों से जमा हो रहा था 19th सेंचुरी के दौरान लगभग पूरा यूरोप इंपॉर्टेंट सोशल इकोनॉमिक और पॉलिटिकल ट्रांसफॉर्मेशन से गुजर रहा था
उस समय ज्यादातर देश फ्रांस की तरह रिपब्लिक या इंग्लैंड की तरह कांस्टिट्यूशन मनकी को फॉलो कर रहे थे लेकिन रशिया अभी भी ओल्ड वर्ल्ड में ही रह रहा था यहां जार्स जो कि रशियन एंपरर्स को कहा जाता था ऑटोक्रेटिक शासन चला रहा था 18616 में सर्फ डम के सिस्टम को तो खत्म कर दिया गया लेकिन इसके बाद भी पेजेंट्स की कंडीशन इंप्रूव नहीं हुई थी अभी भी उनके पास बहुत कम जमीन थी और उसे भी डिवेलप करने के लिए पैसे नहीं थे इन्हें जो स्मॉल होल्डिंग्स दी गई थी उसके लिए कई डेकेट तक हैवी रिडेंपशन
ड्यूज भी चुकाने पड़ रहे थे इसके अलावा रशिया में इंडस्ट्रियल इजेशन भी बहुत देरी से हुआ था यह 19th सेंचुरी के सेकंड हाफ में शुरू हुआ इसके बाद काफी तेजी से डेवलप तो करता है लेकिन इन्वेस्टमेंट के लिए आधे से जदा कैपिटल फॉरेन कंट्री से आती है फॉरेन इन्वेस्टर्स सिर्फ अपने प्रॉफिट्स में इंटरेस्टेड थे उन्हें वर्कर्स की कंडीशन से कोई लेना देना नहीं था रशियन कैपिटल अपनी इंसफिशिएंट कैपिटल के साथ फॉरेन इन्वेस्टर से कंपीट कर रहे थे और इसीलिए वह वर्कर्स की वेजेस बहुत कम रखते थे इसका मतलब फैक्ट्रीज चाहे फॉरेनर्स की हो या रशियंस
की वर्क कंडीशंस दोनों ही जगह हॉरिबल थी वर्कर्स के पास कोई भी पॉलिटिकल राइट्स नहीं थे और किसी भी तरह के माइनर रिफॉर्म्स पाने तक का कोई तरीका नहीं था एक तरह से जर्स के अंडर रशन स्टेट मॉडर्न टाइम्स की जरूरत के हिसाब से नहीं था जार निकलस द सेकंड जिनके समय में रेवोल्यूशन हुआ वह भी किंग्स के डिवाइन राइट में बिलीव करते थे उनके अनुसार एब्सलूटिज्म को बचाना सेक्रेड ड्यूटी थी जार को सिर्फ नोबल्स और क्लर्जी की अपर लेयर्स के लोगों का सपोर्ट हासिल था इसके अलावा विशाल रशियन एंपायर की जनता उन्हें बिल्कुल पसंद
नहीं करती थी के द्वारा बनाई गई ब्यूरोक्रेसी टॉप हैवी इनफ्लेक्सिबल और इंसफिशिएंट थी जिसके मेंबर्स को प्रिविलेज्ड क्लास से चुना गया था ना कि एबिलिटी के बेसिस पर रशन जार्स ने यूरोप और एशिया की डावर्स नेशनलिटीज को जीतकर एक विशाल एंपायर खड़ा किया था इन जीते हुए एरियाज में रशियन लैंग्वेज को इंपोज किया जाता था और यहां के लोगों के कल्चर को नीचा दिखाया जाता था गवर्नमेंट की तरफ से पॉलिटिकल पार्टीज को प्रोहिबिट किया गया था और डिसेंट को चेक करने के लिए कड़ी सेंसरशिप के साथ सीक्रेट पुलिस को रखा गया था देश में लोगों
के मूवमेंट को रिस्ट्रिक्टर पासपोर्ट सिस्टम लागू किया गया था पॉलिटिकली 1900 में रशिया काफी कुछ 1780 के फ्रांस के जैसा था फ्रांस की ही तरह यहां भी कुछ थिंकर्स और इंटेलेक्चुअल्स रेवोल्यूशन आइडियाज का प्रचार प्रसार करने लगते हैं आइए जानते हैं ग्रोथ ऑफ रेवोल्यूशन मूवमेंट्स इन रश 19 सेंचुरी से पहले भी बहुत से पेजेंट रिबेलियंस रशिया में हुए थे लेकिन उन्हें सप्रे कर दिया गया था बहुत से रशियन थिंकर्स इस दौरान वेस्टर्न यूरोप में हुए डेवलपमेंट से इन्फ्लुएंस होते हैं और उसी तरह के चेंजेज रशिया में भी होते हुए देखना चाहते थे इन्हीं के एफर्ट
से 18610 डेमोक्रेटिक गवर्नमेंट की दिशा में ग्रेजुएट की आशा जल्दी ही टूट जा जाती है ग्रेजुएट की हर कोशिश आखिर में फेल ही होती है रशिया जैसी कंडीशंस में तो मॉडरेट डेमोक्रेट या रिफॉर्मर का भी एक रेवोल्यूशन होना जरूरी था 19th सेंचुरी के लास्ट क्वार्टर में एक आंदोलन शुरू होता है जिसे गोइंग टू द पीपल कहा जाता है इसके तहत इंटेलेक्चुअल्स अपने आइडियाज पेजेंट्स को प्रीच करना शुरू करते हैं इंडस्ट्रियल इजेशन शुरू होने के बाद वर्कर्स ऑर्गेनाइजेशंस भी फॉर्म होने लगती हैं और यह सोशल के आइडिया से प्रभावित रहती हैं 1883 में जॉर्ज प्लेखनोव के
नेतृत्व में रशियन सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी का फॉर्मेशन होता है इस ग्रुप को मैनशेविक्स कहा जाता है वहीं मेजॉरिटी ग्रुप जिसे बोलशेविक्स के नाम से जाना जाता है का मानना था कि ऐसे देश में जहां कोई डेमोक्रेटिक राइट्स नहीं है और कोई पार्लियामेंट भी एजिस्ट नहीं करता वहां पार्लियामेंट्री लाइंस पर पार्टी को ऑर्गेनाइज करना इफेक्टिव नहीं होगा बोलशेविक्स के लीडर व्लादिमीर इलिच लियानो थे जिन्हें पॉपुलर लेनिन के नाम से जाना जाता है यह बोल्शेविक पार्टी को रेवोल्यूशन लाने के इंस्ट्रूमेंट की तरह तैयार करने लगते हैं 1917 का रशियन रेवोल्यूशन और लेनिन का नाम इंसेपरेबल है मैनशेविक
और बोल्शेविक पार्टीज के अलावा सोशलिस्ट रेवोल्यूशन पार्टी भी थी जो कि पेजेंट्री की डिमांड्स को रेज करती थी रशिया में सोशलिस्ट लाइंस पर रेवोल्यूशन मूवमेंट ग्रो ही कर रहा था कि 1905 का रेवोल्यूशन हो जाता है 1905 प्रीलूड टू रेवोल्यूशन 19045 में रशिया को जापान के हाथों करारी हार का सामना करना पड़ता है मॉडर्न हिस्ट्री में पहली बार कोई यूरोपियन पावर एशियन पावर से हारती है इसी वॉर के बीच रशिया में ऑटोक्रेसी के अगेंस्ट एक विद्रोह जन्म लेता है इसकी शुरुआत नाथ जनवरी 195 में एक बड़े लेकिन शांतिपूर्ण प्रदर्शन के साथ होती है जिसे फादर
गपोन नाम के ऑर्थोडॉक्स प्रीस्ट लीड कर रहे थे इसमें वर्कर्स के साथ उनकी वाइव्स और बच्चे भी थे यह लोग जार को पेट देने के लिए सेंट पीटर्सबर्ग में लोकेटेड विंटर पैलेस की तरफ जा रहे थे लेकिन इन प्रदर्शनकारियों पर गार्ड्स फायर कर देते हैं जिसमें हजारों लोग मारे जाते हैं और हजारों घायल हो जाते हैं इस घटना को ब्लडी संडे के नाम से जाना जाता है इस मासेकर की खबर सुनने के बाद पूरे रशा में स्ट्राइक्स और प्रदर्शन शुरू हो जाते हैं जो रशा को पैरालाइज कर देते हैं यहां तक कि आमी और नेवी
के भी कुछ सेक्शंस विद्रोह कर देते हैं पोटेमकिन नाम की बैटलशिप के सेलर्स विद्रोहियों के साथ आ जाते हैं इन रेवोल्यूशन के दौरान एक नई तरह की ऑर्गेनाइजेशन डिवेलप होती है जिसे सोवियत कहा जाता है यह वर्कर्स के रिप्रेजेंटेटिव्स की काउंसिल थी इनकी शुरुआत स्ट्राइक्स कंडक्ट करने के लिए कमिटीज के जैसे होती है लेकिन जल्दी ही यह पॉलिटिकल पावर का इंस्ट्रूमेंट बन जाती है इसी तरह पेजेंट्स की सोवियत भी फॉर्म होती है यही सोवियत आगे चलकर 1917 के रेवोल्यूशन में अहम भूमिका निभाते हैं आखिर अक्टूबर में जार निकलस द सेकंड विद्रोह को शांत करने के
लिए एक कंसीट मेनिफेस्टो इशू करते हैं जो स्पीच प्रेस और असोसिएशन की फ्रीडम देता है और लॉज बनाने के लिए एक इलेक्टेड लेजिस्लेटर यानी डूमा फॉर्म करने की बात भी कही जाती है जार के मेनिफेस्टो में जो प्रिंसिपल्स थे उनके अनुसार रश इंग्लैंड की तरह एक कॉन्स्टिट्यूशन मनकी बन जाता लेकिन जार जल्दी ही अपने पुराने तरीके पर लौट जाता है अब रशा में कोई भी ग्रज रिफॉर्म की आशा नहीं कर सकता था डूमा रशिया के इतिहास में पहली नेशनल रिप्रेजेंटेटिव इंस्टिट्यूशन थी इसके पास बहुत ज्यादा पावर्स तो नहीं थी लेकिन इसकी वजह से रशिया में
लीगल पॉलिटिकल ग्रुप्स और पार्टीज का इमरजेंस जरूर होता है जिसमें लिबरल्स और सोशलिस्ट दोनों ही शामिल थे 1905 का यह रेवोल्यूशन 1917 के रेवोल्यूशन के लिए ड्रेस रिहर्सल साबित होता है यह लोगों को अराउजल के लिए तैयार करता है 1917 रेवोल्यूशन के लिए आखिरी चिंगारी फर्स्ट वर्ल्ड वॉर में मिलती है वर्ल्ड वॉर वन एंड द रशियन एंपायर अगस्त 1914 सर्ब्जोत है जार इस वॉर के थ्रू अपने इंपीरियल एमिशंस को पूरा करना चाहता था वह कांस्टेंटिनॉपल और स्ट्रेट्स ऑफ डार्नेल को एनेक्स करने का का सपना देख रहा था लेकिन वॉर में उनका यह इवॉल्वमेंट जल्दी ही
रशियन एंपायर के लिए डिजास्टर्स प्रूव होने वाला था जार स्टेट मॉडर्न वॉर फाइट करने में इनकैपेबल था सैन्य दृष्टि से इंपीरियल रश इंडस्ट्रियल जर्मनी के मुकाबले कुछ भी नहीं था इससे पहले किसी भी वॉर में किसी देश ने इतनी कैजुअल्टीज फेस नहीं की होंगी जितनी रशिया फर्स्ट वर्ल्ड वॉर के समय करता है फरवरी 1917 तक 6 लाख रशियन सोल्जर्स वॉर में श ही हो चुके थे इसके साथ ही रॉयल फैमिली के गिरते हुए स्तर ने मैटर्स को और खराब बना दिया निकलस द सेकंड पूरी तरह से अपनी वाइफ के डोमिनेंस में था और उनकी वाइफ
अलेक्जेंड्र रस्पन नाम के पर्सन के वश में थी एक तरह से रस्पन ही सरकार चला रहा था 1915 में जार निकलस महल छोड़कर वॉर फ्रंट पर पहुंच जाते हैं रशन आमी को खुद कमांड करने के लिए जार की एब्सेंट में उनकी वाइफ जरीना एलेक्जेंडर एडमिनिस्ट्रेशन स लने लगती हैं एलेग्जेंडर एक अनपॉज रानी थी यह इलेक्टेड ऑफिशल्स को फायर करना शुरू कर देती हैं इस समय एलेक्जेंड्रा का कंट्रोवर्शियल एडवाइजर ग्रिगोरी रस्पन रशियन पॉलिटिक्स और रॉयल रोमनोव फैमिली पर अपना इन्फ्लुएंस बढ़ाने लगता है रेस्पिन और रानी के अफेयर्स के चर्चे रशियन पब्लिक में आम हो जाते हैं
रशियन नोबल्स रेस्पिन के इन्फ्लुएंस से परेशान होकर 30th दिसंबर 1916 को उसका मर्डर कर देते हैं लेकिन तब तक ज्यादातर रश जार की लीडरशिप में विश्वास खो चुके थे इसके ऊपर से करप्शन ने लोगों की परेशानी बढ़ा रखी थी ब्रेड की कमी होने लगी थी रशन आर्मी को वॉर में हैवी रिवर्सेज फेस करने पड़े थे फ्रंट पर सोल्जर्स की कंडीशंस को लेकर गवर्नमेंट का कोई ध्यान नहीं होता पूरे एंपायर और आर्मी में असंतोष बढ़ने लगता है हालात पूरी तरह से रेवोल्यूशन की तरफ इशारा कर रहे थे सक्सेसफुल रेवोल्यूशन के लिए लेनिन ने दो कंडीशंस बताई
थी पहली थी कि लोगों को समझ आना चाहिए कि रेवोल्यूशन बहुत जरूरी है और उसके लिए अपनी जान सैक्रिफाइस करने के लिए भी तैयार होना चाहिए और दूसरा एसिस्टिंग गवर्नमेंट को क्राइसिस की स्टेट में होना चाहिए जिससे उसे जल्दी से ओवरथ्रो करना पॉसिबल हो और 1917 में रशिया में वह समय आ चुका था जिसका रिजल्ट होता है फरवरी रेवोल्यूशन आइए जानते हैं इसके बारे में फेबरी रेवोल्यूशन अक्सर माइनर इंसीडेंट्स ही रेवोल्यूशन को ट्रिगर कर देते हैं रशियन रेवोल्यूशन के केस में यह इंसिडेंट वर्किंग क्लास वमन द्वारा ब्रेड के लिए प्रदर्शन करना होता है जिसके बाद
वर्कर्स की स्ट्राइक शुरू हो जाती है और सोल्जर्स और बाकी के लोग भी इसमें जुड़ जाते हैं इस तरह फरवरी रेवोल्यूशन 8थ मार्च 1917 को शुरू होता है 12 मार्च 1917 को कैपिटल सिटी सेंट पीटर्सबर्ग रेवोल्यूशन के कब्जे में आ जाता है और जल्दी ही रेवोल्यूशन मॉस्को भी ले लेते हैं आप सोच रहे होंगे अगर यह मार्च में शुरू हुआ था तो इसे फरवरी रेवोल्यूशन क्यों बोल रहे हैं ऐसा इसलिए क्योंकि फरवरी 1918 तक रशिया में जूलियन कैलेंडर का यूज किया जाता था और उसके हिसाब से रेवोल्यूशन 23 फरवरी को शुरू हुआ था 12 मार्च
को डूमा द्वारा प्रोविंशियल गवर्नमेंट फॉर्म की जाती है और कुछ दिन बाद ही जार निकलस राज गति त्याग देते हैं इस तरह रशिया में सदियों से चले आ रहे रोमन ऑफ रूल का एंड हो जाता है प्रोविंशियल गवर्नमेंट जिसे एलेक्जेंडर करेंस की लीड कर रहे थे लिबरल प्रोग्राम ऑफ राइट्स को एस्टेब्लिश करती है जैसे कि फ्रीडम ऑफ स्पीच इक्वलिटी बिफोर द लॉ और राइट ऑफ यूनियंस टू ऑर्गेनाइज एंड स्ट्राइक यह वायलेंट रेवोल्यूशन का विरोध करते हैं इसके साथ ही किरें स्की मिनिस्टर ऑफ वॉर बनकर रशिया के वॉर एफर्ट्स को कंटिन्यू रखते हैं जबकि वर्ल्ड वॉर
में रशियन इवॉल्वमेंट लोगों के बीच काफी अनपॉज था इससे रशिया की फूड सप्लाई की प्रॉब्लम्स और खराब होने लगती हैं अनरेस्ट बढ़ता रहता है पेजेंट्स फार्म्स को लूटना शुरू कर देते हैं और सिटीज में फूड राइट्स शुरू हो जाते हैं प्रोविंशियल गवर्नमेंट की अन पॉपुलर के कारण रशिया में जल्दी ही एक और रेवोल्यूशन होता है जिसे अक्टूबर या बोल्शेविक रेवोल्यूशन कहा जाता है बोल्शेविक रेवोल्यूशन लोगों की मेनली चार डिमांड्स थी पीस लैंड टू द टिलर वर्कर्स के हाथ में इंडस्ट्री का कंट्रोल और नॉन रशियन नेशनलिटीज के लिए इक्वल स्टेटस लेकिन किरें स्की की लीडरशिप वाली
प्रोविंशियल गवर्नमेंट इनमें से कोई भी डिमांड एक्सेप्ट नहीं करती और लोगों का सपोर्ट खो देती है लेनिन जो फरवरी रेवोल्यूशन के समय एजाइल में थे अप्रैल में रश वापस आ जाते हैं उनकी लीडरशिप में बोल्शेविक पार्टी वॉर खत्म करने और लैंड को प्रेजेंस को ट्रांसफर करने की क्लियर पॉलिसी सामने रखती हैं और स्लोगन देती हैं ऑल पावर टू द सोवियत नॉन रश नेशनलिटीज के सवाल पर उस समय सिर्फ बोल्शेविक पार्टी के पास ही क्लियर पॉलिसी थी लेनिन रशियन एंपायर को प्रिजन ऑफ नेशंस कहकर डिस्क्राइब करते हैं और डिक्लेयर करते हैं कि यहां कोई भी जेनुइन
डेमोक्रेसी एस्टेब्लिश नहीं हो सकती जब तक सभी नॉन रशियन पीपल को बराबर के अधिकार नहीं मिल जाते वह सभी के सेल्फ डिटरमिनेशन के राइट बात करते हैं प्रोविंशियल गवर्नमेंट को रश की बजुआ कैपिटिस क्लास के एक ग्रुप ऑफ लीडर्स ने असेंबल किया था लेकिन लेनिन सोवियत गवर्नमेंट फॉर्म करना चाहते थे जो कि डायरेक्टली सोल्जर्स पेजेंट्स और वर्कर्स की काउंसिल द्वारा रूल की जाएगी कि रेंस की गवर्नमेंट की अनपुर के कारण 7थ नवंबर 1917 को ही उसका कोलैक्स हो जाता है जब एक ग्रुप ऑफ सेलर्स विंटर पैलेस पर कब्जा कर लेते हैं बोलशेविक्स और उनके एलाइज
गवर्मेंट बिल्डिंग्स पर कब्जा कर लेते हैं और पेट्रोग्राड में बाकी की स्ट्रेटेजिक लोकेशंस पर भी अपना कंट्रोल एस्टेब्लिश कर लेते हैं उसी दिन सोवियत की ऑल रशियन कांग्रेस की मीटिंग होती है और यह फुल पॉलिटिकल पावर असू कर लेते हैं एक नई गवर्नमेंट का फॉर्मेशन करते हैं जिसके हेड लेनिन बनते हैं अक्टूबर रेवोल्यूशन लगभग पूरी तरह पीसफुल रहा था रिपोर्ट्स के अनुसार सिर्फ दो लोग पेट्रोग्राड में मारे गए थे हालांकि इसके तुरंत बाद ही रशिया में सिविल व शुरू हो जाती है जिसमें जार के आर्मी ऑफिसर्स सोवियत स्टेट के अगेंस्ट आर्म्ड रिबेलियस ऑर्गेनाइज करते हैं
फॉरेन पावर्स जैसे कि इंग्लैंड फ्रांस जापान और यूनाइटेड स्टेट्स के ट्रूप्स भी इनका साथ देते हैं सिविल वॉर 1920 तक चलता रहता है जिसमें जार के सपोर्टर्स को वाइट आर्मी कहा जाता है और सोवियत ट्रूप्स को रेड आर्मी और फाइनली सोवियत स्टेट की रेड आर्मी की इसमें जीत होती है आइए अब रेवोल्यूशन के कंसीक्वेंसेस की चर्चा करते हैं कंसीक्वेंसेस ऑफ द रेवोल्यूशन रशियन रेवोल्यूशन की सबसे पहली उपलब्धि थी कि इसने ऑटोक्रेसी को खत्म कर दिया इसके साथ ही अरिस्टो क्रेसी और चर्च की पावर को भी डिस्ट्रॉय किया जार का एंपायर बदलकर एक नया स्टेट बन
जाता है जिसे यूनियन ऑफ सोवियत सोशलिस्ट रिपब्लिक्स यूएसएसआर कहा जाता है इस नए स्टेट की पॉलिसी सोशलिस्ट आइडियल फ्रॉम ईच अकॉर्डिंग टू हिज कैपेसिटी टू ईच अकॉर्डिंग टू हिज वर्क को पाने की डायरेक्शन में बनाई जाती है प्राइवेट प्रॉपर्टी को अबॉलिश कर दिया जाता है प्रोडक्शन सिस्टम में से प्राइवेट प्रॉफिट के मोटिव को खत्म कर दिया जाता है स्टेट के द्वारा इकोनॉमिक प्लानिंग शुरू होती है जिससे जल्द से जल्द टेक्नोलॉजिकल एडवांस्ड इकॉनमी बने और सोवियत में इनक्व कीज कम हो काम करना सभी के लिए जरूरी हो गया क्योंकि जीने के लिए किसी तरह की अन
अर्न्ड इनकम अब नहीं थी काम कर ने के अधिकार को कॉन्स्टिट्यूशन राइट बना दिया गया और यह स्टेट की ड्यूटी हो गई कि सभी को एंप्लॉयमेंट प्रोवाइड की जाए इसके अलावा एजुकेशन पर भी विशेष ध्यान दिया गया रेवोल्यूशन के कुछ साल के अंदर ही सोवियत यूनियन वर्ल्ड की मेजर पावर बनकर उभरता है कंक्लूजन रशियन रेवोल्यूशन वर्ल्ड हिस्ट्री में एक इंपॉर्टेंट टर्निंग पॉइंट जैसा है इसने ना सिर्फ रशिया को हम हमेशा के लिए चेंज कर दिया बल्कि पूरी दुनिया पर अपना प्रभाव डाला आगे आने वाले कई डेकेट तक इसका असर देखने को मिलता है फिर चाहे
वह वेस्टर्न नेशंस का फियर ऑफ कम्युनिज्म हो या कोल्ड वॉर कहीं ना कहीं सभी इवेंट्स की रूट्स रशन रेवोल्यूशन से ही निकलती हैं हाउ फ्रैंकलिन डी रूजवेल्ट सेव्ड अमेरिका फ्रॉम द ग्रेट डिप्रेशन द ओनली थिंग वी हैव टू फेयर इज फेयर इट सेल्फ आज की कहानी इस मुहावरे के जन्मदाता और यूएसए के 32 प्रेसिडेंट फ्रैंकलिन डी रूजवेल्ट की है दोस्तों आज हम प्रेसिडेंट रूजवेल्ट की उस न्यू डील की चर्चा करेंगे जिसने 20वीं शताब्दी के ग्रीट डिप्रेशन से अमेरिका को बचाया इकोनॉमिक टर्म्स में डिप्रेशन में दो कंपोनेंट्स होते हैं पहला रियल जीडीपी में 10 पर से
ज्यादा का डिक्लाइन और दूसरा 2 साल या उससे ज्यादा समय से चला आ रहा रिसेशन रिसेशन में इकोनॉमिक एक्टिविटी रिड्यूस होती है लेकिन यह डिप्रेशन में जितना सीरियस नहीं होता और सिर्फ कुछ ही महीनों तक चलता है इसीलिए डिप्रेशन को अक्सर रिसेशन का एक सिवियर फॉर्म भी कहा जाता है अब नॉर्मल इंक्रीज इन अनइंप्लॉयमेंट रेट्स लो आउटपुट लो प्रोडक्टिविटी लो इन्वेस्टमेंट्स रिड्यूस्ड इंटरनेशनल ट्रेड फ्लक्ट एटिंग करेंसीज एटस इकोनॉमिक डिप्रेशन के फीचर्स होते हैं प्राइस डिफ्लेशन फाइनेंशियल क्राइसिस स्टॉक मार्केट क्रैश और बैंक फेलर्स डिप्रेशन के यूनिक एलिमेंट्स होते हैं जो नॉर्मली रिसेशन के दौरान नहीं देखे
जाते हैं खैर ग्रेड डिप्रेशन को ग्रेट की परिभाषा इसलिए दी गई क्योंकि इस लेवल की वैश्विक महामंदी आधुनिक इतिहास में पहले कभी नहीं हुई थी यह इंडस्ट्रियल्स इकोनॉमिक डाउनटर्न था जिसके स्कोप और साइज के कोई पैरेलल्स नहीं है यूं तो यह 1929 में अमेरिका में ओरिजनेट हुआ लेकिन धीरे-धीरे इसका असर विश्व के हर कोने में महसूस किया गया इस इकोनॉमिक डिप्रेशन ने हर अमीर या गरीब देश को अपनी चपेट में ले लिया लेकिन प्रेसिडेंट रूजवेल्ट ने अमेरिका को इस भयानक त्रासदी से कैसे बाहर निकाला यह कहानी बेहद रोचक है और आज के वीडियो में हम
यही समझेंगे तो चलिए शुरुआत करते हैं और सबसे पहले देखते हैं उन कारणों की जिनकी वजह से द ग्रेट डिप्रेशन का जन्म हुआ बैकग्राउंड एंड कॉसेस दोस्तों 20वीं शताब्दी के शुरुआती सालों में दुनिया एक के बाद एक कई चैलेंज का सामना कर रही थी पहले वर्ल्ड वॉर वन और फिर स्पेनिश फ्लू महामारी जिसने वर्ल्ड वॉर वन से भी ज्यादा लोगों को मार दिया दुनिया इनसे उभर ही रही थी कि कुछ ही सालों बाद अमेरिका को द ग्रेट डिप्रेशन का भी सामना करना पड़ा वैसे 1929 के वॉल स्ट्रीट क्रैश को ग्रेट डिप्रेशन का सोल रीजन बताया
जाता है लेकिन असल में यह केवल एक ट्रिगरिंग इवेंट था और इन रियलिटी ग्रेट डिप्रेशन के पीछे और भी कई स्ट्रक्चरल और डीप रूटेड फैक्टर्स थे चलिए इन पर एक नजर डालते हैं रोरिग 20 1920 टू 28 दोस्तों वर्ल्ड वॉर व के दौरान अमेरिका यूरोपियन पावर्स को आर्म्स सप्लाई करता था जिसके कारण उसकी वॉर टाइम इकॉनमी बहुत अच्छा परफॉर्म कर रही थी वॉर के बाद अमेरिका ने डेव यूरोप को लोंस भी दिए ऐसे में 1920 में अमेरिका में अनप्रेसिडेंटेड इकोनॉमिक एक्सपेंशन हुआ और इसलिए 1920 से 1928 के इस पीरियड को रोरिग 20 कहा गया इस
दौरान अमेरिका की जीडीपी 4.7 पर के रेट से बढ़ी और नेशनल वेल्थ दुगनी हो गई मिलियंस ऑफ ड्यू जॉब्स क्रिएट हुई और अमेरिका में एक लार्ज मिडिल क्लास का जन्म हुआ टेक्नोलॉजिकल इनोवेशंस के चलते लोग लैविश लाइफस्टाइल अपनाने लगे टेक एडवांसमेंट्स और हाई डिमांड से इंडस्ट्रीज और एग्रीकल्चरल सेक्टर में ओवर प्रोडक्शन भी हुआ ओवर प्रोडक्शन के कारण कमोडिटीज के प्राइसेस भी कम हुए और इसीलिए गुड्स की अफोर्डेबल भी बढ़ी पुअर परचेसिंग पावर वालों के लिए क्रेडिट स्कीम्स थी ताकि वह आसानी से लोंस लेकर ऐशो आराम की जिंदगी बिता सके कुल मिलाकर अब लोगों के पास
सरप्लस कैश था जिसका फायदा वहां के स्टॉक ब्रोकर्स ने उठाया उन्होंने लोगों का सरप्लस कैश स्टॉक्स में इन्वेस्ट करवाया इंडस्ट्रीज की हाई ग्रोथ के कारण स्टॉक मार्केट तेजी से ग्रो हुआ और 1923 से 1928 तक वो करीब 45 गुना बढ़ गया अब हर अमेरिकन चाहे वह बैंकिंग या इंडस्ट्रियल मैग्नेट्स हो या फिर कुक या ड्राइवर्स सब बढ़ चढ़कर स्टॉक मार्केट में इन्वेस्ट करने लगे जहां से उन्हें अच्छे रिटर्न्स मिलने लगे वॉल स्ट्रीट क्रैश लेकिन दोस्तों यह सब जितना सिंपल दिख रहा था उतना असल में था नहीं इस समय मेजॉरिटी ऑफ सिटीजंस हाई रिटर्न्स के लालच
में धड़े से अपना सारा पैसा सेविंग्स बॉन्ड्स गोल्ड और बाकी के लाइफ टाइम इन्वेस्टमेंट्स स्टॉक मार्केट में झोंकने लगे कई लोगों ने तो अपने घर बेचकर भी स्टॉक मार्केटस में इन्वेस्ट किया जिससे लोगों की लाइफ टाइम सेविंग्स खत्म होने लगी ऊपर से बैंक्स और ब्रोकर्स ने इसे सपोर्ट करने के लिए लोगों को इजी लोंस भी दिए जिससे बैंक्स के रिजर्व्स भी खत्म होते जा रहे थे साथ में स्टॉक मार्केट की ट्रिमेंडस ग्रोथ से फाइनेंशियल मार्केट्स का गवर्नमेंट पॉलिसीज पर अच्छा खासा इन्फ्लुएंस था जिसके चलते फाइनेंशियल मार्केट्स पर गवर्नमेंट कंट्रोल वीक हुआ और यह मार्केट पूरी
तरह से अनरेगुलेटेड हो गई इस टाइम तक एक्सेसिव सरप्लस के कारण कमोडिटीज के प्राइसेस तो काफी गिर गए थे पर स्टॉक प्राइसेस कंपनीज की एक्चुअल वैल्यू से भी ज्यादा हो गए थे यानी कि स्टॉक प्राइसेस शेयर्स की रियल अर्निंग से मिसमैच होने लगे अब यह प्राइसेस इकोनॉमिक्स के फंडामेंटल्स की वजह से नहीं बल्कि इन्वेस्टर्स के ऑप्टिमिस से बढ़ रहे थे लेकिन क्योंकि धीरे-धीरे लोगों की सेविंग्स खत्म हो रही थी तो इन इंडस्ट्रियल कमोडिटीज को एक टाइम के बाद खरीदने वाला कोई नहीं था एक्सेसिव प्रोडक्शन बट लो डिमांड के चलते इंडस्ट्रीज अपने प्रोडक्ट्स लो प्राइसेस पर
डंप करने लगी इवेंचर नुकसान झेलना पड़ा जिसका सीधा असर इन इंडस्ट्रीज के शेयर प्राइसेस पर दिखा इन्वेस्टर्स की ओवर एक्साइटमेंट और फॉल्स प्रिडिक्शंस के चलते मार्च 1929 में इस बूम को एक झटका लगा हालांकि इस मिनी पैनिक को जल्द ही ओवरकम कर लिया गया लेकिन इस पॉइंट से ही शेयर मार्केट में लोगों का कॉन्फिडेंस गिरना शुरू हो गया इस दौरान पैनिक में अक्सर कुछ लोगों ने अपने शेयर्स बेचने भी शुरू कर दिए इन सभी फैक्टर्स के कॉमिनेशन से अक्टूबर 1929 में सब ताश के पत्तों की तरह बिखर गया और पूरे फाइनेंशियल सिस्टम में पैनिक की
लहर दौड़ गई वैसे इनिशियल ग्रोथ के बाद स्टॉक मार्केट्स ने सितंबर 1929 से ही एक नेगेटिव ट्रेंड दिखाना शुरू कर दिया था लेकिन अक्टूबर 29 1929 को स्टॉक मार्केट पूरी तरह क्रैश कर गई इस दिन को ब्लैकट ट्यूडे के नाम से जाना गया इस दिन बिलियंस ऑफ डॉलर्स पानी की तरह बह गए और ना जाने कितने हजारों इन्वेस्टर्स बर्बाद हो गए आपको जानकर हैरानी होगी कि जो स्टॉक मार्केट कुछ महीनों पहले तक ऐतिहासिक ऊंचाइयां छू रहा था उस स्टॉक मार्केट में 1929 से 1932 तक 85 प्र की गिरावट देखी गई और इवेंचर के दौरान वर्ल्ड
जीडीपी में 30 प्र का डिक्लाइन हुआ लो डिमांड हाई एन एंप्लॉयमेंट दोस्तों फाइनेंशियल सिस्टम कोलप्पन का पैसा डूब गया और उन्हें अपनी प्रोडक्शन और वर्कफोर्स को ड्रेस्ट किली रिड्यूस करना पड़ा नतीजा था मैसिव अनइंप्लॉयमेंट उधर डेट रेडन कंज्यूमर्स को अपनी स्पेंडिंग पर भी फुल स्टॉप लगाना पड़ा डिमांड कम होने से और भी ज्यादा बिजनेसेस कोलप्पन चरम पर पहुंच गई पर्सनल इनकम और टैक्स रेवेन्यू में भी एक मैसिव स्लंप हुआ इंटरने ल ट्रेड 50 पर से भी ज्यादा गिर गया और इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन में 47 पर की गिरावट देखने को मिली अमेरिका में लेबर फोर्स का अनइंप्लॉयमेंट
रेट 25 पहुंच गया और लगभग 1 करोड़ 30 लाख लोगों को अपनी नौकरियों से हाथ धोना पड़ा ओहायो लीडो लावेल और मैसाचुसेट्स जैसे स्टेट्स में तो अनइंप्लॉयमेंट रेट 80 से 90 पर तक था हाउसिंग प्राइसेस 67 पर तक बढ़ गए जिसकी वजह से लोग बेघर भी हो गए क्रॉप के प्राइसेस में 60 प्र डिक्लाइन देखने को मिला जिसका सबसे बुरा इफेक्ट पुअर फार्मर्स और एग्रो इंडस्ट्री पर हुआ इतना ही काफी नहीं था कि इसी दौरान अमेरिका के सदर्न प्लेंस में अमेरिकन हिस्ट्री का सबसे बुरा ड्राउज के चलते वहां भुखमरी और भी ज्यादा तेजी से बढ़ी
तत्कालीन प्रेसिडेंट एच सी हूवर ने देश को इस क्राइसिस से निकालने के लिए कुछ इमीडिएट मेजर्स अडॉप्ट किए जिसके चलते कुछ समय तक रिकवरी साइंस भी दिखे लेकिन एक सीरीज ऑफ बैंक फेलर्स के चलते यह सभी मेजर्स भी मिट्टी में मिल गए मिटेप्स बाय द फेडरल रिजर्व दोस्तों 1920 के दौरान बैंक्स ने इरिस्पांसिबल अपने रिजर्व्स को डेंजरस लो लेवल्स पर पहुंचा दिया बैंक्स और फेडरल रिजर्व के लो इंटरेस्ट रेट्स अर्ली 20 के इकोनॉमिक एक्सपेंशन का मेन कारण थे पर जब पूरा सिस्टम क्रैश हुआ उस समय बैंक्स को इंटरेस्ट रेट्स कम करने चाहिए थे पर तब
उन्होंने उल्टा उसको प्री कैश लेवल से भी दोगुना कर दिया जिससे फर्द लैंडिंग और बोरोंग को रोका जा सके इसके साथ-साथ फेडरल रिजर्व ने भी इस क्राइसिस से जन्मे डिफ्लेशन को रोकने के लिए कोई एक्टिव इंटरवेंशन नहीं किया जिससे पूरा बैंकिंग सेक्टर ही क्लैप्स हो गया यूएस गवर्नमेंट के आर्काइव्स बताते हैं कि 1930 से लेकर 1933 तक लगभग 9000 बैंक्स फेल हो गए जिनमें से 4000 फेलर्स केवल 1933 में हुए और इन बैंक फेलियर के कारण डिपॉजिटर्स के 140 बिलियन डॉलर्स के रिजर्व्स पानी में मिल गए ये इसी डिप्रेशन का रिजल्ट था कि इंटर वॉर
पीरियड यानी वर्ल्ड वॉर वन और वर्ल्ड वॉर टू के बीच के समय में अमेरिका ने यूरोपियन कंट्रीज को और अधिक लोन देने से इंकार कर दिया और यूरोपियन नेशंस की इकॉनमी पर इसका बहुत बुरा प्रभाव पड़ा और इसी वजह से जर्मनी और इटली में फैसिस को बढ़ावा मिला और अंत में इसका रिजल्ट वर्ल्ड वॉर टू के रूप में दिखा वर्ल्ड वॉर वन और वर्ल्ड वॉर टू के बीच का यह पीरियड वाइड स्प्रेड होपलेस डिस्पेप्सिया लेकिन यहीं पर अमेरिकन पॉलिटिक्स के फोरफ्रंट पर फ्रैंकलिन डी रूजवेल्ट की एंट्री हुई उन्होंने न्यू डील जैसे इकोनॉमिक रिकवरी प्रोग्राम से
अमेरिकन इकॉनमी को वापस ट्रैक पर लाया पर साथ में उन्होंने गवर्नमेंट और सिटीजंस की रिलेशनशिप को भी रीडिफाइन किया उनके इन्हीं प्रोग्राम्स की वजह से यह ग्रेट डिप्रेशन कैपिट ज्म के इतिहास में सबसे ट्रांसफॉर्मेटिव चैप्टर भी बनकर उभरा चलिए देखते हैं यह क्यों और कैसे हुआ फ्रैंकलिन रूजवेल्ट टेकिंग द चार्ज दोस्तों इस नाजुक दौर की शुरुआत में देश की कमान प्रेसिडेंट हर्बर्ट हूवर के हाथों में थी लेकिन इस क्राइसिस के प्रति उनका रिस्पांस उनकी कंजरवेटिव पॉलिटिकल फिलोसोफी में जकड़ा हुआ था वह मानते थे कि गवर्नमेंट को मार्केट में ना के बराबर इंटरफेरेंस करना चाहिए क्योंकि
एक्सेसिव गवर्नमेंट इंटरवेंशन कैपिट ज्म और इंडिविजुअलिज्म पर बड़ा खतरा है मार्केट कैपिट जम की आइडियो जीी के प्रति ऑब्सेशन के चलते हुव ने यूएस कांग्रेस में ऐसे कई बिल्स वीटो किए जो स्ट्रगल झेल रहे अमेरिकंस को डायरेक्ट रिलीफ मुहैया कराने के लिए लाए गए थे अगर यह बिल्स पास हो जाते तो शायद लोगों को व सब ना झेलना पड़ता जो उन्होंने इस डिजास्टर्स पीरियड में झेला हूवर ने सेंट्रल गवर्नमेंट को इस सिचुएशन को संभालने का कंप्लीट चांस नहीं दिया इसी के चलते हूवर लोगों की नजरों में एक ऐसे अनपॉज फिगर बने जिनको लोगों की सफरिंग्स
का जरा भी ख्याल नहीं था जाहिर था कि पब्लिक ओपिनियन उनके खिलाफ था इसी माहौल में अमेरिका में 1932 के प्रेसिडेंशियल इलेक्शंस हुए और कुल सिक्स सीट्स के साथ हूवर की ऐतिहासिक हार हुई और न्यूयॉर्क के तत्कालीन गवर्नर और डेमोक्रेट पार्टी के नेता फ्रैंकलिन डी रूजवेल्ट अमेरिका के 32 वें प्रेसिडेंट बने अपनी इलेक्शन रैली के दौरान एफडीआर ने लोगों से एक सीरीज ऑफ प्रोग्रेसिव रिफॉर्म्स और इकोनॉमिक रिलीफ प्रोग्राम से अमेरिकन इकॉनमी को बचाने का वायदा किया था और यही उनकी जीत का मेन कारण बना चलिए अब समझते हैं उनके रिफॉर्म्स या न्यू डील को द
न्यू डील दोस्तों एफडीआर ने सबसे पहले इस टर्म को अपने नॉमिनेशन के वक्त एक स्पीच में यूज किया न्यू डील की फिलॉसफी लेज अफेयर यानी एब्सलूट फ्री मार्केट के अपोजिट गवर्नमेंट रेगुलेटेड इकॉनमी के आइडियाज पर बेस था यह प्लान कन्फ इकोनॉमिक इंटरेस्ट के बीच एक बैलेंस बिल्ड करना चाहता था रूजवेल्ट का मानना था कि हर सिटीजन को एक कंफर्टेबल लिविंग अशोर कराना गवर्नमेंट की रिस्पांसिबिलिटी है और इसीलिए उन्होंने गवर्नमेंट के रोल्स और रिस्पांसिबिलिटीज को ड्रेट एक्सपेंड किया तो जहां 1930 तक अमेरिका में डिबेट्स इस क्वेश्चन के अराउंड घूमती थी कि फेडरल गवर्नमेंट को इकॉनमी में
इंटरवेनर रिवॉल्व होने लगी कि इंटरवेंशन किन-किन मेथड से किए जाएं इस न्यू डील के अंतर्गत 1933 से 1938 तक कई फेडरल गवर्नमेंट प्रोग्राम्स लाए गए जिनका मकसद लोगों की सफरिंग्स को कम करना प्राइवेट इंडस्ट्री को रेगुलेट करना और इकॉनमी को पॉजिटिव ट्रैक पर लाना था इस न्यू डील को अक्सर थ्री आर्स में समप किया जाता है जिसमें पहला आर यानी रिलीफ प्रोग्राम्स फॉर द पुअर एंड अनइंप्लॉयड दूसरा आर यानी रिकवरी प्रोग्राम यानी गवर्नमेंट स्पेंडिंग और जॉब क्रिएशन से इकॉनमी को वापस पटरी पर लाना और तीसरा आर यानी रिफॉर्म जिसका मकसद रेगुलेटरी लेजिसलेशंस और नए सोशल
वेलफेयर प्रोग्राम से कैपिट ज्म के बेसिक टेनेट्स को रिफॉर्म करना था जिस से आने वाले समय में इस तरह की क्राइसिस को हर हाल में प्रिवेंट किया जा सके हिस्टोरियंस इस पूरे प्रोग्राम को अक्सर दो फेज या डील्स में डिवाइड करते हैं जिसमें पहली है फर्स्ट न्यू डील जो 1933 से 1934 तक इंप्लीमेंट हुई और दूसरी सेकंड न्यू डील जो 1935 से 1936 तक इंप्लीमेंट की गई आइए उनको समझते हैं द 100 डेज दोस्तों फर्स्ट न्यू डील के मेजॉरिटी ऑफ लेजिसलेशंस प्रेसिडेंट रूजवेल्ट की प्रेसिडेंसी के शुरुआती तीन महीनों में इक्ट किए गए इनको द 100
डेज के नाम से जाना गया इन 100 डेज में रूजवेल्ट ने कांग्रेस को 15 नए लेजिसलेशंस पास करने के लिए इंसिस्ट किया अपनी प्रेसिडेंसी के पहले ही दिन रूजवेल्ट को देश के बैंकिंग सिस्टम का कोलैक्स फेस करना पड़ा इससे जन्मी पैनिक वेव को दबाने के लिए 5थ मार्च 1933 को रूजवेल्ट ने फोर डे बैंक हॉलिडे डिक्ले लेर किया ताकि लोग बैंक से और पैसे विड्रॉ ना कर सके 9थ मार्च को कांग्रेस ने रूजवेल्ट इमरजेंसी बैंकिंग एक्ट पास किया जिसके अंतर्गत इन सॉल्वेंट बैंक्स को बंद कर दिया गया और बाकी बैंक्स को रीऑर्गेनाइज किया गया इसके
तीन दिन बाद यानी 12 मार्च को प्रेसिडेंट ने लोगों को आश्वासन देते हुए उनसे उनकी सेविंग्स वापस बैंक में डिपॉजिट करने को कहा मंथ एंड तक लगभग 75 पर बैंक्स रिओपन हुए और लोगों ने अपनी बची खुची सेविंग्स वापस डिपॉजिट करनी शुरू की इन बैंक लेजिसलेशंस की सक्सेस ने लोगों में विश्वास रिस्टोर किया इसी कड़ी में आगे लिकर सेल्स के ऊपर लगा प्रोहिबिशन क्रैप किया गया ताकि गवर्नमेंट स्पेंडिंग्स के लिए रेवेन्यू जनरेट हो सके इंडस्ट्रियल एक्टिविटी को बढ़ावा देने के लिए नेशनल रिकवरी एडमिनिस्ट्रेशन का गठन हुआ जिससे इंडस्ट्रियल ट्रेड प्रैक्टिसेस वेजेस वर्किंग आवर्स चाइल्ड लेबर
और कलेक्टिव बारगेनिंग कोड्स को गवर्न करने की अथॉरिटी दी गई देश के फाइनेंशियल हायरा की को रेगुलेट करने के लिए फेडरल ट्रेड कमीशन को नई पावर्स मिली और सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज कमीशन का भी गठन हुआ इनका मकसद मिसली दिंग सेल्स प्रैक्टिसेस और स्टॉक मैनिपुलेशंस को कम कर स्टॉक मार्केट में इन्वेस्टर्स का कॉन्फिडेंस रिबिल्ड करना था उसी तरह फेडरल डिपॉजिट इंश्योरेंस कॉर्पोरेशन के तहत लोगों को भरोसा दिया गया कि अगर फ्यूचर में बैंक्स फिर से क्लैप्स हुए तो का पैसा उन्हें फेडरल गवर्नमेंट से मिलेगा इसके अलावा एग्रीकल्चरल एडजस्टमेंट एडमिनिस्ट्रेशन के थ्रू फार्मर्स को कैश सब्सिडीज प्रोवाइड
कर स्टेबल क्रॉप्स के प्रोडक्शन को कंट्रोल किया गया और तो और एक आर्टिफिशियल स्कस भी जनरेट की गई जिससे उनके मार्केट प्राइस इंक्रीस हो सके इसी कड़ी में अमेरिकन हिस्ट्री के लार्जेस्ट गवर्नमेंट ओंड इंडस्ट्रियल एंटरप्राइज यानी टेनेसी वैली अथॉरिटी टीवी ए का भी निर्माण हुआ इसके द्वारा पॉवर्टी स्ट्रिकन टेनेसी वैली में पावर स्टेशंस का निर्माण किया गया ताकि लोगों को चीप इलेक्ट्रिसिटी मिले और फ्लड कंट्रोल मैकेनिज्म इंप्लीमेंट किए जा सके अब देखते हैं सेकंड न्यू डील को द सेकंड न्यू डील दोस्तों प्रेसिडेंट रूजवेल्ट और उनकी गवर्नमेंट के बेस्ट एफर्ट्स के बावजूद ग्रेट डिप्रेशन अभी भी
कंटिन्यूड था और इकॉनमी भी अनस्टेबल थी उल्टा उनको जुडिशरी से अपोजिशन फेस करना पड़ रहा था इसी के चलते 1935 में रूजवेल्ट ने पहले से ज्यादा अग्रेसिव फेडरल रिफॉर्म्स इंपोज किए इन नए लेजिसलेशंस को सेकंड न्यू डील के अंतर्गत गिना जाने लगा सेकंड न्यू डील का फोकस लेबर फोर्स के अपलिफ्टमेंट और बाकी वर्किंग ग्रुप्स की फाइनेंशियल सिक्योरिटी की तरफ शिफ्ट हो गया गवर्नमेंट एड को लोगों तक पहुंचाने और मैसिव एंप्लॉयमेंट जनरेशन के लिए वर्क्स प्रोग्रेस एडमिनिस्ट्रेशन या डब्ल्यू पीए और सिविलियन कंजर्वेशन को या सीसीसी जैसे फेडरल एजेंसीज स्थापित की गई डब्ल्यू पीए के तहत 50
लाख लोगों को कंस्ट्रक्शन जॉब्स मिली वहीं सीसीसी के तहत यंग अनमैरिड मेन को नेशनल कंजर्वेशन वर्क प्रोवाइड किया गया जिसमें प्लांटिंग ट्रीज बिल्डिंग फ्लड बैरियर्स फाइटिंग फॉरेस्ट फायर्स मेंटे निंग फॉरेस्ट रोड्स जैसे काम शामिल थे उसी तरह कांग्रेस ने वैगनर लेबर रिलेशंस एक्ट पास किया जिसके अंतर्गत वर्कर्स को यूनियन फॉर्मेशन और बारगेनिंग जैसे राइट्स दिए गए साथ ही साथ इन ट्रेड यूनियंस के इलेक्शंस को सुपरवाइज करने के लिए और वर्कर्स के साथ किसी भी तरह के अनफेयर ट्रीटमेंट को रोकने के लिए एक नेशनल लेबर रिलेशंस बोर्ड का भी गठन हुआ फेयर लेबर स्टैंडर्ड्स एक्ट के
तहत कांग्रेस ने 40 आवर वर्क वीक आवर मिनिमम वेज और रिस्ट्रिक्टेड चाइल्ड लेबर जैसे मेजर्स इंप्लीमेंट किए और सोशल सिक्योरिटी एक्ट के तहत सीनियर सिटीजंस के लिए मंथली पेंशंस चिल्ड्रन और फिजिकली और मेंटली डिसेबल्ड पॉपुलेशन के लिए गवर्नमेंट केयर प्रोग्राम्स और अनइंप्लॉयमेंट इंश्योरेंस जैसे मेजर्स अडॉप्ट किए गए अब बात करते हैं रूजवेल्ट की न्यू डील की लेगासी की द लेगासी ऑफ द न्यू डील वैसे रूजवेल्ट की न्यू डील ने ब्रिटिश इकॉनमिका कींस की आइडियल के बेसिस पर वेलफेयर स्टेट के प्रिंसिपल्स को अडॉप्ट कर इकॉनमी को रिपेयर करना चाहा लेकिन क्रिटिक्स का मानना है कि न्यू
डील के प्रॉमिस कभी भी पूरी तरह से मटेरियल इज नहीं हो पाए इस डील के तहत 8 मिलियन अमेरिकंस को एंप्लॉयमेंट प्रोवाइड की गई लेकिन उसके बावजूद 30 के पूरे दशक में अमेरिका का अनइंप्लॉयमेंट रेट 14 पर से नीचे नहीं आ पाया इसके अलावा इस डील पर रेशल सुप्रीमेसी और फेडरल हि जमनी को इंपोज करने के इल्जाम भी लगे औरथ और क्रिटिक्स का मानना है कि यूनाइटेड स्टेट्स की इकॉनमी तब तक फुली रिकवर नहीं हो पाई जब तक उसने सेकंड वर्ल्ड वॉर में कदम नहीं रखा यानी कि न्यू डील इस क्राइसिस को सॉल्व करने में
कुछ ज्यादा कामयाब नहीं हो पाई लेकिन इन क्रिटिक्स के बावजूद एक बात तो तय है कि 1930 में न्यू डील द्वारा इंपोज्ड फेडरल रेगुलेशन ऑफ वेजेस वर्किंग आवर्स चाइल्ड लेबर कलेक्टिव बारगेनिंग राइट्स और सोशल सिक्योरिटी सिस्टम की लेसी अमेरिकन इकॉनमी में ना सिर्फ आज तक फॉलो हो रही है बल्कि यह उसका एक लैंडमार्क फीचर बन गई है [संगीत] हाउ हिटलर केम इनटू पावर राइज ऑफ नाजम दोस्तों जर्मनी में हिटलर का पावर में आना एक ऐसी घटना है जिसने ना सिर्फ जर्मनी को प्रभावित किया बल्कि पूरी दुनिया पर गहरा असर डाला क्योंकि पावर में आने के
बाद हिटलर तेजी से जर्मनी और दुनिया के बाकी देशों को सेकंड वर्ल्ड वॉर की तरफ ले जाता है लेकिन सवाल यह उठता है कि हिटलर जैसा इंसान जर्मनी में राजनीतिक सत्ता कैसे हासिल कर लेता है जर्मन क्यों उसके हाथों में पॉलिटिकल पावर दे देते हैं इसी के बारे में आज हम विस्तार से जानेंगे हिटलर के बारे में बात करने से पहले उस समय के जर्मनी को समझना जरूरी है तो आइए तत्कालीन जर्मन स्थिति को देखते हैं जर्मनी पोस्ट वर्ल्ड वॉर वन जैसा कि हम जानते हैं कि जर्मनी फर्स्ट वर्ल्ड वॉर में एलाइज यानी कि इंग्लैंड
फ्रांस और रशिया जैसे देशों के अगेंस्ट फाइट कर रहा था यु य के दौरान वह फ्रांस और बेल्जियम पर कब्जा भी कर लेता है लेकिन फाइनली नवंबर 1918 में एलाइज जर्मनी और बाकी सेंट्रल पावर्स को हराने में कामयाब रहते हैं इसी बीच जर्मनी में एक रेवोल्यूशन होता है और यहां के राजा विलियम काइजर थर्ड राजगद्दी त्याग कर जर्मनी से भाग जाते हैं इस तरह जर्मनी में मोनकी का एंड होता है उसके बाद वाइमर नाम की जगह पर नेशनल असेंबली मिलती है और फेडरल स्ट्रक्चर के साथ डेमोक्रेटिक कांस्टिट्यूशन फॉर्म करती है जर्मनी की नई गवर्नमेंट को
वाइमर रिपब्लिक कहा जाता है वॉर खत्म होने के बाद जीतने वाले देश जर्मनी के साथ व्यवसाय की संधि साइन करते हैं व्यवसाय ट्रीटी जर्मन के लिए बहुत ही हूमि ट्रीटी थी वाइमर रिपब्लिक के रिप्रेजेंटेटिव्स को इसे जबरदस्ती साइन करना पड़ता है पीस कॉन्फ्रेंस में उनके साथ काफी खराब व्यवहार भी किया जाता है इस ट्रीटी के तहत जर्मनी पर वॉर गिल्ट क्लॉज लगाया जाता है जिसके अनुसार जर्मनी को 33 बिलियन डॉलर वॉर रिपरेशंस के तौर पर एलाइड नेशंस को देने होते हैं क्योंकि इस वॉर और इससे होने वाले नुकसान के लिए पूरी तरह जर्मनी को ही
जिम्मेदार माना जाता है वॉर के बाद पहले से ही जर्मनी की आर्थिक हालत खराब हो चुकी थी ऊपर से इतने भारी पेमेंट का भार उस पर डाल दिया जाता है जिसकी वजह से इकोनॉमिक कंडीशन और खराब होती जाती है इतना ही नहीं वे एसआई ट्रीटी के द्वारा जर्मनी की आर्मी और नेवी के साइज पर लिमिट भी लगा दी जाती है और एयरफोर्स मेंटेन करने की परमिशन तक नहीं दी जाती इस तरह वर्ल्ड वॉर वन के बाद जर्मनी पूरी तरह पावरलेस बन गया था ऐसी सिचुएशन में उसे एक स्ट्रांग गवर्नमेंट की जरूरत थी लेकिन वामा रिपब्लिक
प्रॉब्लम्स को सॉल्व करने में लगातार नाकामयाब हो रही थी जर्मनी की जनता फ्रस्ट्रेट होने लगी थी उनके मन में व्यवसाय संधि के प्रति नफरत भर गई थी आगे हम देखेंगे कि कैसे यही नफरत पावर में आने के लिए हिटलर की मदद करती है फिलहाल हिटलर और उसकी नाजी पार्टी की बात करते हैं हिटलर एंड हिज नाजी पार्टी एडोल्फ हिटलर का जन्म अप्रैल 188 में ऑस्ट्रिया में हुआ था अपनी स्कूल एजुकेशन खत्म करने के बाद 1907 में हिटलर विएना जाता है और वहां अकेडमी ऑफ फाइन आर्ट्स में एडमिशन लेने की कोशिश करता है लेकिन उसकी एप्लीकेशन
को दो बार रिजेक्ट कर दिया जा जाता है इसके बाद कुछ साल तक हिटलर ऐसे ही इधर-उधर भटकता रहता है उसकी आर्थिक हालत भी कुछ खास अच्छी नहीं थी फाइनली 1913 में वह जर्मनी शिफ्ट हो जाता है और अगले ही साल यानी 1914 में फर्स्ट वर्ल्ड वॉर की शुरुआत हो जाती है हिटलर जर्मन आर्मी को जॉइन करता है और वॉर में सर्व करने चला जाता है वॉर खत्म होने के बाद 1919 में हिटलर जर्मन सिटी म्यूनिख पहुंच जाता है और वहां जर्मन वर्कर्स नाम की एक छोटी सी पॉलिटिकल पार्टी को जॉइन करता है जल्द ही
वह इस पार्टी का लीडर बन जाता है और फेबरी 1920 में इसका नाम बदलकर नेशनल सोशलिस्ट जर्मन वर्कर्स पार्टी कर देता है जिसे शॉर्ट में नाजी पार्टी कहा जाता है इस तरह म्यूनिख से हिटलर के पॉलिटिकल करियर की शुरुआत होती है और जैसा कि हम देख चुके हैं कि जर्मनी काफी कठिन समय से गुजर रहा था ऐसे में हिटलर की कमाल की ओरे ट्री के दम पर नाजी पार्टी तेजी से लोगों के बीच पॉपुलर होने लगती है इनका समर्थन मुख्यतः कंजरवेटिव मोनार्किस्ट फ्रस्ट्रेटेड सोल्जर्स होपलेस वर्कर्स और ट्रबल्ड बिजनेसमैन करते हैं साथ ही एंटी जूश एंटी
कम्युनिस्ट और एंटी कैथोलिक माइंडसेट वाले लोगों को भी नाजी पार्टी के जरिए अपने सपने पूरे होते नजर आते हैं हिटलर को लगता है कि उसे लोगों का बहुत समर्थन मिल रहा है इसीलिए 1923 में वह जनरल लडन ड्रॉफ के साथ कर एक कू प्लान करता है जिसे बिय हॉल पुछ के नाम से जाना जाता है एक तरह से वह मुसोलिनी के 1921 के रोम माच की नकल करता है जिसके बाद इटली की सत्ता मुसली के हाथ में आ गई थी लेकिन हिटलर को ऐसी कोई सफलता नहीं मिलती यह कू 23 नवंबर 1923 को अटेंप्ट किया
जाता है इसमें बहुत से लोगों की मृत्यु भी हो जाती है हिटलर और उसके फॉलोअर्स को गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया जाता है उसके ऊपर न का मुकदमा चलाया जाता है ट्रायल के दौरान नाजी के नेशनलिस्ट मैसेजेस के प्रति सिंपैथी रखने वाले एक जज हिटलर और उसके साथियों को वाइमर रिपब्लिक के प्रति ओपन कंटेंप्ट शो करने की अनुमति दे देता है इस तरह हिटलर की पॉपुलर कम होने की जगह और ज्यादा बढ़ जाती है और वह एक नेशनल फिगर बन जाता है कानून के अनुसार तो हिटलर को डिपोर्ट किया जाना चाहिए था क्योंकि वह
जर्मन सिटीजन नहीं बल्कि ऑस्ट्रियन सिटीजन था लेकिन जज इस कानून की अनदेखी करते हुए उसे सिर्फ मिनिमम सेंटेंस यानी कि सिर्फ 5 साल जेल की सजा सुनाता है जेल में रहते हुए हिटलर अपनी आत्मकथा माइन कंफ लिखता है इस किताब में उसके रेसिस्ट विचार और जर्मनी को लेकर उसके प्लांस डिटेल में लिखे गए हैं हिटलर सिर्फ 9 महीने ही जेल में रहता है उसकी बाकी का टर्म सस्पेंड कर दिया जाता है यानी कि 1925 में हिटलर जेल से बाहर आ चुका था और एक बार फिर नाथजी पार्टी को को कंट्रोल करने लगा था कुू ने
उसे एक सबक जरूर सिखा दिया था कि आर्म्ड अपराइज इंग की कोशिश करना बहुत महंगा पड़ सकता है इसलिए नाज अब वाइमर कॉन्स्टिट्यूशन द्वारा दिए गए राइट्स जैसे कि फ्रीडम ऑफ प्रेस राइट टू असेंबल और फ्रीडम ऑफ स्पीच का यूज करके जर्मनी का कंट्रोल हासिल करने में लग जाते हैं हालांकि इस बीच जर्मनी की इकॉनमी कुछ सुधरने लगी थी 1928 आते-आते जर्मनी वॉर से रिकवर कर चुका था और उसका बिजनेस बूम पर था इस वजह से बहुत कम जर्म हिटलर और उसकी नाजी पार्टी द्वारा फैलाई जा रही ट्रिड में दिलचस्पी रख रहे थे इसका एक
उदाहरण हमें 1928 के इलेक्शंस में देखने को मिलता है जब नाज को सिर्फ दो प्र वोट ही मिलते हैं लेकिन अगले ही साल 1929 में ग्रेट इकोनॉमिक डिप्रेशन की शुरुआत हो जाती है और उसके बाद कंडीशंस कुछ इस तरह बदलती हैं कि हिटलर का पावर में आना आसान हो जाता है टर्न ऑफ टाइड्स इन हिटलर फेवर हिटलर की पॉपुलर इतनी ज्यादा नहीं बढ़ती अगर 1929 में ग्रेट डिप्रेशन ना हुआ होता जर्मन इकॉनमी धीरे-धीरे पटरी पर आना शुरू ही कर रही थी कि उसे डिप्रेशन का झटका लग जाता है जिसके बाद हालात और खराब हो जाते
हैं अनइंप्लॉयमेंट अपनी पीक पर पहुंच जाता है इंडस्ट्रीज में लेबर अनरेस्ट बढ़ने लगता है बिजनेसमैन को डर सताने लगता है कि जर्मनी में भी कहीं कम्युनिस्ट पावर में ना आ जाए जर्मनी की आम जनता वर्षों से चल रही इन स्टेबिलिटी से फ्रस्ट्रेट होने लगती है वह किसी भी तरह एक स्थाई और स्ट्रांग सरकार चाहती थी ऐसे में हिटलर का प्रोपेगेंडा उसकी पॉपुलर बढ़ाने लगता है अपनी स्पीस के द्वारा वह जर्मन को एक सपना दिखाने लगता है जिसमें उनकी सभी प्रॉब्लम्स खत्म हो जाएंगे जर्मनी फिर से एक महान राष्ट्र बन जाएगा कम्युनिस्ट का डर हमेशा के
लिए मिट जाएगा चारों तरफ इकोनॉमिक प्रोस्पेरिटी होने लगेगी नाजी पार्टी वर्क फ्रीडम एंड ब्रेड के स्लोगन के साथ अपना कैंपेन चलाती है बहुत से लोगों के लिए नाजी डेमोक्रेसी और कम्युनिज्म का एक अट्रैक्टिव अल्टरनेटिव बन जाते हैं इन लोगों में वेल्थी इंडस्ट्रियलिस्ट भी शामिल थे जो कि कम्युनिस्ट पार्टी की ग्रोथ से घबराए हुए थे इसलिए यह नाजी पार्टी को फंड्स भी देते हैं इस तरह नाजी की पॉपुलर एक बार फिर तेजी से बढ़ने लगती है अब सिर्फ हिटलर का पावर में आना ही बाकी था हिटलर्स फाइनल एेंट टू पावर ग्रेट इकोनॉमिक डिप्रेशन के बाद बने
हालात की वजह से 1930 के पार्लियामेंट्री इलेक्शंस में नाजी और कम्युनिस्ट्स दोनों को ही बड़ी संख्या में वोट्स मिलते हैं लेकिन किसी के पास गवर्नमेंट फॉर्म करने लायक मेजॉरिटी नहीं थी इसी बीच 1932 में हिटलर जर्मन सिटीजनशिप हासिल कर लेता है जिससे वह आने वाले प्रेज डट इलेक्शन में खड़ा हो सके हिटलर के अपोनेंट्स में कम्युनिस्ट कैंडिडेट अनस्ट थैलम और इंडिपेंडेंट कंजरवेटिव इनकंबेंट पॉल वन हिंड बर्ग थे इलेक्शन में 84 पर वोटर्स अपना वोट डालते हैं और प्रेसिडेंट हिंडन बर्ग को ही री इलेक्ट करते हैं हिटलर सेकंड पोजीशन पर रहता है प्रेसिडेंट इलेक्शंस के चार
महीने बाद ही जर्मन पार्लियामेंट राइक स्टक के लिए इलेक्शंस होते हैं और यहां नाजी पार्टी की पॉपुलर और बढ़ती नजर आती है लेजिसलेच्योर डेमोक्रेट्स के मुकाबले इनके पास 75 सीट्स ज्यादा थी लेकिन 37 प्र सीट्स के साथ गवर्नमेंट तो फॉर्म नहीं की जा सकती थी अगर इस समय बाकी की पॉलिटिकल पार्टीज एक साथ आकर कोलिशन गवर्नमेंट फॉर्म कर लेती तो नाजी पार्टी सिर्फ अपोजिशन पार्टी बनकर रह जाती दुर्भाग्यवश ऐसा कुछ नहीं होता क्योंकि बाकी पार्टीज के बीच कोई यूनिटी नहीं थी वहीं दूसरी तरफ प्रेसिडेंट हिंडन बर्ग जर्मनी को आर्थिक मंदी से उबार पाने में लगातार
असफल साबित हो रहे थे जिस वजह से जनता के बीच उनके लिए सपोर्ट कम होता जा रहा था ऐसे में जनवरी 1933 में प्रेसिडेंट हिंडन बर्ग और फॉर्मर चांसलर पैपन हिटलर के साथ एक डील करने का फैसला करते हैं क्योंकि हिटलर के पास पॉपुलर थी जिसकी जरूरत हिंडन बर्ग को इस समय ज्यादा थी और उनके पास पावर थी जो कि हिटलर को चाहिए थी हिंडन बर्ग के एडवाइजर्स को लगता था कि पावर में आने के बाद हिटलर के व्यूज मॉडरेट हो जाएंगे उनका ऐसा भी मानना था कि वह इतने समझदार और पावरफुल हैं कि हिटलर
को कंट्रोल कर सकते हैं इसके साथ ही व यह भी मानकर चल रहे थे कि हिटलर भी डिप्रेशन को कंट्रोल करने में असफल ही रहेगा और तब वो नेशन के सेवियर की तरह आगे आएंगे इस तरह हिटलर की पॉपुलर भी खत्म हो जाएगी यही सब सोचकर 30 जनवरी 1933 को हिटलर को जर्मनी का चांसलर बना दिया जाता है लेकिन दुर्भाग्यवश हिंडन बर्ग और पैपन जैसे उनके सलाहकार यहां बिल्कुल गलत साबित होते हैं इस तरह हिटलर ना तो इलेक्ट होकर पावर में आता है और ना ही किसी रेवोल्यूशन की मदद से बल्कि उसे तो जर्मनी के
पॉलिटिकल लीडर्स तोहफे के रूप में सत्ता सौंप देते हैं हिस्टोरियन कर्श बताते हैं कि जनरल लडन डॉर्फ जिसने 1923 के मूनिक पुज के समय हिटलर का साथ दिया था वो हिंडन बर्ग को लिखते हैं कि तुमने हमारे होली जर्मन फादरलैंड को आज तक के सबसे बड़े डेमगॉग के हवाले कर दिया है मैं यह भविष्यवाणी करता हूं कि यह आदमी रायक को खत्म कर देगा और हमारे देश को ऐसी मिजी में ला देगा जो कोई सोच भी नहीं सकता तुमने जो किया है उसके लिए आने वाली जेनरेशंस तुम्हारी कब्र में भी तुम्हें कोसे जनरल लडन ड्रॉफ
के यह शब्द आने वाले समय में बिल्कुल सच साबित होते हैं चांसलर बनने के बाद हिटलर किस तरह मौके का फायदा उठाकर पावर को अपने हाथों में कंसंट्रेट करता है आइए वह जानते हैं हिटलर बिकम डिक्टेटर 1933 में हिटलर नेशनल सोशलिस्ट और नेशनलिस्ट की कोलिशन गवर्नमेंट के तहत जर्मनी का चांसलर बन चुका था लेकिन वह इससे भी खुश नहीं था क्योंकि 11 कैबिनेट पो दो में से सिर्फ तीन ही नाजी के पास थी इसलिए ओवरऑल मेजॉरिटी की आशा में वह फिर से जनरल इलेक्शन कंडक्ट करने की जिद करता है यह इलेक्शन कैंपेन काफी वायलेंट रहता
है क्योंकि नाजी अब पावर में भी थे इसलिए वह स्टेट मशीनरी का पूरा यूज करते हैं इसके अलावा सबसे बड़े जर्मन स्टेट प्रशा का इंटीरियर मिनिस्टर हर्मन गरिंग को बना दिया गया था जो कि एक लीडिंग नाजी था इसका मतलब था कि वह पुलिस को कंट्रोल कर रहा था उसने सभी सीनियर पुलिस ऑफिसर्स की जगह रिलायबल नाजी को लगा दिया इसके साथ ही 50000 ऑक्जिलियम को भी बुला लिया गया जिसमें से ज्यादातर नासी पार्टी की पैरामिलिट्री ऑर्गेनाइजेशन स्टर्म अप टाइल यानी कि एसे या स्टॉर्म ट्रूपर्स को बिलोंग करते थे इन्हें ऑर्डर दिया गया था कि
कम्युनिस्ट और स्टेट के बाकी दुश्मनों के अगेंस्ट किसी भी तरह की मर्सी ना दिखाई जाए यहां तक कि इन्हें फायर आर्म्स यूज करने का अधिकार भी दे दिया गया था नाजी और नेशनलिस्ट की मीटिंग तो आराम से होने दी जाती थी लेकिन कम्युनिस्ट और सोशलिस्ट पॉलिटिकल मीटिंग्स में हंगामा कर दिया जाता था स्पीकर्स को मारा जाता था और पुलिस सिर्फ देखती रहती थी नेशनलिस्ट इस सबके बीच शांत रहते हैं क्योंकि वह नाज का यूज करके कम्युनिज्म को पूरी तरह खत्म कर देना चाहते थे इसी बीच 27 फरवरी की रात को राइक स्टग में आग लग
जाती है कहा जाता है कि इस आग को एक यंग डच एनक मैनेस वंडल लूब ने लगाया है उसको अरेस्ट किया जाता है और ट्रायल के बाद एग्जीक्यूट कर दिया जाता है ऐसा माना जाता है कि एसए को वैंडल लूब के प्लांस के बारे में पता था लेकिन इसके बाद भी वह उसे रोकते नहीं है बल्कि खुद भी कुछ जगह पर आग लगा देते हैं क्योंकि उनकी इंटेंशन कम्युनिस्ट को ब्लेम करने की थी इसे लेकर कोई भी कंक्लूजन नहीं है लेकिन जो भी हुआ हो हिटलर इस मौके का पूरा फायदा उठाता है और कम्युनिस्ट का
डर और ज्यादा बढ़ा देता है इसको मुद्दा बनाते हुए कम्युनिस्ट पार्टी को बैन कर दिया जाता है करीब 4000 कम्युनिस्ट को अरेस्ट कर लिया जाता है इस सबके बाद भी फथ मार्च के इलेक्शन में नाजी ओवरऑल मेजॉरिटी जीतने में कामयाब नहीं होते 647 सीट्स में से नाजी को 288 सीट्स ही मिलती हैं यानी कि मेजॉरिटी नंबर 324 से 36 सीट्स अभी भी कम थी नेशनलिस्ट को 52 सीट्स पर जीत मिलती है यानी कि हिटलर अभी भी पैपन और हिंडन बर्ग के सपोर्ट पर ही डिपेंडेंट था हिटलर इलेक्शंस के नतीजों से खुश नहीं था वह नाजी
पार्टी के अलावा किसी पर भी निर्भर नहीं रहना चाहता था राइक स्टग फायर के बाद प्रेसिडेंट हिंडन बर्ग अभी भी शॉक में ही थे ऐसे में हिटलर उन्हें कन्विंसिबल अपराइज ंग को रोकने के लिए इमरजेंसी लेजिसलेशन बहुत जरूरी हैं इस लेजिसलेशन को इनेबलिंग लॉ कहा जाता है 23 मार्च 1933 को इसे फोर्सफुली राइक स्टग में पास करा लिया जाता है और इसी से हिटलर की पावर को लीगल बेसिस मिलता है इस लॉ के अनुसार गवर्मेंट अगले 4 साल तक बिना राइक स्टाक से अप्रूवल लिए कोई भी लॉ पास कर सकती थी कॉन्स्टिट्यूशन को पूरी तरह
इग्नोर कर सकती थी इसके अलावा फॉरेन कंट्रीज के साथ एग्रीमेंट साइन कर सकती थी सभी लॉज चांसलर के द्वारा ही ड्राफ्ट किए जाने थे कहने का मतलब यह हुआ कि हिटलर अगले 4 साल तक जर्मनी के डिक्टेटर की तरह काम कर सकता था क्योंकि अब उसकी मर्जी ही कानून बन सकती थी इसलिए वह इन चार सालों को जल्द ही इनफिट पीरियड में बदल लेता है और 1945 में अपनी मृत्यु तक जर्मनी को एक डिक्टेटर की तरह रूल करता है कंक्लूजन दोस्तों इस तरफ फर्स वर्ल्ड वॉर के दौरान एक सोल्जर की तरह अपने करियर की शुरुआत
करने वाला हिटलर आगे चलकर जर्मनी का निरंकुश शासक बन जाता है इसके बाद वह किस तरह की पॉलिसीज अडॉप्ट करता है उसे हम अपनी अगली वीडियो में देखेंगे हां इतना जरूर कह सकते हैं कि उसकी पॉलिसीज की वजह से जर्मनी को ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया को सेकंड वर्ल्ड वॉर जैसी भयानक घटना से गुजरना पड़ता है हाउ हिटलर टर्न्स जर्मनी इंटू अ नाज अ फासिस्ट और अ टोटलिटेरियन स्टेट दोस्तों अपनी पिछली वीडियो में हमने देखा था कि कैसे हिटलर 1933 में जर्मनी का चांसलर बनता है और फिर सिचुएशन का फायदा उठाकर सारी पावर अपने हाथों
में ले लेता है यानी कि एक डिक्टेटर बन जाता है आज हम यह जानेंगे कि एक डिक्टेटर बनने के बाद हिटलर किस तरह की पॉलिसीज अडॉप्ट करता है या फिर यह कहिए कि कैसे जर्मनी को फैसिस स्टेट में बदल दिया जाता है आइए शुरू करते हैं फीचर्स ऑफ द नाजी टोटलिटेरियन स्टेट हिटलर ग्लक शाल्ट यानी फोर्सेबल कोऑर्डिनेशन नाम की पॉलिसी फॉलो करता है इसके तहत गवर्नमेंट सिटीजंस की लाइफ के ज्यादा से ज्यादा एस्पेक्ट्स को कंट्रोल करने की कोशिश करती है इसमें उसकी मदद करती है ह्यूज पुलिस फोर्स और स्टेट सीक्रेट पुलिस जिसे गेटा कहा जाता
है गवर्नमेंट को अपोज या क्रिटिसाइज करना किसी के लिए भी डेंजरस हो जाता है नाज पार्टी के अलावा सभी पॉलिटिकल पार्टीज को बैन कर दिया जाता है यानी जर्मनी भी इटली और यूएसएसआर की तरह एक वन पार्टी स्टेट बन जाता है स्टेट लेजिस्लेटर्स अभी भी एजिस्ट करते थे लेकिन उनके पास कोई पावर नहीं थी उनके ज्यादातर फंक्शंस नाजी स्पेशल कमिश्नर द्वारा किए जाने लगते हैं जिसे हर एक स्टेट में बर्लिन गवर्नमेंट यानी हिटलर द्वारा पॉइंट किया जाता था स्टेट के सभी ऑफिशल्स और अफेयर पर पूरी तरह इनका ही कंट्रोल रहता था इसके अलावा स्टेट प्रोविंशियल
या म्युनिसिपल इलेक्शंस भी नहीं कराए जाते सिविल सर्विस को पर्ज किया जाता है यानी कि उसमें से सभी जूज और स्टेट के एनीमीज या कहे कि हिटलर के विरोधी लोगों को हटा दिया जाता है ट्रेड यूनियंस को अबॉलिश कर दिया जाता है उनके फंड्स को कंफिट कर लिया जाता है और लीडर्स को अरेस्ट ट्रेड यूनियंस की जगह जर्मन लेबर फ्रंट ले लेता है और सभी वर्कर्स के लिए इसकी मेंबरशिप लेना कंपलसरी कर दिया जाता है किसी भी तरह की शिकायत यानी ग्रीवेंस से गवर्नमेंट खुद ही डील करती है स्ट्राइक्स करना अलाउड नहीं था इसके अलावा
एजुकेशन सिस्टम को क्लोस कंट्रोल किया जाता था जिससे चिल्ड्रन को नाजी ओपिनियन से इंडोक्ट्रिनेट किया जा सके नाजी थिरी के साथ फिट करने के लिए अक्सर स्कूल टेक्स्ट बुक्स को रिराइज किया जाता था खासकर हिस्ट्री और बायोलॉजी को हिस्ट्री को डिस्टोर्ट करके यह दिखाया जाता है कि ग्रेटनेस सिर्फ फोर्स के जरिए ही हासिल की जा सकती है जैसा कि हिटलर का व्यू था बायोलॉजी में नाजी रेस थरी डोमिनेट करती है टीचर्स प्रोफेसर्स पर कड़ी निगरानी रखी जाती है ताकि वह पार्टी लाइन के विरोध में कुछ भी ना सिखाएं इसके अलावा सभी बॉयज को 14 साल
की ऐज में हिटलर यूथ नाम की ऑर्गेनाइजेशन जवाइन करनी होती थी और सभी गर्ल्स को लीग ऑफ जर्मन मेडेंस रेजीम द्वारा ट्रेडिशनल ब जैसे की फैमिली के प्रति लॉयल्टी को डिस्ट्रॉय करने की कोशिश भी की जाती है बच्चों को सिखाया जाता है कि उनकी पहली ड्यूटी हिटलर को ओबे करना है हिटलर फरर का टाइटल अडॉप्ट करता है जिसका मतलब होता है लीडर या गाइड स्टूडेंट्स के बीच फरा इज ऑलवेज राइट के स्लोगन को पॉपुलर कर दिया जाता है यहां तक कि उन्हें इनकरेज किया जाता था कि वह अपने पैरेंट्स को गेटा के सामने फैमिली को
लेकर एक स्पेशल पॉलिसी अडॉप्ट की जाती है नाद जीज को डर था कि बर्थ रेट डिक्लाइन कर रहा है इसलिए रेशल प्योर और हेल्थी फैमिलीज को ज्यादा बच्चे पैदा करने के लिए इनकरेज किया जाता था फैमिली प्लानिंग सेंटर्स को क्लोज कर दिया गया था और कॉन्ट्रासेप्टिव पर बैन लगा दिया गया था लेकिन ऐसे लोग जिन्हें अनडिजायरेबल समझा जाता था उनके लिए नियम उल्टा था उन्हें नासी द्वारा डिस्क किया जाता था अपनी फैमिली बढ़ाने से इसमें जूस और जिप्सीज के साथ फिजिकली और मेंटली अनफिट लोग आते थे 1935 में जूज और आर्यंस के बीच मैरिज को
फोरबिडेन कर दिया गया था 3 लाख से ज्यादा लोग जिन्हें अनफिट करार कर दिया गया था उन्हें जबरदस्ती स्टेरलाइज कर दिया जाता है इसके अलावा सभी तरह के कम्युनिकेशंस पर मीडिया को मिनिस्टर ऑफ प्रोपेगेंडा डॉक्टर जोसेफ गबल द्वारा कंट्रोल किया जाता था रेडियो न्यूजपेपर्स मैगजींस बुक्स थिएटर म्यूजिक और आर्ट सभी को सुपरवाइज किया जाता था गवर्नमेंट द्वारा सस्ते रेडियोज लोगों को उपलब्ध कराए गए थे यही वजह थी कि 1939 तक 70 पर से भी ज्यादा जर्मन घरों में रेडियो आ चुका था लेकिन यह सिर्फ एक मैटेरियलिस्टिक बेनिफिट नहीं था बल्कि इसके जरिए लोगों तक लगातार
नाज के मैसेज को पहुंचाया जाता था 10th मई 1933 को नेशनल बुक बर्निंग डे मनाया जाता है जिसमें जुश सोशलिस्ट और बाकी सस्पेक्ट राइटर्स द्वारा लिखी बुक्स को यूनिवर्सिटीज में बड़े-बड़े बॉन फायर्स ऑर्गेनाइज करके पब्लिकली जलाया जाता है 1934 तक करीब 4000 बुक्स फोरबिडेन लिस्ट में थी क्योंकि उन्हें अन जर्मन बताया गया था इसी तरह 20 मार्च 1939 को लगभग 5000 कंडेम पेंटिंग्स और ड्रॉइंग्स को बर्लिन के सेंट्रल फायर स्टेशन के बाहर जला दिया जाता है आर्टिस्ट्स राइटर्स और स्कॉलर्स को लगातार हरस किया जाता है और कोई भी ओपिनियन जो नाजी सिस्टम में फिट ना
बैठता हो उसे एक्सप्रेस करना जैसे इंपॉसिबल हो जाता है इन मेथड्स की हेल्प से पब्लिक ओपिनियन को मोल्ड किया जाता है और नाज के लिए मास सपोर्ट को कायम रखा जाता है कह सकते हैं कि जर्मनी को पूरी तरह एक पुलिस स्टेट में बदल दिया जाता है नाजी पार्टी की पैरामिलिट्री फोर्स एसए और गिस्ता पो की हेल्प से पुलिस नाजी रेजीम के विरुद्ध हर तरह के अपोजिशन को खत्म कर देती है लॉ कोर्ट्स में भी इंपार्शियल होने के बाद किसी को फेयर ट्रायल मिलने की कोई उम्मीद नहीं रह जाती 1933 में हिटलर द्वारा शुरू किए
गए कंसंट्रेशन कैंप्स पूरी तरह भर चुके होते हैं इसमें पॉलिटिकल प्रिजनर्स जैसे कि कम्युनिस्ट्स सोशल डेमोक्रेट्स कैथोलिक प्रीस्ट्स और प्रोटेस्टेंट पास्टर्स को रखा जाता था इसके अलावा होमोसेक्सुअल्स और जूज पर्सीक्यूटेड ग्रुप्स का एक बड़ा हिस्सा थे लगभग 15000 होमोसेक्सुअल मेन को कैंप में भेजा गया था और एंटीसेमिटिक पॉलिसी तो नाजी रेजीम का सबसे क्रूअल फेस सामने लाती है जर्मनी में उस समय सिर्फ 5 लाख के करीब ही जूस थे यानी वहां की टोटल पॉपुलेशन का 1 पर से भी कम लेकिन फिर भी हिटलर उन्हें स्केप गोड्स की तरह यूज करता है मतलब जर्मनी के साथ
जो कुछ भी गलत हुआ उसका जिम्मेदार सिर्फ जूज को बना दिया जाता है फिर चाहे वह व्यवसाय में मिला ह्यूमिन हो इकोनॉमिक डिप्रेशन हो अनइंप्लॉयमेंट हो या फिर कम्युनिज्म हिटलर रेशल प्योरिटी की बात करता है यानी कि आर्यन रेस स्पेशली जर्मन को नॉन आर्यंस जूस के कंटेम से फ्री रखने को कहता है और इसीलिए जूस को जर्मनी से पूरी तरह बाहर करने की जरूरत बताई जाती है नाज द्वारा जूज पर किए गए अत्याचारों को यहां बयां कर पाना भी नामुमकिन सा है इसके ऊपर बहुत सी फिल्म्स बन चुकी हैं होलोकास्ट मेमोरियल्स और म्यूजियम्स भी हैं
जो इस दर्दनाक घटना को बयां करते हैं इस तरह हिटलर जर्मनी को एक फासिस्ट स्टेट में कन्वर्ट कर देता है लेकिन हिटलर के पावर में आने का सबसे बड़ा कारण तो इकोनॉमिक डिप्रेशन और जर्मनी को उससे बाहर निकालने का उसका प्रॉमिस था तो आइए अब हिटलर की इकोनॉमिक पॉलिसी की बात करते हैं हिटलर इकोनॉमिक पॉलिसी नाजी द्वारा इकॉनमी पर भी क्लोज कंट्रोल बनाया जाता है नाजी के पास कम्युनिस्ट की तरह इकॉनमी को लेकर कोई स्पेशल आइडियाज तो नहीं थे लेकिन उनके कुछ बेसिक एम्स जरूर थे जैसे कि अनइंप्लॉयमेंट को एलिमिनेट करना और जर्मनी को सेल्फ
सफिशिएंट बनाना इसके लिए इंपोर्ट्स को कम और एक्सपोर्ट्स को बूस्ट करने की पॉलिसी अपनाई जाती है जिसे ार की कहा जाता है इस पॉलिसी के तहत 1936 में फोर ईयर प्लान इंट्रोड्यूस किया जाता है जिसमें इंडस्ट्रीज को बताया जाता है कि क्या प्रोड्यूस करना है ऐसी फैक्ट्रीज को बंद कर दिया जाता है जिनके प्रोडक्ट्स की जरूरत नहीं थी फार्मर्स को एग्रीकल्चरल यील्ड्स बढ़ाने के लिए इनकरेज किया जाता है फूड और रेंट के प्राइसेस को कंट्रोल किया जाता है इंफ्लेशन को अवॉइड करने के लिए फॉरेन एक्सचेंज रेट्स को मैनिपुलेट किया जाता है इसके अलावा पब्लिक वर्क्स
की बड़ी-बड़ी स्कीम्स शुरू की जाती हैं जैसे कि स्लम क्लीयरेंस लैंड ड्रेनेज मोटर वे बिल्डिंग एसेट फॉरेन कंट्रीज को जर्मन गुड्स परचेस करने के लिए फोर्स किया जाता है आप सोच रहे होंगे ऐसा कैसे किया जा सकता है इसके लिए कई तरीके अपनाए जाते हैं जैसे कि इन देशों से जर्मनी में आने वाले गुड्स के लिए कैश पे नहीं किया जाता इससे उन्हें बदले में जर्मन गुड्स ही एक्सेप्ट करने पड़ते थे इसी तरह कुछ ऐसे फॉरेनर्स थे जिनके जर्मनी में बैंक अकाउंट्स थे उन्हें कैश निकालने की परमिशन नहीं दी जाती और इसलिए उन्हें भी जर्मन
गुड्स पर ही अपने पैसे खर्च करने पड़ते थे इसके अलावा सिंथेटिक रबर और वुल को भी बड़े स्केल पर मैन्युफैक्चर किया जाता है और कोल से पेट्रोल प्रोड्यूस करने का एक्सपेरिमेंट भी किया जाता है जिससे कि फॉरेन कंट्रीज पर डिपेंडेंस को कम किया जा सके आम मेंट्स पर खर्च बढ़ा दिया जाता है 1938 39 में गवर्नमेंट स्पेंडिंग का 52 मिलिट्री बजट पर ही खर्च हो रहा था इसकी वजह यह थी कि हिटलर जर्मनी को जल्द से जल्द एक इकनॉमिक और मिलिट्री पावर बना देना चाहता था इस सब की वजह से जर्मन इकॉनमी में तेजी से
सुधार देखने को मिलता है जिससे हिटलर की पॉपुलर लोगों के बीच बनी रहती है इकोनॉमिक पॉलिसी के बाद आइए अब हिटलर की रिलीजस पॉलिसी की चर्चा करते हैं हिटलर रिलीजस पॉलिसी हिटलर द्वारा रिलीजन को भी स्टेट कंट्रोल में लाया जाता है क्योंकि चर्चस पॉसिबल सोर्स ऑफ अपोजिशन हो सकते थे जर्मनी में उस समय दो मेन रिलीजस सेक्ट्स डोमिनेंट थे रोमन कैथोलिक्स और प्रोटेस्टेंट्स सबसे पहले बात करते हैं रोमन कैथोलिक चर्च की 1933 में हिटलर रोमन कैथोलिक चर्च के पोप के साथ एक एग्रीमेंट साइन करता है जिसे कंकड आट के नाम से जाना जाता है इस
इसमें वो जर्मन कैथोलिक्स के साथ किसी भी तरह का इंटरफेरेंस ना करने का प्रॉमिस करता है इसके बदले में पोप कैथोलिक सेंटर पार्टी को डिजॉल्ड्रिंग कोर्ड आर्ट को ब्रेक करते हुए कैथोलिक यूथ लीग को कैथोलिक्स पूरी तरह नाजी के खिलाफ हो जाते हैं और पोप पायस द 11थ एक एनस कलिकल इशू करते हैं जिसमें वह नाजी को कंडेम करते हैं और उन्हें क्राइस्ट और चर्च के प्रति हॉस्टाइल्स कलिकल एक लेटर की तरह था जिसे जर्मनी के सभी रोमन कैथोलिक चर्चस में पढ़ा जाना था इसके बाद हिटलर हजारों प्रीस्ट और नंदस को अरेस्ट करके कंसंट्रेशन कैंप्स
में भेज देता है रोमन कैथोलिक चर्च के बाद अब प्रोटेस्टेंट्स की बात करते हैं क्योंकि मेजॉरिटी ऑफ जर्मन किसी ना किसी प्रोटेस्टेंट ग्रुप को ही बिलोंग करते थे इसलिए हिटलर उन्हें एक रायक चर्च में ऑर्गेनाइज करने की कोशिश करता है और एक नाजी को ही रायक का पहला बिशप बनाया जाता है लेकिन बहुत से पास्टर्स यानी कि प्रीस्ट्स इसका विरोध करते हैं और उनका एक ग्रुप जिसे मार्टिन नी मोलर लीड कर रहे थे वह डायरेक्ट हिटलर से गवर्नमेंट इंटरफेरेंस और जूज के साथ हो रही ट्रीटमेंट की शिकायत भी करता है नाजी एक बार फिर रूथ
साबित होते हैं और नी मोलर के साथ-साथ 800 से ज्यादा पास्टर्स को कंसंट्रेशन कैंप में डाल देते हैं इसके बाद विरोध करने वाले और भी पास्टर्स को अरेस्ट किया जाता है और बाकी को फर यानी कि हिटलर के प्रति ओबेडिएंस की शपथ लेने को कहा जाता है इस तरह बड़े स्केल पर किए गए पर्सीक्यूशन की वजह से चर्चस कंट्रोल में आते दिखते हैं लेकिन रेजिस्टेंस जारी रहता है और चर्च अकेली ऐसी ऑर्गेनाइजेशन थी जो नाजी सिस्टम के विरोध में लगातार क्वाइट कैंपेन चलाते हैं उदाहरण के तौर पर 1941 में कुछ कैथोलिक बिशप्स जर्मन अाइलमेर मेंटली
हैंडीकैप्ड लोगों को मारने की नाजी पॉलिसी का विरोध करते हैं इस यूथ नेशिया कैंपेन में 70000 से भी ज्यादा लोगों का नाज द्वारा मर्डर किया जाता है इस तरह नाजी रिलीजस फियर में भी पूरी तरह इनटोलरेंट साबित होते हैं और हर तरफ सिर्फ डर का माहौल बना के रखा जाता है यह सब तो जर्मनी के अंदर चल रहा था जर्मनी के बाहर यानी कि फॉरेन रिलेशंस को लेकर हिटलर की क्या पॉलिसी रहती है उसकी चर्चा करना भी जरूरी है हिटलर्स फॉरेन पॉलिसी दोस्तों हिटलर पावर में इस वादे के साथ आया था कि वह जर्मनी को
एक बार फिर से ग्रेट नेशन बना देगा और पूरे यूरोप को डोमिनेट करेगा उसकी फॉरेन पॉलिसी के तीन मेन एम्स थे पहला तो वसाय की संधि को डिस्ट्रॉय करना क्योंकि हिटलर के अनुसार यह ट्रीटी पूरी तरह अनफेयर थी ज्यादातर जर्मन भी उसकी इस सोच के साथ सहमति रखते थे दूसरा एम था जर्मन बोलने वाले सभी लोगों को एक देश के अंदर लेकर आना फर्स्ट वर्ल्ड वॉर के बाद जर्मन बहुत से देशों जैसे कि ऑस्ट्रिया चेकोस्लोवाकिया और पोलैंड में रह रहे थे हिटलर को लगता था कि इन सभी को यूनाइट करके व एक पाफ फल जर्मनी
या ग्रोस टश लैंड क्रिएट कर सकता है और उसका तीसरा एम जर्मन के लिए लिविंग स्पेस यानी लेबन श्रम की व्यवस्था करना था इसके लिए वह ईस्ट में पोलैंड और रशिया की तरफ एक्सपेंड करना चाहता था अपने एम्स को पूरा करने के लिए वह वायलेंस के थ्रेट का यूज करता है हिटलर समझ चुका था कि उसके पोटेंशियल दुश्मन फ्रांस और इंग्लैंड किसी भी कीमत पर वॉर को अवॉइड करना चाहते हैं वो फर्स्ट वर्ल्ड वर को रिपीट होने से रोकने के लिए कंप्रोमाइज करने के लिए भी तैयार हैं इसी का फायदा हिटलर अपने एम्स को पूरा
करने के लिए करता है 1930 में फॉरेन पॉलिसी के सक्सेसेस हिटलर को जर्मनी में एक पॉपुलर फिगर बना देती हैं सबसे पहले 1933 में वह लीग ऑफ नेशंस को छोड़ देता है इसके बाद 1934 में वह पोलैंड के साथ 10 साल का नॉन अग्रेशन पैक्ट साइन कर लेता है इस अलायंस के साथ जर्मनी का डिप्लोमेटिक आइसोलेशन खत्म हो जाता है और साथ ही ईस्टर्न यूरोप में फ्रांस द्वारा बनाए गए एंटी जर्मन एलायंसेज भी कमजोर पड़ जाते हैं अगले 5 साल तक पोलैंड और जर्मनी के बीच कोडियल रिलेशंस रहते हैं लेकिन हिटलर द्वारा किए गए बाकी
एग्रीमेंट्स की तरह ही यह भी उसका एक टैक्टिकल मूव था और उसका इसे लंबे समय तक फॉलो करने का कोई इरादा नहीं था 1935 में सार रीजन जिसे फर्स्ट वर्ल्ड वॉर के बाद जर्मनी से अलग कर दिया गया था वह जर्मनी में वापस मिलने के लिए वोट करता है 1936 में राइनलैंड में हिटलर अपने ट्रूप्स भेज देता है ट्रीटी ऑफ एसआई के तहत राइनलैंड को डी मिलिटराइज्ड स्पेन के जनरल फ्रैंको को इसे जीतने में मदद करता है इटली का डिक्टेटर मुसोलिनी भी जनरल फ्रैंको के लिए मदद भेजता है और यहीं से दोनों के बीच क्लोज
कोऑपरेशन की शुरुआत होती है जो कि रोम बर्लिन एक्सेस नाम की अलायंस को जन्म देती है 1938 में हिटलर ऑस्ट्रिया को भी एनेक्स कर लेता है और अगले ही साल मार्च 1939 में चेकोस्लोवाकिया पर भी कब्जा कर लेता है इस दौरान ब्रिटेन और फ्रांस उसे रोकने के लिए कुछ नहीं करते क्योंकि वह अपीज मेंट की पॉलिसी को फॉलो कर रहे थे इससे हिटलर के हौसले और बुलंद होते हैं और 1939 में वह पोलैंड पर अटैक लॉन्च कर देता है पोलैंड पर हमले से पहले खुद को ईस्टर्न फ्रंट पर सुरक्षित रखने के लिए हिटलर यूएसएसआर के
साथ मार्च 1939 में 10 साल का नॉन अग्रेशन पैक्ट साइन कर लेता है इस तरह उसे लगता है कि वह पोलैंड को आराम से जीत लेगा क्योंकि पैक्ट के अनुसार यूएसएसआर हिटलर का इसमें साथ देगा और ब्रिटेन और फ्रांस ने जब चेकोस्लोवाकिया के एनेक्सेशन पर हिटलर को कुछ नहीं बोला तो पोलन के लिए भी वह उसे नहीं रोकेंगे लेकिन यहां हिटलर गलत साबित होता है पोलैंड पर हमला होने पर ब्रिटेन और फ्रांस जर्मनी के अगेंस्ट वॉर डिक्लेयर कर देते हैं और देखते ही देखते सेकंड वर्ल्ड वॉर की शुरुआत हो जाती है कंक्लूजन दोस्तों हिटलर फर्स्ट
वर्ल्ड वॉर के बाद की जर्मन कंडीशंस का फायदा उठाकर पावर में आया इसके बाद उसने जर्मनी पर पूरी तरह अपना कंट्रोल बना लिया और उसे एक टोटलिटेरियन स्टेट में कन्वर्ट कर दिया डोमेस्टिक स्फेयर में कंट्रोल एब्लिश करने के साथ ही वह फॉरेन अफेयर्स में भी जर्मन पावर को असर्ट करना शुरू करता है शुरुआती सक्सेस हिटलर का हौसला बढ़ाती चली जाती हैं और अल्टीमेटली हिटलर वर्ल्ड को एक और वॉर की तरफ ले जाता है मुसोलिनी एंड द राइज ऑफ फसिस्म दोस्तों फर्स्ट वर्ल्ड वॉर के बाद यूरोप में बहुत से लोग नेशनल यूनिटी और स्ट्रांग लीडरशिप की
तरफ आकर्षित हो रहे थे ऐसी सिचुएशन में फैस जम का राइज देखने को मिलता है फैश जम टर्म को पहली बार 1919 में बेनिटो मुसोलिनी ने अपनी पॉलिटिकल मूवमेंट को डिस्क्राइब करने के लिए यूज किया मुसली ने एंसेट रोमन फेसेस को अपना सिंबल बनाया ये एक एक्स के अराउंड टाइड बंडल ऑफ रॉड्स था जो रोम की पावर को रिप्रेजेंट करता था मुसोलिनी ने फर्स्ट फैसिस रेजीम को एस्टेब्लिश किया था जिसे आगे चलकर कुछ और देशों ने फॉलो किया जैसे कि नाजी जर्मनी लेकिन हर एक देश का फैसिस कुछ ना कुछ अलग था इसलिए फैश जम
की प्रेसा इज डेफिनेशन को लेकर अक्सर स्कॉलर्स डिसएग्री करते हैं हालांकि इसकी कुछ कॉमन कैरेक्टरिस्टिक को लेकर जरूर सहमति नजर आती है तो आइए सबसे पहले फैस जम के कुछ कॉमन फीचर्स के बारे में जानते हैं कॉमन फीचर्स ऑफ फसिस्म एब्सलूट पावर ऑफ द स्टेट फैसिस रेजीम स्ट्रांग सेंट्रलाइज्ड स्टेट या नेशनल गवर्नमेंट एस्टेब्लिश करने पर फोकस करती हैं फैसिस स्टेट सोसाइटी के सभी मेजर पार्ट्स पर अपना कंट्रोल बनाने की कोशिश करता है इसके साथ ही इंडिविजुअल से अपेक्षा की जाती है कि वह अपनी प्राइवेट नीड्स और राइट्स को भूलकर सिर्फ स्टेट को सर्व करने पर
ध्यान दें रूल बाय अ डिक्टेटर फसिस्ट स्टेट को एक सिंगल डिक्टेटर द्वारा रन किया जाता है सभी इंपॉर्टेंट डिसीजंस लेने का अधिकार उसी के पास होता है यह लीडर अक्सर कैरिज्मा और मैग्नेटिक पर्सनालिटी का यूज करके लोगों का सपोर्ट हासिल करता है कॉरपोरेटिजर्व करते हैं यूनियंस स्ट्राइक्स और बाकी लेबर एक्शंस को इल्लीगल बना दिया जाता है प्राइवेट प्रॉपर्टी तो कंटिन्यू रहती है लेकिन इकॉनमी को स्टेट द्वारा ही कंट्रोल किया जाता है एक्सट्रीम नेशनलिज्म फैसिस स्टेट नेशनल ग्लोरी और आउटसाइड थ्रेट्स के डर का यूज करके एक नई सोसाइटी को बिल्ड करता है यह एक्शन में यकीन
करते हैं और गाइडेंस के लिए साइंस या रीजन पर रिलाई करने की जगह नेशनल मिथ्स पर निर्भर करते हैं सुपीरियोर ऑफ द नेशन पीपल फैसिस अपने देश के लोगों को बाकी नेशनलिटी से सुपीरियर समझते हैं यह अक्सर नेशन के डोमिनेंट ग्रुप को स्ट्रेंथ और यूनिफाई करते हैं जबकि माइनॉरिटी ग्रुप्स को पर्सीक्यूट किया जाता है मिलिटरी जम एंड इंपीरियल जम फैसिस के अनुसार ग्रेट नेशंस अपनी ग्रेटनेस वीक नेशंस को जीतकर और रूल करके ही दिखा सकते हैं उनका मानना था कि स्टेट तभी सरवाइव कर सकता है जब वह वॉर में अपनी मिलिट्री सुपीरियोर को साबित कर
दे यह तो बात हुई फैश जम के कुछ कॉमन फीचर्स की आइए मुसोलिनी के पावर में आने की कहानी देखते हैं मुसोलिनी राइज टू पावर वर्ल्ड वॉर वन के दौरान इटालियन आर्मी को सर्व करने के बाद मुसोलिनी घर वापस आता है और इटालियन पीपल को यूनिफाई करने के मार्ग की तलाश करता है 1918 में वह इमोशनल स्पीस देना शुरू कर देता है जिसमें देश का नेतृत्व करने के लिए एक डिक्टेटर की जरूरत पर एमफसा इज किया जाता है मुसोलिनी तर्क देता है कि सिर्फ एक स्ट्रांग लीडर ही इटली को वॉर के बाद के मैस अनइंप्लॉयमेंट
पॉलिटिकल कॉन्फ्लेट्स और सोशलिस्ट और कम्युनिस्ट द्वारा की जा रही स्ट्राइक से बाहर निकाल सकता है 1919 में मुसोलिनी इटली के मिलान शहर में अपने फैसिस मूवमेंट को ऑर्गेनाइज करता है वह स्ट्रीट फाइटर्स के स्क डस तैयार करता है जो कि ब्लैक शर्ट्स पहना करते थे इसके यह ब्लैक शर्ट्स सोशलिस्ट और कम्युनिस्ट को पीटा करते थे और उन्हें लोकल गवर्नमेंट से बाहर कर दिया करते थे 2 साल पहले ही रशिया में कम्युनिस्ट रेवोल्यूशन हुआ था इसलिए मुसोलिनी के फैसिस मूवमेंट को एंटी कम्युनिस्ट बिजनेस पीपल प्रॉपर्टी ओनर्स और मिडिल क्लास प्रोफेशनल्स जैसे कि टीचर्स और डॉक्टर्स का
काफी सपोर्ट मिलने लगता है इसके बाद 1921 में मुसोलिनी नेशनल फै पार्टी फॉर्म करता है लेकिन अभी भी उसके पास कोई क्लियर फैसिस प्रोग्राम नहीं था वह सिर्फ एक बात को लेकर शोर था कि वह इटली को रूल करना चाहता है अक्टूबर 1922 में अपने हजारों समर्थकों के सामने दी गई स्पीच में मुसोलिनी कहता है कि या तो गवर्नमेंट हमें दे दी जाए या फिर रोम पर मार्च करके हम उस पर कब्जा कर लेंगे कुछ दिन बाद ही उसने अपने फॉलोअर्स को इटली की कैपिटल रोम पर मार्च करने के लिए बोल दिया और जैसे ही
हजारों की संख्या में भीड़ रोम की तरफ बढ़ी गवर्नमेंट लीडर्स इतना नर्वस हो गए कि उन्होंने रिजाइन कर दिया ऐसे में इटली के किंग विक्टर इमानुएल की कॉन्स्टिट्यूशन ड्यूटी थी कि वह नए प्राइम मिनिस्टर को अपॉइंट्स शर्ट्स और बाकी सपोर्टर्स की भीड़ के दम पर मुसोलिनी डिमांड करता है कि किंग उसे ही अगला प्राइम मिनिस्टर अपॉइंटमेंट 19 22 को 39 साल की एज में मुसोलिनी इटली का यंगेस्ट प्राइम मिनिस्टर बन जाता है पीएम बनने के बाद मुसोलिनी कैसे इटली में फैसिस स्टेट एस्टेब्लिश करता है वो जानते हैं द फैसिस स्टेट मुसोलिनी 1924 में इटालियन पार्लियामेंट
के लिए नए इलेक्शंस करवाता है इसमें बड़े स्केल पर फ्रॉड होता है और लोगों को डराया धमकाया भी जाता है है मुसोलिनी की फैसिस पार्टी को 66 पर वोट्स मिलते हैं इलेक्शन के बाद मुसोलिनी अपोजिशन न्यूज़ पेपर्स को बंद कर देता है और पब्लिक प्रोटेस्ट मीटिंग्स को बैन कर देता है फैसिस पार्टी के अलावा बाकी सभी पॉलिटिकल पार्टीज को इल्लीगल डिक्लेयर कर दिया जाता है लेबर यूनियंस और स्ट्राइक्स को गैर कानूनी करार दिया जाता है इसके अलावा ऑर्गेनाइजेशन फॉर विजिलेंस एंड रिप्रेशन ऑफ एंटी फैश जम नाम से पॉलिटिकल पुलिस फोर्स भी इस्टैब्लिशमेंट को इरेलीवेंट बना
देती है 1925 में मुसोलिनी इल डचे यानी द लीडर का टाइटल अडॉप्ट कर लेता है मुसोलिनी ना सिर्फ पॉलिटिकल सिस्टम को बल्कि इकॉनमी स्कूल्स कोर्ट्स मिलिट्री पुलिस और बाकी सभी सिस्टम्स को कंट्रोल करना चाहता था उसकी अपोनेंट्स उसकी इस कोशिश के लिए टोटलिटेरियन जम टर्म को को कॉइन करते हैं इरोनिकली खुद मुसोलिनी को भी यह टर्म इतना पसंद आता है कि वो इसका यूज इटालियंस को पर्स एड करने के लिए करता है वह कहता है कि उसकी लीडरशिप में सभी इटालियंस को एक साथ आकर एक नई सोसाइटी की स्थापना करनी चाहिए मुसोलिनी इटली के न्यू
मैन की तुलना एचट रोम के हार्डन सोल्जर से करता है वहीं वमन को लेकर उसके विचार थे कि उनका रोल सिर्फ जन्म देना और वॉरियर्स की नई जनरेशन की केयर करना है फैसिस पार्टी 8 से 18 साल के सभी बॉयज और गर्ल्स के लिए यूथ ऑर्गेनाइजेशंस की स्थापना करती है जिनमें फिजिकल ट्रेनिंग मिलिट्री ड्रिल्स और फैसिस स्टेट के आइडियल की शिक्षा दी जाती है मुसोलिनी की रिलीजन में बहुत ज्यादा दिलचस्पी नहीं थी इटली एक स्ट्रांग कैथोलिक देश हुआ करता था चर्च उसकी फैसिस रेजीम का विरोध ना करें इसलिए मुसोलिनी अबॉर्शन और डिवोर्स के अगेंस्ट प्रो
कैथोलिक पॉलिसीज को अडॉप्ट करता है इसके बाद 1929 में वह चर्च के साथ एक ट्रीटी साइन करता है जिसके अनुसार कैथोलिक जम को स्टेट रिलीजन बना दिया जाता है इसके बदले में चर्च मुसोलिनी के फैसिस स्टेट को एक्सेप्ट कर लेता है और इटली के पॉलिटिकल अफेयर्स में अपना इवॉल्वमेंट भी बंद कर देता है इकॉनमी की बात करें तो मुसोलिनी ऐसा इकोनॉमिक सिस्टम क्रिएट करना चाहता था जो कैपिट ज्म और सोशलिज्म के बीच एक थर्ड वे प्रोवाइड कर सके इसी एम को ध्यान में रखते हुए 1930 के दौरान मुसोलिनी इंडस्ट एग्रीकल्चर और इकोनॉमिक सर्विसेस को स्टेट
कंट्रोल्ड लेबर यूनियंस और एंप्लॉयर एसोसिएशंस में ऑर्गेनाइज कर देता है जिन्हें कॉरपोरेशंस कहा जाता है इन सभी यूनियन और एंप्लॉयर कॉरपोरेशन के हेड्स को गवर्नमेंट ऑफिशल्स द्वारा पॉइंट किया जाता था यह आपस में वेजेस और वर्किंग कंडीशंस को नेगोशिएट करते थे इस थर्ड वे कॉपरेट जम के जरिए वर्कर्स और एंप्लॉयज को यूनिफाई करने का प्रयास किया जाता है और इन्हें फैसिस स्टेट के बेस्ट इंटरेस्ट में अपने प्राइवेट इंटरेस्ट को अलग रखने के लिए कहा जाता है हालांकि प्रैक्टिस में वर्कर से ज्यादा एंप्लॉयज को ही बेनिफिट होता है इटली के फैसिस स्टेट में विरोधियों पर पुलिस
क्रैक डाउंस हिटलर के फैस ज्म से माइल्ड जरूर थे लेकिन एक स्पेशल कोर्ट में सभी एंटी फैसिस का ट्रायल किया जाता था इटली की जूश पॉपुलेशन काफी छोटी थी और ना तो मुसोलिनी ना ही बाकी इटालियंस एंटी जूश थे जूज ने वर्ल्ड वॉर वन में इटली के लिए फाइट भी किया था और मुसोलिनी के रोम पर मार्च में भी भाग लिया था इसके बाद भी लेट 1930 में मुसोलिनी हिटलर के इन्फ्लुएंस में आकर एंटी सेमिटिक डिक्रीज जैसे कि कुछ ऑक्यूपेशन से जूस को बैन करने के लिए मान जाता है और जब सेकंड वर्ल्ड वॉर के
दौरान जर्मन इटली के कुछ पार्ट्स को ऑक्यूपाइड के 20 पर जूस को नाजी कंसंट्रेशन कैंप्स भेज देते हैं लेकिन मुसोलिनी उन्हें रोकने के लिए कुछ भी नहीं करता सेकंड वर्ल्ड वॉर शुरू होने से पहले तक मुसोलिनी के फैसिस स्टेट के लिए पॉपुलर सपोर्ट काफी हाई रहता है उसकी लीडरशिप का कैरिजमेटिक स्टाइल बहुत से लोगों को कन्विंसिबल आता है तो मुसली तेजी के साथ एक्ट करते हुए पब्लिक कंस्ट्रक्शन प्रोजेक्ट्स के बड़े प्रोग्राम शुरू कर देता है जिससे बहुत से जॉबल स इटालियंस को वापस काम मिल जाता है इस तरह इटली के अंदर मुसोलिनी अपना डोमिनेंस स्थापित
कर लेता है अब बात करते हैं उसकी फॉरेन पॉलिसी की मुसली फॉरेन पॉलिसी मुसली का मानना था कि दुनिया के स्ट्रांग नेशंस का यह नेचुरल राइट है कि वह वीक नेशंस को रूल करें वह फिजिकल स्ट्रेंथ डिसिप्लिन ओबेडिएंस और करेज जैसी मिलिट्री वैल्यूज को ग्लोरिफाई करता था मुसोलिनी कहता है कि पूरी जिंदगी की शांति से अच्छा युद्ध भूमि पर बिताया हुआ एक मिनट है इसी सोच से प्रेरित होकर वह इटली को बहुत से वर्स में इवॉल्व करता है 1935 में मुसोलिनी इथियोपिया के इनवेजन का ऑर्डर देता है जो कि एक प अफ्रीकन कंट्री था इथियोपिया
ने इससे पहले एक बैटल में इटली को हरा दिया था इसी का बदला लेने के लिए मुसोलिनी प्लेंस आर्टिलरी और पॉइजन गैस तक का यूज इस इनवेजन में करता है 1939 में मुसोलिनी हिटलर के साथ पैक्ट ऑफ स्टील साइन कर लेता है जिसके अनुसार वॉर होने पर दोनों देश एक दूसरे की हेल्प करने के लिए कमिट करते हैं और कुछ ही मंथ्स के बाद हिटलर पोलैंड को इवेडर है और सेकंड वर्ल्ड वॉर शुरू हो जाता है लेकिन मुसोलिनी जून 1940 में जाकर हिटलर को जॉइन करता है इसके बाद वह ग्रीस को इवेडर का फैसला करता
है लेकिन उसकी आर्मी बुरी तरह हार जाती है और जर्मन ट्रूप्स द्वारा उन्हें रेस्क्यू करना पड़ता है 1941 में मुसोलिनी अपने 2 लाख सोल्जर्स को हिटलर के सोवियत इनवेजन में हेल्प करने के लिए भेज देता है जहां हार्श विंटर और सोवियत गोरेला फाइटर्स द्वारा बड़ी संख्या में इनकी मृत्यु हो जाती है 1943 तक ब्रिटिश अमेरिकन और बाकी एलाइज मिलकर मुसोलिनी की आर्मी को नॉर्थ अफ्रीका में हरा देते हैं सिसिली पर कब्जा कर लेते हैं और रोम पर बॉम गिरा रहे होते हैं ऐसे में इटालियन पीपल मुसोलिनी के अगेंस्ट हो जाते हैं और किंग विक्टर इमैनुएल
उसे अरेस्ट और इंप्रिजन करने का आर्डर दे देते हैं हालांकि जर्मन कमांडोज की हेल्प से वह जर्मनी भाग जाता है इसके बाद मुसोलिनी इटली वापस आता है और मिलान के पास नई फैसिस रेजीम एस्टेब्लिश करता है क्योंकि यह एरिया जर्मन ने ऑक्यूपाइड नाज के पपेट की तरह काम करता है और जब एलाइड फोर्सेस मिलान के करीब पहुंचती हैं तो मुसोलिनी यहां से भागने की कोशिश करता है लेकिन एंटी फैसिस इटालियन फाइटर्स उसको कैप्चर कर लेते हैं और 28 अप्रैल 1943 को गोली मार देते हैं अगले दिन इटली की यता द्वारा उसकी बॉडी को मिलान में
उल्टा लटका दिया जाता है ठीक उसी जगह जहां उसने 25 साल पहले फैसिस मूवमेंट की शुरुआत की थी कंक्लूजन दोस्तों मुसोलिनी ने ना सिर्फ इटली में फैसिस स्टेट को एस्टेब्लिश किया बल्कि और भी जगह फैश जम को इंस्पायर किया भले ही फैस ज्म के वर्जन अलग-अलग रहे हो लेकिन कहीं ना कहीं इटली के फैसिस से सभी प्रभावित जरूर थे फिर चाहे वह हिटलर का फैस जम हो या स्पेन में जनरल फ्रैंको द्वारा एस्टेब्लिश फैसिस स्टेट राइज ऑफ मिलिटरी जम इन जापान दोस्तों फर्स्ट वर्ल्ड वॉर के बाद कई देशों में टोटलिटेरियन गवर्नमेंट का फॉर्मेशन हुआ था
जिनमें से इटली और जर्मनी सबसे ज्यादा फेमस है हिटलर और मुसोलिनी के राइज के बारे में तो अक्सर हमने कुछ ना कुछ जरूर सुना और पढ़ा होता है लेकिन सेम टाइम पीरियड में ही जपान में फॉर्म हुई मिलिट्री गवर्नमेंट के बा बारे में बहुत कम लोग ही जानते हैं जबकि जापान का रोल भी सेकंड वर्ल्ड वॉर में कम नहीं था एशिया तक वर्ल्ड वॉर को लाने में तो जापान का ही सबसे बड़ा हाथ था और यूएसए जैसी पावर भी वर्ल्ड वॉर में जापान की वजह से ही शामिल होती है इसलिए जापान में मिलिटरी ज्म के
राइज की कहानी को जान लेना जरूरी हो जाता है तो आइए शुरू करते हैं बैकग्राउंड फर्स्ट वर्ल्ड वॉर के खत्म होने पर यानी कि 1918 में जापान की पोजीशन काफी स्ट्रांग थी 18680 19045 में रशिया के साथ युद्ध भी लड़ने पड़े थे इस तरह फार ईस्ट के रीजन में जापान एक डोमिनेंट पावर बन चुका था 1902 में ब्रिटेन के साथ एक मिलिट्री अलायंस भी साइन किया गया था और जब फर्स्ट वर्ल्ड वॉर शुरू होता है तो जापान ब्रिटेन की साइड से ही वॉर में पार्टिसिपेट करता है इस दौरान वह चाइना में मौजूद जर्मन कॉलोनी और
बेसेस को सीज कर लेता है 1919 में हुई वेसा आई पी कॉन्फ्रेंस में भी जापान रिप्रेजेंट करता है वो लीग ऑफ नेशंस का मेंबर भी बनता है और ऑफिशियल बिग फाइव वर्ल्ड पावर्स के रूप में रिकॉग्नाइज किया जाता है जापान के पास एक पावरफुल नेवी वेल ट्रेड और वेल इक्विप्ड आर्मी और चाइना के ऊपर गहरा इन्फ्लुएंस था इकोनॉमिकली भी जापान को फर्स्ट वर्ल्ड वॉर से काफी फायदा हुआ था जब यूरोप के देश आपस में फाइट करने में बिजी थे जापान उस समय एलाइज को शिपिंग और गुड्स प्रोवाइड करता है और साथ ही ऑर्डर्स की पूर्ति
करता है स्पेशली एशिया में जो वॉर की वजह से यूरोप के देश नहीं कर पा रहे थे वॉर के समय जापानीज कॉटन क्लॉथ का एक्सपोर्ट ऑलमोस्ट तीन गुना हो जाता है और उनकी मर्चेंट फ्लीट टनेज में डबल हो जाती हैं और जब 1925 में सभी एडल्ट मेल्स को वोट करने का राइट मिलता है तो ऐसा लगता है कि जापान अब डेमोक्रेसी की तरफ आगे बढ़ रहा है लेकिन जल्दी ही ऐसी सभी होब टूट जाती हैं क्योंकि 1930 की ब में ही गवर्नमेंट पर आर्मी अपना कंट्रोल एस्टेब्लिश कर लेती है आखिर ऐसा क्यों हुआ कि जापान
में डेमोक्रेसी की जगह मिलिट्री डिक्टेटरशिप ने पावर असम की आइए जानते हैं व्हाई डिड जापान बिकम अ मिलिट्री डिक्टेटरशिप 1920 के दौरान कुछ ऐसी प्रॉब्लम्स डिवेलप होती हैं जैसे कि इटली और जर्मनी में भी हुई थी जिन्हें डेमोक्रेटिक इलेक्टेड गवर्नमेंट्स सॉल्व करने में असमर्थ नजर आती हैं आइए एकएक करके इन्हे देखते हैं इनफ्लुएंशल एलीट ग्रुप्स बिगन टू अपोज डेमोक्रेसी जापान में डेमोक्रेसी तुलनात्मक रूप से अभी नई ही थी 1880 में ही एंपरर ने नेशनल असेंबली की डिमांड को मंजूरी दी थी इसके पीछे उनकी सोच यह थी कि कांस्टिट्यूशन और रिप्रेजेंटेटिव गवर्नमेंट ने ही यूएसए और
वेस्टर्न यूरोप के देशों को इतना सक्सेसफुल बनाया है इसी सोच के साथ धीरे-धीरे और ज्यादा रिप्रेजेंटेटिव सिस्टम जापान में इंट्रोड्यूस किया जाता है कॉन्स्टिट्यूशन में इलेक्टेड लोअर हाउस का प्रोविजन था जिसे डायट के नाम से जाना जाता था लेकिन सिस्टम अभी भी पूरी तरह डेमोक्रेटिक नहीं कहा जा सकता था एंपरर के पास काफी ज्यादा पावर्स थी वह अपनी मर्जी से कभी भी डायट को डिसोल्व कर सकता था वॉर और पीस रिलेटेड डिसीजंस भी एंपरर ही लेता था वो आर्म्ड फोर्सेस का कमांडर इन चीफ भी था और उसे सीक्रेट और इनवायड के पास एक बहुत बड़ा
एडवांटेज था और वो यह कि डायट न्यू लॉज को इनिशिएटिव को रियलाइफ के अनुसार नहीं चल सकती थी जैसे उन्होंने सोचा था शुरू में तो सोसाइटी के एलीट ग्रुप्स गवर्नमेंट को फ्री रेन देकर संतुष्ट थे लेकिन फर्स्ट वर्ल्ड वॉर के बाद वह ज्यादा क्रिटिकल हो जाते हैं खासकर आर्मी और कंजरवेटिव्स जो हाउस ऑफ पीयर्स और प्रीवी काउंसिल में स्ट्रांग एंट्रेंचड थे वो गवर्नमेंट को कोसने का भी मौका नहीं छोड़ते थे उदाहरण के तौर पर यह 1924 से 1927 तक जपान के फॉरेन मिनिस्टर रहे बैरन शीदे हारा कि जोरो को चाइना के प्रति कंसीट अप्रोच अपनाने
के लिए क्रिटिसाइज करते हैं आमी चाइना में इंटरफेरेंस करने के लिए उतावली हो रही थी क्योंकि वहां सिविल वॉर चल रहा था और उन्हें लगता था कि शीदे हेरा की पॉलिसी सॉफ्ट है आर्मी के पास इतनी पावर थी कि उन्होंने 1927 में सरकार को गिरवा दिया और उसकी पॉलिसी को रिवर्स करवा दिया इस तरह एलीट ग्रुप्स की अपोजिशन की वजह से जपान में डेमोक्रेसी कमजोर होने लगती है इसके बाद आग में घी डालने जैसा काम करप्ट पॉलिटिशियन बहुत से पॉलिटिशियन कि डाट में करप्शन चार्जेस को लेकर लड़ाई तक शुरू हो जाती है इस वजह से
सिस्टम के लिए कोई रिस्पेक्ट नहीं रह गई थी और पार्लियामेंट की प्रेस्टीज गिरती नजर आ रही थी इन पॉलिटिकल प्रॉब्लम्स में जब इकोनॉमिक प्रॉब्लम्स ऐड हो जाती हैं तब सिचुएशन और ज्यादा सीरियस हो जाती है द ट्रेड बूम एंडेड वॉर के दौरान जैपनीज ट्रेड को काफी मुनाफा हुआ लेकिन यह बूम सिर्फ 1921 के मध्य तक ही कायम रहता है इसके बाद यूरोप एक बार फिर रिवाइव करने लगता है और अपने खोए हुए मार्केट्स को रिकवर कर लेता है जापान में बेरोजगारी और इंडस्ट्रियल अनरेस्ट डिवेलप होना शुरू हो जाता है और इसी दौरान फार्मर्स को राइस
के तेजी से गिरते हुए प्राइसेस की मार भी झेलनी पड़ती है जो कि कुछ सालों से लगातार हो रही बंपर हार्वेस्ट का नतीजा था जब फार्मर्स और इंडस्ट्रियल वर्कर्स खुद को एक पॉलिटिकल पार्टी में ऑर्गेनाइज करने का प्रयास करते हैं तो पुलिस उनका कठोरता के साथ दमन करती है इस तरह फार्मर्स और वर्कर्स के साथ आमी और राइट धीरे-धीरे पार्लियामेंट के प्रति हॉस्टाइल्स जिसको मजबूती देने का काम 1929 का ग्रेट डिप्रेशन करता है द वर्ल्ड इकोनॉमिक क्राइसिस 1929 में शुरू हुई वर्ल्ड इकोनॉमिक क्राइसिस ने जापान को काफी प्रभावित किया था एक्सपोर्ट्स में भारी गिरावट दर्ज
की गई थी बाकी देशों ने जापानीज गुड्स पर टैरिफ इंट्रोड्यूस या रेज कर दिए थे सबसे ज्यादा असर रॉ सिल्क के एक्सपोर्ट पर हुआ था जो कि ज्यादातर यूएसए जाता था लेकिन वॉल स्ट्रीट क्रैश के बाद इस तरह की लग्जरीज का समय नहीं था और अमेरिकंस ने रॉ सिल्क के इंपोर्ट्स को ना के बराबर कर दिया था जिस वजह से 1932 तक इसका प्राइस 1923 के मुकाबले 1/5 से भी कम हो गया यह जपनीज फार्मर्स के लिए एक और झटका था क्योंकि आधे से ज्यादा फार्मर्स रॉ सिल्क और राइस के प्रोडक्शन पर ही निर्भर करते
थे जापान में गरीबी बढ़ने लगती है स्पेशली नॉर्थ रीजन में जिसके लिए फैक्ट्री वर्कर्स और फार्मर्स गवर्नमेंट और बिग बिजनेसेस को ब्लेम करते हैं आमी के ज्यादातर रिक्रूट्स भी फार्मर्स ही थे इस वजह से पूरी रैंक एंड फाइल के साथ-साथ ऑफिसर क्लास भी वीक पार्लियामेंट्री गवर्नमेंट के विरोध में खड़ी हो जाती है बहुत से ऑफिसर्स जो फैश जम से काफी प्रभावित थे लंबे समय से पावर सीज करने और स्ट्रांग नेशनलिस्ट गवर्नमेंट इंट्रोड्यूस करने की प्लानिंग कर रहे थे और उन्हें यह मौका 1931 में मंचूरिया में पैदा हुई सिचुएशन के दौरान मिलता है द सिचुएशन इन
मंचूरिया मंचूरिया 30 मिलियन की पॉपुलेशन वाला चाइना का एक बड़ा प्रोविंस था जहां जापान के वैल्युएबल इन्वेस्टमेंट्स और ट्रेड इंटरेस्ट थे लेकिन 1931 में चाइनीज यहां से जापानीज ट्रेड और बिजनेस को बाहर करने की कोशिश कर रहे थे जो कि डिप्रेशन की मार झेल रही जापानीज इकॉनमी के लिए एक गहरा झटका साबित हो सकता था अपने इकोनॉमिक एडवांटेजेस को प्रिजर्व करने के लिए जापान की आर्मी यूनिट्स ने सितंबर 1931 में मंचूरिया पर हमला करते हुए उसे ऑक्यूपाइड की परमिशन लेना भी जरूरी नहीं समझा जब जापान के प्राइम मिनिस्टर इनुका ने इस एक्सट्रीमिस्म की आलोचना की
तो मई 1932 में आर्मी ऑफिसर्स के एक ग्रुप द्वारा उनकी हत्या कर दी गई इसके बाद उनके सक्सेसर ने आर्मी के एक्शंस को सपोर्ट करने में ही अपनी भलाई समझी और अगले 13 सालों तक आमी ने ही जापान को कंट्रोल किया कंक्लूजन इस तरह जापान में मिलिटरी जम का राइज हुआ और फिर यहां भी इटली और जर्मनी जैसे मेथड्स को अडॉप्ट किया गया जिसमें कम्युनिस्ट का सप्रे विरोधियों की हत्या करना एजुकेशन पर टाइट कंट्रोल एस्टेब्लिश करना आर्म मेंट्स का बिल्ड अप आदि शामिल था इस दौरान जपान अग्रेसिव फॉरेन पॉलिसी भी अडॉप्ट करता है जिसका एशिया
में टेरिटरी को कैप्चर करना था जो कि जापानीज एक्सपोर्ट्स के लिए मार्केट का काम कर सकती थी इसी एम को पूरा करने के लिए जापान 1937 में चाइना पर अटैक करता है और सेकंड वर्ल्ड वॉर में भी पार्टिसिपेट करता है हाउ ड द वर्ल्ड वर टू स्टार्ट तारीख 31 अगस्त 1939 जगह जर्मन पोलिश बॉर्डर पर लोकेटेड जर्मन प्रोविंस वेस्ट अपर सलीसिया अ धेरे की आड़ में कुछ नासी पोलिश यूनिफॉर्म्स पहनकर ग्ला विट रेडियो स्टेशन को सीज कर लेते हैं और एक एंटी जर्मन मैसेज ब्रॉडकास्ट करते हैं इतिहास में यह इवेंट ग्ला विट्स इंसिडेंट नाम से
दर्ज हुआ और यह वर्ल्ड वॉर टू का इमीडिएट फ्लैश पॉइंट बना यह एक फॉल्स फ्लैग था यानी एक वेल प्लान और डिजाइंड इवेंट जिसके तहत नाज ने यह दिखाया कि जर्मन टेरिटरी पर अटैक पोलिश फोर्सेस ने किया था यह हिटलर के दर्ज प्रोपेगेंडा में से एक था जिन्हें नाचीज ने पोलैंड इनवेजन को जस्टिफाई करने के लिए डिजाइन किया था इस डिजाइंड अटैक की आड़ में अगले ही दिन यानी 1 सितंबर 1939 को जर्मन ने पोलैंड को इवेडर दिया और 3 सितंबर को फ्रांस और ब्रिटेन ने पोलैंड के सपोर्ट में जर्मनी पर वॉर डिक्लेयर कर दिया
देखते ही देखते यह ग्लोबल वॉर में तब्दील हो गया और आज हम इसे वर्ल्ड वॉर टू के नाम से जानते हैं यह वीडियो इस वर्ल्ड व टू के इतिहास और उसके कारणों पर है आज हम जानेंगे कि वह कौन से कारण थे जिन्होंने इस भयावह विश्व युद्ध को जन्म दिया जनरली यह माना जाता है कि हिटलर नाजीवाद और जर्मनी ही वर्ल्ड वॉर टू के लिए रिस्पांसिबल थे यह काफी हद तक सही भी है लेकिन यह पूर्ण सत्य नहीं है नाजीवाद और फासीवाद यानी नाजिम और फैश जम के जन्म के पीछे कई ऐसे फैक्टर्स हैं जिनकी
चर्चा करने के बाद आध हम पूर्ण सत्य पर पहुंच पाएंगे चलिए शुरुआत करते हैं वर्ल्ड वॉर टू के संक्षिप्त इतिहास से द स्टोरी ऑफ वॉर दोस्तों जैसा कि हमने पहले देखा जर्मनी के पोलिश इनवेजन के बाद फ्रांस और ब्रिटेन ने उस पर वॉर डिक्लेयर कर दिया और वर्ल्ड वॉर टू का जन्म हुआ देखते ही देखते यूरोप में शुरू हुआ यह कॉन्फ्लेट ग्लोबल वॉर बन गया जर्मनी इटली जापान और कुछ छोटे देशों ने मिलकर ब्रिटेन लेड एलाइड पावर्स के खिलाफ एक्सेस फ्रंट बनाया और अर्ली 1941 तक उन्होंने मैसिव असर्ट्स कर पूरे कॉन्टिनेंटल यूरोप नॉर्थ अफ्रीका और
ईस्ट अफ्रीका तक अपना दबदबा बढ़ाया मिड 1940 में जर्मनी ने फ्रांस को कैप्चर कर एलाइज को सबसे बड़ा सेटबैक दिया जपान ने वॉर को 27 सितंबर 1941 को जॉइन किया और यह वॉर एशिया पहुंच गया खैर 2 जून 1941 को जर्मनी ने सोवियत को इन्वेद कर लार्जेस्ट लैंड थिएटर यानी ईस्टर्न फ्रंट को शुरू किया जो सबसे बड़ी भूल थी एशिया पैसिफिक में भी तेजी से आगे बढ़ रहे जपान ने पर्ल हार्बर पर अटैक कर भूल कर दी सोवियत इनवेजन और पर्ल हार्बर के चलते वॉर में सोवियत और अमेरिकन एंट्री हुई जिसने पूरा गेम बदल दिया
जून 1942 के बैटल ऑफ मिडवे में जापान और फिर सेकंड फरवरी 1940 को बैटल ऑफ स्टालिन ग्राड में सोवियत के हाथों जर्मन की हार से एक्सेस पावर्स का डाउनफॉल शुरू हुआ एलाइड पावर्स ने जर्मन ऑक्यूपाइड फ्रांस और इटली को कैप्चर कर लिया और पैसिफिक में जापान भी पीछे हटने में मजबूर हो गया इटली में मुसोलिनी को मार दिया गया अप्रैल 1945 को एडोल्फ हिटलर के सुसाइड की खबर आई और जर्मनी ने अनकंडीशनली सरेंडर कर दिया लेकिन जापान गिव अप नहीं कर रहा था इसलिए अमेरिका ने उस पर न्यूक्लियर अटैक्स किए और मंचूरिया में सोवियत इनवेजन
शुरू हुआ जापान के पास कोई रास्ता नहीं बचा और उसने भी सेकंड सितंबर 1945 को सरेंडर कर दिया यह थी एक ब्रीफ कहानी वर्ल्ड वॉर टू की अब सवाल यह है कि लाखों लोगों को मारने वाला यह भयावह विश्व युद्ध आखिर हुआ क्यों जनरली वर्ल्ड वॉर ट के लिए नाजी और हिटलर की सनक को जिम्मेदार बताया जाता है जो सच भी है क्योंकि हिटलर जिस विचारधारा का प्रोडक्ट था उसका नतीजा भयानक ही होना था लेकिन हिटलर का राइज खुद में मिस्टीरियस है जिसके जिम्मेदार कई फैक्टर्स हैं इंक्लूडिंग एलाइड पावर्स देम सेल्स इसके अलावा उस दौर
के कई फैक्टर्स और इवेंट्स ने भी इस वॉर को [संगीत] इनविटेशन इनवेजन इस वॉर के फ्लैश पॉइंट्स बने लेकिन इसके बीज लगभग 20 साल पहले बोए गए तारीख 28 जून 1919 जगह पेरिस में लोकेटेड पैलेस ऑफ वसाय वर्ल्ड वॉर वन खत्म हो चुका था और पैलेस ऑफ वसाय में बिग फोर यानी वर्ल्ड वॉर वन के चार मेजर विक्टर नेशंस यूके फ्रांस इटली और यूएसए ने एक पीस ट्रीटी साइन की वैसे तो इसे पीस ट्रीटी कहा गया लेकिन असल में इसका मकसद जर्मनी की किस्मत और भविष्य को निर्धारित करना था विक्टर्स ने वर्ल्ड वॉर वन का
सारा ब्लेम जर्मनी पर थोप दिया जर्मन के पास कोई ऑप्शन नहीं था उन्होंने इस गिल्ट को एक्सेप्ट किया और वॉर का मुआवजा भरने के लिए तैयार हो गए लॉस ऑफ टेरिटरी डी मिलिटराइजेशन ऑफ राइनलैंड सीडिंग ऑफ कोल पेमेंट्स टू फ्रांस एंड लिमिट्स ऑन मिलिट्री एक्सपेंशन इस ट्रीटी के तहत जर्मनी के लिए पनिशमेंट्स थे सबसे ज्यादा हार्श डिमांड्स फ्रांस के थे इसके दो कारण थे पहला यह कि फ्रांस जर्मनी का इमीडिएट नेबर था और जर्मनी का राइज उसके लिए एसिस्टेंसिया और वह चाहता था कि जर्मनी उसके डेट्स के लिए पैसे भरे सिक्योरिटी थ्रेट को कम करने
के लिए फ्रांस और जर्मनी के बॉर्डर पर लोकेटेड राइनलैंड से जर्मन मिलिट्री को रिमूव किया गया और राइनलैंड एक फिजिकल सिक्योरिटी बैरियर बना अपनी इकॉनमी को स्टेबलाइज करने के लिए फ्रांस ने जर्मनी से कैश और कोल की डिमांड की फ्रांस ने प्रॉस्परस रूअर वैली के कोल्स के सप्लाय की डिमांड भी की फ्रेंच डिमांड इतनी ज्यादा थी कि यह जर्मन के लिए पे कर पाना इंपॉसिबल था यह मुआवजा इतना ज्यादा था कि इसका फाइनल पेमेंट 92 सालों बाद जर्मन ने अक्टूबर 2010 में किया वॉर के मैसिव मुआवजे को पे करने के लिए वामर रिपब्लिक ने ट्रिलियंस
ऑफ जर्मन करेंसी प्रिंट किए इस फ्लड इकोनॉमिक पॉलिसी के चलते जर्मनी में हाइपर इंफ्लेशन हो गया और महंगाई अपने चरम पर पहुंच गई इसके अलावा एक और मुद्दा यहां जरूरी है ट्रीटी ऑफ एसआई ने ऑस्ट्रो जर्मन यूनिफिकेशन को भी प्रोहिबिट कर दिया था जबकि लार्ज मेजॉरिटी ऑफ ऑस्ट्रियंस इस आइडिया को सपोर्ट करते थे यह वह दौर था जब ऑस्ट्रियंस खुद को जर्मन मानते थे कुल मिलाकर अपने कल्चर और हिस्ट्री पर प्राउड जर्मन के लिए ट्रीटी ऑफ वसाय एक इंसल्ट थी जिसने पैसों के साथ जर्मन का प्राइड भी छीन लिया इन हार्श पनिशमेंट्स और मुआवजा कीी
बढ़ने लगी और धीरे-धीरे यह आउटरेज एक एक्सट्रीम अल्ट्रा नेशनलिज्म की लहर को जन्म देता है जिसकी चर्चा हम आगे करेंगे अब बात करते हैं द ग्रेट डिप्रेशन ऑफ 1929 की जिसने ट्रीटी ऑफ वसाई द्वारा क्रिएटेडॉक्युमेंट्सफ्रैगमेंट 199 अक्टूबर 1929 में वॉल स्ट्रीट के स्टॉक मार्केट्स क्रैश कर गए और द ग्रेट डिप्रेशन का जन्म हुआ लोगों को नौकरी से निकाल दिया गया लाखों लोग बेघर होने लगे और बैंक्स की सेविंग्स भी डिस्ट्रॉय हो गई अमेरिका में लगभग 25 पर वर्क फोर्सेस जॉबल हो गई थी कॉलोनियलिज्म और इंपीरियल जम के इस दौर में पूरी दुनिया आसपास में इंटरकनेक्टेड
थी इसलिए एक देश की इकोनॉमिक क्राइसिस बाकी देशों को भी सीवियरली इंपैक्ट करती थी इसलिए अमेरिका में ओरिजनेट हुई यह क्राइसिस जर्मनी के लिए भी अभिशाप थी इसके अलावा जर्मनी व्यवसाय के तहत अपने कमिटमेंट्स के लिए अमेरिकन बैंक से लॉन्ग टर्म लोंस ले रहा था लेकिन डिप्रेशन के चलते अमेरिकन बैंक्स जर्मनी को यह लोंस शॉर्ट नोटिस पर रिपे करने के लिए फोर्स करने लगे और तो और 1924 में डोज प्लान के तहत दिए गए यह लोंस जर्मन इंडस्ट्रीज को भी मदद कर रहे थे लेकिन इनके बिना कई जर्मन इंडस्ट्रीज कलैक्स कर गई इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन आधे
से कम हो गया इसका सबसे ओबवियस आउटकम था लार्ज स्केल अनइंप्लॉयमेंट 1933 में जब हिटलर पावर में आया तब 33 पर जर्मन अनइंप्लॉयड थे और 1930 से 1933 के बीच बेरोजगारों की संख्या 20 लाख से बढ़कर 61 लाख हो गई इस समस्या के समाधान के लिए वाई मा पब्लिक ने गवर्नमेंट एक्सपेंडिचर को बढ़ा दिया और अनइंप्लॉयमेंट इंश्योरेंस और बाकी फ्री बीज की शुरुआत हुई इसने इकोनॉमिक क्राइसिस को और खराब किया विक्टर्स द्वारा जर्मनी इटली और जापान के साथ हुए ट्रीटमेंट्स और ग्रेट डिप्रेशन जैसी इकोनॉमिक क्राइसिस का एक क्लियर पॉलिटिकल इंप्लीकेशन था जो वर्ल्ड वॉर टू
का सबसे इंपॉर्टेंट कारण बना यह कारण थे फसिस्म और नाजिम का राइज राइज ऑफ फैसिस एंड नाजिम दोस्तों इन समस्याओं के चलते यूरोप में टोटलिटेरियन टेंडेंसीज और डिक्टेटरशिप्स का उदय हुआ एक्सट्रीमिस्ट आइडियाज लोगों को पसंद आने लगे और अल्ट्रा नेशनलिस्ट मिलिटर और टोटलिटेरियन आइडियो जीी अपने पैर पसारने लगी इटली में इसका नाम था फासीवाद और जर्मनी में इसे नाजीवाद के नाम से जाना गया इन आइडियोस ने डेमोक्रेसी के खिलाफ मैसिव प्रोपेगेंडा चलाई और उसे जड़ से उखाड़ फेंकने की बात की इटालियंस भी ट्रीटी ऑफ वसाई से नाराज थे क्योंकि यूके फ्रांस और यूएस ने इटली
को वर्ल्ड वॉर वन के बाद इग्नोर कर दिया था पुराने सीक्रेट नेगोशिएशंस में एलाइड पावर्स द्वारा इटली को प्रॉमिस किए गए लैंड्स नहीं मिले ऊपर से इटली ह्यूज इकोनॉमिक क्राइसिस और डेट्स में डूबा हुआ था और मैसिव अनइंप्लॉयमेंट और अनरेस्ट फेस कर रहा था इसलिए वहां कई पॉलिटिकल अनरेस्ट हुए और 1922 में बेनिटो मुसली ने दुनिया की पहली फासीवादी डिक्टेटरशिप को एस्टेब्लिश किया पैलेस ऑफ व्यवसाय के नेगोशिएशंस ने जर्मनी में भी ऐसा माहौल बनाया जो हिटलर के फासीवाद यानी नाजीवाद का स्वागत करने के लिए तैयार था जैसे ही हिटलर ने अपने फायरी भाषण देने शुरू
किए व्यवसाय से भड़की हुई जर्मन जनता उसे अपना मसीहा मान बैठी ऊपर से द ग्रेट डिप्रेशन के दौर में वाई मर रिपब्लिक की फ्लड इकोनॉमिक पॉलिसीज के चलते भी ज जमस का डेमोक्रेसी और वाइमर रिपब्लिक पर फेथ खत्म हो गया था हिटलर फासीवाद में रेसिजम को मिक्स कर नाजीवाद का प्रचार करने लगा अपने पर्सनालिटी कल्ट और भाषणों के चलते पहले वह जर्मनी का चांसलर बना और बाद में डेमोक्रेसी को डिस्ट्रॉय कर उसने खुद को फर डिक्लेयर कर दिया उसने वादा किया कि वह वरसाई ट्रीटी को नहीं मानेगा और जर्मनी की वेल्थ प्रोस्पेरिटी और ग्लोरी को
रिस्टोर करेगा जर्मन को सुपीरियर रेस बताते हुए उसने जर्मनी को एक्सपेंड कर लिविंग स्पेस के आइडिया को प्रमोट किया और फिर पोलैंड और चेकोस्लोवाकिया को इवेडर जपनीज भी वेस्टर्न यूरोप और वसाई कॉन्फ्रेंस से नाराज थे उन्होंने वसाई में पार्टिसिपेट तो किया लेकिन उसकी डिमांड्स को कोई एक्सेप्टेंस नहीं मिली इसके अलावा ग्रेट डिप्रेशन के चलते जपनीज इकोनॉमिक सिचुएशन भी सीरियस क्राइसिस फेस कर रही थी और वहां भी रेडिकल एलिमेंट्स फ्लरिज करने लगे जपनीज मिल में घुसकर इन रेडिकल एलिमेंट्स ने पूरे एशिया को कांकर करने की बात की इसीलिए उन्होंने पहले मंचूरिया और फिर बाकी चाइना को
एनेक्स किया चलिए बात करते हैं लीग ऑफ नेशंस और उसके वर्ल्ड वॉर टू कनेक्शंस की फेलियर ऑफ द लीग ऑफ नेशंस दोस्तों वर्ल्ड वॉर ट का अगला कारण था लीग ऑफ नेशंस का फेलियर 1919 में अस्तित्व में आए लीग ऑफ नेशंस को यूनाइटेड नेशंस का प्रेडिसेसर माना जाता है उम्मीद थी कि लीग दुनिया में पीस और शांति के लिए रूल ऑफ लॉ एस्टेब्लिश करेगी लेकिन ऐसा हुआ नहीं और इसका सबसे बड़ा कारण यह था कि इस बॉडी को ज्यादा कंट्रीज ने जॉइन ही नहीं किया और तो और नाजी जर्मनी जैसे अग्रेसर कंट्रीज के खिलाफ एक्शन
लेने के लिए भी यह बॉडी प्रिपेयर्ड नहीं थी यूएन जैसी पीसकीपिंग फोर्स भी लीग के पास नहीं थी इसलिए जब हिटलर ने 1936 में राइनलैंड को री मिलिटराइज्ड कोई एक्शन नहीं ले सकी इसके अलावा वह ना तो इटली के इथियोपिया इनवेजन के खिलाफ कुछ कर सकी और ना ही जपान के मंचूरियन इनवेजन के खिलाफ और तो और लीग के इन एक्शंस ने इन देशों के मोराल को और बढ़ा दिया और वर्ल्ड वॉर ट को रोक पाना असंभव हो गया इन सबके अलावा एक और वजह थी जिसके चलते वर्ल्ड वॉर टू का टल पाना नामुमकिन हो
गया यह कारण था अलाइड पावर्स का पॉलिसी ऑफ अपीज मेंट पॉलिसी ऑफ अपीज मेंट दोस्तों हिटलर ओपनली ट्रीटी ऑफ वसाय को डिनाउंस करने लगा और जर्मन मिलिट्री को पावरफुल बनाने लगा लेकिन ब्रिटेन और फ्रांस हिटलर को सोवियत लेड कम्युनिज्म के खिलाफ यूज करना चाहते थे और इसीलिए उन्होंने शुरुआती दौर में हिटलर के खिलाफ कोई एक्शन नहीं लिया अपने नैरो इंटरेस्ट के चलते एलाइड पावर्स यूनाइट नहीं हुए और यही सबसे बड़ी ट्रेजेडी थी अगर यह देश शुरुआत से ही काउंटर मेजर्स लेते तो हिटलर कभी भी इतना पावरफुल नहीं बनता और वर्ल्ड वॉर टू को रोका जा
सकता था अपीज मेंट यानी तुष्टीकरण का एक उदाहरण 1938 का म्यूनिख एग्रीमेंट था इस एग्रीमेंट के तहत ब्रिटेन और फ्रांस ने जर्मनी के चेकोस्लोवाकिया के जर्मन डोमिनेटेड इलाकों को अपने कब्जे में लाने की पूरी छूट दे दी जर्मनी ने एग्री किया कि वह चेकोस्लोवाकिया के बाकी के इलाकों और किसी और देश पर अपनी नज नहीं डालेगा लेकिन ऐसा हुआ नहीं मार्च 1939 में नाजी जर्मनी ने अपना वादा तोड़ दिया और बाकी के चेकोस्लोवाकिया को भी कैप्चर कर लिया फिर भी ना तो ब्रिटेन और ना ही फ्रांस ने कोई एक्शन लिया तुष्टीकरण की यह राजनीति सिर्फ
ब्रिटेन और फ्रांस ने नहीं की बल्कि हिटलर के प्रमुख आइडियो विरोधी सोवियत संघ ने भी की पोलैंड इनवेजन के एक हफ्ते पहले ही सोवियत संघ और नाजी ने मॉलोटोव ट्रॉप पैक्ट साइन किया इस पैक्ट ने नाज की हिम्मत को और बढ़ावा दिया ऑफिशल और पब्लिकली तो यह पैक्ट एक नॉन अग्रेशन का एग्रीमेंट था लेकिन न्यूरेमबर्ग ट्रायल्स में रिवील हुआ कि उसके कई सीक्रेट प्रोटोकॉल्स भी थे यह प्रोटोकॉल्स ही पहले जर्मनी के पोलिश इनवेजन का आधार बने और फिर 17 सितंबर को हुए सोवियत इनवेजन ऑफ पोलैंड का वैसे आइडियो जिकली तो नाजी और सोवियत संघ एक
दूसरे के धुर विरोधी थे लेकिन जिओ पॉलिटिकल गेस और ब्रिटेन लेड फैक्शंस के प्रति म्यूचुअल हेट्रिक के चलते इन दोनों ने सीक्रेट प्रोटोकॉल्स के तहत ईस्टर्न यूरोप में अपने स्फियर्स ऑफ इन्फ्लुएंस को लीनिया था ऊपर से सोवियत का ब्रिटेन और फ्रांस के साथ कोई कलेक्टिव सिक्योरिटी एग्रीमेंट भी नहीं हो पाया और वह हिटलर के एक्सपेंशनिस्ट पॉलिसीज के चलते थ्रेटें फील कर रहा था इसलिए 1939 में सोवियत ने अपनी स्ट्रेटेजी में बदलाव कर ट हिटलर से ही दोस्ती करनी चाहि फिर क्या था पोलैंड सोवियत और नाजी के बीच बांट दिया गया पश्चिमी पोलैंड जमन कंट्रोल में
और पूर्वी पोलैंड सोवियत के कंट्रोल में यही नहीं सोवियत ने तो 22 जून 1941 यानी लगभग 2 साल तक खुद को वॉर में इवॉल्व ही नहीं किया और हिटलर के एक्सपेंशनिस्ट एजेंडा के खिलाफ कोई एक्शन नहीं लिया बल्कि खुद के टेरिटरीज को सेफगार्ड करने के लिए वह भी फिनलैंड और बाकी के ईस्टर्न यूरोप के देशों को इन्वेद करता रहा पर नाजीवाद और हिटलर की सनक का शिकार उसे भी होना ही था 22 जून 1941 को हिटलर ने ईस्टर्न फ्रंट को ओपन करते हुए सोवियत को इन्वेद किया और तब जाकर सोवियत की वॉर में फॉर्मल एंट्री
हुई वैसे यह हिटलर की बिगेस्ट मिस्टेक साबित हुई लेकिन सोवियत के अपीज मेंट के चलते डेव पेशन रोक पाना मुश्किल था अगर ब्रिटेन फ्रांस और सोवियत पहले ही हिटलर का अपीज मेंट रोक देते और साथ आ जाते तो शायद हिटलर इनवेजंस करने की सोच भी नहीं पाता और शायद इतिहास का यह डेडलिएस्ट मिलिट्री कॉन्फ्लेट रोका जा सकता था इस वॉर में लगभग सात से 8 करोड़ लोग मारे गए जिनमें लगभग 60 लाख जूज थे और 5 करोड़ बाकी सिविलियंस पूरा यूरोप इकोनॉमिक क्राइसिस में चला गया जिससे रिकवर करने के लिए वर्ल्ड बैंक जैसे इंस्टिट्यूशन बनाए
गए तो दोस्तों यह थे कुछ कारण जिनके तहत हमने वर्ल्ड वॉर ट की वो पिक्चर प्रस्तुत करने की कोशिश की जो बताती है कि कैसे वर्ल्ड वॉर 2 के लिए एक नहीं बल्कि सीरीज ऑफ इवेंट्स रिस्पांसिबल थे दोस्तों सेकंड वर्ल्ड वॉर अपने साथ ऐसा डिस्ट्रक्शन डेव पेशन और लॉस ऑफ लाइफ लेकर आया जैसा पहले कभी नहीं देखा गया था दुनिया ने बड़े-बड़े युद्ध तो पहले भी भी कई देखे थे लेकिन सेकंड वर्ल्ड वॉर में साइंटिफिक और टेक्नोलॉजिकल डेवलपमेंट का पूरा यूटिलाइजेशन किया गया था और बहुत से वेपंस ऑफ मास डिस्ट्रक्शन को इसमें यूज किया गया
था जिससे डेव पेशन का मैग्निटिया लोग मारे गए थे और 21 मिलियन लोग बेघर हो गए थे वर्ल्ड को एक बार फिर से पीस की तलाश थी जो डिस्ट्रक्शन को रोक सके जैसा कि फर्स्ट वर्ल्ड वॉर के बाद लीग ऑफ नेशंस ने कोशिश की थी लेकिन सफल नहीं रहा था सेकंड वर्ल्ड वॉर के समय तो पीस प्रिजर्व करना और वॉर को रोकने का मैकेनिज्म डिवेलप करना और ज्यादा जरूरी हो जाता है यही पीस की जरूरत यूनाइटेड नेशंस यानी यूएन की फॉर्मेशन में रिजल्ट करती है और यह फॉर्मेशन एक इवोल्यूशनरी प्रोसेस था जो वॉर के बीच
में ही शुरू हो जाता है और वॉर एंड होने के तुरंत बाद मैच्योर होता है और यह यूएन आने वाले समय में इंटरनेशनल पीस और स्टेबिलिटी को मेंटेन करने में अपने प्रेडिसेसर लीग ऑफ नेशन से ज्यादा सफल साबित होता है आज हम यूएन के एवोल्यूशन की हिस्ट्री के साथ-साथ उसके स्ट्रक्चर और परफॉर्मेंस की भी बात करेंगे आइए शुरुआत यूएनओ के एवोल्यूशन से ही करते हैं द एवोल्यूशन ऑफ द यूएनओ यूएनओ की रूट्स शुरू होती हैं अगस्ट 1941 के अटलांटिक चार्टर से अटलांटिक चार्टर को यूएस प्रेसिडेंट रूजवेल्ट और ब्रिटिश पीएम चर्चिल द्वारा अटलांटिक ओशन में एक
बैटलशिप पर साइन किया गया था जिसमें फ्यूचर वर्ल्ड के लिए कुछ कॉमन प्रिंसिपल्स को डिक्लेयर किया गया था उदाहरण के तौर पर चार्टर में कहा गया था कि भविष्य में बिना लोगों की सहमति के कोई भी टेरिटोरियल चेंजेज नहीं किए जाएंगे साथ ही कोई भी देश अग्रेशन की पॉलिसी को फॉलो नहीं कर सकेगा इसके अलावा यह भी कहा गया कि सभी लोगों को अपनी खुद की गवर्नमेंट चूज और फॉर्म करने का पूरा अधिकार रहेगा चार्टर यह भी डिक्लेयर करता है कि नाजी जर्मनी और फैसिस इटली की डिफीट के बाद सभी स्टेट्स फ्रीडम एंजॉय कर सकेंगे
साथ ही सी रूट्स किसी एक देश की मोनोपोली नहीं रहेंगे और लेबरर्स की इकोनॉमिक कंडीशन को इंप्रूव किया जाएगा इसके बाद 1 जनवरी 1942 को यूनाइटेड नेशंस की फॉर्मेशन के लिए डिक्लेरेशन जारी की जाती है यूएस यूके यूएसएसआर और चाइना के अलावा 26 नेशंस के रिप्रेजेंटेटिव्स इस डिक्लेरेशन को साइन करते हैं यह सभी प्लेज करते हैं कि अपने कॉमन एनिमी को हराने के लिए एक दूसरे के साथ पूरा कोऑपरेट करेंगे साथ ही एक्सेस पावर्स के साथ कोई भी सेपरेट टॉक्स या पीस ट्रीटी साइन नहीं करेंगे 7थ अक्टूबर 1944 को डंट ओक्स कॉन्फ्रेंस ऑर्गेनाइज की जाती
है जिसे यूएस यूके यूएसएसआर और चाइना द्वारा अटेंड किया जाता है और यहां यह चार पावर्स मिलकर यूएस गवर्नमेंट द्वारा प्रपोज प्लान को एग्जामिन करते हैं इस प्लान में सिक्योरिटी काउंसिल के क्रिएशन की बात कही गई थी इसे यूएन के बाकी मेंबर स्टेट्स में भी सर्कुलेट कर दिया जाता है इसके बाद 25 अप्रैल 1945 को हुई सैन फ्रांसिस्को कॉन्फ्रेंस में 51 देश यूएन चार्टर पर साइन करते हैं 25 जून 1945 को चार्टर फॉर्मली अडॉप्ट किया जाता है और यह यूएन के एम्स और ऑब्जेक्टिव्स को डिक्लेयर करता है आइए इसके आधार पर डिसाइडेड यूएन के पर्पस
को डिटेल में जानते हैं द पर्पस ऑफ द यूएन यूएन चार्टर का आर्टिकल वन इसके एम्स को डिक्लेयर करते हुए कहता है कि यूएन का एम वर्ल्ड में पीस और सिक्योरिटी को मेंटेन करना होगा इसके साथ ही यह पूरे विश्व में इकोनॉमिक सोशल एजुकेशनल साइंटिफिक और कल्चरल प्रोग्रेस को इनकरेज करते हुए कॉन्फ्लेट के कारणों को भी रिमूव करने का काम करेगा यूएन का एक एम सभी इंडिविजुअल ह्यूमन बीइंग्स के राइट्स और सभी नेशंस के राइट्स की रक्षा करना भी होगा साथ ही यह नेशंस के बीच फ्रेंडली रिलेशंस डिवेलप करने का काम करेगा और यूनिवर्सल पीस
के कांसेप्ट को स्ट्रेंथ करने के लिए एप्रोप्रियेट असली सिक्योरिटी काउंसिल सेक्रेटेरिएट इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस ट्रस्टीशिप काउंसिल और इकोनॉमिक एंड सोशल काउंसिल आइए एकएक करके इनको डिटेल में जानते हैं द जनरल असेंबली जनरल असेंबली यूएन का एक इंपॉर्टेंट ऑर्गन है जहां यूएन की सभी एक्टिविटीज को डिस्कस किया जाता है हर एक मेंबर नेशन असेंबली में अपने पांच रिप्रेजेंटेटिव्स भेज सकता है लेकिन हर नेशन के पास वोट सिर्फ एक ही होता है जनरल असेंबली साल में एक बार मिलती है और न महीने तक इसका सेशन चलता है हालांकि किसी क्राइसिस की सिचुएशन में मेंबर्स द्वारा या
फिर सिक्योरिटी काउंसिल द्वारा इसका स्पेशल सेशन भी बुलाया जा सकता है इसका काम इंटरनेशनल प्रॉब्लम्स को डिस्कस करना और उन पर डिसीजंस लेने का है इसके साथ ही यह यूएन बजट को भी कंसीडर करती है और सिक्योरिटी काउंसिल के मेंबर्स भी इसी के द्वारा इलेक्ट किए जाते हैं असेंबली के द्वारा और बहुत सी यूएन बॉडीज के वर्क को सुपरवाइज भी किया जाता है डिसीजंस के लिए यूनानिमिटी ही काफी होती है हालांकि कुछ ऐसे इश्यूज जो कि असेंबली को लगता है कि बहुत इंपॉर्टेंट है उनके लिए टू थर्ड्स मेजोरिटी चाहिए होती है इसमें नए मेंबर्स को
एडमिट करना या एसिस्टिंग मेंबर्स को एक्सपेल करना और पीस मेंटेन करने के लिए लिए जाने वाले एक्शंस जैसे डिसीजन शामिल हैं द सिक्योरिटी काउंसिल सिक्योरिटी काउंसिल के मेंबर्स को दो कैटेगरी में डिवाइड किया गया है परमानेंट मेंबर्स और नॉन परमानेंट मेंबर्स 1966 तक इसमें फाइव परमानेंट और सिक्स नॉन परमानेंट मेंबर्स हुआ करते थे उसके बाद नॉन परमानेंट मेंबर्स की संख्या को बढ़ाकर 10 कर दिया गया जिससे टोटल मेंबर्स की संख्या अब 15 हो गई है पांच परमानेंट मेंबर्स में यूके यूएसए रशिया फ्रांस और चाइना आते हैं नॉन परम मेंबर्स को जनरल असेंबली द्वारा 2 साल
के टर्म के लिए इलेक्ट किया जाता है सिक्योरिटी काउंसिल यूएन का सबसे इंपॉर्टेंट विंग है क्योंकि इसकी प्रिंसिपल ड्यूटी में इंटरनेशनल पीस और सिक्योरिटी को सेफगार्ड करना आता है यह अपने सेशंस फोर्टनाइटली होल्ड करती है लेकिन जरूरत होने पर इन्हें शॉर्ट इंटरवल्स पर भी किया जा सकता है परमानेंट मेंबर्स के पास वीटो की भी पावर है यानी जरूरत होने पर वह मेजॉरिटी ओपिनियन को रिजेक्ट कर सकते हैं द सेक्रेटेरिएट यह यूएन के ऑफिस स्टाफ की तरह है और इसमें 50000 से भी ज्यादा एंप्लॉयज काम करते हैं इनका काम एडमिनिस्ट्रेटिव वर्क देखना मिनट्स ऑफ मीटिंग्स ट्रांसलेशंस
एंड इंफॉर्मेशन को प्रिपेयर करने का होता है इसकी अध्यक्षता सेक्रेटरी जनरल करता है जिसे सिक्योरिटी काउंसिल की रेकमेंडेड पर असेंबली द्वारा 5 साल के टर्म के लिए पॉइंट किया जाता है सेक्रेटरी जनरल यूएन के मेन स्पोक्स पर्सन की तरह एक्ट करता है और किसी भी सीरियस लगने वाले मैटर की तरफ सिक्योरिटी काउंसिल का ध्यान खींच सकता है द इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस यूएन की जुडिशियस होते हैं जिन्हें नाइन ईयर टर्म्स के लिए असेंबली और सिक्योरिटी काउंसिल द्वारा जॉइंट इलेक्ट किया जाता है कोर्ट का काम इंटरनेशनल डिस्प्यूट्स को सेटल करना है लेकिन
यूएन का कोई भी मेंबर स्टेट इसके जूरिस जिक्स में नहीं आता इसका मतलब कोर्ट के पास किसी तरह का कंपलसरी जूरिस जिक्स नहीं है द ट्रस्टीशिप काउंसिल ट्रस्टीशिप काउंसिल की ड्यूटी अंडर डेवलप्ड कंट्रीज के अफेयर्स को देखने की है हालांकि इसका शुरुआती काम फॉर्मर कॉलोनी में कॉलोनियल एक्सपेंशन को प्रिवेंट करना था काउंसिल अपना चेयरमैन खुद इलेक्ट करती है और हर एक मेंबर के पास एक वोट होता है द इकोनॉमिक एंड सोशल काउंसिल इको सॉक इकोनॉमिक एंड सोशल काउंसिल में 54 मेंबर्स होते हैं जिन्हें असेंबली द्वारा 3 साल के पीरियड के लिए इलेक्ट किया जाता है
इसके बाद काउंसिल खुद एक प्रेसिडेंट और वाइस प्रेसिडेंट को चुनती है काउंसिल मेंबर नेशंस की इकोनॉमिक और सोशल कंडीशंस ह्यूमन राइट सिचुएशन और हेल्थ कंडीशंस को ऑब्जर्व करती है और नेसेसरी रिकमेंडेशंस को असेंबली के सामने रखती है काउंसिल का पर्पस इकोनॉमिक और सोशल वेलफेयर को अशोर करना और लोगों को को ह्यूमन राइट्स के प्रति कॉन्शियस बनाना है काउंसिल के अंदर यूएन की बहुत ही स्पेशलाइज्ड एजेंसीज जैसे कि यूनेस्को आईएमएफ आईएलओ ओ एटस काम करती हैं और इस तरह आज ये यूएन की सबसे ज्यादा एक्टिव ऑर्गन बन चुकी है यह तो बात हो गई यूएन के
स्ट्रक्चर की लेकिन जिस काम के लिए यूएन को फॉर्म किया गया था उसमें इसने कितनी सफलता हासिल की आइए वह जानते हैं यूएन अ सक्सेस ऑ फेलियर वैसे तो यूएन की अब तक की जर्नी मिक्स्ड सक्सेस वाली रही है लेकिन इतना जरूर कहा जा सकता है कि अपने पीसकीपिंग एफर्ट्स में यह लीग ऑफ नेशन से तो ज्यादा ही सफल रही है यूएन की सक्सेस के एक्सटेंट को समझने का सबसे अच्छा तरीका है कुछ ऐसे मेजर डिस्प्यूट्स को डिस्कस करना जहां यूएन इवॉल्व रहा है तो आइए कुछ एग्जांपल्स को देखते हैं ए वेस्ट न्यू गिनी 1946
1946 में यूएन ने डच ईस्ट इंडीज को हॉलैंड से इंडिपेंडेंस दिलाने में मदद की जो इंडोनेशिया बन गया लेकिन वेस्ट न्यू गिनी को लेकर कोई एग्रीमेंट नहीं हो पाया इसे दोनों ही देश क्लेम कर रहे थे 1961 में इसको लेकर फाइट शुरू हो गई यूएन के सेक्रेटरी जनरल यू थान की अपील पर दोनों देशों ने फिर से नेगोशिएशन शुरू की जिसमें तय हुआ कि टेरिट्री को इंडोनेशिया का पार्ट बनना चाहिए ट्रांसफर को यूएन फोर्स द्वारा ऑर्गेनाइज और लीज किया गया इस केस में यूएन ने नेगोशिएशंस को कामयाब बनाने में अहम भूमिका निभाई पलेस्टाइन 1947 पलेस्टाइन
में चल रहे जूज और अरब्स के बीच के डिस्प्यूट को 1947 में यूएन के सामने ले जाया गया था इन्वेस्टिगेशन करने के बाद यूएन ने फैसला दिया था कि पलेस्टाइन को डिवाइड करते हुए जूश स्टेट ऑफ इजराइल को सेटअप किया जाए यह फैसला यूएन के सबसे कंट्रोवर्शियल डिसीजंस में से एक है और इसे मेजॉरिटी ऑफ अरब्स ने नहीं माना था इसके बाद अरब स्टेट्स और इजराइल के बीच हुए सीरीज ऑफ वॉर्स को रोकने में भी यूएन असफल रहा था हां उसने सीज फायर्स अरेंज करने और सुपरवाइजरी फोर्स प्रोवाइड करने का अहम काम जरूर किया था
साथ ही यूएन रिलीफ और वर्क्स एजेंसी ने अरब रिफ्यूजीस की देखभाल करने में भी मदद की द कोरियन वॉर 1950 टू 1953 जून 1950 में जब कम्युनिस्ट नॉर्थ कोरिया ने साउथ कोरिया को इवेट किया तो सिक्योरिटी काउंसिल ने तुरंत ही नॉर्थ कोरिया के एक्शन की आलोचना करते हुए रेजोल्यूशन पास कर दिया और मेंबर स्टेट्स को साउथ कोरिया की मदद करने के लिए भी बोला हालांकि ऐसा करना सिर्फ इसलिए मुमकिन हो पाया था क्योंकि रशियन डेलिगेट्स उस समय सिक्योरिटी काउंसिल में मौजूद नहीं थे वरना वह जरूर इस रेजोल्यूशन को वीटो कर देते 16 देशों के ट्रूप्स
ने इनवेजन को रोकने में मदद की और 38th पैरेलल के अलोंग दोनों कोरियाज के बीच के फ्रंटियर को प्रिजर्व किया द सूज क्राइसिस 1956 1956 में जब इजिप्ट के प्रेसिडेंट नासिर ने अचानक से सीएस कनाल को नेशनलाइज कर दिया तो कनाल में शेयर रखने वाले देश यानी कि ब्रिटेन और फ्रांस ने इसका विरोध किया और अपने इंटरेस्ट की रक्षा के लिए ट्रूप्स भेज दिए इसी के साथ ईस्ट की तरफ से इजराइल ने भी इजिप्ट पर हमला कर दिया इन सभी का असली मकसद प्रेसिडेंट नासिर को को खत्म करना था सिक्योरिटी काउंसिल के रेजोल्यूशन को तो
फ्रांस और ब्रिटेन ने वीटो कर दिया जिसके बाद जनरल असेंबली ने 64 वोट्स की मेजॉरिटी के साथ इनवेजन को कंडेम किया और ट्रूप्स वापस लेने को कहा विरोध में सिर्फ पांच वोट्स ही थे अग्रेसिव नेशंस अपने खिलाफ वालों की बड़ी संख्या देखते हुए विड्रॉल के लिए मान गए बस यही शर्त रखी कि यूएन कनाल को लेकर रीजनेबल सेटलमेंट इंश्योर करें इस तरह यूएन के इंटरवेंशन की वजह से एक बड़ा कॉन्फ्लेट होने से बच गया साइप्रस साइप्रस ने 1964 से ही यूएन को बिजी रखा हुआ है 1963 में यहां ग्रीक्स और टर्क के बीच सिविल वॉर
शुरू हो गया मार्च 1964 में यूएन पीसकीपिंग फोर्स यहां पहुंच गई और पीस को रिस्टोर किया लेकिन यह एक अनजी पीस थी और साइप्रस में 3000 यूएन ट्रूप्स को परमानेंटली तैनात रखना पड़ता है 1974 में साइप्रस में रह रहे ग्रीक्स ने आयरलैंड को ग्रीस के साथ यूनाइट करने की कोशिश की जिसके बाद टक्स ने टर्किश आर्मी के ट्रूप्स की मदद से आयरलैंड की नॉर्थ वाली टेरिटरी को सीज कर लिया इसके बाद व इन एरियाज में से सभी ग्रीक्स को एक्सपेल भी करना चाहते थे यूएन ने इस इनवेजन की आलोचना की लेकिन टर्क को वहां से
हटाने में कामयाबी नहीं मिली लास्ट में यूएन फोर्सेस सीज फायर जरूर अचीव कर लेते हैं और आज भी ग्रीक्स और टर्क के बीच के फ्रंटियर को पुलीस कर रहे हैं यानी कि यह डिस्प्यूट आज भी सॉल्व नहीं हो पाया है इन एग्जांपल्स को देखने के बाद हम कह सकते हैं कि यूएन का परफॉर्मेंस मिलाजुला ही रहा है कुछ डिस्प्यूट्स तो उसने सफलता पूर्वक सॉल्व किए लेकिन कुछ ऐसे भी हैं जिन्हें वह सॉल्व नहीं कर पाया हां इतना जरूर कह सकते हैं कि यूएन काफी हद तक अपने एम्स पूरा करने में सफल रहा है क्योंकि इसने
थर्ड वर्ल्ड वॉर को नहीं होने दिया है इसके अलावा यूएन ने सोशो इकोनॉमिक और ह्यूमैनिटेरियन में बहुत सी उपलब्धियां हासिल की हैं जिसकी वजह से आज दुनिया एक बेहतर जगह बन सकी है यूएन की स्पेशलाइज्ड एजेंसीज जैसे कि डब्ल्यू एओ एफएओ आईएलओ एट्र ने वल्नरेबल पॉपुलेशन के लिए बहुत ज्यादा काम किया है इसी वजह से यूएनओ आज एक सक्सेसफुल इंस्टिट्यूशन कहा जा सकता है कंक्लूजन दोस्तों यूएनओ का फॉर्मेशन लीग ऑफ नेशंस के सक्सेसर के तौर पर हुआ था और हम बिना संकोच के कह सकते हैं कि इसने अपने प्रेडिसेसर से ज्यादा कामयाबी हासिल कर ली
है ना सिर्फ इसने वर्ल्ड पीस के लिए अहम काम किया है बल्कि दुनिया को इकोनॉमिकली और सोशली बेटर बनाने की दिशा में भी आगे बढ़ाया है हां बदलते समय के साथ इस इंस्टिट्यूशन में भी कुछ रिफॉर्म्स की जरूरत है जैसा कि इंडिया जैसे देश कहते आए हैं इसमें भी सबसे ज्यादा अहम है सिक्योरिटी काउंसिल में रिफॉर्म्स होना हम उम्मीद कर कि यूएनओ जल्द ही इन रिफॉर्म्स की तरफ आगे बढ़ेगा और खुद को एक कामयाब और रेलीवेंट इंस्टिट्यूशन के रूप में जारी रखेगा डी कॉलोनाइजेशन दोस्तों क्या आप जानते हैं कि एक समय पर ब्रिटिश साम्राज्य दुनिया
में इतना बड़ा था कि उनके एंपायर में कभी सूर्यास्त होता ही नहीं था ऐसा कहा जाता था कि द सन नेवर सेट्स ऑन द ब्रिटिश एंपायर वैसे तो कॉलोनियलिज्म एंट टाइम से प्रेट था लेकिन आज का डिस्कशन संबंधित है मॉडर्न कॉलोनियलिज्म एरा से जिसकी शुरुआत वेस्टर्न यूरोपियन नेशंस ने 15th सेंचुरी एडी में की इस वीडियो में हम जानेंगे डी कॉलोनाइजेशन की कहानी हम जानेंगे कि वर्ल्ड वॉर व और वर्ल्ड वॉर ट के बाद ऐसा क्या हुआ कि कॉलोनियल पावर्स का सूर्यास्त होने लगा और एक-एक कर कैसे कॉलोनी अपने आप को असर्ट करने लगी और कॉलोनियल
पावर्स की लाख कोशिशों के बावजूद इंडिपेंडेंट हुई हम यह भी डिस्कस करेंगे कि क्या डी कॉलोनाइज होने के बाद न्यूली इंडिपेंडेंट कंट्रीज अपने कॉलोनाइजर से पूरी तरह स्वतंत्र हो पाई या नहीं पर दोस्तों डी कॉलोनाइजेशन की बात करने से पहले एक बार जल्दी से नजर डाल लेते हैं अर्ली 20th सेंचुरी में कॉलोनाइजेशन की स्थिति पर स्टेट ऑफ कॉलोनाइजेशन 15th सेंचुरी में रेनेसांस डिस्कवरी ऑफ न्यू सी रूट्स और स्ट्रंग होने के कारण मेजर यूरोपियन पावर्स कॉलोनी एक्वायर करने की होड़ में लग जाती हैं 15th सेंचुरी में स्पेन पोर्तुगीज ऑनवर्ड ब्रिटेन फ्रांस और डच दुनिया में प्रमुख
कॉलोनाइजर्स थे पर 20th सेंचुरी आते-आते इस लिस्ट में जर्मनी रश और जापान भी जुड़ जाते हैं आइए एक बार जान लेते हैं कि वर्ल्ड वॉर वन और वर्ल्ड वॉर टू के बीच इनकी मेजर कॉलोनी कौन सी थी वर्ल्ड वॉर वन में जर्मनी और ऑटोमन एंपायर की हार के बाद उनकी कॉलोनी और टेरिटरीज लीग ऑफ नेशंस के अंडर आ गई थी क्योंकि लीग ऑफ नेशंस की अपनी कोई सेना नहीं थी इसीलिए इन सारी टेरिटरीज को एलाइड पावर्स ने मैंडेट्स के रूप में आपस में बांट लिया और इनडायरेक्ट रूल करने लगे इससे ग्रेट ब्रिटेन फ्रांस और रशिया
का एंपायर और भी बड़ा हो गया था ग्रेट ब्रिटेन की बात करें तो इंडिया ऑस्ट्रेलिया केन्या उनकी मेजर कॉलोनी में से थी फ्रांस की अल्जीरिया वियतनाम रशिया की सेंट्रल एशियन कंट्रीज जैसे कजाकिस्तान उज्बेकिस्तान पोर्तुगीज बिक और स्पेन की बात करें तो इक्वेटोरियल गिनी जैसे देश उनके इंपॉर्टेंट कॉलोनी थे इनके अलावा 1940 में एशियन कॉन्टिनेंट का सबसे एस्पिरेशनल देश जापान भी पीछे नहीं था वर्ल्ड वॉर ट के टाइम पर जापान अपने टेरिटोरियल एक्सपेंशन के पीक पर था फॉर एग्जांपल वियतनाम इंडोनेशिया मले पेनिंस सिंगापुर म्यानमार और नॉर्थ ईस्ट इंडिया के कुछ पार्ट्स तक जापान का एंपायर फैल
गया था पर वर्ल्ड वॉर 2 में हार के कारण जापान ऑक्यूपाइड कॉलोनी वापस से अपने-अपने ओरिजिनल कॉलोनाइजर्स के हाथ में चली गई यूएसए यूं तो कॉलोनाइजेशन के खिलाफ था पर फिलिपींस और सामोआ जैसे देश यूएसए की कॉलोनी हुआ करती थी ताकि पैसिफिक ओशन में उसकी हिज मनी बरकरार रहे तो दोस्तों यह थी अर्ली 20th सेंचुरी में स्टेट ऑफ कॉलोनाइजेशन अब हम वापस चलते हैं डी कॉलोनाइजेशन के डिस्कशन पर जानते हैं कि डी कॉलोनाइजेशन के कॉसेस क्या थे कॉसेस ऑफ डी कॉलोनाइजेशन दोस्तों डी कॉलोनाइजेशन का पहला कारण था ग्रोइंग नेशनलिज्म वर्ल्ड वॉर ट के पहले केवल
इंडिया वियतनाम और इंडोनेशिया जैसे देशों में ही स्ट्रांग नेशनलिस्ट मूवमेंट्स हुआ करते थे पर वर्ल्ड वॉर ट के बाद दूसरी कॉलोनी भी स्वतंत्रता की मांग करने लगी वे अब रेशल डिस्क्रिमिनेशन और ह्यूमिन बिल्कुल बर्दाश्त करने को तैयार नहीं थी इसमें वर्ल्ड वर टू में लड़े सोल्जर्स और वेस्टर्न एजुकेटेड नेटिव एलीट क्लास का बहुत बड़ा रोल था डी कॉलोनाइजेशन का दूसरा कारण वर्ल्ड वॉर ट से जुड़ा हुआ है वर्ल्ड वॉर व के दौरान ही ब्रिटेन ने इंडिया जैसी कुछ कॉलोनी को सेल्फ रूल प्रॉमिस किया था पर बाद में इंकार कर दिया इसीलिए वर्ल्ड वॉर ट आने
पर बिना किसी कंक्रीट प्रॉमिस के वेस्टर्न एजुकेटेड नेटिव एलीट वॉर एफर्ट्स को सपोर्ट नहीं करना चाहते थे और उधर वर्ल्ड वॉर 2 के बिगिनिंग से ही एक्सेस पावर्स ने एलाइड पावर्स की बुरी हालत कर दी थी एलाइड पावर्स को सोल्जर्स और रिसोर्सेस की भारी कमी होने लगी थी ऐसे में कॉलोनी का पब्लिक ओपिनियन अपने फेवर में करने के लिए यूएसए और ग्रेट ब्रिटेन 1941 का अटलांटिक चार्टर डिक्लेयर करते हैं इस चार्टर के अनुसार पोस्ट वॉर वर्ल्ड में टेरिटोरियल एक्सपेंशन और कॉलोनाइजेशन के लिए कोई जगह नहीं थी आगे चलकर यही चार्टर यूनाइटेड नेशंस के गठन में
इंपॉर्टेंट रोल प्ले करता है डी कलना इजेशन का तीसरा कारण था एक्सटर्नल प्रेशर यूएसए यूएसएसआर कैपिटिस कम्युनिस्ट एक्सट्रीम पर होने के बावजूद डी कॉलोनाइजेशन के स्ट्रांग फेवर में थे एक को नई एक्सपोर्ट मार्केट्स चाहिए थी तो दूसरे को पूरे वर्ल्ड में कम्युनिस्ट आइडियल जीी फैला नहीं थी यह दोनों काम गुलाम देशों में नहीं हो हो सकते थे पर दोस्तों डी कॉलोनाइजेशन का प्रोसेस इतना पीसफुल भी नहीं था वर्ल्ड वॉर ट के खत्म होने के बाद सभी कॉलोनियल पावर्स डी कॉलोनाइजेशन के वादों से मुकने लगी थी ऐसे में कॉलोनी ने अलग-अलग तरह से आजादी का सफर
तय किया कुछ में सिविल वॉर छिड़ गया जैसे कांगो रवांडा इत्यादि तो कुछ में नेगोशिएट इंडिपेंडेंस मिली जैसे इंडिया वहीं कुछ जगह इनकंप्लीट वायलेंट या कॉम्प्लिकेटेड डी कॉलोनाइजेशन हुआ जैसे अल्जीरिया जिंबाब्वे वियतनाम पलेस्टाइन इत्यादि पर इसे अच्छे से समझने के लिए हम अफ्रीका साउथ ईस्ट एशिया और मिडिल ईस्ट रीजन को एक-एक कर देखते हैं चलिए शुरू करते हैं अफ्रीका के डी कॉलोनाइजेशन से डी कॉलोनाइजेशन ऑफ अफ्रीका वर्ल्ड वॉर ट के पहले सिर्फ लाइबेरिया इजिप्ट और इथियोपिया इंडिपेंडेंट कंट्रीज हुआ करते थे इजिप्ट में सेल्फ रूल के नाम पर मोनकी वापस लौट गई थी जिसे गमाला अब्द
नसीर 1952 में उखाड़ फेंकते हैं और बाकी देशों को भी आजादी में मदद करने लगते हैं पर बाकी देशों के लिए आगे की राह आसान नहीं थी जहां ब्रिटेन इटली स्पेन ने कम रेजिस्टेंस से इंडिपेंडेंस दे दिया वहीं फ्रांस और पोर्गी ने काफी रिलक्टिविटी ब्रिटेन डी कॉलोनाइजेशन को डिले करने की कोशिश में लगा हुआ था पर 1956 के सीएस वॉर में नसर के लीडरशिप में इजिप्ट ने ब्रिटेन और फ्रांस की सेना को कड़ी टक्कर दी थी इस ह्यूमिन के बाद ब्रिटेन को पता चल गया कि बदलाव की हवा बहने लगी है और आज नहीं तो
कल सभी कॉलोनी को आजाद करना ही पड़ेगा वेस्ट अफ्रीकन ब्रिटिश कॉलोनी में सबसे कम वाइट सेटलर्स थे इसीलिए उन्हें जल्दी आजादी मिल गई फॉर एग्जांपल वेस्टर्न एजुकेटेड क्वामे नकुमा के नेतृत्व में गाना यानी गोल्ड कोस्ट को 1957 में आजादी मिल गई सेंट्रल अफ्रीकन ब्रिटिश कॉलोनी में सबसे ज्यादा वाइट सेटलर्स थे इसीलिए यहां सबसे लेट डी कॉलोनाइजेशन हुआ उदाहरण के लिए जिंबाब्वे को ब्रिटेन से सबसे लास्ट 1980 में आजादी मिली जिंबाब्वे की आजादी में उसके नेबरिंग कंट्री और फॉर्मर पोर्तुगीज कॉलोनी मोजम का बहुत इंपॉर्टेंट रोल रहा था मोजांबिक और अंगोला में चले सोवियत बैक्ड गोरिला वॉर
फेयर के बाद पोर्ग की बहुत बुरी हालत हो गई थी इसीलिए फर्द ह्यूमिन से बचने के लिए पोर्तुगीज बिक दोनों को 1975 में आजाद कर देता है आजाद होने के बाद मोजांबिक जिंबाब्वे के ब्लैक गोरिला को अपने यहां सेफ हेवन देने लगता है जिससे जिंबाब्वे में बैलेंस ऑफ पावर ब्लैक्स के फेवर में हो जाता है और अंत में गोरिला लीडर रॉबर्ट मुगाबे की लीडरशिप में जिंबाब्वे आजाद हो जाता है ब्रिटेन के बाद अब हम फ्रेंच अफ्रीकन कॉलोनी का डी कॉलोनाइजेशन देखते हैं सभी कॉलोनाइजर्स में फ्रांस सबसे जिद्दी कॉलोनाइजर था फ्रांस ने 1944 के ब्रेसवेल डिक्लेरेशन
में साफ कर दिया था कि फ्रेंच कॉलोनी को कोई आजादी नहीं मिलेगी फ्रेंच कॉलोनी को आजादी मिलने में सबसे ज्यादा प्रॉब्लम इसलिए भी आई क्योंकि उनका रूल करने का स्टाइल बाकियों से डिफरेंट था वे कॉलोनी के इंटरनल मैटर्स में शुरू से ही बहुत ज्यादा इंटरफेरेंस करते थे फ्रेंच कॉलोनाइजर्स कॉलोनी को अपना घर बना लेते थे और सेकंड थर्ड जनरेशन के लोग नेटिव्स की तरह रूल करने लगते थे फॉर एग्जांपल अल्जीरिया को फ्रांस अपने से अलग मानता ही नहीं था उसका कहना था कि सिर्फ मेडिटरेनियन सी के बीच में आ जाने से अल्जीरिया अलग देश थोड़ी
ना हो गया पर 1954 में वियतनाम में हुई हार के बाद फ्रांस की जियोपोलिटिकल स्टैंडिंग वीक हो गई जिसके कारण एक-एक कर ट्यूनीशिया मोरोको मडगास्कर और अल्जीरिया आजाद हो गए वियतनाम के डी कॉलोनाइजेशन की कहानी हम इसी वीडियो में कुछ देर बाद देखेंगे अल्जीरिया के केस में लोकल्स ने बहुत लंबा गोरिला वॉर लड़ा था जिससे फ्रेंच अथॉरिटीज की हालत खराब हो गई थी वहीं इजिप्शियन रूलर गमा अब्दुल नासिर के अंडर चल रहे अरब नेशनलिज्म ने भी अल्जीरिया के इंडिपेंडेंस में इंपॉर्टेंट रोल प्ले किया था इसके अलावा ग्लोबल एंटी कॉलोनियल वेव को देखते हुए स्पेन ने
इक्वेटोरियल गिनी और इटली ने सोमालिया को भी आजाद कर दिया अफ्रीका के बाद अब हम साउथ ईस्ट एशिया पर भी एक नजर डाल लेते हैं डी कॉलोनाइजेशन ऑफ साउथ ईस्ट एशिया साउथ ईस्ट एशिया में भी कहानी कुछ-कुछ अफ्रीका जैसी ही रही थी यहां वियतनाम फ्रांस की म्यानमार मले पेनिंस इंक्लूडिंग सिंगापुर ब्रिटेन की इंडोनेशिया डच और फिलिपींस यूएसए की कॉलोनी थी इनमें वियतनाम का केस इतना कॉम्प्लिकेटेड हो गया कि वह आगे चलकर कोल्ड वॉर का थिएटर बन गया था वियतनाम 1860 से 1941 तक एक फ्रेंच कॉलोनी था वर्ल्ड वॉर 2 के वक्त जापान ने उस पर
कब्जा कर लिया था पर वर्ल्ड वॉर 2 में हारने के बाद नॉर्दर्न पार्ट एलाइड पावर प्लस चाइना और सदर्न पार्ट ब्रिटेन के पास चला जाता है थोड़ा समय बीतने के बाद ब्रिटेन फ्रांस को सदर्न पार्ट लौटा देता है पर जब फ्रांस नॉर्दर्न पार्ट पर कंट्रोल लेना चाहता है तब यूएसएसआर और चाइना की मदद से हो चमन फ्रांस के खिलाफ गोरिला जंग छेड़ देते हैं 8 साल की लड़ाई के बाद फ्रांस 1954 में बुरी तरह से हार जाता है और पूरा इंडो चाइना रीजन यानी लाओस कंबोडिया और वियतनाम आजाद हो जाते हैं पर वियतनाम के लिए
डी कॉलोनाइजेशन अभी भी इनकंप्लीट था 1954 में फ्रांस के हारने के बाद जिनेवा एग्रीमेंट में वियतनाम के दो टुकड़े हो जाते हैं नॉर्थ वियतनाम कम्युनिस्ट लीडर होची मिन जो कि वियत मेन पार्टी से थे उनके अंडर आ जाता है और साउथ वियतनाम प्रो वेस्ट क्रिश्चियन लीडर न गो डिन डीएम के अंडर आ जाता है जिनेवा एग्रीमेंट के अनुसार दोनों देशों को फ्यूचर में चुनाव कराने थे और यदि वहां की जनता चाहे तो फिर से दोनों वियतनाम एक हो सकते थे पर साउथ के लीडर न गोदन दि एम करप्ट तानाशाह साबित होते हैं वह इलेक्शंस नहीं
करवाते हैं और मेजॉरिटी बुद्धिस्ट कम्युनिटी पर जुल्म भी करने लगते हैं परिणाम स्वरूप प्रो यूनिफिकेशन ग्रुप वियत कंग गोरिला वॉर छेड़ देता है यूएसए डीएम की सरकार को बचाने के लिए पहले बाहरी समर्थन देता है पर जब यूएस को लगता है कि डीएम ज्यादा दिन तक टिक नहीं पाएंगे तो 1965 में ग्राउंड पर अपनी सेना उतारने का निर्णय करता है यूएसए नेपा बॉम ऑरेंज एजेंट जैसे केमिकल वेपंस का रेकलेट यूज करता है पर भीषण युद्ध के बाद भी जब यूएसए नहीं जीत पाता है तो फेस सेविंग के लिए पैरिस पीस एग्रीमेंट के अंतर्गत 1973 में
अपनी सेना वापस बुला लेता है यूएसए के जाते ही नॉर्थ वियतनाम अपनी सेना साउथ भेज देता है और वियत कंग की मदद से साउथ वियतनाम 1975 में आजाद होकर नॉर्थ वियतनाम में मर्ज हो जाता है लेकिन इस डिकॉलोनाइजेशन के प्रोसेस में हजारों यूएस सोल्जर्स और लाखों वियतनामी मारे गए थे आइए अब करते हैं इंडोनेशिया की बात इंडोनेशिया एक डच कॉलोनी थी वर्ल्ड वॉर ट के दौरान जापान ने इंडोनेशिया पर भी कब्जा कर लिया था पर जापान के हारने के बाद वहां कंफ्यूजन की स्थिति बन जाती है ऐसे में सुकन नाम के नेटिव पॉलिटिशियन इंडोनेशिया को
1945 में इंडिपेंडेंट कंट्री डिक्लेयर कर देते हैं पर नेदर हैैंड गुस्से में अपनी सेना भेज देता है डच सेना के आने पर सुगणों और डच गवर्नमेंट कंप्रोमाइज करने के लिए तैयार हो जाते हैं पर कम्युनिस्ट इंडोनेशियंस कंप्लीट फ्रीडम की डिमांड करने लगते हैं और सुका की पार्टी को निशाना बनाने लगते हैं इंडोनेशियन फोर्सेस कम्युनिस्ट पर तगड़ा क्रैकडाउन करते हैं जिससे यूएसए सुकरणों से बहुत इंप्रेस हो जाता है एंड इन अ सरप्राइजिंग टर्न ऑफ इवेंट्स यूएसए नेदर लैंस पर ही इकोनॉमिक सैंक्शंस लगाने की धमकी दे देता है इस तरह दुनिया का सबसे बड़ा मुस्लिम देश सेकुलर
डेमोक्रेटिक कॉन्स्टिट्यूशन के साथ 1949 में आजाद हो जाता है पर साउथ ईस्ट एशिया से भी ज्यादा कॉम्प्लिकेटेड डिकॉलोनाइजेशन मिडिल ईस्ट में रहा है इन कॉम्प्लिकेशंस की लेगासी हम आज भी देखते आ रहे हैं आइए जानते हैं डी कॉलोनाइजेशन ऑफ मिडिल ईस्ट ज्योग्राफिकली मिडिल ईस्ट का कुछ एरिया नॉर्थ अफ्रीका और कुछ एरिया वेस्ट एशिया में आता है ऑटोमन एंपायर के टर्की तो मुस्तफा कमाल अतातुर्क के अंडर आजाद हो गया पर ब्रिटेन और फ्रांस ने 1916 में हुए सीक्रेट साइक्स पीको एग्रीमेंट में मिडिल ईस्ट को मैंडेट्स के रूप में आपस में बांट लिया था मेसोपोटामिया यानी इराक
और पलेस्टाइन इंक्लूडिंग जॉर्डन ब्रिटेन के पास चले गए और सीरिया लेबन फ्रांस के पास वहीं बाहरान कुवैत कतर ब्रिटिश प्रोटेक्टरेट बन गए 1917 का बेलफोर डिक्लेरेशन इस पूरे इक्वेशन को फर्द कॉम्प्लिकेट कर देता है इसके अंतर्गत ब्रिटेन पलेस्टाइन का पार्टीशन कर इजरेल बनाने की बात कर देता है इससे इजराइल का गठन तो हो जाता है पर अरब सेंटीमेंट हर्ट हो जाते हैं फल स्वरूप इजराइल और अरब देशों के बीच सवेज क्राइसिस 1956 में सिक्स डे वॉर 1967 में यम किपर वॉर 1973 में इस जैसी कई लड़ाइयां होती हैं लेकिन इजराइल अपनी सुपीरियर मिलिट्री टेक्नोलॉजी इंटेलिजेंस
और वेस्ट की मदद से यह सब वॉर्स जीत गया इजराइल आज भी अपनी इलीगल सेटलमेंट बढ़ाता जा रहा है जिसके कारण पलेस्टाइन का डी कलना इजेशन इनकंप्लीट रह गया है पलेस्टाइन को तो अभी तक रिकॉग्नाइज्ड कंट्री का दर्जा तक नहीं मिला है इसके अलावा मिडिल ईस्ट में रेनियम क्राइसिस 1979 में गल्फ वॉर 1991 में सीरियन क्राइसिस व्हिच अ पार्ट ऑफ 2011 अरब स्प्रिंग सब इनकंप्लीट डी कॉलोनाइजेशन और कोल्ड वॉर का ही रिजल्ट है दोस्तों इस पूरे डी कॉलोनाइजेशन प्रोसेस में भले ही कॉलोनी अलग-अलग थी पर आजाद होने के बाद उन्हें सिमिलर प्रॉब्लम्स का सामना करना
पड़ा था आइए देखते हैं चैलेंज फेस्ड बाय न्यूली इंडिपेंडेंट कंट्रीज सबसे पहला चैलेंज था नेशन बिल्डिंग का नए-नए इंडिपेंडेंट थर्ड वर्ल्ड कंट्रीज में पॉवर्टी इलिटरेसी फैमिन फूड शॉर्टेज डिजीज एथनिक डिस्प्यूट और जेनोसाइड नेशन बिल्डिंग में बड़ी बाधा थे इनके अलावा बढ़ता डेट वेस्टर्न कल्चरल इन्फ्लुएंस के कारण रिलीजस बैकल श मिलिट्री रूल लैक ऑफ मिडिल क्लास टू सस्टेन इकॉनमी न्यू कॉलोनाइजेशन भी दूसरे प्रमुख चैलेंज थे इनमें न्यू कॉलोनाइजेशन न्यूली इंडिपेंडेंट कंट्रीज के सामने एक बड़ी समस्या के रूप में उभर कर आया है पर यह न्यू कल न होता क्या है दोस्तों जब कोई डेवलप्ड कंट्री किसी
लेस डेवलप्ड कंट्री की पॉलिसीज को इनडायरेक्टली इन्फ्लुएंस करने की कोशिश करती है तो उसे नयो कॉलोनियलिज्म कहते हैं ग्लोबलाइजेशन कल्चरल इंपीरियल जम कंडीशनल इकोनॉमिक एड नयो कॉलोनियलिज्म के महत्त्वपूर्ण साधन है उदाहरण के लिए ब्रिटेन द्वारा प्रमोटेड कॉमनवेल्थ ऑफ नेशंस वेस्ट सपोर्टेड आईएमएफ एंड वर्ल्ड बैंक रिसिपिएंट कंट्रीज को कुछ खास कंडीशंस पर ही सॉफ्ट लोन देते हैं फॉर एग्जांपल रिसिपिएंट कंट्रीज को फ्री मार्केट इकॉनमी एक्सेप्ट करना होगा एमएनसी के लिए दरवाजे खोलने होंगे डेमोक्रेटिक वैल्यूज प्रमोट करनी होंगी वगैरह वगैरह ऐसा लगता है मानो कॉलोनाइजर्स का सूर्य तो डूब गया पर उसकी गर्मी न्यू कॉलोनाइजेशन के रूप
में न्यू वर्ल्ड ऑर्डर को आज भी दिशा देने में लगी है ज्यादातर कंट्रीज आज आजाद हो गई हैं पर सीरियन सिविल वॉर इजराइल पलेस्टाइन कॉन्फ्लेट इंडिया पाकिस्तान इशू कोरियन क्राइसिस इत्यादि वर्तमान समय में हमें इनकंप्लीट डिकॉलोनाइजेशन की याद दिलाते रहते हैं पर डी कॉलोनाइजेशन सेल्फ डिटरमिनेशन की दिशा में एक मेजर स्टेप था कई इंडिपेंडेंट कंट्रीज फ्रीडम वेलफेयर ह्यूमन राइट्स ह्यूमन डेवलपमेंट और क्लाइमेट डिप्लोमेसी में काफी आगे बढ़ गए हैं इंडिया इंडोनेशिया नाइजीरिया जैसे देश आज की वर्ल्ड पॉलिटिक्स में एक्टिव रोल निभा रहे हैं लेकिन डी कॉलोनाइजेशन तब तक अधूरा माना जाएगा जब तक सभी आजाद
देश इंक्लूडिंग द वंस इन द मिडिल ईस्ट अपना ट्रू पोटेंशियल रियलाइफ दोस्तों 1945 में एलाइड फोर्सेस यानी कि यूएस सोवियत यूनियन फ्रांस और ब्रिटेन ने एक्सेस पावर्स यानी जर्मनी इटली और जापान को हरा दिया था इसी के साथ सेकंड वर्ल्ड वॉर का एंड हो गया था सेकंड वर्ल्ड वॉर का एंड वर्ल्ड हिस्ट्री में एक लैंडमार्क इवेंट की तरह था इसके बाद दुनिया पूरी तरह बदल जाती है और यही एंड कोल्ड वॉर की बिगिनिंग भी था वर्ल्ड वॉर ट के समय यूनाइटेड स्टेट्स और सोवियत यूनियन ने जर्मन के अगेंस्ट फाइट करने के लिए अपने फोर्सेस को
एक कर लिया था सोवियत आमी वेस्ट की तरफ मार्च करती है और अमेरिकंस ईस्ट की तरफ 1945 में एलाइड सोल्जर जब जर्मनी में एल्बे रिवर के पास मिलते हैं तो एक दूसरे को पूरी गर्मजोशी के साथ गले लगाते हैं क्योंकि उन्होंने नाज को हरा दिया था लेकिन इनके लीडर्स में यह गर्मजोशी नहीं दिखाई देती बल्कि उनके बीच राइवल की शुरुआत हो चुकी थी कंपटिंग पॉलिटिकल फिलॉसफी के कारण जन्मी य अनिमोसिटी लगभग हाफ सेंचुरी लंबे कॉन्फ्लेट की शुरुआत करती है जिसे कोल्ड वॉर कहा जाता है व्ट इज द कोल्ड वॉर जैसा कि हमने बताया वर्ल्ड वॉर
के एंड होने के बाद से ही कोल्ड वॉर की शुरुआत हो चुकी थी युद्ध खत्म होने पर यूरोप पूरी तरह से बर्बाद हालत में था जर्मनी और जापान जैसी पावर्स वॉर में हार चुकी थी ऐसे में यूनाइटेड स्टेट्स और सोवियत यूनियन वर्ल्ड की ग्रेटेस्ट पावर्स बन जाते हैं इन्हीं दोनों पावर्स के बीच की राइवल्री से कोल्ड वॉर का जन्म होता है यह कन्वेंशनल वॉर की तरह नहीं था क्योंकि इसमें दोनों साइड्स कभी भी डायरेक्टली आमने-सामने आकर फाइट नहीं करती बल्कि यह कम्युनिज्म और कैपिट ज्म के बीच एक आइडियो जिकल बैटल थी जिसमें ईस्ट और वेस्ट
एक दूसरे के आमने-सामने थे और इनके बीच आइडियो जिकल इन्फ्लुएंस के लिए संघर्ष चल रहा था वर्ल्ड वॉर खत्म होने से पहले ही यूएस और सोवियत यूनियन के अलायंस में दरार दिखने लगी थी यूएस इस बात से नाराज था कि सोवियत लीडर स्टैन ने 1939 में जर्मनी के साथ नॉन अग्रेशन पैक्ट साइन किया था वहीं स्टैन एलायस को ब्लेम कर रहे थे कि उन्होंने 1944 से पहले जर्मन ऑक्यूपाइड यूरोप पर इनवेजन क्यों नहीं किया इस तरह दोनों ही एक दूसरे पर विश्वास खो चुके थे और फिर जब अमेरिका ने जापान पर एटम बॉम्ब्स गिराए तो
राइवल्री और ज्यादा बढ़ गई क्योंकि ऐसा माना जाता है कि यूएस प्रेसिडेंट ने ब्रिटेन को तो एटम बॉम्ब के बारे में बता दिया था लेकिन स्टैन को इस बारे में कुछ भी खबर नहीं थी यहां तक कहा जाता है कि अमेरिका ने एटम बॉम्ब्स का यूज ही इसलिए किया था क्योंकि वह सोवियत यूनियन को एशिया में मिलिट्री और पॉलिटिकल गेंस लेने से रोकना चाहता था साथ ही खुद को सुप्रीम साबित करना चाहता था वजह चाहे जो भी रही हो नतीजा यही था कि यूएस और सोवियत यूनियन एक दूसरे के राइवल्स बन चुके थे इसके बाद
दोनों ही साइड्स वर्ल्ड में अपने-अपने इन्फ्लुएंस को बढ़ाने की कोशिश में लग जाती हैं और दोनों तरफ से न्यूक्लियर वेपंस का स्टॉक पाइल किया जाता है फिर आर्म्स रेस से लेकर क्यूब मिसाइल क्राइसिस तक और बर्लिन वॉल से लेकर वियतनाम और कोरिया तक कोल्ड वॉर की राइवल्री को देखा जा सकता है लेकिन इस सब की शुरुआत होती है वर्ल्ड के दो पावर ब्लॉक्स में डिवाइड होने से आइए देखते हैं कैसे द इमरजेंस ऑफ टू पावर ब्लॉक्स दोनों सुपर पावर्स दुनिया के अलग-अलग हिस्सों तक अपने प्रभाव क्षेत्र को एक्सपेंड करना चाहती थी जिसकी वजह से वर्ल्ड
दो अलायंस सिस्टम्स में डिवाइड हो जाता है अलायंस सिस्टम से जुड़ने वाले छोटे देशों को प्रोटेक्शन वेपंस और इकोनॉमिक एड देने का प्रॉमिस किया जाता था इस तरह सुपर पावर्स द्वारा लेड अलायंस सिस्टम पूरी दुनिया को दो कैंप्स में डिवाइड करना शुरू कर देता है सबसे पहले यह डिवीजन यूरोप में देखने को मिलता है वेस्टर्न यूरोप की ज्यादातर कंट्रीज यूएस की साइड होती हैं और ईस्टर्न यूरोप सोवियत कैंप को जॉइन करता है इस वजह से इन्हें वेस्टर्न और ईस्टर्न एलायंसेज भी कहा जाता है लेकिन यूरोप का डिवीजन आखिर हुआ कैसे था पहले उसको समझते हैं
एन आयन कर्टेन डिवाइड्स ईस्ट एंड वेस्ट यूरोप सोवियत यूनियन का एक मेजर गोल खुद को वेस्ट की तरफ से होने वाले इनवेजन से शील्ड करना था वर्षों के इतिहास ने सोवियत के मन में इनवेजन का डर बैठा दिया था क्योंकि उसके पास वेस्ट की तरफ से कोई नेचुरल बॉर्डर नहीं था इसलिए कभी ना कभी रशिया अपने हर एक नेबर का विक्टिम रह चुका था 17th सेंचुरी में पोल्स ने क्रेमलिन पर कब्जा कर लिया था और अगली ही सेंचुरी में रशिया पर स्वीडन का अटैक हुआ था 1812 में नेपोलियन ने मॉस्को पर धावा बोल दिया था
वहीं पहले और दूसरे वर्ल्ड वॉर के दौरान जर्मनी ने इनवेजन किया था जब सेकंड वर्ल्ड वॉर खत्म होने की कगार पर था तब सोवियत ट्रूप्स ईस्टर्न यूरोप से नाज को पीछे धकेल रहे थे और वॉर खत्म होते ही यह ट्रूप्स सोवियत यूनियन के वेस्टर्न बॉर्डर से लगे हुए देशों को ऑक्यूपाइड वॉर में लगभग 20 मिलियन कैजुअल्टी सफर करने के बाद सोवियत यूनियन के लीडर स्टैन किसी भी कीमत पर बफर जोन बनाना चाहते थे इससे पहले फरवरी 1945 में यूनाइटेड स्टेट्स ब्रिटेन और सोवियत यूनियन के लीडर्स ब्लैक सी के पास लोकेटेड लटा के रिजॉर्ट में मिले
थे जहां उन्होंने जर्मनी को एलाइड मिलिट्री फोर्सेस द्वारा कंट्रोल्ड जनस ऑफ ऑक्यूपेशन में डिवाइड करने का फैसला किया था यह भी डिसाइड हुआ था कि जर्मनी सोवियत यूनियन को लाइफ और प्रॉपर्टी के लॉस के लिए कंपनसेटर यहां स्टैन ने यह भी प्रॉमिस किया था कि वह ईस्टर्न यूरोप में फ्री इलेक्शंस हेल्ड करने देंगे हालांकि ब्रिटिश पीएम चर्चिल को उन पर तब भी भरोसा नहीं था और उन्होंने कहा था कि स्टैन अपना वादा तभी निभाएंगे जब ईस्टर्न यूरोपिय रशिया के साथ फ्रेंडली पॉलिसी फॉलो करेंगे लेकिन वॉर खत्म होने के बाद स्टेलिन लटा एग्रीमेंट को पूरी तरह
इग्नोर कर देते हैं और ईस्टर्न यूरोप के देश जैसे कि अल्बेनिया बल्गेरिया हंगरी चेकोस्लोवाकिया रोमे निया पोलैंड और यूगोस्लाविया में कम्युनिस्ट गवर्नमेंट्स इंस्टॉल कर देते हैं लटा एग्रीमेंट के समय रूजवेल्ट यूएस प्रेसिडेंट थे लेकिन अप्रैल 1945 में उनकी डेथ हो जाती है उनके सक्सेसर बनते हैं हैरी एस ट्रूम ट्रूम के लिए स्टैन की तरफ से ईस्टर्न यूरोपियन नेशंस में फ्री इलेक्शंस कराने में आनाकानी करना इन देशों के राइट्स का सीधा वायलेशन था ट्रूम स्टेलिन और चर्चिल जुलाई 1945 में जर्मनी के पॉट्स डैम में मिलते हैं यहां ट्रूम टलिन से एक बार फिर ईस्टर्न यूरोप में
फ्री इलेक्शंस परमिट करने की बात कहते हैं लेकिन सोवियत लीडर इससे इंकार कर देते हैं 1946 की शुरुआत में स्टैन एक स्पीच में कहते हैं कि कम्युनिज्म और कैपिट ज्म एक ही दुनिया में एक साथ नहीं रह सकते इस तरह ईस्टर्न यूरोप में सोवियत यूनियन का डोमिनेंस हो चुका था और उसे ईस्टर्न ब्लॉक कहा जाने लगा था ब्रिटिश पीएम विंस्टन चर्चिल अपनी फेमस स्पीच में कहते हैं कि एक आयन कर्टन ने यूरोप को डिवाइड कर दिया है और यह आयन कर्टन जर्मनी के बीच से होकर जाता था यानी कि जर्मनी भी दो सेक्शंस में स्प्लिट
हो चुका था ईस्टर्न पार्ट को सोवियत कंट्रोल कर रहे थे जिसमें आधा बर्लिन भी शामिल था यहां कम्युनिस्ट गवर्नमेंट की फॉर्मेशन होती है है और ईस्टर्न जर्मनी को जर्मन डेमोक्रेटिक रिपब्लिक नाम दिया जाता है इसके बाद सोवियत थ्रेट को रोकने के लिए यूएस क्या पॉलिसी अपनाता है उसको भी देखते हैं यूनाइटेड स्टेट्स ट्राइज टू कंटेन सोवियत 1946 और 1947 के दौरान यूएस सोवियत रिलेशंस और खराब होते जाते हैं ईस्टर्न यूरोप पर सोवियत के प्रभाव से परेशान यूनाइटेड स्टेट्स उसे रोकने की पॉलिसी बनाता है प्रेसिडेंट ट्रूम की इस पॉलिसी को कंटेनमेंट कहा जाता है इस पॉलिसी
का एम सोवियत इन्फ्लुएंस को ब्लॉक करना और कम्युनिज्म के एक्सपेंशन को रोकना था इसके तहत अलायंस फॉर्म किए जाते हैं और वीक कंट्रीज की हेल्प की जाती है सोवियत एडवांसेज को रेजिस्ट करने में ट्रूमैन डॉक्ट्रिन को सबसे पहले टर्की और ग्रीस की हेल्प के लिए अनाउंस किया गया था सोवियत यूनियन टर्की पर प्रेशर बना रही थी कि वह रशियन शिपिंग को टर्किश स्ट्रेट से फ्रीली फ्लो करने दें टर्किश स्ट्रेट्स ब्लैक सी को मेडिटरेनियन सी से जोड़ते थे टर्किश गवर्नमेंट सोवियत यूनियन की इस डिमांड को एक्सेप्ट करने के लिए तैयार नहीं थी और इसीलिए इस रीजन
में टेंशंस बढ़ती जा रही थी वहीं ग्रीस में सिविल वॉर शुरू हो गया था जिसमें ब्रिटेन द्वारा सपोर्टेड ग्रीस गवर्नमेंट और ग्रीस की कम्युनिस्ट पार्टी एक दूसरे से फाइट कर रही थी 1946 में ग्रीस के पीएम कम्युनिस्ट पावर्स को रेजिस्ट करने के लिए अमेरिका से हेल्प मांगते हैं प्रेसिडेंट ट्रूम को लगता है कि ग्रीस और टर्की दोनों ही स्ट्रेटेजिक एलाइज हैं और इनका सोवियत कंट्रोल में चले जाना अमेरिका के इंटरेस्ट में नहीं होगा इसीलिए वह 400 मिलियन डॉलर से भी ज्यादा की इकोनॉमिक और मिलिट्री एड टर्की और ग्रीस के लिए सैंक्शन करते हैं इस तरह
ट्रू मन डॉक्ट्रिन के जरिए सोवियत इन्फ्लुएंस को रिस्ट्रिक्टर की कोशिश की जाती है इसके अलावा एक और प्लान था जिसका एम भी कम्युनिस्ट प्रभाव को कम करना था इसे मार्शल प्लान कहा जाता है वॉर के बाद ज्यादातर वेस्टर्न यूरोप की हालत बहुत खराब थी इकॉनमी पूरी तरह से बर्बाद हो चुकी थी अनइंप्लॉयमेंट बहुत तेजी से बढ़ रहा था और फूड शॉर्टेजेस भी होने लगी थी ऐसी सिचुएशन में 1948 में यूएस के सेक्रेटरी ऑफ स्टेट जॉर्ज मार्शल सुझाव देते हैं कि यूएस को जरूरतमंद यूरोपियन कंट्रीज को मदद देनी चाहिए इस असिस्टेंसिया वेस्टर्न यूरोप को रिबिल्ड करने
के लिए फूड मशीनरी और बाकी मटेरियल प्रोवाइड किए जाते हैं यह प्लान काफी सक्सेसफुल साबित रहता है इसके तहत लगभग 13 बिलियन डॉलर्स की फाइनेंशियल एड वेस्टर्न यूरोप के देशों को दी जाती है यूएस का मानना था कि इकॉनमी अगर अच्छी रहेगी तो कम्युनिज्म यहां अपने पैर नहीं जमा पाएगा इस तरह वेस्टर्न यूरोप तेजी से रिबिल्ड होने लगता है लेकिन इसी समय यूएस और उसके एलाइज का जर्मनी को लेकर सोवियत यूनियन से विवाद शुरू हो जाता है आइए इसको डिटेल में समझते हैं द बर्लिन एयरलिफ्ट सोवियत अपने पुराने दुश्मन जर्मनी को कमजोर और डिवाइडेड रखना
चाहता था लेकिन 1948 में फ्रांस ब्रिटेन और यूनाइटेड स्टेट्स जर्मनी से अपने अपने फोर्सेस विड्रॉ करने का डिसीजन लेते हैं जो कि लटा एग्रीमेंट के अनुसार वहां मौजूद थे और अपने ऑक्यूपेशन जोनस को एक फॉर्म करने की परमिशन देते हैं इसके रिस्पांस में सोवियत यूनियन वेस्ट बर्लिन को हॉस्टेस बना लेता है हुआ यह था दोस्तों कि बर्लिन आता तो पूरी तरह सोवियत ऑक्यूपेशन जोन में था लेकिन इसे भी बाकी जर्मनी की तरह चार जोनस में डिवाइड किया गया था सोवियत यूनियन बर्लिन के वेस्टर्न जोनस को कनेक्ट करने वाले हाईवे वाटर और रेल ट्रैफिक को कट
ऑफ कर देता है जिससे सिटी स्टार्वेशन की सिचुएशन फेस करने लगती है स्टैन को लगता ता था कि या तो एलाइज वेस्ट बर्लिन को सरेंडर कर देंगे या फिर जर्मनी को री यूनिफाई करने का अपना आईडिया छोड़ देंगे लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं होता अमेरिकन और ब्रिटिश ऑफिशल्स लगभग 11 महीने तक एयरप्लेंस के थ्रू वेस्ट बर्लिन को फूड और बाकी सप्लाय भेजते रहते हैं मे 1949 में सोवियत यूनियन अपनी हार मान लेता है और ब्लॉकेड को खत्म कर देता है यह कॉन्फ्लेट्स यूनाइटेड स्टेट्स और सोवियत यूनियन के बीच कोल्ड वॉर की शुरुआत करते हैं इसके
बाद 1949 से दोनों सुपर पावर्स एक दूसरे के अगेंस्ट स्पाइन प्रोपेगेंडा डिप्लोमेसी और सीक्रेट ऑपरेशंस शुरू कर देती हैं और आगे जाकर दोनों राइवल एलायंसेज का फॉर्मेशन करती हैं आइए जानते हैं कौन-कौन से एलायंसेज फॉर्म होते हैं सुपर पावर्स फॉर्म राइवल अलायंस बर्लिन ब्लॉकेड ने वेस्टर्न यूरोप में सोवियत अग्रेशन के डर को और बढ़ा दिया था इसकी वजह से 1949 में 10 वेस्टर्न यूरोपियन नेशंस यूएस और कनाडा के साथ मिलकर एक डिफेंसिव मिलिट्री अलायंस बनाते हैं जिसे नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन या नेटो कहा जाता है अगर किसी भी नेटो मेंबर पर अटैक होता है तो
उसका जवाब सभी मेंबर्स मिलकर देंगे एक तरह से यह कलेक्टिव डिफेंस एग्रीमेंट जैसा था सोवियत यूनियन नेटो को अपने लिए खतरे की तरह देखता है और 1955 में अपना अलग एक अलायंस बनाता है जिसे वर सॉ पैक्ट कहा जाता है इसमें सोवियत यूनियन के अलावा ईस्ट जर्मनी चेकोस्लोवाकिया पोलैंड हंगरी रोमे निया बल्गेरिया और अल्बेनिया शामिल थे फिर 1961 में ईस्ट जर्मन ईस्ट और वेस्ट बर्लिन को सेपरेट करने के लिए एक वॉल का निर्माण करते हैं यह बर्लिन वॉल वर्ल्ड के दो राइवल कैंप्स में डिवाइड होने का सिंबल बन जाती है इसके अलावा 1949 के बाद
से ही दोनों सुपर पावर्स के बीच आर्म्स रेस भी शुरू हो जाती है और दुनिया पर न्यूक्लियर वॉर का खतरा मंडराने लगता है द थ्रेट ऑफ न्यूक्लियर वॉर जिस समय नेटो जैसे एलायंसेज फॉर्म हो रहे थे उसी समय कोल्ड वॉर भी हीट अप होने लगा था लग रहा था जैसे यह पूरी दुनिया को ही तबाह कर देगा यूनाइटेड स्टेट्स के पास तो एटॉमिक बॉम्ब्स पहले से थे 1949 में सोवियत यूनियन भी अपना खुद का एटॉमिक बॉम एक्सप्लोड्स हैंट ट्रूम और डेडली वेपन डिवेलप करना चाहते थे इसके लिए 1950 में वह थर्मोन्यूक्लियर वेपन यानी कि हाइड्रोजन
बॉम पर काम करना शुरू करने के लिए कहते हैं हाइड्रोजन बॉम एटॉमिक बॉम से कई हजार गुना ज्यादा पावरफुल होता है 1952 में यूएस अपना पहला हाइड्रोजन बॉम टेस्ट कर लेता है लेकिन सोवियत भी ज्यादा पीछे नहीं रहता और 1953 में वो भी हाइड्रोजन बॉम एक्सप्लो करता है इसके साथ न्यूक्लियर वेपंस को डिलीवर करने के लिए एयर प्लेंस और मिसाइल्स का डेवलपमेंट भी शुरू हो जाता है साथ ही दोनों पावर्स बड़े स्तर पर न्यूक्लियर वेपंस को प्रोड्यूस करने लगती हैं और इस तरह आर्म्स रेस की शुरुआत हो जाती है जो आने वाले लगभग चार दशक
तक चलती रहती है आर्म्स रेस के साथ ही एक और तरह की रेस कोल्ड वॉर के दौरान देखने को मिलती है और वह थी साइंस स्पेशली स्पेस के फील्ड में आइए उसकी भी थोड़ी चर्चा करते हैं द कोल्ड वॉर इन द स्काइज कोल्ड वॉर दोनों सुपर पावर्स के साइंस और एजुकेशन प्रोग्राम्स को भी अफेक्ट करता है अगस्ट 1957 में सोवियत ऐसे रॉकेट का डेवलपमेंट अनाउंस करते हैं जो कि लंबी दूरी तय कर सकता था इसे इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल यानी आईसीबीएम कहा जाता है इसके बाद 4 अक्टूबर को इसी आईसीबीएम की हेल्प से सोवियत यूनियन स्पूतनिक
को स्पेस में भेज देता है स्पूतनिक दुनिया दुनिया की पहली अनमैंड सैटेलाइट थी ऐसे में अमेरिकंस को लगता है कि वह साइंस और टेक्नोलॉजी के मामले में पीछे रह गए हैं यूएस गवर्नमेंट साइंस एजुकेशन में बहुत सारा पैसा लगा देती है और 1958 में यूएस भी अपनी सैटेलाइट लांच करता है 1960 में एक बार फिर आसमान में सुपर पावर के बीच कॉन्फ्लेट देखने को मिलता है यूएस की इंटेलिजेंस एजेंसी ने सोवियत टेरिटरी पर सीक्रेट हाई एल्टीट्यूड स्पाई फ्लाइट्स शुरू कर दी थी जिसके लिए य नाम के प्लेनस का यूज किया जाता था मई 1960 में
सोवियत एक यूट प्लेन को मार गिराते हैं और उसके पायलट फ्रांसिस गैरी पावर्स को पकड़ लेते हैं इस इंसिडेंट ने कोल्ड वॉर की टेंशंस को और बढ़ा दिया था हालांकि इसके बाद भी यह हॉट वॉर में कन्वर्ट नहीं होता स्पेस राइवल इसी तरह कंटिन्यू रहती है आइए अब कोल्ड वॉर के कुछ और अरीना को देख लेते हैं अरीना ऑफ द कोल्ड वॉर बर्लिन कॉन्फ्लेट को तो हम डिस्कस कर ही चुके हैं उसके अलावा भी कोल्ड वॉर के इतिहास में बहुत से ऐसे मौके आते हैं जब यूएस और सोवियत यूनियन आमने-सामने होते हैं उदाहरण के तौर
पर 1950 53 का कोरियन वॉर जहां अमेरिका साउथ कोरिया को सपोर्ट करता है और कम्युनिस्ट पावर्स नॉर्थ कोरिया को इसके अलावा 1955 का वियतनाम वॉर 1960 का कांगो क्राइसिस और 1961 में क्यूब मिसाइल क्राइसिस कोल्ड वॉर राइवल्री को नेक्स्ट लेवल पर ले कर जाती हैं इसके बाद 1979 में अफगानिस्तान पर सोवियत ऑक्यूपेशन के दौरान भी दोनों राइवल एलायंसेज लंबे समय तक संघर्ष करते हैं लेकिन किसी ना किसी तरह यह सभी संघर्ष कोल्ड वॉर तक ही सीमित रहते हैं अलायंस सिस्टम इस बार वर्ल्ड वॉर की शुरुआत नहीं करता इसके पीछे एक कारण यह था कि दोनों
ही सुपर पावर्स के पास न्यूक्लियर वेपंस मौजूद थे और सभी यह जानते थे कि अगर फुल स्केल वॉर हुआ तो उसका नतीजा बहुत ही भयानक होगा इसलिए न्यूक्लियर वेपंस एक तरह से डिटेंस की तरह काम करते हैं हालांकि दोनों पावर्स के बीच की राइवल्री को यह नहीं रोक पाते जो हमें अलग-अलग तरीके से कोल्ड वॉर में देखने को मिलती है कंक्लूजन दोस्तों कोल्ड वॉर एक तरह से पॉलिटिकल डिफरेंसेस को लेकर संघर्ष था जिसमें दो अपोजिट इकोनॉमिक आइडियल जीी यानी कि कैपिटल जम और कम्युनिज्म भी आमने सामने थी इसके अलावा यह कम्युनिस्ट स्टेट और डेमोक्रेसी के
बीच टकराव तो था ही दुनिया के ज्यादातर देश एक या दूसरी पावर के साथ अलायंस में आ गए थे इस तरह कोल्ड वॉर ना सिर्फ यूएस और सोवियत यूनियन की फॉरेन पॉलिसी को अफेक्ट करता है बल्कि पूरे वर्ल्ड के एलायंसेज पर इसका प्रभाव देखने को मिलता है फाइनली 1991 में सोवियत यूनियन के ब्रेक होने के साथ ही कोल्ड वॉर का भी एंड हो जाता है और उसके बाद सिर्फ एक ही सुपर पावर दुनिया में रह जाती है यूएसए कोरियन वर 1950 टू 53 दोस्तों साल था 1950 दिन 25 जून नॉर्थ कोरिया पीपल्स आर्मी यानी केपी
ए के 75000 सोल्जर्स 38 पैरेलल को क्रॉस करके साउथ कोरिया पर आक्रमण कर देते हैं और यहीं से कोल्ड वॉर की पहली मिलिट्री टसल की शुरुआत होती है इसकी इंटेंसिटी को देखकर ऐसा लगता है कि मानो इसको तीसरे विश्व युद्ध में तब्दील होने से कोई नहीं रोक पाएगा यहां एक तरफ था नॉर्थ कोरिया जिसको यूएसएसआर का सपोर्ट हासिल था तो दूसरी तरफ साउथ कोरिया जिसको यूएस सपोर्ट कर रहा था कोल्ड वॉर का मशहूर आयन कर्टन एशिया में कोरियन पेनिंस के बीच से होकर गुजर रहा था यूएसएसआर चाहता था कि कम्युनिज्म नॉर्थ कोरिया से आगे बढ़कर
जापान साउथ ईस्ट एशिया और बाकी पूरे एशिया में फैल जाए लेकिन यूएस को यह किसी भी कीमत पर मंजूर नहीं था यूएस और यूएसएसआर की इसी जद्दोजहद का नतीजा हमें सबसे पहले कोरियन वॉर के रूप में देखने को मिला तो क्या था यह पूरा वॉर यह कब तक चला और इसमें किसकी जीत हुई इस वॉर की पूरी कहानी हम आज के वीडियो में जानेंगे तो आइए शुरू करते हैं हिस्टोरिकल बैकग्राउंड दोस्तों हमारी कहानी के रूट्स 20वीं शताब्दी में ट्रेस किए जा सकते हैं जैसा कि आप जानते ही हैं आज ईस्ट एशिया में चाइना और जापान
के बीच कोरियन पेनिंस नॉर्थ कोरिया और साउथ कोरिया दो हिस्सों में बंटा हुआ है लेकिन यह शुरू से ही डिवाइडेड नहीं था यह पहले एक यूनाइटेड कोरिया हुआ करता था जिसको सेवंथ सेंचुरी से सिला डायनेस्टी के द्वारा रूल किया जा रहा था लेकिन उसकी स्ट्रेटेजिक लोकेशन और नेचुरल रिसोर्सेस के कारण इस पर चाइना रशिया और जापान तीनों की ही नजर बनी हुई थी चाइना उस समय ओपियम वर्स की वजह से कम कमजोर पड़ रहा था अभी तक किंगडम ऑफ कोरिया को चाइना की चिंग डायनेस्टी का सपोर्ट मिल रहा था किंगडम ऑफ कोरिया एक बहुत कमजोर
और पुआ किंगडम था यहां के लोग अपने राजा की पॉलिसी से अक्सर नाराज रहते थे जिसकी वजह से यहां समय-समय पर प्रोटेस्ट देखने को मिला करते थे लेकिन जब भी यह लोग अपने राजा के अगेंस्ट प्रोटेस्ट करते तो चाइना की चिंग डायनेस्टी अपने सोल्जर्स भेजकर उन प्रोटेस्ट को दबा दिया करती थी लेकिन जापान कोरियन किंगडम को चाइना से छीनना चाहता था 20th सेंचुरी की स्टार्टिंग में जपान एक इंपीरियल पावर के तौर पर उभर रहा था जापान उस समय एक मात्र ऐसा पावरफुल नेशन था जिसकी मिलिट्री माइट यूरोपियन पावर्स को टक्कर दे सकती थी बस फिर
क्या था मौका देखकर जपान ने भी अपनी आर्मी को कोरियन पेनिनसुला में चाइना से लड़ने के लिए भेज दिया इसी के परिणाम स्वरूप पहली साइनो जापानीज वॉर देखने को मिली इसमें जापान की जीत हुई और कोरियन पेनिंस सुला पर से चाइना का कंट्रोल पूरी तरह खत्म हो गया वहीं दूसरी ओर यूएसएसआर भी अपना एक्सपेंशन बहुत तेजी से कर रहा था लेकिन जापान को यह गवारा नहीं था इन दोनों की इसी नोक झोक के कारण 1904 से 1905 तक रशिया और जापान के बीच हमें रूसो जापानीज वॉर देखने को मिली और इसमें भी जापान जैसी छोटी
आइलैंड कंट्री ने यूएसएसआर जैसे विशाल देश को हरा दिया इस वॉर में रशिया की हार के बाद कोरिया पर जपान का कंट्रोल और भी ज्यादा बढ़ गया 1910 में जापान कोरिया एनेक्सेशन ट्रीटी के तहत कोरिया पूरी तरह से जापान की कॉलोनी बन गया जपान ने कोरिया के रिसोर्सेस के साथ-साथ उसके कल्चर और आइडेंटिटी को पूरी तरह से मिटाने की कोशिश की वह वहां पर पूरी तरह जापान का कल्चर एस्टेब्लिश करना चाहता था कोरिया के लोगों को स्लेव्स बनाकर जापान ले जाया जाता और उनसे बहुत बुरा बर्ताव किया जाता था जापानीज आर्मी कोरियन मेमन को कंफर्ट
विमेन मानकर सेक्स स्लेव्स की तरह यूज किया करती थी इसी कारण जपनीज इंपीरियल जम का यह दौर कोरियन इतिहास का सबसे बुरा दौर बताया जाता है खैर कई साल बीत गए और जापान का रूल और भी ज्यादा अग्रेसिव होता चला गया लेकिन फिर 1939 में वर्ल्ड वॉर ट की शुरुआत हुई और उसी के साथ इंपीरियल जापान की उल्टी गिनती शुरू हो गई आइए देखते हैं कि कोरिया जापान के रूल से कैसे मुक्त हुआ और कैसे इस किंगडम को दो भागों में डिवाइड किया गया कोरियन पेनिंस सुला स्प्लिट्स इनटू टू जैसा कि हम जानते ही हैं
वर्ल्ड वॉर टू के दौरान भी जापान बड़ी-बड़ी सुपर पावर को चेज कर रहा था इसी दौरान उसने अमेरिका के पर्ल हार्बर पर अटैक किया और इस गलती की उसको बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ी अगस्ट 1945 में अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा और नागासाकी पर एटॉमिक बम्स गिरा दिए और जापान इस न्यूक्लियर हमले से पूरी तरह टूट गया इसी के साथ वर्ल्ड वॉर टू में जापान ने सरेंडर कर दिया और यह वॉर खत्म हो गई जापान को कोरिया समेत अपनी सभी कॉलोनी को छोड़ना पड़ा अब कोरिया जापान के चंगुल से तो आजाद था लेकिन उसके लिए
तो असली युद्ध अब शुरू होने जा रहा था असल में जैसे ही जापान ने कोरिया में सरेंडर किया वैसे ही यूएसएसआर ने नॉर्थ की तरफ से और यूएस ने साउथ की तरफ से आकर इसको कैप्चर कर लिया इन दोनों ने अपनी सहमति से इस पेनिंस सुला को 38th पैरेलल के अगेंस्ट दो हिस्सों में बांट दिया नॉर्थ वाला हिस्सा यूएसएसआर को दे दिया गया और साउथ वाला यूएस के पास चला गया हालांकि अभी यह डिवीजन परमानेंट नहीं था और ना ही यह हिस्से अलग-अलग देश बने थे बाकी यह केवल 5 सालों के लिए एक टेंपररी अरेंजमेंट
किया गया था और इसके एडमिनिस्ट्रेशन को यूएस सोवियत जॉइंट कमीशन के हाथों में सौंप दिया गया 1943 में हुई कायरो कॉन्फ्रेंस में ही यह तय कर लिया गया था कि 5 साल बाद कोरिया को आजाद कर दिया जाएगा लेकिन दोस्तों उस समय यूएस और यूएसएसआर के बीच कोल्ड वॉर की शुरुआत भी हो चुकी थी दोनों गुटों के बीच अपनी-अपनी आइडियल को विश्व भर में फैलाने और सुपर पावर बनने की होड़ लगी हुई थी दोनों ही एक दूसरे पर जरा भी विश्वास नहीं करते थे वहीं दूसरी तरफ कोरियन सिटीजंस भी अब किसी फॉरेन रूल को एक्सेप्ट
करने के लिए तैयार नहीं थे वह खुद के लिए आजादी की मांग कर रहे थे जॉइंट कमीशन पूरी तरह से इनफेक्टिव साबित हो रहा था इस अनरेस्ट को देखते हुए यूएस ने अपने हिस्से में मार्शल लॉ अप्लाई कर दिया हालात को बिगड़ता हुआ देख यूएस ने यूएन के गाइडेंस के अंडर यहां पर फ्रेश इलेक्शंस कराने की बात कही लेकिन यह बात यूएसएसआर और कोरियन कम्युनिस्ट्स को पसंद नहीं आई अब कोरिया के यूनिफिकेशन के चांसेस बहुत दूर दिखाई दे रहे थे इसके चलते दोनों जगह अलग-अलग इलेक्शंस कराए गए और दोनों के लीडर्स को चुना गया 1948
में नॉर्थ कोरिया यानी डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कोरिया और साउथ कोरिया यानी रिपब्लिक ऑफ कोरिया के नाम से दो अलग-अलग नेशंस में डिवाइड हो गए नॉर्थ कोरिया में कम्युनिज्म के सपोर्टर किम इल सोंग और साउथ कोरिया में कैपिटल ज्म के सपोर्टर सिंग मान री प्रेसिडेंट बने इन दोनों ही लीडर्स को यूएस और यूएसएसआर के द्वारा जानबूझकर चुना गया था और दोनों ने ही इन लीडर्स को अपने-अपने रीजंस में हीरो की तरह प्रमोट किया धीरे-धीरे अमेरिकन और सोवियत ट्रूप्स को यहां से विड्रॉ कर लिया गया लेकिन यह स्ट्रगल अभी भी खत्म नहीं हुआ था आइए अब आपको
कोरियन सिविल वॉर से रूबरू कराते हैं जिसने कोरियन वॉर के इमीडिएट ट्रिगर का काम किया द सिविल वॉर तो दोस्तों देश में सिविल वॉर का माहौल अब शुरू हो चुका था जैसा हमने अभी देखा कोरियन सिटीजंस चाहते थे कि कोरिया फिर से यूनाइट हो जाए और वह इसके लिए लगातार रिवोल्ट कर रहे थे साथ ही दोनों साइड्स के लीडर एक दूसरे के हिस्से पर कब्जा कर पूरे कोरिया को अपने कंट्रोल में लाना चाहते थे इन दोनों लीडर्स का अपने रीजन में डेवलपमेंट पर कोई ध्यान नहीं था उनका केवल एक मकसद था और व था कोरिया
का यूनिफिकेशन इसके लिए ये एक दूसरे के रीजन में कई इल्लीगल एक्टिविटीज को सपोर्ट कर रहे थे अगर उनके रीजन में कोई दूसरे गुड को सपोर्ट कर रहा था तो उसको तुरंत ही मौत की घाट उतार दिया जाता था देखते ही देखते यह सिचुएशन बिगड़ती चली गई ऐसा ही एक मैसिव रिवोल्ट हमें साउथ कोरिया के पास मौजूद जेजू आइलैंड में देखने को मिला इस रिवोल्ट को जेजू अपराइज के नाम से जाना गया इस आइलैंड के लोग साउथ कोरियन प्रेसिडेंट सिंग मान री के अगेंस्ट थे और वह नहीं चाहते थे कि कोरिया दो हिस्सों में बटे
कहा जाता है कि अप राइजिंग को कम्युनिस्ट फोर्सेस द्वारा सपोर्ट किया गया था लेकिन जैसे ही यह लोग रिवोल्ट में खड़े हुए साउथ कोरिया की आर्मी ने इस आइलैंड पर जाकर इस रिवोल्ट को क्रश कर दिया और उसमें लगभग 300 लोग अपनी जान से हाथ धो बैठे यानी कि 1950 में फुल स्केल मिलिट्री ऑपरेशन शुरू होने से पहले ही इस सिविल वॉर में कई हजार लोग मारे जा चुके थे लेकिन इस इंसिडेंट से नॉर्थ कोरिया बहुत ज्यादा गुस्सा हुआ और कहा जाता है कि यही इवेंट कोरियन वॉर का असली स्टार्टिंग पॉइंट बना दोस्तों अब यहां
नोट करना जरूरी है कि 1947 से 1950 के बीच नॉर्थ कोरिया की आर्मी बहुत स्ट्रांग हो चुकी थी उसको सोवियत मिलिट्री से वेपंस और ट्रेनिंग के रूप में भरपूर सपोर्ट मिल रहा था वहीं यूएसए साउथ कोरिया को उतने वेपंस सप्लाई नहीं कर पा रहा था साउथ कोरिया के पास टैंक्स या एंटी टैंक वेपंस मौजूद नहीं थे और इसी बात का फायदा उठाते हुए नॉर्थ कोरिया उस पर डायरेक्ट अटैक कर देता है कहा जाता है कि उसका यह अटैक सोवियत मिलिट्री के एक्सपर्ट्स द्वारा ही प्लान किया गया था और यहीं से शुरुआत होती है कोरियन वॉर
की द फाइनल इनवेजन 25 जून 1950 को नॉर्थ कोरिया के 75000 ट्रूप्स अपने टैंक्स और आर्टिलरी के साथ साउथ कोरिया की आर्मी को पीछे धकेल हुए 38 पैरेलल को क्रॉस कर जाते हैं जल्दी ही वह साउथ कोरिया की कैपिटल सोल को कैप्चर कर लेते हैं 27 और 28 जून तक मल्टीपल कम्युनिकेशन फेलर्स के चलते साउथ कोरिया की आर्मी बुरी तरह हार जाती है और बुसान शहर को छोड़कर साउथ कोरिया के मैक्सिमम हिस्से पर कोरियन पीपल आर्मी यानी केपीएम एक ही उम्मीद थी यूएस का इंटरवेंशन लेकिन शुरुआत में यूएस इस मैदान में डायरेक्टली उतरना नहीं चाहता
था असल में 1949 में यूएसएसआर भी एक न्यूक्लियर पावर्ड स्टेट बन गया था ऐसे में यूएस को यह डर था कि अगर वह यहां इंटरवेनर है तो यह तीसरे विश्व युद्ध में तब्दील हो सकता है और क्योंकि अब यूएस और यूएसएसआर दोनों के पास ही न्यूक्लियर वेपंस मौजूद थे तो इस वॉर में म्यूचुअल अशो डिस्ट्रक्शन होना तय था ऊपर से उस समय कोरिया यूएस के लिए स्ट्रेटजिकली इतना इंपॉर्टेंट भी नहीं था लेकिन वहीं दूसरी तरफ यूएस को यह भी डर था कि जिस तरह उसने चाइनीज सिविल वॉर में इंटरवुड चाइना की स्थापना हो गई उसी
तरह अगर कोरिया को यूं ही छोड़ दिया गया तो हो सकता है कि वह भी पूरा कम्युनिस्ट इन्फ्लुएंस के अंडर आ जाए तो यूएस ने पहले यूनाइटेड नेशंस का सहारा लिया यूएन सिक्योरिटी काउंसिल ने इस अटैक को कंडेम करते हुए सोवियत रशिया के अगेंस्ट रेजोल्यूशन पास किया लेकिन यूएसएसआर ने इस सेशन को बॉयकॉट कर दिया इस कंडमनेशन के बाद यूएस पब्लिक का सपोर्ट इंटरवेंशन के फेवर में था तो फाइनली जनरल डगलस मेथर की कमांड के अंडर यूएन की फोर्सेस जिसमें यूएस समेत 21 और नेशंस शामिल थे उनको साउथ कोरिया की ओर तैनात कर दिया गया
जनरल मर्थर ने इस इंटरवेंशन के लिए एक फूल प्रूफ प्लान तैयार किया वह जापान से होते हुए साउथ कोरिया के भूसा शहर में एंटर करते हैं पहले वह वहां से केपी को पीछे धकेल हैं इसके बाद वह बोट्स के जरिए इंचिन शहर पर पहुंचकर वहां से केपीएम वह नॉर्थ कोरियन फोर्सेस की सप्लाई लाइन को तोड़ना चाहते थे क्योंकि अगर एक बार नॉर्थ से आने वाली सप्लाईज रुक जाती तो केपीएस ज्यादा दिन तक अपने ऑपरेशंस कंटिन्यू नहीं कर सकती थी और असल में ऐसा ही हुआ जनरल मैका आर्थर का यह प्लान सफल हुआ और कुछ ही
समय में उन्होंने पूरे साउथ कोरिया को फिर से रिकवर कर लिया लेकिन मेर्थर इसके बाद 38 पैरेलल पर नहीं रुके वो केपीएल हुए चाइना और नॉर्थ कोरिया के बॉर्डर यानी याल रिवर तक पहुंच गए ऐसी स्थिति में चाइना के साथ संघर्ष शुरू होने का रिस्क था इस रिस्क को देखते हुए प्रेसिडेंट ट्रू मन उनको पहले ही आगे बढ़ने से मना कर चुके थे लेकिन मर्थर ने इस बात को सीरियसली ना लेते हुए अपनी एडवांस कंटिन्यू रखे याल रिवर पर पहुंचकर जिसका डर था वही हुआ यूएसएसआर के कहने पर चाइना ने अपने लाखों सोल्जर्स यूएस आर्मी
के अगेंस्ट मैदान में उतार दिए और चाइनीज ट्रूप्स ने यूएन फोर्सेस को पीछे धकेल हुए 7थ जनवरी 1971 को एक बार फिर सोल को कैप्चर कर लिया लेकिन अप्रैल आते-आते यूएन कमांड फोर्सेस सोल को अपने कंट्रोल में ले लेती हैं जनरल मैका आर्थर प्रेसिडेंट ट्रूम को नॉर्थ कोरिया के अगेंस्ट न्यूक्लियर वेपन यूज करने के लिए कन्विंसिंग पर जनरल मका आर्थर को यूएस प्रेसिडेंट द्वारा वापस बुला लिया जाता है और दोनों साइड्स के बीच पीस टॉक्स शुरू होती हैं आफ्टर मैथ तो दोस्तों अब तक दोनों साइड्स यह समझ चुकी थी कि इस वॉर में किसी भी
एक साइड की ऑल आउट विक्ट्री संभव नहीं है लेकिन दोनों ही साइड्स सरेंडर करने के लिए भी राजी नहीं थी खैर दूसरी तरफ दोनों साइड्स के ऑफिशल्स नेगोशिएशंस कर रहे थे यह नेगोशिएशंस मिड 19 51 में शुरू होकर 1953 तक चली हालांकि इस बीच 38th पैरेलल के अक्रॉस फाइटिंग चलती रही लेकिन दोनों ही साइड्स में से किसी को भी कोई सिग्निफिकेंट गेन नहीं हुआ यानी कि यहां एक स्टेल मेट की पोजीशन बनी हुई थी खैर फाइनली 27 जुलाई 1953 को पानमुंजोम में यूएस और यूएन कमांड फोर्सेस ने केपी और चाइनीज आर्मी के साथ सीज फायर
एग्रीमेंट साइन किया इस एग्रीमेंट के तहत सभी होस्टिलिटीज पर पूर्ण विराम लगाया गया साथ ही 38th पैरेलल पर दोनों के बीच नई बाउंड्री ड्रॉ की गई इस लाइन के दोनों ओर 2 किलोमीटर वाइड डी मिलिटराइज्ड जोन एस्टेब्लिश किया गया इस जोन के बाहर का एरिया आज भी दुनिया का सबसे हैवली मिलिटराइज्ड एरिया है लेकिन असल में इस वॉर में ना तो किसी की जीत हुई और ना ही किसी की हार और टेक्निकली यह वॉर अभी भी चल रहा है क्योंकि दोनों साइड्स के बीच अभी तक कोई पीस ट्रीटी साइन नहीं हुई है सिर्फ सीज फायर
एग्रीमेंट पर ही साइन हुए हैं पर इस न साल चली लंबी लड़ाई में 3 मिलियन सिटीजंस और लगभग 1 मिलियन सोल्जर्स को अपनी जान की कुर्बानी देनी पड़ी दोनों ही फोर्सेस के द्वारा बहुत बड़े लेवल पर वॉर क्राइम्स किए गए और यह वॉर पॉपुलर कल्चर में एक फॉरगॉटेन वॉर बनकर रह गया हाउ डिड द यूएस लूज द वियतनाम वॉर आज हम आधुनिक इतिहास की एक ऐसी महत्त्वपूर्ण घटना की बात करेंगे जिसने अमेरिका के सुपर पावर होने के सारे दावों को चुनौती देने का काम किया यह कहानी है वियतनाम वॉर और उसमें अमेरिका की हार की
इस वीडियो में हम वियतनाम वॉर के हिस्टोरिकल टाइमलाइन को समझते हुए उन कारणों को जानेंगे जिनके चलते यूएस वियतनाम में लगभग 20 सालों तक लड़ता रहा लेकिन उसे जीत हासिल नहीं हुई 1950 में शुरू हुआ यह वॉर 1975 में जाकर खत्म हो गया जब नॉर्थ वियतनाम के कम्युनिस्ट फोर्सेस ने साउथ वियतनाम को अपने कब्जे में ले लिया तो चलिए आपको ले चलते हैं इतिहास में और पहले वियतनाम वॉर के इतिहास को एक टाइमलाइन के थ्रू समझते हैं उसके बाद हम उसमें यूएस की हार के कारणों की चर्चा करेंगे द टाइमलाइन ऑफ वियतनाम वॉर द रूट्स
दोस्तों वियतनाम वॉर की शुरुआत तो 1950 में हुई लेकिन इसकी रूट्स काफी पुरानी है कहानी शुरू हुई 1887x इंटरनेशनल हु चमन वियतनाम वॉर के सबसे इंपॉर्टेंट लीडर थे जो यूएस बैग्ड फोर्सेस से लड़ रहे थे सोवियत इस दौरान दुनिया भर के फ्रीडम मूवमेंट्स को इंस्पायर और सपोर्ट कर रहा था और होची मेन को भी इसी कांटेक्ट में उसने सपोर्ट किया 1930 में होची मिन ने अपने पॉलिटिकल करियर की शुरुआत की जब उन्होंने इंडो चाइनीज कम्युनिस्ट पार्टी का गठन किया कहानी को फास्ट फॉरवर्ड करते हैं और आपको ले चलते हैं वर्ल्ड वॉर टू में जून 1940
नाजी जर्मनी ने फ्रांस को कैप्चर कर लिया और जर्मन एला जापान फ्रेंच इंडोचाइना को इड कर अपना कंट्रोल एब्लिश करता है फ्रेंच और जपनीज दोनों के इंपीरियल को रेजिस्ट करने के लिए 1941 में हो चमन लीग फॉर द इंडिपेंडेंस ऑफ वियतनाम का गठन करते हैं जिसे वियत मिन के नाम से जाना गया आने वाले टाइम पर वियत मिन नॉर्थ वियतनामी आर्मी के साथ यूएस के खिलाफ वियतनाम वर में लड़ने वाले थी खैर 1945 में हिरोशिमा और नागासाकी न्यूक्लियर अटैक्स के चलते जापानीज एलाइड पावर्स के सामने सरेंडर कर देते हैं इसके चलते जापानीज एलाइड पावर्स के
सामने सरेंडर कर देते हैं फ्रांस फिर से इंडोचाइना में अपना कंट्रोल असर्ट करता है लेकिन होची मिन नॉर्थ वियतनाम में अपने कंट्रोल के चलते उसे इंडिपेंडेंट नेशन डिक्लेयर करते हैं यूएस एंटागनिस्ट म अवॉइड करने के लिए उन्होंने अपना डिक्लेरेशन ऑफ इंडिपेंडेंस अमेरिकन डिक्लेरेशन की तरह फ्रेम किया था लेकिन यह फ्यू यल साबित हुआ 1946 में होज मिन ने फ्रांस के अगेंस्ट गोरिला वॉर फेयर लॉन्च किया और 1947 में यूएस प्रेसिडेंट ट्रूम ने फ्रेंच वियतनाम के प्रति अपना सपोर्ट जाहिर किया कुछ सालों बाद 1949 में सोवियत यूनियन अपना फर्स्ट एटम बॉम टेस्ट करता है और माउजे
डोंग लेड कम्युनिस्ट चाइना की स्थापना होती है इन इवेंट्स ने इंटरनेशनल पॉलिटिक्स की शक्ल और सूरत बदल कर रख दी कोल्ड वॉर की शुरुआत हो चुकी थी और उसमें यूएसएसआर फैक्न अब एक पावरफुल एंटी यूएस राइवल की तरह इमर्ज होने लगा जिसका सपोर्ट होची मिन के साथ था 1950 में चाइना और सोवियत ने फॉर्मली नॉर्थ वियतनाम को रिकॉग्नाइज कर होची मिन को इकोनॉमिक और मिलिट्री एड देना शुरू किया उधर यूएस भी फ्रेंच को मिलिट्री और इकोनॉमिक असिस्टेंसिया [संगीत] 54 में कॉन्फ्लेट मैसिवली राइज हुआ और डीएन बीएन फू में ह्यूमल इि डिफीट के बाद फ्रेंच रूल
का अंत हुआ यूएस प्रेसिडेंट आइजनहावर ने डोमिनो इफेक्ट थ्योरी को प्रोपागेट कर कहा कि फ्रेंच डाउनफॉल पूरे साउथ ईस्ट एशिया में डोमिनो इफेक्ट क्रिएट कर कम्युनिज्म को एक्सपेंड करेगा जो यूएस इंटरेस्ट के खिलाफ होगा यह थिरी अगले एक दशक तक यूएस फॉरेन पॉलिसी की गाइडिंग प्रिंसिपल बनी खैर 1954 में ही जिनेवा अकॉर्ड ने नॉर्थ और साउथ वियतनाम को सेपरेट एंटिटीज की तरह रिकॉग्नाइज किया इन अ कॉर्ड्स में इलेक्शन कर वियतनाम को यूनाइट करने की बात थी लेकिन इलेक्शंस कभी हुए ही नहीं 1960 में साउथ वियतनाम में नेशनल लिबरेशन फ्रंट नाम के इंसर्जनल का फॉर्मेशन हुआ
जिसके चलते यूएस प्रेसिडेंट केनेडी ने साउथ वियतनाम में आर्म सपोर्ट को एक्सपेंड किया लेकिन यूएस अभी तक ऑन ग्राउंड वियतनाम वॉर में शामिल नहीं हुआ था 1962 में अमेरिका ने एक हाईली कंट्रोवर्शियल ऑपरेशन रैंच हैंड के तहत एजेंट ऑरेंज केमिकल वेपन को साउथ वियतनाम के फील्ड्स और रूरल एरियाज में स्प्रेड किया यह नॉर्थ वियतनाम में वेजिटेशन को खत्म कर गोरिला की छुपने की कैपेसिटीज को कम करने के लिए था लेकिन इसके इंपैक्ट्स काफी डेंजरस थे और कई लोकल्स और सोल्जर्स आज भी इसके साइड इफेक्ट्स झेल रहे हैं इसी दौरान 1955 में पावर में आए कैथोलिक
नेशनलिस्ट गो डिन डीएम के प्रति साउथ वियतनाम में सपोर्ट कम होने लगा उनके प्रेसिडेंशियल पैलेस में बॉम अटैक भी हुआ यह डीएम के कैथोलिक माइनॉरिटी की तरफ एक्सट्रीम फेवरेटिज्म के चलते हुआ जिससे वहां के बुद्धिस्ट नाराज थे 1963 में डीएम ने बुद्धिस्ट प्रोटेस्टर्स पर ओपन फायर करवाया जिसने बुद्धिस्ट क्राइसिस को जन्म दिया यूएस ने भी रियलाइफ इंटरेस्ट फुलफिल नहीं होगा इसलिए उसने डीएम के अगेंस्ट मिलिट्री कू के थ्रू उसे से ओवरथ्रो करवा दिया 1963 से 1965 तक साउथ वियतनाम में 12 गवर्नमेंट्स बदली गई और यह पॉलिटिकल इंस्टेबिलिटी भी यूएस लॉस का कारण बनी यूएस सोल्जर्स
एंटर इनटू वियतनाम 1963 में यूएसए के प्रेसिडेंट केनेडी का एसिनेट हो गया और लिंडन जॉनसन नए प्रेसिडेंट बने 1964 में यूएस ने नॉर्थ वियतनामी पर गल्फ ऑफ टोंकिन में यूएसएस मेडॉक्स डिस्ट्रॉयर शिप पर अटैक का आरोप लगाया इसके बाद यूएस कांग्रेस ने गल्फ ऑफ टोंकिन रेजोल्यूशन पास कर यूएस प्रेसिडेंट को पावर्स दी कि वह कोई भी नेसेसरी मेजर्स ले सकते हैं इंक्लूडिंग ऑन ग्राउंड आर्म्ड फोर्सेस इन वियतनाम मार्च 1965 में फाइनली यूएस मरींस फर्स्ट कॉम्बैट ट्रूप्स की तरह वियतनाम वॉर में एंटर करते हैं और 1969 तक वियतनाम में 5 लाख से ज्यादा यूएस फोर्सेस स्टेशन
थी लेकिन कुछ इनिशियल सक्सेसेस जैसे बैटल ऑफ स्ट लाइट के अलावा यूएस लगातार वियतनाम में चैलेंज फेस करता है डेट ऑफेंसिव एंड लॉस ऑफ पॉपुलर सपोर्ट अप्रैल 1967 में यूएस में मैसिव एंटी वॉर प्रोटेस्ट्स देखे गए ये प्रोटेस्ट्स यूएस के वियतनाम में हुए लॉसेस के चलते हो रहे थे फॉर एग्जांपल बैटल ऑफ डार्क में यूएस और साउथ वियतनाम ने अपने 1800 सोल्जर्स खो दिए थे 1968 में नॉर्थ वियतनाम अपना गेम चेंजिंग अटैक टेट ऑफेंसिव लॉन्च करता है यह अटैक्स साउथ वियतनाम के 100 से ज्यादा सिटीज और आउटपोस्ट में देखे गए इंक्लूडिंग हुए और साइ गन
यूएस एंबेसी पर भी अटैक्स हुए इस ऑफेंसिव में हुई सोल्जर्स की डेथ और फ्रस्ट्रेटेड यूएस फोर्सेस का इनफेमस माय लाइ मासेकर में 500 से ज्यादा सिविलियंस को मार देने की खबरों ने डोमेस्टिक सपोर्ट को और कमजोर कर दिया नतीजतन 1968 में ही लिंडन जॉनसन 20th पैरेलल के नॉर्थ में में बिंग्स को हल्ट कर नेक्स्ट इलेक्शन ना लड़ने का अनाउंसमेंट करते हैं प्रेसिडेंट रिचर्ड निक्सन पावर में आते हैं वॉर में यूएस सोल्जर्स को रिड्यूस करने का डिसीजन लेते हैं वियतनाम में 1969 में प्रेजेंट 5.5 लाख से ज्यादा यूएस सोल्जर्स 1972 तक सिर्फ 65000 थे 1970 में
यूएस सिक्योरिटी एडवाइजर हेनरी किसिंजर नॉर्थ वियतनाम के साथ सीक्रेट नेगोशिएशंस भी स्टार्ट करते हैं और यूएस कांग्रेस गल्फ ऑफ टोंकिन रेजोल्यूशन को रिपील कर देती है पेंटागन पेपर्स एंड यूएस एग्जिट ऑफिशियल लेवल पर तो निक्सन वियतनाम में इवॉल्वमेंट को कम करने का दावा करते रहे लेकिन 1971 में न्यूयॉर्क टाइम्स द्वारा रिलीज्ड पेंटागन पेपर्स ने रिवील किया कि यूएस गवर्नमेंट सीक्रेट वियतनाम में अपना इवॉल्वमेंट बढ़ा रही थी मौके का फायदा उठाकर 1972 में नॉर्थ वियतनाम मैसिव ऑफेंसिव लॉन्च कर साउथ वियतनाम के कई टेरिटरीज को कैप्चर कर लेता है रिस्पांस में निक्सन एडमिनिस्ट्रेशन ऑपरेशन लाइन बैकर लॉन्च
कर नोई और हाईफोंग के बीच रफल 20000 टंस ऑफ बॉम्ब्स ड्रॉप करती है यह रीजन काफी पॉपुलेशन जनवरी 27 1973 में निक्सन पेरिस पीस अकॉर्ड साइन कर वियतनाम में डायरेक्ट यूएस इवॉल्वमेंट को खत्म कर देते हैं नॉर्थ वियतनामी सीज फायर एक्सेप्ट करते हैं लेकिन जैसे ही यूएस ट्रूप्स वियतनाम से विड्रॉ करते हैं वैसे ही नॉर्थ वियतनामी ज साउथ वियतनाम को ओवरटेक करने के प्लांस में लग जाते हैं द फॉल ऑफ साइ गन अप्रैल 1975 में साउथ वियतनाम की कैपिटल सागौन को कम्युनिस्ट सीज कर लेते हैं नॉर्थ और साउथ वियतनाम को जुलाई 1975 में यूनाइट कर
दिया गया और वियतनाम फॉर्मली एक सोशलिस्ट रिपब्लिक अंडर हार्डलाइन कम्युनिस्ट कंट्री की तरह इमर्ज हुआ कुछ सोर्सेस के हिसाब से इस वॉर के अंत तक लगभग 58000 अमेरिकन 11 लाख नॉर्थ वियतनामी और ा लाख साउथ वियतनामी सोल्जर्स और लगभग 20 लाख सिविलियंस मारे गए तो यह था वियतनाम वॉर का इतिहास आइए अब देखते हैं कि यह वॉर यूएस आखिर हारा क्यों व्हाई डिड द यूएस लूज सबसे मेजर कारण था साउथ वियतनाम में लैक ऑफ एंथू सियाज सोल्जर्स एंड पीपल्स सपोर्ट हिस्टोरियन केविन बोलन कहते हैं कि साउथ वियतनाम की इनएफिशिएंट और करप्ट गवर्नमेंट अपने सोल्जर्स और
लोगों को वॉर के लिए ढंग से कन्वेंस ही नहीं कर पाई वहां कम्युनिज्म के खिलाफ लड़ाई हाफ हार्टेड तरीके से चली वहीं दूसरी तरफ एंटी इंपीरियल और नेशनलिस्ट सेंटीमेंट क्रिएट करने में कम्युनिस्ट सक्सेसफुल हुए कम्युनिस्ट्स ने वियतनामी को कन्विंसिंग का कारण यूएस सपोर्टेड करप्ट साउथ वियतनामी गवर्नमेंट है इसलिए उनके खिलाफ लड़ना ही उनका मकसद होना चाहिए साउथ वियतनामी आर्मी नॉर्थ वियतनामी से नंबर और वेपंस दोनों में काफी ज्यादा पावरफुल थी इवन विदाउट यूएस सपोर्ट वह अगर कन्वे से लड़ते तो शायद जीत जाते यही वजह है कि वॉर के बाद लेफ्टिनेंट जनरल आर्थर एस कॉलिंस ने
कहा कि चाहे यूएस जितना भी सपोर्ट देता इट वाज इंपॉसिबल फॉर साउथ वियतनाम टू सरवाइव अगला कारण था वहां की फ्रेगमेंटेड पॉलिटिक्स सदर्न वियतनाम में कम्युनिज्म को लेकर अपोजिशन काफी फ्रेगमेंटेड था और कम्युनिज्म के खिलाफ स्ट्रांग सेंटीमेंट्स रखने वाले लोग भी धीरे-धीरे कम हो गए वियतनामी का पॉपुलर सपोर्ट कम्युनिस्ट गोरिला की तरफ शिफ्ट हुआ और सिविलियंस ने उन्हें अपने घरों में पनाह दी यूएस के लिए सिविलियंस और गोरिला में डिफरेंशिया अगला कारण था यूएस के खुद की इंटरनल प्रॉब्लम्स और लैक ऑफ कंप्लीट कमिटमेंट टू फाइट भले ही साउथ वियतनाम के कन्विंसिबल एंडेवर था वियतनाम में
वॉर को फंड करने के लिए यूएस को अपने टैक्सेस को रेज करना पड़ता और इमरजेंसी फाइनेंशियल रिजर्व्स को यूज करना पड़ता पर यूएस ने यह नहीं किया क्योंकि प्रेसिडेंट जॉनसन अगर ऐसा करते तो वॉर सपोर्ट और उनकी गवर्नमेंट के प्रति सपोर्ट भी कम हो जाता अगला कारण था यूएसएसआर और चाइना का नॉर्थ वियतनाम में सपोर्ट गोरिला के लिए खुद के दम पर रिसोर्सेस को मोबिलाइज कर पाना कठिन था सिर्फ अपने दम और गोरिला टैक्टिक से व यूएस असल्ट को सस्टेन कर सकते थे लेकिन वॉर जीतना मुश्किल था इसलिए उनकी जीत में यूएसएसआर और चाइनीज सपोर्ट
एक क्रुशल फैक्टर बना अगला कारण यूएस में डिटेरिटोरियलाइजेशन वॉर हमने पहले ऐसे कई इवेंट्स की चर्चा की जिन्होंने यूएस में एंटी वॉर सेंटीमेंट्स को जन्म दिया हजारों सोल्जर्स की डेथ नॉर्थ वियतनाम का सक्सेसफुल टेट ऑफेंसिव और पेंटागन पेपर्स जैसे इवेंट्स ने रिड्यूस सपोर्ट फॉर व में कंट्रीब्यूट किया 1960 में यूएस में मैसिव एंटी वॉर प्रोटेस्ट देखे गए और यूएस कांग्रेस ने भी वियतनाम वॉर को सपोर्ट करने वाले रेजोल्यूशन को वापस ले लिया दोस्तों वियतनाम में यूएस की हार को लेकर एक और थरी है जिसका नाम है द लॉस्ट विक्ट्री थीसिस इसके हिसाब से यूएस वियतनाम
में जीत की कगार पर था लेकिन वह सिर्फ डोमेस्टिक फैक्टर्स और नेगेटिव मीडिया रिपोर्टिंग के चलते हारा इसका दावा है कि एक्सपर्ट्स का वॉर के वक्त ही यूएस वीकनेसेस का मीडिया के थ्रू प्रोपेगेशन यूएस के लिए भारी पड़ा इस नेगेटिव मीडिया रिपोर्टिंग ने नॉर्थ वियतनामी के कॉन्फिडेंस को बूस्ट किया और वह फियर्सली लड़ते रहे वैसे लॉस्ट विक्ट्री थी के प्रति हिस्टोरियंस में ज्यादा सपोर्ट नहीं है और इस बात पर कंसेंसस ज्यादा है कि वियतनाम वॉर यूएस के लिए शुरू से ही अनविन बल था कई मिलिट्री स्ट्रेटजिस्ट जैसे सीआईए ऑफिसर थॉमस एन जूनियर भी यूएस की
इंपॉसिबल जीत के आईडिया को सपोर्ट करते हैं तो यह थी यूएस की वियतनाम वॉर में हार की कहानी फोल ऑफ द यूएसएसआर 25 दिसंबर 1991 मॉस्को में क्रेमलिन पर आखरी बार सोवियत फ्लैग लहराता है वंस माइटी सोवियत यूनियन यानी कि यूएसएसआर दुनिया के नक्शे से गायब हो जाता है दोस्तों एक समय पर सोवियत यूनियन दुनिया की सबसे लार्जेस्ट कंट्री हुआ करता था यह 22 मिलियन स्क्वायर किलोमीटर से भी ज्यादा का एरिया कवर करता था इसके पतन के बाद वर्ल्ड मैप पर 15 नए देश जन्म लेते हैं आखिर ऐसा क्या हुआ 1991 में कि सुपर पावर
यूएसएसआर का 72 साल का अस्तित्व अचानक से खत्म हो गया कैसे इतना बड़ा एंपायर पूरी तरह बिखर गया आइए जानते हैं इंट्रोडक्शन दोस्तों सोवियत यूनियन ऑफिशियल यूनाइटेड ऑफ सोवियत सोशलिस्ट रिपब्लिक्स यूएसएसआर का जन्म 1917 की अक्टूबर क्रांति के बाद हुआ था अक्टूबर क्रांति या रेवोल्यूशन में बोलशेविक्स रशियन प्रोविजनल गवर्नमेंट को ओवरथ्रो करते हैं इससे पहले फेबरी रेवोल्यूशन के जरिए ऑटोक्रेटिक रूलर जार निकलस द सेकंड को रिप्लेस करके इस प्रोविजनल गवर्नमेंट को फॉर्म किया गया था हालांकि ऑफिशियल न्यू गवर्नमेंट की फॉर्मेशन रशियन सिविल वॉर के बाद होती है जो 1922 तक चलता है 1922 में जब
यूएसएसआर फॉर्म होता है तब यह चार रिपब्लिक से मिलकर बना था जो थी रशियन यूक्रेनियन बेलारुसियन और ट्रांस कॉकेशियन रिपब्लिक्स आगे चलकर यह 15 रिपब्लिक्स का यूनियन बन जाता है लेनिन की लीडरशिप में फॉर्म हुए यूएसएसआर को स्टैन एक टोटलिटेरियन स्टेट में कन्वर्ट कर देते हैं सेकंड वर्ल्ड वॉर के बाद यूएसएसआर वर्ल्ड की सुपर पावर के रूप में उभरता है और इसी के साथ यूएसए के साथ इसका साइकोलॉजिकल वॉर फेयर यानी कि कोल्ड वॉर भी शुरू हो जाता है करीब पांच दशकों तक वर्ल्ड पावर रहने के बाद यूएसएसआर में डिक्लाइन के साइंस नजर आने लगते
हैं इसके पीछे यूएसएसआर के इंटरनल स्ट्रक्चर के साथ कुछ एक्सटर्नल फैक्टर्स भी रिस्पांसिबल थे एक-एक करके समझते हैं इंटरनल वीकनेसेस ऑफ द यूएसएसआर दोस्तों यूएसएसआर एक टोटलिटेरियन स्टेट था यहां पर किसी भी तरह की सिविल लिबर्टीज लोगों के पास नहीं थी पूरी तरह ब्यूरोक्रेटिक और अथॉरिटेरियन सिस्टम यहां की पहचान बन चुका था इसी के साथ वन पार्टी सिस्टम जिसमें सिर्फ कम्युनिस्ट पार्टी थी लोगों के प्रति अकाउंटेबल नहीं था इसके अलावा एक बड़ी समस्या यह थी कि यहां रशिया का डोमिनेंस था कहने का मतलब यह है कि रशिया के अलावा बाकी रिपब्लिक्स के इंटरेस्ट की अनदेखी
हुआ करती थी फॉर एग्जांपल ऑफिशियल लैंग्वेज सिर्फ रशियन थी और किसी भी रिपब्लिक की लैंग्वेज को एक्सेप्ट नहीं किया गया था इसके अलावा रशियन कस्टम्स को रिपब्लिक्स के लोकल कस्टम्स की जगह प्रमोट किया जाता था इन सब प्रॉब्लम्स की वजह से इंडिविजुअल रिपब्लिक्स को सिस्टम से नफरत होने लगी थी वह किसी भी तरह इस अथॉरिटेरियन रूल से बाहर आना चाहते थे इसके साथ ही रिपब्लिक्स में ती हुई नेशनलिस्ट फीलिंग भी यूएसएसआर के लिए एक बड़ा चैलेंज बनी हुई थी इसके अलावा कोल्ड वॉर के दौरान यूएसएसआर डिफेंस और स्पेस पर जरूरत से ज्यादा खर्च करता है
जिसकी वजह से इंफ्रास्ट्रक्चर और टेक्नोलॉजी सफर करने लगते हैं इकोनॉमिक कंडीशन खराब होने लगती है लोगों को डेली नेसेसिटीज के लिए परेशान होना पड़ता है यह सब तो यूएसएसआर की इंटरनल प्रॉब्लम्स थी लेकिन इन्हें कंपाउंड करते हैं कुछ एक्सटर्नल फैक्टर्स एक्सटर्नल फैक्टर्स दोस्तों यूएसएसआर की इंटरनल वीकनेसेस को और भी स्टार्क एक्सटर्नल फैक्टर्स बनाते हैं जैसे कि डेमोक्रेटिक नेशंस की प्रोग्रेस जब यूएसएसआर के लोग अपने नेबरिंग डेमोक्रेटिक नेशंस जैसे कि वेस्टर्न जर्मनी फ्रांस एसेट को प्रॉस्पर होते हुए देखते हैं तो उन्हें रियलाइफ गंडा इसके साथ ही ईस्टर्न यूरोपियन कंट्रीज यानी कि सोशलिस्ट ब्लॉक में क्राइसिस भी
यूएसएसआर को कमजोर बनाती है एक-एक करके यह कंट्रीज यूएसएसआर के इन्फ्लुएंस से बाहर होती जाती हैं यह तो बात हुई यूएसएसआर के कुछ इंटरनल और एक्सटर्नल चैलेंज की लेकिन एगजैक्टली यूएसएसआर का डिसइंटीग्रेशन कैसे होता है क्योंकि यह चैलेंज तो काफी समय से बने हुए थे फिर 1991 में आकर ही क्यों यूएसएसआर बिखड़ जाता है इसका रीजन था इस दौरान हुए कुछ इवेंट्स आइए जानते हैं इन इवेंट्स के बारे में इवेंट्स लीडिंग टू डिसइंटीग्रेशन दोस्तों ऐसा माना जाता है कि सोवियत यूनियन का डिसोल्यूशन उसके लास्ट लीडर गोरवा चव के पावर में आने के साथ शुरू होता
है मार्च 1985 में गौरब चव कम्युनिस्ट पार्टी के लीडर बनते हैं और वह कुछ ऐसी पॉलिसीज इनिशिएटिव होता है यह पॉलिसीज थी ग्लास्नोस्ट एंड पेरेस का ग्लास नॉस्ट यानी कि पॉलिटिकल ओपनस इसके थ्रू गरबा चव स्टैनिस रिप्रेशन के ट्रेसेस को एलिमिनेट करना चाहते थे जैसे कि बैनिंग ऑफ बुक्स और ओमनीप्रेजेंट सीक्रेट पुलिस इसके तहत सोवियत सिटीजंस को न्यू फ्रीडम मिलती हैं पॉलिटिकल प्रिजनर्स को रिलीज कर दिया जाता है और पहली बार कम्युनिस्ट पार्टी के अलावा और भी पार्टीज को इलेक्शंस में पार्टिसिपेट करने का मौका मिलता है सेकंड सेट ऑफ रिफॉर्म्स को पेरेस्ट्रोइका या या इकोनॉमिक
रिस्ट्रक्चरिंग कहा जाता है गोरवा चेफ के अनुसार सोवियत इकॉनमी को रिवाइव करने का बेस्ट वे है उस पर से गवर्नमेंट ग्रिप को लूज करना उनको लगता था कि प्राइवेट इनिशिएटिव इनोवेशन को लीड करेंगे इसलिए 1920 के बाद पहली बार इंडिविजुअल्स और कोऑपरेटिव्स को बिजनेसेस को ओन करना अलाउ कर दिया जाता है वर्कर्स को बेटर वेजेस और कंडीशंस के लिए स्ट्राइक करने का राइट दे दिया जाता है साथ ही गरबा चव सोवियत एंटरप्र प्रास में फॉरेन इन्वेस्टमेंट को भी इनकरेज करते हैं दोस्तों गरबा चव के रिफॉर्म्स तो इतने अच्छे और पॉजिटिव नजर आ रहे हैं फिर
इनकी वजह से यूएसएसआर का डिक्लाइन कैसे हो गया ऐसा इसलिए क्योंकि इन रिफॉर्म्स का असर तुरंत नहीं दिखता पेरेस त्रोइका ने सोवियत स्टेट की कमांड इकॉनमी को एक झटके में खत्म कर दिया था लेकिन मार्केट इकॉनमी को मैच्योर होने में समय लग रहा था गरबा चेव के खुद के शब्दों में कहे तो न्यू सिस्टम के काम शुरू करने से पहले ही ओल्ड सिस्टम कोलैक्स हो जाता है गरबा चव की पॉलिसीज का इमीडिएट रिजल्ट बस रशिंग शॉर्टेजेस और गुड्स के लिए कभी ना खत्म होने वाली कतार के रूप में नजर आता है इसके परिणाम स्वरूप लोगों
में गवर्नमेंट के प्रति फ्रस्ट्रेशन बढ़ता ही जाता है द रेवोल्यूशन ऑफ 1989 एंड द फॉल ऑफ द सोवियत यूनियन दोस्तों गोर बचय बिलीव करते थे कि बेटर सोवियत इकॉनमी के लिए रेस्ट ऑफ द वर्ल्ड के साथ बेटर रिलेशनशिप्स बहुत जरूरी हैं स्पेशली यूनाइटेड स्टेट्स के साथ इसीलिए वह आर्म्स रेस से बाहर आने का फैसला करते हैं गोर्बा चव अनाउंस करते हैं कि अफगानिस्तान से सोवियत ट्रूप्स का विथड्रावल में इंगेज्ड हैं इसके साथ ही ईस्टर्न यूरोप के वस ो पैक्ट नेशंस में भी सोवियत मिलिट्री प्रेजेंस को कम कर दिया जाता है इस नॉन इंटरवेंशन की पॉलिसी
से सोवियत यूनियन पर तो गहरे प्रभाव देखने को मिलते ही हैं लेकिन इससे पहले इसका असर ईस्टर्न यूरोपी अलायंस पर देखने को मिलता है जो कुछ ही महीनों में किसी रेत के किले की तरह ढह जाते हैं 1989 का फर्स्ट रेवोल्यूशन पोलैंड में होता है जहां नॉन कम्युनिस्ट ट्रेड यूनियनिस्ट सॉलिड टी मूवमेंट लॉन्च करते हैं और कम्युनिस्ट गवर्नमेंट से फ्री इलेक्शंस की डिमांड करते हैं सोवियत मिलिट्री की तरफ से हेल्प ना मिलने पर गवर्नमेंट को इनकी डिमांड्स को एक्सेप्ट करना ही पड़ता है और इलेक्शंस में सॉलिड मूवमेंट के लीडर्स को बड़ी सक्सेस मिलती है इसकी
जह से पूरे ईस्टर्न यूरोप में पीसफुल रेवोल्यूशन शुरू हो जाते हैं 9th नवंबर 1989 को बर्लिन वॉल का भी फॉल होता है और कम्युनिस्ट और नॉन कम्युनिस्ट जर्मनी एक बार फिर से यूनाइट हो जाते हैं उसी समय चेकोस्लोवाकिया में वेलवेट रेवोल्यूशन के थ्रू कम्युनिस्ट गवर्नमेंट को ओवरथ्रो कर दिया जाता है इस तरह 1989 में जून से डिसंबर के बीच पोलैंड हंगरी ईस्ट जर्मनी चेकोस्लोवाकिया बल्गेरिया और रोमे निया की कम्युनिस्ट गवर्नमेंट्स का पतन होता है अब अगली बारी खुद सोवियत यूनियन की थी द सोवियत यूनियन क्लैप्स दोस्तों ईस्टर्न यूरोप में चल रही हवा जल्दी ही यूएसएसआर
में भी पहुंच जाती है सोवियत रिपब्लिक्स को ईस्टर्न यूरोप में हो रहे रेवोल्यूशन से इंस्पिरेशन मिलती है खराब इकोनॉमिक कंडीशंस की वजह से वह पहले से ही फ्रस्ट्रेटेड थे इसके बाद सोवियत सेटेलाइट्स के प्रति गोरवा चव के हस्तक्षेप ना करने यानी कि हैंड्स ऑफ पॉलिसी को देखकर यूएसएसआर के फ्रिंजेस पर लोकेटेड रिपब्लिक्स में इंडिपेंडेंस मूवमेंट शुरू हो जाते हैं 1990 में एक-एक करके बाल्टिक स्टेट्स यानी कि एस्टोनिया लिथुआनिया और लाटविया मॉस्को से अपनी इंडिपेंडेंस डिक्लेयर कर देते हैं सोवियत ट्रूप्स भी मूवमेंट को रोकने में असफल रहते हैं सोवियत यूनियन के बाकी रिपब्लिक्स में भी धीरे-धीरे
इंडिपेंडेंस की डिक्लेरेशंस शुरू हो जाती हैं ऐसे में गौरवा चव फैसला करते हैं कि रिपब्लिक्स के साथ मिलकर एक डिसेंट्रलाइज्ड यूनियन फॉर्म की जाए जिसमें सभी रिपब्लिक्स को ग्रेटर ऑटोनॉमी दी जाएगी इस तरह रिपब्लिक्स की डिमांड भी पूरी हो जाएगी और यूएसएसआर का एसिस्टेंसिया को साइन किया जाना था लेकिन कम्युनिस्ट पार्टी के कुछ मेंबर्स जिसमें वाइस प्रेसिडेंट गनेड यान येव भी शामिल थे ऐसी किसी भी ट्रीटी के अगेंस्ट थे यह लोग एक कू प्लान करते हैं और एक 18 अगस्ट 1991 को गौरब चव को हाउस अरेस्ट करवा देते हैं क्योंकि इनके अनुसार गौरब चव की
वजह से ही यूएसएसआर कमजोर हो रहा था और यह किसी भी तरह से यूएसएसआर और कम्युनिस्ट पार्टी का डोमिनेंस बनाए रखना चाहते थे हालांकि इस इंप्रिजनमेंट के लिए ऑफिशियल रीजन दिया जाता है कि हेल्थ रीजंस की वजह से गौरवा चव अब प्रेसिडेंट की तरह लीड नहीं कर सकते कू के लीडर्स स्टेट ऑफ इमरजेंसी डिक्लेयर कर देते हैं और मिलिट्री मॉस्को में पहुंचने लगती है लेकिन वहां उसका सामना ह्यूमन चेंस और सिटीजन से होता है जो रशियन पार्लियामेंट को प्रोटेक्ट करने के लिए बैरिकेड बिल्ड कर रहे थे बॉरिस लसन जो उस समय रशियन पार्लियामेंट के हेड
थे मिलिट्री के एक टैंक पर खड़े होते हैं और सराउंडिंग क्राउड को सपोर्ट के लिए रैली करते हैं इनके प्रयासों से कू तीन दिन में ही फेल हो जाता है 2 अगस्ट को कू लीडर्स अपनी हार मान लेते हैं और उन्हें अरेस्ट कर लिया जाता है ल्थ न की जीत होती है और गौरब चव वापस मॉस्को लौट पाते हैं लेकिन अब सिचुएशन पहले जैसी नहीं हो सकती थी इस फेल्ड कू के काफी इंपॉर्टेंट कंसीक्वेंसेस होते हैं कम्युनिस्ट पार्टी का नाम पूरी तरह खराब हो जाता है गौरब चव खुद भी कन्विंसिंग सेक्रेटरी की पोजीशन से रिजाइन
कर देते हैं लसिन को लोग हीरो मान लेते हैं और गौर वचव साइडलाइन होने लगते हैं लसिन रशियन फेडरेशन को एक सेपरेट नेशन की तरह ही रूल करने लगते हैं और जब 1 दिसंबर 1991 को यूक्रेन जो कि रशिया के बाद सोवियत यूनियन की सबसे बड़ी रिपब्लिक थी अपनी इंडिपेंडेंस डिक्लेयर कर देता है तो क्लियर हो जाता है कि ओल्ड यूएसएसआर अब खत्म हो चुका है 8 दिसंबर 1991 को लसिन यूक्रेन और बेलारूस के प्रेसिडेंट्स के साथ मिलकर एक ट्रीटी साइन करते हैं जिसके अनुसार रिपब्लिक्स का एक नया यूनियन फॉर्म किया जाता है है इसे
कॉमनवेल्थ ऑफ इंडिपेंडेंट स्टेट्स यानी सीआईएस नाम दिया गया इस यूनियन को अगले ही हफ्ते एट और रिपब्लिक्स जॉइन कर लेते हैं वैसे तो रिपब्लिक्स पूरी तरह इंडिपेंडेंट थे लेकिन वह डिफेंस और इकोनॉमिक मैटर्स पर साथ काम करने का फैसला लेते हैं और इस तरह यूएसएसआर को फॉर्मली डिसोल्व कर दिया जाता है गौर ब चव क्रिसमस वाले दिन यानी कि 25 दिसंबर 1991 को रिजाइन कर देते हैं दोस्तों यूएसएसआर के फॉल में गरबा चेव का रोल बहुत ही इंपॉर्टेंट माना जाता है इसलिए आइए इसका भी असेसमेंट कर लेते हैं असेसमेंट ऑफ गरबा चव रशिया के ज्यादातर
लोग दोस्तों गरबा चव को एक फेलियर ही मानते थे हालांकि सबके रीजंस जरूर अलग थे कंजरवेटिव्स जहां इन्हें यूएसएसआर और पार्टी के डाउनफॉल का जिम्मेदार मानकर ट्रेटर बोलते थे वहीं रेडिकल रिफॉर्मर्स को लगता था कि यह कम्युनिज्म के सपोर्टर थे और अन रिफॉर्म बल सिस्टम को रिफॉर्म करने की कोशिश कर रहे थे और आम लोगों की राय में तो गरबा चेव एक वीक और इन कंपट रूलर थे जिनकी वजह से उनका स्टैंडर्ड ऑफ लिविंग गिरता जा रहा था लेकिन दोस्तों यह कहना गलत नहीं होगा कि गरबा चव असल में 20th सेंचुरी के आउटस्टैंडिंग लीडर्स में
से एक थे इन्होंने ना सिर्फ कोल्ड वॉर एंड करने के प्रयास किए बल्कि ईस्टर्न यूरोप की कंट्रीज को फ्री और इंडिपेंडेंट होना भी अलाव किया साथ ही इनम और पॉलिटिकल रिफॉर्म्स जैसे स्ट्रांग इनिशिएटिव भी लच किए वो अलग बात है कि इनके प्रयासों को कितनी सफलता मिली लेकिन इनकी सोच और विजन में जरूर एक बड़े लीडर की निशानी देखी जा सकती है कोल्ड वॉर टेंशंस को खत्म करने के महत्त्वपूर्ण योगदान के लिए 1990 में इन्हें नोबेल पीस प्राइज भी दिया गया था और एक फन फैक्ट दोस्तों गोर्ब चव इ स्टिल अलाइव मार्च 2021 में इन्होंने
अपना 90th बर्थडे सेलिब्रेट किया है कंक्लूजन दोस्तों इस तरह 1922 में फॉर्म हुए यूएसएसआर का 1991 में आकर डिसइंटीग्रेशन हुआ इस इवेंट को वर्ल्ड हिस्ट्री का एक टर्निंग पॉइंट भी माना जाता है इसने ना सिर्फ एक बड़े देश के टुकड़े कर दिए बल्कि दुनिया से एक सुपर पावर का नाम भी मिटा दिया यूएसएसआर के डिक्लाइन के साथ ही कोल्ड वॉर का भी एंड माना जाता है और यहीं से यूएसए की लोन सुपर पावर के रूप में जर्नी शुरू होती है नॉन अलाइन मूवमेंट या नम दोस्तों 1940 के बाद एशिया और अफ्रीका के कई देशों का
इंडिपेंडेंट नेशन की तरह मर्ज होना वर्ल्ड हिस्ट्री में एक नए फेज की शुरुआत करता है यह देश जिन्हें सालों तक सप्रे किया गया था और गुलामी में रखा गया था अब दुनिया में एक इंपॉर्टेंट रोल निभाने के लिए तैयार थे लेकिन इनके लिए रास्ता आसान नहीं था क्योंकि इन सभी देशों की प्रॉब्लम्स और भविष्य को लेकर इनकी एस्पिरेशंस काफी हद तक एक दूसरे से मिलती थी इसलिए एक साथ आकर काम करने में ही समझदारी थी इसके साथ ही यह दौर कोल्ड वॉर का भी था और इन न्यूली इंडिपेंडेंट नेशंस के लिए सुपर पावर्स की राइवल्री
से बचना बहुत ही जरूरी था इन्हीं सब जरूरतों को पूरा करने के लिए डेवलपमेंट होता है नॉन अलाइड मूवमेंट का आज हम इस मूवमेंट के इतिहास इसके प्रिंसिपल्स पर्पसस और इसके एवोल्यूशन की बात करेंगे तो आइए शुरू करते हैं हिस्ट्री नॉन अलाइड मूवमेंट यानी नम की कहानी शुरू होती है 1955 में हुई बुंग कॉन्फ्रेंस से यह एक एफ्रो एशियन कॉन्फ्रेंस थी जो कि इंडोनेशिया के बुंग शहर में हुई थी इसमें 23 एशियन और सिक्स अफ्रीकन देशों ने भाग लिया था कॉन्फ्रेंस की डेलिबरेशंस में तीन एशियन देशों यानी इंडिया चाइना और इंडोनेशिया ने अहम भूमिका निभाई
थी कॉन्फ्रेंस का एम उस समय के वर्ल्ड इश्यूज को असेस करना और इंटरनेशनल रिलेशंस में जॉइंट पॉलिसीज को पसू करना था सभी छोटे-बड़े देशों के बीच के रिलेशंस को गवर्न करने के लिए कॉन्फ्रेंस में 10 प्रिंसिपल्स को डिक्लेयर किया गया था जिन्हें बांग प्रिंसिपल्स के नाम से जाना जाता है इसी तरह के प्रिंसिपल्स को आगे चलकर नॉन अलाइड मूवमेंट के मेन गोल्स और ऑब्जेक्टिव्स के रूप में अडॉप्ट किया गया था इतना ही नहीं नम की मेंबरशिप के लिए इन प्रिंसिपल्स को फुलफिल करना एक जरूरी क्राइटेरिया रखा गया था बांडुंग के 6 साल बाद नॉन अलाइड
कंट्रीज के मूवमेंट को वाइडर जियोग्राफिक बेसिस पर फाउंड किया गया इसके लिए 1961 में बेलग्रेड नाम की जगह पर फर्स्ट समिट कॉन्फ्रेंस ऑर्गेनाइज की गई इसमें 25 देशों ने भाग लिया था जिसमें अफगानिस्तान अल्जीरिया यमन म्यानमार कंबोडिया श्रीलंका कांगो क्यूबा साइप्रस इजिप्ट इथियोपिया गाना गिनी इंडिया इंडोनेशिया इराक लेबन माली मोरक्को नेपाल सऊदी अरेबिया सोमालिया सूडान सीरिया ट्यूनीशिया और युगोस्लाविया शामिल थे इस प्रोसेस में सबसे अहम रोल निभाया इजिप्ट के गमा अब्दुल नासिर गाना के क्वामे नकुमा इंडिया के श्री जवाहरलाल नेहरू इंडोनेशिया के अहमद सु कार्नो और यूगोस्लाविया के जोसेप रोस टीटो ने इसीलिए इन्हें नम
का फाउंडिंग फादर्स भी कहा जाता है नम के फाउंडिंग फादर्स ने इसे एक ऑर्गेनाइजेशन की जगह मूवमेंट डिक्लेयर करना प्रेफर किया क्योंकि वोह ऑर्गेनाइजेशन से जुड़े ब्यूरोक्रेटिक इंप्लीकेशंस को अवॉइड करना चाहते थे नम ने अपने लिए क्या ऑब्जेक्टिव सेट किए थे आइए अब उनकी बात करते हैं ऑब्जेक्टिव्स ऑफ नाम नम का मकसद कभी भी इंटरनेशनल पॉलिटिक्स में पैसिव रोल निभाने का नहीं रहा बल्कि उसका एम इंडिपेंडेंट मैनर में अपनी खुद की पोजीशंस को फॉर्म्युलेट करना रहा जिसमें सभी मेंबर्स के इंटरेस्ट रिफ्लेक्ट होते हो नॉन अलाइड कंट्रीज के प्राइमरी ऑब्जेक्टिव्स में सेल्फ डिटरमिनेशन नेशनल इंडिपेंडेंस और
स्टेट्स की सोवन और टेरिटोरियल इंटीग्रिटी को सपोर्ट करना अथाइड का अपोजिशन और इंपीरियल ज्म के अगेंस्ट स्ट्रगल करना शामिल था इसके अलावा मल्टीलेटरल मिलिट्री पैक्ट्स के साथ ना जुड़ना और ग्रेट पावर्स या ब्लॉक इफ्लू ंसेस और राइवल्री से नॉन अलाइन कंट्रीज को इंडिपेंडेंट रखना भी मूवमेंट का एक अहम ऑब्जेक्टिव था स्टेट्स के इंटरनल अफेयर्स में नॉन इंटरफेरेंस और पीसफुल को एगिस की पॉलिसी को फॉलो करना भी इसका एम था इसके साथ ही नम इंटरनेशनल रिलेशंस में फोर्स का यूज या उसके थ्रेट को भी रिजेक्ट करता है यह यूनाइटेड नेशंस को और मजबूत करने को अपना
लक्ष्य मानता है इंटरनेशनल रिलेशंस का डेमोक्रेटाइजेशन सोशो इकोनॉमिक डेवलपमेंट और इक्वल फूटिंग पर इंटरनेशनल कोऑपरेशन को प्रमोट करना नम के अन्य ऑब्जेक्टिव्स कहे जा सकते हैं इसके साथ ही इंटरनेशनल रिलेशंस के सिस्टम में डेवलपिंग कंट्रीज के बीच पॉलिटिकल कोऑर्डिनेशन के एक मंच की तरह काम करता है जहां वह अपने इंटरेस्ट को प्रमोट और डिफेंड कर सकते हैं ऑब्जेक्टिव्स को समझने के बाद आइए नम के कुछ इंपॉर्टेंट प्रिंसिपल्स की चर्चा भी कर लेते हैं प्रिंसिपल्स नम ने अपने अपने लिए कुछ प्रिंसिपल्स को भी डिसाइड किया था जो इसके सभी मेंबर्स द्वारा फॉलो किए जाते हैं एक-एक
करके इनको जानते हैं सबसे पहला प्रिंसिपल है यूनाइटेड नेशंस और इंटरनेशनल लॉ के चार्टर में इन श्राइन प्रिंसिपल्स की रिस्पेक्ट करना दूसरा है सभी स्टेट्स की सोवन सॉवरेन इक्वलिटी और टेरिटोरियल इंटीग्रिटी की रिस्पेक्ट करना तीसरा प्रिंसिपल सभी रेसेस रिलीजस कल्चर्सल सभी नेशंस की इक्वलिटी को रिकॉग्नाइज करने की बात करता है इसकी फोर्थ प्रिंसिपल में पीपल सिविलाइजेशंस कल्चर्सल जंस के बीच टॉलरेंस और फ्रीडम ऑफ बिलीफ की रिस्पेक्ट के आधार पर डायलॉग के प्रमोशन की बात कही गई है पांचवां प्रिंसिपल बात करता है ह्यूमन राइट्स और सभी के लिए फंडामेंटल फ्रीडम्पॉप में हर एक स्टेट द्वारा अपने
पॉलिटिकल सोशल इकोनॉमिक और कल्चरल सिस्टम को फ्रीली डिटरमिन करने के अधिकार जिसमें किसी भी और स्टेट का किसी तरह का कोई इंटरफेयर रस नहीं होना चाहिए को रिस्पेक्ट करने की बात आती है सातवां प्रिंसिपल फॉरेन ऑक्यूपेशन या कॉलोनियल डोमिनेशन के अंडर रहने वाले लोगों के सेल्फ डिटरमिनेशन के राइट के प्रति मूवमेंट की प्रिंसिपल पोजीशंस को रि अफमैक ट्यूशन चेंज को रिजेक्ट करता है वहीं दसवां प्रिंसिपल रेजीम चेंज के अटेम्प्ट्स को रिजेक्ट करता है 11वें प्रिंसिपल में सभी सिचुएशंस स्पेशली कॉन्फ्लेट की सिचुएशन में मसरी के यूज को कंडेम किया गया है इसी तरह और भी प्रिंसिपल्स
हैं जो हर तरह के अग्रेशन को रिजेक्ट करते हैं जेनोसाइड और वर क्राइम्स को कंडेम करते हैं टेररिज्म का विरोध करते हैं और डिस्प्यूट्स को शांति से सुलझाने की बात करते हैं नम की शुरुआत इसके ऑब्जेक्टिव्स और प्रिंसिपल्स को जान लेने के बाद आइए अब इसके द्वारा इंटरनेशनल अफेयर्स में निभाए गए रोल की चर्चा करते हैं रोल ऑफ नम नम ने बहुत ही इंपॉर्टेंट रोल निभाया थर्ड वर्ल्ड के ऐसे नेशंस को सपोर्ट करने में जो उस समय अपनी आजादी के लिए संघर्ष कर रहे थे इसने ह्यूमैनिटी की न्यायपूर्ण एस्पिरेशंस के प्रति ग्रेट सॉलिड टी दिखाई
और इसमें कोई शक नहीं कि इसने आजादी के लिए संघर्ष और डी कॉलोनाइजेशन में अपना अहम योगदान दिया इस वजह से नम की डिप्लोमेटिक प्रेस्टीज में काफी बढ़ोतरी हुई 1960 और 1970 में एक के बाद एक समिट के बीच नम डेवलपिंग वर्ल्ड के इकोनॉमिक और पॉलिटिकल राइट्स को लेकर चल रहे संघर्ष के लिए कोऑर्डिनेशन फोरम की तरह उभर रहा था डी कॉलोनाइजेशन के प्रोसेस में नम द्वारा बनाया गया प्रेशर भी एक अहम कारण बनता है कि कॉलोनियल पावर्स भी कॉलोनी को आजादी देने पर मजबूर होते हैं सभी देशों को इंडिपेंडेंस मिल जाने के बाद नम
की कॉन्फ्रेंसेस इकोनॉमिक और सोशल इश्यूज और स्ट्रिक्टली पॉलिटिकल मैटर्स को लेकर कंसर्न एक्सप्रेस करती हैं इसका सबसे बड़ा एग्जांपल हमें 1973 की अल्जीयर्स कॉन्फ्रेंस में देखने को मिलता है जहां न्यू इंटरनेशनल इकोनॉमिक ऑर्डर के कांसेप्ट को लच किया जाता है 1980 के खत्म होने पर मूवमेंट का सामना सबसे बड़े चैलेंज से होता है जो कि सोशलिस्ट ब्लॉक के क्लैप्स के कारण पैदा हुआ था दो ब्लॉक्स के बीच का क्लैश जो कि नम की एक्जिस्टेंस इसके नाम और एेंस का रीजन था वह 1991 में सोवियत यूनियन के क्लैप्स के बाद खत्म हो चुका था ऐसे में
कई लोगों का कहना था कि नम के एंड का भी समय आ चुका है पर ऐसा क्यों नहीं हुआ क्यों कोल्ड वॉर के एंड के डेकेट बाद भी आज नम एजिस्ट कर रहा है आइए जानते हैं रेलीवेंस ऑफ नाम यह काफी हद तक सही है कि नाम की फाउंडेशन कोल्ड वॉर राइवल्री का ही परिणाम थी इसके अलावा नम ने इस राइवल्री को डाइल्यूट करने में भी कई बार अहम भूमिका निभाई फिर चाहे वह कोरियन वॉर में मध्यस्थता की बात हो या फिर क्यूबेन मिसाइल क्राइसिस के दौरान डिप्लोमेटिक रोल लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि
नम का रोल सिर्फ इस राइवल्री तक ही लिमिटेड था हां नम का एक इंपॉर्टेंट ऑब्जेक्टिव यह जरूर था कि न्यूली इंडिपेंडेंट नेशंस को सुपर पावर्स के बीच की राइवल से बचाया जाए लेकिन जैसा कि हम पहले बात कर चुके हैं नम के और भी बहुत सारे ऑब्जेक्टिव्स थे तो क्या हुआ अगर कोल्ड वॉर का एंड हो गया डेवलपिंग नेशंस की सभी प्रॉब्लम्स तो सॉल्व नहीं हो गई ना इंटरनेशनल रिलेशंस में सभी नेशंस को बराबरी का दर्जा सिर्फ कोल्ड वॉर के एंड होने से तो नहीं मिल सकता था ना बल्कि अभी तो नम का रेलीवेंस और
ज्यादा बढ़ गया था यूनि पावर वर्ल्ड में एक देश की मोनोपोली को रोकने के लिए नम जैसे स्ट्रांग एसोसिएशन की सख्त जरूरत थी यूएन में डेवलपिंग नेशंस की एक स्ट्रांग वॉइस की तरह भी नम काम करता है साउथ साउथ कोऑपरेशन के अलावा नॉर्थ साउथ को कोऑपरेशन पर भी काम करना जरूरी था जिसके लिए नम से अच्छा भला कौन सा प्लेटफार्म हो सकता था नम की रेलीवेंस का सबसे बड़ा उदाहरण तो यह है कि आज भी 100 से ज्यादा नेशंस इसकी मेंबरशिप रखते हैं इस तरह यूएनओ के बाद यह सबसे बड़ी इंटरनेशनल ऑर्गेनाइजेशन भी कही जा
सकती है हां आज के समय में नाम के सामने कुछ चैलेंज जरूर हैं आइए इनको भी जानते हैं चैलेंज फॉर नाम नाम के सामने सबसे बड़ा चैलेंज इतनी बड़ी और डावर्स ग्रुपिंग के बीच कोऑर्डिनेशन बनाने का है सभी नेशंस के इंटरेस्ट और मोटिव्स बहुत ही अलग हो चुके हैं ऐसे में एक साथ आकर कॉमन इंटरेस्ट के लिए काम करना कई बार डिफिकल्ट हो जाता है इसके अलावा इंटरनेशनल लॉ के प्रिंसिपल्स को प्रोटेक्ट करना भी आज के चैलेंज बन गए हैं जब चाइना नॉर्थ कोरिया और रशिया जैसे देश अपने इंटरेस्ट के लिए इनकी कोई परवाह नहीं
करते साथ ही वेपंस ऑफ मैस डिस्ट्रक्शन को एलिमिनेट करना टेररिज्म को कॉम्बैट करना ह्यूमन राइट्स को डिफेंड करना इसके कुछ पर्सिस मेंट चैलेंज में से हैं नम के सामने यूएन को और ज्यादा इफेक्टिव बनाने का लक्ष्य भी है जिससे वह सभी मेंबर स्टेट्स की नीड्स को पूरा करते हुए इंटरनेशनल पीस सिक्योरिटी और स्टेबिलिटी को प्रिजर्व करता रहे साथ ही इंटरनेशनल इकोनॉमिक सिस्टम में डेवलपिंग और अंडर डेवलप नेशंस के लिए जस्टिस को रियलाइफ करना भी नम के लिए जरूरी है वहीं दूसरी तरफ नाम के कुछ लॉन्ग स्टैंडिंग गो जैसे कि पीस डेवलपमेंट इकोनॉमिक कोऑपरेशन और इंटरनेशनल
रिलेशंस का डेमोक्रेटाइजेशन अभी भी पूरी तरह अचीव नहीं हुए हैं इसीलिए अपने पुराने अधूरे गोल्स को पूरा करने और नए उभरते हुए चैलेंज का सामना करने के लिए नम को इंटरनेशनल रिलेशंस में आज भी प्रॉमिनेंट और लीडिंग रोल निभाने की जरूरत है कंक्लूजन नम का क्रिएशन तब हुआ था जब एक तरफ कोल्ड वॉर अपनी चरम सीमा पर था और दूसरी तरफ कॉलोनियल सिस्टम कोलैक्स कर रहा था यानी कि अफ्रीका एशिया लैटिन अमेरिका और दुनिया के अन्य रीजंस में इंडिपेंडेंस के लिए लोग संघर्ष कर रहे थे मूवमेंट के शुरुआती सालों में लिए गए एक्शंस डी कॉलोनाइजेशन
प्रोसेस में एक की फैक्टर का काम करते हैं जिनका रिजल्ट यह होता है कि कई देशों को अपनी फ्रीडम मिलती है और 10 से भी ज्यादा नए सॉवरन स्टेट्स का उदय वर्ल्ड मैप पर होता है अपने आज तक के इतिहास में नम ने वर्ल्ड पीस और सिक्योरिटी को प्रिजर्व करने में फंडामेंटल रोल निभाया है नम इंटरनेशनल लेवल पर एक स्ट्रांग फ्रंट क्रिएट करने में कामयाब रहा है और इंटरनेशनल ऑर्गेनाइजेशंस में थर्ड वर्ल्ड कंट्रीज को मजबूती के साथ रिप्रेजेंट करता है स्पेशली यूनाइटेड नेशंस में हाउ वाज यूरोप रिबिल्ट आफ्टर वर्ल्ड वॉर टू साल 1945 पिछले 6
साल से चल रहा वर्ल्ड वॉर फाइनली खत्म होता है लेकिन अपने पीछे छोड़ जाता है तबाही का मंजर यूरोप का ज्यादातर हिस्सा खंडहर बन चुका था हां कुछ देशों की जीत जरूर हुई थी लेकिन उनकी भी इंडस्ट्रीज इंफ्रास्ट्रक्चर और इकॉनमी कमजोर हालत में थे इंडस्ट्रियल रेवोल्यूशन से अमीर हुए इंग्लैंड जैसे देश की भी ज्यादातर ट्रेजरीज वॉर लड़ने में खाली हो चुकी थी यूरोप के सामने फूड शॉर्टेज और हजारों डिस्प्लेस रिफ्यूजीस का संकट था इसके अलावा बहुत से देशों ने वर टाइम एफर्ट्स को कंटिन्यू रखने के लिए पैसा उधार लिया हुआ था खासकर यूनाइटेड स्टेट्स से
और अब जब उनकी इकॉनमी एकदम खस्ता हालत में थी तब इस डेट से निकलना इंपॉसिबल लग रहा था लेकिन इतिहास गवाह है कि यूरोप एक बार फिर उठ खड़ा हुआ और दुनिया का मेजर इकोनॉमिक सेंटर बनकर उभरा पर इतनी खराब सिचुएशन में आखिर यूरोप कैसे खुद को रिबिल्ड करता है एक डेव पेटिंग वॉर के बाद यूरोप का रिकंस्ट्रक्शन रिकवरी का एक शानदार उदाहरण प्रस्तुत करता है आइए आज इस इंटरेस्टिंग स्टोरी को डिटेल में देखते हैं पोस्ट वॉर यूरोप दोस्तों जैसा कि हमने बताया 1945 में सेकंड वर्ल्ड वॉर के एंड होने पर यूरोप तो बहुत खराब
हालत में था पावरफुल नेशन जैसे जर्मनी और जापान युद्ध हार चुके थे ऐसे में वर्ल्ड को दो नई सुपर पावर्स मिलती हैं यूएसए और यूएसएसआर वॉर के दौरान यूएसएसआर ने ईस्टर्न यूरोप के कुछ देशों जैसे पोलैंड लिथु एनिया अल्बेनिया रोमेय एट्स पर अपना अधिकार कर लिया था और इन देशों में कम्युनिस्ट गवर्नमेंट फॉर्म कर दी गई थी वहीं वेस्टर्न यूरोप के ज्यादातर देश डेमोक्रेसी को फॉलो करते थे और अमेरिका के इन्फ्लुएंस में थे ब्रिटिश पीएम चर्चिल यूरोप के इस डिवीजन को डिस्क्राइब करने के लिए आयन कर्टन शब्द का का इस्तेमाल करते हैं क्योंकि यूरोप दो
भाग में बंट गया था साथ ही यूएस और यूएसएसआर के बीच कोल्ड वॉर की शुरुआत हो चुकी थी ऐसे में यूरोप का रिकंस्ट्रक्शन भी इसी डिवीजन के बेसिस पर होता है कहने का मतलब यह है कि वेस्टर्न यूरोप अलग तरीके से खुद को रिबिल्ड करता है और ईस्टर्न यूरोप अलग तरीके से वेस्टर्न यूरोप की मदद के लिए अमेरिका सामने आया और इस काम के लिए उसने जो प्रोग्राम शुरू किया उसे मार्शल प्लान कहा जाता है यह काम अमेरिका ने सेल्फलेसनेस के तहत नहीं किया था बल्कि अपने जिओ पॉलिटिकल इंटरेस्ट के लिए किया वह नहीं चाहता
था कि ईस्ट यूरोप की तरह वेस्ट यूरोप में भी सोवियत लेड कम्युनिज्म हावी हो जाए ऐसे में अमेरिका के मार्शल प्लान ने ही पोस्ट वॉर वेस्टर्न यूरोप की रिकवरी को मुमकिन बनाया आइए इसके बारे में विस्तार से चर्चा करें द मार्शल प्लान दोस्तों जैसा कि हमने बताया कि यूएसए को डर था कि वर्ल्ड वॉर टू के बाद पॉवर्टी अनइंप्लॉयमेंट और डिसलोकेशन जैसी प्रॉब्लम्स वेस्टर्न यूरोप के वोटर्स को कम्युनिस्ट आईडियोलॉजी की तरफ आकर्षित कर सकती हैं इसलिए 5थ जून 1947 को अपनी स्पीच में यूएस सेक्रेटरी ऑफ स्टेट जॉर्ज मार्शल यूरोपियन रिकवरी प्रोग्राम की अनाउंसमेंट करते हैं
जिसे पॉपुलर मार्शल प्लान के नाम से जाना जाता है इस प्लान का एम यूरोप को रिबिल्ड करना था इसके तहत करीब 1.3 बिलियन डॉलर्स की असिस्टेंसिया नेशंस को दी जाती है और यह 1947 से लेकर 1951 तक चलता है यानी कि 4 साल के लिए इनिशियली मार्शल प्लान सभी यूरोपियन नेशंस के लिए ओपन था यहां तक कि यूएसएसआर के लिए भी लेकिन यूएस के साथ राइवल्री के चलते स्टैन इस प्लान का हिस्सा बनने से मना कर देते हैं उन्हीं के इन्फ्लुएंस में ईस्टर्न यूरोप के देश भी अमेरिकन असिस्टेंट नहीं लेते इस तरह यह प्लान सिर्फ
वेस्टन यूरोप के 16 नेशंस पर लागू किया जाता है इसका गोल यूरोप की बर्बाद हो चुकी इंडस्ट्रीज को रिवाइव करना था और उसके ट्रेड को बूस्ट करना था इस प्रोग्राम का 90 पर से भी ज्यादा हिस्सा ग्रांट्स के थ्रू दिया जाता है इन ग्रांट्स के जरिए यूरोप को जाने वाली जरूरी कमोडिटीज और सर्विसेस की कॉस्ट और फ्रेट चार्जेस पे किए जाते हैं इसके तहत टेक्निकल असिस्टेंसिया जाता है यूरोप में यूएस एक्सपर्ट्स और यूएस आने वाले यूरोपियन डेलिगेट्स की विजिट के लिए एक स्पेशल फंड क्रिएट होता है यह फंड्स सिर्फ ऐसे प्रोजेक्ट्स के लिए यूज किए
जा सकते थे जिनसे प्रोडक्शन डायरेक्टली इंक्रीज होता हो 1951 के अंत तक इस पर 30 मिलियन डॉलर से भी ज्यादा खर्च किए जाते हैं और 6000 से भी ज्यादा यूरोपिय जो मैनेजमेंट टेक्निशियंस और लेबर को रिप्रेजेंट करते थे व यूएस आकर यहां के प्रोडक्शन मेथड्स की स्टडी करते हैं मार्शल प्रोग्राम के इंप्लीमेंटेशन के लिए दो एजेंसीज को एस्टेब्लिश किया गया था एक थी यूएस द्वारा मैनेज्ड इकोनॉमिक कोऑपरेशन एडमिनिस्ट्रेशन यानी ईसीए और दूसरी थी यूरोपिय द्वारा रन की जाने वाली ऑर्गेनाइजेशन फॉर यूरोपियन इकोनॉमिक कोऑपरेशन यानी ओईईसी ईसीए इंडस्ट्रियल प्रोडक्टिविटी मार्केटिंग एग्रीकल्चरल प्रोडक्टिविटी मैन पावर यूटिलाइजेशन टूरिज्म
ट्रांसपोर्टेशन और कम्युनिकेशन जैसे एरियाज में प्रॉब्लम्स को टारगेट करती है वहीं ओईईसी इंश्योर करती है कि सभी पार्टिसिपेंट्स जॉइंट ऑब्लिगेशंस को फुलफिल करें और ऐसी पॉलिसीज अडॉप्ट करें जो ट्रेड को प्रोत्साहन दें और प्रोडक्शन में बढ़ोतरी करें इसके अलावा ईसीए यूरोप को फूड फ्यूल और मशीनरी जैसी कमोडिटीज को परचेस करने के लिए डॉलर असिस्टेंट भी प्रोवाइड करती है साथ ही स्पेसिफिक प्रोजेक्ट्स के लिए फंड्स का इंतजाम करती है स्पेशली इंफ्रास्ट्रक्चर को डिवेलप करने वाले प्रोजेक्ट्स के लिए प्रोडक्टिविटी को बढ़ाने के लिए टेक्निकल असिस्टेंसिया की तरह काम करती है जिससे एक चेन ऑफ इवेंट्स शुरू होती
है और बहुत सी उपलब्धि हासिल की जाती हैं मार्शल प्लान के कंप्लीट होने के समय यूरोप का एग्रीकल्चरल और इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन दोनों ही पहले से काफी बढ़ चुका था बैलेंस ऑफ ट्रेड में इंप्रूवमेंट आया था साथ ही ट्रेड लिबरलाइजेशन और इकोनॉमिक इंटीग्रेशन की दिशा में कदम उठाए जा चुके थे मार्शल प्लान का ओवरऑल ऑब्जेक्टिव प्री वॉर लेवल्स यानी 1938 की तुलना में इंडस्ट्री में एग्रीगेट प्रोडक्शन 30 पर तक और एग्रीकल्चर में 15 तक बढ़ाना था 1951 के एंड में सभी कंट्रीज का इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन 1938 की तुलना में 35 पर ज्यादा था यानी प्रोग्राम के गोल
से भी ऊपर अगर 1947 से तुलना की जाए तो अचीवमेंट और भी शानदार दिखती है क्योंकि चार सालों में इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन 55 पर तक इनक्रीस कर गया था पार्टिसिपेटिंग कंट्रीज का एग्रीगेट एग्रीकल्चरल प्रोडक्शन 4748 के बाद की तीन क्रॉप साइकिल्स में लगभग 37 पर बढ़ चुका था मार्शल प्लान के चार सालों के दौरान टोटल एवरेज ग्रोस नेशनल प्रोडक्ट करीब 33 पर की ग्रोथ करता है रिकवरी पीरियड के दौरान यूरोप जीएनपी का 20 पर इन्वेस्टमेंट लेवल मेंटेन करता है जो कि प्री वॉर रेट से लगभग 34 पर ज्यादा था 1948 में नेशनल सेविंग्स तो प्रैक्टिकली जीरो
थी इसलिए यह हाई रेट ऑफ इन्वेस्टमेंट यूएस असिस्टेंसिया था इस तरह मार्शल प्लान की हेल्प से वेस्टर्न यूरोप के नेशंस की रिकवरी तो शुरू हो गई थी पर ईस्टर्न यूरोप में क्या हुआ आइए देखते हैं रिबिल्डिंग ऑफ ईस्टर्न यूरोप दोस्तों ईस्टर्न ब्लॉक की इकोनॉमिक यूनिटी की तरफ यूएसएसआर कुछ कदम उठाता है इस दिशा में पहला स्टेप मलोटो प्लान के रूप में आता है इसे अमेरिका के मार्शल प्लान के रिस्पांस में रशियन फॉरेन मिनिस्ट मलोटो ने प्रपोज किया था यह बेसिकली यूएसएसआर और ईस्टर्न यूरोप के देशों के बीच ट्रेड एग्रीमेंट की तरह था इसे 1947 में
नेगोशिएट किया जाता है जिसका एम ईस्टर्न यूरोप में ट्रेड को बूस्ट करना था मॉलोटोव प्लान के बाद यूएसएसआर 1949 में कॉमी कॉन यानी कि काउंसिल फॉर म्यूचुअल इकोनॉमिक असिस्टेंट अप करता है कॉमी कॉन का एम इंडिविजुअल स्टेट्स की इकॉनमी को प्लान करने में हेल्प प्रोवाइड करना था इसके तहत सभी इंडस्ट्रीज को नेशनलाइज कर दिया जाता है और एग्रीकल्चर का कलेक्टिवाइजेशन होता है यानी कि उसे बड़े और स्टेट द्वारा ओन फार्म्स में बदल दिया जाता है एक तरह से ईस्टर्न यूरोप में सोवियत इकोनॉमिक प्रिंसिपल्स को अप्लाई कर दिया जाता है इन सभी एफर्ट्स की वजह से
ईस्टर्न यूरोप इकोनॉमिकली कुछ सक्सेस जरूर हासिल करता है उसकी प्रोडक्शन स्टेटली इंक्रीज करती है हालांकि इनकी एज जीडीपी और जनरल एफिशिएंसी यूरोपियन कम्युनिटी यानी ईसी से काफी कम रहती है ईस्टर्न यूरोप का एक देश अल्बेनिया तो पूरे यूरोप का सबसे बैकवर्ड देश कहलाता है इसके बाद 1980 में ईस्टर्न स्टेट्स की इकॉनमी को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है यहां जरूरी चीजों की शॉर्टेजेस होने लगती हैं इंफ्लेशन बढ़ता ही जाता है और लोगों का लिविंग स्टैंडर्ड बहुत नीचे गिरने लगता है इसका इफेक्ट हमें 1990 में देखने को मिलता है जब ईस्टर्न यूरोप के देश एक-एक
करके यूएसएसआर से अलग होना शुरू कर देते हैं 1991 में बर्लिन वॉल के फॉल के साथ यूरोप का आयन कर्टन भी गिर जाता है और यूरोप का दो ब्लॉक्स में डिवीजन खत्म हो जाता है समझने वाली बात यह है कि ईस्टर्न यूरोप के देश वेस्टर्न यूरोप की तुलना में काफी पीछे रह गए जिसका इफेक्ट हमें आज तक देखने को मिलता है और यह फर्क सिर्फ मार्शल प्लान और प्लांस की वजह से नहीं आया था बल्कि वेस्टर्न यूरोप के नेशंस द्वारा अपने स्तर पर भी कुछ एफर्ट्स किए गए थे जो रिकवरी को और स्ट्रांग बनाते हैं
आइए इन एफर्ट्स की भी चर्चा करते हैं यूरोपियन एफर्ट्स फॉर द रिकवरी यूरोपियन नेशंस समझ चुके थे कि जल्द ही अगर उन्होंने खुद को रिबिल्ड नहीं किया तो यूरोप हमेशा के लिए पावरलेस हो जाएगा यूएस और यूएसएसआर दुनिया की सुपर पावर्स बन चुके थे ऐसे में बैलेंस ऑफ पावर को बनाए रखने के लिए यूरोप का पावरफुल होना बहुत जरूरी था नहीं तो वह सिर्फ सुपर पावर नेशंस के हाथों की कठपुतली बनकर रह जाता ईस्टर्न यूरोप तो यूएसएसआर के डोमिनेंस में आ चुका था इसलिए वहां कोई भी इंडिपेंडेंट एफर्ट्स करना पॉसिबल नहीं था लेकिन वेस्टर्न यूरोपियन
नेशंस ऐसा जरूर करते हैं वेस्टर्न यूरोप के लोग आपस में और ज्यादा यूनिटी चाहते हैं इसके पीछे कई कारण थे जैसे कि वॉर के बाद रिकवरी का सबसे अच्छा तरीका यही था कि सभी स्टेट्स साथ काम करें और अपने-अपने रिसोर्सेस को पूल करके एक दूसरे की मदद करें इसके अलावा यूरोप के इंडिविजुअल देश काफी छोटे थे और उनकी इकॉनमी भी काफी वीक हो चुकी थी वह अकेले दम पर इकोनॉमिकली और मिलिटर वायबल नहीं रह सकते थे साथ ही वेस्टर्न यूरोप के देश जितना ज्यादा एक दूसरे के साथ काम करेंगे उतने ही कम चांस होंगे इनके
बीच फिर से वॉर होने के यह फ्रांस और जर्मनी के रिश्ते सुधारने का भी बढ़िया तरीका था जॉइंट एक्शन की मदद से वेस्टर्न यूरोप कम्युनिज्म को स्प्रेड होने से भी रोक सकता था खासकर जर्मन इस आइडिया के सपोर्ट में थे क्योंकि इससे उन्हें एक रिस्पांसिबल नेशन के रूप में एक्सेप्टेंस जल्द ही मिल सकती थी इससे पहले फर्स्ट वर्ल्ड वॉर के बाद जर्मनी को 8 साल का लंबा इंतजार करना पड़ा था लीग ऑफ नेशंस का मेंबर बनने के लिए वहीं फ्रांस को लगता था कि यूनिटी बढ़ने के कारण वह जर्मन पॉलिसीज को इन्फ्लुएंस कर पाएंगे और
इस तरह लंबे समय की अपनी सिक्योरिटी की चिंता रिमूव कर पाएंगे इसी सोच के साथ 1946 में 10 यूरोपियन देशों के डेलिगेट्स फ्रांस के स्ट्रासबर्ग में मिलते हैं और काउंसिल ऑफ यूरोप की फॉर्मेशन करते हैं काउंसिल ज्यादातर डिबेट और डिप्लोमेसी पर ही निर्भर करती थी इसके पास कोई रियल पावर्स नहीं थी और ना ही य एक इंपॉर्टेंट पॉलिटिकल फोर्स बन पाई काउंसिल ऑफ यूरोप तो ज्यादा सफल नहीं हुई लेकिन यूरोपियन यूनिटी का सपना अभी जिंदा था इसके लिए 1950 में एक बार फिर कदम उठाए जाते हैं इस बार आईडिया दिया दो फ्रेंच स्कॉलर्स ने जिनमें
से एक थे इकोनॉमिस्ट ज मोने और दूसरे थे इनके ही डिसाइल और फ्रेंच फॉरेन मिनिस्टर रॉबर्ट शुमन मोने जर्मनी और फ्रांस का इकोनॉमिक इंटीग्रेशन करना चाहते थे उनका कहना था कि इकोनॉमिक स् फियर में कोऑपरेशन धीरे-धीरे बाकी एरियाज में भी दिखने लगेगा इन्हीं आइडियाज को कंक्रीट प्लान में कन्वर्ट करते हैं शुमन और प्रपोज करते हैं अपना शुमन प्लान जिसका प्राइमरी गोल कोल और स्टील प्रोडक्शन को कोऑर्डिनेट करना था और इस प्रोडक्शन का बड़ा हिस्सा रूर वैली सलैंड और अलसेस लोरन से आता था यह सभी वर्ल्ड वॉर्स के दौरान कंटेस्टेड एरियाज में से थे शुमन इस
प्लान को फेडरेशन ऑफ यूरोप के फर्स्ट स्टेप की तरह देखते हैं उनके इस प्लान से जन्म होता है यूरोपियन कोल एंड स्टील कम्युनिटी ईसीएससी का जो 1952 में ऑपरेट करना शुरू करती है इसके पहले प्रेसिडेंट बनते हैं जो मोने ईसीएससी में सिक्स मेंबर्स थे फ्रांस जर्मनी इटली बेल्जियम नेदर एंड्स और लक्जमबर्ग इस कम्युनिटी का मेन पर्पस कोल और स्टील के प्रोडक्शन और ट्रेड को स्टिम्युलेट करना था प्राइमर ट्रेड बैरियर्स को एलिमिनेट करके ऐसा समझा गया कि इन एरियाज में एफिशिएंसी बढ़ने से ओवरऑल इकोनॉमिक रिकवरी और डेवलपमेंट को बूस्ट मिलेगा इसके लिए इन छह देशों की
स्टील और कोल इंडस्ट्रीज को सुप्रा नेशनल कंट्रोल में रखा गया जिसके लिए एक हाई अथॉरिटी नाम की इंस्टिट्यूशन बनाई गई थी इसका हेड क्वार्टर्स लक्सम में था इसमें सभी मेंबर्स के रिप्रेजेंटेटिव्स शामिल थे हालांकि डिसीजन मेजॉरिटी वोट से लिए जाते थे प्रोडक्शन मार्केटिंग और प्राइसेस के सुपरविजन के अलावा हाई अथॉरिटी कमजोर मैन्युफैक्चरर्स को मॉडर्नाइज रिअप्वॉइंटेड दोनों ही नजरिए से काफी सफल रहती है जैसा कि मोने ने कहा था इसकी अचीवमेंट्स का असर और भी एरियाज में दिखने लगता है कुछ ही सालों में मेंबर नेशंस ईसीएससी के प्रिंसिपल्स को पूरी इकॉनमी पर एक्सटेंड करने का विचार
करते हैं 1957 में यह सभी ट्रीटी ऑफ रोम साइन करते हैं जिसके जरिए यूरोपियन इकोनॉमिक कम्युनिटी यानी ईईसी का क्रिएशन होता है इसे कॉमन मार्केट भी कहा जाता है ईईसी का गोल सभी छह देशों के बीच हर तरह के टैरिफ को एलिमिनेट कर करना था और बाकी देशों से आने वाले प्रोडक्ट्स पर एक कॉमन एक्सटर्नल टैरिफ इंपोज किया जाना था इसके अलावा कम्युनिटी में कैपिटल और लेबर का फ्री मूवमेंट भी इसका एक एम था साथ ही कंट्रीज की सोशल और इकोनॉमिक पॉलिसीज को हार्मोनाइज करना भी लॉन्ग टर्म गोल फुल इकोनॉमिक और पॉलिटिकल इंटीग्रेशन रखा गया
अपने गोल्स को अचीव करने के लिए यह चार नई इंस्टीट्यूशंस को एस्टेब्लिश करते हैं काउंसिल ऑफ मिनिस्टर्स यूरोपियन कमीशन यूरोपियन कोर्ट ऑफ जस्टिस और यूरोपियन पार्लियामेंट ईईसी भी शानदार सक्सेस हासिल करती है यह इन छह देशों को काफी करीब लेकर आती है स्पेशली वेस्ट जर्मनी और फ्रांस को वेस्ट जर्मनी फ्रांस और इटली 1950 और 1960 में इकोनॉमिक मिरेकल्स विटनेस करते हैं 1953 से फ्रेंच प्रोडक्शन 75 पर तक बढ़ जाता है वहीं जर्मन प्रोडक्शन करीब 90 पर की उछाल हासिल करता है मेंबर नेशंस के बीच ट्रेड जोन के बाहर की कंट्रीज के मुकाबले दो गुना तेजी
से ग्रो करता है 1967 में ईसीएससी ईईसी और यूरा टॉम यानी यूरोपियन एटॉमिक एनर्जी एजेंसी मर्ज होकर यूरोपियन कम्युनिटी यानी ईसी की फॉर्मेशन करते हैं इनकी बढ़ती हुई सक्सेस को देखकर बाकी के नेशंस भी इनकी तरफ आकर्षित होने लगते हैं शुरुआत में ब्रिटेन ने कम्युनिटी को जॉइन करने से मना कर दिया था लेकिन अब उसका भी मन बदलने लगता है क्योंकि ईईसी की इकोनॉमिक ग्रोथ यूनाइटेड किंगडम से कहीं ज्यादा थी 1960 में दो बार लंडन ईईसी की मेंबरशिप के लिए अप्लाई करता है लेकिन फ्रेंच वीटो के कारण उसकी एप्लीकेशन रिजेक्ट हो जाती है फ्रांस ब्रिटेन
और अमेरिका के क्लोज टाइज को पसंद नहीं करता था साथ ही उसे ऐसा भी लगता था कि ब्रिटेन यूरोप को डोमिनेट करने की कोशिश करेगा खैर फाइनली 1973 में तीसरी बार ट्राई करने पर यूके को ी में एंट्री मिलती है साथ ही डेनमार्क और आयरलैंड भी इसमें शामिल हो जाते हैं 1980 में ग्रीस स्पेन और पोर्तुगीज हैं इस तरह ईसी की सिक्स मेंबर्स की संख्या 12 में बदल जाती है मेंबरशिप बढ़ने के साथ ही और ज्यादा डीपर इंटीग्रेशन की कोशिश भी शुरू हो जाती है इनके बीच 1986 में सिंगल यूरोप एक्ट के तहत 1992 तक
बिना किसी बॉर्डर के यूरोप को क्रिएट करने पर सहमति बनती है 1991 में मास्ट्रिक्ट नाम के डच शहर में एक इंपॉर्टेंट मीटिंग होती है जहां 12 ईसी कंट्रीज ईसी का नाम बदलकर यूरोपियन यूनियन कर देते हैं और एक नई ट्रीटी अडॉप्ट करते हैं जिसे मास्ट्रिक्ट ट्रीटी कहा जाता है इसके जरिए यह लोग खुद को कॉमन प्रोडक्शन स्टैंडर्ड्स यूनिफॉर्म टैक्स रेट्स कॉमन ईयू सिटीजनशिप कॉमन फॉरेन सिक्योरिटी पॉलिसी के साथ सिंगल यूरोपियन करेंसी के लिए कमिट करते हैं मास्ट्रिक्ट ट्रीटी को सभी देशों के नेशनल पार्लियामेंट्स द्वारा रटिफिकेशन भी इसकी मेंबरशिप जॉइन करते हैं क्योंकि 1991 में यूएसएसआर
का फॉल हो चुका था और ईस्टर्न यूरोप भी डेमोक्रेटिक पॉलिटी के साथ कैपिटिस इकॉनमी को अडॉप्ट करने लगा था इस तरह मार्शल प्लान के साथ-साथ यूरोपियन यूनिटी की तरफ किए गए एफर्ट्स की मदद से यूरोप खुद को वर्ल्ड वॉर के भयानक परिणामों से रिकवर करता है साथ ही एक स्ट्रांग इकोनॉमिक पावर के रूप में उभरता है कंक्लूजन दोस्तों सेकंड वर्ल्ड वॉर के बाद यूरोप के देशों की रिकवरी इतनी आसान नहीं थी अगर यूएस इनकी मदद के लिए आगे ना आया हो होता तो यूरोपियन रिबिल्डिंग का रास्ता और मुश्किल हो जाता है उससे भी ज्यादा इंपॉर्टेंट
था इनका एक साथ इस दिशा में एफर्ट करना जिसके परिणाम स्वरूप यूरोपियन यूनियन जैसी ऑर्गेनाइजेशन की नीव पड़ती है और यूरोप एक बार फिर से वर्ल्ड स्टेज पर इंपॉर्टेंट पावर बनकर उभरता है हिस्ट्री ऑफ जेरूसलम आज हम बात करने वाले हैं जेरूसलम के बारे में दोस्तों धर्म या रिलीजन मानव इतिहास का वो महत्त्वपूर्ण पहलू है जिसका जन्म ही मानवों के जीवन में स्टेबिलिटी लाने के लिए हुआ लगभग सारे ही धर्म अच्छा और नैतिक जीवन जीने के अलग-अलग रास्ते बताते हैं हम कई सारे ऐसे धार्मिक गुरु प्रॉफिट्स और अवतारों के बारे में वाकिफ हैं जिनके महान
विचारों को हमने अपने-अपने हिसाब से इंटरप्रेट कर उसको अपने जीवन में लागू करने का काम किया है लेकिन कुछ इतिहासकारों का ओपिनियन यह भी है कि धर्म का इस्तेमाल कई बार करप्टेड इन्फ्लुएंस और पावर हंगरी लोगों ने अपने फायदे के लिए भी किया जिससे दुनिया भर में कई सारे वायलेंट कॉन्फ्लेट का जन्म हुआ ऐसी ही एक कहानी है जेरूसलम की जो दुनिया का ओल्डेस्ट रिलीजस कॉन्फ्लेट है वोह जेरूसलम शहर की जो जॉर्डन नदी और मेडिटरेनियन सी के बीच लोकेटेड है यह शहर पिछले हजारों सालों से दुनिया के तीन मे धर्मों और दुनिया की लगभग 55
पर पॉपुलेशन का होली प्लेस रहा है और उनके बीच के कॉन्फ्लेट का फोकल पॉइंट भी लेकिन जेरूसलम के सदियों पुराने कॉन्फ्लेट का कारण केवल रिलीजस नहीं है बल्कि जिओ पॉलिटिकल भी है हम स्टडी आईक्यू के इस वीडियो में देखेंगे दुनिया के वन ऑफ दी ओल्डेस्ट शहर जेरूसलम का व इतिहास जो उसे विश्व का सबसे ज्यादा चर्चा में रहने वाला शहर बनाता है हम ज सलम के 3000 सालों की कहानी के बारे में भी बात करेंगे और कोशिश करेंगे यह समझने की कि कैसे यह शहर कई सारे रिलीजस और पॉलिटिकल वर्स का सेंटर बन गया द
रिलीजस सिग्निफिकेंट दोस्तों जेरूसलम के इतिहास से पहले जेरूसलम और यहां पर लोकेटेड सबसे इंपॉर्टेंट रिलीजस साइट टेंपल माउंट या हरमल शरीफ का रिलीजस सिग्निफिकेंट समझना जरूरी है ईस्टर्न जेरूसलम में लोकेटेड यह टेंपल माउंट एक होली कंपाउंड है जिसमें करेंटली अलक सा मॉस्क डोम ऑफ द रॉक और एक होली वॉल लोकेटेड है अलक सा मॉस्क और डोम ऑफ द रॉक मुस्लिम्स और होली वॉल जूज के लिए इंपॉर्टेंट साइट है लेकिन कई जूज वॉल के अलावा बाकी के साइट्स पर भी अपना दावा पेश करते हैं जिसके बारे में हम आगे डिटेल में चर्चा करेंगे खैर जेरूसलम दुनिया
के तीन मेजर इब्राहम रिलीजस के लिए एक होली साइट है इब्राहम रिलीजस का मतलब है वो धर्म जिनके लिंक्स इब्राहम से किसी ना किसी प्रकार से जुड़े हुए हैं इब्राहिम का जिक्र जूज के रिलीजस बुक हिब्रू बाइबल में इस्लाम की कुरान में और क्रिश्चियंस के बाइबल में मिलता है फॉर जूडे इजम जूज के लिए यह शहर इसलिए इंपॉर्टेंट है क्योंकि हिब्रू बाइबल के हिसाब से यहां के माउंट मुरा में ही इब्राहम ने अपने बेटे आइजक का सैक्रिफाइस करने की कोशिश की थी जिसके बाद उनका गॉड से कांटेक्ट हुआ इसी माउंट मुराया को जूस होली ऑफ
द होलीज बोलते हैं और यह क्लेम करते हैं कि माउंट मुराया टेंपल माउंट कंपाउंड में लोकेटेड डोम ऑफ द रॉक के नीचे है डोम ऑफ द रॉक फिलहाल एक मुस्लिम होली साइट है हिब्रू बाइबल में यहां के टेंपल माउंट को फर्स्ट टेंपल बोला जाता है जिसे किंग सोलोमन ने 950 बीसी में बनवाया था फॉर क्रिश्चियनिटी क्रिश्चियनिटी में जेरूसलम इसलिए इंपॉर्टेंट है क्योंकि जीसस का क्रूसिफिकेशन इसी शहर में लगभग 30 एडी में हुआ और क्रिश्चियंस में यह मान्यता भी है कि इस शहर में जीसस का रेजुर क्शन भी हुआ पर आज इनकी वन ऑफ द होलिस्टन
चर्च ऑफ द होली सेपल करर लोकेटेड है यह चर्च टेंपल माउंट से कुछ 2 किलोमीटर की दूरी पर है और पहली बार लगभग 335 एडी में बनाया गया था फॉर इस्लाम इस्लाम की बात करें तो उसमें यह मान्यता है कि जेरूसलम अर्थ में वह लास्ट जगह थी जिसे प्रोफेट मोहम्मद ने बुराक नाम के एक क्रीचर की हेल्प से ओवरनाइट विजिट किया था और यहां से वह सेवंथ सेंचुरी में जन्नत यानी हेवन की तरफ गए वो जगह जहां से प्रोफेट मोहम्मद जन्नत की तरफ गए वह टेंपल माउंट कंपाउंड में लोकेटेड है जहां डोम ऑफ द रॉक
और अलकासा मॉस्क है अलक सा मॉस्क मुस्लिम्स के लिए मक्का और मदीना के बाद थर्ड होलिस्टन है दोस्तों जेरूसलम का पूरा मुद्दा इसी रिलीजस सिग्निफिकेंट के अराउंड लोकेटेड है हजारों सालों के डिस्ट्रक्शन और रीक्रिएशन के बाद इस टेंपल माउंट में जो कुछ बचा उस पर ओनरशिप को लेकर कई सारे विवाद हैं जूज यह मानते हैं कि डोम ऑफ द रॉक में होली ऑफ द होलीज लोकेटेड हैं इसलिए उस पर उनका अधिकार है वहीं मुस्लिम्स इस डिमांड को रिकॉग्नाइज नहीं करते और वह अपनी ओनरशिप क्लेम करते हैं जेरूसलम द ओल्डेस्ट सिटी तो यह था जेरूसलम के
रिलीजस सिग्निफिकेंट का ओवरव्यू अब हम बात करेंगे जेरूसलम के इतिहास की और उन मेजर इवेंट्स की जिन्होंने जेरूसलम को सिर्फ रिलीजियस पैमानों में नहीं बल्कि जिओ पॉलिटिकल पैमानों से भी इंपॉर्टेंट बना दिया दोस्तों जेरूसलम को हिब्रू भाषा में यरूशलम और अरेबिक में अलकदू की कई सारी डायनेस्टीज ने कब्जा किया उसे उजाड़ा और फिर से बसाया जेरूसलम के बारे में आर्कियोलॉजिकल एविडेंसेस फोर्थ मिलेनियम बीसी यानी 4000 बीसी में एसिस्टेंसिया अकाउंट्स की माने तो लगभग 1000 बीसी में किंग डेविड ने जेरूसलम को कैप्चर किया और इसको जूश किंगडम का पहला कैपिटल बनाया हिब्रू बाइबल किंग डेविड के
ग्रेट अचीवमेंट्स के बारे में बताता है जिसमें उन्हें इजराइली ट्राइब्स को यूनाइट करने और इजराइल के सबसे इंपोर्टेंट आर्टीफैक्ट द आर्क ऑफ कवनेंट्स से जेरूसलम लाने का क्रेडिट दिया जाता है आर्क ऑफ द कवनेंट्स या बॉक्स है जिसके बारे में यह मान्यता है कि इसमें गॉड के द्वारा मोसेस को दिए गए दो प्लेट्स हैं जिनमें 10 कमांडमेंट्स लिखे हैं इस आख को रखने के लिए डेविड के बेटे किंग सोलोमन ने फर्स्ट टेंपल बनवाया जिसे हम टेंपल माउंट या हरमल शरीफ के नाम से जानते हैं खैर टेंपल माउंट को 586 587 बीसी में बेबिलोनिया किंग नेबू
कनेज द सेकंड ने डिस्ट्रॉय कर दिया इस टेंपल माउंट को बाद में जूज ने 516 बीसीई में फिर से रिबिल्ड किया और इसे सेकंड टेंपल बोला गया लेकिन आर्क ऑफ द कनेंट यहां से गायब हो गया था द ग्रीक पगन रिलीजन इसके बाद एलेक्जेंडर जब 330 बीसी के आसपास दुनिया को जीतने के सपने ने लेकर मेसेडोनिया से निकला तो जेरूसलम ग्रीक इन्फ्लुएंस में आया और यहां ग्रीक पगन रिलीजन का स्प्रेड हुआ ग्रीक पेग रिलीजन एक पॉलीथीन रिलीजन था यानी कि इसके फॉलोअर्स वन गॉड नहीं बल्कि मल्टीपल गॉड्स के आईडिया में बिलीव करते थे और वह
आइडल वरशिपर्स भी थे लेकिन जूडे इज्म एक मोनोथेस्ट रिलीजन है और उसमें आइडल वरशिप भी प्रोहिबिटेड है जिसके चलते जूज और ग्रीक पेग निज्म के फॉलोअर्स में कॉन्फ्लेट हुआ और जेरूसलम के ऑर्थोडॉक्स जूज ने 167 बीसी में एक आर्म्ड रिबेलियस रिबेलियंस एंट्री ऑफ क्रिश्चियनिटी 516 बीसी से 70 एडी तक यह सेकंड टेंपल एसिस्टेंसिया तब इसको फिर से डिस्ट्रॉय कर दिया गया जूडे इज्म में आज भी यह मान्यता है कि यहीं पर थर्ड और फाइनल टेंपल बनाया जाएगा जब उनके मसाया फिर से धरती पर जन्म लेंगे खैर फर्स्ट सेंचुरी से सेवंथ सेंचुरी तक इस एरिया में
रोमन एंपायर के कंट्रोल की वजह से क्रिश्चियनिटी काफी तेजी से फैला और धीरे-धीरे यहां का मेन रिलीजन बन गया रोमन एंपरर कांस्टेंटिन द ग्रेट को यहां पर क्रिश्चियनिटी के प्रमोशन का क्रेडिट दिया जाता है कांस्टेंटिन ने यहां लोकेटेड चर्च ऑफ द होली सेपल करर को भी 336 एडी में कंस्ट्रक्ट करवाया था जूश इंटरलूड 610 एडी में ससने द एंपायर ने थोड़े टाइम के लिए बिजें एंपायर या ईस्टर्न रोमन एंपायर को मिडिल ईस्ट से खदेड़ दिया जिसके बाद यहां सदियों बाद जूश कंट्रोल फिर से एस्टेब्लिश हुआ जिसे ससने जूश कॉमनवेल्थ भी बोला जाता था लेकिन यह
कॉमनवेल्थ कुछ ही सालों तक एजिस्ट किया और बिजें रूलर ने जेरूसलम को फिर से कैप्चर कर लिया दी अरब्स कुछ ही सालों बाद 637 एडी में अरब्स ने जेरूसलम को अपने कंट्रोल में ले लिया और फिर शुरू हुआ जेरूसलम में इस्लाम का रोल दोस्तों एक रिकॉर्ड के हिसाब से रशद कैलिफ उमर ने यहां के अलग सा मॉस्क का कंस्ट्रक्शन स्टार्ट किया था जिसको फिनिश बाद में उम याद कैलिफ अल वालिद ने किया इसके बाद 691 एडी में टेंपल माउंट का अगला सबसे इंपॉर्टेंट स्ट्रक्चर बनवाया जाता है जिसको हम डोम ऑफ द रॉक कहते इसको कैलिफ
अब्दाल मलिक ने बनवाया था इस डोम का गोल्डन कलर 1920 में ऐड किया गया था खैर इस अरब कंट्रोल के बाद टेंपल माउंट को नोबल सैंक्चुअरी या फिर हरमल शरीफ बोला जाने लगा द एरा ऑफ क्रुसेड्स इसके बाद शुरू होता है क्रुसेड्स का दौर जिसका मतलब है रिलीजस वर्स ये वॉर्स 1096 एडी से 1291 एडी तक चले जो मेनली क्रिश्चियंस और मुस्लिम्स के बीच हुए क्रुसेड्स 11थ सेंचुरी में वेस्टर्न यूरोपियन क्रिश्चियंस ने स्टार्ट किए जिसका पर्पस था मुस्लिम्स के एक्सपेंशन को रोकना होली लैंड जेरूसलम को कैप्चर करना और पुराने क्रिश्चियन टेरिटरीज को रीस्टैब्लिश करना 1095
से 1291 एडी तक कई होली वॉर्स हुए जो सीरिया से लेकर स्पेन और बाल्टिक रीजन तक फैल गए ये क्रुसेड्स 1291 के बाद भी कई सदियों तक चलते रहे लेकिन 16th सेंचुरी में प्रोटेस्टेंटिज्म के जन्म और चर्च की रिड्यूस्ड पावर की वजह से ऑलमोस्ट खत्म हो गए 1291 में क्रिश्चियंस को सीरिया रीजन से एक्सपेल कर दिया गया और कहते हैं कि 11थ सेंचुरी के अंत तक लगभग टू थर्ड क्रिश्चियन टेरिटरीज मुस्लिम्स ने कैप्चर कर ली जिसमें पलेस्टाइन सीरिया इजिप्ट और एनाटोलिया इंक्लूडेड थे क्रिश्चियन क्रुसेड्स को इनिशियली काफी सफलता मिली लेकिन इस्लामिक स्टेट्स के ग्रोथ से
एक बार फिर यह रीजन मुस्लिम कंट्रोल में चला गया फाइनली 14th सेंचुरी में ऑटोमन टक्स का रैपिड राइज हुआ और खुद को एक्सपेंड करते हुए वह बाल्कन्स तक फैल गए इन क्रुसेड्स में लाखों लोगों की मृत्यु हुई और यह ह्यूमन हिस्ट्री के डार्क एजेस में कंसीडर किए जाते हैं द राइज ऑफ ऑटोमन दोस्तों 1516 में ऑटोमन एंपायर जेरूसलम को कैप्चर कर लेता है जिसके रूलर सुलेमान द मैग्निटिया बाद जेरूसलम में शांति आई जिसे एज ऑफ रिलीजस पीस भी कहा जाता है जहां जूज क्रिश्चियंस और मुस्लिम्स सबको काफी रिलीजस फ्रीडम मिली इसके अलावा ओटोमंस के अंडर
यह रीजन इकोनॉमिकली भी काफी प्रॉस्परस हुआ और यहां पर कई सारे मॉडर्न इंफ्रास्ट्रक्चर भी आए जैसे पोस्टल सिस्टम्स पेव रोड फ्रॉम जाफा टू जेरूसलम और रेलवेज द डिक्लाइन ऑफ ओटोमंस मिड 19th सेंचुरी से ऑटोमन का डिक्लाइन शुरू हुआ और जेरूसलम में एक बार फिर अराजकता के बादल छा गए जिन में हुए चेंजेज ही मॉडर्न डे पलेस्टाइन इजरेल कॉन्फ्लेट के कारण बने इसी दौर में यहां फर्स्ट वेव ऑफ जूश इमीग्रेशन हुआ जो एंटीसेमिटिज्म और रशिया में हुए 18818 4 के बीच के एंटी जूश राइट्स का रिजल्ट था इसकी वजह से ही जाय निज्म मूवमेंट का राइज
भी हुआ जिसने एक जूश होमलैंड की डिमांड की ब्रिटिश मैंडेट वर्ल्ड वॉर वन में फाइनली ओटोमंस का अंत हुआ जिसके बाद लीग ऑफ नेशंस ने पलेस्टाइन का कंट्रोल ब्रिटिशर्स के हाथों में दे दिया लेकिन ब्रिटिश रूल के दौरान यह रीजन काफी अनस्टेबल और कॉन्फ्लेट से भरा हुआ था उसका मेन रीजन था 1922 में लीग ऑफ नेशंस का जूश होमलैंड को सपोर्ट और उसके बाद स्टार्ट हुए मैसिव जूश इमीग्रेशंस 20th सेंचुरी में जब हिटलर ने ऑर्गेनाइज्ड एंटीसेमिटिज्म को प्रमोट कर लाखों जूज को गैस चेंबर्स में झोंक दिया तो यह इमीग्रेशंस और जूश होमलैंड की डिमांड और
जोर पकड़ने लगी 1922 से 1948 के बीच जेरूसलम की पॉपुलेशन 52000 से 165000 तक बढ़ गई जिसमें 23 जूस और 1/3 अरब्स मुस्लिम्स और क्रिश्चियंस थे इसकी वजह से यहां कई सारे राइट्स भी हुए बाद में कुछ जूश मिलिशिया भी बने जो वर्ल्ड वॉर सेकंड के दौरान ब्रिटिशर्स के जूश इमीग्रेशन पर बैन से नाराज थे इन जुश मिलिशिया ने ब्रिटिशर्स पर भी अटैक्स किए क्रिएशन ऑफ इजराइल लेकिन इस कॉन्फ्लेट में एक नया टर्न 29th नवंबर 1947 को आया जब यूएन जनरल असेंबली ने पलेस्टाइन पार्टीशन प्लान अप्रूव कर दिया और पलेस्टाइन को जूज और अरब्स के
बीच डिवाइड कर दिया जेरूसलम को इंटरनेशनल कंट्रोल में रख दिया गया पर इजराइल के क्रिएशन के बाद फर्स्ट अरब इजराइल वॉर में वेस्टर्न जेरूसलम इजराइल के कंट्रोल में और ईस्टर्न जेरूसलम जॉर्डन के पास चला गया और इस वॉर में लगभग 760000 पलेटी नियंत बैंक गाजा और नेबरिंग अरब कंट्रीज में इमीग्रेट कर गए जो आज भी काफी खराब कंडीशंस में रहते हैं 1967 में हुए सिक्स डे वॉर में इजराइल ने ईस्ट जेरूसलम को भी कैप्चर कर लिया और आज ईस्ट जेरूसलम इजराइली कंट्रोल में है क्योंकि कि इसी ईस्ट जेरूसलम में टेंपल माउंट भी है जिसके बारे
में हम पहले बात कर चुके हैं इसलिए तब से जेरूसलम एक इंटरनेशनल इशू बनकर रह गया है और यहां समय-समय पर वायलेंट क्लैशेस होते रहते हैं पलेटी नियस यह मानते हैं कि जेरूसलम पर इजराइल का कब्जा ही इल्लीगल है लेकिन इजराइल इसे अपनी ऑफिशियल कैपिटल बताता है आपको बता दें कि यूएसए ने 2017 में जेरूसलम को इजराइल की कैपिटल की तरह रिकॉग्नाइज कर लिया था जिसके चलते पलेटी नियन ऑर्गेनाइजेशंस और पलेस्टाइन सपोर्टर कंट्रीज काफी ज्यादा नाराज हुए द करंट कॉन्फ्लेट 1967 में ईस्ट जेरूसलम के ऑक्यूपेशन के बाद हुई एक मीटिंग में यह डिसाइड हुआ कि
टेंपल माउंट का रिलीजस कंट्रोल मुस्लिम्स के पास और ओवरऑल सोवन इजराइल के पास होगी इस अरेंजमेंट में यह भी डिसाइड हुआ कि टेंपल माउंट में प्रेयर्स ऑफर करने का राइट सिर्फ सिर्फ मुस्लिम्स को है जबकि जूज सिर्फ वेस्टर्न वॉल में ही प्रे कर सकते हैं यह वेस्टर्न वॉल यहां पर इकलौता जूज का रिलीजस अवशेष है जो ट्रेडिशनल टेंपल माउंट के चारों तरफ एजिस्ट करती थी लेकिन जैसा कि हमने पहले बताया कि यहां के टेंपल को पहले बेबिलोनिया ने और बाद में रोमंस ने डिस्ट्रॉय कर दिया और वहां इस एंक्लोजिंग वॉल का वेस्टर्न पार्ट ही रह
गया इस अरेंजमेंट ने मुस्लिम्स और जूज दोनों के कंजरवेटिव ग्रुप्स को ह किया और करंट सिचुएशन यह है कि जूस चाहते हैं कि उन्हें टेंपल माउंट में प्रेयर्स ऑफर करने की परमिशन भी मिले और मुस्लिम्स चाहते हैं कि इजराइल जेरूसलम को ही छोड़ दे इस स्टैंड ऑफ के चलते आज भी जेरूसलम एक इंपॉर्टेंट सेंटर ऑफ कॉन्फ्लेट बना हुआ है जो ग्लोबल जिओ पॉलिटिक्स का भी डिटरमिनेट है कंक्लूजन तो यह था जेरूसलम का हजारों साल पुराना इतिहास जिसमें हमने यह पाया कि जेरूसलम श र एक ऐसा क्रेडल ऑफ सिविलाइजेशन है जिसके कॉन्फ्लेट ने दुनिया भर को
इंपैक्ट किया कई सारे अंपायर्स और सिविलाइजेशन यहां राइज हुए और खत्म हो गए लेकिन टेंपल माउंट को लेकर झगड़ा आज भी जारी है जेरूसलम का इतिहास कहां पर जाकर खत्म होगा यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा लेकिन एक बात तो तय है कि यह शहर दुनिया भर में हो रहे जिओ पॉलिटिकल चर्निंग में एक इंपॉर्टेंट रोल प्ले करता रहा है और शायद आगे भी करता रहेगा देखने वाली बात यह होगी कि यहां का रिलीजस और पॉलिटिकल कॉन्फ्लेट कब क्या मोड़ लेगा और कैसे यह एक कंक्लूजन पर पहुंचेगा इसके अलावा इस कंक्लूजन का दुनिया भर
में क्या इंपैक्ट होगा यह भी एक इंपॉर्टेंट हिस्टोरिकल इवेंट होगा जिस पर दुनिया के तमाम इतिहासकारों की नजर जरूर होगी खैर हम उम्मीद करते हैं कि यहां के सारे स्टेकहोल्डर्स एक कंसेंसस के तहत इस प्रॉब्लम को रिजॉल्व कर लेंगे और पीसफुल को एसिस्टेंसिया निभाएंगे सिक्स डे वॉर 1967 दोस्तों आज हम एक ऐसी वॉर की बात करने वाले हैं जिसने 1967 में मिडिल ईस्ट का नक्शा ही बदल कर रख दिया था और वह भी सिर्फ छ दिन में उन छ दिनों में इजरेल ना सिर्फ अपने से ज्यादा रिसोर्सेस वाली तीन अरब आर्मीज को हरा देता है
बल्कि अपने ओरिजिनल सा की तुलना में चार गुना टेरिटरी भी गेन करता है साथ ही रीजन की प्री एमिनेंट मिलिट्री पावर बनकर भी उभरता है इस वॉर ने इजरेल को सर्वाइवल के लिए फाइट करने वाले नेशन से एक ऑक्यूपाइड और रीजनल पावर हाउस में ट्रांसफॉर्म कर दिया था आज 50 साल से ज्यादा गुजर जाने के बाद भी इस वॉर के आफ्टर इफेक्ट्स देखने को मिलते हैं तो आइए इसके बारे में विस्तार से जानते हैं बैकग्राउंड दोस्तों 1967 में सिक्स डे वॉर अचानक से नहीं हो गया था यह इजराल और अरब स्टेट्स के बीच कई दशकों
से चल रही पॉलिटिकल टेंशंस और मिलिट्री कॉन्फ्लेट्स का नतीजा था 1917 में ब्रिटिश गवर्नमेंट द्वारा की गई बेलफोर डिक्लेरेशन में कहा गया था कि वह पलेस्टाइन में जूश लोगों के लिए नेशनल होम के इस्टैब्लिशमेंट को सपोर्ट करते हैं और तभी से जूज यहां बड़ी संख्या में आने लगे थे सेकंड वर्ल्ड वॉर के दौरान यह ट्रेंड और भी ज्यादा बढ़ जाता है इसके बाद नवंबर 1947 में यूनाइटेड नेशंस के रेजोल्यूशन 181 के तहत पलेस्टाइन को अरब और जूश स्टेट्स में पार्टीशन करने का फैसला होता है और जूज और अरब्स के बीच तुरंत ही क्लैशेस शुरू हो
जाते हैं पलेस्टाइन एक अरब टेरिटरी थी और यहां रह रहे मुस्लिम्स को उनके ही घर से बेदखल करने का काम शुरू हो गया था वहीं जूज अपनी रिलीजस मान्यता के अनुसार इस रीजन को को अपना इंसेस्टर होमलैंड मान रहे थे इस बीच मे 1948 में इजरेल अपनी इंडिपेंडेंस डिक्लेयर कर देता है और इसके रिएक्शन में अरब फोर्सेस जिसमें इजिप्ट जॉर्डन सीरिया लेबन और इराक जैसे देश शामिल थे इजराइल पर अटैक कर देते हैं इसे फर्स्ट अरब इजराइली वॉर भी कहते हैं यह एक फेल्ड इनवेजन रहा था फरवरी और जुलाई 1949 के बीच इजरेल और अरब
स्टेट्स के बीच सेपरेट आमिस ग्रीम साइन किए जाते हैं जिसके बाद इजरेल और उसके नेबर्स के बीच एक टेंपररी फ्रंटियर फिक्स हो जाता है इसके बाद 1956 में सुएज क्राइसिस के दौरान दूसरा मेजर कॉन्फ्लेट हुआ था और फिर लेट 1950 और अर्ली 1960 का एरा रिलेटिवली काम रहता है लेकिन पॉलिटिकल सिचुएशन अभी भी चाकू की नोक पर ही रखी हुई थी अरब लीडर्स 1948 की वॉर में हुए अपने मिलिट्री लॉसेस से तो परेशान थे ही साथ ही इस दौरान हजारों की संख्या में क्रिएट हुए पलेटी नियन रिफ्यूजीस भी उनकी समस्या को बढ़ा रहे थे और
दूसरी तरफ इजराइली को भरोसा हो गया था कि इजिप्ट और बाकी अरब देश उनके एसिस्टेंसिया डिस्प्यूट्स करते हैं मिड 1960 में सीरियन बैग्ड पलेटी नियन गोरिल्लाज इजराइली बॉर्डर पर अटैक करना शुरू कर देते हैं जिसके जवाब में इजरेल डिफेंस फोर्सेस भी रेड्स शुरू कर देती हैं अप्रैल 1967 में सिचुएशन और ज्यादा गंभीर रूप ले लेती है इजरेल और सीरिया के बीच एक फिरोश एयर एंड आर्टिलरी एंगेजमेंट होता है इस कांटे की टक्कर में छह सीरियन जेट्स डिस्ट्रॉय हो जाते हैं इसी बीच सोवियत यून यूनियन इजिप्ट से इंटेलिजेंस शेयर करता है जिसमें यह कहा जाता है
कि इजराइल सीरिया पर फुल स्केल इनवेजन की तैयारी में है और इसलिए अपने ट्रूप्स को नॉर्दर्न बॉर्डर की तरफ मूव कर रहा है यह इंटेलिजेंस रिपोर्ट गलत जरूर थी लेकिन इसने इजिप्ट के प्रेसिडेंट दमाल अब्दुल नासिर को एक्शन लेने के लिए पुश कर दिया था अपने सीरियन एलाइज को सपोर्ट देने के लिए ये इजिप्शियन फोर्सेस को साइनाइ पेनिंस की तरफ एडवांस करने का ऑर्डर देते हैं यहां 19 48 की वॉर के बाद यूएन पीसकीपिंग फोर्सेस तैनात कर दी गई थी इजिप्शियन फोर्सेस इजरेल के बॉर्डर को प्रोटेक्ट कर रही इस यूएन पीसकीपिंग फोर्स को एक्सपेल कर
देते हैं आने वाले दिनों में भी प्रेसिडेंट नासिर इजरेल के अगेंस्ट एक्शन लेना जारी रखते हैं 22 मई को वह रेड सी और गल्फ ऑफ अकाबा को कनेक्ट करने वाले सी पैसेज स्ट्रट्स ऑफ रान में इजराइली शिपिंग पर बैन लगा देते हैं और एक हफ्ते बाद जॉर्डन के किंग सैन के साथ डिफेंस पैक्ट साइन कर लेते हैं मिडिल ईस्ट की बिगड़ती सिचुएशन को देखकर अमेरिकन प्रेसिडेंट लिंडन बी जॉनसन दोनों साइड्स को ही फर्स्ट शॉट फायर ना करने की सलाह देते हैं साथ ही स्ट्रेट्स ऑफ रान को रिओपन करने के लिए इंटरनेशनल मैरिटाइम ऑपरेशन का प्लान
बनाने की कोशिश भी करते हैं हालांकि यह प्लान कभी बन ही नहीं पाता और अर्ली जून 1967 में इजराइली लीडर्स फैसला कर लेते हैं कि अरब मिलिट्री बिल्डअप को काउंटर करने के लिए वो प्रीमप्टिव स्ट्राइक लॉन्च करेंगे इसका मतलब हुआ कि इस बार वह अरब्स की तरफ से पहला वार होने का इंतजार नहीं करेंगे बल्कि खुद ही अटैक शुरू कर देंगे सिक्स डे वॉर रप्स 5th जून 1967 को इजराइल डिफेंस फोर्सेस ऑपरेशन फोकस की शुरुआत करते हैं यह इजिप्ट पर किया जाने वाला कोऑर्डिनेटेड एरियल अटैक था 5 जून की सुबह लगभग 200 एयरक्राफ्ट्स इजराइल से
उड़ान भरते हैं और मेडिटरेनियन होते हुए नॉर्थ की तरफ से इजिप्ट पहुंच जाते हैं इजिप्शियंस पूरी तरह सरप्राइज रह जाते हैं उन्हें इजराइल के प्लान की भनक तक नहीं लगी थी इजराइली एयरक्राफ्ट इसका फायदा उठाकर 18 अलग-अलग एयर फील्ड्स पर धावा बोल देते हैं और लगभग 90 पर इजिप्शियन एयरफोर्स को जमीन पर ही खत्म कर देते हैं इजिप्ट में मिली कामयाबी के बाद इजराइल अपने अटैक की रेंज बढ़ा देता है और जॉर्डन सीरिया और इराक के एयरफोर्स पर भी ऐसे ही हमले करता है दिन खत्म होते-होते मिडल ईस्ट के आकाश पर पूरी तरह इजराइली पायलट
का अधिकार हो जाता है एयर सुपीरियोर बनने के साथ ही इजराइल की जीत तो मानो हो ही चुकी थी लेकिन अभी भी कुछ और दिन तक दोनों साइड्स के बीच फियर्स फाइटिंग चलती है 5 जून को ही इजिप्ट में ग्राउंड वॉर भी शुरू हो जाता है एयर स्ट्राइक्स के साथ-साथ इजराइली टैंक और इन्फेंट्री भी अटैक करना शुरू कर देते हैं और देखते ही देखते इजिप्ट के साइनाइ पेनिंस और गाजा स्ट्रिप पर इजराइली फोर्सेस का डोमिनेंस हो जाता है इजिप्शियन फोर्सेस अपनी पूरी ताकत से इजराइली असल्ट का सामना करती है लेकिन फील्ड मार्शल अब्दुल हकीम आमेर
के द्वारा दिए गए जनरल रिट्रीट के ऑर्डर के बाद इनमें अफरा तफरी मत जाती है और इसके बाद इजराइली फोर्सेस के हाथों इन्हें भारी कैजुअल्टीज फेस करनी पड़ती हैं इसी बीच जॉर्डन को इजिप्शियन विक्ट्री की झूठी रिपोर्ट्स मिलती हैं और वह सेकंड फ्रंट खोलते हुए जेरूसलम में इजराइली पोजीशंस पर शेलिंग करना शुरू कर देते हैं इसका जवाब इजराइल ईस्ट जेरूसलम और वेस्ट बैंक पर एक डेवटहल सिटी ऑफ जेरूसलम में लोकेटेड जूज लोगों की पिलग्रिम प्लेस है सिक्स डे वॉर की अंतिम फाइट इजराइल के नॉर्थ ईस्टर्न बॉर्डर पर सीरिया के साथ होती है नाथ जून को
भारी हवाई गोलाबारी के बीच इजराइली टैंक्स और इन्फेंट्री सीरिया के हैवली फोर्टिफाइंग हाइट्स के नाम से जाना जाता है दूसरे ही दिन गोलन हाइट्स पर भी इनका कब्जा हो जाता है इस तरह 5थ जून से शुरू होकर 10थ जून तक यानी कि मात्र छ दिन में ही इजराइल अपने दुश्मन को धूल चटा देता है 10थ जून 1967 को यूनाइटेड नेशंस के हस्तक्षेप से सीस फायर लागू कर दिया जाता है जिसके बाद सिक्स डे वॉर का अब्रप्टली ऑफ द सिक्स डे वॉर दोस्तों यह तो साफ है कि सिक्स डे वॉर में इजराइल की जबरदस्त जीत होती
है एक हफ्ते से भी कम समय के अंदर एक यंग नेशन ने इजिप्ट के गाजा स्ट्रिप और साइनाइ पेनिंस जॉर्डन के वेस्ट बैंक और ईस्टर्न जेरूसलम और सीरिया के गोलन हाइट्स को जीत लिया था इस जीत के बाद इजराइल का साइज तीन गुना हो गया था 132 घंटे चली फाइटिंग में करीब 20000 अरब्स और 800 इजराइली मारे गए थे अरब लीडर्स अपनी इस भयंकर हार पर आश्चर्य चकित हो रहे थे इजिप्शियन प्रेसिडेंट तो अपना इस्तीफा भी दे देते हैं हालांकि इजिप्शियन सिटीजंस स्ट्रीट डेमोंस्ट्रेट के जरिए अपना सपोर्ट उन्हे दिखाते हैं जिसके बाद वह वापस अपना
ऑफिस रिज्यूम कर लेते हैं दूसरी तरफ इजराइल में जश्न का माहौल होता है इतनी बड़ी जीत के बाद इस रिलीज का मनोबल सातवें आसमान पर होता है और लोगों में नेशनल प्राइड की भावना चरम सीमा पर पहुंच जाती है दोस्तों यह सब तो इस वॉर का इमीडिएट नतीजा था लेकिन इसके अलावा सिक्स डे वॉर अपनी एक लेगासी भी छोड़ जाता है इसको समझना भी जरूरी है लेगासी ऑफ द सिक्स डे वॉर 1967 के इस सिक्स डे वॉर के बहुत ही व्यापक जियोपोलिटिकल कंसीक्वेंसेस मिडिल ईस्ट में देखने को मिलते हैं इसकी वजह से अरब इजराइली कॉन्फ्लेट
की आग और ज्यादा भड़क जाती है वॉर में मिली हार से घायल होने के बाद अरब लीडर्स अगस्ट 1967 में सूडान की कैपिटल खार्तूम में मिलते हैं और इजराइल से नो पीस नो रिकग्निशन एंड नो नेगोशिएशन प्रॉमिस करने वाला एक रेजोल्यूशन साइन करते हैं मतलब अरब स्टेट्स ना तो इजराइल देश को मान्यता देंगे ना उसके साथ कोई नेगोशिएशन करेंगे और ना ही शांति स्थापित करने का कोई प्रयास करेंगे इसी का नतीजा होता है कि 1973 में अरब स्टेट्स का इजरेल के साथ फोर्थ मेजर कॉन्फ्लेट यानी कि यम केपूर वॉर होता है वेस्ट बैंक और गाजा
स्ट्रिप पर कब्जा होने से 1 मिलियन से भी ज्यादा पलेटी नियन अरब्स इजरेल स्टेट का पार्ट बन जाते हैं बाद में में हजारों की संख्या में यह लोग इजराइली रूल छोड़कर भागते हैं जिससे रिफ्यूजी क्राइसिस और भयंकर हो जाता है और इसी की वजह से रीजन में पॉलिटिकल टोयल और वायलेंस की सिचुएशन बनी रहती है 1967 के बाद से अरब इजराइली कॉन्फ्लेट को खत्म करने के हर प्रयास में मुख्य मुद्दा सिक्स डे वॉर के दौरान सीज की गई टेरिटरीज का ही रहता है 1982 में इजिप्ट के साथ पीस ट्रीटी करते हुए इजरेल ने पेनिंस लौटा
दिया था और 2005 में गाज स्ट्रिप से भी विड्रॉ कर लिया था लेकिन बाकी टेरिटरीज पर अभी भी इजराइल का कब्जा बना हुआ है स्पेशली गोलन हाइट्स और वेस्ट बैंक अक्सर चर्चा में रहते हैं क्योंकि यहां इजराइल द्वारा अपनी सेटलमेंट का इस्टैब्लिशमेंट अभी भी जारी है इन्हीं टेरिटरीज का स्टेटस किसी भी अरब इजराइली पीस नेगोशिएशंस में स्टंबलिंग ब्लॉक का काम करता रहा है कंक्लूजन दोस्तों इस तरह 1967 में हुए सिर्फ 6 दिन के इस वॉर ने मिडिल ईस्ट का नक्शा पूरी तरह बदल दिया इस वॉर के बाद इजरेल रीजनल सुपर पावर के रूप में एस्टेब्लिश
हुआ 1967 के बाद 1973 में एक बार फिर अरब स्टेट्स और इजराइल यम किपर वॉर में आमने-सामने होते हैं यहां एक बार फिर इजराइल की जीत होती है समय के साथ कई सारे अरब स्टेट्स के साथ इजराइल ने पीस एग्रीमेंट्स साइन कर लिए हैं लेकिन पलेटी नियंता लिबरेशन ऑर्गेनाइजेशन यानी कि पीएलओ जहां पीसफुली इस कॉन्फ्लेट को सॉल्व करना चाहता है वहीं हमास जैसे मिलिटेंट ऑर्गेनाइजेशंस भी हैं जो पलेटी में एक बार फिर से इंडिपेंडेंट इस्लामिक स्टेट एस्टेब्लिश करना चाहते हैं अभी म 2021 में ही हमास ने इजराइल में रॉकेट से अटैक किया था जिसके रिस्पांस
में इजराइल ने भी एर स्ट्राइक से हमला किया इस तरह 1960 में इजरेल की जो डोमिनेंट पोजीशन मिडिल ईस्ट में बनी थी वह आज भी कायम है लेकिन उसके लिए बहुत बड़े स्तर पर रिसोर्सेस और ह्यूमन लाइव्स को सैक्रिफाइस भी लगातार किया जा रहा है यम कीपर वर ऑफ 1973 दोस्तों कहानी है 1973 की दिन 6थ अक्टूबर 6थ अक्टूबर यानी यम किपर का दिन यह जूश कैलेंडर का सबसे होलीस दिन है जिसको डे ऑफ अटोनमेंट भी कहा जाता है दुनिया के सब से बड़े जुश नेशन यानी इजराइल में यह नेशनल हॉलीडे का दिन था पूरा
देश अपने घरों में यह त्यौहार मना रहा था हॉलिडे की वजह से इजराइली बॉर्डर्स पर ट्रूप्स की स्ट्रेंथ भी कम थी इजिप्ट और सीरिया इसी बात का फायदा उठाते हैं और इजराइली फोर्स से 10 गुना ज्यादा फोर्स के साथ उस पर आक्रमण कर देते हैं और इसी के साथ शुरू होता है यम किपर वॉर ऑफ 1973 इसको अक्टूबर वॉर रमादान वॉर या फिर अरब इजराइली वॉर ऑ 1973 के नाम से भी जाना जाता है यह इजराइल के एक्जिस्टेंस पर अब तक का सबसे बड़ा अटैक था लगभग 25 दिन चले इस वॉर ने मॉडर्न वॉर फेयर
की थिरी और अरब वर्ल्ड की जिओ पॉलिटिक्स को पूरी तरह बदल कर रख दिया क्यूब मिसाइल क्राइसिस के बाद यह वॉर पहला इंसिडेंट था जब यूएस और यूएसएसआर के बीच एक मिलिट्री कॉन्फ्लेट होते-होते रह गया तो यह सब कैसे हुआ क्यों हुआ और इसके क्या परिणाम रहे इस सब की चर्चा आज हम करेंगे तो आइए शुरू करते हैं ब्रीफ बैकग्राउंड दोस्तों हर वॉर फेयर की तरह यह वॉर भी यूं अचानक शुरू नहीं कर दिया गया इसकी नीव भी बहुत पहले ही रखी जा चुकी थी यह तो हम सब जानते ही हैं कि इजराइल के लैंड
को लेकर अरब वर्ल्ड और जूज कम्युनिटी के बीच कितने लंबे समय से डिस्प्यूट चल रहा था इस डिस्प्यूट को लेकर इजराइल और अरब वर्ल्ड के बीच पहले भी कई फुल फ्लेज्ड वॉर हो चुके थे थे लेकिन यम कपूर वॉर का मेन ट्रिगर 1967 में हुए सिक्स डे वॉर में छिपा हुआ था जिसमें इजराइल को एक शानदार जीत हाथ लगी थी इसमें एक तरफ इजराइल था और दूसरी तरफ पूरा अरब वर्ल्ड लेकिन उसके बावजूद इजराइल ने इसमें अरब वर्ल्ड को हराने के साथ-साथ अपने ओरिजिनल साइज से साढ़े गुना ज्यादा टेरिटरी पर कब्जा किया यह पूरे अरब
वर्ल्ड के लिए एक बहुत शर्मनाक हार साबित हुई क्योंकि इतनी बड़ी-बड़ी अरब कंट्रीज उस छोटी सी कंट्री के हाथों हारी जिसको उनके मुताबिक एजिस्ट करने का भी अधिकार नहीं था इसमें सबसे ज्यादा लॉस जॉर्डन इजिप्ट और सीरिया का हुआ क्योंकि जॉर्डन से वेस्ट बैंक सीरिया से गोलन हाइट्स और इजिप्ट से उसका साइनाइ डेजर्ट और गाजा स्ट्रिप छीन लिया गया यह सब अब इजराइल के कंट्रोल में थे यहां इजरेल चाहता था कि व इन ऑक्यूपाइड टेरिटरीज को अरब वर्ल्ड के साथ बारगेनिंग चिप की तरह यूज करेगा ताकि वह लोग इसके बदले इजराइल को रिकॉग्नाइज कर ले
लेकिन अरब वर्ल्ड इजराइल की बात सुनने को तैयार नहीं था इस वॉर में मिली हार के बाद इजरेल से डील करने के लिए अरब कंट्रीज अब तीन नोज का कांसेप्ट लेकर आई थ्री नोज यानी नो रिकग्निशन नो पीस नो नेगोशिएशन और वह भी तब तक जब तक इजराइल इन सभी ऑक्यूपाइड एरियाज को वापस नहीं करता यहां इंटरेस्टिंग बात यह है कि अभी तक जो अरब वर्ल्ड इजराइल को मिडल ईस्ट का जरा भी लैंड देने को तैयार नहीं थे वह अब बस यह चाहते थे कि इजराइल उनकी ऑक्यूपाइड टेरिटरीज वापस कर दे और खुद को वहीं
तक सीमित कर ले जैसा 1948 में यूएन के पीस प्लान द्वारा डिसाइड किया गया था खैर इस बीच अरब वर्ल्ड पूरी दुनिया को यह दिखा रहा था कि वह अब भी इजराइल को किसी भी सूरत में रिकॉग्नाइज नहीं