अगर आप इंडिया में रहते हैं तो आपका दिन में कभी ना कभी टाटा ग्रुप ऑफ कंपनीज की किसी ना किसी प्रोडक्ट से पाला जरूर पड़ता होगा रोड्स पर दौड़ती हुई गाड़ियों पर नजर डालें तो टाटा मोटर्स हवा में उड़ते हुए प्लेंस को देखें तो एयर इंडिया पर नजर जाती है और यहां का आइकॉनिक ताज होटल तो पूरी दुनिया में मशहूर है जिसे टाटा ग्रुप ही ओन करता है पावर से लेकर फैशन तक और चाय से लेकर नमक तक हर जगह टाटा ग्रुप ऑफ कंपनीज का ही राज है पूरे इंडिया में छोटी बड़ी 100 से ज्यादा
कंपनीज हैं जो टाटा ग्रुप के अंडर आती हैं अब यहां आपको लगता होगा कि यह सब सक्सेस रतन टाटा की हिम्मत और विजन से आई है हां उनका कंट्रीब्यूशन तो जरूर है लेकिन यह एंपायर जो आज हम देखते हैं इसकी कामयाबी की कड़ियां 150 साल पीछे जाकर मिलती है आज की इस वीडियो में हम इस कहानी को खोलेंगे और जानेंगे कि कैसे एक विजनरी ने अपने सपनों को सच कर दिखाया और टाटा ग्रुप को बनाया एक ग्लोबल पावर हाउस जम टीवी की वीडियोज में एक बार फिर से खुशामदीद नाजरीन टा ग्रुप के प्रोडक्ट्स 150 से
ज्यादा कंट्रीज में एक्सपोर्ट होते हैं जबकि 100 से ज्यादा कंट्रीज में टाटा ग्रुप अपने ऑपरेशंस खुद मैनेज करता है 2024 के एस्टिमेट्स के मुताबिक टाटा ग्रुप का कैपिटल 403 बिलियन डॉलर्स है जो कि इंडियन करेंसी में 33500 अरब जबकि पाकिस्तानी रुपीज में बात की जाए तो यह नंबर इतना बड़ा है कि पाकिस्तान के ऊपर जितना कर्जा है वह एक नहीं दो बार उतार रा जा सकता है गाड़ियां हो या ज्वेलरी नमक हो या पत्ती एयरलाइन इंडस्ट्री से लेकर रियल स्टेट सर्विस तक टाटा ग्रुप 24 से ज्यादा प्रोडक्ट्स या सर्विसेस में अपने पैर जमाए बैठा है
कामयाबी के इस सफर का आगाज रतन टाटा के दादा नहीं बल्कि पर दादा जमशेद जी टाटा ने आज से 156 साल पहले सिर्फ ₹ जयो से किया था जमशेद जी अपने फादर के साथ कॉटन की ट्रेडिंग का काम करते थे और 18680 के थे तब उन्होंने अपनी खुद की ट्रेडिंग कंपनी की बुनियाद रखी जो कॉटन वह बेचते थे वह ज्यादातर एक्सपोर्ट होती थी और उसमें से कुछ टेक्सटाइल मिल्स खरीद कर कपड़े की सूरत में बेचती थी इस तरह जमशेद जी को आईडिया आया कि कॉटन सेल करने के साथ-साथ वह एक टेक्सटाइल मिल भी लगा ले
लेकिन मिल लगाने के लिए बहुत ज्यादा इन्वेस्टमेंट की जरूरत थी और इतने पैसे एक नए बिजनेस में लगाना काफी रिस्की था उस वक्त चिंच पोकली में एक ऑयल मिल काफी नुकसान में जा रही थी और अल्टीमेट ली वो बैंक रपट हो गई तो उन्होंने सस्ते दामों वो ऑयल मिल खरीदी और उसको कॉटन मिल में कन्वर्ट करके चलाने लगे उस मिल को अलेक्जेंड्रा का नाम दिया गया दो सालों के बाद उन्होंने व मिल जो नुकसान में जा रही थी उसको प्रॉफिट में बेचा और एक नए मैन्युफैक्चरिंग प्लांट जितने पैसे जमा कर लिए उस वक्त बॉम्बे कॉटन
की मार्केट का घड़ था जिसको कॉटन ऑपोलिस ऑफ इंडिया भी कहा जाता था जमशेद जी का ताल्लुक खुद भी बंबे से ही था लेकिन इसके बावजूद भी उन्होंने अपनी नई कॉटन मिल बम्बे से 770 किमी दूर नागपुर में एस्टेब्लिश की इस नई मिल को एंप्रेस मिल का नाम दिया गया जिस पर बम्बे के लोगों ने उनको कॉटन की मार्केट से इतना दूर मिल बनाने पर बहुत ताने भी दिए किसी को भी यह समझ नहीं आ रहा था कि जब बम्बे कॉटन की मार्केट का हब है तो जमशेद जी ने नागपुर में मिल क्यों एस्टेब्लिश की
पर वक्त ने साबित किया कि जमशेद जी का यह फैसला बहुत अच्छा था पहला यह कि रॉ मटेरियल यानी कि कॉटन की फसलें ज्यादातर नागपुर के करीब होती थी जिसकी वजह से रॉ मटेरियल की सप्लाई का इनको कोई मसला नहीं होता था दूसरा रीजन था वटर सप्लाई कॉटन को कपड़ा बनाने के प्रोसेस के दौरान बहुत सारा पानी चाहिए होता है और नागपुर के पास कई रिवर्स और लेक्स हैं जिनकी वजह से पानी की सप्लाई का भी मसला नहीं था तीसरा रीजन था मजदूरों की अवेलेबिलिटी क्योंकि बम्बे जैसे शहरों में मजदूरों की डिमांड ज्यादा थी इसी
वजह से वहां अक्सर मजदूरों की शॉर्टेज रहती थी और शहर में कॉस्ट ऑफ ज्यादा होने की वजह से वहां पर उनका रेट भी ज्यादा होता पर नागपुर में बेरोजगारी ज्यादा होने की वजह से यहां रेट बहुत कम थे और अवेलेबिलिटी ज्यादा अब क्योंकि इस एरिया में पहले कोई कॉटन मिल नहीं थी इसी वजह से वहां के मजदूर ज्यादा ट्रेंड नहीं थे उन पर बहुत मेहनत करने की जरूरत थी जमशेद जी ने देखा कि वर्कर्स काम पर ज्यादा ध्यान नहीं देते बाद बात पर छुट्टी कर लेते हैं और ज्यादातर दिनों में ऐसा भी होता था कि
20 पर से ज्यादा वर्कर छुट्टी पर होते थे यह बात जमशेद जी टाटा को बहुत परेशान किए रखती थी लेकिन उन्होंने इस मसले के सलूशन के लिए आज से 150 साल पहले एक ऐसा तरीका अपनाया जो आज के मॉडर्न एरा में भी तसव्वुर करना मुश्किल दिखाई देता है उन्होंने वर्कर्स को डांटने उनकी सैलरीज काटने के बजाय उन्हें मजीद फैसिलिटी देने का फैसला किया उन्होंने एक ऐसी स्कीम इंट्रोड्यूस की कि उनकी फैक्ट्रीज के तमाम वर्कर्स को रिटायरमेंट के बाद पेंशन भी मिलेगी उनकी मेडिकल इंश्योरेंस भी की गई और उनकी एंटरटेनमेंट के लिए स्पोर्ट्स डे और फैमिली
डेज भी रखे गए ज्यादा बेहतर परफॉर्म करने वाले वर्कर्स को सबके सामने इनाम भी दिया जाता था यानी यह सब कुछ आज के दौर में तो समझ आता है लेकिन उस दौर में ऐसा करना किसी ख्वाब से कम नहीं था और मजे की बात यह कि उनकी यह स्कीम काम भी कर गई वर्कर्स खुद को वैल्यूड फील करने लगे वह कंपनी को अपनी कंपनी समझकर काम करने लगे जमशेद जी का मानना था कि इंडिया को मजबूत बनाने के लिए हर चीज का इंडिया में ही मैन्युफैक्चर होना बहुत जरूरी है और अपना यही मिशन लिए वह
कोशिश करते गए उन्होंने मजीद कंपनीज लगाना शुरू कर दी उस वक्त सिल्क बहुत प्रीमियम कपड़ा समझा जाता था और उसमें सबसे ए क्लास सिल्क फ्रांस से इंपोर्ट होता था फ्रेंच सिल्क वर्म पूरी दुनिया में बेहतरीन सिल्क प्रोड्यूस करने के लिए जाने जाते थे जमशेद जी फ्रांस गए और वहां से फ्रेंच सिल्क वर्म की ब्रीड इंडिया में लेकर आए लेकिन मसला था कि यह सिल्क वर्म सिर्फ यूरोप के क्लाइमेट में ही अच्छी प्रोडक्शन देने की काबिलियत रखते थे इंडिया में उनका सरवाइव करना काफी मुश्किल था लिहाजा उन्होंने बेंगलोर में एक सिल्क फर्म एस्टेब्लिश किया जहां का
क्लाइमेट इस खास सिल्क वर्म के लिए काफी बेहतर तो था लेकिन परफेक्ट नहीं था शुरुआत में उनको काफी मुश्किलात का सामना करना पड़ा जैसा कि फ्रेंच सिल्क वर्म में अक्सर बीमारियां फूट पड़ती थी इन मसलों को फिक्स करने के लिए पहली बार कंट्रोल्ड एनवायरमेंट में सिल्क वर्म की फार्मिंग का कांसेप्ट भी जमशेद जी टाटा ही लेकर आए खुशकिस्मती से यह एक्सपेरिमेंट काम कर गया और इस तरह जमशेद जी ने टाटा सिल्क की सूरत में इंडिया को बेहतरीन सिल्क बनाने के काबिल बना दिया आज इंडिया दुनिया के सबसे बड़े सिल्क प्रोड्यूसर्स में से एक है और
यह सब उन पहले एक्सपेरिमेंट्स इनोवेशंस और रिसर्च की वजह से मुमकिन हो पाया है उस वक्त इंडिया में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और फ्रेंच ईस्ट इंडिया कंपनी का राज था जमशेद जी ने फ्रेंच ईस्ट इंडिया कंपनी को टारगेट किया और 1885 में पॉन्डिचेरी में एक कंपनी बनाई जिसका मकसद सिर्फ और सिर्फ इंडियन टेक्सटाइल्स को फ्रेंच कॉलोनी के बीच इंट्रोड्यूस कराना था लेकिन यह आइडिया कम डिमांड की वजह से कामयाब नहीं हुआ कॉटन के अलावा वह अपना नेटवर्क और भी बढ़ाना चाहते थे वह चाहते थे कि इंडिया में जो भी चीजें इस्तेमाल होती हैं वो पूरी
तरह इंडिया में ही मैन्युफैक्चर हो उनके टोटल चार ख्वाब थे आयरन और स्टील की मैन्युफैक्चरिंग होटल एजुकेशन और हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्लांट पर सिर्फ होटल ही वह ऐसा सपना था जिसको वह पूरा होते देख पाए और यह था द ताजमहल होटल जो 1903 में कंप्लीट हुआ था जब ताज महल होटल पहली बार खोला गया तो यह इंडिया का पहला होटल था जिसमें इलेक्ट्रिसिटी कनेक्शन था इसके अलावा अमेरिकन फैंस जर्मन एलीवेटर्स और टर्किश बाथ भी इसमें इंस्टॉल किए गए शुरुआत में ताजमहल होटल के रूम्स का रेंट सिर्फ ₹ हुआ करता था जिसमें अटैच बाथरूम भी शामिल था ताजमहल
होटल खोलने के पीछे क्या वजह थी इसके बारे में कई कहानियां मशहूर हैं कहा जाता है कि एक बार जमशेद जी को बंबई के मशहूर वाटसंस होटल जिसको आज एस्प्लेनेड मेंशंस भी कहा जाता है में जाने की परमिशन नहीं मिली क्योंकि वो सिर्फ ब्रिटिशर्स के लिए बनाया गया था इसी वजह से उन्होंने ताजमहल होटल बनाने का फैसला किया लेकिन इस कहानी को चार्ल्स एलन नामी एक राइटर ने झूठा करार दिया और लिखा कि जमशेद जी इतनी छोटी सी बात को दिल पर नहीं ले सकते थे बल्कि उनको अपने शहर बंबे से काफी लगाव था और
वह अपने होम टाउन को एक गिफ्ट देना चाहते थे ताजमहल होटल को इस तरह से डिजाइन किया गया कि उसके हर रूम से समंदर का नजारा इस तरह दिखाई दे कि ऐसे मालूम हो कि होटल समंदर के ऊपर फ्लोट कर रहा है उस दौर में ब्रिटिशर्स तेजी से पूरे ब्रिटिश इंडिया में रेलवे नेटवर्क बिछा रहे थे जिसमें लगने वाला हजारों लाखों टन लोहा ब्रिटेन से इंपोर्ट किया जाता था जमशेद जी का ख्वाब था कि वह इंडिया में ही स्टील मैन्युफैक्चर करें इसके चलते उन्होंने पूरे भारत में स्टील बनाने के लिए आयरन रिजर्व्स को ढूंढना शुरू
कर दिया 17 साल तक यह तलाश जारी रही और बिल आखिर बंगाल में आयरन रिजर्व्स मिल गए 18995 पर स्टील प्लांट का आगाज कर दिया गया लेकिन बदकिस्मती से स्टील बनते हुए देखना जमशेद जी के नसीब में नहीं था 1904 में जमशेद जी की डेथ हो गई और उनके अधूरे मिशन को आगे बढ़ाने के लिए उनके बेटे दोराबजी टाटा को मैदान में आना पड़ा इसी मिशन को आगे बढ़ाते हुए 1907 में आयरन एंड स्टील कंपनी एस्टेब्लिश कर दी गई जिसे आज टाटा स्टील के नाम से जाना जाता है यह एशिया का सबसे पहला स्टील प्लांट
था और वर्ल्ड वॉर व में इसी प्लांट के जरिए ब्रिटिशर्स ने अपनी स्टील्स की डिमांड को पूरा किया दोराबजी टाटा की सरब में टाटा ग्रुप मजीद तेजी से तरक्की करने लगा 1910 में में टाटा पावर के नाम से इंडिया की पहली हाइड्रो इलेक्ट्रिक कंपनी एस्टेब्लिश कर दी गई जहां पर नेचुरल वॉटरफॉल्स और आर्टिफिशियल लेक्स की मदद से इलेक्ट्रिसिटी जनरेट होने लगी और कई बड़ी इंडस्ट्रीज को इसी पावर प्लांट की तरफ से इलेक्ट्रिसिटी सप्लाई करना शुरू कर दी गई उस वक्त क्योंकि साइंस पूरी दुनिया में तरक्की कर रही थी और टाटा ग्रुप इंडिया को किसी सूरत
पीछे नहीं देखना चाहता था इसीलिए उन्होंने इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस बेंगलोर की बुनियाद रखी ताकि साइंस और रिसर्च की फीड में दुनिया का मुकाबला किया जा सके और इसी इंस्टिट्यूट ने इंडिया को अपना पहला कंप्यूटर और पहला एयरक्राफ्ट बनाने में काफी मदद भी की टाटा ग्रुप खुद ही तरक्की नहीं कर रहा था बल्कि वह वर्कर्स के लिए ऐसी फैसिलिटी ला रहा था जिसे दुनिया में कोई भी और कंपनी नहीं अपना रही थी वर्कर्स की शिफ्ट को ठ घंटे तक महदूद किया गया ताकि वह जल्दी फारिग होकर घर वापस जाएं और अपनी फैमिलीज के साथ वक्त
गुजारे और आज टाटा की यह पॉलिसी जो आज से 100 साल पहले इंट्रोड्यूस करवाई गई थी पूरी दुनिया में काम कर रही है यहां दोराबजी टाटा की जिंदगी को भी फुल स्टॉप लग गया 1932 में उनकी डेथ हो गई लेकिन इन 28 सालों में उन्होंने टाटा ग्रुप को स्टील पावर साइंस और कई दीगर चीजों से नवाजा था राप जी के बाद टाटा ग्रुप की जिम्मेदारियां उनके एक फैमिली मेंबर जेआरडी टाटा के हाथों में आ गई जेआरडी टाटा एविएशन में एक्सपीरियंस रखते थे इसीलिए कंट्रोल संभालते ही उन्होंने इरादा कर लिया कि वह इंडिया को अपनी एयरलाइन
देंगे जेआरडी टाटा ने टा एयरलाइंस की बुनियाद रखी जो किसी इंकलाब से कम नहीं था भारत को अपनी एयरलाइन मिल चुकी थी जिसकी पहली फ्लाइट को खुद एज अ पायलट जेआरडी टाटा ने उड़ाया और इंडिया के फर्स्ट कमर्शियल पायलट होने का एजाज भी अपने नाम किया लेकिन 1947 में इंडिपेंडेंस मिलने के बाद इंडिया में मौजूद काफी इंडस्ट्रीज को इंडियन सरकार ने अपने कंट्रोल में ले लिया जिसमें टाटा एयरलाइन भी थी और इसका नाम बदलकर एयर इंडिया रख दिया गया अब बारी थी केमिकल इंडस्ट्री की जेआरडी टाटा ने महसूस किया कि भारत में केमिकल इंडस्ट्रीज तो
मौजूद हैं लेकिन उनको अपने काम पूरे करने के लिए ज्यादातर इंपॉर्टेंट केमिकल्स दूसरी कंट्री से इंपोर्ट करने पड़ते हैं जैसा कि ग्लास साबुन और सर्फ जैसे प्रोडक्ट्स बनाने के लिए कास्टिक सोडा और सोडा ऐश की जरूरत थी मगर यह केमिकल्स इंडिया में प्रोड्यूस नहीं किए जाते थे उनको दूसरे मुल्कों से इंपोर्ट किया जाता इसी वजह से 1939 में टाटा केमिकल्स के नाम से एक कंपनी खोली गई जो इंडिया के लिए तमाम केमिकल्स खुद प्रोड्यूस करती थी इस कंपनी ने फर्टिलाइजर और दूसरे सेक्टर्स में इंडिया को ग्रो करने में काफी मदद की उसके बाद एक बार
फिर से जेआरडी टाटा ने ट्रांसपोर्टेशन का रुख किया ट्रक्स और इंजंस बनाने वाली एक कंपनी की शुरुआत की जिसे आज हम टा मोटर्स के नाम से जानते हैं टा मोटर्स कई मॉडल्स की कार्स ट्रक्स और दूसरी व्हीकल्स बनाता है टा m आज भी इंडिया की मोटर इंडस्ट्री में एक बड़ा नाम है और यहां से गाड़ियां साउथ अफ्रीका भी भेजी जाती हैं उसके बाद 1960 में जब कंप्यूटर्स और टेक्नोलॉजीज की तरफ दुनिया बढ़ने लगी तो टा ग्रुप भी पीछे ना रहा उन्होंने इंडिया की सबसे पहली सॉफ्टवेयर और आईटी कंपनी टीसीएस यानी टा कंसल्टेंसी सर्विस बना दी
1984 में जेआरडी टाटा ने महसूस किया कि भारत में लोग चाय बहुत शौक से पीते हैं इसीलिए टा ग्रुप ने चाय की डिमांड मा मांड को पूरा करने के लिए भी कदम उठाया उन्होंने टाटा टी के नाम से एक कंपनी शुरू की और वह कंपनी दुनिया की चाय बनाने वाली कंपनीज में आज तक एक बड़ा नाम है इसके साथ-साथ जेआरडी टाटा अब बूढ़े हो चुके थे इसीलिए उन्होंने बिजनेस की कमांड संभालने के लिए अपनी जिंदगी में ही अपने एक फैमिली मेंबर को यूएसए से इंडिया बुलाया यह फैमिली मेंबर कोई और नहीं बल्कि सर रतन टाटा
थे शुरुआत में रतन टाटा को सिर्फ टाटा स्टील में जिम्मेदारियां दी गई और उन्होंने टाटा स्टील को लॉस से निकालकर प्रॉफिट तक लाभ पहुंचाया जेआरडी टाटा बहुत इंप्रेस हुए और इसी वजह से उन्होंने 1991 में रतन टाटा को टाटा ग्रुप का चेयरमैन बना दिया रतन टाटा क्योंकि मॉडर्न एरा के आदमी थे इसीलिए वह हर चीज में टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करना चाहते थे उन्होंने चेयरमैन बनते ही यह सोचा कि टाटा मोटर्स कार्स और ट्रक्स तो बनाता ही रहा है लेकिन आज भी कोई एक ऐसी गाड़ी नहीं है जिसकी कंप्लीट मैन्युफैक्चरिंग इंडिया में होती हो यानी कुछ
ना कुछ पार्ट्स बाहर से इंपोर्ट करने ही पड़ते थे इसीलिए टा मोटर्स ने एक नया कार मैन्युफैक्चरिंग प्लांट लगाया और 1998 में इंडिया की पहली कार इंडिका को लॉन्च किया गया टीसीएस जो सिर्फ पहले बेसिक डाटा एंट्री और मैनेजमेंट का काम करती थी उसे सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट पर शिफ्ट कर दिया गया और उसे दुनिया की लीडिंग सॉफ्टवेयर कंपनीज की लिस्ट में ला खड़ा किया रतन टाटा के अंडर टाटा ग्रुप ने दुनिया के मशहूर ब्रांड्स को खरीद ना शुरू कर दिया टाटा ने उस वक्त की मशहूर टी कंपनी टेटले टी को एक्वायर कर लिया टाटा स्टील ने
कोरस ग्रुप को और टाटा मोटर्स ने jaguar.com टाटा ग्रुप आज भी तेजी से तरक्की कर रहा है और जिंदगी के हर शबे में सिर्फ इंडिया ही नहीं बल्कि दुनिया भर के लोगों के लिए अपना किरदार अदा कर रहा है यह किसी एक शख्स की मेहनत नहीं बल्कि 150 साल तक कई लोगों के खून पसीने का नतीजा है उम्मीद है जम टीवी की यह वीडियो भी आप लोग भरपूर लाइक और शेयर करेंगे आप लोगों के प्यार भरे कमेंट्स का बेहद शुक्रिया मिलते हैं अगली शानदार वीडियो में