प्रिंटिंग प्रेस का आविष्कार तो देखो हजारों साल बाद हुआ उससे पहले गुप्ता साम्राज्य में ना लोग ताड़ के पत्तों पर लिखा करते थे और इस प्रकार से लिखा करते थे कि पूरी की पूरी जो रामायण है ना आप जेब में रख के घूम सकते हो राजा हर्षवर्धन के बारे में एक बात प्रचलित थी दिन में वो कविताएं सुनते हैं और रात को काम पर फोकस करते हैं राज्य का विस्तार करते हैं ठीक यूपीएससी एस्परेंस की तरह जानते हो एक चीज 9000 साल पहले भी हमारे पूर्वज दांतों में जब दर्द होता था ना तो ड्रिलिंग टेक्नीक
का इस्माल किया करते थे दांतों के दर्द को ठीक करने के लिए बुद्धिज्म में ना एक बहुत सीक्रेट वेपन था लाफ्टर थेरेपी जो आज के समय में हम हंसते हैं ना हा हा हा हा उस समय देखो जो बौद्ध भिक्षु थे ना वो इंसान के अहंकार को तोड़ने के लिए यानी मानवीय अहंकार को तोड़ने के लिए और आत्म ज्ञान के लिए दो चीजों का इस्तेमाल करते थे एक पहेलियां और दूसरा लाफ्टर थेरेपी ये बहुत ज्यादा उपयोगी टूल्स थे उनके लिए जैनिज्म में देखो नॉन वायलेंस के कंसेप्ट को ना इतना ज्यादा एक्सट्रीम प ले जाया गया
इवन सांस लेने पर भी क्वेश्चंस खड़े किए गए कि इससे भी कुछ जीवों को नुकसान हो सकता है सम्राट अशोक ने देखो बहुत सारे [संगीत] [संगीत] इंस्क्राइनॉक्स [संगीत] [संगीत] यह जो वीडियो है आपके लिए देखो एसिएंट हिस्ट्री को बहुत ज्यादा आसान बना देगा भारत वर्ल्ड के ओल्डेस्ट सिविलाइजेशन में से एक है इनफैक्ट हमारा भारत हिंदुइज्म बुद्धिज्म जैनिज्म जैसे महान रिलीजस का बर्थ प्लेस है और सिर्फ यही नहीं भारत में देखो जो भी आया भारत ने सबको अपना लिया और इसके रीजंस भी कई थे जिसमें सबसे प्रमुख है कल्चरल मिक्स अप जैसे कि बुद्धिस्ट आर्ट का
ग्रीक कल्चर से इन्फ्लुएंस होना जिसे आज हम गंदारागोलम या फिर मोरियन आर्ट का पर्शियन कल्चर से इन्फ्लुएंस होना जो कि हेलेनिस्टिक फॉर्म से इन्फ्लुएंस था देखो यह सारे जो लगातार मिक्स अप होते गए ना इससे भारत वर्ल्ड का मोस्ट डावर्स कंट्री बन गया चलिए अब हम देखते हैं कि इस महान सिविलाइजेशन की शुरुआत आखिरकार कहां से होती है इंडियन हिस्ट्री को हम सामान्यता तीन पार्ट्स में डिवाइड करते हैं सबसे पहले एसिएंट हिस्ट्री दूसरे नंबर पर मेडिकल हिस्ट्री और तीसरे नंबर पर मॉडर्न हिस्ट्री और आज हम एंसटिटाइट से जिसे देखो ब्रॉडली तीन पार्ट्स में डिवाइड किया
गया है सबसे पहले स्टोन एज दूसरे नंबर पे ब्रोंज एज और तीसरे नंबर पे आयरन एज सबसे पहला जो स्टोन एज है वो भी फर्द देखो तीन पार्ट्स में डिवाइडेड है सबसे पहले पेल एज दूसरे नंबर पे मजोलिस एज और तीसरे नंबर पे लिथिक एज इन तीनों स्टेजेस पे हमने स्टोन टूल्स को अलग-अलग शेप्स और साइजेस में यूज किया है और देखो टूल्स का शेप साइज और यूजेस में डिफरेंस ने ही एक मेजर डिफरेंशिएबल हम पलिल फिक पीरियड की बात करें तो ये डेवलप हुआ आइस एज के लिस्टो सन पीरियड में जो कि 5 लाख
बीसी से लेकर 10000 बीसी तक था पेलेजिक पीरियड को भी डिवाइड किया गया है सबसे पहले अपर पेल कि दूसरे नंबर पे मिडिल पेल फिक और तीसरे नंबर पे लोअर पेल पीरियड में और ये जो डिफरेंशिएबल टूल्स का इस्तेमाल और इसके बाद क्लाइमेट में बदलाव जैसे धीरे-धीरे गर्मी बढ़ती गई जैसे कि देखो अगर हम लोअर पेल फिक पीरियड की बात करें ना तो आइस एज का मैक्सिमम पार्ट इसी पीरियड से कोंसा इड करता है इस एज की स्टोन टूल की बात करें तो पेल फिक पीपल को अभी देखो स्टोन का इस्तेमाल करना आया ही था
मतलब उसे बेसिक्स पता लगे थे कि किस प्रकार से स्टोन यानी पत्थर का इस्तेमाल किया जा सकता है ये एक स्टोन से दूसरे स्टेन को तोड़ते और जैसे-तैसे करके स्टोन को ना थोड़ा सा शार्प बनाते घिस के जिसे हम बोलते हैं चोपर या क्लेवर जैसे जैसे टाइम बीता ये स्टोन टूल्स को लकड़ी या स्टोन हैमर की मदद से अपने हथेली के बराबर शेप करने लगे जिसे बोला गया हैंड एक्स लोअर पल थिक के प्रोमिन एविडेंस हमें मिलते हैं कई सारे लोकेशंस पे जैसे देखो सोन वैली जो आज के समय पाकिस्तान में है बेलन वैली जो
कि आज के समय उत्तर प्रदेश में है डिडवाना फेमस जगह है जो आज के समय राजस्थान में है भीम बेद का काफी फेमस केव साइट है जो कि आज के समय मध्य प्रदेश में है तो इन सभी साइट्स पर हमें लोअर पलक एज के एविडेंस मिले हैं बोरी साइड को देखो अर्लीस्ट लोअर पलएथिज्मोग्राफी यहां मेनली फ्लेक्स ब्लेडसो से इस टाइम पीरियड का एक इंपोर्टेंट फीचर था इनको या तो मेटामिनडी मारा जाता था जिसकी वजह से एक बहुत ही तीखा यानी शार्पेंड पार्ट टूटकर निकल जाता था और इस टूटे हुए पार्ट को शार्प बना दिया जाता
था जैसे कि देखो ब्लेडसो पलएथिज्मोग्राफी लूनी रिवर बेसिन में स्थित बुद्धा पुष्कर लेख आइस एज के खत्म होते-होते ना अप्पर पथिक पीरियड की शुरुआत हुई जैसे ही क्लाइमेट कंडीशंस थोड़ी सी गर्म हुई सिविलाइजेशन देखो धीरे-धीरे एक्सपेंड करने लगी अपर पिल फिक साइड के स्टोन टूल्स साइज में ना थोड़े बड़े हो गए इंसान थोड़ा और एडवांस हो चुका था अब इंसान स्टोंस को थोड़ा और क्रिएटिव बनाने लगा जैसे देखो स्टोंस को नीडल शेप में लाया गया फिर थोड़े टेढ़े मेढे स्टोंस को फिशिंग गियर की तरह यूज किया सिर्फ इतना नहीं नहीं मध्य प्रदेश के भोपाल और
महाराष्ट्र के जलगांव डिस्ट्रिक्ट से आर्कियोलॉजिस्ट को मिले ऑस्ट्रिच के अंडे से बना मोती यानी पलियथ कि पीपल अब थोड़े फैशनेबल भी हो रहे थे इनफैक्ट देखो इसी टाइम फायर की भी डिस्कवरी हो गई और ये हमें पता चलता है आंध्र प्रदेश के कुरनूल डिस्ट्रिक्ट से क्योंकि वहां पे एस पार्टिकल्स मिले हैं चलिए अब अपर पथिक एज की कुछ इंपोर्टेंट साइट्स को भी हम देख लेते हैं नागार्जुन कोंडा जो कि आंध्र प्रदेश में है निवासा और धवलपुरी जो कि देखो महाराष्ट्र में है बेलन वैली जो कि उत्तर प्रदेश में है और नर्मदा वैली में स्थित मेहता
खेड़ी साइट इनफैक्ट इन साइट्स की डिस्कवरी आज भी देखो चल रही है रुकी नहीं है जैसे कि 2021 में हरियाणा में आर्कियोलॉजिस्ट द्वारा इस पेंटिंग को डिस्कवर किया गया नेक्स्ट आता है देखो मजोलिस कि या मिडल स्टोन एज जिसमें 9000 से लेकर 4000 बीसी तक का पीरियड कवर होता है जो मजोलिस पीरियड है ना इसको हम एक तरफ पलिक और दूसरी तरफ लिथिक पीरियड दोनों के बीच का ना इसको हम लिंकिंग पिन बोलते हैं भारत भारत में अगर बात करें तो मजोलिस आर्कियोलॉजिकल मटेरियल की खोज सबसे पहले जॉन इवांस ने की थी देखो मजोलिस कि
पीरियड के जो स्टोन टूल्स थे ना वो साइज में थोड़े छोटे हो गए थे इसलिए उन्हें बोला गया माइक्रोलिथ माइक्रोलिथ का मतलब होता है छोटे पत्थरों से बने ओजार मिजिक पीरियड में ना टूल्स के इनोवेशन में बो एंड एरो का भी एडिशन हुआ और जब देखो बो एंड एरो का एडिशन हो गया ना तो ना जानवरों का शिकार करना आसान हो गया अब इंसान बड़े-बड़े एनिमल्स को भी इजली मार सकता था और ये हमें देखने को मिला यहां पे मिली पेंटिंग्स में भी जो मजोलिस कि पीरियड था ना उस टाइम की पेंटिंग का मुख्य विषय
हुआ करता था ग्रुप हंटिंग मतलब ग्रुप में शिकार किया जाता था 2023 में आंध्र प्रदेश के गुंटूर डिस्ट्रिक्ट में मिली इस पेंटिंग से पता चला है कि मेजरेट पीरियड के लोगों को ना टिलिंग यानी हल चलाने का भी ज्ञान था इस पीरियड के ज्यादातर सेटलमेंट हमें गंगा रिवर बेसिन में मिलते हैं और इसका मेन रीजन बताया गया इंक्रीजड रेनफॉल क्योंकि देखो बारिश इंक्रीज हुई ना तो प्लांट्स और एनिमल्स दोनों की जनसंख्या काफी बढ़ गई और हंटिंग के परपज से रिवर बेसिन हमेशा से जबरदस्त साइट होती है क्योंकि नदी के किनारे एनिमल्स पानी पीने आते हैं
और शिकारियों का शिकार बन जाते हैं इसी वजह से जो मजोलिस साइट्स है ना वो रिवर बेसिन में काफी मिली है देखो आज की तरह किसी भी और टाइम पीरियड में ना स्थाई भोजन एक बहुत बड़ा रीजन होता है कि लोग सेटल्ड लाइफ जीने लगते हैं स्थाई भोजन का मतलब है कि एक ही जगह आपको लगातार खाना मिल रहा है खाने की अवेलेबिलिटी है तो देखो एक ही जगह पे आपको लगातार खाना मिलेगा तो जाहिरी तौर पे आप वहां रुककर फिर अपना जीवन व्यतीत करने लगोगे और यही हुआ मजोलिस कि पीरियड में एडवांस स्टोन टूल्स
जैसे धनुष और तीर आ गए तो इससे पॉसिबल हुआ कि किसी भी छोटे या बड़े जानवर को मारना और इसके साथ थोड़ा बहुत एग्रीकल्चर से भी जो प्रोडक्शन होता उसके सहारे इंसान एक ही जगह पे रहकर अपना काम चला सकता था और इसीलिए मजोलिस कि पीरियड में अब सेटल्ड लाइफ इंसान जीने लगा अब देखो इसके बाद हम देख लेते हैं मजोलिस कि पीरियड की कुछ इंपोर्टेंट साइट्स को नॉर्थ ईस्ट में इंडिया को अगर हम छोड़ दें तो मजोलिस कि साइट्स हमें पूरे भारत में देखने को मिलती हैं जैसे कि देखो सराय नाहर राय से जो
कि गोमती नगर के किनारे उत्तर प्रदेश में है लगना जो कि गुजरात में है आदम गढ़ और भीम बेटका जो कि मध्य प्रदेश में है और मजोलिस कि पीरियड की सबसे इंपॉर्टेंट साइड बागौर जो कि कोठारी नदी के किनारे राजस्थान में है बागौर देखो इसलिए इंपॉर्टेंट है क्योंकि यहां हमें पूरी की पूरी माइक्रोलिथ इंडस्ट्री मिली है नी छोटे छोटे पत्थरों से बने औजार इनकी इंडस्ट्री हमें यहां पर मिली और एनिमल डोमेस्टिक केशन के पहले एविडेंस भी हमें बागौर राजस्थान और आदम गढ़ एमपी से मिले हैं एनिमल डोमेस्टिक केशन मतलब पशुओं को पालतू बनाना इसके बाद
आया लिथिक या फिर न्यू स्टोन एज जो चला 7000 से लेके 1000 बीसी तक भारत में लिथिक आर्कियोलॉजिकल मटेरियल को पहली बार 1842 में रिडिक किया गया डॉक प्रिमरोज ने यहां पे पाए गए स्टोन टूल्स की बात अगर करें वो देखो ज्यादा पॉलिश्ड मतलब ज्यादा चिकने थे कंपर रिलेटिवली शार्प और खतरनाक भी थे इंडियन आर्कियोलॉजिस्ट एच डी सन कालिया का यह कहना है कि यह पॉलिश्ड शार्पनेस पत्थर को किसी ऑयली सरफेस से रगड़ने से आती थी और सिर्फ यही नहीं लिथिक पीपल को ना यह भी पता था कि किसी भी शार्प ऑब्जेक्ट को हथियार की
तरह कैसे इस्तेमाल करना है और इस बात का एविडेंस हमें मिलता है बिहार के चिरांद गांव से यहां से हमें मिले लिथिक पीरियड के पहले बोन टूल्स जो कि एंटलर शेप के थे लिथिक लोगों को ना एंस टाइम की पहली फा कम्युनिटी भी कंसीडर किया जाता है और इसका रीजन है यहां पर मिलने वाली ढेरों तरह के फूड क्रॉप्स जैसे कि देखो रागी राइस बर्ले यानी कि जो वीट ये सारे फूड क्रॉप्स के जो एविडेंस है ना इस पीरियड से मिलते हैं इनफैक्ट ना क्रॉप्स की तादाद इतनी बढ़ गई थी कि दिक्कत आ गई स्टोर
कहां पे किया जाए उनको इसके लिए देखो उनको स्टोर करने के लिए ना मिट्टी के बर्तन यानी पोटरी की डिस्कवरी भी हो गई इस पीरियड में पोटरी को यानी मिट्टी के बर्तनों को ना तीन तरह से क्लासिफाई किया गया सबसे से पहले ग्रे वेयर दूसरे नंबर पे ब्लैक बर्निश्ड वेयर और तीसरे नंबर पे मैट इंप्रेस्ड वेयर लिथिक टाइम तक हम वूड गैदरर से फूड प्रोड्यूस इकॉनमी बन चुके थे मतलब पहले शिकार करते थे अब हमारा ज्यादा फोकस हो गया एग्रीकल्चर पर और इंसान ना इस पीरियड में केव से बाहर निकलकर मिट्टी के घरों में रहने
लगा इसके बाद अब हम बात करेंगे चालको लिथिक या मेटल एज की जिसका टाइम पीरियड 3500 बीसी से लेके 1000 बीसी तक माना गया है चलकोलिथिक या स्टोन कॉपर एज को भारत का पहला मेटल एज कंसीडर किया जाता है इनफैक्ट देखो हड़प्पा कल्चर को चालको थिक कल्चर का ही पार्ट माना जाता है वैसे देखो इस पीरियड में स्टोन और कॉपर का यूजेस तो दिखता ही है लेकिन कुछ साइट्स जैसे पय पल्ली पे ब्रोंज का यूजेस भी देखा जा सकता है इतिहासकारों ने ना चाल्कलीत कल्चर को ज्योग्राफिकल लोकेशन के हिसाब से डिवाइड किया है जैसे कि
सबसे पहले आता है आहड़ कल्चर जिसको हम की कुछ इंपोर्टेंट साइट्स इस प्रकार से हैं बालाथल गिलुंड ओजिया यह देखो आज के समय में राजस्थान के मेवाड़ रीजन में मिलती हैं इसके बाद दूसरा इंपॉर्टेंट कल्चर चालको थिक पीरियड का कायथा कल्चर ये देखो मध्य प्रदेश में डेवलप हुआ कायथा कल्चर जिसका नाम पड़ा उज्जैन में मिले कायथा साइट के आधार पर हर कल्चर की तरह यहां पर भी हमें खेती और पशुपालन के अवशेष मिले पर यहां की इंटरेस्टिंग बात यह है कि यहां हमें मिलता है हॉर्स रिमेंस यानी घोड़े के अवशेष देखो अभी ये बताना मुश्किल
है कि ये हॉर्स यानी घोड़ा आया कहां से था बट इस डिस्कवरी ने ना रिसर्च के लिए बहुत सारे दरवाजे खोल दिए ऐसा माना जाता है कि इस कल्चर का अंत हुआ अर्थक्वेक यानी भूकंप से इसके बाद हम आगे बढ़ते हैं तीसरे इंपॉर्टेंट कल्चर की तरफ जो कि है मालवा कल्चर ये डेवलप हुआ मालवा रीजन में जो कवर करता है सेंट्रल इंडिया को यहां के साइट्स का एक इंपॉर्टेंट फीचर यह था कि ये नदी किनारे ही डेवलप हुई जैसे कि यहां की पहली आइडेंटिफिकेशन नवदा टोली दोनों देखो नर्मदा के किनारे ही पाए जाते हैं इसके
अलावा नग जो मिलता है चंबल नदी के किनारे और ईरान जो बीना नदी के किनारे स्थित है और आखिर में अब हम बात करेंगे फोर्थ इंपॉर्टेंट कल्चर की जो है जोर्वे कल्चर ये कल्चर डेवलप हुआ महाराष्ट्र रीजन में इसकी इंपोर्टेंट साइट्स हैं दैमाबाद जो हमें गोदावरी वैली में मिलता है नवदा टोली जो है नर्मदा वैली के पास भीमा वैली में मिला इनामगांव और इसके बाद प्रकाश जो हमें मिला है तापी वैली में जोर्वे कल्चर का इंपोर्टेंट फीचर था कि यहां घर अलग-अलग साइज के थे जिससे पता चलता है कि असमानता यानी इनक्व की एंट्री हो
चुकी थी इस कल्चर में जैसे कि दैमाबाद में मिले कुछ घर काफी बड़े-बड़े थे और उसमें उनका अपना बनाया हुआ अलग से देवस्थल यानी टेंपल भी था लेकिन देखो यहां ज्यादातर घर छोटे और अनऑथेंटिकेटेड हड़प्पा कल्चर से ही प्रभावित है इसके बाद जोर्वे कल्चर के नॉर्थ में डेवलप हुआ ओकर कलर्ड पोट्री कल्चर इस कल्चर का नाम पड़ा यहां पर मिलने वाली ओकर यानी गेरुआ कलर की पोटरी से यहां पे मिले आर्टिफिकल कृति हड़प्पा सिविलाइजेशन से मिलने वाली कलाकृतियों से बहुत सिमिलर थी हम ओकर कलर्ड पोटरी कल्चर की बात करें तो यह हमें मिलती हैं उत्तर
प्रदेश के बिसोली और राजपुर परसु एरियाज में चलकोलिथिक पीरियड के कुछ इंपॉर्टेंट फीचर्स को देखें तो यहां के ज्यादातर घर मड यानी मिट्टी के बने हुए थे पर कुछ साइट्स जैसे गिल्लू में पकी हुई ईंटों का इस्तेमाल भी देखा गया यहां का रहन-सहन रूरल ही था और मोस्टली लोग खेती या पशुपालन पे ही डिपेंडेंट थे वैसे देखा जाए तो कॉपर की डिस्कवरी हो गई थी पर चलकोलिथिक लो को मेटल प्लो बनाना अभी भी सीखना बाकी था मेटल प्लो मतलब मेटल से बना हल जो काम आता है खेत जोतने के वो खेती के लिए अभी भी
लकड़ी से बना हुआ हल यानी प्लो इस्तेमाल करते थे शायद इसलिए एग्रीकल्चर प्रोडक्शन अभी भी कम कमी था असमानता यानी इनिक्वालिटी का कीड़ा चाल्कलीत लोगों में आ चुका था जैसे यहां पर मिले कुछ ग्रेव्स यानी कबर में कॉपर के आर्टिफी कलाकृतियां ज्यादा थे उनका साइज भी बड़ा था ऐसे ही कुछ घर 20 हेक्टेयर में फैले हुए थे वहीं कुछ का एरिया सिर्फ 5 हेक्टेयर का था यानी इन इक्वालिटीज आ चुकी थी कबर के मामले में भी घर के साइज के मामले में भी चलकोलिथिक को ऑलमोस्ट साइमल नियस रिप्लेस किया ब्रॉन्ज एज यानी इंडस वैली सिविलाइजेशन
ने अब हम बात करेंगे हड़प सिविलाइजेशन की यानी कि इंडस वैली सिविलाइजेशन की जिसका टाइम पीरियड देखो 3300 बीसी से लेकर 1300 बीसी तक माना गया है इंडस वैली सिविलाइजेशन को साउथ एशिया का पहला अर्बन सिविलाइजेशन माना जाता है इंडस वैली सिविलाइजेशन के साथ शुरू हुए मेसोपोटामियन इजिप्शियन और चाइनीज सिविलाइजेशन को क्रैडल्स ऑफ सिविलाइजेशन भी बोला गया है 1921 में फर्स्ट टाइम दयाराम साहनी ने इसकी खोज की और इसको इंडस वैली सिविलाइजेशन नाम दिया जॉन मार्शल ने वैसे देखो ये सिविलाइजेशन शुरू कहां से हुई ये बता पाना आज भी मुश्किल है 2022 में हरियाणा की
राखीगढ़ी साइट में एक स्टडी के बाद यह निष्कर्ष निकाला गया कि हड़प्पा सिविलाइजेशन इंडिपेंडेंट थी मतलब यहां के जो लोग थे वो देसी थे ऐसा नहीं कि बाहर से आए लोगों ने ये सिविलाइजेशन बसाई थी चलिए अब हम देखते हैं भारत के पहले अर्बन सिविलाइजेशन के कुछ इंपॉर्टेंट फीचर्स इस सिविलाइजेशन की सबसे अच्छी बात यह थी कि लोग बहुत ही ज्यादा संथी तरह से यहां रहते थे जैसे यहां की टाउन प्लानिंग जैसे देखो आप इस इमेज को देखो आपको एक प्रॉपर पैटर्न देखने को मिलेगा जैसे कि देखो दो सड़कें जो है ना आपस में 90
डिग्री एंगल प काटती हैं देखो आज आप इंडिया की बड़ी-बड़ी सिटीज देखोगे ना दिल्ली मुंबई वहां पे भी कई-कई जगह पे ना इतना अच्छा सिवरेज सिस्टम ड्रेनेज सिस्टम आपको नहीं मिलेगा जितना अच्छा ड्रेनेज सिस्टम हड़प्पा सिविलाइजेशन में था वहां हर घर से गंदा पानी निकलता एक बड़े नाले में वो गंदा पानी जाता और उस गंदे नाले की साफ सफाई का भी पूरा ध्यान रखा जाता था उस नाले को ढका गया था बड़ी-बड़ी सिलियो से जो पत्थर की होती थी और समय-समय पर वो पत्थर की सिलिया हटा के नाले की सफाई भी होती थी हड़प सिविलाइजेशन
की सिटीज की बात करें ना दो पार्ट्स में बटी हुई थी एक तो देखो अपर पार्ट दूसरा लोअर पार्ट अपर पार्ट था वो थोड़ी ऊंची उठी हुई जगह पे होता था और लोअर पार्ट में आम लोगों के घर होते थे सुरक्षा के लिए शहर के चारों तरफ एक मजबूत दीवार हुआ करती थी अगर देखो यहां के आर्किटेक्चर को देखें ना तो ये सिविलाइजेशन दुनिया की बाकी सिविलाइजेशन से काफी अलग थी जैसे कि हड़प्पा सिविलाइजेशन में बने हुए घर पकी हुई ईटों से ब ने थे और देखो समकक्ष जो दूसरी सिविलाइजेशन थी ना जैसे मेसोपोटामियन सिविलाइजेशन
अभी भी वहां पे घर बनाने के लिए ना कच्ची ईटों का इस्तेमाल होता था और बात सिर्फ वास्तुकला की नहीं है हड़प्पा सिविलाइजेशन ज्यादा एडवांस थी इवन सोसाइटी के मामले में भी जहां मेसोपोटामियन या फिर इजिप्ट में राजा और रानी अपने बड़े-बड़े महल बनाया करते थे लेकिन हड़प्पा सिविलाइजेशन में या फिर इंडस वैली सिविलाइजेशन में लोकतंत्र का बोलबाला था और यह साबित होता है कि यहां पे ना आपको बड़े-बड़े आर्किटेक्चर नहीं देखने को मिलेंगे बहुत बड़े-बड़े महल आपको नहीं देखने को मिलेंगे तो ये एक एविडेंस है कि इंडस वैली सिविलाइजेशन रिलेटिवली ज्यादा डेमोक्रेटिक थी और
दूसरी तरफ देखो इजिप्ट में आप पिरामिड का एग्जांपल लीजिए वहां पे ऐसे आरोप लगते हैं कि उन पिरामिड्स को बनवाया गया था स्लेव्स का यूज करके मतलब बदुआ मजदूरी करवा के वो बड़े-बड़े पिरामिड्स बनवाए गए थे इसके अलावा देखो इंडस सिविलाइजेशन के लोग ना फैशन भी भरपूर करते थे यहां पे आपको चूड़ियों के एविडेंस मिले हैं ईयररिंग्स लिपस्टिक ये सारी चीजें मिली है बहुत फैशनेबल थे इंस सिविलाइजेशन के लोग इसके बाद अगर यहां के लोगों की हम धार्मिक सोच की बात करें तो वो देखो प्राकृतिक सुंदरता से ज्यादा प्रेरित थे मतलब नेचर वरशिप में वो
विश्वास करते थे जैसे कि देखो मोहन जुदा औरो में पीपल ट्री की मोहर यानी सील मिली है ये प्रूव करती है कि पेड़ की पूजा की जाती थी इंडस सिविलाइजेशन में हमें मंदिर का कोई एविडेंस नहीं मिला है पर हां मोहन जोदा औरो में मिली पशुपति सल या मिट्टी की मदर गोडेस की जो मूरत है इससे यह पता लग गया कि यहां पे मेल गड या फीमेल गोडेस दोनों की ही पूजा की जाती थी इंर सिविलाइजेशन में हमें बहुत सारे जानव के होने होने के एविडेंस मिले हैं जैसे देखो डॉग गोट कैमल और भी बहुत
सारे जानवर लेकिन देखो एक हैरानी की बात यहां पर ना एक बहुत ही इंपोर्टेंट एनिमल काव का कोई भी एविडेंस हमें नहीं मिला है और इसके बाद इकोनॉमिकली भी इंडस सिविलाइजेशन काफी मजबूत थी और इवन सेंट्रल एशिया तक फैला हुआ था हड़प्पा सील्स हमें मिलती है मेसोपोटामिया और इजिप्ट से इसके बाद देखो इंडस सिविलाइजेशन के इंपोर्टेंट पोर्ट साइट्स की हम बात करें तो सबसे पहले आता है लोथल भोगवा रिवर पर स्थित ये पोर्ट इस तरह डिजाइन किया गया था कि फ्लड आने पर भीम इस पोर्ट सा पर कोई खास असर होता नहीं था इसकी बाउंड्री
वाल्स 21 मीटर तक चौड़ी बनाई गई थी और शिप्स को खड़ा करने के लिए यहां पे डोक यार्ड्स भी थे लोथल में मिले मिट्टी की बोट्स और आइवरी स्केल आइवरी स्केल मतलब हाथी के दांत का इस्तेमाल किया जाता था स्केलिंग पर्पसस के लिए तो ये जो चीजें यहां पर मिली है ना इससे इस साइट की जो इंपॉर्टेंस है वो और भी ज्यादा बढ़ जाती है लोथल पोर्ट से कॉटन ट्रेड इतना ज्यादा था कि आज हम इसे मैनचेस्टर ऑफ इंडस सिविलाइजेशन भी कहते हैं मैनचेस्टर यूनाइटेड किंगडम में स्थित एक बहुत बड़ी पोर्ट सिटी है और यहां
हां से बहुत ट्रेड होता है इसीलिए कंपैरिजन किया जाता है मैनचेस्टर और लोथल के बीच में लोथल के बाद इंडस सिविलाइजेशन की नेक्स्ट इंपॉर्टेंट साइट है धोलावीरा आदिर बेठ द्वीप पर मिले इस साइट को 2021 में यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साइट का दर्जा दिया गया था ये वर्ल्ड की दूसरी और भारत की पहली इंडस साइट है जिसे यूनेस्को साइट का दर्जा मिला पहली यूनेस्को साइट पाकिस्तान में स्थित मोहन जोदड़ो थी यहां पर मिले वाटर हार्वेस्टिंग की साइट्स और डैम रिजर्वर की साइट्स है और देखो ये जो साइट्स थी ना डैम रिजर्व या फिर वाटर हार्वेस्टिंग की
साइट्स इनको बहुत ही ज्यादा स्ट्रक्चरल वे में और बहुत ही मजबूती के साथ इन्हें बनाया गया था कुछ-कुछ स्ट्रक्चर जो है ना आज भी जं के त्यों वहां पे वैसे ही बने हुए हैं धोलावीरा की टाउन प्लानिंग बहुत जबरदस्त थी तीन पार्ट्स में टाउन को डिवाइड किया जाता अप्पर पार्ट मिडिल पार्ट और लोअर पार्ट और टाउन के चारों ओर एक बहुत ही मजबूत और दृढ़ दीवार हुआ करती थी टाउन को सुरक्षित रखने के लिए और देखो यहां पर ज्यादातर साइट्स पे मिट्टी के ब्रिक्स का इस्तेमाल होता था धोलावीरा में हमें सैंड स्टोन के भी सबूत
मिले हैं यानी यहां पे सैंड स्टोन का इस्तेमाल होता था इस साइट की इंपॉर्टेंस को देखते हुए भारत सरकार ने इसे आइकॉनिक टूरिस्ट साइट का दर्जा दिया अब हम डिस्कस करते हैं इंडस वैली सिविलाइजेशन की कुछ और इंपोर्टेंट साइट्स या फिर डिस्कवरीज अग देखो आप ये सोच रहे हो ना कि इंडस वैली सिविलाइजेशन को हड़प्पा सिविलाइजेशन क्यों बोला गया दरअसल देखो बात ये है 1921 में पाकिस्तान में रावी नदी के किनारे मिली हड़प्पा साइट ही पहली डिस्कवर्ड साइट थी इंडस वैली सिविलाइजेशन की इसलिए कई बार नाम जो है वो इंटरचेंज करके इस्तेमाल कर लिया जाता
है अगर देखो हम स्पेसिफिकली हड़प्पा साइड की बात करें यहां पे हमें क्या-क्या मिलता है लाल पत्थर से बना हुआ आदमी का धड़ यानी रेड स्टोन टोरस है अनाज के भंडार बहुत बड़े-बड़े भंडार पत्थर से बने हुए लिंगम या योनि देखो लिंगम और योनी का यहां पर मिलना ये दर्शाता है कि हड़प्पा संस फॉलिक वरशिप में भी विश्वास रखते थे हड़प्पा साइड के बाद अब हम बात करेंगे इंडस नदी के किनारे मिली एक और इंपोर्टेंट साइट मोहन जदा औरो इस पे तो मूवी भी बनी है रितिक रोशन की आपने देखी ही होगी 1922 में मोहन
जदा औरो की खोज की आरडी बनर्जी ने आर्कियोलॉजी के पॉइंट से मोहन जोदड़ो का इंपॉर्टेंस बहुत ज्यादा है क्योंकि यहां पर हमें मिलती है ढेरों डिस्कवरीज जैसे कि देखो ग्रेट बाथ नहाने के लिए एक बहुत बड़ी जगह है ग्रेट ग्रेनरी तांबा यानी ब्रोन से बनी हुई डांसिंग गर्ल ब्रोन से बना हुआ बुल पशुपति सील और एक दाढ़ी वाले प्रीस्ट स्टैच्यू मोहन जोदा औरो को 1980 में इंडस सिविलाइजेशन की पहली यूनेस्को साइट का दर्जा मिला मोहन जोदड़ो के साउथ में हमें मिलती है गनेली वाला साइट सोलि स्तान डेजर्ट में मिली इस साइट को अभी ज्यादा तराशा
नहीं गया है पर राखीगढ़ी मोहन जोदा औरो और हड़प्पा के बाद नेरी वाला देखो चौथी बड़ी साइट है इस साइट पे खोज के बाद हमें बहुत बत कुछ मिलने वाला है इंस सिविलाइजेशन की सबसे बड़ी जो साइट है ना वो है हकरा नदी के किनारे मिली राखीगढ़ी साइट जो देखो आज के समय में हरियाणा में स्थित है यहां से हमें पता चलता है हड़प्पा सिविलाइजेशन के जो लोग थे वो देखो डॉग पालते थे यहां हमें मिले कॉपर और गोल्ड की ज्वेलरी और इसके साथ-साथ मिट्टी में दफन इंसान के कुछ डीएनए पार्टिकल्स भी यहां से मिलते
हैं इन डीएनए पार्टिकल्स की स्टडी के बाद ही ये अंदाजा लगाया गया कि इंडस सिविलाइजेशन के लोग थे वो यहीं के मूल निवासी थे यानी ये सिविलाइजेशन पूरी तरह से इंडिपेंडेंट थी इस साइट की इंपॉर्टेंस को देखते हुए भारत सरकार ने इसे भी आइकॉनिक साइट का दर्जा दिया है 2015 में हरियाणा से हमने खोज निकाला इंडस सिविलाइजेशन की ओल्डेस्ट साइट भिराना इससे पहले देखो मोहन जोदड़ो को ओल्डेस्ट साइट का दर्जा मिला हुआ था हरियाणा की देखो एक और इंपोर्टेंट साइट की बात करें ना सरस्वती नदी के किनारे डेवलप हुई बनवाली साइट या फिर बालू जहां
पहली बार गार्लिक यानी लहसुन के अवशेष भी पाए गए हैं नेक्स्ट आता है पाकिस्तान के इंडस नदी के किनारे डेवलप हुई चन हुदुर साइट जिसे देखो लंका सायर ऑफ इंडस्ट सिविलाइजेशन भी बोला जाता है दरअसल यहां पे हमें काफी तरह की फैक्ट्रीज मिली है जैसे बीड फैक्ट्री चूड़ियों की फैक्ट्री या फिर कॉटन टेक्सटाइल की फैक्ट्री इसी के साथ यहां पर हमें ना इवन लिपस्टिक के भी एविडेंस मिले हैं बेंगल फैक्ट्री की देखो एक और बहुत इंपोर्टेंट साइट है कालीबंगा जैसे कि देखो नाम से ही जाहिर है यानी काले रंग की चूड़ियां बालाथल और कालीबंगा दोनों
ही साइट्स राजस्थान में है यहां से हमें फायर अल्टर और कैमल्स की हड्डी भी मिली है फायर अल्टर का यहां पर मिलना ये दर्शाता है है कि हड़प्पा सिविलाइजेशन के जो लोग थे वो एनिमल्स की सैक्रिफाइस में बिलीव करते थे इसके बाद पंजाब की सतलुज नदी के किनारे खोजी गई एक और इंडस साइट रोपड़ इस साइट की अगर देखो बात करें खास बात ये थी कि यहां पर ना जो कबर मिली हैं उसमें इंसान और कुत्तों को दोनों को एक साथ दफनाया गया था देखो एग्जैक्ट वजह तो बता पाना मुश्किल है लेकिन शायद दोनों के
बीच में बहुत प्रेम हुआ करता होगा तभी दोनों को एक साथ दफनाया जाता था लेकिन देखो एक खास बात दोनों की डेथ एक ही समय पर कैसे हो सकती थी कहीं ये सती वाली चीज तो नहीं है गुजरात में मिले तुर्को ताड़ा साइट पे हमें मिलते हैं घोड़े की हड्डियों यानी हॉर्स बोनस के सबूत गुजरात में ना हॉर्स बोन का मिलना एक बहुत बड़ी कंट्रोवर्सी थ्योरी को सॉल्व करता है हालांकि कंट्रोवर्सी अभी भी चल रही है दरअसल देखो कंट्रोवर्सी ये है कुछ एक्सपर्ट्स का ये मानना है कि होर्स को यानी घोड़े को इंडिया में पहली
बार आर्यंस लेके आए थे वैदिक एज में यानी 1500 बीसी के बाद में पर देखो इस बात को चैलेंज किया गया रको ताड़ा साइट ने यहां पे क्योंकि होर्स के सबूत मिले हैं तो ये साबित होता है कि इवन हड़प टाइम्स में भी घोड़े थे और देखो इस आर्गुमेंट को मजबूती प्रोवाइड की उत्तर प्रदेश में 2019 में मिली एक और इंपोर्टेंट साइट ने जिसका नाम है सिनोली साइट सिनोली साइट से क्या डिस्कवर किया गया देखो रथ के सबूत मिले हैं सिनोली साइट से अब रथ तो तभी चलेगा ना जब घोड़े रथ को चलाएंगे तो रथ
के सबूत मिले हैं इसका मतलब घोड़े भी होंगे इस विवाद को लेकर अभी बहुत कुछ मिलना बाकी है सिनोली साइड के राज पूरी तरह से अभी देखो खुलने बाकी हैं और जैसे-जैसे राज खुलेंगे ये डिबेट सेटल डाउन होगी इसके बाद देखो एरिया वाइज हम कुछ और साट भी देख लेते हैं जैसे कि पाकिस्तान में स्थित इंडस सिविलाइजेशन की वेस्टर्न मोस्ट साइट सुत कागन डोर कोट बाला मेहरगढ़ कोर्ट दीजी या फिर अमरी कश्मीर में मिली इंडस सिविलाइजेशन की नॉर्दर्न मोस्ट साइट मांड और वहीं उत्तर प्रदेश में यमुना किनारे मिलता है ईस्टर्न मोस्ट साइट आलमगीरपुर या फिर
हुलास गुजरात में मिलती है देसल आपु बबूना रंगपुर और शिकारपुर और इंडस वैली सिविलाइजेशन की सदर्न मोस्ट साइट है दैमाबाद जो हमें मिलती है परपरा नदी के किनारे महाराष्ट्र में और लास्ट में देखो हम हम बात करें कि ये इतनी जबरदस्त सिविलाइजेशन खत्म कैसे हो गई देखो ये तो अभी तय नहीं हो पाया है अभी भी डिबेट का हिस्सा है डिबेट सेटल डाउन नहीं हुई है कुछ हिस्टोरियन जैसे मैके या फिर एस आर राव का मानना है कि क्लाइमेट रीजंस की वजह से इस सिविलाइजेशन का अंत हो गया इसके अलावा कुछ दूसरे इतिहासकार हैं जैसे
देखो व्हीलर या फिर गोर्डन इनका ये मानना है कि आर्यंस जब यहां पर आए ना तो उन्होंने हड़प्पा संस के ऊपर अटैक कर दिया और धीरे-धीरे इस अटैक की वजह से ये सिविलाइजेशन पूरी तरह से समाप्त हो गई पक्के तौर प देखो बता पाना मुश्किल है 2023 में उत्तराखंड में हुए रॉक स्टडी के बाद से यह पता चला है कि सिविलाइजेशन के अंत का एक मुख्य कारण हो सकता है लंबे वक्त तक यहां पे ड्रॉट का आना यानी कि सूखे का आना नेक्स्ट अब हम बात करेंगे आरन एज की आरन एज की शुरुआत हड़प्पा सिविलाइजेशन
के दौरान ही हो गई थी 2022 में तमिलनाडु के कृष्णागिरी डिस्ट्रिक्ट में मिला महिला दुं पराई साइट जिसने हमारे आरन एज को और पीछे धकेल दिया यहां पर हुई खुदाई से पता चला कि इंडियन सबकॉन्टिनेंट में आयरन एज शुरू हुआ 2 72 बीसी में यानी कि करीब-करीब 4200 साल पहले और यही टाइम पीरियड ब्रोंज और कॉपर एज का भी था देखो आरन एज को ना आरन एज इसलिए बोला जाता है क्योंकि इस टाइम तक इंसान आयरन यानी लोहे के बने हुए टूल्स को इस्तेमाल करने लगा था भारत में आयरन एज का पहला एविडेंस उत्तर प्रदेश
के अतरंजीखेड़ा से मिलता है आरन एज के मिलते ही दुनिया भर में एक क्रांति सी आ गई थी क्यों क्योंकि इसकी वजह ये था फिर तो देखो लोहे से बना हल इंसान इस्तेमाल करने लगा और इसे इस्तेमाल किया जाने लगा जुताई के लिए मतलब खेत जोतना आसान हो गया था इस वजह से देखो फसलों की पैदावार भी बढ़ गई थी फसलों की पैदावार तो देखो एक तरफ दूसरी तरफ इंसान लोहे से बने हथियारों का इस्तेमाल करने लगा और लोहे से बने हथियार तो आपको पता है ज्यादा धारदार होते हैं आयरन से बने टूल्स हमें मिले
उत्तर प्रदेश में स्थित हस्तीन परपुर से आलमगीरपुर से और कोसांबी से इसके अलावा साउथ इंडिया में देखें तो कर्नाटक में है हल्लूर साइट और मस्की साइट इसके अलावा नागार्जुन कोंडा जो कि आंध्र प्रदेश में है और तमिलनाडु का अध्याच्छ नल्लूर आरन एज के साथ ही आया वैदिक सिविलाइजेशन वैदिक शब्द आता है वेद वर्ड से जिसका मतलब है नॉलेज देखो ऐसा माना जाता है कि आर्यंस ने वैदिक कल्चर की शुरुआत की थी बट क्वेश्चन उठता है कि ये आर्यंस आए कहां से थे इस सवाल का जवाब देखो एक नहीं है कई सारे हैं दरअसल कुछ इतिहासकार
ऐसे हैं जैसे मैक्स मूलर इनका मानना है कि आर्यंस सेंट्रल एशिया से आए थे वहीं देखो बाल गंगाधर तिलक जी का ये कहना है कि आर्यंस साइबेरिया या आर्कटिक रीजन से आए थे देखो ये कहीं से भी आए हो पर एक बात तो तय है कि आर्यंस का रहन सेहन ना नोमेडिक था मतलब एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमने वाला था जहां देखो एक तरफ हड़प्पा सिविलाइजेशन को कुछ मिनट्स पहले हमने जाना वो एक अर्बन सिविलाइजेशन थी आर्यंस पॉपुलेशन रूरल थी आर्यंस का मेंशन हमें इराक में मिले कसाइट इंस्क्राइनॉक्स ही रहते थे जिन्हें बोला
जाता है सत सिंधु पर जैसे ही आयरन का इस्तेमाल बढ़ गया जंगल काटना और ज्यादा आसान हो गया इससे देखो ह्यूमन सेटलमेंट ना बढ़ती गई लेटर वैदिक पीरियड आते-आते इंसान भारत के पूर्वी छोर यानी ईस्टर्न इंडिया को भी छू चुका था आइए अब इन दोनों पीरियड्स को हम डिटेल से देखते हैं अर्ली वैदिक पीरियड और लेटर वेदिक पीरियड पहले आता है ऋग्वेद यानी कि अर्ली वैदिक पीरियड जिसका टाइम पीरियड है 1500 बीसी से 1000 बीसी तक इस टाइम पीरियड की डिटेल्स हमें ऋग्वेद के 10 मंडल से मिलती हैं ऋग्वैदिक टाइम में राजा का बेटा ही
राजा बनता था इनमें थे कुछ ट्राइबल किंगडम जैसे भारत मत्स्य यदु और पूज जो काफी स्ट्रांग राज्य थे और इनके ट्राइबल चीफ को बोलते थे राजन ऋग्वेद की हाइम्स यानी भजन में हमें एक कहानी सुनने को मिलती है जो कि देखो 10 राजाओं के बीच एक लड़ाई से संबंधित है जिसे बोलते हैं 10 राजन या फिर बैटल ऑफ 10 किंग्स ये बैटल हुआ परूश्नी नदी के किनारे परूश्नी जिसे आज के समय में हम रावी बोलते हैं इस नदी के किनारे यह बैटल हुआ था और इस परस सुनी नदी के पानी के लिए ही हुआ था
इस 10 राजन बैटल में भारत ट्राइब अपने चीफ सुदास के साथ अकेले ही 10 अलग ट्राइबल ग्रुप्स को हरा देती हैं भारत ट्राइब के जीत के बाद इस जगह को भारतवर्ष बोला गया इसके बाद अगर समाज की बात करें ऋग्वेद का समाज तीन पार्ट्स में बटा हुआ था ब्राह्मण क्षत्रिय और वैश्य ब्राह्मण पढ़ाते थे क्षत्रिय के पास शक्ति और सौर्य था युद्ध लड़ते थे और वैश्य जो व्यापार करते थे यह जो डिवीजन था ना ये कास्ट के आधार पर नहीं था बल्कि योग्यता के आधार पर था मतलब कोई भी अपने टैलेंट के बेसिस पे ब्राह्मण
या क्षत्रिय बन सकता था इनफैक्ट वर्ण शब्द का मतलब भी ऋग्वेद में कलर है वेदों की ओर वापस चलो इसके बाद अब हम बात करेंगे लेटर वैदिक पीरियड की लेटर वैदिक पीरियड का टाइम पीरियड है 1000 बीसी से लेके 600 बीसी तक इस टाइम पीरियड की इंफॉर्मेशन हमें मिलती है सामवेद यजुर्वेद और अथर्ववेद से इन वेदों में भारत को तीन पार्ट्स में बांटा गया है पहला है आर्यवर्त जो कि नॉर्दर्न इंडिया में था दूसरा है मध्य देशा जो सेंट्रल इंडिया में था और तीसरा है दक्षिण पथ यानी कि सदर्न इंडिया लेटर वैदिक पीरियड को एपिक
एज भी बोलते हैं दरअसल भारत की दो महान एपिक महाभारत और रामायण इसी टाइम पीरियड में लिखी गई थी लेटर वैदिक टाइम्स के मेन गड और रिचुअल्स की अगर बात करें तो इस टाइम पीरियड में ना भगवान इंद्र और अग्नि जैसे देवताओं की इंपोर्टेंस तो खत्म हो गई थी और उनकी जगह ले ली थी भगवान प्रजापति रुद्र और भगवान विष्णु ने इंसान के साथ-साथ भगवान का भी बंटवारा हो गया जैसे देखो भगवान पूषण जो कि पशु यानी कैटल्स के गोड थे उन्हें शूद्रों का भगवान बताया गया रिचुअल्स काफी कॉम्प्लिकेट हो गए थे जैसे बलि प्रथा
मूर्ति पूजा और मंत्र जाप तो इन सब कॉम्प्लेक्शन में योग्यता के आधार पे डिवाइड करते थे वो अब जन्म के आधार पे बटने लगा मतलब जन्म कहां पे हुआ है उसी के बेस पे आपका वरण डिसाइड होगा ना कि योग्यता के आधार पर जिस वर्ण में आपका जन्म हुआ वो आप चेंज नहीं कर सकते इवन आपने स्किल यानी टैलेंट हासिल कर लिया तो भी यहीं से शुरुआत होती है रिजडन की लेटर वैदिक पीरियड तो देखो इवन महिलाओं के लिए भी अच्छा साबित नहीं हुआ औरतों का दर्जा समाज में काफी गिर गया सभा और समिति में
इनकी एंट्री बंद करा दी गई सती प्रथा बाल विवाद जैसे कुरु प्रथाएं समाज का हिस्सा बन गई इसके बाद भी कुछ औरतें जैसे गार्गी मैत्रेई और काता यानी इन्होंने देखो अपना रास्ता बना ही लिया आज एंसटिटाइट उसमें राष्ट्र या जनपद शब्दों का प्रयोग हुआ है इससे यह अंदाजा लगाया गया कि इस पीरियड में की गई लड़ाइयां जमीन पे कब्जे के लिए होती थी अगर देखो रिक वैदिक पीरियड के तुलना में देखें तो लेटर वैदिक पीरियड के लोग शहरी जिंदगी जीते थे और यह हमें पता चलता है तैती रीय अरण्यक में लिखे हुए नगर शब्द से
इसके बाद बात करें बाटर सिस्टम की वैसे तो देखो ऋग्वेद की तरह लेटर वैदिक पीरियड में भी बाटर सिस्टम चालू था पर सिल्वर कॉइंस जिन्हें निस्क बोलते थे यह भी इस्तेमाल होने लगा इस समय में राजा अपनी प्रजा सेना तीनत के टैक्स वसूलते थे एक बलि दूसरा शुल्क और तीसरा भाग और देखो वैश्य जाति के लोग जो व्यापारी यानी कि मर्चेंट्स थे ये व्यापारी ना आपस में मिलकर ग्रुप्स बनाने लगे इन्हें बोला गया श्रेष्ठ इंस मोटे-मोटे तौर पे देखो कास्ट सिस्टम ने ना समाज को चार पार्ट्स में बांट दिया ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य और शुद्र कॉम्प्लिकेटेड
रिचुअल्स ने जहां ब्राह्मण की इंपॉर्टेंस को बढ़ा दिया और जंग के मैदान में क्षत्रिय की इंपॉर्टेंस बढ़ गई वैश्य कम्युनिटी के लोग व्यापार से अपना काम चला लेते थे और शूद्रों का काम था ऊपर के तीन कम्युनिटीज की सेवा करना लेटर वैदिक पीरियड के दौरान समाज में बहुत बुराइयां आ गई थी जैसे कि बलि प्रथम संस्कृत भाषा का प्रयोग महंगे महंगे पूजा पाठ और भी बहुत कुछ इन सब ने देखो बहुत से आम लोगों को ना अपने रिलीजन से विमुख कर दिया यानी बहुत सारे हिंदुइज्म के जो फॉलोअर्स थे उन्होंने जैनिज्म और बुद्धिज्म का रास्ता
अपनाया इसके बाद चलिए बुद्धिज्म और जैनिज्म को भी हम कंप्रिहेंसिवली पढ़ लेते हैं देखो बुद्धिज्म रिलीजन जो है ना ये आधारित है गौतम बुद्ध के बताए गए सिद्धांतों पे गौतम बुद्ध का जन्म 563 बीसी साक्या रिपब्लिक के कैपिटल कपिल वस्तु में हुआ था बुद्ध को सिद्धार्थ शक्य मुनि और तथागत के नाम से भी जाना जाता है ऐसा बोला जाता है कि बुद्ध के पूर्वज थे काशव और इनके उत्तराधिकारी यानी सक्सेसर होंगे मैत्रीय जिन्हें फ्यूचर बुध भी कहते हैं आइए बुध के बारे में और डिटेल से जानते हैं इनके पिता का नाम सुदन और मां का
नाम महामाया था इनकी पत्नी का नाम यशोधरा और बेटे का नाम राहुल बताया जाता है जन्म के समय इनकी मां की ना डेथ हो गई थी इस वजह से इनका लालन पालन इनकी मौसी प्रजापति गौतमी ने किया इन्होंने ही बुध को को गौतम नाम दिया प्रजापति गौतमी आगे जाके बुद्धिस्ट संघ में आने वाली पहली महिला बनी ऐसा बोलते हैं कि गौतम बुद्ध के जन्म से पहले एक एस्ट्रोलॉजर ने यह भविष्यवाणी की थी कि बुद्ध एक बहुत ही ज्यादा बड़े धार्मिक पर्सन बनेंगे पर इनके पिता को ना यह बात पसंद नहीं थी इनके पिता जो उस
समय शक्य वंश के राजा थे वो चाहते थे कि गौतम आगे जाके गद्दी संभाले राजा बने इसलिए ना उन्होंने गौतम को चार दीवारी में कैद कर दिया महल के अंदर ही बुद्ध को हर प्रकार की सुख सुविधाएं हासिल थी लेकिन देखो इनके पिता यानी राजा गौतम बुद्ध को ज्यादा समय तक रोक नहीं पाए 29 साल की उम्र में जब वो पहली बार एक बूढ़े आदमी को बीमार पर्सन को मृत शरीर को और एक साधु को देखते हैं तो उनका मन ना दुख से भर जाता है यह पीड़ा उनके मन का एक बहुत महत्त्वपूर्ण पॉइंट होता
है 29 साल की उम्र में बुध अपना ग्रस्त जीवन छोड़-छाड़ करर शांति यानी पीस की खोज में निकल गए और जिस घोड़े के साथ बुध निकले उसका नाम था कंथारिया फिर इंग्लिश में कहें द ग्रेट डिपार्चर इसके 6 साल बाद यानी 35 साल की उम्र में बोध गया के फाल्गुनी नदी के किनारे बुध को मिला इनलाइटनमेंट और इसे बोलते हैं निर्वाण और निर्वाण हासिल करने के बाद उन्होंने सर्मन देने स्टार्ट किए बुध का पहला सर्मन उत्तर प्रदेश के सारनाथ में हुआ और इस इवेंट को बोला गया धर्म चक्र परिवर्तन इंग्लिश में कहें टर्निंग ऑफ व्हील
ऑफ ला 80 साल की उम्र में उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में साल के पेड़ के नीचे बुध की मृत्यु हो गई और इस इवेंट को बोला गया महापरिनिर्वाण बुद्ध के लाइफ के जो इंपोर्टेंट इवेंट्स है ना जैसे जन्म निर्वाण हासिल करना मृत्यु इन सबको ना सिंबल्स के सहायता से दिखाया गया है जैसे कि बुद्ध के जन्म को दर्शाया गया है कमल यानी लोटस के फूल से बुध का घर से निकलना यानी कि महा भिनी कर्मन इसे दर्शाया गया है होरस से यानी घोड़े से निर्वाण प्राप्ति को दर्शाया गया है बोधी ट्री से फर्स्ट सर्मन जब
बुध देते हैं इसको दिखाया गया है व्हील से जिसे बोलते हैं धर्मचक्र यही सिंबल हमें लाइन कैपिटल ऑफ अशोका में दिखता है जिसे सम्राट अशोक ने स्थापित किया था बौद्ध धर्म के स्प्रेड के लिए यह धर्म चक्र आज हमारे राष्ट्रीय ध्वज का हिस्सा भी है आख में इनकी मृत्यु यानी परिनिर्वाण को दर्शाया गया है स्तूप से इसके बाद आइए एग्जाम पॉइंट ऑफ व्यू से बुध से रिलेटेड कुछ इंपोर्टेंट पॉइंट्स को देखते हैं जिस पे यूपीएससी क्वेश्चन पूछ सकती हैं बुद्ध के पहले टीचर का नाम अलर कलाम था ये एक ऐसे शख्य फिलोसोफर थे जिन्होंने बुद्ध
को मेडिटेशन के तोर तरीके सिखाए इनके दूसरे टीचर का नाम उदक राम पुत्र था बुद्ध के कुछ करीबी शिष्य थे आनंद सरी पुत्र मुगलन काशव उपाली यहां पे देखो दो तरह के शिष्य थे पहली तरह के भिक्षु यानी मोक्ष यानी वो जिन्होंने घरेलू जीवन छोड़ दिया और सन्यास ले लिया और दूसरी तरह के शिष्य उपासक या फिर उपासिकों नहीं छोड़ा था यानी भिक्षु नहीं थे बुद्धिज्म रिलीजन के तीन रतन हैं बुद्ध धम और तीसरे नंबर पे सं बुद्ध वो है जो प्रबुद्ध है यानी इनलाइटेंड है धम यानी बुद्ध के बताए गए सिद्धांत उसूल नियम जो
बौद्धि भिक्षु को फॉलो करने होते हैं तीसरे नंबर पे संघ यानी भिक्षु का बनाया हुआ ग्रुप जो बुद्ध की टीचिंग्स को लोगों तक पहुंचाता था अगर हम देखें कुछ इंपोर्टेंट किंग्स जिन्होंने बुद्धिज्म अपनाया तो पहले हैं कु ला के किंग प्रसनजीत हर्यक डायनेस्टी के पावरफुल किंग जैसे बिम बिसार और आजाद शत्रु ये किंग्स भगवान बुद्ध के कंटेंपरेरी भी थे बुद्धिज्म को अपनाने वाले तीन अहम राज्य थे शिशु गुना डायनेस्टी के काला शोक मोरंस डायनेस्टी के सम्राट अशोक और लास्ट में कुशान डायनेस्टी के कनिष्क अपने जीवन काल में बुध को दो बड़े किंगडम में जाना होता
था दर्शन देने कशाला और मगध कुछ और जगह जहां बुध जाते हैं उनके नाम इस प्रकार से हैं कपिल वस्तु विशाली गया बध गया सारनाथ श्रावस्ती कुशीनगर नालंदा मथुरा वाराणसी साकेत बुद्ध की बुनियादी सिद्धांत चार बातों पर निर्भर थे जिसे बोला गया फोर नोबल ट्रुथ पहला नोबल ट्रुथ है ट्रुथ ऑफ सफरिंग यानी ये सच है कि दुख है दूसरा नोबल ट्रुथ है द ट्रुथ ऑफ ओरिजन ऑफ सफरिंग जो यह बताता है कि यह दुख आता है हमारी इच्छाओं से हमारी लालसा से और यह लालसा ही हमें जन्म और मृत्यु के चक्कर में फंसा के रखती
है इसके बाद तीसरा नोबल ट्रुथ है द ट्रुथ ऑफ सेसेन ऑफ सफरिंग यानी इस दुख का अंत होगा जब हम अपनी इच्छाओं को मार देंगे लास्ट नोबल ट्रुथ है ट्रुथ ऑफ पाट टू द सी सेशन ऑफ सफरिंग यानी कि आखिरी सिद्धांत हमें रास्ता देता है एट फोल्ड पाथ का मतलब आठ ऐसे रास्ते जो हमें इस संसार के दुख से मुक्ति दिलाएंगे कौन सा है ये एट फोल्ड पाथ देखो ये आठ रास्ते कुछ ऐसे हैं सबसे पहले है राइट थॉट यानी सही और अच्छा सोचो इसके बाद दूसरा राइट स्पीच यानी सही और अच्छा बोलो तीसरे नंबर
पे राइट एक्शन यानी सही और अच्छा करो चौथे नंबर पे राइट लाइवलीहुड यानी ऐसे काम करो दूसरों का भी भला हो नेक्स्ट राइट एफर्ट यानी ईमानदारी से काम करो नेक्स्ट राइट माइंडफूलनेस यानी दिमाग को शांत और स्थिर रखो नेक्स्ट राइट मेडिटेशन यानी शांति से ध्यान करो और सबसे लास्ट में राइट अंडरस्टैंडिंग तो ये आठ पाथ हमने डिस्कस किए ये जो एट फोल्ड पाथ है ना इसको मिडल पाथ यानी मध्यम मार्ग भी बोला गया है देखो इस एट फोल्ड पाथ को देने का बुद्ध का उद्देश्य यह था लोगों को ना सामाजिक अंधविश्वास से दूर रखना और
बताना कि आप खुद में ही शांति शक्ति और सुख ढूं और देखो बुद्ध की टीचिंग्स ज्यादा लोगों तक पहुंच जाए इसके लिए उन्होंने आम लोगों की भाषा का इस्तेमाल किया उन्होंने अपने उपदेश आम लोगों की भाषा में दिए जो कि थी पाली पाली लैंग्वेज उस समय कॉमन मैन की भाषा थी नेक्स्ट बुद्धिस्ट टेक्स्ट जैसे कि विन पिटक सूत पिटक और अभि धम पिटक भी पाली लैंग्वेज में ही लिखे गए थे अभी धम पिटक पांच बुक्स का कंपाइलेशन है जैसे कि दिग निकाय माजिम निकाय संयुक्त निकाय अंगू तर निकाय और सबसे लास्ट में खुदकुशी लैंग्वेज में
ही लिखे गए बुद्धिस्ट टेक्स्ट हैं इसके बाद अब हम जानते हैं बुद्धिस्ट काउंसिल्स के बारे में देखो महात्मा बुद्ध की डेथ के बाद बुद्धिज्म से संबंधित मामलों पर डिस्कशन करने के लिए बुद्धिस्ट मंस और स्कॉलर्स समय-समय पर इकट्ठा हुए गैदर हुए और इन्हीं गैदरिंग्स को बोला गया बुद्धिस्ट काउंसिल्स टोटल चार बुद्धिस्ट काउंसिल्स ऑर्गेनाइज हुई एक-एक करके सबकी बात करते हैं पहले आप ये स्क्रीन पे चार्ट देखिए जैसा कि आप देख सकते हो सबसे पहली बुद्धिस्ट काउंसिल ऑर्गेनाइज हुई 486 बीसी में राज ग्रिया बिहार में इस बुद्धिस्ट काउंसिल के संरक्षक थे हरिय डायनेस्टी के राजा आजाद
शत्रु और इसके अध्यक्ष थे महाकाश उपाली इस काउंसिल के नतीजे में निकले दो इंपॉर्टेंट बुद्धिस्ट टेक्स्ट विन्या पिटक और सूत पिटक विन पिटक जिसे लिखा है उपाली ने और उसमें लिखा है बुद्धिस्ट संघ के नियम आसान भाषा में आपको बताऊं संघ में रहते हुए बुद्धिस्ट मक्स को कैसे बिहेव करना है जैसे गुस्सा आ गया तो उसके खिलाफ पेनल्टी क्या लगेगी पैसा रख सकते हो या नहीं रख सकते हो कब खाना है क्या खाना है क्या अवॉइड करना है तो ये सारी चीजें ये सारे नियम बताए गए थे विनय पिटक में इसके बाद दूसरी तरफ सूत
पटक जिसके लेखक आनंद है यह हमें बताता है बुद्धिस्ट टीचिंग्स के बारे में सूत पटक डिवाइडेड है पांच निकाय में यानी कलेक्शंस में जैसे देखो सबसे पहले दिग निकाय दूसरे नंबर पे मजम निकाय तीसरे नंबर पे संयुक्त निकाय चौथे नंबर पे अंगुर निकाय और सबसे लास्ट में खुदकुशी में शिशुनाग वंश के राजा काला शोक इस बुद्धिस्ट काउंसिल के संरक्षक थे विशाल में यह बुद्धिस्ट काउंसिल आयोजित हुई थी और इसके अध्यक्ष थे सर्वा कामिनी या सभा करनी और इस काउंसिल में बुद्धिस्ट संघ डिवाइड हुआ स्था वर निकाय और महासंघिका में स्था वर मतलब ऐसे फॉलोअर्स जो
देखो कठिन से कठिन बुद्धिस्ट नियमों को मानने के लिए तैयार थे लेकिन दूसरी तरफ महासंगम भोजन करना या फिर दान दक्षिणा में सोना चांदी लेना तो डिफरेंसेस आ गए मतलब बुद्धिस्ट संघ डिवाइड हो गया दो बुद्धिस्ट स्कूल्स में एक तरफ स्था वर निकाय और दूसरी तरफ महासंघिका इसके बाद बात करें थर्ड बुद्धिस्ट काउंसिल की ये आयोजित हुई 250 बीसी मोरेंस डायनेस्टी के कैपिटल पाटलीपुत्र में इसके सरस थे सम्राट अशोक और इसके अध्यक्ष थे मोगली पुत तीसा इस काउंसिल में हमें मिला मोगली पुत तीसा द्वारा लिखा गया अधम पिटक और यह पिटक हमें बताता है बुद्धिस्ट
फिलोसोफी के बारे में सम्राट अशोक हिम यान सेक्ट के फॉलोवर थे विनय पिटक सुत पिटक और अभिधा पिटक इन तीनों को एक साथ बोलते हैं त्रिपिटक और तीनों पिटक पाली लैंग्वेज में लिखी गई हैं जो उस समय कॉमन मैन की लैंग्वेज थी यानी आम लोगों की भाषा थी इसके बाद अगर हम बात करें लास्ट बुद्धिस्ट काउंसिल की ये आयोजित हुई 72 एडी में कश्मीर में इसके संरक्षक थे कुशान डायनेस्टी के किंग कनिष्क और ये वसुमित्र की अध्यक्षता में कंडक्ट हुई थी अश्वघोष जिन्होंने बुध चरित्र लिखी है वो भी इस फोर्थ बुद्धिस्ट काउंसिल में उपस्थित थे
फोर्थ बुद्धिस्ट काउंसिल में बुद्धिज्म डिवाइड हुआ हिन यान और महायान सेक्ट्स में हिन यान को बोलते थे लेसर विकल और महायान को बोला गया ग्रेटर विकल जो हिन यान के फॉलोअर्स थे ना वो बिलीव करते थे बुद्धिस्ट के मूल टीचिंग्स में यानी मूल जो प्रिंसिपल्स दिए गए ना महात्मा बुद्ध के द्वारा उनमें विश्वास किया जाता था हिन यान के फॉलोअर्स के द्वारा वहीं महायान के हिसाब से महात्मा बुद्ध की ओरिजिनल टीचिंग्स अब गायब हो चुकी है उसके बारे में किसी को पता नहीं है हिन यान सेक्ट मूर्ति पूजा में बिलीव नहीं करता था वहीं महायान
सेक्ट महात्मा बुद्ध को भगवान मानते थे और उन्हीं की मूर्ति की पूजा भी उन्होंने करनी स्टार्ट कर दी जो हिन यान सेक्ट के फॉलोअर्स थे ना उनको यह लगता था निर्वाण का रास्ता जो है वह अकेले ही तय करना पड़ता है आपकी कोई नैया पार नहीं करवा सकता मतलब इनका फोकस इंडिविजुअलिज्म पर ज्यादा था वहीं देखो दूसरी तरफ महायान सेक्ट बोधिसत्व कंसेप्ट पे विश्वास करते थे जिनके हिसाब से एक बद्धि सत्व का काम दूसरे लोगों का निर्माण प्राप्त करने में उनकी मदद करना है उनकी हेल्प करना है दरअसल बौद्धि सत्व ऐसे इनलाइटेंड बुद्धिस्ट मोंगस थे
जिन्होंने ठान लिया था परण लिया था कि वो दूसरों की निर्वाण प्राप्त करने में मदद करेंगे और जो बौद्धि सत्व ये कर ले जाते उन्हें बोलते समय कंश बुद्ध नेक्स्ट पॉइंट हि हि यान सेक्ट वाले ना पाली भाषा का प्रयोग करते थे दूसरी तरफ महायान सेक्ट वाले संस्कृत भाषा का प्रयोग करने लगे हिम यान और महायान आगे जाके दो अलग-अलग सेक्ट में बट गया हिम यान से निकला थेरवा और महायान से निकला वज्रयान थेरवा द बुद्धिस्ट फॉलोअर्स का यह मानना था कि निर्वाण प्राप्त करने के लिए ना मनुष्य को अपने जीवन से क्लेश का अंत
करना होगा आप पूछोगे सर क्लेश का क्या मतलब है क्लेश को आसान शब्दों में बोला जाए तो ये वो नेगेटिव इमोशंस हैं जो मनुष्य को बांधे रखते हैं या बुरा बनाते हैं जैसे कि क्रोध ईर्ष्या लोभ या लालच थेरवा फॉलोअर्स का यह मानना था कि ऐसे नेगेटिव इमोशंस से निकलने के लिए निर्वाण प्राप्त करने के लिए महात्मा बुद्ध के बताए गए एट फोल्ड पाथ पर चलना होगा ऐसे ही कुछ सजेस्ट किया गया बुद्धिस्ट स्कलर बुद्धक घोस ने अपनी किताब विशुद्धि मग में विशुद्धि मग एक पाली टेक्स्ट है और इसे अगर तोड़ा जाए मतलब इस वर्ड
को अगर हम ब्रेक करें विशुद्धि मग तो हमें मिलेगा विष शुद्धि मग यानी कि विष को शुद्धि करने का मार्ग या फिर द पाथ ऑफ प्यूरिफाई भाषा का ही प्रयोग करते थे देखो ऐसा मानना है वजर यान बुद्धिज्म हिंदू रिलीजन से प्रभावित है ऐसा देखो इसलिए कहा गया क्योंकि वैदिक टाइम्स पे हो रहे रिचुअल्स जैसे तंत्र मंत्र अब बुद्धिज्म से संबंधित फिलॉसफी में भी एंटर कर चुके थे वज्रयान के फॉलोअर्स यह मानते थे कि तंत्र मंत्र एक आसान रास्ता है निर्माण प्राप्त करने के लिए मतलब वज्रयान बुद्धिज्म और शैविज्म दोनों से प्रभावित था आज दुनिया
के करीबन 5.7 पर बुद्धिस्ट फॉलोअर्स ऐसे हैं जो वज्रयान के फॉलोअर्स हैं और यह हमें मिलते हैं तिब्बत भूटान मंगोलिया इन सभी जगहों पर हियन सेक्ट के फॉलोअर्स आज के टाइम में नहीं मिलते और इन्हें रिप्लेस किया गया थेरवा के फॉलोअर्स के द्वारा आप इस मैप को देखिए थेरवा के फॉलोअर्स हमें मिलेंगे श्रीलंका मयांमार थाईलैंड कंबोडिया और लाओस में वहीं महायान सेक्ट के फॉलोअर्स मिलते हैं चाइना साउथ कोरिया जापान और तिब्बत में लेकिन देखो सबसे बड़ी आर्नी यह है इंडिया जहां बुद्धिज्म का जन्म हुआ वहां पर ही आज बुद्धिस्ट माइनॉरिटी में है 2011 के सेंसस
के अनुसार भारत में सिर्फ 0.7 पर पॉपुलेशन ही बुद्धिस्ट है तो इस प्रकार से हमने बुद्धिज्म को डिटेल से समझा इसके बाद अब हम बात करते हैं जैनिज्म की जैन शब्द आता है जिन से जिसका अर्थ है विजेता जैनिज्म के फाउंडर और पहले तीर्थंकर थे ऋषभ नाथ जैनिज्म धर्म को आगे बढ़ाया 24 टीचर्स यानी तीर्थ अंकर्स ने 24th और सबसे प्रसिद्ध तीर्थंकर हैं वर्धमान महावीर आइए इनके बारे में थोड़ा सा और डिटेल से जानते हैं लॉर्ड महावीर का टाइम पीरियड 540 बीसी से 467 बीसी तक कंसीडर किया गया है इनका जन्म 540 बीसी कुंदग्राम नामक
विलेज वैशाली में हुआ था इनके पिता का नाम सिद्धार्थ और माता का नाम त्रिशला था महावीर जत्रिक वंश में जन्मे थे और 30 साल की उम्र में महावीर ने अपना घरेलू जीवन त्याग दिया और निकल पड़े सच की खोज में इसके 12 साल बाद रिजुपालिका नदी के किनारे महावीर को कैवल्य ज्ञान यानी अध्यात्म की नॉलेज की प्राप्ति हुई इनको फॉलो करने वाले लोग उनको बोला गया निर ग्रंथ 72 साल की एज में इनकी मृत्यु बिहार के पावापुरी में होती है महावीर को कुछ और नामों से भी जाना जाता है जैसे कि देखो जितेंद्रिय या फिर
निर् ग्रंथ जैन धर्म में जो 24 तीर्थंकर हुए हैं ना उनको अरिहंत भी बोला जाता है अरिहंत का अर्थ होता है अपने दुश्मनों को मारने वाला जिसने अपने दुश्मनों को जीत लिया हो जैन धर्म के हिसाब से मनुष्य के दुश्मन कौन है उसके अंदर छुपी हुई नकारात्मक भाव नाए यानी जैन धर्म वाले दुश्मन किसको मानते हैं मनुष्य के अंदर जो नेगेटिव फीलिंग्लेस देखो क्रोध ईर्ष्या लालच ये सब चीजें जिसने इन भावनाओं को हरा दिया इन भावनाओं को जीत लिया वो अरहंत कहलाता है और जो अरहंत है ना उनको प्राप्त होता है केवल ज्ञान पर वो
अभी मनुष्य के रूप में धरती पर ही हैं और अरिहंत से ऊपर होते हैं सिद्ध सिद्ध ऐसे अरिहंत हैं जिनकी आत्मा दुनिया की मोह माया को छोड़ के जा चुकी है इस धरती से यानी जो सिद्ध है उनको मुक्ति मिल गई है है वो मनुष्य के रूप में नहीं है आसान शब्दों में बोलें तो अब लाइफ और डेथ के साइकल से व बाहर आ चुके हैं तो यह होते हैं सिद्ध चलिए अब देखते हैं जैन फिलोस फीज को जैन धर्म मोक्ष पाने का एक बहुत ही कठिन रास्ता दिखाता है जैसे कि इनका मानना था कि
रास्ते पर चलते वक्त किसी भी जीवित प्राणी को दुख ना पहुंचाएं इसके लिए मोर के पंख से बने झाड़ू का इस्तेमाल किया जाता है छोटे-छोटे जीवित प्राणियों को रास्ते से हटाने के लिए उसके बाद जैन साधु उस रास्ते पर चलते हैं जैन मंस को ना पांच नैतिक सिद्धांत फॉलो करने होते हैं सबसे पहले अहिंसा यानी किसी की जान ना लेना दूसरे नंबर पर सत्य यानी हमेशा सच बोलना तीसरे नंबर पे अस्थ कभी चोरी से कोई काम ना करना और ईमानदारी से अपना जीवन व्यतीत करना इसके बाद नेक्स्ट है अपरिग्रह यानी धन के मोह से दूर
रहना सबसे लास्ट में है ब्रह्मचार्य सादा अभ्र और शुद्ध जीवन जीना देखो जैनिज्म के मुताबिक ना मोक्ष पाने के तीन रास्ते थे जिसे बोलते थे थ्री ज्वेल्स ऑफ जैनिज्म पहला था राइट फेदक दर्शन इसमें बोला गया मनुष्य को अंधविश्वास से दूर रहना चाहिए इसके बाद है राइट नॉलेज या सम्यक ज्ञान मतलब मनुष्य को दुनिया से सही और सच्चे ज्ञान की प्राप्ति होनी चाहिए और सबसे लास्ट में है राइट एक्शन या सम्यक चरित्र मतलब मनुष्य को अपना जीवन नैतिकता से और बिना किसी को तकलीफ पहुंचाए बिताना चाहिए देखो जैनिज्म की एक इंपॉर्टेंट फिलॉसफी है अनेकांतवाद जिसमें
ये बोला गया है कि कुछ भी एब्सलूट ट्रुथ नहीं होता हर चीज या हर बात के बहुत से पहलू होते हैं और हर एक पहलू में कुछ ना कुछ सच्चाई हो सकती हैं अनेकांतवाद को समझाने के लिए अक्सर ना अंधे लोग और हाथी की कहानी का उदाहरण दिया जाता है जैसे देखो इस कहानी में कई अंधे लोग हाथी के ना अलग-अलग पार्ट्स को टच करते हैं और जानने की कोशिश करते हैं कि हाथी कैसा है जैसे एक ब्लाइंड पर्सन हाथी की सूंड को छूता है और सोचता है कि हाथी सांप की तरह होता है दूसरा
ब्लाइंड पर्सन हाथी के पैर को छूता है और कहता है हाथी पेड़ की तरह है और उसी प्रकार से बाकी ब्लाइंड पर्स संस भी हाथी के अलग-अलग हिस्सों को छूते हैं और उसी हिसाब से कल्पना करते हैं कि हाथी कैसा है सभी ब्लाइंड पर्स संस का देखो अलग-अलग पर्सपेक्टिव था और वो गलत नहीं था अपने आप में में तो अनेकांतवाद सिखाता है कि अगर आपको रियलिटी को जानना है ना तो अलग-अलग दृष्टिकोण को अलग-अलग पर्सपेक्टिव्स को आप इंटीग्रेट करो तब जाके आपको ब्रॉडर वे में कंप्लीट रियलिटी समझ में आएगी अगर देखो सच का सिर्फ एक
हिस्सा आप जानोगे तो आपको कंप्लीट सच नहीं मिलेगा जैसे ब्लाइंड पर्स ने हाथी के अलग-अलग अंगों को छुआ अगर आप सभी ब्लाइंड पर्स संस के पर्सपेक्टिव को इंटीग्रेट कर दोगे ना तब जाके असली सच सामने आएगा कि कंप्लीट तस्वीर हाथी की कैसी है इसके बाद जैनिज्म की एक और जो फेमस फिलॉसफी है स्यादवाद फिलॉसफी ये भी देखो कुछ ऐसा ही कहती है स्यादवाद फिलॉसफी के मुताबिक कुछ भी अच्छा या बुरा स्थिति पर निर्भर है जैसे कि न्याय या फिर सच किसी एक परिस्थिति में सही है तो जरूरी नहीं कि वह दूसरी परिस्थिति में भी सही
होगा एथिक्स के एंगल से देखें तो यहां मोरल रिलेटिविज्म की बात हो रही है जैसे आप एग्जांपल देखिए अगर देखो किसी पर्सन फॉर एग्जांपल महेश ने चोरी की है अब यहां पर महेश ने जो चोरी की है ना महेश का काम है इसको देखने के दो दृष्टिकोण यानी दो पर्सपेक्टिव्स हो सकते हैं पहला पहला अगर नैतिकता के दृष्टिकोण से देखें तो महेश ने जो किया वो गलत है चाहे सिचुएशन कुछ भी हो चाहे सरकमस्टेंसस कुछ भी हो महेश ने चोरी की नैतिकता के हिसाब से ये गलत है लेकिन अगर दूसरे नंबर पे परिस्थितियों को समझने
के दृष्टिकोण से देखें तो हो सकता है कि महेश ने जो किया अपने परिवार का पेट भरने के लिए किया या फिर बच्चे की जान बचाने के लिए किया जो बहुत बीमार था मतलब मजबूरी में महेश ने चोरी की तो हमने इस प्रकार से देखा एक ही काम यानी एक्शन को लेके दो अलग-अलग ओपिनियन हैं यही देखो स्यादवाद का सिद्धांत है कि कोई भी काम परिस्थितियों से अलग नहीं देखा जा सकता अगर आपको जज करना है कि ना कोई काम गलत है या सही आपको सरकमस्टेंसस यानी परिस्थितियां भी देखनी होगी बुद्धिज्म की तरह जैनिज्म भी
आगे जाके देखो अलग-अलग सेक्ट्स में बट गया जैसे दिगंबर और श्वेतांबर दिगंबर जिन्हें स्काईलेट बोला गया और श्वेतांबर जिन्हें वाइट क्लट बोला गया जैनिज्म में ये जो डिवीजन हुआ ना दिगंबर और श्वेतांबर के बीच में इस विभाजन का कारण था मगध क्षेत्र में आया एक बहुत बड़ा अकाल यानी फेमिन जो जैन फॉलोअर्स थे ना उनमें से एक ग्रुप गप इस अकाल से बचने के लिए ना भद्र बाहू की अध्यक्षता में साउथ इंडिया चले गए और इन्हें बोला गया दिगंबर भद्र बाहू के प्रभाव से ही मौर्य वंश के संस्थापक चंद्रगुप्त मौर्य जैन धर्म में परिवर्तित हुए
एक ऐसी स्टेट जब देखो मोक्स ने ना सारे प्रकार के मोह माया छोड़ दिए हैं कोई मटेरियल पोसेन नहीं कोई अटैचमेंट नहीं यानी कि स्टेट ऑफ प्योरिटी समझ गए मतलब दिगंबर सेक्ट के देखो जो मठ के रूल्स थे ना बहुत कठोर थे वहीं दूसरी तरफ दूसरा जो सेक्ट था जैनिज्म में श्वेतांबर सेक्ट श्वेतांबर सेक्ट के फॉलोअर्स अपने शरीर को ना सफेद कपड़े से ढकने लगे और इन्हें बोला गया वाइट क्लैड दिगंबर सेक्ट ना जैन धर्म के पांचों सिद्धांतों को मानता था पर दूसरी तरफ श्वेतांबर सेक्ट ने भगवान महावीर के बताए आखिरी सिद्धांत यानी ब्रह्मचर्य को
मानने से इंकार कर दिया था दिगंबर सेक्ट के मुताबिक भगवान महावीर ने कभी शादी की ही नहीं पर दूसरी तरफ श्वेतांबर सेक्ट का कहना था कि महावीर ने शादी की थी दिगंबर और श्वेतांबर सेक्ट में ना आज भी महिला तीर्थंकर को लेके खींचतान चल ही रही है यानी डिफरेंसेस हैं जहां एक तरफ दिग ंबर सेक्ट का यह मानना है कोई भी महिला तीर्थंकर नहीं हो सकती वहीं दूसरी तरफ श्वेतांबर सेक्ट का यह मानना है जो 19th तीर्थंकर है ना मल्ली वो एक महिला ही थी इतना ही नहीं दिगंबर सेक्ट के अनुसार कोई भी महिला मोक्ष
प्राप्त नहीं कर सकती औरत को अगर मोक्ष प्राप्त करना है ना तो पुनर्जन्म लेकर मैन बनना होगा तभी वो मोक्ष प्राप्त कर सकती हैं लेकिन श्वेतांबर एक्ट में औरत और आदमी दोनों को समान माना जाता था इसके बाद देखो ये जो सेक्ट्स है ना दिगंबर सेक्ट और श्वेतांबर सेक्ट ये आगे जाके कुछ-कुछ सब सेक्ट्स में भी डिवाइड हो गए जैसे दिगंबर सेक्ट के कुछ सब सेक्ट्स थे मूल संघ 20 पंथ 13 पंथ तरण पंथ वहीं दूसरी तरफ श्वेतांबर सेक्ट के कुछ सब सेक्ट्स इस प्रकार से थे मूर्ति पूजक स्थानकवासी 13 पंथी तो दिगंबर और श्वेतांबर
सेक्ट के बीच में डिफरेंसेस डिस्कस करने के बाद अब हम बात करते हैं जैन काउंसिल्स की ये जैन काउंसिल्स देखो इसलिए आयोजित हुई थी ताकि जैन धर्म से संबंधित जो प्रिंसिपल्स हैं उनका सही मतलब निकाला जा सके और जैन धर्म से संबंधित मसलों पर चर्चा हो सके तो पहली जो जैन काउंसिल आयोजित हुई थी बिहार के पाटलीपुत्र में 330 बीसी में आयोजित हुई इसके अध्यक्ष थे श्वेतांबर सेक्ट के लीडर स्थूल भद्र और देखो यह काउंसिल यानी पहली जैन काउंसिल आयोजित हुई थी मौर्य किंग चंद्रगुप्त मौर्य के संरक्षण में इस काउंसिल में ना भगवान महावीर की
शिक्षाओं को टीचिंग्स को 12 अंगों में बांटा गया और देखो यही कारण बना दिगंबर और श्वेतांबर सेक्ट के बीच विभाजन का दरअसल जो दिगंबर सेक्ट के फॉलोअर्स थे ना उन्होंने इन अंगों को मानने से मना कर दिया उनका यह कहना था कि भगवान महावीर की जो फंडामेंटल टीचिंग्स है ना मूल शिक्षाएं हैं वो गायब हो चुकी हैं लेकिन दूसरी तरफ श्वेतांबर सेक्ट के फॉलोअर्स का यह मानना था ये जो 12 अंग है ना जिसमें महावीर की शिक्षाओं को बांटा गया है यही भगवान महावीर की फंडामेंटल टीचिंग्स हैं यानी मूल शिक्षाएं हैं इसके बाद जैन काउंसिल
की दूसरी मीटिंग आयोजित हुई गुजरात के वलभी में 512 बीसी में इसको प्रिजाइंड किया गया देवऋषि शमा शर्मन ने और इस काउंसिल में दिगंबर सेक्ट ने भाग लिया ही नहीं दिगंबर सेक्ट ने इस काउंसिल को बायकॉट कर दिया इसके बाद अब हम देखते हैं भारत में कुछ इंपोर्टेंट जैन स्थलों को दिलवाड़ा मंदिर जो कि माउंट आबू राजस्थान में सिचुएटेड है इसके बाद गिरनार और पलीता मंदिर जो कि गुजरात में है मुक्तागिरी मंदिर यह महाराष्ट्र में है इसके बाद नेक्स्ट गोमतेश्वर या बाहुबली की प्रतिमा यह हमें कर्नाटक के श्रवण बेलगोला टाउन में मिलती है सबसे लास्ट
में महाराष्ट्र के मांगी टूंगी पहाड़ियों में स्थित ऋषभ नाथ की प्रतिमा जिसे हम स्टैचू ऑफ अहिंसा भी बोलते हैं इसके बाद अब हम जानते हैं बुद्धिज्म और जैनिज्म के बीच कुछ मेजर डिफरेंसेस को देखो भले ही बुद्धिज्म और जैनिज्म के ओरिजन का जो रीजन है वो सिमिलर था क्योंकि उस समय हिंदू धर्म में कुछ ऐसी प्रथाएं थी जिसको लेकर विरोध था इसी वजह से बुद्धिज्म और जैनिज्म इमर्ज हुआ पर इनके वैल्यू सिस्टम में ना बहुत सारे डिफरेंसेस थे चलिए देखते हैं कैसे जैन फॉलोअर्स का मानना था हर चीज में आत्मा यानी सोल होती है यहां
तक कि पत्थर में भी पर देखो दूसरी तरफ बुद्धिज्म इस कंसेप्ट पे विश्वास नहीं करता था उनका यह मानना था कि आत्मा तो है पर हर जगह नहीं है जैनिज्म के फॉलोअर्स कर्म पर भी विश्वास रखते थे इनका यह मान माना था कि किसी का भी जन्म उनके पिछले जन्म में किए हुए कर्मों पर भी निर्भर करता है पिछले जन्म में अगर आपने अच्छे कर्म किए हैं तो आपका यह जीवन अच्छा होगा एंड वाइस वर्सा वैसे देखो पुनर्जन्म का कांसेप्ट तो बुद्धिज्म में भी था पर कर्म पे बुद्धिस्ट फॉलोअर्स का कोई सुझाव नहीं था कोई
ओपिनियन नहीं था जैन धर्म जहां देखो अपने अनुशासन और सिद्धांतों को लेके बहुत ही ज्यादा स्ट्रिक्ट था जैसे कि ज्यादातर जैन फॉलोअर्स आज भी प्याज लहसुन ये सब चीजें नहीं खाते हैं वहीं बौद्ध धर्म में इसको लेके शक्ति कम ही थी इतनी स्ट्रिक्टनेस नहीं थी जैन धर्म में किसी भी प्रकार की हिंसा जैसे मांसाहार खाना मना था वहीं बौद्ध धर्म का कहना था कि जरूरत पड़ने पर मांसाहार भी खाया जा सकता है जैन धर्म और बौद्ध धर्म दोनों धर्मों ने समाज में हर धर्म और वर्ण को अपना धर्म अपनाने की अनुमति दी दोनों धर्मों का
यह मानना था कि जीवन का अंतिम उद्देश्य निर्वाण प्राप्त करना है यानी मुक्ति मोक्ष प्राप्त करना है इस प्रकार से जैनिज्म हमारा कंप्लीट हो गया इसके बाद अब हम डिस्कस करते हैं महा जनपदों के बारे में जैसे कि हमने देखा था कि लेटर वैदिक पीरियड में ना लोग फूड गैदरर से फूड प्रोड्यूसर बन गए थे घर जमीन खेती इन सभी ने ना लोगों को बांध के रख दिया फिर जो जहां के थे वो वहीं बस गए और इस बसेरे यानी जहां पे लोग बस गए थे उस जगह को बोला गया जनपद पाणिनी के द्वारा लिखी
गई अष्टाध्याई में 40 जनपदों की बात की गई है जिसमें से देखो 16 को महाजनपद बोला गया महाजनपद के पीरियड को हम दूसरी अर्बन सिविलाइजेशन भी बोलते हैं इंडस वैली सिविलाइजेशन पहली अर्बन सिविलाइजेशन थी और महाजनपद का जो पीरियड था वो दूसरा अर्बन सिविलाइजेशन दरअसल जैसे ही देखो आयरन और कॉपर का इस्तेमाल बढ़ने लगा ना खेती के साथ-साथ दूसरे जो बिजनेस थे वो भी चलन में आ गए जैसे देखो बड़ाई का काम होता है कार्पेंट्री लोहार का काम होता है या फिर सुनार यानी सोने का काम होता है इस प्रकार के अनेकों बिजनेस चलन में
आ गए और इससे ना आम आदमी की इनकम काफी बढ़ गई थी और रिसोर्सेस के लिए भी आपस में लड़ाई स्टार्ट हो गई इन 16 महाजनपदों की बात बौद्ध ग्रंथ अंगू तर निकाय में भी की गई है इन महाजनपदों में ना जिस टाइप की सरकार हुआ करती थी इसके बेस पे महाजनपदों को ना दो टाइप्स में आप डिवाइड कर सकते हो पहला है मोनार्किकल महाजनपद यानी कि राजशाही महाजनपद ऐसे राज्यों में राजगद्दी खुद के वंश को ही मिलती थी मतलब राजा का बेटा ही राजा बना करता था राजा किसी और को अपनी गद्दी नहीं दिया
करता था जैसे देखो कौशल और मगध महाजनपद यहां पर ना ब्राह्मण और वैदिक रिचुअल्स का यानी अनुष्ठानों का जो इंपॉर्टेंस है काफी ज्यादा बढ़ गया था इसके बाद देखो दूसरे टाइप के महान जनपद ये थे रिपब्लिकन महाजनपद यानी कि प्रजातांत्रिक या फिर लोकतांत्रिक महाजनपद यहां पर देखो राजा का बेटा ही राजा नहीं बनता था यहां पर कई सारे राजाओं में से किसी एक काबिल राजा को राजगद्दी मिलती थी और वह अपना राज्य प्रशासन यानी स्टेट एडमिनिस्ट्रेशन सभा की मदद से संभालता था यहां पर ब्राह्मण और वैदिक रिचुअल्स का उतना ज्यादा इंपॉर्टेंस नहीं था बल्कि देखो
कुछ बौद्ध साहित्य के हिसाब से सामाजिक वर्गीकरण यानी सोशल यरार की में ब्राह्मणों को क्षत्रिय के नीचे रखा गया था वज्जी और मल महाजनपद इसी श्रेणी में आते थे रिपब्लिकन महाजनपद को गण संघ भी बोला जाता था चलिए इन 16 महाजनपदों को हम थोड़ा सा विस्तार से देखते हैं पहले हम देखेंगे मगध राज्य को मगध की राजधानी थी राजगृह है जो देखो आज के समय में बिहार के पटना और गया क्षेत्र को कवर करता है मगध हमेशा ही एक बहुत ही मजबूत राज्य था और इसका कारण था मगध की लोकेशन मगध के देखो नॉर्थ में
थी गंगा नदी वेस्ट में थी सोन नदी और ईस्ट में थी चंपा नदी तीन तरफ से बहती ये नदियां जहां देखो मगध राज्य को प्रोटेक्शन प्रोवाइड करती थी दुश्मनों से और दुश्मनों का काम बहुत ज्यादा कठिन कर देती थी इसके साथ साथ मगध राज्य को ट्रेड के लिए ये नदियां बंगाल की खाड़ी यानी बे ऑफ बंगाल से जोड़ती थी मगध के दक्षिण में विंदे पर्वत जो इन्हें सदर्न स्टेट से भी सुरक्षा देते थे मगध के ईस्ट में बसा था अंग महाजनपद और इस जनपद की राजधानी थी चंपा आज के समय में ये बिहार के मुंगेर
और भागलपुर क्षेत्र को कवर करता है सिक्स्थ सेंचुरी बीसी में ना चंपा एक बहुत इंपॉर्टेंट ट्रेड पोर्ट हुआ करता था बहुत व्यापार यहां से होता था और चंपा के ट्रेड रिलेशंस साउथ ईस्ट एशिया में भी थे लेकिन देखो सिक्स्थ सेंचुरी के अंत तक अंग महाजनपद मगध राज्य के अंदर ही समा गया था मतलब मगध महाजनपद का हिस्सा बन गया था इसके बाद नेक्स्ट भारत के ईस्ट में था वज्जी महाजनपद और इनकी राजधानी हुआ करती थी वैशाली वज्जी बना था ढेर सारे वंश को मिलाकर अनेकों देखो वंश हुआ करते थे उस समय जैसे लिछवी विद्यास ज्ञत्र
का इन सबको मिलाकर बना था वज्जी महावीर जैन ज्ञत्र का वंश से संबंध रखते थे वज्जी के वेस्ट में था मल राज्य और इसकी ना दो राजधानियां हुआ करती थी एक कुशीनगर दूसरी पावा और ये भी वज्जी की तरह एक रिपब्लिकन स्टेट था मतलब कई सारे राजाओं में काबिल राजा को गद्दी मिलती थी यानी कि यह भीम बना था बहुत सारे क्लांस यानी वंश को मिलाकर महात्मा बुद्ध ने अपने जीवन का आखिरी भोजन यानी आखिरी बार खाना खाया था पावा में और फाइनली महात्मा बुद्ध को मृत्यु प्राप्त होती है यानी उनकी डेथ होती है गंगा
नदी के किनारे बसे कुशीनगर में गंगा तट पर ही बसा था काशी महाजनपद और काशी महाजनपद की राजधानी हुआ करती थी वाराणसी वरुणा और असी नदी से घिरा था ये काशी महाजनपद और उस समय देखो काशी महाजनपद की ना बाकी महाजनपदों के साथ जैसे मगध महाजनपद अंग महाजनपद और कौशल महाजनपद इनके साथ में लगातार लड़ाई होती रहती थी और अंत में काशी महाजनपद कौशल महाजनपद का ही हिस्सा बन जाता है लड़ाई हारकर काशी महाजनपद का वर्णन हमें मत्स्य पुराण में भी मिलता है नेक्स्ट काशी महाजनपद के नॉर्थ में था कौशल महाजनपद कौशल महाजनपद की भी
दो राजधानियां हुआ करती थी नॉर्थ में श्रावस्ती और साउथ में कुशावती और यह रीजन आज के समय में हमें मिलेगा उत्तर प्रदेश के गोंडा बहराइच रीजन में कौशल राज्य के अंदर थी साक्य ट्राइब्स की टेरिटरी कपिल वस्तु जहां पर महात्मा बुद्ध का जन्म हुआ था कौशल भी देखो एक बहुत ही पावरफुल किंगडम थी गंडक गोमती और सर्पिका नदी इन्हें दुश्मनों से बचाती थी और दूसरे राज्यों के साथ वैवाहिक गठबंधन यानी मैट्रिमोनियल अलायंस जैसे बेटे की शादी बेटी की शादी कर दी जाती थी दूसरे राज्यों के राजाओं और रानियों के साथ तो इस प्रकार के जो
मैट्रिमोनियल एलायंस हुए ना इससे कौशल महाजनपद और भी ज्यादा पावरफुल हो गया था जैसे कि देखो कौशल के राजा प्रसनजीत ने अपनी बहन की शादी मगध के राजा बिम बिसार के साथ की कौशल के राजा प्रसनजीत महात्मा बुद्ध के भी कंटेंपरेरी थे और देखो कौशल के नो में था पंचाल किंगडम या फिर कहे कुरु किंगडम एक ही बात है महाभारत की लड़ाई कुरु क्षेत्र के लिए की गई थी और इनका कैपिटल था इंद्र प्रस्त महाभारत की मेन कैरेक्टर में से एक महारानी द्रोपदी पांचाल किंगडम की बेटी थी और पांचाल का कैपिटल था अछत और कामला
या और यह एरिया आज हमें मिलता है दिल्ली हरियाणा रीजन में इसके बाद यमुना के किनारे था सूर सेन किंगडम और इसका कैपिटल था मथुरा यमुना के तट पर ही बसा था एक और किंगडम जिसका नाम था वत्स और इस वत्स किंगडम की राजधानी हुआ करती थी कोसांबी कुछ लोग देखो ये भी बोलते हैं ये जो वत्स किंगडम था ये कुरु कुल का ही एक हिस्सा था जो कि यमुना के पास जाके बस गया और यह एरिया आज के समय में हमें प्रयागराज वाले रीजन में मिलेगा यहां के एक बहुत इंपॉर्टेंट किंग थे उदयन राजा
उदयन जो कि देखो सातवीं आठवीं सेंचुरी में लिखे गए बहुत से लिटरेचर और स्टोरीज के हीरो थे नायक थे जैसे कि भास द्वारा लिखे गए स्प्रवातो और राजा हर्ष द्वारा लिखी गई रत्नावली और प्रियदर्शिका में राजा उदयन मेन किरदार में है यानी प्रमुख भूमिका में है इसके बाद नेक्स्ट आता है आज के मालवा रीजन में बसा अवंती राज्य और इसके भी दो कैपिटल्स हुआ करती थी पहली थी महिष्मति जो आज हमें मध्य प्रदेश के महेश्वर रीजन में मिलती है और दूसरा है उजनी यानी आज का उज्जैन रीजन अवंती के नॉर्थ में था मत्स्य राज्य जिसकी
कैपिटल थी विराटनगर आज के समय में यह कवर करेगा राजस्थान के अलवर और भरतपुर रीजन को और साउथ इंडिया का इकलौता राज्य था गोदावरी नदी के किनारे बसा अमक या फिर ससक राज्य और इसकी कैपिटल हुआ करती थी प्रतिष्ठान ये इकलौता ऐसा किंगडम था जो विन्यास माउंटेंस के साउथ में था इवन देखो आज के पाकिस्तान वाले रीजन में भी दो महाजनपद हुआ करते थे पहला था कंबोज राज्य जो पाकिस्तान के राजोरी रीजन को कवर करता था और इसकी राजधानी हुआ करती थी पूंछ यह क्षेत्र अपने उच्च गुणवत्ता के घोड़ों के लिए जाना जाता था इसके
बाद दूसरा था गांधार राज्य जो आज के पाकिस्तान के पेशावर और रावलपिंडी रीजन को कवर करता है और इनका कैपिटल था तक्षशीला इंडस और े लम से जुड़ा तकसीला एक इंपोर्टेंट पोर्ट साइट भी हुआ करता था इस दौरान देखो आज का उत्तर प्रदेश बिहार और मध्य प्रदेश वाला एरिया बहुत ही जोर-शोर से राजनीतिक और आर्थिक तौर पे उभरता है और इसका रीजन था वहां की ज्योग्राफिकल लोकेशन गंगा और यमुना का पानी वहां की जमीन को उपजाऊ भी बनाता था और ट्रेड के लिए बे ऑफ बंगाल से भी जोड़ता था लोहे की जब खोज हुई ना
इससे देखो खेती तो आसान हुई ही और फसलों का प्रोडक्शन भी इंक्रीज हो गया लेकिन देखो आयरन की खोज के बाद ना हजारों तरह के नए-नए हथियार भी इमर्ज होकर आए जिनको जंग में यूज किया जाने लगा और इसकी वजह से विभिन्न राज्यों और महाजनपदों के बीच में कंफ्लेक्स और ज्यादा बढ़ गए लड़ाइयां और भी ज्यादा भयंकर हो गई यही कारण था कि 16 में से सिर्फ चार महाजनपद सुप्रीम बन के निकले और वो थे मगद कौशल अवंती और वत्स उस समय ना मगध महाजनपद में रूल था हरिय डायनेस्टी का जिसका टाइम पीरियड था 558
बीसी से लेकर 491 बीसी तक मगर देखो सारे जनपदों में ना सबसे ज्यादा पावरफुल था और इसका एक रीजन था इनके रचनात्मक रूलर और इनकी लोकेशन मतलब रूलरसोंग्स थे दुश्मन राजा थे अटैक नहीं करते थे राजगिरी के ऊपर राजगिरी के ऊपर अटैक करना एक प्रकार से सुसाइड करने के समान था आत्महत्या करने के समान था अगर हम मगध महाजनपद के रूलरसोंग्स दोनों तरह की स्ट्रेटजीजर किया करते थे जैसे कि एग्जांपल के तौर पर बिम बिसार ने अंग महाजनपद को हराकर मगध में बना लिया यानी मगध का हिस्सा बना लिया इसके बाद वह आज पड़ोस के
राज्यों के साथ में वैवाहिक गठबंधन एस्टेब्लिश करते हैं जैसे कि देखो कौशल राज्य के राजा प्रसनजीत की बहन बिम बिसार की पत्नी थी उसी प्रकार से वज्जी राज्य की जो लिछवी प्रिंसेस थी ना चेलना वो भी बिम बिसार की पत्नी थी तो इस प्रकार से अपने पड़ोसी राज्यों के साथ में वैवाहिक गठबंधन एस्टेब्लिश करना ये उनके डिप्लोमेसी यानी कूटनीति का एक जबरदस्त एग्जांपल था और अंत में देखो महात्मा बुद्ध से प्रभावित होकर बिम बिसार ने बौद्ध धर्म को अपना लिया लेकिन देखो दुख की बात यह है कि बिम बिसार की हत्या ना उनके बेटे के
हाथों ही हुई राज के लालच में आके आजाद शत्रु ने अपने पिता बिम विसार की हत्या कर दी थी आजाद शत्रु का टाइम पीरियड था 492 बीसी से लेके 460 बीसी तक ऐसा माना जाता है कि आजाद शत्रु ना पहले से ही बहुत ज्यादा क्रूर और अग्रेसिव थे अपने जीवन काल में आजाद शत्रु ने वैशाली और इवन कौशल जैसे पावरफुल किंगडम पर भी आक्रमण कर दिया और उन्हें मगध राज्य में मिला लिया और इस सक्सेस के पीछे रीजन था आजाद शत्रु का शैतानी और रचनात्मक दिमाग जैसा कि देखो बाहुबली मूवी में दिखाया गया है यह
हथियार जो आप तस्वीर में देख रहे हो ना यह आजाद शत्रु का क्रिएशन था रथ में लगे इस त्रिव और तेज चक्के से बहुत से लोगों को आसानी से मारा जा सकता था आजाद शत्रु ने देखो युद्ध जीतने के लिए ना दो हथियारों का इस्तेमाल बहुत ज्यादा किया इन हथियारों ने इंपॉर्टेंट रोल प्ले किया पहला हथियार रथ मुसल रथ मुसल हथियार इसमें देखो एक विशाल भाले के समान हथियार होता था जो रथ से जुड़ा होता था दुश्मन सैनिकों को मारने के लिए घायल करने के लिए और रथों को तोड़ने के लिए रथ मूसल का इस्तेमाल
किया जाता था आप तस्वीर देखिए इसके बाद एक और हथियार जिसका इस्तेमाल आजाद शत्रु ने किया वो था महाशिला कंटक महाशिला कंटक एक पत्थर फेंकने वाला यंत्र जो सीधा रथों से जुड़ा होता था विशाल पत्थरों को दुश्मन सैनिकों और किले बंदियों पर फेंकने के लिए इस हथियार का इस्तेमाल किया जाता था इन दोनों शक्तिशाली हथियारों को एंबिशियस अजात शत्रु ने युद्ध के दौरान यूज किया और युद्ध में इन हथियारों ने एक निर्णायक भूमिका प्ले की अगर देखो आजाद शत्रु के रिलीजियस इंटरेस्ट की बात करें ना वो शुरुआत में तो जैन धर्म को फॉलो किया करते
थे पर आखिरी दिनों में जब उनको यह रिलाइज हुआ ना कि यार गलत कर दिया फादर की हत्या नहीं करनी चाहिए थी मतलब उन्होंने अपने फादर बिम बिसार की हत्या की थी राजगद्दी हासिल करने के लिए तो अंतिम दिनों में उन्हें इस चीज का ना अफसोस हुआ फिर वो बोध धर्म यानी बुद्धिज्म की तरफ आगे बढ़ गए कुछ बुद्धिस्ट लिटरेचर जैसे मज्जिद निकाय या फिर मध्य प्रदेश में मिले भरूद इंस्क्राइनॉक्स पहला बुद्धिस्ट काउंसिल आयोजित हुआ था ना वो आजाद शत्रु के छत्रछाया में ही आयोजित हुआ था आजाद शत्रु के बाद मगन की गद्दी पर आते
हैं उनके बेटे उद्दीन उद्दीन का टाइम पीरियड है 460 बीसी से लेकर 444 बीसी तक उद्दीन के टाइम पीरियड तक मगध एंपायर हिमालया से लेकर झारखंड के छोटा नागपुर प्लेट्यू तक फैला हुआ था और इतनी बड़ी टेरिटरी को संभालने के लिए ना उधन मगध का कैपिटल राजगीर से पाटलीपुत्र शिफ्ट कर देते हैं दरअसल पाटलीपुत्र गंगा और सोन नदी के संगम पर स्थित था इस वजह से पूरे राज्य में संपर्क बनाना आसान हो गया था पर देखो उद्दीन के बाद जो राजा आए ना जो सक्सेसर्स थे उद्दीन के वो इसके बावजूद मगध एंपायर को अच्छे ढंग
से नहीं संभाल पाए उद्दीन हरिय डायनेस्टी के आखिरी पावरफुल लीडर थे जब हरिय डायनेस्टी के आखिरी रूलर नाग दर्शक रूल कर रहे थे ना तो उस समय उन्हीं के अमात्य यानी कि मंत्री शिशुनाग ने नाग दर्शक की हत्या कर दी और मगध में शिशुनाग डायनेस्टी की स्थापना की शिशुनाग मगध की राजधानी फिर से पाटलीपुत्र से उठाकर वैशाली कर देते हैं और आते ही सबसे पहले अटैक करते हैं अवंती किंगडम पर और अवंती को मगध साम्राज्य का हिस्सा बना लेते हैं शिशुनाग के बाद रूल आता है उनके बेटे कला शोक का शिशु नाग के बेटे काला
शोक पाटली पत्र की इंपॉर्टेंस को समझते थे और इसी को देखते हुए उन्होंने पाटली पुत्र को एक बार फिर से मगध की कैपिटल बना दिया और काला शोक के बारे में हमने पहले भी जिक्र किया सेकंड बुद्धिस्ट काउंसिल को जब हमने डिस्कस किया था सेकंड बुद्धिस्ट काउंसिल जो है वो काला शोक के संरक्षण में ही वैशाली में आयोजित हुई थी तो सेकंड बुद्धिस्ट काउंसिल के लिए फेमस है काला शोक इसके बाद देखो काला शोक को सक्सीडेंस का और यह नंद डायनेस्टी बहुत पावरफुल थी नंद वंश के संस्थापक थे महापदम नंद नंद डायनेस्टी को ना मगध
के सबसे शक्तिशाली शासन के रूप में जाना जाता है इतना शक्तिशाली कहावत है कहा जाता है कि जब पंजाब को जीतकर अलेक्जेंडर मगध की ओर आगे बढ़ रहे थे ना तो धनानंद की सेना देखकर वो डर गए और भाग खड़े हुए महापदम नंद के राज में मगद के क्षेत्र में कलिंग डायनेस्टी का एरिया भी शामिल था और ये ये बात हमें कहां से पता लगती है हाथी गुंफा इंस्क्राइनॉक्स करने वाले एकमात्र गैर क्षत्रिय थे पुराणों के हिसाब से इनकी माता शुद्र वर्ग से संबंधित थे महापदम नंद को ना उनके आठ बेटों ने आगे जाकर सक्ड
किया जिसमें आखिरी और सबसे महत्त्वपूर्ण थे धनानंद धनानंद को ग्रीक राइटर्स अग्रे मिेस और जेंड्र मेस भी कहते थे जिसका अर्थ है उग्र सेन के वंशज अगर देखो बात करें नंद डायनेस्टी के विनाश का एक मुख्य रीजन था धनानंद की टैक्सेशन पॉलिसी धनानंद के टाइम पे ना छोटी से छोटी चीजों पे जैसे पत्थर पे जानवर की चमड़ी पे कपड़ों पर छोटी से छोटी चीज पर भी टैक्स लगा देते थे यही रीजन था कि मगद की जनता ना अपने रूलर से बहुत ज्यादा परेशान हो गई थी खुश नहीं थी रूलर और रूल के बीच में यानी
जनता और राजा के बीच में इस मतभेद का फायदा उठाया मोरियन डायनेस्टी के फाउंडर चंद्रगुप्त मौर्य ने और इसमें उनकी मदद किसके द्वारा की गई चंद्रगुप्त के राजनीतिक गुरु चाणक्य ने अब आप एक चीज सोच रहे होंगे कि 16 महाजनपद थे उनमें से सिर्फ मगध ही क्यों जीत रहा था दरअसल देखो इसके भी रीजंस थे मुख्य रीजन था वहां की ज्योग्राफी मगध की ज्योग्राफी जिसके बारे में हमने पहले भी बात की मगद तीन तरफ से ना नदियों से घिरा हुआ था और चौथी तरफ से उसके प्रोटेक्शन के लिए खड़ा था विन्यास विन्यास माउंटेंस मगध का
फर्स्ट कैपिटल राजगिरी चारों तरफ से पहाड़ियों से घिरा हुआ था जिसकी वजह से ना वहां पे पहुंचना बहुत कठिन था मगध का दूसरा कैपिटल पाटलीपुत्र ये भी दो नदियों के संगम पे था जिससे कि ना आर्मी को इधर से उधर पहुंचाना काफी आसान था सिर्फ इतना ही नहीं राजगिरी के पास स्थित आयरन और कोपन के खदानों ने मगध रीजन पर चार चांद लगा दिए जंग जीतने के लिए ना इनके पास ना हथियारों की कमी थी आयरन और कोपर से हथियार बना सकते थे और ना ही हथियारों को चलाने के लिए सैनिकों की कमी थी इनफैक्ट
अगर हम दूसरे पावरफुल किंगडम जैसे से अवंती की बात करें तो इनकी भी स्ट्रेंथ का रीजन था मध्य प्रदेश में मिले आयरन माइंस मगध के रूलरसोंग्स ना एक और रीजन था आर्मी में एलिफेंट्स यानी हाथियों की भर्ती मगध पहला ऐसा राज्य था जिसने हाथियों का इस्तेमाल किया जंग में इससे इनके लिए ना बड़े-बड़े किलों की दीवारों को तोड़ना दरवाजों को तोड़ना या फिर कठिन रास्तों पर चलना ये सब चीजें आसान हो गई अगर देखो ग्रीक सोर्सेस की माने ना तो नंद एंपायर के पास करीबन 6000 एलिफेंट्स थे तो पॉइंट देखो साफ है मगध एंपायर ने
हाथियों का इस्तेमाल किया मगध एंपायर में जो अलग-अलग काबिल राजा आए जैसे देखो बिंबिसार आजाद शत्रु या फिर महापदम नंद इन सब काबिल राजाओं ने हाथियों का बढ़िया ढंग से इस्तेमाल किया जंग जीतने के लिए इसके बाद 321 बीसी में ना मगध रीजन का दरो मदार आया मोरेन अंपायर के ऊपर मोरेन डायनेस्टी हम जाने उससे पहले हम जल्दी से जानते हैं ईरानियन और मेसिडोनियन इनवेजन को देखो मगध राज्य ने ना भारत के नॉर्थ और ईस्ट एरियाज पे कब्जा करके इनको को तो एकजुट कर दिया था परंतु देखो नॉर्थ वेस्टर्न और आज का जो पाकिस्तान वाला
रीजन है ना यहां पर छोटे किंगडम से जैसे कि कंबोज गंधार और मद्रा ये सब एक दूसरे से लड़ रहे थे और इसका फायदा उठाया ईरान के आर्केम नियन रूलरसोंग्स ने भारत के गंधार रीजन पर अटैक करके आर्के मेनेड एंपायर का पार्ट बना लिया और ये मेंशन कहां पे है ईरान में मिले बहिश्त इंस्क्राइनॉक्स में इस समय देखो मगध में तो हरिय डायनेस्टी के राजा बिम बिसार का रूल था 516 बीसी में सायरस के पोते यानी ग्रैंड सन डेरियस काफी ज्यादा एक्टिव थे और ताबड़तोड़ हमले कर रहे थे इन्होंने ना इंडस रिवर के वेस्ट में
स्थित पंजाब और सिंध रीजन को कैप्चर कर लिया तो ये जो रीजन था ना पंजाब और सिंध रीजन ये पर्शियन एंपायर का सबसे ज्यादा उपजाऊ यानी फर्टाइल रीजन था डेरियस के उत्तराधिकारी थे जेरेक्स और देखो जेरेक्स के बाद ईरान की यानी पर्शिया की राजगद्दी पर बैठते हैं डेरियस सेकंड अरबेला की लड़ाई ई में इनका सामना होता है मेसेडोनिया लीडर एलेग्जेंडर द ग्रेट से जिसमें देखो डेरियस सेकंड को हार का सामना करना पड़ता है एलेग्जेंडर की इच्छा उसे भारत की ओर ले आती है हेरोडोटस जिन्हें हम फादर ऑफ हिस्ट्री भी बोलते हैं उन्होंने देखो अपनी किताब
में ना भारत देश की खूब तारीफ की थी और यही रीजन था कि एलेग्जेंडर भारत को भी कैप्चर करने के लिए भारत पर कब्जा करने के लिए चल पड़े उस समय ना भारत का नॉर्थ वेस्टर्न रीजन छोटे-छोटे किंगडम में राज्यों में बटा हुआ था आपस में लड़ाई भी चलती रहती थी इस वजह से नॉर्थ वेस्ट वेस्टन रीजन को कैप्चर करना आसान था एलेग्जेंडर खायर पास से होते हुए तकसीला पहुंचते हैं एलेग्जेंडर की आर्मी को देख के तकसीला के राजा अंबी अपने घुटने टेक देते हैं और एलेग्जेंडर से हाथ मिला लेते हैं जैसे ही एलेग्जेंडर झेलम
नदी के पास पहुंचते हैं उनका सामना होता है पोरव किंगडम के राजा पोरस से राजा पोरस और एलेग्जेंडर के बीच भयंकर लड़ाई होती है जिसे बैटल ऑफ हाइड स् पीस के नाम से जानते हैं जिसमें राजा पोरस को हार का सामना करना पड़ता है बट देखो राजा पोरस की बहुदरी देख एलेक्जेंडर काफी प्रभावित हुए और उन्हें उनका राज्य एलेग्जेंडर ने वापस लुटा दिया झेलम नदी के किनारे राजा पोरस की बहादुरी देखने के बाद एलेग्जेंडर की आर्मी बढ़ती है मगध की तरफ पर मगध में मौजूद धनानंद की आर्मी का खोफ एलेग्जेंडर की आर्मी को डिमोटिवेट कर
देता है एलेग्जेंडर की आर्मी पिछले 10 साल से लगातार लड़ाई लड़ रही थी बहुत ज्यादा थक गई थी जब अलेक्जेंडर की आर्मी ब्यास नदी पर पहुंचती है ना तो मना कर देती है कि हम नहीं जाएंगे आगे बहुत ज्यादा थक गए 10 साल से लड़े जा रहे हैं लड़े जा रहे हैं और मगध की आर्मी का खौफ भी था जिसके कारण देखो एलेग्जेंडर को ना वहीं से वापस लौटना पड़ता है और वापस लौटते वक्त भी एलेग्जेंडर छोटे-मोटे किंगडम में लूट मचा कर जाते हैं उन्हें काफी कमजोर कर गए थे और आगे जाके इसी कमजोरी का
फायदा मिला मोरियन डायनेस्टी को अब आइए हम डिटेल से जानते हैं मोरियन डायनेस्टी के बारे में मोरियन डायनेस्टी का टाइम पीरियड था 321 बीसी से बीसी तक और इस महान एंपायर के फाउंडर थे चंद्रगुप्त मौर्य चंद्रगुप्त को ग्रीक राइटर्स सैंड्रोकॉटोस की राजनीतिक समझ बूझ और उनकी स्ट्रेटेजी की कहानियां आज भी हम सुनते हैं चाणक्य को कोटिल या विष्णुगुप्त भी बोला जाता है चंद्रगुप्त मौर्य के टाइम में ना नॉर्थ और नॉर्थ वेस्ट इंडिया का अधिकतर एरिया मोरियन रूल के अंदर आ गया था एलेग्जेंडर के एंबेसडर और सिलु सिड एंपायर के एंपरर सलूकस निकेटर को हराकर चंद्रगुप्त
अफगानिस्तान और बलूचिस्तान वाले एरियाज को भी मोरियन एंपायर का पार्ट बना लेते हैं बिहार उड़ीसा बंगाल और इवन दक्कन में भी मोरियन एंपायर का ही परचम लहरा रहा था इतना सब हमें कहां से पता लगता है उस समय लिखी गई काफी सारी बुक्स और इंस्क्राइनॉक्स जो बुक है इस बुक से हमें पता लगता है कैसे चंद्रगुप्त मौर्य ने नंद वंश का खात्मा किया देखो वैसे तो ये जो बुक है ना मुद्रा राक्षस यह बुक गुप्ता डायनेस्टी के रूल के दौरान लिखी गई थी बट देखो मोरेन एंपायर के बारे में भी यह बुक हमें बहुत कुछ
बताती है एक और इंपॉर्टेंट बुक है मेगास्थनीज के द्वारा लिखी गई इंडिका बुक इस बुक से भी हमें पता लगता है कि मोरेन टाइम के दौरान इकोनॉमिक और सोशल कंडीशंस कैसी थी दरअसल देखो जो मेगस्थनीज थे ना ये चंद्रगुप्त की कोर्ट में आए एक ग्रीक एंबेसडर थे और किन्होला मौर्य की कोर्ट में इनको भेजा था सलूकस निकेटर ने मेगस्थनीज देखो अपनी बुक इंडिका में हमें बताते हैं कि मोरियन आर्मी बहुत बड़ी थी जिसमें बहुत सारे हाथी और बहुत सारे घोड़े भी थे मेगस्थनीज की जो बुक है ना इसमें लिखा हुआ है भारत उस समय आर्थिक
तौर पर काफी ज्यादा स्ट्रांग था मेगस्थनीज से हमें यह भी पता चलता है कि मोरियन किंग को सलाह देने के लिए एक काउंसिल हुआ करती थी मोरियन एडमिनिस्ट्रेशन की बात आगे वीडियो में हम डिटेल से करेंगे वैसे देखो जैन मुनि भद्र बाहू से प्रभावित होकर चंद्रगुप्त मौर्य जैन धर्म को अपना लेते हैं और अपना सारा घरेलू जीवन छोड़कर जो भी उनका घरेलू जीवन था उसको वो छोड़ के कर्नाटक के प्रसिद्ध जैन साइट श्रवण बेलगोला में अपने आखिरी दिन बिताते हैं फाइनली इनकी डेथ सले खान से होती है सले खान देखो एक जैन प्रथा है जिसमें
इंसान खानपान छोड़ देता है और भूख की वजह से उसकी डेथ हो जाती है इस पर यूपीएससी ने क्वेश्चन भी पूछा था चंद्रगुप्त के बाद मोरियन एंपायर की गद्दी पर आते हैं उनके बेटे बिंदुसार इनका टाइम पीरियड था 298 बीसी से लेकर 273 बीसी तक बिंदुसार ने मोरेन एंपायर को बढ़ाने के लिए एक बहुत ही अग्रेसिव स्ट्रेटेजी अपनाई ग्रीक हिस्टोरियन एथेनिक ने बिंदुसार को अमित्रोचतेस घात अमित्र घात का मतलब होता है शत्रुओं का वध करने वाला एमीज को मारने वाला बिंदु साल के काल में साउथ इंडिया के भी कुछ राज्य मोरियन एंपायर का हिस्सा बन
चुके थे बिंदुसार के समय सीरियन किंग एंटीकस फर्स्ट ने अपने एंबेसडर डायमेक्स को भारत भेजा था बिंदुसार देखो बौद्ध धर्म की आजीविका सेक्ट के फॉलोअर थे और बिंदुसार की डेथ के बाद उनके बेटों के बीच ना राजगद्दी हासिल करने के लिए एक जंग छिड़ गई बेटों में आपस में लड़ाई स्टार्ट हो गई ग्रीक इतिहासकारों की माने तो अशोका ने मौर्य गद्दी पाने के लिए अपने 999 भाइयों की हत्या कर दी थी अब यह बात देखो कितनी सच है यह तो बता पाना मुश्किल है पर देखो एक बात तो तय थी अब भारत को मोरिन एंपायर
का सबसे काबिल राजा मिलने वाला था द ग्रेट अशोक अशोक का टाइम पीरियड रहा 273 बीसी से लेके 232 बीसी और इस पीरियड में भारत का अधिकतर एरिया यानी अफगानिस्तान से लेकर साउथ में कर्नाटक तक मोरियन रूल के अंडर ही हुआ करता था अपने राज के आठवें साल में यानी कि 261 बीसी में अशोक इवन कलिंग राज्य पर भी प्रहार करके अटैक करके उसको मोरेन एंपायर में शामिल कर लेते हैं अशोक के 13 रोक एडिक्ट में कलिंग वार के बारे में लिखा गया है अशोक की इस मारधाड़ करके दूसरे राज्यों को हराने वाली पॉलिसी को
बोला गया भेरी गोस यानी कि ड्रम ऑफ वार और देखो कलिंग युद्ध में हुए ब्लड शड को देखकर बहुत खून बहा था कलिंग युद्ध में तो इस रक्तपात को देखकर सम्राट अशोक विचलित हो जाते हैं और ये उनके जीवन का एक बहुत ऐतिहासिक पड़ाव साबित होता है कलिंग युद्ध के बाद अशोक शांति के लिए बौद्ध धर्म की ओर देख देखते हैं बौद्ध भिक्षु उपगुप्ता के प्रभाव में आकर अशोक बौद्ध धर्म को अपना लेते हैं और बौद्ध धर्म अपनाने के बाद अशोक बेरी घोष को त्याग धम घोष यानी धर्म की राह पर चल पड़ते हैं देखो
वैसे बौद्ध ग्रंथ महाव की माने तो अशोक को बौद्ध धर्म में निग्रो नाम के भिक्षु ने परिवर्तित किया था यानी कन्वर्ट किया था पर अशोक वंदन के हिसाब से अशोक को कन्वर्ट किया था उपगुप्ता ने आइए अब हम देखते हैं अशोक को द ग्रेट अशोक क्यों बोलते हैं देखो मौर्य साम्राज्य की स्थापना और विस्तार का श्रेय तो चंद्रगुप्त और बिंदुसार को जाता है लेकिन फिर भी द ग्रेट कहलाए अशोक ऐसा क्यों सोच कर देखिए एक राजा जिसके पास भारत की सबसे स्ट्रांग आर्मी थी भारत का 80 पर एरिया उसके कंट्रोल में था वो चाहता तो
बाकी बचे हुए किंगडम को भी आसानी से हरा देता लेकिन उसने ऐसा नहीं किया बल्कि वो धर्म के राह पर चलके अपना नाम इतिहास के सबसे अच्छे राजा के तौर पे दर्ज करवाता है इसीलिए द ग्रेट अशोक को हम प्रियदर्शी या फिर देवनाम प्रिय नाम से भी जानते हैं अशोक की धर्म नीति सदियों सदियों के लिए शांति का प्रतीक बनी और इस धर्म नीति को फैलाने के लिए अशोक ने ने कई सारे मेथड्स अपनाए जैसे कि रॉक एडिक्ट्स यानी कि शिलालेख इंस्क्राइनॉक्स को ना मेजर और माइनर रॉक एडिक्ट्स में डिवाइड किया गया है जो हमें
बौद्ध धर्म के बारे में काफी कुछ बताते हैं जैसे कि अशोक की आठवीं मेजर रोक एडिक्ट से हमें पता चलता है अशोक धम यात्रा के लिए लोगों को प्रेरित करते थे अशोक द्वारा एस्टेब्लिश करवाए गए इंस्क्राइनॉक्स डिट्स की लोकेशन जिसके बारे में क्वेश्चन पूछा जा चुका है पहला है आज के अफगानिस्तान में स्थित कंधार इंस्क्राइनॉक्स जो लिखा गया है पाली लैंग्वेज में और लिपि है ब्राह्मी कालसी इंक्रिप्शन हमें ग्रीस के हेलेनिस्टिक एंपायर के बारे में बहुत सारी जानकारी देता है और यह भी कंफर्म करता है कि ग्रीस के साथ ना अशोक के अच्छे संबंध थे
इस इंस्क्राइनॉक्स इंस्क्राइनॉक्स शांति प्रतीक के तौर पर स्थापित किया गया था मतलब पीस के सिंबल के तौर पर इसे एस्टेब्लिश किया गया था कलिंग युद्ध के बाद धोली से थोड़ा आगे जाकर ओड़ीशा के गंजम डिस्ट्रिक्ट में मिलता है जोगड़ा इंस्क्राइनॉक्स अशोक के द्वारा कम टैक्स लिया जाता था वहीं मास्की इंस्क्राइनॉक्स में अशोक के लिए अो कर रायो का इस्तेमाल किया गया है इवन देखो बुद्धिज्म को बढ़ावा देने के लिए अशोक ने ढेरों स्तूप यानी कि ब्यूरियल माउंट्स की भी स्थापना की जैसे कि मध्य प्रदेश प स्थित सांची स्तूप अशोक ने थर्ड सेंचुरी में बनवाया था
सांची स्तूप को 1989 में यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साइट का भी दर्जा दिया गया है महात्मा बुद्ध के पहले सेरमन को कमेमोरेट करने के लिए अशोक ने बनवाया सारनाथ पिल्लर जिसे हम अशोकनगर का कैपिटल जो है वो हमारा नेशनल एंबलम भी है इसके अलावा देखो अशोक के राज्य परिषद में धम महामात्रास भी थे जो अशोक की धम पॉलिसीज को दूर देशों तक पहुंचाते थे इन धम महामात्रास में एक इंपॉर्टेंट नाम है अशोक के बेटे महेंद्र इवन एक और भी इंपोर्टेंट नाम है उनकी बेटी संघमित्रा का ये दोनों राजा अशोक के कहने पर बौद्ध धर्म को फैलाने
के लिए श्रीलंका जाते हैं और इस बात का मेंशन एक बुद्धिस्ट टेक्स्ट महाव में भी है महाव जो बुद्धिस्ट टेक्स्ट है उसमें इस बात का जिक्र है अशोक देखो बौद्ध धर्म को फैलाने के लिए ना बहुत कुछ करते हैं काफी सारे स्टेप्स लेते हैं पर इसका मतलब ये नहीं कि महात्मा बुद्ध की तरह अशोक भी अपने राज्य को त्याग देते हैं नहीं ऐसा कुछ नहीं इवन कलिंग युद्ध उन्होंने जीता और युद्ध जीतने के बाद उन्हें बुरा भी लगा क्योंकि युद्ध के दौरान बहुत ज्यादा ब्लड शेड हुआ था रक्तपात हुआ था खून खराबा हुआ था लेकिन
एक चीज याद रखना उन्होंने बावजूद इसके कलिंग को वापस करने की बात कभी नहीं की इनफैक्ट आर्मी की पोजीशन भी वैसे की वैसी ही थी ऐसा नहीं कि उन्होंने आर्मी को डिसबैंड कर दिया नहीं सब कुछ सेम था बस द ग्रेट अशोक बेरी घोसा छोड़ धर्म घोष की तरफ मुड़ गए थे सम्राट अशोक के बाद मोरियन एंपायर दो पार्ट्स में बट गया था वेस्टर्न पार्ट को अशोक के बेटे कुणाल संभालते हैं और मोरियन साम्राज्य का ईस्टर्न पार्ट यह संभाला जाता है अशोक के पोते यानी कि ग्रैंडसन दशरथ के द्वारा मोरेन एंपायर का नॉर्थ वेस्टर्न पार्ट
ये देखो बैक्टीरियल इनवेजन के कारण ना काफी कमजोर पड़ जाता है और इसका फायदा उठाया किसने मोरियन एंपायर के ही आर्मी चीफ पुष्यमित्र सुंग ने 185 बीसी के आसपास पुष्यमित्र सुंग ने आर्मी प्रेड के दौरान अपने राजा और लास्ट मोरियन किंग ब्रीदर्स की हत्या कर दी और इसी के साथ शुंग राजवंश की शुंग डायनेस्टी की नीव पड़ती है इससे पहले कि सुंग डायनेस्टी की बात करें हम मोरियन एडमिनिस्ट्रेशन के बारे में जान लेते हैं चाणक्य की बुक अर्थशास्त्र के हिसाब से किसी भी आइडियल किंगडम के ना सात मेन पिलर्स होते हैं जिसे चाणक्य बोलते हैं
सप्तांग जैसे कि पहला है स्वामी यानी कि किंग दूसरा अमात्य यानी कि मिनिस्टर तीसरा है जनपद मतलब कि टेरिटरी या वहां के लोग चौथा है दुर्ग यानी कि कैपिटल राजधानी नेक्स्ट आता है कोस मतलब ट्रेजर फिर आता है डंड मतलब पनिशमेंट यानी कि सजा और सबसे लास्ट में है मित्र मतलब दोस्त तो ये सात पिलर्स हैं जिसको चाणक्य बोलते हैं सप्तांग चाणक्य यह कहते हैं किसी भी राष्ट्र को सफल बनाने के लिए इन सात पिलर्स का होना बहुत जरूरी है और इन सात पिलर्स को संगठित रखने के लिए एक सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेशन और देखो सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेशन
की जहां डोर रहती थी मोरियन किंग्स के पास में लेकिन किंग्स को सलाह देने के लिए एडवाइस देने के लिए उनके पास एक पूरी की पूरी मंत्रि परिषद हुआ करती थी यानी कि काउंसिल ऑफ मिनिस्टर्स मंत्रि परिषद के मेन मेंबर्स ये सब लोग हुआ करते थे जैसे युवराज पुरोहित या सेनापति पहला युवराज मतलब कि क्राउन प्रि जो ज्यादातर राजा की फैमिली से ही होते थे पुरोहित मतलब चीफ प्रीस्ट जो राजाओं को धार्मिक मामलों में एडवाइस दिया करते थे और लास्ट में सेनापति मतलब कमांडर इन चीफ जिसके पास आर्मी की जिम्मेदारी हुआ करती थी परिषद में
यानी काउंसिल ऑफ मिनिस्टर्स में कुछ और इंपोर्टेंट ऑफिशल्स भी हुआ करते थे जैसे देखो सनी धाता सनी धाता मतलब चीफ ट्रेजरी ऑफिसर जो कि खजाने की देखभाल किया करते थे इसके बाद नेक्स्ट समाहर्ता समाहर्ता ये रेवेन्यू कलेक्टर थे यानी कि राज्य के लोगों से टैक्स इकट्ठा किया करते थे नेक्स्ट है शुल्का अध्यक्ष इनका काम था टोल कलेक्ट करना इसके बाद नेक्स्ट संस्था अध्यक्ष संस्था अध्यक्ष क्या करते थे ये मार्केटिंग डिपार्टमेंट देखा करते थे नेक्स्ट राजु काश राजू कास इनका काम पटवारी जैसा था कुछ-कुछ ये जमीनों का सर्वेक्षण करते थे नेक्स्ट सीता अध्यक्ष सीता अध्यक्ष इनका
काम था खेती वगैरह देखना यानी एग्रीकल्चर नेक्स्ट धम महामात्र धम महामात्र ये पोस्ट अशोक ने बौद्ध धर्म फैलाने एवं आम आदमी की जरूरतों का ख्याल रखने के लिए स्पेशली बनाई थी इस पर यूपीएससी क्वेश्चन पूछ सकती है देखो गोरखपुर में मिले सह गोरा कॉपर प्लेट यह बांग्लादेश का महा स्थाना इंस्क्राइनॉक्स ये इंस्क्राइनॉक्स और यहां के चीफ जस्टिस को बोला जाता था प्रदेश था पूरा राज्य डिवाइडेड था प्रोविंसेस डिस्ट्रिक्ट्स और विलेजेस के बीच में सबसे बड़ा होता था चक्र यानी कि प्रोविंस जिसके इंचार्ज हुआ करते थे राष्ट्रपाल एक चक्र बना होता था आहार या विषय से
यानी कि डिस्ट्रिक्ट और इनके इंचार्ज को बोलते थे प्रदेशिक इनका रोल आज के जिला मजिस्ट्रेट जैसा ही था यानी डीएम डीसी जो आज के समय में जो आप बनना चाहते हो ना उसी की तरह इनका रोल था याद कर लीजिए प्रदेशिक आपको बनना है प्रदेशिक डिस्ट्रिक्ट बना होता था ग्राम से यानी कि गांव से और यह ग्राम के संरक्षण में होता था यानी गांव के इंचार्ज हुआ करते थे ग्रामी इसके बाद 10-10 गांव का ना एक ग्रुप बना दिया जाता था और 10 गांव के एक ग्रुप को बोला जाता था संग्रहण संग्रहण के हेड हुआ
करते थे गोप समझ गए 10 गांव का ग्रुप उसका नाम रख दिया संग्रहण और उसके हेड को बोला जाता था गोप मोरियन की अर्बन सिटीज यानी कि नगरपालिका चलती थी छह कमेटियों की मदद से सबसे पहली कमेटी इंडस्ट्री या क्राफ्ट कमेटी दूसरे नंबर पे फॉरेन कमेटी तीसरे नंबर पे रजिस्ट्रेशन ऑफ बर्थ एंड डेथ कमेटी जैसे कि आज का सेंसस डिपार्टमेंट है चौथे नंबर पे ट्रेड एंड कॉमर्स कमेटी पांचवें नंबर पे एक कमेटी डेडिकेटेड थी मैन्युफैक्चर चड गुड्स की क्वालिटी चेक करने के लिए ऐसा तो नहीं कि नकली सामान तैयार हो रहा है मैन्युफैक्चर हो रहा
है और सबसे लास्ट कमेटी हुआ करती थी सेल्स होने पर टैक्स कलेक्ट करने के लिए सेल्स टैक्स लगता था और उसको कलेक्ट करने के लिए छठी कमेटी उस समय जो चीजें बिकती थी ना उसपे 10 पर सेल्स टैक्स लगा करता था 10 पर आज के समय में जैसे जीएसटी है उस समय सेल्स टैक्स हुआ करता था 10 पर वैसे देखो पूरा मोरेन एंपायर पांच भागों में डिवाइडेड था नॉर्थ में था उत्तर पथ जिसकी कैपिटल हुआ करती थी तक्षशीला वेस्ट में था अवंती पथ जिसकी कैपिटल थी उज्जैनी साउथ में था दक्षिण पथ जिसकी कैपिटल थी सुवर्ण
गिरी सेंटर में था मगध जिसकी कैपिटल हुआ करती थी पाटलीपुत्र और सबसे लास्ट में ईस्ट में था कलिंग जिसकी कैपिटल हुआ करती थी तोस अब हम बात करेंगे इसके बाद मोरियन आर्मी की मेगस्थनीज हो या फिर विशाखा दत्त इन सभी ने अपनी बुक्स में मोरियन आर्मी की काफी ज्यादा तारीफ की है चाणक्य की अर्थशास्त्र बुक कहती है मोरियन आर्मी चार पार्ट्स में डिवाइडेड थी सबसे पहले इन्फेंट्री यानी कि पैदल सैनिक जिनके कमांड का अधिकारी को ना आत्या अध्यक्ष कहते थे दूसरा था कैवल यानी कि घुड़सवार जिनके कमांडिंग अधिकारी को अस्वाद बोलते थे इसके बाद तीसरे
नंबर पे चेरियट्स यानी रथ पर चलने वाले इनके कमांडिंग अधिकारी को कहते थे रथा अध्यक्ष और अंतिम विभाग था एलिफेंट्स या फिर कहें हाथी चालकों का जिनके कमांडिंग ऑफिसर को हस्ता अध्यक्ष कहा करते थे देखो मेगस्थनीज के रिकॉर्ड्स में ना मोरेन आर्मी के बारे में बताया गया है कि इनके पास 6 लाख इन्फेंट्री 30000 कैवल 8000 चेरियट्स और 9000 एलिफेंट्स थे इतनी बड़ी आर्मी उस समय किसी दूसरे राज्य के पास नहीं थी अर्थशास्त्र की बुक में देखो इस बात का भी जिक्र है कि कैसे मोरियन एंपायर के दौरान राजा जासूसी करवाया करते थे किस प्रकार
से मोरिस ने पूरा एक जासूसों का नेटवर्क खड़ा किया स्पाई डिपार्टमेंट के हेड को कहा जाता था महामात्य पा सर्प जो स्थाई या फिर स्टेशनरी सीक्रेट एजेंट्स हुआ करते थे ना उनको गुड पुरुषस्य इसके अलावा टूरिंग सीक्रेट एजेंट्स पठान टाइप के जो एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमते थे और जासूसी करते थे उन्हें बोला जाता था संच रस इसके बाद देखो मोरियन सोसाइटी को भी हम थोड़ा सा देख लेते हैं मोरियन कौन से वर्ण से आते थे यह तो देखो बता पाना थोड़ा मुश्किल मुश्किल है क्योंकि पुराण के हिसाब से मोर्य शूद्र वण से
थे पर जूनागढ़ इंस्क्राइनॉक्स की जो सोच थी ना काफी एडवांस थी जैसे कि देखो मोरियन सोसाइटी में ना वुमन की पोजीशन काफी अच्छी थी महिलाओं को डिवोर्स यानी कि तलाक लेने के बाद फिर से शादी करने का पूरा-पूरा हक था इवन वुमन को राजा के पर्सनल बॉडीगार्ड या फिर जास सू के तौर पर भी अपॉइंट्स सोसाइटी में स्लेवरी यानी कि गुलामी नहीं थी अर्थशास्त्र की बुक में देखो इस बात का भी जिक्र है कि कैसे मोरियन एंपायर के दौरान राजा जासूसी करवाया करते थे किस प्रकार से मोरियन ने पूरा एक जासूसों का नेटवर्क खड़ा किया
स्पाई डिपार्टमेंट के हेड को कहा जाता था महामात्य पा सर्प जो स्थाई या फिर स्टेशनरी सीक्रेट एजेंट्स हुआ करते थे ना उनको गुड पुरुष आस या फिर संस्थान बोलते थे इसके अलावा टूरिंग सीक्रेट एजेंट्स पठान टाइप के जो एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमते थे और जासूसी करते थे उन्हें बोला जाता था संच रस इसके बाद देखो मोरियन सोसाइटी को भी हम थोड़ा सा देख लेते हैं मोरियन कौन से वर्ण से आते थे ये तो देखो बता पाना थोड़ा मुश्किल है क्योंकि पुराण के हिसाब से मोरंस शूद्र वण से थे पर जूनागढ़ इंस्क्राइनॉक्स जै
कि देखो मोरियन सोसाइटी में ना वुमन की पोजीशन काफी अच्छी थी महिलाओं को डिवोर्स यानी कि तलाक लेने के बाद फिर से शादी करने का पूरा-पूरा हक था इवन वुमन को राजा के पर्सनल बॉडीगार्ड या फिर जासूस के तौर पर भी अपॉइंट्स की माने तो मोरियन सोसाइटी में स्लेवरी यानी की गुलामी नहीं थी पर देखो कुछ और हिंदी लिटरेचर में स्लेवरी की बात कही गई है मोरियन के बाद नॉर्थ या सेंट्रल इंडिया में आते हैं सुंग कन्नवरी की मोरियन डायनेस्टी के आखिरी रूलर ब्रीदर्स की हत्या कर पुष्यमित्र सुंग राजवंश की यानी सुंग डायनेस्टी की नीव
रखते हैं सुंग डायनेस्टी का जो टाइम पीरियड है वो 185 बीसी से 73 बीसी तक का था और इनकी कैपिटल विदिशा थी जो आज हमें मध्य प्रदेश में मिलती है पुष्यमित्र सुंग ना एक पक्के हिंदू थे ऐसा बोलते हैं कि वो बौद्ध धर्म को थोड़ा सा ना नापसंद करते थे जैसा कि अशोक वादा बुक में लिखा है कि पुष्यमित्र सांची स्तूप को ना तोड़ने की कोशिश करते हैं लेकिन देखो बहुत सारे दूसरे सोर्सेस से यह भी पता लगता है कि पुष्य मित्र ने सांची और भारत दोनों स्तूप को रिपेयर करवाया था पुष्यमित्र ने दो असव
मेद यज्ञ भी परफॉर्म किए थे और इन असव मेद यगो में पंडित थे फेमस संस्कृत स्कॉलर पतंजलि पुष्यमित्र सुंग ने अपनी टेरिटरी को बैक्टीरिया एंपायर यानी कि अफगानिस्तान से आए ग्रीक इवेडर से भी बचाया ग्रीक इनवेजन के बारे में हम आगे वीडियो में देखेंगे पुष्यमित्र के बाद सुंग डायनेस्टी के गद्दी पर आए उनके बेटे अग्निमित्र अग्निमित्र को हम कालिदास द्वारा लिखी गई लव स्टोरी मालविका अग्निमित्र से भी जानते हैं हैं सुंग डायनेस्टी में लिखी गई इस स्टोरी के हीरो सुंग डायनेस्टी के राजा अग्निमित्र थे अग्निमित्र के सक्सेसर्स जैसे कि देखो वासु मित्र वज्र मित्र या
फिर भाग भद्र सुंग ये सब राजा ना सुंग डायनेस्टी की बागडोर ठीक ढंग से नहीं संभाल पाए और सुंग डायनेस्टी के आखिरी रूलर देव भूति की हत्या खुद उनके मंत्री ने ही कर दी उस मंत्री का नाम था वासुदेव और यह बात हमें पता लगती है कहां से बाण भट्ट द्वारा लिखी गई हर्ष चरित किताब से 73 बीसी में शुरू हुआ कन्नवराय का रूल जिसके फाउंडर थे वासुदेव का कैपिटल था पाटलीपुत्र कन्नवरी का रूल तो सिर्फ 45 सालों के लिए रहा वासुदेव के सक्सेसर्स जैसे भूमि मित्र नारायण या सु शर्मन कन्नवराय को आगे नहीं बढ़ा
पाए कन्नवराय को रिप्लेस किया साउथ में तो देखो सतवान डायनेस्टी ने और नॉर्थ में मित्र डायनेस्टी ने सुंग या फिर देखो कन्नाव डायनेस्टी का पीरियड बिना भारतीय सिविलाइजेशन के लिए बहुत ज्यादा इंपॉर्टेंट था बौद्ध धर्म और जैन धर्म के बताए रास्तों पर चलना आम आदमी के लिए थोड़ा कठिन साबित हो रहा था कई प्रिंसिपल्स बौद्ध धर्म के और जैन धर्म के बहुत ज्यादा डिफिकल्ट थे और और इसका फायदा उठा के हिंदू धर्म ने समाज में फिर से अपनी जगह बना ली और सुंग या कन्नवराय ने इस चीज में पूरा साथ दिया अब हम बात करें
शतवाहन की मोरियन डायनेस्टी को सेंट्रल इंडिया और साउथ में रिप्लेस किया गया सत वाहनों के द्वारा सतवान को भारतीय पुराणों में आंध्रा भी बोला गया है ये क्वेश्चन पूछा जा सकता है सतवान डायनेस्टी की नीव किसने रखी थी राजा सिमुका ने 100 बीसी में सतवान डायनेस्टी की नीव रखी थी और इनका कैपिटल था प्रतिष्ठान जो आज हमें महाराष्ट्र के औरंगाबाद रीजन में मिलता है सतवान अंपायर आज के आंध्र प्रदेश तेलंगाना महाराष्ट्र कर्नाटक गुजरात और मध्य प्रदेश के कुछ पार्ट्स में फैला हुआ था महाराष्ट्र में मिली नाना घाट इंस्क्राइनॉक्स ने इनके रूल के दौरान ना सातवां
एंपायर की बाउंड्री कलिंग तक पहुंच गई नाने घाट इंस्क्राइनॉक्स थे ये देखो सुंग डायनेस्टी से मालवा रीजन छीन लेते हैं इन्हें याद किया जाता है इन्होंने सांची स्तूप में गेटवे बनवाया था सात करनी सेकंड को सक्सीडेंस ने इनका नाम था हाला हाला देखो लिटरेचर में बहुत इंटरेस्ट रखते थे इन्होंने एक बुक भी लिखी जिसका नाम था गाह सत साई जो देखो प्राकृत लैंग्वेज में लिखी गई पोयम्स का एक प्रकार से कंपाइलेशन है वृत कथा के राइटर गुणा सातवां रूलर हाला के कंटेंपरेरी थे हाला को सक्सीडेंस वती थोड़े देखो वीक रूलरसोंग्स में बोलेंगे शकास इस दौरान
देखो सातवां का कैप्चर किया गया मालवा रीजन सक रूलरसोंग्स रूलर नह पान को हराकर अपनी खोई हुई टेरिटरीज वापस ले लेते हैं और सात करने की यह उपलब्धि हमें पता लगती है नासिक प्रशस्ति से जिसको उनकी माता गौतमी बाला श्री ने उत्क यानी कि इंग्रेव्ड कराया था गौतमीपुत्र सातकर्णि बोलते हैं मतलब द यूनिक ब्राह्मण सातकर्णि के सक्सेसर थे उनके पुत्र वशिष्ठ पुत्र पलू मावी और इनको सक्ड किया गया वशिष्ठ पुत्र सातकर्णि ठी पुत्र सातकर्णि सक रूलर रुद्र दमन की बेटी के साथ होती है पर देखो इस मैट्रिमोनियल एलायंस के बाद भी यानी वैवाहिक गठबंधन के
बाद भी रुद्र दमन सात वाहन पे अटैक कर मालवा और कोंकण रीजन उनसे हथिया लेते हैं वशिष्ठ पुत्र सात करनी को सक्ड किया शिव स्कंध सातकर्णि इनके रूल में कुछ खास नहीं हुआ शिव स्कंध सातकर्णि सातवां रूल के एक और ग्रेट रूलर यग श्री सातकर्णि ने यज्ञ सात करनी एक बार फिर मालवा और कोंकण रीजन को सातवां एंपायर का पार्ट बना लेते हैं और इनके कोइंस में हमें शिप्स की मोहर मिलती है जिससे ये अंदाजा लगाया जा सकता है कि इनके टाइम पीरियड में नौ सेना यानी नेवल पावर हुआ करती थी सतवान डायनेस्टी के लास्ट
रूलर थे पुला मवी फोर्थ और इनके बाद तो सतवान एंपायर छोटे-छोटे किंगडम में बट गया था इसके बाद अब हम देखेंगे सतवान के कुछ सोशल और एडमिनिस्ट्रेटिव फीचर्स को सतवान रूलरसोंग्स इनको सातवाहन रूलरसोंग्स ब्राह्मणों को अपनी जमीनें दान में दी थी इससे पहले लैंड ग्रांट सिर्फ बौद्ध या फिर जैन मक्स को किए जाते थे हिंदू धर्म के साथ-साथ सातवाहन रूलरसोंग्स प्राकृत थी जिसे ब्राह्मी स्क्रिप्ट में लिखा जाता था सतवान टाइम्स में वूमन की पोजीशन काफी अच्छी थी इनकी सोसाइटी मेट्रो नामिक थी मतलब मातृ वंशीय यानी कि बेटों के नाम के आगे उनकी मां का नाम
लगता था जैसे गौतमी पुत्र सात करने की माता का नाम था गोतमी पर राजगद्दी हमेशा देखो मेल्स यानी बेटों को ही दी जाती थी मतलब सोसाइटी पेट्रिया कल ही थी सतवान टाइम्स में ज्यादातर जो कॉइंस होते थे ना वो लेड या फिर कॉपर से बने होते थे और इसके सिल्वर कॉइंस को कार सापन बोला गया शायद ये गोल्ड से बने कॉइंस नहीं यूज करते थे पर गोल्ड काफी मात्रा में इन्हें महाराष्ट्र के कोलार माइन से मिल जाता था वारंगल या क्रीम नगर के आयरन माइंस भी इन्हीं के कब्जे में थे सातवां के एडमिनिस्ट्रेशन की बात
करें तो बहुत हद तक मोरियन रूल से ही यह प्रेरित था डिस्ट्रिक्ट को बोलते थे आहारा और डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर को अमात्य या फिर महामात्रास मिलिट्री चीफ को बोलते थे सेनापति सेनापति प्रोविंशियल गवर्नर का भी काम करता था सेनापति को गवर्नर बनाने के मकसद यह था कि सातवाहन प्रोविंसेस में भी मिलिट्री रूल चाहते थे विलेज एडमिनिस्ट्रेशन थी गोलम का के कंट्रोल में गोलम का की अपनी मिलिट्री रेजिमेंट भी हुआ करती थी जिसमें 45 कैवल 25 हॉर्सेज या नौ चैरिटहम को रिप्लेस किया गया छोटे-मोटे किंगडम के द्वारा पर इससे पहले हम यह देखेंगे कि सातवां के दुश्मन
शक आए कहां से थे तो चलिए अब हम बात करेंगे ग्रीक इनवेजन की जिसमें आते हैं बैक्टेरियम पार्थियन शक और कुषाण दरअसल हुआ यह कि मोरियन डायनेस्टी के गिरने के बाद नॉर्दर्न और सेंट्रल पार्ट सुंग या कन्नवराय के रूल में था पर नॉर्थ वेस्टर्न इंडिया में छोटे-मोटे ट्राइब्स ही रूल कर रहे थे इस दौरान बैक्टेरियम रीजन में सलूस एंपायर का रूल था बैक्टेरियम रीजन आज हमें अफगानिस्तान में मिलता है सलूस एंपायर एलेग्जेंडर के जनरल सेलक निकेटर का बनाया हुआ एंपायर था अफगानिस्तान में उस समय स्कीन ट्राइब का दबदबा था कीथ ट्राइब से हारने के बाद
बैक्टेरियम ग्रीक्स या फिर पार्थियन इंडिया की तरफ बढ़ गए नॉर्थ वेस्टर्न इंडिया को कैप्चर करना ग्रीस के लिए बहुत ज्यादा आसान था तो उन्होंने ये पार्ट आसानी से कैप्चर कर लिया 200 बीसी तक नॉर्थ वेस्टर्न इंडिया में ऑलमोस्ट ऑलमोस्ट 30 के आसपास ग्रीक किंग्स रूल कर रहे थे पहले आते हैं दिमित्री अस फर्स्ट दिमित्री असस फर्स्ट को भारत में इंडो ग्रीक रूल का फाउंडर माना जाता है दिमित्री अस के सक्सेसर थे मिनेंद्र ये तो देखो ग्रीक रूल के सबसे फेमस रूलर रहे मिनेरॉक एंपायर अफगानिस्तान के स्वात वा पली से लेकर पंजाब तक फैला हुआ था
इनका कैपिटल था सका सका देखो आज के समय में सियालकोट पंजाब में स्थित है मथुरा से मिले यवन राज्य इंसक्रिपिंग के नाम से भी जानते हैं मतलब मेनेड और मिलिंद दोनों सेम पर्सन थे अगर यूपीएससी क्वेश्चन पूछे तो ग्रीक रूलर मिलिंद बुद्धिस्ट मोंक नागसन से प्रभावित होके ना बुद्धिज्म में कन्वर्ट हो जाते हैं नागसन और मिलिंद के बीच हुई बातचीत को मिलिंद पन नाम बुक में रिकॉर्ड किया गया है इसके लेखक भी देखो नाग सेन ही हैं नाग को नागार्जुन भी कहा जाता है ग्रीक रूलरसोंग्स जिनके सिक्कों पर केवल उनके किंग्स की मोहर हुआ करती
थी इससे पहले ना सिक्कों पर फूल पत्ती या जानवर की मोहर हुआ करती थी पर ग्रीक रूलरसोंग्स ने भारत में पहली बार सोने के सिक्के जारी किए थे इससे पहले हम सिल्वर या कोपर के सिक्के ही बनाते थे ग्रीक्स का प्रभाव हमें भारतीय कला में भी काफी दिखता है जैसे कि नॉर्थ वेस्टर्न पार्ट में डेवलप हुआ गांधार आर्ट ग्रीक और रोमन दोनों से प्रभावित था ग्रीक रूल के समय भारत में स्पाइस ट्रेड भी काफी बढ़ गया था पेपर यानी काली मिर्ज की डिमांड इतनी थी कि इसे ग्रीक में बोलते थे यवन प्रिय अर्थात ग्रीकों के
द्वारा पसंद की जाने वाली मिलेंडर के बाद इंडो ग्रीक रूल को रिप्लेस किया गया स्थि यानी कि सक वंश के द्वारा सक ने इंट्रोड्यूस किया क्षत्रप सिस्टम जिसमें पूरे किंगडम को छोटे-छोटे प्रांतों यानी प्रोविंसेस में डिवाइड किया गया था इस एंपायर के पांच ब्रांचेस थे पहला ब्रांच था अफगानिस्तान में दूसरा तकसीला में फिर वेस्टर्न इंडिया मथुरा और लास्ट डेकन जिसका कैपिटल उज्जैन था इसके बाद हम सक वंश के बारे में डिस्कस करें सक वंश के संस्थापक थे मोइ देखो बहुत सारे एफर्ट्स लगाने के बाद भीम मोएस सख वंश का शासन झेलम नदी के आगे नहीं
बढ़ा पा रहे थे लेकिन बाद में ये काम पूरा किया उनके बेटे अजयस फर्स्ट ने 58 बीसी में अजयस फर्स्ट ने अजयस युग की शुरुआत की अजयस फर्स्ट के बाद आए अजली सेस और अजश सेकंड अजयस सेकंड के रूल के दौरान सक वंश को सामना करना पड़ा कुषण रूलरसोंग्स कुशान रूलरसोंग्स तरप में अभी भी खड़े थे सक रूलर नेह पान नह पान के शासन को क्षत्रप राजवंश भी कहा जाता है नह पान ने सक रूल को देखो साउथ में बचा तो लिया पर उस वक्त उनके टक्कर में खड़े थे सातवां शासक गौतमीपुत्र सात कर्नी नह
पान के बाद आए राजा चठन राजा चठन और उनके बाद रुद्र दामन फर्स्ट सक एंपायर के सबसे फेमस राजा थे रुद्र दामन फर्स्ट रुद्र दामन ने सातवा को हराकर कोंकण काठियावाड़ और मालवा रीजन को भी सक एंपायर का पार्ट बना लिया था कनेरी इंस्क्राइनॉक्स लिखने के लिए यानी शिलालेख लिखने के लिए प्राकृत लैंग्वेज का इस्तेमाल किया जाता था इसके अलावा इन्हें चंद्रगुप्त द्वारा बनाए गए सुदर्शन झील को रिपेयर करवाने के लिए भी याद किया जाता है गिरनार में मिले जूनागढ़ इंस्क्राइनॉक्स साथ-साथ रुद्र दामन का भी योगदान है रुद्र दामन के बाद सक रूलरसोंग्स साम्राज्य यानी
गुप्त एंपायर एक बहुत बड़ा सुपर पावर के तौर पर इमर्ज हो रहा था गुप्त राजा चंद्रगुप्त सेकंड ने रुद्र सिंह थर्ड को हराकर सक एंपायर का खात्मा कर दिया सक वंश के साथ ही शुरू हुई थी इंडो पार्थियन या पहलवण इंडो पार्थियन किंगडम के फाउंडर थे गोंडा फ्रेस गोंडा फ्रेस के टाइम पे सेंट थॉमस क्रिश्चियनिटी को फैलाने के लिए इंडिया आए थे इंडो पार्थियन टेरिटरी मोस्टली हमें ईरान अफगानिस्तान पाकिस्तान और इंडिया के नॉर्थ वेस्टर्न पार्ट में मिलती है कु सांस के आने के बाद पार्थियन एंपायर भी खत्म हो गई सक वंश की तरह कुशांत भी
देखो इंडिया में सेंट्रल एशिया से आए थे कुशांत सेंट्रल एशिया में रूल कर रहे यूएसी या फिर देखो तो चारिन क्लेंस मतलब जनजातीय स्मूह में से एक थे सक और पार्थियन को अफगानिस्तान पाकिस्तान फिर देखो नॉर्थ वेस्टर्न इंडिया में हराने के बाद वो गंगा बेसिन की तरफ आगे बढ़ गए थे कुशान एंपायर की नीव रखी कुजु कद फिशेज ने फिर से बोलता हूं हूं कुजु कद फिशेज उनके शासन में ना काबुल अफगानिस्तान और कंधार क्षेत्र यह सारे क्षेत्र कुशान एंपायर का पार्ट थे कुजु के बाद आए विमा तक्त इनके रीजन में कुशान एंपायर नॉर्थ वेस्ट
इंडिया तक पहुंच गया था इसके बाद देखो विमा तक्त को सक्ड किया विमा कद फिशेज ने अफगानिस्तान में मिली रबा तक इंस्क्राइनॉक्स रूस के कुछ हिस्सों में भी फैला हुआ था इतने बड़े क्षेत्र को संभालने के लिए कुषण एंपायर ने दो कैपिटल्स बनाई हुई थी पहली तो देखो आज के पाकिस्तान में स्थित पेशावर जिसे ये पुरुष पुर कहते थे और दूसरी कैपिटल थी उत्तर प्रदेश का मथुरा शहर चारों दिशाओं में फैला कुषण साम्राज्य का प्रभाव यानी इन्फ्लुएंस लोकल कल्चर पर भी पड़ा जैसे कि कुशान एंपायर के कोनस पेम हिंदू बुद्धिज्म ग्रीक और पर्शियन इन सारे
जगहों के भगवान मिलते थे कुशांत ने 78 बीसी में सक ईरा भी स्टार्ट किया था जिसे गवर्नमेंट ऑफ इंडिया ने नेशनल कैलेंडर का दर्जा दिया है कनिषक का सबसे बड़ा कंट्रीब्यूशन है बुद्धिज्म को फिर से रिवाइव करने में 78 एडी में फोर्थ बुद्धिस्ट काउंसिल कनिषक के संरक्षण में आयोजित हुई इस काउंसिल में बौद्ध धर्म महायान और हीनयान में बढ़ जाता है कनिष्क देखो महायान सेक्ट का सपोर्ट करते हैं बुध चरित्र के लेखक अव घोष भी इस काउंसिल में प्रेजेंट थे चरक संहिता के लेखक चरक भी कनिष्क के कंटेंपरेरी थे इसके अलावा कनिष्क की कोर्ट में
वसुमित्र और नागार्जुन भी मौजूद थे कनिष्क को हम सेकंड अशोक भी कहते हैं आइए हम देखते हैं अब शक वंश का और कुशांत का भारतीय कल्चर पे क्या इंपैक्ट पड़ता है देखो सेंट्रल एशिया की कैवेल यानी घोड़े भारत में मिलने वाले घोड़ों से ज्यादा अच्छे थे इसके अलावा सेडर्स यानी घोड़े की काठी और टो स्टिर अप मतलब पैर का छल्ला ये सब देखो घुड़सवार का काम ना और भी ज्यादा आसान करा देते थे कुशंस से पहले इनके बारे में भारतीयों को नहीं पता था कुशंस अपने साथ ट्राउजर लॉन्ग कोट हेलमेट और लॉन्ग बूट्स भी लेकर
आए कुशांत ने सिल्क रूट पर कब्जा एस्टेब्लिश किया था जिससे इंडिया और रोम के बीच ट्रेड भी काफी ज्यादा बढ़ गया था इसके बाद देखो कनिस्क के सक्सेसर्स कुशान डायनेस्टी को ना आगे नहीं संभाल पाए ज्यादा कनिस्क के इमीडिएट सक्सेसर थे हुविष्का और हुविष्का के बाद आए वासुदेव फर्स्ट वासुदेव फर्स्ट को लास्ट ग्रेट कुषण कहा जाता है इनके बाद देखो कुशान एंपायर दो पार्ट्स में बढ जाता है वासुदेव सेकंड कुशान एंपायर के आखिरी राजा थे सेंट्रल एशिया में कुशान को रिप्लेस किया गया सासानियन साम्राज्य के द्वारा और भारत में आया गुप्त साम्राज्य चलिए अब देखते
हैं गुप्त साम्राज्य को 240 एडी में गुप्त एंपायर की नीव रखी श्री गुप्त ने और श्री गुप्त के इमीडिएट सक्सेसर थे घटोतकच देखो श्री गुप्त और घटोतकच इनसे रिलेटेड इंस्क्राइनॉक्स वैवाहिक गठबंधन के बाद गुप्त एंपायर का दबदबा नॉर्थ इंडिया में और भी ज्यादा बढ़ जाता है वायु पुराण के हिसाब से आज का अयोध्या प्रयागराज और मगध वाला रीजन गुप्त एंपायर का पार्ट था और इनका कैपिटल था पाटलीपुत्र चंद्रगुप्त से रिलेटेड इंफॉर्मेशन हमें दिल्ली में स्थित मेहरोली पिलर इंस्क्राइनॉक्स इंस्क्राइनॉक्स स्ती के अनुसार समुंद्र गुप्त ने साउथ के 12 किंग्स को हराया था समुद्रगुप्त की इसी साउथ
यात्रा को कहा गया है दक्षिण पथ अभियान हालांकि देखो इन राजाओं को हराने के बाद समुद्रगुप्त इनको अपना-अपना एंपायर वापस कर देते थे या फिर इन्हें गुप्त वसालजको ऐसे किंग्स ट्रिब्यूटरी किंग्स बनते जो कि गुप्त साम्राज्य के अंदर ही अपना राज्य चलाते थे और इन्हें समस्स कहा जाता था समुद्रगुप्त की जीत के इतने सारे किस्से सुनकर आयरिश इतिहासकार वी ए स्मिथ ने इन्हें इंडियन नेपोलियन का खिताब दिया था इन्हें और भी काफी सारे खिताब दिए गए हैं जैसे कविराज या विक्रमांकड़ेवाचारिता समुद्रगुप्त को गीत संगीत और कविता का बहुत ज्यादा शौक था इसलिए इन्हें कविराज भी
कहा गया है असव मेद सिक्के दर्शाते हैं समुद्रगुप्त वैदिक रीति रिवाजों को भी मानते थे उत्तर प्रदेश में स्थित भीतरी इंस्क्राइनॉक्स वसुबंधु भी मौजूद थे इंक्रिप्शन से हमें पता चलता है कि समुद्रगुप्त के रिलेशंस श्रीलंका और साउथ एशिया के कई राज्यों के साथ भी थे समुद्रगुप्त के टाइम पे लिखी गई गई अलाहाबाद पिलर इंस्क्राइनॉक्स से करके चंद्रगुप्त डिप्लोमेसी यानी कि कूटनीति का खेल खेलने लगते हैं वाकाटक राजा पृथ्वी सेन फर्स्ट के साथ मिलकर चंद्रगुप्त सेकंड बचे खचे सख साम्राज्य को भी खत्म कर देते हैं और मालवा और गुजरात क्षेत्र पर कब्जा कर लेते हैं इसलिए
इन्हें शकारी भी कहा जाता है क्योंकि इन्होंने बचे कुचे सक साम्राज्य का खात्मा कर दिया था इवन देखो समुद्रगुप्त की तरह चंद्रगुप्त सेकंड भी अपनी जीत का जस बनाने के लिए आव मेद यानी घोड़े का बलिदान करते थे शकों पर यानी शक साम्राज्य खत्म करने के बाद शकों पर विजय प्राप्त करने के बाद ये खुद को विक्रमादित्य भी बुलाते हैं इनके सफलता की था मेहरोली स्तम इंस्क्राइनॉक्स जैसे कि देखो भरूच सुपारा या फिर और कैंबे भी गुप्त साम्राज्य के कंट्रोल में आ जाते हैं जिससे देखो गुप्त साम्राज्य का जो ट्रेड है वेस्टर्न कंट्रीज जैसे रोम
मिस्र इन सबके साथ बढ़ जाता है इस दौरान उज्जैन एक बहुत ही ज्यादा इंपॉर्टेंट ट्रेड सेंटर होने की वजह से यह गुप्त साम्राज्य की दूसरी राजधानी बन जाता है काफी फेमस चाइनीज पिलग्रिम फा हियन चंद्रगुप्त सेकंड के समय इंडिया में आते हैं चंद्रगुप्त सेकंड अपने नौ रत्नों के लिए भी जाने जाते हैं चंद्रगुप्त सेकंड के कोर्ट में नौ महान हस्तियां थी जिन्हें नवरत्न बोला गया जैसे कि देखो सबसे पहले कालिदास इन्होंने मेघदूत कुमार संभव रघुवंश जैसी फेमस किताबें लिखी हैं दूसरे नंबर पे अमर सिंह संस्कृत में लिखी गई इनकी पुस्तक अमर कोश को त्रिका भी
बोला जाता है क्योंकि यह पुस्तक तीन भागों में विभाजित है तीसरे नंबर पे वरा मिहिर यह भारत के देखो प्रसिद्ध एस्ट्रोनॉमिकली नेक्स्ट है धनवंत्री धनवंत्री को तो देखो आयुर्वेद का जनक भी माना जाता है नेक्स्ट है घटक रपर ये तो देखो बहुत जबरदस्त मूर्तियां बनाया करते थे नेक्स्ट है शंकु इन्हें इन्होंने शिल्पी शास्त्र लिखा है जो कि देखो आर्किटेक्ट आर्किटेक्ट पे बेस्ड है नेक्स्ट है इसके बाद नेक्स्ट है कह पान कह पान ये ज्योतिष ग्रंथ यानी कि ज्योतिष शास्त्र की लेखिका हैं इसके बाद नेक्स्ट है वर रूचि इन्हें प्राकृत भाषा में पहली ग्रामर बुक प्राकृत
प्रकाश लिखने का क्रेडिट जाता है सबसे लास्ट में है विताल भट्ट ये तो देखो संस्कृत के लेखक थे 415 एडी में चंद्रगुप्त सेकंड को सक्सीडेंस का टाइटल मिला हुआ है इनके पीरियड में मिले गोल्ड कॉइन से हमें यह पता चला है कि ये भी आव मेद सैक्रिफाइस किया करते थे कुछ कॉइंस में इनको राइनो की हत्या करते हुए भी दिखाया गया है कुमारगुप्त के द्वारा इशू किए गए गोल्ड कॉइंस को दीनार बोला जाता था दीनार इंडियन हिस्ट्री में इनकी सबसे बड़ी कंट्रीब्यूशन है नालंदा यूनिवर्सिटी की स्थापना करना नालंदा को दुनिया की पहली अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय यानी
कि फर्स्ट इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी बोला गया है देखो अलग-अलग रीजन से फॉर एग्जांपल चाइना से साउथ एशिया के अलग-अलग रीजन से भी और सेंट्रल एशिया से भी यहां पर लोग नालंदा में पढ़ने के लिए आते थे 427 एडी में कुमारगुप्त द्वारा बनवाई गई इस यूनिवर्सिटी के अवशेष आज हमें बिहार में मिलते हैं नालंदा विश्वविद्यालय बुद्धिस्ट मक्स के लिए एक बहुत बड़ा सेंटर हुआ करता था इसके साथ-साथ यहां वेद चिकित्सा दर्शन शास्त्र भी पढ़ाई जाती थी महायान सेक्ट के प्रसिद्ध विद्वान नागार्जुन या प्रसिद्ध एस्ट्रोनोवा भट्ट भी यहां पर उपस्थित थे कुमारगुप्त को अपने अंतिम दिनों में सेंट्रल
एशिया से आए ट्राइबल ग्रुप ों का सामना करना पड़ा यह भारत को सेंट्रल एशिया से आए हुण ट्राइबल से तो बचा लेते हैं पर इससे ना गुप्त साम्राज्य बहुत ज्यादा कमजोर पड़ जाता है कुमारगुप्त के बाद आय स्कंदगुप्त भी नों को भगाने में सफल होते हैं नों को हराने के लिए वोह खुद को विक्रमादित्य का खिताब देते हैं यह बात हमें उत्तर प्रदेश में मिली भीतरी स्तंभ शिलालेख से पता चलती है हुण अटैक्स के बाद ना गुप्त साम्राज्य काफी ज्यादा कमजोर पड़ जाता है स्कंद गुप्त के सक्सेसर्स जैसे कि देखो पूर्व गुप्त कुमार गुप्त सेकंड
बुद्ध गुप्त या नरसिंह गुप्त गुप्त वंश की विरासत को बनाए रखने में ना उतने सक्सेसफुल साबित नहीं होते हैं इवन देखो स्कंद गुप्त के समय ही गुप्त साम्राज्य का नॉर्थ वेस्टर्न इंडिया का रीजन पहले से ही हुण नेता तोर माण के कंट्रोल में था और बाकी का सर बुद्ध गुप्त के समय में आए हुण नेता तोर माण के पुत्र मिहिर कुल पूरी कर देते हैं मिहिर कुल के समय के दौरान गुप्त राजा हुण नेता मिहिर कुल को सलामी देते थे पर इसका बदला लिया गुप्त बुद्ध गुप्त के पुत्र नरसिंह गुप्त ने फेमस ट्रैवलर हुएं सांग
के हिसाब से मिहिर कुल को वापस भगाने में नरसिंह गुप्त का साथ दिया मालवा क्षेत्र में बेस्ट ओली का राजवंश के राजा यशोधर्मन ने नरसिंह गुप्त के बाद आते हैं कुमार गुप्त थर्ड और इनको सक्ड किया गुप्त राजवंश के अंतिम शासक विष्णुगुप्त ने गुप्त वंश की जगह ले ली पुष्यभूति गोड और मैत्रिक वंश ने इनके बारे में जानने से पहले हम देखेंगे गुप्त एंपायर के दौरान एडमिनिस्ट्रेशन कैसा था देखो गुप्त एंपायर को विभाजित किया गया था 26 प्रांतों में जिसको कहा जाता था भुक्ति या देश और इन भुक्ति हों के गवर्नर को कहा जाता था
उपर ज्यादातर राजा के पुत्रों को ही यानी कि युवराज को ही उपर के तौर पर नियुक्त किया जाता था यह प्रांत विभाजित थे जिलों उप जिलों और ग्रामों में जिले को कहते थे विषय जो होते थे विषय पति के अधीन में उप जिले को कहते थे विधि और विधि के प्रमुख को कहते थे विधि मेहतर और गांव यानी ग्राम के प्रमुख थे ग्राम गुप्त काल में ग्राम यानी गांव के प्रमुख का महत्व काफी ज्यादा बढ़ गया था किसी भी तरह की जमीन का लेनदेन ग्रामी की अनुमति के बिना नहीं होता था चंद्रगुप्त सेकंड के समय
लिखी गई सांची इंस्क्राइनॉक्स पंच मंडली शब्द का प्रयोग हुआ है जो शायद किसी तरह की सभा या समिति थी जैसे कि आज गांव में पंचायत होती है इसके अलावा गुप्त प्रशासन में कुछ महत्त्वपूर्ण अधिकारी भी थे जैसे कि देखो कुमार मात्य राजा खुद इन्हें नियुक्त करते थे और इनका काम था रेवेन्यू इकट्ठा करना दूसरे नंबर पे संधि विग्री का यह पद देखो समुद्रगुप्त ने बनाया था और यह मिनिस्टर ऑफ पीस एंड वार थे यह लड़ाई झगड़ा या समझौता ऐसे मामलों को देखा करते थे समुद्रगुप्त के समय यह पोस्ट उनके मिनिस्टर हरि सेन को मिला था
नेक्स्ट है दंड पा पासक ये पुलिस डिपार्टमेंट के हेड थे दंड पास इसके बाद नेक्स्ट है विनय स्थिति स्थापक ये देखो धार्मिक मसलों को देखा करते थे इसके बाद नेक्स्ट है पांचवें नंबर पे महा पलू पति ये हाथी की सेना को संभालते थे नेक्स्ट है महा असव पति महास पति कह सकते हो ये घुड़सवारी यानी कि घोड़ों की सेना को संभालते थे नेक्स्ट है नरपति पैदल सैनिक यानी कि पैदल सेना को संभालने वाले इसके बाद नेक्स्ट है अक्ष पातल दि कर्थ ये देखो पैसे का हिसाब किताब देखा करते थे यानी अकाउंट्स और सबसे लास्ट में
है सर्वाधिक रखते थे यानी कि सारे के सारे डिपार्टमेंट्स के ये सुपरवाइजर हुआ करते थे बहुत पावरफुल पोस्ट सर्वा प्रशासन भी केंद्रीकरण यानी कि एडमिनिस्ट्रेटिव डिसेंट्रलाइजेशन की शुरुआत गुप्त काल से ही होती है जैसे कि देखो मोरियन ईरा में नगर समितियों का चुनाव राजा करते थे गुप्त काल की बनी समितियों में लोकल रिप्रेजेंटेटिव होते थे जैसे कि व्यापारी या फिर मेन अकाउंटेंट ये सब भी समिति का हिस्सा हुआ करते थे गुप्त काल की अगर न्याय प्रणाली की हम बात करें बहुत जबरदस्त थी गुप्त काल में ही पहली बार क्रिमिनल और सिविल लॉज को अलग-अलग किया
गया था गुप्त काल की न्याय प्रणाली यानी कि जस्टिस सिस्टम महर्षि मनु द्वारा लिखी गई मनुस्मृति से प्रेरित थे यहां के चीफ जस्टिस को महा दंड नायक बोलते थे इसके अलावा देखो प्रोविंसेस और जिलों में उपर या वैश्य पति के पास जुडिशियस पावर्स हुआ करती थी अगर देखो गुप्तों की सेना की बात करें इनका ध्यान ना कैवल यानी घुड़सवार सेना पर कुछ ज्यादा ही हुआ करता था जासूस को बोला जाता था दूतक गांव के लोगों को कभी-कभी सेना की सेवा करने के लिए बंधुआ मजदूरी यानी कि फो लेबर भी करना पड़ता था इस फोर्सड लेबर
को गुप्त काल में विष्टि बोला गया विष्टि राज्य के लिए एक सोर्स ऑफ इनकम यानी आय का साधन भी धाम इसके बाद अब हम बात करेंगे गुप्त समाज की गुप्त एंपायर की प्रजा काफी खुश और संतुष्ट थी किसी भी अपराध के लिए फिजिकल पनिशमेंट नहीं था अपराधियों को देखो छोड़ दिया जाता था जुर्माना लेकर गुप्त काल के जाति व्यवस्था की बात करें ब्राह्मणों का महत्व बढ़ गया था ब्राह्मणों को दिए जाने वाले लैंड ग्रांट यानी कि भूमिका दान को अग्रहर बोलते थे अगर देखो हम कंपेयर करें लेटर वैदिक से तो देखो शूद्र वर्ग की सिचुएशन
थोड़ी सी अच्छी थी शूद्र वर्ग को पुराण पढ़ना अलाउड था हालांकि देखो अनटचेबिलिटी यानी छुआ छात का चलन और भी ज्यादा बढ़ गया था यह निराशाजनक चीज है गुप्त काल के लेखक कात्यायन ने एस्पर्श शब्द का प्रयोग अनटचेबल के लिए किया है इसके अलावा फा हिन की बुक्स में भी अनटचेबल्स का जिक्र हुआ है अनटचेबल्स को ना चंडाल बोला जाता था वैसे तो देखो गुप्त वैष्णव धर्म को मानते थे पर यह बुद्ध और जैन धर्म दोनों को बढ़ावा देते थे जैसा कि देखो कुमारगुप्त के द्वारा जो नालंदा यूनिवर्सिटी बनवाई गई थी ना वहां पर महायान
बौ धर्म ही पढ़ाई जाती थी गुप्तों के काल में मूर्ति पूजा भी यानी आइडल वरशिप भी काफी ज्यादा कॉमन हो गई थी अगर देखो महिलाओं की सिचुएशन की बात करें गुप्त काल में महिलाओं की सिचुएशन कुछ खास नहीं थी पोलीगा या चाइल्ड मैरिज जैसी प्रथाएं एक बार फिर से हिंदू समाज का हिस्सा बन गई थी मेरिसी मन्नू द्वारा लिखी गई मनुस्मृति में भी लड़कियों की जल्दी शादी की बात की गई है मध्य प्रदेश में मिले एरण इंस्क्राइनॉक्स इसके बाद अगर देखो गुप्त काल की अर्थव्यवस्था की बात करें यानी इकॉनमी की बात करें तो यह देखो
खेती पर निर्भर थी बुध गुप्त के पहाड़पुर कॉपर प्लेट इंस्क्राइनॉक्स भूमि यानी पशु धन को चराने के लिए भूमि इसके बाद नेक्स्ट और आखरी थी अपह भूमि यानी वन भूमि इसके अलावा देखो अमर सीमा की बुक अमर कोश में 12 तरह के लैंड्स की बात की गई है इन लैंड्स का रिकॉर्ड रखने के लिए एक ऑफिसर को रखा जाता था जिसे बोलते थे पुस्त पाल प्रभावती गुप्त द्वारा लिखी गई पुना प्लेट से पता चलता है गुप्तों के समय भूमि सर्वेक्षण यानी कि लैंड सर्वे भी किया जाता था कुलि वाप द्रोण वाप अधव एवं पटक ये
सारे जो शब्द है ना ये भूमि उपाय यानी लैंड मेजर के लिए इस्तेमाल किए गए हैं गुप्त पीरियड में मेटालर्जी में भी एक नई मिसाल खड़ी कर दी थी दिल्ली के महरोली में सालों से खड़ी आयरन पिल्लर में आज तक जंग नहीं लगा है इस आयरन पिलर की स्थापना चंद्रगुप्त सेकंड ने मध्य प्रदेश में की थी पर इसकी विशिष्टता देखते हुए तोमर डायनेस्टी के राजा अनंतपाल तोमर 11थ सेंचुरी में इसे अपनी राजधानी दिल्ली में ले आते हैं इसके बाद यह धूप छाव बरसात सब झेलने के बाद भी बिना जंग खाए आज भी दिल्ली में खड़ी
है वैसे देखो एंसटिटाइट सोने की मात्रा कम हुआ करती थी आसान शब्दों में बोलूं तो गोल्ड कॉइंस जो थे वो कम कैरेट सोने के थे इसके अलावा देखो कुषण की तुलना में गुप्त काल में हमें कॉपर कॉइंस भी कम मिले हैं ये दर्शाता है कि आम आदमी सिक्के या मोहर का प्रयोग कम करते थे मतलब ज्यादा जो लेनदेन होता था वो बाटर सिस्टम से होता था आपने कोई चीज दी सामने वाले ने को बदले में कोई चीज दे दी तो सिक्कों का इस्तेमाल नहीं हुआ लेनदेन बस चीजों के आदान प्रदान से हो गया इसके अलावा
देखो गुप्त काल में कुछ बहुत इंपोर्टेंट पोर्ट्स भी डेवलप हुए जैसे कि ईस्ट इंडिया में था ताम्र लिप्त घंटा शलाला और कंदुरु ये सारे पोर्ट्स साउथ ईस्ट एशियन कंट्रीज से ट्रेड किया करते थे वेस्टर्न कोस्ट पे हमें मिला भच चोल कल्याण और खंबा गुप्त काल में रोमन साम्राज्य के सिक्के हमें कम मिले जिससे पता लगता है कि इस दौरान रोमन साम्राज्य से हमारा व्यापार कम हो गया था व्यापारियों या ट्रेडर्स के ग्रुप को श्रेणी यानी गिल्ड्स बोलते थे नारद स्मृति या बृहस्पति स्मृति हमें गिल्ड व्यवस्था के बारे में काफी कुछ बताती है जैसे कि इन
गिल्ड्स को ना राज्य सरकार के पास जाके खुद को रजिस्टर करवाना पड़ता था और इनके मेंबर्स की सैलरी या नियम वगैरह गिल्ड्स खुद तय करते थे इसके अलावा गिल्ड्स के पास कुछ यक अधिकार यानी जुडिशियस राइट्स भी थे बृहस्पति स्मृति के अनुसार यह गिल्ड बैंक का भी काम करते थे अब आप सोच रहे होंगे कि इसमें ऐसा क्या खास था कि गुप्त युग को गोल्डन एज बोला गया दरअसल गुप्त काल में ना भारतीय संस्कृति नई ऊंचाइयों को छू रही थी साहित्य कला हो या विज्ञान हर जगह हम तरक्की पर थे चलिए तो हम गुप्त काल
में आए कुछ इंपॉर्टेंट राइटर्स और उनकी बुक्स को देखते हैं पहले आते हैं चंद्रगुप्त सेकंड के दरबार में वर्ल्ड फेमस राइटर कालिदास और इनके द्वारा लिखे गए तीन महत्त्वपूर्ण नाटक हैं मालविका ग्रम मित्र विकर्म मोरवे श्य और अभिज्ञान शकुंतलम और इनकी प्रसिद्ध कविताएं हैं रघुवंश कुमार संभव और मेघदूतम फिर है भास यह लिखते हैं सव प्रवास वदत पंचरा और उरु भंग गुप्त काल के एक और फेमस राइटर हैं विशाख दत्त जिनकी लिखी गई मुद्रा राक्षस और देवी चंद्रगुप्त हमें गुप्तों के साथ-साथ मौर्यों के बारे में बहुत कुछ बताती हैं ये भी चंद्रगुप्त सेकंड के समय
में आते हैं चंद्रगुप्त सेकंड के नवरत्नों में से एक है अमर सीमा जिन्होंने लिखी अमरकोश फिर आए भारवि जो लिखते हैं किराता जूनियर शूद्रक लिखते हैं मर्च कटिक दंडी ने लिखा है काव्य दर्शन और 10 कुमार चरित इसके अलावा देखो गुप्तों की विरासत सिर्फ नॉलेज और लिटरेचर तक सीमित नहीं थी विज्ञान भी यहां पे फुल स्पीड पे था जैसे कि आर्य भट्ट द्वारा लिखित आर्य भट्टियन से हमें पता चलता है कि भारत ने शून्य के साथ-साथ दशमलव प्रणाली और पाई की खोज फिफ्थ सेंचरी में कर ली थी आर्यभट्ट ने फिफ्थ सेंचरी में ही दुनिया को
बता दिया था धरती सूर्य की गोल चक्कर लगाती है और इसके अलावा ट्रिग्नोमेट्री और बीजगणित में भी आर्यभट्ट का योगदान बहुत बड़ा है बीजगणित मतलब अलजेब्रा ब्रह्मगुप्त की लिखी ब्रम सपूत सिद्धांत और खंड खादत में साइक्लिक क्वाड्रीलेटरल स्केयर रूट्स और ग्रेविटेशनल फोर्स के बारे में समझाया गया है जिसे न्यूटन बाद में 177th सेंचुरी में डिस्कवर करते हैं इसके बाद आते हैं फादर ऑफ इंडियन एस्ट्रोनॉमी यानी कि वरा मिहिर ये भी देखो चंद्रगुप्त सेकंड के नवरत्नों में से एक थे इनके द्वारा लिखी गई बृत संहिता और पंच सिद्धांतिका हमें सूर्य ग्रहण और मौसम के बारे में
बताती है इसके बाद मेडिसिन के दिग्गज धनवंत्री और सुश्री भी गुप्त काल में ही आए थे धनवंत्री भी नवरत्नों में से एक थे इन्हें आयुर्वेद का जनक बोलते हैं सुसत भारत के पहले सर्जन कहलाते हैं भारत में प्लास्टिक सर्जरी की खोज इन्होंने ही की थी देखो गुप्त साम्राज्य की समृद्ध इतिहास की कहानी यहीं पर खत्म हो गई गुप्तों को रिप्लेस किया गया कई सारे छोटे-छोटे राज्यों ने छोटे-छोटे किंगडम ने गुप्त साम्राज्य को रिप्लेस किया अलग-अलग जगहों पर पर इससे पहले हम देखेंगे जब सातवाहन को रिप्लेस करके गुप उत्तर भारत में रूल कर रहे थे तो
साउथ और ईस्ट में कौन था वहां पे किसका रूल था भारत के कलिंग यानी आज के उड़ीसा वाले रीजन में आई चेदी डायनेस्टी चेदी डायनेस्टी के के फाउंडर थे अभि चंद्र और इनकी राजधानी थी सक्ति मती पूरी चेदी डायनेस्टी के सबसे इंपॉर्टेंट रूलर थे राजा खारवेल खारवेल के बारे में हमें पता लगता है हटी गुंफा इंस्क्राइनॉक्स गुंटूर वाले रीजन में आए इक्स वाकू जिनके फाउंडर थे चामट्ठा वाहन डायनेस्टी में मिनिस्टर थे और सातवाहन के कमजोर पड़ते ही इन्होंने अपने लिए अलग एंपायर खड़ा कर दिया इसस वाकु को पुराण में श्री पार्वती है भी बोला गया
है इस राजवंश के एक उत्तराधिकारी वीर पुरुष दूत ने प्रसिद्ध नागार्जुन कोंडा स्तूप की स्थापना की है इस दौरान सेंट्रल और साउथ इंडिया में आए वाकाटक वाकाटक का जो समय काल था वो फोर्थ सेंचुरी से सिक्स्थ सेंचुरी के बीच का था वाकाटक को पुराण में विंक बोला गया क्योंकि इनका शासन विंदे रीजन में था वाकाटक के संस्थापक थे विंदे शक्ति विंदे शक्ति को अजंता गुफा इंस्क्राइनॉक्स अंत में वाकाटक साम्राज्य दो टुकड़ों में बट जाता है पहले वाले को बोलते हैं नंदी वर्धन ब्रांच और दूसरे को बोलते हैं वातस गलम ब्रांच नंदी वर्धन ब्रांच के फाउंडर
थे रुद्र सेन फर्स्ट रुद्र सेन फर्स्ट के बाद आए पृथ्वी सेन फर्स्ट इन्होंने ना चंद्रगुप्त सेकंड के साथ मिलके साका एंपायर का खात्मा कर दिया पृथ्वी सेन के बाद में आए रुद्र सेन सेकंड इनकी शादी चंद्रगुप्त सेकंड की बेटी प्रभावती गुप्त के साथ होती है और इनका शासन सिर्फ 5 साल तक चलता है इनकी मृत्यु के बाद वाकाटक एंपायर को प्रभावती गुप्त ने अगले 20 साल तक संभाला प्रभावती जब रूल कर रही थी ना तो इनके समय में गुप्तों का प्रभाव वाकाटक साम्राज्य पर सबसे ज्यादा था वास्तव में देखो वाकाटक डायनेस्टी गुप्तों की क्षेत्र छाया
में ही जी रही थी इसके बाद देखो प्रभावती को सक्ड किया यानी प्रभावती के बाद आए शासन में उनके बेटे परवर सेन सेकंड परवर सेन सेकंड के समय में ना सबसे ज्यादा इंस्क्राइनॉक्स थे अब हम बात करते हैं वाट्स गलम ब्रांच की वाट्स गलम ब्रांच के संस्थापक थे सर्व सेन फर्स्ट सर्व सेन फर्स्ट को टाइटल दिया गया धर्म महाराज का ये प्राकृत लैंग्वेज में कविताएं भी लिखते थे और इनकी कविताओं को गाह सतसई में भी जोड़ा गया है गहा सतसई एंस एंट पोयम्स की एक बुक है जिसकी थीम अक्सर इमोशनल लव होती है सर्व सेन
फर्स्ट को सक्ड किया विंदे सेन सेकंड ने जो अजंता इंस्क्राइनॉक्स आए पवर सेन सेकंड और इनके बाद सर्व सेन सेकंड काफी सारे सेन हो गए शायद आप कंफ्यूज हो गए होंगे लेकिन देखो बस एक बार आप क्रोनोलॉजी देख लिया आपने बहुत है इस पर यूपीएससी क्वेश्चन पूछ लेती है कि कौन से सेन के दौरान क्या हुआ सर्व सेन सेकंड इनके समय में कुछ महत्त्वपूर्ण घटनाएं नहीं हुई और सर्व सेन सेकंड के बाद आते हैं देव सेन देव सेन को टाइटल दिया गया धर्म महाराजा का देव सेन के समय वाकाटक एंपायर कर्नाटक तक पहुंच जाता है
और देव सेन के समय से मिले हिस्से बराला इंस्क्राइनॉक्स वाकाटक एंपायर की क्रोनोलॉजी को सेट करने में कि कौन पहले आता है कौन बाद में आता है देव सेन के बाद वाकाटक की गद्दी आई हरि सेन के पास और हरि सेन के समय के दौरान वाकाटक एंपायर अपने चरम पर था यानी पिनेकल पर था कलिंग कौशल आंध्र और कोंकण ये सारे के सारे वाकाटक साम्राज्य के हिस्सा थे हरि सेन ने बौद्ध धर्म को फिर से जीवित कर दिया अजंता केव्स में केव नंबर 16 और केव नंबर 17 में ज्यादातर जो पेंटिंग्स मिली है ना वो
हरि सेन के समय में उनके मंत्री वरा देव ने बनवाई थी हरि सेन के बा बाद में वाकाटक साम्राज्य बिखर जाता है टुकड़ों में बढ़ जाता है उनके बाद के शासकों के बारे में हिस्टोरियन को कुछ ज्यादा नहीं पता है बट देखो 550 एडी के आसपास वाकाटक को रिप्लेस किया जाता है चालुक्य डायनेस्टी के द्वारा वहीं नॉर्थ में गुप्तों को रिप्लेस करते हैं थानेसर में पुष्यभूति कनोज में मोखली वलभी में मैत्रिक और बंगाल क्षेत्र में गोडा और सबसे लास्ट में मगध के एक छोटे से क्षेत्र में अभी भी गुप्त शासन चलता रहता है पहले हम
बात करेंगे गोडा डायनेस्टी की गोडा डायनेस्टी के फाउंडर थे शशांक इस वजह से देखो गड़ा डायनेस्टी को ना शशांकासना शुरू होती है आज के वेस्ट बंगाल रीजन में इनका कैपिटल था करण सुवर्ण जो आज हमें वेस्ट बंगाल के मुर्शिदाबाद डिस्ट्रिक्ट में मिलता है गोडा डायनेस्टी के फाउंडर शशांक को बंगाली कैलेंडर बनाने का क्रेडिट दिया गया है यह पुष्यभूति डायनेस्टी के राजा हर्ष के कंटेंपरेरी थे बाण भट्ट के द्वारा लिखी गई बुक बुद्ध चरित में भी इनकी बात की गई है शशांक देखो सेविज्म यानी शैव धर्म को मानते थे और बौद्ध धर्म के विरोधी थे हिस्टोरियन
का यह मानना ना है बिहार के गया में बौधि वृक्ष जिसके नीचे गौतम बुद्ध को निर्माण प्राप्त हुआ था शशांक उस पेड़ को कटवा देते हैं शशांक को सक्ड किया उनके बेटे मानव ने मानव को गोडा डायनेस्टी की गद्दी संभाले सिर्फ आठ महीने ही होते हैं कि पुष्यभूति डायनेस्टी के राजा हर्ष उनका मर्डर कर देते हैं और इसके साथ ही गड़ा राजवंश का अंत हो जाता है अब हम बात करते हैं इसके बाद मोखरे डायनेस्टी की मोखरे देखो गुप्त एंपायर में ना जागीरदार हुआ करते थे और जैसे ही गुप्त एंपायर कमजोर पड़ा यह मोरी गुप्त
साम्राज्य से अलग हो जाते हैं और आज के उत्तर प्रदेश बिहार वाले क्षेत्र में जन्म होता है मोखली डायनेस्टी का जिसकी राजधानी थी कनोज इनके संस्थापक थे ईशान वर्मन क्योंकि देखो इनके पड़ोस में ना बचा खुचा हुआ गुप्त साम्राज्य था तो ये ना गुप्त शासकों के साथ लगातार लड़ाई में रहते थे ईशान वर्मन को सक्ड किया ग्रह वर्मन ने ग्रह वर्मन की शादी होती है पुष्यभूति के राजा हर्स की बहन राज्यश्री के साथ देखो ये वैवाहिक गठबंधन मोखरे डायनेस्टी की मोखली साम्राज्य की सिचुएशन तो इंप्रूव कर देता है बट देखो यह बात जो है ना
गोडा डायनेस्टी के राजा शशांक को पसंद नहीं आई ग्रह वर्मन अपनी डायनेस्टी को ज्यादा दिन तक नहीं संभाल पाए और गोडा डायनेस्टी के राजा शशांक ने इनकी हत्या कर दी और इनके बाद मोखरे डायनेस्टी की बाग दौड़ संभाली इनके ब्रदर इन लॉ हर्स ने ब्रदर इन लॉ मतलब रिश्ते में साला इसके बाद जल्दी ही देखो मोकरी डायनेस्टी भी ना पुष्यभूति डायनेस्टी का एक हिस्सा बन गई थी बिहार के बराबर गुफा पहाड़ियों में जो इंस्क्राइनॉक्स बात करेंगे मैत्र को की जिनका शासन था आज के गुजरात रीजन में और इनकी राजधानी थी वलभी मैत्रिक डायनेस्टी के फाउंडर
थे बटरकप देखो सौराष्ट्र में गुप्त एंपायर के मिलिट्री गवर्नर थे जिन्होंने बाद में इंडिपेंडेंस डिक्लेयर कर दी बटरक्रीम के सक्सेसर द्रोण सिंह पहले मैत्रिक राजा थे जिन्हें महाराजा का दर्जा मिला द्रोण सिंह के बाद आए ध्रुव सेन फर्स्ट और कहा ये जाता है वलभी में जो जैन काउंसिल आयोजित हुई थी ना उसमें इनकी पत्नी चंद्रलेखा संरक्षक थी हालांकि ध्रुव सेन खुद को वैष्णव बोलते थे ध्रुव सेन को सक्सीडेंस के बाद आए धर सेन सेकंड गु सेन और धर सेन दोनों ही खुद के लिए सामंथ टाइटल का उपयोग करते हैं जिससे यह प्रतीत होता है कि
इनके समय में पुष्यभूति एंपायर इन पर हावी था और मैत्रिक भी पुष्यभूति की जागीर के तौर पर रूल कर रहे थे पुष्यभूति राजा हर्ष के इंस्क्राइनॉक्स करना पड़ा जिसके बाद इनका साम्राज्य काफी कमजोर हो गया था और इसे भी कंट्रोल में किया गया पुष्यभूति एंपायर ने मैट्रिक डायनेस्टी के दौरान स्थापित हुआ वल्लभी विश्वविद्यालय जो नालंदा की तरह ही बौद्ध शिक्षा का केंद्र था बस नालंदा महायान बौद्ध धर्म के लिए महत्त्वपूर्ण था और वल्लभी विश्वविद्यालय हिन यान बौद्ध धर्म को महत्व देता था चाइनीज पिलग्रिम्स हेनसांग और इजिंग दोनों ही देखो वलभी और नालंदा विश्वविद्यालय को एक
समान बोलते हैं जैसे कि हमने देखा कि मैत्रिक और मोखी दोनों डायनेस्टी अब पुष्यभूति साम्राज्य के कंट्रोल में में थे तो चलिए देखते हैं पुष्यभूति डायनेस्टी को पुष्यभूति डायनेस्टी की ज्यादा जानकारी हमें बाण भट्ट द्वारा लिखी गई हर्ष चरित से मिलती है पुष्यभूति डायनेस्टी की नीव रखी गई आज के हरियाणा के कुरुक्षेत्र के थानेसर में पुष्यभूति डायनेस्टी के संस्थापक थे पुष्यभूति गुप्त साम्राज्य में पुष्यभूति मिलिट्री कमांडर थे और गुप्त साम्राज्य के कमजोर पड़ते ही थानेसर क्षेत्र में यह इंडिपेंडेंस डिक्लेयर कर देते हैं पुष्यभूति डायनेस्टी के अगले काबिल राजा थे प्रभाकर वंदन प्रभाकर वंदन देखो बहुत
अग्रेसिव रूलर थे इनके समय में पुष्यभूति एंपायर पंजाब मालवा गुजरात गांधार और सिंध तक फैला हुआ था हर्ष चरित्र में लिखा है प्रभाकर ने भारत को सेंट्रल एशिया से आए हुण आक्रमण से भी बचाया था प्रभाकर वंदन के बाद आए इनके बेटे राज्यवर्धन पर देखो गड़ा साम्राज्य के राजा शशांक ने इनकी हत्या कर दी और इनके बाद पुष्यभूति एंपायर को संभाला इनके छोटे भाई हर्षवर्धन ने हर्षवर्धन पुष्यभूति डायनेस्टी के सबसे पॉपुलर किंग थे राजा हर्ष के समय पुष्यभूति एंपायर की राजधानी थी कन्नौज और देखो मोखली एंपायर के साथ मिलकर राजा राजा हर्ष गड़ा डायनेस्टी के
राजा शशांक को हराकर उड़ीसा और बंगाल क्षेत्र पर अपना कंट्रोल एस्टेब्लिश कर लेते हैं इसके बाद हर्ष मैत्रिक के शासक ध्रुव सेन सेकंड को हराकर वल्लभी क्षेत्र भी हथिया लेते हैं हर्ष के रूल के समय पुष्यभूति एंपायर कश्मीर से लेकर नर्मदा तक फैला हुआ था जिसमें आज का पंजाब हरियाणा उत्तर प्रदेश बिहार और राजस्थान का कुछ हिस्सा भी कवर्ड है शायद इसलिए राजा हर्ष खुद को सकलो तर पथनाट्य राज्य में फेमस चाइनीज मोंक हुएं सांग भी आते हैं पर हर्ष के फेमस होने के और भी बहुत रीजंस हैं एक बहुत ही कामयाब रूलर के साथ-साथ
यह बहुत ही अच्छे राइटर भी थे इनकी किताब रत्नावली में पहली बार होली फेस्टिवल का जिक्र हुआ है राजा हर्ष की दूसरी बुक नागानंद में बोधि स्तव जिमित वाहन की कहानी बताई गई है और प्रियदर्शिका किताब में महाजनपद वत्स के राजा उदयन और रानी प्रियदर्शिका की कहानी है एंसटिटाइट से हमें पुष्यभूति डायनेस्टी की बहुत सारी जानकारी मिलती है हरियाणा में मिली सोनीपत इंस्क्राइनॉक्स हुएं सांग से प्रभावित होकर उनसे इन्फ्लुएंस होकर इन्होंने बौद्ध धर्म को अपना लिया था हुएं सांग को सम्मान देने के लिए राजा हर्ष कन्नौज असेंबली भी आयोजित करते हैं जिसमें महायान सेक्ट को
प्रसिद्ध किया गया रिलीजियस फेस्टिवल को सेलिब्रेट करने के लिए राजा हर्ष हर 5 साल के बाद प्रयाग असेंबली भी आयोजित करते थे जिसे आज हम कुंभ का मेला बोलते हैं नालंदा विश्वविद्यालय को आगे बढ़ाने में हर्ष का योगदान है हर्ष के प्रशासन की बात करें तो काफी हद तक ये देखो गुप्त एंपायर की तरह ही था राजा हर्ष का साम्राज्य भी कई जागीरदारों यानी कि फ्यूड लोर्ड्स में विभाजित था इन सबको कंट्रोल में रखने के लिए राजा हर्ष के पास बहुत बड़ी सेना थी यहां पर सेना के कमांडर इन चीफ को सिहान बोलते थे चीफ
कैवल ऑफिसर को कुंतल बोलते थे और इनके अलावा इनकी प्रशासनिक परिषद में थे मिनिस्टर ऑफ फॉरेन रिलेशंस यानी कि विदेश मंत्री इन्हें बोलते थे अवंती दूसरे नंबर पे रॉयल मैसेंजर यानी कि शाही दूत शाही दूत को बोला जाता था दीर्घ धवज तीसरे नंबर पे रिकॉर्ड कीपर रिकॉर्ड कीपर को बोलते थे बाणु चौथे नंबर पे पैलेस गार्ड यानी महल की सुरक्षा करने वाले इनको बोलते थे महा प्रतिहार और पांचवें नंबर पे सीक्रेट डिपार्टमेंट यानी गुप्त विभाग गुप्त विभाग भाग को बोला जाता था सर्ग हुएं सांग की किताब से हमें पता चलता है कि इनके साथ लूटपाट
हुई थी और इससे यह निश्चित हो जाता है राजा हर्स के रूल के दौरान लैंड ऑर्डर थोड़ा वीक था यानी कानून व्यवस्था थोड़ी ढीली थी हालांकि देखो ऐसे क्राइम्स के लिए ना बहुत ही ज्यादा स्ट्रिक्ट पनिशमेंट भी तय थी नॉर्थ इंडिया को जीतने के बाद राजा हर्ष दक्षिण की तरफ बढ़ते हैं और यहां पर इनका सामना होता है चालुक्य किंग पुल केसीन सेकंड से पुल केसीन सेकंड और राजा हर्स के बीच में ना नर्मदा की लड़ाई में भयंकर युद्ध होता है और इस युद्ध में राजा हर्ष को हार का सामना करना पड़ता है राजा हर्ष
के साथ ही पुष्यभूति डायनेस्टी का अंत हो जाता है क्योंकि देखो हर्ष का कोई बेटा या बेटी नहीं थी पुष्यभूति डायनेस्टी का अंत हर्ष के साथ ही हो जाता है यह कहानी थी नॉर्थ इंडिया की और इसी दौरान थर्ड सेंचुरी बीसी से थर्ड सेंचुरी एडी तक साउथ इंडिया में रूल कर रहे थे तीन मेजर किंगडम चोला चेरा और पांड्या हिंदी में बोलेंगे चोल चेर और पांडे संगम पीरियड की हम बात करें देखो साउथ इंडिया में कृष्णा और तुंग भद्रा नदी के साउथ में जो क्षेत्र है ना यहां पर 300 बीसी से लेकर 300 एडी के
बीच की अवधि को संगम काल के नाम से जाना जाता है संगम तमिल कवियों का एक संगम या सम्मेलन था पांडे राजाओं द्वारा इन संगमों को शाही संरक्षण प्रदान किया गया था उस समय देखो साउथ इंडिया में ना तीन संगम आयोजित हुए थे यानी तीन तमिल कवियों के सम्मेलन आयोजित हुए थे जिसे मुच गम कहा जाता था मुच गम माना ये जाता है प्रथम संगम यानी फर्स्ट संगम मधुरई में आयोजित किया गया था इस संगम में देवता और महान संत शामिल थे इस संगम का कोई साहित्यिक ग्रंथ उपलब्ध नहीं है यानी कोई लिटरेचर या फिर
टेक्स्ट अवेलेबल नहीं है दूसरा संगम कपाट पूरम में आयोजित किया गया था इस संगम का एकमात्र तमिल ग्रामर टेक्स्ट तोल कपय ही अवेलेबल है तीसरा संगम भी फिर से मधुरई में हुआ था इस संगम के ज्यादातर जो ग्रंथ है ना वो नष्ट हो गए थे हालांकि देखो थोड़ी बहुत इंफॉर्मेशन या फिर मटेरियल जो है वो महाकाव्यों के रूप में उपलब्ध है अगर देखो संगम लिटरेचर की हम डिटेल से बात करें जिस पर क्वेश्चन पूछे जाते हैं संगम लिटरेचर मुख्य रूप से देखो तमिल लैंग्वेज में ही लिखा गया है संगम युग की अगर प्रमुख रचनाओं की
बात करें तो सबसे से पहले नाम आता है तोल कापियां उसके बाद तु तोके पतप पातु पादी नेकल कणक ये सारे ग्रंथ इसके अलावा शिल्प पाद काम मणि मखल और सबसे लास्ट में जीवक चिंतामणि ये सारे वर्क्स ये सारे महाकाव्य संगम एज के हैं थोड़ा-थोड़ा डिटेल से बात करें तोल कापियां के लेखक हैं तोल कापर ये देखो दूसरे संगम का उपलब्ध एकमात्र प्राचीनतम ग्रंथ है वैसे तो देखो ये जो है ना तोल कापियां ये ग्रामर से रिलेटेड है लेकिन देखो ये उस समय की पॉलिटिकल और सोशो इकोनॉमिक कंडीशंस की भी जानकारी देता है ये बुक
उसके बाद नेक्स्ट एतु तोके ये देखो एक कंपाइलेशन वाला ग्रंथ है यह तीसरे संगम के आठ ग्रंथों का एक प्रकार से ना कंपाइलेशन है आप इनके नाम एक बार स्क्रीन पर देख सकते हो इसके बाद नेक्स्ट बात करें ये है पति पपा पति पपा जिसको 10 गीत भी कहते हैं ये देखो 10 कविताओं का एक प्रकार से कंपाइलेशन है ये तीसरे संगम का दूसरा कंपाइलेशन है आप कह सकते हो पहला कंपाइलेशन जिसकी हमने बात की तु तोके और ये दूसरा कंपाइलेशन ये पोयम्स का कंपाइलेशन है 10 कविताओं के नाम एक बार आप स्क्रीन पर देख
लीजिए उसके बाद नेक्स्ट एक और कंपाइलेशन है पदी निखिल कणक ये देखो 18 18 कविताओं वाला एक एथिकल टेक्स्ट है और ये थर्ड संगम लिटरेचर से संबंधित है इन 18 पोयम्स में से ना एक पोयम तमिल के महान कवि और फिलोसोफर तिरु वल्लुवर द्वारा लिखी गई है जिसका नाम है तिरु कुरल इसे देखो तमिल लिटरेचर का नाम बाइबल या फिर पांचवां वेद भी माना जाता है इसके बाद नेक्स्ट टेक्स्ट है शिल्प आदि काम ये देखो लिखा गया था इलांगो आदिगल के द्वारा और इसके बाद नेक्स्ट मणि मेखलयन सतना के द्वारा ये जो टेक्स्ट या फिर
एपिक्स है ना ये उस समय संगम सोसाइटी और पॉलिटिक्स के बारे में ना बहुत बढ़िया इंफॉर्मेशन प्रोवाइड करते हैं इसके अलावा देखो संगम एज के बारे में इंफॉर्मेशन देने वाले अन्य सोर्स इस प्रकार से हैं मेगस्थनीज स्ट्रेबो पिलनी ये सारे जो ग्रीक राइटर्स हैं ना इन्होंने वेस्ट और साउथ इंडिया के बीच कमर्शियल ट्रेड कांट्रैक्ट्स के बारे में काफी मेंशन किया है इवन अशोक के इंस्क्राइनॉक्स था इन राज्यों के बारे में जानकारी हमें संगम एज के लिटरेचर और टेक्स्ट से मिलती है सबसे पहले बात करते हैं चेर की अगर देखो चेर की बात करें चेर ने
आज के समय के केरल के सेंट्रल और नॉर्दर्न पार्ट्स को और तमिलनाडु के कोंगू क्षेत्र को कंट्रोल किया इनकी राजधानी जानते हो क्या थी वांजी वेस्टर्न कोस्ट पर मौजूद पोर्ट्स जैसे देखो मुसीरी और टडी ये इनके कंट्रोल में थे चेरो का सिंबल था धनुष बाण फर्स्ट सेंचुरी एडी के पुगलूर इंस्क्राइनॉक्स वो रोमन साम्राज्य के साथ व्यापार करते थे और इनसे उन्हें काफी प्रॉफिट होता था ये कहा जाता है कि उन्होंने रोमन एंपरर अगस्तस को डेडिकेटेड एक मंदिर भी बनवाया था चेर में देखो सबसे महान राजा सेन गुटवन यानी कि सेंग तुवन थे जिन्हें देखो लाल
या अच्छे चेर भी कहा जाता था इन्होंने ना चेर राज्य में पति नहीं पूजा प्रारंभ की पत्नी पूजा इसे कण पूजा भी कहा गया वो देखो साउथ इंडिया से चीन में दूत भेजने वाले पहले व्यक्ति थे अब बात करते हैं चोल राज्य की चोलो ने तमिलनाडु के सेंट्रल पार्ट और नॉर्दर्न पार्ट्स को कंट्रोल किया उनके रूल का जो मुख्य एरिया है वो देखो कावेरी डेल्टा वाला एरिया था जिसे बाद में चोल मंडलम के नाम से भी जाना गया उनकी राजधानी उरैयूम चरा पल्ली शहर के पास थी बाद में करि काल ने कावेरी पटनम या पुहार
नगर की स्थापना कर उसे अपनी राजधानी बनाया इनका सिंबल था बाग चोलो के पास ना एक जबरदस्त नौसेना थी मतलब इनकी नेवी जबरदस्त थी चोल राज्यों में राजा करि काल ये सबसे ज्यादा इंपोर्टेंट रूलर थे पतिना पाल में ना उनकी लाइफ और मिलिट्री की सहायता से उन्होंने क्या-क्या एक्वायर किया यह बताया गया है कई सारे संगम लिटरेचर की पोयम्स में ना वेणी के युद्ध का उल्लेख मिलता है इस युद्ध में कार्यकाल ने पांड्या और चेर सहित 11 राजाओं को हराया था कार्यकाल की मिलिट्री अचीवमेंट्स के बारे में बात करें तो इनकी वजह से ना यानी
मिलिट्री अचीवमेंट्स की वजह से ये पूरे तमिल क्षेत्र के अधिपति बन गए कार्यकाल ने अपने शासनकाल में ना व्यापार और कॉमर्स को काफी तवज्जो दी कार्यकाल ने पुहार और कावेरी पत्न शहर की स्थापना की और अपनी राजधानी उरप से कावेरी पत्न ट्रांसफर की इसके अतिरिक्त कावेरी नदी के किनारे एक 160 किमी लंबा बांध बनवाया इसके बाद बात करते हैं पांड्या रूलरसोंग्स सुला के फार साउथ और साउथ ईस्टर्न पार्ट में था इनकी राजधानी क्या थी शुरुआत में देखो कोकई इनकी कैपिटल थी जो कि देखो बंगाल की खाड़ी और थंपर प्राणी रिवर के कॉन्फ्लूएंट यानी संगम पर
स्थित थी पांड्य वंश का जो सिंबल था वो मछली थी यानी फिश इन्होंने देखो तमिल संगमों को संरक्षण दिया और संगम कविताओं के कंपाइलेशन की सुविधा प्रदान की पांड्या शासको ने ना एक रेगुलर आर्मी बनाए रखी संगम साहित्य के अनुसार पांड्य राज्य जो था ना काफी धनी और प्रोसप था पांड्य का पहला वर्णन हमें मेगास्थनीज के टेक्स्ट में मिलता है उन्होंने इस राज्य को मोतियों के लिए प्रसिद्ध बताया था समाज में विधवाओं के साथ बुरा बर्ताव किया जाता था इस राज्य में ब्राह्मणों का प्रभाव भी काफी था अर्ली सेंचुरी से एडी में यहां पे राजा
वैदिक यज्ञ भी करते थे इसके बाद नेक्स्ट कल ब्रस नामक एक जनजाति ने यहां पे अटैक किया था उसके साथ ही पांड्य एंपायर की जो शक्ति थी वो काफी कम हो गई थी और नली वकोड ये देखो संगम युग का अंतिम नोन पांड्या रूलर है इसके बाद हम संगम ईरा की गवर्नेंस और एडमिनिस्ट्रेशन के बारे में जानते हैं देखो संगम पीरियड के दौरान ना मोनार्की थी कोई लोकतंत्र वगैरह नहीं था और राजा का बेटा ही राजा बना करता था संगम ईरा के दौरान ये जो रॉयल डायनेस्टीज थी ना जैसे चेर चोल पांडे इन सब का
ना एक रॉयल एंबलम हुआ करता था जैसे चोलो का था टाइगर पांड्या राजाओं का क्या एंबलम था फिश यानी मछली और चेर राजाओं का क्या राष्ट्रीय प्रतीक था धनुष राजा की पावर को ना पांच काउंसिल्स के द्वारा कंट्रोल किया जाता था जिन्हें देखो पांच ग्रेट असेंबलीज के नाम से जाना जाता था संगम एज में विभिन्न डायनेस्टीज के द्वारा ना मिलिट्री एडमिनिस्ट्रेशन को काफी एफिशिएंटली मैनेज किया जाता था हर एक रूलर के पास रेगुलर आर्मी हुआ करती थी और स्टेट रेवेन्यू का मेन सोर्स तो देखो वैसे लैंड टैक्स था लेकिन कस्टम ड्यूटीज भी इंपोज की जाती
थी फॉरेन ट्रेड पर तो वहां से भी कुछ रेवेन्यू प्राप्त होता था और देखो युद्ध के दौरान और जीत जाने के बाद जो वेल्थ लूटी जाती थी ना वो देखो शाही खजाने में शामिल होती थी वो पैसा रॉयल ट्रेजरी में शामिल होता था इसके बाद नेक्स्ट देखो रोबरी वगैरह या फिर स्गलिंग को रोकने के लिए ना संगम एज में रोड्स और हाईवेज का अच्छे से मैनेजमेंट होता था इसके बाद हम संगम सोसाइटी की बात करें उस एज का देखो एक फेमस टेक्स्ट है जिसका नाम है पुरु नान्र फिर से बोलता हूं पुरु नान्र इस टेक्स्ट
में ना चार ग्रुप्स के बारे में मेंशन है डियन पान पयन और सबसे लास्ट में कडंब तमिल नाम है ये सारे और इसके अलावा चार क्लासेस का जिक्र है जैसे देखो सबसे पहले सुदम सुदम वर्ग में ना ब्राह्मण और इंटेलेक्चुअल क्लास के लोग आते थे उसके बाद दूसरी क्लास अरस वर्ग इसमें देखो वारियर और शासक शासक मतलब रूलरसोंग्स के लोग आते थे और सबसे लास्ट में विल्लाल वर्ग इसमें देखो फार्मर्स आते थे अगर देखो संगम एज में टाइप ऑफ लैंड्स के बारे में बात करें संगम पोयम्स में ना लैंड के पांच मुख्य टाइप बताए गए
हैं जैसे सबसे पहले मुल मतलब देहाती रूरल एरिया का लैंड उसके बाद मरदम यानी कृषि वाली भूमि नेक्स्ट पल पल मतलब डेजर्ट वाली भूमि रेगिस्तान वाली भूमि नेक्स्ट नेथलूर कोस्टल लैंड और सबसे लास्ट में कुरंज कुरंज मतलब पहाड़ी लैंड एंस ट्राइब्स जैसे कि देखो तोड़ा इरुला नागा और वेदर यह सब देखो इस काल में पाई जाती थी देखो एक इंपॉर्टेंट फीचर इस एज का यहां पे ना स्लेवरी नहीं थी इसके बाद संगम एज के दौरान अगर महिलाओं की पोजीशन की हम बात करें महिलाओं का क्या स्टेटस था संगम एज के दौरान महिलाओं की सिचुएशन समझने
के लिए संगम साहित्य में बहुत सारी इंफॉर्मेशन अवेलेबल है वुमन का देखो रिस्पेक्ट किया जाता था और इवन इंटेलेक्चुअल एक्टिविटीज कैरी आउट करने की अनुमति थी महिलाओं को इस एज में एव वायर चेलियन और काकाई पांडियार यह सारी फीमेल पोएट्स हैं जिन्होंने देखो तमिल लिटरेचर में ना काफी बढ़िया अपना कंट्रीब्यूशन दिया महिलाओं को अपना जीवन साथी चुनने की अनुमति थी लेकिन देखो विडोस की यानी विधवाओं की जो हालत थी ना वो ठीक नहीं थी सोसाइटी में उच्च स्तर पर सती प्रथा के प्रचलन का भी मेंशन मिलता है इसके बाद हम बात करें धर्म की संगम
एज में प्रमुख देवता मुरुगन थे जिन्हें तमिल भगवान के रूप में जाना जाता है साउथ इंडिया में मुरुगन की पूजा सबसे प्राचीन मानी जाती है और भगवान मुरुगन से संबंधित त्यौहारों का संगम साहित्य में मेंशन मिलता है संगम काल के दौरान पूजे जाने वाले अन्य देवता मयोन यानी विष्णु वंदन यानी इंद्र कृष्ण वरुण और कोराव थे संगम काल में नायक पाषाण काल की पूजा महत्त्वपूर्ण थी जो युद्ध में योद्धाओं द्वारा दिखाए गए शौर्य की स्मृति के रूप में चिन्हित किए गए थे इसके अलावा संगम जज में बौद्ध धर्म और जैन धर्म का भी प्रसार देखने
को मिलता है यानी स्प्रेड देखने को मिलता है अब इसके बाद बात करते हैं संगम एज की अर्थव्यवस्था के बारे में मेन व्यवसाय तो देखो एग्रीकल्चर था और राइस सबसे कॉमन क्रोप थी हस्तकला में बुनाई धातु के काम जहाज निर्माण और मोतियों पत्थरों तथा हाथी दांत का उपयोग करके आभूषण बनाना यानी ज्वेलरी बनाना शामिल था संगम एज की महत्त्वपूर्ण विशेषता इसका आंतरिक व्यापार था इंटरनल ट्रेड और एक्सटर्नल ट्रेड सूती और रेशमी कपड़ों की कताई और बुनाई में उच्च विशेषता प्राप्त थी पुहार सिटी फॉरेन ट्रेड का एक बहुत इंपॉर्टेंट सेंटर बन गया था क्योंकि देखो कीमती
सामान वाले बड़े-बड़े जहाज ना इस पोर्ट में एंटर कर सकते थे कमर्शियल एक्टिविटीज के लिए दूसरे इंपोर्टेंट पोर्ट्स तोंडी मुसीरी कोरकाई अरिक मेडू और मरक कानम थे कई सारे देखो रोमन रूलरसोंग्स जैसे कि देखो काली मिर्च अदरक इलायची दालचीनी और हल्दी के साथ-साथ हाथी दांत के जो प्रोडक्ट्स उनका एक्सपोर्ट होता था इसके अलावा मोती और प्रेशियस स्टोंस इनका भी एक्सपोर्ट होता था इंपोर्ट क्या करते थे यहां पर ना ट्रेडर्स घोड़े इंपोर्ट करते थे गोल्ड चांदी मीठी शराब ये सब ज्यादा इंपोर्ट करते थे अब सबसे लास्ट में बात करते हैं संगम एज का अंत कैसे हुआ
तीसरी शताब्दी के अंत तक ना संगम काल धीरे-धीरे पतन की ओर आगे बढ़ता रहा 300 बीसी से 600 एडी के बीच काल भ्रस्ट ने तमिल रीजन पर कब्जा कर लिया था इस अवधि को ना इस पीरियड को हिस्टोरियन ना एक डार्क एज कहते हैं