में एक हरि ओम हरे कृष्ण प्यारे साधकों हमारी प्लेलिस्ट ध्यान योग में हमारा वर्तमान में विशेष चल रहा है मूलाधार चक्र इस पर तेली वीडियो आप लोग देख चुके हैं आज दूसरी वीडियो में हम क्लिक करेंगे जब यह चक्र सुप्तावस्था में रहता है या फिर विकृत रहता है तो किन-किन दोस्तों को और किन-किन रोगों को लेकर आता है क्या क्या लक्षण इसके प्रकट होते हैं और जब इसको जागृत कर लिया जाता है तो उस समय क्या-क्या लाभ होते हैं और विशेषतया इसके जागरण की विधि को हम लोग समझेंगे कि तो आइए सबसे पहले सूक्ष्म रूप
में हम जान लें इस चक्र के बारे में इस चक्र का रंग लाल होता है इसका संबंध हमारे स्थूल शरीर से होता है अष्टांग योग में इसे जागृत करने के लिए जब नियम को जरूरी बताया गया है इसका तत्व पृथ्वी होता है और इसका ग्रह मंगल होता है आइए अब हम जाने कि जब यह विकसित अवस्था में होता है तो फिर स्किन को लेकर आता विकृतावस्था किस प्रकार से घृणा का विषय अब स्कूल आप लोग पढ़े लिखे अपने रोजमर्रा के काम करते हो तो आप जिससे कि आप अपने जीवन में कुछ बेहतर लेकर आ सकते
हो लेकिन यदि आंखों से आप किसी बच्चे को काम वासना के देख है तो फिर इसके विषय में आंख के विषय में विकार आ गया जिसको हम विषय-विकार आध्यात्मिक कहते हैं जवान का विषय हैं कि हम सुंदर शब्द बोलने लेकिन जब हम इससे गालियां बकने लगते हैं तो समझो विषय में विकार आ गया तो यहां पर विषय-विकार इसको कहा गया है विषय विकार मिटाओ पाप हरो देवा परमात्मा से प्रार्थना करते हैं मारपीट करते हैं तो यही विषय विकार होते हैं तो ठीक इसी प्रकार से जो हमारे चक्र के विषय होते हैं वह सारे चक्रों के
अच्छे ही विषय होते हैं लेकिन जब उन में विकार आ जाते हैं तो फिर उचक्कों के विषय विकार होते हैं यह इंद्रियों के विषय विकारों की बात हो रही थी तो भले ही हमारी इस चक्रों की संख्या में मूलाधार चक्र सबसे नीचे आता है और ज्यादातर लोग पैदा होते हैं और बस इस चक्र से ऊपर नहीं उठ पाते इस चक्र के साथ में जीते और इस चक्र की भी जाग्रत अवस्था में जाइए तो अच्छी की जिंदगी जिएंगे इसकी भी विकसित और सुप्त अवस्था में जीते हैं यह दिक्कत की बात है जब यह विकसित अवस्था में
होता है तो इसके दोस्तों में सबसे पहले होता है कि आम आदमी हर वक़्त बस कामवासना से प्रेरित रहेगा कामनाओं से बढ़ा हुआ रहेगा चीजों को अपनी तरफ वो आकर्षित करने के चक्कर में रहेगा मुझे यह चाहिए यह चाहिए यह चाहिए उसकी चाहत पूरी नहीं होंगी कोड आएगा उसे बहुत ज्यादा क्रोध आएगा आ के प्रजनन अंगों से जुड़ा हुआ रहेगा इर्षा लोगों के साथ में इब्सा बहुत करेगा घणा करेगा लोगों से द्वेष मन में होगा आम उपभोक्ता बहुत ज्यादा होंगी माया में सुविधा रहेगा उसे दुनिया ही सब कुछ दिखाई देगी वासना से भरा हुआ उक्त
व्यक्ति बानी हमेशा लोगों को चुभने वाली एली लोगों को तकलीफ देने वाली रहेगी अहंकार से भरा हुआ रहेगा अगर वह मैं और मेरा से जुड़ा हुआ है तो अहंकार से भरा हुआ तो तरह का या निराशा रहेगी मन में उत्साह नहीं रहेगा तो कि आधा तू रोगों से पीड़ित रहेगा वह वीर्य का अभाव शरीर में रहेगा अगर पुरुष है तू और अगर लड़की है तो रज का अभाव रहेगा अर्थात उत्साह जोश और कुछ करने की हिम्मत वो जज्बा नहीं रहेगा तो वह गुण इसके अलावा विशेष रूप से तत्व प्रभाव इससे जुड़ाव रहेगा मरने मारने की
बात करने बता देंगे है अब हम जिससे बीमारियां क्या-क्या होंगी जोड़ों का दर्द इस व्यक्ति को होगा जिसमें कि यह विकार आ जाता है मूलाधार चक्र का पुकारा जाता है हड्डियों की बीमारियां होंगी एलर्जी होंगी शारीरिक विकास की समस्या रहेगी उम्र के साथ जितना शरीफ बढ़ना होना चाहिए था उतना नहीं पड़ेगा इतना विकसित नहीं होगा जिस तरह से एक परिपूर्ण पुरुष बनता है यह होकर नहीं बनेगा परिपूर्ण स्त्री बनती है नहीं बनेगी साइज छोटा छोटा रहेगा शरीर का इतना विकास नहीं होगा कमजोर सा भी रहेगा जो है तो कमजोर सा भी रहेगा प्राण शक्ति की
कमी रहेगी यौन क्षमता में कमी रहेगी अत्यधिक सोएगा इस तरह का व्यक्ति ज्यादा सोएगा पीठ के बल अत्यधिक सोएगा और फिर नींद भी उसको सही समय पर नहीं आएगी उस समय नींद आएगी जिस समय नहीं आनी चाहिए और इस समय आने चाहिए उसमें नींद का इंतजार करता रहेगा नींद नहीं आएगी अत्यधिक स्वप्न दोष होगा लड़की है तो उसको भी कामुकता भरे सपने आएंगे उसी स्तर 14 चलते रहेंगे मस्तिष्क में रेजिस्टेंस पावर कम हो जाएगी मिनट कम हो जाएगी शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाएगी इसलिए बार-बार बीमार रहेगा इस तरह का रोगी पैरों का
दर्द होगा जल्दी थक जाएगा किसी काम करेगा जल्दी थक जाएगा थोड़ी से दूर चलूं चलने पर जल्दी थक जाएगा अच्छे कामों में मन नहीं लगेगा बुरे काम को पूरे मन लगाकर करेगा अच्छे काम में मन नहीं लगेगा ध्यान में बैठे तो मन नहीं प्रभु भक्ति में बैठे तो मन नहीं कहीं पर भी कोई अच्छा काम करने की बात को नहीं लगेगा कोई अच्छी बात चल रही वह मन नहीं लगेगा सत्संग गोरा हो मन नहीं लगेगा बुरे कामों में झट से मन लगेगा इसके अलावा 24 घंटे सपनों की दुनिया में इस तरह का व्यक्ति रहता है
है इसके अतिरिक्त पैरों में खिंचाव रहता है पिंडलियों में खिंचाव रहता है चेहरा निस्तेज सा रहता है निर्जीव-सा रहता है सजीवता सी नहीं रहती यह सारे के सारे लक्षण या फिर इसमें से कुछ लक्षण यदि व्यक्ति के जीवन में दिखाई दे रहे हैं तो समझो उसके मूलाधार चक्र में विकार आ गया है या विकृत हो गया है और अगर यह सारे के सारे लक्षण है तो वह बहुत गंभीर अवस्था में पहुंच गया है अब उस पर दवाइयां तक नहीं करेंगी बहुत सारे ऐसे रोगों से पीड़ित हमारे युवा हमारे बच्चे होते हैं कुछ व्यक्ति होते हैं
जो बहुत ही इलाज कराते हैं नहीं टिक पाते इस प्रकार की बीमारियों से उनके जब तक इस चक्र के जागरण की अवस्था नहीं आएगी वो ठीक नहीं होंगी अब यह चक्र से जुड़ी हुई समस्या हो चुकी है है तो फिर इसका जागरण किस प्रकार से हो और कैसे हम इन सारी की सारी समस्याओं से बच सकते हैं सबसे पहले हम इस बात को समझें कि कि प्रत्येक चक्र में जो यह विकार आते हैं जितने यह विकार है उतने ही लाभ हो जाते हैं जब यह जाग्रत हो जाता है जिससे कि अगर कोई व्यक्ति का मुख
तो फिर काम में उसका मन नहीं लगेगा आराम मिलना शुरू हो जाएगा अ बीमारी है तो अ मजबूत होने लग जाएगी शरीर की बहुत सुंदर हो जाएगी हो जाएगी विकास होगा प्राण शक्ति बढ़ेगी क्षमता बढ़ेगी लेकिन फिर भी वह यूएन की तरफ कल्याण की कामना की तरफ आकर्षित नहीं होगा रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ेगी बहुत सारा काम करने पर थकेगा नहीं नंबर का या नींद बस जिस समय उस समय पूरा प्रफुल्लित रहेगा जिसका यह चक्र जाग्रत हो जाता है तो बिल्कुल नहीं रहेगा कार्य में लगे हैं कि मैं सपनों की दुनिया से बाहर आएगा प्राण शक्ति
बढ़ेगी जीवनी शक्ति बढ़ेगी और पैर मजबूत होंगी हाथ मजबूत होंगे बदल मजबूत होगा शरीर पूर्णरूपेण अपने स्वस्थ वाले आकार को ग्रहण करता चला जाएगा चिरकाल तक व्यवस्था बनी रहेगी यह सारी की सारी चीजें इस चक्र के जागरण से आप लोगों के अंदर आ जाने वाली यह इसके जागरण के लाभ होंगे वीरता उत्साह जोश परोपकार के इस चक्र के जागरण के प्रमुख गढ़ हुआ करते थे खैर अब यह समझे कि इसका जागरण किस प्रकार से किया जा सकता है इसका मंत्र होता है जैसा कि हमने बताया था आलम यहां पर इस चक्र की जो आकृति होती
है यह चार पंखुड़ियों वाले कमल के अकमल की खेती होती है जिसकी चार पंखुड़ियों पर चार अक्षर होते हैं वं शं षं उच्चतम यह चार अक्षर होते हैं आलम इसका बीजमंत्र होता है अब इस लंबी इस मंत्र से हम किस प्रकार से इस चक्र को जाग्रत करते हैं किस प्रकार से ध्यान से को जागृत करते हैं इससे पहले इस बात को हम समझ नहीं कि इस चक्र के जागरण के लिए विशेष रूप से आपके मनोभाव और आपकी वह भावनाएं जो कि इस चक्र के जागरण के लिए अनिवार्य है उनका ठीक हो जाना जरूरी है अगर
वह ठीक हो जाती हैं तो फिर आपके मंत्र और साधना का जो रोल है वह बहुत कम रह जाता है मूलरूप से चीज यही आपको ठीक कर देंगे अ है अब हम समझे कि वह चीजें क्या है अष्टांग योग में जो आपको अपने अंदर परिवर्तन लेकर आना है इस मूलाधार चक्र के जागरण के लिए और इस से ऊपर उठने के लिए अष्टांग योग में जो मार्ग बताया गया है वह मार्ग है जब निगम का मार्क ओं कि जब हमको आइए हम समझते हैं वैसे तो यह बहुत विस्तृत है और मैं चाहता हूं कि मैं विस्तारपूर्वक
इस पीस के विषय में बताऊं लेकिन विस्तारपूर्वक बताने में बहुत लंबा समय लग जाएगा इसलिए संक्षेप में मैं आपको बताता हूं सबसे पहले हमने पांच विकेट लेने होंगे जिसको हम कहते हैं सबसे पहला दूसरा तीसरा चौथा व्रत ब्रह्मचर्य व्रत होगा अब पृथ्वी ग्रह अब आप गांव से हो गई अपने आप हमारे घर पर हमला करने और हम बैठे हैं तो यह तो बड़ा मुश्किल हो जाएगा नहीं यह भगवान कृष्ण ने अर्जुन को लेकिन जब वक्त था उस समय पर उठाने को भी कहते हैं इसीलिए कहते हैं कि लोक कल्याण के प्रभाव से की जावे हिंसा
हिंसा नहीं होती तो हर वक्त आदमी को कोई ऐसी बात नहीं दूसरे को एक दूसरे को जरा भी तकलीफ हर वक्त कि हर वक्त का पालन करना है जिससे व्यक्ति अपने स्वभाव से अपने मन-वचन-कर्म से सुंदर बनता है तो इसे सब्सक्राइब करना है सत्य सत्य और किस प्रकार से सब्सक्राइब मतलब यह होता है सब्सक्राइब हो रहा है लोगों का कल्याण हो रहा है इस वजह से किसी को विकसित नहीं हो रहा है वह सत्य है कि वह जो आप जानते हैं वह 99% तक यह दूसरी चीज पर नजर रखना दूसरे के धन को पहले के
समान समझना अगर यह बात आ जाती है तो मन में ईर्ष्या का भाव भी नहीं आता ब्रह्मचर्य हम बार-बार ब्रह्मचर्य की बात बता चुके हैं किस प्रकार से हमें परमात्मा के गुणों का अनुकरण करना है किस प्रकार से हम ब्रह्मचर्य में स्थापित हो सकते हैं ब्रह्मचर्य मात्र एक इंद्रियों का संयम नहीं है हम अपने अंदर दया परोपकार प्रेम इत्यादि भावों को लेकर के इसे साथ में इंद्रियों का संयम भी होना जरूरी है कहां जनेंद्रिय का और कामिनी का हमारा जो है वह संयम होना भी जरूरी है तो इस प्रकार से हम ब्रह्मचर्य में भी स्थापित
हो अब पूरी ग्रह हम अधिक वस्तुओं का संचय न करें कि और वस्तुओं का संचय न करें यह कब की बात हो गई तो धन कमाना चाहते हैं उसमें दिक्कत नहीं है लेकिन अब स्कोर किया गया तय किया गया कि अकाल पड़ा हुआ है और आपने भंडारण आज का कर लिया है के लोगों को किसी चीज की आवश्यकता है महामारी आई ऑक्सीजन की कमी है आपने ऑक्सीजन सिलेंडर इसको बहुत सारा अपने पास में रोग करके रख लिया तो इसलिए अपरिग्रह का उपदेश बार-बार दिया जाता है ताकि लोग इस बात को समझ सकें कि कोई भी
चीज दूसरों की नियुक्ति अपने-अपने हिस्से में रख ली है तो फिर वह नुकसान का विषय बन जाती है आपके आध्यात्मिक उन्नति के लिए और लोगों के जीवन यापन के लिए इस प्रकार से हम यह को धारण करना है उस वस्तु को बहुत मात्रा में संचित नहीं करना जिसको करने से लोगों का नुकसान हो रहा होता है आवश्यकता से अधिक वस्तुओं के संचित करने की स्थिति में यह अभियुक्त अपने लिए इन पांच महाव्रतों बच्चा 5 नैतिकता है जो कि आप लोगों को जीवन में धारण करने सबसे अपनी जो नैतिकता है सोच आफ्टर आपको रहना और शरीर
के शुद्ध रखने का आ और स्वच्छ रखने का नाम भी सोच हुआ करता है उसके पश्चात संतोष संतोष का अर्थ में प्रयुक्त चीजों से तृप्त रहते हुए परमात्मा का धन्यवाद करना इसलिए नहीं कि आप पुरुषार्थ नहीं करेंगे इसलिए कि आपके पास में उससे संतुष्ट है उसको परमात्मा की कृपा समझेंगे इस संतोष तब अर्थार्थ अपने अंदर जो यह बहुत सारे uie आयुक्त हुए काम वासना इत्यादि बहुत सारे विकार उत्पन्न करेंगे इच्छाओं को अपने अंदर के संघर्ष की अग्नि में जलाकर भस्म कर देना तप स्वाध्याय ज्यादा से ज्यादा किताबें पढ़ना शास्त्रों को जानने का प्रयास करना मैं
कौन हूं यीशु कहां से आया हूं कहां मुझे जाना है इस विषय पर अध्ययन करना स्वरूप अध्ययन करना स्वाध्याय लाता अब इसके पश्चात आता है ईश्वर प्राणिधान अर्थात परमात्मा में पूर्णरूपेण विश्वास परमात्मा में पूर्णरूपेण श्रद्धा आस्था और हर चीज को परमात्मा के चरणों में समर्पित करते हुए चलना जैसे कि कोई भी कार्य आपने किया तो कहीं कि परमात्मा की बहुत कृपा है कि यह कार्य उनके कृपा से हो पाया कोई आपकी तारीफ करें तो आप ही सब मेरे प्रभु की कृपा है मैं उन्हीं की शरण शरण में रहता हूं जब भी कोई इस प्रकार के
भाव के मन में आते हैं कि मैं करता हूं तो आप ईश्वर प्राणिधान का जो गठबंधन कर रहे होते हैं और जब परमात्मा को पूर्ण समर्पित होते हैं हर कार्य को चीज को परमात्मा को समर्पित करके आगे बढ़ रहे होते हैं उस समय आप ईश्वर प्राणिधान का संकल्प पूरा कर रहे होते हैं जब यह पांच महाव्रत आप लेंगे जब यह पांच नैतिकता आपके अंदर आ जाएगी तो उसके पश्चात आपका जो मूलाधार चक्र है वो उसके जागरण का 90% सफर तो पूरा हो चुका होगा अब आप इन जो व्यक्ति है मूलाधार चक्र की जो दशा मूलाधार
चक्र के उन से ऊपर उठ चुके होंगे अब आपका चक्र जाग्रत हो चुका होगा लगभग जो चीज शेष रह गई है उसको अपने ध्यान से आप लोग ठीक करेंगे ध्यान के लिए सबसे पहले आप पृथ्वी मुद्रा में बैठ जाएं पृथ्वी मुद्रा में बैठने के पश्चात आप लोग अपने घुटनों पर हाथों को रख लेंगे अपने घुटनों पर हाथों को रखने के पश्चात आंखों को आप बंद करेंगे गहरे सांस लेंगे इस को एकदम रिलैक्स हो जाएं को शांत अवस्था में गहरी सांस लेते चले जाएंगे और अंदर बाहर आ लुट कि गहरे सांस ले करके [संगीत] हुआ है
के मन मस्तिष्क को शांत करके नाड़ी शोधन प्राणायाम को शुरू करेंगे तो [प्रशंसा] 13 मिनट तक नाड़ी शोधन के पश्चात कि सामान्य सांसों की गति के साथ कि समस्त चिंताओं से मुक्त होते हुए कि परमात्मा की शरण में जाएं [संगीत] अपने मन को परमात्मा के श्रीचरणों में स्थापित करके फिर करके [संगीत] कि परमपिता परमात्मा से प्रार्थना करें ई एक ही परमेश्वर आप जगत नियंता हो कि आप पूरे ब्रह्मांड के एक मालिक हो कि हे परमेश्वर आप से बड़ा कोई नहीं आपके जैसा कोई नहीं कि आपकी शक्ति अपरंपार है कि आप कृपा करके हमें सन्मार्ग पर
चलने की शक्ति प्रदान करें ओम कि हमसे मन वचन कर्म से किसी भी प्रकार से किसी का कोई अहित न हो [हंसी] कि हम हर प्रकार की वासना हर प्रकार की कामना से ऊपर उठ जाएं [संगीत] में किसी भी प्रकार की सांसारिक चीजें हमें आकर्षित नहीं कर पाएं हैं कि आपकी कृपा हम पर बनी रहे प्रभु कि आपकी सदा जय हो कि हरी ओम कश्यप इसके पश्चात [संगीत] मैं अपने ध्यान को कि आज्ञाचक्र पर ले करके जाएं तो मैं अपनी दोनों कि वह के बीच का जो स्थान होता है जहां तिलक लगाया जाता है इसको
बोलते हैं भूमध्य क्षेत्र का स्क्रू मध्य क्षेत्र पर मैं अपने ध्यान को केंद्रित करते हुए प्रणव ध्वनि ॐ का तीन बार उच्चारण करेंगे तो जय हो ओम मां जय हो ओम ओम [संगीत] कर दो जय हो ओम ओम और सुनाओ मैं कुछ गहरे सांस ली हुआ है कि आप सीधी अवस्था में बैठे हुए हैं कि गहरे साथ के साथ-साथ है कि आप और ज्यादा अपनी कमर को सीधा करने का प्रयास करें धीरे-धीरे की रीढ़ की हड्डी जितना भी हो सके धीरे-धीरे सीधा करें मैं जब भी अब सांप अंदर ले रहे हैं कभी अपने आप को
ऊपर उठता हुआ महसूस करें शरीर को नहीं रोक करके रखें में सांस को बाहर छोड़ देंगे मैं पुणे और ऊपर उठता हुआ महसूस करें कर दो तो फिर सांस को छोड़ दें तो कि हिट सांस अंदर दें लुट विश्वास के साथ भी शरीर को ऊपर उठता हुआ महसूस करें तो फिर छोड़ दे दो और फिर सांस अंदर लें और फिर शरीर को ऊपर उठता हुआ महसूस करें तो फिर छोड़ दें लो [संगीत] कि आप ऊपर की ओर जा रहे हैं कि आपका शरीर हल्का हो रहा है कि आप आनंद की अवस्था में है कि चारों
ओर से आनंद झाड़ रहा है अच्छा सोर्स सीधा अ है और ऊपर कि घोर ऊपर आ कि अ हैं अब अपने ध्यान को कि नाभि के नीचे के क्षेत्र के ऊपर केंद्रित करें कि इस क्षेत्र से समस्त के अंदरूनी अंग प्रत्यंगों को ऊपर की ओर उठा हुआ खींचता हुआ महसूस करें कि [संगीत] हैं अब अपने ध्यान को कि मूलाधार अर्थात का मुद्दा और लिंग के मध्य में थे को सिर्फ मूल आधार पर केंद्रित करें ई के बीज मंत्र नम का उच्चारण करें लंबा है [संगीत] लुट लंबा है कि अ फोन नंबर दो लुट को लंबा
लुट कि अ का हिस्सा लगभग 10 मिनट तक करने के पश्चात आप अपने ध्यान को मैं अपने रूम मध्य आज्ञाचक्र पर लेकर जाएंगे लुट एक बीज मंत्र को कि फिल्मी आवाज में कि जपना शुरू करेंगे [संगीत] जय हो ओम भीम लंबी-लंबी एवं रे 7766 ओम मीडियम लंबी-लंबी मीडियम साहा जय हो ओम रीम नम नम नम स्वाहा [संगीत] कि ऐसा आप 5 मिनट तक प्रारंभिक अवस्था ने करें है शुरुआती दौर में आपका यह ध्यान कि कुल मिलाकर 20 मिनट तक होगा तो फिर धीमे-धीमे कि आप किस के समय को कि बढ़ाते चले जाए है और 40
मिनट तक ले करके जाएंगे कि यदि आप सही तरीके से जागृत करने का प्रयास कर रहे होंगे तो 40 दिनों में आपका यह चक्र जाग्रत हो जाएगा