Learn more about how Native Water Purifiers work: https://www.urbancompany.com/journey/cart?category...
Video Transcript:
जनवरी 2025 में z की android1 किलो प्याज ₹ 3 में मिल रहे थे वहीं iphone7 पर किलो था 500 ग्रा अंगूर iphone11 6 में मिल रहे थे लेकिन ए पर इनकी कीमत सिर्फ ₹ 665 थी मैगी के पैकेट का साइज घटकर 80 ग्रा से 55 ग्रा हो गया है थम्स अप और कोका कोला की ₹10 में आने वाली छोटी बॉटल्स का साइज 250 ml6 200 ml8 पेपर का साइज भी छोटा हो रहा है कंपनीज जानबूझकर ऐसे प्रोडक्ट्स बनाती हैं जो कुछ समय तक ही चले और फिर खराब हो जाए इवन दो उनके पास टेक्नोलॉजी है बेहतर प्रोडक्ट्स को बनाने की यानी कि एक तो ये कंपनीज आपके फोन को जबरदस्ती स्लो कर रही है और दूसरा बता भी नहीं रही कंज्यूमर्स को कि सॉफ्टवेयर अपडेट करने से फोन स्लो हो जाएगा अवेलेबल नहीं है आपके फोन की बैटरी सिर्फ 5 पर बची है तो आप जल्दी से अपना फोन खोलते हैं टैक्सी बुक कराने के लिए एक ऐप के जरिए उम्मीद ये है कि ये ऐप आपके लिए टैक्सी बुक करा देगी और आप जल्दी से घर पहुंच जाएंगे लेकिन जैसे ही आप इस ऐप को खोलते हैं आपके होश उड़ जाते हैं प्राइस नॉर्मल से दुगने हैं शायद आप सोचते हो कि ये सर्ज प्राइसिंग है क्योंकि इस वक्त कम ड्राइवर्स अवेलेबल है और डिमांड ज्यादा है लेकिन प्रॉब्लम ये है कि आपके पास ज्यादा टाइम नहीं है सोचने के लिए क्योंकि अब आपके फोन में सिर्फ सिर्फ 3 पर बैटरी बची है इसलिए आप जल्दी से दुगने प्राइस पर टैक्सी बुक कराकर घर पहुंच जाते हैं अब कैसा लगेगा सुनकर अगर मैं आपसे कहूं यह सर्ज प्राइसिंग नहीं थी इस ऐप को असल में पता था कि आपके फोन में कम बैटरी बची है इसलिए ऐप ने आपके लिए प्राइसेस बढ़ा दिए थे बेल्जियम के एक अखबार ने 2023 में एक स्टडी करी थी जिसमें उन्होंने दो फोस लिए एक फोन का बैटरी लेवल 12 पर पर था दूसरे का बैटरी लेवल 84 पर पर था दोनों फस में u की ऐप खोली और सेम लोकेशन से टैक्सी ऑर्डर करने की कोशिश करी प्राइसेस कंपेयर किए तो पता चला कि हमेशा 12 बैटरी वाले फोन पर u ज्यादा किराया चार्ज कर रहा था हालांकि u ने इस चीज को डिनायर्स नहीं करती लेकिन 2016 में एनपीआर को दिए गए एक इंटरव्यू में u के हेड ऑफ इकोनॉमिक रिसर्च कीत चेन ने कहा था कि u को पता चला है कि अगर फोन की बैटरी खत्म होने वाली हो तो लोग ज्यादा पैसे देने को तैयार होते हैं और से प्राइस सेट नहीं करता लेकिन बार-बार ऐसे क्लेम्म हैं कि एक्चुअली में u ऐसा करता है जनवरी 2025 में इंजीनियर हब के फाउंडर ऋषभ सिंह ने एक एक्सपेरिमेंट किया और इन्होंने भी पाया कि लो बैटरी लेवल्स पर u कैब बुक करने के लिए लगातार ज्यादा पैसे मांग रहा था इसके अलावा ऐसी एप्स पर एक और बड़ा आरोप लगता है कि ये iphone11 में मिल रही है आ फोन पर उसके लिए 107 मांगे जा रहे हैं इस तरीके के इंसीडेंट्स पिछले कुछ सालों से लगातार बढ़ते जा रहे हैं जहां पर कंपनीज ये अजीबोगरीब तरीके अपना रही हैं कस्टमर्स को लूटने के और बेवकूफ बनाने के ये सिर्फ किसी एक प्रोडक्ट या एक सर्विस की बात नहीं है कंपनीज यह बड़े स्केल पर ऐसा कर रही है और सिस्टमैटिकली ऐसा कर रही है आइए आज के वीडियो में इस मुद्दे को गहराई से समझते हैं और जानते हैं पांच ऐसे तरीके जिनका कंपनीज इस्तेमाल कर रही है आप लोगों को बेवकूफ बनाने के लिए एक स्मार्टफोन के ही उदाहरण से शुरू करते हैं यह फोन जो आज हम सबके पास है इस फोन की बैटरी तीन से 4 साल से ज्यादा टिकती नहीं है तीन-चार साल बाद बैटरी इतनी बेकार हो जाती है कि आपको मजबूर होना पड़ता है एक नया फोन खरीदने में लेकिन सोच कर देखो अगर इन्हीं फ्स में बैटरीज को इस तरीके से बनाया जाता कि आसानी से खोलकर उन्हें रिप्लेस किया जा सके एक टेक्नोलॉजिकल पर्सपेक्टिव से देखा जाए तो यह करना कोई मुश्किल चीज नहीं है बहुत सारे इलेक्ट्रॉनिक अप्लायंसेज में बै बैटरीज ऐसी ही होती हैं कि उन्हें खोलकर निकाला जा सके और रिप्लेस किया जा सके लेकिन इन स्मार्टफोंस में जान पूछकर इस तरीके से बैटरी को सील किया जाता है कि वह नॉन रिप्लेसेबल बन जाए ये कंपनीज हमें मजबूर करती हैं रेगुलरली नए फ्स खरीदने पर इस चीज को कहा जाता है प्लान ऑब्सोलिसेंस कंपनीज जानबूझकर ऐसे प्रोडक्ट्स बनाती हैं जो कुछ समय तक ही चले और फिर खराब हो जाए इवन दो उनके पास टेक्नोलॉजी है बेहतर प्रोडक्ट्स को बनाने की जैसे कि काफी समय से कस्टमर्स ने आरोप लगाया है कि उस को स्लो कर देता है ताकि लोग नया i खरीदें 2018 में इटली की कंपटीशन अथॉरिटी ने एक इन्वेस्टिगेशन की जिसमें सामने आया कि कुछ सॉफ्टवेयर अपडेट्स के बाद स्मार्टफोंस की परफॉर्मेंस खराब हो जाती है इन्होंने इसके बाद apple's का और samsung's का फाइन भी लगाया इस इन्वेस्टिगेशन के दौरान यह पाया गया कि जब इन कंपनीज के नए सॉफ्टवेयर अपडेट्स आते हैं तो वो नए सॉफ्टवेयर अपडेट्स पुराने फस को जानबूझकर स्लो कर देते हैं 2020 में फ्रांस ने भी apple's को स्लो करने के लिए ढाई करोड़ यूरोस का फाइन लगाया यानी कि एक तो एक कंपनीज आपके फोन को जबरदस्ती स्लो कर रही है और दूसरा बता भी नहीं रही कंज्यूमर्स को कि सॉफ्टवेयर अपडेट करने से फोन स्लो हो जाएगा apple's को स्लो किया जाता है लेकिन उन्होंने बहाना दिया कि यह सिर्फ इसलिए किया जाता है क्योंकि पुराना होने पर फोन की बैटरी परफॉर्मेंस खराब हो जाती है और उनके अनएक्सपेक्टेडली बंद होने के चांसेस बढ़ जाते हैं अब सवाल यह कि अगर ऐसा होता है तो फोन में रिप्लेसेबल बैटरी क्यों नहीं बना देते बैटरी रिप्लेस करने के ऑप्शन क्यों नहीं देते आसानी से पिछले साल की इस खबर को देखिए अमेरिका में apple's की वजह से टोटल में 500 मिलियन डॉलर का अमाउंट कस्टमर्स को वापस देना पड़ा लेकिन ये प्लान ऑब्सोलेटे बल्ब बनाने वाली कंपनियों ने भी अपनी कमाई बढ़ाने के लिए इसका इस्तेमाल किया था पहले व ऐसे बल्ब्स बनाया करते थे जो बहुत लंबे समय तक चलते थे लेकिन इससे उनकी कमाई कम हो रही थी इसलिए सभी कंपनियों ने कम चलने वाले बल्ब्स बना बनाने शुरू कर द आज इसी की वजह से ही हमें देखने को मिलता है कई सारे इलेक्ट्रॉनिक अप्लायंसेज चाहे फ्रिज हो वाशिंग मशीन हो माइक्रोवेव हो इनका लाइफ स्पैन सिर्फ पांच से 7 साल का रह गया है कई-कई केसेस में तो आज के दिन ये तीन-चार सालों में ही चीजें खराब हो जाती हैं लेकिन कभी अपने पेरेंट्स से पूछकर देखो उनके जमाने में जो फ्रिज और वाशिंग मशीनस होती थी वो कितने सालों तक चलती थी कंपनी जान पूछकर सस्ते मैटेरियल्स और ऐसे डिजाइंस का इस्तेमाल कर रही हैं जिससे कि चीजें आसानी से टूटे और आप मजबूर हो जाओ चीजों को दोबारा खरीदने पर इसका सलूशन सिर्फ एक गवर्नमेंट लेवल पर ही आ सकता है 2021 में यूरोपियन यूनियन ने राइट टू रिपेयर के रूल्स बनाए इसी चीज को काउंटर करने के लिए इन रूल्स में कहा गया कि कंपनीज को कम से कम एक प्रोडक्ट बनाने के बाद 10 सालों तक उस प्रोडक्ट के रिप्लेसमेंट पार्ट्स रखने पड़ेंगे इसके अलावा किसी भी प्रोडक्ट को खुद से रिपेयर करना आसान होना चाहिए जो स्क्रूज उसमें इस्तेमाल किए जा रहे हैं जो अलग-अलग स्पेयर पार्ट्स उसमें इस्तेमाल किए जा रहे हैं वो ऐसे हो जो कॉमनली अवेलेबल हो और यूनिवर्सल हो इसी कानून की वजह से करना शुरू कर दिया वही चार्जर जो एंड्र फस पर भी इस्तेमाल किया जाता है कि एक यूनिवर्सल चार्जर होना चाहिए इससे पहले सालों पहले ये पैकेट शुरू हुआ था इसमें 250 ग्राम बिस्किट्स आया करते थे इसी चीज को श्रिंक फ्लेशन कहा जाता है टाइम के साथ-साथ कंपनियां प्राइस को नहीं बढ़ाएंगे लेकिन अपने प्रोडक्ट का साइज छोटा करती जाएंगी मैगी के पैकेट का साइज घटकर 80 ग्राम से 55 ग्राम हो गया है थम्स अप और कोका कोला की ₹ में आने वाली छोटी बॉटल्स का साइज 250 एए से 200 एए हो गया है इस चीज पर कई सारे मीम्स भी बनते हैं जैसे कि ये देखो बिग मै जो 2004 में आता था और 2024 में जो बिग मै का साइज रह गया है लेस के चिप्स में चिप्स गिनती के बच गए हैं और बाकी सिर्फ और सिर्फ हवा बिकती है यह चीज नेचुरली भी टाइम के साथ-साथ वैसे भी हो ही रही थी लेकिन कोविड के बाद एक बड़ा ड्रास्ट्रिंग होता था अब सिर्फ 42 ग्राम बचा है पहले ₹1 की हाजमोला में छह टैबलेट्स आती थी अब सिर्फ चार आती हैं ये चीज इंडिया में ही नहीं बल्कि दुनिया भर में देखने को मिल रही है 2022 में नोज ने अपने $7. 99 वाले चिकन विंग्स में चिकन विंग्स की संख्या 10 से घटाकर आठ कर दी 2023 से पहले लमा के टॉयलेट पेपर में 168 शीट्स आती थी इन्हें 28 पर घटाकर 120 शीट्स पर कर दिया गया लिटरली टॉयलेट पेपर का साइज भी छोटा हो रहा है दिस यस दिस इ द एट ज फ र अका कई बार तो यह चीज इतने इनोवेटिव तरीके से की गई है कि कस्टमर को पता ही ना चले कि ये हुआ भी है जैसे कि 2013 में जब कैडबरी ने डेरी मिल्क बार का साइज 10 पर घटाया था तो ऐसा नहीं कि उन्होंने जो स्क्वायर्स है एक चॉकलेट बार के वो कम कर दिए हो उन्होंने उस स्क्वेयर का साइज थोड़ा सा छोटा किया और पूरे चॉकलेट बार की थिकनेस कम कर दी इसी तरह 2016 में जब टॉलर ऑन चॉकलेट ने अपने 400 ग्राम वजन को घटाकर 360 ग्राम किया तो उन्होंने चॉकलेट के हर पीस के बीच में जो स्पेस थी उसे बढ़ा दिया फिर आती है टैक्टिक बज वर्ड्स मिसयूज करने की जो भी शब्द ट्रेंड में चल रहे हैं उनका इस्तेमाल करो अपनी मार्केटिंग में और कस्टमर्स को उल्लू बनाओ जैसे कि आज के दिन एआई शब्द बड़ा ट्रेंड में है तो कंपनीज ने फोन से लेकर वाशिंग मशीन तक में एआई जोड़ दिया इसे एआई वाशिंग भी कहा जाता है ये सब क्या देखना पड़ रहा है अच्छा है मैं अंधा हूं एक कंपनी अपने प्रोडक्ट्स को बेचते हुए कहती है कि हमारे प्रोडक्ट में मशीन लर्निंग है डीप लर्निंग है या फिर हमारी यह वाशिंग मशीन एआई पावर्ड मशीन है यह बड़े-बड़े शब्द इस्तेमाल करने से लगता है कि हां कुछ ना कुछ तो बहुत ही बढ़िया होगा इसमें इसे तो खरीदना बनता है लेकिन अक्सर असल में होता ऐसा कुछ है नहीं रेवोल्यूशन एआई पावर्ड रेफ्रिजरेटर जो आज के दिन बेचे जा रहे हैं उन्हीं का ही उदाहरण ले लो यह असल में प्री प्रोग्राम सेटिंग पर चलते हैं जिसे एआई का नाम दे दिया गया है एआई वाशिंग मशीनस आ रही हैं जो कपड़े के फैब्रिक को पहचान लेती हैं लेकिन खरीदने के बाद पता चलता है कि यह बेसिक टेंपरेचर सेटिंग्स का ही इस्तेमाल कर रही हैं लोगों को नई चीजें बेचने में मार्केटिंग का बड़ा रोल होता है और कंपनियां बड़े-बड़े दावे करती हैं जैसे कि एक यह फेमस आरओ का ब्रांड कहता है कि वो डॉक्ट डॉक्टर्स की नंबर वन चॉइस है जैसे सुनकर ऐसा लगता है कि मानो सारे डॉक्टर्स ने इसी एक आरो को एंडोर्स किया है कई सारी टूथपेस्ट वाली कंपनीज भी यही करती हैं कि हम तो डेंटिस्ट की पहली चॉइस हैं इतने परसेंट डेंटिस्ट ने हमें रिकमेंड किया है लेकिन मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के रूल्स ऑफ एथिक्स के अनुसार कोई भी डॉक्टर किसी भी कमर्शियल प्रोडक्ट को एंडोर्स और रिकमेंड नहीं कर सकता एससीआई ने ऐसे दावों को मिस लीडिंग बताया है और ऐसी कंपनियों को अक्सर ऐड्स वापस लेनी पड़ी है कुछ ऐड्स में इन कंपनियों ने डूओ का जिक्र किया था लेकिन ये नहीं बताया कि डब्ल्यू एओ से उनका मतलब वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन नहीं था बल्कि वूमेंस हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन था जो कोई क्रेडिबल ऑर्गेनाइजेशन नहीं है जनता को लूटने की अगली टैक्टिक आती है रेजर ब्लेड मॉडल कंपनी अपने एक मेन सस्ते प्रोडक्ट को बेचकर लोगों को डिपेंडेंट बना देती है कि असली में कंपनी अपना प्रॉफिट किसी साइड प्रोडक्ट से कमाती है जो ज्यादा महंगा हो जिसे आपको बार-बार खरीदना पड़े जैसे कि रेजर और ब्लेड के मामले में क्या होता है रेजर एक बार खरीदा जाता है और ब्लेड आपको बार-बार खरीदना पड़ता है यहीं से ही इसका नाम आया है रेजर ब्लेड मॉडल कंपनियां ज्यादातर प्रॉफिट अपना ब्लेड बेचकर कमाती है प्रिंटर्स का बिजनेस इसका परफेक्ट एग्जांपल है कंपनियां प्रिंटर्स को घाटे में बेचती हैं ताकि बाद में महंगी इंक बेची जा सके और यहां पर आप सोचोगे कि लेकिन कोई भी कंपनी की इंक खरीदी जा सकती है प्रिंटर में लगाने के लिए लेकिन इन कंपनियों ने जान पूछकर डिजाइन ऐसा बना रखा है अपने प्रिंटर का कि सिर्फ इन्हीं की कंपनी की इंक कार्टिस उस प्रिंटर में डालेगी प्रिंटर्स में अक्सर ये कंपनियां माइक्रो चिप्स भी लगाने लग गई हैं जिनमें बीच-बीच में फर्मवेयर अपडेट इशू की जाती है ताकि कोई भी थर्ड पार्टी इंक ना इस्तेमाल कर पाएं आप इस आर्टिकल को देखिए 2018 में नौ प्रिंटर कंपनियों ने ऐसे लगभग 900 अपडेट्स भेजे यानी कि हर दिन के तीन अपडेट्स भेजे बस ये चेक करने के लिए कि आपके प्रिंटर में कोई दूसरी कंपनी की इंक तो नहीं डली है अगर डली है तो आपका प्रिंटर काम करना बंद कर जाएगा अगर खराब नहीं हुआ तो कम से कम प्रिंटर की वारंटी खत्म हो जाती है और यह चीज कस्टमर्स को प्रिंटर बेचते वक्त नहीं बताई जाती 1 लीटर इंक बनाने में किसी प्रिंटर वाली कंपनी को करीब 20 से $40 की कॉस्ट आती है लेकिन यह बेचते कितने में है इस इंक को इस वेबसाइट के एस्टिमेटर अनुसार 1 गैलन इंक यानी 3. 7 लीटर इंक बेची जाती है लगभग $12000 में ये रकम इतनी महंगी है कि इंसान के खून की कीमत भी इससे सस्ती होती है कभी किसी प्रिंटर वाली कंपनी से पूछोगे कि वो ऐसा क्यों करते हैं तो वो बहाना मारेंगे कि हमें रिसर्च और डेवलपमेंट पर बहुत पैसा खर्च करना होता है इसलिए यहां से हम ज्यादा पैसे कमाते हैं लेकिन सच बात यह है कि ये सिर्फ ज्यादा पैसे कमाने की एक टैक्टिक है कस्टमर को लूटने की टैक्टिक है ऊपर से यहां पर इं काटिज में भी श्रिंक फ्लेशन देखने को मिलता है इंक काटिज की क्वांटिटी भी लगातार कम होती जा रही है कुछ साल पहले तक जिन इंक कार्टेज को स्टैंडर्ड काटिज करके बेचा जाता था अब उन्हीं को ही एक्स्ट्रा लार्ज काटिज करके बेचा जा रहा है एचपी जो कंपनी है इसी मुद्दे को लेकर बड़ी प्रॉब्लम में भी फंस गई थी ऑस्ट्रेलिया में उन्हें अपने कस्टमर से माफी मांगनी पड़ी थी और लगभग 2000 कस्टमर्स को $50 के हिसाब से $ लाख तक की कंपनसेशन देनी पड़ी थी 2022 में यूरोप में भी कस्टमर से से सेटलमेंट हुआ और एचपी को $3.
5 लाख डॉलर कंपनसेशन देनी पड़ी अक्टूबर 2019 में एक दूसरी प्रिंटर कंपनी एसन पर भी अमेरिका में केस हुआ क्योंकि उनके प्रिंटर्स थर्ड पार्टी इंक को इस्तेमाल करने पर काम करना बंद कर देते थे एक छोटे लेवल पर इसी टैक्टिक का इस्तेमाल वटर प्यूरीफाइंग कंपनीज भी करती हैं आपने वॉटर प्यूरीफायर खरीदा हर साल आपको सर्विसिंग करानी पड़ेगी फिल्टर बदलना पड़ेगा क्या ऐसी टेक्नोलॉजी नहीं है बेहतर फिल्टर्स बनाने की बिल्कुल है जैसे कि अर्बन कंपनी के द्वारा निकाला गया उनका नेटिव आरो देखिए इसमें लगे फिल्टर को 2 साल तक सर्विसिंग की जरूरत नहीं पड़ती यह अर्बन कंपनी के द्वारा निकाला गया उनका एक नया प्रोडक्ट ब्रांड है ये ऐसी कंपनियों में से है जो बड़े ही ऑनेस्ट और ट्रांसपेरेंट तरीके से अपनी ब्रांड की मार्केटिंग कर रहे हैं ये आपको कोई झूठे वादे नहीं दे रहे कि डॉक्टर्स रिकमेंड करते हैं इस आरओ को या फिर 99. 999 पर शुद्ध पानी आएगा यहां से ये सिर्फ कहते हैं हमसे वटर प्यूरीफायर खरीदो एगजैक्टली ये 10 फिल्ट्रेशन की स्टेजेस हमारे वाटर प्यूरीफायर में मौजूद है ये वाली इनोवेटिव टेक्नोलॉजीज का हम इस्तेमाल कर रहे हैं और आपको फिल्टर 2 साल तक रिप्लेस करने की जरूरत नहीं पड़ेगी एक ऐसा प्रोडक्ट जिसमें मेंटेनेंस बहुत कम है साथ में इन्होंने अपनी वारंटी को भी काफी हद तक अनकंडीशनल बनाया है मतलब आप घर पर कैसा भी पानी इस्तेमाल करो कितना भी इस्तेमाल करो और मशीन जैसे भी यूज़ करो कंपनी सब वारंटी में कवर करेगी ये शायद होम अप्लायंसेज की कैटेगरी में पहली ऐसी वारंटी है मेरा मानना है हमें सही माइनों में ऐसी कंपनी को सपोर्ट करना चाहिए जो एक्चुअली में इनोवेशन करें और कस्टमर्स को लूटने के अलग-अलग तरीके ना धूं अर्बन कंपनी का नेटिव आओ ऐसा ही एक प्रोडक्ट है और यहां मैं इनका धन्यवाद करना चाहूंगा इस वीडियो को स्पों सर करने के लिए भी और वैसे वारंटीज की बात करते हुए यह एक और टैक्टिक है कस्टमर्स को लूटने की कई प्रोडक्ट्स की वारंटीज काम ही नहीं करती जैसे कि यह वाला केस देखिए मई 2014 में बेंगलुरु में मदन राज ने आईएफबी की एक वाशिंग मशीन खरीदी लेकिन नवंबर 2015 में मशीन ने अचानक से काम करना बंद कर दिया मशीन पर 4 साल की वारंटी लगी थी लेकिन आईएफबी ने उससे कहा कि वह 50 पर एक्सचेंज ऑफर पर नई मशीन खरीद ले क्योंकि इस मशीन के कई पार्ट्स बनने ही बंद हो गए हैं जब मदन ने केस किया तो आईए बी ने कोर्ट में कहा कि मशीन के किसी भी पार्ट को बदलने की जरूरत नहीं है और इसके टॉप कवर पर आयरन खराब हो गया है जो वारंटी में कवर नहीं होता लेकिन मदन ने जो वारंटी कार्ड दिखाया उसमें वाशिंग मशीन का हर पार्ट कवर था मदन को टॉप क्लास सर्विस और 4 साल की वारंटी का वादा किया गया था लेकिन कंपनी ना तो अच्छी सर्विस दे रही थी बल्कि झूठ बोलकर मदन को नई वाशिंग मशीन खरीदने को मजबूर कर रही थी वटर प्यूरीफायर इंडस्ट्री में भी ऐसा ही कुछ होता है एएमसी के जरिए एएमसी यानी एनुअल मेंटेनेंस कांट्रैक्ट ये एक सर्विस एग्रीमेंट होती है जिसमें कंपनी एक स्पेसिफिक फीस के बदले साल भर मेंटेनेंस और सर्विसिंग करती है लेकिन इसमें भी फायदा कस्टमर का नहीं कंपनी का होता है जैसे कि एक फेमस वटर प्यूरीफायर ब्रांड का एएमसी ₹2500000 ₹ ज तक की आती हैं वो इसमें कवर्ड ही नहीं होती और हर साल इन्हें बदलने के लिए कस्टमर्स को अलग से पैसे देने पड़ते हैं अगर आप घर बदलते हैं तो आपको इस कंपनी के इंजीनियर को बुलाकर ₹ 6600 देने पड़ेंगे अगर आप खुद से शिफ्ट करने की कोशिश करेंगे वटर प्यूरीफायर को तो आपका एएमसी रद्द हो जाएगा एक और फेमस आरओ कंपनी ने कहा है कि अगर उनका आरओ दिन में आठ घंटे से ज्यादा चलता है तो उसे एएमसी में फ्री रिप्लेस नहीं किया जाएगा तो इसी मॉडल को नेटिव आरओ ने बदला है क्योंकि उनके फिल्टर्स दो साल तक चलते हैं तो एएमसी की जरूरत वैसे ही नहीं है यही फायदा होता है जब हमें किसी इंडस्ट्री में कंपटीशन देखने को मिलता है नए ब्रांड्स आते हैं पुराने ब्रांड्स को चैलेंज करते हैं नई इनोवेशंस के साथ लेकिन जिन इंडस्ट्रीज में मोनोपलीज बन गई है कंपनियों की वहां पर जैसा चल रहा है वैसा ही चलता रहता है अगर सभी कंपनीज एक इंडस्ट्री में कस्टमर्स को उसी तरीके से लूट रहती हैं तो कस्टमर्स के पास कोई चॉइस ही नहीं बच जाती मिस लीडिंग मार्केटिंग की बात करी जाए तो इस पे पूरा 1 घंटे का वीडियो बन सकता है इनोवेशन शब्द को ही अक्सर मार्केटिंग के तौर पर बेचा जाता है इनोवेशन के नाम पर फस को कभी ऐसे मोड़ दिया जाता है तो कभी वैसे कभी एक कैमरा ज्यादा बढ़ा दिया जाता है तो कभी सिम कार्ड के स्लॉट को थोड़ा ऊपर से नीचे कर दिया जाता है लगभग एक जैसे ही फोस हैं iphone11 किसी एक आम इंसान को दोगे और बोलोगे कि इनमें फर्क बताओ तो उसे घंटों लग जाएंगे फर्क ढूंढने में oppo's लॉन्च करते हैं आपको लगता है कि आपके पास ऑप्शंस हैं लेकिन यह सब पीछे से एक ही कंपनी के द्वारा बनाए जा रहे हैं इन कंपनियों के द्वारा की जा रही इस लूट मरी में कस्टमर्स का तो नुकसान हो ही रहा है लेकिन साथ ही साथ एनवायरमेंट पर भी एक बड़ा भयानक इंपैक्ट पड़ रहा है ऐसे प्रोडक्ट्स बनाना जो जल्दी खराब हो हर साल नए प्रोडक्ट्स निकालना चाहे इनोवेशन हो या ना हो इससे कंजमेट कोबाल्ट लिथियम जैसे एलिमेंट्स की माइनिंग की ज्यादा जरूरत पड़ रही है रेयर अर्थ मिनरल्स की माइनिंग से लेकर फ्स के प्रोडक्शन और इस्तेमाल तक हर चीज में कार्बन एमिशंस होते हैं 2020 में स्मार्टफोंस के कारण 58 करोड़ टन co2 एमिशन हुआ इतने सारे इलेक्ट्रॉनिक्स की वजह से ईवेस्ट भी जनरेट हो रहा है दुनिया का सारा ईवेस्ट का 10 पर सिर्फ स्मार्टफोन से ही आता है एक और चालू टैक्टिक कस्टमर्स को उल्लू बनाने की है ड्रिप प्राइसिंग इसमें क्या है कस्टमर्स को पहले प्रोडक्ट की कम कीमत दिखाई जाती है लेकिन जब वो परचेस करने लगते हैं तब तरह-तरह के टैक्सेस और चार्जेस जोड़कर कीमत बढ़ा दी जाती है यानी जो ऐड में दिखाया जाता है वो प्रोडक्ट का फाइनल प्राइस नहीं होता कंपनियां ऐसा इसलिए करती हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि एक बार कम कीमत का लालच देकर उन्होंने कस्टमर को फंसा लिया तो एडिशनल कॉस्ट का पता चलने तक तो प्रोडक्ट खरीदने का मन बना ही चुका होगा कस्टमर और वापस नहीं जाएगा ये इसका उदाहरण देखिए ये जूते जो ₹ 700 के बताए जा रहे हैं लेकिन जब आप इन्हें खरीदने चलते हो हैंडलिंग डोनेशन और प्लेटफार्म जैसे चार्जेस जोड़कर इनकी असली कॉस्ट पड़ती है ₹10 यही चीज फूड डिलीवरी एप्स भी करती है जब आप खाना ऑर्डर कराते हो या फिर सिनेमा हॉल की टिकटें खरीदते हो किसी बुक माय शो जैसे प्लेटफॉर्म पर जाकर तो केंद्र सरकार इसे लेकर ऑलरेडी एक वार्निंग दे चुकी है लेकिन कंपनियों ने ये करना बंद नहीं किया है अब ड्रिप प्राइसिंग की तरह ही एक और टैक्टिक आती है बेट एंड स्विच मेथड इसमें कंपनी या अच्छा और कम प्राइस वाला ऑफर देकर कस्टमर्स को फंसाते हैं और फिर उन्हें दूसरा प्रोडक्ट बेच देती हैं मान लीजिए एक कस्टमर 50 इंच का एक प्लाज्मा टीवी खरीदने गया लेकिन जब वो स्टोर पहुंचा तो स्टोर ने कहा भाई यह तो सोल्ड आउट है लेकिन तब तक कस्टमर ने अपना टीवी खरीदने का मन बना ही लिया था तो वो सेल्समैन उसे आकर कहते हैं यह सोल्ड आउट जरूर हो गया लेकिन इससे मिलता जुलता ही एक और प्लाज्मा टीवी है ये 30 इंच वाला टीवी देख लो यह सस्ता है प्राइस में और काफी अच्छा भी है लेकिन जब स्टोर इसे बेचता है एक्चुअली में प्रॉफिट मा मार्जन इस टीवी पर ज्यादा होता है होटल बिजनेसेस में भी बेट एंड स्विच का बहुत इस्तेमाल किया जाता है होटल कस्टमर्स को फंसाने के लिए पहले कम प्राइस के कमरे दिखाए जाते हैं जिसमें मैंडेटरी फीस शामिल होती है और बाद में चेकआउट करते समय यह फीस और तरह-तरह के चार्जेस जोड़कर ज्यादा पैसे ले लेते हैं अब वापस उसी टैक्टिक पर आए जिसकी बात मैंने वीडियो के शुरू में करी थी तो कई ई-कॉमर्स कंपनियों पर ऐसे आरोप लग रहे हैं दिसंबर 20224 में सौरभ शर्मा नाम के एक आदमी ने ट्वीट करके दिखाया कि उन्हें ऐप पर जो सूटकेस मिल रहा था वो ₹1 में मिल रहा था लेकिन आओ ऐप पर उसी सूटकेस का प्राइस 4799 था जनवरी 2025 में z की ए ऐप पर 1 किलो प्याज ₹ 3 में मिल रहे थे वहीं iphone7 पर किलो था 500 ग्रा अंगूर iphone11 6 में मिल रहे थे लेकिन ए पर इनकी कीमत सिर्फ ₹5000000 ए पर लोगे ₹1 49 बारी आप इस तरीके का अन्याय कभी भी अपने साथ होते हुए देखें तो अपनी आवाज उठाइए कंपनी के हैंडल्स को twittersignin.