दोस्तों बहुत समय पहले की बात है किसी नगरी में एक युवक रहा करता था वह युवक बहुत ही शर्मीला था वह इतना शर्मीला था कि जब भी उसके सामने कोई नया व्यक्ति आ खड़ा होता तो वह उससे बात तक नहीं करता था यहां तक कि जिन्हें वह जानता था पहचानता था उनसे भी बात करने में उसे बहुत शरमाया करता था वह उनसे भी ठीक से बात नहीं कर पाता था और अपनी इस समस्या के कारण वह खुद ही बहुत परेशान रहता था क्योंकि वह अपने जीवन में कुछ कर ही नहीं पा रहा था धीरे-धीरे समय
बीतता गया और समय बीतने के साथ-साथ उस युवक की शर्माने की आदत भी बढ़ती चली गई जिसके कारण वह अत्यधिक निराश रहने लगा परेशान रहने लगा चिंतित रहने लगा उसे यह समझ नहीं आ रहा था कि वह अपनी इस समस्या से किस तरह से छुटकारा पाए उसके घर वाले भी अब उसकी इस समस्या को लेकर बहुत चिंतित रहने लगे थे वे सोचते थे इसका क्या होगा यह अपने जीवन में कुछ कर पाएगा भी या नहीं जब भी वह कहीं पर काम के लिए जाता तो लोग उसके इस सीधे पन का फायदा उठाते उसे परेशान करते
वह कुछ ज्यादा कह नहीं पाता था जिसके कारण उसे कोई कुछ भी कह देता और वहां से चला जाता है इन्हीं सब कारणों की वजह से उसका मन कहीं भी किसी भी काम में नहीं लगता वह हर काम को कुछ ही दिनों में छोड़ दिया करता उसके मन में बहुत कुछ चल रहा था उसके मन में विचारों के तूफान उठ रहे थे वह सबसे बहुत कुछ कहना चाहता था लेकिन अपनी इस आदत के कारण वह किसी से कुछ नहीं कह पा रहा था वह अंदर ही अंदर घुटता जा रहा था सारे विचार सारी बातें उसके
मन में ही दबी पड़ी थी लेकिन कभी भी वह किसी से भी अपने मन की बात नहीं बताता था जब छोटा सा बच्चा था तब उसे लोग बहुत पसंद करते थे उसकी इस आदत को भी लोग सराह थे लेकिन इसी आदत की वजह से जब वह बड़ा हो गया युवा हो गया तो इसी आदत के कारण उसे अपना जीवन जीने में भी अत्यधिक परेशानियां उठानी पड़ रही थी और वह युवक भी अपनी इस गलती के कारण बहुत परेशान रहता अपनी इस एक आदत से छुटकारा पाना चाहता था वह चाहता था कि वह लोगों से अपने
मन की बात खुलकर कह पाए जो कुछ करना चाहता है जो कुछ कहना चाहता है वह सबसे वह खुलकर कह सके कर सके लेकिन जब भी कोई दूसरा उसके सामने आता तो उसकी जुबान मानो खुलती ही नहीं यहां तक कि वह अपने माता-पिता के सामने भी ठीक से बात नहीं कर पाता था केवल उसके कुछ मित्र थे जिनसे वह अपने मन की बात कर पाता था जब भी वह किसी बात का जवाब देता तो लोग उसकी हंसी उड़ाते थे उसका मजाक बनाते लोग कहते हैं कि आज तो तेरे मुंह में भी जबान आ गई है
यह समस्या दिन बदन बढ़ती चली जा रही थी और इस समस्या के कारण अब उसके पिता भी अत्यधिक चिंतित रहने लगे थे वह चाहते थे कि उनका बेटा भी दूसरों के सामने अपने मन की बात रख सके लेकिन एक दिन जब अपने उस बेटे को दूसरों के सामने शर्मिंदा होता हुआ देख रहे थे तभी उन्हें बहुत क्रोध आया और वह अपने बेटे को खरी खोटी सुनाने लगे उन्होंने उसे इतना डांट दिया कि वह युवा लड़का अत्यधिक क्रोधित हो गया और वहां से बिना कुछ कहे वहां से चला गया शाम हो चुकी थी और अब तक
उनका बेटा घर नहीं लौटा था माता और पिता दोनों बड़े ही चिंतित थे वे अपने बेटे को वापस घर पर देखना चाहते थे लेकिन युवा लड़का तो भागते भागते पहाड़ की छोटी पर जा पहुंचा था वह वहां से नीचे की ओर झांक रहा था और ईश्वर से कह रहा था हे भगवान आपने मुझे ऐसा क्यों बनाया लो लोग मेरा मजाक उड़ाते हैं लोग मेरी हंसी उड़ाते हैं जब मैं इस दुनिया में अपने मन की बात रख ही नहीं सकता मैं किसी से कुछ कह ही नहीं सकता तो फिर मैं इस जीवन को जीकर क्या करूंगा
जब भी मैं किसी से कुछ कहने की कोशिश करता हूं तो लोग मेरा मजाक बनाते हैं मेरी हंसी उड़ाते हैं यहां तक कि वह मुझसे कुछ भी कहकर चले जाते हैं और मैं उनका जवाब नहीं दे पाता ऐसा जीवन जीकर मुझे क्या मिलेगा इसलिए मैं तेरे पास आ रहा हूं इतना कहकर जैसे ही वह युवक कूदने की तैयारी कर रहा था कि तभी पीछे से आवाज सुनाई पड़ी बेटा जान देना तो बहुत आसान है लेकिन इस जान को तुम वापस नहीं पा सकोगे जैसे ही यह आवाज उसके कानों में पड़ी वह पीछे मुड़कर देखने लगा
उसने जैसे ही पीछे मुड़कर देखा उसने पाया कि एक बौद्ध भिक्षु उसके पीछे खड़े हैं उन्हें देखकर वह डर सा गया और अपने कदम पीछे खींच ली और चुपचाप वहां पर खड़ा हो गया अपनी आदत के कारण वह उनसे कुछ कह नहीं पा रहा था तभी बो भिक्षु उस युवक से कहते हैं बेटा क्या बात है आखिर तुम यहां पर क्या कर रहे हो और तुम अपने इस जीवन को क्यों समाप्त करना चाहते हो यह अनमोल जीवन बहुत कम लोगों को नसीब होता है और तुम्हें यह जीवन व्यर्थ लगता है इस पर वह युवक कहता
है नहीं नहीं कुछ नहीं मैं तो बस यहां पर खड़ा होकर देख रहा था तभी बौद्ध भिक्षु उस युवक से कहते हैं बेटा मैं जानता हूं कि तुम यहां पर क्या करने आए थे तुम मुझसे कुछ नहीं छुपा सकते लेकिन मैं चाहता हूं कि तुम अपनी समस्या मुझसे खुद बताओ तभी मैं उसका समाधान तुम्हें बता पाऊंगा यदि तुम चाहते हो कि कोई तुम्हारी मदद करे तो उसके लिए पहले तुम्हें ही आगे बढ़ना होगा यदि तुम चाहते हो कि मैं तुम्हारी समस्या का समाधान करूं तो तुम्हें मुझे अपनी समस्या बतानी होगी वरना मैं कुछ नहीं कर
सकूंगा उन बौद्ध भिक्षु की यह बात सुनकर वह युवक कहता है नहीं नहीं मैं ठीक हूं मैं सच कह रहा हूं उस युवक की यह बात सुनकर बौद्ध भिक्षु उस युवक से कहते हैं ठीक है बेटा यदि तुम नहीं चाहते कि मैं तुम्हारी मदद करूं तो कोई बात नहीं मैं तुम्हारी बात पर विश्वास कर लेता हूं लेकिन तुम्हें भी मेरी एक बात पर विश्वास करना चाहिए कि मैं तुम्हारी मदद के लिए ही यहां पर आया हूं तुम चाहो तो तुम अपनी समस्या मुझे बता सकते हो और मैं तुम्हारी इस समस्या का समाधान भी अवश्य करूंगा
इसका जवाब देते हुए युवक उन बौद्ध भिक्षु से कहता है नहीं नहीं मैं ठीक हूं आप जाइए इस पर वह बौद्ध भिक्षु उस युवक से कहते हैं ठीक है बेटा यदि तुम चाहते हो कि मैं मैं यहां से चला जाऊं तो मैं यहां से चला जाता हूं लेकिन मेरी एक बात याद रखना मेरे जाने के बाद मैं तुम्हारी कोई मदद नहीं कर पाऊंगा और हो सकता है कि तुम्हारी मदद के लिए कोई और आगे भी ना आए इतना कहकर बौद्ध भिक्षु पीछे की ओर मुड़े और अपने मार्ग में आगे बढ़ने लगे वह युवक वहीं पर
खड़ा होकर यह सब देख रहा था जैसे ही वह कुछ दूर पहुंचे तभी उस युवक ने जोर से आवाज लगाई गुरुदेव मेरी समस्या बहुत बड़ी है क्या आप उसका समाधान कर सकेंगे क्या आप मुझे उसका समाधान दे सकेंगे यह सुनकर बौद्ध भिक्षु वहीं पर खड़े हो गए और पीछे मुड़कर उन्होंने उस युवक की बात का जवाब देते हुए कहा बेटा इस दुनिया में कोई भी ऐसी समस्या नहीं है जिसका कोई समाधान ना हो यदि तुम मुझे अपनी समस्या बताओगे तो मैं उसका समाधान अवश्य करूंगा तभी वह युवक उन बौद्ध भिक्षु से अपनी समस्या बताते हुए
कहता है गुरुवर मेरी एक बहुत बड़ी समस्या है कि मैं शर्मीला हूं जिसके कारण मैं किसी से कोई बात नहीं नहीं कर पाता यहां तक कि मैं अपने मन की बात भी किसी को नहीं बता पाता जब भी मैं किसी से बात करने की कोशिश करता हूं तो लोग मेरा मजाक उड़ाते हैं मेरी हंसी उड़ाते हैं जब भी मुझे कोई खरी खोटी सुनाता है उलटी सीधी बातें करता है तो मैं उनका जवाब नहीं दे पाता मैं लोगों की तरह चालाक बनना चाहता हूं लोगों की तरह बातों का जवाब देना चाहता हूं अपने मन की बात
करना चाहता हूं मैं इस दुनिया के साथ कदम से कदम मिलाकर आगे बढ़ना चाहता हूं क्या इसका कोई समाधान उन बौद्ध भिक्षु ने उस युवक की सारी बातें ध्यानपूर्वक सुनी और फिर जवाब देते हुए कहते हैं बेटा जरूरत से ज्यादा शर्मीला होना इसका अर्थ यह है कि तुम्हारे अंदर कोई डर है जिसे तुम पहचान नहीं पा रहे हो जिसका कारण उसका समाधान करने में भी असमर्थ है शर्म करना अलग बात है और डरना अलग जब हमारे भीतर डर होता है तब हम कहीं भी किसी से भी कोई भी बात नहीं कर सकते हमें चारों तरफ
केवल डर ही नजर आता है और हम हर जगह से डरते ही रहते हैं लेकिन इसे शर्माना नहीं कहते शर्म तो बस एक हद तक तुम्हें चुप रख सकता है फिर वह बौद्ध भिक्षु उस युवक से कहते हैं बेटा तुम सबसे अधिक किससे शर्माते हो युवक इसका जवाब देते हुए कहता है गुरुवर मुझे अपने पिता से बात करने में बहुत शर्मा आती है मैं उनके सामने कुछ बोल ही नहीं पाता तभी वह बौद्ध भिक्षु उस युवक से कहते हैं अच्छा तो यह बताओ जब तुम अपने पिता से बात कर रहे होते हो या फिर बात
करने का प्रयास करते हो तो तुम्हारे मन में कैसे ख्याल आते हैं युवक इसका जवाब देते हुए कहता है गुरुवर जब भी मैं अपने पिता से बात करने का प्रयास करता हूं तो मुझे ऐसा लगता है कि मानो मेरे पिता अभी मुझे डांट देंगे मुझ पर क्रोध करेंगे मुझसे नाराज हो जाएंगे और कहीं ना कहीं मुझे यह भी लगता है कि मैं कुछ गलत बात ही करूंगा यहां तक कि मेरे मन में ऐसे भी ख्याल आते हैं कि शायद मेरे पिता मुझसे प्यार ही नहीं करते परंतु गुरुवर आप कहते हैं कि शर्म अलग है और
डरना अलग बात है तो क्या कोई ऐसा उपाय है जिससे से मुझे डर ही ना हो क्या कोई ऐसा रास्ता है जिससे मेरे अंदर का यह डर पूरी तरह से समाप्त हो जाए कृपा करके मुझे इस समस्या का समाधान बताइए मुझे अपने इस डर से बाहर निकलना है मुझे लोगों की तरह अपने इस जीवन को खुलकर जीना है उस युवक की यह सारी बातें सुनकर बौद्ध भिक्षु उस युवक से कहते हैं जाओ और अपने पिता से कहो कि मुझे कुछ काम करना है और उसके लिए मुझे आपसे कुछ धन चाहिए यदि तुम उनसे धन मांगने
में कामयाब हो गए तो मैं तुम्हें तुम्हारी समस्या का समाधान अवश्य बताऊंगा वह युवक काफी घबरा गया उसने उन गुरुवर से कहा हे गुरुवर मुझे यह कार्य ना दीजिए मैं उनसे कुछ नहीं कह पाता उनके सामने तो मेरी बोलती तक बंद हो जाती है मैं उनसे धन भला कैसे मांगूंगा यह बात सुनकर बौद्ध भिक्षु उस युवक से कहते हैं तब तो तुम्हारी समस्या का कोई भी समाधान नहीं है और ना ही तुम कभी भी अपने जीवन को खुलकर जी पाओगे यह बात सुनकर युवक उन भिक्षुओं से कहता है गुरु वर्ग ऐसा ना कहे कृपा करके
मुझे कोई और कार्य बताइए कोई ऐसा कार्य जिससे मेरे अंदर का डर पूरी तरह से समाप्त हो जाए कोई ऐसा समाधान बताइए इसका जवाब देते हुए वह बौद्ध भिक्षु उस युवक से कहते हैं बेटा यदि तुम्हें अपने अंदर के डर को समाप्त करना है तो पहले तुम्हें मेरा यह कार्य करना होगा जो मैंने तुम्हें कहा है वह युवक घबराकर काफी देर सोच विचार करने के बाद पुण गुरुवर से कहता है ठीक है यदि आप चाहते हैं कि मैं इस कार्य को करूं तो मैं इसे करने का पूरा प्रयास करूंगा इतना कहकर वह युवक अपने घर
लौट जाता है उसे देखकर उसके माता-पिता बहुत खुश हो जाते हैं और वह युवक अपने पिता से डरते डरते कहता है पिताजी मुझे आपसे कुछ बात कहनी है इस पर उसके पिता कहते हैं बोलो क्या बात है युवक आगे कहता है पिताजी मैं कुछ काम करना चाहता हूं और उसके लिए मुझे आपसे कुछ धन चाहिए क्या आप मुझे कुछ धन दे सकते हैं इतना सुनकर उस युवक के पिता ने उसकी ओर ध्यान से देखा काफी देर देखने के बाद वह खुशी से झूम उठे और तुरंत ही उन्होंने कुछ धन अपने पुत्र के हाथों पर रख
दिया और कहने लगे बेटा इतना धन काफी है कि तुम्हें और चाहिए इसके जवाब में वह युवक अपने पिता से कहता है नहीं नहीं पिताजी इतना काफी है मैं इतने से काम चला लूंगा वह युवक को उस धन को लेकर तुरंत दौड़ा दौड़ा उन बौद्ध भिक्षु के पास लौटा और जो धन उसने अपने हाथों में ले रखा था उ से दिखाते हुए वह कहता है गुरुवर जैसा आपने कहा था मैं धन लेकर आपके पास आ चुका हूं मैंने अपने पिता से धन मांग लिया है अब मुझे आप मेरी समस्या का समाधान बताओ तभी बौद्ध भिक्षु
उस युवक से कहते हैं अरे इतनी जल्दी क्या है अभी तो तुम्हें मेरे लिए एक और काम करना है तभी मैं तुम्हें तुम्हारी समस्या का समाधान अवश्य बताऊंगा और यदि तुम मेरे लिए इस कार्य को पूरा नहीं कर सके तो मैं तुम्हें कभी भी तुम्हारी समस्या का समाधान नहीं बताने वाला वाला तभी वह युवक उन बौद्ध भिक्षुओं से कहता है हे गुरुवर अभी तो मैंने आपके लिए एक काम किया है अभी आप मुझे एक और काम करने के लिए कह रहे हैं तभी बौद्ध भिक्षु उस युवक से कहते हैं हां तुम्हें मेरे लिए एक और
काम करना ही होगा वह युवक एक बार फिर से काफी देर सोच विचार कर उन बौद्ध भिक्षु से कहता है अच्छा ठीक है बताइए अब मुझे क्या करना है इसके जवाब में बौद्ध भिक्षु उस युवक से कहते हैं जाओ और यह धन जो तुमने अपने पिता से मांग कर लाया है इस धन को वापस अपने पिता को लौटा दो और साथ-साथ यह भी कहना कि पिताजी मैं अभी काम नहीं करना चाहता हूं लेकिन जब समय आएगा तो मैं आपसे यह धन वापस ले लूंगा और उससे अपना काम पूरा करूंगा यह बात सुनकर युवक एक बार
फिर से ऊपर से नीचे तक पूरी तरह से कांप गया और कहने लगा गुरुवर आप मुझे कोई और काम सौंप दीजिए मैं उसे जरूर करूंगा लेकिन अब यदि मैं धन लेकर उनके पास वापस स गया तो वह क्या सोचेंगे मेरे बारे में मैं तो शर्मिंदा हो जाऊंगा उनके सामने इसलिए गुरुवर कृपया करके मुझे कोई और काम दे तभी बौद्ध भिक्षु उस युवक से कहते हैं बेटा जो काम मैंने तुम्हें सौंपा है तुम्हें उसी कार्य को पूरा करना होगा अन्यथा तुम्हारी समस्या का समाधान मैं तुम्हें नहीं बताने वाला काफी देर सोच विचार करने के बाद वह
उन बद भिक्षु से कहता है ठीक है गुरुवर मैं वापस जाता हूं और यह धन लौटा करर मैं अ भी आता वह तुरंत दौड़ा दौड़ा अपने पिता के पास वापस लौटा और उसने अपने पिता से कहा पिताजी मैं यह धन अभी नहीं लेना चाहता अभी यह धन आप मुझसे वापस ले लीजिए जब मुझे कोई काम पड़ेगा तो मैं आपसे यह धन वापस ले लूंगा उसके पिता ने उस युवक की तरफ घूर घूर कर काफी देर तक देखा और फिर मुस्कुराते हुए कहने लगे बेटा मैं समझता हूं कि किसी भी काम को शुरू करने से पहले
हमें उसके बारे में जानकारी इकट्ठा करनी चाहिए उसके बारे में समझना जरूरी है कब क्या कैसे और कब तक करना है इसके बारे में भी हमें जानकारी लेनी जरूरी है कोई भी काम ऐसे ही नहीं शुरू किया जा सकता उसमें हम नहीं होंगे या फिर नहीं इसका भी अनुमान हमें लगाना पड़ता है और जब हम इन सभी के बारे में सही जानकारी प्राप्त कर लेते हैं तभी हमें धन लगाना चाहिए मुझे बहुत खुशी है कि तुमने यह सही निर्णय लिया है जब तुम्हें यह समझ में आ जाए कि जो कार्य तुम करने जा रहे हो
वह तुम्हारे लिए उचित है तब तुम चाहो तो मैं तुम्हें यह धन वापस लौटा दूंगा युवक अपने पिता से यह सारी बातें सुनकर मन ही मन बहुत प्रसन्न था उसने यह तो उम्मीद तक नहीं की थी कि उसके पिता हंसकर उसे इस तरह से सारी बातें समझाएंगे वह मन ही मन यह सोच ही रहा था कि तभी उसके पिताजी उसके और करीब आए और अपनी उस युवा बेटे को गले से लगा लिया जैसे ही उसके पिता ने उस युवक को गले से लगाया उसको बहुत अच्छा महसूस हुआ उसका आत्मविश्वास उसका हौसला और बढ़ता गया उसके
बाद युवक वापस पुन गुरुवर के पास लौटा और कहने लगा गुरुवर जैसा आपने कहा था मैंने बिल्कुल वैसा ही किया है मैंने धन अपने पिता को वापस कर दिया है अब तो कृपया करके मुझे मेरी समस्या का समाधान बता दीजिए तभी बौद्ध भिक्षु उस युवक की तरफ देखकर मुस्कुराते हैं और इस युवक से कहते हैं बेटा इतनी जल्दी क्या है अभी तो तुम्हें मेरे लिए एक और काम करना ही पड़ेगा वह युवक कहता है महाराज आप आखिर मुझसे बार-बार इस तरह से काम क्यों करवा रहे हैं क्या आपके पास मेरी समस्या का कोई समाधान नहीं
है कहीं आप मुझे बेवकूफ तो नहीं बना रहे जिस तरह से लोग मुझे बेवकूफ बनाते हैं क्या आप भी मेरे साथ वही तो नहीं कर रहे आपने कहा जाओ अपने पिता से पैसे मांग कर लाओ मैंने पैसे मांग कर लाए आपने फिर कहा जाओ यह पैसे अपने पिता को लौटा कर आओ मैंने आपके कहे अनुसार बिल्कुल वैसा ही किया और अब आप कह रहे हैं कि मैं आपके लिए एक और काम करूं नहीं यह मुझसे नहीं होगा तभी बौद्ध भिक्षु उस युवक की तरफ देखकर मुस्कुराते हैं और कहते हैं बेटा बस यह आखिरी काम है
और यह बहुत सरल भी है तुम जैसे ही इस कार्य को पूरा करोगे मैं तुम्हें वचन देता हूं कि मैं तुम्हारी समस्या का समाधान तुम्हें अवश्य बताऊंगा इस पर वह युवक फिर से एक बार सोच विचार करता है और उन बौद्ध भिक्षु से कहता है ठीक है लेकिन यह आखिरी काम जो मैं आपके लिए करूंगा बताइए मुझे क्या करना है तभी बौद्ध भिक्षु एक मूर्ति निकालकर उस युवक के हाथ में थमा देते हैं वह मूर्ति देखने में बहुत ही साधारण सी थी लेकिन वह बौद्ध भिक्षु उस युवक से कहते हैं बेटा तुम्हें इसे बाजार में
ले जाना है इसे बेचना है और इसके बदले में तुम्हें 100 सोने के सिक्के लेकर आने हैं जब तुम यह करने में सफल हो जाओगे तभी मैं तुम्हें तुम्हारी समस्या का समाधान तुम्हें बता पाऊंगा वह युवक उस मूर्ति को अपने हाथ में लेकर बड़े ही गौर से देखता है और उन बौद्ध भिक्षुओं से कहता है हे गुरुवर यह तो बड़ी ही साधारण सी मूर्ति लग रही है मानो मिट्टी की बनाई गई इसके लिए भला 100 सो सोने के सिक्के मुझे कौन देगा कहीं आपका माथा फिर तो नहीं गया है इसके एक या दो सोने के
सिक्के मिल जाए वही बहुत है लेकिन इसके लिए 100 सोने के सिक्के कोई नहीं देगा तभी बौद्ध भिक्षु उस युवक से कहते हैं बेटा मैंने जो तुम्हें काम सौंपा है यदि तुम उसे पूरा करोगे तभी तुम्हें तुम्हारी समस्या का समाधान मिल पाएगा अन्यथा तुम चाहो तो अपने घर लौट सकते हो फिर से वही अपने पुराने जीवन में जहां लोग तुम्हारा मजाक बनाते हैं लोग तुम्हें डराते हैं सताते में तुम्हें यहां अपने डर को निकालने में तुम्हारी मदद कर रहा हूं तुम मेरे यहां काम करके अपने डर को धीरे-धीरे भगा पाओगे मेरे इस काम को पूरा
कर दो तुम्हें सब समझ आ जाएगा वह युवक उन बौद्ध भिक्षुओं की बात सुनकर मन ही मन यह विचार करता है कि मुझे तो मेरी समस्या का समाधान किसी भी हालत में चाहिए जिस कारण वह उस मूर्ति को उठाकर बाजार की ओर चल पड़ता है बाजार पहुंचकर व एक जगह चुपचाप उस मूर्ति को लेकर खड़ा हो जाता है और इंतजार करने लगता है कि कोई आएगा और उसे उस मूर्ति के बारे में पूछेगा और तब वह उस मूर्ति के लिए 100 सोने के सिक्के की मांग करेगा देखते ही देखते काफी समय बीत गया लेकिन अभी
तक उसके पास कोई भी व्यक्ति नहीं आया था उसने आसपास देखा तो लोग चिल्ला चिल्लाकर अपने सामानों को बेच रहे थे जोर-जोर से आवाज लगा रहे थे उसने भी सोचा यदि मुझे अपनी इस मूर्ति को बेचना है तो मुझे भी जोर-जोर से आवाज लगानी होगी उस युवक ने चिल्लाना शुरू किया लेकिन वह इतनी जोर से नहीं चिल्ला रहा था उसकी आवाज उसे खुद तक सुनाई नहीं पड़ रही थी तो भला उसकी आवाज को दूसरे कैसे सुनते जिस कारण उसे कोई भी व्यक्ति खरीदने के लिए तैयार नहीं था धीरे-धीरे शाम का समय हो चुका था और
उस व्यक्ति को यह डर था कि कहीं वह बौद्ध भिक्षु वहां से कहीं चला ना जाए अन्यथा उसे उसकी समस्या का समाधान कौन देगा यह सोचकर उसने जोर-जोर से आवाज लगानी शुरू की कि 100 सोने के सिक्के में यह मूर्ति ले लो उसकी आवाज सुनकर लोग उसके पास आने लगे और उससे यह सवाल करने लगे इस मूर्ति में ऐसा क्या है जो तुम इसके लिए 100 सोने के सिक्कों की मांग रहे हो इसके अंदर ऐसा कुछ तो खास होगा ही युवक काफी देर सोच विचार कर उस युवक से कहता है नहीं नहीं मुझे कुछ नहीं
पता मैं तो बस यह मूर्ति यहां पर बेचने आया हूं तभी उसमें से एक युवक उस युवक से कहता है अगर ऐसी बात है तो इस मूर्ति को कोई नहीं खरीदने वाला आखिर इस मूर्ति में ऐसा क्या खास है जिसके लिए तुम सोने के सिक्के की मांग कर रहे हो यह तो तुम्हें बताना ही पड़ेगा धीरे-धीरे कई लोग उसके पास आए और सभी ने बस एक ही सवाल किया आखिर इस मूर्ति में ऐसा क्या खास है ऐसी क्या बात है जिसके लिए तुम सोने के सिक्के की मांग कर रहे उस युवक ने उससे बातचीत की
उन्हें समझाने की कोशिश की कई प्रयत्न किए लेकिन कोई भी उस मूर्ति को सोने के सिक्के देकर खरीदने के लिए तैयार नहीं था वह निराश हो गया उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करें तभी बाजार में उसने देखा कि कुछ लोग अपने सामानों की खासियत बता रहे हैं उसे बेचने के लिए उसकी खास खास बातों के बारे में लोगों को समझा रहे हैं यह देखकर उसने भी सोचा कि मुझे भी इस मूर्ति की कुछ खासियत लोगों को बतानी है उसने फिर एक बार जोर-जोर से आवाज लगानी शुरू की समस्या का समाधान
निकालने वाली मेरी गुरु की इकलौती मूर्ति जो इस दुनिया में केवल एक ही है जिसके पास भी यह मूर्ति होगी उसके घर में कोई समस्या नहीं होगी यह मूर्ति उस समस्या का स धान तुम्हे अवश्य बताएगी यह सुनकर लोग उसके पास पहुंचने लगे और उसे यह सवाल करने लगे क्या सच में यह मूर्ति जिसके पास होगी उसके पास कोई समस्या नहीं होगी क्या सच में यह सभी समस्याओं का समाधान करती है उसका जवाब देते हुए युवक कहता है हां सभी समस्याओं का समाधान कर देती है यदि आप इस मूर्ति को ले जाते हैं आपके घर
में कोई भी समस्या होगी तो उसका समाधान यह आपको अवश्य बताएगी चाहे कोई भी समस्या हो कैसी भी समस्या हो कैसी भी परिस्थिति हो आपको इसका समाधान अवश्य मिलेगा इतना सुनने के बाद अब वही एक मूर्ति सबको चाहिए थी उस मूर्ति के दाम लगाने लगे कोई उसे 200 सोने के सिक्के तो कोई 400 कोई छ साथ तो कोई 1 हज सोने के सिक्के देने के लिए तैयार था उस मूर्ति की कीमत लगातार बढ़ती जा रही थी जैसे-जैसे लोगों को पता चलता जा रहा था कि यह मूर्ति लोगों की समस्या का समाधान करती है लोग उसे
किसी भी कीमत पर खरीदने के लिए तैयार हो गए अब वह युवक भी आत्मविश्वास के साथ और जोर से चिल्ला रहा था लोगों को उस मूर्ति के बारे में समझा रहा था बता रहा था अब उसके मन में कोई डर नहीं था वह लोगों को उस मूर्ति के बारे में पूरे आत्मविश्वास के साथ बिना घबराए उस मूर्ति की खासियत बताने में लगा हुआ था जिसके कारण लोग उस पर भरोसा कर रहे थे और वह भरोसा लोगों की नजरों में नजर भी आ रहा था जैसे जैसे अंधेरा होता गया लेकिन लोगों की भीड़ कम होने का
नाम ही नहीं ले रही थी लोग उस मूर्ति को खरीदना चाहते थे उस युवक ने जोर से आवाज लगाई कि मुझे क्षमा करें यह मेरे गुरु की मूर्ति है और मैं इसे बेचना नहीं चाहता इतना कहकर वह युवक उस मूर्ति को लेकर वापस खाली हाथ लौट आया और उन गुरुवर के पास पहुंचा और उन गुरुवार से कहने लगा हे गुरुदेव आपका बहुत-बहुत धन्यवाद इस मूर्ति ने मेरी समस्या का समाधान कर दिया मुझे समझ में आ गया कि मेरी क्या समस्या थी हालांकि मैं इसे बेचकर सोने के सिक्के तो आपके लिए नहीं ला पाया लेकिन मुझे
मेरी समस्या का समाधान अवश्य मिल गया आपका बहुत-बहुत धन्यवाद इस बात को सुनकर बौद्ध भिक्षु उस युवक से कहते हैं बेटा मैंने तुम्हारी समस्या का समाधान नहीं किया है तुमने तो खुद ही अपनी समस्या का समाधान किया अपनी समस्या तुमने खुद ही सुलझा ली है तुम्हारे मन में हजारों सवाल थे मैं यह करूंगा तो लोग मेरे बारे में क्या सोचेंगे यदि मैं अपना मुंह खोलूंगा तो लोग मेरे पर हंसे यदि मैंने मुंह खोला तो मैं कुछ गलत ही करूंगा ऐसे कई सारे विचार तुम्हारे मन में थे ऐसे कई सारे डर तुमने अपने मन में पाल
रखे थे लेकिन जब इस मूर्ति के बेचने के दौरान तुमने उन हजारों लोगों का सामना किया उनके सामने खुलकर अपनी बात रखी उनके सामने खुलकर वह कहा जो तुम्हें कहना था तो तुम्हारे मन का डर खुद खुद समाप्त हो गया जिसे तुम शर्मा ना कहते थे वह अपने आप ही तुम्हारे भीतर से कहीं गायब हो गया युवक अपने गुरु की यह बात सुन कर अपने गुरुवार से कहता है गुरुवर आप सही कहते हैं आपने आज मेरे मन में वह विश्वास जगा दिया है जिसे मैं अब अपने जीवन में कुछ भी हासिल कर सकता हूं आपका
बहुत-बहुत धन्यवाद डर को धीरे-धीरे खत्म करने से ना ही आपको शर्म आएगी और ना ही डर लगेगा और जब आपके भीतर का डर हमेशा के लिए समाप्त हो जाएगा तो आप अपने जीवन में जो भी कुछ करना चाहते हैं जो भी कुछ पाना चाहते हैं उसका रास्ता आपके लिए पूरी तरह से साफ हो जाएगा और आप अपने ने मार्ग पर तेजी से आगे की ओर बढ़ने में सक्षम भी हो जाएंगे इसलिए लोग क्या कहते है क्या कहेगे यह सब छोड़ दीजिए और खुद पर विश्वास कीजिए क्योंकि आप ही हैं जो अपने इस डर का सामना
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