Muslim Army Chiefs | Fatah e Syria | Umar Series 8

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The Kohistani
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एक बहुत ही इंटरेस्टिंग हदीस है कि जब एक जंग के बाद रसूलल्लाह सला वसल्लम रात के टाइम अपने कैंप में बैठे हुए थे तो एक सहाबी आप सला वसल्लम से मिलने के लिए उनके कैंप के अंदर गए तो आप सला वसल्लम ने उसे अपने पास बिठाया और उसे फ्यूचर के बारे में एक बहुत ही इंपॉर्टेंट बात बताई कि मुझसे कयामत कि कुछ निशानियां सुनो मेरी मौत और उसके बाद जेरूसलम की फतह और फिर एक ऐसी ववा एक ऐसी बीमारी जो तुम मुसलमानों को ग्रेट नंबर्स में मारेगी इस हदीस के बाद यह सब कुछ एगजैक्टली इसी
तरह ही हुआ इस हदीस के कुछ ही अरसे बाद आप सल्लल्लाहु अ वसल्लम इस दुनिया से चले गए और उनकी वफात के बाद कुछ ही सालों में मुसलमानों ने उमर बिन खत्म की लीडरशिप में यह सारे इलाके फतह कर लिए ज मूक और कादसिया जैसी अजीम जंगे जीतने के बाद एक तरफ मुसलमानों ने पर्जन एंपायर में उनके कैपिटल मदन को फतह किया और दूसरी तरफ रोमन एंपायर में मुसलमानों ने पैगंबरों की सिटी जेरूसलम को फतह किया जिसे हम पूरा एक्सप्लेन कर चुके नाउ यहां से आगे मुसलमान रुके नहीं बल्कि हजरत उमर के ऑर्डर्स पर मुसलमानों
ने अपनी फौज को ग्रुप्स में डिवाइड किया एक ग्रुप अबू उबैद और खालिद बिन वलीद की लीडरशिप में ऊपर तुर्की की तरफ रवाना हुआ और दूसरा ग्रुप आम बिन आस की लीडरशिप में फलस्तीन के इलाके गज्जा को फतह करने के लिए गया यस वही गज्जा जहां पर आज खालिद बिन वलीद और अबू उबैद फुल स्पीड आगे बढ़ रहे थे और बहुत सारी छोटी-छोटी जंगो के बाद मुसलमानों ने यह सारा इलाका भी फतह कर लिया लेकिन इन सारी जंगो में एक जंग को डिस्कस करना बहुत ही इंपॉर्टेंट है बैटल ऑफ द आयरन ब्रिज क्योंकि यह जग
बिल्कुल रमक और कासिया की तरह एक बहुत बड़ी जंग होने वाली थी क्योंकि रोमन एंपायर हजारों की फौज लेकर इस ब्रिज के पास खड़ी थी और दरिया के दूसरे तरफ अबू उ बैदा सिर्फ 15000 की फौज के साथ खड़े थे और अब एक बार फिर मुसलमानों और रोमंस के दरमियान एक बहुत बड़ी जंग होने वाली थी लेकिन 1 मिनट अगर यह इतनी एक बड़ी जंग तो हमने आज तक इसके बारे में कुछ सुना क्यों नहीं है क्योंकि यह जंग शुरू होने से पहले ही खत्म हो गई जैसे ही मुसलमानों की फौज एक दूसरे के सामने
आए अचानक रोमन फौज ने देखा कि उनकी एक साइड से कुछ आवाजें आ रही है जब रोमन फौज ने थोड़ा गौर से देखा तो एक दूसरी फौज फुल स्पीड इनकी तरफ बढ़ रही थी एंड ऑफ कोर्स यह फौज कौन लीड कर रहा था खालिद बिन वलीद आज तक इस बात का पता नहीं चला कि खालिद बिन वलीद ने कब और कैसे इस दरिया को क्रॉस किया था लेकिन अचानक जंग से पहले ही खालिद बिन वलीद ने वहां पहुंचकर इस रोमन फौज को क्रश कर दिया और रोमंस एक बार फिर यह जंग छो छोड़कर भाग गए
और इस तरह यह इतनी बड़ी जंग शुरू होने से पहले ही खत्म हो गई यह जंग सीरिया में मुसलमानों की आखिरी जंग थी और इस जंग के बाद मुसलमानों ने हमेशा के लिए पूरे शाम को फतह कर लिया अब मुसलमानों की खिलाफत का कंट्रोल सीरिया फलस्तीन जॉर्डन और लेबन तक फैल चुका था जिसके बाद मुसलमानों के आर्मी चीफ अबू उ बैदा यहीं पर रहे और खालिद बिन वलीद अकेले अपनी फौज के साथ पहली बार रोमन एंपायर के मेन हेड क्वार्टर तुर्की में दाखिल हुए और बहुत तेजी से रोमन एंपायर के कैपिटल कांस्टेंटिनॉपल इस्तांबुल की तरफ
बढ़ने लगे बट वेट अगर खालिद बिन वलीद रोमन एंपायर के कैपिटल के इतने क्लोज पहुंच चुके थे तो फिर उन्होंने इसे फतह क्यों नहीं किया बल्कि यह सिटी तो इससे 800 साल बाद एक दूसरे बादशाह सुल्तान मोहम्मद फाते ने फतह की थी क्योंकि जैसे ही खालिद बिन वलीद तुर्की में दाखिल हुए यहां पर एक बहुत बड़ा मसला हुआ हजरत उमर ताला अ ने खलीफा बनते ही खालिद बिन वलीद को उनके पोस्ट आर्मी चीफ के ओहदे से हटा दिया था लेकिन अब भी मुसलमान खालिद बिन वलीद को बाकी सारे जनरल से बहुत ज्यादा पावरफुल समझते थे
क्योंकि अब भी कुछ नए मुसलमान यह समझते थे कि आज यह खिलाफत रास्ता जहां भी है सिर्फ खालिद बिन वलीद की वजह से है और हजरत उमर को यह बात बिल्कुल भी पसंद नहीं थी और वह सबको यह दिखाना चाहते थे कि यह खिलाफत मेरी या खालिद की वजह से नहीं बल्कि अल्लाह की वजह से कायम है इसके अलावा एक मसला यह भी था कि इससे कुछ ही अरसा पहले एक दिन खालिद बिन वलीद कहीं बैठे हुए थे और एक शायर ने उनके सामने कुछ अशर पढ़े तो खालिद बिन वलीद ने खुश होकर उस शायर
को 10000 दरहम दिए लेकिन अब मसला यह था कि हजरत उमर ने मुसलमानों की फौज में अपने जनरल्स को कंट्रोल में रखने के लिए हर जगह जासूस बिठाए हुए थे जैसे ही खालिद बिन वलीद ने उस शायर को पैसे दिए वहां बैठे हजरत उमर के एक जासूस ने फौरन यह खबर मदीना में खलीफा तक पहुंचाई हजरत उमर को यह बात बिल्कुल पसंद नहीं आई कि हम यहां मदीना में बिल्कुल एक सादा और आम जिंदगी गुजार रहे हैं और हमारे जनरल्स वहां यह सब कर रहे हैं और हजरत उमर को इस बात का भी डर था
कि कहीं खालिद बिन वलीद ने उस शायर को यह पैसे मुसलमानों के माले गनीमत से ना दिए हो तो फौरन हजरत उमर ने मदीना से एक लेटर आर्मी चीफ अबू उबैद की तरफ भेजा यह बहुत ही एक खतरनाक लेटर था जिसमें हजरत उमर ने तीन ऑर्डर्स दिए थे नंबर वन जनरल खालिद बिन वलीद को एमेसा के सारे मुसलमानों के सामने पेश किया जाए और फिर सबके सामने उनसे यह पूछा जाए कि उन्होंने उस शायर को यह 10000 दरहम अपनी जेब से दिए या मुसलमानों के बैतुल माल से अगर अपनी जेब से दिए हैं तो यह
बिल्कुल फजूल खर्ची है और अगर बैतुल माल से दिए हैं तो यह इस एंपायर के साथ खयानत है दोनों सरतो में खालिद बिन वलीद को फौज से डिस्मिस करना जायज है नंबर टू खालिद बिन वलीद इस ऊपर वाले क्वेश्चन का जो भी जवाब दे उसे मुसलमानों की फौज से डिस्मिस कर दिया जाए नंबर थ्री और डिस्मिस करने के बाद उसे फौरन मुसलमान के कैपिटल मदीना में मेरे पास भेजा जाए अब यहां पर प्रॉब्लम यह थी कि खालिद बिन वलीद की पर्सनालिटी से तो रोमन और पर्जन एंपायर के बादशाह भी कमते थे तो अब हजरत उमर
को इस काम के लिए एक ऐसे इंसान की जरूरत थी जो खालिद बिन वलीद जैसे पावरफुल आदमी का भी हिसाब ले सके और इस काम के लिए हजरत उमर ने एक बहुत बड़ा सहाबी मने रसूल बिलाल रजला ताला अ को चूज किया बिलाल रला कोई आम सहाबी नहीं थे उन्होंने इस्लाम बहुत ही सख्त टाइम में कबूल किया था जब वो एक गुलाम थे और उनके मालिक उन पर बहुत सखत जुल्म किया करते थे लेकिन फिर भी वो इस्लाम से पीछे नहीं हटे तो इसीलिए हजरत उमर ने खालिद बिन वलीद जैसे बड़े जनरल को कंफ्रे अब
खलीफा के ऑर्डर को पूरा करने के लिए आर्मी चीफ अबू उबैद ने होम सिटी के सारे लोगों को जमा किया और खालिद बिन वलीद को भी यही आने का हुक्म दिया खालिद बिन वलीद ने यहां पहुंचकर यह महसूस किया कि कुछ तो गड़बड़ जरूर है क्योंकि अबू उबैद अपना सर नीचे करके बिल्कुल खामोश बैठे थे और इस पूरे महफिल में बिल्कुल एक पिन ड्रॉप साइलेंस थी तो खालिद बिन वलीद आकर अपनी जगह पर बैठे और सामने बिलाल रज अल्ला ताला अन्हो भी बैठे थे तो हजरत बिलाल रज अल्लाह ताला अन ने बहुत वेट किया कि
अब अबू उ बैदा कुछ बोलेंगे अब कुछ बोलेंगे लेकिन काफी देर गुजरने के बाद भी अबू उ बैदा बिल्कुल खामोश रहे तो हजरत बिलाल रज अल्लाह ताला अन्हो को समझ आ गई कि अबू उबैद बहुत ही एक सॉफ्ट इंसान है और उन्होंने खालिद बिन वलीद के साथ बहुत सारी जंगे लड़ी थी और दोनों बिल्कुल भाइयों की तरह एक दूसरे के करीब थे तो आखिर हजरत बिलाल इस महफिल में खड़े हुए और वहां सबके सामने खालिद बिन वलीद से पूछा कि ऐ खालिद हमारे खलीफा उमर बिन खत्म यह जानना चाहते हैं कि तुमने जो 10000 दरहम
उस शायर को दिए थे वह तुमने अपने पैसों से दिए थे या मुसलमानों के बैतुल माल से यह सुनकर खालिद बिन वलीद और वहां पर सभी बिल्कुल हैरान हो गए तो बिलाल रजि अल्ला ताला अन्हो ने दोबारा पूछा कि खालिद यह पैसे अपने जेब से दिए थे या बैतुल माल से इस पर खालिद बिन वलीद ने आखिर कहा कि ये मैंने अपने पैसों से दिए थे नाउ खालिद बिन वलीद इस वाकए के बाद वापस अपने सोल्जर्स की तरफ चले गए यहां पे एक बात नोट करना लाजमी है कि उस जमाने की दुनिया में स्लेव्स और
स्पेशली ब्लैक स्लेव्स को बिल्कुल जानवरों की तरह ट्रीट किया जाता था लेकिन अब जब एमेसा में एक फॉर्मर ब्लैक स्लेव उस वक्त के सबसे ताकतवर जनरल को कंफ्रे लोग यह सब देखकर बहुत ही हैरान थे लेकिन इस सब से यह क्लीयरली पता चलता है कि रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपने आखिरी खुदबुदा बिन वलीद तो वापस अपने सोल्जर्स के पास चले गए थे लेकिन अबू उबैद इब्ने जर्राह उन्हें यह बात बता ही नहीं सके कि इस लेटर में दो और पॉइंट्स भी है कि खालिद बिन वलीद को मुसलमानों की फौज से डिस्मिस करके मदीना की
तरफ भेजा जाए और वहां मदीना में हजरत उमर खालिद बिन वलीद का इंतजार करते रहे लेकिन आखिर काफी दिनों बाद उन्हें समझ आ गई कि जरूर अबू उबैद ने उन्हें बताया ही नहीं होगा तो हजरत उमर ने एक दूसरा खत खालिद बिन वलीद की तरफ डायरेक्ट भेजा कि तुम्हें फौज से डिस्मिस कर दिया गया है और फौरन सारे काम छोड़कर मदीना में आकर मुझसे मिलो खालिद बिन वलीद हजरत उमर का लेटर पढ़ने के बाद दोबारा अबू उबैद इब्ने जर्राह के पास गए और उनसे कहा कि तुमने मुझे क्यों नहीं बताया कि हजरत उमर ने मुझे
फौज से निकाल दिया है तो अबू उबैद ने उन्हें कहा कि आज ये जो भी हो रहा है इसमें मैं बिल्कुल भी इवॉल्व नहीं हूं यह सब खलीफा के ऑर्डर्स हैं तो आखिर फाइनली खालिद बिन वलीद शाम में अपनी फौज को छोड़कर मदीना की तरफ रवाना हुए लेकिन मदीना जाने से पहले खालिद बिन वलीद शाम की उन सिटीज की तरफ गए जिन्हें उन्होंने खुद फतह किया था और खालिद बिन वलीद को देखकर उन सिटीज के लोग उनके इस्तकबाल के लिए बाहर निकले और वहां के लोगों के सामने आखिरी स्पीच करके उन्हें अलविदा कहा और फिर
फाइनली मदीना पहुंचे जैसे ही खालिद बिन वलीद मदीना पहुंचे और हजरत उमर के घर की तरफ जाने लगे तो रास्ते मेंही उनकी मुलाकात खलीफा उमर से हुई एक तरफ दुनिया का सबसे ताकतवर बादशाह उमर बिन खत्म खड़े थे और दूसरी तरफ दुनिया के सबसे बड़े जनरल खालिद बिन वलीद तो पहले हजरत उमर ने फरमाया कि खालिद तुमने जो किया है वह दुनिया में आज तक कोई भी नहीं कर सका लेकिन याद रखो जो भी होता है वह सिर्फ अल्लाह ही करता है ये इन दो ग्रेट पर्सनेलिटीज के दरमियान एक बहुत ही फ्रैंक डिस्कशन थी जिसमें
खालिद बिन वलीद ने हजरत उमर से कहा कि आपने मेरे साथ जो यह किया है अच्छा नहीं किया तो हजरत उमर ने उसे कहा कि पहले मुझे यह बताओ तुम्हारे पास इतने पैसे कहां से हैं कि तुमने एक शायर को 10000 दरहम दिए तो खालिद बिन वलीद ने उन्हें कहा कि ये तो मैंने अपने पैसों से दिए तो खलीफा उमर ने हुकम दिया कि खालिद बिन वलीद फॉर्मर आर्मी चीफ के पास जितना भी माल है उस सबका हिसाब लगाया जाए जिस तरह आज भी यूएस कांग्रेस अमेरिका के सबसे ताकतवर लोगों को सामने बिठाकर उनसे हिसाब
लेती है चाहे वो कोई बिजनेसमैन हो या जनरल इसी मेरिट के सिस्टम की वजह से आज यूएस एक सुपर पावर है और यही मेरिट का सिस्टम आज से 1400 साल पहले खिलाफत रास्ता में भी था हजरत उमर रजला ताला अन के ऑर्डर्स पर बड़े सहाबा के एक ग्रुप ने खालिद बिन वलीद के मान का हिसाब लगाया और उन्हें पता चला कि खालिद बिन वलीद का हिसाब किताब बिल्कुल क्लियर है इस सब के बाद हजरत उमर ने खालिद बिन वलीद से कहा कि खालिद मेरे दिल में तुम्हारे लिए बहुत इज्जत है लेकिन फिर भी हजरत उमर
ने खालिद बिन वलीद को फौज से निकाल दिया और साथ ही अपने सारे गवर्नर्स को यह लेटर्स पहुंचाए कि मैंने खालिद बिन वलीद को किसी खयानत पर नहीं बल्कि इस बात पर फौज से हटाया है क्योंकि अब भी बहुत सारे मुसलमानों के दिलों में यह बात थी कि मुसलमान सारी जंगे सिर्फ खालिद बिन वलीद की वजह से जीतते हैं और मैं यह दिखाना चाहता था कि जंगे सिर्फ और सिर्फ अल्लाह की मदद की वजह से जीती जाती है खालिद बिन वलीद इस सब के बाद वापस शाम की तरफ गए एज अ जनरल नहीं बल्कि एक
आम सहाबी की तरह अपनी जिंदगी गुजारने लगे अब यहां पर बहुत सारे हिस्टोरियंस का ख्याल है है कि हजरत उमर ने खालिद बिन वलीद को सिर्फ और सिर्फ अपनी कुछ पर्सनल दुश्मनी की वजह से हटाया था लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं था क्योंकि हजरत उमर सिर्फ खालिद बिन वलीद के साथ नहीं बल्कि अपने हर जनरल को इसी तरह सख्ती से डील करते थे ताकि कभी भी कोई जनरल स्टेट से ज्यादा ताकतवर ना हो फॉर एग्जांपल एक दिन हजरत उमर रज अल्ला ताला अन्हो को खबर मिली कि पर्शियन एंपायर में उनके जनरल साद बिन अबी वकास
ने अपने हेड क्वार्टर कूफा की सिटी में लोगों के शोर और रश से बचने के लिए अपने ऑफिस और लोगों के दरमियान एक दरवाजा लगा आया था और जब शोर ज्यादा बढ़ जाता था तो वो कभी-कभी दरवाजा बंद कर दिया करते थे जो एक बहुत ही नॉर्मल बात है लेकिन जब मदीना में खलीफा उमर को इस बात का पता चला तो उन्होंने सोचा कि यह तो हमारा जनरल अपने आप को आवाम से ऊपर समझ रहा है तो उन्हें बहुत गुस्सा आया क्योंकि खिलाफत का निजाम यह था कि जनरल्स का दरवाजा हमेशा आवाम के लिए खुला
रहना चाहिए तो फौरन हजरत उमर ने अगेन एक बहुत बड़े सहाबी को मदीना से पर्जन एंपायर में कूफा की तरफ भेजा और उसे हुकम दिया कि जाकर जनरल साद बिन अबी वकास के दरवाजे को पहले निकालो फिर उसके टुकड़े-टुकड़े करो और फिर उसे आग लगा दो इस सहाबी ने जाकर ऐसा ही किया और इस वाकए के कुछ ही अरसे बाद हजरत उमर ने साद बिन अबी वकास को भी बगैर किसी वजह के जनरल की पोस्ट से हटा दिया और वजह अगेन वही थी कि कोई भी जनरल मुसलमानों की स्टेट से पावरफुल ना हो जाए और
इसके बाद अगेन हजरत उमर ने एक दूसरे जनरल मुगरा बिन शोबा की तरफ भी लेटर भेजा कि तुम जरा मदीना हो मेरा तुम्हारे साथ जरूरी काम है इन शॉर्ट हजरत उमर रज अल्लाह ताला अन्हो की खिलाफत में उन्होंने अपनी किसी किसी भी जनरल और गवर्नर को अपनी पोस्ट पर ज्यादा अरसा रहने नहीं दिया और यही हजरत उमर की खिलाफत की सबसे बड़ी क्वालिटी थी नाउ खालिद बिन वलीद तो मुसलमानों की फौज को छोड़कर चले गए लेकिन अब फाइनली रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अ वसल्लम की कही हुई हदीस के पूरे होने का टाइम आ चुका था जैसे ही
मुसलमान अपनी ताकत की पीक तक पहुंचे अचानक आउट ऑफ नोवेयर मुसलमानों की इस खिलाफत पर दो बड़ी मुसीबतें आई मुसलमानों के सीरिया में एक बीमारी ऊन आहिस्ता आहिस्ता फैलने लगी और यहां अरब में एक बहुत बड़ा कहत आया और अगले ौ महीने तक बारिशें ना होने की वजह से अरब की सारी फसलें और खाने पीने की चीजें तबाह हो गई और आहिस्ता आहिस्ता हालात इतने सख्त हुए कि अरब के लोग खाने पीने की चीजों के लिए भी तरसने लगे कि कहा जाता है कि अरब के लोगों की शक्लेशा के साथ-साथ जानवरों के जिस्म भी बिल्कुल
सूख गए अब जब अरब के लोग इतनी मुश्किल में थे तो इन सबको पता था कि अब सिर्फ एक ही इंसान इनकी मदद कर सकता है खलीफा उमर बिन खत्म तो वो सब जमा होकर हजरत उमर के पास आकर उनसे फरियाद करने लगे कि अब आप या मेंें इन मुश्किल हालात से निकाल सकते हैं हजरत उमर इससे पहले ही पर्जन एंपायर के कैपिटल को फतह कर चुके थे जिसके बाद मुसलमानों के बैतुल माल में इतना सोना पड़ा हुआ था कि मदीना दुनिया के सबसे रिच सिटीज में से एक थी लेकिन इस सोने से खरीदने के
लिए पूरे अरब में खाने पीने की कोई चीज थी नहीं हजरत उमर इस कैद की वजह से इतनी टेंशन में थे कि उन्होंने मुसलमानों के यह हालात देखकर यह कसम खाई कि मैं भी तब तक गोश्त दूध और घी को हाथ नहीं लगाऊंगा जब तक इन आम लोगों को भी खाने की यह सारी चीजें मिल ना जाए आहिस्ता आहिस्ता इस कद की वजह से हालात इतने खराब होते गए कि मजबूरन हजरत उमर ने एक बहुत ही इंपॉर्टेंट ऑर्डर दिया कि अगर इस कैद के दौरान कोई शख्स अपनी भूख को मिटाने के लिए किसी से चोरी
करें तो उसके हाथ नहीं काटे जाएंगे अब जब पूरा अरब मदीना के दरवाजे के सामने खड़ा था और यही मदीना उनकी आखिरी उम्मीद थी तो हजरत अली रज अल्ला ताला अन ने हजरत उमर से कहा कि मुझे पता है कि हालात तो बहुत सख्त है लेकिन अगर देखा जाए यह तारीख में पहली बार हुआ है कि पूरा अरब एक जिस्म की तरह यूनाइट होकर मदीना को ही अपना कैपिटल समझने लगा है नाउ जब अरब में खाने पीने की सारी चीजें खत्म हो गई तो हजरत उमर ने आखिर अरब से बाहर अपने सारे जनरल्स की तरफ
लेटर्स भेजे और इन सब लेटर्स में एक ही बात लिखी थी कि क्या तुम जनरल्स मुझे और मेरे साथियों को हलाक होते हुए देख सकोगे जबकि तुम सब वहां आराम से रहो जिस पर वहां सारे जनरल्स को समझ आ गई कि अब अरब के हालात बहुत ही खराब हो चुके हैं तो जनरल अमर बिन आस ने हजरत उमर की तरफ लेटर भेजा कि आप बिल्कुल टेंशन ना लें हम आपकी तरफ ऐसे काफिले भेजेंगे जिनका एक एंड मदीना में और दूसरा शाम में होगा और और इसी के साथ खाने पीने की चीजों से भरे हुए हजारों
कैमल्स सारे इलाकों इराक सीरिया फलस्तीन से मदीना की तरफ रवाना हुए और सिर्फ यही नहीं 20 बड़े-बड़े जहाज समंदर के रास्ते भी फुल लोडेड मदीना की तरफ रवाना हुए मदीना में अरब के सारे लोग जो बिल्कुल भोग की वजह से खराब हालत में बैठे हुए थे अचानक उन्होंने देखा कि हर तरफ से हजारों ऊंट खाने पीने की चीजें लेकर उनकी तरफ बढ़ रही थी और इस तरह अरब के लोगों ने पहली बार मदीना और हजरत उमर की ताकत को अपनी आंखों से देखा और इस वाकए के बाद अरब ने कभी भी मदीना के सामने खड़े
होने की कोशिश नहीं की इन काफिर के आने के बाद भी कैद खत्म नहीं हुआ और इतनी एक्सट्रीम तक पहुंचा कि एक दिन एक गरीब अरब ने जब खाने के लिए एक बकरी को जिबाह किया तो उस बकरी से बहुत कम गोश्त और सिर्फ हड्डियां ही निकली तो इस गरीब आदमी ने गम से चीख कर बोला कि आज अगर रसूलल्लाह सल्लल्लाहु सलम जिंदा होते तो यह दिन हमें नहीं देखना पड़ता कहा जाता है कि जब यही गरीब शख्स इसी भूख के साथ रात को सोने लगा तो उसने ख्वाब में रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को देखा
जिसमें आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इस आदमी को ऑर्डर दिया कि उमर तक मेरा सलाम पहुंचाओ और उसे यह बताओ कि उमर तुम्हें क्या हो गया है अकल से काम लो यह आदमी नींद से उठकर सीधा हजरत उमर के पास मदीना पहुंचा तो हजरत उमर के गुलाम ने उसे रोक लिया और उससे पूछा कि तुम कौन हो तो उसने कहा मुझे जाने दो मैं मैं रसूलल्लाह का मैसेज लेकर आया हूं यह सुनकर सब हैरान हो गए कि यह कैसे हो सकता है लेकिन जैसे ही उसने हजरत उमर को अपने ख्वाब के बारे में बताया तो
हजरत उमर समझ गए कि आप सल्लल्लाहु अ वसल्लम मुझे निमाज इस्तिस्का के बारे में याद दिला रहे हैं यह वो निमाज है जिसमें अल्लाह से बारिश के लिए दुआ की जाती है तो इसी के साथ हजरत उमर ने अपने सारे गवर्नर्स को यह ऑर्डर्स भेजे कि हम सब पूरी खिलाफत रास्ता में एक ही दिन एक ही टाइम पर एक साथ खड़े होकर ये नमाज पढ़ेंगे और अल्लाह से बारिश की दुआ करेंगे और जैसे ही अरब शाम इराक फलस्तीन के सारे लोग नमाज के लिए खड़े हुए और अल्लाह से बारिश की दुआ की तो इसके कुछ
ही टाइम बाद अचानक बारिश शुरू हो गई और इस तरह आहिस्ता आहिस्ता कैद की यह मुसीबत खत्म हो गई लेकिन अब जैसे ही कैद का यह मसला खत्म हुआ तो एट द सेम टाइम सीरिया की जो बीमारी आहिस्ता आहिस्ता फैल रही थी वो इतनी स्ट्रांग हो चुकी थी कि सीरिया के हर घर में लोग इस बीमारी से मरने लगे और आहिस्ता आहिस्ता यह बीमारी सीरिया में मुसलमान आर्मी के कैंप्स तक भी पहुंची जिससे बहुत सारे मुसलमान सोल्जर्स शहीद होने लगे जब मदीना में हजरत उमर को इस सब का पता चला तो उन्होंने फौरन एक लेटर
आर्मी चीफ अबू उबैद की तरफ भेजा और उन्हें फौरन मदीना की तरफ आने का हुकम दिया इस लेटर को पढ़कर अबू उबैद इब्ने जर्राह को समझ आ गई कि हजरत उमर उन्हें इसलिए बुला रहे हैं ताकि वह बीमारी से उन्हें बचा सके तो अबू उबैद ने हजरत उमर को जवाब दिया कि मैं इस इस मुश्किल टाइम में अपने सोल्जर्स को अकेला छोड़कर यहां से नहीं जा सकता अगर मुझे भी उनके साथ मरना हो तो मैं यही मरूंगा अबू उबैद का यह लेटर जब मदीना में हजरत उमर तक पहुंचा तो वह इसे पढ़कर रोने लगे तो
लोगों ने पूछा कि क्या हुआ कहीं अबू उ बैदा वफात तो नहीं हो गए तो हजरत उमर ने कहा कि नहीं बल्कि मुझे खद है कि वोह फौत होने वाले हैं और एगजैक्टली ऐसा ही हुआ आर्मी चीफ अबू उबैद के साथ-साथ मुसलमानों की फौज के 25000 सोल्जर्स इस बीमारी से शहीद हो गए इन 25000 में बहुत सारे सोल्जर्स वो थे जिन्होंने रमक जैसी अजीम जंग जीती थी और इन्हीं सोल्जर्स ने पहली बार इस्लाम को पूरी दुनिया में फैलाने की शुरुआत की थी इन 25000 सोल्जर्स का शहीद होना उस वक्त इस्लामिक एंपायर के लिए एक बहुत
बड़ा धज था आर्मी चीफ अबू उबैद ने अपनी वफात से पहले मुसलमानों का नया आर्मी चीफ माज बिन जबल रजला ताला अन को नॉमिनेट किया था जिसके बाद वह आर्मी चीफ तो बन गए लेकिन कुछ ही अर्से बाद वह भी इस बीमारी से फौत हो गए और उनके साथ सीरिया के बहुत सारे गवर्नर्स भी शहीद हुए जिनमें से एक यजद बिन अबी सुफियान भी थे जो मुआविया बिन अबी सुफियान के भाई थे तो अब इन सारे जनरल्स और गवर्नर्स के शहीद होने के बाद हजरत उमर ने इन इलाकों के लिए नए लीडर्स चूज किए जिससे
यंग मुसलमानों को चांस मिला कि वह सामने आकर लीडर्स बन सके तो हजरत उमर ने सीरिया में मुसलमानों का नया आर्मी चीफ अमर बिन आस को बनाया और बाकी सिटीज के लिए गवर्नर्स भेजे जिनमें से एक गवर्नर का नाम था मुआविया बिन अबी सुफियान क्योंकि हजरत मुआविया के भाई यजद बिन अबी सुफियान भी पहले एक गवर्नर थे हजरत मुआविया इससे पहले आप सल्लल्लाहु अल वसल्लम के आखिरी दौर में कुरान लिखने वाले सहाबा में से भी थे और अब उनके भाई यजद के फौत होने के बाद हजरत उमर ने उन्हें ही दमस्क का गवर्नर बनाया जैसे
ही अमर बिनास मुसलमानों की फौज के आर्मी चीफ बने तो उन्होंने एक जबरदस्त फैसला किया और मुसलमानों को हुकुम दिया कि ज्यादा एक साथ रहने के बजाय एक दूसरे से दूर जाकर रहो और एक दूसरे से मिलना झुलना बंद कर दो जिस तरह कोरोना वायरस में पूरी दुनिया का सिस्टम ताकि यह बीमारी खुद बखुदा खत्म हो जाए एंड इट वर्क आहिस्ता आहिस्ता कुछ ही अरसे में यह बीमारी सीरिया से खत्म हो गई अब फाइनली मुसलमानों की दोनों बड़ी मुसीबतें कहत और बीमारी खत्म हो चुकी थी तो हजरत उमर हालात को कंट्रोल करने के लिए खुद
सीरिया की तरफ गए और वहां उनकी मुलाकात नए आर्मी चीफ अमर बिन आस से हुई जिन्होंने हजरत उमर के सामने एक नया प्लान रखा कि अब जब हमारे हालात ठीक हो चुके हैं तो हमें स्लो होने के बजाय आगे बढ़ना चाहिए और एक नए इलाके की तरफ जाना चाहिए इजिप्ट सब्सक्राइब
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