प्रश्न पूछ रही है सात चक्र जो हमारे शरीर में है क्या भक्त को इन पर कुछ ध्यान करने की आवश्यकता होती है हमारे सब कुछ ध्यान का विषय गौर वण सावल चरण रच मेहंदी के रंग तीन तरु अनतर लुटत रहे रति जुत कोट अन यह सत खट चक्र भेदन करना यह सब ज्ञानियों का विषय योगियों का विषय हम जिस मार्ग के पथिक है उस मार्ग से चले बहुत मतलब अगर हम बुद्धि को दौड़ा जाएंगे तो पार नहीं पाएंगे नैटक ब्रह्मचर्य के समय यह साधना गुरु कृपा से कुछ दिन करने का अवसर मिला कि कुंडलिनी जागरण
का अगर कुंडलिनी जागरण के समय थोड़ी भी चूक हो गई और उसका मुख नीचे को हो गया तो महान व्यभिचारी भ्रष्ट हो जाएगा यह कोई साधारण खेल थोड़ी है जरा सी चूक हुई कि हालत बिगड़ जाएगी प्राण वायु बिगड़ी की हालत बिगड़ जाएगी काहे को मतलब और फल क्या है उसका उसका फल क्या है अगर संपूर्ण आप चक्रों का भेदन करके ब्रह्मंद का भेदन तो आप मुक्त हो गए और यहां मोक्ष कड़वी लगती है ऐसा महासुख है गौर वण सावल चरण रच मेहंदी के रंग तिन तरु अंत लुटत रत जुत कोटि रंग भटको मत राई
के सम चलत होत और की ओर हमें सिर्फ प्रिया प्रीतम से मतलब है अपने से भी नहीं ये चक्र चक्र से भी मतलब नहीं है हमें सिर्फ प्रिया प्रीतम से मतलब है हमारे मार्ग में मैं का विस्मरण करके प्रिया प्रीतम में तन्मय हो जाना उनके चिंतन में उनकी लीला में उनके गुण में सब अपने आप हो जाता है जो दिव्यता है ना वो अपने आप जागृत हो जाती है इधर उधर भटके नहीं साधक नहीं तो बहुत बड़ा जंगल है फिर निकलना मुश्किल हो जाता है रूप किशोर शरण जी महाराज जी आपने कहा है मुझसे गुरु
अपराध बन रहा है कि सुबह नियम के अनुसार 4 बजे उठ नहीं पा रहा हूं इसलिए आपके दंड का अधिकारी हूं और आपसे जल्दी उठने के लिए बल की लिए प्राथ हम सुबह आक तुम्हें रोज तो उठाएंगे नहीं अब उसके लिए आपको ही नियम लेना होगा और वह यह सब दंड की बात इस सम नहीं है इसमें हमें व्याकुलता लानी चाहिए कि 4 बजे उठना कोई आश्चर्य वाली बात थोड़ी आश्चर्य की बात है डेढ़ दो बजे उठना आश्चर्य 11 बजे सोए ढ़ बजे उठ गए उसमें तो थोड़ा लगता है कि आश्चर्य है 4 बजे उठना
कोई आश्चर्य की बात है 4 बजे तक तो न जाने कितना भजन हो जाता है साधकों का एक साधक है तीन 3:30 बजे परिक्रमा हो जाती है वृंदावन के गृहस्थ है अब आप 4 बजे उठने के यह तो आपको संकोच होना चाहिए आपको जलन होनी चाहिए कि मैं 4 बजे नहीं उठ पाता इसके लिए आपको सावधान होना पड़ेगा ना आपको जलन पैदा करनी पड़ेगी आपका संकल्प दृढ़ होना चाहिए मुझे चार बजे उठना है ढिलाई नहीं करना चाहिए ढिलाई करने से बात नहीं बनती नींद ही नहीं आएगी अभ्यास हो जाए ना तो फिर नींद नहीं आती
नींद से जो इंद्रियों को पुष्ट मिलती है वह उससे कई गुना बढ़कर पुष्ट भजन से मिल जाती है पर अभी तक भजन का हमारे अंदर भाव नहीं आया ना इसलिए ऐसा है नहीं तो ऐसा भी कई बार होता है कि नींद जैसे नहीं आई तोसे शांत बैठे हुए तो इंद्रियों को बल मिल जाएगा नाम चिंतन से जन से वो बल मिल जाएगा वो ऐसा नहीं होगा कि 10 दिन नींद नहीं आई तो आप विक्षिप्त हो जाए ऐसा नहीं होगा आनंदमय स्थिति बनी रहेगी और एक नशा चढ़ेगा नाम का तो थोड़ा समय से थोड़ा और पतले
बनने की कोशिश करो थोड़ा मोटाई बढ़ रही इसलिए नींद आती इसका भी है प्राण स्थूल होना शरीर बहुत मोटा हो जाना इससे क्या है कि नींद आदि प्रमाद आदि स्थितियां आती है सुखा हो कई बार भोजन पाते हो हां तो ब्रह्मचारी भी हो हो ना ये संशय भी नहीं शर्माओ मत अपने सब घर के हैं मराज जी मैं कोशिश करता हूं महाराज जी आपके बल से नहीं आपके द्वारा कोई चेष्टा नहीं होनी चाहिए चेष्टा होना और स्वाभाविक होना इसमें अंतर है स्वाभाविक में कोई बंधन नहीं है जैसे आप सो गए आपकी कोई ऐसी लीला हो
गई इसलिए बंधन नहीं कि हमारा बंधन है क तत्व और भोग तत्व भाव सूक्ष्मता से समझना अब हमने किया नहीं संकल्प किया नहीं कोई चेष्टा की नहीं कुछ भी हो रहा तो नाशवान शरीर तो ऐसे ही होता रहेगा सड़ेगा गलेगा मरेगा इसके प्रति नहीं जो हम इसको लेकर कर रहे हैं इसको लेकर जो आनंद वृत्ति बना रहे हैं यह हमारे बंधन का कारण साधक उसमें चिंतित ना हो किव सो रहा है कुछ ऐसा तो उसमें कोई विशेष क्योंकि हमारा बंधन है कर तत्व और भोग तत्व आपने किया उसका सुख लिया यह बंधन का कारण इस
पर सुधार कर लीजिए और इसको मतलब देख लीजिए जहां आपसे त्रुटि हो र और थोड़ा उपवास की तरफ दृष्टि रखिए कम भोजन पाइए तो बहुत जल्दी ज्यादा शरीर को अपना ना माने निरपेक्ष उचित भोजन उचित वस्त्र इसके बाद कड़ा शासन देखो जब पता चल जाए कि यह नौकर भागने वाला है तो मालिक चतुर क्या करता है उसे डट के काम कराता है भाग तो जाएगा ही जितना करवा लो ऐसे ही जब पता चला कि मरेगा मरे गए छोड़ेगा हमें अब डट के इससे काम ले लो खूब रात रात जागकर खूब भजन खूब तपस्या ब्रह्मचर्य संयम
नियम काम बन गया अपना काम बन गया ये नौकर है इससे काम बनाना है लेकिन यह नौकर ऐसा नौकर है अगर चूक गए तो मालिक को नौकर बना के ये हमें फसाए हुए नहीं फसाए मुझे यह देखना है मुझे यह छूना है मुझे सूंघना है मुझे ये करना है और जीव पागल बना हुआ परेशान बादशाह मंत्री की सलाह में फंस करके नौकर बना हुआ है जीव बादशाह है भगवान का सचेतन अमल सहज सुख रासी भाई शरीर से थोड़ा दंड बैठक मारो थोड़ा प्राणायाम व्यायाम करो ब्रह्मचर्य रो भगवान ने आपको अवसर दिया है खानपान थोड़ा कम
करो थोड़ा सुखा इसको सूखने दो थोड़ा सूखना चाहिए तभी बात बनेगी कोई रोग तो है नहीं हां तो बस उचित भोजन पाओ ज्यादा मतलब घी डाल के मत पाओ ऐसे थोड़ा रूखी सूखी दाल रोटी पाओ भजन करो प्रभु के गुण गाओ ब्रह्मचर्य हो तो क्या परेशानी है ब्रह्मचारी को ज्यादा पौष्टिक आहार पाना मतलब जहर है नमक रोटी पाओ जिससे आपका ब और ब्रह्मचर्य ही महाबल है सच्ची मानिए शरीर बल भी और अध्यात्म बल भी दोनों ब्रह्मचर्य से पुष्ट होते हैं ब्रह्मचर्य नष्ट होने पर अध्यात्म बल और शरीर बल दोनों नष्ट हो जाते हैं देखो आप
जिस दिन ब्रह्मचर्य आपका क्षीण हो देखो आपका उत्साह नष्ट हो जाएगा साधन भजन में महीना दो महीना चार महीना आप ब्रह्मचर्य के देखो आप में बिजली आ जाएगी आसन में बैठने का दौड़ने का भागने का एक उत्साह जागृत होए ब्रह्मचारी बहुत अमृत है पर संसारी जी इस बात को समझते नहीं हैं बोले अगर सब ब्रह्मचारी रहेंगे तो फिर सृष्टि कैसे चलेगी ऐसे ही प्रश् मतलब सृष्टि इन्हीं से चल रही है ब्रह्मा के बाद दूसरे ब्रह्मा यही है ऐसे नहीं ब्रह्मचर्य रहो और सृष्टि संचालन के लिए आप सहवास करो फिर देखो कैसे सृष्टि चलती है कोई
फर्क नहीं पड़ने वाला आप ब्रह्मचर्य रहिए और समय पर आप देखिए तो आपकी संतान भी बलवान होगी और कोई फर्क आप में नहीं पड़ेगा परिपक्व फसल अब यहां अभी गेहूं की बाली भी नहीं बन पाई है और कैसे वो भुसा भी नहीं सही हो पा रहा है अगर फसल गेहूं की वह किसान जानते हैं गले में आने के पहले ही काट दी जाए तो ना ठीक से भुसा होगा दाने की तो बात ही नहीं तो अपने लोगों का जीवन ऐसे ही हो रहा है कि फसल परिपक्व हो नहीं पा रही और उसको काट देते हो
तो वह किसी काम का जीवन नहीं रह जाता है सावधान रहो पहला आज के प्रश्न का उत्तर भोजन पर आप तुरंत शासन कीजिए थोड़ा भोजन पाइए और व्यायाम थोड़ा दंड बैठक लगाइए थोड़ा प्राणायाम की जरूरी है दुनिया की बात मत मानो यह भी भजन है 10 15 20 मिनट दंड बैठक लगाई इसके बाद 24 घंटे साधन में लगे यह भजन है अगर शरीर की तरफ आप थोड़ा ध्यान दे दे तो यह आपको भगवत प्राप्ति यावत स्वस्थ मदम गृह कलेवर यह जरूरी है शरीर को मतलब एकदम परमार्थ का एक बहादुर होता है कोई साधारण थोड़ी होता
है तो थोड़ा यह भी होना चाहिए थोड़ा दंड बैठक मारे प्राणायाम व्यायाम आधा घंटा एक घंटा नाम जप करते हुए करें 24 घंटे पड़े हुए हैं खूब साधन और वो मेहनत में नहीं गिना जाता जैसे प्राणायाम व्यायाम है लोग समझते हैं कि फिर हमें काम ही तो करना है नहीं वो अलग है चाहे जितना कार्य हो वो एक अलग है दिनचर्या यह जरूर होनी चाहिए जो साधक परमार्थ में ब्रह्मचर्य से चलना चाहता है या जो गृहस्थ सत मार्ग में चलते ते हुए गृहस्ती धर्म निर्वाह करना उसे 15-20 मिनट तो व्यायाम प्राणायाम करना ही चाहिए जरूरी
है जरूरी इस पर कोई ध्यान नहीं दे रहा है अरे थोड़ा तो समझ में आना चाहिए कि हां भाई आप थोड़ा तो मतलब चाहे गृहस्थ हो चाहे विरक्त थोड़ा तो इसमें फिर भजन मार्ग में चलो देखो ऋषियों को देखो पहले लगी हुई लंगोटी है केवल लंगोटी लगी स्वस्थ शरीर चाहे जितनी गर्मी सर्दी सब उसे सह रहे समझना ऐसे ही सही माने में परमार्थिक साधक को पहले अपने परमाणु बलवान करने चाहिए और हम ऐसी जगह जहां लगे हैं प्रपंच आदि में वहां हमारे वह परमाणु हमें बिगड़ने ना दे इतने हम अपने परमाणु बनाए इतने हम ऊर्जा
शक्ति इतना हम भजन बल रखे कोई फर्क नहीं पड़ता कोई फर्क नहीं अगर हम कह रहे हैं आप संयमी हो और आपको वैश्यालय में सेवा मिले कि यहां झाड़ू लगाना यही रहना यही गेट में खड़े होना कोई फर्क नहीं पड़ता आपका लक्ष्य दृढ़ होना चाहिए इतना कमजोर परमार्थ का साधक नहीं होता कि भाई ये प्रपंच यहां प्रपंच भरा यहां यहां का खाली कर दो चाहे जहां चलो कई प्रपंच नहीं जो रहीम उत्तम प्रकृति का कर सकत को संग चंदन विष व्यापत नहीं लपटे रहत भुजंग पक्का समझो बच्चा अपने आप को पुष्ट करना है थोड़ा आगे
बढ़ो भजन करो संयम से चलो ब्रह्मचर्य से रहो ब्रह्मचर्य रहो अपने आप आपके अंदर परमाणु आ जाएंगे लड़ने के हर समय उत्साह होता है तुम कैसे छाती मतलब जैसे बिजली नहीं दौड़ती ऐसे दौड़ती कौन सा विषय परा कर सकता है सिंह की तरह हर समय दिल ऐसे धड़कता रहता है हर बीमारी हर विकार हर प्रतिकूलता से लड़ने के लिए उत्साह रहता है क्यों रहता है जैसे दंड बैठक मारो घी दूध पियो खूब व्यायाम करो तो तुम्हारा मन होगा हर हर आदमी को बलिष्ठ को देख के लगेगा अगर 10 मिनट एकांत में मिले तो अब इससे
भेड़ के देखे अब जब बाजू में बल नहीं है तो हर जगह ऐसे हो गए नाम बल बढ़ाओ भजन बल बढ़ाओ संयम बल बढ़ाओ शेर की तरह पूरे संसार में घूमो कुछ हो नहीं सकता हम कैसे बिल्ली बन रहे हैं हमारा स्वामी सच्चिदानंद परम सामर्थ्य शली भगवान और उसका बच्चा मैं और रो रहे किल्ला रहे हैं अशांत हो रहे हैं परेशान हो रहे अज्ञान के कारण अपने स्वरूप की तरफ आइए संयम इस शरीर में इतना फस गए पूछो मत क्या दुर्दशा कर रहे हो आप अपनी वही समझ में नहीं आ आप अपनी दुर्दशा कर रहे
हो आपको शरीर मिला भगवत प्राप्ति के लिए आप उसे धर्म विरुद्ध विषय भोग करर उसे नष्ट कर रहे हैं आप परेशान बोलो आपको क्या परेशानी है व आप परेशान है कोई परेशानी नहीं परेशान दिमाग की परेशान देखो परेशान है रात दिन कह रहा है हमारा मन हमको परेशान कि अगर भजन करो तो घोर हमें पता है कि आगे आगे क्या कदम आने वाले हैं लेकिन आनंद है इसका जो दुर्गति होनी वो मुझे पता है मुझे आनंद है उस विषय में मेरे प्रभु के द्वारा दिया हुआ हर प्रसाद मुझे स्वीकार है क्योंकि मुझे पता है कि
मुझे कभी ये छू नहीं सकते और इसे हम अब छूने लायक नहीं है कि इस गंदगी को छुए ये गंदगी है अगर इसको छुओ ग तो फंस जाओगे दूरी बना के रखो इससे व आप दूरी बनाना जान नहीं पाए इसलिए परेशान है संभल जाओ बहुत बढ़िया अवसर है जितने से काम चल रहा है अगर काम चल रहा है तो डट के बैठ के भजन करो अगर नहीं चल रहा तो आठ घंटे कोई नौकरी कर लो उससे जो अर्थ मिले माता-पिता और शरीर की सेवा करो खूब भजन आनंद रहो भरोसा श्री आचार्य गुरुदेव इष्ट का तो
कोई ऐसा नहीं कि हमारा परमार्थ बिगड़ जाएगा सावधानी पूर्वक चलो य परलोक सकल सुख पावत मेरी सो भैया कृष्ण गुण संच ठीक है डायरी में लिखो आज के प्रवचन मुझे कम भोजन करना है रोज 20 मिनट व्यायाम करना है मुझे ब्रह्मचर्य खंडन करने वाली कोई चेष्टा नहीं करनी है मुझे हर समय नाम जप करना है नौकरी करते हुए भी भगवत विस्मरण नहीं होने देना अभी महात्मा बन जाओगे महात्मा का मतलब केवल से नहीं है महात्मा का मतलब हृदय से है अगर हृदय हमारा प्रभु के चिंतन में है तो हम महात्मा देखो प्रभु विभीषण जी से
कह रहे हैं महामंत्री हैं विभीषण रावण के महामंत्री हैं और वैसे भाई भी है कह रहे तुम सारी खे संत प्रिय मोरे धरम देह नहीं आन विभीषण जी तुम्हारे जैसे संत ही हमें परम प्रिय तुम जैसे संतों के कारण ही हम अवतार धारण करते हैं अब विचार करो ना लाल पहले ना पीला पहरे ना कोई वैरागी धारण वेश धारण किए हुए महामंत्री है रावण के महामंत्री रावण के अनुज है छोटे भाई हैं लेकिन इतना प्रेम भगवान से कि भगवान कहे तुम सारी केे संत प्रिय मोरे वो हर कोई बन सकता है भेष से ही थोड़ी
मतलब है आप इस भेष में रहते हुए आप गृहस्थ में रहते हुए आप स्त्री या पुरुष जो भी शरीर उसमें रहते हुए आप सर्व तंत्र स्वतंत्र भगवान को अधीन कर सकते हो बस इतने हम खत्म हो चुके हैं शरीर राग में कि हमारे अंदर उत्साह ही नहीं रह गया बैठे-बैठे प्रिया प्रीतम का जहां चिंतन होना चाहिए तहां विषयों का चिंतन शरीर का चिंतन थोड़े दिन बाद डिप्रेशन में पहुंच जाएगा दवाइयां खाएगा नींद की गोलियां खाएगा थोड़ी देर बाद वह काम करना बंद कर देंगी मरणासन तक पहुंच गया जी दुर्दशा यही तो हो रही डायरी में
लिखो वैसे ही चलो जैसे कह रहे दो महीने में आपका चैप्टर बदल जाएगा दो महीने ठीक से ब्रह्मचर्य रहिए और ठीक से साधन कीए तो आपको देखिए प्रसन्नता की लहर आने लगेगी जब हम सत मार्ग में चलते हैं तो भगवत विधान से आनंद आने लगता है और जब हम धर्म विरुद्ध चलते हैं तो चाहे जितने ज्ञान बारो अंदर जलो ग क्योंकि वो विधाता ऐसा विधान रचे कि आप फंसे रहोगे आप बेमतलब अपने आप में अपने आप से जलो ग दूसरा कोई जलाने वाला नहीं अगर अपने आप में आनंदित हो तो पूरा विश्व निंदा करे पूरा
विश्व खिलाफ हो पूरा विश्व उसका विरोधी हो कुछ नहीं बिगड़ने वाला विश्वपति है हिरण कश्यप पाच वर्ष का बालक प्रहलाद क्या बिगाड़ लिया विश्वपति है कोई त्रिभुवन में नहीं कि उसके सामने खड़ा हो सके हिरण कश्यप अगर कोई खड़ा हो सकता है तो सिर्फ हरि किसी की ताकत नहीं सामने पाच वर्ष के बालक से भयभीत हो गया सोचने लगा किय मरेगा कैसे मुझे लगता है मेरी मृत्यु यही बनेगा यह देखो भगवन नाम का प्रताप हम लोग किसके सेवक हैं विचार करो हमारे पास इतना बड़ा बल है नाम हम उसको तो भूले हुए हैं इतना बड़ा
बल है भगवत आश्रय हम उसको भूले हुए हैं अरे सिंह की तरह दहाड़ कोई तुझे छू नहीं सकता सीम की चाप सक को तासु बड़ रखवार रमापति जासु छाती तान के चल अंदर से भगवत स्मरण में मगन यह हमारी दुर्दशा क्यों हो रही है भगवत विमुख होने के कारण भगवत सन्मुख में कैसे तुम्हें बताए यह थोड़ी कि हम आज तुम्हारे सामने बोल रहे 13 वर्ष के थे तब से निकले सिं की तरह रहे कभी ऐसा नहीं हो कि बाबू जी भूखा हूं कभी नहीं जिंदगी में नहीं कभी ऐसे नहीं हर समय नजर बिल्कुल जिसके बल
पर उसी के बल से आज कह रहा हूं तुम उसी के बल से बलवान हो सकते हो अभी इसी क्षण केवल भरोसा कर लो क्या दिक्कत करनी इतना वो चिल्ला के कह रहे योगक्षेम में हम भरोसा नहीं हो रहा वो कह तसा महम समुद धरता मृत्यु संसार सागरात भरोसा नहीं हो रहा वो कह रहे नामे भक्ता प्रणति भरोसा नहीं हो रहा क्यों नहीं हो रहा आप अपने को प्रभु का नहीं मान रहे हो प्रभु को अपना नहीं मान रहे हो अब यह तो सुधारना आपको पड़ेगा ना सुधारो तो खेल है आउट हो जाओ उधर माया
के पक्ष में फिर तो काम क्रोध लोभ मोह मध मत्सर ये सब पिटाई करेंगे उधर अगर हरि आश्रित हो तो कोई छू नहीं सकता विश्वास करो अगर गिर भिर जाओगे तो हरि अपनी गोद में ले लेंगे नाम भक्ता प्रण