दोस्तों बहुत समय पहले की बात है एक खूबसूरत सी नदी के किनारे पर एक गुरु अपना आश्रम बनाकर रहा करते थे उनकी ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई थी वह बूढ़े हो चुके थे और उनका एक शिष्य भी था जो उन्हीं के साथ उस आश्रम में रहा करता था एक दिन वह शिष्य भिक्षा मांगने पासी के गांव में गया था तभी उसने वहां पर देखा कि एक बूढ़े व्यक्ति की मृत्यु हो चुकी थी यह देख व शिष्य बहुत चिंतित हो गया उस मृत व्यक्ति को देखकर उस शिष्य के मन में एक चिंता जाग उठी वह शिष्य
अब यह सोचने लगा कि मेरे गुरु भी अब बूढ़े हो चले हैं यदि वह मुझे छोड़कर चले जाएंगे तो मेरा मार्गदर्शन कौन करेगा मुझे रास्ता कौन दिखाएगा मैं किसके मार्गदर्शन से अपने आध्यात्म की इस सफर को पूरा कर पाऊंगा वह यही सोचता हुआ वापस आश्रम लौट आया लेकिन उसने अपने गुरु से कुछ नहीं कहा लेकिन वह हर दिन अब चिंता में रहने लगा था वह हर रोज सुबह उठकर सबसे पहले अपने गुरु के पास जाता और यह देखता कि कहीं उनकी सांसें चल रही हैं या नहीं गुरु जीवित तो है ना और जब वह यह
देखता कि उन गुरु की सांसें अब भी चल रही हैं तो वह देखकर सुकून की सांस लेता देखते ही देखते अब यह डर उसके मन में गहराई तक बैठता जा रहा था क्योंकि उसने बहुत से बूढ़े लोगों को मृत्यु प्राप्त करते हुए देखा था एक दिन की बात है वह अपने मार्ग से कहीं जा रहा था रास्ते में उसे दो झोपड़ियां नजर आई वहां से रोने और बिलक की आवाज भी आ रही थी शिष्य ने जब वहां जाकर देखा तो उसने पाया कि वहां पर किसी की मृत्यु हो गई थी और वह व्यक्ति भी बूढ़ा
था यह देखकर वह शिष्य अब भीतर ही भीतर बहुत चिंतित हो चुका था उसे अब यह डर सता रहा था कि कहीं उसके गुरु भी उसे छोड़कर ना चले जाएं यही सोचता हुआ वह वापस आश्रम लौट आया वह चुपचाप एक जगह बैठ गया और अपने गुरु के बारे में सोचने लगा तभी वहां पर वह गुरु आए उन्होंने अपने शिष्य को इतनी चिंता में देखा तो वह उससे पूछे बिना रह नहीं पाए वह गुरु अपने शिष्य के पास बैठे और अपने शिष्य से कहते हैं भंते क्या बात है मैं तुम्हें कई दिनों से चिंता में देख
रहा हूं क्या कोई विपदा अन पड़ी है अपने गुरु के इस प्रश्न का जवाब देते हुए वह शिष्य उन गुरु से कहता है हे गुरुवर ने में तो बहुत अजीब लग रहा है लेकिन मैं जो भी कहना चाहता हूं यह सत्य भी है और मैं इसे छुपा नहीं सकता मैंने कई सारे बूढ़े लोगों को मरते हुए देखा है और मेरे मन में भी यही डर है कि आप भी बूढ़े हो चुके हैं इसलिए मैं आपको खोना नहीं चाहता क्योंकि यदि आप छोड़कर चले गए तो फिर मुझे राह कौन दिखाएगा आपके बिना मैं अपने सफर को
किस प्रकार पूरा कर पाऊंगा उन गुरु ने अपने शिष्य की मन की इस बात को ध्यानपूर्वक सुना और उसके बाद वह जोर-जोर हंसने लगे इस पर व शिष्य बड़ा आश्चर्य चकित हुआ और उसने उन गुरु से कहा हे गुरुवर आप हंस क्यों रहे हैं क्या मैंने कुछ गलत कह दिया क्या बूढ़े लोग मृत्यु को प्राप्त नहीं होते इस पर वह गुरु अपने शिष्य से कहते हैं भंते इस दुनिया में मृत्यु का बुढ़ापे या जवानी से कोई संबंध नहीं है तुझे इस बात की चिंता है कि मैं मर जाऊंगा तो तुझे मार्गदर्शन कौन देगा किंतु तुमने
एक पर के लिए यह नहीं सोचा यदि मुझसे पहले तुम्हारी मृत्यु हो गई तो तुम क्या कर पाओगे ऐसी अवस्था में तुम मुझसे मार्गदर्शन कैसे ले पाओगे अपने गुरु की यह बात सुनकर वह शिष्य आश्चर्य चकित रह गया वह पूरी तरह से स्तब्ध रह गया और मन ही मन वह यह सोचने लगा कि यह बात तो मैंने सोची ही नहीं गुरुवर तो सत्य ही कह रहे हैं मैं तो यह सोच रहा था कि केवल बूढ़े लोग ही मरते हैं किंतु वास्तविकता तो यही है बच्चे और जवान भी मरते हैं और ऐसे में यदि मेरी मृत्यु
मेरे गुरु से पहले हो गई तो तो मैं मार्गदर्शन कैसे ले पाऊंगा अपनी मंजिल तक कैसे पहुंच पाऊंगा अब से उस शिष्य के मन में केवल एक ही बात चलने लगी और वह यही थी कि यदि वह गुरु से पहले ही मर गया तो आखिर वह क्या जानकर मरेगा आखिर वह क्या हासिल करके मरेगा वह यह सोच रहा था कि जीवन तो अनिश्चित है आज है लेकिन अगले पल कौन जानता है यह जीवन हो या ना हो हो जीवन के बारे में कुछ भी नहीं कहा जा सकता जीवन तो अनिश्चित है वशिष्ठ यह सब बैठकर
सोच ही रहा था कि देखते ही देखते रात्रि का वक्त हो चुका था और गुरु अपने कक्ष में सोने के लिए चले गए थे शिष्य भी सोने की कोशिश कर रहा था लेकिन इस विचार ने उसके मन में इतनी खलबली मचा दी थी कि वह सो नहीं पा रहा था वह बेचैन था आधी रात में व शिष्य अपने बिस्तर से उठा और उन गुरु के पास जा पहुंचा उन्हें जगाकर व शिष्य उन गुरु से कहता है हे गुरुवर यह जीवन तो अनिश्चित है पता नहीं मैं कल का सूरज देख पाऊंगा या नहीं यह मैं नहीं
जानता और जीवन के बारे में तो कुछ भी नहीं कहा जा सकता इसीलिए हे गुरुवर मुझे वह आखिरी बात बता दीजिए जो ज्ञानी लोग अंत में सत्य को प्राप्त करके जानते हैं इस जवाब में वह गुरुवर अपने शिष्य से कहते हैं भंते तुम्हें इतनी जल्दी क्या है जैसे सब लोग उस सत्य को प्राप्त करते हैं तुम भी कर लेना इस पर व शिष्य उन गुरुवर से कहता है हे गुरुवर आप ही ने तो कहा है कि जीवन अनिश्चित है और मेरी मृत्यु का भी कोई भरोसा नहीं पता नहीं मैं कल का सूरज देख पाऊंगा या
नहीं कोई भरोसा नहीं है कि मैं सुबह तक जिऊंगा या नहीं इसलिए मैं सुबह तक का इंतजार नहीं करना चाहता आप मुझे अभी और इसी समय वह बात बता दीजिए मैं वह आखिरी बात जानना चाहता हूं जो ज्ञानी लोग अपने जीवन के अंत में जानते हैं कम से कम मृत्यु के वक्त मुझे यह तसल्ली तो होगी कि कम से कम मुझे वह बात पता है कि आखिर अंत में है क्या इस पर वह गुरुवर अपने शिष्य से कहते हैं ठीक है यदि तुम यही जान चाहते हो तो मैं तुम्हें यह बात जरूर बताऊंगा लेकिन आज
नहीं आज से तीन दिन बाद इस पर वशिष्ठ कहता है किंतु हे गुरुवर मुझे यह तक नहीं पता कि मैं सुबह का सूरज देख पाऊंगा या नहीं और आप मुझे तीन दिन इंतजार करने के लिए कह रहे हैं इसके जवाब में वह गुरुवर अपने शिष्य से कहते हैं भंते यदि तुम वह बात जानना चाहते हो तो तुम्हें तीन दिन तक इंतजार करना ही होगा इसके पहले मैं तुम्हें वह बात नहीं बता सकता शिष्य किसी तरह से मान जाता है और वह अपने गुरु से कहता है ठीक है गुरुवर यदि आप कहते हैं तो मैं तीन
दिनों तक इंतजार कर लेता हूं लेकिन उसके बाद आपको वह बात मुझे बतानी ही होगी आगे वह गुरुवर अपने शिष्य से कहते हैं भंते मैं तुम्हें वह बात अवश्य बताऊंगा लेकिन मेरी एक शर्त है इस पर वशिष्ठ कहता है हे गुरुवर मैं की सारी शर्तें मानने के लिए तैयार हूं बताइए आपकी क्या शर्त है इस पर व गुरुवर अपने शिष्य से कहते हैं भंते जब तक तुम वह बात नहीं जान लेते तब तक तुम्हारे गले से एक बूंद भी पानी नहीं उतरना चाहिए अन्यथा तुम वह बात कभी नहीं जान सकोगे शिष्य उन गुरु की बात
मान लेता है और मन ही मन वह बहुत प्रसन्न हो जाता है कि कम से कम तीन दिनों बाद अब उसे वह बात पता चल ही जा जाएगी और अब वह तीसरे दिन का इंतजार करने लगा और उसे उसके गुरुवर ने पानी पीने के लिए मना किया था इसलिए उसने पानी का त्याग कर दिया गर्मियों का समय था जैसे-तैसे उसने पहला दिन तो पानी के बिना काट लिया लेकिन अगले दिन उसकी प्यास बढ़ने लगी उसे जोरों की प्यास लग रही थी जैसे-तैसे वह अपने आप को संभाल रहा था और देखते ही देखते रात्रि का वक्त
हो चुका था दूसरा दिन खत्म होने को था लेकिन उससे पहले ही उसे प्यास बर्दाश्त नहीं हो रही थी उसका गला पूरी तरह से सूख चुका था और उसे जोरों की प्यास लगी थी वह पानी पीना चाहता था और उसे अपनी प्यास अब बर्दाश्त नहीं हो रही थी इसलिए वह अपने गुरु के पास गया और उसने अपने गुरु से कहा हे गुरुवर मुझे बहुत जोरों की प्यास लगी है क्या मैं थोड़ा सा पानी पी सकता हूं इसके जवाब में वह गुरुवर अपने शिष्य से कहते भंते यदि तुम वह आखिरी बात जानना चाहते हो तो पानी
मत पीना यदि तुमने पानी पी लिया तो मैं तुम्हें वह बात बता ही नहीं पाऊंगा इसलिए यदि तुम वह आखिरी बात जानना चाहते हो तो तुम्हें तीसरे दिन तक इंतजार करना ही होगा और हां यदि तुम वह बात नहीं जानना चाहते तो कोई बात नहीं तुम पानी पीने के लिए स्वतंत्र हो शिष्य ने जैसे तैसे खुद को मनाया और वह तीसरे दिन का इंतजार करने लगा देखते ही देखते सुबह हुई लेकिन अब वह तीसरा दिन उस शिष्य पर भारी पड़ने लगा था उसके होठ उसका गला पूरी तरह से सूख चुके थे और उसे ऐसा प्रतीत
हो रहा था मानो उसे चक्कर आ रहे हो उस शिष्य को ऐसा लग रहा था कि मानो वह अभी-अभी जमीन पर गिर पड़ेगा वह जैसे-तैसे किसी तरह से अब अपने आप को संभालते हुए उन गुरु के पास पहुंचा और उन गुरु से कहता है हे गुरुवर यदि मैं प्यास के कारण मर गया तो वह आखिरी बात कैसे जान पाऊंगा और फिर मेरे तीन दिनों तक इंतजार करने का क्या लाभ इस पर वह गुरुवर अपने उस शिष्य से कहते हैं भंते यदि तुम्हें प्यास लगी है तो मैं तुम्हें पानी के विषय में कुछ बातें बताता हूं
पानी का कोई रंग नहीं होता यह श होता है यह नदियों में बहता है हम तक पहुंचता है और यह बारिश के रूप में भी बरस जाता है पानी से हमारी प्यास बुझ जाती है पानी हमारे शरीर के लिए बहुत ही आवश्यक है पानी अमृत है इस पर व शिष्य क्रोधित होते हुए अपने गुरु से कहता है हे गुरु पानी की बातें सुनकर मेरी प्यास थोड़ी ना बुझने वाली है इस पर वह गुरुवर अपने शिष्य से कहते हैं भंते तो तुम्हारी प्यास कैसे बुझेगी शिष्य ने जवाब देते हुए कहा हे गुरुवर जब तक मैं पानी
नहीं पी लेता मेरी प्यास कैसे बुझेगी तभी वह गुरुवर उस शिष्य से कहते हैं ठीक है किंतु ऐसे ही ज्ञान की बातें सुन लेने से सत्य प्राप्त नहीं होता ज्ञान तुम्हारे भीतर भी तो होना चाहिए जो आखिरी बात तुम मुझसे से पूछ रहे थे यदि वह आखिरी बात मैं तुम्हें बता दूं तो उससे क्या होगा यह ऐसे ही होगा जैसे मैंने तुम्हें पानी के विषय में बताया पर क्या इससे तुम्हारी प्यास बुझ गई नहीं तभी वह शिष्य उन गुरु की बात काटते हुए कहता है हे गुरुवर मैं आपकी बात समझ गया वह आखिरी बात मुझे
खुद ही अनुभव करनी होगी तभी उन गुरु ने शिष्य को पानी पिलाया तभी अचानक वह गुरु शिष्य के चरणों में जा गिरा और शिष्य से कहने लगा भंते अब मैं बहुत बूढ़ा हो चुका हूं मेरे पास अब ज्यादा जीवन भी नहीं बचा मेरे शरीर में अब वह जान भी नहीं रही और यह सब मैंने केवल इसलिए किया कि वह आखिरी बात बता देने के बाद तुम यह ना मानकर बैठ जाओ कि तुम्हें सब कुछ पता है अब सुनो मैं तुम्हें वह आखिरी बात बताने जा रहा हूं इसे ध्यानपूर्वक सुनना लेकिन मेरी एक बात हमेशा याद
रखना जब तक तुम इस चीज का खुद अनुभव नहीं कर लोगे यह बात केवल तुम्हारे लिए बात रह जाएगी इसका तुम्हें कोई लाभ नहीं मिलेगा परंतु उससे पहले यह जान लो कि इस दुनिया में जितनी भी बातें कही गई हैं वह सब केवल बात बढ़ाने की बातें हैं कोई भी बात जब कोई कहता है तो उससे कई सारी बातें निकलती हैं हर व्यक्ति अपने हिसाब से बात को समझता और कहता है इस तरह से एक से अनेक बात निकलती है और इसीलिए इस दुनिया में सत्य कहने की कोई भाषा नहीं है कोई बात नहीं है
सत्य ही है जो वह आखिरी बात है जिसे कहा नहीं जा सकता क्योंकि सत एक ही होता है और वह हर स्थिति या परिस्थितियों में एक ही जैसा होता है जैसे कि तुम्हें जब प्यास लगी थी तो वह प्यास केवल पानी पीने से ही मिट सकती है ना कि उसकी बातें सुनकर जब तुम्हें प्यास लगी थी तो उसका अनुभव तुम ही जान सकते हो परंतु पानी के बारे में बातें तो बहुत हो सकती हैं इसलिए मैं तुम्हें वह आखिरी बात बताने जा रहा हूं इसे ध्यानपूर्वक सुनना और इसका अनुभव करने का प्रयास करना आगे व
गुरुवर अपने शिष्य से कहते हैं भंते आखिरी बात जो बुद्ध पुरुष अंत में जानते हैं इतना कहकर वह गुरुवर शांत हो गए तभी वह शिष्य उन गुरुवर से कहता है गुरुवर कहिए मैं सुन रहा हूं आखिर बताइए ना क्या बात है व शिष्य कई बार यही बात दोहराता रहा लेकिन उसके गुरु ने कुछ भी नहीं कहा उस दिन के बाद से उन गुरु के मुख से एक शब्द तक नहीं निकला देखते ही देखते कई दिन बीत गए लेकिन अब उस शिष्य को यह समझ नहीं आ रहा था कि आखिर उसके गुरु को क्या हो गया
है आखिर वह ऐसा क्यों कर रहे हैं आखिर वह कुछ बोलते क्यों नहीं जब से उन्होंने मुझसे कहा कि मैं तुम्हें आखिरी बात बताने जा रहा हूं उसके बाद से उन्होंने मुझसे एक शब्द तक नहीं कहा वह मुझे वह आखिरी बात बताने वाले थे जो बुद्ध पुरुष अंत में जानते हैं लेकिन उसकी बात से वह चुप हो गए उन्होंने मुझसे तब से कुछ भी नहीं कहा है और अब तो पूरे एक महीने बीत चुके हैं लेकिन मेरे गुरु मुझसे कुछ कह ही नहीं रहे रहे वशिष्ठ इसी चिंता में लगा हुआ था तभी अगले दिन सुबह
उस शिष्य के गुरु हमेशा हमेशा के लिए चुप हो गए किंतु अपना देह त्यागने से पहले गुरु ने अपने शिष्य को अपने थैली की ओर इशारा करते हुए कुछ कहने की कोशिश की थी और उसके बाद उन्होंने अपना देह त्याग दिया शिष्य ने गुरु का अंतिम संस्कार किया और उसके बाद उसने उस थैली में जाकर देखा तो उसमें एक छोटी सी चिट्ठी थी और उस चिट्ठी में लिखा हुआ था नते जो आखिरी बात मैं तुम्हें बताना चाहता हूं वह आखिरी बात कभी हो ही नहीं सकती शिष्य को अब भी कुछ समझ नहीं आ रहा था
कि आखिर इसका क्या मतलब है आखिर उसके गुरु ने ऐसा क्यों कहा है ऐसा क्यों लिखा है उसे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था कई दिनों तक तो वह इसी बारे में सोचता रहा लेकिन उसे इसका कोई जवाब नहीं मिला अंत में उसने यह तय किया कि जैसा भी उसे उसके गुरु ने मार्ग दिखाया है वह उस मार्ग पर आगे बढ़ेगा और सत्य की प्राप्ति करेगा वह आध्यात्म की मार्ग पर आगे बढ़ता गया और करीब 10 सालों की खोज बन के बाद आखिरकार एक दिन उसने सत्य को प्राप्त कर ही लिया और तब जाके
उसे अपने गुरु की बात समझ में आ गई और अब वह मौन हो चुका था और अब उसे वह आखिरी बात पता चल चुकी थी वह आखिरी बात कोई कह नहीं सकता क्योंकि जो बात कह दी जाए वह आखिरी नहीं होती और वही सत्य है शांति है एक जैसा है और वह कभी नहीं बदलता फिर भी अगर मैं आपसे उस आखिरी बात के बारे में बात कहूं तो मेरे कहते ही आप जितने लोग भी यह वीडियो देख रहे हैं जो मेरी बातें सुन रहे हैं वह उतनी ही तरह-तरह की बातें निकालेंगे और वह सत्य नहीं
होगा उसमें कहीं भी आपको सत्य नजर ही नहीं आएगा और ऐसे में वह आखिरी बात भी नहीं रह जाएगी तो आपके हिसाब से वह आखिरी बात क्या है क्या आप अब तक जान चुके हैं या नहीं तो यदि अगर आप अब तक उस बात को नहीं पहचान पाए तो मैं एक बार फिर से आपको समझाने का प्रयास करता हूं और आपको बताने का प्रयास करता हूं वह आखिरी बात है लगता है अब तक आप समझ नहीं पाए वह आखिरी बात है मौन और जब हम मौन हो जाते हैं तो हम कुछ नहीं कहते और वही
सत्य होता है वही बदलता नहीं इसलिए जो बुद्ध पुरुष अंत में जानते हैं वह यही सत्य है जो कभी नहीं बदलता वैसे दोस्तों आपने आज की इस वीडियो से क्या सीखा वह मुझे आप कमेंट में जरूर बताइएगा और अगर आपको यह वीडियो अच्छी लगी हो तो इस वीडियो को लाइक और अपने दोस्तों के साथ शेयर भी जरूर कीजिएगा दोस्तों जब हमारा मस्तिष्क अच्छे तरीके से काम करता है तो ही हम अच्छा सोच पाते हैं और जीवन में अच्छे-अच्छे बदलाव भी ला पाते हैं और जीवन में अगर आपको बड़े फैसले लेने हैं मुश्किल हालातों से निपटना
होता है तो हमें मानसिक रूप से मजबूत होना बहुत ज्यादा जरूरी होता है जरूरी नहीं कि आपकी जिंदगी में हर पल अच्छा ही होता रहे और आप तभी खुश रहे कभी-कभी आपकी जिंदगी में ऐसे वक्त भी आएंगे जहां पर आपको भारी मुसीबतों का सामना भी करना पड़ सकता ऐसे में कई बार होता है कि इंसान मुसीबतों का सामना करते-करते अपने मुश्किल हालातों से लड़ते-लड़ते अपने जीवन से हारने लगता है लेकिन वहीं पर जो इंसान मानसिक रूप से मजबूत होते हैं वह इन मुश्किल हालातों से अपने कठिन समय से बाहर जरूर निकल आते हैं तो दोस्तों
आज की इस वीडियो में हम अपने मुश्किल वक्त से बाहर कैसे आएं इसी पर चर्चा करने वाले हैं मैं आठ नियम बताने वाला हूं जिसे अगर आप जान और समझ लेते हैं तो यकीन मानिए आप अपने मुश्किल हालातों से जरूर बाहर निकल आएंगे और आप मानसिक रूप से एक मजबूत इंसान भी बन जाएंगे तो मित्रों आज की यह वीडियो बहुत ही महत्त्वपूर्ण होने वाली है इसे छोड़कर कहीं जाइएगा नहीं मित्रों एक बार एक बौद्ध महात्मा आश्रम में अपने शिष्यों को दिमाग के ऊपर कुछ प्रवचन दे रहे थे गुरु कह रहे थे कि इंसान के मस्तिष्क
के विचार कभी अच्छे होते हैं तो कभी बुरे होते हैं अच्छे विचार जब उसके दिमाग में जन्म लेते हैं तो वह अच्छी और कल्याणकारी बातें सोचता है लेकिन वहीं पर अगर बुरे और गलत भावनाएं जन्म लेती हैं तो उससे उसका पतन होता है तभी उन्हीं में से एक राजवंत नाम का शिष्य खड़ा होता है और गुरु से पूछता है कि गुरुवर क्या कुछ ऐसा तरीका आप बता सकते हैं जिससे कि हम अपने मस्तिष्क को मजबूत और ताकतवर बना सकते हैं खुद को मानसिक रूप से मजबूत बना सके गुरु कहते हैं कि अवश्य मैं बताऊंगा लेकिन
उससे पहले मैं कुछ बातें मन पर बता रहा हूं जिसे तुम लोग ध्यानपूर्वक सुनना तभी जाकर के हम बताएंगे कि मानसिक रूप से मजबूत कैसे बने तभी तुम सब इस बात को बड़ी ही आसानी से समझ पाओगे गुरु कहते हैं कि जब भी हम कुछ सोचते हैं तो सबसे पहले वह विचार हमारे मस्तिष्क में जन्म लेते हैं और उसी के अनुरूप हमारा पूरा शरीर कार्य करने लगता है मान लो कि आप कुछ दुख भरी बातें सोचते हैं तो आप बिल्कुल शिथिल होते चले जाते हैं आपके शरीर की ऊर्जा कम होने लगती है लेकिन वहीं पर
अगर आप कुछ उत्साह भरी बातें सोचते हैं तो आपके शरीर के अंदर असीमित ऊर्जा बहने लगती है आप वाकई में ऊर्जावान दिखाई देने लगते हैं आप यह अनुभव खुद कर पाएंगे कि जब आप खुशी होते हैं तो आपके शरीर के अंदर बहुत ऊर्जा आ जाती है आपका रोम रोम खिल उठता है ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि आपने अपने दिमाग में कुछ जोश भरी बातें सोची शरीर तो वही है आपका लेकिन जब आप दुखी होते हैं तो आपका शरीर बिल्कुल ऊर्जा विहीन हो जाता है लेकिन जब आपके विचार जोश भरे वाले होते हैं तो आपका शरीर खिल
उठता है यानी हमारा शरीर किस तरीके से काम करेगा यह सब हमारे मस्तिष्क में उत्पन्न हो रहे विचारों पर निर्भर करता है अब तुम सबको मेरी बातें बहुत ही अच्छे तरीके से समझ में आएंगी अब हम बताने जा रहे हैं कि मानसिक रूप से हम मजबूत कैसे बने गुरु कहते हैं कि मैं तुम सबको आठ तरीका बताऊंगा अगर आप उन आठ तरीकों को अपने दिमाग में लाहे वैसा ही सोचते हैं तो यकीन मानिए आपका शरीर भी वैसा ही काम करने लगेगा जैसा कि मैं पहले बता चुका हूं कि जब आप दुखी होते हैं तो आपका
शरीर ऊर्जा विहीन होने लगता है लेकिन जब आप खुश होते हैं आपके दिमाग में अच्छा विचार आया और आप खुश हो गए तो आपके शरीर में अच्छी ऊर्जा बहने लगती है इसका मतलब यह है कि अगर हम वह आठ तरीका जान ले और वही हम अपने दिमाग में सोचे तो हमारा शरीर भी ऊर्जा और जोश से भर जाएगा अर्थात हम मानसिक रूप से मजबूत बन जाएंगे और वास्तव में जब आप मानसिक रूप से मजबूत बन जाएंगे तो आप मुश्किल हालातों का सामना बड़ी ही आसानी से कर लेंगे गुरु कहते हैं कि शिष्यों मानसिक रूप से
मजबूत बन का पहला नियम है जो हो चुका है उसकी परवाह करना छोड़ दो गुरु कहते हैं कि शिष्यों मुझे यह बताओ कि सूर्य किस दिशा में उगता है तो सभी शिष्यों ने एक साथ जवाब दिया कि गुरुजी सूर्य पूर्व दिशा निकलता है फिर गुरुजी ने कहा कि अगर मैं यह कहूं कि सूर्य पश्चिम दिशा से निकले तो क्या वह निकलेगा सभी शिष्य कहते हैं कि बिल्कुल नहीं गुरुवर सूर्य तो पूर्व दिशा से ही निकलेगा हम उसके स्थान को उसके जगह को बदल नहीं सकते फिर गुरु कहते हैं कि मान लो बारिश का मौसम है
और अगर मैं यह बोलूं कि बारिश बंद हो जाए तो क्या हमारे बोलने से बारिश बंद हो जाएगी शिष्य कहते हैं कि नहीं गुरुवर वह तो मौसम में बदलाव की वजह से होगा जब मौसम में बदलाव होगा तो बारिश बंद हो जाएगी फिर गुरु जी कहते हैं कि अगर मैं तुम लोगों से यह कहूं कि ठंडी के मौसम में गर्मी पड़ने लगे तो ऐसा होने वाला तो नहीं है शिष्य कहते हैं गुरुवर आप ठीक कह रहे हैं यह कभी नहीं हो सकता कि ठंडी के मौसम में गर्मी पड़े और गर्मी के मौसम में ठंडी पड़ने
लगे यह मौसम तो प्रकृति पर निर्भर करता है जो कि हमारे बस में नहीं है फिर गुरु कहते हैं कि ठीक उसी प्रकार अगर जो चीज हमारे वश में नहीं होती है या जो बातें घटनाएं बीत चुकी हैं अगर हम उन घटनाओं को लेकर के बार-बार परेशान होते रहेंगे या उसकी बहुत ज्यादा परवाह करेंगे तो क्या हम भूतकाल की घटनाओं को बदल सकते हैं शिष्य कहते हैं कि नहीं गुरुवर फिर गुरु कहते हैं कि अगर तुम उन बीती घटनाओं को लेकर के बार-बार चिंता में रहोगे और उस चीज की परवाह करोगे तो तुम परेशान होते
चले जाओगे इसीलिए तुम्हारी जिंदगी में जो घटित हो चुका है कोशिश करो उसे भुलाने की और उसका एकमात्र तरीका है कि आप अपने आने वाले समय पर आने वाले भविष्य पर आने वाली चीजों पर अपना ध्यान केंद्रित करिए गुरु आगे कहते हैं कि मानसिक रूप से मजबूत बनने का दूसरा नियम है ध्यान करने की आदत डाले गुरु कहते हैं कि गौतम बुद्ध जब सत्य की खोज में निकल पड़े थे तो उन्होंने बहुत सारे उपाय किए बहुत सारे कर्मकांड किए लेकिन उन कर्म कांडों की वजह से उन्हें बहुत ज्यादा कुछ हासिल नहीं हुआ और उनका शरीर
दुबला पतला होता चला गया लेकिन वह सत्य की खोज करने में असमर्थ रहे उनके गुरुओं ने उन्हें बहुत सारे कर्मकांड उपाय बताए लेकिन उन कर्मकांड का कोई मतलब नहीं हुआ अंत में जब भगवान गौतम बुद्ध स्वयं ध्यान की अवस्था में बैठे तो धीरे-धीरे ध्यान की गहराइयों में जाकर के उन्हें वह सारी चीजें लगने लगी जिस चीज की वह खोज में निकल पड़े थे ध्यान के जरिए वह अपने सभी विचार पर विजय पा लिए उन्होंने पापी मार्ग को पराजित किया काम वासना पर विजय पाई अपनी हर एक भावना पर वह विजय पा लिए और यह सब
तभी हुआ जब वे ध्यान की गहरी अवस्था में बैठे और कई दिनों तक ऐसे ही बैठे रहे ध्यान करने से हमारा मन और मस्तिष्क बहुत ही शांत हो जाता है जिसे कि अगर हम किसी वस्तु पर या किसी के बारे में या किसी चीज के बारे में जब विचार करते हैं तो हमारा पूरा ध्यान उसी पर केंद्रित रहता है हमारा दिमाग ज्यादा इधर-उधर भागता नहीं है और हम चीजों को बहुत ही अच्छे तरीके से समझ पाते हैं ध्यान ही एक ऐसा तरीका है जो आपको हर तरीके से आपके दिमाग को मजबूत बनाता है बौद्ध भिक्षु
अगर किसी बात पर ज्यादा जोर देते हैं तो वह ध्यान की प्रक्रिया पर ध्यान में कई घंटे तक बैठे रहते हैं जिससे उनका दिमाग बहुत ही शांत रहता है उनका मन बहुत ही शांत रहता है और जिसका मन शांत रहता है वही किसी भी चीज पर अच्छी तरह अच्छी तरीके से विचार कर सकता है अर्थात वह मन और मम मस्तिष्क दोनों से मजबूत होता चला जाता है ध्यान करने से आपकी सारी वासना एं आपके नियंत्रण में रहेंगी आप अपनी इच्छा अनुसार अपनी वासना को अपने वश में किए रहेंगे गुरु आगे कहते हैं कि मानसिक रूप
से मजबूत बनने का तीसरा नियम है बहुत ज्यादा किसी से उम्मीद मत रखना गुरु ने कहा कि तुम सब अपनी मर्जी से जन्म लिए हो अपनी मर्जी से ही गर्भ का चुनाव किए हो लेकिन इंसान जन्म लेने के बाद वह यह सब भूल जाता है कि उसे क्या करना क्या नहीं वह किस लिए जन्म लिया था और जन्म लेने के बाद वह तमाम तरह की वासनाओं से ग्रसित हो जाता है इस संसार की मोह माया में वह बहुत ज्यादा परेशान हो जाता है वह खुद को जान ही नहीं पाता वह खुद को भूल जाता है
और यही वजह रहती है कि वह तरह-तरह के लोगों से अपनी बहुत ज्यादा उम्मीदें लगा बैठता है उम्मीदें दुख का कारण बनती हैं जिस भी व्यक्ति वस्तु से आपकी उम्मीदें ज्यादा बढ़ जाएंगी आने वाले समय में सबसे ज्यादा दुख आपको उसी से मिलने वाला है क्योंकि उम्मीद पर होती है दुख भी वहीं पर होती है क्योंकि आप किसी से बहुत ज्यादा उम्मीद लगा लिए और वह व्यक्ति आपकी उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा तो सबसे ज्यादा दुख आपको उसी से होने वाला है क्योंकि जब उम्मीद टूटती है तो दुख बहुत ज्यादा होता है इसलिए इस सांसारिक
इस भौतिक जीवन में बहुत ज्यादा उम्मीद और बहुत ज्यादा मोह किसी भी व्यक्ति से मत करना तभी एक शिष्य उठ खड़ा होता है और कहता है कि हे गुरुवर हम बिना उम्मीद से बिना आशा से कैसे जी सकते हैं हम सबके मन में रहता है कि मुझे यह चीज करनी है मुझे वह चीज करनी है मुझे जीवन में ऊंचाइयों को हासिल करना है बिना उम्मीद के तो हम लोग जीवन में आगे बढ़ ही नहीं सकते गुरु ने कहा कि कुछ पाने की लालसा कुछ बड़ा बनने की लालसा जीवन में जरूर आपको ऊंचाइयों तक ले जाएगी
कुछ बड़ा बनने के लिए लालसा खुद से होती है ना कि किसी व्यक्ति वस्तु विशेष से मैं यहां पर लोगों के बारे में बात कर रहा हूं कि अगर तुम यह सोचो कि मेरा दोस्त मेरे साथ हमेशा खड़ा रहेगा या मेरे लिए मेरे साथ हमेशा खड़ा रहेगा या आप जो सोचे वह सामने वाला इंसान आपके लिए वैसा करे तो यह सभी चीजें बहुत ज्यादा उम्मीद और मोह को बढ़ावा देती हैं बहुत ज्यादा उम्मीद किसी से मत रखना खुद से उम्मीद रखोगे तो दुख बहुत ज्यादा नहीं होगा लेकिन अगर दूसरों से उम्मीद रखोगे और वह उम्मीद
पूरी नहीं हुई तो दुख बहुत ज्यादा होगा कई बार होता है कि माता-पिता जो अपने जीवन में हासिल नहीं कर पाए वह चाहते हैं कि वह चीज उनके बच्चे हासिल करें वह सारा भार अपने बच्चों पर ला देते हैं बच्चे उनके हिसाब से चले व उनकी उम्मीदों को पूरा करें उन्होंने ने जो अपने जीवन में हासिल नहीं कर पाया वह काम अब उनके बच्चे करें और लगभग लगभग इस समय तो सभी के माता-पिता यही कह रहे हैं बहुत कम लोग होते हैं जो अपने बच्चों को आजाद रखते हैं मेरी सभी से गुजारिश है कि अपनी
उम्मीदों का पहाड़ अपने बच्चों पर ना ठोपे गुरु कहते हैं कि मानसिक रूप से म बूत होने का चौथा नियम है कि पहली बार में ही किसी काम में फेल होने से डरो मत गुरु आगे कहते हैं कि शिष्यों अगर डर तुम पर हावी हो जाएगा तो तुम अवश्य असफल हो जाओगे अपनी जिंदगी में वह इंसान सबसे ज्यादा असफल होता है जिसे अपने लक्ष्य को पाने का डर रहता है अगर डर तुम्हारी जिंदगी में बढ़ गया तो तुम्हें वह असफलता की तरफ जरूर ले जाएगा क्योंकि डर तुम्हारे आत्म बल को तुम्हारे आत्मविश्वास को डगमगा देगा
कमजोर कर देगा और तुम्हारा आत्मबल तुम्हारा आत्मविश्वास कमजोर हो जाएगा तो तुम निश्चित ही अपने लक्ष्य को पाने में असमर्थ महसूस करोगे और यही असमर्थता तुम्हें असफलता की तरफ ले जाएगी इसलिए जीवन में जब तुम अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए आगे बढ़ो तो मन में किसी भी चीज की शंका मत रखो कि मैं फेल हो जाऊंगा अगर यह नहीं हुआ तो यह हो जाएगा यह सब बातें अपने दिमाग में मत लाओ क्योंकि यह सभी बातें आपको डर की तरफ ले जाएंगी और जब डर बढ़ेगा तो तमाम शंका आपके दिमाग में पैदा होगी आपको घबराहट
भी हो सकती है आपको नींद नहीं आएगी रात को बेचैन मन होने लगेगा क्योंकि आपका डर आपको असफलता की तरफ ले जा रहा है और जब असफलता का विचार आपके दिमाग में आएगा तो आप और ज्यादा डरने लगेंगे इसलिए जीवन में जब आप लक्ष्य की प्राप्ति के लिए आगे बढ़ जाओ तो मन में कोई शंका मत रखो सिर्फ और सिर्फ अपने काम करने पर ध्यान दो जब तुम काम करने पर ध्यान दोगे तो तुम भी डरो ग नहीं क्योंकि तुम अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए काम कर रहे हो उसके लिए जुट गए हो तो
तुम्हारा डर खत्म हो जाएगा और जब डर खत्म हो जाएगा तो तुम जरूर सफल हो जाओगे गुरु आगे कहते हैं कि पांचवा नियम है मानसिक रूप से मजबूत बनना वह यह है कि जिंदगी में कभी भी खुद को कोसो नहीं गुरु कहते हैं कि जो इंसान जितना ज्यादा संघर्ष करता है वह उतना ही मजबूत बनता चला जाता है जितना ज्यादा तुम मजबूत बनोगे उतना ही ज्यादा तुम काबिल होते चले जाओ इसलिए अगर तुम किसी भी चीज में असफल भी हो जाते हो या कोई चीज तुम्हारी इच्छा के अनुसार नहीं हुई या तुमने कुछ ऐसा कार्य
किया जैसा नहीं करना चाहिए था और इन सब बातों को लेकर के अगर तुम पछता रहे हो खुद को कोस रहे हो तो यह तुम्हें मानसिक रूप से कमजोर करता चला जाएगा क्योंकि खुद को कोसना बहुत ज्यादा खतरनाक होता है यह आपके दिमाग की क्षमता को कम कर देगा आपकी सोचने समझने की शक्ति को कम कर देगा आपके आत्म बल आपके आत्मविश्वास को कम कर देगा इसीलिए जीवन में कभी भी किसी भी कार्य के लिए खुद को कोसना नहीं क्योंकि अगर वह कार्य तुमसे नहीं हुआ है या जो तुम सोच रहे हो वह जिंदगी में
नहीं कर पाए तो इसका मतलब यह नहीं है कि तुम असफल ही हो गए अगर मैं यह कहूं कि यह सामने वाला आम का पेड़ है इस पर सबसे पहले कौन सा जानवर चढ़ेगा हाथी चढ़ेगा बंदर चढ़ेगा या फिर गिलहरी और या फिर शेर तो सब शिष्यों ने कहा कि गुरुवर इस पर तो गिलहरी और बंदर सबसे पहले चढ़ जाएंगे तभी फिर गुरु कहते हैं कि तो अगर यह हाथी सोचे कि मैं इस पेड़ पर नहीं चढ़ पाया अगर वह खुद को कोसने लगे तो क्या यह सही है शिष्य ने कहा कि गुरुवर यह तो
गलत बात है क्योंकि हाथी तो कभी भी पेड़ पर छड़ ही नहीं सकता हाथी तो पेड़ पर चढ़ने के लिए बना ही नहीं है गुरु कहते हैं कि ठीक इसी प्रकार हर एक व्यक्ति का काम करने की कला का दिमाग का अलग-अलग महत्व होता है कोई किसी कार्य में माहिर होता है तो कोई किसी कार्य में बस हमें इसी को समझने की जरूरत होती है जरूरी नहीं कि दुनिया के लोग जैसा कर रहे हैं तो तुम भी वैसा करो तुम अपनी प्रतिभा के हिसाब से कार्य को करो अगर तुम अपनी प्रतिभा के हिसाब से करोगे
तो तुम उसमें जरूर सफल होगे गुरु आगे कहते हैं कि मानसिक रूप से मजबूत बनने का छठा नियम है अपनी ऊर्जा को व्यर्थ में बर्बाद मत कर करो गुरु कहते हैं कि तुम सबके अंदर अभी बहुत ऊर्जा है है कभी भी अपनी ऊर्जा को गलत कार्यों में गलत लोगों पर बर्बाद मत करना क्योंकि अगर तुम अपनी ऊर्जा को बर्बाद करोगे तो वह तुम्हें बर्बादी की तरफ ले जाएगी इसलिए अपनी ऊर्जा को अपने लक्ष्य में लगाओ क्योंकि अभी तुम सबके पास बहुत ज्यादा ऊर्जा है अगर तुम सब पूरी ऊर्जा के साथ अपने लक्ष्य पर जुड़ जाओगे
तो तुम जरूर सफल हो जाओगे लेकिन अगर तुम ऊर्जा को गलत जगह पर लगा रहे हो तो तुम्हारी ऊर्जा बिखरने लग और जब जब ऊर्जा बिखरने लगेगी तो तुम कभी भी अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर पाओगे गुरु आगे कहते हैं कि मानसिक रूप से मजबूत बनने का सातवां नियम है सुनो सबकी लेकिन करो अपने मन की गुरु कहते हैं कि शिष्यों पहले ध्यान से तुम यह पता करो कि तुम्हारे अंदर कितनी क्षमता है अगर तुम सबको अपनी क्षमता के बारे में पता है तो तुम अपनी क्षमता के हिसाब से कार्य को करो भले लाखों
लोग तुमसे यह बोले कि तुम इस कार्य को नहीं कर सकते हो उस कार्य को नहीं कर सकते हो तो तुम कभी भी उन पर भरोसा नहीं करना या उनके हिसाब से मत चलना क्योंकि शरीर तुम्हारा अपना है तुम्हें खुद के बारे में सबसे ज्यादा तुम ही जान पाओगे कोई दूसरा तुम्हारे बारे में तुमसे ज्यादा नहीं जान पाएगा तुम सबको अपने-अपने बारे में पता होगा अपनी-अपनी क्षमता के बारे में पता होगा कि तुम इस कार्य को या किसी भी कार्य को कैसे कर सकते हो कोई किसी कार्य को बहुत जल्दी कर सकता है तो कोई
थोड़ा समय लगा सकता है यह सब बातें तो तुम सबको खुद के बारे में सबसे ज्यादा तुम्ही को ही पता होगी इसलिए तुम्हारे अंदर जो क्षमता है अपनी क्षमता के हिसाब से ही अपने कार्य का चुनाव करो और जब तुम अपनी क्षमता के हिसाब से कार्य को करोगे खुद के अंदर की आवाज को सुनोगे तो तुम जीवन में जरूर आगे जाओगे कई बार होता है कि लोग खुद की क्षमता को पहचानता ही नहीं जैसा दूसरे लोग कह रहे हैं वह वैसा ही करने लगते हैं और अपनी जिंदगी का ढेर सारा समय यूं ही बर्बाद कर
देते हैं उनसे ऐसा काम करने को कहा गया था तो वह भी वैसा ही काम करने में जुट गए बिना सोचे समझे कि उनकी क्षमता कितनी है या उनकी प्रतिभा उस कार्य में है कि नहीं तो ऐसे लोग कभी भी अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सकते क्योंकि जो इंसान अपनी खुद की क्षमता को नहीं पहचान पाएगा वह जीवन में कभी भी सफलता अर्जित नहीं कर पाएगा यह शरीर तुम्हारा है यह दिमाग तुम्हारा है सोचने से समझने की शक्ति भी तुम्हें ही तय करनी है तू पता होना चाहिए कि तुम्हारा शरीर कितना मजबूत है कितना
ताकतवर है और इसमें कितनी क्षमता है और अगर क्षमता नहीं है तो अपने शरीर की क्षमता को बढ़ाने की कोशिश करिए और खुद के अंदर की खुद की भावनाओं को सुनने का प्रयास करिए और अपनी क्षमता के हिसाब से आगे बढ़ फिर गुरु आगे कहते हैं कि मानसिक रूप से मजबूत बनने का आठवां नियम है बोलना कम करो और अपने कार्य पर ध्यान दो गुरु आगे कहते हैं कि जो इंसान बहुत ज्यादा बोलता है वह अपनी ऊर्जा को यूं ही नष्ट करता रहता है क्योंकि जो बोलता ज्यादा है वह सोचता कम है क्योंकि उसने अपनी
सारी की सारी ऊर्जा बोलने में खपत कर दी तो वह सोचेगा क्या उसे सोचने का समय ही नहीं मिल पाया लेकिन जो इंसान कम बोलता है उसे सोचने का समय ज्यादा मिल जाता है और जब तुम किसी बात पर या किसी तत्व पर ज्यादा विचार करोगे तो जाहिर सी बात है कि तुम्हारे दिमाग में तमाम विचार आएंगे और वह विचार ही तुम्हें सफलता की तरफ ले जाएंगे गुरु कहते हैं कि शिष्यों अगर मैं तुमसे कुछ सवाल पूछता हूं तो सबसे पहले तुम सोचते हो तुरंत बोल तो नहीं देते लेकिन अगर कोई यहां बैठा है और
वह अपने साथी से बात कर रहा है अपने दूसरे गुरु भाइयों से बात कर रहा है तो वह कभी हमारी बात पर ध्यान नहीं दे पाएगा और जब हम प्रश्न पूछेंगे तो उसका गलत जवाब वह दे देगा क्योंकि वह बोलने में अपनी ऊर्जा व्यर्थ कर रहा है वह हमारी तरफ तो ध्यान दिया ही नहीं लेकिन जो शिष्य श है हमारी बात को ध्यान से सुन रहा है तो वह सोच विचार करके पूर्ण तरीके से उत्तर देगा और उसके उत्तर भी सही होंगे इसलिए शिष्यों कम बोलने का अभ्यास करो जब तुम कम बोलने का अभ्यास करोगे
तो तुम किसी भी बात पर किसी भी तथ्य पर ज्यादा विचार कर पाओगे तो जाहिर सी बात है कि समस्या का समाधान जरूर निकल कर आएगा और कम बोलने से तुम्हारी ऊर्जा की भी बचत होगी उस ऊर्जा को सोचने में लगाओ गुरु कहते हैं कि शिष्यों यह यह थे मानसिक रूप से मजबूत बनने के आठ नियम अगर तुम सब यकीन के साथ इन आठ नियमों का पालन अपनी जिंदगी में करते हो तो तुम मानसिक रूप से अवश्य मजबूत बनोगे फिर कोई परेशानी कोई भी रुकावट तुम्हारी जिंदगी में नहीं आने वाली है कोई समस्या भी आएगी
तो तुम उसका डटकर सामना भी कर पाओगे सभी शिष्य गुरु की बात को सुनकर के उनका कोटि कोटि नमन करते हैं और वे लोग समझ जाते हैं कि मानसिक रूप से मजबूत बनने के यह आठ नियम उनकी जिंदगी में कितने हितकारी साबित होने वाले हैं वह सभी गुरु को प्रणाम करते हैं और उस दिन की शिक्षा भी पूरी हो जाती है सभी लोग अपने आश्रम में चले जाते हैं तो दोस्तों उम्मीद है इस वीडियो से आपको काफी कुछ सीखने को मिला होगा