Unknown

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दोस्तों आज मैं आपसे एक सवाल पूछना चाहता हूं क्या इस दुनिया में हमारे लिए ज्यादा बोलना अच्छी बात है कहीं ना कहीं ज्यादातर लोग इसी वजह से ज्यादा बोलते हैं क्योंकि वह दूसरों के सामने अपने आप को अच्छा दिखाना चाहते हैं दूसरों के सामने खुद को साबित करना चाहते हैं तो इस सवाल का जवाब हम एक कहानी के माध्यम से समझे एक समय की बात है जब एक आश्रम में बौद्ध गुरु और उनके शिष्य रहते थे उन सभी बच्चों में एक बच्चा थोड़ा अलग था आश्रम के सभी बच्चे जब दूसरे कामों में लगे होते थे
तो वह बच्चा एक कोने में बैठकर चुपचाप अपने आप में खोया रहता था वह अक्सर किसी से ज्यादा बात नहीं करता था आश्रम की सभी जिम्मेदारियां पूरी करने के बाद जब सभी बच्चे पूरे दिन की घटनाओं के बारे में बातें करने लगते हैं तब वह शांत रहने वाला बच्चा एक बरगद के पेड़ के नीचे बैठकर ध्यान करने लगता सभी बच्चों को देखकर आश्चर्य होता था क्योंकि उसका कोई दोस्त नहीं था वह अक्सर आश्रम में अकेला ही घूमता रहता था यह देखकर उसके गुरु को बड़ी खुशी होती थी उसे लगता था कि कोई तो है आश्रम
में जो मौन यानी कि चुप रहने की ताकत को समझना है उसके महत्व को समझता है आश्रम के बारे में जब भी कोई जरूरी निर्णय लेना होता था तो उसकी राय जरूर लिया करते थे लेकिन यही बात गुरुजी के एक दूसरे शिष्य को बड़ी खटकती थी क्योंकि वह गुरुजी का प्रिय शिष्य बनना चाहता था इसीलिए वह गुरुजी के सामने दूसरे बच्चों के कामों में कुछ ना कुछ कमियां निकालता रहता था जिसकी वजह से गुरुजी उसे महान समझने लग जाए अक्सर वह अपनी जिम्मेदारियां पूरी तरह से निभाने का दिखावा भी करता था चाहे उससे कोई सलाह
भी मांगे लेकिन फिर भी व उन्हें अपनी सलाह देता रहता था वह बहुत ही बातूनी शिष्य था और आश्रम के दूसरे सभी बच्चों में बहुत प्रसिद्ध भी था क्योंकि वह सबसे हंसी मजाक करता रहता था उनसे दिन भर बातें करता रहता था इसीलिए उसकी सबसे दोस्ती हो गई थी लेकिन जब आश्रम के गुरु उसकी राय ना लेकर दूसरे बच्चे की राय लेते थे तो यह बात उसे बड़ी खटकती थी उसे यह लगता था कि वह उस दूसरे बच्चे से ज्यादा बुद्धिमान है लेकिन गुरुजी फिर भी उस कम बोलने वाले शिष्य की तरफदारी करते हैं ऐसा
नहीं था कि गुरुजी को बातूनी शिष्य के स्वभाव के बारे में पता नहीं था लेकिन गुरुजी उसे अपने तरीके से सीख देना चाहते थे ताकि उसकी ज्यादा बोलने की आदत दिखावा करने की आदत दूसरों में कमियां निकालने की आदत हमेशा हमेशा के लिए खत्म हो जाए और वह मौन रहकर ध्यान की गहराइयों को समझे असल में हर सच्चे गुरु की यही इच्छा होती है वह किसी ना किसी तरीके से उस बातूनी शिष्य को यह एहसास कराना चाहते थे कि चुप रहने से ही वह असीम सत्य को जान सकता है उस विराट का एहसास चुप होकर
ही किया जा सकता है एक दिन गुरुजी को एक तरीका सूझा उन्होंने आश्रम के सभी बच्चों को अपने पास बुलाया और कहा कि मैं तुम सभी को दोदो हिस्सों में बांटकर अलग-अलग गांवों में भिक्षा मांगने के ले फेज रहा और जो भी दो बच्चे सबसे ज्यादा भिक्षा मांग कर लाएंगे उन दोनों को आश्रम की सभी जिम्मेदारियां निभाने का मौका दिया जाएगा अपनी बात को जारी रखते हुए गुरुजी ने बताया कि भिक्षा मांगने से हमारा अहंकार भी खत्म होता है इसीलिए हर शिष्य पूरे मन से मांगी कोई भी इस काम को सिर्फ दिखावा करने के लिए
ना करें वरना वह अपने जीवन का बहुत बड़ा ज्ञान पाने का मौका खो देगा आश्रम के गुरुजी ने जानबूझकर बातूनी शिष्य और चुप रहने वाले शिष्य की जोड़ी बना दिया बातूनी शिष्य के मन में सिर्फ एक ही बात चल रही थी कि इस बार उसे मौका मिला है और इस बार वह गुरुजी को दिखा देगा कि वह चुप रहने वाले शिष्य से कितना ज्यादा बेहतर है दोनों शिष्यों ने आपस में अपनी सहमति से निर्णय लिया कि दो गांव के अलग-अलग जगह से भिक्षा मांगना शुरू करेंगे ताकि भिक्षा मांगने का काम जल्दी खत्म किया जा सके
चुप रहने वाला शिष्य हर द्वार पर जाकर अपने हाथ जोड़कर अपना भिक्षा का पात्र उनके सामने कर देता उसके चेहरे पर एक सादगी और उसकी आंखों में एक एकांत होता था जिससे भिक्षा देने वाले उसे भिक्षा देकर अपने आप संतुष्ट समझते थे वहीं पर दूसरा बातूनी शिष्य हर द्वार पर जाकर उनको कुछ ना कुछ ज्ञान देने लगता था जिसकी वजह से ज्यादातर लोग उसे बिना भिक्षा दिए ही लौटा देते थे पूरे गांव में भिक्षा मांगकर जब दोनों गांव के बीच में मिले तो बातूनी शिष्य ने देखा कि चुप रहने वाले शिष्य के पास उससे दोगुनी
भिक्षा थी यह देखकर उसे मन ही मन में बहुत ठेस पहुंचा लेकिन जब वह दोनों भिक्षा का सामान लेकर आश्रम की तरफ जा रहे थे तब बातूनी शिष्य को एक चालाकी सूझी उसने चुप रहने वाले शिष्य से कहा कि हमें अपनी भिक्षा एक ही थैले में डाल लेना चाहिए गुरुजी ने हम दोनों को एक साथ लाने के लिए कहा था चुप रहने वाले शिष्य ने बिना कुछ बोले अपनी सारी भिक्षा उसके थैले में डाल दी बातूनी शिष्य मन ही मन में बहुत खुश हो रहा था कि अब गुरु को यह पता नहीं चलेगा कि ज्यादा
भिक्षा हम में से किसने मांगी है उसे लग रहा था कि गुरुजी मुझे इससे ज्यादा बेहतर समझेंगे इसीलिए उसने यह तरकीब लगाया सभी शिष्यों के आने के बाद संध्या के समय जब सभी की भिक्षा तो ली गई तो इन दोनों शिशु की भिक्षा सबसे ज्यादा निकली गुरुजी ने इन दोनों का अभिवादन करते हुए आश्रम के सभी बच्चों के सामने उनकी पीठ थपथपाते हुए उन्हें मुबारकबाद दी और कहा कि मैं आश्रम का कार्यभार तुम दोनों को नहीं सौंप सकता है इससे आपसी मतभेद होने का खतरा है इसीलिए तुम दोनों में से जो ज्यादा भिक्षा लेकर आया
है आश्रम की जिम्मेदारी उसे ही सौंपी जाएगी जब उन्होंने दोनों शिष्यों से पूछा कि तुम में से ज्यादा भिक्षा मांगकर लाया था तो बातूनी शिष्य ने कहा कि गुरु जी में इससे दुगनी भिा मांग कर लाया था लेकिन मुझसे गलती हो गई कि मैंने वह दोनों भिक्षा एक ही थैले में डाल ली मुझे नहीं पता था कि आप ऐसा निर्णय लेने वाले हैं वरना तो मैं अपनी भिक्षा का थैला अलग ही रखता इस पर गुरु ने चुप रहने वाले शिष्य से पूछा कि क्या तुम इसकी बात से सहमत हो क्या तुम इससे कम भिक्षा लेकर
आए थे यह सुनकर चुप रहने वाले शिष्य ने कहा कि गुरु जी मेरे पास ऐसा कोई भी साधन नहीं है जिससे मैं यह साबित कर पाऊ कि मैं इससे ज्यादा भिक्षा ले आया था असल में यह उल्टा बोल रहा है दुगनी भिक्षा में लेकर आया था यह मुझसे आधी भिक्षा लेकर आया था और इसीलिए ही मुझसे भिक्षा एक थैले में डालने की बात कहां था आश्रम से कुछ दूरी पर एक पहाड़ी थी जिसके पीछे सूरज अभी-अभी संध्या के समय ढल रहा था गुरुजी को तो पता था कि सच कौन बोल रहा है लेकिन बाकी बच्चों
के सामने सच साबित करने के लिए उन्होंने उन दोनों से एक सवाल पूछा कि पीछे पहाड़ी पर तुम्हें क्या दिखाई दे रहा है यह सुनकर वह चालक शि झट से बोल पड़ा कि गुरुजी पहाड़ी के पीछे सूरज अपना रंग बिखेर रहा है आसमान में लालिमा छाई हुई है यह बहुत ही सुंदर दृश्य है वह तो और भी बहुत कुछ कहना चाहता था लेकिन गुरुजी ने उसे चुप करते हुए दूसरे शिष्य से जवाब जानने के लिए प्रयास किया जब उसकी तरफ देखा तो उसकी आंखों में आंसू भरे हुए थे श्रद्धा भक्ति और प्रेम से उसकी आंखें
भर आई थी गुरुजी को उससे पूछने की जरूरत ही नहीं पड़ी गुरुजी ने सभी बच्चों को संबोधित करते हुए कहा कि मैंने सवाल किया था कि पहाड़ी के पीछे तुम्हें क्या दिखाई दे रहा है ज्यादातर लोगों को यही दिखाई देगा कि एक बहुत सुंदर दृश्य है लेकिन मजे की बात यह है कि सुंदरता बोलकर ही नहीं बताई जा सकती उसे महसूस भी किया जा सकता है और सामने वाला सुंदरता को आपकी आंखों में देख पाता है चुप रहने वाले शिष्य की तरफ इशारा करते हुए जी ने कहा कि असल में सुंदरता किसी बच्चे ने देखी
है दूसरे बच्चे ने सिर्फ सुंदरता की ऊपर ऊपर से व्याख्या की है लेकिन इसने वास्तविकता में उस सुंदरता को महसूस किया है अपने आप को ऊंचा दिखाने की सभी कोशिशें नाकाम होती देख वह चालाक शिष्य वहीं पर फूट फूट कर रोने लगा उसको चुप कराते हुए गुरुजी ने कहा कि बेटा मुझे पहले से पता था कि तुम झूठ बोल रहे हो लेकिन मैं तुम्हें उस झूठ का एहसास कराना चाहता था सभी बच्चों को संबोधित करते हुए गुरुजी ने बताया कि शब्द एक जाल की तरह होते हैं हमारे ज्यादा बोलने की वजह से बहुत सारी सम
स पैदा होती है जब कोई आदमी एक बात को बढ़ा चढ़ा कर बोल देता है तो उसे साबित करने के लिए शब्दों के जाल में फंसता चला जाता है और इसी वजह से अंतर्मुखी होने की बजाय वह बहिर्मुखी होता चला जाता है वहीं पर जिस भी व्यक्ति को अपनी अंतर यात्रा करनी होती है अपने आप को पहचाना चाहता है उसे सबसे पहले चुप रहना सीखना होता है जरूरत से ज्यादा बोलना या फिर हर वक्त बोलते ही रहना यह सब हमारी अंतर यात्रा में बाधा बन जाती है जब आप चुप रहने का अभ्यास करते हैं तो
आप अपने साथ वक्त बिताने लगते हैं जिससे कि आप अपने एकांत को जान पाते हैं एक बार अगर मन में एकांत स्थापित हो चाहे तो आपकी आंखों में आपके चेहरे पर वह सादगी वह एकांत व स्पष्टता की झलक सब कुछ सामने नजर आने लगता है कुछ साबित करने को नहीं रह जाता कुछ बताने को नहीं रह जाता सब कुछ आंखों में देखा जा सकता है चुप रहने वाले शिष्य की तरफ इशारा करते हुए गुरु जी ने कहा कि अभी जो दृश्य है इस बच्चे ने दे वह ज्यादा बोलने वाला आदमी कभी नहीं देख पाएगा वह
अपनी बुद्धि से तर्क वितर्क करता रहेगा कि उसे क्या-क्या दिखाई दे रहा है खलो उसमें से वह महसूस कुछ भी नहीं कर पाएगा उसे दिखाई दे जाएंगे तो सिर्फ पहाड़ सूरज या फिर उसकी लालिमा लेकिन उस सुंदरता को उस विराट को उस अद्वैत को वह कभी नहीं देख पाएगा अगर चुप रहने की कला सीखनी है तो तुम्हें सबसे पहले एक बात ध्यान रखनी होगी कि तुम्हें किसी को भी बिना वजह खुश करने की कोशिश नहीं करनी है ज्यादातर लोग इसी वजह से ज्यादा बोलते हैं क्योंकि वह दूसरों को खुश करना चाहते हैं अपने आप को
साबित करना चाहते हैं उस साबित करने के चक्कर में वह शब्दों के जाल में फंसते ही चले जाते हैं और धीरे-धीरे वहीं उनकी आदत बन जाती है अगर कोई व्यक्ति दूसरों को खुश करना चाहता है तो वह कितने लोगों को खुश कर पाएगा उसकी यह भूख बढ़ती ही जाएगी और वही संसार में सभी को कभी भी खुश नहीं कर पाएगा इसलिए यह समझने की बात होती है कि बहिर्मुखी होने की बजाय हम अंतर्मुखी होकर अपने आप को समझ सकते हैं अपनी बातों को खत्म करते हुए गुरुजी ने अपना आखिरी संदेश दिया उन्होंने बताया कि अगर
कोई व्यक्ति ज्यादा समय तक चुप नहीं रह सकता तो उसे थोड़े समय के लिए अभ्यास करना चाहिए निश्चित संकल्प लेकर किसी वृद्ध की तरह दिन में कुछ समय या फिर हफ्ते में कुछ समय या फिर एक दिन चुप रहने का अभ्यास जरूर किया जाना चाहिए इससे हमारी चुप रहने की आदत धीरे-धीरे खुद [संगीत] बखुदा चल जाता है उसके बाद हमें कोशिश नहीं करनी पड़ती बल्कि हमारा मन आनंद की तरफ अपने आप बढ़ता चला जाता है चुप रहने की कला सीखने के बाद आपकी बुद्धिमानी और आपकी स्पष्टता दोनों में बहुत ज्यादा फायदा होगा वास्तविकता में जिसे
दर्शन कहते हैं वह मौन रहकर ही किया जा सकता है इसके बाद बच्चों ने कुछ समय चुप रहने का संकल्प लिया और सभी बच्चे रात्रि का भोजन करने के लिए एक साथ भोजन कक्ष में पहुंच गए तो दोस्तों मेरा मोटी यही समझाने का था कि कैसे हम हर चीज को सिर्फ देखते हैं लेकिन अगर उसे महसूस करना सीख गए तो जिंदगी जीने में बहुत मजा आएगा तो बस अगर आपको कुछ भी सीखने को मिला हो तो वीडियो को लाइक कर दीजिए और चैनल को सब्सक्राइब कर दीजिए दोस्तों आज मैं आपसे एक सवाल पूछना चाहता हूं
क्या इस दुनिया में हमारे लिए ज्यादा बोलना अच्छी बात है कहीं ना कहीं ज्यादातर लोग इसी वजह से ज्यादा बोलते हैं क्योंकि वह दूसरों के सामने अपने आप को अच्छा दिखाना चाहते हैं दूसरों के सामने खुद को साबित करना चाहते हैं तो इस सवाल का जवाब हम एक कहानी के माध्यम से समझेंगे एक समय की बात है जब एक आश्रम में बौद्ध गुरु और उनके शिष्य रहते थे उन सभी बच्चों में एक बच्चा थोड़ा अलग था आश्रम के सभी बच्चे जब दूसरे कामों में लगे होते थे तो वह बच्चा एक कोने में बैठकर चुपचाप अपने
आप में खोया रहता था वह अक्सर किसी से ज्यादा बात नहीं करता था आश्रम की सभी जिम्मेदारियां पूरी करने के बाद जब सभी बच्चे पूरे दिन की घटनाओं के बारे में बातें करने लगते हैं तब वह शांत रहने वाला बच्चा एक बरगद के पेड़ के नीचे बैठकर ध्यान करने लगता सभी बच्चों को देखकर आश्चर्य होता था क्योंकि उसका कोई दोस्त नहीं था वह अक्सर आश्रम में अकेला ही घूमता रहता था यह देखकर उसके गुरु को बड़ी खुशी होती थी उसे लगता था कि कोई तो है आश्रम में जो मौन यानी कि चुप रहने की ताकत
को समझना है उसके महत्व को समझता है आश्रम के बारे में जब भी कोई जरूरी निर्णय लेना होता था तो उसकी राय जरूर लिया करते थे लेकिन यही बात गुरुजी के एक दूसरे शिष्य को बड़ी खटकती थी क्योंकि वह गुरु जी का प्रिय शिष्य बनना चाहता था इसीलिए वह गुरुजी के सामने दूसरे बच्चों के कामों में कुछ ना कुछ कमियां निकालता रहता था जिसकी वजह से गुरुजी उसे महान समझने लग जाए अक्सर वह अपनी जिम्मेदारियां पूरी तरह से निभाने का दिखावा भी करता था चाहे उससे कोई सलाह भी मांगे लेकिन फिर भी वह उन्हें अपनी
सलाह देता रहता था वह बहुत ही बातूनी शिष्य था और आश्रम के दूसरे सभी बच्चों में बहुत प्रसिद्ध भी था क्योंकि वह सबसे हंसी मजाक करता रहता था उनसे दिन भर बातें करता रहता था इसीलिए उसकी सबसे दोस्ती हो गई थी लेकिन जब आश्रम के गुरु उसकी राय ना लेकर दूसरे बच्चे की राय लेते थे तो यह बात उसे बड़ी खटकती थी उसे यह लगता था कि वह उस दूसरे बच्चे से ज्यादा बुद्धिमान है लेकिन गुरु जी फिर भी उस कम बोलने वाले शिष्य की तरफदारी करते हैं ऐसा नहीं था कि गुरु जी को बातूनी
शिष्य के स्वभाव के बारे में पता नहीं था लेकिन गुरुजी उसे अपने तरीके से सीख देना चाहते थे ताकि उसकी ज्यादा बोलने की आदत दिखावा करने की आदत दूसरों में कमियां निकालने की आदत हमेशा हमेशा के लिए खत्म हो जाए और वह मौन रहकर ध्यान की गहराइयों को समझे असल में हर सच्चे गुरु की यही इच्छा होती है वह किसी ना किसी तरीके से उस बातूनी शिष्य को यह एहसास कराना चाहते थे कि चुप रहने से ही वह असीम सत्य को जान सकता है उस विराट का एहसास चुप होकर ही किया जा सकता है एक
दिन गुरुजी को एक तरीका सूझा उन्होंने आश्रम के सभी बच्चों को अपने पास बुलाया और कहा कि मैं तुम सभी को दोदो हिस्सों में बांटकर अलग-अलग गांवों में भिक्षा मांगने के लिए फेज रहा और जो भी दो बच्चे सबसे ज्यादा क् मांग कर लाएंगे उन दोनों को आश्रम की सभी जिम्मेदारियां निभाने का मौका दिया जाएगा अपनी बात को जारी रखते हुए गुरुजी ने बताया कि भिक्षा मांगने से हमारा अहंकार भी खत्म होता है इसीलिए हर शिष्य पूरे मन से भिक्षा मांगी कोई भी इस काम को सिर्फ दिखावा करने के लिए ना करें वरना वह अपने
जीवन का बहुत बड़ा ज्ञान पाने का मौका खो देगा आश्रम के गुरुजी ने जानबूझकर बातूनी शिष्य और चुप रहने वाले की जोड़ी बना दिया बातूनी शिष्य के मन में सिर्फ एक ही बात चल रही थी कि इस बार उसे मौका मिला है और इस बार वह गुरुजी को दिखा देगा कि वह चुप रहने वाले शिष्य से कितना ज्यादा बेहतर है दोनों शिष्यों ने आपस में अपनी सहमति से निर्णय लिया कि दोनों गांव के अलग-अलग जगह से भिक्षा मांगना शुरू करेंगे ताकि भिक्षा मांगने का काम जल्दी खत्म किया जा सके चुप रहने वाला शिष्य हर द्वार
पर जाकर अपने हाथ जोड़कर अपना भिक्षा का पात्र उनके सामने कर देता उसके चेहरे पर एक सादगी और उसकी आंखों में एक एकांत होता था जिससे भिक्षा देने वाले उसे भिक्षा देकर अपने आप संतुष्ट समझते थे वहीं पर दूसरा बातूनी शिष्य हर द्वार पर जाकर उनको कुछ ना कुछ ञान देने लगता था जिसकी वजह से ज्यादातर लोग उसे बिना भिक्षा दिए ही लौटा देते थे पूरे गांव में भिक्षा मांगकर जब दोनों गांव के बीच में मिले तो बातूनी शिष्य ने देखा कि चुप रहने वाले शिष्य के पास उससे दोगुनी भिक्षा थी यह देखकर उसे मन
ही मन में बहुत ठेस पहुंचा लेकिन जब वह दोनों भिक्षा का सामान लेकर आश्रम की तरफ जा रहे थे तब बातूनी शिष्य को एक चालाकी सूझी उसने चुप रहने वाले शिष्य से कहा कि हमें अपनी भिक्षा एक ही थैले में डाल लेना चाहिए गुरुजी ने हम दोनों को एक साथ भिक्षा लाने के लिए कहा था चुप रहने वाले शिष्य ने बिना कुछ बोले अपनी सारी भिक्षा उसके थैले में डाल दी बातूनी शिष्य मन ही मन में बहुत खुश हो रहा था कि अब गुरु को यह पता नहीं चलेगा कि ज्यादा भिक्षा हम में से किसने
मांगी है उसे लग रहा था कि गुरुजी मुझे इससे ज्यादा बेहतर समझेंगे इसीलिए उसने यह तरकीब लगाया सभी शिष्यों के आने के बाद संध्या के समय जब सभी की भिक्षा तो ली गई तो इन दोनों शिशु की भिक्षा सबसे ज्यादा निकली गुरुजी ने इन दोनों का अभिवादन करते हुए आश्रम के सभी बच्चों के सामने उनकी पीठ थपथपाते हुए उन्हें मुबारकबाद दी और कहा कि मैं आश्रम का कार्यभार तुम दोनों को नहीं सौंप सकता है इससे आपसी मतभेद होने का खतरा है इसीलिए तुम दोनों में से जो ज्यादा भिक्षा लेकर आया है आश्रम की जिम्मेदारी उसे
ही सौंपी जाएगी जब उन्होंने दोनों शिष्यों से पूछा कि तुम में से ज्यादा भिक्षा मांगकर लाया था तो बातूनी शिष्य ने कहा कि गुरु जी मैं इससे दुगनी भिक्षा मांग कर लाया था लेकिन मुझसे गलती हो गई कि मैंने वह दोनों भिक्षा एक ही थैले में डाल ली मुझे नहीं पता था कि आप ऐसा निर्णय लेने वाले हैं वरना तो मैं अपनी भिक्षा का थैला अलग ही रखता इस पर गुरु ने चुप रहने वाले शिष्य से से पूछा कि क्या तुम इसकी बात से सहमत हो क्या तुम इससे कम भिक्षा लेकर आए थे यह सुनकर
चुप रहने वाले शिष्य ने कहा कि गुरु जी मेरे पास ऐसा कोई भी साधन नहीं है जिससे मैं यह साबित कर पाऊ कि मैं इससे ज्यादा भिक्षा लेकर आया था असल में यह उल्टा बोल रहा है दुगनी भिक्षा में लेकर आया था यह मुझसे आधी भिक्षा लेकर आया था और इसीलिए ही मुझसे भिक्षा एक थैले में डालने की बात कहां था आश्रम से कुछ दूरी पर एक पहाड़ी थी जिसके पीछे सूरज अभी-अभी संध्या के समय ढल रहा था गुरुजी को तो पता था कि सच कौन बोल रहा है लेकिन बाकी बच्चों के सामने सच साबित
करने के लिए उन्होंने उन दोनों से एक सवाल पूछा कि पीछे पहाड़ी पर तुम्हें क्या दिखाई दे रहा है यह सुनकर वह चालक शिष्य झट से बोल पड़ा कि गुरुजी पहाड़ी के पीछे सूरज अपना रंग बिखेर रहा है आसमान में लालिमा छाई हुई है यह बहुत ही सुंदर दृश्य है वह तो और भी बहुत कुछ कहना चाहता था लेकिन गुरु जी ने उसे चुप करते हुए दूसरे शिष्य से जवाब जानने के लिए प्रयास किया जब उसकी तरफ देखा तो उसकी आंखों में आंसू भरे हुए थे श्रद्धा भक्ति और प्रेम से उसकी आंखें भर आई थी
गुरुजी को उससे पूछने की जरूरत ही नहीं पड़ी गुरुजी ने सभी बच्चों को संबोधित करते हुए कहा कि मैंने सवाल किया था कि पहाड़ी के पीछे तुम्हें क्या दिखाई दे रहा है ज्यादातर लोगों को यही दिखाई देगा कि एक बहुत सुंदर दृश्य है लेकिन मजे की बात यह है कि सुंदरता बोलकर ही नहीं बताई जा सकती उसे महसूस भी किया जा सकता है और सामने वाला सुंदरता को आपकी आंखों में देख पाता है चुप रहने वाले शिष्य की तरफ इशारा करते हुए जी ने कहा कि असल में सुंदरता किसी बच्चे ने देखी है दूसरे बच्चे
ने सिर्फ सुंदरता की ऊपर ऊपर से व्याख्या की है लेकिन इसने वास्तविकता में उस सुंदरता को महसूस किया है अपने आप को ऊंचा दिखाने की सभी कोशिशें नाकाम होती देख वह चालाक शिष्य वहीं पर फूट फूट कर रोने लगा उसको चुप कराते हुए गुरुजी ने कहा कि बेटा मुझे पहले से पता था कि तुम झूठ बोल रहे हो लेकिन मैं तुम्हें उस झूठ का एहसास कराना चाहता था सभी बच्चों को संबोधित करते हुए गुरु जी ने बताया कि शब्द एक जाल की तरह होते हैं हमारे ज्यादा बोलने की वजह से बहुत सारी समस्याएं पैदा होती
हैं जब कोई आदमी एक बात को बढ़ा चढ़ा कर बोल देता है तो उसे साबित करने के लिए शब्दों के जाल में फंसता चला जाता है और इसी वजह से अंतर्मुखी होने की बजाय वह बहिर्मुखी होता चला जाता है वहीं पर जिस भी व्यक्ति को अपनी अंतर यात्रा करनी होती है अपने आप को पहचाना चाहता है उसे सबसे पहले चुप रहना सीखना होता है जरूरत से ज्यादा बोलना या फिर हर वक्त बोलते ही रहना यह सब हमारी अंतर यात्रा में बाधा बन जाती है जब आप चुप रहने का अभ्यास करते हैं तो आप अपने साथ
वक्त बिताने लगते हैं जिससे कि आप अपने एकांत को जान पाते हैं एक बार अगर मन में एकांत स्थापित हो चाहे तो आपकी आंखों में आपके चेहरे पर वह सादगी वह एकांत व स्पष्ट स्पष्टता की झलक सब कुछ सामने नजर आने लगता है कुछ साबित करने को नहीं रह जाता कुछ बताने को नहीं रह जाता सब कुछ आंखों में देखा जा सकता है चुप रहने वाले शिष्य की तरफ इशारा करते हुए गुरुजी ने कहा कि अभी जो दृश्य है इस बच्चे ने देखा वह ज्यादा बोलने वाला आदमी कभी नहीं देख पाएगा वह अपनी बुद्धि से
तर्क वितर्क करता रहेगा कि उसे क्या-क्या दिखाई दे रहा है खलो उसमें से वह महसूस कुछ भी नहीं कर पाएगा उसे दिखाई दे जाएंगे तो सिर्फ पहाड़ सूरज या फिर उसकी लालिमा लेकिन उस सुंदरता को उस विराट को उस अद्वैत को वह कभी नहीं देख पाएगा अगर चुप रहने की कला सीखनी है तो तुम्हें सबसे पहले एक बात ध्यान रखनी होगी कि तुम्हें किसी को भी बिना वजह खुश करने की कोशिश नहीं करनी है ज्यादातर लोग इसी वजह से ज्यादा बोलते हैं क्योंकि वह दूसरों को खुश करना चाहते हैं अपने आप को साबित करना चाहते
हैं उस साबित करने के चक्कर में वह शब्दों के जाल में फसते ही चले जाते हैं और धीरे-धीरे वहीं उनकी आदत बन जाती है अगर कोई व्यक्ति दूसरों को खुश करना चाहता है तो वह कितने लोगों को खुश कर पाएगा उसकी यह भूख बढ़ती ही जाएगी और वही संसार में सभी को कभी भी खुश नहीं कर पाएगा इसलिए यह समझने की बात होती है कि बहिर्मुखी होने की बजाय हम अंतर्मुखी होकर अपने आप को समझ सकते हैं अपनी बातों को खत्म करते हुए गुरुजी ने अपना आखिरी संदेश दिया उन्होंने बताया कि अगर कोई व्यक्ति ज्यादा
समय तक चुप नहीं रह सकता तो उसे थोड़े समय के लिए अभ्यास करना चाहिए निश्चित संकल्प लेकर किसी वृद्ध की तरह दिन में कुछ समय या फिर हफ्ते में कुछ समय या फिर एक दिन चुप रहने का अभ्यास जरूर किया जाना चाहिए इससे हमारी चुप रहने की आदत धीरे-धीरे खुद ब खुद बढ़ने लगती है क्योंकि एक बार जब हम चुप रहने लगते हैं तो हमें चुप रहने का आनंद पता चल जाता है उसके बाद हमें कोशिश नहीं करनी पड़ती बल्कि हमारा मन आनंद की तरफ अपने आप बढ़ता चला जाता है चुप रहने की कला सीखने
के बाद आपकी बुद्धिमानी और आपकी स्पष्टता दोनों में बहुत ज्यादा फायदा होगा वास्तविकता में जिसे दर्शन कहते हैं वह मौन रहकर ही किया जा सकता है इसके बाद सभी बच्चों ने कुछ समय चुप रहने का संकल्प लिया और सभी बच्चे रात्रि का भोजन करने के लिए एक साथ भोजन कक्ष में पहुंच गए तो दोस्तों मेरा मोट यही समझाने का था कि कैसे हम हर चीज को देखते हैं लेकिन अगर उसे महसूस करना सीख गए तो जिंदगी जीने में बहुत मजा आएगा तो बस अगर आपको कुछ भी सीखने को मिला हो तो वीडियो को लाइक कर
दीजिए और चैनल को सब्सक्राइब कर दीजिए दोस्तों आज मैं आपसे एक सवाल पूछना चाहता हूं क्या इस दुनिया में हमारे लिए ज्यादा बोलना अच्छी बात है कहीं ना कहीं ज्यादातर लोग इसी वजह से ज्यादा बोलते हैं क्योंकि वह दूसरों के सामने अपने आप को अच्छा दिखाना चाहते हैं दूसरों के सामने खुद को साबित करना चाहते हैं तो इस सवाल का जवाब हम एक कहानी के माध्यम से समझेंगे एक समय की बात है जब एक आश्रम में बौद्ध गुरु और उनके शिष्य रहते थे उन सभी बच्चों में एक बच्चा थोड़ा अलग था आश्रम के सभी बच्चे
जब दूसरे कामों में लगे होते थे तो वह बच्चा एक कोने में बैठकर चुपचाप अपने आप में खोया रहता था वह अक्सर किसी से ज्यादा बात नहीं करता था आश्रम की सभी जिम्मेदारियां पूरी करने के बाद जब सभी बच्चे पूरे दिन की घटनाओं के बारे में बातें करने लगते हैं तब वह शांत रहने वाला बच्चा एक बरगद के पेड़ के नीचे बैठकर ध्यान करने लगता सभी बच्चों को देखकर आश्चर्य होता था क्योंकि उसका कोई दोस्त नहीं था वह अक्सर आश्रम में अकेला ही घूमता रहता था यह देखकर उसके गुरु को बड़ी खुशी होती थी उसे
लगता था कि कोई तो है आश्रम में जो मौन यानी कि चुप रहने की ताकत को समझना है उसके महत्व को समझता है आश्रम के बारे में जब भी कोई जरूरी निर्णय लेना होता था तो उसकी राय जरूर लिया करते थे लेकिन यही बात गुरु जी के एक दूसरे शिष्य को बड़ी खटकती थी क्योंकि वह गुरु जी का प्रिय शिष्य बनना चाहता था इसीलिए वह गुरुजी के सामने दूसरे बच्चों के कामों में कुछ ना कुछ कमियां निकालता रहता था जिसकी वजह से गुरुजी उसे महान समझने लग जाए अक्सर वह अपनी जिम्मेदारियां पूरी तरह से निभाने
का दिखावा भी करता था चाहे उससे कोई सलाह भी मांगे लेकिन फिर भी व उन्हें अपनी सलाह देता रहता था वह बहुत ही बातूनी शिष्य था और आश्रम के दूसरे सभी बच्चों में बहुत प्रसिद्ध भी था क्योंकि वह सबसे हंसी मजाक करता रहता था उनसे दिन भर बातें करता रहता था इसीलिए उसकी सबसे दोस्ती हो गई थी लेकिन जब आश्रम के गुरु उसकी राय ना लेकर दूसरे बच्चे की राय लेते थे तो यह बात उसे बड़ी खटकती थी उसे यह लगता था कि वह उस दूसरे बच्चे से ज्यादा बुद्धिमान है लेकिन गुरुजी फिर भी उस
कम बोलने वाले शिष्य की तरफदारी करते हैं ऐसा नहीं था कि गुरुजी को बातूनी शिष्य के स्वभाव के बारे में पता नहीं था लेकिन गुरुजी उसे अपने तरीके से सीख देना चाहते थे ताकि उसकी ज्यादा बोलने की आदत दिखावा करने की आदत दूसरों में कमियां निकालने की आदत हमेशा हमेशा के लिए खत्म हो जाए और वह मौन रहकर ध्यान की गहराइयों को समझे असल में हर सच्चे गुरु की यही इच्छा होती है वह किसी ना किसी तरीके से उस बातूनी शिष्य को यह एहसास कराना चाहते थे कि चुप रहने से ही वह असीम सत्य को
जान सकता है उस विराट का एहसास चुप होकर ही किया जा सकता है एक दिन गुरुजी को एक तरीका सूझा उन्होंने आश्रम के सभी बच्चों को अपने पास बुलाया और कहा कि मैं तुम सभी को दोदो हिस्सों में बांटकर अलग-अलग गांवों में भिक्षा मांगने के लिए फेज रहा और जो भी दो बच्चे सबसे ज्यादा भिक्षा मांग कर लाएंगे उन दोनों को आश्रम की सभी जिम्मेदारियां निभाने का मौका दिया जाएगा अपनी बात को जारी रखते हुए गुरुजी ने बताया कि भिक्षा मांगने से हमारा अहंकार भी खत्म होता है इसीलिए हर शिष्य पूरे मन से भिक्षा मांगी
कोई भी इस काम को सिर्फ दिखावा करने के लिए ना करें वरना वह अपने जीवन का बहुत बड़ा ज्ञान पाने का मौका खो देगा आश्रम के गुरुजी ने जानबूझकर बातूनी शिष्य और चुप रहने वाले शिष्य की जोड़ी बना दिया बानी शिष्य के मन में सिर्फ एक ही बात चल रही थी कि इस बार उसे मौका मिला है और इस बार वह गुरुजी को दिखा देगा कि वह चुप रहने वाले शिष्य से कितना ज्यादा बेहतर है दोनों शिष्यों ने आपस में अपनी सहमति से निर्णय लिया कि दोनों गांव के अलग-अलग जगह से भिक्षा मांगना शुरू करेंगे
ताकि भिक्षा मांगने का काम जल्दी खत्म किया जा सके चुप रहने वाला शिष्य हर द्वार पर जाकर अपने हाथ जोड़कर अपना भिक्षा का पात्र उनके सामने कर देता उसके चेहरे पर एक सादगी और उसकी आंखों में एक एकांत होता था जिससे भिक्षा देने वाले उसे भिक्षा देकर अपने आप संतुष्ट समझते थे वहीं पर दूसरा बातूनी शिष्य हर द्वार पर जाकर उनको कुछ ना कुछ ध्यान देने लगता था जिसकी वजह से ज्यादातर लोग उसे बिना भिक्षा दिए ही लौटा देते थे पूरे गांव में भिक्षा मांगकर जब दोनों गांव के बीच में मिले तो बातूनी शिष्य ने
देखा कि चुप रहने वाले शिष्य के पास उससे दोगनी भिक्षा थी यह देखकर उसे मन ही मन में बहुत ठेस पहुंचा लेकिन जब वह दोनों भिक्षा का सामान लेकर आश्रम की तरफ जा रहे थे तब बातूनी शिष्य को एक चालाकी सूझी उसने चुप रहने वाले शिष्य से कहा कि हमें अपनी भिक्षा एक ही थैले में डाल लेना चाहिए गुरुजी ने हम दोनों को एक साथ भिक्षा लाने के लिए कहा था चुप रहने वाले शिष्य ने बिना कुछ बोले अपनी सारी भिक्षा उसके थैले में डाल दी बातूनी शिष्य मन ही मन में बहुत खुश हो रहा
था कि अब गुरु को यह पता नहीं चलेगा कि ज्यादा भिक्षा हम में से किसने मांगी है उसे लग रहा था कि गुरु जी मुझे इससे ज्यादा बेहतर समझेंगे इसीलिए उसने यह तरकीब लगाया सभी शिष्यों के आने के बाद संध्या के समय जब सभी की भिक्षा तो ली गई तो इन दोनों शिशु की भिक्षा सबसे ज्यादा निकली गुरुजी ने इन दोनों का अभिवादन करते हुए आश्रम के सभी बच्चों के सामने उनकी पीठ थपथपाते हुए उन्हें मुबारकबाद दी और कहा कि मैं आश्रम का कार्यभार तुम दोनों को नहीं सौंप सकता है इससे आपसी मतभेद होने का
खतरा है इसीलिए तुम दोनों में से जो ज्यादा भिक्षा लेकर आया है आश्रम की जिम्मेदारी उसे ही सौंपी जाएगी जब उन्होंने दोनों शिष्यों से पूछा कि तुम में से ज्यादा भिक्षा मांगकर लाया था तो बात शिष्य ने कहा कि गुरु जी मैं इससे दुगनी भिक्षा मांग कर लाया था लेकिन मुझसे गलती हो गई कि मैंने वह दोनों भिक्षा एक ही थैले में डाल ली मुझे नहीं पता था कि आप ऐसा निर्णय लेने वाले हैं वरना तो मैं अपनी भिक्षा का थैला अलग ही रखता इस पर गुरु ने चुप रहने वाले शिष्य से पूछा कि क्या
तुम इसकी बात से सहमत हो क्या तुम इससे कम भिक्षा लेकर आए थे यह सुनकर चुप रहने वाले शिष्य ने कहा कि गुरु जी मेरे पास ऐसा कोई भी साधन नहीं है जिससे मैं यह साबित कर पाओ कि मैं इससे ज्यादा भिक्षा लेकर आया था असल में यह उल्टा बोल रहा है दुगनी भिक्षा में लेकर आया था यह मुझसे आधी भिक्षा लेकर आया था और इसीलिए ही मुझसे भिक्षा एक थैले में डालने की बात कहा था आश्रम से कुछ दूरी पर एक पहाड़ी थी जिसके पीछे सूरज अभी-अभी संध्या के समय ढल रहा था गुरुजी को
तो पता था कि सच कौन बोल रहा है लेकिन बाकी बच्चों के सामने सच साबित करने के लिए उन्होंने उन दोनों से एक सवाल पूछा कि पीछे पहाड़ी पर तुम्हें क्या दिखाई दे रहा है यह सुनकर वह चालक शिष्य झट से बोल पड़ा कि गुरुजी पहाड़ी के पीछे सूरज अपना रंग बिखेर रहा है आसमान में लालिमा छाई हुई है यह बहुत ही सुंदर दृश्य है वह तो और भी बहुत कुछ कहना चाहता था लेकिन गुरुजी ने उसे चुप करते हुए दूसरे शिष्य से जवाब जानने के लिए प्रयास किया जब उसकी तरफ देखा तो उसकी आंखों
में आंसू भरे हुए थे श्रद्धा भक्ति और प्रेम से उसकी आंखें भर आई थी गुरुजी को उससे पूछने की जरूरत ही नहीं पड़ी गुरुजी ने सभी बच्चों को संबोधित करते हुए कहा कि मैंने सवाल किया था कि पहाड़ी के पीछे तुम्हें क्या दिखाई दे रहा है ज्यादातर लोगों को यही दिखाई देगा कि एक बहुत सुंदर दृश्य है लेकिन मजे की बात यह है कि सुंदरता बोलकर ही नहीं बताई जा सकती उसे महसूस भी किया जा सकता है और सामने वाला सुंदरता को आपकी आंखों में देख पाता है चुप रहने वाले शिष्य की तरफ इशारा करते
हुए जी ने कहा कि असल में सुंदरता किसी बच्चे ने देखी है दूसरे बच्चे ने सिर्फ सुंदरता की ऊपर ऊपर से व्याख्या की है लेकिन इसने वास्तविकता में उस सुंदरता को महसूस किया है अपने आपको को ऊंचा दिखाने की सभी कोशिशें नाकाम होती देख वह चालाक शिष्य वहीं पर फूट फूट कर रोने लगा उसको चुप कराते हुए गुरुजी ने कहा कि बेटा मुझे पहले से पता था कि तुम झूठ बोल रहे हो लेकिन मैं तुम्हें उस झूठ का एहसास कराना चाहता था सभी बच्चों को संबोधित करते हुए गुरुजी ने बताया कि शब्द एक जाल की
तरह होते हैं हमारे ज्यादा बोलने की वजह से बहुत सारी समस्याएं पैदा होती हैं जब कोई आदमी एक बात को बढ़ा चढ़ा कर बोल देता है तो उसे साबित करने के लिए शब्दों के जाल में फंसता चला जाता है और इसी वजह से अंतर्मुखी होने की बजाय वह बहिर्मुखी होता चला जाता है वहीं पर जिस भी व्यक्ति को अपनी अंतर यात्रा करनी होती है अपने आप को पहचाना चाहता है उसे सबसे पहले चुप रहना सीखना होता है जरूरत से ज्यादा बोलना या फिर हर वक्त बोलते ही रहना यह सब हमारी अंतर यात्रा में बाधा बन
जाती है जब आप चुप रहने का अभ्यास करते हैं तो आप अपने साथ वक्त बिताने लगते हैं जिससे कि आप अपने एकांत को जान पाते हैं एक बार अगर मन में एकांत स्थापित हो चाहे तो आपकी आंखों में आपके चेहरे पर वह सादगी वह एकांत व स्पष्टता की झलक सब कुछ सामने नजर आने लगता है कुछ साबित करने को नहीं रह जाता कुछ बताने को नहीं रह जाता सब कुछ आंखों में देखा जा सकता है चुप रहने वाले शिष्य की तरफ इशारा करते हुए गुरुजी ने कहा कि अभी जो दृश्य है इस बच्चे ने देखा
वह ज्यादा बोलने वाला आदमी कभी नहीं देख पाएगा वह अपनी बुद्धि से तर्क वितर्क करता रहेगा कि उसे क्या-क्या दिखाई दे रहा है खलो उसमें से वह महसूस कुछ भी नहीं कर पाएगा उसे दिखाई दे जाएंगे तो सिर्फ पहाड़ सूरज या फिर उसकी लालिमा लेकिन उस सुंदरता को उस विराट को उस अद्वैत को वह कभी नहीं देख पाएगा अगर चुप रहने की कला सीखनी है तो तुम्हें सबसे पहले एक बात ध्यान रखनी होगी कि तुम्हें किसी को भी बिना वजह खुश करने की कोशिश नहीं करनी है ज्यादातर लोग इसी वजह से ज्यादा बोलते हैं क्योंकि
वह दूसरों को खुश करना चाहते हैं अपने आप को साबित करना चाहते हैं उस साबित करने के चक्कर में वह शब्दों के जाल में फंसते ही चले जाते हैं और धीरे-धीरे वहीं उनकी आदत बन जाती है अगर कोई व्यक्ति दूसरों को खुश करना चाहता है तो वह कितने लोगों को खुश कर पाएगा उसकी यह भूख बढ़ती ही जाएगी और वही संसार में सभी को कभी भी खुश नहीं कर पाएगा इसलिए यह समझने की बात होती है कि बहिर्मुखी होने की बजाय हम अंतर्मुखी होकर अपने आप को समझ सकते हैं अपनी बातों को खत्म करते हुए
गुरुजी ने अपना आखिरी संदेश दिया उन्होंने बताया कि अगर कोई व्यक्ति ज्यादा समय तक चुप नहीं रह सकता तो उसे थोड़े समय के लिए अभ्यास करना चाहिए निश्चित संकल्प लेकर किसी वृद्ध की तरह दिन में कुछ समय या फिर हफ्ते में कुछ समय या फिर एक दिन चुप रहने का अभ्यास जरूर कि किया जाना चाहिए इससे हमारी चुप रहने की आदत धीरे-धीरे खुद ब खुद बढ़ने लगती है क्योंकि एक बार जब हम चुप रहने लगते हैं तो हमें चुप रहने का आनंद पता चल जाता है उसके बाद हमें कोशिश नहीं करनी पड़ती बल्कि हमारा मन
आनंद की तरफ अपने आप बढ़ता चला जाता है चुप रहने की कला सीखने के बाद आपकी बुद्धिमानी और आपकी स्पष्टता दोनों में बहुत ज्यादा फायदा होगा वास्तविकता में जिसे दर्शन कहते हैं वह मौन रहकर ही किया जा सकता है इसके बाद सभी बच्चों ने कुछ समय चुप रहने का संकल्प लिया और सभी बच्चे रात्रि का भोजन करने के लिए एक साथ भोजन कक्ष में पहुंच गए तो दोस्तों मेरा मोट यही समझाने का था कि कैसे हम हर चीज को सिर्फ देखते हैं लेकिन अगर उसे महसूस करना सीख गए तो जिंदगी जीने में बहुत मजा आएगा
तो बस अगर आपको कुछ भी सीखने को मिला हो तो वीडियो को लाइक कर दीजिए और चैनल को सब्सक्राइब कर दीजिए दोस्तों आज मैं आपसे एक सवाल पूछना चाह क्या इस दुनिया में हमारे लिए ज्यादा बोलना अच्छी बात है कहीं ना कहीं ज्यादातर लोग इसी वजह से ज्यादा बोलते हैं क्योंकि वह दूसरों के सामने अपने आप को अच्छा दिखाना चाहते हैं दूसरों के सामने खुद को साबित करना चाहते हैं तो इस सवाल का जवाब हम एक कहानी के माध्यम से समझेंगे एक समय की बात है जब एक आश्रम में बौद्ध गुरु और उनके शिष्य रहते
थे उन सभी बच्चों में एक बच्चा थोड़ा अलग था आश्रम के सभी बच्चे जब दूसरे कामों में लगे होते थे तो वह बच्चा एक कोने में बैठकर चुपचाप अपने आप में खोया रहता था वह अक्सर किसी से ज्यादा बात नहीं करता था आश्रम की सभी जिम्मेदारियां पूरी करने के बाद जब सभी बच्चे पूरे दिन की घटनाओं के बारे में बातें करने लगते हैं तब वह शांत रहने वाला बच्चा एक बरगद के पेड़ के नीचे बैठकर ध्यान करने लगता सभी बच्चों को देखकर आश्चर्य होता था क्योंकि उसका कोई दोस्त नहीं था वह अक्सर आश्रम में अकेला
ही घूमता रहता था यह देखकर उसके गुरु को बड़ी खुशी होती थी उसे लगता था कि कोई तो है आश्रम में जो मौन यानी कि चुप रहने की ताकत को समझना है उसके महत्व को समझता है आश्रम के बारे में जब भी कोई जरूरी निर्णय लेना होता था तो उसकी राय जरूर लिया करते थे लेकिन यही बात गुरुजी के एक दूसरे शिष्य को बड़ी खटकती थी क्योंकि वह गुरुजी का प्रिय शिष्य बनना चाहता था इसीलिए वह गुरुजी के सामने दूसरे बच्चों के कामों में कुछ ना कुछ कमियां निकालता रहता था जिसकी वजह से गुरुजी उसे
महान समझने लग जाए अक्सर वह अपनी जिम्मेदारियां पूरी तरह से निभाने का दिखावा भी करता था चाहे उससे कोई सलाह भी मांगे लेकिन फिर भी वह उन्हें अपनी सलाह देता रहता था वह बहुत ही बातूनी शिष्य था और आश्रम के दूसरे सभी बच्चों में बहुत प्रसिद्ध भी था क्योंकि वह सबसे हंसी मजाक करता रहता था उनसे दिन भर बातें करता रहता था इसीलिए उसकी सबसे दोस्ती हो गई थी लेकिन जब आश्रम के गुरु उसकी राय ना लेकर दूसरे बच्चे की राय लेते थे तो यह बात उसे बड़ी खटकती थी उसे यह लगता था कि वह
उस दूसरे बच्चे से ज्यादा बुद्धिमान है लेकिन गुरुजी फिर भी उस कम बोलने वाले शिष्य की तरफदारी करते हैं ऐसा नहीं था कि गुरुजी को बातूनी शिष्य के स्वभाव के बारे में पता नहीं था लेकिन गुरु जी उसे अपने तरीके से सीख देना चाहते थे ताकि उसकी ज्यादा बोलने की आदत दिखावा करने की आदत दूसरों में कमियां निकालने की आदत हमेशा हमेशा के लिए खत्म हो जाए और वह मौन रहकर ध्यान की गहराइयों को समझे असल में हर सच्चे गुरु की यही इच्छा होती है वह किसी ना किसी तरीके से उस बातूनी शिष्य को यह
एहसास कराना चाहते थे कि चुप रहने से ही वह असीम सत्य को जान सकता है उस विराट का एहसास चुप होकर ही किया जा सकता है एक दिन गुरुजी को एक तरीका सूझा उन्होंने आश्रम के सभी बच्चों को अपने पास बुलाया और कहा कि मैं तुम सभी को दोदो हिस्सों में बांटकर अलग-अलग गांवों में भिक्षा मांगने के फ भेज रहा और जो भी दो बच्चे सबसे ज्यादा भिक्षा मांग कर लाएंगे उन दोनों को आश्रम की सभी जिम्मेदारियां निभाने का मौका दिया जाएगा अपनी बात को जारी रखते हुए गुरुजी ने बताया कि भिक्षा मांगने से हमारा
अहंकार भी खत्म होता है इसीलिए हर शिष्य पूरे मन से भिक्षा मांगी कोई भी इस काम को सिर्फ दिखावा करने के लिए ना करें वरना वह अपने जीवन का बहुत बड़ा ज्ञान पाने का मौका खो देगा आश्रम के गुरुजी ने जानबूझकर बातूनी शिष्य और चुप रहने वाले शिष्य की जोड़ी बना दिया बातूनी शिष्य के मन में सिर्फ एक ही बात चल रही थी कि इस बार उसे मौका मिला है और इस बार वह गुरुजी को दिखा देगा कि वह चुप रहने वाले शिष्य से कितना ज्यादा बेहतर है दोनों शिष्यों ने आपस में अपनी सहमति से
निर्णय लिया कि दोनों गांव के अलग-अलग जगह से भिक्षा मांगना शुरू करेंगे ताकि भिक्षा मांगने का काम जल्दी खत्म किया जा सके चुप रहने वाला शिष्य हर द्वार पर जाकर अपने हाथ जोड़कर अपना भिक्षा का पात्र उनके सामने कर देता उसके चेहरे पर एक सादगी और उसकी आंखों में एक एकांत होता था जिससे भिक्षा देने वाले उसे भिक्षा देकर अपने आप संतुष्ट समझते थे वहीं पर दूसरा बातूनी शिष्य हर द्वार पर जाकर उनको कुछ ना कुछ ञान देने लगता था जिसकी वजह से ज्यादातर लोग उसे बिना भिक्षा दिए ही लौटा देते थे पूरे गांव में
भिक्षा मांगकर जब दोनों गांव के बीच में मिले तो बातूनी शिष्य ने देखा कि चुप रहने वाले शिष्य के पास उससे दोगुनी भिक्षा थी यह देखकर उसे मन ही मन में बहुत ठेस पहुंचा लेकिन जब वह दोनों भिक्षा का सामान लेकर आश्रम की तरफ जा रहे थे तब बातूनी शिष्य को एक चालाकी सूझी उसने चुप रहने वाले शिष्य से कहा कि हमें अपनी भिक्षा एक ही थैले में डाल लेना चाहिए गुरुजी ने हम दोनों को एक साथ भिक्षा लाने के लिए कहा था चुप रहने वाले शिष्य ने बिना कुछ बोले अपनी सारी भिक्षा उसके थैले
में डाल दी बातूनी शिष्य मन ही मन में बहुत खुश हो रहा था कि अब गुरु गुरु को यह पता नहीं चलेगा कि ज्यादा भिक्षा हम में से किसने मांगी है उसे लग रहा था कि गुरु जी मुझे इससे ज्यादा बेहतर समझेंगे इसीलिए उसने यह तरकीब लगाया सभी शिष्यों के आने के बाद संध्या के समय जब सभी की भिक्षा तो ली गई तो इन दोनों शिशु की भिक्षा सबसे ज्यादा निकली गुरुजी ने इन दोनों का अभिवादन करते हुए आश्रम के सभी बच्चों के सामने उनकी पीठ थपथपाते हुए उन्हें मुबारकबाद दी और कहा कि मैं आश्रम
का कार्यभार तुम दोनों को नहीं सौंप सकता है इससे आपसी मतभेद होने का खतरा है इसीलिए तुम दोनों में से जो ज्यादा भिक्षा लेकर आया है आश्रम की जिम्मेदारी उसे ही सौंपी जाएगी जब उन्होंने दोनों शिष्यों से पूछा कि तुम में से ज्यादा भिक्षा मांगकर लाया था तो बातूनी शिष्य ने कहा कि गुरु जी मैं इससे दुगनी भिक्षा मांग कर लाया था लेकिन मुझसे गलती हो गई कि मैंने वह दोनों भिक्षा एक ही थैले में डाल ली मुझे नहीं पता था कि आप ऐसा निर्णय लेने वाले हैं वरना तो मैं अपनी भिक्षा का थैला अलग
ही रखता इस पर गुरु ने चुप रहने वाले शिष्य से पूछा कि क्या तुम इसकी बात से सहमत हो क्या तुम इससे कम भिक्षा लेकर आए थे यह सुनकर चुप रहने वाले शिष्य ने कहा कि गुरु जी मेरे पास ऐसा कोई भी साधन नहीं है जिससे मैं यह साबित कर पाओ कि मैं इससे ज्यादा भिक्षा लेकर आया था असल में यह उल्टा बोल रहा है दुगनी भिक्षा में लेकर आया था यह मुझसे आधी भिक्षा लेकर आया था और इसीलिए ही मुझसे भिक्षा एक थैले में डालने की बात कहां था आश्रम से से कुछ दूरी पर
एक पहाड़ी थी जिसके पीछे सूरज अभी-अभी संध्या के समय ढल रहा था गुरुजी को तो पता था कि सच कौन बोल रहा है लेकिन बाकी बच्चों के सामने सच साबित करने के लिए उन्होंने उन दोनों से एक सवाल पूछा कि पीछे पहाड़ी पर तुम्हें क्या दिखाई दे रहा है यह सुनकर वह चालक शिष्य झट से बोल पड़ा कि गुरुजी पहाड़ी के पीछे सूरज अपना रंग बिखेर रहा है आसमान में लालिमा छाई हुई है यह बहुत ही सुंदर दृश्य है वह तो और भी बहुत कुछ कहना चाहता था लेकिन गुरुजी ने उसे चुप करते हुए दूसरे
शिष्य से जवाब जानने के लिए प्रयास किया जब उसकी तरफ देखा तो उसकी आंखों में आंसू भरे हुए थे श्रद्धा भक्ति और प्रेम से उसकी आंखें भर आई थी गुरुजी को उससे पूछने की जरूरत ही नहीं पड़ी गुरुजी ने सभी बच्चों को संबोधित करते हुए कहा कि मैंने सवाल किया था कि पहाड़ी के पीछे तुम्हें क्या दिखाई दे रहा है ज्यादातर लोगों को यही दिखाई देगा कि एक बहुत सुंदर दृश्य है लेकिन मजे की बात यह है कि सुंदरता बोलकर ही नहीं बताई जा सकती उसे महसूस भी किया जा सकता है और सामने वाला सुंदरता
को आपकी आंखों में देख पाता है चुप रहने वाले शिष्य की तरफ इशारा करते हुए जी ने कहा कि असल में सुंदरता किसी बच्चे ने देखी है दूसरे बच्चे ने सिर्फ सुंदरता की ऊपर ऊपर से व्याख्या की है लेकिन इसने वास्तविकता में उस सुंदरता को महसूस किया है अपने आप को ऊंचा दिखाने की सभी कोशिशें नाकाम होती देख वह चालाक शिष्य वहीं पर फूट फूट कर रोने लगा उसको चुप कराते हुए गुरुजी ने कहा कि बेटा मुझे पहले से पता था कि तुम झूठ बोल रहे हो लेकिन मैं तुम्हें उस झूठ का एहसास कराना चाहता
था सभी बच्चों को संबोधित करते हुए गुरुजी ने बताया कि शब्द एक जाल की तरह होते हैं हमारे ज्यादा बोलने की वजह से बहुत सारी समस्याएं पैदा होती हैं जब कोई आदमी एक बात को बढ़ा चढ़ा कर बोल देता है तो उसे साबित करने के लिए शब्दों के जाल में फंसता चला जाता है और इसी वजह से अंतर्मुखी होने की बजाय वह बहिर्मुखी होता चला जाता है वहीं पर जिस भी व्यक्ति को अपनी अंतर यात्रा करनी होती है अपने आप को पहचाना चाहता है उसे सबसे पहले चुप रहना सीखना होता है जरूरत से ज्यादा बोलना
या फिर हर वक्त बोलते ही रहना यह सब हमारी अंतर यात्रा में बाधा बन जाती है जब आप चुप रहने का अभ्यास करते हैं तो आप अपने साथ वक्त बिताने लगते हैं जिससे कि आप अपने एकांत को जान पाते हैं एक बार अगर मन में एकांत स्थापित हो चाहे तो आपकी आंखों में आपके च पर वो सादगी वह एकांत व स्पष्टता की झलक सब कुछ सामने नजर आने लगता है कुछ साबित करने को नहीं रह जाता कुछ बताने को नहीं रह जाता सब कुछ आंखों में देखा जा सकता है चुप रहने वाले शिष्य की तरफ
इशारा करते हुए गुरुजी ने कहा कि अभी जो दृश्य है इस बच्चे ने देखा वह ज्यादा बोलने वाला आदमी कभी नहीं देख पाएगा वह अपनी बुद्धि से तर्क वितर्क करता रहेगा कि उसे क्या-क्या दिखाई दे रहा है खिलो उसमें से वह महसूस कुछ कुछ भी नहीं कर पाएगा उसे दिखाई दे जाएंगे तो सिर्फ पहाड़ सूरज या फिर उसकी लालिमा लेकिन उस सुंदरता को उस विराट को उस अद्वैत को वह कभी नहीं देख पाएगा अगर चुप रहने की कला सीखनी है तो तुम्हें सबसे पहले एक बात ध्यान रखनी होगी कि तुम्हें किसी को भी बिना वजह
खुश करने की कोशिश नहीं करनी है ज्यादातर लोग इसी वजह से ज्यादा बोलते हैं क्योंकि वह दूसरों को खुश करना चाहते हैं अपने आप को साबित करना चाहते हैं उस साबित करने के चक्कर में वह शब्दों के जाल में फंसते ही चले जाते हैं और धीरे-धीरे वहीं उनकी आदत बन जाती है अगर कोई व्यक्ति दूसरों को खुश करना चाहता है तो वह कितने लोगों को खुश कर पाएगा उसकी यह भूख बढ़ती ही जाएगी और वही संसार में सभी को कभी भी खुश नहीं कर पाएगा इसलिए यह समझने की बात होती है कि बहिर्मुखी होने की
बजाय हम अंतर्मुखी होकर अपने आप को समझ सकते हैं अपनी बातों को खत्म करते हुए गुरुजी ने अपना आखिरी संदेश दिया उन्होंने बताया कि अगर कोई व्यक्ति ज्यादा समय तक चुप नहीं रह सकता तो उसे थोड़े समय के लिए अभ्यास करना चाहिए निश्चित संकल्प लेकर किसी वृद्ध की तरह दिन में कुछ समय या फिर हफ्ते में कुछ समय या फिर एक दिन चुप रहने का अभ्यास जरूर किया जाना चाहिए इससे हमारी चुप रहने की आदत धीरे-धीरे खुद ब खुद बढ़ने लगती है क्योंकि एक बार जब हम चुप रहने लगते हैं तो हमें चुप रहने का
आनंद पता चल जाता है उसके बाद हमें कोशिश नहीं करनी पड़ती बल्कि हमारा मन आनंद की तरफ अपने आप बढ़ता चला जाता है चुप रहने की कला सीखने के बाद आपकी बुद्धिमानी और आपकी स्पष्टता दोनों में बहुत ज्यादा फायदा होगा वास्तविकता में जिसे दर्शन कहते हैं वह मौन रहकर ही किया जा सकता है इसके बाद सभी बच्चों ने कुछ समय चुप रहने का संकल्प लिया और सभी बच्चे रात्रि का भोजन करने के लिए एक साथ भोजन कक्ष में पहुंच गए तो दोस्तों मेरा मोटी यही समय ने का था कि कैसे हम हर चीज को सिर्फ
देखते हैं लेकिन अगर उसे महसूस करना सीख गए तो जिंदगी जीने में बहुत मजा आएगा तो बस अगर आपको कुछ भी सीखने को मिला हो तो वीडियो को लाइक कर दीजिए और चैनल को सब्सक्राइब कर दीजिए दोस्तों आज मैं आपसे एक सवाल पूछना चाहता हूं क्या इस दुनिया में हमारे लिए ज्यादा बोलना अच्छी बात है कहीं ना कहीं ज्यादातर लोग इसी वजह से ज्यादा बोलते हैं क्योंकि वह दूसरों के सामने अपने आप को अच्छा दिखाना चाहते हैं दूसर के सामने खुद को साबित करना चाहते हैं तो इस सवाल का जवाब हम एक कहानी के माध्यम
से समझेंगे एक समय की बात है जब एक आश्रम में बौद्ध गुरु और उनके शिष्य रहते थे उन सभी बच्चों में एक बच्चा थोड़ा अलग था आश्रम के सभी बच्चे जब दूसरे कामों में लगे होते थे तो वह बच्चा एक कोने में बैठकर चुपचाप अपने आप में खोया रहता था वह अक्सर किसी से ज्यादा बात नहीं करता था आश्रम की सभी जिम्मेदारियां पूरी करने के बाद जब सभी बच्चे पूरे दिन की घटनाओं के बारे में बातें करने लगते हैं तब वह शांत रहने वाला बच्चा एक बरगद के पेड़ के नीचे बैठकर ध्यान करने लगता सभी
बच्चों को देखकर आश्चर्य होता था क्योंकि उसका कोई दोस्त नहीं था वह अक्सर आश्रम में अकेला ही घूमता रहता था यह देखकर उसके गुरु को बड़ी खुशी होती थी उसे लगता था कि कोई तो है आश्रम में जो मौन यानी कि चुप रहने की ताकत को समझना है उसके महत्व को समझता है आश्रम के बारे में जब भी कोई जरूरी निर्णय लेना होता था तो उसकी राय जरूर लिया करते थे लेकिन यही बात गुरु जी के एक दूसरे शिष्य को बड़ी खटकती थी क्योंकि वह गुरु जी का प्रिय शिष्य बनना चाहता था इसीलिए वह गुरु
जी के सामने दूसरे बच्चों के कामों में कुछ ना कुछ कमियां निकालता रहता था जिसकी वजह से गुरुजी उसे महान समझने लग जाए अक्सर वह अपनी जिम्मेदारियां पूरी तरह से निभाने का दिखावा भी करता था चाहे उससे कोई सलाह भी मांगे लेकिन फिर भी वो उन्हें अपनी सलाह देता रहता था वह बहुत ही बातूनी शिष्य था और आश्रम के दूसरे सभी बच्चों में बहुत प्रसिद्ध भी था क्योंकि वह सबसे हंसी मजाक करता रहता था उनसे दिन भर बातें करता रहता था इसीलिए उसकी सबसे दोस्ती हो गई थी लेकिन जब आश्रम के गुरु उसकी राय ना
लेकर दूसरे बच्चे की राय लेते थे तो यह बात उसे बड़ी खटकती थी उसे यह लगता था कि वह उस दूसरे बच्चे से ज्यादा बुद्धिमान है लेकिन गुरुजी फिर भी उस कम बोलने वाले शिष्य की तरफदारी कर करते हैं ऐसा नहीं था कि गुरुजी को बातूनी शिष्य के स्वभाव के बारे में पता नहीं था लेकिन गुरु जी उसे अपने तरीके से सीख देना चाहते थे ताकि उसकी ज्यादा बोलने की आदत दिखावा करने की आदत दूसरों में कमियां निकालने की आदत हमेशा हमेशा के लिए खत्म हो जाए और वह मौन रहकर ध्यान की गहराइयों को समझे
असल में हर सच्चे गुरु की यही इच्छा होती है वह किसी ना किसी तरीके से उस बातूनी शिष्य को यह एहसास कराना चाहते थे कि चुप रहने से ही वह असीम सत्य को जान सकता है उस विराट का एहसास चुप होकर ही किया जा सकता है एक दिन गुरुजी को एक तरीका सूझा उन्होंने आश्रम के सभी बच्चों को अपने पास बुलाया और कहा कि मैं तुम सभी को दोदो हिस्सों में बांटकर अलग-अलग गांवों में भिक्षा मांगने के ले भेज रहा और जो भी दो बच्चे सबसे ज्यादा भिक्षा मांग कर लाएंगे उन दोनों को आश्रम की
सभी जिम्मेदारियां निभाने का मौका दिया जाएगा अपनी बात को जारी रखते हुए गुरुजी ने बताया कि भिक्षा मांगने से हमारा अहंकार भी खत्म होता है इसीलिए हर शिष्य पूरे मन से भिक्षा मांगी कोई भी इस काम को सिर्फ दिखावा करने के लिए ना करें वरना वह अपने जीवन का बहुत बड़ा ज्ञान पाने का मौका खो देगा आश्रम के गुरुजी ने जानबूझकर बातूनी शिष्य और चुप रहने वाले शिष्य की जोड़ी बना दिया बातूनी शिष्य के मन में सिर्फ एक ही बात चल रही थी कि इस बार उसे मौका मिला है और इस बार वह गुरुजी को
दिखा देगा कि वह चुप रहने वाले शिष्य से कि तना ज्यादा बेहतर है दोनों शिष्यों ने आपस में अपनी सहमति से निर्णय लिया कि दोनों गांव के अलग-अलग जगह से भिक्षा मांगना शुरू करेंगे ताकि भिक्षा मांगने का काम जल्दी खत्म किया जा सके चुप रहने वाला शिष्य हर द्वार पर जाकर अपने हाथ जोड़कर अपना भिक्षा का पात्र उनके सामने कर देता उसके चेहरे पर एक सादगी और उसकी आंखों में एक एकांत होता था जिससे भिक्षा देने वाले उसे भिक्षा देकर अपने आप संतुष्ट समझते थे वहीं पर दूसरा बा नी शिष्य हर द्वार पर जाकर उनको
कुछ ना कुछ ज्ञान देने लगता था जिसकी वजह से ज्यादातर लोग उसे बिना भिक्षा दिए ही लौटा देते थे पूरे गांव में भिक्षा मांगकर जब दोनों गांव के बीच में मिले तो बातूनी शिष्य ने देखा कि चुप रहने वाले शिष्य के पास उससे दोगुनी भिक्षा थी यह देखकर उसे मन ही मन में बहुत ठेस पहुंचा लेकिन जब वह दोनों भिक्षा का सामान लेकर आश्रम की तरफ जा रहे थे तब बातूनी शिष्य को एक चालाकी सूझी उसने चुप रहने वाले शिष्य से कहा कि हमें अपनी भिक्षा एक ही थैले में डाल लेना चाहिए गुरुजी ने हम
दोनों को एक साथ भिक्षा लाने के लिए कहा था चुप रहने वाले शिष्य ने बिना कुछ बोले अपनी सारी भिक्षा उसके थैले में डाल दी बातूनी शिष्य मन ही मन में बहुत खुश हो रहा था कि अब गुरु को यह पता नहीं चलेगा कि ज्यादा भिक्षा हम में से किसने मांगी है उसे लग रहा था कि गुरु जी मुझे इससे ज्यादा बेहतर समझेंगे इसीलिए उसने यह तरकीब लगाया सभी शिष्यों के आने के बाद संध्या के समय जब सभी की भिक्षा तो ली गई तो इन दोनों शिशु की भिक्षा सबसे ज्यादा निकली गुरुजी ने इन दोनों
का अभिवादन करते हुए आश्रम के सभी बच्चों के सामने उनकी पीठ थपथपाते हुए उन्हें मुबारकबाद दी और कहा कि मैं आश्रम का कार्यभार तुम दोनों को नहीं सौंप सकता है इससे आपसी मतभेद होने का खतरा है इसीलिए तुम दोनों में से जो ज्यादा भिक्षा लेकर आया है आश्रम की जिम्मेदारी उसे ही सौंपी जाएगी जब उन्होंने दोनों शिष्यों से पूछा कि तुम में से ज्यादा भिक्षा मांग कर लाया था तो बातूनी शिष्य ने कहा कि गुरुजी मैं इससे दुगनी भिक्षा मांग कर लाया था लेकिन मुझसे गलती हो गई कि मैंने वह दोनों भिक्षा एक ही थैले
में डाल ली मुझे नहीं पता था कि आप ऐसा निर्णय लेने वाले हैं वरना तो मैं अपनी भिक्षा का थैला अलग ही रखता इस पर गुरु ने चुप रहने वाले शिष्य से पूछा कि क्या तुम इसकी बात से सहमत हो क्या तुम इससे कम भिक्षा लेकर आए थे यह सुनकर चुप रहने वाले शिष्य ने कहा कि गुरुजी मेरे पास पास ऐसा कोई भी साधन नहीं है जिससे मैं यह साबित कर पाओ कि मैं इससे ज्यादा भिक्षा लेकर आया था असल में यह उल्टा बोल रहा है दुगनी भिक्षा में लेकर आया था यह मुझसे आधी भिक्षा
लेकर आया था और इसीलिए ही मुझसे भिक्षा एक थैले में डालने की बात कहां था आश्रम से कुछ दूरी पर एक पहाड़ी थी जिसके पीछे सूरज अभी-अभी संध्या के समय ढल रहा था गुरुजी को तो पता था कि सच कौन बोल रहा है लेकिन बाकी बच्चों के सामने सच साबित करने के लिए उन्होंने उन दोनों से एक सवाल पूछा कि पीछे पहाड़ी पर तुम्हें क्या दिखाई दे रहा है यह सुनकर वह चालक शिष्य झट से बोल पड़ा कि गुरुजी पहाड़ी के पीछे सूरज अपना रंग बिखेर रहा है आसमान में लालिमा छाई हुई है यह बहुत
ही सुंदर दृश्य है वह तो और भी बहुत कुछ कहना चाहता था लेकिन गुरुजी ने उसे चुप करते हुए दूसरे शिष्य से जवाब जानने के लिए प्रयास किया जब उसकी तरफ देखा तो उसकी आंखों में आंसू भरे हुए थे श्रद्धा भक्ति और प्रेम से उसकी आ भर आई थी गुरु जी को उससे पूछने की जरूरत ही नहीं पड़ी गुरुजी ने सभी बच्चों को संबोधित करते हुए कहा कि मैंने सवाल किया था कि पहाड़ी के पीछे तुम्हें क्या दिखाई दे रहा है ज्यादातर लोगों को यही दिखाई देगा कि एक बहुत सुंदर दृश्य है लेकिन मजे की
बात यह है कि सुंदरता बोलकर ही नहीं बताई जा सकती उसे महसूस भी किया जा सकता है और सामने वाला सुंदरता को आपकी आंखों में देख पाता है चुप रहने वाले शिष्य की तरफ इशारा करते हुए जी ने कहा कि में सुंदरता किसी बच्चे ने देखी है दूसरे बच्चे ने सिर्फ सुंदरता की ऊपर ऊपर से व्याख्या की है लेकिन इसने वास्तविकता में उस सुंदरता को महसूस किया है अपने आप को ऊंचा दिखाने की सभी कोशिशें नाकाम होती देख वह चालाक शिष्य वहीं पर फूट फूट कर रोने लगा उसको चुप कराते हुए गुरुजी ने कहा कि
बेटा मुझे पहले से पता था कि तुम झूठ बोल रहे हो लेकिन मैं तुम्हें उस झूठ का एहसास कराना चाहता था सभी बच्चों को संबोधित करते हुए गुरुजी जी ने बताया कि शब्द एक जाल की तरह होते हैं हमारे ज्यादा बोलने की वजह से बहुत सारी समस्याएं पैदा होती हैं जब कोई आदमी एक बात को बढ़ा चढ़ा कर बोल देता है तो उसे साबित करने के लिए शब्दों के जाल में फंसता चला जाता है और इसी वजह से अंतर्मुखी होने की बजाय वह बहिर्मुखी होता चला जाता है वहीं पर जिस भी व्यक्ति को अपनी अंतर
यात्रा करनी होती है अपने आप को पहचाना चाहता है उसे सबसे पहले चुप रहना सीखना होता है जरूरत से ज्यादा बोलना या फिर हर वक्त बोलते ही रहना यह सब हमारी अंतर यात्रा में बाधा बन जाती है जब आप चुप रहने का अभ्यास करते हैं तो आप अपने साथ वक्त बिताने लगते हैं जिससे कि आप अपने एकांत को जान पाते हैं एक बार अगर मन में एकांत स्थापित हो चाहे तो आपकी आंखों में आपके चेहरे पर वह सादगी वह एकांत व स्पष्टता की झलक सब कुछ सामने नजर आने लगता है कुछ साबित करने को नहीं
रह जाता कुछ बताने को नहीं रह जाता सब कुछ आंखों में देखा जा सकता है रहने वाले शिष्य की तरफ इशारा करते हुए गुरुजी ने कहा कि अभी जो दृश्य है इस बच्चे ने देखा वह ज्यादा बोलने वाला आदमी कभी नहीं देख पाएगा वह अपनी बुद्धि से तर्क वितर्क करता रहेगा कि उसे क्या-क्या दिखाई दे रहा है लो उसमें से वह महसूस कुछ भी नहीं कर पाएगा उसे दिखाई दे जाएंगे तो सिर्फ पहाड़ सूरज या फिर उसकी लालिमा लेकिन उस सुंदरता को उस विराट को उस अद्वैत को वह कभी नहीं देख पाएगा अगर चुप रहने
की कला सीखनी है तो तुम्हें सबसे पहले एक बात ध्यान रखनी होगी कि तुम्हें किसी को भी बिना वजह खुश करने की कोशिश नहीं करनी है ज्यादातर लोग इसी वजह से ज्यादा बोलते हैं क्योंकि वह दूसरों को खुश करना चाहते हैं अपने आप को साबित करना चाहते हैं उस साबित करने के चक्कर में वह शब्दों के जाल में फंसते ही चले जाते हैं और धीरे-धीरे वहीं उनकी आदत बन जाती है अगर कोई व्यक्ति दूसरों को खुश करना चाहता है तो वह कितने लोगों को खुश कर पाएगा उसकी यह भूख बढ़ती ही जाएगी और वही संसार
में सभी को कभी भी खुश नहीं कर पाएगा इसलिए यह समझने की बात होती है कि बहिर्मुखी होने की बजाय हम अंतर्मुखी होकर अपने आप को समझ सकते हैं अपनी बातों को खत्म करते हुए गुरुजी ने अपना आखिरी संदेश दिया उन्होंने बताया कि अगर कोई व्यक्ति ज्यादा समय तक चुप नहीं रह सकता तो उसे थोड़े समय के लिए अभ्यास करना चाहिए निश्चित संकल्प लेकर किसी वृद्ध की तरह दिन में कुछ समय या फिर हफ्ते में कुछ समय या फिर एक दिन चुप रहने का अभ्यास जरूर किया जाना चाहिए इससे हमारी चुप रहने की आदत धीरे-धीरे
खुद ब खुद बढ़ने लगती है क्योंकि एक बार जब हम चुप रहने लगते हैं तो हमें चुप रहने का आनंद पता चल जाता है उसके बाद हमें कोशिश नहीं करनी पड़ती बल्कि हमारा मन आनंद की तरफ अपने आप बढ़ता चला जाता है चुप रहने की कला सीखने के बाद आपकी बुद्धिमानी और आपकी स्पष्टता दोनों में बहुत ज्यादा फायदा होगा वास्तविकता में जिसे दर्शन कहते हैं वह मौन रहकर ही किया जा सकता है इसके बाद सभी बच्चों ने कुछ समय चुप रहने का संकल्प लिया और सभी बच्चे रात्रि का भोजन करने के लिए एक साथ भोजन
कक्ष में पहुंच गए तो दोस्तों मेरा मोटी यही समझाने का था कि कैसे हम हर चीज को सिर्फ देखते हैं लेकिन अगर उसे महसूस करना सीख गए तो जिंदगी जीने में बहुत मजा आएगा तो बस अगर आपको कुछ भी सीखने को मिला हो तो वीडियो को लाइक कर दीजिए और चैनल को सब्सक्राइब कर दीजिए दोस्तों आज मैं आपसे एक सवाल पूछना चाहता हूं क्या इस दुनिया में हमारे लिए ज्यादा बोलना अच्छी बात है कहीं ना कहीं ज्यादातर लोग इसी वजह से ज्यादा बोलते हैं क्योंकि वह दूसरों के सामने अपने आप को अच्छा दिखाना चाहते हैं
दूसरों के सामने खुद को साबित करना चाहते हैं तो इस सवाल का जवाब हम एक कहानी के माध्यम से समझेंगे एक समय की बात है जब एक आश्रम में बौद्ध गुरु और उनके शिष्य रहते थे उन सभी बच्चों में एक बच्चा थोड़ा अलग था आश्रम के सभी बच्चे जब दूसरे कामों में लगे होते थे तो वह बच्चा एक कोने में बैठकर चुपचाप अपने आप में खोया रहता था वह अक्सर किसी से ज्यादा बात नहीं करता था आश्रम की सभी जिम्मेदारियां पूरी करने के बाद जब सभी बच्चे पूरे दिन की घटनाओं के बारे में बातें करने
लगते हैं तब वह शांत रहने वाला बच्चा एक बरगद के पेड़ के नीचे बैठकर ध्यान करने लगता सभी बच्चों को देखकर आश्चर्य होता था क्योंकि उसका कोई दोस्त नहीं नहीं था वह अक्सर आश्रम में अकेला ही घूमता रहता था यह देखकर उसके गुरु को बड़ी खुशी होती थी उसे लगता था कि कोई तो है आश्रम में जो मौन यानी कि चुप रहने की ताकत को समझना है उसके महत्व को समझता है आश्रम के बारे में जब भी कोई जरूरी निर्णय लेना होता था तो उसकी राय जरूर लिया करते थे लेकिन यही बात गुरुजी के एक
दूसरे शिष्य को बड़ी खटकती थी क्योंकि वह गुरु जी का प्रिय शिष्य बनना चाहता था इसीलिए वह गुरु जी के सामने दूसरे बच्चों के कामों में कुछ ना कुछ कमियां निकालता रहता था जिसकी वजह से गुरुजी उसे महान समझने लग जाए अक्सर वह अपनी जिम्मेदारियां पूरी तरह से निभाने का दिखावा भी करता था चाहे उससे कोई सलाह भी मांगे लेकिन फिर भी वह उन्हें अपनी सलाह देता रहता था वह बहुत ही बातूनी शिष्य था और आश्रम के दूसरे सभी बच्चों में बहुत प्रसिद्ध भी था क्योंकि वह सबसे हंसी मजाक करता रहता था उनसे दिन भर
बातें करता रहता था इसीलिए उसकी सबसे दोस्ती हो गई थी लेकिन जब आश्रम के गुरु उसकी राय ना लेकर दूसरे बच्चे की राय लेते थे तो यह बात उसे बड़ी खटकती थी उसे यह लगता था कि वह उस दूसरे बच्चे से ज्यादा बुद्धिमान है लेकिन गुरुजी फिर भी उस कम बोलने वाले शिष्य की तरफदारी करते हैं ऐसा नहीं था कि गुरुजी को बातूनी शिष्य के स्वभाव के बारे में पता नहीं था लेकिन गुरुजी उसे अपने तरीके से सीख देना चाहते थे ताकि उसकी ज्यादा बोलने की आदत दिखावा करने की आदत दूसरों में कमियां निकालने की
आदत हमेशा हमेशा के लिए खत्म हो जाए और वह मौन रहकर ध्यान की गहराइयों को समझे असल में हर सच्चे गुरु की यही इच्छा होती है वह किसी ना किसी तरीके से उस बातूनी शिष्य को यह एहसास कराना चाहते थे कि चुप रहने से ही वह असीम सत्य को जान सकता है उस विराट का एहसास चुप होकर ही किया जा सकता है एक दिन गुरुजी को एक तरीका सूझा उन्होंने आश्रम के सभी बच्चों को अपने पास बुलाया और कहा कि मैं तुम सभी को दोदो हिस्सों में बांट कर अलग-अलग गांवों में भिक्षा मांगने के लिए
भेज रहा और जो भी दो बच्चे सबसे ज्यादा भिक्षा मांग कर लाएंगे उन दोनों को आश्रम की सभी जिम्मेदारियां निभाने का मौका दिया जाएगा अपनी बात को जारी रखते हुए गुरुजी ने बताया कि भिक्षा मांगने से हमारा अहंकार भी खत्म होता है इसीलिए हर शिष्य पूरे मन से भिक्षा मांगी कोई भी इस काम को सिर्फ दिखावा करने के लिए ना करें वरना वह अपने जीवन का बहुत बड़ा ज्ञान पाने का मौका खो देगा आश्रम के गुरुजी ने जानबूझकर बातूनी शिष्य और चुप रहने वाले शिष्य की जोड़ी बना दिया बातूनी शिष्य के मन में सिर्फ एक
ही बात चल रही थी कि इस बार उसे मौका मिला है और इस बार वह गुरुजी को दिखा देगा कि वह चुप रहने वाले शिष्य से कितना ज्यादा बेहतर है दोनों शिष्यों ने आपस में अपनी सहमति से निर्णय लिया कि दोनों गांव के अलग-अलग जगह से भिक्षा मांगना शुरू करेंगे ताकि भिक्षा मांगने का काम जल्दी खत्म किया जा सके चुप रहने वाला शिष्य हर द्वार पर जाकर अपने हाथ जोड़कर अपना भिक्षा का पात्र उनके सामने कर देता उसके चेहरे पर एक सादगी और उसकी आंखों में एक एकांत होता था जिससे भिक्षा देने वाले उसे भिक्षा
देकर अपने आप संतुष्ट समझते थे वहीं पर दूसरा बातूनी शिष्य हर द्वार पर जाकर उनको कुछ ना कुछ ञान देने लगता था जिसकी वजह से ज्यादातर लोग उसे बिना भिक्षा दिए ही लौटा देते थे पूरे गांव में भिक्षा मांगकर जब दोनों गांव के बीच में मिले तो बातूनी शिष्य ने देखा कि चुप रहने वाले शिष्य के पास उससे दोगुनी भिक्षा थी यह देखकर उसे मन ही मन में बहुत ठेस पहुंचा लेकिन जब वह दोनों भिक्षा का सामान लेकर आश्रम की तरफ जा रहे थे तब बातूनी शिष्य को एक चालाकी सूझी उसने चुप रहने वाले शिष्य
से कहा कि हमें अपनी भिक्षा एक ही थैले में डाल लेना चाहिए गुरुजी ने हम दोनों को एक साथ भिक्षा लाने के लिए कहा था चुप रहने वाले शिष्य ने बिना कुछ बोले अपनी सारी भिक्षा उसके थैले में डाल दी बातूनी शिष्य मन ही मन में बहुत खुश हो रहा था कि अब गुरु को यह पता नहीं चलेगा कि ज्यादा भिक्षा हम में से किसने मांगी है उसे लग रहा था कि गुरुजी मुझे इससे ज्यादा बेहतर समझेंगे इसीलिए उसने यह तरकीब लगाया सभी शिष्यों के आने के बाद संध्या के समय जब सभी की भिक्षा तो
ली गई तो इन दोनों शिशु की भिक्षा सबसे ज्यादा निकली गुरुजी ने इन दोनों का अभिवादन करते हुए आश्रम के सभी बच्चों के सामने उनकी पीठ थपथपाते हुए उन्हें मुबारकबाद दी और कहा कि कि मैं आश्रम का कार्यभार तुम दोनों को नहीं सौंप सकता है इससे आपसी मतभेद होने का खतरा है इसीलिए तुम दोनों में से जो ज्यादा भिक्षा लेकर आया है आश्रम की जिम्मेदारी उसे ही सौंपी जाएगी जब उन्होंने दोनों शिष्यों से पूछा कि तुम में से ज्यादा भिक्षा मांग कर लाया था तो बातूनी शिष्य ने कहा कि गुरु जी मैं इससे दुगनी भिक्षा
मांग कर लाया था लेकिन मुझसे गलती हो गई कि मैंने वह दोनों भिक्षा एक ही थैले में डाल ली मुझे नहीं पता था कि आप ऐसा निर्णय लेने वाले हैं वरना तो मैं अपनी भिक्षा का थैला अलग ही रखता इस पर गुरु ने चुप रहने वाले शिष्य से पूछा कि क्या तुम इसकी बात से सहमत हो क्या तुम इससे कम भिक्षा लेकर आए थे यह सुनकर चुप रहने वाले शिष्य ने कहा कि गुरु जी मेरे पास ऐसा कोई भी साधन नहीं है जिससे मैं यह साबित कर पाऊ कि मैं इससे ज्यादा भिक्षा लेकर आया था
असल में यह उल्टा बोल रहा है दुगनी भिक्षा में लेकर आया था यह मुझसे आधी भिक्षा लेकर आया था और इसीलिए ही मुझसे भिक्षा एक थैले में डालने की बात कहां था आश्रम से कुछ दूरी पर एक पहाड़ी थी जिसके पीछे सूरज अभी-अभी संध्या के समय ढल रहा था गुरुजी को तो पता था कि सच कौन बोल रहा है लेकिन बाकी बच्चों के सामने सच साबित करने के लिए उन्होंने उन दोनों से एक सवाल पूछा कि पीछे पहाड़ी पर तुम्हें क्या दिखाई दे रहा है यह सुनकर वह चालक शिष्य झट से बोल पड़ा कि गुरुजी
पहाड़ी के पीछे सूरज अपना रंग बिखेर रहा है आसमान में लाली इमा छाई हुई है यह बहुत ही सुंदर दृश्य है वह तो और भी बहुत कुछ कहना चाहता था लेकिन गुरुजी ने उसे चुप करते हुए दूसरे शिष्य से जवाब जानने के लिए प्रयास किया जब उसकी तरफ देखा तो उसकी आंखों में आंसू भरे हुए थे श्रद्धा भक्ति और प्रेम से उसकी आंखें भर आई थी गुरुजी को उससे पूछने की जरूरत ही नहीं पड़ी गुरुजी ने सभी बच्चों को संबोधित करते हुए कहा कि मैंने सवाल किया था कि पहाड़ी के पीछे तुम्हें क्या दिखाई दे
रहा है ज्यादातर लोगों को यही दिखाई देगा कि एक बहुत सुंदर दृश्य है लेकिन मजे की बात यह है कि सुंदरता बोलकर ही नहीं बताई जा सकती उसे महसूस भी किया जा सकता है और सामने वाला सुंदरता को आपकी आंखों में देख पाता है चुप रहने वाले शिष्य की तरफ इशारा करते हुए जी ने कहा कि असल में सुंदरता किसी बच्चे ने देखी है दूसरे बच्चे ने सिर्फ सुंदरता की ऊपर ऊपर से व्याख्या की है लेकिन इसने वास्तविकता में उस सुंदरता को महसूस किया है अपने आप को ऊंचा दिखाने की सभी कोशिशें ना काम होती
देख वह चालाक शिष्य वहीं पर फूट फूट कर रोने लगा उसको चुप कराते हुए गुरुजी ने कहा कि बेटा मुझे पहले से पता था कि तुम झूठ बोल रहे हो लेकिन मैं तुम्हें उस झूठ का एहसास कराना चाहता था सभी बच्चों को संबोधित करते हुए गुरुजी ने बताया कि शब्द एक जाल की तरह होते हैं हमारे ज्यादा बोलने की वजह से बहुत सारी समस्याएं पैदा होती हैं जब कोई आदमी एक बात को बढ़ा चढ़ा कर बोल देता है तो उसे साबित करने के लिए शब्दों के जाल में फंसता चला जाता है और इसी वजह से
अंतर्मुखी होने की बजाय वह बहिर्मुखी होता चला जाता है वहीं पर जिस भी व्यक्ति को अपनी अंतर यात्रा करनी होती है अपने आप को पहचाना चाहता है उसे सबसे पहले चुप रहना सीखना होता है जरूरत से ज्यादा बोलना या फिर हर वक्त बोलते ही रहना यह सब हमारी अंतर यात्रा में बाधा बन जाती है जब आप चुप रहने का अभ्यास करते हैं तो आप अपने साथ वक्त बिताने लगते हैं जिससे कि आप अपने एकांत को जान पाते हैं एक बार अगर मन में एकांत स्थापित हो चाहे तो आपकी आंखों में आपके चेहरे पर वह सादगी
वह एकांत व स्पष्टता की झलक सब कुछ सामने नजर आने लगता है कुछ साबित करने को नहीं रह जाता कुछ बताने को नहीं रह जाता सब कुछ आंखों में देखा जा सकता है चुप रहने वाले शिष्य की तरफ इशारा करते हुए गुरु जी ने कहा कि अभी जो दृश्य है इस बच्चे ने देखा वह ज्यादा बोलने वाला आदमी कभी नहीं देख पाएगा वह अपनी बुद्धि से तर्क वितर्क करता रहेगा कि उसे क्या-क्या दिखाई दे रहा खलो उसमें से वह महसूस कुछ भी नहीं कर पाएगा उसे दिखाई दे जाएंगे तो सिर्फ पहाड़ सूरज या फिर उसकी
लालिमा लेकिन उस सुंदरता को उस विराट को उस अद्वैत को वह कभी नहीं देख पाएगा अगर चुप रहने की कला सीखनी है तो तुम्हें सबसे पहले एक बात ध्यान रखनी होगी कि तुम्हें किसी को भी बिना वजह खुश करने की कोशिश नहीं करनी है ज्यादातर लोग इसी वजह से ज्यादा बोलते हैं क्योंकि वह दूसरों को खुश करना चाहते हैं अपने आप को साबित करना चाहते हैं उस साबित करने के चक्कर में वह शब्दों के जाल में फंसते ही चले जाते हैं और धीरे-धीरे वहीं उनकी आदत बन जाती है अगर कोई व्यक्ति दूसरों को खुश करना
चाहता है तो वह कितने लोगों को खुश कर पाएगा उसकी यह भूख बढ़ती ही जाएगी और वही संसार में सभी को कभी भी खुश नहीं कर पाएगा इसलिए यह समझने की बात होती है कि बहिर्मुखी होने की बजाय हम अंतर्मुखी होकर अपने आप को समझ सकते हैं अपनी बातों को खत्म करते हुए गुरुजी ने अपना आखिरी संदेश दिया उन्होंने बताया कि अगर कोई व्यक्ति ज्यादा समय तक चुप नहीं रह सकता तो उसे थोड़े समय के लिए अभ्यास करना चाहिए निश्चित संकल्प लेकर किसी वृद्ध की तरह दिन में कुछ समय या फिर हफ्ते में कुछ समय
या फिर एक दिन चुप रहने का अभ्यास जरूर किया जाना चाहिए इससे हमारी चुप रहने की आदत धीरे-धीरे खुद ब खुद बढ़ने लगती है क्योंकि एक बार जब हम चुप रहने लगते हैं तो हमें चुप रहने का आनंद पता चल जाता है उसके बाद हमें कोशिश नहीं करनी पड़ती बल्कि हमारा मन आनंद की तरफ अपने आप बढ़ता चला जाता है चुप रहने की कला सीखने के बाद आपकी बुद्धिमानी और आपकी स्पष्टता दोनों में बहुत ज्यादा फायदा होगा वास्तविकता में जिसे दर्शन कहते हैं वह मौन रहकर ही किया जा सकता है इसके बाद सभी बच्चों ने
कुछ समय चुप रहने का संकल्प लिया और सभी बच्चे रात्रि का भोजन करने के लिए एक साथ भोजन कक्ष में पहुंच गए तो दोस्तों मेरा मोटी यही समझाने का था कि कैसे हम हर चीज को सिर्फ देखते हैं लेकिन अगर उसे महसूस करना सीख गए तो जिंदगी जीने में बहुत मजा आएगा तो बस अगर आपको कुछ भी सीखने को मिला हो तो वीडियो को लाइक कर दीजिए और चैनल को सब्सक्राइब कर दीजिए दोस्तों आज मैं आपसे एक सवाल पूछना चाहता हूं क्या इस दुनिया में हमारे लिए ज्यादा बोलना अच्छी बात है कहीं ना कहीं ज्यादातर
लोग इसी वजह से ज्यादा बोलते हैं क्योंकि वह दूसरों के सामने अपने आपको अच्छा दिखाना चाहते हैं दूसरों के सामने खुद को साबित करना चाहते हैं तो इस सवाल का जवाब हम एक कहानी के माध्यम से समझेंगे एक समय की बात है जब एक आश्रम में बौद्ध गुरु और उनके शिष्य रहते थे उन सभी बच्चों में एक बच्चा थोड़ा अलग था आश्रम के सभी बच्चे जब दूसरे कामों में लगे होते थे तो वह बच्चा एक कोने में बैठकर चुपचाप अपने आप में खोया रहता था वह अक्सर किसी से ज्यादा बात नहीं करता था आश्रम की
सभी जिम्मेदारियां पूरी करने के बाद जब सभी बच्चे पूरे दिन की घटनाओं के बारे में बातें करने लगते हैं तब वह शांत रहने वाला बच्चा एक बरगद के पेड़ के नीचे बैठकर ध्यान करने लगता सभी बच्चों को देखकर आश्चर्य होता था क्योंकि उसका कोई दोस्त नहीं था वह अक्सर आश्रम में अकेला ही घूमता रहता था यह देखकर उसके गुरु को बड़ी खुशी होती थी उसे लगता था कि कोई तो है आश्रम में जो मौन यानी कि चुप रहने की ताकत को समझना है उसके महत्व को समझता है आश्रम के बारे में जब भी कोई जरूरी
निर्णय लेना होता था तो उसकी राय जरूर लिया करते थे लेकिन यही बात गुरुजी के एक दूसरे शिष्य को बड़ी खटकती थी क्योंकि वह गुरुजी का प्रिय शिष्य बनना चाहता था इसीलिए वह गुरुजी के सामने दूसरे बच्चों के कामों में कुछ ना कुछ कमियां निकालता रहता था जिसकी वजह से गुरुजी उसे महान समझने लग जाए अक्सर वह अपनी जिम्मेदारियां पूरी तरह से निभाने का दिखावा भी करता था चाहे उससे कोई सलाह भी मांगे लेकिन फिर भी व उन्हें अपनी सलाह देता रहता था वह बहुत ही बातूनी शिष्य था और आश्रम के दूसरे सभी बच्चों में
बहुत प्रसिद्ध भी था क्योंकि वह सबसे हंसी मजाक करता रहता था उनसे दिन भर बातें करता रहता था इसीलिए उसकी सबसे दोस्ती हो गई थी लेकिन जब आश्रम के गुरु उसकी राय ना लेकर दूसरे बच्चे की राय लेते थे तो यह बात उसे बड़ी खटकती थी उसे यह लगता था कि वह उस दूसरे बच्चे से ज्यादा बुद्धिमान है लेकिन गुरुजी फिर भी उस कम बोलने वाले शिष्य की तरफदारी करते हैं ऐसा नहीं था कि गुरुजी को बातूनी शिष्य के स्वभाव के बारे में पता नहीं था लेकिन गुरुजी उसे अपने तरीके से सीख देना चाहते थे
ताकि उसकी ज्यादा बोलने की आदत दिखावा करने की आदत दूसरों में कमियां निकालने की आदत हमेशा हमेशा के लिए खत्म हो जाए और वह मौन रहकर ध्यान की गहराइयों को समझे असल में हर सच्चे गुरु की यही इच्छा होती है वह किसी ना किसी तरीके से उस बातूनी शिष्य को यह एहसास कराना चाहते थे कि चुप रहने से ही वह असीम सत्य को जान सकता है उस विराट का एहसास चुप होकर ही किया जा सकता है एक दिन गुरुजी को एक तरीका सूझा उन्होंने आश्रम के सभी बच्चों को अपने पास बुलाया और कहा कि मैं
तुम सभी को दोदो हिस्सों में बांटकर अलग-अलग गांवों में भिक्षा मांगने के ले फेज रहा और जो भी दो बच्चे सबसे ज्यादा भिक्षा मांग कर लाएंगे उन दोनों को आश्रम की सभी जिम्मेदारियां निभाने का मौका दिया जाएगा अपनी बात को जारी रखते हुए गुरु जी ने बताया कि भिक्षा मांगने से हमारा अहंकार भी खत्म होता है इसीलिए हर शिष्य पूरे मन से भिक्षा मांगी कोई भी इस काम को सिर्फ दिखावा करने के लिए ना करें वरना वह अपने जीवन का बहुत बड़ा ज्ञान पाने का मौका खो देगा आश्रम के गुरु जी ने जानबूझकर बातूनी शिष्य
और चुप रहने वाले शिष्य की जोड़ी बना दिया बातून शिष्य के मन में सिर्फ एक ही बात चल रही थी कि इस बार उसे मौका मिला है और इस बार वह गु जी को दिखा देगा कि वह चुप रहने वाले शिष्य से कितना ज्यादा बेहतर है दोनों शिष्यों ने आपस में अपनी सहमति से निर्णय लिया कि दोनों गांव के अलग-अलग जगह से भिक्षा मांगना शुरू करेंगे ताकि भिक्षा मांगने का काम जल्दी खत्म किया जा सके चुप रहने वाला शिष्य हर द्वार पर जाकर अपने हाथ जोड़कर अपना भिक्षा का पात्र उनके सामने कर देता उसके चेहरे
पर एक सादगी और उसकी आंखों में एक एकांत होता था जिससे भिक्षा देने वाले उसे भिक्षा देकर अपने आप संतुष्ट समझते थे वहीं पर दूसरा बातूनी शिष्य हर द्वार पर जाकर उनको कुछ ना कुछ ज्ञान देने लगता था जिसकी वजह से ज्यादातर लोग उसे बिना भिक्षा दिए ही लौटा देते थे पूरे गांव में भिक्षा मांगकर जब दोनों गांव के बीच में मिले तो बातूनी शिष्य ने देखा कि चुप रहने वाले शिष्य के पास उससे दोगनी भिक्षा थी यह देखकर उसे मन ही मन में बहुत ठेस पहुंचा लेकिन जब वह दोनों भिक्षा का सामान लेकर आश्रम
की तरफ जा रहे थे तब बातूनी शिष्य को एक चालाकी स उसने चुप रहने वाले शिष्य से कहा कि हमें अपनी भिक्षा एक ही थैले में डाल लेना चाहिए गुरुजी ने हम दोनों को एक साथ भिक्षा लाने के लिए कहा था चुप रहने वाले शिष्य ने बिना कुछ बोले अपनी सारी भिक्षा उसके थैले में डाल दी बातूनी शिष्य मन ही मन में बहुत खुश हो रहा था कि अब गुरु को यह पता नहीं चलेगा कि ज्यादा भिक्षा हम में से किसने मांगी है उसे लग रहा था कि गुरु जी मुझे इससे ज्यादा बेहतर समझेंगे इसीलिए
उसने यह तरकीब लगाया स शिष्यों के आने के बाद संध्या के समय जब सभी की भिक्षा तो ली गई तो इन दोनों शिशु की भिक्षा सबसे ज्यादा निकली गुरु जी ने इन दोनों का अभिवादन करते हुए आश्रम के सभी बच्चों के सामने उनकी पीठ थपथपाते हुए उन्हें मुबारकबाद दी और कहा कि मैं आश्रम का कार्यभार तुम दोनों को नहीं सौंप सकता है इससे आपसी मतभेद होने का खतरा है इसीलिए तुम दोनों में से जो ज्यादा भिक्षा लेकर आया है आश्रम की जिम्मेदारी उसे ही सौंपी जाएगी जब उन्होंने दोनों शिष्यों से पूछा कि तुम में से
ज्यादा भिक्षा मांगकर लाया था तो बातूनी शिष्य ने कहा कि गुरु जी में इससे दुगनी भिक्षा मांग कर लाया था लेकिन मुझसे गलती हो गई कि मैंने वह दोनों भिक्षा एक ही थैले में डाल ली मुझे नहीं पता था कि आप ऐसा निर्णय लेने वाले हैं वरना तो मैं अपनी भिक्षा का थैला अलग ही रखता इस पर गुरु ने चुप रहने वाले शिष्य से पूछा कि क्या तुम इसकी बात से सहमत हो क्या तुम इससे कम भिक्षा लेकर आए थे यह सुनकर चुप रहे ने वाले शिष्य ने कहा कि गुरु जी मेरे पास ऐसा कोई
भी साधन नहीं है जिससे मैं यह साबित कर पाओ कि मैं इससे ज्यादा भिक्षा लेकर आया था असल में यह उल्टा बोल रहा है दुगनी भिक्षा में लेकर आया था यह मुझसे आधी भिक्षा लेकर आया था और इसीलिए ही मुझसे भिक्षा एक थैले में डालने की बात कहां था आश्रम से कुछ दूरी पर एक पहाड़ी थी जिसके पीछे सूरज अभी-अभी संध्या के समय ढल रहा था गुरुजी को तो पता था कि सच कौन बोल रहा है लेकिन बाकी बच्चों के सामने सच साबित कर करने के लिए उन्होंने उन दोनों से एक सवाल पूछा कि पीछे
पहाड़ी पर तुम्हें क्या दिखाई दे रहा है यह सुनकर वह चालक शिष्य झट से बोल पड़ा कि गुरुजी पहाड़ी के पीछे सूरज अपना रंग बिखेर रहा है आसमान में लालिमा छाई हुई है यह बहुत ही सुंदर दृश्य है वह तो और भी बहुत कुछ कहना चाहता था लेकिन गुरुजी ने उसे चुप करते हुए दूसरे शिष्य से जवाब जानने के लिए प्रयास किया जब उसकी तरफ देखा तो उसकी आंखों में आंसू भरे हुए थे थे श्रद्धा भक्ति और प्रेम से उसकी आंखें भर आई थी गुरुजी को उससे पूछने की जरूरत ही नहीं पड़ी गुरुजी ने सभी
बच्चों को संबोधित करते हुए कहा कि मैंने सवाल किया था कि पहाड़ी के पीछे तुम्हें क्या दिखाई दे रहा है ज्यादातर लोगों को यही दिखाई देगा कि एक बहुत सुंदर दृश्य है लेकिन मजे की बात यह है कि सुंदरता बोलकर ही नहीं बताई जा सकती उसे महसूस भी किया जा सकता है और सामने वाला सुंदरता को आपकी आंखों में देख पाता है चुप रहने वा शिष्य की तरफ इशारा करते हुए जी ने कहा कि असल में सुंदरता किसी बच्चे ने देखी है दूसरे बच्चे ने सिर्फ सुंदरता की ऊपर ऊपर से व्याख्या की है लेकिन इसने
वास्तविकता में उस सुंदरता को महसूस किया है अपने आप को ऊंचा दिखाने की सभी कोशिशें नाकाम होती देख वह चालाक शिष्य वहीं पर फूट फूट कर रोने लगा उसको चुप कराते हुए गुरुजी ने कहा कि बेटा मुझे पहले से पता था कि तुम झूठ बोल रहे हो लेकिन मैं तुम्हें उस झूठ का एहसास कराना चाहता था सभी बच्चों को संबोधित करते हुए गुरु जी ने बताया कि शब्द एक जाल की तरह होते हैं हमारे ज्यादा बोलने की वजह से बहुत सारी समस्याएं पैदा होती हैं जब कोई आदमी एक बात को बढ़ा चढ़ा कर बोल देता
है तो उसे साबित करने के लिए शब्दों के जाल में फंसता चला जाता है और इसी वजह से अंतर्मुखी होने की बजाय वह बहिर्मुखी होता चला जाता है वहीं पर जिस भी व्यक्ति को अपनी अंतर यात्रा करनी होती है अपने आप को पहचाना चाहता है उसे सबसे पहले चुप रहना सीखना होता है जरूरत से ज्यादा बोलना या फिर हर वक्त बोलते ही रहना यह सब हमारी अंतर यात्रा में बाधा बन जाती है जब आप चुप रहने का अभ्यास करते हैं तो आप अपने साथ वक्त बिताने लगते हैं जिससे कि आप अपने एकांत को जान पाते
हैं एक बार अगर मन में एकांत स्थापित हो चाहे तो आपकी आंखों में आपके चेहरे पर वह सादगी वह एकांत व स्पष्टता की झलक सब कुछ सामने नजर आने लगता है कुछ साबित करने को नहीं रह जाता कुछ बताने को नहीं रह जाता सब कुछ आंखों में देखा जा सकता है चुप रहने वाले शिष्य की तरफ इशारा करते हुए गुरुजी ने कहा कि अभी जो दृश्य है इस बच्चे ने देखा वह ज्यादा बोलने वाला आदमी कभी नहीं देख पाएगा वह अपनी बुद्धि से तर्क वितर्क करता रहेगा कि उसे क्या-क्या दिखाई दे रहा है खलो उसमें
से वह महसूस कुछ भी नहीं कर पाएगा उसे दिखाई दे जाएंगे तो सिर्फ पहाड़ सूरज या फिर उसकी लालिमा लेकिन उस सुंदरता को उस विराट को उस अद्वैत को वह कभी नहीं देख पाएगा अगर चुप रहने की कला सीखनी है तो तुम्हें सबसे पहले एक बात ध्यान रखनी होगी कि तुम्हें किसी को भी बिना वजह खुश करने की कोशिश नहीं करनी है ज्यादातर लोग इसी वजह से ज्यादा बोलते हैं क्योंकि वह दूसरों को खुश करना चाहते हैं अपने आप को साबित करना चाहते हैं उस साबित करने के चक्कर में वह शब्दों के जाल में फंसते
ही चले जाते हैं और धीरे-धीरे वहीं उनकी आदत बन जाती है अगर कोई व्यक्ति दूसरों को खुश करना चाहता है तो वह कितने लोगों को खुश कर पाएगा उसकी यह भूख बढ़ती ही जाएगी और वही संसार में सभी को कभी भी खुश नहीं कर पाएगा इसलिए यह समझने की बात होती है कि बहिर्मुखी होने की बजाय हम अंतर्मुखी होकर अपने आप को समझ सकते हैं अपनी बातों को खत्म करते हुए गुरुजी ने अपना आखिरी संदेश दिया उन्होंने बताया कि अगर कोई व्यक्ति ज्यादा समय तक चुप नहीं रह सकता तो उसे थोड़े समय के लिए अभ्यास
करना चाहिए निश्चित संकल्प लेकर किसी वृद्ध की तरह दिन में कुछ समय या फिर हफ्ते में कुछ समय या फिर एक दिन चुप रहने का अभ्यास जरूर किया जाना चाहिए इससे हमारी चुप रहने की आदत धीरे-धीरे खुद ब खुद बढ़ने लगती है क्योंकि एक बार जब हम चुप रहने लगते हैं तो हमें चुप रहने का आनंद पता चल जाता है उसके बाद हमें कोशिश नहीं करनी पड़ती बल्कि हमारा मन आनंद की तरफ अपने आप बढ़ता चला जाता है चुप रहने की कला सीखने के बाद आपकी बुद्धिमानी और आपकी स्पष्टता दोनों में बहुत ज्यादा फायदा होगा
वास्तविकता में जिसे दर्शन कहते हैं वह मौन रहकर ही किया जा सकता है इसके बाद सभी बच्चों ने कुछ समय चुप रहने का संकल्प लिया और सभी बच्चे रात्रि का भोजन करने के लिए एक साथ भोजन कक्ष में पहुंच गए तो दोस्तों मेरा मोटी यही समझाने का था कि कैसे हम हर चीज को सिर्फ देखते हैं लेकिन अगर उसे महसूस करना सीख गए तो जिंदगी जीने में बहुत मजा आएगा तो बस अगर आपको कुछ भी सीखने को मिला हो तो तो वीडियो को लाइक कर दीजिए और चैनल को सब्सक्राइब कर दीजिए दोस्तों आज मैं आपसे
एक सवाल पूछना चाहता हूं क्या इस दुनिया में हमारे लिए ज्यादा बोलना अच्छी बात है कहीं ना कहीं ज्यादातर लोग इसी वजह से ज्यादा बोलते हैं क्योंकि वह दूसरों के सामने अपने आप को अच्छा दिखाना चाहते हैं दूसरों के सामने खुद को साबित करना चाहते हैं तो इस सवाल का जवाब हम एक कहानी के माध्यम से समझेंगे एक समय की बात है जब एक आश्रम में बौद्ध गुरु और उनके शि रहते थे उन सभी बच्चों में एक बच्चा थोड़ा अलग था आश्रम के सभी बच्चे जब दूसरे कामों में लगे होते थे तो वह बच्चा एक
कोने में बैठकर चुपचाप अपने आप में खोया रहता था वह अक्सर किसी से ज्यादा बात नहीं करता था आश्रम की सभी जिम्मेदारियां पूरी करने के बाद जब सभी बच्चे पूरे दिन की घटनाओं के बारे में बातें करने लगते हैं तब वह शांत रहने वाला बच्चा एक बरगद के पेड़ के नीचे बैठकर ध्यान करने लगता सभी बच्चों को देखकर आश्चर्य होता था क्योंकि उसका कोई दोस्त नहीं था वह अक्सर आश्रम में अकेला ही घूमता रहता था यह देखकर उसके गुरु को बड़ी खुशी होती थी उसे लगता था कि कोई तो है आश्रम में जो मौन यानी
कि चुप रहने की ताकत को समझना है उसके महत्व को समझता है आश्रम के बारे में जब भी कोई जरूरी निर्णय लेना होता था तो उसकी राय जरूर लिया करते थे लेकिन यही बात गुरुजी के एक दूसरे शिष्य को बड़ी खटकती थी क्योंकि वह गुरुजी का प्रिय शिष्य बनना चाहता था इसीलिए वह गुरुजी के सामने दूसरे बच्चों के कामों में कुछ ना कुछ कमियां निकालता रहता था जिसकी वजह से गुरुजी उसे महान समझने लग जाए अक्सर वह अपनी जिम्मेदारियां पूरी तरह से निभाने का दिखावा भी करता था चाहे उससे कोई सलाह भी मांगे लेकिन फिर
भी वो उन्हें अपनी सलाह देता रहता था वह बहुत ही बातूनी शिष्य था और आश्रम के दूसरे सभी बच्चों में बहुत प्रसिद्ध भी था क्योंकि वह सबसे हंसी मजाक करता रहता था उनसे दिन भर बातें करता रहता था इसीलिए उसकी सबसे दोस्ती हो गई थी लेकिन जब आश्रम के गुरु उसकी राय ना लेकर दूसरे बच्चे की राय लेते थे तो यह बात उसे बड़ी खटकती थी उसे यह लगता था कि वह उस दूसरे बच्चे से ज्यादा बुद्धिमान है लेकिन गुरुजी फिर भी उस कम बोलने वाले शिष्य की तरफदारी करते हैं ऐसा नहीं था कि गुरुजी
को बातूनी शिष्य के स्वभाव के बारे में पता नहीं था लेकिन गुरुजी उसे अपने तरीके से सीख देना चाहते थे ताकि उसकी ज्यादा बोलने की आदत दिखावा करने की आदत दूसरों में कमियां निकालने की आदत हमेशा हमेशा के लिए खत्म हो जाए और वह मौन रहकर ध्यान की गहराइयों को समझे असल में हर सच्चे गुरु की यही इच्छा होती है वह किसी ना किसी तरीके से उस बातूनी शिष्य को यह एहसास कराना चाहते थे कि चुप रहने से ही वह असीम सत्य को जान सकता है उस विराट का एहसास चुप होकर ही किया जा सकता
है एक दिन गुरुजी को एक तरीका सूझा उन्होंने आश्रम के सभी बच्चों को अपने पास बुलाया और कहा कि मैं तुम सभी को दोदो हिस्सों में बांटकर अलग-अलग गांवों में भिक्षा मांगने के लिए भेज रहा और जो भी दो बच्चे सबसे ज्यादा भिक्षा मांग कर लाएंगे उन दोनों को आश्रम की सभी जिम्मेदारियां निभाने का मौका दिया जाएगा अपनी बात को जारी रखते हुए गुरुजी ने बताया कि भिक्षा मांगने से हमारा अहंकार भी खत्म होता है इसीलिए हर शिष्य पूरे मन से भिक्षा मांगी कोई भी इस काम को सिर्फ दिखावा करने के लिए ना करें वरना
व अपने जीवन का बहुत बड़ा ज्ञान पाने का मौका खो देगा आश्रम के गुरुजी ने जानबूझकर बातूनी शिष्य और चुप रहने वाले शिष्य की जोड़ी बना दिया बातूनी शिष्य के मन में सिर्फ एक ही बात चल रही थी कि इस बार उसे मौका मिला है और इस बार वह गुरुजी को दिखा देगा कि वह चुप रहने वाले शिष्य से कितना ज्यादा बेहतर है दोनों शिष्यों ने आपस में अपनी सहमति से निर्णय लिया कि दोनों गांव के अलग-अलग जगह से भिक्षा मांगना शुरू करेंगे ताकि भिक्षा मांगने का काम जल्दी खत्म किया जा सके चुप रहने वाला
शिष्य हर द्वार पर जाकर अपने हाथ जोड़कर अपना भिक्षा का पात्र उनके सामने कर देता उसके चेहरे पर एक सादगी और उसकी आंखों में एक एकांत होता था जिससे भिक्षा देने वाले उसे भिक्षा देकर अपने आप संतुष्ट समझते थे वहीं पर दूसरा बातूनी शिष्य हर द्वार पर जाकर उनको कुछ ना कुछ ञान देने लगता था जिसकी वजह से ज्यादातर लोग उसे बिना भिक्षा दिए ही लौटा देते थे पूरे गांव में भिक्षा मांगकर जब दोनों गांव के बीच में मिले तो बातूनी शिष्य ने देखा कि चुप रहने वाले शिष्य के पास उससे दोगनी भिक्षा थी यह
देखकर उसे मन ही मन में बहुत ठेस पहुंचा लेकिन जब वह दोनों भिक्षा का सामान लेकर आश्रम की तरफ जा रहे थे तब बातूनी शिष्य को एक चालाकी सूझी उसने चुप रहने वाले शिष्य से कहा कि हमें अपनी भिक्षा एक ही थैले में डाल लेना चाहिए गुरुजी ने हम दोनों को एक साथ भिक्षा लाने के लिए कहा था चुप रहने वाले शिष्य ने बिना कुछ बोले अपनी सारी भिा उसके थैले में डाल दी बातूनी शिष्य मन ही मन में बहुत खुश हो रहा था कि अब गुरु को यह पता नहीं चलेगा कि ज्यादा भिक्षा हम
में से किसने मांगी है उसे लग रहा था कि गुरुजी मुझे इससे ज्यादा बेहतर समझेंगे इसीलिए उसने यह तरकीब लगाया सभी शिष्यों के आने के बाद संध्या के समय जब सभी की भिक्षा तो ली गई तो इन दोनों शिशु की भिक्षा सबसे ज्यादा निकली गुरुजी ने इन दोनों का अभिवादन करते हुए आश्रम के सभी बच्चों के सामने उनकी पीठ थपथपाते हुए उन्हें मुबारकबाद दी और कहा कि मैं आश्रम का कार्य भार तुम दोनों को नहीं सौंप सकता है इससे आपसी मतभेद होने का खतरा है इसीलिए तुम दोनों में से जो ज्यादा भिक्षा लेकर आया है
आश्रम की जिम्मेदारी उसे ही सौंपी जाएगी जब उन्होंने दोनों शिष्यों से पूछा कि तुम में से ज्यादा भिक्षा मांगकर लाया था तो बातूनी शिष्य ने कहा कि गुरु जी में इससे दुगनी भिक्षा मांग करर लाया था लेकिन मुझसे गलती हो गई कि मैंने वह दोनों भिक्षा एक ही थैले में डाल ली मुझे नहीं पता था कि आप ऐसा निर्णय लेने वाले हैं वरना तो मैं अपनी भिक्षा का थैला अलग ही रखता इस पर गुरु ने चुप रहने वाले शिष्य से पूछा कि क्या तुम इसकी बात से सहमत हो क्या तुम इससे कम भिक्षा लेकर आए
थे यह सुनकर चुप रहने वाले शिष्य ने कहा कि गुरु जी मेरे पास ऐसा कोई भी साधन नहीं है जिससे मैं यह साबित कर पाऊ कि मैं इससे ज्यादा भिक्षा लेकर आया था असल में यह उल्टा बोल रहा है दुगनी भिक्षा में लेकर आया था यह मुझसे आदी भिक्षा लेकर आया था और इसीलिए ही मुझसे भिक्षा एक थैले में डालने की बात कहा था आश्रम से कुछ दूरी पर एक पहाड़ी थी जिसके पीछे सूरज अभी-अभी संध्या के समय ढल रहा था गुरुजी को तो पता था कि सच कौन बोल रहा है लेकिन बाकी बच्चों के
सामने सच साबित करने के लिए उन्होंने उन दोनों से एक सवाल पूछा कि पीछे पहाड़ी पर तुम्हें क्या दिखाई दे रहा है यह सुनकर वह चालक शिष्य झट से बोल पड़ा कि गुरुजी पहाड़ी के पीछे सूरज अपना रंग बिखेर रहा है आसमान में लालिमा छाई हुई है यह बहुत ही सुंदर दृश्य है वह तो और भी बहुत कुछ कहना चाहता था लेकिन गुरुजी ने उसे चुप करते हुए दूसरे शिष्य से जवाब जानने के लिए प्रयास किया जब उसकी तरफ देखा तो उसकी आंखों में आंसू भरे हुए थे श्रद्धा भक्ति और प्रेम से उसकी आंखें भर
आई थी गुरुजी को उससे पूछने की जरूरत ही नहीं पड़ी गुरुजी ने सभी बच्चों को संबोधित करते हुए कहा कि मैंने सवाल किया था कि पहाड़ी के पीछे तुम्हें क्या दिखाई दे रहा है ज्यादातर लोगों को यही दिखाई देगा कि एक बहुत सुंदर दृश्य है लेकिन मजे की बात यह है कि सुंदरता बोलकर ही नहीं बताई जा सकती उसे महसूस भी किया जा सकता है और सामने वाला सुंदरता को आपकी आंखों में देख पाता है चुप रहने वाले शिष्य की तरफ इशारा करते हुए जी ने कहा कि असल में सुंदरता किसी बच्चे ने देखी है
दूसरे बच्चे ने सिर्फ सुंदरता के ऊपर ऊपर से व्याख्या की है लेकिन इसने वास्तविकता में उस सुंदरता को महसूस किया है अपने आप को ऊंचा दिखाने की सभी कोशिशें नाकाम होती देख वह चालाक शिष्य वहीं पर फूट फूट कर रोने लगा उसको चुप कराते हुए गुरुजी ने कहा कि बेटा मुझे पहले से पता था कि तुम झूठ बोल रहे हो लेकिन मैं तुम्हें उस झूठ का एहसास कराना चाहता था सभी बच्चों को संबोधित करते हुए गुरुजी ने बताया कि शब्द एक जाल की तरह होते हैं हमारे ज्यादा बोलने की वजह से बहुत सारी समस्याएं पैदा
होती हैं जब कोई आदमी एक बात को बढ़ा चढ़ा कर बोल देता है तो उसे सा करने के लिए शब्दों के जाल में फंसता चला जाता है और इसी वजह से अंतर्मुखी होने की बजाय वह बहिर्मुखी होता चला जाता है वहीं पर जिस भी व्यक्ति को अपनी अंतर यात्रा करनी होती है अपने आप को पहचाना चाहता है उसे सबसे पहले चुप रहना सीखना होता है जरूरत से ज्यादा बोलना या फिर हर वक्त बोलते ही रहना यह सब हमारी अंतर यात्रा में बाधा बन जाती है जब आप चुप रहने का अभ्यास करते हैं तो आप अपने
साथ वक्त बिताने लगते हैं जिससे कि आप अपने एकांत को को जान पाते हैं एक बार अगर मन में एकांत स्थापित हो चाहे तो आपकी आंखों में आपके चेहरे पर वह सादगी वह एकांत वह स्पष्टता की झलक सब कुछ सामने नजर आने लगता है कुछ साबित करने को नहीं रह जाता कुछ बताने को नहीं रह जाता सब कुछ आंखों में देखा जा सकता है चुप रहने वाले शिष्य की तरफ इशारा करते हुए गुरु जी ने कहा कि अभी जो दृश्य है इस बच्चे ने देखा वह ज्यादा बोलने वाला आदमी कभी नहीं देख पाएगा वह अपनी
बुद्धि से तर्क वितक करता रहेगा कि उसे क्या-क्या दिखाई दे रहा है खिलो उसमें से वह महसूस कुछ भी नहीं कर पाएगा उसे दिखाई दे जाएंगे तो सिर्फ पहाड़ सूरज या फिर उसकी लालिमा लेकिन उस सुंदरता को उस विराट को उस अद्वैत को वह कभी नहीं देख पाएगा अगर चुप रहने की कला सीखनी है तो तुम्हें सबसे पहले एक बात ध्यान रखनी होगी कि तुम्हें किसी को भी बिना वजह खुश करने की कोशिश नहीं करनी है ज्यादातर लोग इसी वजह से ज्यादा बोलते क्योंकि वह दूसरों को खुश करना चाहते हैं अपने आप को साबित करना
चाहते हैं उस साबित करने के चक्कर में वह शब्दों के जाल में फंसते ही चले जाते हैं और धीरे-धीरे वहीं उनकी आदत बन जाती है अगर कोई व्यक्ति दूसरों को खुश करना चाहता है तो वह कितने लोगों को खुश कर पाएगा उसकी यह भूख बढ़ती ही जाएगी और वही संसार में सभी को कभी भी खुश नहीं कर पाएगा इसलिए यह समझने की बात होती है कि बहिर्मुखी होने की बजाय हम अंतर्मुखी होकर अपने आप को समझ सकते हैं अपनी बातों को खत्म करते हुए गुरुजी ने अपना आखिरी संदेश दिया उन्होंने बताया कि अगर कोई व्यक्ति
ज्यादा समय तक चुप नहीं रह सकता तो उसे थोड़े समय के लिए अभ्यास करना चाहिए निश्चित संकल्प लेकर किसी वृद्ध की तरह दिन में कुछ समय या फिर हफ्ते में कुछ समय या फिर एक दिन चुप रहने का अभ्यास जरूर किया जाना चाहिए इससे हमारी चुप रहने की आदत धीरे-धीरे खुद ब खुद बढ़ने लगती है क्योंकि एक बार जब हम चुप रह लगते हैं तो हमें चुप रहने का आनंद पता चल जाता है उसके बाद हमें कोशिश नहीं करनी पड़ती बल्कि हमारा मन आनंद की तरफ अपने आप बढ़ता चला जाता है चुप रहने की कला
सीखने के बाद आपकी बुद्धिमानी और आपकी स्पष्टता दोनों में बहुत ज्यादा फायदा होगा वास्तविकता में जिसे दर्शन कहते हैं वह मौन रहकर ही किया जा सकता है इसके बाद सभी बच्चों ने कुछ समय चुप रहने का संकल्प लिया और सभी बच्चे रात्रि का भोजन करने के लिए एक साथ भोजन कक्ष में पहुंच गए तो दोस्तों मेरा मोट यही समझाने का था कि कैसे हम हर चीज को सिर्फ देखते हैं लेकिन अगर उसे महसूस करना सीख गए तो जिंदगी जीने में बहुत मजा आएगा तो बस अगर आपको कुछ भी सीखने को मिला हो तो वीडियो को
लाइक कर दीजिए और चैनल को सब्सक्राइब कर दीजिए दोस्तों आज मैं आपसे एक सवाल पूछना चाहता हूं क्या इस दुनिया में हमारे लिए ज्यादा बोलना अच्छी बात है कहीं ना कहीं ज्यादातर लोग इसी वजह से ज्यादा बोलते हैं क्योंकि वह दूसरों के सामने अपने आप को अच्छा दिखाना चाहते हैं दूसरों के सामने खुद को साबित करना चाहते हैं तो इस सवाल का जवाब हम एक कहानी के माध्यम से समझेंगे एक समय की बात है जब एक आश्रम में बौद्ध गुरु और उनके शिष्य रहते थे उन सभी बच्चों में एक बच्चा थोड़ा अलग था आश्रम के
सभी बच्चे जब दूसरे कामों में लगे होते थे तो वह बच्चा एक कोने में बैठकर चुपचाप अपने आप में खोया रहता था वह अक्सर किसी से ज्यादा बात नहीं करता था आश्रम की सभी जिम्मेदारियां पूरी करने के बाद जब सभी बच्चे पूरे दिन की घटनाओं के बारे में बातें करने लगते हैं तब वह शांत रहने वाला बच्चा एक बरगद के पेड़ के नीचे बैठकर ध्यान करने लगता सभी बच्चों को देखकर आश्चर्य होता था क्योंकि उसका कोई दोस्त नहीं था वह अक्सर आश्रम में अकेला ही घूमता रहता था यह देखकर उसके गुरु को बड़ी खुशी होती
थी उसे लगता था कि कोई तो है आश्रम में जो मौन या की चुप रहने की ताकत को समझना है उसके महत्व को समझता है आश्रम के बारे में जब भी कोई जरूरी निर्णय लेना होता था तो उसकी राय जरूर लिया करते थे लेकिन यही बात गुरु जी के एक दूसरे शिष्य को बड़ी खटकती थी क्योंकि वह गुरु जी का प्रिय शिष्य बनना चाहता था इसीलिए वह गुरुजी के सामने दूसरे बच्चों के कामों में कुछ ना कुछ कमियां निकालता रहता था जिसकी वजह से गुरुजी उसे महान समझने लग जाए अक्सर वह अपनी जिम्मेदारियां पूरी तरह
से निभाने का दिखावा भी करता था चाहे उससे कोई सलाह भी मांगे लेकिन फिर भी वह उन्हें अपनी सलाह देता रहता था वह बहुत ही बातूनी शिष्य था और आश्रम के दूसरे सभी बच्चों में बहुत प्रसिद्ध भी था क्योंकि वह सबसे हंसी मजाक करता रहता था उनसे दिन भर बातें करता रहता था इसीलिए उसकी सबसे दोस्ती हो गई थी लेकिन जब आश्रम के गुरु उसकी राय ना लेकर दूसरे बच्चे की राय लेते थे तो यह बात उसे बड़ी खटकती थी उसे यह लगता था कि वह उस दूसरे बच्चे से ज्यादा बुद्धिमान है लेकिन गुरुजी फिर
भी उस कम बोलने वाले शिष्य की तरफदारी करते हैं ऐसा नहीं था कि गुरुजी को बातूनी शिष्य के स्वभाव के बारे में पता नहीं था लेकिन गुरुजी उसे अपने तरीके से सीख देना चाहते थे ताकि उसकी ज्यादा बोलने की आदत दिखावा करने की आदत दूसरों में कमियां निकालने की आदत हमेशा हमेशा के लिए खत्म हो जाए और वह मौन रहकर ध्यान की गहराइयों को समझे असल में हर सच्चे गुरु की यही इच्छा होती है वो किसी ना किसी तरीके से उस बातूनी शिष्य को यह एहसास कराना चाहते थे कि चुप रहने से ही वह असीम
सत्य को जान सकता है उस विराट का एहसास चुप होकर ही किया जा सकता है एक दिन गुरुजी को एक तरीका सूझा उन्होंने आश्रम के सभी बच्चों को अपने पास बुलाया और कहा कि मैं तुम सभी को दो-दो हिस्सों में बांटकर अलग-अलग गांवों में भिक्षा मांगने के ले फेज रहा और जो भी दो बच्चे सबसे ज्यादा भिक्षा मांग कर लाएंगे उन दोनों को आश्रम की सभी जिम्मेदारियां निभाने का मौका दिया जाएगा अपनी बात को जारी रखते हुए गुरुजी ने बताया कि भिक्षा मांगने से हमारा अहंकार भी खत्म होता है इसीलिए हर शिष्य पूरे मन से
भिक्षा मांगी कोई भी इस काम को सिर्फ दिखावा करने के लिए ना करें वरना वह अपने जीवन का बहुत बड़ा ज्ञान पाने का मौका खो देगा आश्रम के गुरुजी ने जानबूझकर बानी शिष्य और चुप रहने वाले शिष्य की जोड़ी बना दिया बानी शिष्य के मन में सिर्फ एक ही बात चल रही थी कि इस बार उसे मौका मिला है और इस बार वह गुरुजी को दिखा देगा कि वह चुप रहने वाले शिष्य से कितना ज्यादा बेहतर है दोनों शिष्यों ने आपस में अपनी सहमति से निर्णय लिया कि दोनों गांव के अलग-अलग जगह से भिक्षा मांगना
शुरू करेंगे ताकि भिक्षा मांगने का काम जल्दी खत्म किया जा सके चुप रहने वाला शिष्य हर द्वार पर जाकर अपने हाथ जोड़कर अपना भिक्षा का पात्र उनके सामने कर देता उसके चेहरे पर एक सादगी और उसकी आंखों में एक एकांत होता था जिससे भिक्षा देने वाले उसे भिक्षा देकर अपने आप संतुष्ट समझते थे वहीं पर दूसरा बातूनी शिष्य हर द्वार पर जाकर उनको कुछ ना कुछ ज्ञान देने लगता था जिसकी वजह से ज्यादातर लोग उसे बिना भिक्षा दिए ही लौटा देते थे पूरे गांव में भिक्षा मांगकर जब दोनों गांव के बीच में मिले तो बातूनी
शिष्य ने देखा कि चुप रहने वाले शिष्य के पास उससे दो गुनी भिक्षा थी यह देखकर उसे मन ही मन में बहुत ठेस पहुंचा लेकिन जब वह दोनों भिक्षा का सामान लेकर आश्रम की तरफ जा रहे तब बातूनी शिष्य को एक चालाकी सूझी उसने चुप रहने वाले शिष्य से कहा कि हमें अपनी भिक्षा एक ही थैले में डाल लेना चाहिए गुरु जी ने हम दोनों को एक साथ भिक्षा लाने के लिए कहा था चुप रहने वाले शिष्य ने बिना कुछ बोले अपनी सारी भिक्षा उसके थैले में डाल दी बातूनी शिष्य मन ही मन में बहुत
खुश हो रहा था कि अब गुरु को यह पता नहीं चलेगा कि ज्यादा भिक्षा हम में से किसने मांगी है उसे लग रहा था कि गुरुजी मुझे इससे ज्यादा बेहतर समझेंगे इसीलिए उसने यह तरकीब लगाया सभी शिष्यों के आने के बाद संध्या के समय जब सभी की भिक्षा तो ली गई तो इन दोनों शिशु की भिक्षा सबसे ज्यादा निकली गुरुजी ने इन दोनों का अभिवादन करते हुए आश्रम के सभी बच्चों के सामने उनकी पीठ थपथपाते हुए उन्हें मुबारकबाद दी और कहा कि मैं आश्रम का कार्यभार तुम दोनों को नहीं सौंप सकता है इससे आपसी मतभेद
होने का खतरा है इसीलिए तुम दोनों में से जो ज्यादा भिक्षा लेकर आया है आश्रम जिम्मेदारी उसे ही सौंपी जाएगी जब उन्होंने दोनों शिष्यों से पूछा कि तुम में से ज्यादा भिक्षा मांगकर लाया था तो बातूनी शिष्य ने कहा कि गुरु जी मैं इससे दुगनी भिक्षा मांग कर लाया था लेकिन मुझसे गलती हो गई कि मैंने वह दोनों भिक्षा एक ही थैले में डाल ली मुझे नहीं पता था कि आप ऐसा निर्णय लेने वाले हैं वरना तो मैं अपनी भिक्षा का थैला अलग ही रखता इस पर गुरु ने चुप रहने वाले शिष्य से पूछा कि
क्या तुम इसकी बात से सहमत हो क्या तुम इससे कम भिक्षा लेकर आए थे यह सुनकर चुप रहने वाले शिष्य ने कहा कि गुरु जी मेरे पास ऐसा कोई भी साधन नहीं है जिससे मैं यह साबित कर पाओ कि मैं इससे ज्यादा भिक्षा लेकर आया था असल में यह उल्टा बोल रहा है दुगनी भिक्षा में लेकर आया था यह मुझसे आधी भिक्षा लेकर आया था और इसीलिए ही मुझसे भिक्षा एक थैले में डालने की बात कहा था आश्रम से कुछ दूरी पर एक पहाड़ी थी जिसके पीछे सूरज अभी-अभी संध्या के समय ढल रहा था गुरुजी
को तो पता था कि सच कौन बोल रहा लेकिन बाकी बच्चों के सामने सच साबित करने के लिए उन्होंने उन दोनों से एक सवाल पूछा कि पीछे पहाड़ी पर तुम्हें क्या दिखाई दे रहा है यह सुनकर वह चालक शिष्य झट से बोल पड़ा कि गुरुजी पहाड़ी के पीछे सूरज अपना रंग बिखेर रहा है आसमान में लालिमा छाई हुई है यह बहुत ही सुंदर दृश्य है वह तो और भी बहुत कुछ कहना चाहता था लेकिन गुरुजी ने उसे चुप करते हुए दूसरे शिष्य से जवाब जानने के लिए प्रयास किया जब उस की तरफ देखा तो उसकी
आंखों में आंसू भरे हुए थे श्रद्धा भक्ति और प्रेम से उसकी आंखें भर आई थी गुरुजी को उससे पूछने की जरूरत ही नहीं पड़ी गुरुजी ने सभी बच्चों को संबोधित करते हुए कहा कि मैंने सवाल किया था कि पहाड़ी के पीछे तुम्हें क्या दिखाई दे रहा है ज्यादातर लोगों को यही दिखाई देगा कि एक बहुत सुंदर दृश्य है लेकिन मजे की बात यह है कि सुंदरता बोलकर ही नहीं बताई जा सकती उसे महसूस भी किया जा सकता है और सामने वाला सुंदरता को आप की आंखों में देख पाता है चुप रहने वाले शिष्य की तरफ
इशारा करते हुए जी ने कहा कि असल में सुंदरता किसी बच्चे ने देखी है दूसरे बच्चे ने सिर्फ सुंदरता की ऊपर ऊपर से व्याख्या की है लेकिन इसने वास्तविकता में उस सुंदरता को महसूस किया है अपने आप को ऊंचा दिखाने की सभी कोशिशें नाकाम होती देख वह चालाक शिष्य वहीं पर फूट फूट कर रोने लगा उसको चुप कराते हुए गुरुजी ने कहा कि बेटा मुझे पहले से पता था कि तुम झूठ बोल रहे हो लेकिन मैं तुम्हें उस झूठ का एहसास कराना चाहता था सभी बच्चों को संबोधित करते हुए गुरुजी ने बताया कि शब्द एक
जाल की तरह होते हैं हमारे ज्यादा बोलने की वजह से बहुत सारी समस्याएं पैदा होती हैं जब कोई आदमी एक बात को बढ़ा चढ़ा कर बोल देता है तो उसे साबित करने के लिए शब्दों के जाल में फंसता चला जाता है और इसी वजह से अंतर्मुखी होने की बजाय वह बहिर्मुखी होता चला जाता है वहीं पर जिस भी व्यक्ति को अपनी अंतर यात्रा करनी होती है अपने आप को पहचाना चाहता है उसे सबसे पहले चुप रहना सीखना होता है जरूरत से ज्यादा बोलना या फिर हर वक्त बोलते ही रहना यह सब हमारी अंतर यात्रा में
बाधा बन जाती है जब आप चुप रहने का अभ्यास करते हैं तो आप अपने साथ वक्त बिताने लगते हैं जिससे कि आप अपने एकांत को जान पाते हैं एक बार अगर मन में एकांत स्थापित हो चाहे तो आपकी आंखों में आपके चेहरे पर वह सादगी वह एकांत व स्पष्टता की झलक सब कुछ सामने नजर आने लगता है कुछ साबित करने को नहीं रह जाता कुछ बताने को नहीं रह जाता सब कुछ आंखों में देखा जा सकता है चुप रहने वाले शिष्य की तरफ इशारा करते हुए गुरुजी ने कहा कि अभी जो दृश्य है इस बच्चे
ने देखा वह ज्यादा बोलने वाला आदमी कभी नहीं देख पाएगा वह अपनी बुद्धि से तर्क वितर्क करता रहेगा कि उसे क्या-क्या दिखाई दे रहा है लो उसमें से वह महसूस कुछ भी नहीं कर पाएगा उसे दिखाई दे जाएंगे तो सिर्फ पहाड़ सूरज या फिर उसकी लालिमा लेकिन उस सुंदरता को उस विराट को उस द्वैत को वह कभी नहीं देख पाएगा अगर चुप रहने की कला सीखनी है तो तुम्हें सबसे पहले एक बात ध्यान रखनी होगी कि तुम्हें किसी को भी बिना वजह खुश करने की कोशिश नहीं करनी है ज्यादातर लोग इसी वजह से ज्यादा बोलते
हैं क्योंकि वह दूसरों को खुश करना चाहते हैं अपने आप को साबित करना चाहते हैं उस साबित करने के चक्कर में वह शब्दों के जाल में फंसते ही चले जाते हैं और धीरे-धीरे वहीं उनकी आदत बन जाती है अगर कोई व्यक्ति दूसरों को खुश करना चाहता है तो वह कितने लोगों को खुश कर पाएगा उसकी यह भूख बढ़ती ही जाएगी और वही संसार में सभी को कभी भी खुश नहीं कर पाएगा इसलिए यह समझने की बात होती है कि बहिर्मुखी होने की बजाय हम अंतर्मुखी होकर अपने आप को समझ सकते हैं अपनी बातों को खत्म
करते हुए गुरुजी ने अपना आखिरी संदेश दिया उन्होंने बताया कि अगर कोई व्यक्ति ज्यादा समय तक चुप नहीं रह सकता तो उसे थोड़े समय के लिए अभ्यास करना चाहिए निश्चित संकल्प लेकर किसी वृद्ध की तरह दिन में कुछ समय या फिर हफ्ते में कुछ समय या फिर एक दिन चुप रहने का अभ्यास जरूर किया जाना चाहिए इससे हमारी चुप रहने की आदत धीरे-धीरे खुद ब खुद बढ़ने लगती है क्योंकि एक बार जब हम चुप रहने लगते हैं तो हमें चुप रहने का आनंद पता चल जाता है उसके बाद हमें कोशिश नहीं करनी पड़ती बल्कि हमारा
मन आनंद की तरफ अपने आप बढ़ता चला जाता है चुप रहने की कला सीखने के बाद आपकी बुद्धिमानी और आपकी स्पष्टता दोनों में बहुत ज्यादा फायदा होगा वास्तविकता में जिसे दर्शन कहते हैं वह मौन रहकर ही किया जा सकता है इसके बाद सभी बच्चों ने कुछ समय चुप रहने का संकल्प लिया और सभी बच्चे रात्रि का भोजन करने के लिए एक साथ भोजन कक्ष में पहुंच गए तो दोस्तों मेरा मोटी यही समझाने का था कि कैसे हम हर चीज को सिर्फ देखते हैं लेकिन अगर उसे महसूस करना सीख गए तो जिंदगी जीने में बहुत मजा
आएगा तो बस अगर आपको कुछ भी सीखने को मिला हो तो वीडियो को लाइक कर दीजिए और चैनल को सब्सक्राइब कर दीजिए दोस्तों आज मैं आपसे एक सवाल पूछना चाहता हूं क्या इस दुनिया में हमारे लिए ज्यादा बोलना अच्छी बात है कहीं ना कहीं ज्यादातर लोग इसी वजह से ज्यादा बोलते हैं क्योंकि वह दूसरों के सामने अपने आप को अच्छा दिखाना चाहते हैं दूसरों के सामने खुद को साबित करना चाहते हैं तो इस सवाल का जवाब हम एक कहानी के माध्यम से समझेंगे एक समय की बात है जब एक आश्रम में बौद्ध गुरु और उनके
शिष्य रहते थे उन सभी बच्चों में एक बच्चा थोड़ा अलग था आश्रम के सभी बच्चे जब दूसरे कामों में लगे होते थे तो वह बच्चा एक कोने में बैठकर चुपचाप अपने आप में खोया रहता था वह अक्सर किसी से ज्यादा बात नहीं करता था आश्रम की सभी जिम्मेदारियां पूरी करने के बाद जब सभी बच्चे पूरे दिन की घटनाओं के बारे में बातें करने लगते हैं तब वह शांत रहने वाला बच्चा एक बरगद के पेड़ के नीचे बैठकर न करने लगता सभी बच्चों को देखकर आश्चर्य होता था क्योंकि उसका कोई दोस्त नहीं था वह अक्सर आश्रम
में अकेला ही घूमता रहता था यह देखकर उसके गुरु को बड़ी खुशी होती थी उसे लगता था कि कोई तो है आश्रम में जो मौन यानी कि चुप रहने की ताकत को समझना है उसके महत्व को समझता है आश्रम के बारे में जब भी कोई जरूरी निर्णय लेना होता था तो उसकी राय जरूर लिया करते थे लेकिन यही बात गुरुजी के एक दूसरे शिष्य को बड़ी खटकती थी क्योंकि व गुरुजी का प्रिय शिष्य बनना चाहता था इसीलिए वह गुरुजी के सामने दूसरे बच्चों के कामों में कुछ ना कुछ कमियां निकालता रहता था जिसकी वजह से
गुरुजी उसे महान समझने लग जाए अक्सर वह अपनी जिम्मेदारियां पूरी तरह से निभाने का दिखावा भी करता था चाहे उससे कोई सलाह भी मांगे लेकिन फिर भी वह उन्हें अपनी सलाह देता रहता था वह बहुत ही बातूनी शिष्य था और आश्रम के दूसरे सभी बच्चों में बहुत प्रसिद्ध भी था क्योंकि वह सबसे हंसी मजाक करता रहता था उनसे दिन भर बातें करता रहता था इसीलिए उसकी सबसे दोस्ती हो गई थी लेकिन जब आश्रम के गुरु उसकी राय ना लेकर दूसरे बच्चे की राय लेते थे तो यह बात उसे बड़ी खटकती थी उसे यह लगता था
कि वह उस दूसरे बच्चे से ज्यादा बुद्धिमान है लेकिन गुरुजी फिर भी उस कम बोलने वाले शिष्य की तरफदारी करते हैं ऐसा नहीं था कि गुरुजी को बातूनी शिष्य के स्वभाव के बारे में पता नहीं था लेकिन गुरुजी उसे अपने तरीके से सीख देना चाहते थे ताकि उसकी ज्यादा बोलने की आदत दिखावा करने की आदत दूसरों में कमियां निकालने की आदत हमेशा हमेशा के लिए खत्म हो जाए और वह मौन रहकर ध्यान की गहराइयों को समझे असल में हर सच्चे गुरु की यही इच्छा होती है वह किसी ना किसी तरीके से उस बातूनी शिष्य को
यह एहसास कराना चाहते थे कि चुप रहने से ही वह असीम सत्य को जान सकता है उस विराट का एहसास चुप होकर ही किया जा सकता है एक दिन गुरुजी को एक तरीका सूझा उन्होंने आश्रम के सभी बच्चों को अपने पास बुलाया और कहा कि मैं तुम सभी को दोदो हिस्सों में बांटकर अलग-अलग गांवों में भिक्षा मांगने के फफ भेज रहा और जो भी दो बच्चे सबसे ज्यादा भिक्षा मांग कर लाएंगे उन दोनों को आश्रम की सभी जिम्मेदारियां निभाने का मौका दिया जाएगा अपनी बात को जारी रखते हुए गुरु जी ने बताया कि भिक्षा मांगने
से हमारा अहंकार भी खत्म होता है इसीलिए हर शिष्य पूरे मन से भिक्षा मांगी कोई भी इस काम को सिर्फ दिखावा करने के लिए ना करें वरना वह अपने जीवन का बहुत बड़ा ज्ञान पाने का मौका खो देगा आश्रम के गुरुजी ने जानबूझकर बातूनी शिष्य और चुप रहने वाले शिष्य की जोड़ी बना दिया बातूनी शिष्य के मन में सिर्फ एक ही बात चल रही थी कि इस बार उसे मौका मिला है और इस बार वह गुरुजी को दिखा देगा कि वह चुप रहने वाले शिष्य से कितना ज्यादा बेहतर है दोनों शिष्यों ने आपस में अपनी
सहमति से निर्णय लिया कि दोनों गांव के अलग-अलग जगह से भिक्षा मांगना शुरू करें ताकि भिक्षा मांगने का काम जल्दी खत्म किया जा सके चुप रहने वाला शिष्य हर द्वार पर जाकर अपने हाथ जोड़कर अपना भिक्षा का पात्र उनके सामने कर देता उसके चेहरे पर एक सादगी और उसकी आंखों में एक एकांत होता था जिससे भिक्षा देने वाले उसे भिक्षा देकर अपने आप संतुष्ट समझते थे वहीं पर दूसरा बातूनी शिष्य हरद्वार पर जाकर उनको कुछ ना कुछ ञान देने लगता था जिसकी वजह से ज्यादातर लोग उसे बिना भिक्षा दिए ही लौटा देते थे पूरे गांव
में भिक्षा मांगकर जब दोनों गांव के बीच में मिले तो बातूनी शिष्य ने देखा कि चुप रहने वाले शिष्य के पास उससे दोगुनी भिक्षा थी यह देखकर उसे मन ही मन में बहुत ठेस पहुंचा लेकिन जब वह दोनों भिक्षा का सामान लेकर आश्रम की तरफ जा रहे थे तब बातूनी शिष्य को एक चालाकी सूझी उसने चुप रहने वाले शिष्य से कहा कि हमें अपनी भिक्षा एक ही थैले में डाल लेना चाहिए गुरुजी ने हम दोनों को एक साथ भिक्षा लाने के लिए कहा था चुप रहने वाले शिष्य ने बिना कुछ बोले अपनी सारी भिक्षा उसके
थैले में डाल दी बातूनी शिष्य मन ही मन में बहुत खुश हो रहा था कि अब गुरु को यह पता नहीं चलेगा कि ज्यादा भिक्षा हम में से किसने मांगी है उसे लग रहा था कि गुरु जी मुझे इससे ज्यादा बेहतर समझेंगे इसीलिए उसने यह तरकीब लगाया सभी शिष्यों के आने के बाद संध्या के समय जब सभी की भिक्षा तो ली गई तो इन दोनों शिशु की भिक्षा सबसे ज्यादा निकली गुरुजी ने इन दोनों का अभिवादन करते हुए आश्रम के सभी बच्चों के सामने उनकी पीठ थपथपाते हुए उन्हें मुबारकबाद दी और कहा कि मैं आश्रम
का कार्य भार तुम दोनों को नहीं सौंप सकता है इससे आपसी मतभेद होने का खतरा है इसीलिए तुम दोनों में से जो ज्यादा भिक्षा लेकर आया है आश्रम की जिम्मेदारी उसे ही सौंपी जाएगी जब उन्होंने दोनों शिष्यों से पूछा कि तुम में से ज्यादा भिक्षा मांगकर लाया था तो बातूनी शिष्य ने कहा कि गुरुजी मैं इससे दुगनी भिक्षा मांग कर लाया था लेकिन मुझसे गलती हो गई कि मैंने वह दोनों भिक्षा एक ही थैले में डाल ली मुझे नहीं पता था कि आप ऐसा निर्णय लेने वाले हैं वरना तो मैं अपनी भिक्षा का थैला अलग
ही रखता इस पर गुरु ने चुप रहने वाले शिष्य से पूछा कि क्या तुम इसकी बात से सहमत हो क्या तुम इससे कम भिक्षा लेकर आए थे यह सुनकर चुप रहने वाले शिष्य ने कहा कि गुरु जी मेरे पास ऐसा कोई भी साधन नहीं है जिससे मैं यह साबित कर पाऊ कि मैं इससे ज्यादा भिक्षा लेकर आया था असल में यह उल्टा बोल रहा है दुगनी भिक्षा में लेकर आया था यह मुझसे आधी भिक्षा लेकर आया था और इसीलिए ही मुझसे भिक्षा एक थैले में डालने की बात कहां था आश्रम से कुछ दूरी पर एक
पहाड़ी थी जिसके पीछे सूरज अभी-अभी संध्या के समय ढल रहा था गुरुजी को तो पता था कि सच कौन बोल रहा है लेकिन बाकी बच्चों के सामने सच साबित करने के लिए उन्होंने उन दोनों से एक सवाल पूछा कि पीछे पहाड़ी पर तुम्हें क्या दिखाई दे रहा है यह सुनकर वह चालक शिष्य झट से बोल पड़ा कि गुरुजी पहाड़ के पीछे सूरज अपना रंग बिखेर रहा है आसमान में लालिमा छाई हुई है यह बहुत ही सुंदर दृश्य है वह तो और भी बहुत कुछ कहना चाहता था लेकिन गुरुजी ने उसे चुप करते हुए दूसरे शिष्य
से जवाब जानने के लिए प्रयास किया जब उसकी तरफ देखा तो उसकी आंखों में आंसू भरे हुए थे श्रद्धा भक्ति और प्रेम से उसकी आंखें भर आई थी गुरुजी को उससे पूछने की जरूरत ही नहीं पड़ी गुरुजी ने सभी बच्चों को संबोधित करते हुए कहा कि मैंने सवाल कि था कि पहाड़ी के पीछे तुम्हें क्या दिखाई दे रहा है ज्यादातर लोगों को यही दिखाई देगा कि एक बहुत सुंदर दृश्य है लेकिन मजे की बात यह है कि सुंदरता बोलकर ही नहीं बताई जा सकती उसे महसूस भी किया जा सकता है और सामने वाला सुंदरता को
आपकी आंखों में देख पाता है चुप रहने वाले शिष्य की तरफ इशारा करते हुए जी ने कहा कि असल में सुंदरता किसी बच्चे ने देखी है दूसरे बच्चे ने सिर्फ सुंदरता की ऊपर ऊपर से व्याख्या की है लेकिन इसने वास्तविकता में उस सुंदरता को महसूस किया है अपने आप को ऊंचा दिखाने की सभी कोशिशें नाकाम होती देख वह चालाक शिष्य वहीं पर फूट फूट कर रोने लगा उसको चुप कराते हुए गुरुजी ने कहा कि बेटा मुझे पहले से पता था कि तुम झूठ बोल रहे हो लेकिन मैं तुम्हें उस झूठ का एहसास कराना चाहता था
सभी बच्चों को संबोधित करते हुए गुरुजी ने बताया कि शब्द एक जाल की तरह होते हैं हमारे ज्यादा बोलने की वजह से बहुत सारी समस्याएं पैदा होती हैं जब कोई आदमी एक बात को बढ़ा चढ़ा कर बोल देता है तो उसे साबित करने के लिए शब्दों के जाल में फंसता चला जाता है और इसी वजह से अंतर्मुखी होने की बजाय वह बहिर्मुखी होता चला जाता है वहीं पर जिस भी व्यक्ति को अपनी अंतर यात्रा करनी होती है अपने आप को पहचाना चाहता है उसे सबसे पहले चुप रहना सीखना होता है जरूरत से ज्यादा बोलना या
फिर हर वक्त बोलते ही रहना यह सब हमारी अंतर यात्रा में बाधा बन जाती है जब आप चुप रहने का अभ्यास करते हैं तो आप अपने साथ वक्त बिता लगते हैं जिससे कि आप अपने एकांत को जान पाते हैं एक बार अगर मन में एकांत स्थापित हो चाहे तो आपकी आंखों में आपके चेहरे पर वह सादगी वह एकांत व स्पष्टता की झलक सब कुछ सामने नजर आने लगता है कुछ साबित करने को नहीं रह जाता कुछ बताने को नहीं रह जाता सब कुछ आंखों में देखा जा सकता है चुप रहने वाले शिष्य की तरफ इशारा
करते हुए गुरुजी ने कहा कि अभी जो दृश्य है इस बच्चे ने देखा वह ज्यादा बोलने वाला आदमी कभी नहीं देख पाएगा वह अपनी बुद्धि से तर्क वितर्क करता रहेगा कि उसे क्या-क्या दिखाई दे रहा है खिलो उसमें से वह महसूस कुछ भी नहीं कर पाएगा उसे दिखाई दे जाएंगे तो सिर्फ पहाड़ सूरज या फिर उसकी लालिमा लेकिन उस सुंदरता को उस विराट को उस अद्वैत को वह कभी नहीं देख पाएगा अगर चुप रहने की कला सीखनी है तो तुम्हें सबसे पहले एक बात ध्यान रखनी होगी कि तुम्हें किसी को भी बिना वजह खुश करने
की कोशिश नहीं करनी है ज्यादातर लोग इसी वजह से ज्यादा बोलते हैं क्योंकि वह दूसरों को खुश करना चाहते हैं अपने आप को साबित करना चाहते हैं उस साबित करने के चक्कर में वह शब्दों के जाल में फंसते ही चले जाते हैं और धीरे-धीरे वहीं उनकी आदत बन जाती है अगर कोई व्यक्ति दूसरों को खुश करना चाहता है तो वह कितने लोगों को खुश कर पाएगा उसकी यह भूख बढ़ती ही जाएगी और वही संसार में सभी को कभी भी खुश नहीं कर पाएगा इसलिए यह समझने की बात होती है कि बहिर्मुखी होने की बजाय हम
अंतर्मुखी होकर अपने आप को समझ सकते हैं अपनी बातों को खत्म करते हुए गुरुजी ने अपना आखिरी संदेश दिया उन्होंने बताया कि अगर कोई व्यक्ति ज्यादा समय तक चुप नहीं रह सकता तो उसे थोड़े समय के लिए अभ्यास करना चाहिए निश्चित संकल्प लेकर किसी वृद्ध की तरह दिन में कुछ समय या फिर हफ्ते में कुछ समय या फिर एक दिन चुप रहने का अभ्यास जरूर किया जाना चाहिए इससे हमारी चुप रहने की आदत धीरे-धीरे खुद ब खुद बढ़ने लगती है क्योंकि एक बार जब हम चुप रहने लगते हैं तो हमें चुप रहने का आनंद पता
चल जाता है उसके बाद हमें कोशिश नहीं करनी पड़ती बल्कि हमारा मन आनंद की तरफ अपने आप बढ़ता चला जाता है चुप रहने की कला सीखने के बाद आपकी बुद्धिमानी और आपकी स्पष्टता दोनों में बहुत ज्यादा फायदा होगा वास्तविकता में जिसे दर्शन कहते हैं वह मौन रहकर ही किया जा सकता है इसके बाद सभी बच्चों ने कुछ समय चुप रहने का संकल्प लिया और सभी बच्चे रात्रि का भोजन करने के लिए एक साथ भोजन कक्ष में पहुंच गए तो दोस्तों मेरा मोटी यही समझाने का था कि कैसे हम हर चीज को सिर्फ देखते हैं लेकिन
अगर उसे महसूस करना सीख गए तो जिंदगी जीने में बहुत मजा आएगा तो बस अगर आपको कुछ भी सीखने को मिला हो तो वीडियो को लाइक कर दीजिए और चैनल को सब्सक्राइब कर दीजिए दोस्तों आज मैं आपसे एक सवाल पूछना चाहता हूं क्या इस दुनिया में हमारे लिए ज्यादा बोलना अच्छी बात है कहीं ना कहीं ज्यादातर लोग इसी वजह से ज्यादा बोलते हैं क्योंकि वह दूसरों के सामने अपने आप को अच्छा दिखाना चाहते हैं दूसरों के सामने खुद को साबित करना चाहते हैं तो इस सवाल का जवाब हम एक कहानी के माध्यम से समझेंगे एक
समय की बात है जब एक आश्रम में बौद्ध गुरु और उनके शिष्य रहते थे उन सभी बच्चों में एक बच्चा थोड़ा अलग था आश्रम के सभी बच्चे जब दूसरे कामों में लगे होते थे तो वह बच्चा एक कोने में बैठकर चुपचाप अपने आप में खोया रहता था वह अक्सर किसी से ज्यादा बात नहीं करता था आश्रम की सभी जिम्मेदारियां पूरी करने के बाद जब सभी बच्चे पूरे दिन की घटनाओं के बारे में बातें करने लगते हैं तब वह शांत रहने वाला बच्चा एक बरगद के पेड़ के नीचे बैठकर ध्यान करने लगता सभी बच्चों को देखकर
आश्चर्य होता था क्योंकि उसका कोई दोस्त नहीं था वह अक्सर आश्रम में अकेला ही घूमता रहता था यह देखकर उसके गुरु को बड़ी खुशी होती थी उसे लगता था कि कोई तो है आश्रम में जो मौन यानी कि चुप रहने की ताकत को समझना है उसके महत्व को समझता है आश्रम के बारे में जब भी कोई जरूरी निर्णय लेना होता था तो उसकी राय जरूर लिया करते थे लेकिन यही बात गुरुजी के एक दूसरे शिष्य को बड़ी खटकती थी क्योंकि वह गुरु जी का प्रिय शिष्य बनना चाहता था इसीलिए वह गुरु जी के सामने दूसरे
बच्चों के कामों में कुछ ना कुछ कमियां निकालता रहता था जिसकी वजह से गुरुजी उसे महान समझने लग जाए अक्सर वह अपनी जिम्मेदारियां पूरी तरह से निभाने का दिखावा भी करता था चाहे उससे कोई सलाह भी मांगे लेकिन फिर भी वह उन्हें अपनी सलाह देता रहता था वह बहुत ही बातूनी शिष्य था और आश्रम के दूसरे सभी बच्चों में बहुत प्रसिद्ध भी था क्योंकि वह सबसे हंसी मजाक करता रहता था उनसे दिन भर बातें करता रहता था इसीलिए उसकी सबसे दोस्ती हो गई थी लेकिन जब आश्रम के गुरु उसकी राय ना लेकर दूसरे बच्चे की
राय लेते थे तो यह बात उसे बड़ी खटकती थी उसे यह लगता था कि वह उस दूसरे बच्चे से ज्यादा बुद्धिमान है लेकिन गुरुजी फिर भी उस कम बोलने वाले शिष्य की तरफदारी करते हैं ऐसा नहीं था कि गुरुजी को बातूनी शिष्य के स्वभाव के बारे में पता नहीं था लेकिन गुरुजी उसे अपने तरीके से सीख देना चाहते थे ताकि उसकी ज्यादा बोलने की आदत दिखावा करने की आदत दूसरों में कमियां निकालने की आदत हमेशा हमेशा के लिए खत्म हो जाए और वह मौन रहकर ध्यान की गहराइयों को समझे असल में हर सच्चे गुरु की
यही इच्छा होती है वह किसी ना किसी तरीके से उस बातूनी शिष्य को यह एहसास कराना चाहते थे कि चुप रहने से ही वह असीम सत्य को जान सकता है उस विराट का एहसास चुप होकर ही किया जा सकता है एक दिन गुरुजी को एक तरीका सूझा उन्होंने आश्रम के सभी बच्चों को अपने पास बुलाया और कहा कि मैं तुम सभी को दो-दो हिस्सों में बांटकर अलग-अलग गांवों में भिक्षा मांगने के लि भेज रहा और जो भी दो बच्चे सबसे ज्यादा भिक्षा मांग कर लाएंगे उन दोनों को आश्रम की सभी जिम्मेदारियां निभाने का मौका दिया
जाएगा अपनी बात को जारी रखते हुए गुरु जी ने बताया कि भिक्षा मांगने से हमारा अहंकार भी खत्म होता है इसीलिए हर शिष्य पूरे मन से भिक्षा मांगी कोई भी इस काम को सिर्फ दिखावा करने के लिए ना करें वरना वह अपने जीवन का बहुत बड़ा ज्ञान पाने का मौका खो देगा आश्रम के गुरुजी ने जानबूझकर बातूनी शिष्य और चुप रहने वाले शिष्य की जोड़ी बना दिया बानी शिष्य के मन में सिर्फ एक ही बात चल रही थी कि इस बार उसे मौका मिला है और इस बार वह गुरुजी को दिखा देगा कि वह चुप
रहने वाले शिष्य से कितना ज्यादा बेहतर है दोनों शिष्यों ने आपस में अपनी सहमति से निर्णय लिया कि दोनों गांव के अलग-अलग जगह से भिक्षा मांगना शुरू करेंगे ताकि भिक्षा मांगने का काम जल्दी खत्म किया जा सके चुप रहने वाला शिष्य हर द्वार पर जाकर अपने हाथ जोड़कर अपना भिक्षा का पात्र उनके सामने कर देता उसके चेहरे पर एक सादगी और उसकी आंख में एक एकांत होता था जिससे भिक्षा देने वाले उसे भिक्षा देकर अपने आप संतुष्ट समझते थे वहीं पर दूसरा बातूनी शिष्य हर द्वार पर जाकर उनको कुछ ना कुछ ज्ञान देने लगता था
जिसकी वजह से ज्यादातर लोग उसे बिना भिक्षा दिए ही लौटा देते थे पूरे गांव में भिक्षा मांगकर जब दोनों गांव के बीच में मिले तो बातूनी शिष्य ने देखा कि चुप रहने वाले शिष्य के पास उससे दोगुनी भिक्षा थी यह देखकर उसे मन ही मन में बहुत ठेस पहुंचा लेकिन जब दोनों भिक्षा का सामान लेकर आश्रम की तरफ जा रहे थे तब बातूनी शिष्य को एक चालाकी सूझी उसने चुप रहने वाले शिष्य से कहा कि हमें अपनी भिक्षा एक ही थैले में डाल लेना चाहिए गुरुजी ने हम दोनों को एक साथ भिक्षा लाने के लिए
कहा था चुप रहने वाले शिष्य ने बिना कुछ बोले अपनी सारी भिक्षा उसके थैले में डाल दी बातूनी शिष्य मन ही मन में बहुत खुश हो रहा था कि अब गुरु को यह पता नहीं चलेगा कि ज्यादा भिक्षा हम में से किसने मांगी है उसे लग रहा था कि गुरु जी मुझे इससे ज्यादा बेहतर समझेंगे इसीलिए उसने यह तरकीब लगाया सभी शिष्यों के आने के बाद संध्या के समय जब सभी की भिक्षा तो ली गई तो इन दोनों शिशु की भिक्षा सबसे ज्यादा निकली गुरुजी ने इन दोनों का अभिवादन करते हुए आश्रम के सभी बच्चों
के सामने उनकी पीठ थपथपाते हुए उन्हें मुबारकबाद दी और कहा कि मैं आश्रम का कार्यभार तुम दोनों को नहीं सौंप सकता है इससे आपसी मतभेद होने का खतरा है इसीलिए तुम दोनों में से जो ज्यादा भिक्षा लेकर आया है आश्रम की जिम्मेदारी उसे ही सौंपी जाएगी जब उन्होंने दोनों शिष्यों से पूछा कि तुम में से ज्यादा भिक्षा मांग कर लाया था तो बातूनी शिष्य ने कहा कि गुरु जी मैं इससे दुगनी भिक्षा मांग कर लाया था लेकिन मुझसे गलती हो गई कि मैंने वह दोनों भिक्षा एक ही थैले में डाल ली मुझे नहीं पता था
कि आप ऐसा निर्णय लेने वाले हैं वरना तो मैं अपनी भिक्षा का थैला अलग ही रखता इस पर गुरु ने चुप रहने वाले शिष्य से पूछा कि क्या तुम इसकी बात से सहमत हो क्या तुम इससे कम भिक्षा लेकर आए थे यह सुनकर चुप रहने वाले शिष्य ने कहा कि गुरु जी मेरे पास ऐसा कोई भी साधन नहीं है जिससे मैं यह साबित कर पाऊ कि मैं इससे ज्यादा भिक्षा लेकर आया था असल में यह उल्टा बोल रहा है दुगनी भिक्षा में लेकर आया था यह मुझसे आधी भिक्षा लेकर आया था और इसीलिए ही मुझसे
भिक्षा एक थैले में डालने की बात कहां था आश्रम से कुछ दूरी पर एक पहाड़ी थी जिसके पीछे सूरज अभी-अभी संध्या के समय ढल रहा था गुरुजी को तो पता था कि सच कौन बोल रहा है लेकिन बाकी बच्चों के सामने सच साबित करने के लिए उन्होंने उन दोनों से एक सवाल पूछा कि पीछे पहाड़ी पर तुम्हें क्या दिखाई दे रहा है यह सुनकर वह चालक शिष्य झट से बोल पड़ा कि गुरुजी पहाड़ी के पीछे सूरज अपना रंग बिखेर रहा है आसमान में लालिमा छाई हुई है यह बहुत ही सुंदर दृश्य है वह तो और
भी बहुत कुछ कहना चाहता था लेकिन गुरुजी ने उसे चुप करते हुए दूसरे शिष्य से जानने के लिए प्रयास किया जब उसकी तरफ देखा तो उसकी आंखों में आंसू भरे हुए थे श्रद्धा भक्ति और प्रेम से उसकी आंखें भर आई थी गुरुजी को उससे पूछने की जरूरत ही नहीं पड़ी गुरुजी ने सभी बच्चों को संबोधित करते हुए कहा कि मैंने सवाल किया था कि पहाड़ी के पीछे तुम्हें क्या दिखाई दे रहा है ज्यादातर लोगों को यही दिखाई देगा कि एक बहुत सुंदर दृश्य है लेकिन मजे की बात यह है कि सुंदरता बोलकर ही नहीं बताई
जा सकती उसे महसूस भी किया जा सकता है और सामने वाला सुंदरता को आपकी आंखों में देख पाता है चुप रहने वाले शिष्य की तरफ इशारा करते हुए जी ने कहा कि असल में सुंदरता किसी बच्चे ने देखी है दूसरे बच्चे ने सिर्फ सुंदरता की ऊपर ऊपर से व्याख्या की है लेकिन इसने वास्तविकता में उस सुंदरता को महसूस किया है अपने आप को ऊंचा दिखाने की सभी कोशिशें नाकाम होती देख वह चालाक शिष्य वहीं पर फूट फूट कर रोने लगा उसको चुप कराते हुए गुरुजी ने कहा कि बेटा मुझे पह पहले से पता था कि
तुम झूठ बोल रहे हो लेकिन मैं तुम्हें उस झूठ का एहसास कराना चाहता था सभी बच्चों को संबोधित करते हुए गुरुजी ने बताया कि शब्द एक जाल की तरह होते हैं हमारे ज्यादा बोलने की वजह से बहुत सारी समस्याएं पैदा होती हैं जब कोई आदमी एक बात को बढ़ा चढ़ा कर बोल देता है तो उसे साबित करने के लिए शब्दों के जाल में फंसता चला जाता है और इसी वजह से अंतर्मुखी होने की बजाय वह बहिर्मुखी होता चला जाता है वहीं पर जिस भी व्यक्ति को अपनी अंतर यात्रा कर होती है अपने आप को पहचाना
चाहता है उसे सबसे पहले चुप रहना सीखना होता है जरूरत से ज्यादा बोलना या फिर हर वक्त बोलते ही रहना यह सब हमारी अंतर यात्रा में बाधा बन जाती है जब आप चुप रहने का अभ्यास करते हैं तो आप अपने साथ वक्त बिताने लगते हैं जिससे कि आप अपने एकांत को जान पाते हैं एक बार अगर मन में एकांत स्थापित हो चाहे तो आपकी आंखों में आपके चेहरे पर वह सादगी वह एकांत व स्पष्टता की झलक सब कुछ सामने नजर आने लग कुछ साबित करने को नहीं रह जाता कुछ बताने को नहीं रह जाता सब
कुछ आंखों में देखा जा सकता है चुप रहने वाले शिष्य की तरफ इशारा करते हुए गुरुजी ने कहा कि अभी जो दृश्य है इस बच्चे ने देखा वह ज्यादा बोलने वाला आदमी कभी नहीं देख पाएगा वह अपनी बुद्धि से तर्क वितर्क करता रहेगा कि उसे क्या-क्या दिखाई दे रहा है लो उसमें से वह महसूस कुछ भी नहीं कर पाएगा उसे दिखाई दे जाएंगे तो सिर्फ पहाड़ सूरज या फिर उसकी लालिमा लेकिन उस सुंदरता को उस विराट को उस अद्वैत को वह कभी नहीं देख पाएगा अगर चुप रहने की कला सीखनी है तो तुम्हें सबसे पहले
एक बात ध्यान रखनी होगी कि तुम्हें किसी को भी बिना वजह खुश करने की कोशिश नहीं करनी है ज्यादातर लोग इसी वजह से ज्यादा बोलते हैं क्योंकि वह दूसरों को खुश करना चाहते हैं अपने आप को साबित करना चाहते हैं उस साबित करने के चक्कर में वह शब्दों के जाल में फंसते ही चले जाते हैं और धीरे-धीरे वहीं उनकी आदत बन जाती है अगर कोई व्यक्ति दूसरों को खुश करना चाहता है तो वह कितने लोगों को खुश कर पाएगा उसकी यह भूख बढ़ती ही जाएगी और वही संसार में सभी को कभी भी खुश नहीं कर
पाएगा इसलिए यह समझने की बात होती है कि बहिर्मुखी होने की बजाय हम अंतर्मुखी होकर अपने आप को समझ सकते हैं अपनी बातों को खत्म करते हुए गुरुजी ने अपना आखिरी संदेश दिया उन्होंने बताया कि अगर कोई व्यक्ति ज्यादा समय तक चुप नहीं रह सकता तो उसे थोड़े समय के लिए अभ्यास करना चाहिए निश्चित संकल्प लेकर किसी वृद्ध की तरह दिन में कुछ समय या फिर हफ्ते में कुछ समय या फिर एक दिन चुप रहने का अभ्यास जरूर किया जाना चाहिए इससे हमारी चुप रहने की आदत धीरे-धीरे खुद ब खुद बढ़ने लगती है क्योंकि एक
बार जब हम चुप रहने लगते हैं तो हमें चुप रहने का आनंद पता चल जाता है उसके बाद हमें कोशिश नहीं करनी पड़ती बल्कि हमारा मन आनंद की तरफ अपने आप बढ़ता चला जाता है चुप रहने की कला सीखने के बाद आपकी बुद्धिमानी और आपकी स्पष्टता दोनों में बहुत ज्यादा फायदा होगा वास्तविकता में जिसे दर्शन कहते हैं वह मौन रहकर ही किया जा सकता है इसके बाद सभी बच्चों ने कुछ समय चुप रहने का संकल्प लिया और सभी बच्चे रात्रि का भोजन करने के लिए एक साथ भोजन कक्ष में पहुंच गए तो दोस्तों मेरा मोटी
यही समझाने का था कि कैसे हम हर चीज को सिर्फ देखते हैं लेकिन अगर उसे महसूस करना सीख गए तो जिंदगी जीने में बहुत मजा आएगा तो बस अगर आपको कुछ भी सीखने को मिला हो तो वीडियो को लाइक कर दीजिए और चैनल को सब्सक्राइब कर दीजिए दोस्तों आज मैं आपसे एक सवाल पूछना चाहता हूं क्या इस दुनिया में हमारे लिए ज्यादा बोलना अच्छी बात है कहीं ना कहीं ज्यादातर लोग इसी वजह से ज्यादा बोलते हैं क्योंकि वह दूसरों के सामने अपने आप को अच्छा दिखाना चाहते हैं दूसरों के सामने खुद को साबित करना चाहते
हैं तो इस सवाल का जवाब हम एक कहानी के माध्यम से समझे एक समय की बात है जब एक आश्रम में बौद्ध गुरु और उनके शिष्य रहते थे उन सभी बच्चों में एक बच्चा थोड़ा अलग था आश्रम के सभी बच्चे जब दूसरे कामों में लगे होते थे तो वह बच्चा एक कोने में बैठकर चुपचाप अपने आप में खोया रहता था वह अक्सर किसी से ज्यादा बात नहीं करता था आश्रम की सभी जिम्मेदारियां पूरी करने के बाद जब सभी बच्चे पूरे दिन की घटनाओं के बारे में बातें करने लगते हैं तब वह शांत रहने वाला बच्चा
एक बरगद के पेड़ के नीचे बैठकर ध्यान करने लगता सभी बच्चों को देखकर आश्चर्य होता था क्योंकि उसका कोई दोस्त नहीं था वह अक्सर आश्रम में अकेला ही घूमता रहता था यह देखकर उसके गुरु को बड़ी खुशी होती थी उसे लगता था कि कोई तो है आश्रम में जो मौन यानी कि चुप रहने की ताकत को समझना है उसके महत्व को समझता है आश्रम के बारे में जब भी कोई जरूरी निर्णय लेना होता था तो उसकी राय जरूर लिया करते थे लेकिन यही बात गुरुजी के एक दूसरे शिष्य को बड़ी खटकती थी क्योंकि वह गुरुजी
का प्रिय शिष्य बनना चाहता था इसीलिए वह गुरुजी के सामने दूसरे बच्चों के कामों में कुछ ना कुछ कमियां निकालता रहता था जिसकी वजह से गुरुजी उसे महान समझने लग जाए अक्सर वह अपनी जिम्मेदारियां पूरी तरह से निभाने का दिखावा भी करता था चाहे उससे कोई सलाह भी मांगे लेकिन फिर भी व उन्हें अपनी सलाह देता रहता था वह बहुत ही बातूनी शिष्य था और आश्रम के दूसरे सभी बच्चों में बहुत प्रसिद्ध भी था क्योंकि वह सबसे हंसी मजाक करता रहता था उनसे दिन भर बातें करता रहता था इसीलिए उसकी सबसे दोस्ती हो गई थी
लेकिन जब आश्रम के गुरु उसकी राय ना लेकर दूसरे बच्चे की राय लेते थे तो यह बात उसे बड़ी खटकती थी उसे यह लगता था कि वह उस दूसरे बच्चे से ज्यादा बुद्धिमान है लेकिन गुरुजी फिर भी उस कम बोलने वाले शिष्य की तरफदारी करते हैं ऐसा नहीं था कि गुरुजी को बातूनी शिष्य के स्वभाव के बारे में पता नहीं था लेकिन गुरुजी उसे अपने तरीके से सीख देना चाहते थे ताकि उसकी ज्यादा बोलने की आदत दिखावा करने की आदत दूसरों में कमिया निकालने की आदत हमेशा हमेशा के लिए खत्म हो जाए और वह मौन
रहकर ध्यान की गहराइयों को समझे असल में हर सच्चे गुरु की यही इच्छा होती है वह किसी ना किसी तरीके से उस बातूनी शिष्य को यह एहसास कराना चाहते थे कि चुप रहने से ही वह असीम सत्य को जान सकता है उस विराट का एहसास चुप होकर ही किया जा सकता एक दिन गुरुजी को एक तरीका सूझा उन्होंने आश्रम के सभी बच्चों को अपने पास बुलाया और कहा कि मैं तुम सभी को दोदो हिस्सों में बांटकर अलग-अलग गांवों में भिक्षा मांगने के ले फेज रहा और जो भी दो बच्चे सबसे ज्यादा भिक्षा मांग कर लाएंगे
उन दोनों को आश्रम की सभी जिम्मेदारियां निभाने का मौका दिया जाएगा अपनी बात को जारी रखते हुए गुरु जी ने बताया कि भिक्षा मांगने से हमारा अहंकार भी खत्म होता है इसीलिए हर शिष्य पूरे मन से मांगी कोई भी इस काम को सिर्फ दिखावा करने के लिए ना करें वरना वह अपने जीवन का बहुत बड़ा ज्ञान पाने का मौका खो देगा आश्रम के गुरुजी ने जानबूझकर बातूनी शिष्य और चुप रहने वाले शिष्य की जोड़ी बना दिया बातन शिष्य के मन में सिर्फ एक ही बात चल रही थी कि इस बार उसे मौका मिला है और
इस बार वह गुरुजी को दिखा देगा कि वह चुप रहने वाले शिष्य से कितना ज्यादा बेहतर है दोनों शिष्यों ने आपस में अपनी सहमति से निर्णय लिया कि दोनों गांव के अलग-अलग जगह से भिक्षा मांगना शुरू करेंगे ताकि भिक्षा मांगने का काम जल्दी खत्म किया जा सके चुप रहने वाला शिष्य हर द्वार पर जाकर अपने हाथ जोड़कर अपना भिक्षा का पात्र उनके सामने कर देता उसके चेहरे पर एक सादगी और उसकी आंखों में एक एकांत होता था जिससे भिक्षा देने वाले उसे भिक्षा देकर अपने आप संतुष्ट समझते थे वहीं पर दूसरा बातूनी शिष्य हर द्वार
पर जाकर उनको कुछ ना कुछ ञान देने लगता था जिसकी वजह से ज्यादा लोग उसे बिना भिक्षा दिए ही लौटा देते थे पूरे गांव में भिक्षा मांगकर जब दोनों गांव के बीच में मिले तो बातूनी शिष्य ने देखा कि चुप रहने वाले शिष्य के पास उससे दोगुनी भिक्षा थी यह देखकर उसे मन ही मन में बहुत ठेस पहुंचा लेकिन जब वह दोनों भिक्षा का सामान लेकर आश्रम की तरफ जा रहे थे तब बातूनी शिष्य को एक चालाकी सूझी उसने चुप रहने वाले शिष्य से कहा कि हमें अपनी भिक्षा एक ही थैले में डाल लेना चाहिए
गुरुजी ने हम दोनों को एक साथ लाने के लिए कहा था चुप रहने वाले शिष्य ने बिना कुछ बोले अपनी सारी भिक्षा उसके थैले में डाल दी बातूनी शिष्य मन ही मन में बहुत खुश हो रहा था कि अब गुरु को यह पता नहीं चलेगा कि ज्यादा भिक्षा हम में से किसने मांगी है उसे लग रहा था कि गुरु जी मुझे इससे ज्यादा बेहतर समझेंगे इसीलिए उसने यह तरकीब लगाया सभी शिष्यों के आने के बाद संध्या के समय जब सभी की भिक्षा तो ली गई तो इन दोनों शिशु की भिक्षा सबसे ज्यादा निकली गुरुजी जी
ने इन दोनों का अभिवादन करते हुए आश्रम के सभी बच्चों के सामने उनकी पीठ थपथपाते हुए उन्हें मुबारकबाद दी और कहा कि मैं आश्रम का कार्यभार तुम दोनों को नहीं सौंप सकता है इससे आपसी मतभेद होने का खतरा है इसीलिए तुम दोनों में से जो ज्यादा भिक्षा लेकर आया है आश्रम की जिम्मेदारी उसे ही सौंपी जाएगी जब उन्होंने दोनों शिष्यों से पूछा कि तुम में से ज्यादा भिक्षा मांगकर लाया था तो बातूनी शिष्य ने कहा कि गुरु जी में इससे दुगनी भिक्षा मांग कर लाया था लेकिन मुझसे गलती हो गई कि मैंने वह दोनों भिक्षा
एक ही थैले में डाल ली मुझे नहीं पता था कि आप ऐसा निर्णय लेने वाले हैं वरना तो मैं अपनी भिक्षा का थैला अलग ही रखता इस पर गुरु ने चुप रहने वाले शिष्य से पूछा कि क्या तुम इसकी बात से सहमत हो क्या तुम इससे कम भिक्षा लेकर आए थे यह सुनकर चुप रहने वाले शिष्य ने कहा कि गुरु जी मेरे पास ऐसा कोई भी साधन नहीं है जिससे मैं यह साबित कर पाऊ कि मैं इससे ज्यादा भिक्षा ले लेकर आया था असल में यह उल्टा बोल रहा है दुगनी भिक्षा में लेकर आया था
यह मुझसे आधी भिक्षा लेकर आया था और इसीलिए ही मुझसे भिक्षा एक थैले में डालने की बात कहां था आश्रम से कुछ दूरी पर एक पहाड़ी थी जिसके पीछे सूरज अभी-अभी संध्या के समय ढल रहा था गुरुजी को तो पता था कि सच कौन बोल रहा है लेकिन बाकी बच्चों के सामने सच साबित करने के लिए उन्होंने उन दोनों से एक सवाल पूछा कि पीछे पहाड़ी पर तुम्हें क्या दिखाई दे रहा है यह सुनकर वह चालक शिष्य झट से बोल पड़ा कि गुरुजी पहाड़ी के पीछे सूरज अपना रंग बिखेर रहा है आसमान में लालिमा छाई
हुई है यह बहुत ही सुंदर दृश्य है वह तो और भी बहुत कुछ कहना चाहता था लेकिन गुरुजी ने उसे चुप करते हुए दूसरे शिष्य से जवाब जानने के लिए प्रयास किया जब उसकी तरफ देखा तो उसकी आंखों में आंसू भरे हुए थे श्रद्धा भक्ति और प्रेम से उसकी आंखें भर आई थी गुरुजी को उससे पूछने की जरूरत ही नहीं पड़ी गुरुजी ने सभी बच् को संबोधित करते हुए कहा कि मैंने सवाल किया था कि पहाड़ी के पीछे तुम्हें क्या दिखाई दे रहा है ज्यादातर लोगों को यही दिखाई देगा कि एक बहुत सुंदर दृश्य है
लेकिन मजे की बात यह है कि सुंदरता बोलकर ही नहीं बताई जा सकती उसे महसूस भी किया जा सकता है और सामने वाला सुंदरता को आपकी आंखों में देख पाता है चुप रहने वाले शिष्य की तरफ इशारा करते हुए जी ने कहा कि असल में सुंदरता किसी बच्चे ने देखी है दूसरे बच्चे ने सिर्फ सुंदरता की ऊपर ऊपर से व्याख्या की है लेकिन इसने वास्तविकता में उस सुंदरता को महसूस किया है अपने आप को ऊंचा दिखाने की सभी कोशिशें नाकाम होती देख वह चालाक शिष्य वहीं पर फूट फूट कर रोने लगा उसको चुप कराते हुए
गुरुजी ने कहा कि बेटा मुझे पहले से पता था कि तुम झूठ बोल रहे हो लेकिन मैं तुम्हें उस झूठ का एहसास कराना चाहता था सभी बच्चों को संबोधित करते हुए गुरुजी ने बताया कि शब्द एक जाल की तरह होते हैं हमारे ज्यादा बोलने की वजह से बहुत सारी समस्याए पैदा होती है जब कोई आदमी एक बात को बढ़ा चढ़ा कर बोल देता है तो उसे साबित करने के लिए शब्दों के जाल में फंसता चला जाता है और इसी वजह से अंतर्मुखी होने की बजाय वह बहिर्मुखी होता चला जाता है वहीं पर जिस भी व्यक्ति
को अपनी अंतर यात्रा करनी होती है अपने आप को पहचाना चाहता है उसे सबसे पहले चुप रहना सीखना होता है जरूरत से ज्यादा बोलना या फिर हर वक्त बोलते ही रहना यह सब हमारी अंतर यात्रा में बाधा बन जाती है जब आप चुप रहे का अभ्यास करते हैं तो आप अपने साथ वक्त बिताने लगते हैं जिससे कि आप अपने एकांत को जान पाते हैं एक बार अगर मन में एकांत स्थापित हो चाहे तो आपकी आंखों में आपके चेहरे पर वह सादगी वह एकांत व स्पष्टता की झलक सब कुछ सामने नजर आने लगता है कुछ साबित
करने को नहीं रह जाता कुछ बताने को नहीं रह जाता सब कुछ आंखों में देखा जा सकता है चुप रहने वाले शिष्य की तरफ इशारा करते हुए गुरु जी ने कहा कि अभी जो दृश्य है इस बच्चे ने देखा वह ज्यादा बोलने वाला आदमी कभी नहीं देख पाएगा वह अपनी बुद्धि से तर्क वितर्क करता रहेगा कि उसे क्या-क्या दिखाई दे रहा है लो उसमें से वह महसूस कुछ भी नहीं कर पाएगा उसे दिखाई दे जाएंगे तो सिर्फ पहाड़ सूरज या फिर उसकी लालिमा लेकिन उस सुंदरता को उस विराट को उस अद्वैत को वह कभी नहीं
देख पाएगा अगर चुप रहने की कला सीखनी है तो तुम्हें सबसे पहले एक बात ध्यान रखनी होगी कि तुम्हें किसी को भी बिना वजह खुश करने की कोशिश नहीं करनी है ज्यादातर लोग इसी वजह से ज्यादा बोलते हैं क्योंकि वह दूसरों को खुश करना चाहते हैं अपने आप को साबित करना चाहते हैं उस साबित करने के चक्कर में वह शब्दों के जाल में फंसते ही चले जाते हैं और धीरे-धीरे वहीं उनकी आदत बन जाती है अगर कोई व्यक्ति दूसरों को खुश करना चाहता है तो वह कितने लोगों को खुश कर पाएगा उसकी यह भूख बढ़ती
ही जाएगी और वही संसार में सभी को कभी भी खुश नहीं कर पाएगा इसलिए यह समझने की बात होती है कि बहिर्मुखी होने की बजाय हम अंतर्मुखी होकर अपने आप को समझ सकते हैं अपनी बातों को खत्म करते हुए गुरुजी ने अपना आखिरी संदेश दिया उन्होंने बताया कि अगर कोई व्यक्ति ज्यादा समय तक चुप नहीं रह सकता तो उसे थोड़े समय के लिए अभ्यास करना चाहिए निश्चित संकल्प लेकर किसी वृद्ध की तरह दिन में कुछ समय या फिर हफ्ते में कुछ समय या फिर एक दिन चुप रहने का अभ्यास जरूर किया जाना चाहिए इससे हमारी
चुप रहने की आदत धीरे-धीरे खुद ब खुद बढ़ने लगती है क्योंकि एक बार जब हम चुप रहने लगते हैं तो हमें चुप रहने का आनंद पता चल जाता है उसके बाद हमें कोशिश नहीं करनी पड़ती बल्कि हमारा मन आनंद की तरफ अपने आप बढ़ता चला जाता है चुप रहने की कला सीखने के बाद आपकी बुद्धिमानी और आपकी स्पष्टता दोनों में बहुत ज्यादा फायदा होगा वास्तविकता में जिसे दर्शन कहते हैं वह मौन रहकर ही किया जा सकता है इसके बाद सभी बच्चों ने कुछ समय चुप रहने का संकल्प लिया और सभी बच्चे रात्रि का भोजन करने
के लिए एक साथ भोजन कक्ष में पहुंच गए तो दोस्तों मेरा मोट यही समझाने का था कि कैसे हम हर चीज को सिर्फ देखते हैं लेकिन अगर उसे महसूस करना सीख गए तो जिंदगी जीने में बहुत मजा आएगा तो बस अगर आपको कुछ भी सीखने को मिला हो तो वीडियो को लाइक कर दीजिए और चैनल को सब्सक्राइब कर दीजिए दोस्तों आज मैं आपसे एक सवाल पूछना चाहता हूं क्या इस दुनिया में हमारे लिए बोलना अच्छी बात है कहीं ना कहीं ज्यादातर लोग इसी वजह से ज्यादा बोलते हैं क्योंकि वह दूसरों के सामने अपने आप को
अच्छा दिखाना चाहते हैं दूसरों के सामने खुद को साबित करना चाहते हैं तो इस सवाल का जवाब हम एक कहानी के माध्यम से समझेंगे एक समय की बात है जब एक आश्रम में बौद्ध गुरु और उनके शिष्य रहते थे उन सभी बच्चों में एक बच्चा थोड़ा अलग था आश्रम के सभी बच्चे जब दूसरे कामों में लगे होते थे तो वह बच्चा एक कोने में बैठकर चुपचाप अपने आप में खोया रहता था वह अक्सर किसी से ज्यादा बात नहीं करता था आश्रम की सभी जिम्मेदारियां पूरी करने के बाद जब सभी बच्चे पूरे दिन की घटनाओं के
बारे में बातें करने लगते हैं तब वह शांत रहने वाला बच्चा एक बरगद के पेड़ के नीचे बैठकर ध्यान करने लगता सभी बच्चों को देखकर आश्चर्य होता था क्योंकि उसका कोई दोस्त नहीं था वह अक्सर आश्रम में अकेला ही घूमता रहता था यह देखकर उसके गुरु को को बड़ी खुशी होती थी उसे लगता था कि कोई तो है आश्रम में जो मौन यानी कि चुप रहने की ताकत को समझना है उसके महत्व को समझता है आश्रम के बारे में जब भी कोई जरूरी निर्णय लेना होता था तो उसकी राय जरूर लिया करते थे लेकिन यही
बात गुरु जी के एक दूसरे शिष्य को बड़ी खटकती थी क्योंकि वह गुरु जी का प्रिय शिष्य बनना चाहता था इसीलिए वह गुरु जी के सामने दूसरे बच्चों के कामों में कुछ ना कुछ कमियां निकालता रहता था जिसकी वजह से गुरुजी उसे महान समझने लगे जाए अक्सर वह अपनी जिम्मेदारियां पूरी तरह से निभाने का दिखावा भी करता था चाहे उससे कोई सलाह भी मांगे लेकिन फिर भी व उन्हें अपनी सलाह देता रहता था वह बहुत ही बातूनी शिष्य था और आश्रम के दूसरे सभी बच्चों में बहुत प्रसिद्ध भी था क्योंकि वह सबसे हंसी मजाक करता
रहता था उनसे दिन भर बातें करता रहता था इसीलिए उसकी सबसे दोस्ती हो गई थी लेकिन जब आश्रम के गुरु उसकी राय ना लेकर दूसरे बच्चे की राय लेते थे तो यह बात उसे बड़ी खटकती थी उसे यह लगता था कि वह उस दूसरे बच्चे से ज्यादा बुद्धिमान है लेकिन गुरुजी फिर भी उस कम बोलने वाले शिष्य की तरफदारी करते हैं ऐसा नहीं था कि गुरु जी को बातूनी शिष्य के स्वभाव के बारे में पता नहीं था लेकिन गुरुजी उसे अपने तरीके से सीख देना चाहते थे ताकि उसकी ज्यादा बोलने की आदत दिखावा करने की
आदत दूसरों में कमियां निकालने की आदत हमेशा हमेशा के लिए खत्म हो जाए और वह मौन रहकर ध्यान की गहराइयों को समझे असल में हर सच्चे गुरु की यही इच्छा होती है वह किसी ना किसी तरीके से उस बातूनी शिष्य को यह एहसास कराना चाहते थे कि चुप रहने से ही वह असीम सत्य को जान सकता है उस विराट का एहसास चुप होकर ही किया जा सकता है एक दिन गुरुजी को एक तरीका सूझा उन्होंने आश्रम के सभी बच्चों को अपने पास बुलाया और कहा कि मैं तुम सभी को दो-दो हिस्सों में बांटकर अलग-अलग गांवों
में भिक्षा मांगने के लि फेज रहा और जो भी दो बच्चे सबसे ज्यादा भिक्षा मांग कर लाएंगे उन दोनों को आश्रम की सभी जिम्मेदारियां निभाने का मौका दिया जाएगा अपनी बात को जारी रखते हुए गुरुजी ने बताया कि भिक्षा मांगने से हमारा अहंकार भी खत्म होता है इसीलिए हर शिष्य पूरे मन से भिक्षा मांगी कोई भी इस काम को सिर्फ दिखावा करने के लिए ना करें वरना वह अपने जीवन का बहुत बड़ा ज्ञान पाने का मौका खो देगा आश्रम के गुरुजी ने जानबूझकर बातूनी शिष्य और चुप रहने वाले शिष्य की जोड़ी बना दिया बातूनी शिष्य
के मन में सिर्फ एक ही बात चल रही थी कि इस बार उसे मौका मिला है और इस बार वह गुरुजी को दिखा देगा कि वह चुप रहने वाले शिष्य से कितना ज्यादा बेहतर है दोनों शिष्यों ने आपस में अपनी सहमति से निर्णय लिया कि दोनों गांव के अलग-अलग जगह से भिक्षा मांगना शुरू करेंगे ताकि भिक्षा मांगने का काम जल्दी खत्म किया जा सके चुप रहने वाला शिष्य हर द्वार पर जाकर अपने हाथ जोड़कर अपना भिक्षा का पात्र उनके सामने कर देता उसके चेहरे पर एक सादगी और उसकी आंखों में एक एकांत होता था जिससे
भिक्षा देने वाले उसे भिक्षा देकर अपने आप संतुष्ट समझते थे वहीं पर दूसरा बातूनी शिष्य हर द्वार पर जाकर उनको कुछ ना कुछ ज्ञान देने लगता था जिसकी वजह से ज्यादातर लोग उसे बिना भिक्षा दिए ही लौटा देते थे पूरे गांव में भिक्षा मांगकर जब दोनों गांव के बीच में मिले तो बातूनी शिष्य ने देखा कि चुप रहने वाले शिष्य के पास उससे दोगनी भिक्षा थी यह देखकर उसे मन ही मन में बहुत ठेस पहुंचा लेकिन जब वह दोनों भिक्षा का सामान लेकर आश्रम की तरफ जा रहे थे तब बातूनी शिष्य को एक चालाकी सूझी
उसने चुप रहने वाले शिष्य से कहा कि हमें अपनी भिक्षा एक ही थैले में डाल लेना चाहिए गुरुजी ने हम दोनों को एक साथ भिक्षा लाने के लिए कहा था चुप रहने वाले शिष्य ने बिना कुछ बोले अपनी सारी भिक्षा उसके थैले में डाल दी बात नी शिष्य मन ही मन में बहुत खुश हो रहा था कि अब गुरु को यह पता नहीं चलेगा कि ज्यादा भिक्षा हम में से किसने मांगी है उसे लग रहा था कि गुरुजी मुझे इससे ज्यादा बेहतर समझेंगे इसीलिए उसने यह तरकीब लगाया सभी शिष्यों के आने के बाद संध्या के
समय जब सभी की भिक्षा तो ली गई तो इन दोनों शिशु की भिक्षा सबसे ज्यादा निकली गुरुजी ने इन दोनों का अभिवादन करते हुए आश्रम के सभी बच्चों के सामने उनकी पीठ थपथपाते हुए उन्हें मुबारकबाद दी और कहा कि मैं आश्रम का कार्यभार तुम दोनों को नहीं सौंप सकता है इससे आपसी मतभेद होने का खतरा है इसीलिए तुम दोनों में से जो ज्यादा भिक्षा लेकर आया है आश्रम की जिम्मेदारी उसे ही सौंपी जाएगी जब उन्होंने दोनों शिष्यों से पूछा कि तुम में से ज्यादा भिक्षा मांगकर लाया था तो बातूनी शिष्य ने कहा कि गुरु जी
में इससे दुगनी भिक्षा मांग कर लाया था लेकिन मुझसे गलती हो गई कि मैंने वह दोनों भिक्षा एक ही थैले में डाल ली मुझे नहीं पता था कि आप ऐसा निर्णय लेने वाले हैं वरना तो मैं अपनी भिक्षा का थैला अलग ही रखता इस पर गुरु ने चुप रहने वाले शिष्य से पूछा कि क्या तुम इसकी बात से सहमत हो क्या तुम इससे कम भिक्षा लेकर आए थे यह सुनकर चुप रहने वाले शिष्य ने कहा कि गुरु जी मेरे पास ऐसा कोई भी साधन नहीं है जिससे मैं यह साबित कर पाऊ कि मैं इससे ज्यादा
भिक्षा लेकर आया था असल में यह उल्टा बोल रहा है दुगनी भिक्षा में लेकर आया था यह मुझसे आधी भिक्षा लेकर आया था और इसीलिए ही मुझसे भिक्षा एक थैले में डालने की बात कहां था आश्रम से कुछ दूरी पर एक पहाड़ी थी जिसके पीछे सूरज अभी-अभी संध्या के समय ढल रहा था गुरुजी को तो पता था कि सच कौन बोल रहा है लेकिन बाकी बच्चों के सामने सच साबित करने के लिए उन्होंने उन दोनों से एक सवाल पूछा कि पीछे पहाड़ी पर तुम्हें क्या दिखाई दे रहा है यह सुनकर वह चालक शिष्य झट से
बोल पड़ा कि गुरुजी पहाड़ी के पीछे सूरज अपना रंग बिखेर रहा है आसमान में लालिमा छाई हुई है यह बहुत ही सुंदर दृश्य है वह तो और भी बहुत कुछ कहना चाहता था लेकिन गुरु गुरु जी ने उसे चुप करते हुए दूसरे शिष्य से जवाब जानने के लिए प्रयास किया जब उसकी तरफ देखा तो उसकी आंखों में आंसू भरे हुए थे श्रद्धा भक्ति और प्रेम से उसकी आंखें भर आई थी गुरुजी को उससे पूछने की जरूरत ही नहीं पड़ी गुरुजी ने सभी बच्चों को संबोधित करते हुए कहा कि मैंने सवाल किया था कि पहाड़ी के
पीछे तुम्हें क्या दिखाई दे रहा है ज्यादातर लोगों को यही दिखाई देगा कि एक बहुत सुंदर दृश्य है लेकिन मजे की बात यह है कि सुंदरता बोलकर ही नहीं बताई जा सकती उसे महसूस भी किया जा सकता है और सामने वाला सुंदरता को आपकी आंखों में देख पाता है चुप रहने वाले शिष्य की तरफ इशारा करते हुए जी ने कहा कि असल में सुंदरता किसी बच्चे ने देखी है दूसरे बच्चे ने सिर्फ सुंदरता की ऊपर ऊपर से व्याख्या की है लेकिन इसने वास्तविकता में उस सुंदरता को महसूस किया है अपने आप को ऊंचा दिखाने की
सभी कोशिशें नाकाम होती देख वह चालाक शिष्य वहीं पर फूट फूट कर रोने लगा उसको चुप कराते हुए गुरुजी ने कहा कि बेटा मुझे पहले से पता था कि तुम झूठ बोल रहे हो लेकिन मैं तुम्हें उस झूठ का एहसास कराना चाहता था सभी बच्चों को संबोधित करते हुए गुरुजी ने बताया कि शब्द एक जाल की तरह होते हैं हमारे ज्यादा बोलने की वजह से बहुत सारी समस्याएं पैदा होती हैं जब कोई आदमी एक बात को बढ़ा चढ़ा कर बोल देता है तो उसे साबित करने के लिए शब्दों के जाल में फंसता चला जाता है
और इसी वजह से अंतर्मुखी होने की बजाय वह बहिर्मुखी होता चला जाता है वहीं पर जिस भी व्यक्ति को अपनी अंतर यात्रा करनी होती है अपने आप को पहचाना चाहता है उसे सबसे पहले चुप रहना सीखना होता है जरूरत से ज्यादा बोलना या फिर हर वक्त बोलते ही रहना यह सब हमारी अंतर यात्रा में बाधा बन जाती है जब आप चुप रहने का अभ्यास करते हैं तो आप अपने साथ वक्त बिताने लगते हैं जिससे कि आप अपने एकांत को जान पाते हैं एक बार अगर मन में एकांत स्थापित हो चाहे तो आपकी आंखों में आपके
चेहरे पर वह सादगी वह एकांत व स्पष्टता की झलक सब कुछ सामने नजर आने लगता है कुछ साबित करने को नहीं रह जाता कुछ बताने को नहीं रह जाता सब कुछ आंखों में देखा जा सकता है चुप रहने वाले शिष्य की तरफ इशारा करते हुए गुरुजी ने कहा कि अभी जो दृश्य है इस बच्चे ने देखा वह ज्यादा बोलने वाला आदमी कभी नहीं देख पाएगा वह अपनी बुद्धि से तर्क वितर्क करता रहेगा कि उसे क्या-क्या दिखाई दे रहा है खलो उसमें से वह महसूस कुछ भी नहीं कर पाएगा उसे दिखाई दे जाएंगे तो सिर्फ पहाड़
सूरज या फिर उसकी लालिमा लेकिन उस सुंदरता को उस विराट को उस अद्वैत को वह कभी नहीं देख पाएगा अगर चुप रहने की कला सीखनी है तो तुम्हें सबसे पहले एक बात ध्यान रखनी होगी कि तुम्हें किसी को भी बिना वजह खुश करने की कोशिश नहीं करनी है ज्यादातर लोग इसी वजह से ज्यादा बोलते हैं क्योंकि वह दूसरों को खुश करना चाहते हैं अपने आप को साबित करना चाहते हैं उस साबित करने के चक्कर में वह शब्दों के जाल में फसते ही चले जाते हैं और धीरे-धीरे वहीं उनकी आदत बन जाती है अगर कोई व्यक्ति
दूसरों को खुश करना चाहता है तो वह कितने लोगों को खुश कर पाएगा उसकी यह भूख बढ़ती ही जाएगी और वही संसार में सभी को कभी भी खुश नहीं कर पाएगा इसलिए यह समझने की बात होती है कि बहिर्मुखी होने की बजाय हम अंतर्मुखी होकर अपने आप को समझ सकते हैं अपनी बातों को खत्म करते हुए गुरुजी ने अपना आखिरी संदेश दिया उन्होंने बताया कि अगर कोई व्यक्ति ज्यादा समय तक चुप नहीं रह सकता तो उसे थोड़े समय के लिए अभ्यास करना चाहिए निश्चित संकल्प लेकर किसी वृद्ध की तरह दिन में कुछ समय या फिर
हफ्ते में कुछ समय या फिर एक दिन चुप रहने का अभ्यास जरूर किया जाना चाहिए इससे हमारी चुप रहने की आदत धीरे-धीरे खुद ब खुद बढ़ने लगती है क्योंकि एक बार जब हम चुप रहने लगते हैं तो हमें चुप रहने का आनंद पता चल जाता है उसके बाद हमें कोशिश नहीं करनी पड़ती बल्कि हमारा मन आनंद की तरफ अपने आप बढ़ता चला जाता है चुप रहने की कला सीखने के बाद आपकी बुद्धिमानी और आपकी स्पष्टता दोनों में बहुत ज्यादा फायदा होगा वास्तविकता में जिसे दर्शन कहते हैं वह मौन रहकर ही किया जा सकता है इसके
बाद सभी बच्चों ने कुछ समय चुप रहने का संकल्प लिया और सभी बच्चे रात्रि का भोजन करने के लिए एक साथ भोजन कक्ष में पहुंच गए तो दोस्तों मेरा मोटी यही समझाने का था कि कैसे हम हर चीज को सिर्फ देखते हैं लेकिन अगर उसे महसूस करना सीख गए तो जिंदगी जीने में बहुत मजा आएगा तो बस अगर आपको कुछ भी सीखने को मिला हो तो वीडियो को लाइक कर दीजिए और चैनल को सब्सक्राइब कर दीजिए दोस्तों आज मैं आपसे एक सवाल पूछना चाहता हूं क्या इस दुनिया में हमारे लिए ज्यादा बोलना अच्छी बात है
कहीं ना कहीं ज्यादातर लोग इसी वजह से ज्यादा बोलते हैं क्योंकि वह दूसरों के सामने अपने आप को अच्छा दिखाना चाहते हैं दूसरों के सामने खुद को साबित करना चाहते हैं तो इस सवाल का जवाब हम एक कहानी के माध्यम से समझेंगे एक समय की बात है जब एक आश्रम में बौद्ध गुरु और उनके शिष्य रहते थे उन सभी बच्चों में एक बच्चा थोड़ा अलग था आश्रम के सभी बच्चे जब दूसरे कामों में लगे होते थे तो वह बच्चा एक कोने में बैठकर चुपचाप अपने आप में खोया रहता था वह अक्सर किसी से ज्यादा बात
नहीं करता था आश्रम की सभी जिम्मेदारियां पूरी करने के बाद जब सभी बच्चे पूरे दिन की घटनाओं के बारे में बातें करने लगते हैं तब वह शांत रहने वाला बच्चा एक बरगद के पेड़ के नीचे बैठकर ध्यान करने लगता सभी बच्चों को देखकर आश्चर्य होता था क्योंकि उसका कोई दोस्त नहीं था वह अक्सर आश्रम में अकेला ही घूमता रहता था यह देखकर उसके गुरु को बड़ी खुशी होती थी उसे लगता था कि कोई तो है आश्रम में जो मौन यानी कि चुप रहने की ताकत को समझना है उसके महत्व को समझता है आश्रम के बारे
में जब भी कोई जरूरी निर्णय लेना होता था तो उसकी राय जरूर लिया करते थे लेकिन यही बात गुरु जी के एक दूसरे शिष्य को बड़ी खटकती थी क्योंकि वह गुरुजी का प्रिय शिष्य बनना चाहता था इसीलिए वह गुरुजी के सामने दूसरे बच्चों के कामों में कुछ ना कुछ कमियां निकालता रहता था जिसकी वजह से गुरुजी उसे महान समझने लग जाए अक्सर वह अपनी जिम्मेदारियां पूरी तरह से निभाने का दिखावा भी करता था चाहे उससे कोई सलाह भी मांगे लेकिन फिर भी वह उन्हें अपनी सलाह देता रहता था वह बहुत ही बातूनी शिष्य था और
आश्रम के दूसरे सभी बच्चों में बहुत प्रसिद्ध भी था क्योंकि वह सबसे हंसी मजाक करता रहता था उनसे दिन भर बातें करता रहता था इसीलिए उसकी सबसे दोस्ती हो गई थी लेकिन जब आश्रम के गुरु उसकी राय ना लेकर दूसरे बच्चे की राय लेते थे तो यह बात उसे बड़ी खटकती थी उसे यह लगता था कि वह उस दूसरे बच्चे से ज्यादा बुद्धिमान है लेकिन गुरुजी फिर भी उस कम बोलने वाले शिष्य की तरफदारी करते हैं ऐसा नहीं था कि गुरुजी को बातूनी शिष्य के स्वभाव के बारे में पता नहीं था लेकिन गुरुजी उसे अपने
तरीके से सीख देना चाहते थे ताकि उसकी ज्यादा बोलने की आदत दिखावा करने की आदत दूसरों में कमियां निकालने की आदत हमेशा हमेशा के लिए खत्म हो जाए और वह मौन रहकर ध्यान की गहराइयों को समझे असल में हर सच्चे गुरु की यही इच्छा होती है वह किसी ना किसी तरीके से उस बातूनी शिष्य को यह एहसास कराना चाहते थे कि चुप रहने से ही वह असीम सत्य को जान सकता है उस विराट का एहसास चुप होकर ही किया जा सकता है एक दिन गुरुजी को एक तरीका सूझा उन्होंने आश्रम के सभी बच्चों को अपने
पास बुलाया और कहा कि मैं तुम सभी को दोदो हिस्सों में बांटकर अलग-अलग गांवों में भिक्षा मांगने के फ फेज रहा और जो भी दो बच्चे सबसे ज्यादा भिक्षा मांग कर लाएंगे उन दोनों को आश्रम की सभी जिम्मेदारियां निभाने का मौका दिया जाएगा अपनी बात को जारी रखते हुए गुरुजी ने बताया कि भिक्षा मांगने से हमारा अहंकार भी खत्म होता है इसीलिए हर शिष्य पूरे मन से भिक्षा मांगी कोई भी इस काम को सिर्फ दिखावा करने के लिए ना करें वरना वह अपने जीवन का बहुत बड़ा ज्ञान पाने का मौका खो देगा आश्रम के गुरुजी
ने जानबूझकर बातूनी शिष्य और चुप रहने वाले शिष्य की जोड़ी बना दिया बातून शिष्य के मन में सिर्फ एक ही बात चल रही थी कि इस बार उसे मौका मिला है और इस बार वह गुरुजी को दिखा देगा कि वह चुप रहने वाले शिष्य से कितना ज्यादा बेहतर है दोनों शिष्यों ने आपस में अपनी सहमति से निर्णय लिया कि दोनों गांव के अलग-अलग जगह से भिक्षा मांगना शुरू करेंगे ताकि भिक्षा मांगने का काम जल्दी खत्म किया जा सके चुप रहने वाला शिष्य हर द्वार पर जाकर अपने हाथ जोड़कर अपना भिक्षा का पात्र उनके सामने कर
देता उसके चेहरे पर एक सादगी और उसकी आंखों में एक एकांत होता था जिससे भिक्षा देने वाले उसे भिक्षा देकर अपने आप संतुष्ट समझते थे वहीं पर दूसरा बातूनी शिष्य हर द्वार पर जाकर उनको कुछ ना कुछ ध्यान देने लगता था जिसकी वजह से ज्यादातर लोग उसे बिना भिक्षा दिए ही लौटा देते थे पूरे गांव में भिक्षा मांगकर जब दोनों गांव के बीच में मिले तो बातूनी शिष्य ने देखा कि चुप रहने वाले शिष्य के पास उससे दोगुनी भिक्षा थी यह देखकर उसे मन ही मन में बहुत ठेस पहुंचा लेकिन जब वह दोनों भिक्षा का
सामान लेकर आश्रम की तरफ जा रहे थे तब बातूनी शिष्य को एक चालाकी सूझे उसने चुप रहने वाले शिष्य से कहा कि हमें अपनी भिक्षा एक ही थैले में डाल लेना चाहिए गुरुजी ने हम दोनों को एक साथ भिक्षा लाने के लिए कहा था चुप रहने वाले शिष्य ने बिना कुछ बोले अपनी सारी भिक्षा उसके थैले में डाल दी बातूनी शिष्य मन ही मन में बहुत खुश हो रहा था कि अब गुरु को यह पता नहीं चलेगा कि ज्यादा भिक्षा हम में से किसने मांगी है उसे लग रहा था कि गुरु जी मुझे इससे ज्यादा
बेहतर समझेंगे इसीलिए उसने यह तरकीब लगाया सभी शिष्यों के आने के बाद संध्या के समय जब सभी की भिक्षा तो ली गई तो इन दोनों शि की भिक्षा सबसे ज्यादा निकली गुरुजी ने इन दोनों का अभिवादन करते हुए आश्रम के सभी बच्चों के सामने उनकी पीठ थपथपाते हुए उन्हें मुबारकबाद दी और कहा कि मैं आश्रम का कार्य भार तुम दोनों को नहीं सौंप सकता है इससे आपसी मतभेद होने का खतरा है इसीलिए तुम दोनों में से जो ज्यादा भिक्षा लेकर आया है आश्रम की जिम्मेदारी उसे ही सौंपी जाएगी जब उन्होंने दोनों शिष्यों से पूछा कि
तुम में से ज्यादा भिक्षा मांगकर लाया था तो बातून शिष्य ने कहा कि गुरुजी मैं इससे दुगनी भिक्षा मांग कर लाया था लेकिन मुझसे गलती हो गई कि मैंने वह दोनों भिक्षा एक ही थैले में डाल ली मुझे नहीं पता था कि आप ऐसा निर्णय लेने वाले हैं वरना तो मैं अपनी भिक्षा का थैला अलग ही रखता इस पर गुरु ने चुप रहने वाले शिष्य से पूछा कि क्या तुम इसकी बात से सहमत हो क्या तुम इससे कम भिक्षा लेकर आए थे यह सुनकर चुप रहने वाले शिष्य ने कहा कि गुरुजी मेरे पास ऐसा कोई
भी साधन नहीं है जिससे मैं यह साबित कर पाओ कि मैं इससे ज्यादा भिक्षा लेकर आया था असल में यह उल्टा बोल रहा है दुगनी भिक्षा में लेकर आया था यह मुझसे आदी भिक्षा लेकर आया था और इसीलिए ही मुझसे भिक्षा एक थैले में डालने की बात कहा था आश्रम से कुछ दूरी पर एक पहाड़ी थी जिसके पीछे सूरज अभी-अभी संध्या के समय ढल रहा था गुरुजी को तो पता था कि सच कौन बोल रहा है लेकिन बाकी बच्चों के सामने सच साबित करने के लिए उन्होंने उन दोनों से एक सवाल पूछा कि पीछे पहाड़ी
पर तुम्हें क्या दिखाई दे रहा है यह सुनकर वह चालक शिष्य झट से बोल पड़ा कि गुरुजी पहाड़ी के पीछे सूरज अपना रंग बिखेर रहा है आसमान में लालिमा छाई हुई है यह बहुत ही सुंदर दृश्य है वह तो और भी बहुत कुछ कहना चाहता था लेकिन गुरुजी ने उसे चुप करते हुए दूसरे शिष्य से जवाब जानने के लिए प्रयास किया जब उसकी तरफ देखा तो उसकी आंखों में आंसू भरे हुए थे श्रद्धा भक्ति और प्रेम से उसकी आंखें भर आई थी गुरुजी को उससे पूछने की जरूरत ही नहीं पड़ी गुरुजी ने सभी बच्चों को
संबोधित करते हुए कहा कि मैंने सवाल किया था कि पहाड़ी के पीछे तुम्हें क्या दिखाई दे रहा है ज्यादातर लोगों को यही दिखाई देगा कि एक बहुत सुंदर दृश्य है लेकिन मजे की बात यह है कि सुंदरता बोलकर ही नहीं बताई जा सकती उसे महसूस भी किया जा सकता है और सामने वाला सुंदरता को आपकी आंखों में देख पाता है चुप रहने वाले शिष्य की तरफ इशारा करते हुए जी ने कहा कि असल में सुंदरता किसी बच्चे ने देखी है दूसरे बच्चे ने सिर्फ सुंदरता की ऊपर ऊपर से व्याख्या की है लेकिन इसने वास्तविकता में
उस सुंदरता को महसूस किया है अपने आपको ऊंचा दिखाने की सभी कोशिशें नाकाम होती देख वह चालाक शिष्य वहीं पर फूट फूट कर रोने लगा उसको चुप कराते हुए गुरुजी ने कहा कि बेटा मुझे पहले से पता था कि तुम झूठ बोल रहे हो लेकिन मैं तुम्हें उस झूठ का एहसास कराना चाहता था सभी बच्चों को संबोधित करते हुए गुरुजी ने बताया कि शब्द एक जाल की तरह होते हैं हमारे ज्यादा बोलने की वजह से बहुत सारी समस्याएं पैदा होती हैं जब कोई आदमी एक बात को बढ़ा चढ़ा कर बोल देता है तो उसे साबित
करने के लिए शब्दों के जाल में फंसता चला जाता है और इसी वजह से अंतर्मुखी होने की बजाय वह बहिर्मुखी होता चला जाता है वहीं पर जिस भी व्यक्ति को अपनी अंतर यात्रा करनी होती है अपने आप को पहचाना चाहता है उसे सबसे पहले चुप रहना सीखना होता है जरूरत से ज्यादा बोलना या फिर हर वक्त बोलते ही रहना यह सब हमारी अंतर यात्रा में बाधा बन जाती है जब आप चुप रहने का अभ्यास करते हैं तो आप अपने साथ वक्त बिताने लगते हैं जिससे कि आप अपने एकांत को जान पाते हैं एक बार अगर
मन में एकांत स्थापित हो चाहे तो आपकी आंखों में आपके चेहरे पर वह सादगी वह एकांत व स्पष्टता की झलक सब कुछ सामने नजर आने लगता है कुछ साबित करने को नहीं रह जाता कुछ बताने को नहीं रह जाता सब कुछ आंखों में देखा जा सकता है चुप रहने वाले शिष्य की तरफ इशारा करते हुए गुरुजी ने कहा कि अभी जो दृश्य है इस बच्चे ने देखा वह ज्यादा बोलने वाला आदमी कभी नहीं देख पाएगा वह अपनी बुद्धि से तर्क वितर्क करता रहेगा कि उसे क्या-क्या दिखाई दे रहा है खिलो उसमें से वह महसूस कुछ
भी नहीं कर पाएगा उसे दिखाई दे जाएंगे तो सिर्फ पहाड़ सूरज या फिर उसकी लालिमा लेकिन उस सुंदरता को उस विराट को उस अद्वैत को वह कभी नहीं देख पाएगा अगर चुप रहने की कला सीखनी है तो तुम्हें सबसे पहले एक बात ध्यान रखनी होगी कि तुम्हें किसी को भी बिना वजह खुश करने की कोशिश नहीं करनी है ज्यादातर लोग इसी वजह से ज्यादा बोलते हैं क्योंकि वह दूसरों को खुश करना चाहते हैं अपने आप को साबित करना चाहते हैं उस साबित करने के चक्कर में वह शब्दों के जाल में फंसते ही चले जाते हैं
और धीरे-धीरे वहीं उनकी आदत बन जाती है अगर कोई व्यक्ति दूसरों को खुश करना चाहता है तो वह कितने लोगों को खुश कर पाएगा उसकी यह भूख बढ़ती ही जाएगी और वही संसार में सभी को कभी भी खुश नहीं कर पाएगा इसलिए यह समझने की बात होती है कि बहिर्मुखी होने की बजाय हम अंतर्मुखी होकर अपने आप को समझ सकते हैं अपनी बातों को खत्म करते हुए गुरुजी ने अपना आखिरी संदेश दिया उन्होंने बताया कि अगर कोई व्यक्ति ज्यादा समय तक चुप नहीं रह सकता तो उसे थोड़े समय के लिए अभ्यास करना चाहिए निश्चित संकल्प
लेकर किसी वृद्ध की तरह दिन में कुछ समय या फिर हफ्ते में कुछ समय या फिर एक दिन चुप रहने का अभ्यास जरूर किया जाना चाहिए इससे हमारी चुप रहने की आदत धीरे-धीरे खुद ब खुद बढ़ने लगती है क्योंकि एक बार जब हम चुप रहने लगते हैं तो हमें चुप रहने का आनंद पता चल जाता है उसके बाद हमें कोशिश नहीं करनी पड़ती बल्कि हमारा मन आनंद की तरफ अपने आप बढ़ता चला जाता है चुप रहने की कला सीखने के बाद आपकी बुद्धिमानी और आपकी स्पष्टता दोनों में बहुत ज्यादा फायदा होगा वास्तविकता में जिसे दर्शन
कहते हैं वह रहकर ही किया जा सकता है इसके बाद सभी बच्चों ने कुछ समय चुप रहने का संकल्प लिया और सभी बच्चे रात्रि का भोजन करने के लिए एक साथ भोजन कक्ष में पहुंच गए तो दोस्तों मेरा मोटी यही समझाने का था कि कैसे हम हर चीज को सिर्फ देखते हैं लेकिन अगर उसे महसूस करना सीख गए तो जिंदगी जीने में बहुत मजा आएगा तो बस अगर आपको कुछ भी सीखने को मिला हो तो वीडियो को लाइक कर दीजिए और चैनल को सब्सक्राइब कर दीजिए दोस्तों आज मैं आपसे एक सवाल पूछना चाह चाहता हूं
क्या इस दुनिया में हमारे लिए ज्यादा बोलना अच्छी बात है कहीं ना कहीं ज्यादातर लोग इसी वजह से ज्यादा बोलते हैं क्योंकि वह दूसरों के सामने अपने आप को अच्छा दिखाना चाहते हैं दूसरों के सामने खुद को साबित करना चाहते हैं तो इस सवाल का जवाब हम एक कहानी के माध्यम से समझेंगे एक समय की बात है जब एक आश्रम में बौद्ध गुरु और उनके शिष्य रहते थे उन सभी बच्चों में एक बच्चा थोड़ा अलग था आश्रम के सभी बच्चे जब दूसरे कामों में लगे होते थे तो वह बच्चा एक कोने में बैठकर चुपचाप अपने
आप में खोया रहता था वह अक्सर किसी से ज्यादा बात नहीं करता था आश्रम की सभी जिम्मेदारियां पूरी करने के बाद जब सभी बच्चे पूरे दिन की घटनाओं के बारे में बातें करने लगते हैं तब वह शांत रहने वाला बच्चा एक बरगद के पेड़ के नीचे बैठकर ध्यान करने लगता सभी बच्चों को देखकर आश्चर्य होता था क्योंकि उसका कोई दोस्त नहीं था वह अक्सर आश्रम में अकेला ही घूमता रहता था यह देखकर उसके गुरु को बड़ी खुशी होती थी उसे लगता था कि कोई तो है आश्रम में जो मौन यानी कि चुप रहने की ताकत
को समझना है उसके महत्व को समझता है आश्रम के बारे में जब भी कोई जरूरी निर्णय लेना होता था तो उसकी राय जरूर लिया करते थे लेकिन यही बात गुरुजी के एक दूसरे शिष्य को बड़ी खटकती थी क्योंकि वह गुरुजी का प्रिय शिष्य बनना चाहता था इसीलिए वह गुरुजी के सामने दूसरे बच्चों के कामों में कुछ ना कुछ कमियां निकालता रहता था जिसकी वजह से गुरुजी उसे महान समझने लग जाए अक्सर वह अपनी जिम्मेदारियां पूरी तरह से निभाने का दिखावा भी करता था चाहे उससे कोई सलाह भी मांगे लेकिन फिर भी वह उन्हें अपनी सलाह
देता रहता था वह बहुत ही बातूनी शिष्य था और आश्रम के दूसरे सभी बच्चों में बहुत प्रसिद्ध भी था क्योंकि वह सबसे हंसी मजाक करता रहता था उनसे दिन भर बातें करता रहता था इसीलिए उसकी सबसे दोस्ती हो गई थी लेकिन जब आश्रम के गुरु उसकी ना लेकर दूसरे बच्चे की राय लेते थे तो यह बात उसे बड़ी खटकती थी उसे यह लगता था कि वह उस दूसरे बच्चे से ज्यादा बुद्धिमान है लेकिन गुरुजी फिर भी उस कम बोलने वाले शिष्य की तरफदारी करते हैं ऐसा नहीं था कि गुरु जी को बातूनी शिष्य के स्वभाव
के बारे में पता नहीं था लेकिन गुरु जी उसे अपने तरीके से सीख देना चाहते थे ताकि उसकी ज्यादा बोलने की आदत दिखावा करने की आदत दूसरों में कमियां निकालने की आदत हमेशा हमेशा के लिए खत्म हो जाए और वह मौन रहकर ध्यान की गहराइयों को समझे असल में हर सच्चे गुरु की यही इच्छा होती है वह किसी ना किसी तरीके से उस बातूनी शिष्य को यह एहसास कराना चाहते थे कि चुप रहने से ही वह असीम सत्य को जान सकता है उस विराट का एहसास चुप होकर ही किया जा सकता है एक दिन गुरुजी
को एक तरीका सूझा उन्होंने आश्रम के सभी बच्चों को अपने पास बुलाया और कहा कि मैं तुम सभी को दो-दो हिस्सों में बांटकर अलग-अलग गांवों में भिक्षा मांगने के फफ भेज रहा और जो भी दो बच्चे सबसे ज्यादा भिक्षा मांग कर लाएंगे उन दोनों को आश्रम की सभी जिम्मेदारियां निभाने का मौका दिया जाएगा अपनी बात को जारी रखते हुए गुरुजी ने बताया कि भिक्षा मांगने से हमारा अहंकार भी खत्म होता है इसीलिए हर शिष्य पूरे मन से भिक्षा मांगी कोई भी इस काम को सिर्फ दिखावा करने के लिए ना करें वरना वह अपने जीवन का
बहुत बड़ा ज्ञान पाने का मौका खो देगा आश्रम के गुरुजी ने जानबूझकर बातूनी शिष्य और चुप रहने वाले शिष्य की जोड़ी बना दिया बातूनी शिष्य के मन में सिर्फ एक ही बात चल रही थी कि इस बार उसे मौका मिला है और इस बार वह गुरुजी को दिखा देगा कि वह चुप रहने वाले शिष्य से कितना ज्यादा बेहतर है दोनों शिष्यों ने आपस में अपनी सहमति से निर्णय लिया कि दोनों गांव के अलग-अलग जगह से भिक्षा मांगना शुरू करेंगे ताकि भिक्षा मांगने का काम जल्दी खत्म किया जा सके चुप रहने वाला शिष्य हर द्वार पर
जाकर अपने हाथ जोड़कर अपना भिक्षा का पात्र उनके सामने कर देता उसके चेहरे पर एक सादगी और उसकी आंखों में एक एकांत होता था जिससे भिक्षा देने वाले उसे भिक्षा देकर अपने आप संतुष्ट समझते थे वहीं पर दूसरा बातूनी शिष्य हर द्वार पर जाकर उनको कुछ ना कुछ ञान देने लगता था जिसकी वजह से ज्यादातर लोग उसे बिना भिक्षा दिए ही लौटा देते थे पूरे गांव में भिक्षा मांगकर जब दोनों गांव के बीच में मिले तो बातूनी शिष्य ने देखा कि चुप रहने वाले शिष्य के पास उससे दोगुनी भिक्षा थी यह देखकर उसे मन ही
मन में बहुत ठेस पहुंचा लेकिन जब वह दोनों भिक्षा का सामान लेकर आश्रम की तरफ जा रहे थे तब बातूनी शिष्य को एक चालाकी सूझी उसने चुप रहने वाले शिष्य से कहा कि हमें अपनी भिक्षा एक ही थैले में डाल लेना चाहिए गुरुजी ने हम दोनों को एक साथ भिक्षा लाने के लिए कहा था चुप रहने वाले शिष्य ने बिना कुछ बोले अपनी सारी भिक्षा उसके थैले में डाल दी बातूनी शिष्य मन ही मन में बहुत खुश हो रहा था कि अब गुरु को यह पता नहीं चलेगा कि ज्यादा भिक्षा हम में से किसने मांगी
है उसे लग रहा था कि गुरु जी मुझे इससे ज्यादा बेहतर समझेंगे इसीलिए उसने यह तरकीब लगाया सभी शिष्यों के आने के बाद संध्या के समय जब सभी की भिक्षा तो ली गई तो इन दोनों शिशु की भिक्षा सबसे ज्यादा निकली गुरुजी ने इन दोनों का अभिवादन करते हुए आश्रम के सभी बच्चों के सामने उनकी पीठ थपथपाते हुए उन्हें मुबारकबाद दी और कहा कि मैं आश्रम का कार्यभार तुम दोनों को नहीं सौंप सकता है इससे आपसी मतभेद होने का खतरा है इसीलिए तुम दोनों में से जो ज्यादा भिक्षा लेकर आया है आश्रम की जिम्मेदारी उसे
ही सौंपी जाएगी जब उन्होंने दोनों शिष्यों से पूछा कि तुम में से ज्यादा भिक्षा मांगकर लाया था तो बातूनी शिष्य ने कहा कि गुरु जी में इससे दुग
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