Polygraph, Narco Test & Brain Mapping : What, How & Why? Dr Vikas Divyakirti

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Vikas Divyakirti
To follow on Instagram, visit : https://www.instagram.com/divyakirti.vikas प्रिय साथियो, पिछले क...
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नमस्कार, आप सबका बहुत-बहुत स्वागत है। इस डिस्कशन में जो चैनल हमने शुरू किया। करीब दो सप्ताह पहले, उसका पर्पस यह है कि जो देश-दुनिया के पढ़ाई-लिखाई के मुद्दे हैं, जो देश के हर व्यक्ति को समझ में आने चाहिए ताकि हमारे समाज में चर्चाओं का स्तर बेहतर हो सके तो उसी प्रोसेस में एक चर्चा बड़ी समकालिक चर्चा है, समकालीन चर्चा है जिसका विषय है कि ये जो पॉलीग्राफ टेस्ट है जो नारको टेस्ट है और, एक और टेस्ट है ब्रेन मैपिंग, शायद आपने नाम सुना होगा। इनको लेकर क्या पॉलिटिक्स है? इनके पीछे क्या साइंस है? क्या टेक्नोलॉजी
है? क्यों होता है? होना चाहिए कि नहीं होना चाहिए? बहुत सारे सवाल हैं और, ये सवाल क्यों हैं? क्यों मेरे मन में आया? मन में इसलिए आया कि मैं एक सप्ताह में जब घर जाता हूँ अपने तो मेरे पिताजी टीवी देख रहे होते हैं उन्हें टीवी देखने का बड़ा शौक है और न्यूज़ देश में आजकल एक ही चल रही है कि जो आफताब-श्रद्धा वाले मामले में जो बेरहमी से कत्ल हुआ उसके बाद की जो इन्वेस्टिगेटिव प्रोसेस है उस प्रोसेस में आता है कि कभी पोलीग्राफ टेस्ट होने वाला है फिर आता है कि परमिशन जो एक्यूस
है; एक्यूस समझते हैं न? एक्यूस का मतलब जिसके ऊपर आरोप है, एक्यूस बोलते हैं आरोपी अभी कन्विकट नहीं है कन्विकट का मतलब है, जिसके ऊपर आरोप सिद्ध हो गया हो, जो अपराधी हो तो ध्यान रखना है अपराधी मतलब कनविक्ट एक्यूज्ड मतलब आरोपी जिस पर आरोप है तो जो एक्यूज्ड है उसकी परमिशन मिलेगी तो पोलीग्राफ होगा, उसकी परमिशन मिलेगी तो नार्को होगा। उसकी परमिशन मिलेगी तो ब्रेन मैपिंग टेस्ट होगा तो मेरे पिता जी ने एक सवाल पूछा कि यार इतना इससे पूछते क्यों हैं? क्यों परमिशन चाहिए उसकी? ये तो क्रिमिनल है और फिर अगले दिन सुन
लिया कि टेस्ट हो गया, लेकिन इस टेस्ट के रिजल्ट को गवाही माना नहीं जा सकता है प्रूफ माना नहीं जा सकता है, एविडेंस मान नहीं सकते हैं तो उन्होंने मुझसे वैसे ही पूछा कि यार तुम इतने चीजों पर बोलते हो। थोड़ा इस पर बताओ न कि क्या मामला है हम समझ नहीं पा रहे तो मैंने डिसाइड किया अगला जो डिस्कशन है। इसी विषय पर करते हैं। मैं कानून का विद्यार्थी रहा हूं और इसमें बहुत सारे ऐसे मसले हैं जो कानून के हैं। तकनीक के हैं और जो मैं आपके बारे में जानता हूं कि आप सिंपल
ग्रेजुएट हैं और अभी आपने यूपीएससी की तैयारी सीरियसली की नहीं है तो मैं यह भी चाह रहा हूँ कि ऐसी ऑडियंस के सामने ही बात करूं जो ऑडियंस देश के सामान्य ऑडियंस को रिप्रेजेंट करें ताकि हर व्यक्ति इस बात को समझ सके ठीक तो मैं एक बहुत बुनियादी मुद्दे से बात शुरू करता हूं और वह यह है कि कोई सच बोल रहा है या झूठ कैसे पता लगाएँ? आप में से कुछ लोग ऐसे होंगे जो चाह के भी झूठ नहीं बोल पाते होंगे। बोलते होंगे तो उनके चेहरे पर ऐसा भाव तो जरूर आ जाता है
कि झूठ बोल रहे हैं। छिपा ही नहीं पाते हैंl ऐसे लोगों के बारे में एक बहुत प्रसिद्ध कवि हैं हरिवंश राय बच्चन, आपने नाम सुना होगा। अमिताभ जी के पिताजी और अभिषेक बच्चन के दादा जी उन्होंने एक बड़ी अच्छी पंक्ति लिखी थी खुद को संबोधित करते हुए गर छिपाना जानता तो जग मुझे साधु समझता, शत्रु मेरा बन गया है छल रहित व्यवहार मेरा यानी मुझे छिपाना नहीं आता। अगर मुझे छिपाना आता तो लोग मुझे साधु समझते। पर मैं छिपा ही नहीं पाता हूं तो मेरी कमजोरियां मेरी गलतियां सामने आ जाती हैं और लोग समझ जाते
हैं कि मैं साधु नहीं, बहुत सामान्य व्यक्ति हूं। पर आप में से कुछ लोग शायद ऐसे भी हों जिनको बहुत सफाई से बात छिपाने की अदा आती हो। आपको न भी आती हो, आपके आस-पास ऐसे कुछ लोग तो होंगे ही होंगे जो झूठ बोलते हैं और बड़ी सफाई से बोलते हैं। क़ायदे से बोलते हैं उनके बारे में भी एक बहुत प्रसिद्ध शायर ने शेर लिखा है, वसीम बरेलवी शायद नाम सुना होगा आपने बहुत प्रसिद्ध शायर हुए हैंवो कह रहे हैं- वो झूठ बोल रहा था बड़े सलीके से वो झूठ बोल रहा था बड़े सलीके से,
मैं ऐतबार न करता तो क्या करता ऐसे भी लोग होते हैं अब दिक्कत ये है कि हम जिस सोशल सेटिंग में हैं, जिस समाज हैं, जिन संबंधों में हैं हमारे बहुत सारे फैसले इस बात पर टिके होते हैं कि हमसे जो व्यक्ति बात कर रहा वो सच बोल रहा है कि झूठ बोल रहा है और, ऐसी कोई मशीन तो है नहीं कि हम सच जान लें, तो फिर लोग क्या करते हैं? बहुत छोटा बच्चा झूठ नहीं बोलता है, क्योंकि उसके पास झूठ बोलने की कोई वजह नहीं है, उसे झूठ बोलने की समझ भी नहीं है
बहुत छोटा बच्चा जब झूठ बोलना सीखता भी है तो पकड़ा जाता है क्योंकि उसको झूठ बोलने की अदा नहीं आती है। सूरदास के काव्य में एक बड़ा अच्छा प्रसंग है इसको यूं समझिए कि कृष्ण जी ने मक्खन खा लिया है उनकी मां को पता लगा कि मक्खन गायब हो गया है। माँ ने बच्चे से पूछा बेटा मक्खन गायब हो गया तुमने तो नहीं लिया है? कृष्ण के मुंह पर मक्खन लगा हुआ है। चेहरे पर, नाक पर सब जगह लगा हुआ है और बड़ी मासूमियत से कह रहे हैं नहीं मम्मी मुझे तो नहीं पता मक्खन कहाँ
चला गया, अच्छा मम्मी भी बहुत ख़ुश हो रही है उस अदा परl बच्चे को देख कर कह रही हैं, बेटा तुमने तो नहीं लिया होगा। मैं जानती हूंl कृष्ण ने कहा कि मम्मी मुझे तो नहीं पता किसने खा लिया तो मम्मी कह रही है कि बेटा, मैं जानती हूँ तुम तो खा ही नहीं सकते हो तुम तो बहुत ही अच्छे बच्चे हो। चलो हम मिलकर ढूंढते हैं कि किसने खाया? कहां चोरी हो गया? तो दोनों ढूंढ रहे हैं। अब बच्चा नहीं समझ पा रहा कि बच्चे की चोरी पकड़ी जा चुकी हैl क्योंकि बच्चों को झूठ
बोलना नहीं आता है। सीखते हैं समय के साथ-साथ हम सबने सीखा है, आपने भी सीख लिया होगा, पर बहुत छोटे बच्चे को नहीं आता है। बोलते हैं, क्योंकि बच्चों के पास अपने डिफेंस का एक ही मैकेनिज्म है, झूठ बोलना जब उनको लगता है कि फँस जाएंगे जब उनको लगता कि पिटाई हो जाएगी। तो झूठ बोलना एक डिफेंस मैकेनिज्म है, वह झूठ बोलते हैं, पकड़े जाते हैं, फिर पीटते हैं, फिर दो पिटाइयां होती हैं एक तो गलत काम की और एक झूठ बोलने की भी होती है अलग से धीरे-धीरे बच्चे अभ्यस्त हो जाते हैं कि झूठ
ऐसे बोलना है कि पकड़ा ना जाए और फिर वह जब थोड़े मैच्योर होते हैं, किशोरावस्था में आते हैं वहां तक आकर, झूठ ठीक से बोलने लगते हैं किशोरावस्था में उनकी उम्र में ऐसी चीजें होती हैं। फिजिकल चेंजेस होते हैं। उनका पर्सपेक्टिव चेंज होने लगता है। पेरेंट्स उनको दोस्त कम, दुश्मन ज्यादा नजर आने लगते हैं झूठ बोलने की वजहें बढ़ जाती हैं अपना गैंग होता है। उस गैंग में सारी बातें होती हैं कितना बताएँ तो जरूरत पड़ने पर अगर पेरेंट्स बहुत अच्छे हैं, तो झूठ की जरूरत नहीं है टीचर्स बहुत अच्छे हैं तो जरूरत नहीं पड़ती
है झूठ बोलने की पर अगर टीचर्स और पेरेंट्स उतने समझदार न हों, तो बच्चों के पास एक ही रास्ता बचता है। कि झूठ बोल कर अपने आपको बचाएं, अपने रास्ते निकालें। अब पेरेंट्स बड़ी खुंदक में रहते हैं। वह जानना चाह रहे हैं, कहाँ गया था? किससे बात कर रहा था? बच्चा नहीं बताएगा। पेरेंट्स उसका फोन चेक करेंगे तो बच्चे ने नाम ही कुछ और सेव करके रखा है चेक कर लीजिए, कितना भी चेक कर लीजिए बात हो रही थी भारती से, नाम लिखा भारत, अब कितना पकड़ लेंगे कितना चेक कर लेंगे ऑफिस लिखा हुआ है
ऑफिस बॉस आप कितना चेक करेंगे? बच्चे के पास उपाय है इस चीज का तो दुनिया के हर समाज में पेरेंट्स के सामने टीचर्स के सामने, राज्य के सामने चुनौती ये रही है कि सच कैसे जानें? तो इसके उपाय कई तरह के हैं, कुछ इमोशनल उपाय हैं, जैसे पेरेंट्स करते हैं दोस्त करते हैं खा मेरी कसम एक तो यह उपाय है जब आपको शक हो किसी पर कि झूठ बोल रहा है तो आप कहेंगे खा मेरी कसम, मुझे छू कर बोल, मर जाऊँगा मैं झूठ बोला तो तो जो इमोशनली कच्चे लोग हैं वह घबरा जाते हैं
वह बोलते हैं नहीं- नहीं- नहीं। अच्छा सॉरी मैंने झूठ बोला पर यह भी 2-4 बार चलता है फिर वह व्यक्ति मजबूत हो जाता है। उसको पता है मरता-वरता कोई है नहीं बिना बात के, मरता हर बार मैं ही हूँ फिर वह अगली बार बोलता है, कसम से, तेरी कसम, सिर पर हाथ रखो, वह कहता है तेरी कसमl और उसे फ़र्क ही नहीं पड़ रहा। इतना सफाई से झूठ बोल रहा है और सामने वाला बोलता है कसम तो झूठी नहीं खाएगा तो इसका मतलब सच है भरोसा कर लिया। कुछ लोग और करते हैं कि अगर तू
झूठ बोल रहा है तो यह जो मिर्च है, इसमें धुंआ निकलेगा, आग लगाएंगे तो धुंआ नहीं निकलेगा। कुछ लोग दूसरे उपाय करते हैं। चाइना में एक उपाय यह किया गया जिसे पॉलीग्राफ का दुनिया का पहला एग्जांपल मान सकते हैं कि जो अभियुक्त है उसको कच्चा चावल खिलाते थे और कंसेप्ट यह था कि जब हम डरे होते हैं तो हमारे मुँह में सलाइवा यानी लार नहीं बनती है और अगर कोई झूठ बोलेगा तो डरेगा, डरेगा तो सलाइवा नहीं बनेगा। सलाइवा नहीं बनेगा तो कच्चा चावल चबाया है, वह सूखा रह जाएगा और लार बन गई तो इसका
मतलब है डर नहीं रहा था और डर नहीं रहा था, मतलब सच बोल रहा था बहुत ट्रेडिशन उपाय है, बहुत मीनिंगफुल नहीं है लेकिन हाँ ऐसा होता था गाँव में अब पुलिस क्या करे? पुलिस को हजारों-लाखों-करोड़ों मामले सुलझाने हैं बहुत सारे क्रिमिनल केसेस होते हैं, सिविल केसेस होते हैं तो सिविल से पुलिस का ज्यादा लेना-देना नहीं है पर क्रिमिनल तो हैं ही क्रिमिनल का मतलब जिसमें हत्या हुई हो कोई चोरी हो, डकैती हो, बलात्कार हो, वह सब क्रिमिनल केसेस होंगे अब पुलिस के पास तरीका एक तो यह है कि वह लोगों से पूछें क्या हुआ
था बताओ भाई? नोट करें पर जो व्यक्ति पुलिस के पास गया। यदि पहली बार अपराध किया है और बहुत इनोसेंट व्यक्ति है, वह गलती से हो गया तो फिर भी हो सकता है कि बातचीत में बता दे कि उससे गलती हुई है पर जो घाघ है जो अभ्यस्त है हैबिचुअल है उसको अच्छे से पता है कि पुलिस कुछ भी पूछ ले, क्या बोलना है? क्या नहीं बोलना है? पुलिस पूछ-पूछ के मर जाएगी, लेकिन मामला साफ हो नहीं पाएगा। फिर पुलिस क्या करती है? पुलिस अपने तरीके पर आ जाती है। थर्ड डिग्री कहती है, अच्छा रुको,
चलो.....ज़रा साइड में चलो फिर तो मार मार के, मार-मार के या बिना मारे उतना दबाव बनाकर फिल्मों में आपने देखा होगा, कि एक पुलिस ऑफिसर, इन्वेस्टिगेशन कर रहा है पड़ोस के कमरे से आवाज़ें आ रही है वह कुछ नहीं करता है जब गए इन्वेस्टिगेशन पर तो अपने जूनियर को बोल कर गया कि पड़ोसी के कमरे से आवाज़ आ रही थी बहुत तेज़-तेज़ और बीच में आकर ऐसे बोल देना जब मैं बात कर रहा होऊँगा अब ऑफिसर बात कर रहा है कि भाई बता दे कितना परेशान करेगा बता दे इतने में एक पुलिसवाला आता है कि
सर,वह साथ वाले की मौत हो गई यह कहता है कैसे मरा? सर, वो सवाल पूछ रहे थे, वह जवाब नहीं दे रहा था। वह जवाब नहीं दे रहा था, ज्यादा मार दिया उसको.....मर गया कोई बात नहीं लाश दफना दो, किसी को बताना मत फिर से पूछते हैं, हाँ भाई, बताएगा? हाथ नहीं लगाया है टच भी नहीं किया है। लेकिन इतना सुनने के बाद बड़े-बड़े लोग बता देते हैं कई तो ऐसे हैं कि न भी किया हो, तो भी बता देते हैं, कि हां, मैंने ही चोरी की थी भाई, दो महीने जेल में रह लूँगाl कम
से कम मरूंगा तो नहीं और, यह भी खतरा होता है और ऐसे बहुत से जोक्स चलते हैं एक जोक मैंने सुना तो बहुत पहले था, तो भारत के तीन राज्यों के बारे में लेकिन मैं तीन देश कर देता हूँ, विदेशों के बारे में बोलते रहिए कोई दिक्कत नहीं है देश के अंदर बोलना मुश्किल है तो इमेजिन कीजिए कि जापान, चीन और नॉर्थ कोरिया में कॉम्पीटिशन है एक व्यक्ति गुम हो गया है, उसे ढूंढना है। पुलिस को पहले जापान को चांस मिला, जापान ने सात दिन लगा दिए। कैसे किया? सारे सैटेलाइट, उसका फोन ट्रैक किया और
जो उसकी लोकेशंस है उसको ट्रैक करके फिर पूछताछ करकेl आखिरकर उसे ढूंढ लिया। करीब 6-7 दिन लग गएl चाइना वालों ने कहा भाई यह कोई तरीका हुआ हम तो बहुत जल्दी कर देते हैं फिर चाइना के पास केस गयाl उसने दो दिन में ढूंढ लियाl तो कैसे ढूंढा। जो आदमी गुम हुआ था उसके सारे रिश्तेदारों को उठवा लियाl और सब रिश्तेदारों को बंद करके इतना पीटा कि नहीं बताओगे तो मार देंगेl अंत में किसी ने बता दियाl ढूंढ कर ले आएl दो दिन में हो गया काम फिर केस नॉर्थ कोरिया गया। नॉर्थ कोरिया ने एक
घंटे में सॉल्व कर दिया। कैसे किया? तो जो आदमी गुम हुआ था, उसका नाम ‘ली’ था मान लीजिए तो ‘ली’ गुम हुआ कंप्लेंट हुई कि ली गुम हो गया है कि ली की फोटो देखी उसी शक्ल का आदमी ढूँढा एक और उसको पकड़ा, खूब कस के पीटाl बोल तू ली है। बोल तू ली है। वह दो घंटे में बोला हाँ मैं ली हूं और कैमरे के सामने दिखा दिया कि ली पाया गया इसकी शक्ल थोड़ी बदल गई है पर है ली हीl इसी से पूछ लोl वह बोला हाँ मैं ही ली हूँl क्योंकि उसको पता
है कि वरना पीटूँगा फिर और ज्यादा l तो इन्वेस्टिगेशन के प्रोसेस में थर्ड डिग्री का मतलब यह होता है। किसी को मारपीट कर या बिना मारे-पीटे ऐसा दबाव बना कर कि जिस दबाव को वह झेल न पाए कभी-कभी यह भी होता है कि पड़ोस की जगह से आवाज़ यह नहीं आती है कि मर गयाl फिर क्या होता है कि देख भाई बता दे कहता है, सर मैंने कुछ किया ही नहीं इतने में एक आदमी आकर कहता है कि सर इनके पेरेंट्स को और बच्चों को उठवा लिया है क्या करना है और, वह जो सुल्तान नाम
का कसाई है। उसके पास भेज दिया है मरवा दें, या फिर अभी जिंदा रखना है शाम तक? अब यह कह रहा है, एक घंटा रुको अभी फिर देखते हैं फिर कहता है भाई बता दे नहीं बताएगा? फिर उसे बोलते हैं कि यार, एक घंटे में अगर यह बता दे तो ठीक है वरना पूरा खानदान साफ़ कर देना करेगा नहीं, लेकिन उस समय उस व्यक्ति को लगता है। मैं खत्मl परिवार खत्मl पुलिस को शौक नहीं है। ये सब करने काl पुलिस की दिक्कत यह है कि उसके ऊपर इतने केसेस है कि सॉल्व ना करें तो टीवी
चैनल, अखबार पीछे पड़ जाते हैं कैसी पुलिस है? कोई काम नहीं करती है। सॉल्व करने के जो वैध तरीके हैं वह उनके लिए बहुत यूज़फुल नहीं है। दबाव उनके पर बहुत ज्यादा है और इस वजह से एक संकट हमेशा रहता है कि हम किसी आरोपी से किसी एक्यूस से किसी गवाह सही बात... कैसे पूछें 20th सेंचुरी में, 19th सेंचुरी के अंत से कहना चाहिए कमाल होना शुरू हुआ तकनीक के क्षेत्र में पर ऐसा कमाल हुआ कि अब हम किसी व्यक्ति से सही बात जान सकते हैं। इसके बावजूद कि वो बताना नहीं चाहता और ऐसी तकनीकें
बहुत सारी हैं। तीन प्रमुख तकनीकें हैं... इन पर आज हम बात करेंगे। उनमें से एक तकनीक का नाम है.. पॉलीग्राफ एक का नाम है नार्को एनालिसिस और एक का नाम है ब्रेन मैपिंग तो पहले थोड़ा समझते हैं कि ये क्या है और फिर अंत में इस मामले में आएंगे कि इनको कंपल्सरी करना ठीक रहेगा या नहीं रहेगा। इनकी जो admissibility है, उनको एविडेंस के तौर पर मानना वो अपने आप में ठीक है.. या उसमें कुछ खतरे हैं। वो सब बातें उसके बाद समझेंगे तो तीन तकनीक हैं और इन तकनीकों को अगर हमें समझना हो कि
कौन सी तकनीक है एक शब्द है जिससे बात शुरू करेंगे.. जिसको बोलते हैं डीडीटी। डीडीटी सुनते ही को बचपन वाला योद हो गया होगा अपना.. ये वो डीडीटी नहीं है इसको बोलते हैं डिसेप्शन डिटेक्शन टेक्निक डिसेक्शन मैं उम्मीद कर रहा हूँ कि आप समझ पा रहे होंगे डिटेक्शन भी समझ पा रहे होंगे। टेक्निक तो खैर कोई बात ही नहीं है। डिसेप्शन का मतलब है धोखा कि आप कुछ छिपा रहे हैं, झूठ बोल रहे हैं या सच नहीं बोल रहे हैं। Deceive करना, धोखा देना डिटेक्शन का मतलब है पहचान लेना और टेक्निक मतलब तकनीक यदि कोई
आपको धोखा दे रहा है, तो उस धोखे को पहचान लेने की तकनीक, इसको बोलते हैं डिसेप्शन डिटेक्शन टेक्निक और फिलहाल हमारे दुनिया के पास तीन तकनीकें हैं। फ्यूचर तो बहुत ही अलग किस्म का होने वाला है। अभी जो तकनीक हैं- तीन हैं.. मैंने जो आपको बताया। एक नाम है..पॉलीग्राफ दूसरे का नाम है नार्को एनालिसिस और तीसरे का नाम है.. ब्रेन मैपिंग अच्छे से समझते हैं कि होता क्या है और कल को मान लीजिये समझ लेंगे। उसके बाद आपसे पूछूंगा कि क्या करना चाहिए.. सरकार को, राज्य को, सुप्रीम कोर्ट को। फिर देखेंगे कि.. कि आपकी राय
क्या बनती है। पहले जान तो लें कि मसला है क्या शुरुआत करते हैं पॉलीग्राफ से कि पॉलीग्राफ क्या चीज है। पॉलीग्राफ के लिए एक और शब्द आपने सुना होगा... उसे बोलते हैं ‘लाई डिटेक्शन टेक्निक’… आपने सुना है कि झूठ पकड़ने वाली मशीन होती है कुछ। कुछ लाइ डिटेक्टर तो लाई डिटेक्टर को ही बोलते हैं.. पॉलीग्राफ । पॉलीग्राफ उस मशीन का नाम है जो झूठ पकड़ती है। इसलिए सामान्य भाषा में बोलते हैं झूठ पकड़ने की मशीन या लाई डिटेक्टर पर अब आपको थोड़ा और समझना हो इस मामले में... तो आप एक फिल्म 2010 में आई थी।
हिंदी की ही उस फिल्म का नाम था। ‘Right Ya Wrong’ अब तक कितने लोगों ने यह फिल्म देखी है.. बस तीन लोगों ने देखी है! देख लीजियेगा... इसी बहाने यह फिल्म लगभग पूरी तरह से इसी टेस्ट पर बेस्ड है। सनी देओल उसमें एक कैरेक्टर हैं जिसके ऊपर टेस्ट किया गया और टेस्ट फेल हो गया। यह टेस्ट फेल हो जाता है। कोई बहुत समझदार आदमी टेस्ट को फेल कर देता है। इससे भी मन न माने, तो टीवी प्रोग्राम आया था। कुछ साल पहले जिसका नाम था- ‘सच का सामना’ ये आपने शायद देखा होगा। आपकी जनरेशन की
बात है। 5-7 साल पहले आया था। राजीव खंडेलवाल एक एक्टर हैं। वह इसको होस्ट करते थे। दो.. इसके सीजन्स आए थे.. फिर बंद हो गया था। बड़ा खतरनाक प्रोग्राम था। इसमें जो पार्टिसिपेंट थे उन्हें इस मशीन के सामने बैठना होता था और उनसे पर्सनल लाइफ के सवाल पूछते थे झूठ बोलेंगे, तो मशीन बोल देगी झूठ बोल रहा है... सच बोल देंगे तब प्राइज तो मिल जाएगा, रिश्ते टूट जाएंगे.. उसके बाद और उनके परिवार के लोग साथ मे बैठे होते थे वहाँ पर तब सोचिये कि एक पति पार्टिसिपेंट है.. पत्नी बहुत खुश हो कर आई है
कि आज मेरे पति के टेस्ट है प्राइज मिलेगा.. और उसी में एक सवाल ऐसा आ गया.. पति ने जवाब दिया बड़ा अच्छा सा कुछ भी पूछा कि क्या किसी और को पसंद करते हैं? आजकल पति ने कहा, नहीं.. और मशीन बोले कि झूठ बोल रहा है अब उसके बाद क्या बचा? प्राइज मिल भी गया.. घर तो जा नहीं पाएगा पैसे लेके पिटाई तो होगी उसके बाद। तो वैसा एक टीवी प्रोग्राम चला था- ‘सच का सामना’। कभी मौका मिले तो एक एपिसोड देखिये उसका.. बहुत डिबेट हुई थी उस पर। बाद मे वो बंद भी हो गया
था। तो यह पॉलीग्राफ टेस्ट के बेस पर कुछ प्रोग्राम्स जो मीडिया दिखाए गए, वो हैं पॉलीग्राफ टेस्ट क्या होता हैवो है? इसका जो प्रिंसिपल है.. एक शब्द समझते हैं, वो शब्द है साइको.. सोमेटिक इंटेरैक्शन सारा खेल इस प्रिंसिपल का है। साइको सोमेटिक शब्द बहुत पॉपुलर है साइकॉल्जी में.. कोई मुश्किल चीज नहीं है। मुश्किल-मुश्किल शब्द बड़े आसान होते हैं.. उसका मतलब समझ लें तो साइको.. सोमेटिक मतलब है जो चीज़ मन में शुरू होती है। सोमेटिक जिसका असर शरीर पर भी चला जाता है। फिलॉसफी की दुनिया में.... अभी साइकॉल्जी की बात करेंगे। बहुत लंबे समय से एक
डिबेट रही है कि जो हमारा सिस्टम है, हम जो एक ह्यूमन बीइंग हैं.. हम क्या है बेसिकली? क्या हम शरीर हैं? कुछ कहते नहीं.. शरीर तो बदलता रहता है, मर भी जाते हैं पर आत्मा स्थायी रहती है। आत्मा है या नहीं, है तो कैसी, इसका प्रमाण तो कुछ है नहीं ये तो Assumptions हैं, मान्यताएँ हैं। अधिकांश धर्म मानते हैं इस चीज को, कई दार्शनिक मानते हैं.. पर आत्मा को किसी ने देखा तो नहीं है.. साबित नहीं किया है, यह तो एक Assumption है तो कोई कहता है कि नहीं हम आत्मा हैं। हम शरीर नहीं हैं।
कोई कहता है कि शरीर भी है, आत्मा भी है। इनके बीच में इंटरैक्शन होता रहता जैसे डेकॉर्ट, एक फिलॉसफर ने कहा। भारत में आम तौर पर माना गया है कि हम शरीर नहीं है.. हम आत्मा है। शंकराचार्य ने कहा, कई लोगों ने कहा.. इस पर कभी डिस्कस करेंगे कि आत्मा और चेतना को लेकर जो लेटेस्ट टेक्नोलॉजिकल डेवलपमेंट्स हैं, रिसर्चेज हैं.. वो क्या संकेत कर रही हैं। और हो सकता है कि सभी धर्मों की मान्यताएँ एग्जैक्टली साबित न हो पाएँ। अगर विज्ञान ने कुछ और एक्सपेरिमेंट उस तरह से कर ली है तो और विज्ञान और धर्म
का झगड़ा सदियों से चल रहा है। धर्म की मान्यताएँ होती हैं कि विज्ञान.. उनमें से कुछ को साबित कर देता है और कुछ को खारिज कर देता है। सब चलता रहता है, नॉर्मल बात है।तो साइको सोमेटिक का मतलब ये हुआ कि चेतना या मन में शुरू होने वाली कोई चीज यदि शरीर पे भी असर पैदा कर दे। उसको बोलते हैं साइको सोमेटिक जैसे जब आप चिंतित होते हैं। आपका मूड जब खराब होता है। मूड खराब होने की वजह क्या है, एक फीलिंग होती है। फीलिंग एक मन की बात है। जैसे मूड खराब हुआ। एक फीलिंग
की वजह से वैसे आपका ऐक्टिव होने का मन नहीं करता। आपकी बॉडी.. पैसिव हो जाती है। लोग कहते हैं कि चलो घूम कर आते हैं। मैं कहता हूँ कि मन नहीं कर रहा है, मूड नहीं है। शरीर भी काम नहीं कर रहा। किसी को एंग्जायटी होती, बहुत वो चिंता होती और चिंता के साथ बॉडी में कुछ-कुछ वाइब्रेशन होने लगते हैं। किसी को डिप्रेशन होता है, तो.. उसकी बॉडी एक्जेक्टली काम करना ही बंद कर देती है। इसका मतलब मन में होने वाली समस्याएँ हमारे शरीर पर भी असर डालती है। इसको बोलते हैं साइको सोमेटिक इंटरैक्शन तो
पॉलीग्राफ की शुरुआत जिस व्यक्ति ने की थी, बहुत पहले 19वीं शताब्दी में.. उसका नाम था Lombroso.. Lombroso बहुत कमाल का आदमी है जिसकी बात हम कभी करेंगे। कभी एक वीडियो उस बारे में बनाएंगे कि कोई व्यक्ति अपराध क्यों करता है। अपराध करने की वजह क्या है? इस व्यक्ति ने एक किताब लिखी.. ‘द क्रिमिनल मैन’ नाम से किताब लिखी और उस किताब में उसने जो व्याख्या दी, वह व्याख्या यह कहती है.. यह Lombroso वो व्यक्ति है.. जो मॉडर्न क्रिमिनोलॉजी है उसके फादर उसको बोलते हैं। इटली के व्यक्ति थे.. 19वीं शताब्दी अंत में, 1876 में आसपास काम
कर रहे थे। इटैलियन में किताबें लिखीं, उस इटैलियन की सबसे प्रसिद्ध किताब है.. L'uomo Delinquente.. इटैलियन भाषा है उसका इंग्लिश अनुवाद है.. ‘द क्रिमिनल मैन’ उन्होंने एक थ्योरी दी कि डार्विन का नाम सुना है आपलोगों ने? डार्विन ने 1859 और 1871 में दो बुक्स लिखीं थीं.. और ये 1876 में लिख रहे हैं। पूरे पाँच साल बाद लिख रहे हैं.. तो उस समय डार्विन का ऐसा प्रभाव था कि यूरोप के सभी चिंतक डार्विन के दिवाने थे। ये भी दिवाने थे। डार्विन ने बताया था कि इवोल्यूशन होता है। उद्विकास होता है। उसी इवोल्यूशन के प्रिंसिपल को.. इन
साहब ने अप्लाई किया और कहा कि... जो लोग अपराध करते हैं, वो दरअसल वो लोग हैं जो... इवोल्यूशन की दौड़ में थोड़ा-सा पीछे रह गए हैं। जिनमें एनिमल वाली प्रवृत्ति थोड़ी बची हुई है। ह्यूमन वाली थोड़ी कम है, क्योंकि इवोल्यूशन कम हुआ है। इतना ही नहीं... 4000 अपराधियों का अध्ययन किया। 400 डेडबॉडीज का अध्ययन किया। उनके चेहरे के जितने फीचर्स हैं.. उनके बहुत सारे अनुपात निकाले। कि नाक का.. साइज कितना है, आँख का साइज कितान है। उन सबके बहुत सारे अनुपात निकाले। उन अनुपात के बेस पर व्याख्याएँ की.. और कहा कि जो इंसान का स्ट्रक्चर
है.. तीन तरह का होता है। एक ectomorph होता है.. एक endomorph होता है और एक mesomorph होता है। Ectomorph जो बहुत पतले और लचक वाले व्यक्ति हैं। endomorph भारी भरकम और गोल किस्म के लोग.. और जो अपराधी हैं, वो mesomorph हैं.. जो लंबे हैं। गँठा हुआ शरीर है और कुछ खास फीचर्स बताए कि.. नाक कैसी होगी। आगे चल कर यह भी बता दिया कि चोर का स्ट्रक्चर कैसा होगा। डाकू का कैसा होगा, रेपिस्ट का कैसा होगा, मर्डरर कैसा होगा... उन सब के स्ट्रक्चर बता दिये और बहुत सारे.. चित्रों के साथ बताया। उनकी किताबों के कुछ
चित्र हैं। इस हद तक व्याख्या की। और आजकल जो व्याख्या चल रही है... वो और भी खतरनाक व्याख्या चल रही है। जैसे मैं कल ही एक रिसर्च पढ़ रहा था। एक व्यक्ति एक स्कूल में टीचर था.... और उसकी हरकतें थोड़ी सी खराब थीं.. स्कूल के बच्चों के साथ। तो उसको जेल हो गई। उसी घर में गोद ली हुई... बेटी भी थी, तो वह भी चिंता थी सरकार को। जैसे ही जेल गया, तो उसकी तबीयत खराब हुई। चेकअप हुआ हुआ, एमआरआई हुआ और पता लगा... कि उसके ब्रेन में एक नस है, जो दबी हुई है.. और
वह प्रेस हो रही है... लगातार। छोटी सर्जरी हुई, वो नस ठीक हो गई। पर जैसे ठीक किया, उसका आपराधिक व्यवहार खत्म हो गया। नॉर्मल ह्यूमन बीइंग हो गया। हर जगह ठीक से.. उसको याद भी नहीं कि वो क्या करता था। सरकार ने स्टडी की और फिर उसको छोड़ दिया कि इससे.. कोई खतरा नहीं है। अपने घर में रहने लगा काम करने लगा। एक दम ठीक हो गया। छह आठ महीने बाद फिर वही कुछ होने लगा। फिर चेकअप हुआ। देखा.. फिर से वो एक ट्यूमर जैसा हिस्सा उसकी उस नस को प्रेस कर रहा है.. और तब
एक व्याख्या ये आने लगी कहीं.. ऐसा तो नहीं कि हम अपराध इसलिए करते हैं क्योंकि हमारे ब्रेन में कुछ डिस्फंक्शन है। अगर ब्रेन में डिस्फंक्शन है.. तो वो बेचारा कहाँ जिम्मेदार हुआ? वो तो उसके ब्रेन की जो.. anomaly है वो जिम्मेदार हुआ। बड़ी व्याख्याएँ हैं। कोई बोलता है सामाजिक कारण से अपराध होता है, कोई बोलता है आर्थिक कारणों से अपराध होता है.. कुछ मानते हैं आर्थिक वजह होती अपराध के पीछे कुछ लोग मानते हैं कि नहीं, व्यक्ति... अपनी चेतना से अपराध करता है। वह जिम्मेदार होता है, क्योंकि उसके पास एक freedom of conscience होती है।
एक शब्द सुना होगा संकल्प स्वतंत्र होता फ्रीडम ऑफ विल होती है। बहुत डिबेट्स हैं। इन पर कभी और बात करेंगे.. विस्तार में। अभी ये समझिये कि इस Lombroso नाम के आदमी ने पहली बार एक मशीन बनाई जिसको आप पॉलीग्राफ का बहुत इनिशियल एग्जामपल मान सकते हैं। एक ग्लोव बनाया, दस्ताना बनाया.. जो अभियुक्त होता था, उसको दस्ताना पहनाते थे.. पानी में हाथ डालते थे.. प्रश्न पूछते थे। थ्योरी सिर्फ इतनी थी कि अगर झूठ बोलेगा... तो उसका बीपी कम हो जाएगा और ब्लड प्रेशर नापते थे। बहुत Authentic नहीं था.. लेकिन, पहला प्रयास उस व्यक्ति ने किया। उसके
बाद 1915 में अमेरिका में एक व्यक्ति थे। मारस्टन नाम के, उन्होंने प्रयास किया। फिर 1921 में लार्सन नाम के एक पुलिस ने बहुत प्रयास किया और करते-करते.. बहुत डेवलप करने के बाद आज जो पॉलीग्राफ होता है। आज के पॉलीग्राफ में तीन चार चीजें हम लेकर चलते हैं। ये पॉलीग्राफ हो रहा है एक महिला का.. मैन प्रिंसिपल क्या है? साइको सोमेटिक इंटरैक्शन हम पूछेंगे सवाल और बुनियादी प्रिंसिपल है कि जब हम झूठ बोलते हैं, हम थोड़े से असहज होते हैं.. थोड़ा घबराते हैं, बेचैन होते हैं। सच बोलना सबसे बढ़िया होता है। सच बोलने में आपको याद
नहीं रखना पड़ता। क्या बोला, कहाँ बोला है... झूठ बोलने वाले की याद्दाश्त बहुत तेज होनी चाहिए। वरना आप 50 झूठ बोलेंगे... 51वें में विरोधाभास पैदा कर देंगे.. झूठ बोलना बड़ा मुश्किल और.. बड़ा गलत काम हो जाता है। तो जब हम झूठ बोलते हैं, हमें थोड़ी सी बेचैनी होती है। तो बेचैनी से क्या-क्या होगा? हमारा बीपी बढ़ेगा। हमारी जो साँस की गति है.. रेस्पिरेशन.. वो बढ़ेगा। फिर ये भी हो सकता है कि उस समय हमें पसीना आने ज्यादा आने लगे। स्वेटिंग होने लगे। यहाँ तक हो सकता है कि जो हमारी स्किन है..स्किन पर जो इलेक्ट्रिकल एक्टिविटी
है उसकी जो प्रवृत्ति है। हमारा पूरा शरीर इलेक्ट्रिक एक्टिविटी से चलता है। इसको समझेंगे आगे। वह चेंज हो सकती है। आप आँख से आँख मिला कर बात नहीं कर पाते हैं झूठ बोलते हुए। इसलिये जो आम लोग करते हैं, वो आई कॉन्टेक्ट से समझते हैं... कि सच है या झूठ है। चेहरे के भाव से समझते हैं, फिर आप सच... बोलने पर आराम से बात करेंगे। झूठ बोलते हुए आपका बॉडी मूवमेंट कुछ-कुछ होने लगेगा.. क्योंकि आप असहज हैं उस समय इन सारे प्रिंसिपल्स को मिलाकर... ये तय किया गया कि हम तीन चार को जज करके समझ
सकते। यानी जो लगे सच बोल रहा। ये जो मशीन इसमें क्या-क्या है। इसमें देखेंगे कि एक तो अगर हम देख पाए। यहां इसकी दो उंगलियों में कुछ लगा हुआ है ये जो उंगलियों में है। इसको बोलते इलेक्ट्रोड और इलेक्ट्रोड क्या होता है आपको आईडिया है ही जो इलेक्ट्रिक सिग्नल को कन्वे करने या रिसीव करने के इंस्ट्रूमेंट होते हैं डिवाइसिस होती हैं। इससे क्या होता है। इससे ये पता लगता है कि जो स्किन है जब कोई । झूठ बोलेगा। उसकी स्किन की इलेक्ट्रिकल एक्टिविटी चेंज होने लगती है तो इससे ये पता लगता रहता है कि इसकी
स्किन की इलेक्ट्रिकल एक्टिविटी अब कैसी है। पिछले सवाल में कैसी थी अगले सवाल में कैसी होगी उसको हम नोट करते हैं। ये जो टेप इसके पेट पर बंधी है, इसको बोलते है न्यूमोनिक टेप या न्यूमोनिक ट्यूब कहते हैं। न्यूमोनिक ट्यूब का काम ये होता है। न्यूमोनिक में पी होता है। शुरू में क्यों होता है मुझे आज तक समझ नहीं आया लेकिन होता है न्यूमोनिक ट्यूब ये बंदी है पेट पर और छाती पे इसका परपज है ये देखना सवाल पूछे जाते हैं इस टेस्ट में हर सवाल का जवाब देते समय में सांस की गति कम हुई
कि ज्यादा हुई ये इस टेप से पता लगता है और ये सारे इनपुट्स कहाँ जा रहे हैं कंप्यूटर में वहाँ एनालिसिस चल रहा साथ-साथ तीसरी चीज इस टेस्ट में होती है जो आप देखेंगे ये बाँह पे इसको बोलते हैं। बीपी कफ आपने देखा होगा जब किसी का बीपी लेते हैं यहाँ एक बाँधते हैं कफ है न इसे ये भी देखते हैं कि हर सवाल के जवाब में बीपी बढ़ा या कम हुआ और चौथा जो ये कुर्सी है वो सामान्य कुर्सी नहीं होती है ये कुर्सी इस व्यक्ति का वजन वजन बीच में है। कि साइड में
है कि आगे है कि पीछे है कितनी मूवमेंट हो रही किस सवाल में वो चेक करती है तो जो चेयर है ये चेयर भी स्पेसिफिकली डिजाइन चेयर होती है। अब क्या होता है कि इस व्यक्ति को बुला लिया। पहले से इसको पता होता है कि टेस्ट हो रहा है उसकी परमिशन से ही टेस्ट होता है ऐसे नहीं होता है। हमारे देश में फिर पहले प्री टेस्ट होता है। इंटरव्यू जो व्यक्ति टेस्ट करेगा जो एक मनोविज्ञान की समझ रखता है। अपराध विज्ञान की समझ रखता है क्वश्चनेयर बनती है प्रश्नावली बनती है। पहले उसको बताते हैं कि
देखो भाई ये टेस्ट आपने अपनी मर्जी से दिया है। तनाव की बात नहीं है। कुछ सवाल पूछेंगे। डरना-वरना एकदम नहीं है ये मशीन कोई करेंट नहीं लगेगा सिंपल सी बात है कि ये एनालाइज करेंगे कि आप कितना सच बोल रहे हैं उसको एट ईज ले आते हैं कि तनाव ना हो उसको। फिर जब टेस्ट शुरू होता है कुछ ऐसे सवाल पूछ लेते हैं अजीब-अजीब से आलू का रेट क्या चल रहा है आजकल कुछ भी ऐसे ताकि उन सवालों से उसको यह समझ में आये कि एक सामान्य सवाल पर उसकी ये सब रेट्स क्या चलती रहती
है या उसे घर के बारे में परिवार के बारे में कुछ सामान्य सवाल पूछ लेते हैं। बीच-बीच में वो सवाल आते हैं और देखते हैं कि सामान्य सवाल में सारे रेट क्या थी। उस सवाल में रेट्स क्या हुईं और फिर उस व्यक्ति के हिसाब से क्योंकि क्या होता है न कुछ बहुत मासूम लोग हैं अब जैसे आपमें से किसी को कोई बिठा दे। यहाँ पर आप कितना भी सच बोलेंगे। इसी घबराहट में ये मशीन के सारे पैरामीटर्स बढ़ जाएँगे कि पता नहीं क्या होने वाला है मेरे साथ जो मासूम व्यक्ति होते हैं, उनका तो हर
जवाब हाईप पर रहता है उस समय घबरा जाते हैं कुछ हैं सुपर घाघ टाईप के लोग उन्हें मशीन लगाई ऐसे बैठे हैं वो कह रहे हैं कि देखिये डरने की बात नहीं है। कि मैं डर ही नहीं रहा तुम क्यों डर रहे हो। पूछो सवाल उन्हें फर्क ही नहीं पड़ रहा। इतना अच्छा झूठ बोलते हैं इतना सलीके से मैं एतबार न करता तो क्या करता उस वाले भाव से तो ऐसा हो सकता है कोई भी झूठ बोल रहा हो लेकिन इतने कॉन्फिडेंस से कि ना हिल रहा है ना हार्ट बीट्स बढ़ रही हैं उसकी न
स्किन का करेंट चेंज हो रहा ना श्वसन की गति बदल रही है। कुछ नहीं हो रहा उसको और जो बेचारा मासूम सा है उसका सब कुछ बढ़ गया अचानक डर के मारे ये खतरा तो होता ही है इसमें तो करते क्या हैं। शुरू में ना हर व्यक्ति के एक नॉर्मल लेवल जज करते हैं कि किसी के नॉर्मल लेवल जीरो हो सकता है किसी का चार हो सकता है वो शुरू चार से कर रहा है जो मासूम सा आदमी है। हर चीज में चार लेवल ऊपर बढ़ा हुआ है तो उसका नॉर्मल 4 मान लेंगे। वहाँ से
काउंट करना शुरू करते हैं कि गैप कितना आया कि वो सच बोलेगा तो भी तनाव के चौथे बिंदु पे है झूठ में तनाव के आठवें बिंदु पर होगा और जो घाघ आदमी है सच बोलते हुये जीरो पे है झूठ बोलते हुये जीरो प्वांइट फाइव पर गया सिर्फ तो ऐसे एक अमांउट फिक्स करते मात्रा फिक्स करते हैं। उस व्यक्ति के अनुसार और हर क्वेश्चन के साथ नोट करते हैं। सारी वैल्यूज और उसकी टोटल वैल्यू क्या निकलेगी? उसके बेस पे तय होता है कि सच की वैल्यू यहाँ से यहाँ तक मानेगें यहाँ से यहाँ तक बोलेंगे झूठ
है और बीच की एक वैल्यू होती है जो कि कैन नॉट से या तय नहीं हो पा रहा। इस तरह से टेस्ट होता है। अब ये टेस्ट आपने अगर देखा हो तो इसके बहुत फेमस एग्जांपल्स मैने आपको दो फिल्मों का या सीरियल का एग्जांपल दिया वो इसके एग्जांपल्स हैं कुछ लोग पूछते हैं कि ये टेस्ट अपने आप में प्रामाणिक है या नहीं है। इससे कुछ तय हो पाता है या नहीं। कितना वैलिड है तो दो बातें हैं। एक अमेरिकन जो इंटेलिजेंस एजेंसी है उसके एक प्रमुख ने कुछ साल पहले बयान दिया उन्होंने कहा कि ये
टेस्ट एकदम बेकार है। अमेरिकन्स के लिये तो काम करता है बाकि लोगों के लिये काम नहीं करता उसको ये भरोसा कि अमेरिका के लोग सच्चे होते हैं,बाकि लोग झूठे होते हैं उसने कहा हमने कई ईस्ट यूरोपियन लोगों को देखा जो इस मशीन को आराम से धोखा दे सकते हैं। हाँ, अमेरिकन्स आमतौर में फँस जाते हैं फिर बोला जो एशियन्स हैं वो भी इसको धोखा दे सकते हैं। आराम से कल्चर की बात है जिस कल्चर में सच बोलने पर बहुत जोर दिया जाएगा। वहाँ के लोग झूठ बोलते हुये थोड़ा परेशान होते हैं, लेकिन यदि किसी कल्चर
में झूठ को बुरा नहीं माना जाता तो वहाँ के लोग झूठ को लेकर सहज होते हैं और सहज हैं घबरा नहीं रहे हैं तो उनके सारे पैरामीटर्स चेंज ही नहीं होते तो कैसे पकड़ेगे और यही चीज दिखाई गई है उस फिल्म में जिस फिल्म का मैने नाम बताया राइट या रॉन्ग सनी देओल है। सनी देओल की पत्नी का अफेयर किसी से चल रहा था और उसे गुस्सा आ गया और उसने पत्नी और उस व्यक्ति का कत्ल कर दिया। अगर मैं ठीक याद कर पा रहा हूँ मैने फिल्म देखी है तो मुझे ध्यान है कि ऐसा
ही हुआ था। तब उसका एक और ऑफिसर ये भी पुलिस में काम करता है। वह भी पुलिस में है इसका दोस्त भी है। बाद में वो कंप्टीटर हो गया। इरफान खान उसे जिम्मेदारी मिली। है जाँच करने की और इरफान खान पॉलीग्राफ टेस्ट करता है उसका अब पॉलीग्राफ में पकड़े जाने का पूरा खतरा है और फिल्मी थीम क्या है कि वह इतना समझदार है सनी देऑल जितने क्वेश्चंस पूछे हैं न उसकी हार्ट बीट चेंज हुई है न कुछ चेंज हुआ है और जहाँ-जहाँ बढ़ने से साबित होगा कि ये सच बोलता है आदमी वहाँ-वहाँ बढ़ रही है,
जहाँ साबित हुआ कि झूठ बोल रहा है वहाँ नहीं बढ़ रही है और उसने अपनी भावनाओं पर इतना कंट्रोल किया हुआ है कि टेस्ट का वही रिजल्ट आएगा जो ये चाहता है कि आये और अंत में टेस्ट का रिजल्ट ये है कि ये बेकसूर है उसे बरी कर देते हैं और जब वो बरी करके जाता है। फ्लाइट लेते भारत से बाहर की और एक पर्ची छोड़ के जाता है अपने दोस्त के लिये वही जो इन्वेस्टिगेशन ऑफिसर है इरफान खान और पर्ची में लिखा हुआ है। तुम्हारे आरोप सही थे पर तुम साबित कर नहीं सकते। यह
है पॉलीग्राफ की असलियत कुछ दावा नहीं कर सकते। आपको लगता होगा कि ये प्रयोग होना चाहिए ताकि अपराधी पकड़े जाएँ लेकिन इसका ये भी समझना है कि जब हम किसी अपराधी पर इसको लागू करेंगे आरोपी पर तो हमें समझना पड़ेगा। इसके पीछे के कानून के प्रिंसिपल्स क्या हैं। इसके बात अभी हम थोड़ी देर में करेंगे। अच्छा एक बात बताइए अगर पॉलीग्राफ की मशीन नॉर्मली अवेलेबल हो जाए और पेरेंट्स घर पर ले आएं और रोज रात को बच्चों पर लगा दें ये मशीन किसके पास गए थे मतलब और भी खतरनाक सवाल हो सकते हैं आप चाहेंगे
कि ऐसा हो पॉलीग्राफ की मशीन। भारत के हर पेरेंट को हर टीचर को मिल जाये नहीं चाहेंगे न । ठीक है। गनीमत है कि आप क्यों आप कहेंगे कि राइट प्राइवेसी भाई मैंने कोई अपराध थोड़ा न किया है। ये मेरी प्राइवेसी है, मैं किसके साथ गया किसके साथ नहीं गया। मेरे पेरेंट्स क्यों जाने इस बात को। है न मैं मैट्रो सिटी में रहने वाल वयस्क वयक्ति हूँ आपके मन में ये भाव आयेगा और आज से तीस साल के बाद आप शायद ये कहेंगे कि हाँ होना चाहिए। मशीन होना चाहिये पॉलीग्राफ की क्योंकि तब आपके बच्चे
वही सब कर रहे हैं जो अभी आप कर रहे हैं और तब आप वो सब करेंगे जो आपके पेरेंट्स अभी कर रहे हैं। है न तो नफरत आपको पेरेंट्स से नहीं है नफरत इस पीढ़ी को अगली पीढ़ी से है अभी आप इस तरफ हैं कुछ साल बाद आप उस तरफ खड़े हो जाएंगे और आपके विचार लगभग वैसे ही बदलेंगे जैसे अभी आपके पेरेंट्स के विचार हैं। अब देखिए दूसरा टेस्ट क्या होता है। दूसरे टेस्ट का नाम ये देखिये देख के ही घबराहट हो रही इसको तो लेकिन ये तीसरा टेस्ट है दूसरा टेस्ट जो होता उसको
बोलते हैं नार्को उसके लिये कोई चित्र है नहीं क्योकि चित्र के लायक कुछ है नहीं चित्र कहाँ से लाएँ उसका नार्को थोड़ा रिस्की टेस्ट होता है और इसमें क्या होता है। एक दवाई होती जिसको बोलते हैं सोडियम पेंटोथल इसका नाम सुना है आपने कभी सुना है तो अच्छी बात है नहीं तो अब सुन लीजिए एनेस्थीसिया समझते हैं क्या होता है हाँ तो बस समझिये सोडियम पेंटोथल वो दवाई है जिसका प्रयोग एनेस्थीसिया के लिए आमतौर पर किया जाता है। एनेस्थीसिया का मतलब है जब किसी को ऑपरेट करते है सर्जरी करते है उसको बेहोश करना होता है
या उसके शरीर के कुछ हिस्से को बेहोश करना होता है ताकि पेन उसको महसूस ना हो तो वो दवाई देके उसको बेहोश कर देते हैं तो मेरी तो एक-दो सर्जरी छोटी मोटी हुई हैं तो बड़ा इंटेरेस्टिंग होता है डॉक्टर आपसे बात कर रहा है बहुत प्यार से बात कर रहा है। बात करते-करते लगाता है इंजेक्शन आप समझ भी नहीं पाते। तीन-चार सेकेंड में जबान लड़खड़ाती है। फिर पता भी नहीं चलता। क्या हुआ फिर पाँच घंटे बाद जब होश आता है तब तब दर्द होता है पूरे शरीर में फिर आदमी उछलने कूदने लगता है बहुत दर्द
हो रहा है लेकिन सर्जरी में पता भी नहीं चलता है तो ये वो दवाई है जो हमें बेहोश कर देती है। इसी दवाई की एक सीमित मात्रा दी जाती है। नार्को टेस्ट में और इसी दवाई का एक नाम होता है। ट्रूथ सीरम ट्रुथ सीरम का मतलब हुआ एक ऐसी दवाई जो आदमी से सच बुलवाती है। इसका प्रसिद्ध नाम है ट्रुथ सीरम तो क्या होता है। इस दवाई का असली पर्पज है कि इसको दें तो कुछ घंटों के लिए व्यक्ति एकदम एक खास अवस्था में चला जाता है उस अवस्था का नाम होता है। हिप्नोटिक स्टेट आपने
हिप्नोटिज्म का नाम सुना है। हिप्नोटिज्म में हम जिस चीज में जाते है उसका नाम है हिप्नोटिक स्टेट आप सम्मोहित है किसी ने आपको सम्मोहित कर लिया है और सम्मोहन कई लोग सच में करते हैं। उसके पीछे एक पूरी न्यूरोसाइंस काम करती है। पैरा साइकोलॉजी में आजकल खूब स्टडीज इस पर होती है। कभी वो भी डिस्कस करेंगे जब कोई हिप्नोटिक स्टेट में होता है या हिप्नोटाइज हो गया होता है इसका मतलब ये दवाई से हुआ और भी तरीके हो सकते हैं। इस समय क्या होता है एक्सीडेटिव स्टेट कहते हैं वो भी इसी का नाम है। इनमें
से कोई भी शब्द आप पढ़े इसका वही मतलब है। इसमें होता क्या है आप सोये नहीं है आप जाग रहे हैं हल्की-हल्की चेतना है। बीच में नींद आ जाती है फिर कोई थप्पड़ मार के उठा देगा तो उठ जाएंगे। ये चलता रहता है इस समय आपकी बेसिक इंटेलिजेंस बेसिक रिस्पॉन्स सिस्टम काम कर रहा है। किसी ने आपसे क्वेश्चन पूछा आप उसका आंसर दे पा रहे हैं। कोई दिक्कत नहीं हाँ ये है कि पूरा सेंटेंस नहीं बोल पा रहे हैं थोड़ा सा बोलते हैं सो जाते हैं फिर उठाया फिर थोड़ा सा बोला यह सब चलता रहता
है। आपकी मेमरी काम कर रही है। उसमें कहीं कोई दिक्कत नहीं है आप क्वेश्चन आंसर कर पा रहे हैं मेमरी कर पा रहे हैं वो ठीक है वहाँ तक लेकिन जो एक चीज होती है इमेजिनेशन एक चीज होती है क्रिएटिविटी एक चीज होती है एनालिसिस या एनालिटिकल एबिलिटी ये आपकी उस समय गायब हो जाती है। आप कुछ इमेजिन नहीं कर सकते। कुछ नया नहीं सोच सकते। ये नहीं सोच सकते कि इस सवाल का जवाब देने से मुझ पर क्या असर पड़ेगा। एनालाइज नहीं कर पाएंगे और इसका मतलब ये हुआ क्योंकि आप ये सब कर ही
नहीं पा रहे। आप कोई नई कहानी जोड़ ही नहीं पाएंगे वरना कोई आपसे पूछे कहाँ गये थे मैं चिंटू के पास गया था, गये थे चिंटी के पास लेकिन आप बोल रहे चिंटू के पास गया था पापा भी समझदार है पापा ने फोन कर दिया और दोस्त लोग इतने बढ़िया होते हैं पहले से उनकी अंडरस्टैडिंग रहती है। जैसे फोन आया एक्स के पापा का चिंटू के पास बेटा तुम्हारे पास आया था। हाँ अंकल अभी तो गया अभी-अभी एक मिनट पहले गया अभी-अभी क्योंकि उसको पता जब भी अंकल का फोन आये यही बोलना है एक तो
जोक चल रहा था एक बच्चा घर पर नहीं आया तो पैरंट्स ने 10 दोस्तों को फोन किया। उनमें से आठ ने कहा अभी-अभी गया है। दूर-दूर रहते थे, अभी-अभी गया है। एक ने कहा अंकल बाथरूम में है अभी आ रहा है और एक तो आवाज बदल कर बोला मैं ही तो बोल रहा हूँ पापा जबकि वो घर में था। बच्चा दोस्त तो पार्टनर्स इन क्राइम है न वो तो हिस्सेदार हैं। उनकी गवाही की क्या वैल्यू है, लेकिन जब कोई गवाही लेगा। अब मान लीजिए कि कोई फँस गया और उसको ये इंजेक्शन लगा दिया और फिर
उससे पूछा। अब मैं अगला सवाल पूछूँगा। क्या पेरेंट्स के हाथ में ये आना चाहिए कि आप घर आये पेरेंट्स ने लगाया इंजेक्शन लिटाया कि चल बेटा अब बता कहाँ-कहाँ गया था और अब आप सारे नाम बता देंगे। उसके बाद तो कितना रिस्की हो जाएगा तो आप इमेजिन नहीं कर सकते है। सामान्य स्थिति में क्या होता है पापा ने कुछ पूछा बेटा पैसे दिये थे इतने कहाँ चले गए। आपको सोचने से पहले अपने सवाल आएगा। अब जवाब देने के प्रोसेस में आपका दिमाग इतना तेज चल रहा । उस समय आप इमेजिन कर रहे। क्या बोल के
रास्ता निकालूँ और आप कुछ ऐसे खर्चे बताएँगे जो बहुत जेनुइन लगेंगे और थे नहीं लेकिन आप बोल देंगे क्योंकि क्रिएटिव है इमेजिनेशन हैं एनालाइज कर पा रहे हैं ये सारी क्षमताएँ खत्म हो गई। इस इंजेक्शन के बाद पर अभी व्यक्ति लेटा हुआ है इससे बातचीत चल रही है। इससे पूछा बताओ चाकू कहाँ छुपाया था अब बताओ फ्रिज में क्या-क्या रखा था। अब बताओ अंगूठी किसको दी थी। इस तरह के और कभी-कभी हाँ या ना वाले सवाल जवाब उस तरह से होता है। यह बहुत ही ऑथेंटिक किस्म का टेस्ट होता है। मतलब अभी इसपे डिबेट चल
रही अलग बात है, लेकिन बहुत मजे की बात है कि नार्को एनालिसिस अपने आप में बहुत ही ऑथेंटिक टेस्ट हो सकता है। कुछ मामलों में इसके एग्जाम्पल आपको देखने हों। इसका प्रयोग पहली बार हमारे देश में हुआ था गोधरा के मामले में गोधरा को 2002 का एक प्रसंग था। रेल में जो आग लगी उसके बाद अन्य हुए तो जो रेल में आग लगी जिन लोगों पर आरोप था, उनका नार्को टेस्ट हुआ उसके बाद कई मामलों में हुआ आपने एक मामला सुना होगा। आरुषि हत्याकांड तलवार फिल्म 2015 में आई है देखी है तो बढ़िया है नहीं
तो देखिए उसमें नार्को टेस्ट पूरा होता हुआ दिखाया है। वो नार्को टेस्ट है जो आरुषि के फादर के तीन स्टाफ मेंबर्स का हुआ था, जिनमें सबसे फेमस टेस्ट हुआ था कृष्णा का और उसकी जो वीडियोग्राफी थी, वो लीक भी हो गई थी। लीक हो गई थी या जैसे भी हुआ हो पर वो लीक हो गई थी और बहुत लोगों ने देखा उसी के बेस पर फिल्म बनी तलवार तलवार नाम की फिल्म है जो विदेशों में गिल्टी नाम से आई थी यहां तलवार नाम से आई थी उसमें पूरा नार्को टेस्ट का प्रोसेस बताया हुआ है कि
कैसे कैसे होता है नार्को टेस्ट से बचना लगभग नामुमकिन है क्योंकि आप पॉलीग्राफ में ये कर सकते हैं कि इमोशंस को कंट्रोल कर लिया। इसमें तो कुछ है ही नहीं आपके कंट्रोल में अब इसमें कैसे कंट्रोल करेंगे। इसका जो सबसे सक्सेसफुल नमूना है आपने तेलगी का मामला सुना है कभी नहीं सुना होगा, एक अब्दुल करीम तेलगी नाम का आदमी था। 1980-90 के दशक में उसने क्या किया उसने स्टाम्प पेपर्स का घोटाला किया बहुत बड़ा... मतलब कई 100 करोड़ रुपये का घोटाला था तो नकली स्टाम्प पेपर बना कर बेचता था और सुनने में आया था कि
बहुत बड़े बड़े राजनेता शामिल हैं। उसके गैंग में, अरेस्ट हुआ तो खैर उसकी मृत्यु हो गई नार्को टेस्ट हुआ और मजे की बात है। नार्को टेस्ट में उसने दो बड़े नेताओं के नाम बोल दिए, बेहोश था कंट्रोल नहीं कर पाया प्रश्न पूछा कि कौन लोग तुम्हारे साथ शामिल थे? कौन नेता शामिल थे उसने नाम बोल दिए, ये और ये और दोनों बड़े नेता अब मैं नाम बोलूँगा नहीं क्योंकि अंत में साबित हुआ नहीं अब पूरे देश में तूफान मच गया। इसपे नहीं कि नेताओं ने ऐसा क्यों किया, इसपे कि ऐसा टेस्ट क्यों हुआ ऐसा टेस्ट
नहीं होना चाहिए जिससे नेता फंसते हैं, क्यों होना चाहिए टेस्ट ऐसा? इतना तूफान मचा लेकिन सजा इसलिए नहीं हुई क्योंकि नार्को टेस्ट में कही गई बातें एविडेंस के तौर पर अड्मिसेबल नहीं होती हैं क्यों नहीं होती हैं आगे समझेंगे थोड़ा सा लेकिन वो बात पूरे देश को पता लग गई किस-किस का नाम आया सबको पता लग गया अब आप घर जाकर सर्च करेंगे कौन-कौन था हैना कर लीजिये इस तकनीक का सबसे अच्छा प्रयोग एक और हुआ कसाब का नाम जानते हैं। जो 26/11 वाला मामला मुम्बई पर हमला हुआ। अजमल कसाब अकेला सर्वाइवर था जो उस
ग्रुप का था। हालांकि उसने बहुत सारी बातें रिवील कर दीं इन्वेस्टिगेशन में क्या होता है कि पुलिस इन्वेस्टिगेशन में यह भी कह कर बात करती है कि देखो भाई तुम्हारा मरना तय है। तुम्हारी टीम के इतने लोग मर गए तुमने हमारे देश के इतने लोगों को मारा बचोगे तो नहीं कोऑपरेट करोगे तो फिर भी कोई चांस बन सकता है तो लोग इस उम्मीद में की शायद को-ओपरेट करने से कोई चांस बने लोग रिवील कर देते हैं तो जो मैंने पढ़ा उसके उस केस बारे में उसने ज्यादा बात रिवील कर दी थी उसके बाद भी उसका
नार्को टेस्ट किया गया इसलिए किया गया था कि शायद कोई इंटरनेशनल लिंक्स पता लगें पाकिस्तान की सेना हो सकती है आईएसआई का मामला हो सकता है। लश्कर कैसे काम करते हैं, पता लगेगा तो कर लेते हैं। ऐसा दावा किया जाता है की उससे बहुत क्रूशियल इन्फॉर्मेशन मिली बहुत सारी बातें उनकी तस्दीक हो गई कि जो उसने कहा था ठीक कहा था और बहुत सारी बातें और जानकारियां मिलीं हमें उसकी ये वैल्यू है तो ये सारे ऐसे केसेज हैं, जिसमें नार्को टेस्ट हुआ और नारको टेस्ट की वेलेडिटी को लेकर जनरल परसेप्शन ये है कि नार्को से
बचना नामुमकिन है बशर्ते questionnaire ठीक बनाया गया हो। प्रश्न पूछने वाला सही व्यक्ति हो जो आंसर हैं उनके बेस पर रिपोर्ट बनाने वाला व्यक्ति समझदार हो तो नार्को टेस्ट से बचना बहुत मुश्किल काम है। ये इसके बारे में सामान्य राय है। इस केस में नार्को भी हो चुका है लेकिन नार्को को लेकर एक दिक्कत की बात है कि रिस्की है। थोड़ा सा वैसे तो एनेस्थीसिया से बहुत कम लिया जाता है। जान का खतरा नहीं होता है, लेकिन एक प्रिजम्पशन है कि हर व्यक्ति के शरीर की एनेस्थीसिया को झेलने की ताकत अलग अलग होती है। डॉक्टर
पूरी स्टडी करते हैं पहले आप कभी किसी की सर्जरी हुई है तो उस सर्जरी से पहले जो एनेस्थीसिया के एक्सपर्ट होते हैं, वो उस पूरे व्यक्ति को स्टडी करते हैं ठीक से कि उसके लिए कितनी डोज़ ठीक होगी, बहुत ध्यान रखना पड़ता है सर्जरी के दौरान कम दी और पता लगा की ओपरेशन के बीच में उठ के बैठ गया और अभी काट ही रहे थे उसके हाथ पैर तब भी दिक्कत है। ज्यादा दी पता लगा उठा ही नहीं कभी ये भी खतरा होता है। की ज्यादा डोज मिली तो मर जाता है आदमी तो बहुत माइन्यूट
लेवल पर डोज़ को चेक करना पड़ता है उसमें और इसमें उससे कम देना होता है केवल सवाल पूछने हैं तो चिंता होती है कि अगर डोज कम रह गई तो हो सकता है कि वो होशोहवास में जवाब दे रहा हो और हमें लग रहा हो कि बेहोश है ज्यादा दी तो हो सकता है कि वह परमानेंटली किसी ऐसी अवस्था में कोमा में चला जाए ये भी खतरा होता है तो रिस्क फेक्टर को लेकर थोड़ा सा डर लगता है। इस चीज को लेकर लेकिन वैसे इसकी authenticity बहुत ठीक है। अब ये जो आप देख रहे हैं
ना देख कर लग रहा होगा खातरनाक मामला है कि ये टेस्ट नंबर तीन है। इसको बोलते हैं ब्रेन मैपिंग मेरे ख्याल से सबसे अच्छी तकनीक ये वाली है और मेरा ख्याल है कि कुछ केसेस के मामले में इसको हमें वैलिडेट करना चाहिए। समय के साथ अभी न भी करें जब सही समय आये तब कर देना चाहिए। भारत दुनिया का वो देश है जिसने दुनिया के इतिहास में पहली बार इस टेस्ट के बेस पर एक व्यक्ति को उम्र कैद दी थी। 2008 में हालांकि बाद में वो कैंसिल हो गया समझें क्या टेस्ट है देखिए अगर मैं
कहूं कि ब्रेन मैपिंग है तो एक बेसिक कंसेप्ट समझ लीजिए। आपने दो शब्द सुने होंगे एक ECG सुना होगा और एक EEG सुना होगा। सुना है स्कूल कॉलेज में पढ़ा ही होगा ECG की फुल फॉर्म क्या है इलेक्ट्रोकार्डियोग्राफ और EEG होता है इलेक्ट्रोइन्सेफेलोग्राफ सेफल ये शब्द जहाँ भी आये इसका मतलब दिमाग की बात चल रही है कार्डियो शब्द जहाँ भी आये इसका मतलब दिल की बात चल रही है ये जो लेबोरेटरी हैं टेस्टिंग मकैनिज्म है ना बहुत मुश्किल होता यह समझना कि शरीर के अंदर क्या दिक्कतें चल रही हैं इसलिए मेडिसिन के विकास से ज्यादा
जरूरी है। पैथोलॉजी में यह समझ पाना कि क्या दिक्कत चल रही है? दवाई तो बन जाएगी, पहले समस्या तो आए कि हो क्या रहा है इस व्यक्ति के अंदर अच्छा उसके अंदर क्या चल रहा है उसे देखने के लिए खोल देंगे तो बंद करना मुश्किल हो जाता है तो बिना किसी को ऑपरेट किए पता करना है कि उसके अंदर क्या दिक्कतें हैं। इसी प्रोसेस में सारी तकनीकें आती हैं जिनका अगला स्तर एमआरआई है सीटी स्कैन है आपने सुना होगा इन सब का नाम ECG क्या होता है। ये दोनों इलेक्ट्रो से शुरू हो रहे हैं इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम
इलेक्ट्रोइन्सेफेलोग्राफी हम लोग सोचते हैं कि आत्मा है चेतना है वो सब सोचते हैं, लेकिन न्यूरो साइंस में जितनी स्टडीज हो रही हैं। न्यूरो साइंस इस समय की बहुत महत्वपूर्ण साइंस है। न्यूरो साइंस का मतलब है दिमाग ब्रेन को स्टडी करना कुछ तो इतने इंटरेस्टिंग कैसेज हैं कुछ लोगों ने स्टडी निकाली कि ब्रेन के बहुत सारे पार्ट में से एक पार्ट होता है प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स कहते हैं उस पार्ट को और बहुत स्टडीज हुई तो पता लगा कि हमारे दिमाग के कौन से हिस्से किसी चीज के लिए जिम्मेदार हैं ये दिमाग की फोटो है और इस दिमाग
का आगे जो ये हिस्सा है इसको बोलते हैं है प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स अब स्टडीज बड़ी स्पष्ट हैं कि हम जो काम्प्लेक्स एक्टिविटीज करते हैं उसके लिए ये भाग जिम्मेदार है और इसके अलावा जो अपराधी हैं जो बहुत वायलेंट लोग हैं बहुत एग्रेसिव लोग हैं बहुत गुस्सैल चिड़चिड़े आक्रामक लोग उनकी उस सारी आक्रामकता के लिए भी ये वाला भाग जिम्मेदार है तो न्यूरो क्रिमिनोलॉजी में एक समाधान यह आया कि जैसे मान लीजिए कोई व्यक्ति है रेप किया मर्डर कर दिया उसने किसी का आपने 14 साल जेल में डाला उसको जेल में 4 मर्डर कर दिए अब जेक
के कैदी भी कह रहे हैं सर इसको छोड़ दीजिये किसी तरह से बस हमें रख लीजिये पर इसको छोड़ दीजिये जब आप एकांत कारावास में रखेंगे तो उसके फंडामेंटल राइट्स ख़त्म होते हैं तो अमेरिका में 1930s के आस पास एक प्रयोग चला लोबोटोमी एक सर्जरी होती है। ल्यूकॉटमी भी कहते हैं उसको तो एक बात कही गई कि अगर हम इस पार्ट का बाकी ब्रेन के साथ कनेक्शन काट दें। कनेक्शन कैसे जो वायरिंग है बेसिकली समझ लीजिये जो नसें जा रही हैं उनको हम काट दें बीच में से यह पार्ट भी रहेगा। निकालने की जरूरत नहीं
बहुत बड़ा पार्ट है निकलना वैसे भी मुश्किल हो जाएगा, केवल कनेक्शन काट देना है तो क्या होगा कि व्यक्ति गुस्सा करना चाहेगा तो भी गुस्सा नहीं कर पाएगा क्योंकि दिमाग का वो वाला पार्ट कम ही नहीं कर रहा की गुस्सा कर सके और यह सर्जरी अमेरिका में 1930-40 के बाद हजारों-लाखों लोगों की हुई यहां तक हुई, कोई बच्चा है बहुत चिड़चिड़ा है बहुत आक्रामक कोई व्यक्ति है या उस व्यक्ति को कोई प्रॉब्लम है सिजोफ्रेनिया एक प्रॉब्लम होती है साइकोलॉजी में स्कीजोफ्रेनिया बोलते हैं बाइपोलर डिसऑर्डर आपने नाम सुना होगा एपिलेप्सी कई लोगों को हो जाती है।
एपिलेप्सी ससमझते हैं ना? हिंदी में क्या बोलते हैं एपिलेप्सी को मिर्गी, मिर्गी का दौरा पड़ना बाइपोलर डिसऑर्डर पर फिल्में बनी हैं। एक व्यक्ति है एक फेज में बहुत गुस्से वाला एक दम अलग व्यक्ति और दूसरे में एक दम विनम्र हो जाता है दो ध्रुवों पर उसका व्यवहार चलता रहता है। उसको बोलते हैं बाइपोलर डिसऑर्डर और स्कीजोफ्रेनिया का मतलब है व्यक्ति बहुत तनाव लेता है। एक obsessive compulsive disorder नाम की चीज है उससे लिंक्ड है जैसे किसी व्यक्ति को इतनी चिंता रहती है हर समय कि वो घर से बाहर निकला। अचानक देखा के सड़क के दूसरी
तरफ एक आदमी खड़ा है ऐसे इसको लगता है क्यों खड़ा है ये लगता है साजिश कर रहा है मेरे खिलाफ तब तक उस आदमी ने किसी और को ऐसे इशारा किया। ओहो ये भी शामिल है। दोनों मिलकर मेरी हत्या कर देंगे लगता है अब मैं क्या करूं? अपने घर के अंदर भागा टेबल के नीचे जाकर छुप गया और दो घंटे निकल नहीं रहा फिर घर में कोई आया, उसने कहा अन्दर क्या कर रहे हो बाहर आओ इसको लग रहा है तुम भी शामिल हो? इस तरह के तनाव, इस तरह की एन्ग्जाइटी कुछ लोगों को होती
है तो ये स्कीजोफ्रेनिया के बहुत सारे लक्षणों में से एक लक्षण कुछ लोगों को ऐसा दिखता है। ये वो लोग हैं जिनका दिमाग कंट्रोल नहीं हो पाता वो सब प्रॉब्लम यहाँ से होती हैं तो एक तरीका है आया कि इसके तार काट दो ख़तम करो ना उतना तनाव होगा लोग मस्त रहेंगे, लेकिन ऐसे बहुत केसेस हुए कई लोग ठीक भी हुए वो थोडा पैसिव हो जाते हैं बहुत जिंदगी उनकी रंगीन नहीं होती। बहुत मस्त मौला नहीं होते लेकिन हां, कम से कम उतना एग्रेशन नहीं रहता गुस्सा नहीं रहता नफरत नहीं रहती। कभी कभी गलत भी
हो जाता है। अमेरिका में एक राष्ट्रपति का नाम सुना होगा आपने जॉन ऍफ़ कैनेडी अमेरिका के सबसे स्मार्ट राष्ट्रपति हुए सबसे सुंदर राष्ट्रपति ऐसे भारत में बोलते हैं कि राजीव गांधी सबसे स्मार्ट प्रधानमंत्री हुए सबसे सुंदर प्रधानमंत्री हुए मतलब कोई प्रधानमंत्री सुंदर है या नहीं कोई कसौटी नहीं है लेकिन कहने वाले कहते हैं तो जे ऍफ़ कैनेडी बड़े स्मार्ट आदमी थे बाद में उनकी हत्या हो गई 1941 में उनकी बहन रोजमेरी कैनेडी के साथ lobotomy की सर्जरी हुई और उनकी बहन ये हैं उनकी बहन रोजमेरी कैनेडी और दुर्भाग्य ये है कि उस सर्जरी के बाद
ये जिंदगी भर उठ नहीं पायीं मतलब नॉर्मल लाइफ नहीं जी पायीं Institutionalize हो गईं इसका मतलब उनकी एक सामान्य व्यक्ति के रूप में जो क्षमताएँ थीं वो सारी खत्म हो गईं तो आजकल न्यूरो क्रिमिनोलॉजी में आजकल न्यूरो मेडिकल साइंसेज में बहुत साडी नई चीजें आ गई हैं जिनमें से कुछ चीजों को हम समझेंगे और उसमें से एक चीज़ ईसीजी और EEG आई न्यूरो मतलब EEG ECG तो हार्ट का मामला है तो होता क्या है कि हमारे शरीर के अंदर जो कनेक्टिविटीज हैं वो सारी इलेक्ट्रिकल पल्सेज के रूप में होती हैं तो जो हमारा दिल है
दिल क्या करता है फैलता है सिकुड़ता है फैलता है सिकुड़ता है तो जब दिल सिकुड़ता है कॉन्ट्रैक्ट होता है न उस समय जो इलेक्ट्रिकल ऐक्टिविटी जनरेट होती है बॉडी में उसको हम कैप्चर कर लेते हैं। कैसे ECG से जब ECG में, क्या हुआ होगा आप छोटे बच्चे आप लोग तो हैं जब ECG होता है तो 3-4 चीजें लगते हैं पेट के हिस्से में इलेक्ट्रोड होते हैं बेसिकली वो उस इलेक्ट्रिकल एक्टिविटी को कैप्चर करते हैं और जनरली क्या होता है ऐसा ऐसा करके ग्राफ आता रहता है तो उसमे से ये देखा जाता है कि अगर रिदम
ठीक है। तो इसका मतलब दिल ठीक काम कर रहा है तो इसीजी क्या है दिल की गतिविधियों को इलेक्ट्रिक पल्सेस के ग्राफ के रूप में समझना कि दिल ठीक चल रहा है कि नहीं चल रहा है ये तो आसान था बाद में वैज्ञानिकों ने उससे मुश्किल चीज बनाई इलेक्ट्रोइन्सेफेलोग्राफी यह ब्रेन का है और इसमें क्या करते हैं। ये देखते हैं कि ब्रेन में चीजें ठीक से काम कर रही हैं कि नहीं कर रही हैं जैसे ब्रेन ट्यूमर किसी को होने का खतरा हो तो क्या होगा उसका EEG होगा किसी को स्लीप डिसऑर्डर है ऐसे लोग
हैं कि दो दो साल हो गए ठीक से सो ही नहीं पा रहे एक घंटे की नींद की एवरेज आ रही है, नींद ही नहीं आती इसका मतलब ब्रेन में कुछ प्रॉब्लम है तो उसका ईईजी होगा या चोट लगी। मेमोरी खत्म हो गई या कम हो गई या ब्रेन ठीक से काम नहीं कर रहा तो उसका EEG करना पड़ेगा EEG कैसे करते हैं तो कंसेप्ट ये है कि जो ब्रेन के सेल्स हैं आपस में जब कम्यूनिकेट करती हैं तो इलेक्ट्रिकल पल्सेज के रूप में करती हैं अब इलेक्ट्रिकल पल्सेज अगर हमें पता लग जाए कि दिमाग
के कौन से हिस्से में इलेक्ट्रिकल पल्सेज की फ्रीक्वेंसी क्या है और हम चेक कर लें कि उतनी उतनी है या नहीं तो हम ये समझ जाएँगे कि दिमाग ठीक काम कर रहा है कितना सिंपल है तो 1965 के आसपास EEG एक अच्छे लेवल पर आ चुका था और इसका तरीका क्या होता है कि हम दिमाग में इलेक्ट्रोड्स लगाते हैं। कितने 32 यानी खोपड़ी में 32 प्वाइंटस पर हम इलेक्ट्रोड्स लगा देते हैं। इलेक्ट्रोड का काम क्या है; इलेक्ट्रिकल्स, जैसे ही करंट जेनेरेट होगा उसे कैप्चर कर लेगा और साथ में कंप्यूटर है, और कंप्यूटर उसे नोट कर
लेगा और नोट करने के बेस पर ग्राफ बना देगा कि कौन-कौन से पार्ट में कैसी-कैसी एक्टिविटीज चल रही हैं तो जब E.E.G. होता है तो E.E.G. की फोटो ऐसी होती है कुछ-कुछ E.C.G. जैसी लेकिन उसमें बहुत सारे पैरामीटर्स काम कर रहे होते हैं। जैसे नींद हमारी कैसी है; अपने सुना होगा नींद में भी अल्फा लेवल पर गए कि नहीं गए; बीटा पर गए कि नहीं गए ये सब उसका एक सर्वे है। नींद का सर्वे है आजकल तो नींद की स्टडी भी बहुत प्रामाणिक हो गई है न अब ये नहीं है कि गहरी नींद आती है।
लेटता हूँ सो जाता हूँ; नींद नहीं आती है। वे E.E.G. कर लेंगे तुरंत E.E.G. करके बताएंगे कि आप नींद की चार-पाँच अवस्थाओं में किस अवस्था में कितनी देर रहे और वो आपके लिए पर्याप्त है या नहीं वो उस लेवल पर आजकल बातें चल रही हैं इस E.E.G. को 1965 में एक वैज्ञानिक ने कन्वर्ट किया। एक टेस्ट के रूप में और उस टेस्ट का जो नाम है वो नाम है। ब्रेन इलेक्ट्रिकल एक्टिवेशन प्रोफाइल BEAP ये पहला एक्सपेरिमेंट था- अपराध को समझने के लिए ब्रेन इलेक्ट्रिकल एक्टिवेशन प्रोफाइल क्या किया उस आदमी ने उसने एक वेव का पैटर्न
निकाला जिसे कहते हैं- P-300 वेब पैटर्न और क्या स्टडी की सोचिए रिसर्च करते-करते उसने पाया कि हमारा दिमाग शांत है जैसे कोई ऐसा इनपुट मिलेगा जो हमारी मेमोरी से लिंक्ड है। हमारे दिमाग में एक इलेक्ट्रिकल वेब जनरेट होती है उस वेव का नाम है- P-300 जैसे मान लीजिए आप बैठे हैं कुछ मैंने 5-6 ऐसे शब्द बोले जो आप नहीं जानते हैं- जैसे मैंने अल्जीरिया देश का नाम बोला आपको बहुत आइडिया नहीं है, कुछ नहीं होगा मैंने किसी दूसरे देश या गाँव का नाम बोल दिया, आपको नहीं पता उस देश के गाँव में रहने वाले व्यक्ति
का नाम बोला आपको नहीं पता| अपने देश के एक गाँव का नाम बोला आपको नहीं पता। किसी किताब आपको नहीं पता तो दिमाग में ठीक है। नॉर्मल चीज चल रही है| अचानक मैंने एक ऐसे व्यक्ति का नाम बोला, जिसको आप जानते हैं। जैसे मै बोलूंगा आपके दिमाग में P-300 वेब जनरेट हो जाएगी और जो आप नहीं जानते, वहाँ नहीं होगी, ये उसने रिसर्च की और उसको लगा कि अगर ये हो रहा है तो हम किसी आरोपी को ऐसे सवाल पूछ के, जिनका संबंध उस अपराध की घटना के साथ हो, ये चेक कर सकते हैं कि
यह उसके बारे में जानता था कि नहीं जनता था अगर जानता होगा तो P-300 वेब बनेगी नहीं जानता होगा तो वेब नहीं बनेगी। कितना सिंपल है! और इस टेस्ट का नाम रखा गया- BEAP और भारत में एक वैज्ञानिक ने इसको थोड़ा सा और मॉडिफाई किया। उसका नाम रखा- BEOS ब्रेन इलेक्ट्रिकल ऑसिलेशन सिग्नेचर बोलते हैं इसको ये जो वैज्ञानिक हैं इनका नाम- चमपादी मुकुंदन है और ये बंगलौर के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल स्टडीज़ में काम करते थे पहले बाद में उन्होंने अपना रिसर्च लेवल शुरू किया। BEAP में एक दिक्कत थी- जैसे मान लीजिए अपराध की बात
चल रही है आपने पूछा चाकू वेब बन गई। फ्रिज, वेब बन गई पर अभी एक रिस्क हो सकता है। इस मामले में नहीं, किसी मामले में भी रिस्क हो सकता है मान लीजिए कि मैं अपराधी था। वह वेब बनेगी मेरे दिमाग में मान लीजिए कि मैं अपराधी नहीं हूँ। मैंने किसी को बताया था कि मैं क्या कर रहा हूँ। जानकारी उसको भी है। उसके सामने सवाल किया, वेब बन गई उसके अंदर भी तीसरा व्यक्ति उसने अखबार में पढ़ा था। जानकारी थी वेब बन गई उसके अंदर भी, तो अपराधी था या अपराध का केवल देखने वाला
था, विटनेस था या अपराध को केवल उसने कहीं से सुन लिया था, पढ़ लिया था यह कैसे पता लगाएँ कुछ साबित तो नहीं हो रहा है इससे, तो इन साहब ने BEOS में यह दावा किया कि हम इस डिफरेंस को भी पकड़ सकते हैं कि इस वेब से, पहचान सकते हैं कि इस व्यक्ति की इस वाले मामले में भूमिका केवल विटनेस की थी। इसमें इंवॉल्वमेंट की भूमिका थी और वो भी कैसे सकते हैं जो वेव्स बनते हैं, उनके पैटर्न के अंतर से पहचान सकते हैं। यह टेस्ट बड़ा सुपरहिट हो गया भारत में और जब यह
टेस्ट सुपरहिट हुआ और ये होता कैसे एक दम E.E.G. के तरीके से होता है। ये देखिए, ये हैं अगर कोर्ट कहती है कि ब्रेन मैपिंग करो। इस केस में तो ऐसे होगा 32 इलेक्ट्रोड सिर पर लगाए जाएंगे। उसके बाद फिर, इसमें क्वेश्चन नहीं पूछते हैं। इसमें व्यक्ति आँख बंद करके बैठा हुआ है या आँख खोलते हैं, कभी-कभी दिखाते हैं, कुछ-कुछ चीजें न कुछ बोलना है ना बेहोश करना है, कुछ नहीं करना है कुछ शब्द बोलेंगे, कुछ वाक्य बोलेंगे कुछ चित्र दिखा देंगे। कोई फिल्म भी दिखा सकते हैं सामने इसे कुछ नहीं बोलना। यह कितनी भी
ताकत लगा लें अपने ब्रेन की वेव जनरेट होने से रोक नहीं सकता, सीधी सी बात है और वेब जनरेट हो ही जाएगी। इसे पॉलीग्राफ में धोखा देना आसान काम है जो नार्को है उसमें धोखा नहीं दे सकते, लेकिन उसमें मर सकता है आदमी या परेशान हो सकता है। इसमें न धोखा दे सकता है, न मर सकता है। इसलिए इसमें जो वेलिडेशन वाला मामला है सबसे स्ट्रोंग माना जाता है और इसका फायदा यह हुआ कि 2005-07 के आसपास दो राज्यों ने, देखिये ऐसी रिपोर्ट्स भी लगभग ऐसी आती है इसमें 2005-07 के आसपास दो राज्यों ने एक
गुजरात, एक महाराष्ट्र इनको समझ में आ गया कि ब्रेन मैपिंग ऐसी चीज है कि इससे अपराधियों को बहुत जल्दी हम कांविक्ट कर सकते हैं या छोड़ सकते हैं, अगर वो साबित हो गया कि बेकसूर है तो क्यों परेशान करे, छोड़ो उसको और यदि साबित हो रहा है कि अपराधी है तो एक प्रूफ मिल जाएगा कम-से-कम टाइम बचेगा, जल्दी हम काम करेंगे अपना तो गुजरात में एक उस समय महिला थी जिनका नाम था- संतोख बेन जडेजा पोरबंदर, जो महात्मा गांधी का इलाका है वहाँ, जूनागढ़ के आसपास भारत की बहुत रेयर जो महिला गैंगस्टर्स हुई, उनमें से
ये थी| अगर अब गुजरात होंगे, तो उनका नाम जरूर जानते होंगे। एक फिल्म सुनी हैं आपने- गॉडमदर एक बार देख लीजिए यह फिल्म, बहुत शानदार फिल्म है| शबाना आजमी उसमें लीड रोल में थीं और पंचायती राज से लिंक्ड है। वो गॉडमदर फिल्म इनकी कहानी पर टिकी हुई है इनको वहां के लोग गॉडमदर ही कहते हैं। एक बहुत बड़ा गैंग, जिसमें कम से कम 100 लोग गैंग में शामिल थे। 14 मर्डर्स का आरोप इनके ऊपर लगा हुआ था। 500 और केसेस के आरोप थे। परिवार में भी कई लोगों की हत्याओं के आरोप लगें तो वहां के
लोगों को लगने लगा था कि भाई कुछ सीरियस होना चाहिए बाद में इनको वहां से बेदखल कर दिया गया था। राजकोट में शिफ्ट किया गया था। अब इनकी मृत्यु हो गई। तब अंत में जूनागढ़ की अदालत में 2007, जून की बात है। आदेश दिया कि इनका ब्रेन मैपिंग होना चाहिए, बहुत इंटरेस्टिंग बात है 2000 में नेशनल ह्यूमन राइट्स कमीशन, इसका नाम सुना है, NHRC का नाम, है न NHRC ने 2000 में कहा था कि बिना परमिशन के पॉलीग्राफ नहीं हो सकता किसी का अब इसकी दोनों व्याख्याएँ हो सकती हैं कि पॉलीग्राफ के लिए काफी था,
इसके लिए थोड़ी न कहा था दूसरा ये कि इस तरह के हर टेस्ट के लिए कहा था तो जूनागढ़ की अदालत ने आदेश दिया कि आपका ब्रेन मैपिंग टेस्ट होगा, लेकिन एक टाइम 15-20 दिन का कि अगर आप हाई कोर्ट जाकर अपील कर चाहे तो कर लीजिए फिर ये वहां से हाईकोर्ट चली गईं पहले जूनागढ़ कोर्ट में था। सेशन कोर्ट में हाईकोर्ट ने भी कहा कि अदालत का फैसला एकदम ठीक है। अब ब्रेन मैपिंग टेस्ट होगा, लेकिन इतना टाइम दे रहे हैं चाहे तो सुप्रीम कोर्ट में अपील कर दीजिये तो सुप्रीम कोर्ट चली गईं| इनका
टेस्ट हुआ नहीं क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने कई मामले मिला के इसके साथ और कई मामले मिलाके 2010 में एक फैसला दिया जिसको बोलते हैं- सेल्वी का फैसला, जो इस मामले में सबसे महत्त्वपूर्ण फैसला है और उसमें सुप्रीम कोर्ट ने मना कर दिया कि आप किसी को टेस्ट के लिए कम्पल्शन नहीं कर सकते हैं तो गुजरात सरकार तैयार थी एकदम मूड में थी कि टेस्ट करवा के मानेंगे। लेकिन महाराष्ट्र सरकार और आगे बढ़ गई क्योंकि संतोक बेन तैयार हुई नहीं टेस्ट करवाने के लिए तो इसी पर झगड़ा चलता रहा कि टेस्ट होगा कि नहीं होगा पर
महाराष्ट्र में जो एक शहर है। पुणे वहां एक ऐसा केस हुआ जो दुनिया का पहला केस है, जिसमें ब्रेन मैपिंग के बेस पर सजा दी गई। किसी व्यक्ति को, दुनिया का, मैं भारत की बात नहीं कर रहा हूँ यह दुनिया का पहला केस था। केस बहुत इंटरेस्टिंग है लेकिन क्योंकि वो सब लोग अभी जीवित है तो हम उनके सम्मान से क्यों खेले तो मैं नाम थोड़ा चेंज करके बताता हूँ आपको एक लड़की थी 24-25 साल की| उसका नाम समझ लीजिये की A था एक लड़का था, उसका नाम समझ लीजिये कि U था। एक और लड़का
था समझ लीजिए उसका नाम था P तो A ओर U देश के एक ही राज्य से थे। मैं राज्य का नाम भी नहीं बोल रहा फ़िलहाल बहुत मन करे क्लास के बाद चुपके से पूछ लीजियेगा, बता दूंगा तब तो एकही राज्य से थे। प्रेम करते थे। इनकी फैमिलीज मान गईं इंगेजमेंट भी हो गई कि ठीक है शादी करेंगे पर अभी छोटे हैं पढ़ाई-लिखाई कर लें बाद में शादी कर देंगे तो ये दोनों बच्चे MBA करने के लिए पुणे आए पढ़ने लगे और ये तय था कि शादी करेंगे आगे चलके ये जो मिस्टर P हैं। ये
भी एमबीए करने के लिए पुणे आए, और ये आए थे। देश के किसी और हिस्से से, मैं क्यों शहर का नाम लिखूँ, देश के किसी और हिस्से से आयें थे ठीक ये भी वहीं पढ़ने आये थे एक ही क्लास में थे जैसा फिल्मों में होता है। वैसा ही हो गया जो मिस A है, कहते हैं कि उनको लेने लगा कि नहीं मेरे लिए सही जीवनसाथी मिस्टर P होंगे। U नहीं होंगे तो A और P में प्रेम हो गया और U बेचारा आकेला हो गया तो U ने अपने पेरेंट्स से कहा दूसरे पेरेंट्स से कहा कि
ये क्या खेल चल रहा है मेरे साथ तो पेरेंट्स ने भी समझाया दोनों को उसके बाद कहते हैं जो केस में लिखा हुआ है, A और P वहाँ से भाग गयें खूब हल्ला मचा, शोर हुआ, खूब हुआ। अंत में फिर A वापस वहां पहुंची और उसने U से कहा, अब समझ में आया न कि U कौन है? U कौन है? जिससे शादी होने वाली थी, ठीक है तो उसने U को बुलाया एक रेस्टोरेंट में, बहुत फेमस रस्टोरेंट में बुलाया पुणे में, तो U आया, नाराज भी था तो उसने कहा नाराज मत हो, गलतियां हो जाती
हैं मैं भी शिर्डी के मंदिर गई थी। वहाँ से प्रसाद लायी हूँ, सब ठीक होगा। लो प्रसाद तो खाओ तो उसने प्रसाद खाया। आरोप है कि प्रसाद में आर्सेनिक मिला हुआ था और इतना ज्यादा मिला हुआ था कि प्रसाद खाने के कुछ सेकंड के बाद उस व्यक्ति को दिक्कत हुई और कुछ घंटे में उसकी मृत्यु हो गई किसकी मौत हुई बताओ? पता है न U की हुई हाँ, U की मौत हो गई। पुलिस आ गई तो यह पहले माना गया कि यह एक्सीडेंटल डेथ है, पता नहीं क्या था? फिर जो U मरा था उसके पेरेंट्स
ने आरोप लगाया A पर, पूरी कहानी बताई पुलिस को। फिर, A पर चार्ज लगा। इन्वेस्टिगेशन हुई। सबूत कोई था नहीं उस समय तक CCTV उस तरह से होते नहीं थे ये भी साबित नहीं हो सकता था कि प्रसाद A ने U को दिया कैसे साबित हो जाएगा? CCTV तो है नहीं और कोई चुपके से आपको कहे कुछ खाने के लिए कोई और वहां पर देख नहीं रहा तो कैसे साबित होगा? तो पुलिस ने अपनी तरफ से बहुत सारी कोशिश की लेकिन कुछ साबित कर नहीं पा रही थी अंत में उस केस में तय हुआ कि
भाई हम भी BEOS करवाएंगे और इनसे कहा गया है मिस A से कि आप ये टेस्ट करवा लीजिए। पुलिस समझाती देखो टेस्ट करवा लो, तुम तो ईमानदार हो, इससे बच जाओगे बहुत ठोस बात हो जाएगी टेंशन मत लो इसमें कुछ नहीं होता है, लेकिन हाँ बात अच्छी हो जाती है अब ये सोचे कि अच्छा कम-से-कम मैं तो थर्ड डिग्री से बच जाऊंगी। कम-से-कम पिटाई नहीं होगी मेरी तो लोग कह दिए कि ठीक है करवा लेते हैं, तो उसकी परमिशन से ही हुआ और इस टेस्ट में साबित हो गया कि उसी ने खून किया है। क्वेश्चन्स
ऐसे ही पूछते हैं। प्रसाद बत्ती जल गई, फिर चार सवाल ऐसे पूछे कि पेड़-पौधे, कुछ नहीं जल रहा प्रसाद में आर्सेनिक, फिर बत्ती जल गई फिर आर्सेनिक कहाँ से खरीदा था, उस शॉप का नाम बोला बत्ती जल गई और ऐसे करते-करते 15-20 सवाल जिनको लिंक किया जाए तो साबित होता है कि हां इसी व्यक्ति ने ऐसा किया और यह BEOS की रिपोर्ट कोर्ट में गई और उस कोर्ट में जो जज थी, शालिनी, उनका नाम था, शालिनी जोशी नाम था। शालिनी फलसालकर जोशी शायद नाम था पूरा दुनिया के इतिहास में पहला मामला जिसमें कन्विक्शन, कन्विक्शन क्या
होता है? ये साबित होना कि इसने अपराध किया है| जिसमें कन्विक्शन प्राइमेयरली इसकी रिपोर्ट के बेस पर हुआ और भी चीजें थी, लेकिन ये भी था और जज ने जजमेंट में नौ पेज लिखे केवल BEOS को क्यों प्रमाण माना? इस बारे में और उम्रकैद की सजा हुई। हालांकि बाद में सुप्रीम कोर्ट का जो फैसला आया 2010 में उसके बाद ये सब गवाहियाँ ही बेकार मान ली गई तो फिर चीजें चेंज हो गई, लेकिन हाँ और जैसी सजा हुई दुनिया भर के क्रिमिनल जो साइंटिस्ट हैं, क्रिमिनोलॉजी के एक्सपर्ट्स हैं उन सब में चर्चा होने लगी। जर्नल्स
में आर्टिकल छपने लगे, आरोप लगने लगे भारत सरकार पर, भारत के राज्य में कई देश भागे-भागे कि हमें भी दो एक हमें भी दो एक हम भी करेंगे। अपने यहाँ |इजराइल में डिबेट थी, लेकिन बी ई ओ ए एस से कैसे हम पता लगाते हैं अब जैसे इस केस में सुनने में आ रहा है कि अगला जो स्टेप होगा वो शायद बी ई ओ ए एस होगा और ऐसी रिपोर्ट के माध्यम से हम चीजों को फाइनलाइज करेंगे। यह है तीन टेस्ट अब सवाल ये है कि लीगल इनकी वैल्यू क्या है कि हम इनको लीगली एकदम
ठीक मान लें? अभी हमारा सिस्टम क्या मानता है? हमारा सुप्रीम कोर्ट क्या मानता है तो लीगल में ना दो क्वेस्चन पर हमेशा ध्यान रखना। कि पहली बात ये कंपलसरी हैं या नहीं होने चाहिए या नहीं। आपकी क्या राय है? कि कंपल्सरी होना चाहिए कि किसी पर आरोप है कि उसे लिटाया, इंजेक्शन लगाया और पूछ लिया उससे। बहुत टाइम बचेगा, सरकार का पैसा बचेगा पुलिस की सैलरी बचेगी। डोज कम देंगे ताकि मरे नहीं| तो कर देना चाहिए| जैसे मान लीजिए कभी कोई कि आप पर आरोप लगा दिया कि आपके दोस्त ने मेरे पैसे चुराए हैं पुलिस
कहे कि चलो-चलो लेटो इंजेक्शन लगाया और पूछा पता लगा चोरी नहीं की फिर कहा उठो जाओ ठीक रहेगा ऐसा अब आप नहीं चाहते| अपने ऊपर आते ही विचार बदल जाते हैं। दूसरों के ऊपर आये तो लगता है हाँ होना चाहिए| अपने ऊपर आता है तो ऐसे नहीं होना चाहिए और दूसरा ये है कि अगर ये टेस्ट कोई करवाता है तो उसकी वैलिडिटी कितनी मानी जाए? चाहे इस टेस्ट की रिपोर्ट से मान लिया जाये कि रिपोर्ट एकदम फाइनल है या उसके ऊपर कोई क्वेस्चन मार्क मान के चलना चाहिए आप लोग थक तो नहीं गए बस 15-20
मिनट में बात खत्म हो जाना चाहिए। पहली बात है कि कंपलसरी इसको माने या न माने अब मैं देखिये आपको कांसेप्ट समझा रहा हूँ| जब भी कानून की बात हो ना तो गहरी बात कीजिएगा हलकी बात मत कीजिएगा। लोग बहुत बोलते हैं। कैसी पुलिस है? कैसा कानून है कि टाइम लगाते हैं| कसाब को बिरयानी खिला रहें थें| तुरंत मार देना चाहिए। एनकाउंटर कर दो तुरंत कानून की दुनिया में ना एक आदर्श वाक्य चलता है, जिसको बोलते हैं एग्ज्युम चलता है और एग्ज्युम एक मूल वाक्य है जिस पर सब चीजें बनाई जाएँगी। सबसे मूल सिद्धांत क्या
है एक व्यक्ति था यहूदी दार्शनिक था मोज़ेस मेमोनाइट्स कहते हैं उसे शायद आपने कभी नाम इसका सुना हो या नहीं सुना तो इसका वाक्य तो सुना होगा| वो जो मैं बोलूँगा आपके सामने इनका वाक्य है कई लोग बोलते हैं लेकिन इनके नाम से जाना जाता है वो वाक्य ये है कि हजार अपराधी बेशक छूट जाएँ आगे क्या है ...हाँ वही ...एक भी निर्दोष को सजा नहीं मिलनी चाहिए ये कानून की समस्या पता है क्या है कि आप कितनी भी कोशिश करेंगे। कि कई अपराधी इतने चालाक हैं कि छूट जाते हैं। कई बेकसूर ऐसे कि फंस
जाते हैं। हम चाहते हैं कि हैं कि ऐसी स्थिति हो कि एक भी बेकसूर को सजा ना हो और एक भी अपराधी न बचे। हम तो यह चाहते हैं पर यह हो नहीं सकता| क्यों नहीं हो सकता क्योंकि हर व्यक्ति का अपना अपना डिफेंस मेकेनिज्म है। अब हम 2 में से एक तरीका लेकर चल सकते हैं। पहला x ने y की शिकायत की कि इसने मुझे मारा जज क्या करेगा जज कहेगा कि भाई मैं न्यूट्रल होकर चलूंगा फिर तो फैसला हो ही नहीं पायेगा तो मैं एक चीज प्रिज़म्प्शन लेकर चलूँगा प्रिज़म्प्शन का मतलब है कि
जज की पूर्व मान्यता क्या है। पहले से क्या मान के चल रहा है, इसको बोलते हैं कानून की भाषा में प्रिज़म्प्शन पूर्व मान्यता| तो हमारा लीगल सिस्टम हो। अमेरिका का हो यूरोप का हो, इंग्लैंड का हो दुनिया के किसी भी सभ्य देश का हो, वह सब मानते हैं कि हम यह मान के चलेंगे कि जो शिकायत है वह झूठी है जिसके खिलाफ शिकायत है वो बेकसूर है। हाँ अगर साबित हो गया तो अपराधी मान लेंगे जब तक साबित नहीं होगा, तब तक इसको अपराधी नहीं मानेंगे। बेगुनाह मानेंगे अब इससे क्या है कि शिकायत करने वाले
को भी साबित करना पड़ेगा। साबित नहीं हो पाएगा तो छूट जायेगा| इससे बहुत सारे अपराधी छूट जाते हैं दूसरा रास्ता क्या है कि शिकायत हुई और जज ने कहा, हम मान के चल रहे हैं कि तुमने अपराध किया है की क्योंकि उन्होंने कोई शिकायत की है| तू साबित कर दे कि तूने अपराध किया है वर्ना फांसी पर टांग देंगे| इससे क्या होगा कि अपराधी एक भी नहीं छूटेगा लेकिन बहुत सारे बेकसूर भी टंग जाएंगे। तीसरा रास्ता है नहीं तो भारत की सरकार भारत की कानून व्यवस्था क्या करती है तो सामान्य मामलों में यह मान कर
चलती है कि जब तक अपराध साबित न हो तब तक बेगुनाह है| साबित हुआ तो सजा देंगे। महिलाओं के मामले में वंचित वर्गों के मामले में थोड़ा सा लिबरल है कि अगर उसने शिकायत की है तो कुछ हद तक मान लेते हैं कि शिकायत सही होगी| फिर भी मान लेते हैं कि सहयोगी कोर्ट में साबित हो जायेगा| आप इसको चेंज करना चाहेंगे। या यह तरीका ठीक है। कि मतलब जब तक साबित ना हो तब तक बेगुनाह मानना ठीक है। गलत है खुद को रखकर देखना वहाँ पर कि किसी ने आप के खिलाफ शिकायत कर दी
कुछ भी कि कल रात को यह सड़क पर तलवार लेकर घूम रहा था। और मैं पास से निकला और इसने मेरी अंगुली काट दी और दिखाए अंगुली कटी हुई है| कहीं और कटी हो क्या पता ? और आरोप लगा लिया। अब पुलिस कह रही है अरे भइया अब तो तुम पाँच जेल में रहो या तो साबित करो। कि तलवार से मैंने नहीं मारा| ना ना साबित करो वरना जेल जाना पड़ेगा। और दूसरा क्या है कि भाई तुमने शिकायत की तो साबित कर पहले साबित करेगा तो जेल भेजेंगे वर्ना इसको बेगुनाह मानेंगे| क्या तरीका ठीक है?
जब तक साबित ना हो बेगुनाह मानेंगे। इसी बेस पर सिद्धांत बनता है कि हजार अपराधी भले छूट जाए। एक भी निर्दोष को सजा नहीं होनी चाहिए और इसलिए कानून की दुनिया में किसी भी अभियुक्त के मामले में हम प्रेजूम करते हैं कि वो दोषी नहीं है। हाँ साबित हो गया। तो दोषी होगा और सजा भी मिलेगी, लेकिन साबित होना जरूरी है। अब हमारे संविधान निर्माताओं के सामने ये संकट था और वो संकट होता ही है जैसा कि मैंने नार्थ कोरिया की कहानी सुनाई| अगर पुलिस साबित करने पर आ जाये तो साबित हो ही जाता है
तो हमारी कानून व्यवस्था में जो कि उस समय हमारे संविधान की बहुत सारी बातें ऐसी है जो 1935 के एक्ट में थी। इंग्लैंड के सिस्टम में थी आईपीसी हमारा सीआरपीसी हमारा इंडियन एविडेंस एक्ट हमारा सब उस समय की अंग्रेज शासकों ने बनाया जो इंग्लैण्ड के सिस्टम से मिलता जुलता था। जगह जगह इस बात की सावधानी रखी गई कि कहीं पुलिस थर्ड डिग्री का इस्तेमाल करके लोगों को मजबूर न कर दे। अपने अपराध मानने के लिए जो उन्होंने किए भी ना हो तो उनको बचाना बहुत जरूरी है तो हमारे संविधान में, संविधान क्या है संविधान का
मतलब सबसे महत्वपूर्ण और सबसे बुनियादी कानून जिसपर देश चलता है। बाकी भी कानून है और बाकी कानून उसके नीचे है। उसके अनुसार चलते हैं, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण जो कानून होता है उसे बोलते हैं संविधान या कॉन्स्टिट्यूशन| हमारे कॉन्स्टिट्यूशन में एक आर्टिकल है 20 और उसका तीसरा भाग जिसको क्लॉज बोलते हैं। उसमें एक वाक्य लिखा हुआ है जिसका हिंदी सरल भाषा भाव ये है कि अगर कोई व्यक्ति अभियुक्त है। आरोपी है कि उसे तो उसे स्वयं अपने विरुद्ध गवाही देने के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा। सम वन अक्यूज़ड फॉर एनी क्राइम शैल नाट बीक़म्द विटनेस अगेन्स्ट
हिम्सेल्फ़ | आप पर आरोप कोई भी लगा सकता है अब आप पर किसी ने आरोप लगाया चोरी का इधर आ| तूने की है अच्छा साइड वाले कमरे में चल और वहां लाठी भाला तोप लेके आ गए| मार-मार के मार मार के और आदमी को लगता है कि यार चोरी मान लेता हूँ नहीं तो ये जान से मार देगा। आपने कहा हाँ हाँ , मैंने चोरी की| हाँ मैंने चोरी की है| हाँ मै तो पहले ही कह रहा था कि इसने चोरी की| आपको अदालत में ले जाया गया जज ने आपसे पूछा कि तुमने चोरी की
अपने कहा हा जी चोरी मैंने की| तो जाओ फिर एक साल के लिए हो गया फैसला केस बंद| पुलिस एफ्फेक्टिव है| पर ऐसी व्यवस्था कोई नहीं चाहता| पर ऐसी व्यवस्था कोई भी नहीं चाहता तो संविधान ने लिख दिया भाई कि अगर कोई व्यक्ति अभियुक्त है तो उसको अपने विरुद्ध गवाही देने के लिए बाध्य नहीं कर सकते हैं। आप कहेंगे बताओ तुमने किया है कि नहीं वो कहेगा नहीं पता है मैं नहीं बोलूंगा। मैं अपने खिलाफ किसी भी हाल में नहीं बोलूँगा मेरा कॉन्स्टिट्यूशनल फंडामेंटल राइट है और यह राइट दुनिया के हर सभी देश में है
केवल हमारे देश में ही नहीं है| हर सभ्य देश में है फिर इस बात को और स्पष्ट करने के लिए एक कानून होता है। सीआरपीसी पता नहीं आप इसका नाम जानते हैं कि नहीं| क्रिमिनल प्रोसीजर कोर्ट| एक है आईपीसी इंडियन पीनल कोड| आईपीसी में लिखा है कौन सा काम अपराध है कितनी सजा होगी सीआरपीसी का मतलब है कि आपराधिक मामलों में अदालत में कार्यवाही कैसे चलेगी। क्रिमिनल प्रोसीजर कोड प्रोसीजर के बारे में है| जब भी गवाही होती है ना या तो होती है सेक्शन 161 में या होती है सेक्शन 164 में| जब पुलिस गवाही लेती
है तो 161 में लेती है और जज जो गवाही लेता है वो 164 में होता है जिसको मजिस्ट्रेट बोलते हैं या एडिसनल मजिस्ट्रेट होगा| बहुत इंट्रेस्टिंग बात है कि पुलिस ने आपसे क्या कहलवा लिया उसकी कोई वैल्यू नहीं है। जीरो वैल्यू है पुलिस ने आप को बुलाया। पुलिस स्टेशन में और कहा मारूंगा कसके बोल तूने चोरी की है कुछ डरना नहीं है| बोलना कि हाँ मैंने चोरी की है लिख के डेता हूँ कि मैंने चोरी की है | उसकी कोई वल्यू नहीं है| एक परसेंट भी नहीं| गवाही की वैल्यू केवल तब है। जब वह सेक्शन
164 के तहत हुई हो| और 164 के तहत जो गवाही होती है वह मजिस्ट्रेट के सामने होती है और मजिस्ट्रेट यानी कि जज जो क्रिमिनल मामले में जज होता है| उसे मजिस्ट्रेट बोलते हैं| और वो आपको सबसे पहले बोलेगा कि देखिए कन्फेशन करने की जरूरत नहीं है जब तक आपका मन ना करे| कन्फेशन मतलब की इकबालिया बयान की हमने जुर्म किया है| वो साफ़-साफ़ आपको बोलेगा कि कानून व्यवस्था के तहत आप कन्फेशन करने के लिए मजबूर नहीं है ये आपकी च्वाइस का मामला है। हाँ मेरे सामने आप कन्फेशन करेंगे तो यह एक सबूत बन जाएगा
आपके खिलाफ अगर आप नहीं करेंगे तो ये आपकी च्वाइस है हम बाध्य नहीं कर सकते आपको| और फिर वो गवाही लेगा। पूरी गवाही नोट करेगा। नोट करने के बाद उस व्यक्ति को पढ़ के सुनाएगा कि भाई ये ये नोट किया है सुन लो ठीक है। हाँ वो कहेगा ठीक है तब साइन करेगा वो व्यक्ति खुद भी और जज भी साइन करेगा। उसपे और मजिस्ट्रेट साइन करने से पहले एक पैराग्राफ लिखना होता है कि सारे नियम समझा दिए गए थे और मुझे पूरा विश्वास है कि इस व्यक्ति ने दबाव में आकर यह बयान नहीं दिया है।
ये भी लिखना पड़ता है तब होती है गवाही सेक्शन 164 में| और इसी कानून के सेक्शन 281 में ठीक से बताया गया है कि गवाही के नोटिंग की प्रक्रिया क्या होगी तो इन दोनों को मिला के काम किया जाता है। 161 में क्या है कि पुलिस इन्वेस्टिगेशन कर रही है। अब जो आईओ है आईओ क्या होता है इन्वेस्टिगेटिंग या इन्वेस्टिगेशन ऑफिसर जो इन्वेस्टिगेट करता है उस मामले में उसको अधिकार है कि वो किसी को बुला सकता है तो 161,1 में कहा गया है कि कि पुलिस का अधिकारी किसी भी ऐसे व्यक्ति को बुला सकता है
उसकी बातचीत कर सकता है विटनेस ले सकता है जो उसके हिसाब से उस केस के बारे में जानकारी रखता है| उसको अधिकार है पुलिसवाले को 161 दो जो है बहुत इंटरेस्टिंग है। 161 का जो पार्ट टू है उसकी भाषा पता है क्या है कि पुलिस का अधिकारी उस व्यक्ति से कोई भी सवाल पूछ सकता है और उस व्यक्ति को सामान्यता हर सवाल का जवाब देना अनिवार्य है। केवल उन सवालों को छोड़कर जिनके बारे में उसे लगता है कि इनका जवाब देने से वह खुद अपराधी बन सकता है या वह अपराधी साबित हो सकता है। आप
सवाल का जवाब देंगे? देना पड़ेगा, लेकिन जिस सवाल के जवाब से आप को लगता है, मैं फंस रहा हूं। आप कह सकते कि मैं इसका जवाब नहीं दूंगा और इसी बात पर एक महिला हुई जिसका नाम था नंदिनी सत्पथी| इनका नाम आपने पता नहीं सुना है कि नहीं उड़ीसा की मुख्यमंत्री थीं। इमरजेंसी के समय 1978 में केस हुआ इनका और इन्होंने क्या किया पुलिस ने सवाल पूछे। 161 के तहत वह हर सवाल के जवाब में चुप| कोई जवाब नहीं | इन्होंने कहा कि आपका हर सवाल ऐसा है कि मैं जवाब दूंगी तो मेरा सेल्फ इन्क्रिमनेसन
हो जाएगा। मैं अपने खिलाफ गवाही दूँगी और संविधान का अनुच्छेद 20 (3) और सी आर पी सी 161 (2) मुझे परमिशन देता है कि मैं सवाल के जवाब ना दूं ये मामला सुप्रीम कोर्ट चला गया कि अगर कोई अभियुक्त जवाब ही न दे तो हम क्या करें तो सुप्रीम कोर्ट ने इस केस में माना। इनकी बात को कि राइट टू साइलेंस हमारे पास है और यदि पुलिस हम पर दवाब डाले तो हमें चुप रहने का अधिकार है और हम कह सकते हैं कि हम चुप रहेंगे| क्योंकि 23, 20 (3) और 161 प्लस टू के तहत
ये अधिकार बनता है। अब इस से अभियुक्त के अधिकार बढ़ते हैं। पुलिस की जिम्मेदारी बढ़ जाती है। पुलिस अब परेशान है किसी को बुलाया कि हाँ भाई तुम वहाँ गए थे? तो चुप नहीं गए थे? चुप तुमने किया? चुप| नहीं किया? चुप पुलिस कहेगी क्या करें अपना सर फोड़े क्या करें? हमें भी फैसला निकलना है जजमेंट निकलना है हम भी क्या करें? उसका अधिकार है कि वह न बोले क्योंकि संविधान और कानून ये कहता है| तो सवाल ये था कि क्या हम इस स्टेप को कंपलसरी करेंगे? कंपलसरी करेंगे तो इन व्यक्तियों को अपने खिलाफ गवाही
देने की बाध्यता हो जाएगी, क्योंकि जैसे नार्को किसी का हुआ हो तो वो होशोहवास में है ही नहीं| बोल दिया। उसके खिलाफ गवाही हो गई| तो अपने खिलाफ गवाही देने की बाध्यता जो संविधान मना करता है सीआरपीसी मना करता है क्या हम उसके लिए किसी को बाध्य कर सकते हैं। 1997 में एक व्यक्ति ने इसी पर एक पिटीशन लगाई कि भैया क्यों कम्पलसरी करते हो क्यों परेशान करते हो? उसका नाम था इंद्रा पी चौधरी एक व्यक्ति ने इसी पर एक पिटीशन लगाई कि आख़िर इसे क्यों कंपलसरी करते हो क्यों परेशान करते हो हमें उसका नाम
था इंद्रा पी चौधरी और उसने बात कही ह्यूमन राइट्स कमीशन से NHRC नेशन, ह्यूमन राइट्स कमीशन और नेशन ह्यूमन राइट्स कमीशन ने 2000 में एक डिटेल डॉक्यूमेंट निकाला अभी सुप्रीम कोर्ट ने कुछ नहीं कहा है हाईकोर्ट नहीं कह रहे हैं नेशनल ह्यूमन राइट्स कमीशन ने जिसकी बात को मानना जरूरी नहीं है, वो एक सुझाव के रूप में होती है बात गाइडेंस के रूप में होती है और ह्यूमन राइट्स कमीशन ने कहा कि भारत के संविधान.. और कानून के तहत.. हमारे दिशा निर्देश गाइडलाइन्स हीं हैं.. नंबर वन किसी भी अभियुक्त या गवाह को पॉलीग्राफ या इस
तरह के टेस्ट के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता. ये उसकी चॉइस का मामला है, वॉलंटियरली होना चाहिए। फिर ये भी लिखा कि वॉलंटियरली में भी ध्यान रखना है.. किसी मजिस्ट्रेट के सामने वो व्यक्ति कहेगा कि “हाँ, मैंने इस टेस्ट के लिए अपनी परमिशन दी है।“ इसलिए, इस केस में क्या हो रहा है कि मजिस्ट्रेट के सामने... अभियुक्त कहेगा कि हाँ मैं परमिशन दे रहा हूँ तो टेस्ट होगा उसके बाद तीसरी बात जब उससे परमिशन लेंगे, उससे पहले उसको बताएंगे कि इसमें लीगल, साइकोलॉजिकल और फिजिकल आस्पेक्ट क्या-क्या हैं? ताकि, उसको सब बातें पता होनी चाहिए।
चौथी बात जो बाद में समझेंगे. साथ में उसको यह भी बताया जाएगा कि इसमें आप जो भी चीजें निकलेंगी वो कंफेशन नहीं माना जाएगा आपका वो कन्फेशन नहीं है, उसकी वैल्यू कन्फेशन की नहीं है क्यों? कन्फेशन लेने का अधिकार केवल और केवल मजिस्ट्रेट को है. वो ना पुलिस को है, ना मनोवैज्ञानिक को है, ना डॉक्टर को है, ना किसी और को है. और कानून की व्यवस्था कहती है कि जब अपराधी अभियुक्त से बात करेंगे वो होशोहवास में होना चाहिए. अगर वो होशोहवास में है ही नहीं तो उससे हम उस समय की उसके गवाही को कैसे
वैल्यू दें? या तो इन सब में अमेंडमेंट करके लिख दे कि इसको हम गवाही मानेंगे। जब तक नहीं लिखा तब तक ह्यूमन राइट्स कमीशन ये निष्कर्ष निकाला. तो अभी तक की जो स्थिति है.. इसके बाद अंतिम जो बात है वो ये कि 2010 में एक फैसला हुआ जो मैंने आपको कहा सेल्वी का मामला, जो मैं बाद में डिस्कस करूँगा. सुप्रीम कोर्ट ने अब इसमें साफ कह दिया कि आप नेशनल ह्यूमन राइट्स कमीशन की बातों को मानेंगे कंपल्शन नहीं कर सकते.. चॉइस मामला है और कंपल्शन क्यों नहीं कर सकते.. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने तो
और दो-तीन बातें कह दीं.. आर्टिकल-20 (3) का विरोध तो है ही उसने ये भी कहा कि अब अपने खिलाफ गवाही नहीं देना चाह रहे हैं आप चुप रहना चाह रहे हैं उसके भी खिलाफ है; और मेंटल प्राइवेसी के खिलाफ है. राइट टू प्राइवेसी जिसको हम बोलते हैं वो आर्टिकल-21 में आता है राईट तो पर्सनल फ्रीडम में आता है आप किसी के दिमाग के अंदर घुस के कुछ-कुछ ऐसी बातें निकाल के ले आए जो कहीं मिसयूज़ भी हो सकती हैं, उसकी प्राइवेसी खत्म हो गई तो राइट टू मेंटल प्राइवेसी भी तो एक चीज़ है.. वो भी
तो उससे खत्म हो रहा है। फिर सुप्रीम कोर्ट ने कहा, राइट टू डिग्निफाइड वो भी आर्टिकल-21 के तहत आता है। राइट टू लाइफ एंड पर्सनल लिबर्टी है आर्टिकल-21 उसने कहा राइट टू लाइफ का मतलब पशु वाली जिंदगी नहीं है इंसान वाली है, डिग्निटी वाली. इसमें डिग्निटी खत्म होती है क्योंकि इस व्यक्ति ने जो आरोप लगाया था वो ये कि मुझसे परमिशन तो ले ली टेस्ट लेने की, उसके बाद मेरा जो हाल किया टेस्ट के नाम पे डिग्निटी उसमें नहीं थी एकदम तो सुप्रीम कोर्ट ने कहा राइट डिग्निफाइड लाइफ खत्म होता है राइट टू पर्सनल लिबर्टी
जो है जिसमें एक व्याख्या है.. राइट टू प्राइवेसी... वो खत्म होता है. “राइट टू नॉट बी सेल्फ क्रीमीमिनेटेड”.. ऐसा जो वाक्य बनेगा.. वो खत्म होता है. इसलिए हम इसकी परमिशन नहीं देंगे सुप्रीम कोर्ट ने जरूर कहा.. “सरकार ने बहुत दबाव बनाया कि इसकी परमिशन मिले तो थर्ड डिग्री खत्म हो जाएगा, जल्दी फैसले होंगे, राज्य का दबाव कम होगा, हम अपराधियों को जल्दी जेल पहुंचा पाएंगे’. तो सुप्रीम कोर्ट ने पासिंग रेफ़रेंस में कहा कि अगर आपको इतना ही मन है तो संविधान और एक्ट में संशोधन कर दीजिए.. हम ऐसा नहीं करेंगे, हम ये व्याख्या नहीं करेंगे,
आप करेंगे, तब का तब देखेंगे। फिलहाल अभी जो कानून है, जो संविधान है उसके तहत अगर आप हम से पूछेंगे तो हम तो परमिशन दे देंगे इस चीज़ की क्योंकि ये ह्यूमन डिग्निटी के खिलाफ हमें लग रहा है. दूसरी बात जो इसमें आती है वो ये कि अगर किसी ने टेस्ट करवा लिया.. टेस्ट कई लोग करवा लेते हैं कई बार तो ये भी होता है कि जैसे कोई व्यक्ति फंस गया जबकि वो गलत नहीं था, वो खुद बोलता है कि नार्को करवाइए मेरा, मेरा ब्रेन टेस्ट करवाइए, ब्रेन मैपिंग करवाइए उसको सबको पता है कि अगर
ये होगा तो मैं बेकसूर साबित हो जाऊँगा कई लोग वॉलंटियरली चाहते हैं कि उनका टेस्ट हो जाए तो अगर किसी और टेस्ट हो तो उसकी एडमिसीबिलिटी होगी या नहीं होगी.. एक सवाल ये उठता है एडमिसीबिलिटी मतलब उसको स्वीकार किया जाएगा या नहीं ये सवाल है इसके लिए जो हमारा एक्ट है देश में उसको बोलते हैं.. इंडियन एविडेंस एक्ट, 1872. ये एक्ट बताता है कि गवाही की वैल्यू क्या है? प्रूफ की वैल्यू क्या है? एविडेंस की वैल्यू क्या है? किसे एविडेंस मानेंगे? किसी केवाल स्टेटमेंट मानेंगे? किसे केवल रेलिवेंट फैक्ट मानेंगे? इसके एक प्रोविजन का प्रयोग करते
हुए सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी अच्छी व्याख्या की सेल्वी के मामले में और वो व्याख्या क्या है... यह सेल्वी का मामला है.. 2010 का... मई...5 मई, 2010 सबसे महत्वपूर्ण फैसला माना है.. इस मामले में. 3 जजेस की बेंच ने दिया था ये फैसला. एविडेंस एक्ट एक है- सेक्शन 25, एक है- 26, एक है- 27... सुप्रीम कोर्ट ने 27 के तहत इसकी व्याख्या की है.. बहुत ध्यान देने की बात है ये, इसको समझ लेंगे में तो आपको भी कानून का आईडिया रहेगा; और कानून ऐसी चीज़ है.. मेरे ख्याल से देश के हर व्यक्ति को पढ़ना ही चाहिए.
अपने अधिकार पता हों, अपनी जिम्मेदारियाँ पता हों, बिना बात के कोई दबाव न बना सके. कानून की पढ़ाई करने के बाद कोई दबाव नहीं बना सकता.. आपके ऊपर. कोई बोलेगा कि “ऐसे...”. आप बोलेंगे कि “इंडियन एविडेंस एक्ट सेक्शन-27.” फिर कोई कुछ बोलेगा ही नहीं, वो बोलेंगे- अच्छा ठीक है, जाइए! जाइए! जाइए! तो ये बहुत महत्वपूर्ण बातें हैं और कुछ लोगों ने इसकी व्याख्या में दो सेक्शंस की बात की.. ...45, 45A... इनमें से दो-दो मिनट की बात समझ लीजिए इसके साथ ही ये बात पूरी हो जाएगी. सेक्शन-25 क्या कहता है.. कि अगर पुलिस के सामने किसी
ने कन्फेशन किया है या कोई विटनेस दिया है उसके बेस पर उसे अपराधी नहीं माना जाएगा. एकदम साफ लिखा हुआ है... हमेशा ध्यान रखना है... ईश्वर न करे कभी आप कहीं फँस जाएँ और कोई पुलिस का व्यक्ति टॉर्चर करें. हालांकि, पुलिस के लोग भी अब ध्यान रखते हैं इस बात का, लेकिन मान लीजिए कोई ऐसा व्यक्ति हो.. टॉर्चर करे...कि लिख कागज पे कि तूने खून किया है...लिख कागज पे.. एकदम मत डरना.. उस समय उससे बचने के लिए लिख देना, बेशक. अब आपको लग रहा है कि नहीं लिखूंगा तो मार-मार के लहूलुहान कर देगा मुझे. तो
आप कहेंगे कि हाँ लिख देता हूँ..क्या-क्या लिखना है, बताओ; किस-किस का मर्डर किया है...नाम बताओ...सबका लिस्ट बनाओ.. हाँ मैंने ही मारा था...किसी का भी नाम लिख दीजिये न... चंद्रगुप्त मौर्य को मैंने ही मारा था लिख दीजिए..कुछ भी लिख दीजिए. जो मन करे लिखवा लीजिए..बिलकुल नहीं डरना है.. हमेशा ध्यान रखना है...CrPC सेक्शन-161 और इंडियन एविडेंस एक्ट...सेक्शन 25 रत्ती भर वैल्यू नहीं.. पुलिस के सामने अगर आपने कोई ऐसा बयान दिया, जिससे आप इनक्रिमिनेट हो रहे हैं.. आप अपराधी बन रहे हैं.. उसकी वैल्यू नहीं है...बाकि बयान की वैल्यू है. इसकी वैल्यू नहीं है.. फिर 26 में क्या कh
रहे हैं.. कोई ऐसा बयान जो पुलिस कस्टडी में रहते हुए दिया गया हो उसकी भी वैल्यू नहीं है.. इस मामले में पुलिस कस्टडी है... पुलिस ने एक घर में बिठा दिया...पुलिस वाला बोला..मैं तो बाहर जा रहा हूँ..ठीक से बयान दे देना.. बयान किसी और ने लिया.. इसकी भी कोई वैल्यू नहीं है क्योंकि ये पुलिस कस्टडी में है.. पुलिस कस्टडी के अंदर बयान की वैल्यू केवल तब होगी जब वो बयान मजिस्ट्रेट ने लिया हो अन्यथा उस बयान की कोई वैल्यू नहीं है। यदि उससे व्यक्ति खुद अपराधी साबित हो रहा हो.. अब सुप्रीम कोर्ट का सिंपल कहना
कि भाई पुलिस कस्टडी में ये नार्को भी हो रहा है, पुलिस कस्टडी में ब्रेन मैपिंग भी हो रहा है.. तो 25 26 के तहत कैसे वैल्यू मानेंगे उसकी हम.. नहीं मान सकते हैं... फिर सवाल है.. कि पुलिस करवा क्यों रही है इतना सारा? इतना तामझाम, इतना टीवी मीडिया... हो क्यों रहा है ये सब? इसकी वजह है- सेक्शन 27 और, सेक्शन 27 एक तरह से एक्सेप्शन है.. 25 और 26 का... यानी 25, 26 की बातें अपनी जगह है; लेकिन, यदि ऐसा हुआ तो 27 लागू हो जाएगा और 27 लागू होने का मतलब क्या है..? वो कहता
है... कि मान लीजिए पुलिस ने इन्वेस्टीगेशन की और किसी ने कुछ कहा, जिससे वह अपराधी साबित हो रहा है.. तो उस बात की वैल्यू तो एकदम नहीं है.. लेकिन अगर उसने कुछ बात कही.. और पुलिस ने उसके बेस पर कुछ फैक्ट्स निकाले और आगे बढ़कर अपनी रिसर्च से कुछ ऐसे फैक्ट्स निकाल लिए जिनसे साबित होता है कि ये व्यक्ति अभियुक्त है, अपराधी है, तो उन फैक्ट्स की वैल्यू मानी जाएगी। उनको एडमिसिबल माना जाएगा.. उनको प्रूफ के रूप में, एविडेंस के रूप में स्वीकार किया जाएगा। सिंपल मतलब क्या है...समझ लीजिए.. इस केस में, जैसे- आफ़ताब के
केस में, मान लीजिए नार्को टेस्ट हुआ.. नार्को टेस्ट में उसने कहा कि हाँ, मैंने खून किया था। इसकी कोई वैल्यू नहीं है.. इसके बेस पर अदालत स्वीकार नहीं करेगी, लेकिन नार्को टेस्ट में मान लीजिए.. पुलिस ने पूछा कि चाकू कहाँ रखा; उसके मुँह से निकल गया कि चाकू तालाब के अंदर डाला था और सिर का जो हिस्सा...वो कहाँ रखा? वो मैंने उस खेत में दबाया था... अब हां मैंने मारा था... इसकी वैल्यू नहीं है.. लेकिन उसने सिर बता दिया कहाँ है, चाकू बताया कहाँ है..? पुलिस ने टीम भेज के चाकू रिकवर कर लिया और उस
नाइफ पे उसके हाथ के निशान मिल गए.. फिंगरप्रिंट्स मिल गए.. अब नाइफ और फिंगर प्रिंट जो हैं.. यह अपने आप में एक एडमिसिबल एविडेंस बन सकता है.. बात समझ प् रहे हैं...नार्को, पॉलीग्राफ या ब्रेन मैपिंग में कुछ ऐसे रिजल्ट्स आए जिससे साबित हो रहा कि व्याक्ति ने अपराध किया है... इसकी अपने आप में वैल्यू नहीं मानी जाएगी, लेकिन उन टेस्ट्स के अंदर जो बातें मिली.. उनके बेस पे कोई और तथ्य पुलिस ने ढूंढ लिया और उस तथ्य से साबित हो गया कि अपराधी है, तो उसकी वैल्यू मानी जाएगी और ये बात इंडियन एविडेंस एक्ट के
सेक्शन 27 में लिखी है.. सुप्रीम कोर्ट ने सेल्वी मामले में इस सेक्शन का उल्लेख किया है कि सेक्शन 27 के तहत इसकी व्याख्या करेंगे... 25, 26 में नहीं करेंगे.. बात स्पष्ट हुई..? कुछ लोग मानते हैं कि सेक्शन 45 और 45A में भी इसकी एक छोटी सी व्याख्या हो सकती है...45 क्या है.. . कोई केस चल रहा है.. किसी एक्सपर्ट की जरूरत है... मलिक हैंडराइटिंग किसी की दिख गई है.. अब हैंडराइटिंग एक्सपर्ट बताएगा कि हैंडराइटिंग मैच हो रही है कि नहीं हो रही है.. कभी कोई साइंटिफिक एक्सपर्ट हो सकता है, कोई डॉक्टर हो सकता है, कोई
इलेक्ट्रॉनिक्स का एक्सपर्ट हो सकता है.. जो जज नहीं जनता है उस चीज़ को..तो सेक्शन 45 कहता है कि किसी केस के निपटारे के लिए यदि जज को किसी एक्सपर्ट की ज़रूरत हो, तो एक्सपर्ट से राय ली जा सकती है और उस एक्सपर्ट की राय को क्या माना जाएगा? रेलिवेंट फैक्ट माना जाएगा, वह एविडेंस नहीं है, लेकिन रेलिवेंट फैक्ट है..इसका मतलब.. जजमेंट करते हुए इसका भी एक ठीक-ठाक वेटेज हो सकता है.. लेकिन, ये अपने आप में पर्याप्त नहीं नहीं हो सकता है..एडेक्वेट नहीं होगा.. और 45A में इलेक्ट्रॉनिक एक्सपर्ट्स... की बात है जो इलेक्ट्रॉनिक्स के बारे में,
डेटा के बारे में...किसी... डेटा किसी भी फॉर्म में हो...पेनड्राइव में हो.. मेल के रूप में हो, किसी भी फॉर्म में हो.. उसके एक्सपर्ट की बात है.. तो पूरी बात का सार क्या हुआ? पहली बात मैं पूछता हूँ आपसे... पहली बात.. क्या पोलीग्राफ नार्को या ब्रेन मैपिंग पुलिस अपनी मर्जी से किसी का करवा सकती है? नहीं करवा सकती... लेकिन यदि वह व्यक्ति कहे कि हाँ मैं करवाना चाहता हूँ तो? तो वह किसके सामने कहेगा कि हाँ मैं करवाना चाहता हूँ? मजिस्ट्रेट के सामने कहेगा... तो होगा। पहले बताएंगे उसको कि ये कन्फेशन नहीं माना जाएगा.. केवल स्टेटमेंट
मानी जाएगी.. यदि नार्को के तहत कोई कह दे कि हाँ मैंने खून किया है। इस बात की लीगल वैल्यू है या नहीं है?.. कोई लीगल वैल्यू नहीं है. लेकिन वह ये कह दे हाँ मैंने खून किया था चाकू वहाँ छिपाया था मैंने बंदूक वहाँ छिपाई तमंचा वहाँ छिपाया और पुलिस ने ढूंढ लिया। निशान ढूंढ लिया फिंगरप्रिंट उसकी वैल्यू है या नहीं उसकी वैल्यू है उसके बेस में उसको कन्विक्ट किया जा सकता है और यदि हम पोलिग्राफ के एक्सपर्ट को या नार्को के एक्सपर्ट को या ब्रेन मैपिंग के एक्सपर्ट की राय को यूज करना चाहें तो
वह कन्फेशन होगा। एविडेंस होगा या रेलिवेंट फैक्ट होगा। रेलिवेंट फैक्ट होगा यानी उसका भी इस्तेमाल कर सकते हैं पर वह अपने आप में एडिक्वेट नहीं होगा। ये अभी की हमारी कानून व्यवस्था इस मामले में चल रही है अब अंतिम बात यह है कि क्या होना चाहिए। इस मामले में यदि कोई आपसे पूछे कि भविष्य की कानून व्यवस्था हमारी कैसी हो ये भी तो सवाल है कि चेंज भी तो होता है अमेंडमेंटस भी होते है क्या होना चाहिए। सबसे पहली बात ऐसे मामलों में हमेशा ये काम करना चाहिए लॉ कमीशन को लॉ कमीशन क्या होता है
ये एक ग्रुप होता कमीशन आयोग होता है जो लॉ मिनिस्ट्री बनाती है उसमें लीगल एक्सपर्ट होते हैं जिनका काम यह होता है देखना कि कौन-कौन से कानून ऐसे हैं जिनको ठीक करना चाहिए किनको हटा देना चाहिए। कौन से नए कानून बनाने चाहिए जो बनाने चाहिए उनका ड्राफ्ट पूरा बनाना जनता से राय मशविरा करना और उसके बाद उसे पास करवाना। संसद से यह काम लॉ कमीशन का काम रिकमंडेशन देने तक का है उसके बाद लॉ मिनिस्ट्री करती है ये काम तो लॉ कमीशन इन सारे पहलुओं पर विचार करें और यदि बात यह है कि क्या कंपलसरी
होना चाहिए या नहीं तो सामान्य उत्तर तो मेरे ख्याल से हम सब का यही है कि कंपलसरी नहीं होना चाहिए, लेकिन देखिये मामला केवल आम आदमी के अधिकार का नहीं है। हमें यह भी समझना है कि एक खतरनाक व्यक्ति इन चीजों का फायदा उठा के बच जाए और समाज में है तो कई और लोग भी खतरे में आ जाते हैं, उसका तो प्राइवेसी का राइट है। बाकियों का तो जीवन का अधिकार खत्म हो गया। एक बड़ा इंटरेस्टिंग केस 1970 के बीच का है बड़ा बुरा केस कहना चाहिए। अमृतसिंह वर्सेज स्टेट ऑफ़ पंजाब केस है सात
साल की बच्ची का रेप हुआ और मर्डर हुआ। दूसरी क्लास की बच्ची थी, जिसमें आरोप लगा उसका नाम अमृत सिंह था बच्ची खून से सनी हुई थी। जब उसकी मौत हुई । लेकिन उसके हाथ में न कुछ बाल थे और ये माना गया कि जब उसका रेप हुआ तो उसने पकड़ लिया उस व्यक्ति कसकर उसके बाल टूटकर उसके हाथ में आ गए मामला यह था कि उस व्यक्ति का एक बाल का सैंपल लेके डीएनए में डीएनए मैच और उसने एलओसी के तहत मैं अपने बल का नमूना देने को बाध्य नहीं और अदालत उसे बाल के
नमूना लेने। सुप्रीम कोर्ट में मामले यह तो गलत बात है कि कानून का सहारा लेकर बड़े बड़े अपराधी छूट जाएं और उस बच्ची के अधिकार की बात कौन करेगा जिसकी मौत हो गई। इसलिए केवल अधिकार उस व्यक्ति के नहीं है जो भयमुक्त है या जो अपराधी होने की संभावना रखता है। अधिकार तो बाकी भी है। एक स्वस्थ समाज में रहना जीवन को ही तो हम सबका है इसलिए एक बैलेंस करना पड़ता है। सामान्यता कम होना चाहिए। सहमत है, लेकिन डोपिंग मामले ऐसे हो सकते हैं। यह बहुत ही गंभीर किस्म के अपराध हो सकते हैं तो
जो बहुत ही न बहुत सीरियस क्राइम है जैसे रेप है गैंगरेप है मर्डर है। आतंकवाद के मामले का मामला है और उसमें भी ऐसे नहीं कि किसी पे भी शिकायत लगाई और कर दिया सीरियस क्राइम के मामले में जो प्राइमरी इन्वेस्टिगेशन है पहले वो जज देखेगा। इसको बोलतें है प्राइमा फेसाई साबित हो रहा है कि नहीं हो रहा है और यदि वह प्राइमा फेसाई साबित हो रहा है तो जज के पास ये राइट होना चाहिए। कि वो कुछ ऐसे केसेस में पहली बार क्राइम सीरियस हो और दूसरी बात इतना एविडेंस जज के सामने आ चुका
है कि पहली नजर में दिख रहे हैं कि हाँ अपराध हुआ है। और इस व्यक्ति ने अपराध किया है। ऐसे कैसे मजिस्ट्रेट्स को बेशक सेशन जज को सेशन जज का मतलब जिले का सीनियर मोस्ट मजिस्ट्रेट जो होता है वो तो बेशक केवल सेशन जज को आप यह राइट दें कि ऐसे मामलों में वो आदेश दे सके कि हाँ इस व्यक्ति का टेस्ट होना चाहिए और इनमें ब्रेन मैपिंग को सबसे ऊपर क्योंकि ब्रेन मैपिंग में धोखा भी नहीं दे सकते हैं और रिस्क भी नहीं है उस व्यक्ति को भाई नार्को में समझ में आता है कि
हजार में लाख में एक व्यक्ति को नुकसान हो सकता है। पॉलीग्राफ में झूठ बोल सकता है। ब्रेन मैपिंग टो वो सब हो नहीं सकता है तो ब्रेन मैपिंग जैसे टेस्ट के लिए अनिवार्यता करें और दूसरी बात यह हैं कि जो हैबीचुअल क्रिमिनल्स हैं या हबिचुअल्स ओफेंडर्स है मान लीजिए। अभियुक्त नहीं, जिन पर अपराध साबित हो चुके हैं। दो-तीन बार सजाएँ काट चुके हैं।और वो भी सीरियस क्राइम करते हैं तो एक इसका क्लासिफिकेशन हो सकता है। कि कौन कौन से क्राइम करने वाले व्यक्तियों को इस कैटेगरी में रखेंगे और यदि ऐसा व्यक्ति किसी मामले में फिर
से अभियुक्त बनता है तो उसका टेस्ट करवाने के लिए हम कर सकते हैं। इग्जक्ट्ली तो लॉ कमीशन बताएगा। हम तो केवल एक मोटी-मोटी बात कर सकते हैं, खाका बना सकते हैं। अब दूसरी बात है क्या इसको एड्मिसिबल मान लेना चाहिए कि किसी ने नार्को के नशे में बताया कि हाँ मैंने खून किया है। सरकार का विचार यह था उस मामले में कि सर इससे काम जल्दी निपटेगा थर्ड डिग्री भी नहीं करना पड़ेगा। कनविकसन रेट बढ़ेगी, एक्विटल रेट एक्विटल मतलब छोड़ देना वो रेट बढ़ेगी फायदा ही फायदा है और सुप्रीम कोर्ट ने कहा न हम तो
ऐसा नहीं करेंगे। आपको करना है तो संशोधन कर दीजिए। मेरे ख्याल से एड्मिसिबिलिटी के मामले में अभी रुकना चाहिए। अभी जो स्थिति चल रही वो ठीक है अभी सेक्शन 27 कौन से एक्ट का सेक्शन हैं? इंडियन एविडेंस एक्ट का अभी 27 के तहत चल रहा है तो उसको हम चला सकते हैं, लेकिन आज से कुछ साल बाद हो सकता है कि बी.ई.ओ.एस या ब्रेन मैपिंग जैसे तकनीक के बहुत आगे के स्तर पर चली जाएँ आजकल एमआरआई यूज करना शुरू कर दिया है फंक्शनल एमआरआई एक टेस्ट होता है तो आज से 20 25 साल बाद ऐसा
हो सकता है कि ऐसे स्कैन ब्रेन के होने लगे कि कुछ कहने की जरूरत न पड़े न रिस्क हो जरा सा भी कोई अभियुक्त है एमआरआई करवाया। रिपोर्ट आ गई ये अपराधी है। ये-ये काम किया है इसने तो तब सोचेंगे फिलहाल इस पर आगे बढ़ने से बचना चाहिए और तीसरी बात यह भी है। आजकल अमेरिका में क्या हो रहा है कि पॉलीग्राफ टेस्ट का इस्तेमाल पब्लिक लेवल पर भी होता है, केवल सरकार नहीं करती है। इम्प्लॉयमेंट है, नई नौकरी देनी है। सेना में नौकरी देनी है इंटेलिजेंस की नौकरी है पहले उनका पॉलीग्राफ टेस्ट होगा ।
ब्रिटेन की एक यूनिवर्सिटी ने यूनिवर्सिटी ऑफ़ केंट उसका नाम है KENT उसने एक रिसर्च की और उसने एक राय दी कि अभियुक्तों पर प्रयोग हो ना हो, लेकिन जो अपराधी जेल में हैं या पैरोल पे है। उनका टाइमली टेस्ट अगर होता रहे पॉलीग्राफ तो कम से कम हम ये पता लगा सकते हैं कि उनके सुधरने की गति कितनी है और क्या फिर से वो किसी ऐसी एक्टिविटी को अंजाम देने वाले हैं तो क्यों न हम अपराध होने से पहले रोक लें और केवल उन व्यक्तियों पर करें जिनके साथ और जिनके के बारे में जजेज़ यह
कहें कि हाँ इनको चेक करना जरूरी है ताकि समाज में शांति बनी रहे हो सकता है कि आगे चलके हमें ये भी करना पड़े, लेकिन फिलहाल हमें मानना चाहिए कि कंपल्शन के मामले में कुछ गंभीर अपराधों में और जो बार-बार अपराध करते हों, उन व्यक्तियों के लिये कम्पलसरी करने का करने का विचार कर सकते हैं। बाकी मामलों में जो अभी की स्थिति है, मेरे ख्याल से ठीक है तो मेरी तरफ से बात पूरी हो गयी, अब आपके मन में जो भी सवाल हो, अगर बचे हैं तो पूछिए सही सवाल पूछना वरना पॉलीग्राफ करके चेक कर
लेंगेकि सवाल सही है या गलत है या ब्रेन मैपिंग कर लेंगे कोई सवाल नहीं आप लोगो का? शुरू में बड़े उत्साह में थे कि बड़े सवाल पूछेंगे थक गए या सवाल नहीं है मन में, थक गये बहुत ज्यादा? हां पूचहिये भई। सर जैसे पॉलीग्राफ टेस्ट कोई अपराधी नहीं कराना चाहता है तो वो अपराध माना जाएगा। या नहीं माना जाएगा। अभी है कि स्थिति ये है कि अगर कोई पॉलीग्राफ के लिये मना कर दे तो फिर हम टेस्ट नहीं करवा सकते। सिविल केस में फिर भी करवा सकते हैं क्योंकि जो आर्टिकल ट्वंटी क्लॉस थ्री की छूट
है केवल क्रिमिनल केसेस मे है सिविल कसे में थोडा दबाव बना सकते है जैसे आपने सुना एन.डी.तिवारी कसे सुना होगा एन.डी.तिवारी यूपी के सीएम रहे थे एक लड़का था रोहित शेखर उसने क्लेम किया कि मैन इनका बेटा हूँ अब बाप बेटे का मामला सिविल मामला है क्रिमिनल नहीं। उसने कहा डीएनए टेस्ट करवाइए, मै साबित हो जाऊंगा बेटा मुझे संपत्ति में पता नहीं संपत्ति माँगी या जो भी माँगा नाम शायद माँगा जज ने कहा कि आप हमें ब्लड सेंपल दे दीजिए। टेस्ट करवा लेते है या हेयर सैम्पल दे दीजिए, उन्होंने मना कर दिया कि नहीं दूँगा
तो जज ने कहा कि अगर आप सैंपल नहीं देंगे तो हम प्रिज़म्प्सन ये बना लेंगे कि आरोप सही है तो फिर हुआ कि मै सैम्पल दूँगा सैम्पल लेने गए डाक्टर तो बोले बीमार हूँ नहीं दूँगा, अंत में ज़बरजस्ती सैम्पल लिया। फिर साबित हुआ कि हाँ रोहित शेखर उनका पुत्र है तो सिविल मामले में कम्पलसरी थोडा बहुत कर सकते हैं। क्रिमिनल मामले में कम्पलसरी नहीं कर सकते। अगर किसी ने पॉलीग्राफ के लिए मना कर दिया तो टेस्ट नहीं होगा। फिर बाकी एविडेंस के माध्यम से कोशिश की जाएगी। कि वो साबित हो कि अपराधी है पॉलीग्राफ से
नहीं, ठीक है? और बताएं हाँ पूछिये-पूछिये...पूछिये माइक हाथ में रख लीजिये सर मेरा क्वेश्चन ये है? आपका नाम क्या? सर मेरा नाम सागर कटारिया है। सागर? हाँ सर...मेरा प्रश्न है कि अगर कोई इंसान है कि जो बहुत ही झूठ बोलता है। बिलकुल कैरेक्टर मैं आ चुका है या फिर इस सारे टेस्ट होने से पहले वो टेक्नोलॉजी को समझ..समझ लें पहले थोड़ा सा मतलब किस तरीके से टेक्निक्स काम करती है। कितना ही बड़ा झूठा हो देखो पॉलीग्राफ में तो धोखा दे देगा मशीन को और पॉलीग्राफ टो लोग दी ही देते हैं। कितना भी झूठ वाला आदमी
हो नार्को से बचना बहुत मुश्किल है। अच्छा पॉलीग्राफ के बारे में भी ध्यान रखना अमेरिका में एक एजेंसी है एनआरसी... नेशनल रिसर्च काउंसिल उसने 200 3 में एक स्टडी की कि पॉलीग्राफ कितना वैलिड है? और एक-दो स्टडीज और भी हैं अगर मैं उनको मिला के बताऊँ तो तीन स्टडीज को हम लोग जब दूसरों से इन्वेस्टिगेशन करते हैं, सच और झूठ पहचानना चाहते हैं। हमारी जो क्रेडिबिलिटी है वो 50 परसेंट की है। यानी 50 परसेंट मामले में उनको धोखा देना बहुत आसान काम है। आम आदमी को पुलिस वाले के मामले में सिक्सटी फाइव परसेंट निकला कि
पुलिस का आदमी पैंसठ परसेंट पहचान लेता है और 35 परसेंट वहाँ भी धोखा खा जाता है और पॉलीग्राफ की जो ओथेंसिटी है वह 80 से 85 परसेंट की थी तो पॉलीग्राफ को भी धोखा देना आसान काम नहीं है। लेकिन हाँ जो बहुत घाव लोग हैं दे सकते हैं। लेकिन नार्को में आप कैसे धोखा देंगे में बताइए? जब मैं होशोहवास में ही नहीं हूँ ऐसे सुना है आपने कि कई लोग नींद में सोते हुए बडबडाते हैं। अब कोई गहरी नींद में बडबडा रहा हो उस समय कैसे धोखा देंगा वो? होशोहवाश में ही नहीं है मैंने और
ब्रेन मैपिंग में तो उसको झूठ बोलना ही नहीं है उसके सामने एक फोटो आई वो कुछ बेचारा सोच ही नहीं पा रहा, अंदर तरंग बन गई वेव बनी वो नोट हो गया। इसलिए कोई कितना भी समझदार क्रिमिनल हो। ब्रेन मैपिंग में और नार्को में उसका बचना मुश्किल काम है। अच्छा मुझसे पिछले वीडियो पर कई कमेंट्स आये मेरी टीम ने बताया कि सर हमें ऑडियंस में आना है टो कैसे आ सकते हैं? तो दो बात मैं स्पष्ट कर रहा हूँ, एक टो ऑडियंस अभी हम अपने जो समूह के लोग हैं वही बैठ रहे है, आगे चलकर
कोई रास्ता निकालेंगे। कि कोई भी व्यक्ति आ सके दूसरा उसके सारे कमेंट्स न मैं पढ़ता हूँ चैनल के न मैं जवाब देता हूँ कुछ लोगों ने जवाब दिया तो सबको लगा मै जवाब दे रहा हूँ एक टीम हमारी है तो अब ये उम्मीद मत कीजिये कि मैं सारे कमेंट्स पढूंगा सबके जवाब दूंगा। मुझे मौका नहीं मिला। एक टीम काम करती है मेरी भूमिका उसमे न के बराबर है। जी नमस्कार सर मैं मनप्रीत हूँ... बेसिकली सर मेरा क्वेश्चन ये था आपसे कि जैसे नार्को टेस्ट में आपने ये बताया कि अगर मैंने बोला कि मैंने कोई अपराध
किया तो वो जस्टिफिकेशन नहीं है। जज के सामने बट और आपने दूसरा पॉइंट ये बताया कि जैसे अगर आ.....हम घुमा के उससे क्वेश्चन पूछ सकते हैं कि चाकू वहाँ पे है या जो भी आपने एग्जाम्पल लिया। अगर ऐसी सिचुएशन हुई कि पुलिस ही अगर उसमें मिली हुई है और नार्को में हमें तो होश है.नहीं तो अगर हमारे फिंगर लेके या कोई या कोई भी वैपन लेकर अगर खुद पुलिस ने उस वेपन को दफनाया हो तो उसकी क्या जस्टिफिकेशन रहेगी। अगर...अगर पुलिस आगे जो कोर्ट के ऊपर जाती है तो? मतलब भारतीय कानून व्यवस्था में अपराधी साबित
करना बहुत मुश्किल है। बेकसूर साबित होना बहुत आसान काम होता है। फिंगर प्रिंट मैचिंग वगैरह.... इन सबके लिए इंडियन एविडेंस एक्ट में पूरे प्रोसीजर दी रखें हैं। उन प्रोसीजर के अलावा कुछ कर नहीं सकते हैं। और उसमे एक-एक चीज़ की वीडियो रिकॉर्डिंग होगी और उसमें जो वकील होता है उस पक्ष का जो अपराधी के पक्ष में है उसको पूरा अधिकार है कि वो पूरी जाँच की कार्यवही पर सवाल खड़े कर सकता है। इतना आसान नहीं होता है, लेकिन ये बात सही है कि नार्को में उसने कुछ कहा, उसकी वैल्यू नहीं है..जैसे मैंने तेलगी का एक
एज़ाम्पल दिया। तेलगी ने नार्को टेस्ट के तहत दो नेताओं के नाम बोल दिए बाद में जब कोर्ट में हुआ मतलब सेक्शन 164 के तहत जब उसकी गवाही हुई तब उसने नाम नहीं बोले, उससे पूछा भी गया क्या किसी व्यक्ति का नाम कोई शामिल है? उसने कहा नहीं कोई शामिल नहीं है तो क्या माना गया कि कोई शामिल नहीं है, जबकि उसने नार्को में नाम बोल दिए थे तो फिलहाल यह है कि भारत में किसी बेकसूर को अपराधी साबित करना आसान काम नहीं है। ऐसा होता होगा कुछ केसेस में और मतलब उस वकील के पास अधिकार
है। सवाल खड़े करने के लिए। अ....सर मेरा नाम प्रियंका है और मेरा सवाल ये है कि अगर कोई अपराध हुआ है और वहाँ पर कोई आई विटनेस है तो क्या दूसरा पक्ष उस चीज में ये बोल सकते कि हम इनका पॉलीग्राफी या नार्को टेस्ट कराने की हम अपील कर सकते उसमें। अपील तो कर सकते हैं और ये जो विटनेसेस है उनके मामले में भी हो सकता है कि पॉलीग्राफ की बात करें, लेकिन वही बात है कि उसकी कंसेंट होना जरूरी है। अगर वो विटनेस कंसेंट न दे तो फिर नहीं हो पायेगा किसी का भी नहीं
होगा न किसी अभियुक्त का न ही किसी विटनेस का। और सेक्शन 164 जो है न या 161 है ये अभियुक्त के लिए भी है और विटनेसेस के लिए भी है तो ठीक वही प्रोसेस पॉलीग्राफ पे भी लागू हो जाएगा। विटनेस भी और अभियुक्त भी दोनों के लिये ठीक, समाप्त करें अब फिर? चलिए बहुत-बहुत धन्यवाद और मुझे उम्मीद है कि आप सभी बहुत बोर नहीं हुए होंगे तो जल्दी ही फिर कभी मिलते हैं ठीक है धन्यवाद, शुक्रिया।
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